Rani Chatterjee का लेटेस्ट लुक देखकर यूजर्स ने लिखा ‘ये क्या हाल बनाया’

भोजपुरी सिनेमा की  मशहूर एक्ट्रेस  रानी चटर्जी (Rani Chatterjee) इन दिनों  सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती हैं. वह आए दिन अपनी लेटेस्ट फोटोज और वीडियो शेयर करती रहती हैं. हाल ही में उन्होंने जिम में exercise करते हुए फोटोज शेयर की थीं. जिसे फैंस ने खूब पसंद किया था. अब उन्होंने एक वीडियो शेयर किया है. इस वीडियो को फैंस ट्रोल कर रहे हैं. आइए बताते हैं, क्या है पूरा मामला,

एक्ट्रेस ने अली गोनी और जैस्मिन भसीन के सॉन्ग तू भी सताया जाएगा पर वीडियो शेयर किया है. इस वीडियो में रानी चटर्जी का लुक देखने के बाद यूजर्स उन्हें ट्रोल कर रहे हैं.

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एक यूजर ने कमेंट किया है कि ये क्या हाल बनाया हुआ है रानी जी तो  वहीं दूसरे यूजर ने लिखा, ‘हॉट तो बहुत लड़कियां दिख जाती हैं लेकिन आपके अंदर एक अलग ही कशिश है. वाकई में किलर एक्टिंग की है.

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कुछ दिन पहले ही रानी चटर्जी ने सोशल मीडिया पर  एक  वीडियो  शेयर की थी.  जिसमें वह रोते हुए नजर आ रही थी. दरअसल एक्ट्रेस ने  इंस्टाग्राम पर चल रहे एक ट्रेंड को फॉलो कर यह वीडियो बनाया  था. इंस्टाग्राम पर इन दिनों कई लोग ऐसे रोने वाले वीडियो बना रहे हैं, जिसमें रानी चटर्जी ने भी हिस्सा लिया.

Anupamaa: वनराज और काव्या के बीच होगी लड़ाई, फूड क्रिटिक कहेगी ‘इरिटेटिंग’!

हर हफ्ते टीआरपी चार्ट में टॉप पर रहने वाला सीरियल ‘अनुपमा’ में आए दिन नए-नए ट्विस्ट देखने को मिल रहा है. अब तक आपने देखा कि वनराज और अनुपमा के रिश्ते को लेकर घर में खूब हंगामा हुआ. जिसके कारण अनुपमा ने काव्या को सबक सिखाने के लिए उसे और वनराज को घर और कैफे से निकल जाने की बात कही. शो के नए एपिसोड में खूब धमाल होने वाला है. आइए बताते हैं शो के नए एपिसोड के बारे में.

शो में दिखाया जा रहा है कि कैफे में फूड क्रिटिक के खाने को लेकर वनराज और काव्या परेशान हो जाते हैं.  क्योंकि शेफ अनुपमा जैसा खाना नहीं बना सकता है. तो वहीं फूड क्रिटिक वनराज के कैफे में आती है और वह ठेपला और ढोकला सैंडविच ऑर्डर करती है. ये देखकर सब हैरान हो जाते हैं कि यह डिश कौन बनाएगा.

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अनुपमा बनाएगी फूड क्रिटिक के लिए खाना

अनुपमा इस डिश को बनाने में माहिर है. तो उधर समर अनुपमा से रिक्वेस्ट करेगा कि वह खाना बना दे. अनुपमा अपने बेटे के कहने पर राजी हो जाती है. तो वहीं अनुपमा (Rupali Ganguly) खाना बनाएगी, तब तक काव्या फूड क्रिटिक के पास जाकर अपना गुणगान करेगी.

 

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शो के अपकमिंग एपिसोड में दिखाया जाएगा कि वनराज कैफे के माहौल को खुशनुमा बनाने के लिए गाना गाएगा और कैफे में आये हर कस्टमर खूब एन्जॉय करेंगे.

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तो वहीं फूड क्रिटिक कहेगी कि कैफे के मालिक की तस्वीर क्लिक करना है. ऐसे में वनराज कहेगा कि बा और बापूजी कैफे के मालिक हैं. काव्या वनराज को चुप करवा देगी और कहेगी कि हम इस कैफे के मालिक हैं. वह अपनी और वनराज की फोटो क्लिक करवाएगी. ये सब देखकर वनराज को गुस्सा सातवे आसमान पर होगा.

फूड क्रिटिक काव्या को कहेगी इरिटेटिंग 

तो वहीं शे में ये भी दिखाया जाएगा कि फूड क्रिटिक वनराज के कैफे को 2 स्टार ही देगी. ये देखकर काव्या अनुपमा पर अपना गुस्सा निकालेगी. तभी वनराज कहेगा कि फूड क्रिटिक ने  काव्या को इरिटेटिंग कहा है. शो में ये देखना दिलचस्प होगा कि काव्या खुद के बारे में ऐसा सुनकर क्या रिएक्ट करती है.

Crime Story in Hindi: सोने का घंटा- भाग 4: एक घंटे को लेकर हुए दो कत्ल

प्रस्तुति : शकीला एस. हुसैन

वह दिमाग पर जोर देते हुए बोला, ‘‘करीब 6-7 महीने पहले की बात है. मैं रंजन की दुकान पर खड़ा था. तभी नजीर वहां यह घंटा ले कर आया था. उस का रंग उस वक्त काला था और मिट्टी में लिथड़ा हुआ था. मेरे सामने ही रंजन ने उसे तराजू में डाला और तौल कर कुछ रुपए नजीर के हाथ पर रख दिए. उस के बाद मैं वहां से चला गया. पता नहीं फिर उन दोनों के बीच क्या बात हुई.’’

यह एक सनसनीखेज खबर थी कि लाखों का घंटा कौडि़यों में बिक गया और बेचने वाला दानेदाने को मोहताज था. गरीब नजीर जेल में बंद था. मैं फौरन सुगरा के घर पहुंचा, लेकिन घर बंद था. लोगों का खयाल था कि भूख और गरीबी से तंग आ कर रोजी की तलाश में वह किसी और कस्बे में चली गई होगी.

मुझे बेहद अफसोस हो रहा था. उस के मासूम बच्चे याद आ रहे थे. उसे तलाश करने का हुक्म दे कर मैं थाने आ गया. वहां से घंटा ले कर अमृतसर के लिए रवाना हो गए. क्योंकि नजीर अमृतसर में ज्यूडीशियल रिमांड पर जेल में था. मैं ने उसे कपड़े में लिपटा हुआ घंटा दिखा कर पूछा, ‘‘क्या यह घंटा कुछ महीने पहले तुम ने रंजन को बेचा था. इसे लाए कहां से थे?’’

‘‘हां बेचा था. मैं अपने घर से लाया था. बैसाखी के पहले की बात है साहब, एक दिन तेज बारिश हुई. मेरे घर की दीवार गिर गई. जब दोबारा दीवार उठाने के लिए बुनियाद रखी तो यह घंटा मिला.

बच्चे मचलने लगे मिठाई खाएंगे. मैं इसे ले कर रंजन के पास गया. उस ने इसे 50 रुपए में मुझ से खरीद लिया. मैं बच्चों के लिए मिठाई ले कर आ गया. कुछ घर का सामान खरीदा. पर साहब, आप यह सब क्यों पूछ रहे हैं?’’ मैं ने उसे टाल दिया और सिपाही से कह दिया कि सुगरा आए तो मुझ से जरूर मिलाए.

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दूसरी दिन सुबह मैं अस्पताल पहुंचा. दरवाजे के करीब ही मुझे स्टै्रचर पर लहना सिंह की लाश मिल गई. बेचारा बेवजह मारा गया. चौधरी श्याम सिंह अब दोहरे कत्ल का दोषी था.

लहना सिंह के आखिरी बयान और हवेली से घंटा मिलने से वह पूरी तरह फंस गया था. अब यह बात भी समझ में आ गई थी कि रंजन सिंह सुगरा के खानदान पर मेहरबान क्यों था? क्यों उन की मदद करता था. क्योंकि वह उन्हीं के पैसे पर ऐश कर रहा था.

लोगों ने उस की बिना बात के बदनामी फैला दी थी. मैं ने सुगरा की तलाश में 2 लोग लगा दिए, पर उस का कोई पता नहीं चला. लहना सिंह के बयान के बाद सुगरा और नजीर बेकसूर साबित हो गए.

रंजन के पेट से मिलने वाली नींद की गोली का मसला भी हल हो गया था. वह उस ने खुद खरीद कर खाई थी. पहले बेटी के सामने वह नींद की गोली नहीं लाता था, पर बाद में लेने लगा. इसलिए उस की बेटी ने नहीं कहा था.

श्याम सिंह ने जोरा सिंह से रंजन का कत्ल  इसलिए करवाया था कि वह उस का सोने का घंटा हासिल कर सके. जब जोरा सिंह रंजन के घर घंटे को ढूंढ रहा था तो रंजन की आंख खुल गई. वह हिम्मत कर के जोरा सिंह पर टूट पड़ा. एक जमाने में वह पहलवानी करता था और चंदर के नाम से जानाजाता था.

उस ने अपने बाजूओं में उसे बुरी तरह से जकड़ लिया था. जरा सी छूट मिलते ही जोरा सिंह ने अपनी कृपाण से उस के सीने पर वार कर दिया. जब वह गिर गया तो छाती पर चढ़ कर उसे खत्म कर दिया. उसे मारने के बाद उस ने हवेली से घंटा ढूंढ लिया.

इस सारे मामले में सुगरा और नजीर शुरू से आखिर तक बेकसूर थे. उस वक्त के कानून के मुताबिक बरामद होने वाली चीज की हैसियत एंटीक ना हो और किसी का मालिकाना हक ना साबित हो पाए तो यह चीज उस शख्स की मानी जाती थी, जिस के घर से वह बरामद हुई हो.

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वह घंटा नजीर के घर की टूटी दीवार से बरामद हुआ था. अगर सरकार मामले को हमदर्दी से देखती तो यह घंटा नजीर और सुगरा का था, भले ही वह उस की कीमत न समझ सके थे.

नजीर के जमानत पर रिहा होने के बाद सुगरा की तलाश और जोर पकड़ गई. मुझे कहीं से खबर मिली कि मरनवाल नाम के गांव में जो ढाब से करीब 20 किलोमीटर दूर था, वहां सुगरा के हुलिए की एक औरत दिखाई दी थी.

हम लोग वहां पहुंचे तो पता चला वह एक रिटायर्ड हवलदार के यहां काम कर रही थी. उस के घर पूछताछ करने पर उस ने बताया कि एक औरत 3 बच्चों के साथ उस के यहां पनाह लेने आई थी. उस ने उसे रख भी लिया था. फिर एक दिन चोरी करते पकड़ी गई तो मैं ने उसे निकाल दिया.

आसपास के लोगों से पता चला कि वह झूठ बोल रहा था. हवलदार की नीयत सुगरा पर खराब हो गई थी. सुगरा ने शोर मचा दिया. लोगों के पहुंचने पर उस ने सुगरा को मारपीट कर निकाल दिया. किसी ने बताया वह रामपुर की तरफ गई थी. उस बेगुनाह मजबूर औरत की तलाश में हम रामपुर पहुंचे और जगहजगह उस की तलाश करते रहे.

रामपुर के छोटे से अस्पताल में हमें सुगरा मिल गई, लेकिन वह जिंदा नहीं लाश की सूरत में मिली. उस के बच्चे वहीं बैठे रो रहे थे. उस की मौत दिमाग की नस फटने से हुई थी. इतने दुख और गरीबी की मार सह कर उस का बच पाना मुश्किल ही था. सुगरा की लाश ढाब पहुंची. पूरा कसबा जमा हो गया. सभी की आंखों में आंसू थे. नजीर रोरो कर पागल हो रहा था. अब लोग सुगरा की तारीफें कर रहे थे.

चौधरी श्याम सिंह और जोरा सिंह पर दोहरे कत्ल का इलजाम साबित हुआ. एक सुबह वह दोनों और उन के 2 साथियों की डिस्ट्रिक्ट जेल के अहाते में फांसी दे दी गई.

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नजीर अपने तीनों बच्चों के साथ ढाब छोड़ कर चला गया. अब उस के पास इतनी रकम थी कि सारी उम्र बैठ कर खा सकता था. 3 सेर सोने के घंटे में से सरकार ने अपना तयशुदा सरकारी हिस्सा काटने के बाद बाकी नकद रकम नजीर के हवाले कर दी थी. इस के बाद 2-3 बार नजीर के घर की खुदाई की गई पर एक खोटा सिक्का नहीं मिला.

इस घटना के सालों बाद भी मैं उस मासूम और मरहूम सुगरा को नहीं भूल सका.

Crime Story in Hindi: वर्चस्व का मोह- भाग 2: आखिर किसने दादजी की हत्या की?

‘‘ठीक है, मैं औफिस से निकलने से पहले तुम्हें फोन कर दूंगा ताकि तुम किरण से मुलाकात का जुगाड़ भिड़ा सको.’’

अगले दिन जब देव नीना को लेने पहुंचा तो वह किरण और सोनिया के ड्राइंगरूम में बैठी हुई थी.

‘‘अरे सर, आप?’’ किरण चौंकी.

‘‘आप यहां कैसे वकीलनीजी?’’ देव ने भी उसी अंदाज में कहा, फिर नीना और सोनिया की ओर देख कर बोला, ‘‘मेरे एक नाटक में यह वकील की पत्नी बनी थी तब से मैं इसे वकीलनीजी ही बुलाता हूं. चूंकि मैं नाटक का निर्देशक और सीनियर था सो किरण तो मुझे सर कहेगी ही. लेकिन सोनिया, तुम ने कभी जिक्र ही नहीं किया कि तुम्हारी जीजी अखिल भारतीय नाटक प्रतियोगिता जीत चुकी हैं.’’

‘‘नीना ने भी कभी आप के बारे में कहां बताया? इन लड़कियों को किसी और के बारे में बात करने की फुरसत ही नहीं है,’’ किरण बोली, ‘‘सर, मुझे आप से कुछ सलाह लेनी है. कभी थोड़ा समय निकाल सकेंगे मेरे लिए?’’

‘‘कभी क्यों, अभी निकाल सकता हूं बशर्ते आप 1 कप चाय पिला दें,’’ कह देव मुसकराया.

‘‘चाय पिलाए बगैर तो हम ने आप को वैसे भी नहीं जाने देना था भैया,’’ सोनिया बोली, ‘‘मैं चाय भिजवाती हूं. आप इतमीनान से दीदी के कमरे में बैठ कर बातें कीजिए. मांपापा रोटरी कल्ब की मीटिंग में गए हैं, देर से लौटेंगे.’’

‘‘और बताओ वकीलनीजी, अपने मुंशीजी, मेरा मतलब है आलोक कहां है आजकल?’’ देव ने किरण के कमरे में आ कर पूछा.

किरण ने गहरी सांस ली, ‘‘हैं तो यहीं पड़ोस में, लेकिन मुलाकात कम ही होती है…’’

‘‘क्यों? बहुत व्यस्त हो गए हो तुम दोनों या कुछ खटपट हो गई है?’’ देव ने बात काटी.

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‘‘इतने व्यस्त भी नहीं हैं और न ही हमारी जानकारी के अनुसार कोई खटपट हुई है. मुझे ही कोई गलतफहमी हो गई है शायद.’’ किरण हिचकिचाते हुए बोली, ‘‘उसी बारे में आप से बात करना चाह रही थी. आप के बारे में अकसर पढ़ती रहती हूं. कई बार आप से मिलना भी चाहा, मगर समझ नहीं आया कैसे मिलूं. सर, मुझे लगता है आलोक ने अपने दादाजी की हत्या की है.’’

देव चौंक पड़ा कि तो यह वजह है शादी न करने की. लेकिन किरण से पूछा, ‘‘शक की वजह?’’

‘‘जिस रात दादाजी की हत्या हुई मुझे लगता है मैं ने आलोक को छत से कूद कर भागते हुए देखा था. लेकिन आलोक का कहना है कि वह उस समय पिछली सड़क पर हो रही अपने दोस्त की शादी के मंडप में था. दादाजी की हत्या की सूचना भी उसे वहीं मिली थी.’’

‘‘लेकिन तुम्हें लगता है कि भागने वाला आलोक ही था?’’

‘‘जी, सर हत्या का कोई मकसद भी सामने नहीं आया. न तो कुछ चोरी हुआ था और न ही दादाजी की किसी से कोई दुश्मनी थी.’’

‘‘हत्या से किसी को व्यक्तिगत लाभ?’’

‘‘सिर्फ आलोक को जो केवल मुझे मालूम है क्योंकि दूसरों की नजरों में तो दादाजी वैसे ही सबकुछ उस के नाम कर चुके थे.’’

‘‘जो तुम्हें मालूम है या जो भी तुम्हारा अंदाजा है, मुझे विस्तार से बताओ किरण. मैं वादा करता हूं मैं जहां तक हो सकेगा तुम्हारी मदद करूंगा?’’

‘‘मां का कहना था कि मुझे प्रवक्ता की नौकरी न करने दी जाए, क्योंकि  फिर मैं अपने दादाजी के फ्रिज और टीवी के शोरूम में बैठने वाले आलोक से शादी करने को मना कर दूंगी. पापा ने उन्हें समझाया कि आलोक खुद ही फ्रिज और टीवी बेचने के बजाय विदेशी कंप्यूटर की एजेंसी लेना चाह रहा है. इसी सिलसिले में कानूनी सलाह लेने उन के पास आया था. उस में कोई कानूनी अड़चन नहीं है. आलोक को बड़ी आसानी से एजेंसी मिल जाएगी और कंप्यूटर विके्रता से शादी करने में उन की लैक्चरार बेटी को कोई एतराज नहीं होगा.

‘‘मां ने फिर शंका जताई कि दादाजी अपनी बरसों पुरानी चीजों को छोड़ कर कंप्यूटर बेचने से रहे तो पापा ने बताया कि शोरूम तो दादाजी आलोक के नाम कर ही चुके हैं सो वह उस में कुछ भी बेचे, उन्हें क्या फर्क पड़ेगा. मां तो आश्वस्त हो गईं, लेकिन पापा का सोचना गलत था. दादाजी कंप्यूटर की एजेंसी लेने के एकदम खिलाफ थे. वे कंप्यूटर को फ्रिज या टीवी की तरह रोजमर्रा के काम आने वाली और धड़ल्ले से बिकने वाली चीज मानने को तैयार ही नहीं थे.

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‘‘दादाजी ने शोरूम जरूर आलोक के नाम कर दिया था, लेकिन उसे चलाते अभी भी वे खुद ही थे, अपनी मनमरजी से. जिस ग्राहक को जितना चाहा उतनी छूट या किश्तों की सुविधा दे दी, कौन सा मौडल या ब्रैंड लेना बेहतर रहेगा, इस पर वे हरेक ग्राहक के साथ घंटों सलाहमशवरा और बहस किया करते थे. कंप्यूटर की एजेंसी लेने से तो उन की अहमियत ही खत्म हो जाती, जिस के लिए वे बिलकुल तैयार नहीं थे. उन्होंने आलोक से साफ कह दिया कि उन के जीतेजी तो उन के शोरूम में जो आज तक बिकता रहा है वही बिकेगा. कुछ दूसरा बेचने के लिए आलोक को उन की मौत का इंतजार करना होगा.

‘‘आलोक ने मुझे यह बात बताते हुए कहा था कि दादाजी के इस अडि़यल रवैए से मेरा कंप्यूटर विक्रेता बनने का सपना कभी पूरा नहीं होगा. मैं दादाजी का शोरूम संभालने को तैयार ही इस लालच में हुआ था कि आईबीएम की एजेंसी लूंगा वरना पापा और अशोक भैया की तरह मैं भी चार्टर्ड अकाउंटैंट बन कर उन के औफिस में बैठा रहूंगा. वैसे अभी भी मैं फ्रिजटीवी बेच कर तो रोटी कमाने से रहा. जब तक मैं अपने कैरियर का चुनाव न कर लूं किरण, मैं सगाईशादी के चक्कर में नहीं पड़ना चाहता.

‘‘मुझे उस की बात सही लगी और मैं ने उसे भरोसा दिलाया कि मैं किसी तरह सगाई टलवा दूंगी. इस से पहले कि मैं कोई बहाना खोज पाती, आलोक फिर आया. वह बहुत सहज लग रहा था. उस ने कहा कि मुझे परेशान होने की जरूरत नहीं है, सब ठीक हो जाएगा. कुछ रोज बाद हमारे सहपाठी रवि की शादी थी. आलोक उस की बारात में मेरे साथ खूब नाचा. खाने के बाद आलोक ने कहा कि रवि के सभी दोस्त उसे मौरल सपोर्ट देने को बिदाई तक रुक रहे हैं सो वह भी रुकेगा. उस ने मुझे भी ठहरने को कहा, मगर मुझे कुछ कापियां जांचनी थीं सो मैं घर वालों के साथ वापस आ गई.

‘‘आलोक के घर में एक जामुन का पेड़ है, जिस की शाखाओं ने हमारी आधी छत को घेरा हुआ है. मैं तब ऊपर छत वाले कमरे में रहती थी. आलोक और दादाजी का कमरा भी उन की छत पर था. दादाजी के सोने के बाद पेड़ की डाल के सहारे आलोक अकसर मेरे कमरे में आया करता था.’’

‘‘आया करता था यानी अब नहीं आता?’’ देव ने बात काटी.

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उलझे रिश्ते- भाग 1: क्या प्रेमी से बिछड़कर खुश रह पाई रश्मि

Writer- Ravi

दिन भर की भागदौड़. फिर घर लौटने पर पति और बच्चों को डिनर करवा कर रश्मि जब बैडरूम में पहुंची तब तक 10 बज चुके थे. उस ने फटाफट नाइट ड्रैस पहनी और फ्रैश हो कर बिस्तर पर आ गई. वह थक कर चूर हो चुकी थी. उसे लगा कि नींद जल्दी ही आ घेरेगी. लेकिन नींद न आई तो उस ने अनमने मन से लेटेलेटे ही टीवी का रिमोट दबाया. कोई न्यूज चैनल चल रहा था. उस पर अचानक एक न्यूज ने उसे चौंका दिया. वह स्तब्ध रह गई. यह क्या हुआ?

सुधीर ने मैट्रो के आगे कूद कर सुसाइड कर लिया. उस की आंखों से अश्रुधारा बह निकली. उस का मन किया कि वह जोरजोर से रोए. लेकिन उसे लगा कि कहीं उस का रोना सुन कर पास के कमरे में सो रहे बच्चे जाग न जाएं. पति संभव भी तो दूसरे कमरे में अपने कारोबार का काम निबटाने में लगे थे. रश्मि ने रुलाई रोकने के लिए अपने मुंह पर हाथ रख लिया, लेकिन काफी देर तक रोती रही. शादी से पूर्व का पूरा जीवन उस की आंखों के सामने घूम गया.

बचपन से ही रश्मि काफी बिंदास, चंचल और खुले मिजाज की लड़की थी. आधुनिकता और फैशन पर वह सब से ज्यादा खर्च करती थी. पिता बड़े उद्योगपति थे. इसलिए घर में रुपयोंपैसों की कमी नहीं थी. तीखे नैननक्श वाली रश्मि ने जब कालेज में प्रवेश लिया तो पहले ही दिन सुधीर से उस की आंखें चार हो गईं.

‘‘हैलो आई एम रश्मि,’’ रश्मि ने खुद आगे बढ़ कर सुधीर की तरफ हाथ बढ़ाया. किसी लड़की को यों अचानक हाथ आगे बढ़ाता देख सुधीर अचकचा गया. शर्माते हुए उस ने कहा, ‘‘हैलो, मैं सुधीर हूं.’’

‘‘कहां रहते हो, कौन सी क्लास में हो?’’ रश्मि ने पूछा.

‘‘अभी इस शहर में नया आया हूं. पापा आर्मी में हैं. बी.कौम प्रथम वर्ष का छात्र हूं.’’ सुधीर ने एक सांस में जवाब दिया.

‘‘ओह तो तुम भी मेरे साथ ही हो. मेरा मतलब हम एक ही क्लास में हैं,’’ रश्मि ने चहकते हुए कहा. उस दिन दोनों क्लास में फ्रंट लाइन में एकदूसरे के आसपास ही बैठे. प्रोफैसर ने पूरी क्लास के विद्यार्थियों का परिचय लिया तो पता चला कि रश्मि पढ़ाई में अव्वल है. कालेज टाइम के बाद सुधीर और रश्मि साथसाथ बाहर निकले तो पता चला कि सुधीर को पापा का ड्राइवर कालेज छोड़ गया था. रश्मि ने अपनी मोपेड बाहर निकाली और कहा, ‘‘चलो मैं तुम्हें घर छोड़ती हूं.’’

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‘‘नहीं नहीं ड्राइवर आने ही वाला है.’’

‘‘अरे, चलो भई रश्मि खा नहीं जाएगी,’’ रश्मि के कहने का अंदाज कुछ ऐसा था कि सुधीर उस की मोपेड पर बैठ गया. पूरे रास्ते रश्मि की चपरचपर चलती रही. उसे इस बात का खयाल ही नहीं रहा कि वह सुधीर से पूछे कि कहां जाना है. बातोंबातों में रश्मि अपने घर की गली में पहुंची, तो सुधीर ने कहा, ‘‘बस यही छोड़ दो.’’

‘‘ओह सौरी, मैं तो पूछना ही भूल गई कि आप को कहां छोड़ना है. मैं तो बातोंबातों में अपने घर की गली में आ गई.’’

‘‘बस यहीं तो छोड़ना है. वह सामने वाला मकान हमारा है. अभी कुछ दिन पहले ही किराए पर लिया है पापा ने.’’

‘‘अच्छा तो आप लोग आए हो हमारे पड़ोस में,’’ रश्मि ने कहा

‘‘जी हां.’’

‘‘चलो, फिर तो हम दोनों साथसाथ कालेज जायाआया करेंगे.’’ रश्मि और सुधीर के बाद के दिन यों ही गुजरते गए. पहली मुलाकात दोस्ती में और दोस्ती प्यार में जाने कब बदल गई पता ही न चला. रश्मि का सुधीर के घर यों आनाजाना होता जैसे वह घर की ही सदस्य हो. सुधीर की मम्मी रश्मि से खूब प्यार करती थीं. कहती थीं कि तुझे तो अपनी बहू बनाऊंगी. इस प्यार को पा कर रश्मि के मन में भी नई उमंगें पैदा हो गईं. वह सुधीर को अपने जीवनसाथी के रूप में देख कर कल्पनाएं करती. एक दिन सुधीर घर में अकेला था, तो उस ने रश्मि को फोन कर कहा, ‘‘घर आ जाओ कुछ काम है.’’

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जब रश्मि पहुंची तो दरवाजे पर मिल गया सुधीर. बोला, ‘‘मैं एक टौपिक पढ़ रहा था, लेकिन कुछ समझ नहीं आ रहा था. सोचा तुम से पूछ लेता हूं.’’

‘‘तो दरवाजा क्यों बंद कर रहे हो? आंटी कहां है?’’

‘‘यहीं हैं, क्यों चिंता कर रही हो? ऐसे डर रही हो जैसे अकेला हूं तो खा जाऊंगा,’’ यह कहते हुए सुधीर ने रश्मि का हाथ थाम उसे अपनी ओर खींच लिया. सुधीर के अचानक इस बरताव से रश्मि सहम गई. वह छुइमुई सी सुधीर की बांहों में समाती चली गई.

‘‘क्या कर रहे हो सुधीर, छोड़ो मुझे,’’ वह बोली लेकिन सुधीर ने एक न सुनी. वह बोला,  ‘‘आई लव यू रश्मि.’’

शर्मनाक: Bihar में अफसरशाही और भ्रष्टाचार

लेखक- धीरज कुमार

जनता दल (यूनाइटेड) के नेता और बिहार सरकार के समाज कल्याण मंत्री मदन साहनी ने अफसरशाही से तंग आ कर मंत्री पद से इस्तीफा देने की घोषणा की.

मदन साहनी ने यह आरोप लगाया, ‘‘मंत्री पद पर रहते हुए मैं आम लोगों के काम नहीं कर पा रहा हूं. जब भी मैं अपने अफसरों को निर्देश देता हूं, तो वे बात मानने के लिए तैयार नहीं होते हैं.

‘‘अफसर क्या विभाग के चपरासी तक मंत्रियों की बात नहीं सुनते हैं. किसी को काम करने के लिए भेजा जाता है, तो उस से पूछा जाता है कि आप मंत्री के पास क्यों चले गए? क्या मंत्रीजी को ही काम करना है?

‘‘मंत्री बनने के बाद बंगला और गाड़ी तो मिल गया है, पर क्या मंत्री इसीलिए बने थे कि मंत्री बन जाने के बाद मेरे आगेपीछे कई गाडि़यां चलेंगी और मुझे रहने के लिए बड़ा सा बंगला मिल जाएगा? इस से आम लोगों को फायदा हो जाएगा?

‘‘मैं 15 सालों से अफसरशाही से पीडि़त हूं. मैं ही क्यों, मेरी तरह और भी कई मंत्री परेशान हैं, लेकिन वे सब बोल नहीं पा रहे हैं.

‘‘मैं सिर्फ सुविधा भोगने के लिए मंत्री नहीं बना हूं. मेरी आत्मा इस के लिए गवाही नहीं दे रही है, इसलिए मैं अपना इस्तीफा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पास भेज रहा हूं. वैसे, मैं अपने क्षेत्र में रह कर पार्टी के काम करता रहूंगा.’’

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दरअसल, समाज कल्याण मंत्री मदन साहनी के खफा होने की वजह यह है  कि उन्होंने 134 बाल विकास परियोजना पदाधिकारियों (सीडीपीओ) के तबादले के लिए फाइल विभाग के अपर मुख्य सचिव के पास भेजी थी. जिन पदाधिकारियों को तबादले के लिए लिस्ट भेजी गई थी, वे 3 साल से ज्यादा समय से एक ही जगह पर जमे हुए थे. वे सभी पदाधिकारी ठीक से काम नहीं कर रहे थे. इस की उन्हें लगातार शिकायतें मिल रही थीं.

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लेकिन मुख्य सचिव ने लिस्ट में से सिर्फ 18 लोगों का ही ट्रांसफर किया, बाकी लोगों के ट्रांसफर पर रोक लगा दी.

इस विवाद के बाद समाज कल्याण विभाग के अपर मुख्य सचिव त्रिपुरारी शरण ने अपने सफाई में कहा, ‘‘उन की भेजी गई फाइल अध्ययन के लिए रखी गई है. अध्ययन के बाद उस आदेश पर  कार्यवाही की जाएगी.’’

बिहार के मुख्यमंत्री रह चुके और ‘हम’ पार्टी के अध्यक्ष जीतन राम मांझी ने भी समाज कल्याण मंत्री मदन साहनी की बातों का समर्थन किया. उन्होंने मीडिया वालों से कहा, ‘‘यह सही बात  है कि बिहार में विधायकों और कई मंत्रियों की बातों को अफसर तरजीह नहीं देते हैं.

‘‘मैं एनडीए विधानमंडल दल की बैठक में भी इस मसले को उठा चुका हूं. मैं माननीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार  को भी इस संबंध में बोल चुका हूं.  सभी विधायकों की इज्जत तभी बढ़ेगी, जब इन की बातों को विभागीय अफसर सुनेंगे. यह बात हम पहले भी कह चुके हैं. मंत्री मदन साहनी की बात बिलकुल सही है.

‘‘इस्तीफा देने से पहले हम ने मुख्यमंत्री को इसलिए नहीं बताया कि लोग समझने लगेंगे कि मैं मुख्यमंत्री को अपनी बात मनवाने के लिए ब्लैकमेल कर रहा हूं.

‘‘हम मंत्री हैं, गुलाम नहीं. अब बरदाश्त से बाहर हो रहा है. हम 6 साल से मंत्री हैं. इस के पहले खाद और आपूर्ति विभाग में सचिव पंकज कुमार हुआ करते थे. वे भी हमारी बात नहीं सुनते थे. समाज कल्याण विभाग में एसीएस अतुल प्रसाद 4 साल से बने हैं. उन का भी वही हाल है. उन से 3 साल से एक ही जगह जमे अफसरों को हटाने की बात हुई थी.

‘‘मैं ने उन के पास 22 डीपीओ और 134 सीडीपीओ की सूची बना कर भेजी थी. मंत्री को जून में तबादला करने का अधिकार होता है. लेकिन मेरी फाइलों पर कोई कार्यवाही नहीं की गई.’’

पटना के बाढ़ क्षेत्र के भाजपा के सीनियर विधायक ज्ञानेंद्र सिंह ज्ञानू ने राज्य सरकार की कार्यप्रणाली पर ही सवाल उठाया है और उन का कहना है, ‘‘इस बार जून में जो भी सरकार के द्वारा तबादले किए गए हैं, उस में मोटी रकम ली गई है. इस में 80 फीसदी भाजपा के मंत्रियों ने खूब माल बटोरा है.

‘‘दरअसल, मोटी रकम ले कर ही पदाधिकारियों की मनचाही जगह पर पोस्टिंग की गई है. लोगों को मनचाही जगह पर जाने के लिए पैसे की बोली लगाई गई है. इस में जद (यू) के मंत्रियों की संख्या थोड़ी कम है, क्योंकि उन्हें नीतीश कुमार से थोड़ाबहुत डर रहता  है. लेकिन भाजपा के मंत्रियों ने सारे  रिकौर्ड तोड़ दिए हैं.

‘‘मनचाही पोस्टिंग पाने के लिए अधिकारियों, इंजीनियरों को लालच भी दिया गया था. इस के एवज में उन से खूब माल बटोरा गया है. कई जगह पर पोस्टिंग के लिए भारीभरकम राशि  की बोलियां लगाई हैं. जिस ने ज्यादा  पैसे दिए, उसे मनचाही जगह पोस्टिंग मिल गई.’’

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वहीं बिसफी, मधुबनी के भाजपा विधायक हरिभूषण ठाकुर बचौल विधायकों की हैसियत को ले कर सरकार पर खूब भड़के. उन का कहना है, ‘‘विधायकों की हालत चपरासी से भी बदतर हो गई है. ब्लौक में इतना भ्रष्टाचार बढ़ गया है कि शिकायत करने पर कोई कार्यवाही नहीं होती है. हम विधायक जब अपने क्षेत्र की समस्याओं को ले कर जाते हैं, तो ब्लौक के अफसर नहीं सुनते हैं.

‘‘आखिर हम लोग अपने क्षेत्र की समस्याओं को ले कर किस के पास जाएंगे? विधायक अपने क्षेत्र का जनप्रतिनिधि होता है. इस नाते अपने क्षेत्र के लोगों की समस्याओं को ले कर ब्लौक में जाते हैं, तो कोई भी अफसर सुनने को तैयार नहीं होता है. इस तरह हमारी इज्जत दांव पर लगी हुई है.’’

पीएचईडी मंत्री और भाजपा विधायक डाक्टर रामप्रीत पासवान ने कहा, ‘‘कुछ पदाधिकारी मनमानी करते हैं. इस से इनकार नहीं किया जा सकता है. हम शुरू से ही कहते रहे हैं कि मंत्री बड़ा होता है, न कि सचिव.’’

सीतामढ़ी जिले के भाजपा विधायक डाक्टर मिथिलेश का कहना है, ‘‘पद से बड़ा सिद्धांत होता है. मदन साहनी के त्याग की भावना को मैं सलाम करता हूं. मंत्री ने जो मुद्दा उठाया है, उस की जांच होनी चाहिए.’’

मधुबनी जिले के भाजपा के ही एक और विधायक अरुण शंकर प्रसाद ने भी कहा, ‘‘विधायिका के सम्मान में कुछ अफसरों का अंहकार आड़े आ रहा है. अगर मदन साहनी की बातें सही हैं, तो यह बहुत दुखद और वर्तमान सरकार के लिए हास्यास्पद भी है.’’

रोहतास जिले के एक शिक्षक संघ के नेता का कहना है, ‘‘बिहार सरकार के कार्यालय में इतनी अफसरशाही बढ़ गई है कि अफसर नाजायज उगाही के लिए एक नैटवर्क तैयार कर रखे हैं. कई बार तो जानबूझ कर मामले को उलझा देते हैं, ताकि शिक्षकों या आमजनों से पैसे की वसूली की जाए.

‘‘छोटेमोटे कामों के लिए अफसरों को पैसा देना पड़ता है, तब जा कर काम होता है. यही हाल बिहार के तकरीबन सभी विभागों का हो चुका है.

‘‘अफसर काफी मनमानी करने लगे हैं. उन्हें आम लोगों की समस्याओं से कोई सरोकार नहीं है. आप अगर पैसे देंगे तो आप का काम हो जाएगा, वरना आप दफ्तर में दौड़ते रह जाएंगे.’’

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अगर यही बात विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव सदन में खड़े हो कर बोलते हैं, तो सत्ता पक्ष वालों की तरफ से मजाक उड़ाया जाता है या फिर बहुत हलके में लिया जाता है.

आज जब सत्ता पक्ष के लोगों ने भ्रष्टाचार और अफसरशाही पर खुल कर बोलना शुरू कर दिया है, तो समाज कल्याण मंत्री मदन साहनी के बयान पर कई नेताओं की प्रतिक्रिया उन के पक्ष में आती दिख रही है और साथ ही उन के सरकार के आरोपों पर सत्ता पक्ष के दूसरे नेता गोलबंद होने लगे हैं तो यह देखना दिलचस्प होगा कि बिहार के मुख्यमंत्री और वर्तमान सरकार इस संबंध में क्या कदम उठाती है.

मैं गरीब घर का लड़का हूं कोई बिजनेस करना चाहता हूं, कृपया सलाह दें

मैं 23 साल का एक गरीब घर का लड़का हूं. मैं बीए पास हूं और अपना कोई छोटामोटा धंधा करना चाहता हूं, जैसे खाने का कोई स्टाल लगा लूं. आजकल फास्ट फूड के स्टाल काफी चलते हैं, पर मुझे कोई अनुभव नहीं है. इस तरह का कोई स्टाल लगाने में अमूमन कितना पैसा खर्च होता है? इस सिलसिले में मुझे सही राह दिखाएं?

फूड स्टाल जैसे धंधे छोटे लैवल पर 10-15 हजार रुपए में शुरू किए जा सकते हैं. ऐसी जगह, जहां ग्राहकी की गुंजाइश दिखे, वहां आप चायनाश्ते का ठेला, स्टाल या गुमटी लगा सकते हैं.

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इस के लिए बेहतर होगा कि कुछ महीने आप किसी के यहां काम करते हुए धंधे की बारीकियां समझ लें और ट्रेनिंग भी लें.

आप का जज्बा अच्छा है. मेहनत से काम करेंगे और क्वालिटी रखेंगे तो ठीकठाक आमदनी हो जाएगी, पर पहले थोड़ा तजरबा हासिल कर लें, तो रिस्क ज्यादा नहीं रहेगा.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

 सब्जेक्ट में लिखे…  सरस सलिल- व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

 

Satyakatha- सूदखोरों के जाल में फंसा डॉक्टर: भाग 1

22अप्रैल, 2021 की शाम लगभग 5 बजे की बात है. मध्य प्रदेश के जिला नरसिंहपुर शहर की कोतवाली के टीआई उमेश दुबे को सूचना मिली कि नरसिंहपुर-करेली रेलमार्ग पर स्थित टट्टा पुल के पास रेल पटरियों पर एक आदमी की लाश पड़ी है.

सूचना मिलने के बाद पुलिस मौके पर पहुंची तो रेल पटरियों के बीच में एक आदमी की लाश क्षतविक्षत हालत में पड़ी थी. लग रहा था जैसे उस ने जानबूझ कर आत्महत्या की हो. वह अचानक दुर्घटना का मामला नहीं लग रहा था. उस आदमी का चेहरा पहचानने में नहीं आ रहा था.

पुलिस ने सब से पहले वह शव रेल लाइनों  के बीच से हटवा कर साइड में रखवा दिया ताकि उस लाइन पर ट्रेनों का आवागमन सुचारू रूप से हो सके. इस के बाद उस के कपड़ों की तलाशी ली तो पैंट की जेब में एक मोबाइल फोन और एक चाबी मिली. तब तक कई लोग वहां इकट्ठे हो चुके थे. पुलिस ने उन से लाश की शिनाख्त करानी चाही, लेकिन कोई भी मृतक को नहीं पहचान सका.

पुलिस जांच कर ही रही थी कि तभी किसी ने पुलिस को रेल लाइन के नजदीक  सड़क पर खड़ी एक लावारिस स्कूटी के बारे में जानकारी दी. जांच में वह स्कूटी वहां जमा भीड़ में से किसी की नहीं थी. एक पुलिसकर्मी ने स्कूटी की डिक्की खोली तो उस में शादी का निमंत्रण कार्ड मिला, जिस के आधार पर पता चला कि वह शादी का कार्ड डा. सिद्धार्थ तिगनाथ के नाम का था.

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कोतवाली पुलिस ने लाश का पंचनामा तैयार कर पोस्टमार्टम के लिए वह जिला अस्पताल भेज दी. इस के बाद भादंवि की धारा 174 (संदिग्ध मृत्यु) का मामला दर्ज कर लिया.

सिद्धार्थ तिगनाथ कोई मामूली इंसान नहीं थे. वह शहर के एक जानेमाने डाक्टर थे. इसलिए पुलिस ने मोबाइल फोन के जरिए डा. सिद्धार्थ तिगनाथ के घर वालों की सूचना दी. उस समय सिद्धार्थ के पिता डा. दीपक तिगनाथ अपने ही रेवाश्री हौस्पिटल में मरीजों का इलाज कर रहे थे.

जैसे ही उन्हें सिद्धार्थ के रेल से कटने की सूचना मिली, वे अपना होश खो बैठे. आननफानन में अस्पताल का स्टाफ डा. दीपक तिगनाथ और घर वालों को ले कर जिला अस्पताल पहुंच गए.

अस्पताल में सिद्धार्थ का शव देख कर घर वालों का रोरो कर बुरा हाल हो रहा था. सिद्धार्थ की पत्नी अपने 5 साल के बेटे को सीने से चिपकाए बिलख रही थी. घर वालों को यह समझ नहीं आ रहा था कि आखिरकार सिद्धार्थ ने इस तरह का आत्मघाती कदम क्यों उठा लिया.

डा. सिद्धार्थ तिगनाथ नगर के प्रतिष्ठित कांग्रेसी नेता एवं पेशे से दंत चिकित्सक थे. सोशल मीडिया पर यह खबर पूरे जिले में जब वायरल हुई तो किसी को यकीन ही नहीं हुआ कि एक हाईप्रोफाइल डाक्टर फैमिली का सदस्य आत्महत्या जैसा कदम उठा सकता है. लौकडाउन के बावजूद देखते ही देखते जिला अस्पताल में डा. तिगनाथ के रिश्तेदार और उन के प्रशंसकों की भीड़ जमा होने लगी.

सिद्धार्थ की एकलौती बहन गार्गी रीवा में थी. दूसरे दिन जब वह नरसिंहपुर पहुंची तो पोस्टमार्टम के बाद सिद्धार्थ का अंतिम संस्कार किया गया. जब 5 साल के बेटे ने डा. सिद्धार्थ की चिता को मुखाग्नि दी तो उपस्थित घर वालों एवं अन्य लोगों की आंखों से आंसुओं की झड़ी लग गई.

प्रारंभिक जांच में पुलिस ने डा. सिद्धार्थ तिगनाथ के कुछ मित्र और परिजनों के बयान दर्ज किए. मामले की तहकीकात के लिए पुलिस ने सिद्धार्थ के पिता डा. दीपक तिगनाथ, मां ज्योति तिगनाथ, पत्नी नेहा के अलावा नरसिंहपुर के सुरेश नेमा, शेख रियाज, प्रसन्न तिगनाथ, घनश्याम पटेल कुंजीलाल गोविंद पटेल के बयान दर्ज किए. इस के बाद पुलिस टीम ने रेलवे स्टेशन नरसिंहपुर के स्टाफ के बयान दर्ज किए. इस से पता चला कि डा. सिद्धार्थ ने ट्रेन से कट कर अपनी जीवनलीला समाप्त की थी. रेलवे स्टाफ ने पुलिस को बताया कि ट्रेन के ड्राइवर के हौर्न बजाने के बाद भी सिद्धार्थ रेल पटरियों से दूर नहीं हुए थे.

मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर मुख्यालय में  रेवाश्री हौस्पिटल एक बड़ा प्राइवेट हौस्पिटल है, जिस के डायरेक्टर डा. दीपक तिगनाथ हैं.  मैडिसिन में एमडी डिग्रीधारी कार्डियोलौजिस्ट डा. दीपक तिगनाथ पिछले 4 दशकों से पूरे जिले में अपनी चिकित्सा सेवाएं दे रहे हैं. डा. दीपक तिगनाथ के परिवार में एक बेटा सिद्धार्थ और एक बेटी गार्गी है. गार्गी की  रीवा के रहने वाले अजय शुक्ला से शादी हो चुकी है.

डा. दीपक तिगनाथ का बेटा सिद्धार्थ दंत चिकित्सक के रूप में रेवाश्री हौस्पिटल में ही अपने पिता की तरह लोगों का इलाज करते थे. परिवार में डा. सिद्धार्थ की पत्नी नेहा और उन का 5 साल का एक बेटा है.

सिद्धार्थ की शुरुआती शिक्षा रीवा के सैनिक स्कूल में हुई. उन के दादाजी गणित के शिक्षक थे, इसलिए गणित उन का पसंदीदा विषय था. क्रिकेट में भी उन की बेहद दिलचस्पी रहती थी.

स्कूली पढ़ाई के बाद सिद्धार्थ बीडीएस की डिग्री ले कर दंत चिकित्सक बने, उन की इंटर्नशिप देख उन के सीनियर ने उन्हें सफल सर्जन बनने की सलाह दी. पिता भी एक सफल डाक्टर थे, वही सब अच्छे गुण विरासत में उन्हें भी मिले.

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चिकित्सा के साथ राजनीति को वह समाज सेवा का एक सफल माध्यम मानते थे. इसी कारण से वह राजनीति एवं प्रशासनिक की पढ़ाई के लिए पुणे स्थित पूर्व चुनाव आयुक्त टी.एन. शेषन के संस्थान में गए.

इसी संस्थान में पढ़ाई के दौरान ‘चिकित्सा पद्धति एवं उस का क्रियान्वयन कैसा हो’ विषय पर अपनी थीसिस के माध्यम से अपने विचार जब टी.एन. शेषन के सामने रखे तो शेषन डा. सिद्धार्थ से बहुत प्रभावित हुए. उन्होंने कहा था कि राष्ट्र को ऐसे ही परिपक्व और उत्कृष्टता दे सकने वाले तुम्हारे जैसे नौजवानों की जरूरत है.

डा. सिद्धार्थ तिगनाथ एक समय जिले की राजनीति में कांग्रेसी नेता के रूप में सक्रिय रहे थे. सन 2011 में उन्हें प्रदेश के 2 बड़े नेता कमलनाथ और सुरेश पचौरी ने होशंगाबाद लोकसभा क्षेत्र के उपाध्यक्ष की कमान सौंपी थी. लोकसभा क्षेत्र में संगठन की मजबूती के लिए उन्होंने रातदिन काम किया. किसान आंदोलन हो या उन की फसलों का मुआवजा, जहां प्रशासनिक व्यवस्था धराशाई हो जाती थी, वे किसानों को बातचीत के लिए तैयार करते.

किसी कैंसर पेशेंट को क्या सहायता मिल सकती है, वह उसे पूरी मदद अपने माध्यमों से करते. चिलचिलाती गरमी में स्टेशन पर पानी के पाउच बांटते, ऐसी नेतागिरी वह अपने दम पर तन मन धन से करते थे. तिगनाथ फैमिली को पूरे इलाके में उन की दौलत और शोहरत के कारण जाना जाता था. हर किसी के सुखदुख में तिगनाथ फेमिली हमेशा साथ रहती. डा. सिद्धार्थ अपने व्यवहार एवं शैली के चलते थोड़े से समय में ही सब के चहेते बन चुके थे.

कहते हैं कि जीवन में यदि खुशियां हैं तो दुखों के पहाड़ भी हैं. कुछ लोग इन पहाड़ों को काट कर रास्ता बना लेते हैं तो कुछ लोग एक चट्टान के आगे अपनी हार मान कर निराश हो जाते हैं. डा. सिद्धार्थ ने भी 41 साल की उम्र में एक गलत फैसला ले कर अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली और अपने भरेपूरे परिवार को यादों के सहारे छोड़ गए.

डा. सिद्धार्थ सूदखोरों के बनाए चक्रव्यूह में इस कदर फंस चुके थे कि उस से बच कर  निकलना नामुमकिन था. उन के पिता भी अपनी दौलत बेटे के कर्ज की रकम चुकाने में कुरबान कर चुके थे, फिर भी सूदखोरों का कर्जा जस का तस बना हुआ था.

डा. सिद्धार्थ की सोच थी कि जिले के नौजवानों को रोजगार के उचित अवसर नहीं मिलते. इसलिए उन्होंने सन 2016 में ‘विश्वभावन पालीमर’ नाम की फैक्ट्री की शुरुआत की और बेरोजगार जरूरतमंद नौजवानों को उस में रोजगार दिया.

इसी दौरान उन्होंने ‘रेवाश्री इंस्टीट्यूट औफ पैरामैडिकल साइंसेस’ कालेज की शुरुआत की, जिस में स्थानीय युवकयुवतियों को मैडिकल की पढ़ाई के साथसाथ रोजगार दे कर उन्हें पगार देनी शुरू की थी.

अपने कारोबार को बढ़ाने के लिए वह पैसे की व्यवस्था में लग गए. 2016 की नोटबंदी से कोई अछूता नहीं बचा था. कारोबार में पैसे की जरूरत ने उन्हें स्थानीय सूदखोरों की तरफ धकेला. इसी दौरान सूदखोर आशीष नेमा से उन का संपर्क हुआ.

अगले भाग में पढ़ें-  डा. सिद्धार्थ को सूदखोरों से मिलवाने का काम किसने किया

Manohar Kahaniya: जॉइनिंग से पहले DSP को जेल- भाग 3

नशे की हालत में होते हुए भी निखिल सौरभ को आगाह करते हुए बोला, ‘‘भाई थोड़ा संभाल कर. अगर चल गई तो हम आए 4 थे लेकिन जाएंगे 3.’’

निखिल की इस बात पर सब हंस पड़े और एकएक कर सब पिस्तौल के साथ अपनी सेल्फी लेने लगे. यह देख कर सूरज बोल पड़ा, ‘‘भाई, सेल्फी क्यों ले रहा है, हम मर गए हैं क्या फोटो खींचने के लिए.’’

यह कहते हुए सूरज ने अपनी जेब से फोन निकाला और निखिल और सौरभ की फोटो खींचने लगा. उस समय तक आशुतोष चुपचाप बैठ कर अपने दोस्तों को फोटो खींचते खिंचवाते हुए देख रहा था.

अचानक से उसे महसूस हुआ कि वो अपने दोस्तों के साथ इस खेल में कहीं पीछे न रह जाए. इसलिए वह भी अपनी जगह से उठा और सूरज के हाथों से पिस्तौल ले कर निखिल पर तान कर खड़ा हो गया.

फोटो खिंचवाने में चली गोली

आशुतोष ने इस पोज में 2-3 फोटो खिंचवाईं और उस ने सूरज के फोन में अपनी खींची हुई फोटो देखीं. वह फोटो उसे कुछ खास पसंद नहीं आईं तो उस ने सौरभ को अपना फोन जेब से निकाल कर दिया और उसे फोटो खींचने के लिए कहा.

सौरभ ने अपने दोस्त की बात न टालते हुए उस के हाथों से फोन लिया और आशुतोष और निखिल की फोटो खींचने लगा.

इस बार जब आशुतोष के हाथों में पिस्तौल थी और सौरभ के हाथों में उस का फोन तो आशुतोष ने सोचा कि क्यों न निखिल को थोड़ा डराया जाए.

यह सोच कर उस ने पिस्तौल के ट्रिगर पर उंगली रख दी, जिसे देख कर निखिल जो कि नशे की हालत में था, अचानक से होश में आ गया. उस के मुंह से निकला ही था कि, ‘‘ये क्या कर रहा है?’’ इतने में आशुतोष से ट्रिगर दब गया.

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अब बहुत देर हो चुकी थी. गोली पिस्तौल से निकल चुकी थी और सामने खड़े निखिल की छाती में जा कर धंस चुकी थी. गोली की आवाज से दूरदूर तक पेड़पौधों में बैठे पक्षी उड़ गए. छाती पर गोली लगने के साथ ही निखिल जमीन पर गिर पड़ा.

आशुतोष जो कुछ मिनटों के लिए स्तब्ध हो गया था, वह अचानक से हरकत में आया. उस की पी हुई दारू का नशा तो एकदम से जादू की तरह गायब हो गया था. उस के हाथपैर सुन्न पड़ गए थे. उस की आंखों से आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे.

सामने अपने दोस्त को खून से लहुलुहान देख उस ने इधरउधर नजर घुमाई और अपने दोस्त निखिल के पास दौड़ पड़ा.

फोन हाथ में लिए सौरभ भी अपनी जगह पर स्तब्ध खड़ा था. उसे उस की आंखों पर भरोसा नहीं हो रहा था कि यह क्या हो गया. उस के हाथों से आशुतोष का फोन छुट कर जमीन पर गिर गया.

सौरभ भी अपने दोस्त निखिल के पास दौड़ पड़ा. दोनों की आंखों में आंसू लगातार बह रहे थे. उस जगह से उस समय तक सूरज वहां से गायब हो गया था.

रंज में बदल गई पार्टी

इतने में आशुतोष ने महसूस किया कि निखिल की धड़कनें अभी तक चल रही हैं. वह सौरभ से बिना कुछ बोले निखिल को अपने हाथों के सहारे उठाने लगा.

सौरभ जैसे मानो उस का इशारा समझ गया था. उस ने निखिल को उठाने में आशुतोष की मदद की और दोनों ने निखिल को उठा कर आशुतोष की गाड़ी में पिछली सीट पर लिटा दिया.

आशुतोष ने बिना देरी के गाड़ी चलाई और निखिल को ले कर इलाके के सदर अस्पताल पहुंचा. लेकिन अस्पताल के डाक्टर ने निखिल को मृत घोषित कर दिया. निखिल को मृत घोषित किए जाने के बाद निखिल को कुछ और सूझा ही नहीं. उस ने फिर से निखिल को गाड़ी की पिछली सीट पर लिटाया और शव को ले कर वे दोनों सीधे कोडरमा थाने पहुंच गए.

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थाने पहुंच कर इस मामले की जानकारी आशुतोष ने खुद दी. घटना की सूचना पा कर एसपी डा. एहतेशाम वकारीब कोडरमा थाने पहुंचे. उन्होंने शुक्रवार की रात करीब साढ़े 11 बजे आरोपी ट्रेनी डीएसपी आशुतोष कुमार और उस के दोस्त सौरभ से अलगअलग पूछताछ की. इस के बाद उन्होंने डीएसपी की कार में पड़े निखिल रंजन के शव को भी देखा.

एसपी डा. एहतेशाम वकारीब ने बिना किसी देरी के आरोपी आशुतोष कुमार और उस के दोस्त सौरभ कुमार को हिरासत में ले लिया. आशुतोष ने स्थानीय पुलिस की मदद करते हुए सूरज कुमार को भी पकड़वाने में सहायता की. 20 घंटों की लगातार खोजबीन के बाद सूरज कुमार को भी कोडरमा से हिरासत में ले लिया गया.

इस बीच पुलिस ने मृतक निखिल रंजन के घर वालों को इस की सूचना दी और पोस्टमार्टम के बाद शव परिवार के हवाले कर दिया है.

मृतक निखिल रंजन के पिता ऋषिदेव प्रसाद सिंह ने आरोपी आशुतोष पर आरोप लगाया कि उन के बेटे के साथ जो हुआ वह कोई घटना नहीं है बल्कि सोची समझी साजिश के तहत उस की हत्या की गई.

उन का आरोप था कि आशुतोष सटोरियों से पैसों की उगाही कराता था और पैसों के चक्कर में ही उस ने निखिल की हत्या की. उन्होंने इस की जांच सीबीआई से कराने की मांग की.

आशुतोष के पिता भी रिटायर्ड जज हैं. वह भी इस घटना पर हैरान हैं. आशुतोष कुमार का कहना है कि उस ने यह सब जानबूझ कर नहीं किया, बल्कि शराब के नशे में गलती से गोली चल गई. उसे अपने दोस्त के मरने का बहुत दुख है.

बहरहाल, पुलिस ने ट्रेनी डीएसपी आशुतोष कुमार, सौरभ कुमार और सूरज कुमार को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया.

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