लेखक- अब्दुल गफ्फार

नरगिस की खूबसूरती के चर्चे आम होने लगे. गांवभर की औरतें नरगिस की मां से कहने लगीं कि उस की शादी की फिक्र करो जुबैदा. उम्र भले ही कम सही, लेकिन कुदरत ने इस को खूबसूरती ऐसी दी है कि बड़ेबड़ों का ईमान डोल जाए.

इस पर जुबैदा कहती, "तुम लोग मेरी बेटी की फिक्र में मत मरा करो. मेरे पास दौलत भले ही नहीं है, लेकिन बेटी ऐसी मिली है कि राजेमहाराजे तक आएंगे रिश्ता ले कर मेरे दरवाजे पर."

एक दिन ऐसा हुआ भी. हवेली से बड़े नवाब के बड़े साहबजादे शाहरुख मिर्जा के लिए नरगिस का रिश्ता आ गया. जुबैदा की खुशी का ठिकाना न रहा.

नरगिस के अब्बा अब इस दुनिया में नहीं थे, इसलिए मंगनी की रस्म भी जुबैदा ने खुद पूरी की और अगले साल बेटी के निकाह का दिन तय कर दिया.

इस बीच बचपन का बिछड़ा जुबैदा का भांजा यानी नरगिस के मामा का बेटा खुर्रम पाकिस्तान से लौट आया. लोग कहते हैं कि वह बकरी चरातेचराते सरहद पार कर गया था और फिर वहां से लौट कर नहीं आया.

खुर्रम के साथ गांवभर में खुशियां भी लौट आईं, इसलिए कि बचपन में खुर्रम गांवभर का चहेता हुआ करता था. जुबैदा के भाईभाभी खुर्रम के साथ जुबैदा के घर मिलने आए और जुबैदा को उस का वादा याद दिलाया.

जुबैदा की जबान से आवाज नहीं निकल रही थी, "भाभी... वह... मैं ने तो... नरगिस का रिश्ता हवेली में शाहरुख मिर्जा के साथ तय कर दिया है. मैं नहीं जानती थी कि खुर्रम कभी लौट भी आएगा."

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