कश्मीर राज्य के 14 प्रमुख राजनीतिक पार्टियों को संवाद के लिए 24 जून को शाम 3 बजे आमंत्रित किया गया है. और इसके साथ ही देशभर में  कश्मीर और लद्दाख में राजनीतिक हालात सामान्य करने और चुनाव के मसले पर चर्चा प्रारंभ हो गई है.

यह माना जा रहा है कि नरेंद्र मोदी की सरकार पश्चिम बंगाल में चुनाव पूरी तरह से हार जाने के पश्चात अब जम्मू कश्मीर में चुनाव करवाकर किसी तरह सत्ता हासिल करने के साथ, देश में यह संदेश देना चाहती है कि भाजपा अभी भी अपनी पूरी ताकत के साथ देश को नेतृत्व देने में सक्षम है.

जम्मू कश्मीर और लद्दाख को लेकर के जिस तरीके से भारतीय जनता पार्टी और केंद्र सरकार की एक रणनीति है, जिस पर हम इस रिपोर्ट में आगे चर्चा करेंगे. मगर यह समझ लें की भाजपा और केंद्र सरकार ने कदम दर कदम यहां काम किया है. अपनी गहरी घुसपैठ  जनाधार बनाने का प्रयास किया है. इससे उसे आत्मविश्वास है कि अब वह समय आ गया है जब चुनाव में भाजपा को आसानी से विजय मिलने की उम्मीद है.

और दोनों हाथों में लड्डू!

जम्मू कश्मीर और लद्दाख को तीन भागों में विभाजित करने के बाद लगभग 2 वर्ष तक जम्मू कश्मीर से लेकर देश और अंतरराष्ट्रीय मंच पर  केंद्र सरकार ने लगातार यह चर्चा बनाए रखने में कामयाबी प्राप्त की कि भारत सरकार का यह कदम उसके संवैधानिक अधिकारों में आता है. यही कारण है कि संयुक्त राष्ट्र संघ हो या अमेरिका अथवा चीन सभी इस मसले पर लगभग खामोश रहे. एक समय जम्मू कश्मीर में हालात अवश्य चिंता जनक बन गए मगर केंद्र ने उस पर इस तरह काबू किया कि वह भी अपने आप में आश्चर्यजनक रूप से सफलीभूत हुआ है. नरेंद्र दामोदरदास मोदी और गृहमंत्री अमित शाह लगातार जम्मू कश्मीर और लद्दाख के मसले पर आगे बढ़ते ही चले गए हैं जहां तक वह जमीनी स्तर पर आम लोगों को और निचले स्तर के जनप्रतिनिधियों को विश्वास दिला करके उन्हें मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास हुआ है. त्रिस्तरीय चुनाव संपन्न हुए हैं सरपंचों से गृह मंत्री ने सीधे बात की है.

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