परीक्षा से संबंधित तनाव को ऐसे रखें दूर

इन दिनों छात्र-छात्राएं परीक्षाओं की तैयारियों में मशगूल हैं. तमाम ऐसे बच्चे हैं, जो परीक्षा का नाम सुनकर अत्यधिक तनावग्रस्त हो जाते हैं, लेकिन कुछ मनोचिकित्सकीय सुझावों पर अमल कर परीक्षा और इससे जुड़ा तनाव एक ऐसी सच्चाई है जिससे हर उम्र का बच्चा, छात्र-छात्रा व व्यक्ति गुजरता है. वहीं सच यह भी है कि इस तनाव से भलीभाति निपट सकते हैं, बशर्ते कि परीक्षार्थी व उनके अभिभावक कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखें .

इन हालातो में बढ़ सकता है तनाव

-जब हम परीक्षा या इसके परिणामों को पूर्ण रूप से अपने भविष्य व सपनों से जोड़ लेते हैं.

-जब हम परीक्षा व उसमें प्राप्त नबरों को ही अपनी काबिलीयत का प्रमाण समझने लगते हैं.

-जब हमारे माता-पिता व परिजन और अन्य लोग हमसे इम्तहान में बहुत अच्छा प्रदर्शन करने की उम्मीद जताते हैं.

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तनाव के लक्षण

-रह रहकर हताश होना.

-सिरदर्द होना.

-दिल की धड़कन को महसूस करना.

-नींद उड़ जाना और पूरी रात न सो पाना.

-ऐसा महसूस करना कि मैं कहीं भाग जाऊं या मुझे कुछ हो जाए.

-छात्र का परीक्षा देने से पूर्णत: इनकार कर देना.

उपर्युक्त लक्षणों के अलावा स्वाभाविक व सहज रूप से परीक्षार्थी का मन अत्यधिक सकारात्मक व नकारात्मक भावनाओं के मध्य झूलता है. पढ़ाई करते वक्त अचानक छात्र को यह महसूस होता है कि उसे सब आता है और उसकी तैयारी सतोषजनक है. इस कारण वह अतिउत्साहित हो जाता है, लेकिन वहीं दूसरे पल उसे नकारात्मक सोच घेर लेती है. इस मनोदशा में उसे लगता है कि मानो उसे कुछ भी याद नहीं है और दूसरे उससे अच्छा कर रहे हैं, लेकिन अब उसके पास समय बहुत कम है. ऐसी मनोदशा में परीक्षार्थी का दिल तेजी से धड़कने लगता और उसे लगता है कि वह फेल हो जाएगा.

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तनाव का समाधान

कुछ सुझावों पर अमल कर परीक्षा से सबधित तनाव को काफी हद तक नियत्रित कर सकते हैं .

दैनिक चक्र को न बिगाड़ें: मस्तिष्क की एकाग्रता व क्षमता किसी भी परीक्षार्थी के दैनिक चक्र पर निर्भर करती है. यदि परीक्षा की तैयारी के कारण हम वक्त-बेवक्त खाते-पीते हैं और वेवक्त सोते -जागते हैं, तब हमारा दैनिक चक्र बिगड़ जाता है. इस कारण परीक्षा की तैयारी के वक्त या फिर परीक्षा के दौरान छात्र-छात्राओं की एकाग्रता व क्षमता बिगड़ जाती है. इसलिए जहा तक सभव हो .

-नाश्ता, दोपहर व रात का भोजन समय पर ही करें.

-रात में 5 से 6 घटे अवश्य सोएं.

-पूरी रात पढ़ाई करने से बचें, क्योंकि इस स्थिति में परीक्षा के दौरान एकाग्रता व याददाश्त पर विपरीत असर पड़ता है.

-इस बात को समझें कि मानव -मस्तिष्क एक बार की पढ़ी हुई विषय वस्तु को पूर्ण रूप से याद नहीं रख पाता. इसलिए परीक्षा की तैयारी के आखिरी दिनों या महीने में अपना सर्वाधिक समय पहले से पढ़े हुए विषयों को बार-बार पढ़कर- दोहराकर याद करें. ऐसा करने से आपका आत्मविश्वास बढ़ेगा.

-पढ़ाई के दौरान 10 से 20 मिनट का विश्राम अवश्य करें. ऐसा कर के एकाग्रता बढ़ती है.

अन्य सुझाव

-अपनी पढ़ाई व तैयारी की तुलना दूसरों से न करें.

-हमारे नबर कितने आयेंगे व हमारा लक्ष्य कहा तक है, यह बात अपनी क्षमता के अनुसार तय करें. यह बात भी सुनिश्चित करें कि दूसरे हमसे क्या अपेक्षा करते हैं?

-जब तनाव महसूस करें या किसी प्रश्न या विषय को लेकर हताशा पैदा हो, तब अपनों की सहायता लेने से न कतराएं.

-जब अत्यधिक हताश महसूस करें या ऐसा लगे कि फेल हो जाएंगे, तो यही बात इन्हीं शब्दों में माता-पिता या शिक्षक को बताएं.

मनोचिकित्सक से तब जरूर मिलें

-यदि बच्चे में तनाव के अत्यधिक लक्षण प्रकट हों और वह सोना बद कर दे.

-यदि बच्चा परीक्षा देने से इनकार कर दे या कतराने लगे.

-यदि हर वर्ष परीक्षा के दौरान भावनात्मक अस्थिरता पैदा होती हो.

इन बातो का अभिभावक रखे ख्याल !

-बच्चे को नियमित समय से खाने-पीने व सोने के लिए प्रेरित करें.

-खाने में सब्जी, रोटी, दाल और चावल आदि जल्दी पचते हैं. इसके विपरीत तेल व चिकनाईयुक्त खाद्य पदार्थ देर से पचते हैं और सुस्ती पैदा करते हैं.

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-पढ़ाई के दौरान बच्चा यदि थोड़ी देर के लिये दोस्तों को फोन करता है या गेम्स खेलता है, तो उसे कुछ वक्त के लिए ऐसा करने दें. इससे दिमाग में ताजगी आती है और दोबारा पढ़ने के लिए बैठने में एकाग्रता बेहतर होती है. बच्चे की पढ़ाई व तैयारी को लेकर सतोष जताएं व उसे बताएं कि सब ठीक चल रहा है .

-बच्चे की पढ़ाई व तैयारी की तुलना उसके बडे भाई, पड़ोसियों के बच्चों या उसके मित्रों से न करें .

-यदि बच्चा हताशा में आपसे कहता है कि उसकी तैयारी बेकार है और वह फेल होने वाला है तो आप उसकी बातें सुनें और अपनी ओर से उसकी तैयारी को लेकर सतोष व विश्वास जताएं और उसे बताएं कि हर अच्छी व बुरी स्थिति में हम उसके साथ हैं .

Satyakatha: बेटे की खौफनाक साजिश- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

लेखक- शाहनवाज

उस दिन से ही रवि ने हर छोटी बात पर अपने मांबाप से झगड़ना शुरू कर दिया. घर में झगड़े इतने आम होने लगे की गलीमोहल्ले में ढाका परिवार के बारे में बच्चेबच्चे को मालूम हो गया कि यहां हर दिन झगड़ा होता है.

रवि पहले भी शराब पी कर घर आता था लेकिन अब वह हर दिन नशे में धुत हो कर अपने मातापिता से झगड़ा करता. कभी परचून की दुकान में पैसों के हिसाब को ले कर, कभी संपत्ति को ले कर, कभी अपनी पत्नी से की शादी को ले कर.

घर में फैली अशांति को देखते हुए रवि की मां संतोष का रुख उस के प्रति नरम होना भी शुरू हो गया था. लेकिन उस के पिता सुरेंद्र उस से हमेशा नाराज ही रहते थे.

जब कभी उस के पिता की रवि से बहस होती तो वह बातबात में संपत्ति गौरव के बच्चों के नाम कर देने की धमकी दिया करते थे.

ऐसे ही एक दिन कोरोना की दूसरी लहर के बाद प्रदेश में लौकडाउन हटाया गया तो रवि ने अपनी पत्नी सुमन को उस के मायके भेज दिया. घर में सिर्फ रवि, उस के पिता सुरेंद्र और उस की मां संतोष ही रह गए थे.

हत्या के ठीक एक दिन पहले रवि का फिर से अपने मांबाप के साथ झगड़ा हो गया. झगड़े के बाद रात को सोते समय रवि ने अंत में अपने मांबाप को जान से मार देने की प्लानिंग कर डाली.

हर दिन की तरह वह 11 जून की सुबह 6 बजे दुकान पर गया और 9 बजे घर वापस आया. उस की मां ने उस के लिए खाना परोसा और वह पहली मंजिल पर नहाने चली गईं. उस के पिता ग्राउंड फ्लोर पर सोफे पर बैठ कर टीवी देख रहे थे.

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रवि ने खाना खाया और अपने प्लान के अनुसार उस ने बिस्तर पर पड़ा गमछा अपना हाथमुंह पोछने के लिए उठाया. गमछा ले कर कमरे में टहलते हुए वह सोफे के पास उस जगह पर जा कर खड़ा हो गया, जहां उस के पिता अपनी आंखें टीवी पर गड़ाए बैठे थे.

देखते ही देखते रवि ने एक पल में गमछे को अपने पिता के गले में पीछे से डाला और अपनी पूरी ताकत के साथ गमछा को ऐंठ कर कस कर खींच दिया.

ऐसे में वह चिल्ला भी नहीं पाए और खुद को बचाने के के लिए वह सोफे से उठ कर बिस्तर की ओर जा कर गिर गए. लेकिन रवि ने अपने पिता का गला नहीं छोड़ा, रवि के दिमाग में बस एक ही चीज घूम रही थी, वह थी उस के पिता की संपत्ति.

कुछ देर बाद बिस्तर पर जब सुरेंद्र सिंह ढाका सांस लेने में असमर्थ हो गए और उन्होंने हलचल करनी छोड़ दी तब आहिस्ता से रवि ने गमछे को ढीला छोड़ा. जब वह अपने पिता की हलचल बंद होते देखा तो गले से गमछा निकाल कर पिता के शव के पास ही रख दिया.

उस ने अपने कान पिता की नाक के पास ले जा कर क्रौस चेक किया कि कहीं अभी भी जान तो नहीं बची. जब उसे पूरा यकीन हो गया तो वह पसीने में लथपथ हो कर ऊपर पहली मंजिल पर अपनी मां संतोष देवी की हत्या करने के लिए आगे बढ़ा और सीढि़यां चढ़ते हुए कमरे में दाखिल हुआ.

संतोष देवी ने नहाने के बाद बिस्तर पर लेटे हुए अपनी आंखें बंद कर के, एक तरफ से अपने बाल लटका रखे थे ताकि उन के बाल जल्दी से सूख जाएं.

रवि के कदमों की आहट इतनी हलकी थी की उस की मां के कानों तक कोई आवाज ही नहीं पहुंची. रवि कमरे में दाखिल हुआ और दरवाजे से सटे सौकेट में लगे फोन के चार्जर को उस से बाहर निकाला.

फोन चार्जर की तार को उस ने डबल कर के एक फंदा बनाया और बिस्तर पर लेटी अपनी मां के गले में उसे डाल कर ठीक वही किया, जो उस ने कुछ देर पहले अपने पिता के साथ किया था.

कुछ देर में उस की मां की सांसों ने भी उन का साथ छोड़ दिया. उस ने चार्जर की तार को वहीं अपनी मां के गले में ही रहने दिया. उस ने अपनी मां के गले और कानों में पहने सोने के आभूषण निकाल लिए.

मांबाप की इस तरह से निर्मम हत्या करने के बाद रवि ढाका फिर से नीचे अपने पिता के कमरे में आया और अपने प्लान के अनुसार उस ने एकएक कर घर का सामान इधरउधर बिखेर दिया. टीवी का रिमोट भी फेंका, जिस से उस की बैटरियां बाहर निकल गईं.

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उस ने अलमारी का ताला खोला जिस में उसे 15 हजार रूपए नकद मिले और करीब 5 लाख की एक एफडी मिली. उस ने तुरंत उन्हें निकाला और घटनास्थल को अस्तव्यस्त कर अपने घर से चुपचाप काम के लिए निकल गया.

उस के घटनास्थल को अस्तव्यस्त करने के पीछे एक ही कारण था कि कोई भी उस पर शक न करे और हत्या को लूटपाट और चोरी की लगे.

वह अपने औफिस से काम निपटा कर दोपहर को घर नहीं लौटा. उस ने सोचा कि इस बीच कोई दूसरा व्यक्ति उस के घर जाएगा और इस हत्या की खबर उसे सुनाएगा, जिस से उस पर किसी तरह का कोई शक नहीं होगा.

इसलिए वह जब दोपहर को अपने औफिस से लौटा तो दुकान खोलने के बजाय दुकान के ऊपर बने कमरे में शाम के 6 बजे तक अपने दोस्तों के साथ ताश खेलता रहा.

अंत में जब उस ने देखा कि उसे घर पर आने के लिए किसी का फोन नहीं आया तो वह हार मान कर अपने घर खुद निकल गया. जहां पर पहुंचने के बाद उस ने वो सारा ड्रामा किया, जो उस ने सोचा हुआ था.

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यह सब कुछ कुबूल करने के बाद संपत्ति के लालच में अपने मातापिता की हत्या करने वाला रवि ढाका पुलिस हिरासत में हैं.

पुलिस की टीम ने घटना के महज 24 घंटे के अंदर ही अभियुक्त को धर दबोचा.

पुलिस ने रवि ढाका से पूछताछ करने के बाद उसे कोर्ट में पेश किया जहां से उसे जेल भेज दिया.

भोजपुरी एक्ट्रेस Sambhavna Seth की मां हुईं बीमार, देखें ये इमोशनल Video

भोजपुरी इंडस्ट्री की फेमस एक्ट्रेस संभावना सेठ (Sambhavna Seth)  की पिता का 3 3 महीने पहले निधन हो गया. दरअसल वे कोरोना संक्रमण से जूझ रहे थे. एक्ट्रेस इस हादसे से टूट चुकी थीं. तो अब खबर ये आ रही है कि संभावना सेठ की मां बीमार हैं. यह जानकारी सोशल मीडिया से मिली है.

दरअसल एक्ट्रेस ने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो शेयर किया है. इस वीडियो में वह अपनी मां के साथ नजर आ रही हैं. इस वीडियो में आप देख सकते हैं कि उनकी बीमार मां बिस्तर पर लेटी हुई हैं और संभावना उन्हें किस कर रही हैं.

 

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संभावना सेठ ने वीडियो शेयर करते हुए एक इमोशनल नोट लिखा है. उन्होंने लिखा है- ‘दोस्तों मैं आपके साथ यह वीडियो शेयर कर रही हूं. मैं लाइफ में इमोशनल उथल-पुथल का सामना कर रही हूं.

 

उन्होंने आगे लिखा है कि पहले मैंने अपने पिता को खो दिया और अब मां को इस स्थिति में देखकर मैं मरी जा रही हूं. मैं अपने को मजबूत बनाए रखने की बहुत कोशिश कर रही हूं, लेकिन पता नहीं कब तक…

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संभावना की इस पोस्ट कई टीवी एक्टर्स, फ्रेंड समेत फैंस भी उनके लिए दुआएं कर रहे हैं. उनकी दोस्त कश्मीरा शाह ने लिखा है- ‘मजबूत बनो संभावना’.  इसके अलावा मेघना नायडू, रश्मि देसाई, भारती सिंह, पंखुड़ी अवस्थी ने भी उनका हौसला बढ़ाया है.

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खिलाड़ी गाली के नहीं इज्जत के हकदार

ओलिंपिक खेलों में शिरकत करना इज्जत और गौरव की बात है. ऐसे में अगर वंदना कटारिया और दूसरी महिला खिलाड़ी हौकी के सैमीफाइनल मुकाबले में अच्छा खेल नहीं दिखा पाईं, तो क्या किसी एक खिलाड़ी को उस की जाति को ले कर उसे या उस के परिवार वालों को गाली दी जानी चाहिए या फिर खिलाड़ी का जोश बढ़ाना चाहिए?

दरअसल, खिलाड़ी हमारे देश के गौरव हैं और खेल में हारजीत तो होती ही रहती है. इस के अलावा खेल को खेल भावना के साथ अंजाम देने की नसीहत भी दी जाती है. ऐसे में अगर 2-4 लोग बेकाबू हो कर किसी खिलाड़ी के घर के सामने ऊलजुलूल नारेबाजी करने लगें, तो यह बात पूरे देश के लिए शर्मनाक है. ऐसे लोगों को माफ नहीं किया जाना चाहिए.

इस से यह भी साबित होता है कि अभी भी हमारे देश के बहुत से इलाकों में जातपांत की छोटी सोच रखते हुए लोग अपनी जिंदगी बसर कर रहे हैं.

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मामला कुछ यूं है कि जातिसूचक शब्दों के इस्तेमाल और घर के सामने पटाके जला कर बेइज्जती करने के सिलसिले में पुलिस ने 5 अगस्त, 2021 को हरिद्वार जिले के रोशनाबाद इलाके में एक आदमी को गिरफ्तार कर भारतीय दंड संहिता की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया, जो एक सबक हो सकता है कि अब हमें जातपांत के भेदभाव से ऊपर उठना चाहिए.

हरिद्वार के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के मुताबिक, हौकी खिलाड़ी वंदना कटारिया के भाई चंद्रशेखर कटारिया की शिकायत पर कार्यवाही करते हुए पुलिस ने मामले में 3 नामजद समेत दूसरे अज्ञात आरोपियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर एक शख्स को गिरफ्तार किया. पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 504 और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया.

जातिगत गालियां हैं शर्मनाक

सच तो यह है कि आप किसी की न तो बेइज्जती कर सकते हैं और न ही गाली दे सकते हैं. भारतीय दंड संहिता की धाराओं के तहत यह संज्ञेय अपराध है. ऐसे में जातिगत गालीगलौज तो और भी गंभीर अपराध के रूप में गिना जाएगा. अब भारतीय हौकी टीम की एक खास खिलाड़ी, जिस ने बहुत ही अच्छे तरीके से अपना खेल दिखाया और एक बड़ा प्रशंसक वर्ग देश में हासिल किया, उस के घर के सामने सैमीफाइनल मुकाबले में हार जाने के चलते पटाके जलाना और परिवार वालों के साथ गालीगलौज करना यह दिखाता है कि आज भी हमारे समाज में कितनी छोटी सोच के लोग सीना तान कर और कानून को आंखें दिखा कर रोब गांठ रहे हैं.

ऐसा मालूम होता है कि हमारे देश में कानून और पुलिस प्रशासन का डर तो मानो खत्म होता चला जा रहा है. यही वजह है कि ओलिंपिक खेलों में शिरकत कर रही एक खिलाड़ी के परिवार वालों को बेइज्जत होना पड़ा.

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दरअसल, हमें अपनी सोच को बदलने की जरूरत है. हमें यह समझना चाहिए कि अगर ओलिंपिक खेलों के ऐतिहासिक मंच पर भारत की कोई बेटी अपना प्रदर्शन दिखा रही है तो यकीनन वह अपनी पूरी ताकत और निष्ठा के साथ देश के लिए खेल रही है और हमें उस की हौसलाअफजाई करनी चाहिए. अगर हम ऐसा नहीं कर सकते तो इस से जहां एक तरफ खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर बुरा असर पड़ेगा, वही इंटरनैशनल मीडिया में भी भारत की इमेज किस तरह पेश होगी, इस की कल्पना आसानी से की जा सकती है.

ऊंची जाति, नीची जाति

देश के सामाजिक हालात की सचाई यह है कि वर्तमान में जातियों का दबदबा खत्म होता चला जा रहा है. अब जातियां आज से 25 साल पहले के कट्टर और कठोर हालात में नहीं दिखती हैं. इस सब के बावजूद अगर ऐसी वारदातें सामने आ रही हैं, तो यह चिंता का सबब है.

यह भी सच है कि टोक्यो ओलिंपिक खेलों के सेमीफाइनल मुकाबले में भारतीय महिला हौकी टीम भले ही हार गई थी, लेकिन उस के बाद कांस्य पदक जीतने के लिए उसने जो जोर लगाया था और ग्रेट ब्रिटेन को पसीना ला दिया था, उस का जवाब नहीं था. पदक चूकने के बाद भी पूरा देश उन की हौसलाअफजाई कर रहा था और उन की खेल भावना के उत्सव से सराबोर था.

ऐसे शानदार माहौल में महिला हौकी टीम की सदस्य वंदना कटारिया के परिवार का आरोप‌ देशवासियों के लिए एक गंभीर मुद्दा बन कर सामने आया है. जो लोग यह सोचते हैं कि भारतीय टीम की इसलिए हार हुई, क्योंकि टीम में जरूरत से ज्यादा दलित खिलाड़ी हैं, तो ऐसी छोटी सोच रखने वाले लोगों से यह सवाल पूछना चाहिए कि जब वे खुद ओलिंपिक खेलों में भाग नहीं ले पा रहे हैं, तो क्या इस का ठीकरा उन की ऊंची जाति के सिर पर फोड़ा जाना चाहिए?

ऊंची या नीची जाति कुछ नहीं होती. यह सब हमारी छोटी सोच का नतीजा है और यही बात हमारी तरक्की में बहुत बड़ी रुकावट भी है.

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Ghum Hai KisiKey Pyaar Meiin: ट्रिप पर विराट करेगा सई को प्रपोज तो पाखी बनेगी जासूस

टीवी सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार  में’  में अब तक आपने देखा कि विराट सई को ट्रिप पर ले गया है. उसने सई से झूठ बोला है कि उसका ऑफिशियल ट्रिप है. शो में जल्द ही रोमांटिक ट्रैक आने वाला है लेकिन पाखी का पति सम्राट की एंट्री से कहानी में बड़ा ट्विस्ट आने वाला है. आइए बताते हैं शो के नए एपिसोड के बारे में.

शो में दिखाया जा रहा है कि विराट ने फैसला किया है कि अब वह सई से कह देगा कि उसका दिल अब सिर्फ और सिर्फ उसी के लिए धड़कता है. विराट अपने दिल की बात कहने के लिए उसे ट्रिप पर ले जाता है.

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तो दूसरी तरफ में विराट और सई चाहते हैं कि सम्राट वापस आ जाएं ताकि पाखी खुश रहें. विराट यह भी सोचता है कि जब वह सम्राट से मिलेगा तो कहेगा कि वह पाखी को लेकर अपनी सारी जिम्मेदारी निभाएं. लेकिन सई और विराट की मुसीबते पीछा नहीं छोड़ रही हैं.

 

एक तरफ विराट सई को ट्रिप पर ले गया है ताकि वह अपने दिल की बात कह सके. लेकिन पाखी पीछा करते हुए वहां भी पहुंच गई है. उसे भी बड़ा झटका लगने वाला है.

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विराट सई से कहता है कि हमारे रिश्ते को एक साल हो गए है. वह जल्द ही सई को प्रपोज करेगा. जैसे ही वह सई को प्रपोज करने के लिए विराट हिम्मत जुटाता है तब बीच में सम्राट आ जाता है.

ऐसे में विराट सम्राट को देखकर चौंक जाता है. सम्राट विराट से सई और उसकी शादी से संबंधित कई सवाल पूछता है. इसके अलावा वह पाखी और विराट के रिश्ते को लेकर सवाल करता है. इसी बीच पाखी भी जासूसी करते हुए वहां पहुंच जाती है. शो में ये देखना दिलचस्प होगा कि शो में ये देखना दिलचस्प होगा कि पाखी और सम्राट आमने-सामने आएंगे तो क्या होगा?

हर दुकानदार अपनी मेहनत का पैसा वसूलेगा!

हमारे देश के शहरों के बाजारों में अगर बेहद भीड़ दिखती है तो वह ज्यादा ग्राहकों की वजह से तो है ही, असली वजह ज्यादा दुकानदार हैं. लगभग हर शहर और यहां तक कि बड़े गांवों में भी दुकानें तो अपना सामान दुकान के बाहर रखती हैं, उस के बाद पटरी दुकानदार अपनी रेहड़ी या कपड़ा या तख्त लगा कर सामान बेचने लगते हैं. बाजार में भीड़ ग्राहकों के साथ इन दुकानदारों और उन की पब्लिक की घेरी जगह होती है.

कोविड को फैलाने में जहां कुंभ जैसे धार्मिक और पश्चिम बंगाल व बिहार जैसे चुनाव जिम्मेदार हैं, ये बाजार भी जिम्मेदार हैं. इन बाजारों में यदि पटरी दुकानदार न हों और हर दुकानदार अपना सामान दुकान में अंदर रखे तो किसी भी बाजार में भीड़ नजर आएगी ही नहीं.

पटरी दुकानदारों को असल में लगता है कि पब्लिक की जमीन तो गरीब की जोरू है जो सब की साझी है. उन्हें और कुछ नहीं आता, कोई हुनर नहीं है, खेती की जगह बची नहीं हैं, कारखाने लग नहीं रहे, आटोमेशन बढ़ रहा है तो एक ही चीज को एक ही बाजार में बेचने वाले 10 पैदा हो जाते हैं जो पटरी पर दुकान जमा कर बैठ जाते हैं और ग्राहकों के लिए फुट भर की जगह नहीं छोड़ते.

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यह सीधासादा हिसाब भारत में लोगों को समझ नहीं आता क्योंकि यहां लोगों में हुनर की कमी है और भेड़चाल ज्यादा है. एक ने देखा कि किसी के जामुन बिक रहे हैं तो 4 दिन में 20-25 दुकानदार उसी जामुन को बेचने लगेंगे. उन्हें कुछ और आता ही नहीं. 20-25 बेचने वालों का पेट ग्राहक पालते हैं, 20-25 दुकानदारों ने जो रिश्वत पुलिस या कमेटी वालों को दी, वह ग्राहक देता है और जो माल 20-25 जगह सड़ा या बिखरा वह ग्राहक से वसूला जाता है.

हमारे दुकानदार न केवल बेवकूफ हैं अब कोरोना के शाही घुड़सवार बन रहे हैं. उन की वजह से चौड़े बाजारों में ग्राहकों के लिए संकरी सी जगह चलने के लिए बच रही है. दिल्ली में कई मार्केटें बंद कर दी गईं क्योंकि लौकडाउन हटते ही पटरी दुकानदार आ गए और ग्राहकों को सटसट कर चलने को मजबूर करने लगे.

अब बेचारगी के नाम पर ढील नहीं दी जा सकती. गरीब दुकानदारों को कोई और हुनर ही सीखना होगा. भाजपा ने धर्म की दुकानें खोल रखी हैं, वहीं जाओ पर कोरोना तो वहां से भी फैलेगा.

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इन पटरी दुकानदारों को चाहे कितना बेचारा और गरीब कह लो पर अब इन की मौजूदगी पूरी जनता के लिए खतरनाक है. ग्राहकों को अब पूरा स्पेस चाहिए ताकि डिस्टैंस बना रहे. ग्राहक और दुकानदार दोनों के लिए यह जरूरी है. इस तरह के बाजार हमेशा से दुनियाभर में बनते हैं और चलते हैं पर अब समय आ गया है जब दुकानें पक्की ही हों, बड़ी हों और उन में ग्राहकों को चलने की अच्छी जगह मिले.

पब्लिक की सड़कों और बाजारों को अब बेचारे गरीब दुकानदारों के नाम पर कुरबान नहीं किया जा सकता, यह खतरनाक है. वैसे भी पटरी दुकानदार सस्ते पड़ते हैं, यह गलतफहमी है. वे बेकार में अपना समय खर्च करते हैं और इस समय की कीमत उस ग्राहक से वसूलते हैं जो उस सामान को खरीदना चाहता है. यदि एक चीज को खरीदने के लिए दिन में 100 ग्राहक बाजार आते हैं और 1-2 दुकानदारों से खरीदते हैं तो उन्हें काफी मुनाफा होगा और वे दाम कम रख सकेंगे. जब वही चीज 30-40 दुकानदार बेचेंगे तो दाम घटेंगे नहीं बढ़ेंगे क्योंकि हर दुकानदार अपनी मेहनत का पैसा वसूलेगा.

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Crime Story in Hindi: बहुरुपिया- भाग 2: दोस्ती की आड़ में क्या थे हर्ष के खतरनाक मंसूबे?

आखिर किस पत्थरदिल पर ऐसी बातों का असर न होता? मैं उस से अकसर मिलने लगी. अब इन मुलाकातों का सिलसिला शुरू हो चुका था और परिचय गहरी दोस्ती में बदल चुका था. ऐसी ही एक मुलाकात के दौरान हर्ष ने बताया कि वह विवाहित है और उस की 3 साल की बेटी भी है. उस की पत्नी मीनाक्षी लोकल विश्वविद्यालय में संस्कृत प्रवक्ता थी और वह स्वयं कोई काम नहीं करता था.

‘‘मुझे कुछ करने की क्या जरूरत है? मेरे एमएलए पिता ने काफी कुछ कमा रखा है. अगली बार मुझे भी एमएलए का टिकट मिल ही जाएगा. क्या रखा है दोचार कौड़ी की नौकरी में? हर्ष ने बड़ी अकड़ के साथ कहा.’’

‘‘जब नौकरी से इतना ही परहेज है तो फिर मीनाक्षी जैसी नौकरीशुदा से क्यों शादी कर ली तुम ने?’’ मैं ने दुविधा में पड़ कर पूछा.

‘‘बेवकूफ है वह, अपनी ढपली अपना राग अलापती है. शादी से पहले उस ने और उस के परिवार वालों ने वादा किया था कि वह शादी के बाद नौकरी छोड़ देगी, लेकिन बाद में उस का रंग ही बदल गया और उस ने अपनी बहनजी वाली नौकरी नहीं छोड़ी. वह नहीं जानती कि एमएलए परिवार में किस तरह रहा जाता है,’’ हर्ष का चेहरा अंधे अभिमान से दपदपा रहा था.

उस के जवाब को सुन कर मैं हत्प्रभ रह गई. मेरी चेतना मुझ से कह रही थी कि मेरा मन एक गलत आदमी के साथ जुड़ने लगा है. मगर चाहेअनचाहे मैं इस डगर पर आगे बढ़ती जा रही थी. उस की बातों में मेरी तारीफों के पुल और उस के एमएलए पिता के ताल्लुकात में मुझे अपनी शोहरत में दीए को तेल मिलता सा लगता था. इस दीए की टिमटिमाहट की चमक हर्ष के सच की कालिमा को ठीक से नहीं देखने दे रही थी.

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‘‘तुम मेरे लिए मंदिर में रखी एक मूर्ति के समान हो. मैं जो कहूं वह बस सुन लिया करो, मगर उसे ज्यादा दिल से लगाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि मैं एक शादीशुदा आदमी हूं और इस रास्ते पर तुम्हारे साथ ज्यादा लंबा नहीं जा सकता,’’ उस ने साफसाफ कहा.

‘‘मुझे पता है हर्ष तुम शादीशुदा हो. मैं भी तुम से उस तरह की कोई उम्मीद नहीं कर रही हूं. मगर समझ में नहीं आता कि अब हम दोनों जानते हैं कि हम इस रास्ते पर आगे नहीं जा सकते तो ये बेवजह की मुलाकातें किस लिए हैं?’’

‘‘इबादत करता हूं मैं तुम्हारी, मैं तुम्हें सफलता की ऊंचाइयों पर देखना चाहता हूं. मैं अपने लिए तुम से किसी तरह की उम्मीद नहीं करता. बस एक सच्चा दोस्त बन कर तुम्हें आगे बढ़ाना चाहता हूं. अगले साल थाईलैंड में होने वाली प्रदर्शनी के लिए तुम्हें ललित कला ऐकैडमी स्कौलरशिप दिलवाऊंगा. मेरे डैडी के बड़ेबड़े कौंटैक्ट्स हैं, इसलिए ऐसा कर पाना मेरे लिए कोई बड़ी बात नहीं है. बस तुम्हारी 2-4 इंटरनैशनल प्रदर्शनियां हो गईं तो फिर तुम्हें मशहूर होने में देर नहीं लगेगी.’’

यह सुन कर मैं मन ही मन गद्गद हो रही थी. मैं अकसर सोचा करती कि मैं मशहूर हो पाऊं  या न हो पाऊं, पर कम से कम मेरे पास एक इतना बड़ा प्रशंसक तो है. देखा जाए तो क्या कम है. अब हमारी मुलाकात रोज होने लगी थी. हर्ष की मेरे प्रति इबादत अब किसी और भाव में बदलने लगी थी. जो हर्ष पहले मुझे अपने सामने बैठा कर मुझे देखने मात्र की और मेरी पेंटिंग्स के बारे में बातें करने की चाहत रखता था. वह अब कुछ और भी चाहने लगा था.

‘‘एक चीज मांगू तुम से?’’

‘‘क्या?’’

‘‘क्या मैं तुम्हें अपनी बांहों में ले सकता हूं?’’

‘‘बिलकुल नहीं.’’

‘‘सिर्फ 1 बार प्लीज. पता है मुझे क्या लगता है?’’

‘‘क्या?’’

‘‘कि मैं तुम्हें अपनी बांहों में भर लूं और वक्त बस वहीं ठहर जाए. तुम सोच भी नहीं सकतीं कि मैं तुम्हारा कितना सम्मान करता हूं.’’

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‘‘और मैं कठपुतली सी उस की बांहों में समा गई.’’

‘‘इबादत करता हूं मैं तुम्हारी और तुम्हें आकाश की बुलंदियों को छूते हुए देखना चाहता हूं,’’ मेरे बालों को सहलाते हुए उस का पुराना एकालाप जारी रहा.

‘‘हर्ष, प्लीज अब घर जाने दो मुझे. 1-2 पेंटिंग्स पूरी करनी हैं कल शाम तक.’’

‘‘ठीक है, जल्दी फिर मिलूंगा. इस हफ्ते मौका मिलते ही डैडी से तुम्हारे लिए ललित कला ऐकैडमी की स्कौलरशिप के बारे में बात करूंगा.’’

कुछ दिनों के बाद हम फिर से अपने पसंदीदा रेस्तरां में आमनेसामने बैठे थे. डिनर खत्म होतेहोते रात की स्याही बढ़ने लगी थी. कई दिनों की लगातार बारिश के बाद आज दिन भर सुनहली धूप रही थी. हर्ष ने रेस्तरां के पास के पार्क में टहलने की इच्छा व्यक्त की. मौसम मनभावन था. पार्क में टहलने के लिए बिलकुल परफैक्ट. इसलिए बिना किसी नानुकुर के मैं ने हामी भर दी.

‘‘जरा उधर तो देखो, क्या चल रहा है,’’ हर्ष ने पार्क के एक कोने में लताओं के झुरमुट पर झूलते हुए कतूबरकतूबरी के जोड़े की तरफ इशारा करते हुए कहा.

‘‘क्या चल रहा है… कुछ भी नहीं,’’ मैं ने जानबूझ कर अनजान बनते हुए कहा.

‘‘देखो यह एक प्राकृतिक भावना है. कोई भी जीव इस से अछूता नहीं है, फिर हम ही इस से कैसे अछूते रह सकते हैं?’’

‘‘हर्ष, तुम जो कहना चाहते हो साफसाफ कहो, पहेलियां न बुझाओ.’’

‘‘कहना क्या है, तुम्हें तो पता है कि मैं शादीशुदा हूं और शहर भर में मेरे एमएलए पिता की बड़ी इज्जत है, इसलिए मैं तुम्हारे साथ ज्यादा आगे तो जा ही नहीं पाता. मगर जैसी गहरी दोस्ती तुम्हारे और मेरे बीच में है उस में मेरा इतना हक तो बनता है कि मैं कभीकभार तुम्हारा चुंबन ले लूं और फिर इस में हर्ज ही क्या है. यह भावना तो प्रकृति की देन है और हर जीव में बनाई है.’’

मेरे कोई प्रतिक्रिया करने से पहले ही वह मुझे एक बड़े से पेड़ की आड़ में खींच चुका था और कुछ कहने को खुलते हुए मेरे होंठों को अपने होंठों से सिल चुका था.

‘‘एक दिन तुम दुनिया की सब से अच्छी चित्रकार बनोगी. तुम्हारी पेंटिंग्स दुनिया की हर मशहूर आर्ट गैलरी की शान बढ़ाएंगी. कई महीनों  से डैडी बहुत व्यस्त हैं, इसलिए मैं उन से तुम्हारी स्कौलरशिप के बारे में बात नहीं कर पाया. मगर आज घर पहुंचते ही सीधा उन से यही बात करूंगा.’’ चंद पलों की इस अवांछित समीपता के बाद उस ने मुझे अपनी गिरफ्त से आजाद करते हुए अपना एकालाप दोहराया.

‘‘मैं ने बिना कुछ कहे अपना सिर उस कठपुतली की तरह हिलाया जिस की डोर पर हर्ष की पकड़ दिनबदिन मजबूत होती जा रही थी.’’

‘‘रिलैक्स डार्लिंग, जल्द ही तुम एमएफ हुसैन की श्रेणी में खड़ी होगी. चलो, मैं तुम्हें तुम्हारे फ्लैट पर छोड़ता हुआ निकल जाऊंगा.’’ उस ने अपनी कार का दरवाजा मेरे लिए खोलते हुए कहा.

Manohar Kahaniya: पुलिस अधिकारी का हनीट्रैप गैंग- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

विनोद ने कहा, ‘‘नहीं, मैं ने कुछ नहीं किया. मुझे झूठे जाल में फंसाया जा रहा है.’’

उस के बाद विधायक ने होशंगाबाद थानाप्रभारी संतोष सिंह चौहान को फोन कर के इस मामले की जांच करने को कहा. विधायक और पुलिस की समझाइश से मामला रफादफा हो गया .

सुनीता ठाकुर होशंगाबाद शहर में खुलेआम लोगों को हनीट्रैप के खेल में फंसा कर रुपयों की वसूली कर रही थी. उस ने अपने इस काम में कोतवाली पुलिस के कुछ पुलिसकर्मियों को भी शामिल कर लिया था.

पिछले 4-5 महीने से चल रहे इस खेल में हर बार किसी नए युवक को सुनीता शहर के आलीशान होटल या रूम पर ले जाती. युवकों के साथ अंतरंग संबंधों के वीडियो और फोटो सुनीता खुद बनाती थी. इस के बाद वह मोबाइल फोन के जरिए मैसेज कर पुलिस को बुला लेती और युवकों को ब्लैकमेल करती थी.

यह गैंग आधा दरजन लोगों को ब्लैकमेल कर लाखों रुपए की वसूली कर चुका था. ज्यादातर पीडि़त युवक इटारसी, होशंगाबाद, आंवलीघाट के रहने वाले थे.

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वीडियो से हुई ब्लैकमेलिंग

सुनीता ने अपना सातवां शिकार बनाया सलकनपुर के सुशील मालवीय को. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के विधानसभा क्षेत्र के गांव सलकनपुर का सुशील मालवीय किराना दुकान चलाता था. सोशल मीडिया के जरिए सुनीता ने सुशील का नंबर ले कर उस से नजदीकियां बढ़ाई थीं.

लौकडाउन के पहले अप्रैल महीने के शुरू में सुशील नई बाइक खरीदने होशंगाबाद गया था. सुनीता को जब पता चला कि सुशील होशंगाबाद आया है तो उस ने फोन कर के शहर के नर्मदा नदी के पास एक होटल में उसे मिलने बुला लिया.

होटल के कमरे में दोनों प्रेमालिंगन कर ही रहे थे कि उसी दौरान पुलिसकर्मी होटल में आ धमके. पुलिसकर्मियों ने डराधमका कर उस से बाइक खरीदने के लिए साथ लाए 80 हजार रुपए ले लिए.

मामला यहीं खत्म नहीं हुआ. पुलिस वालों ने उस से कहा कि 5 लाख रुपयों का इंतजाम और करो, नहीं तो तुम्हें लड़की के यौनशोषण करने के मामले में फंसा कर जेल भिजवा देंगे. पुलिस ने सुशील को डराधमका कर कहा कि जब तक तुम रुपयों का इंतजाम नहीं करते, सुनीता पुलिस हिरासत में ही रहेगी.

इधर सुनीता भी पुलिस के सामने नाटक करते हुए रोरो कर कहने लगी, ‘‘सुशील, मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूं . किसी तरह रुपयों का इंतजाम कर के मुझे पुलिस से बचा लो.’’

पुलिस के चक्कर से बचने के लिए सुशील ने जैसेतैसे सलकनपुर में अपने परिचित रिश्तेदारों की मदद से 5 लाख रुपए उधार ले कर पुलिस को देने बुधनी के पास पीलीकरार गांव आया तो हैडकांसटेबल ज्योति मांझी और कांसटेबल मनोज वर्मा ने सुशील से रुपए ले लिए और सुनीता को आजाद कर दिया.

पुलिसकर्मियों को पैसा वसूली का यह खेल इतना रास आ चुका था कि वे सुनीता को कामधेनु गाय समझ कर उस का दोहन कर रहे थे.

सुशील से होशंगाबाद थाने के पुलिसकर्मियों ने लाखों रुपयों की वसूली तो कर ली, लेकिन उन्होंने हनीट्रैप गैंग की लीडर सुनीता को केवल 2 हजार रुपए ही दिए. इस बात को ले कर सुनीता का गुस्सा गैंग में शामिल पुलिसकर्मियों पर फूट पड़ा.

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सुनीता ने की पुलिसकर्मियों की शिकायत

जब सुनीता ने उन से और पैसों की मांग की तो वे उलटे सुनीता को ब्लैकमेलिंग में फंसाने की धमकी देने लगे. दूसरों को अपने जाल में फंसाने वाली सुनीता इस बार खुद ही पुलिस वालों के जाल में फंस चुकी थी. लिहाजा उस ने विद्रोह करते हुए 7 जून को होशंगाबाद थाने और एसपी औफिस में जा कर एक लिखित शिकायत दी. उस ने आरोप लगाया कि एसआई जयकुमार नलवाया, हैडकांस्टेबल ताराचंद जाटव, ज्योति मांझी और कांस्टेबल मनोज वर्मा ने उस के नाम से झूठे मामले में ठगी की है.

कोतवाली थाने के टीआई संतोष सिंह चौहान ने एसआई श्रद्धा राजपूत को पूरे मामले की जांच करने को कहा.

सुनीता ने पुलिस को होशंगाबाद थाने की मोहर लगे 7 फरजी शिकायती पत्र भी दिए, जिस में युवकों द्वारा उस के साथ शादी का झांसा दे कर संबंध बनाने के आरोप थे.

मामले की जांच चल ही रही थी कि होशंगाबाद के शांतिनगर इलाके में रहने वाले एक युवक भविष्य बाधवानी ने सिटी थाने में शिकायत दे कर सुनीता ठाकुर के द्वारा की जा रही ब्लैकमेंलिंग की शिकायत कर दी.

भविष्य नाम का यह युवक शहर में ही अंडा बेचने का काम करता था. भविष्य का संपर्क सुनीता से फेसबुक के जरिए हुआ तो सुनीता ठाकुर उसे फोन कर के पैसों की मांग करने लगी.

वह बारबार फोन लगा कर भविष्य को धमकाती कि यदि 10 हजार रुपए नहीं दिए तो उसे झूठे मामले में फंसा देगी. एक दिन सुनीता रुपए मांगने उस की दुकान पर

आ धमकी तो भविष्य ने अपने दिमाग से काम लिया.

जब सुनीता ने उस से रुपए मांगे और न देने पर पुलिस में झूठी शिकायत करने की धमकी दी तो भविष्य ने 10 हजार रुपए देते हुए चालाकी से वीडियो बना कर मोबाइल फोन में सुनीता से हुई बातचीत रिकौर्ड कर ली.

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सुनीता के वहां से जाते ही भविष्य ने सिटी थाने में सुनीता के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी. उस ने सबूत के तौर पर मोबाइल में हुई रिकौर्डिंग भी पुलिस को सौंप दी.

थानाप्रभारी अपने ही थाने के पुलिस वालों की करतूत से शर्मसार थे, लेकिन वह सुनीता के खिलाफ कोई शिकायत न होने से उस पर कोई काररवाई नहीं कर पा रहे थे. ऐसे में शहर के युवक भविष्य ने सुनीता ठाकुर के खिलाफ शिकायत की तो वह पुलिस के लिए वरदान सिद्ध हो गई.

पुलिस ने मामले पर संज्ञान लेते हुए 18 जून, 2021 को सुनीता को भोपाल से गिरफ्तार कर लिया. पुलिस द्वारा सख्ती से की गई पूछताछ में सुनीता ने जिन बातों का खुलासा किया, वह पुलिस की खाकी वरदी को शर्मसार करने वाली थीं.

सुनीता द्वारा की गई शिकायत की जांच में होशंगाबाद थाने के एसआई जय कुमार नलवाया, हैडकांस्टेबल ज्योति मांझी, ताराचंद जाटव और कांस्टेबल मनोज वर्मा के शामिल होने की पुष्टि हुई.

जैसे ही जांच प्रतिवेदन एसपी संतोष गौर के पास पहुंचा तो उन्होंने इन पुलिसकर्मियों को तत्काल निलंबित कर दिया.

पुलिस अधिकारी था मास्टरमाइंड

22 जून, 2021 को जैसे ही होशंगाबाद थाने के 4 पुलिसकर्मियों के निलंबन की खबर सोशल मीडिया पर वायरल हुई तो मीडियाकर्मियों का जमावड़ा लग गया. हर कोई हनीट्रैप के इस मामले की सच्चाई जानने को बेताब था.

जिस पुलिस को सरकार ने जनता की सेवा और सुरक्षा के लिए वरदी दी, वही खाकी वरदी वाले 4 पुलिसकर्मियों की चौकड़ी हनीट्रैप करवाने में शामिल निकली. खाकी वरदी के नाम पर कलंक कहे जाने वाला एसआई जय कुमार हनीट्रैप मामले का मास्टरमाइंड था.

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Crime Story in Hindi: सोने का घंटा- भाग 1: एक घंटे को लेकर हुए दो कत्ल

प्रस्तुति : शकीला एस. हुसैन

लाश बिलकुल सीधी पड़ी थी. सीने पर दो जख्म थे. एक गरदन के करीब, दूसरा ठीक दिल पर. नीचे नीली दरी बिछी थी, जिस पर खून जमा था. वहीं मृतक के सिर के कुछ बाल भी पडे़ थे. वारदात अमृतसर के करीबी कस्बे ढाब में हुई थी.

मरने वाले का नाम रंजन सिंह था, उम्र करीब 45 साल. उस की किराने की दुकान थी. फिर अचानक ही उस के पास कहीं से काफी पैसा आ गया था. उस ने एक छोटी हवेली खरीद ली थी. 3 महीने पहले उस ने उसी पैसे से बड़ी धूमधाम से अपनी बेटी की शादी की थी.

रंजन का कत्ल उस की नई हवेली में हुआ था. उस के 2 बेटे थे, दोनों अलग रहते थे. बाप से उन का मिलनाजुलना नहीं था. बीवी 3 साल पहले मर चुकी थी. घर पर वह अकेला रहता था. नौकरानी सुगरा दोपहर में रंजन के घर तब आती थी, जब वह अपने काम पर होता था. सुगरा घर का काम और खाना वगैरह बना कर चली जाती थी.

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रंजन ने घर के ताले की एक चाबी उसे दे रखी थी. कत्ल के रोज भी सुगरा खाना बना कर चली गई थी. रात को रंजन आया और खाना खा कर सो गया. सुबह कोई उस से मिलने आया. खटखटाने पर भी दरवाजा नहीं खुला तो वह पड़ोसी की छत से रंजन के घर में घुसा, जहां खून में लथपथ उस की लाश पड़ी मिली.

मैं ने बहुत बारीकी से जांच की. कमरे में संघर्ष के आसार साफ नजर आ रहे थे. चीजे बिखरी हुई थीं. सबूत इकट्ठा कर के मैं ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी. उस के बाद मैं गवाहों के बयान लेने लग गया. सब से पहले पड़ोसी गफूर का बयान लिया गया.

उस ने दावे से कहा कि रात को रंजन की हवेली से लड़ाईझगडे़ की कोई आवाज नहीं आई थी. उस ने बताया कि रंजन सिंह बेटी की शादी के बाद से खुद शादी करना चाहता था. उस ने एक दो लोगों से रिश्ता ढूंढने को कहा था. बेटों और बहुओं से उस की कतई नहीं बनती थी. मैं ने गफूर से पूछा, ‘‘तुम पड़ोसी हो तुम्हें तो पता होगा उस के पास 6-7 महीने पहले इतना पैसा कहां से आया था?’’

गफूर ने सोच कर जवाब दिया, ‘‘साहब, यह तो मुझे नहीं मालूम, पर सब कहते हैं कि उसे कहीं से गड़ा हुआ खजाना मिल गया. पर रंजन कहता था उस का अनाज का व्यापार बहुत अच्छा चल रहा है.’’

पता चला वह सोने का घंटा था, उसी को ले कर 2 कत्ल हुए लेकिन घंटा…

जरूरी काररवाई कर के मैं थाने लौट आया. शाम को मैं ने बिलाल शाह को भेज कर सुगरा और उस के शौहर को बुलवाया. सुगरा 22-23 साल की खूबसूरत औरत थी. उस की गोद में डेढ़ साल का प्यारा सा बच्चा था. गरीबी और भूख ने उस की हालत खराब कर रखी थी. उस के कपड़े पुराने और फटे हुए थे. यही हाल उस के शौहर का था. उस के हाथ पर पट्टी बंधी हुई थी. मैं ने नजीर से पूछा, ‘‘तुम्हारे हाथ पर चोट कैसे लगी?’’

‘‘साहब, खराद मशीन में हाथ आ गया था. 2 जगह से हड्डी टूट गई थी. 2-3 औपरेशन हो चुके हैं पर फायदा नहीं है.’’

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‘‘क्या खराद मशीन तुम्हारी अपनी है?’’

‘‘नहीं जनाब, मैं दूसरे के यहां 50 रुपए महीने पर नौकरी करता था. हाथ टूटने के बाद उस ने निकाल दिया.’’

दोनों मियां बीवी सिसकसिसक कर रो रहे थे. पर मैं अपने फर्ज से बंधा हुआ था. मैं ने नजीर को बाहर भेज दिया और सुगरा से पूछा, ‘‘सुना है तुम्हारा शौहर पसंद नहीं करता था कि तुम किसी और के घर काम करो. इस बात पर वह तुम से झगड़ता भी था. क्या यह सच है?’’

‘‘जी हां साहब, उसे पसंद नहीं था पर मेरी मजबूरी थी. मेरे तीनों बच्चे भूखे मर रहे थे. काम कर के मैं उन्हें खाना तो खिला सकती थी. मैं ने गुड्डू के अब्बा से हाथ जोड़ कर रंजन चाचा के घर काम करने की इजाजत मागी थी और वह मान भी गया था.’’

‘‘पर गांव वाले तुम्हारे और रंजन के बारे में बेहूदा बातें करते थे. यह बातें तुम्हें और तुम्हारे शौहर को भी पता चलती होंगी?’’

‘‘साहब, जिन के दिल काले हैं, वही गंदी बातें सोचते हैं. रंजन चाचा मेरे साथ बहुत अच्छा सलूक करते थे. जब मैं काम करती थी, तब वह घर पर होते ही नहीं थे. लोगों की जुबान बंद करने के लिए मैं अपने बच्चों को भूखा नहीं मार सकती थी.’’

‘‘सुगरा, ऐसा भी तो हो सकता है कि गुस्से में आ कर नजीर ने रंजन सिंह को मार डाला हो?’’

‘‘नहीं साहब, वह कभी किसी का खून नहीं कर सकता. वैसे भी वह हाथ से मजबूर है, सीधा हाथ हिला भी नहीं सकता.’’

इस बारे में मैं ने नजीर से भी पूछताछ की. उस ने बताया कि उस रात 11 बजे तक वह अपने दोस्त अशरफ के यहां था. मैं ने नजीर से कहा, ‘‘लोग तुम्हारी बीवी के बारे में जो बेहूदा बातें करते थे, उस पर तुम्हें गुस्सा नहीं आता था, कहीं इसी गुस्से में तो तुम ने रंजन को नहीं मार डाला?’’

‘‘तौबा करें साहब, हम गरीब मजबूर इंसान हैं. ऐसा सोच भी नहीं सकते. हमारी भूख और मजबूरी के आगे गैरत हार जाती है.’’ मैं ने उन दोनों को घर जाने दिया, क्योंकि वे लोग बेकसूर नजर आ रहे थे.

मैं ने एक बार फिर रंजन के घर की अच्छे से तलाशी ली. दरी के ऊपर एक घड़ी पड़ी थी. अलमारियां खुली हुई थीं, पर यह पता लगाना मुश्किल था कि क्याक्या सामान गया है? बेटों को भी कुछ पता नहीं था, क्योंकि वह बाप की दूसरी शादी के सख्त खिलाफ थे, इसलिए आनाजाना बंद था.

पोस्टमार्टम के बाद रंजन सिंह का अंतिम संस्कार कर दिया गया. इस मौके पर सभी रिश्तेदार मौजूद थे. उस के दोनों बेटे रूप सिंह और शेर सिंह भी थे. बाद में मैं ने रूप सिंह को बुलाया. वह आते ही फट पड़ा, ‘‘थानेदार साहब, हमारे बापू को किसी और ने नहीं नजीर ने ही मारा है. दोनों मियांबीवी बापू के पीछे हाथ धो कर पड़े थे. सुगरा को पता होगा जेवर और पैसे कहां हैं. उसी के लिए मेरा बापू मारा गया.’’

मैं ने उसे समझाया, ‘‘हमारी नजर सब पर है. तुम उस की फिक्र मत करो. तुम यह बताओ कि हादसे की रात तुम कहां थे और बाप से क्यों झगड़ा चल रहा था?’’

‘‘मैं अपने घर में था. मेरी घर वाली को बेटा हुआ था. दोस्त और रिश्तेदार मिल कर जश्न माना रहे थे.’’

‘‘तुम्हारे यहां बेटा हुआ, जश्न मना, पर बाप को खबर देने की जरूरत नहीं समझी, क्यों? तुम काम क्या करते हो.’’

‘‘बापू की दूसरी शादी की वजह से झगड़ा चल रहा था. इसलिए उसे नहीं बताया. मैं मोमबत्ती और अगरबत्ती बनाने का काम करता हूं.’’

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दोनों बेटों से पूछताछ करने से भी कोई नतीजा नहीं निकला. पोस्टमार्टम की रिपोर्ट आ गई, जिस से पता चला रंजन नींद की गोलियों के नशे में था. इस रिपोर्ट से मेरा शक सुगरा की तरफ बढ़ गया. पर मेरे पास कोई सबूत नहीं था.

रिपोर्ट मिलने के बाद मैं रंजन सिंह के घर पहुंचा. वहां देनों बेटे और बेटी भी मौजूद थे. बेटी रोरो कर बेहाल थी. मैं ने नींद की गोलियों की तलाश में अलमारी छान मारी पर कहीं कुछ नहीं मिला. उस की बेटी का कहना था कि उस का बापू नींद की गोलियां नहीं खाता था.

2 दिन बाद डीएसपी बारा सिंह खुद ढाब आ पहुंचा. वह बहुत गुस्से में था. कहने लगा, ‘‘सारी कहानी और सबूत सुगरा और नजीर की तरफ इशारा कर रहे हैं कि कत्ल उन्होंने ही किया है. फौरन उन्हें गिरफ्तार कर के पूछताछ करो.’’

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