Satyakatha: नफरत की विषबेल- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

साल 2003 से 2009 तक हैदराबाद के विभिन्न थानाक्षेत्रों तुरपान, रायदुर्गम, संगारेड्डी, डुंडीगल, नरसापुर, साइबराबाद और कोकाटपल्ली में करीब 7 औरतों की हत्या कर के पुलिस को उस ने सकते में डाल दिया था.

सातों महिलाओं की एक ही तरीके से साड़ी के पल्लू से गला घोंट कर हत्या की गई थी. पुलिस की जांच में यह बात सामने आई कि हत्यारा कोई एक है और वह भी सिरफिरा, जो सिर्फ महिलाओं को ही अपना शिकार बनाता है.

पुलिस ने पहली बार नरसंगी और कोकटपल्ली इलाकों में सन 2009 में हुई अलगअलग जगहों पर हुई हत्याओं को गंभीरता से लिया था. कोकाटपल्ली के इंसपेक्टर राधाकृष्ण राव ने अपने 3 काबिल सिपाहियों की मदद से 20-25 दिनों की कड़ी मेहनत से हत्या की कड़ी सुलझा ली थी और आरोपी माइना रामुलु को गिरफ्तार करने में सफलता हासिल की.

पुलिस ने पहली बार शातिर माइना रामुलु के खिलाफ न्यायालय में चार्जशीट दाखिल की थी. 2 साल बाद 2011 के फरवरी में अदालत ने आरोपी माइना रामुलु को दोषी ठहराया और उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई. साथ ही 50 हजार रुपए का जुरमाना भी भरने के आदेश दिए थे. जुरमाना न भरने की दशा में 6 महीने की अतिरिक्त सजा भी सुनाई.

कुछ दिनों तक तो शातिर माइना रामुलु सलाखों के पीछे कैद रहा. इसी दौरान उस ने पूरी जिंदगी सलाखों के पीछे बिताने से बचने के लिए फिल्मी अंदाज में एक बेहद शार्प योजना बनाई. उस ने मानसिक रोगी की तरह कैदियों से व्यवहार करना शुरू कर दिया. जुर्म की दुनिया के माहिर खिलाड़ी रामुलु ने ऐसा अभिनय किया कि लोगों को लगा कि वह वाकई में बीमार है. इस के बाद उसे जेल से निकाल कर एर्रागड्डा मेंटल हास्पिटल में भरती करा दिया गया. यह नवंबर, 2011 की बात है.

एक महीने तक वहां रहने के बाद माइना रामुलु 30 दिसंबर, 2011 की रात पुलिस को चकमा दे कर अस्पताल से भाग गया. यही नहीं, अपने साथ वह 5 अन्य कैदियों को भी भगा ले गया, जो मानसिक बीमारी का इलाज करा रहे थे.

ये भी पढ़ें- Satyakatha: चरित्रहीन कंचन

उस के दुस्साहसिक कारनामों से पुलिस महकमे के होश उड़ गए. इस सिलसिले में एसआर नगर पुलिस स्टेशन में माइना रामुलु के खिलाफ मामला दर्ज किया गया.

पुलिस कस्टडी से फरार रामुलु फिर अपने शिकार में जुट गया था. सन 2012 में चंदानगर में 2 और 2013 में बोवेनपल्ली के डुंडीगल में 3 महिलाओं की हत्याएं कीं. पांचों महिलाओं की हत्याएं एक ही तरीके साड़ी के पल्लू से गला घोंट कर की गई थीं. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में महिलाओं की हत्या से पहले दुष्कर्म किए जाने की बात भी सामने आई थी.

पुलिस जांच में महिलाओं की हत्या एक ही तरीके से की गई थी. यह तरीका शातिर किलर माइना रामुलु का था. पुलिस को समझते देर न लगी कि इन हत्याओं के पीछे माइना रामुलु का हाथ है. पुलिस ने इन हत्याआें पर फिर से ध्यान देना शुरू किया. आखिरकार 13 मई, 2013 में बोवेनपल्ली पुलिस रामुलु को गिरफ्तार करने में कामयाब हो गई.

जुर्म के साथसाथ सचमुच माइना रामुलु कानून का एक माहिर खिलाड़ी था. उस के पास एक अच्छा वकील था या फिर उस के सिर पर किसी और ताकतवर व्यक्ति का हाथ, यह बात पुलिस के लिए भी पहेली बनी हुई है.

5 साल बाद उस ने तेलंगाना हाईकोर्ट में अपनी सजा कम कराने के संबंध में अपील की. वह अपनी सजा को कम करवाने में कामयाब रहा. 2018 के अक्तूबर में माइना रामुलु के पक्ष में फैसला आया और उसे जेल से रिहा कर दिया गया. एक बार फिर उस ने कानून के मुंह पर तमाचा मार दिया था.

जेल से रिहा होने के बाद रामुलु कुछ दिन शांत रहा और पत्थर काटने का काम करने लगा, ताकि लोगों को यकीन हो जाए कि वह सुधर गया है. यह उस का एक छलावा था. काम करना तो एक बहाना था, इस के पीछे उस की मंशा शिकार की तलाश करना था.

यह शिकार उसे यूसुफगुडा की 50 वर्षीया कमला बैंकटम्मा के रूप में मिली. बैकटम्मा से रामुलु की मुलाकात दिसंबर, 2020 में एक शराब की भट्ठी पर हुई थी. सम्मोहन कला से उस ने बैंकटम्मा को अपनी ओर खींच लिया था. बस शिकार को अंतिम रूप देना शेष था.

30 दिसंबर, 2020 की शाम थी. यूसुफगुडा के अहाते में कुछ लोग ताड़ी पी रहे थे. बैंकटम्मा और रामुलु ने भी ताड़ी पी. दोनों पर जब हलका सुरूर चढ़ा तो रामुलु के जिस्म में वासना की आग धधक उठी और वह बैंकटम्मा को अपनी आगोश में लेने के लिए बेताब हो उठा. लेकिन वहां लोग थे, इसलिए वह अपने मकसद में कामयाब नहीं हुआ.

इस बीच सूरज डूबने लगा था और रात की काली चादर फैला चुकी थी. रामुलु बैंकटम्मा को ले कर कंपाउंड से बाहर निकल गया. वे दोनों शहर के बाहरी इलाके में किसी सुनसान जगह की तलाश में चल पड़े. यूसुफगुडा से ये दोनों घाटकेश्वर इलाके के अंकुशापुर पहुंचे.  यह एक सुनसान जगह थी. दोनों ने यहां पहुंच कर थोड़ी और ताड़ी पी.

ये भी पढ़ें- Crime: शक की सुई और हत्या

इस के बाद रामुलु पूरी तरह बहक गया और बैंकटम्मा को अपनी हवस का शिकार बना डाला. फिर उस की साड़ी के पल्लू से गला घोंट कर उस की हत्या कर दी और लाश रेलवे लाइन के पास ठिकाने लगा कर फरार हो गया.

हैदराबाद की तेजतर्रार पुलिस शातिर माइना रामुलु को वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर गिरफ्तार करने में कामयाब हो ही गई. शातिर दिमाग वाला माइना रामुलु शायद यह भूल गया था कि उसे जनम देने वाली भी तो एक औरत ही है.

अगर उस की पत्नी ने उस के साथ धोखा किया था, तो सजा उसे मिलनी चाहिए थी न कि बेकसूर उन 18 महिलाओं को, जिन का न तो कोई दोष था और न ही उन्होंने उस का कोई अहित किया था.

रामुलु ने जो किया उस के किए की सजा सलाखों के पीछे काट रहा है. समाज के ऐसे दरिंदों की यही सजा होनी चाहिए. कथा लिखे जाने तक पुलिस ने उस के खिलाफ अदालत में आरोप पत्र दाखिल कर दिया था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

नौकरी के पीछे भागना छोड़, नौकरी देने वाला बन रहा यूपी का युवा : सीएम योगी

लखनऊ . महामारी का दौर थमने की आहट के साथ ही योगी सरकार ने एक बार फिर रोजगार-स्वरोजगार के कार्यों को तेजी देनी शुरू कर दी है मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक साथ 31,542 सूक्ष्म, छोटे और मंझोले उद्योगों को विस्तार के लिए 2505.58 करोड़ का ऋण प्रदान किया. साथ ही, एक जनपद-एक उत्पाद योजना के तहत चिन्हित उत्पादों के उत्पादन से लेकर विपणन तक की सभी जरूरतों में मदद के लिए विशेष पोर्टल की शुरुआत करते हुए 09 जिलों में कॉमन फैसिलिटी सेंटर की आधारशिला भी रखी.

ऑनलाइन स्वरोजगार संगम के इस खास मौके पर सीएम ने कहा कि ऐसे ही ऋण मेले अगले एक माह में सभी 75 जिलों में आयोजित किए जाने चाहिए.

मुख्यमंत्री आवास पर आयोजित कार्यक्रम में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश के विकास में एमएसएमई इकाइयों की सराहना करते हुए कहा कि आज प्रदेश में युवा वर्ग नौकरी के पीछे भागने की बजाय नौकरी देने की सोच के साथ अपने लक्ष्य तय कर रहा है. प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम, मुख्यमंत्री युवा स्वरोजगार योजना, एक जनपद-एक उत्पाद जैसी योजनाओं ने युवाओं को बड़ा सहारा दिया है. स्वरोजगार के कार्यक्रमों में महिलाओं-बेटियों ने खूब उत्साह दिखाया है. वैसे भी, लखनऊ की चिकनकारी जैसे परंपरागत शिल्प को महिलाओं की भूमिका हमेशा से ही रही है. प्रधानमंत्री जी ने जिस “आत्मनिर्भर भारत” की परिकल्पना की है, युवाओं की यही सोच, ऐसे प्रयास ही उसका आधार हैं.

सीएम योगी ने कहा कि बीते साल कोरोना की पहली लहर के दौरान हमारे सामने 40 लाख प्रवासी श्रमिकों के जीवन और जीविका को सुरक्षित करने की चुनौती थी. एमएसएमई इकाइयों ने इस दिशा में बहुत सराहनीय कार्य किया. बीते वर्ष भी कोविड काल में करीब 34 हजार एमएसएमई इकाइयों को वित्तीय सहायता दी गई थी, तो कोविड की दूसरी लहर के नियंत्रण में आते ही फिर से उद्योगों को ऋण उपलब्ध कराने का कार्यक्रम हो रहा है. मुख्यमंत्री ने एमएसएमई विभाग के मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह, अपर मुख्य सचिव नवनीत सहगल सहित पूरी विभागीय टीम के साथ-साथ स्टेट लेवल बैंकर्स कमेटी के सहयोग को भी सराहां सीएम ने जनपदीय अधिकारियों को जिला स्तरीय बैंकर्स कमेटी के साथ समन्वय बनाकर युवाओं को स्वरोजगार के लिए वित्तीय संसाधन मुहैया कराने के भी निर्देश दिए. उन्होंने कहा कि उत्पादों की मैपिंग कराई जाए, हमारे यहां प्रतिभा का अभाव नहीं, मंच देने भर की देर है. उत्तर प्रदेश आत्मनिर्भर भारत के सपने को पूरा करने में सबसे अहम भूमिका निभाएगा.

विश्वकर्माओं को मिला टूल-किट का उपहार: मुख्यमंत्री ने विश्वकर्मा श्रम सम्मान योजनांतर्गत कविता साहू और मंजू कश्यप को सिलाई, राहुल को बढ़ई , अमित कुमार को सुनार तथा रिजवान को नाई से जुड़े व्यवसाय के लिए जरूरी टूल-किट का उपहार भी दिया.

उत्पादन से मार्केटिंग तब सबके लिए मिलेगी मदद:

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बुधवार को गाजियाबाद, मैनपुरी, मऊ, मीरजापुर, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, आगरा, मुरादाबाद और भदोही में प्रस्तावित कॉमन फैसिलिटी सेंटर का शिलान्यास किया. 79 करोड़ 54 लाख के खर्च से तैयार होने वाले इन केंद्रों पर उद्यमियों को ओडीओपी योजनांतर्गत जनपद के चिन्हित उत्पादों के उत्पादन से लेकर विपणन तक के समस्त अवयवों जैसे कच्चा माल, डिजाइन, उत्पादन प्रक्रिया, गुणवत्ता सुधार, अनुसंधान एवं विकास, पर्यावरण एवं ऊर्जा संरक्षण तथा पैकेजिंग आदि की सुविधाएं मिल सकेंगी.इसके अलावा, सीएम ने https://diupmsme.upsdc.gov.in/en पोर्टल का भी शुभारंभ किया.

विश्व में हो ओडीओपी की चर्चा: सिद्धार्थ नाथ

एमएसएमई विभाग के मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने कहा कि बीते चार वर्षों में प्रदेश के एमएसएमई सेक्टर ने बड़ी ऊंचाइयां हासिल की हैं. सीएम योगी के अभिनव प्रयोग ओडीओपी की चर्चा न केवल देश, बल्कि विदेशों में भी हो रही है. सरकार ने परंपरागत शिल्प, उद्योगों को विकास के लिए बड़ा संबल दिया है. इससे पहले, एसीएस नवनीत सहगल ने विभागीय गतिविधियों के बारे में संक्षिप्त जानकारी भी दी.

मौत के मुंह में पहुंचे लोग- भाग 3: मध्य प्रदेश की कहानी

अब पढि़ए मध्य प्रदेश की कहानी.

सूरत में ग्लूकोज, नमक और पानी से नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन बनाने के मास्टरमाइंड कौशल वोरा ने मध्य प्रदेश में भी इन इंजेक्शनों को बेच कर कोरोना मरीजों की जान से खिलवाड़ किया. कौशल ने मुंबई को सेंट्रल पौइंट बना कर दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, चेन्नई और मुंबई सहित पूरे देश में लाखों नकली इंजेक्शन सप्लाई किए थे.

कौशल से पूछताछ के आधार पर गुजरात पुलिस ने मध्य प्रदेश के इंदौर शहर से सुनील मिश्रा, कुलदीप सांवलिया और जबलपुर के सपन जैन को मई के दूसरे सप्ताह में गिरफ्तार किया. इन्होंने कौशल से हजारों इंजेक्शन खरीद कर मध्य प्रदेश में बेचे थे.

इन लोगों ने इंदौर के ही एक दवा विक्रेता को भी 17 हजार रुपए प्रति इंजेक्शन के हिसाब से 100 नकली इंजेक्शन बेच दिए थे. आम जरूरतमंद लोगों को 40 हजार रुपए तक में एक इंजेक्शन बेचा.

खास बात यह भी रही कि गिरफ्तार दलाल कुलदीप सांवलिया ने कोरोना से पीडि़त अपनी मां को भी यही नकली इंजेक्शन लगवा दिए थे. दरअसल, उसे यह पता ही नहीं था कि ये इंजेक्शन नकली हैं.

इंदौर में पुलिस की जांचपड़ताल में पता चला कि कौशल वोरा के बनाए नकली इंजेक्शनों को लगाने के बाद कुछ कोरोना मरीजों की मौत भी हो गई थी. इस के बाद पुलिस ने कौशल वोरा, उस के पार्टनर पुनीत शाह और इंदौर के सुनील मिश्रा के खिलाफ गैरइरादतन हत्या की धाराएं भी जोड़ दीं.

बाद में इंदौर की विजय नगर पुलिस ने नकली इंजेक्शन बेचने के मामले में दवा बाजार के 3 दलालों आशीष ठाकुर, चीकू शर्मा और सुनील लोधी को मध्य प्रदेश के देवास से गिरफ्तार किया.

पुलिस की पूछताछ में सामने आया कि आरोपी सुनील मिश्रा मूलरूप से मध्य प्रदेश के रीवा का रहने वाला है. उस ने संघ लोक सेवा आयोग की सिविल सेवा परीक्षा का प्री एग्जाम पास कर लिया था, लेकिन सन 2012 में वह मेंस क्लीयर नहीं कर सका. इस के बाद उस ने खंडवा रोड पर खुद का मार्केट खोला. उस के पिता मध्य प्रदेश टूरिज्म में मैनेजर थे.

ये भी पढ़ें- मौत के मुंह में पहुंचे लोग- भाग 2: सूरत में हुआ बड़ा भंडाफोड़

बाद में सुनील ग्लव्ज, मास्क व सैनेटाइजर की दलाली करने लगा था. एक साल पहले कारोबार के सिलसिले में उस का परिचय सूरत के कौशल वोरा और पुनीत शाह से हुआ था. इस के बाद ये आपस में व्यापार करने लगे. कोरोना की दूसरी लहर में जब रेमडेसिविर इंजेक्शन की किल्लत हुई, तो सुनील ने पैसा कमाने के मकसद से कुछ लोगों से इस इंजेक्शन के लिए संपर्क किया.

कौशल व पुनीत से बात हुई, तो उन्होंने सुनील को सूरत बुलाया और अपने ठाठबाट, लग्जरी कारों और महंगे होटलों में ठहरने के जलवे दिखाए. उन्होंने उसे ये इंजेक्शन दिलाने की हामी भर ली. बाद में उसे मुंबई बुला कर पहली बार में 700 इंजेक्शन दिए. सुनील ने ये इंजेक्शन इंदौर ला कर दवा बाजार के दलाल कुलदीप सांवलिया, चीकू, सुनील लोधी आदि के जरिए बेच दिए.

सुनील से पूछताछ के आधार पर पुलिस ने नकली इंजेक्शन मामले में मई के पहले पखवाड़े में सागर के यूथ कांग्रेस के जिला उपाध्यक्ष प्रशांत पाराशर और सांवेर के होम्योपैथी डाक्टर सरवर खान को भी गिरफ्तार कर लिया. इंदौर के दवा बाजार के एक व्यापारी गोविंद गुप्ता को भी इस मामले में आरोपी बनाया गया.

कांग्रेस नेता प्रशांत ने सुनील से 65 से ज्यादा इंजेक्शन खरीदे थे. यूथ कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीनिवास ने कोरोना संकट काल में एसओएस हेल्पलाइन शुरू की थी. इस में प्रशांत को भोपाल का कोऔर्डिनेटर बनाया था. प्रशांत ने कोरोना पीडि़तों की मदद के लिए एक अभियान शुरू किया था. इसी अभियान के तहत उस ने सुनील से खरीदे नकली इंजेक्शन लोगों को बेचे थे. प्रशांत को ये इंजेक्शन नकली होने का पता नहीं था.

भोपाल की नर्स निकली बेहद शातिर

भोपाल में इस दौरान एक रोचक किस्सा सामने आया. जे.के. अस्पताल की नर्स शालिनी वर्मा कोरोना मरीजों के लिए मंगाए गए रेमडेसिविर इंजेक्शन छिपा कर रख लेती थी और मरीज को सादा पानी का इंजेक्शन लगा देती थी.

नर्स शालिनी चुराए गए ये इंजेक्शन इसी अस्पताल में काम करने वाले अपने प्रेमी नर्सिंग कर्मचारी झलकन सिंह मीणा को महंगे दाम पर बेचने के लिए दे देती थी. पुलिस ने इस मामले में झलकन को गिरफ्तार कर लिया था. उस की प्रेमिका नर्स की तलाश की जा रही थी. पता चलने पर अस्पताल प्रबंधन ने दोनों कर्मचारियों को हटा दिया.

मध्य प्रदेश के जबलपुर शहर में अप्रैल के चौथे सप्ताह में रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी में पुलिस ने निजी अस्पतालों के 2 डाक्टरों नीरज साहू व जितेंद्र ठाकुर सहित 5 लोगों को गिरफ्तार किया था. पूछताछ में पता चला कि ये लोग अस्पताल से चुरा कर इंजेक्शन महंगे दामों पर बेचते थे.

बाद में गुजरात पुलिस द्वारा गिरफ्तार सूरत के कौशल वोरा और इंदौर के सुनील मिश्रा से पूछताछ में पता चला कि इन्होंने जबलपुर के सिटी हौस्पिटल में भी नकली इंजेक्शन सप्लाई किए थे. इस का खुलासा होने के बाद जबलपुर की ओमती थाना पुलिस ने सिटी हौस्पिटल के संचालक सरबजीत सिंह मोखा, दवा सप्लायर सपन जैन और अन्य लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया.

पुलिस में मुकदमा दर्ज होने का पता चलने पर अस्पताल संचालक मोखा खुद को कोरोना पौजिटिव बताते हुए 10 मई को अपने ही अस्पताल में भरती हो गया. इस पर पुलिस ने अस्पताल में पहरा लगा दिया. पुलिस ने दूसरे ही दिन मोखा की कोरोना जांच कराई. जांच रिपोर्ट निगेटिव आने पर मोखा को 11 मई को गिरफ्तार कर लिया गया.

उस के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत काररवाई की गई. मोखा विश्व हिंदू परिषद के नर्मदा डिवीजन का जिलाध्यक्ष था. यह मामला सामने आने के बाद उसे पद से हटा दिया गया.

दूसरे दिन अदालत ने उसे जेल भेज दिया. मोखा ने दवा सप्लायर सपन जैन के माध्यम से सुनील मिश्रा से करीब 500 इंजेक्शन मंगाए थे. नकली इंजेक्शनों का मामला सामने आने के बाद सिटी हौस्पिटल को सेंट्रल गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम से बाहर कर दिया गया. पुलिस ने 17 मई की रात सरबजीत सिंह मोखा की पत्नी जसमीत कौर और मोखा के सिटी अस्पताल की मैनेजर सौम्या खत्री को भी गिरफ्तार कर लिया.

मोखा के बेटे हरकरण सिंह की तलाश की जा रही थी. उस के अस्पताल में नकली रेमडिसिविर इंजेक्शन लगाने से 15 से ज्यादा लोगों की मौत होने की शिकायतें पुलिस को मिलीं.

ये भी पढ़ें- मौत के मुंह में पहुंचे लोग, लूटने में शामिल धोखेबाज नेता, व्यापारी और सेवक

लखनऊ अस्पताल में हुआ इंजेक्शनों का गड़बड़ घोटाला

लखनऊ सहित पूरे उत्तर प्रदेश में भी यही हाल सामने आया. अप्रैल के दूसरे पखवाड़े में पुलिस ने रेमडेसिविर इंजेक्शनों की कालाबाजारी में 2 डाक्टरों सहित 4 लोगों को गिरफ्तार किया. इन से पूछताछ के आधार पर एक नर्सिंग छात्र सहित 4 लोगों को पकड़ा गया और 91 नकली इंजेक्शन बरामद किए.

इन के अलावा 4 दूसरे लोगों को गिरफ्तार कर 191 इंजेक्शन बरामद किए गए. इन गिरफ्तारियों से पता चला कि लखनऊ के किंग जार्ज मैडिकल कालेज का स्टाफ भी इंजेक्शनों के गड़बड़ घोटाले में शामिल था. बाद में भी कई लोग गिरफ्तार किए गए.

योगी सरकार ने शिल्पियों के हुनर दी अंतर्राष्ट्रीय पहचान

वाराणसी. योगी  सरकार ने देश के शिल्पियों के हुनर को जीआई उत्पाद के रूप में विश्व में पहचान दिलाई है. जिससे  कोरोना काल में भी जीआई उत्पादों पर लोगों का भरोसा रहा और  मांग बनी  रही. लॉकडाउन में जब दुकानें बंद रही तब भी इस उत्पाद की  बिक्री देश और विदेशों  में ऑनलाइन  माध्यम से होती रही. वाराणसी के एक उद्यमी ने योगी सरकार के स्टार्टअप योजना का लाभ उठाते हुए कोविड काल में जीआई उत्पादों का लाखों का क़ारोबार कर लिया है. आप को जानकर ताज़्जुब होगा की ये कोराबार सिर्फ़ ऑनलाइन हुआ है. प्रतीक बी सिंह नाम के इस युवा उद्यमी के वेब साइट पर सिर्फ जीआई उत्पाद ही बिकते है. लेकिन अब प्रतीक ने कुछ ओडीओपी उत्पादों को भी ऑनलाइन प्लेटफार्म देना शुरू किया  है.

आईएएस बनने की चाह रखने वाले इस युवा को स्टार्टअप योजना ने आसमान में उड़ने की राह दिखा दी है. अब प्रतीक उन हुनरमंद लोगों को भी प्लेटफार्म दे रहे हैं, जिन्होंने अपने हुनर का लोहा पूरी दुनिया से  मनवाया है. 370 जीआई उत्पादों में से देश के 299 जीआई उत्पादों (जिनमे से  उत्तर प्रदेश से अकेले 27 जीआई उत्पाद है)  को एक जग़ह शॉपिंगकार्ट 24 नामक इ -कॉमर्स की साईट पर लाकर भारत के हस्तकला शिल्पियों की  हुनर को पूरे विश्व में पहुँचा रहे है. खाने, सजाने, संगीत, खिलौने, पहनने से लेकर हर रोज़ इस्तेमाल होने वाली जीआई  उत्पादों की ऑनलाइन बिक्री देश और विदेशो में खूब हो रही है. वाराणसी का लकड़ी का ख़िलौना, बनारसी साड़ी, गुलाबी मीनाकारी , पंजादारी, ज़री जरदोजी , सिद्धार्थ नगर का काला नमक चावल, गोरखपुर का टेराकोटा, गाज़ीपुर की वाल हैंगिंग आदि उत्पादों की अमेरिका समेत कई देशों में भारी मांग है. जीआई उत्पाद की ख़ास बात ये होती  कि ये सभी उत्पाद हैंडलूम व हैंडीक्राफ्ट उत्पाद होते हैं.

प्रतीक ने बताया कि उन्होंने 2016 में  अपनी स्टार्टअप कंपनी शुरु की थी. उसके बाद जीआई उत्पादों को धीरे-धीरे ऑनलाइन प्लेटफार्म पर लाना शुरू किया. कोरोना काल में लॉकडाउन ने जब दुकानें खुलना बंद हुई तो प्रतीक ने ऑनलाइन बाज़ार का दरवाजा दुनिया के लिए खोल दिया. प्रतीक अप्रैल से अब तक करीब 7 लाख का जीआई उत्पाद देश और विदेशों  में बेच चुके हैं. प्रतीक ने बताया कि पहले  काशी के जीआई टैगिंग प्राप्त उत्पादों को ऑनलाइन बेचना शुरू किया. फिर वो यूपी के 27 प्रोडक्ट्स को ऑनलाइन  प्लेटफार्म पर लेकर आए. इनकी कंपनी से  डिपार्टमेंट ऑफ़ प्रमोशन ऑफ़ इंडस्ट्रीज़ एंड इंटरनल ट्रेड( DPIIT ) से  मान्यता प्राप्त है. जिससे ई-कॉमर्स में मदद मिलती  है. अपने कस्टमर के लिए ये कंपनी हुनरमंद कलाकारों के लाइव प्रदर्शन भी करवाती है. जिसे बाद में सोशल मीडिया के माध्यम से उनकी कला को और लोगों तक पहुंचने में भी मदद मिलती है. शिल्पियों को ट्रिपल “ई” एजुकेट ,एम्पॉवर,एनरिच  के फॉर्मूले से समृद्ध  करते है. जीआई ( जियोग्राफिकल  इंडिकेशन) जीआई उत्पाद यानी भौगोलिक संकेतक या जियोग्राफिकल इंडिकेशन ऐसे उत्पादों होते है  जिनका एक विशिष्ट भौगोलिक मूल क्षेत्र होता है. इन उत्पादों की विशिष्ट विशेषता एवं प्रतिष्ठा भी इसी मूल क्षेत्र के कारण होती है. इस तरह का संबोधन उत्पाद की गुणवत्ता और विशिष्टता का एहसास देता है.

Romantic Story: रुह का स्पंदन- भाग 3

घर वालों की सहमति पर सुदेश और दक्षा ने मिल कर बातें करने का निश्चय किया. सुदेश सुबह ही मिलना चाहता था, लेकिन दक्षा ने ब्रेकफास्ट कर के मिलने की बात कही. क्योंकि वह पूजापाठ कर के ही ब्रेकफास्ट करती थी. सुदेश में दक्षा से मिलने के लिए गजब का उत्साह था. दक्षा की बातों और उस के स्वभाव ने आकर्षण तो पैदा कर ही दिया था. इस के अलावा दक्षा ने अपने जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण बातें मिल कर बताने को कहा था. वो बातें कौन सी थीं, सुदेश उन बातों को भी जानना चाहता था.

निश्चित की गई जगह पर सुदेश पहले ही पहुंच गया था. वहां पहुंच कर वह बेचैनी से दक्षा की राह देख रहा था. वह काले रंग की शर्ट और औफ वाइट कार्गो पैंट पहन कर गया था. रेस्टोरेंट में बैठ कर वह हैडफोन से गाने सुनने में मशगूल हो गया. दक्षा ने काला टौप पहना था, जिस के लिए उस की मम्मी ने टोका भी था कि पहली बार मिलने जा रही है तो जींस टौप, वह भी काला.

तब दक्षा ने आदत के अनुसार लौजिकल जवाब दिया था, ‘‘अगर मैं सलवारसूट पहन कर जाती हूं और बाद में उसे पता चलता है कि मैं जींस टौप भी पहनती हूं तो यह धोखा देने वाली बात होगी. और मम्मी इंसान के इरादे नेक हों तो रंग से कोई फर्क नहीं पड़ता.’’

ये भी पढ़ें-  विश्वासघात

तर्क करने में तो दक्षा वकील थी. बातों में उस से जीतना आसान नहीं था. वह घर से निकली और तय जगह पर पहुंच गई. सढि़यां चढ़ कर दरवाजा खोला और रेस्टोरेंट में अंदर घुसी. फोटो की अपेक्षा रियल में वह ज्यादा सुंदर और मस्ती में गाने के साथ सिर हिलाती हुई कुछ अलग ही लग रही थी.

अचानक सुदेश की नजर दक्षा पर पड़ी तो दोनों की नजरें मिलीं. ऐसा लगा, दोनों एकदूसरे को सालों से जानते हों और अचानक मिले हों. दोनों के चेहरों पर खुशी छलक उठी थी.

खातेपीते दोनों के बीच तमाम बातें हुईं. अब वह घड़ी आ गई, जब दक्षा अपने जीवन से जुड़ी महत्त्वपूर्ण बातें उस से कहने जा रही थी. वहां से उठ कर दोनों एक पार्क में आ गए थे, जहां दोनों कोने में पेड़ों की आड़ में रखी एक बेंच पर बैठ गए. दक्षा ने बात शुरू की, ‘‘मेरे पापा नहीं हैं, सुदेश. ज्यादातर लोगों से मैं यही कहती हूं कि अब वह इस दुनिया में नहीं है, पर यह सच नहीं है. हकीकत कुछ और ही है.’’

इतना कह कर दक्षा रुकी. सुदेश अपलक उसे ही ताक रहा था. उस के मन में हकीकत जानने की उत्सुकता भी थी. लंबी सांस ले कर दक्षा ने आगे कहा, ‘‘जब मैं मम्मी के पेट में थी, तब मेरे पापा किसी और औरत के लिए मेरी मम्मी को छोड़ कर उस के साथ रहने के लिए चले गए थे.

‘‘लेकिन अभी तक मम्मीपापा के बीच डिवोर्स नहीं हुआ है. घर वालों ने मम्मी से यह कह कर उन्हें अबार्शन कराने की सलाह दी थी कि उस आदमी का खून भी उसी जैसा होगा. इस से अच्छा यही होगा कि इस से छुटकारा पा कर दूसरी शादी कर लो.’’

दक्षा के यह कहते ही सुदेश ने उस की तरफ गौर से देखा तो वह चुप हो गई. पर अभी उस की बात पूरी नहीं हुई थी, इसलिए उस ने नजरें झुका कर आगे कहा, ‘‘पर मम्मी ने सभी का विरोध करते हुए कहा कि जो कुछ भी हुआ, उस में पेट में पल रहे इस बच्चे का क्या दोष है. यानी उन्होंने गर्भपात नहीं कराया. मेरे पैदा होने के बाद शुरू में कुछ ही लोगों ने मम्मी का साथ दिया. मैं जैसेजैसे बड़ी होती गई, वैसेवैसे सब शांत होता गया.

‘‘मेरा पालनपोषण एक बेटे की तरह हुआ. अगलबगल की परिस्थितियां, जिन का अकेले मैं ने सामना किया है, उस का मेरी वाणी और व्यवहार में खासा प्रभाव है. मैं ने सही और गलत का खुद निर्णय लेना सीखा है. ठोकर खा कर गिरी हूं तो खुद खड़ी होना सीखा है.’’

अपनी पलकों को झपकाते हुए दक्षा आगे बोली, ‘‘संक्षेप में अपनी यह इमोशनल कहानी सुना कर मैं आप से किसी तरह की सांत्वना नहीं पाना चाहती, पर कोई भी फैसला लेने से पहले मैं ने यह सब बता देना जरूरी समझा.

‘‘कल कोई दूसरा आप से यह कहे कि लड़की बिना बाप के पलीबढ़ी है, तब कम से कम आप को यह तो नहीं लगेगा कि आप के साथ धोखा हुआ है. मैं ने आप से जो कहा है, इस के बारे में आप आराम से घर में चर्चा कर लें. फिर सोचसमझ कर जवाब दीजिएगा.’’

सुदेश दक्षा की खुद्दारी देखता रह गया. कोई मन का इतना साफ कैसे हो सकता है, उस की समझ में नहीं आ रहा था. अब तक दोनों को भूख लग आई थी. सुदेश दक्षा को साथ ले कर नजदीक की एक कौफी शौप में गया. कौफी का और्डर दे कर दोनों बातें करने लगे तभी अचानक दक्षा ने पूछा था, ‘‘डू यू बिलीव इन वाइब्स?’’

सुदेश क्षण भर के लिए स्थिर हो गया. ऐसी किसी बात की उस ने अपेक्षा नहीं की थी. खासकर इस बारे में, जिस में वह पूरी तरह से भरोसा करता हो. वाइब्स अलौकिक अनुभव होता है, जिस में घड़ी के छठें भाग में आप के मन को अच्छेबुरे का अनुभव होता है. किस से बात की जाए, कहां जाया जाए, बिना किसी वजह के आनंद न आए और इस का उलटा एकदम अंजान व्यक्ति या जगह की ओर मन आकर्षित हो तो यह आप के मन का वाइब्स है.

यह कभी गलत नहीं होता. आप का अंत:करण आप को हमेशा सच्चा रास्ता सुझाता है. दक्षा के सवाल को सुन कर सुदेश ने जीवन में एक चांस लेने का निश्चय किया. वह जो दांव फेंकने जा रहा था, अगर उलटा पड़ जाता तो दक्षा तुरंत मना कर के जा सकती थी. क्योंकि अब तक की बातचीत से यह जाहिर हो गया था. पर अगर सब ठीक हो गया तो सुदेश का बेड़ा पार हो जाएगा.

सुदेश ने बेहिचक दक्षा से उस का हाथ पकड़ने की अनुमति मांगी. दक्षा के हावभाव बदल गए. सुदेश की आंखों में झांकते हुए वह यह जानने की कोशिश करने लगी कि क्या सोच कर उस ने ऐसा करने का साहस किया है. पर उस की आंखो में भोलेपन के अलावा कुछ दिखाई नहीं दिया. अपने स्वभाव के विरुद्ध उस ने सुदेश को अपना हाथ पकड़ने की अनुमति दे दी.

ये भी पढ़ें- इक विश्वास था

दोनों के हाथ मिलते ही उन के रोमरोम में इस तरह का भाव पैदा हो गया, जैसे वे एकदूसरे को जन्मजन्मांतर से जानते हों. दोनों अनिमेष नजरों से एकदूसरे को देखते रहे. लगभग 5 मिनट बाद निर्मल हंसी के साथ दोनों ने एकदूसरे का हाथ छोड़ा. दोनों जो बात शब्दों में नहीं कह सके, वह स्पर्श से व्यक्त हो गई.

जाने से पहले सुदेश सिर्फ इतना ही कह सका, ‘‘तुम जो भी हो, जैसी भी हो, किसी भी प्रकार के बदलाव की अपेक्षा किए बगैर मुझे स्वीकार हो. रही बात तुम्हारे पिछले जीवन के बारे में तो वह इस से भी बुरा होता तब भी मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ता. बाकी अपने घर वालों को मैं जानता हूं. वे लोग तुम्हें मुझ से भी अधिक प्यार करेंगे. मैं वचन देता हूं कि बचपन से ले कर अब तक अधूरे रह गए सपनों को मैं हकीकत का रंग देने की कोशिश करूंगा.’’

सुदेश और दक्षा के वाइब्स ने एकदूसरे से संबंध जोड़ने की मंजूरी दे दी थी.

पुनर्मरण- भाग 1: शुचि खुद को क्यों अपराधी समझती थी?

कुछ सजा ऐसी भी होती है जो बगैर किसी अपराध के ही तय कर दी जाती है. उस दिन अपने परिवार के सामने मैं भी बिना किसी किए अपराध की सजा के रूप में अपराधिनी बनी खड़ी थी. हर किसी की जलती निगाहें मुझे घूर रही थीं, मानो मुझ से बहुत बड़ा अपराध हो गया हो.

मांजी की चलती तो शायद मुझे घर से निकाल दिया होता. मेरे दोनों बेटे त्रिशंक और आदित्य आंगन में अपनी दादी के साथ खड़े थे. पंडितजी कुरसी पर बैठे थे और मांजी को समझा रहे थे कि जो हुआ अच्छा नहीं हुआ. अब विभु की आत्मा की शांति के लिए उन्हें हवन- पूजा करनी होगी.. भारी दान देना होगा, क्योंकि आप की बहू के हाथों भारी पाप हो गया है.

मेरा अपना बड़ा बेटा त्रिशंक मुझे हिकारत से देखते हुए क्रोध में बोला, ‘‘मेरा अधिकार आप का कैसे हो गया, मां? यह आप ने अच्छा नहीं किया.’’

‘‘परिस्थितियां ऐसी थीं जिन में एक के अधिकार के लिए दूसरे के शरीर की दुर्गति तो मैं नहीं कर सकती थी, बेटे,’’ भीगी आंखों से बेटे को देखते हुए मैं ने कहा.

‘‘मजबूरी का नाम दे कर अपनी गलती पर परदा मत डालिए, मां.’’

तभी मांजी गरजीं, ‘‘बड़ी आंदोलनकारी बनती है. अरे, इस से पूछ त्रिशंक कि विभु के कुछ अवशेष भी साथ लाई है या सब वहीं गंगा में बहा आई.’’

ये भी पढ़ें- जरा सी आजादी: नेहा आत्महत्या क्यों करना चाहती थी?

‘‘बोलो न मां, चुप क्यों हो? दो जवाब दादी की बातों का.’’

‘‘कैसी बातें कर रहे हो भैया, आखिर पापा पर पहला हक तो मां का ही था न?’’

‘‘चुप बेसऊर,’’ मांजी फिर गरजीं, ‘‘पति की मौत पर पत्नी को होश ही कहां होता है जो वह उस का अंतिम संस्कार करे, इसे तो कोई दुख ही न हुआ होगा, आजाद जो हो गई. अब करेगी समाज सेवा जम कर.’’

‘‘चुप रहिए,’’ मेरी सहनशक्ति जवाब दे गई और मैं गरज पड़ी, ‘‘मेरा कुसूर क्या है? किस बात की सजा दे रहे हैं आप सब मुझे. यही न कि मैं ने अपने पति का उन की मौत के बाद अंतिम संस्कार क्यों कर दिया, तो सुनिए, वह मेरी मजबूरी थी. क्षतविक्षत खून से सनी लाश को मैं 2 दिन तक कैसे संभालती. कटरा से कोलकाता की दूरी कितनी है, क्या आप सब नहीं जानते? मेरे पास कोई साधन नहीं था. कैसे ले कर आती उन्हें यहां तक? फिर अपने पति का, जो मेरे जीवनसाथी थे, हर दुखसुख के भागीदार थे, अंतिम संस्कार कर के मैं ने क्या गलत कर दिया?’’

मेरी आवाज भर्रा गई और मैं ऊपर अपने कमरे में आ गई. मेरी दोनों बहुएं रेवती और रौबिंका भी मेरे पीछेपीछे ऊपर आ गईं. मेरी छोटी बहू रशियन थी. उस की समझ में जब कुछ नहीं आया तो वह अंगरेजी में बस यही कहती रही, ‘‘पापा की आत्मा के लिए प्रार्थना करो, वही ज्यादा जरूरी है, यह कलह क्यों हो रही है.’’

ये भी पढ़ें- Father’s Day Special- पापा के नाम चिट्ठी

मैं उसे क्या समझाती कि यहां हर धार्मिक अनुष्ठान शोरगुल और चिल्लाहट से ही शुरू होता है. कहीं पढ़ा था कि झूठ को जोर से बोलो तो वह सच बन जाता है. यही पूजापाठ का मंत्र भी है, जो पुजारी जितनी जोर से मंत्र पढे़गा, वह उतना ही बड़ा पंडित माना जाएगा.

मेरी आंखों में आंसू आ गए जो मेरे गालों पर बह निकले. विभु की मौत हो गई है. मेरा सबकुछ चला गया, मैं इस का शोक भी शांति से नहीं मना पा रही हूं. कमरे की खिड़की का परदा जरा सा खिसका हुआ था. दूर गगन में देखते हुए मैं अतीत में चली गई.

तुमने क्यों कहा मैं सुंदर हूं: भाग 4

‘‘इस तरह एक साल गुजर गया. उस दिन भी हाईकोर्ट में विभाग के विरुद्ध एक मुकदमे में मैं भी मौजूद था. विभाग के विरुद्ध वादी के वकील के कुछ हास्यास्पद से तर्क सुन कर जज साहब व्यंग्य से मुसकराए थे और उसी तरह मुसकराते हुए प्रतिवादी के वकील हमारी वकील साहिबा की ओर देख कर बोले, ‘हां वकील साहिबा, अब आप क्या कहेंगी.’

‘‘जज साहब के मुसकराने से अचानक पता नहीं वकील साहिबा पर क्या प्रतिक्रिया हुई. वे फाइल को जज साहब की तरफ फेंक कर बोलीं, ‘हां, अब तुम भी कहो, मैं, जवान हूं, सुंदर हूं, चढ़ाओ मुझे चने की झाड़ पर,’ कहते हुए वे बड़े आक्रोश में जज साहब के डायस की तरफ बढ़ीं तो इस बेतुकी और अप्रासंगिक बात पर जज साहब एकदम भड़क गए और इस गुस्ताखी के लिए वकील साहिबा को बरखास्त कर उन्हें सजा भी दे सकते थे पर गुस्से को शांत करते हुए जज साहब संयत स्वर में बोले, ‘वकील साहिबा, आप की तबीयत ठीक नहीं लगती, आप घर जा कर आराम करिए. मैं मुकदमा 2 सप्ताह बाद की तारीख के लिए मुल्तवी करता हूं.’

‘‘उस दिन जज साहब की अदालत में मुकदमा मुल्तवी हो गया. मगर इस के बाद लगातार कुछ ऐसी ही घटनाएं और हुईं. एक दिन वह आया जब एक दूसरे जज महोदय की नाराजगी से उन्हें मानसिक चिकित्सालय भिजवा दिया गया. अजीब संयोग था कि ये सभी घटनाएं मेरी मौजूदगी में ही हुईं.

‘‘वकील साहिबा की इस हालत की वजह खुद को मानने के चलते अपनी नैतिक जिम्मेदारी मानते हुए औफिस से ही समय निकाल कर उन का कुशलक्षेम लेने अस्पताल हो आता था. एक दिन वहां की डाक्टर ने मुझ से उन के रिश्ते के बारे पूछ लिया तो मैं ने डाक्टर को पूरी बात विस्तार से बतला दी. डाक्टर ने मेरी परिस्थिति जान कर मुलाकात का समय नहीं होने पर भी मुझे उन की कुशलक्षेम जानने की सुविधा दी. फिर डाक्टर ने सीधे उन के सामने पड़ने से परहेज रखने की मुझे सलाह देते हुए बताया कि वे मुझे देख कर चिंतित सी हो कर बोलती हैं, ‘तुम ने क्यों कहा, मैं सुंदर हूं.’ और मेरे चले आने पर लंबे समय तक उदास रहती हैं.

ये भी पढ़ें- Romantic Story: तुम टूट न जाना

‘‘बेटा उच्चशिक्षा के बाद और बड़ी बेटी व दामाद किसी विदेशी बैंकिंग संस्थान में अच्छे वेतन व भविष्य की खातिर विदेश चले गए थे. छोटी बेटी केंद्र की प्रशासनिक सेवा में चयनित हो गई थी. मगर वह औफिसर्स होस्टल में रह रही थी. अब परिवार में मेरे और पत्नी के अलावा कोई नहीं था. उधर पत्नी के मन में मेरे और वकील साहिबा के काल्पनिक अवैध संबंधों को ले कर गहराते शक के कारण उन का ब्लडप्रैशर एकदम बढ़ जाता था, और फिर दवाइयों के असर से कईकई दिनों तक मैमोरीलेप्स जैसी हालत हो जाती थी.

‘‘इसी हालात में उन्हें दूसरा झटका तब लगा जब बेटे ने अपनी एक विदेशी सहकर्मी युवती से शादी करने का समाचार हमें दिया.

‘‘उस दिन मेरे मुंह से अचानक निकल गया, ‘अब मन्नू को तो वकील साहिबा ने नहीं भड़काया.’ मेरी बात सुन कर पत्नी ने कोई विवाद खड़ा नहीं किया तो मुझे थोड़ा संतोष हुआ. मगर उस के बाद पत्नी को हाई ब्लडप्रैशर और बाद में मैमोरीलेप्स के दौरों में निरंतरता बढ़ने लगी तो मुझे चिंता होने लगी.

‘‘कुछ दिनों बाद उन्हें फिर से डिप्रैशन ने घेर लिया. अब पूरी तरह अकेला होने कारण पत्नी की देखभाल के साथ दैनिक जीवन की जरूरतों को पूरा करना बेहद कठिन महसूस होता था. रिटायरमैंट नजदीक था, और प्रमोशन का अवसर भी, इसलिए लंबी छुट्टियां ले कर घर पर बैठ भी नहीं सकता था. क्योंकि प्रमोशन के मौके पर अपने खास ही पीठ में छुरा भोंकने का मौका तलाशते हैं और डाक्टर द्वारा बताई गई दवाइयों के असर से वे ज्यादातर सोई ही रहती थीं. फिर भी अपनी गैरहाजिरी में उन की देखभाल के लिए एक आया रख ली थी.

ये भी पढ़ें- बदला: सुगंधा ने कैसे लिया रमेश से बदला

‘‘उस दिन आया ने कुछ देर से आने की सूचना फोन पर दी, तो मैं उन्हें दवाइयां, जिन के असर से वे कमसेकम 4 घंटे पूरी तरह सोईर् रहती थीं, दे कर औफिस चला गया था. पता नहीं कैसे उन की नींद बीच में ही टूट गई और मेरी गैरहाजिरी में नींद की गोलियों के साथ हाई ब्लडप्रैशर की दशा में ली जाने वाली गोलियां इतनी अधिक निगल लीं कि आया के फोन पर सूचना पा कर जब मैं घर पहुंचा तो उन की हालत देख कर फौरन उन्हें ले कर अस्पताल को दौड़ा. मगर डाक्टरों की कोशिश के बाद भी उन की जीवन रक्षा नहीं हो सकी.

‘‘पत्नी की मृत्यु पर बेटे ने तो उस की पत्नी के आसन्न प्रसव होने के चलते थोड़ी देर इंटरनैट चैटिंग से शोक प्रकट करते हुए मुझ से संवेदना जाहिर की थी, मगर दोनों बेटियां आईं थी. छोटी बेटी तो एक चुभती हुई खमोशी ओढ़े रही, मगर बड़ी बेटी का बदला हुआ रुख देख कर मैं हैरान रह गया. वकील साहिबा को मौसी कह कर उन के स्नेह से खुश रहने वाली और बैंकसेवा के चयन से ले कर उस के जीवनसाथी के साथ उस का प्रणयबंधन संपन्न कराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निबाहने के कारण उन की आजीवन ऋ णी रहने की बात करने वाली मेरी बेटी ने जब कहा, ‘आखिर आप के और उन के अफेयर्स के फ्रस्टेशन ने मम्मी की जान ले ही ली.’ और मां को अपनी मौसी की सेवा की याद दिलाने वाली छोटी बेटी ने भी जब अपनी बहन के ताने पर भी चुप्पी ही ओढ़े रही तो मैं इस में उस का भी मौन समर्थन मान कर बेहद दुखी हुआ था.

हरिराम- भाग 3: शशांक को किसने सही राह दिखाई

दूसरे दिन इमामबाड़ा की भूलभुलैया में दोनों एकदूसरे का हाथ पकड़ कर रास्ता खोजते रहे. शशांक और सरिता को लगा कि उन के कालिज के दिन लौट आए हैं. शाम को गोमती के किनारे बने पार्क में बैठेबैठे सरिता ने शशांक के कंधे पर सिर रख दिया और आंखें बंद कर लीं.

‘‘सरू, तुम्हें पता है, मुझ में आए इस बदलाव का जिम्मेदार कौन है…इस का जिम्मेदार हरिराम है,’’ उस ने सरिता के बालों को सहलाते हुए उस शाम की घटना बता दी. शशांक दूसरे दिन प्रोजेक्ट पर पहुंचा तो वह खुद को बहुत हलका महसूस कर रहा था. उस ने पाया कि उस में कुछ कर दिखाने की इच्छाशक्ति पहले से दोगुनी हो गई है.

इधर सरिता ने हरिराम के कमरे में जा कर कहा, ‘‘काका, आप के कारण मेरी खोई हुई गृहस्थी, मेरा परिवार मुझे वापस मिला है. मैं आप की जिंदगी भर ऋणी रहूंगी. मैं अब आप को काका कह कर बुलाऊंगी.’’

हरिराम ने भावुक हो कर सरिता के सिर पर हाथ फेरा. ‘‘काका, अब मैं यहीं रहूंगी और खाना मैं बनाऊंगी आप आराम करना.’’

‘‘नहीं बिटिया, मेरा काम मत छीनो. हां, अपनेआप को व्यस्त रखो और कुछ नया करना सीखो.’’ सरिता ने चित्रकला सीखनी शुरू कर दी. शशांक के प्रयासों से लखनऊ प्रोजेक्ट में पहले धीमी और फिर तेज प्रगति होने लगी. उत्तर प्रदेश विद्युत निगम ने कंपनी को भुगतान शुरू कर दिया. यही नहीं, उस प्रोजेक्ट के विस्तार का काम भी उस की कंपनी को मिल गया.

1 माह के बाद सरिता ने हरिराम से कहा, ‘‘काका, आप के कारण मुझे अपनी गलतियों का एहसास हो रहा है. मैं दिल्ली में बिलकुल खाली रहती थी. इस कारण मेरा दिमाग गलत विचारों का कारखाना बन गया था. बजाय शशांक की परेशानी समझने के मैं अपने पति पर शक करने लगी थी.’’ हरिराम के लाख मना करने पर भी सरिता ने उस का एक बड़ा चित्र बनाया.

इधर दिल्ली में कंपनी अध्यक्ष मि. सेनगुप्ता के सामने निदेशक मि. उत्पल बनर्जी पसीनापसीना हो रहे थे. ‘‘मि. बनर्जी, आप को पता है कि हरियाणा विद्युत निगम ने कंपनी को फरीदाबाद प्रोजेक्ट के लिए कोर्ट का नोटिस भेजा है?’’

ये भी पढ़ें- पट्टेदार ननुआ : कैसी थी ननुआ की जिंदगी

‘‘सर, शशांक बहुत गड़बड़ कर के गया है. उस ने कोई कागज न गांगुली को और न मुझे दिया है. बिना कागज के तो….’’ ‘‘मि. बनर्जी, आप मुझे क्या बेवकूफ समझते हैं?’’

‘‘नहीं सर, आप तो…’’ ‘‘मि. बनर्जी, सारी गड़बड़ आप के दिमाग में है. आप आदमी का मूल्यांकन उस के काम से नहीं बल्कि उस के बंगाली होने या न होने से करते हैं.’’

‘‘मेरे पास उन फाइलों और रिपोर्टों की पूरी सूची है जो शशांक, जतिन गांगुली को दे कर गया है.’’ ‘‘यस सर.’’

‘‘आप और गांगुली 1 सप्ताह के अंदर फरीदाबाद वाले प्रोजेक्ट को रास्ते पर लाइए या अपना त्यागपत्र दीजिए.’’ ‘‘सर, 1 सप्ताह में…’’

‘‘आप जा सकते हैं.’’ 1 सप्ताह के बाद मि. उत्पल बनर्जी और मि. गांगुली कंपनी से निकाले जा चुके थे. मि. सेनगुप्ता ने शशांक को फोन कर के कंपनी की इज्जत की खातिर फरीदाबाद प्रोजेक्ट का अतिरिक्त भार लेने को कहा.

‘‘हरिराम, तुम ने ठीक कहा था. ईमानदारी और मेहनत से काम करने पर हर व्यक्ति की प्रतिभा का मूल्यांकन होता है,’’ शशांक दिल्ली के लिए विदा लेते समय बोला. ‘‘काका, आप की बहुत याद आएगी,’’ सरिता बोली.

ये भी पढ़ें- सच उगल दिया: क्या था शीला का सच

1 माह बाद फरीदाबाद प्रोजेक्ट भी ठीक हो गया और शशांक को दोहरा प्रमोशन दे कर कंपनी का जनरल मैनेजर बना दिया गया. उस ने हरिराम को अपने प्रमोशन की खबर देने के लिए फोन किया तो पता चला कि हरिराम नौकरी छोड़ कर कहीं चला गया है.

शाम को शशांक ने हरिराम के बारे में सरिता को बताया तो वह गंभीर हो गई, फिर बोली, ‘‘हरिराम काका शायद अपने बिछुड़े परिवार की तलाश में गए होंगे या शांति की तलाश में.’’ आज 3 साल बाद शशांक कंपनी में निदेशक है. सरिता ने चित्रकला का स्कूल खोला है. उन की बैठक में हरिराम का सरिता द्वारा बनाया हुआ चित्र लगा है.

परख- भाग 3: प्यार व जनून के बीच थी मुग्धा

दोनों की धूमधाम से सगाई हुई और 2 महीने बाद ही विवाह की तिथि निश्चित कर दी गई. सारा परिवार जोश के साथ विवाह की तैयारी में जुटा था कि अचानक प्रसाद ने एकाएक प्रकट हो कर मुग्धा को बुरी तरह झकझोर दिया था. उस ने प्रसाद को पूरी तरह अनदेखा करने का निर्णय लिया पर वह जब भी औफिस से निकलती, प्रसाद उसे वहीं प्रतीक्षारत मिलता. वह प्रतिदिन आग्रह करता कि कहीं बैठ कर उस से बात करना चाहता है, पर मुग्धा कैब चली जाने का बहाना बना कर टाल देती.

पर एक दिन वह अड़ गया कि कैब का बहाना अब नहीं चलने वाला. ‘‘कहा न, मैं तुम्हें छोड़ दूंगा. फिर क्यों भाव खा रही हो. इतने लंबे अंतराल के बाद तुम्हारा प्रेमी लौटा है, मुझे तो लगा तुम फूलमालाओं से मेरा स्वागत करोगी पर तुम्हारे पास तो मेरे लिए समय ही नहीं है.’’

‘‘किस प्रेमी की बात कर रहे हो तुम? प्रेम का अर्थ भी समझते हो. मुझे कोई रुचि नहीं है तुम में. मेरी मंगनी हो चुकी है और अगले माह मेरी शादी है. मैं नहीं चाहती कि तुम्हारी परछाई भी मुझ पर पड़े.’’

‘‘समझ गया, इसीलिए तुम मुझे देख कर प्रसन्न नहीं हुईं. नई दुनिया जो बसा ली है तुम ने. तुम तो सात जन्मों तक मेरी प्रतीक्षा करने वाली थीं, पर तुम तो 7 वर्षों तक भी मेरी प्रतीक्षा नहीं कर सकीं. सुनो मुग्धा, कहीं चल कर बैठते हैं. मुझे तुम से ढेर सारी बातें करनी हैं. अपने बारे में, तुम्हारे बारे में, अपने भविष्य के बारे में.’’

ये भी पढ़ें- प्रेम ऋण- भाग 1: पारुल अपनी बहन को क्यों बदलना चाहती थी?

‘‘पता नहीं प्रसाद, तुम क्या कहना चाह रहे हो. मुझे नहीं याद कि मैं ने तुम्हारी प्रतीक्षा करने का आश्वासन दिया था. आज मुझे मां के साथ शौपिंग करनी है. वैसे भी मैं इतनी व्यस्त हूं कि कब दिन होता है, कब रात, पता ही नहीं चलता,’’ मुग्धा ने अपनी जान छुड़ानी चाही. जब तक प्रसाद कुछ सोच पाता, मुग्धा कैब में बैठ कर उड़नछू हो गई थी.

‘‘क्या हुआ?’’ बदहवास सी मुग्धा को कैब में प्रवेश करते देख सहयात्रियों ने प्रश्न किया.

‘‘पूछो मत किस दुविधा में फंस गई हूं मैं. मेरा पुराना मित्र प्रसाद लौट आया है. रोज यहां खड़े हो कर कहीं चल कर बैठने की जिद करता है. मैं बहुत डर गई हूं. तुम ही बताओ कोई 3 वर्षों के लिए गायब हो जाए और अचानक लौट आए तो उस पर कैसे भरोसा किया जा सकता है.’’

‘‘समझा, ये वही महाशय हैं न जिन्होंने पार्टी में सब के सामने तुम्हें थप्पड़ मारा था,’’ उस के सहकर्मी अनूप ने जानना चाहा था.

‘‘हां. और गुम होने से पहले हमारी बोलचाल तक नहीं थी. पर अब वह ऐसा व्यवहार कर रहा है मानो कुछ हुआ ही नहीं था,’’ मुग्धा की आंखें डबडबा आई थीं, गला भर्रा गया था.

‘‘तुम से वह चाहता क्या है?’’ अनूप ने फिर प्रश्न किया, कैब में बैठे सभी सहकर्मियों के कान ही कान उग गए.

‘‘पता नहीं, पर अब मुझे डर सा लगने लगा है. पता नहीं कब क्या कर बैठे. पता नहीं, ऐसा मेरे साथ ही क्यों होता है?’’

मुग्धा की बात सुन कर सभी सहकर्मियों में सरसरी सी फैल गई. थोड़ी देर विचारविमर्श चलता रहा.

‘‘मुग्धा तुम्हारा डर अकारण नहीं है. ऐसे पागल प्रेमियों से बच कर रहना चाहिए. पता नहीं, कब क्या कर बैठें?’’ सब ने समवेत स्वर में अपना डर प्रकट किया.

‘‘मेरे विचार से तो मुग्धा को इन महाशय से मिल लेना चाहिए,’’ अनूप जो अब तक सोचविचार की मुद्रा में बैठा था, गंभीर स्वर में बोला.

‘‘अनूप, तुम ऐसा कैसे कर सकते हो. बेचारी को शेर की मांद में जाने को बोल रहे हो,’’ मुग्धा की सहेली मीना बोली.

‘‘यह मत भूलो कि 3 वर्षों तक मुग्धा स्वेच्छा से प्रसाद से प्रेम की पींगें बढ़ाती रही है. मैं तो केवल यह कह रहा हूं विवाह से पहले ही इस पचड़े को सुलझाने के लिए प्रसाद से मिलना आवश्यक है. कब तक डर कर दूर भागती रहेगी. फिर यह पता लगाना भी तो आवश्यक है कि प्रसाद बाबू इतने वर्षों तक थे कहां. उसे साफ शब्दों में बता दो कि तुम्हारी शादी होने वाली है और वह तुम्हारे रास्ते से हट जाए.’’

‘‘मैं ने उसे पहले दिन ही बता दिया था ताकि वह यह न समझे कि मैं उस की राह में पलकें बिछाए बैठी हूं,’’ मुग्धा सिसक उठी थी.

ये भी पढ़ें- Romantic Story: रुह का स्पंदन

‘‘मैं तो कहती हूं सारी बातें परख को बता दे. जो करना है दोनों मिल कर करेंगे तो उस का असर अलग ही होगा,’’ मीना बोली तो सभी ने स्वीकृति में सिर हिला कर उस का समर्थन किया. मुग्धा को भी उस की बात जंच गई थी.

उस ने घर पहुंचते ही परख को फोन किया. ‘‘क्या बात है? आज अचानक ही हमारी याद कैसे आ गई,’’ परख हंसा.

‘‘याद तो उस की आती है जिसे कभी भुलाया हो. तुम्हारी याद तो साए की तरह सदा मेरे साथ रहती है. पर आज मैं ने बड़ी गंभीर बात बताने के लिए फोन किया है,’’ मुग्धा चिंतित स्वर में बोली.

‘‘अच्छा, तो कह डालो न. किस ने मना किया है.’’

‘‘प्रसाद लौट आया है,’’ मुग्धा ने मानो किसी बड़े रहस्य पर से परदा हटाया.

‘‘कौन प्रसाद? तुम्हारा पूर्व प्रेमी?’’

‘‘हां, वही.’’

‘‘तो क्या अपना पत्ता कट गया?’’ परख हंसा.

‘‘कैसी बातें करते हो? यह क्या गुड्डेगुडि़यों का खेल है? हमारी मंगनी हो चुकी है. वैसे भी मुझे उस में कोई रुचि नहीं है.’’

‘‘यों ही मजाक कर रहा था, आगे बोलो.’’‘‘मैं जब औफिस से निकलती हूं तो राह रोक कर खड़ा हो जाता है, कहता है कि कहीं बैठ कर बातें करते हैं. मैं कैब चली जाने की बात कह कर टालती रही हूं पर अब उस से डर सा लगने लगा है.’’

‘‘पर इस में डरने की क्या बात है? प्रसाद से मिल कर बता दो कि तुम्हारी मंगनी हो चुकी है. 2 महीने बाद विवाह होने वाला है. वह स्वयं समझ जाएगा.’’

ये भी पढ़ें- उस रात का सच : क्या थी असलियत

‘‘वही तो समस्या है. वह बातबात पर हिंसक हो उठता है. कह रहा था मुझे उस की प्रतीक्षा करनी चाहिए थी. तुम 2 दिन की छुट्टी ले कर आ जाओ. हम दोनों साथ ही मिल लेंगे प्रसाद से,’’ मुग्धा ने अनुनय की.

‘‘यह कौन सी बड़ी बात है. तुम ने बुलाया, हम चले आए. मैं तुम से मिलने आ रहा हूं. मैं प्रसाद जैसे लोगों की परवा नहीं करता. पर तुम डरी हुई हो तो हम दोनों साथ में उस से मिल लेंगे और सारी स्थिति साफ कर देंगे,’’ परख अपने चिरपरिचित अंदाज में बोला.

मुग्धा परख से बात कर के आश्वस्त हो गई. वैसे भी उस ने परख को अपने बारे में सबकुछ बता दिया था जिस से विवाह के बाद उसे किसी अशोभनीय स्थिति का सामना न करना पड़े.मुग्धा और परख पहले से निश्चित समय पर रविवार को प्रसाद से मिलने पहुंचे. कौफी हाउस में दोनों पक्ष एकदूसरे के सामने बैठे दूसरे पक्ष के बोलने की प्रतीक्षा कर रहे थे.

‘‘आप मुग्धा से विचारविमर्श करना चाहते थे,’’ आखिरकार परख ने ही मौन तोड़ा.

‘‘आप को मुग्धा ने बताया ही होगा कि हम दोनों की मंगनी हो चुकी है और शीघ्र ही हम विवाह के बंधन में बंधने वाले हैं,’’ परख ने समझाया.

‘‘मंगनी होने का मतलब यह तो नहीं है कि मुग्धा आप की गुलाम हो गई और अपनी इच्छा से वह अपने पुराने मित्रों से भी नहीं मिल सकती.’’

‘‘यह निर्णय परख का नहीं, मेरा है, मैं ने ही परख से अपने साथ आने को कहा था,’’ उत्तर मुग्धा ने दिया.

‘‘समझा, अब तुम्हें मुझ से अकेले मिलने में डर लगने लगा है. मुझे तो आश्चर्य होता है कि तुम जैसी तेजतर्रार लड़की इस बुद्धू के झांसे में आ कैसे गई. सुनिए महोदय, जो भी नाम है आप का, मैं लौट आया हूं. मुग्धा को आप ने जो भी सब्जबाग दिखाए हों पर मैं उसे अच्छी तरह जानता हूं. वह तुम्हारे साथ कभी खुश नहीं रह सकती. वैसे भी अभी मंगनी ही तो हुई है. कौन सा विवाह हो गया है. भूल जाओ उसे. कभी अपनी शक्ल देखी है आईने में? चले हैं मुग्धा से विवाह करने, ’’ प्रसाद का अहंकारी स्वर देर तक हवा में तैरता रहा.

‘‘एक शब्द भी और बोला प्रसाद, तो मैं न जाने क्या कर बैठूं, तुम परख का ही नहीं, मेरा भी अपमान कर रहे हो,’’ मुग्धा भड़क पड़ी.

‘‘मेरी बात भी ध्यान से सुनिए प्रसाद बाबू, पता नहीं आप स्वयं को कामदेव का अवतार समझते हैं या कुछ और, पर भविष्य में मुग्धा की राह में रोड़े अटकाए तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा. चलो मुग्धा, यह इस योग्य ही नहीं है कि इस से कोई वार्त्तालाप किया जा सके,’’ परख उठ खड़ा हुआ.

पलक झपकते ही दोनों प्रसाद की आंखों से ओझल हो गए. देर से ही सही, प्रसाद की समझ में आने लगा था कि अपना सब से बड़ा शत्रु वह स्वयं ही था.

बाहर निकलते ही मुग्धा ने परख का हाथ कस कर थाम लिया. उसे पूरा विश्वास हो गया था कि उस ने परख को परखने में कोई भूल नहीं की थी.

Manohar Kahaniya: शैली का बिगड़ैल राजकुमार- भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

मोनिका का पति अमनदीप वासी अमेरिका में जौब करता था और वहां की उसे स्थाई नागरिकता मिली हुई थी. मोनिका कुछ समय के अंतराल पर पति से मिलने अमेरिका जाती रहती थी. मोनिका के 14 साल की एक बेटी और 9 साल का एक बेटा था, जोकि उस के साथ ही रहते थे.

शैली शहर में आ कर रही तो उस ने अपना और अपनी बेटी का खर्चा उठाने के लिए करनाल की मुगल मार्केट में सोलर एनर्जी से जुड़ी एक कंपनी के औफिस में नौकरी कर ली थी.

कुछ दिन में राज भी उस के पास वहां आ कर रहने लगा. राज काम करना चाहता था. उस के पास पैसे नहीं थे. वह शैली से पैसों का इंतजाम करने को कहता था. राज को पता था कि शैली के पास काफी पैसा है और दिल्ली में पहले पति का फ्लैट भी उस के नाम है. राज ने जब काफी जिद की तो शैली ने पिछले साल 10 लाख रुपयों का इंतजाम कर के उसे पैसा कमाने के लिए पुर्तगाल भेजा.

भारती के प्यार ने बदल दी सोच

पुर्तगाल में राज किसी कंपनी में लग गया. इसी दौरान फेसबुक पर राज की मुलाकात 21 वर्षीय भारती से हुई. भारती करनाल के कौल गांव की रहने वाली थी. उस के पिता एक ज्वैलर थे.

भारती से फेसबुक पर दोस्ती हुई तो उन में बातचीत होने लगी. दोनों एकदूसरे को पसंद करने लगे. भारती और राज एकदूसरे के बारे में जानने को उत्सुक थे. राज ने भारती को बताया कि वह शादीशुदा है लेकिन वह अपनी पत्नी से तलाक लेने वाला है.

पत्नी उम्र में बड़ी है और उस की एक बेटी है जिस की उम्र 21 साल है, जितनी उस की (भारती) उम्र है. शैली ने साजिश के तहत उस पर दबाव बना कर उस से शादी की थी. अब वह उस से पीछा छुड़ाना चाहता है.

वैसे भी ऐसे बेमेल रिश्ते का खत्म हो जाना अच्छा है.

राज की बात सुन कर भारती खुश हुई. उस ने राज से बिना सोचेसमझे अपने प्यार का इजहार कर दिया. राज उस की हिम्मत की दाद देने लगा. राज भी यही चाहता था. उसे लगा था कि भारती को लाइन पर लाने में काफी समय लगेगा, लेकिन यहां तो वह खुद ही बिना देर किए उस की गोद में आ गिरी. राज ने भी उस से अपने प्यार का इजहार किया. फिर दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा.

ये भी पढ़ें- Satyakatha: नफरत की विषबेल- भाग 1

12 मार्च, 2021 को राज पुर्तगाल से वापस करनाल आ गया. वह भारती से मिला. दोनों मिल कर बहुत खुश हुए. इस के बाद उन की बराबर मुलाकातें होने लगीं. पुर्तगाल से वापस आते ही राज ने अपने रंग दिखाने शुरू कर दिए. वह शैली से दिल्ली वाला फ्लैट बेचने का दबाव बनाने लगा. फ्लैट बेच कर मिलने वाले पैसों से वह अमेरिका जाना चाहता था.

शैली को हटाने की बनाई योजना

शैली ने साफ मना कर दिया. भारती से शादी करने के लिए वह शैली से तलाक देने की बात करने लगा. तलाक की वजह उस ने शैली को बताई कि उस के कोई बच्चा नहीं हो रहा, इसलिए वह तलाक लेना चाहता है.

जबकि शैली ने शादी से पहले ही उस से कह दिया था कि वह बच्चा नहीं चाहती. फिर भी अब राज उस से बच्चा न होने का उलाहना दे कर तलाक चाहता था. राज को शैली से तलाक पाने का यही सही तरीका लगा था. लेकिन शैली तलाक देने को तैयार नहीं हुई.

राज ने भारती को बताया तो भारती ने उस से कहा कि कैसे भी कर के उसे रास्ते से हटाओ, उस की हत्या करनी पड़े तो वह भी करो. शैली ने राज के लिए सारे रास्ते बंद कर रखे थे. इसलिए उस ने भी निश्चय कर लिया कि शैली से हर हाल में छुटकारा पाना है. इस के लिए राज और भारती ने योजना बनाई. योजना ऐसी कि जिस से मामला हत्या का नहीं, हादसे का लगे.

19 मई, 2021 को राज शैली और तान्या को बठिंडा में रहने वाले दादा से मिलवाने के लिए बाइक पर बैठा कर करनाल से चला. किरमिच के पास भाखड़ा नदी में जानबूझ कर उस ने अपनी बाइक गिरा दी. बाइक के साथ ही तीनों नदी में गिर गए. शैली और तान्या को तैरना नहीं आता था. राज यह जानता था, इसीलिए यह योजना बनाई थी.

नदी में गिरने पर राज ने लात मार कर शैली व तान्या को नदी के बीच में कर दिया, जिस से वे डूब कर मर जाएं. जब डूबने से दोनों की मौत हो गई, तब वह तैर कर नदी से बाहर निकला. फिर जेब में पन्नी में लिपटा मोबाइल निकाला और भारती को काल कर के दोनों का काम हो जाने की बात बताई.

ये भी पढ़ें- Satyakatha: दो नावों की सवारी

योजना में हुए सफल

बात करने के बाद फोन को नदी में फेंक दिया. वह चिल्ला कर लोगों को हादसा बताने का ड्रामा करने लगा. वहां लोगों से पत्नी और सौतेली बेटी के नदी में गिरने की बात कहने लगा, दोनों को तैरना नहीं आता, ये भी बात बताई.

पास में ही ईंट भट्ठे पर मजदूर काम करते थे. वे दोनों को बचाने के लिए नदी में कूद गए. काफी तलाशने पर शैली मृत अवस्था में मिली, जिसे वे मजदूर नहर से बाहर निकाल लाए. तान्या का कुछ पता नहीं चला. राज ने अपने परिवार वालों को घटनास्थल पर बुलवा लिया. घटनास्थल कुरुक्षेत्र जिले के केयूके थाना क्षेत्र में आता था. पुलिस को घटना की सूचना दे दी गई.

सूचना पा कर केयूके थाने के एसएचओ राकेश राणा अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. राज वर्मा ने उन्हें घटना के बारे में बताया. थानाप्रभारी राणा ने गोताखोरों को नदी में उतार कर तान्या की खोजबीन की, लेकिन तान्या का कुछ पता नहीं चला. इस पर उन्होंने शैली की लाश का निरीक्षण करने के बाद पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया.

राज ने मोनिका को शाम 4 बज कर 20 मिनट पर फोन कर के हादसा होने की जानकारी दी थी. जबकि घटना अपराह्न 3 बजे की थी. राज ने जो बताया, उस से मोनिका समझ गई कि राज ने दोनों को मारने का प्लान बनाया था, जिसे हादसा होना बता रहा है.

मोनिका ने केयूके थाने जा कर एक तहरीर दी, जिस में उस ने राज की हरकतों का ब्यौरा देते हुए अपनी बहन और उस की बेटी की हत्या का आरोप उस पर लगाया था. उस साजिश में राज के मातापिता, भाई और 3 बहनों पर आरोप लगाया था.

थानाप्रभारी राकेश राणा को पहले ही राज वर्मा की बातों पर शक था. मोनिका की तहरीर के बाद वह शक और भी पुख्ता हो गया. उन्होंने मोनिका को वादी बना कर राज वर्मा और उस के 6 पारिवारिक सदस्यों के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 34, 120बी के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.

इस के बाद थानाप्रभारी राणा ने राज वर्मा को गिरफ्तार कर उस से पूछताछ की तो वह गुमराह करता रहा. 21 मई, 2021 को उसे कोर्ट में पेश कर के एक दिन की रिमांड पर लिया गया.

ये भी पढ़ें- Crime: करीबी रिश्तो में बढ़ते अपराध

राज वर्मा के फोन नंबर की काल डिटेल्स की जांच करने के बाद 22 मई को भारती को भी उस के गांव कौल से गिरफ्तार कर लिया गया. 22 मई को नया ऐंगल सामने आने के बाद कोर्ट से राज वर्मा की एक दिन की रिमांड और ली गई.

राज और भारती का आमनासामना करा कर पूछताछ की गई तो सारा भेद खुल कर सामने आ गया. पुलिस ने गोताखोरों की मदद से नदी से राज की बाइक बरामद कर ली. 23 मई, 2021 को जांबा गांव के पास नदी से तान्या की लाश भी बरामद हो गई. 23 मई को राजकुमार वर्मा और भारती को कोर्ट में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया. द्य

—कथा पुलिस सूत्रों और मोनिका से पूछताछ पर आधार

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें