मैं 32 साल का एक शादीशुदा आदमी हूं और अपनी पत्नी से बहुत ज्यादा प्यार करता हूं. वह भी मुझे बहुत पसंद करती है, पर उस में एक बुरी आदत यह है कि वह हर किसी की चुगली करती फिरती है, जिस से हमारे महल्ले में हर कोई हम दोनों से दूर ही रहता है. इस बात से मेरी इमेज पर बट्टा लग रहा है. मैं ने कई बार अपनी पत्नी को समझाना चाहा, पर वह मानती ही नहीं है. मैं क्या करूं?
जवाब
हालांकि चुगली का लुत्फ ही अलग है, लेकिन इस की लत बहुत बुरी होती है, जो आप की बीवी को लग चुकी है. यह अब आसानी से दूर होने वाली नहीं. उसे समझाएं कि इस लत के चलते आप समाज से अलगथलग पड़ गए हैं. कल को बच्चों पर भी इस का असर पड़ेगा. आप कुछ दिन के लिए जगह बदल कर देखें, शायद बात बन जाए. आप अपनी पत्नी को प्यार करते रहिए और उस की चुगलखोरी के साथ जीने के लिए तैयार रहिए.
अखिलभारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के वार्षिक सम्मेलन में कई विषयों पर संगोष्ठियां हो रही थीं. एक शाम ऐसी ही एक संगोष्ठी के समाप्त होने पर कुछ डाक्टर उसी विषय पर बात करते हुए परिसर में बने अतिथिगृह में अपनेअपने कमरे की ओर जा रहे थे.
‘‘डा. रंजन ने ठीक कहा है कि सब बीमारियों की जड़ मिलावट और कुपोषण है,’’ एक डाक्टर कह रहा था, ‘‘जिस के चलते आधुनिक चिकित्सा कोई चमत्कार नहीं दिखा सकती.’’
‘‘सही कह रहे हैं डा. सतीश. ये दोनों चीजें जीवन का विनाश कर सकती हैं. मिलावटखोरों को मानवता का दुश्मन घोषित कर देना चाहिए.’’
‘‘मिलावटखोर ही नहीं आतंकवादी भी मानवता के दुश्मन हैं डा. चंद्रा. कितने ही खुशहाल घरों को पलभर में उजाड़ कर रख देते हैं, लेकिन आज तक उन पर ही कोई रोक नहीं लग सकी तो मिलावटखोरों पर कहां लगेगी? आज रोज कुपोषण की रोकथाम के लिए अनेक छोटेबड़े क्लब पांच सितारा होटलों में मिलते हैं झुग्गी झोंपडि़यों में रहने वाले बच्चों को कितना दूध दिया जाए इस पर विचारविमर्श करने को…’’
‘‘आप ठीक कहते हैं डा. कबीर हम सिर्फ विचारविमर्श और बातें ही कर सकते हैं. इस से पहले की हम बातों में उल झ जाएं और डाइनिंगरूम में बैठने की जगह भी न मिले, चलिए अपनेअपने कमरे में जाने से पहले खाना खा लें,’’ डा. चंद्रा ने कहा.
सब लोग डाइनिंगरूम में चले गए. खाना खा कर जब सब बाहर निकले तो डा. चंद्रा ने कहा, ‘‘मैं तो फैमिली के लिए शौपिंग करने जा रहा हूं, आप लोग चलेंगे?’’
‘‘अभी से कमरे में बैठ कर भी क्या करेंगे, चलिए शौपिंग ही करते हैं. आप भी चलिए न डा. रौनक,’’ डा. कबीर ने बेमन से खड़े व्यक्ति की ओर देख कर कहा.
‘‘धन्यवाद डा. कबीर, लेकिन मु झे किसी चीज की जरूरत नहीं है.’’
‘‘हम अपनी जरूरत के लिए नहीं फैमिली के लिए शौपिंग करने जा रहे हैं.’’
‘‘लेकिन मेरी फैमिली भी नहीं है,’’ डा. रौनक का स्वर संयत होते हुए भी भीगा सा लग रहा था.
‘‘यानी आप घरगृहस्थी के चक्कर में नहीं पड़े हैं.’’
‘‘ऐसा तो नहीं है डा. चंद्रा,’’ डा. रौनक ने उसांस ले कर कहा, ‘‘जैसाकि कुछ देर पहले डा. कबीर ने कहा था कि आतंकवादी पलभर में एक खुशहाल परिवार को उजाड़ देते हैं. मेरी जिंदगी की खुशियां भी आतंकवाद की आंधी उड़ा ले गई. खैर छोडि़ए, ये सब. आप लोग चलिए, देर कर दी तो मार्केट बंद हो जाएगी,’’ किसी को कुछ कहने का मौका दिए बगैर डा. रौनक तेजी से अपने कमरे की ओर बढ़ गए.
‘‘मु झे यह आतंकवाद वाली बात करनी ही नहीं चाहिए थी. इसे सुनने के बाद ही डा. रौनक एकदम गुमसुम हो गए थे, खाना भी ठीक से नहीं खाया,’’ डा. कबीर बोले.
‘‘आप को मालूम थोड़े ही था कि डा. रौनक आतंकवाद के शिकार हैं,’’ डा. चंद्रा ने कहा.
‘‘हरेक शै के अच्छेबुरे पहलु होते हैं. डा. रौनक आतंकवाद का शिकार हैं और मेरे एक मित्र डा. भुपिंदर सिंह आतंकवाद के बैनिफिशियरी,’’ डा. सतीश ने कहा, ‘‘भुपिंदर की माताजी एक समाजसेविका हैं. उन्होंने आतंकवाद की शिकार एक युवती से उस की शादी करवा दी और भुपिंदर शादी के बाद बेहद खुश हैं.’’
‘‘अरे वाह, पहली बार सुना कि कोई समाजसेविका किसी हालात की मारी को अपनी बहू बना ले और बेटा भी मान जाए.’’
‘‘हम ने भी ऐसा पहली बार ही सुना और देखा था. असल में भुपिंदर की माताजी बहुत ही कड़क और अनुशासनप्रिय हैं और भुपिंदर ने सोचा था कि सुख से जीना है तो शादी मां की पसंद की लड़की से ही करनी होगी, चाहे अच्छी हो या बुरी. लेकिन मां ने तो उसे एक नायाब हीरा थमा दिया है…’’
‘‘यानी लड़की सुंदर और पढ़ीलिखी है?’’ कबीर ने बात काटी.
‘‘डाक्टर है और बेहद खूबसूरत. व्यस्त गाइनौकोलौजिस्ट होने के बावजूद सासूमां की समाजसेवा में समय लगाती है सो वे उस से बहुत खुश रहती हैं और भुपिंदर के घरसंसार में सुखशांति,’’ डा. चंद्रा ने बताया.
देवास (मध्य प्रदेश) के शहर कोतवाली टीआई एम.एस. परमार को 7 अगस्त, 2022 की शाम बेहद बेहोशी की गंभीरहालत में एक युवती को एम.जी. शासकीय अस्पताल ले जाने की सूचना मिली थी. उन्होंने तत्काल एसआई कृष्णा सूर्यवंशी को एक कांस्टेबल के साथ अस्पताल भेज दिया.अस्पताल पहुंची पुलिस को मालूम हुआ कि 23 वर्षीय युवती रानी थी. उसे केदारेश्वर मैडिकल स्टोर चलाने वाला नरसिंह दास उर्फ बबलू ले कर आया था. इमरजेंसी के डाक्टर की टीम ने जांच के बाद उसे मृत घोषित कर दिया था.
पूछताछ में बबलू ने बताया कि रानी पिछले 3 साल से उस के मैडिकल स्टोर पर सेल्सगर्ल का काम कर रही थी. वह सीहोर जिले के बाऊपुर की रहने वाली थी और देवास के अखाड़ा रोड इलाके में किराए के मकान में रहती थी. उस की बिगड़ी हालत के बारे में पुलिस को जानकारी मिली कि शाम को रानी अपने कमरे में बेहोश पड़ी थी. वह अविवाहित थी और अकेली रहती थी. एसआई कृष्णा सूर्यवंशी ने यह जानकारी टीआई को दे दी.
नरसिंह के बयानों के आधार पर एम.एस. परमार को मामला संदिग्ध लगा. उन्हें नरसिंह पर भी संदेह हुआ कि शाम के समय वह उस के घर क्यों गया था? यह सब पूछताछ करने से पहले रानी की लाश को उन्होंने पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. इस घटना की जानकारी एसपी डा. शिवदयाल को भी दे दी गई.
डाक्टरी जांच की प्रारंभिक रिपोर्ट में युवती की मौत गला दबने पर दम घुटने से हुई बताई गई. मामला हत्या के रूप में सामने आने पर कोतवाली थाने में अज्ञात के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया गया.
मामले की तह तक पहुंचने के लिए एसपी (देवास) द्वारा एडिशनल एसपी मनजीत सिंह, सीएसपी विवेक चौहान और डीएसपी किरण शर्मा के नेतृत्व में कोतवाली टीआई एम.एस. परमार के संग एसआई पवन यादव, हर्ष चौहान, एएसआई संजय तंवर, हैडकांस्टेबल मनोज पटेल, रवि गडोरा, पवन पटेल आदि की एक टीम गठित की गई.
पुलिस ने रानी के पड़ोसियों से भी पूछताछ की. उन से मालूम हुआ कि नरसिंह का रानी के पास अकसर आनाजाना था. कभीकभी वह रात को वहीं ठहर जाता था. उस ने उस से शादी भी कर ली थी, जो सीक्रेट थी. इस पर पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि रानी की आकस्मिक मौत का मामला अवैध संबंध के नतीजे का हो सकता है.
नरसिंह के बारे में जुटाई गई कुछ और जानकारियों से मालूम हुआ कि वह दिलफेंक किस्म का व्यक्ति है. उस के संबंध रानी के अलावा शहर के एक जानेमाने ज्वैलर्स की दुकान पर काम करने वाली युवती रितु से भी हैं. रितु न केवल सचिन चौहान की विवाहिता है, बल्कि 7 साल की बेटी की मां भी है.
प्रेमिका रितु पर हुआ शक
पुलिस को नरसिंह के मोबाइल की लोकेशन से पता चला कि वह 7 अगस्त को जिस समय बेहोश रानी को अस्पताल ले कर गया था, उस के कुछ समय पहले ही उस की रितु के मोबाइल से भी बात हुई थी. उस वक्त रितु के मोबाइल की लोकेशन भी अखाड़ा रोड पर रानी के घर की ही थी. इस का मतलब था कि नरसिंह के रानी के पास पहुंचने से पहले रितु उस के आसपास ही थी.
बात बढ़ी तो आग भी बढ़ी और एक रोज दोनों तन की इस आग में मर्यादा को जला बैठे. इस के बाद मिथलेश के लिए सतीश ही सब कुछ हो गया. वह उस का ज्यादा से ज्यादा सान्निध्य पाने के लिए लालायित रहने लगी. इस तरह सतीश और मिथलेश का रिश्ता मजबूत हो गया.मिथलेश से मिलन की भूख मिटाने के लिए सतीश कभीकभी शाम को गजेंद्र के लिए शराब भी ले आता था. दोनों एक साथ बैठ कर पीतेखाते और जब गजेंद्र नशे में धुत हो कर खर्राटे भरने लगता तो मिथलेश और सतीश के देह मिलन का सफर शुरू हो जाता. यह सिलसिला महीनों चलता रहा.
सतीश को मिथलेश से इतना लगाव हो गया था कि वह उस की आर्थिक मदद भी करने लगा. सतीश ने मिथलेश के पति गजेंद्र को आर्थिक मदद दे कर उसे एक पुरानी कार खरीदवा दी. इस कार का उपयोग गजेंद्र टैक्सी के रूप में करने लगा. वह बुकिंग पर शहर से बाहर भी जाने लगा. सतीश के इस एहसान से दोनों बहुत खुश हुए.एक रोज गजेंद्र ने मिथलेश से कहा कि बुकिंग पर वह इटावा जा रहा है. वहां उसे रात को रुकना भी पड़ेगा. वह रात को उस का इंतजार न करे और बच्चों का खयाल रखे.
रंगेहाथों पकड़ी गई मिथलेश
यह सूचना मिथलेश के लिए काफी खुशी वाली थी. गजेंद्र टैक्सी ले कर घर से चला गया तो मिथलेश ने फोन पर प्रेमी सतीश से बात की और बताया कि रात को गजेंद्र घर पर नहीं होगा. यह सुन कर सतीश भी खुश हो गया.शाम ढलते ही सतीश मिथलेश के घर आ गया. मिथलेश ने उस के लिए खानेपीने का इंतजाम किया. देर रात तक खानेपीने का दौर चलता रहा. फिर दोनों कमरे में कैद हो गए. लेकिन सुबह करीब 4 बजे अचानक गजेंद्र लौट आया. उस ने कमरे का दरवाजा खटखटाते हुए मिथलेश को आवाज दी. लगभग 5 मिनट बाद मिथलेश ने दरवाजा खोला और उस के दोनों पल्ले पकड़ कर वहीं खड़ी हो गई.
‘‘क्यों? कमरे के अंदर आने नहीं दोगी मुझे?’’ गजेंद्र बोला.
मिथलेश के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं और उस की भयभीत आंखें नीचे झुकी हुई थीं. तभी गजेंद्र को कमरे के अंदर से किसी चीज के गिरने की आवाज सुनाई दी तो उस ने पूछा, ‘‘अंदर कौन है?’’मिथलेश ने कोई जवाब नहीं दिया. गजेंद्र का मन आशंका से भर उठा. उस ने मिथलेश को धकेल कर एक ओर किया और कमरे के अंदर घुस गया. अंदर कदम रखते ही सामने का दृश्य देख कर उस के तनबदन में आग लग गई. सतीश वहां पलंग के नीचे छिपने का असफल प्रयास कर रहा था.
गजेंद्र उसे देख कर चीखा, ‘‘खड़ा हो जा और चुपचाप यहां से भाग जा, वरना तेरी जान ले लूंगा. तू तो आस्तीन का सांप निकला.’’गजेंद्र का गुस्सा देख कर सतीश सिर पर पैर रख कर भाग गया. मिथलेश अभी तक पकड़े गए चोर की तरह मुंह लटकाए खड़ी थी. गजेंद्र का पूरा शरीर गुस्से से जल रहा था. उस ने नफरत से पत्नी को देखा और पैर पटकता बाहर निकल गया. इस बीच सतीश वहां से रफूचक्कर हो चुका था. गजेंद्र ने आसपास देखा और लौट कर अंदर आ गया.
आते ही गजेंद्र ने मिथलेश की चुटिया पकड़ कर उसे जमीन पर पटक दिया. फिर लातघूंसों से बेतहाशा मारने लगा. मिथलेश रोनेगिड़गिड़ाने लगी. लेकिन गजेंद्र नेमिथेलश को तभी छोड़ा जब वह उसे मारतेमारते थक गया.इस घटना के बाद गजेंद्र ने अपने घर में सतीश के आने पर पाबंदी लगा दी. उस की दोस्ती में भी दरार आ गई. दोनों ने साथ महफिल जमानी भी छोड़ दी. इस के साथ ही उस ने बड़े बेटे से कह दिया कि अब अगर कभी सतीश घर आए तो वह उसे जरूर बताए.
पति गजेंद्र से छुटकारा चाहती थी मिथलेश
सतीश मिथलेश से मिलने कई दिनों तक नहीं आया. लेकिन मिथलेश की मोहब्बत के कारण वह अपने दिल से मजबूर था. उस की आंखें मिथलेश को देखने के लिए तरसने लगीं और दिल बेचैन रहने लगा.
आखिर जब सतीश से नहीं रहा गया तो एक दोपहर मिथलेश से मिलने उस के घर पहुंच गया. मिथलेश उस समय घर पर अकेली थी. उस के दोनों बच्चे स्कूल गए थे और गजेंद्र अपनी टैक्सी कार ले कर निकल गया था.
सतीश को घर आया देख कर मिथलेश के मुरझाए चेहरे पर बहार आ गई. उस ने सतीश की आंखों में झांक कर देखा तो उस की आंखें डबडबा आईं. वह भावावेश में आ कर सतीश से लिपट गई. फिर उस ने कहा, ‘‘मुझे बचा लो सतीश, वरना यह जालिम किसी रोज तुम्हारी मिथलेश को मार ही डालेगा.’’सतीश ने मिथलेश को तसल्ली देते हुए समझाया. इस के बाद दोनों काफी देर तक वहीं बैठेबैठे बातें करते रहे. बातों ही बातों में सतीश ने पूछा, ‘‘अगर वह अपनी हरकत बंद नहीं करता तो उसे ठिकाने क्यों न लगा दिया जाए? फिर हम दोनों आराम से ऐश की जिंदगी व्यतीत करेंगे.’’
‘‘तुम जो भी करना चाहो करो. सतीश, मेरी जिंदगी उस राक्षस के हाथों से बचा लो. वरना वह मुझे छोड़ेगा नहीं. जिस रोज उस ने मुझे तुम्हारे साथ देखा था, उसी रोज मुझे मारतेमारते बेहोश कर दिया था. उस ने मेरे शरीर का कोई ऐसा हिस्सा नहीं छोड़ा, जहां जख्म न दिए हों.’’ कहने के साथ मिथलेश ने सतीश को अपने शरीर पर आई अनेक चोटों के निशान दिखाए.यह सब देख कर सतीश की आंखें क्रोध से जल उठीं. वह कुछ सोचते हुए बोला, ‘‘मैं जल्द ही उस का कोई न कोई उपाय खोजता हूं. मैं अपने जीते जी तुम पर इस तरह का जुल्म नहीं होने दूंगा. तुम पर जुल्म करने वाले को सबक सिखा कर ही रहूंगा. बस तुम हमारा साथ देना.’’
यह सुनते ही मिथलेश ने सतीश का हाथ पकड़ कर अपने हाथों में ले लिया. फिर बोली, ‘‘तुम जैसा भी कहोगे सतीश, अब मैं वैसा ही करूंगी. भले ही वह काम कितना ही जोखिम भरा क्यों न हो.’’डुबो कर पति की कर दी हत्यायोजना के तहत सतीश ने गजेंद्र से माफी मांगी और दोबारा गलती न करने का वादा किया. बारबार माफी मांगने से गजेंद्र का दिल पिघल गया और उस ने उसे माफ कर दिया. इस के बाद सतीश का गजेंद्र के घर फिर से आनाजाना शुरू हो गया. दोनों की महफिल भी जमने लगी.
27 जुलाई, 2020 को सतीश और मिथलेश ने योजना के तहत घूमने का प्रोग्राम बनाया. इस के लिए मिथलेश ने अपने पति गजेंद्र को भी राजी कर लिया. गजेंद्र अपनी कार से जिसे वह टैक्सी के रूप में चलाता था, घर से पत्नी व दोस्त के साथ निकला. वे दिन भर घूमते रहे. रात 8 बजे वे इटावा पहुंचे.
यहां सतीश ने गजेंद्र को शराब पिलाई फिर वह सैफई पहुंचे. अब तक गजेंद्र पर नशा हावी हो चुका था. सतीश ने सैफई हवाई पट्टी के पास नहर किनारे कार रोकी फिर गजेंद्र को सीट बेल्ट पहना कर कार नहर में ढकेल दी. डूबने से गजेंद्र की मौत हो गई. इस के बाद दोनों लौट आए.
28 जुलाई, 2020 की सुबह सैफई पुलिस ने गजेंद्र की लाश बरामद की और अज्ञात में पोस्टमार्टम कराया. चूंकि पुलिस को कोई तहरीर नहीं मिली थी और युवक की मौत पानी में डूबने से हुई थी, इसलिए इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया और आत्महत्या मान कर फाइल बंद कर दी.
पति को ठिकाने लगाने के बाद मिथलेश अपनी ससुराल पहुंची. उस ने ससुरालीजनों को गजेंद्र के लापता होने की जानकारी दी और 2 महीने तक घडि़याली आंसू बहाती रही. उस के बाद एक रोज बच्चों के साथ गायब हो गई. ससुरालीजनों ने तब थाना पचेरी में उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी.ससुरालीजनों को चकमा देने के बाद मिथलेश अपने दोनों बेटों के साथ नोएडा आ गई और अपने प्रेमी सतीश चंद्र यादव के साथ उस की पत्नी बन कर रहने लगी. लौकडाउन में सतीश की नौकरी छूट गई थी.अब उस ने एक पुरानी कार खरीद ली थी और टैक्सी के रूप में चलाने लगा था. वह टोकन के रूप में कटियार ट्रैवल एजेंसी की पर्ची का प्रयोग करता था. हालांकि एजेंसी ने टोकन पर्ची देनी बंद कर दी थी.
मिथलेश का भिड़ गया पहाड़ी युवक से टांका
मिथलेश और सतीश ने लगभग एक साल तक हंसीखुशी जीवन बिताया. उस के बाद उन के जीवन में कड़वाहट का जहर घुलने लगा. उस का पहला कारण था मिथलेश की फैशनपरस्ती और रंगीनमिजाजी.
दरअसल, मिथलेश का मन भटकने लगा था और उस का टांका एक पहाड़ी युवक से भिड़ गया था. वह उस से खुल कर बतियाती थी और उस के साथ शौपिंग करने भी जाती थी. सतीश को यह सब पसंद नहीं था. अत: घर में कलह होने लगी.
इधर सतीश की पहली पत्नी कमला को भी जानकारी हो गई थी कि सतीश ने 2 बच्चों की मां मिथलेश को पत्नी का दरजा दे दिया है और शहरी मेम के साथ गुलछर्रे उड़ा रहा है.कोई भी औरत पति की उपेक्षा और मारपीट तो सह सकती है, लेकिन पति का बंटवारा सहन नहीं कर सकती है. कमला को भी सहन नहीं हुआ और उस ने विरोध शुरू कर दिया. सतीश जब भी घर जाता वह उसे जलील करती और झगड़ा करती.
घरवाली का विरोध और मिथलेश की रंगीनमिजाजी से टैक्सी चालक सतीश चंद्र यादव बौखला गया. इसी बौखलाहट में उस ने मिथलेश की हत्या की योजना बना डाली.
योजना के तहत सतीश ने मिथलेश से कहा कि उस के गांव के पास नाग देवता का मंदिर है. वह वहां दर्शन के लिए जाना चाहता है. चाहो तो तुम भी बच्चों के साथ चलो. नाग देवता के दर्शन के लिए मिथलेश राजी हो गई.21 जून, 2022 को मिथलेश सजधज कर तैयार हुई. फिर उस ने दोनों बच्चों को भी तैयार किया. पूजा सामग्री की थाली भी सजाई. उस के बाद सतीश के साथ कार में बैठ कर नाग देवता के दर्शन के लिए निकल पड़ी.सतीश मिथलेश और बच्चों को खिलातापिलाता रात 8 बजे नोएडा से इटावा पहुंचा. इटावा में कुछ देर रुकने के बाद रात 9 बजे सतीश अपने गांव रमपुरा से 2 किलोमीटर दूर स्थित नाग देवता के मंदिर पहुंचा. अब तक दोनों बच्चे कार में सो गए थे.
मंदिर सुनसान जगह पर था और चारों ओर सन्नाटा पसरा था. सतीश ने सड़क किनारे कार खड़ी कर दी. मिथलेश पूजा का थाल सजा कर कार से उतरी और नाग देवता मंदिर पहुंची. वहां उस ने पूजाअर्चना की. इसी बीच सतीश ने तमंचा लोड कर लिया था.मिथलेश पूजा कर के जैसे ही कार के पास आई, तभी उस ने पीछे से कनपटी से तमंचा सटा कर फायर कर दिया.मिथलेश के मुंह से चीख निकली और वह सड़क पर बिछ गई. पूजा की थाली व सामग्री भी बिखर गई. सड़क खून से लाल हो गई. कुछ मिनट तड़पने के बाद मिथलेश ने दम तोड़ दिया.
मिथलेश की हत्या के बाद सतीश ने उस के शव को सड़क से घसीट कर खेत किनारे नाली में डाल दिया. फिर शव से सारे आभूषण उतार कर सुरक्षित अपने पास रख लिए. आभूषण उतारते समय ही ट्रैवल एजेंसी की टोकन पर्ची उस की जेब से गिर गई. उस के बाद वह कार व उस में सो रहे बच्चों सहित फरार हो गया.
वह बच्चों को ले कर घर पहुंचा और घर वालों को बता दिया कि इन की मां अस्पताल में भरती है.
घर वालों को पहले से ही सतीश और मिथलेश के संबंधों की जानकारी थी, इसलिए उस के अस्पताल में भरती होने की वजह से चुप रहे. लेकिन जब पुलिस ने सतीश को गिरफ्तार कर लिया, तब उन्हें सच्चाई
पता चली.
पुलिस ने अभियुक्त सतीश चंद्र यादव से पूछताछ करने के बाद उसे इटावा कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया. मिथलेश के दोनों बच्चों को उस के मायके वालों के सुपुर्द कर दिया गया था.
राहुल गांधी ने इस पदयात्रा का आगाज ‘विवेकानंद पौलीटैक्निक’ से 118 दूसरे ‘भारत यात्रियों’ और कई नेताओं व कार्यकर्ताओं के साथ 7 सितंबर, 2022 को शुरुआत की थी. कांग्रेस ने राहुल गांधी समेत 119 नेताओं को ‘भारत यात्री’ नाम दिया है, जो कन्याकुमारी से पदयात्रा करते हुए कश्मीर तक जाएंगे. ये लोग कुल 3,570 किलोमीटर की दूरी तय करेंगे.
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कन्याकुमारी से अपनी ‘भारत जोड़ो’ यात्रा की औपचारिक शुरुआत की और इस मौके पर पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने एक लिखित संदेश में कहा, ‘यह यात्रा भारतीय राजनीति के लिए परिवर्तनकारी क्षण है और यह कांग्रेस के लिए संजीवनी का काम करेगी.’
इस तरह कहा जा सकता है कि राहुल गांधी की यह पदयात्रा कई माने में गंभीर संदेश देश को देने लगी है. देश के प्रधानमंत्री रह चुके और अपने पिता राजीव गांधी को श्रीपेरंबदूर में श्रद्धांजलि देने के बाद यह पदयात्रा शुरू हुई थी, जो देखतेदेखते भाजपा के लिए सिरदर्द बन गई और कांग्रेस अब आगे निकलती दिखाई दे रही है.
भाजपा के आरोप
राहुल गांधी की पदयात्रा शुरू होने से पहले से ही भारतीय जनता पार्टी की घबराहट दिखाई देने लगी थी और उस के नेता इस पदयात्रा पर उंगली उठाने लगे थे. जैसेजैसे पदयात्रा का समय निकट आता गया, भारतीय जनता पार्टी और भी आक्रामक होती चली गई.
पदयात्रा शुरू होने के साथ भाजपा के नेताओं की जैसी आदत है, उन्होंने हर मुमकिन तरीके से राहुल गांधी की इस ऐतिहासिक पदयात्रा को शुरू में ही मानसिक रूप से ध्वस्त और कमजोर करने की भरसक कोशिश की. देश में यह संदेश फैलाने का काम किया कि यह सब तो सिर्फ और सिर्फ बेकार की कवायद है.
भाजपा के एक नेता ने कहा कि भारत जोड़ो यात्रा का क्या मतलब है भाई? भारत तो पहले से ही जुड़ा हुआ है. इस तरह इस अभियान पर सवालिया निशान लगाने की पूरी कोशिश की गई.
मगर आश्चर्यजनक रूप से भाजपा का यह अमोघ ब्रह्मास्त्र फेल हो गया, क्योंकि देश की जनता राहुल गांधी को बड़ी गंभीरता से देख रही है और भारत जोड़ो यात्रा को पौजिटिव भाव से ले रही थी.
भाजपा का जब भारत जोड़ो यात्रा पर सवाल उठाने वाला तीर नहीं चला, तो उस ने दूसरा तीर चलाया और कहा कि राहुल गांधी तो 41,000 रुपए की महंगी टीशर्ट पहन कर पदयात्रा पर निकले हैं, लेकिन भाजपा का यह तीर भी भोथरा साबित हुआ, क्योंकि देश की जनता ने उसे गंभीरता से नहीं लिया.
वजह, आरोप लगाने वाले भाजपाई नेता चाहे वे प्रधानमंत्री हों या गृह मंत्री या फिर दूसरे बड़े नेता खुद लाखों रुपए के बेशकीमती कपड़े पहनते हैं. इन की फुजूलखर्ची सारा देश देख रहा है. इन के स्वभाव में कहीं भी किफायतदारी नहीं है. ऐसे में यह तीर ‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’ कहावत बन कर रह गया.
राहुल गांधी की इस पदयात्रा से अब जहां भाजपा हैरान है, वहीं विपक्ष के कई बड़े नेताओं का भी होश काम नहीं कर रहा है. चाहे वे नीतीश कुमार हों या ममता बनर्जी या फिर अरविंद केजरीवाल, प्रधानमंत्री पद के दावेदार सभी के मुंह पर ताला लग गया है.
वैसे तो होना यह चाहिए था कि विपक्ष की एकता की बात करने वाले ये नेता खुल कर राहुल गांधी की पदयात्रा का समर्थन करते. अभी तक शिव सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने राहुल गांधी की पदयात्रा के पक्ष में अपना बयान दिया है, बाकी सारे नेता खामोश हैं और उन की खामोशी अपनेआप में एक बड़ा सवाल है.
दक्षिण भारत की सुपरहिट फिल्म ‘केजीएफ चैप्टर वन’ के एक सीन में जब बच्चा रौकी दिनदहाड़े एक पुलिस वाले के सिर पर बोतल फोड़ कर भागताभागता रुक जाता है, तो उस का साथी बच्चा पूछता है कि रुक क्यों गया? इस पर रौकी बोलता है कि उस पुलिस वाले को अपना नाम तो बताया ही नहीं. वह फिर उस घायल पुलिस वाले के पास जाता है और दोबारा उस का सिर फोड़ कर अपना नाम बताता है.
यह तो महज एक फिल्मी सीन था, जिस पर सिनेमाघरों में खूब सीटियां और तालियां बजी थीं, पर असली जिंदगी में अपराध इतना ग्लैमरस नहीं होता है और न ही किसी अपराधी का भविष्य सुनहरा होता है.
इस के बावजूद बहुत से नौजवान अपनी छोटीमोटी जरूरतों को पूरा करने के लिए अपराध की दुनिया में उतर जाते हैं, पर जब वे पुलिस के हत्थे चढ़ते हैं, तो अपनी जरूरतों का रोना रोने लगते हैं.
मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले का एक मामला देखते हैं. वहां 2 लड़के लूट के एक मामले में पकड़े गए थे. इस सिलसिले में पुलिस ने 19 साल के शुभम उर्फ अर्पण और 18 साल के अभिषेक शुक्ला उर्फ बच्ची को गिरफ्तार किया था. वे दोनों रीवां जिले के मिसिरिहा गांव के रहने वाले थे.
इन दोनों आरोपियों ने 13 जुलाई, 2022 को गांव बुढ़ाकर में लूट की वारदात को अंजाम देने से पहले बैंक की रेकी की थी. एक पतिपत्नी प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत अपने खाते में जमा 40,000 रुपए बैंक से निकाल कर बाहर फल विक्रेता के पास खड़े थे.
उसी दौरान दोनों आरोपी मोटरसाइकिल से आए और उन्होंने औरत से नकदी भरा बैग छीन लिया. बाद में पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज की मदद से आरोपियों को पकड़ा था.
अर्पण ने इस कांड की वजह के तौर पर पुलिस को बताया कि उस के परिवार में पैसे की बेहद तंगी थी और उस के पास जबलपुर में प्रतियोगी परीक्षा की अपनी कोचिंग फीस और मकान का किराया देने के लिए पैसे नहीं थे.
अर्पण का दोस्त अभिषेक भी प्रयागराज, उत्तर प्रदेश में प्रतियोगी परीक्षा की कोचिंग ले रहा था और वह भी पैसे की तंगी का सामना कर रहा था.
अर्पण ने पुलिस को यह भी बताया कि पैसे के लिए किसी को लूटने का प्लान अभिषेक ने बनाया था. उन दोनों ने कई दिनों तक कई बैंकों की रेकी की थी और 40,000 रुपए निकालने वाले इन पतिपत्नी का पता लगाया था.
चलो, यहां तो पैसे की तंगी के चलते अपराध हुआ था, पर आजकल के कमउम्र नौजवान तो इश्क के चक्कर में क्याक्या नहीं कर बैठते हैं, इस की एक बानगी देखिए.
प्रेमिका की चाहत पूरी करने के लिए गोंडा, उत्तर प्रदेश में कुछ नौजवानों ने अपराध की सारी हदें पार कर दीं और लुटेरे बन गए. हैरत की बात तो यह है कि इन में से कोई इंजीनियरिंग, तो कोई डाक्टर बनने का सपना लिए घर से निकला था, पर उन्हें माशूका के नखरे उठाने का ऐसा चसका लगा कि वे लुटेरे बन बैठे.
दरअसल, गिरफ्तार किए गए ये पांचों नौजवान आदतन अपराधी नहीं थे, पर जब अचानक उन की जिंदगी में माशूका आ गई तो मुहब्बत की अंधी राह ने उन्हें अपराध की दुनिया में धकेल दिया. ये आरोपी गोंडा और आसपास के जनपदों में मोबाइल की लूट और छीनाझपटी की वारदात को अंजाम दे रहे थे.
पुलिस ने केस दर्ज कर जब इस मामले की छानबीन शुरू की, तो एक रैकेट इस के पीछे काम करता हुआ मिला. पुलिस ने एक नौजवान को गिरफ्तार कर के पूछताछ की तो एकएक कर 5 लोगों के नाम सामने आए.
जब पुलिस ने सख्ती से पूछताछ की, तो पता चला कि गोंडा जिले के तरबगंज थाना क्षेत्र के रहने वाले ये लड़के लखनऊ, दिल्ली और पंजाब में रह रही अपनी गर्लफ्रैंड की ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए लूट की वारदात को अंजाम देने लगे थे.
देहात कोतवाली पुलिस और एसओजी की टीम ने गिरफ्तार नौजवानों के कब्जे से चोरी के 9 मोबाइल फोन, वारदात में इस्तेमाल की जाने वाली 2 मोटरसाइकिल, नकदी के अलावा दूसरा सामान भी बरामद किया.
बालिग तो बालिग, नाबालिग भी अपराध के दलदल में काफी अंदर तक धंसे हुए हैं. नैशनल ज्यूडिशियल डाटा ग्रिड और नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2020 में हत्या, अपहरण, लूट, डकैती, चोरी जैसी 29,768 आपराधिक वारदात ऐसी थीं, जिन में 74,124 नाबालिग शामिल थे.
बच्चों द्वारा की गई आपराधिक वारदात की बात करें तो इस में नंबर एक पर मध्य प्रदेश रहा था, जहां 4,819 वारदात में बच्चे शामिल थे. 4,079 ऐसी वारदात के साथ महाराष्ट्र दूसरे नंबर पर, 3,394 वारदात के साथ तमिलनाडु तीसरे नंबर पर और 2,455 वारदात के साथ दिल्ली चौथे नंबर पर रही थी.
5वें नंबर पर राजस्थान (2,386 वारदात), 6ठे नंबर पर छत्तीसगढ़ (2,090 वारदात) और 7वें नंबर पर गुजरात (1,812 वारदात) जैसे राज्य थे.
ऐसे अपराधों की जड़ में पैसे की कमी और सामाजिक वजह बताई जाती हैं. यह कड़वी हकीकत है कि आज बड़ी तादाद में नौजवान बेरोजगार हैं. ऐसे में वे जब अपराध की तरफ खिंचते हैं, तो उन का पहला पड़ाव झपटमारी होता है. इस में मिली कामयाबी के बाद वे लूट और डकैती की तरफ चले जाते हैं. जेल में जा कर उन में से कुछ तो सुधर जाते हैं, पर बहुत से जेल में सजा काट रहे दूसरे बड़े अपराधियों की संगत में पूरी तरह से अपराधी बन जाते हैं.
इस के अलावा बहुत से नौजवान खराब परवरिश, महंगी जरूरतों, अपनी बढ़ती इच्छाओं, स्कूलकालेज के कैंपस की गुंडागर्दी, अकेलेपन और अपने गुस्सैल स्वभाव के चलते अपराध की ओर बढ़ने लगते हैं.
इस बुराई में समाज के साथसाथ सरकार भी बराबर की जिम्मेदार है. आज की नौजवान पीढ़ी नारों पर नहीं, बल्कि नतीजों पर यकीन करती है, जबकि केंद्र सरकार ने उसे रोजगार देने के नाम पर सिर्फ सपने दिखाए हैं.
हकीकत तो यह है कि दिसंबर, 2021 तक भारत में बेरोजगार लोगों की तादाद 5.3 करोड़ रही थी. देश की आजादी की 75वीं सालगिरह पर इस तरह के आंकड़े चिंता और शर्म की बात हैं.
लुधियाना, पंजाब के एक गांव में जनमे गिप्पी ग्रेवाल जब छोटे थे और स्कूल में किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम में उन्हें अवार्ड मिल जाता था, तब गांव के लोग कहते थे कि बड़ा हो कर बनना तो किसान ही है. मगर धीरेधीरे गिप्पी ग्रेवाल ने संगीत में दिलचस्पी दिखाते हुए गीत गाने शुरू किए, फिर गांव से लुधियाना आ कर साल 2000 में संगीत का एक अलबम निकाला, जिस के सारे गीत उन्होंने खुद ही गाए थे, पर इस अलबम को कामयाबी नहीं मिली थी.
साल 2003 तक गिप्पी ग्रेवाल के 3 अलबम आ गए थे और उन्हें तब भी कामयाबी नहीं मिली थी. तब वे गांव जाने के बजाय चौकीदार के रूप में नौकरी करने लगे थे. इसी बीच उन की शादी हो गई और देखतेदेखते सबकुछ बदल गया.
वे अब पंजाबी फिल्मों तक ही सीमित नहीं रहे हैं, बल्कि ‘सैकंडहैंड हसबैंड’, ‘लखनऊ सैंट्रल’ समेत 3 हिंदी फिल्मों में भी अपनी अदाकारी का जलवा दिखा चुके हैं.
पेश हैं, गिप्पी ग्रेवाल से हुई लंबी बातचीत के खास अंश :
पंजाब के एक किसान के बेटे से होटल मैनेजमैंट का कोर्स करने और अब गायक, हीरो, फिल्मकार, डायरैक्टर व लेखक के रूप में एक मुकाम बनाने तक के अपने सफर पर क्या आप रोशनी डालेंगे?
मैं एक किसान का बेटा हूं और लोग सोचते थे कि मैं भी खेतीबारी ही करूंगा. सच कहूं, तो काफी समय तक मुझे खुद ही पता नहीं था कि मुझे क्या करना है. पंजाब के गांव में जहां हम रहते हैं, वहां सभी खेतीबारी करते हैं. हम बच्चों को तो कुछ पता ही नहीं होता. हर आम इनसान यही सोचता है कि यह बच्चा भी बड़ा हो कर खेती ही करेगा. मेरे शरीर में भी किसान वाला खून है, तो वही मेरे मन में भी था कि खेती ही करनी है.
लेकिन जब मैं 12वीं क्लास में था, तो स्कूल में बहुत ज्यादा कल्चरल प्रोग्रामों में हिस्सा लिया करता था. तब मुझे पहली बार लगा था कि मुझे संगीत या ऐक्टिंग के क्षेत्र में आना चाहिए और मैं ने संगीत सीखना शुरू किया.
साल 2000 में मेरा पहला अलबम बाजार में आया था, लेकिन इस अलबम को कुछ खास कामयाबी नहीं मिली थी. साल 2003 तक मेरे 3 म्यूजिक अलबम बाजार में आ चुके थे, जिन्हें लोगों ने पसंद नहीं किया था. तब मुझे कुछ दूसरा काम करने के बारे में सोचना पड़ा था.
पर साल 2004 में मेरी शादी हो गई थी और उस के बाद मेरे पहले अलबम का एक गाना ‘फुलकारी’ जबरदस्त हिट हो गया था.
सुना है कि ‘फुलकारी’ गाना पंजाब में शादीब्याह के मौके पर खूब बजाया जा रहा था, पर लोगों को पता ही नहीं था कि इसे आप ने गाया है?
उस वक्त के हालात आज की तरह के नहीं थे. अब हर गाने का म्यूजिक वीडियो भी बनता है, जिस के सोशल मीडिया पर पोस्ट होते ही वह वायरल हो जाता है और गायक का नाम हो जाता है. लोग उसे चेहरे से भी पहचानने लगते हैं.
अभी फिल्म ‘जुगजुग जियो’ में मेरा एक गाना ‘नच पंजाबन..’ आया है. यह मेरा गाया हुआ पुराना पंजाबी गीत है, पर लोगों को पता ही नहीं था.
बौलीवुड में कलाकार की कद्र नहीं है. फिल्म वालों ने भी इस बात को हाईलाइट नहीं किया कि यह गाना किस का गाया हुआ है.
आप ने संगीत में कई प्रयोग किए हैं. आप को इस तरह के प्रयोग करने की प्रेरणा कहां से मिलती है?
मैं बहुत ही अलग तरह का संगीत ले कर आया हूं. मैं ने बहुत ही अलग तरह की फिल्में की हैं. मैं ने पंजाबी के लिए गाना ‘अंगरेजी बीट…’ बनाया था, पर वह साल 2012 में हिंदी फिल्म ‘कौकटेल’ में आया. जब हम ने यह गाना बनाया था, उस वक्त हमें पता नहीं था कि यह गाना इस लैवल तक आ जाएगा.
इसी तरह से मैं ने पंजाबी फिल्मों में भी एक नया दौर शुरू किया. पंजाब में कौमेडी फिल्में ज्यादा कामयाब नहीं होती थीं. उन दिनों रोमांटिक फिल्में बन रही थीं, जो एनआरआई लोगों को ध्यान में रख कर ही बनाई जाती थीं. मगर मैं ने कौमेडी फिल्म ‘कैरी औन जट्टा’ बनाई, जो सुपरडुपर हिट रही थी.
जब मैं यह फिल्म बना रहा था, तब सभी मुझ से कह रहे थे कि मैं यह गलत फिल्म बना रहा हूं, पर जब वह फिल्म हिट हुई तो दूसरे लोग भी कौमेडी फिल्में बनाने लगे.
क्या पंजाब में एनआरआई टारगेट वाली फिल्में बनने की मूल वजह बड़ी तादाद में पंजाबियों का विदेशों में बसना है?
मुझे लगता है कि इस का उलटा हो रहा था. फिल्में एनआरआई पर बनती थीं. एक एनआरआई बंदा पंजाब आया. उस ने यहां शादी की और दुलहन को ले कर वहां गया. पर अब मैं देख रहा हूं कि जो बंदे पंजाब छोड़ कर विदेशों में बैठे हुए हैं, वे सभी पंजाब को बहुत याद कर रहे हैं. वे जानना चाहते हैं कि पंजाब में उन के अपने शहर या गांव की गलियों में क्या हो रहा है.
अगर हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की बात करें, तो वहां तकरीबन हर कलाकार दावा करता है कि वह स्क्रिप्ट पढ़ कर फिल्म चुनता है. इस के बावजूद भी फिल्में नाकाम क्यों हो जाती हैं?
सभी कलाकार झूठ बोलते हैं. मैं जब से इस फील्ड में हूं, तब से मैं स्क्रिप्ट रीडिंग, डायरैक्टर के साथ मीटिंग के वक्त भी बैठता हूं. मैं खुद लिखता हूं, तो मुझे हर पटकथा को पढ़ने में मजा आता है, मगर हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में कलाकार काफी बिजी हैं. वे सिर्फ अपने पैसे की बात करते हैं. कई हीरोहीरोइनों ने कहानी तक नहीं सुनी होती है.
मैं तो कई बार सुनता हूं कि हिंदी फिल्मों में कई कलाकार अपने डायलौग तक याद नहीं करते हैं. उन के लिए एक आदमी दूर बोर्ड ले कर खड़ा होता है, जिस पर उस कलाकार के डायलौग लिखे होते हैं और कलाकार उन्हें पढ़ कर बोल देता है. अब आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं कि इस तरह पढ़े गए डायलौग कितने नकली लगते होंगे.
क्या आप के अंदर जो लेखक था, उसे जगाने का काम फिल्म ‘अरदास’ ने किया और उस के बाद आप ने 9-10 फिल्में लिख डालीं?
बचपन से ही मुझे कहानियां गढ़ने की आदत रही है. मसलन, बचपन में मैं कभी घर से बाहर गया और किसी से झगड़ा हो गया और चोट लग गई, तो घर आ कर मैं सच बताने के बजाय एक रोचक कहानी गढ़ कर सुना देता था.
जब फिल्म ‘अरदास’ की पटकथा लिखने को कोई तैयार नहीं हुआ, तो मैं ने खुद ही लिख दी, जिस से मेरा लिखने का हौसला बढ़ गया. उस के बाद मैं ने 10 और फिल्में लिख डालीं.
फिल्म ‘यार मेरा तितलियां वरगा’ के कथानक में खास क्या है?
इस की कहानी के केंद्र में एक गरीब पतिपत्नी हैं, जिन के बीच बहुत प्यार है. मगर बेटा पैदा होने के बाद पत्नी घर के कामकाज और बेटे की देखभाल में इस कदर बिजी हो जाती है कि पति को कम समय दे पाती है. इस के चलते पतिपत्नी के संबंध में तनाव आ जाता है.
ऐसे वक्त में पति नकली पहचान के साथ सोशल मीडिया पर लड़कियों से चैटिंग करने लगता है. पत्नी भी स्मार्टफोन खरीद कर नकली पहचान के साथ सोशल मीडिया पर लड़कों से चैटिंग शुरू कर देती है.
इस फिल्म में पति का किरदार मैं ने निभाया है, जबकि पत्नी के किरदार में तनु ग्रेवाल हैं.
क्या आप मानते हैं कि सोशल मीडिया के आने के बाद इनसानी रिश्ते खत्म हुए हैं और झगड़े बढ़े हैं?
यह बात 300 फीसदी सच है, क्योंकि अब तकरीबन हर इनसान की दिलचस्पी उन चीजों में ज्यादा हो गई है, जिन का उस की जिंदगी में कोई माने ही नहीं है.
बेईमानी के काम करने वाले अकसर इतने ज्यादा अपराधी आदतों के शिकार हो जाते हैं कि हत्या करने से चूकते तक नहीं हैं और उन में से कुछ तो कानून के हत्थे चढ़ ही जाते हैं. फाइनैंस कंपनियों का काम इस देश में पूरी तरह बेईमानी का काम है. जो पैसा लगा कर मोटा ब्याज देने का वादा करते हैं वे आमतौर पर गुंडे किस्म के लोग होते हैं और जमा पैसे को हड़पना आम है. देशभर में लाखों लोग ऐसी कंपनियों में खरबों खो चुके हैं और नईनई कंपनियां खुल रही हैं, नएनए बेवकूफ मेहनत की या बेईमानी की कमाई उन में लगा रहे हैं.
इन को चलाने वाले चूंकि धोखा देना जानते हैं, ये अपनी बीवियों या प्रेमिकाओं से भी बेईमानी करते हुए हिचकते नहीं हैं. बेईमानी इन के खून का हिस्सा बन जाती है. दिल्ली के एक घने इलाके में सिंह ऐंड ब्रदर्स फाइनैंशियल कंपनी के मालिक अनुज को गिरफ्तार किया गया क्योंकि उसने अपनी प्रेमिका की हत्या कराई जो शादी के लिए दबाव डाल रही थी जबकि अनुज पहले से शादीशुदा था.
इस का मतलब है कि लोगों से फाइनैंस कंपनी के नाम पर पैसा जमा करने वाला अपनी बीवी से भी बेईमानी कर रहा था और प्रेमिका से भी. प्रेमिका चूंकि उसी दफ्तर में काम करती थी, उसे यह मालूम होगा ही कि अनुज शादीशुदा है पर वह पत्नी से पति छीन लेना चाहती थी, बेईमानी से.
जो धंधे टिके ही बेईमानी पर होते हैं उन में सभी बेईमान होते हैं और ‘शोले’ के गब्बर सिंह की तरह कब बौस का निशाना बन जाएं कहा नहीं जा सकता. ये फाइनैंस कंपनियों वाले सुंदर, सौम्य, मीठी बातें करने वाली लड़कियां रखते हैं ताकि ग्राहकों को फंसाया जा सके. अब ये लड़कियां बौस को फंसा लें या बौस इन्हें फंसा ले तो कोई आश्चर्य की बात नहीं क्योंकि इन की पूरी ट्रेनिंग ग्राहक को फंसा कर पैसा जमा करने की होती है. जो किसी से पैसा लेना जानता है या जानती है उसे किसी का जीवनसाथी या किसी का दिल लूटना भी आता है.
बहुत से अपराध इसी वजह से होते हैं. कई सैक्सुअल हैरेसमैंट केसों के पीछे यही लूटने की खून में भरी आदत हो जाती है.
भारतीय जनता पार्टी की एक स्पोक्सपर्सन सोनाली फोगाट की हत्या का शक भी इसी गिनती में आ सकता है. वह अपने बौयफ्रैंड्स के साथ गोवा के किसी पब में गई थी जहां शायद उसे ड्रिंक में कुछ पिलाया गया जिस से उस की मौत हो गई. राजनीति में लगे लोगों के पास इतने पैसे, इतना समय आखिर आता कैसे है कि वे गोवा में सैरसपाटे कर सकें. राजनीति और वह भी भारतीय जनता पार्टी की तो साफसुथरी है. वहां तो कंदमूल खा कर जीने का उपदेश दिया जाता है.
सोनाली फोगाट की हत्या भी उसी वजह से होना मुमकिन है क्योंकि जो उस के साथ गए थे, कोई सगेसंबंधी नहीं थे. अब वे सब गिरफ्तार कर लिए गए हैं.
शराफत कोई खास गुण नहीं है. यह अपने बचाव का कवच है. दूसरों को न लूटने का मतलब है खुद को लूटे न जाने देना. यह हर शरीफ समझ जाता है कि मजबूत होने के बाद भी कैसे शरीफ बना रहा जाए.
‘गजोधर भैया’ और ‘पुत्तन’ को लाइमलाइट में लाने वाले मशहूर कौमेडियन राजू श्रीवास्तव ने 58 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया. वे 10 अगस्त, 2022 को कार्डियक अरैस्ट के बाद से दिल्ली के एम्स में भरती थे. उन्हें उस समय कार्डियक अरैस्ट आया था, जब वे दिल्ली के एक जिम में कसरत कर रहे थे. उन्होंने 21 सितंबर, 2022 को आखिरी सांस ली.
राजू श्रीवास्तव का जन्म उत्तर प्रदेश के कानपुर में 25 दिसंबर, 1963 को हुआ था. उन का पूरा नाम सत्यप्रकाश श्रीवास्तव था. उन्हें बचपन से ही मिमिक्री और कौमेडी करने का शौक था. उन्हें यह प्रेरणा अपने पिता रमेशचंद्र श्रीवास्तव से मिली थी, जो एक हास्य कवि थे.
राजू श्रीवास्तव ने तंगहाली में आटोरिकशा भी चलाया था. कानपुर में वे बर्थडे पार्टी में कौमेडी करते थे, जिस के एवज में उन्हें 50 या 100 रुपए तक का इनाम भी मिलता था.
शुरू में कौमेडी के बलबूते ही राजू श्रीवास्तव कानपुर में मशहूर हुए और इस के बाद वे मुंबई चले गए और मेहनत के बल पर अपनी एक अलग पहचान बनाई. उन्होंने साल 1993 में अपनी प्रेमिका शिखा से शादी की और 2 बच्चों के पिता बने.
राजू श्रीवास्तव भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उन की कौमेडी को लोग हमेशा सुनना और देखना पसंद करेंगे. कोविड 19 के समय वे अपने फ्लैट पर या दालान में अकेले बैठ कर हमेशा कौमेडी वाले वीडियो बनाते रहे थे.
विनम्र और हंसमुख राजू श्रीवास्तव से एक इंटरव्यू में जब उन के काल्पनिक पात्र ‘गजोधर भैया’ के बारे में पूछा गया, तब उन्होंने बताया था कि ‘गजोधर भैया’ कोई काल्पनिक किरदार नहीं है, बल्कि वे असली में थे.
दरअसल, राजू श्रीवास्तव का ननिहाल बेहटा सशान में था. वहां पर एक बुजुर्ग गजोधर रहते थे, जो रुकरुक कर बोलते थे. उन्हीं का किरदार राजू ने अपनाया और उस किरदार को लोगों ने भी बहुत पसंद किया.
मुंबई जा कर शुरुआती दौर में राजू श्रीवास्तव को काफी स्ट्रगल करना पड़ा. पहले उन्हें फिल्मों में छोटीछोटी भूमिकाएं मिला करती थीं. इस के बाद उन्हें एक कौमेडी शो में ब्रेक मिला. फिर उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा.
राजू श्रीवास्तव ने डीडी नैशनल के शो ‘टी टाइम मनोरंजन’ से ले कर ‘द ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेंज’ से लोगों के दिलों में अपनी खास पहचान बनाई और अपने मजाकिया लहजे के चलते इस शो के वे सैकंड रनरअप भी रहे.
राजू श्रीवास्तव की कौमेडी को लोग इसलिए भी पसंद करते हैं, क्योंकि उस में रोजमर्रा की जिंदगी का जिक्र होता है और कोई भी उस से रिलेट कर सकता है. इस की वजह के बारे में उन का कहना था कि हमारे आसपास कई ऐसी चीजें होती हैं, जिन से आप को कौमेडी मिलती है. उन्हें कहीं खोजना नहीं पड़ता.
राजू श्रीवास्तव के जद्दोजेहद के दिन तब खत्म हुए, जब उन्होंने स्टेज शो, टीवी के कौमेडी शो और फिल्मों के अलावा अवार्ड शो होस्ट किए. वे अकेले ही दर्शकों को हंसा सकते थे. उन्होंने लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव, लाल कृष्ण आडवाणी, अमिताभ बच्चन जैसे कई बड़े लोगों की मिमिक्री की थी.
एक बार राजू श्रीवास्तव ने लालू प्रसाद यादव के सामने ही उन की मिमिक्री की थी, जिस पर लालू प्रसाद यादव ने हंसते हुए कहा था कि अगर उन की मिमिक्री से किसी का पेट भरता है, तो उन्हें कोई एतराज नहीं है.
राजू श्रीवास्तव मिमिक्री के दौरान कोई हलकी बात करना पसंद नहीं करते थे. एक जगह उन्होंने कहा था कि कौमेडी करते समय किसी की भावना को आहत न करना और लोगों की आम जिंदगी से जुड़ी बातों को मजाकिया लहजे से पेश करने पर ही उन का फोकस होता है, ताकि पूरा परिवार उन की कौमेडी का साथ मिल कर मजा ले सके.
आज राजू श्रीवास्तव हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उन के मजाक से भरे शो को हम सभी मिस करेंगे. लोगों को खुशी देना ही उन का मकसद रहा था.
‘‘शुरूशुरू में खाना बनाते समय ऐसा ही होता है,’’ फिर आनंदजी की पत्नी रामेश्वरी ने आपबीती सुनाई.
मंजरी ने मेज पर नमकीन, मिठाई और चाय रखी. कमलनाथ कह रहे थे, ‘‘तो समीर कल का पक्का है न? भाभीजी, कल सवेरे 7 बजे पिकनिक पर चलना है आप दोनों को. 30-40 मील की दूरी पर एक बहुत सुंदर जगह है. वहां रेस्ट हाउस भी है. सब इंतजाम हो गया है. मैं आप दोनों को लेने 7 बजे आऊंगा.’’
समीर और मंजरी ने एकदूसरे की तरफ देखा. फिर उसी क्षण समीर बोला, ‘‘ठीक है, हम लोग चलेंगे.’’
थोड़ी देर बाद जब सब चले गए तो समीर ने मंजरी से कहा, ‘‘तुम इतना अच्छा खाना बनाती हो, फिर भी सब के सामने झूठ क्यों बोलीं?’’
‘‘आप को मेरा बनाया खाना अच्छा लगता है?’’
‘‘बहुत,’’ समीर ने कहा.
दोनों की नजरें एक क्षण के लिए एक हो गईं. फिर दोनों अपनेअपने कमरे में चले गए.
लेकिन थोड़ी ही देर बाद तेज आंधी के साथ मूसलाधार बारिश होने लगी. बिजली चली गई. समीर को खयाल आया कि मंजरी अकेली है, कहीं डर न जाए.
वह टार्च ले कर मंजरी के कमरे के सामने गया और उसे पुकारने लगा. मंजरी ने दरवाजा खोला और समीर को देख राहत की सांस ले बोली, ‘‘देखिए न, ये खिड़कियां बंद नहीं हो रही हैं. बरसात का पानी अंदर आ रहा है.’’
समीर ने टार्च उस के हाथ में दे दी और खिड़कियां बंद करने लगा. खिड़कियों के दरवाजे बाहर खुलते थे. तेज हवा के कारण वह बड़ी कठिनाई से उन्हें बंद कर सका.
‘‘तुम्हारा बिस्तर तो गीला है. सोओगी कैसे?’’
‘‘मैं गद्दा उलटा कर के सो जाऊंगी.’’
‘‘तुम्हें डर तो नहीं लगेगा?’’
मंजरी कुछ नहीं बोली. समीर ने अत्यंत मृदुल आवाज में कहा, ‘‘मंजरी.’’ और उस ने उस की तरफ बढ़ने को कदम उठाए. फिर अचानक वह मुड़ा और अपने कमरे में चला गया.
दूसरे दिन सवेरे 7 बजे दोनों नहाधो कर पिकनिक के लिए तैयार थे. इतने में कमलनाथ भी जीप ले कर आ पहुंचे. समीर उन के पास बैठा और मंजरी किनारे पर. मौसम बड़ा सुहावना था. समीर और कमलनाथ में बातें चल रही थीं. मंजरी प्रकृति का सौंदर्य देखने में मगन थी.
अब रास्ता खराब आ गया था और जीप में बैठेबैठे धक्के लगने लगे थे.
‘‘तुम इतने किनारे पर क्यों बैठी हो? इधर सरक जाओ,’’ समीर ने कहा.
लज्जा से मंजरी का चेहरा आरक्त हो उठा. उसे सरकने में संकोच करते देख समीर ने उस का हाथ अपने हाथ में ले लिया और धीरे से उसे अपने पास खींच लिया. मंजरी ने भी अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश नहीं की.
शाम 7 बजे घर लौटे तो दोनों खुश थे. पिकनिक में खूब मजा आया था. दोनों ने आ कर स्नान किया और गरमगरम चाय पीने हाल में बैठ गए. समीर बातचीत करने के लिए उत्सुक लग रहा था. ‘‘रात के खाने के लिए क्या बनाऊं?’’ मंजरी ने पूछा तो उस ने कहा, ‘‘बैठो भी, जल्दी क्या है? आमलेटब्रेड खा लेंगे.’’ फिर उस ने अचानक गंभीर हो कर कहा, ‘‘मंजरी, मुझे तुम से कुछ पूछना है.’’
‘‘पूछिए.’’
‘‘मंजरी, इस शादी से तुम सचमुच खुश हो न?’’
‘‘मैं तो बहुत खुश हूं. खुश क्यों न होऊं, जब मेरे हाथ आप जैसा रत्न लगा है.’’
खुशी से समीर का चेहरा खिल उठा, ‘‘और मेरे हाथ भी तो तुम जैसी लक्ष्मी लगी है.’’
दोनों ही आनंदविभोर हो कर एकदूसरे को देखने लगे. शंका के
सब बादल छंट चुके थे. तनाव खत्म हो गया था.
इतने में कालबेल बजी. समीर उठ कर बाहर गया.
मंजरी सोच रही थी कि अगले दिन सवेरे वह सासससुर को फोन कर के यह खुशखबरी देगी.
‘‘मंजरी…मंजरी,’’ कहते हुए खुशी से उछलता समीर अंदर आया.
‘‘इधर आओ, मंजरी, देखो, तुम्हारा एम.ए. का नतीजा आया है.’’
दौड़ कर मंजरी उस के पास गई. लेकिन समीर ने आसानी से उसे तार नहीं दिया. मंजरी को छीनाझपटी करनी पड़ी. तार खोल कर पढ़ा :
‘‘हार्दिक बधाई. योग्यता सूची में द्वितीय. चाचा.’’
खुशी से मंजरी का चेहरा चमक उठा. तिरछी नजर से उस ने पास खड़े समीर की तरफ देखा.
समीर ने आवेश में उसे अपनी ओर खींच लिया और मृदुल आवाज में कहा, ‘‘मेरी ओर से भी हार्दिक बधाई. तुम जैसी होशियार, गुणी और सुंदर पत्नी पा कर मैं भी आज योग्यता सूची में आ गया हूं, मंजरी.’’
इस सुखद वाक्य को सुनते ही मंजरी ने अपना माथा समर्पित भाव से समीर के कंधे पर रख दिया. उस की तपस्या पूरी हो गई थी.