सौजन्य- सत्यकथा
साल 2003 से 2009 तक हैदराबाद के विभिन्न थानाक्षेत्रों तुरपान, रायदुर्गम, संगारेड्डी, डुंडीगल, नरसापुर, साइबराबाद और कोकाटपल्ली में करीब 7 औरतों की हत्या कर के पुलिस को उस ने सकते में डाल दिया था.
सातों महिलाओं की एक ही तरीके से साड़ी के पल्लू से गला घोंट कर हत्या की गई थी. पुलिस की जांच में यह बात सामने आई कि हत्यारा कोई एक है और वह भी सिरफिरा, जो सिर्फ महिलाओं को ही अपना शिकार बनाता है.
पुलिस ने पहली बार नरसंगी और कोकटपल्ली इलाकों में सन 2009 में हुई अलगअलग जगहों पर हुई हत्याओं को गंभीरता से लिया था. कोकाटपल्ली के इंसपेक्टर राधाकृष्ण राव ने अपने 3 काबिल सिपाहियों की मदद से 20-25 दिनों की कड़ी मेहनत से हत्या की कड़ी सुलझा ली थी और आरोपी माइना रामुलु को गिरफ्तार करने में सफलता हासिल की.
पुलिस ने पहली बार शातिर माइना रामुलु के खिलाफ न्यायालय में चार्जशीट दाखिल की थी. 2 साल बाद 2011 के फरवरी में अदालत ने आरोपी माइना रामुलु को दोषी ठहराया और उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई. साथ ही 50 हजार रुपए का जुरमाना भी भरने के आदेश दिए थे. जुरमाना न भरने की दशा में 6 महीने की अतिरिक्त सजा भी सुनाई.
कुछ दिनों तक तो शातिर माइना रामुलु सलाखों के पीछे कैद रहा. इसी दौरान उस ने पूरी जिंदगी सलाखों के पीछे बिताने से बचने के लिए फिल्मी अंदाज में एक बेहद शार्प योजना बनाई. उस ने मानसिक रोगी की तरह कैदियों से व्यवहार करना शुरू कर दिया. जुर्म की दुनिया के माहिर खिलाड़ी रामुलु ने ऐसा अभिनय किया कि लोगों को लगा कि वह वाकई में बीमार है. इस के बाद उसे जेल से निकाल कर एर्रागड्डा मेंटल हास्पिटल में भरती करा दिया गया. यह नवंबर, 2011 की बात है.
एक महीने तक वहां रहने के बाद माइना रामुलु 30 दिसंबर, 2011 की रात पुलिस को चकमा दे कर अस्पताल से भाग गया. यही नहीं, अपने साथ वह 5 अन्य कैदियों को भी भगा ले गया, जो मानसिक बीमारी का इलाज करा रहे थे.
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उस के दुस्साहसिक कारनामों से पुलिस महकमे के होश उड़ गए. इस सिलसिले में एसआर नगर पुलिस स्टेशन में माइना रामुलु के खिलाफ मामला दर्ज किया गया.
पुलिस कस्टडी से फरार रामुलु फिर अपने शिकार में जुट गया था. सन 2012 में चंदानगर में 2 और 2013 में बोवेनपल्ली के डुंडीगल में 3 महिलाओं की हत्याएं कीं. पांचों महिलाओं की हत्याएं एक ही तरीके साड़ी के पल्लू से गला घोंट कर की गई थीं. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में महिलाओं की हत्या से पहले दुष्कर्म किए जाने की बात भी सामने आई थी.
पुलिस जांच में महिलाओं की हत्या एक ही तरीके से की गई थी. यह तरीका शातिर किलर माइना रामुलु का था. पुलिस को समझते देर न लगी कि इन हत्याओं के पीछे माइना रामुलु का हाथ है. पुलिस ने इन हत्याआें पर फिर से ध्यान देना शुरू किया. आखिरकार 13 मई, 2013 में बोवेनपल्ली पुलिस रामुलु को गिरफ्तार करने में कामयाब हो गई.
जुर्म के साथसाथ सचमुच माइना रामुलु कानून का एक माहिर खिलाड़ी था. उस के पास एक अच्छा वकील था या फिर उस के सिर पर किसी और ताकतवर व्यक्ति का हाथ, यह बात पुलिस के लिए भी पहेली बनी हुई है.
5 साल बाद उस ने तेलंगाना हाईकोर्ट में अपनी सजा कम कराने के संबंध में अपील की. वह अपनी सजा को कम करवाने में कामयाब रहा. 2018 के अक्तूबर में माइना रामुलु के पक्ष में फैसला आया और उसे जेल से रिहा कर दिया गया. एक बार फिर उस ने कानून के मुंह पर तमाचा मार दिया था.
जेल से रिहा होने के बाद रामुलु कुछ दिन शांत रहा और पत्थर काटने का काम करने लगा, ताकि लोगों को यकीन हो जाए कि वह सुधर गया है. यह उस का एक छलावा था. काम करना तो एक बहाना था, इस के पीछे उस की मंशा शिकार की तलाश करना था.
यह शिकार उसे यूसुफगुडा की 50 वर्षीया कमला बैंकटम्मा के रूप में मिली. बैकटम्मा से रामुलु की मुलाकात दिसंबर, 2020 में एक शराब की भट्ठी पर हुई थी. सम्मोहन कला से उस ने बैंकटम्मा को अपनी ओर खींच लिया था. बस शिकार को अंतिम रूप देना शेष था.
30 दिसंबर, 2020 की शाम थी. यूसुफगुडा के अहाते में कुछ लोग ताड़ी पी रहे थे. बैंकटम्मा और रामुलु ने भी ताड़ी पी. दोनों पर जब हलका सुरूर चढ़ा तो रामुलु के जिस्म में वासना की आग धधक उठी और वह बैंकटम्मा को अपनी आगोश में लेने के लिए बेताब हो उठा. लेकिन वहां लोग थे, इसलिए वह अपने मकसद में कामयाब नहीं हुआ.
इस बीच सूरज डूबने लगा था और रात की काली चादर फैला चुकी थी. रामुलु बैंकटम्मा को ले कर कंपाउंड से बाहर निकल गया. वे दोनों शहर के बाहरी इलाके में किसी सुनसान जगह की तलाश में चल पड़े. यूसुफगुडा से ये दोनों घाटकेश्वर इलाके के अंकुशापुर पहुंचे. यह एक सुनसान जगह थी. दोनों ने यहां पहुंच कर थोड़ी और ताड़ी पी.
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इस के बाद रामुलु पूरी तरह बहक गया और बैंकटम्मा को अपनी हवस का शिकार बना डाला. फिर उस की साड़ी के पल्लू से गला घोंट कर उस की हत्या कर दी और लाश रेलवे लाइन के पास ठिकाने लगा कर फरार हो गया.
हैदराबाद की तेजतर्रार पुलिस शातिर माइना रामुलु को वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर गिरफ्तार करने में कामयाब हो ही गई. शातिर दिमाग वाला माइना रामुलु शायद यह भूल गया था कि उसे जनम देने वाली भी तो एक औरत ही है.
अगर उस की पत्नी ने उस के साथ धोखा किया था, तो सजा उसे मिलनी चाहिए थी न कि बेकसूर उन 18 महिलाओं को, जिन का न तो कोई दोष था और न ही उन्होंने उस का कोई अहित किया था.
रामुलु ने जो किया उस के किए की सजा सलाखों के पीछे काट रहा है. समाज के ऐसे दरिंदों की यही सजा होनी चाहिए. कथा लिखे जाने तक पुलिस ने उस के खिलाफ अदालत में आरोप पत्र दाखिल कर दिया था.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित