आईना : बूढ़ी सोच तो विकास कैसे?

केंद्र सरकार में प्रधानमंत्री और उन का मंत्रिमंडल भी बूढ़ों से भरा हुआ है. देश और राज्यों का नेतृत्व जब इन उम्र के नेताओं के हाथों में है तो नए विचार, नया विकास कहां से आएगा?

यह वह पीढ़ी है, जो राम का नाम जपने, मंत्र पढ़ने, हवनयज्ञ कराने, ब्राह्मणों को दानदक्षिणा देने, गौसेवा करने, स्वर्गनरक में विश्वास जैसे धार्मिक पाखंडों के जरीए समस्याओं के समाधान पर भरोसा करती आई है. अफसोस यह है कि इस पीढ़ी ने नई पीढ़ी को भी उसी अंधविश्वासी ढांचे में ढाल दिया है.

देश और राज्यों की तरक्की के लिए यह नेतृत्व अपने राज्यों में तीर्थयात्राएं, हवनयज्ञ, मंदिर दर्शन, धर्मस्थलों का निर्माण, दानदक्षिणा जैसे धार्मिक कर्मकांडों में उल झा रहा है और नौजवान इस में कांवडि़यों और यात्रियों की सेवा धर्म की खातिर करने में लगे रहते हैं. कई भाजपाई राज्यों में तो धार्मिक मंत्री तक बनाए गए हैं.

भारत एक युवा समाज है. सवा अरब की आबादी में 60 फीसदी से ज्यादा युवा हैं. दूसरे देशों के बजाय भारत में इन की आबादी सब से ज्यादा है. इस लिहाज से युवा भारत होते हुए देश में एक भी युवा विधानसभा नहीं है.

राहुल गांधी, ज्योतिरादित्य सिंधिया, सचिन पायलट जैसे युवा कहलाने वाले नेता भी पैतृक विरासत से राजनीति में आए हुए हैं.

राजनीति में आज ऐसे युवा नेता नहीं हैं, जो युवाओं में क्रांति का संचार कर सकें, इसलिए वोटरों को पुराने, बूढ़े और युवा नेताओं में कोई फर्क नजर नहीं आता.

मगर विचार युवा नहीं

कहने को हर राजनीतिक दल की अपनीअपनी युवा विंग हैं. भारतीय युवा कांग्रेस, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, स्टूडैंट फैडरेशन औफ इंडिया जैसी राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर युवा राजनीति की शाखाएं सक्रिय हैं.

सवाल यह है कि क्या राजनीतिक नजरिए से हमारे युवा नेताओं के विचार मौजूदा नेताओं से अलग हैं? जवाब है, नहीं. हमारे युवा नेताओं के विचार किसी भी तरह से नए, क्रांतिकारी और बदलाव के वाहक नहीं हैं. युवाओं से बदलाव क्रांति की राजनीति की उम्मीद है, पर वे उस पर खड़े उतरते दिखाई नहीं देते.

युवा राजनीति से उदासीन हैं और वे दूसरे क्षेत्रों में अपना भविष्य ज्यादा चमकीला सम झते हैं.

युवा नेता राजनीति में किसी भी लिहाज से अलग नहीं हैं. वे पुरानी पीढ़ी के नेताओं से अलग विचार नहीं रखते. वे न तो भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाते सुनाई पड़ते हैं, न नशाखोरी और न ही सामाजिक बुराइयों के खिलाफ.. ऐसे युवा नेता नहीं आ रहे जो खुल कर धर्म, जातिवादी राजनीति का विरोध कर सड़कों पर उतरते हों. जो युवा राजनीति में आ रहे हैं या मौजूद हैं, वे ज्यादातर पारिवारिक राजनीतिक विरासत को जारी रखने और शासन व सत्ता का सुख भोगने के लिए हैं.

यही वजह है कि देश के युवा अपने राजनीतिक नेतृत्व की कमी में पुराने विचारों से हांके जा रहे हैं.

वे मंदिर निर्माण, रथयात्राओं के पीछे, गौरक्षा की गुहार लगाते हुए हिंसा पर उतारू दिखाई दे रहे हैं. वे सड़ीगली हिंदुत्ववादी संस्कृति के पहरेदार बने हुए हैं.

धार्मिक युवाओं का महत्त्व

भारतीय राजनीति लकीर की फकीर बनी रहना चाहती है. यह यों ही नहीं है. भाजपा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नहीं चाहता कि ऐसे नए युवा आगे आएं, जो जाति, धर्म की प्राचीन व्यवस्था को नकारें और पुराणों के मिथकों की जगह विज्ञान की सचाई को वरीयता दें.

पौराणिक कथाओं को विज्ञान के आविष्कारों से जोड़ बताने वाले त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लव कुमार और महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस युवा राजनीति की संघीभाजपाई मिसाल हैं.

उधर, कांग्रेस भी इस मामले में भाजपा की ही बहन है. वह भी पार्टी में संस्कारी ब्राह्मणवादी युवाओं को ही आगे लाती है. दोनों ही पार्टियों में युवा चाहे किसी भी जाति के हों, तिलक लगाए, बातबात में धर्म, ईश्वर और अवतारों के किस्से जबान पर रखे हुए हिंदू संस्कृति, संस्कारों का जप करते हैं.

राजनीति में परिवर्तनकारी विचारों के अगुआ कन्हैया कुमार, हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी, चंद्रशेखर रावण जैसे युवा नेताओं को पीछे धकेलने में कांग्रेस और भाजपा पूरी ताकत से मिल कर जुटी नजर आती हैं.

ऐसा इसलिए है, क्योंकि युवाओं को शिक्षादीक्षा धर्म के बुजुर्ग नेता ही दे रहे हैं. यही वजह है कि राजनीति में पुराने नेताओं का दबदबा कायम है.

‘अग्निपथ’ योजना से सरकार ने उन युवाओं को भी निराश कर दिया है, जो सेना में आगे बढ़ कर कुछ करना चाहते थे. सरकारी नौकरियों में भी युवा अपना दमखम नहीं दिखा सकते हैं, क्योंकि नौकरियां हैं ही नहीं. अब तो युवा सिर्फ पकौड़े बेचेंगे.

पारसमणि के लिए हुए बावरे : भाग 3

राजेश हरबंस और शांतिबाई यही चाहते थे कि वे बारबार बाबूलाल के पास आएं और संबंध बना कर के पारस मणि के बारे में सच्चाई को जान जाएं और उसे हथिया लें.
राजेश हरबंस हंसहंस के बाबूलाल से बातें करता बड़ा सम्मान देते हुए कुछ भी कहता. एक दिन मौका पा कर राजेश ने कहा, ‘‘बाबूलाल जी, एक बात पूछूं अगर आप बुरा ना मानें और हमें अपना छोटा भाई मानें तो.’’

सहज भाव से बाबूलाल ने कहा, ‘‘नहींनहीं भाई, भला मैं बुरा क्यों मानूंगा. पूछो क्या जानना चाहते हो?’’
‘‘मैं ने सुना है कि आप के पास पारस मणि है. क्या यह सच है? अगर यह सच है तो आप तो दुनिया के सब से अमीर आदमी बन सकते हो. रोज सोना बना कर के दुनिया भर की सुविधाओं का उपभोग कर सकते हो. मगर ऐसा क्यों नहीं कर रहे हो. इस में अगर हमारी कोई मदद चाहिए तो बताइए, मेरी पहचान छत्तीसगढ़ के मंत्री तक है.’’

बाबूलाल ने मुसकरा कर कहा, ‘‘हर बात हर आदमी को नहीं बताई जाती, मैं जैसा भी हूं खुश हूं. मुझे और ज्यादा क्या चाहिए, मैं तो सेवक आदमी हूं. लोगों की सेवा में मुझे आनंद आता है और जो कुछ भी मेरे पास है वह पर्याप्त है.’’राजेश हरबंस ने अपनी आंखों को घुमाते हुए कहा, ‘‘बाबूलालजी, मैं यह जानना चाहता हूं कि आप के पास पारस मणि है कि नहीं?’’

राजेश की बातों को बाबूलाल ने सहजता से लिया और कहा, ‘‘छोड़ो, तुम अपने इलाज पानी पर ध्यान दो.’’बाबूलाल की बातों को एक गहरे अर्थ में समझ कर के राजेश हरबंस मौन रह गया. अब उसे पूरा विश्वास हो गया था कि बाबूलाल यादव के पास पारस मणि है और वह सहजता से न दिखाएगा और न देगा. इस के लिए कोई दूसरा रास्ता ही अख्तियार करना होगा.उस ने टेकचंद जायसवाल से बात की और बताया कि बाबूलाल तो बड़ा चालाक आदमी है वह कुछ नहीं बता रहा है. इस के लिए कोई योजना बनाओ, ताकि वह सब कुछ सचसच बोल दे और हमें पारस मणि दे दे.

एक दिन टेकचंद जायसवाल के गांव लोहारकोटा स्थित घर में अद्वितीय पारस मणि को प्राप्त करने के लालच में राजेश हरबंस, शांतिबाई यादव, रामनाथ श्रीवास, यासीन खान, प्रकाश जायसवाल, रवि जायसवाल सहित 10 लोग इकट्ठे हुए.वहां हुई बैठक में टेकचंद ने कहा, ‘‘तांत्रिक बाबूलाल जैसे मूर्ख के हाथ में पारस मणि है, जिसे हम आसानी से हथिया सकते हैं. आज हमें तय करना है कि पारस मणि प्राप्त करने के लिए चाहे जो भी करना पड़े, हम योजनाबद्ध तरीके से करेंगे.’’

यह सुन कर शांतिबाई यादव बोली, ‘‘बाबूलाल बहुत ही घाघ आदमी है. मैं ने उसे अपने तमाम लटकेझटके दिखाए, मगर उस ने थोड़ी सी भी बात नहीं बताई.’’राजेश हरबंस बोल पड़ा, ‘‘इसलिए मैं कहता हूं कि हमें बहुत ही समझदारी से काम लेना होगा. उस से पारस मणि प्राप्त करना आसान नहीं है. वह बहुत ही चतुर है. ठाठ की जिंदगी जीता है मगर घर तो ऐसा है मानो झोपड़ी, जिसे देख कर
कोई नहीं कहेगा कि इस के पास पारस मणि होगी.’’यासीन खान ने भी कहा, ‘‘मुझे तो लगता है उस के पास सौ प्रतिशत पारस मणि है. और आप जो भी कहेंगे मैं करने के लिए तैयार हूं. चाहे जो भी करना हो.’’

उस दिन सभी ने एकजुट हो कर के तय किया कि योजना बना कर के बाबूलाल यादव को घर से बाहर निकाला जाए और जिला जांजगीर के कटरा जंगल में ले जा कर उस से पूछताछ की जाए. वहां वह घबरा जाएगा और हमें पारस मणि सौंप देगा.

योजना के तहत 8 जुलाई, 2022 को राजेश हरबंस और शांतिबाई यादव बाबूलाल यादव के पास पहुंचे. राजेश ने उस से निवेदन किया, ‘‘मेरे घर पर कुछ बाधा है, उसे आप को दूर करना है. आप अभी चलेंगे तो अच्छा होगा.’’

चूंकि राजेश शांतिबाई को ले कर बाबूलाल के पास कई बार जा चुका था, इसलिए तांत्रिक बाबूलाल ने उस की बात पर विश्वास कर लिया और राजेश की बाइक पर बैठ कर उसी वक्त चल दिया.
बाबूलाल यादव को ले कर के दोनों बाइक से बलौदा के जंगल की ओर निकल गए. योजना के अनुसार, एक जगह टेकचंद जायसवाल, यासीन खान, रामनाथ श्रीवास आदि वहीं जंगल में इकट्ठा मिल गए.
वहां जा कर बाबूलाल को सभी ने एक सुनसान घर में ले गए. सभी ने उसे घेर लिया और पारस मणि के बारे में पूछने लगे. मगर बाबूलाल ने शांत भाव से कहा, ‘‘मेरे पास कोई पारस मणि नहीं है. आप लोगों को जरूर गलतफहमी है.’’

‘‘तुम झूठ बोल रहे हो, तुम्हारे पास कुछ तो है. सारे गांव वाले बोल रहे हैं कि तुम्हारे पास पारस मणि है, जिस से तुम लोहे को सोना बना सकते हो. उसे चुपचाप हमें सौंप दो नहीं तो…’’ गुस्से से उफनते हुए टेकचंद जायसवाल ने उस के बाल पकड़ कर गालों पर कई थप्पड़ जड़ दिए.बाबूलाल यादव की आंखों में आंसू आ गए. वह घबरा गया. उस की एक नहीं सुनी गई और हाथपांव बांध कर उस से सभी पूछताछ करने लगे. 10 लोगों के गिरोह में फंसा बाबूलाल बेबस, लाचार हो गया था.

सभी उसे बारीबारी से मारपीट रहे थे और पूछ रहे थे कि बताओ पारस मणि तुम ने कहां पर रखी हुई है.
जब बाबूलाल कुछ न बता पाया तो टेकचंद जायसवाल ने सभी से कहा कि चलो सब इस के घर चलते हैं और इस के घर में खोजबीन करते हैं. जहां भी पारसमणि होगी, उसे हम ले आएंगे.
कुछ लोगों को बाबूलाल की सुरक्षा में छोड़ कर बाकी सभी बाबूलाल यादव के गांव मुनुंद रात को 11 बजे पहुंचे. घर खुलवा कर के पत्नी रामवती को उन्होंने डराधमका कर एक जगह बैठा दिया और सारे घर में इधरउधर पारस मणि खोजने लगे. मगर उन्हें जब संदूक और अन्य जगहों पर पारस मणि नहीं मिली तो संभावित जगहों पर उन्होंने कुदाली से खोद कर देखा.

जब कहीं भी पारस मणि नहीं मिली तो सभी दुखी हो गए और सिर पकड़ कर बैठ गए. सोचने लगे कि आखिर पारस मणि बाबूलाल ने कहा छिपाई हुई है.कुछ समझ में नहीं आया तो घर में बाबूलाल की पत्नी की ज्वैलरी और 23 हजार रुपए नकद कब्जे में ले कर रामवती को धमकी दे कर वहां से चले आए.
वे सभी जंगल में पहुंचे तो बाबूलाल को रस्सियों से बंधा हुआ पाया.

बाबूलाल से टेकचंद आदि ने फिर पूछताछ शुरू की. बाबूलाल चूंकि पारस मणि की झूठी अफवाह फैला चुका था, इसलिए अब लाख सफाई देने पर भी उस की बात कोई मानने को तैयार नहीं हुआ.
उस के साथ प्रताड़ना शुरू हो गई. बारबार उस से पूछा जाता कि बताओ कहां पर पारस मणि छिपा रखी है. जब वह नहीं बता पाया तो उसे सभी ने पीटपीट कर मार डाला. फिर उस की लाश लेवई गांव के पास कटरा जंगल में गड्ढा खोद कर दफना दी गई.

सुबह 9 जुलाई, 2022 दिन शनिवार को जब रामवती यादव ने गांव वालों को बताया कि कुछ लोग उस के घर पारस मणि ढूंढने आए थे. मणि नहीं मिली तो वे घर में लूटपाट कर के ले गए. जाते समय वे उसे धमकी भी दे गए थे. उस ने यह भी बताया कि पति बाबूलाल भी कल से लापता है.

यह सुन कर गांव वाले चिंतित हो गए और कयास लगाया जाने लगा कि जरूर कोई बड़ी घटना घटी है. इसलिए मामले की जानकारी पुलिस को देने में ही समझदारी होगी. तब रामवती यादव कुछ गांव वालों को ले कर जांजगीर थाने पहुंची और थानाप्रभारी उमेश साहू से मिल कर पूरी घटना की जानकारी दी. उमेश साहू ने मामले की जांच के लिए तत्काल स्टाफ को गांव मुनुंद घटनास्थल के लिए रवाना कर दिया.

पुलिस टीम ने गांव में जांच करने के बाद थानाप्रभारी को बता दिया कि रामवती यादव सही बोल रही थी. थानाप्रभारी उमेश साहू को जब जांच में मामले की गंभीरता समझ में आई तो उन्होंने एसपी विजय अग्रवाल को पूरी घटना की जानकारी दे कर मामले की गंभीरता के बारे में बताया.

एसपी विजय अग्रवाल ने अन्य थानों के तेजतर्रार पुलिसकर्मियों को ले कर तत्काल जांच के लिए 4 टीमें गठित कीं. पुलिस टीम में थानप्रभारी उमेश साहू, इंसपेक्टर विवेक पांडेय, एसआई कामिल हक, अवनीश श्रीवास, सुरेश धुर्व, एएसआई संतोष तिवारी, हैडकांस्टेबल राजकुमार चंद्रा, मनोज तिग्गा, यशवंत राठौर, मुकेश यादव, मोहन साहू, जगदीश अजय, कांस्टेबल मनीष राजपूत, दिलीप, सिंह, प्रतीक सिंह के अलावा साइबर सेल टीम को शामिल किया गया. पुलिस टीमों ने मामले की जांच बड़ी तेजी से शुरू कर दी.जांच में पुलिस को यह पता चल गया था कि तांत्रिक बाबूलाल को राजेश हरबंस और शांतिबाई तांत्रिक क्रिया के लिए अपने साथ ले गए थे.

पुलिस ने जब दोनों को बुला कर पूछताछ की तो धीरेधीरे टेकचंद जायसवाल, रवि जायसवाल, प्रकाश जायसवाल, यासीन खान आदि के नाम भी सामने आ गए. पुलिस ने सभी को हिरासत में ले कर पूछताछ शुरू कर दी.

पुलिस पूछताछ में सब से पहले शांतिबाई यादव ने सब कुछ सचसच बता दिया. इस के बाद सभी को हिरासत में ले कर सभी से अलगअलग गहन पूछताछ की तो उन्होंने स्वीकार कर लिया कि उन्होंने पारसमणि पाने के चक्कर में तांत्रिक बाबूलाल यादव की पीटपीट कर हत्या की. फिर उस के शव को जंगल में ही गड्ढा खोद कर दबा दिया था. उस के कपड़े आदि जला दिए थे.

पुलिस ने आरोपियों की निशानदेही पर जंगल में दफनाया गया बाबूलाल का शव बरामद कर लिया. इस के अलावा आरोपियों की निशानदेही पर रामवती के घर से लूटी हुई ज्वैलरी, 9 हजार रुपए नकदी, बाबूलाल को मारपीट करने के दौरान उपयोग हुए डंडे, शव को दफनाने में प्रयुक्त फावड़ा, कुदाली, सब्बल, घटना में प्रयुक्त 3 मोटरसाइकिलें, बाबूलाल का थैला, मोबाइल फोन व अन्य सामान जो आरोपियों ने लेवई के जंगल में जला दिए थे, उन के अधजले अवशेष भी लेवई जंगल से बरामद कर लिए.

पुलिस ने केस में हत्या तथा डकैती की धाराएं भी जोड़ दीं. आरोपियों को भादंवि की धाराओं 457, 458, 360, 395, 342, 302, 201, 120बी, 34 के तहत गिरफ्तार कर लिया.गिरफ्तार किए गए आरोपीगण टेकचंद जायसवाल, रामनाथ श्रीवास, राजेश हरबंस, मनबोधन यादव, छवि प्रकाश जायसवाल, यासीन खान, खिलेश्वर राम पटेल, तेजराम पटेल, अंजू कुमार पटेल एवं शांतिबाई यादव को पुलिस ने 15 जुलाई, 2022 को जांजगीर की कोर्ट में पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया. द्य

अधेड़ प्रेम की रुसवाई : भाग 2

किरणपाल उस की लाश से लिपट कर रोता रहा और फिर तमंचे की नाल अपनी कनपटी से सटा कर उस ने खुद को गोली मार ली और अपनी प्रेमिका को बाहों में भरेभरे मौत को गले लगा लिया. चंद मिनटों में ही दोनों की इहलीला समाप्त हो गई.

गांव के लोग तो पहली गोली की आवाज पर ही आसपास इकट्ठा हो गए थे, लेकिन किसी की हिम्मत नहीं थी कि हाथ में तमंचा लहराते किरणपाल के नजदीक भी चला जाए.उस खौफनाक दृश्य को मिथिलेश के पति धीर सिंह ने भी अपनी आंखों से देखा. इस घटना के बाद वह शर्म और बदनामी से जैसे जमीन में गड़ा जा रहा था. किसी से आंख मिला कर बात करने की उस की हिम्मत नहीं थी.

आखिर जिस संबंध के बारे में बारबार पूछने पर भी उस की पत्नी साफ इंकार कर जाती थी, वह इस तरह पूरे गांव के सामने उजागर होगा, ऐसा तो उस ने ख्वाब में भी नहीं सोचा था. आखिर यह कोई उम्र थी ऐसी हरकतें करने की? जिस उम्र में गांवदेहात की औरतें नानीदादी बन जाती हैं, उस उम्र में उस की पत्नी प्रेम रचा कर बैठी थी? उफ!समाज में किसकिस तरह के नाजायज रिश्ते पनपते और जारी रहते हैं, यह घटना उस का उदाहरण है. मिथिलेश की उम्र 44 साल हो रही थी. वह न सिर्फ शादीशुदा थी, उस का पति उस के साथ रहता था बल्कि वह 2 शादीशुदा बेटियों की मां भी थी.

उधर उस का प्रेमी किरणपाल भी 4 बच्चों का बाप था. उस की भी उम्र 45-46 साल थी. घर में उस की पत्नी थी, जो कभी अपने पति से वह प्यार और विश्वास नहीं पा सकी, जिस की वह हकदार थी. पता नहीं 2 बेटियों की मां मिथिलेश में किरणपाल ने क्या देखा कि वह ऐसा लट्टू हुआ.बीते 10 सालों से दोनों के बीच प्रेम प्रसंग चल रहा था. कोई पति कितना भी छिपाना चाहे मगर पत्नी की नजरें भांप ही लेती हैं. मिथिलेश के कारण कई बार किरणपाल का अपनी पत्नी से झगड़ा हो चुका था.

लेकिन अधेड़ावस्था के इस प्रेम का अंजाम इतना भयावह होगा, इस की किसी को उम्मीद नहीं थी. दोनों को एकदूसरे से लिपटे हुए जिस हालत में लोगों ने मृत अवस्था में देखा, उस के बाद तो दोनों के घर वालों को लोग लानतें दे रहे थे.गांवोंदेहातों में अकसर पुरुष कमाई के लिए शहर चले जाते हैं. बीवीबच्चे गांव में ही रह जाते हैं. ऐसे में कई बार घर के अन्य पुरुषों से या बाहर के आदमियों से औरतों के नाजायज संबंध बन जाते हैं.

देहातों में अभी भी शौच आदि के लिए अनेक महिलाएं मुंहअंधेरे ही लोटा ले कर खेतों पर जाती हैं. यह वक्त प्रेमी जोड़ों के मिलन के लिए सब से उपयुक्त होता है. बहाना शौच का होता है और अंधेरे का फायदा भी मिलता है.देवरभाभी और जीजासाली संबंधों की कहानियां गांव की फिजा में ही ज्यादा सुनाई देती हैं. कुछ ऐसे ही संबंध 10 साल पहले मिथिलेश और किरणपाल के बीच भी बन गए, जब मिथिलेश का पति धीर सिंह काम के सिलसिले में बाहर गया था.

दुर्वेशपुर गांव के निवासी धीर सिंह की पत्नी मिथिलेश अपना घर संभालने के साथसाथ मजदूरी भी करती थी. धीर सिंह भी मेहनतमजदूरी के लिए कभी गांव में मनरेगा के तहत काम करता था तो कभी शहर चला जाता था. उस के 2 बेटियां थीं, जिन की शादियों की जिम्मेदारी पूरी करनी थी.लिहाजा पतिपत्नी दोनों मेहनत करते थे. मगर जब धीर सिंह शहर चला जाता था, तब मिथिलेश बहुत अकेलापन महसूस करती थी. 10 साल पहले इसी अकेलेपन में उस की दोस्ती किरणपाल से हो गई. किरणपाल दबंग टाइप का आदमी था. छोटीमोटी ठेकेदारी करता था. उस ने मिथिलेश को कई बार मजदूरी के काम पर लगाया और अच्छा मेहनताना दिया था.

किरणपाल को गोरी चमड़ी वाली मिथिलेश अच्छी लगने लगी. वह अकसर उस से बातें करने का मौका तलाशने लगा. मिथिलेश भी कभीकभी कनखियों से किरणपाल को देखती और मुसकरा देती. उस की इस अदा पर किरणपाल निहाल हो जाता था.धीरेधीरे दोनों के बीच दूरियां कम होने लगीं. बातचीत बढ़ने लगी. दोनों एक ही बिरादरी के थे. लिहाजा दोनों के बीच अकसर घरपरिवार और खानदान को ले कर लंबीलंबी बातें होती थीं.

मिथिलेश के घर से कोई 400 मीटर की दूरी पर किरणपाल का घर था. उस के घर में उस की पत्नी और 4 बेटे थे. मगर किरणपाल अब मिथिलेश का दीवाना हो गया था. वह उस से बेइंतहा प्यार करने लगा था.
वह उस की शारीरिक नजदीकियों की चाहत करने लगा था. पहले तो मिथिलेश ने किरणपाल की इस चाहत का दबादबा विरोध किया, लेकिन एक दिन धीर सिंह की गैरमौजूदगी में मिथिलेश के कदम बहक गए.

वह किरणपाल के मोहपाश में बंध गई. जब रहीसही दूरियां भी मिट गईं तो वह भी रातबिरात उस से मिलने आने लगी. दोनों छिपछिप कर खेतों में मिलते और रात भर एकदूसरे की बाहों में समाए रहते.
मिथिलेश को एक बार भी यह खयाल नहीं आया कि वह 2 जवान बेटियों की मां है. किरणपाल की दबंगई में उस को मर्द वाली बात लगती थी. फिर वह पैसे वाला भी था. वक्तजरूरत पर मिथिलेश की मदद भी करता था. यह सब बातें मिथिलेश को उस के बहुत करीब खींच ले गईं.

किरणपाल का साथ मिथिलेश को बहुत अच्छा लगता था. वहीं किरणपाल को भी इस बात का होश नहीं रहा कि घर में उस की पत्नी और 4 बेटे हैं. वह तो चाहता था कि मिथिलेश अपने पति को छोड़ कर हमेशा के लिए उस की हो जाए. इस के लिए वह अपना घर भी छोड़ने को तैयार था. मगर मिथिलेश इस बात के लिए राजी नहीं होती थी. खैर, यह प्रेम कहानी 10 साल चलती रही.

भाजपा के नेताओं पर लग रहे हैं सबसे ज्यादा आरोप

हमारे देश के कितने ही गांव, शहर, कस्बे, जाति के लोग, बेइमानी माने जाते हैं. इन लोगों के  बारबार जन्मजात बेइमान बताया जाता है. गालियां देते समय उन की जाति, शहर या राज्य का नाम ले कर कहां जाना आम है कि तुम तो वहां के हो इसलिए बेइमान होगे ही.

भारतीय जनता पार्टी सरकार अपने खिलाफ हरेक राजनीति में जुड़े जने को ईडी, सीबीआई, पीएमएलए, एनआईए, पुलिस को लगा कर अपना उल्लू तो सीधा कर रही है पर इस चक्कर में खुद को भी गहरा काला पोत रही है. यह सोच हरेक के मन में पक्की होती जा रही है कि इस के पास सत्ता है, पौवर है, कुछ कर सकता है, वह ऊपर की भरपूर कमाई कर रहा है, उस के यहां तो कमरे भरे पड़े हैं.

अगर वह भारतीय जनता पार्टी में तो उस पर रेड न होने की वजह से जनता उसे शरीफ मान लेेगी यह नामुमकिन है. जब बहुत से मंत्री, मुख्यमंत्री, अफसर, उद्योगपति, ठेकेदार चपेट में आ चुके हों तो कुछ बचे होंगे यह भी पक्का माना जाएगा कि हर भारतीय जनता पार्टी का मंत्री भी बेइमान होगा.

कोई ऐसे ही केवल दिल बदलने से वर्षों पुरानी पार्टी से नाता नहीं तोड़ता. उसे मंत्री पद का पालन भी तभी दिया जा सकता है जब वह मंत्री न हो. यहां तो भाजपा दूसरी पार्टी के मंत्रियों को अपने में मिला कर मंत्री बना रही है तो मतलब साफ है कि उन्हें मंत्री बनने के साथसाथ कुछ और मिला होगा. यह वही कुछ और जिसे ढूंढऩे के अवसर भाजपा सरकार अपने विरोधियों की पार्टी वालों के भेज रही है.

जनमानस में यह तो हमेशा से था कि हरेक पार्टी बेइमान है पर कांग्रेस महा बेइमान है यह 2014 तक विनोद राय जैसे कंप्रोइज्म जनरल ने नकली, झूठी, विश्वासघात करने वाली साजिशों भरी रिपोर्टें देकर साबित कर दिया था. जिस तरह 2014 में जीतने के बाद भारतीय जनता पार्टी ने उसे हाथोंहाथ लिया साबित हो गया कि वह नितांत बेइमानी वाली रिपोर्ट भी और आज जिस तरह वह ऊंचे पद पर बैठे हैं उस से भी साबित है इनाम भी मिला.

हमारे देश में शराफत को भाव कभी अच्छा नहीं मिला. धर्म हमेशा कहता रहा कि हर जजमान तो पाप करता ही रहता है और जब तक दानदक्षिणा न दो इस पाप से मुक्ति नहीं मिलेगी. गौदान इसी पाप से मरने के बाद ङ्क्षपड को यमराज के प्रेतों के जुल्मों से बचाने के लिए किया जाता है. गरुड़ पुराण भरा है उन कष्टों के बखानों का जो यम के दूत देते हैं और उन तरीकों से भी जो दान की वजह से मिलते हैं पर  इस से क्या दान लेने वाला बेइमान नहीं हो जाते?

जो लोग पापी से दान लेते हैं वे पापी के पार्टनर हुए न. अगर 20 नेताओं के यहां रेड पड़ती है, 2-3 के करोड़ों मिलते हैं, 18 के मामले बरसों चलते रहते हैं तो क्या साबित नहीं होता कि सभी नेता चाहे किसी पार्टी के हो बेइमान हैं. आज सत्ता में सब से ज्यादा नेता भाजपा के हैं, सब से ज्यादा सरपंच भाजपा के हैं, सब से ज्यादा जिला अध्यक्ष भाजपा के हैं, सब से ज्यादा विधायक भाजपा के है सब से ज्यादा सांसद भाजपा के हैं, सब से ज्यादा मंत्री भाजपा के हैं. वे शराफत के पुतले होंगे जबकि उन के जैसे दूसरी हर पाॢटयों के विधायक, मंत्री, मुख्यमंत्री काले हैं? यह तो सोचना ही गलत है. भाजपा अपना नुकसान ज्यादा कर रही है. भाजपा हर सुबह बता देती है कि किसी विधायक, मंत्री, सांसद पर आरोप न करे, उस ने जनता का पैसा खाया होगा.

हर नेता पटवारी की तरह का है क्योंकि यह मान लिया गया है कि हर पटवारी बेइमान होता है.

सुगंध: क्या राजीव को पता चली रिश्तों की अहमियत

जीजा के प्यार का रस

जाह्नवी कपूर के बाद विद्या बालन ने भी की अनुपमा की एक्टिंग, देखें वीडियो

सीरियल अनुपमा इन दिनों टीआरपी लिस्ट में छाया हुआ है, ऐसे में इस सीरियल का डायलॉग भी खूब सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, इस सीरियल की लीड रोल अनुपमा की एक्टिंग बहुत लोग करते हुए नजर आते हैं.

कुछ वक्त पहले जाह्नवी कपूर ने अपने इंस्टाग्राम पर अनुपमा की एक्टिंग करती देखी गई थी, अब उनके बाद से बॉलीवुड की जानी मानी एक्ट्रेस विद्या बालन को अनुपमा की एक्टिंग करते हुए देखा गया है. जिसमें विद्या बालन बाथ टब में नजर आ रही हैं.

 

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एक्टिंग में विद्या बालन कह रही हैं कि वह अपनी मर्जी से अपना सारा काम करेंगी अगर किसी ने उन्हें डिस्टर्ब किया तो शामत आ जाएगी. विद्या बालन बाथ टब में बैठकर यह बोल रही हैं, जिसेे फैंस खूब पसंद कर रहे हैं.

बता दें कि इस वीडियो ने सोशल मीडिया पर हिलाकर रख दिया है, इस वीडियो पर खूब लाइक और कमेंट आ रहे हैं.

उम्मीद की जा रही है कि विद्या बालन का यह अंदाज देखकर रूपाली गांगुली भी खुश हो जाएंगी, बता दें कि इससे पहले पाकिस्तानी कलाकार हानि आमिया ने भी अनुपमा की एक्टिंग करने की कोशिश की थी.

ये कहना अब गलत नहीं होगा कि अनुपमा को अब तो दूसरे देश के लोग भी पसंद करने लगे हैं.

एक रात की उजास : भाग 1

शाम ढलने लगी थी. पार्क में बैठे वयोवृद्घ उठने लगे थे. मालतीजी भी उठीं. थके कदमों से यह सोच कर उन्होंने घर की राह पकड़ी कि और देर हो गई तो आंखों का मोतियाबिंद रास्ता पहचानने में रुकावट बन जाएगा. बहू अंजलि से इसी बात पर बहस हुआ करती थी कि शाम को कहां चली जाती हैं. आंखों से ठीक से दिखता नहीं, कहीं किसी रोज वाहन से टकरा गईं तो न जाने क्या होगा. तब बेटा भी बहू के सुर में अपना सुर मिला देता था.

उस समय तो फिर भी इतना सूनापन नहीं था. बेटा अभीअभी नौकरी से रिटायर हुआ था. तीनों मिल कर ताश की बाजी जमा लेते. कभीकभी बहू ऊनसलाई ले कर दोपहर में उन के साथ बरामदे मेें बैठ जाती और उन से पूछ कर डिजाइन के नमूने उतारती. स्वेटर बुनने में उन्हें महारत हासिल थी. आंखों की रोशनी कम होने के बाद भी वह सीधाउलटा बुन लेती थीं. धीरेधीरे चलते हुए एकाएक वह अतीत में खो गईं.

पोते की बिटिया का जन्म हुआ था. उसी के लिए स्वेटर, टोपे, मोजे बुने जा रहे थे. इंग्लैंड में रह रहे पोते के पास 1 माह बाद बेटेबहू को जाना था. घर में उमंग का वातावरण था. अंजलि बेटे की पसंद की चीजें चुनचुन कर सूटकेस में रख रही थी. उस की अंगरेज पत्नी के लिए भी उस ने कुछ संकोच से एक बनारसी साड़ी रख ली थी. पोते ने अंगरेज लड़की से शादी की थी. अत: मालती उसे अभी तक माफ नहीं कर पाई थीं. इस शादी पर नीहार व अंजलि ने भी नाराजगी जाहिर की थी पर बेटे के आग्रह और पोती होने की खुशी का इजहार करने से वे अपने को रोक नहीं पाए थे और इंग्लैंड जाने का कार्यक्रम बना लिया था.

उस दिन नीहार और अंजलि पोती के लिए कुछ खरीदारी करने कार से जा रहे थे. उन्होंने मांजी को भी साथ चलने का आग्रह किया था लेकिन हरारत होने से उन्होंने जाने से मना कर दिया था. कुछ ही देर बाद लौटी उन दोनों की निष्प्राण देह देख कर उन्हें अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ था. उस से अधिक आश्चर्य उन्हें इस बात पर होता है कि इस भयंकर हादसे के 7 साल बाद भी वह जीवित हैं.

उस हादसे के बाद पोते ने उन्हें अपने साथ इंग्लैंड चलने का आग्रह किया था पर उन्होंने यह सोच कर मना कर दिया कि पता नहीं अंगरेज पतोहू के साथ उन की निभ भी पाएगी कि नहीं. लेकिन आज लगता है वह किसी भी प्राणी के साथ निबाह कर लेंगी. कोई तो होता, उन्हें आदर न सही, उलाहने ही देने वाला. आज इतना घोर एकांत तो नहीं सहना पड़ता उन्हें. पोते के बच्चे भी अब लगभग 6-7 साल के होंगे. अब तो संपर्क भी टूट गया. अचानक जा कर कैसे लाड़प्यार लुटाएंगी वह. उन बच्चों को भी कितना अस्वाभाविक लगेगा यह सब. इतने सालों की दूरियां पाटना क्या कोई आसान काम है. उस समय गलत फैसला लिया सो लिया. मालतीजी पश्चात्ताप की माला फेरने लगीं. उस समय ही क्यों, जब नीहार और अंजलि खरीदारी के लिए जा रहे थे तब वह भी उन के साथ निकल जातीं तो आज यह एकाकी जिंदगी का बोझ अपने झुके हुए, दुर्बल कंधों पर उठाए न घूम रही होतीं.

अतीत की उन घटनाओं को बारबार याद कर के पछताने की आदत ने मालतीजी को घोर निराशावादी बना डाला था. शायद यही वजह थी जो चिड़चिड़ी बुढि़या के नाम से वह महल्ले में मशहूर थीं. अपने ही खोल में आवृत्त रह कर दिन भर वह पुरानी बातें याद किया करतीं. शाम को उन्हें घर के अंदर घुटन महसूस होती तो पार्क में आ कर बैठ जातीं. वहां की हलचल, हंसतेखेलते बच्चे, उन्हें भावविभोर हो कर देखती माताएं और अपने हमउम्र लोगों को देख कर उन के मन में अगले नीरस दिन को काटने की ऊर्जा उत्पन्न होती. यही लालसा उन्हें देर तक पार्क में बैठाए रखती थी.

आज पार्क में बैठेबैठे उन के मन में अजीब सा खयाल आया. मौत आगे बढ़े तो बढ़े, वह क्या उसे खींच कर पास नहीं बुला सकतीं, नींद की गोलियां उदरस्थ कर के.

इतना आसान उपाय उन्हें अब तक भला क्यों नहीं सूझा? उन के पास बहुत सी नींद की गोलियां इकट्ठी हो गई थीं.

नींद की गोलियां एकत्र करने का उन का जुनून किसी जमाने में बरतन जमा करने जैसा था. उन के पति उन्हें टोका भी करते, ‘मालती, पुराने कपड़ों से बरतन खरीदने की बजाय उन्हें गरीबों, जरूरतमंदों को दान करो, पुण्य जोड़ो.’

वह फिर पछताने लगीं. अपनी लंबी आयु का संबंध कपड़े दे कर बरतन खरीदने से जोड़ती रहीं. आज वे सारे बरतन उन्हें मुंह चिढ़ा रहे थे. उन्हीं 4-6 बरतनों में खाना बनता. खुद को कोसना, पछताना और अकेले रह जाने का संबंध अतीत की अच्छीबुरी बातों से जोड़ना, इसी विचारक्रम में सारा दिन बीत जाता. ऐसे ही सोचतेसोचते दिमाग इतना पीछे चला जाता कि वर्तमान से वह बिलकुल कट ही जातीं. लेकिन आज वह अपने इस अस्तित्व को समाप्त कर देना चाहती हैं. ताज्जुब है. यह उपाय उन्हें इतने सालों की पीड़ा झेलने के बाद सूझा.

पारसमणि के लिए हुए बावरे : भाग 1

तांत्रिक बाबूलाल (65 वर्ष) एक दिन चौपाल पर बैठा था. उस दौरान लोग उस के ठाठबाट को
ले कर बात कर रहे थे, तभी वह अपनी शेखी बघारते हुए बोला, ‘‘अरे भाई, हमारे पास अब क्या कमी है. जो चाहते हैं, खातेपीते हैं और ऐश की जिंदगी जी रहे हैं. एक समय था, जब मैं बहुत गरीब था, मगर अब ऐसी बात नहीं है.’’
बाबूलाल यादव ने साथ बैठे हुए चौपाल के अपने हमउम्र और अन्य लोगों से गोलमोल बातें कहीं.
‘‘मगर भाई बाबूलाल, आज के समय आज की महंगाई में भी तुम्हारे ठाटबाट… कुछ समझ में नहीं आता.’’ किशन जायसवाल ने बड़े लल्लोचप्पो भरे स्वर
में कहा.
किशन ने किसी से सुन रखा था कि बाबूलाल के पास कोई ऐसी जादुई शक्ति है, जिस से वह मालामाल हो गया है. वह और अन्य कई लोग यह जानना चाहते थे कि आखिर माजरा क्या है.
जब बात चली तो सभी उत्सुक भाव से बाबूलाल की ओर देख और सुन रहे थे. बाबूलाल ने हंसते हुए कहा, ‘‘देखो भई, संसार में एक से एक बड़ी शक्तियां हैं. सवाल है उन शक्तियों को साधने का और अगर एक बार आप ने साधना कर ली तो पूरी जिंदगी आप सुखशांति, ऐश्वर्य से बिता सकते हैं.’’
बाबूलाल के यह कहने के बाद तो लोगों में और भी उत्सुकता बढ़ गई. लोग बाबूलाल की प्रशंसा करने लगे. कोई कुछ कह रहा था तो कोई कुछ. अपनी प्रशंसा सुन कर के बाबूलाल उस समय बेहद गौरवान्वित था.
वहां पर मौजूद रमेश साहू नाम के युवक ने बाबूलाल से चिरौरी करते हुए कहा, ‘‘काका, कुछ तो ऐसा रास्ता हम लोगों को भी बताओ, ताकि हमारी जिंदगी भी सुखी हो जाए.’’
‘‘अरे बेटा, तुम तो जवान हो, दुकान चलाते हो, पैसे वाले हो. तुम्हारे पास क्या कमी है, जो मेरा रहस्य जानना चाहते हो?’’ हंसते हुए बाबूलाल ने रमेश साहू से कहा.
‘‘नहींनहीं काका, आज तो आप को बताना ही होगा आखिर आप के पास ऐसी क्या शक्ति है?’’ सुदर्शन यादव ने मिन्नतें करते हुए पूछा, ‘‘हम ने सुना है कि आप के पास सोना बनाने वाला कोई पत्थर है. क्या यह सच है?’’

ये बातें सुन कर के गांव में चौपाल में एक तरह से सन्नाटा पसर गया. सभी के मन में यह था कि बाबूलाल के पास कुछ तो ऐसी शक्ति है, कोई मणि है जिस से वह मालामाल है. क्योंकि एक बार तो उस ने स्वयं बातोंबातों में गांव की सावित्री नामक महिला से कहा था कि उस के पास पारस मणि है. वहां से यह बात धीरेधीरे फैलती चली गई थी, मगर अंदरखाने थी.
उस दिन बाबूलाल बहुत खुश था. उस के चेहरे पर खुशी की आभा स्पष्ट दिखाई दे रही थी. गांव में उस का सम्मान बढ़ता चला जा रहा था. उस ने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि जिस गांव में उस ने गरीबी देखी है, अभाव देखे हैं, घर में एक बार ही खाना बनता था और दिन भर भूखे पूरा परिवार गुजार देता था. उसी गांव में उसे इतना मानसम्मान और पैसा मिलेगा.
मगर वह समझ रहा था कि यह सब उस के तंत्रमंत्र और रुपएपैसे के कारण हो रहा है. वह अपने ज्ञान पर मंत्रमुग्ध भी था.

लोगों की भावना में बह कर बाबूलाल यादव ने कहा, ‘‘देखो, एक होती है पारस मणि, जो तुम कह रहे हो न, मैं उसी की बात कर रहा हूं. पारस मणि एक दिव्य पत्थर है, कहते हैं कि अगर लोहे को छुआ दो तो वह सोना बन जाता है. तुम ठीक कह रहे हो.’’ बाबूलाल यादव ने बड़ी समझदारी से जानबूझ कर के बातों को आधाअधूरा कहा, ताकि कुछ लोग बात समझ जाएं और कुछ अस्पष्ट भी हो.
चौपाल में बैठे हुए लोगों की धड़कनें बढ़ गई थीं. लोग यह सोच रहे थे कि आज बहुत बड़ा खुलासा होने वाला है. बाबूलाल खुद यह बता देगा कि उस के पास पारस मणि है. अगर ऐसा है तो गांव की तकदीर बदल सकती है. गांव धनधान्य से परिपूर्ण हो जाएगा.

एक बुजुर्ग मनहरण शर्मा ने बाबूलाल की पीठ पर हाथ रख कर के बड़ी विनम्रता से कहा, ‘‘भाई बाबूलाल, अगर ऐसा है कि तुम्हारे पास पारस मणि है तो फिर तो तुम हमारे लिए किसी भगवान से कम नहीं हो.’’
बाबूलाल की छठी इंद्री अब काम करने लगी थी. उस ने संभल कर कहा, ‘‘अरे भाई, मैं ने कब कहा कि कोई मणि मेरे पास है लेकिन साधना करने से क्या नहीं मिल सकता. मैं ने साधना की है. मैं उसी की वजह से खुशहाल हूं. आप लोग भी मेरे रास्ते पर चलो. मगर यह आसान नहीं है 20-30 साल लग जाते हैं, तब जा कर के कोई शक्ति प्राप्त हो पाती है.’’

 

अधेड़ प्रेम की रुसवाई : भाग 3

कहते हैं इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. धीरेधीरे बात गांव में फैलने लगी कि किरणपाल और मिथिलेश के बीच नाजायज रिश्ता है. मगर किरणपाल की दबंगई के कारण किसी की हिम्मत नहीं पड़ी कि सामने कुछ बोल दे.

बात धीर सिंह के कान में भी पड़ी. उस ने पत्नी से पूछा तो वह साफ मुकर गई. धीर सिंह भी सोचता कि 40 साल की औरत, 2 बेटियों की मां भला प्रेमप्यार के चक्कर में कैसे पड़ सकती है? फिर किरणपाल ने वक्त जरूरत पर उस की मदद भी की है, ऐसे आदमी की नीयत पर वह कैसे शक करे? यही सोच कर वह चुप रहा.

मिथिलेश और धीर सिंह मिल कर अपनी जवान बेटियों के लिए इधरउधर के गांवों में रिश्ते ढूंढ रहे थे. रिश्ते मिल भी गए और दोनों की शादियां भी धूमधाम से हो गईं. शादी में पूरे गांव को न्योता था. किरणपाल का परिवार भी आया और शगुन दे कर गया.दोनों बेटियों के ससुराल चले जाने के बाद मिथिलेश अकेली हो गई. धीर सिंह की गैरमौजूदगी में उस का अकेलापन दूर करने के लिए किरणपाल अकसर उस से मिलने आने लगा. जैसेजैसे दोनों की उम्र बढ़ रही थी, दीवानगी भी बढ़ती जा रही थी. खासतौर से किरणपाल की.

अब उस ने खुलेआम मिथिलेश पर अपना हक जताना शुरू कर दिया था. यह देख कर मिथिलेश उस से कुछ भय खाने लगी थी.किरणपाल की यह बात मिथिलेश को अच्छी नहीं लगती थी. ढंकेछिपे जो प्रेम चल रहा था, वह ज्यादा मजे दे रहा था. मगर जब किरणपाल ने लोगों के सामने मिथिलेश से मिलना और बात करनी शुरू कर दी तो मिथिलेश की बदनामी होने लगी.

इधर कुछ दिनों से किरणपाल ने मिथिलेश पर दबाव बनाना शुरू कर दिया कि वह धीर सिंह को छोड़ कर हमेशा के लिए उस के पास आ जाए. मगर मिथिलेश ने साफ इंकार कर दिया. वह किसी भी हालत में अपना घर नहीं छोड़ना चाहती थी और फिर उस की दोनों बेटियों के ससुराल का भी मामला था. कितनी बदनामी होती उस के इस कदम से.बेटियों का ससुराल में सिर उठा कर जीना मुश्किल हो जाता. मिथिलेश ने किरणपाल को समझाने की बहुत कोशिश की, मगर वह अपनी जिद पर अड़ा रहा.

किरणपाल की जिद को देख कर अब मिथिलेश उस से दूर रहने लगी. वह 10 बार बुलाता तो कहीं एक बार जाती थी. उस के इस बर्ताव ने जैसे आग में घी का काम किया. किरणपाल प्यार की आग में धूधू कर जलने लगा. प्रेमिका से बनी हुई दूरी बरदाश्त नहीं हो रही थी. वह अब आरपार का फैसला करना चाहता था.एक दिन उस ने सुबह के धुंधलके में मिथिलेश को खेत पर पकड़ लिया. उस दिन वह उस का फैसला जान लेना चाहता था. उस ने मिथिलेश पर शादी का दबाव बनाया तो मिथिलेश ने साफ इंकार करते हुए यहां तक कह दिया कि वह उस से अब तंग आ चुकी है और अब वह उस से कभी नहीं मिलेगी. यह कह कर मिथिलेश तेज कदमों से अपने घर की ओर चल दी.

किरणपाल की तो जैसे सारी दुनिया ही उजड़ गई. वह ठगा सा खेत की मेड़ पर बैठा रह गया. उसे मिथिलेश से ऐसा जवाब मिलने की कतई उम्मीद नहीं थी. उस के लिए तो उस ने कभी अपनी पत्नी की परवाह नहीं की, जिस ने उस के आंगन में एक नहीं 4-4 फूल खिलाए. मिथिलेश के लिए उस ने क्या नहीं किया. जब जरूरत पड़ी, उस की आर्थिक मदद की. लेकिन आज मिथिलेश के जवाब ने उसे बुरी तरह तोड़ दिया.

किरणपाल ने उसी वक्त फैसला कर लिया कि मिथिलेश अगर उस की नहीं हुई तो वह उसे किसी और की हो कर भी नहीं रहने देगा. यह 13 जुलाई, 2022 की बात है जब उस ने अपनी प्रेम कहानी का अंत सोच लिया.

इस के बाद वह अपने लोडेड तमंचे के साथ मिथिलेश को अकेला पाने की टोह में लग गया. 15 जुलाई, 2022 की सुबह उसे यह मौका मिल गया और वह तमंचा लहराते हुए मिथिलेश के सामने आ खड़ा हुआ. मिथिलेश उस से कुछ कह पाती, इस का उस ने कोई मौका नहीं दिया. किरणपाल के गुस्से का आवेग इतना तेज था कि चंद मिनटों में ही दोनों की कहानी खत्म हो गई.

गांव के लोगों ने घटना की जानकारी पुलिस को दी. घटना की सूचना मिलते ही एसपी (देहात) केशव कुमार, सीओ (सदर देहात) पूनम सिरोही और परीक्षितगढ़ पुलिस भी मौके पर पहुंची. जल्दी ही फोरैंसिक टीम भी पहुंच गई.पुलिस ने दोनों लाशों का पंचनामा भर कर वह पोस्टमार्टम के लिए भेज दीं. सीओ पूनम सिरोही ने लाशों की स्थिति को देखते ही अंदेशा जता दिया कि दोनों एकदूसरे से प्यार करते थे. गांव वालों से थोड़ी पूछताछ के बाद ही यह बात सामने आ गई कि मिथिलेश अब किरणपाल से पीछा छुड़ा रही थी, जिस के विरोध में किरणपाल ने उसे गोली मार दी और फिर खुद को भी गोली मार ली.

गांव में प्रत्यक्षदर्शियों ने पुलिस को बताया कि महिला जब अपने घर से कचरा डालने निकली थी, तभी पीछे से किरणपाल भी पहुंच गया और आवाज लगाई कि मिथिलेश तू मेरी तो नहीं हो सकी, किसी और की भी नहीं होने दूंगा… आज जिंदगी भी खत्म समझ लेना.मिथिलेश कुछ समझ पाती, इस से पहले ही किरणपाल ने अपनी प्रेमिका को गोली मार दी. आसपास के लोग वहां पहुंचते, उस से पहले ही किरणपाल ने खुद को भी गोली मार ली. चंद मिनटों में ही दोनों की मौत हो गई.

इस सनसनीखेज वारदात के बारे में जिस ने भी जाना और देखा वह हैरान रह गया. दोनों के घर वालों का रोरो कर बुरा हाल हो गया. किरणपाल की पत्नी शीला अपने चारों बेटों को सीने से लगाए एक ओर पड़ी कलप रही थी. वहीं घर वालों के बीच बैठा धीर सिंह भी जारजार रोए जा रहा था.वहीं पर मिथिलेश की बेटियां भी दहाड़े मार कर रो रही थीं. लोग उन्हें संभाल रहे थे. पति धीर सिंह भी बेटियों को संभाल रहा था और बारबार कह रहा था सोचा नहीं था, ऐसा भी दिन देखने को मिलेगा.

किरणपाल की पत्नी शीला ने पुलिस को बताया कि अपने पति और मिथिलेश के प्रेम प्रसंग का उस ने कई बार विरोध किया. उस के बेटों ने भी पिता को समझाने की बहुत कोशिश की, मगर उस पर कोई असर नहीं हुआ. अकसर वह मिथिलेश का पीछा करता और उसे रोक कर जबरन बातें करने की कोशिश करता था.
लोगों ने पुलिस को बताया कि करीब 5 साल से पूरे गांव को इस प्रेम प्रसंग की जानकारी थी. 15 दिन पहले किरणपाल ने मिथिलेश पर बच्चों को छोड़ कर कहीं बाहर जा कर रहने का दबाव बनाया था.

मिथिलेश ने अपने और उस के बच्चों का हवाला दे कर इस से इंकार कर दिया था. इस पर वह शराब पी कर उस के घर पहुंच गया था और हंगामा किया था. मिथिलेश के पति धीर सिंह ने उसे समझाबुझा कर किसी तरह वापस भेजा था. मगर इस के बाद से किरणपाल जगहजगह मिथलेश का रास्ता रोक लेता था और उस से झगड़ा करता था.दबंग प्रवृत्ति के किरणपाल को कोई कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था. उस के हाथों में मिले तमंचे को देख कर फोरैंसिक टीम भी दंग रह गई. पुलिस ने तमंचे को लोड कर के भी देखा. तमंचे की नाल की लंबाई 24 इंच से ज्यादा थी.

पुलिसकर्मी चर्चा करते दिखे कि आखिर ऐसे बढि़या किस्म के तमंचे बन कहां रहे हैं? पुलिस अब किरणपाल का इतिहास खंगालने में जुटी है. उस ने वह तमंचा कब और किस से खरीदा? उस का आपराधिक तत्त्वों से कितना गहरा संबंध है? उस के धंधे क्याक्या थे? उस के पास किनकिन माध्यमों से पैसे आ रहे थे? इन सब बातों की पुलिस कथा लिखने तक जांच कर रही थी.

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