लेजर दिला रहा है चश्मे से छुटकारा…जानें कैसे

मायोपिया में आईबौल का आकार बढ़ जाता है जिस से रेटिना पर सामान्य फोकस पहुंचने में दिक्कत होती है जिसे चश्मे या लेंस के द्वारा ठीक किया जा सकता है.

आई बौल का आकार बढ़ने से फोकस सामान्य से थोड़ा पीछे शिफ्ट हो जाता है जिस से धुंधला दिखाई देने लगता है. आईबौल का आकार हम बदल नहीं सकते इसलिए लेज़र से कार्निया के उतकों को रिशेप कर के उस के कर्व को थोड़ा कम कर फोकस को शिफ्ट कर देते हैं.

लेसिक लेजर

आंखों की समस्याओं के लिए लेसिक लेजर एक उच्चतम और सफल तकनीक है. इस का पूरा नाम लेजर असिस्टेड इनसीटू केरेटोमिलीएसिस है जो मायोपिया के इलाज की एक बेहतरीन तकनीक है. इस तकनीक का प्रयोग दृष्ट‍ि दोषों को दूर करने के लिए किया जाता है. यह उन लोगों के लिए बेहद प्रभावी है जो चश्मा या कॉन्टेक्ट लेंस लगाते हैं.

लेसिक लेज़र सर्जरी में फैक्टो लेज़र मशीन के द्वारा कार्निया की सब से उपरी परत जिसे फ्लैप कहते हैं को हटा दिया जाता है. अब इस के नीचे स्थित उतकों पर लेज़र चला कर उन के आकार को बदला जाता है ताकि वो रेटिना पर ठीक तरह से लाइट को फोकस कर सके. उतकों को ठीक करने के पश्चात कार्निया के फ्लैप को वापस उस के स्थान पर रख दिया जाता है और सर्जरी पूरी हो जाती है.

लेसिक लेज़र को विश्व की सब से आसान सर्जरी माना जाता है. केवल कुछ सेकंड्स तक एक लाइट को देखना होता है और ऑपरेशन के तुरंत बाद दिखाई देने लगता है. -1 से -8 नंबर तक के लिए यह बहुत उपयोगी है लेकिन उस से अधिक के लिए यह तकनीक इस्तेमाल नहीं की जाती है. +5 नंबर तक भी इस के अच्छे परिणाम मिल जाते हैं . इसे रिस्क फ्री सर्जरी माना जाता हैं.

लेसिक लेज़र की प्रक्रिया

लेसिक लेज़र 3 दिन का प्रोसेस है. पहले दिन डॉक्टर यह जांच करते हैं कि आप लेज़र सर्जरी के लिए फिट हैं या नहीं. दूसरे दिन सर्जरी की जाती है और तीसरे दिन फॉलोअप लिया जाता है. इस प्रक्रिया के लिए तीनों चरण ही महत्वपूर्ण हैं क्यों कि इन के बिना बेहतर परिणाम नहीं मिलते हैं.

प्री-लेज़र चेक-अप

लेज़र सर्जरी के पहले प्री-लेज़र चेक-अप किया जाता है. इस में दो से तीन घंटे का समय लग सकता है क्यों कि 6-8 टेस्ट किए जाते हैं. जिन में विज़न टेस्ट, ड्राय आईस. टोपोग्रॉफी, कार्नियल थिकनेस, कार्नियल मेपिंग, आई प्रेशर आदि सम्मिलित हैं. डायलेशन के लिए आई ड्रॉप डाली जाती है, जिस से दो-तीन घंटे तक आप को थोड़ा धुंधला दिखाई दे सकता है.

लेसिक सर्जरी के पहले एंटी-बायोटिक ड्रॉप दी जाती है जिसे सर्जरी के एक दिन पहले आप को दिन में छह बार डालना होता है.

लेज़र सर्जरी

जब आप को सर्जरी के लिए फिट घोषित कर दिया जाता है तभी अगले दिन लेज़र सर्जरी की जाती है. यह केवल 5-10 सेकंड का काम है, लेकिन आप को 1-2 घंटे लग सकते हैं क्यों कि ऑपरेशन के पहले और बाद में कुछ औपचारिकताएं पूरी करनी होती हैं. जब सर्जरी कराने के लिए जाएं तो नहा कर, सिर धो कर जाएं क्यों कि सर्जरी के पश्चात आप को सिर नहीं झुकाना है. कोई मेकअप, कॉस्मेटिक्स, और परफ्यूम न लगाएं. अपने किसी दोस्त या रिश्तेदार को साथ ले कर जाएं क्यों कि सर्जरी के कुछ घंटो बाद तक धुंधला दिखाई दे सकता है.

सर्जरी के पश्चात ग्लेयर से बचने के लिए अपने साथ डार्क गॉगल जरूर ले कर जाएं.

फौलो-अप

तीसरे दिन फौलो-अप लिया जाता है. इस में डाक्टर आप का विज़न चेक करेगा ताकि पता लगाया जा सके कि सर्जरी कितनी सफल रही है. लेज़र सर्जरी के पश्चात पहला फौलो-अप बहुत जरूरी है.

कौन सी तकनीक है बेहतर

लेसिक लेज़र के लिए सात अलगअलग तकनीकें इस्तेमाल की जाती हैं. ब्लेडलेस लेसिक, स्माइल और कंटूरा विज़न को सब से अच्छा माना जाता है क्यों कि इन में परिणाम बहुत अच्छे मिलते हैं. लेकिन अगर आप का बज़ट कम है तब भी आप को एसबीके क्यु तो कराना ही चाहिए.

कौन करा सकता है लेसिक लेज़र

1 .जिन की उम्र 18 वर्ष से अधिक है क्यों कि इस उम्र तक आतेआते ग्रोथ हार्मोन्स का स्त्राव रूक जाता है और आईबौल्स का आकार नहीं बढ़ता है.

२. पिछले छह महीने से चश्मे के नंबर में बदलाव न आया हो.

3 .महिला गर्भवती न हो. न ही बच्चे को स्तनपान करा रही हो.

4 . चश्मे के अलावा आंखों से संबंधित कोई दूसरी समस्या न हो.

5 .आप कोई ऐसी दवाई न ले रहे हों जो इम्यून सिस्टम को प्रभावित करती है जैसे कार्टिकोस्टेरौइड या इम्यूनो सपरेसिव ड्रग्स.

साइड इफेक्ट्स

सामान्यता यह सुरक्षित सर्जरी है और इसके कोई साइड इफेक्ट्स नहीं हैं. लेकिन कईं लोगों में सर्जरी के पश्चात ये समस्याएं हो सकती हैं;

1. फोटोफोबिया (रोशनी को सहन न कर पाना).

2. आंखों से पानी आना.

3. आंखों में ड्रायनेस.

4. आंखों में लालपन.

5. आंखों में दर्द होना.

6. किसी भी इमेज के आसपास हैलोस दिखाई देना.

7. रात में गाड़ी चलाने में परेशानी आना.

8. विज़न में उतारचढ़ाव होना.

अधिकतर लोगों में यह समस्याएं अस्थायी होती हैं और 2-3 दिन में अपने आप ठीक हो जाते हैं. अगर 2-3 दिन बाद भी कोई समस्या हो तो डॉक्टर को दिखाएं. वैसे सर्जरी के पश्चात साइड इफेक्ट्स से बचने के लिए ल्युब्रिकेंटिंग ड्रौप दी जाती हैं, जिसे तीन महीने तक दिन में चार बार डालना होता है.

लेज़र कराने के बाद रखें सावधानी

1. पहले दो दिन ड्रायविंग न करें.

2. दिन में डार्क गौगल्स लगाएं.

3. शुरूआती 1-2 दिन घर के अंदर ही रहें.

4. पहले दिन ही आप कम्प्युटर पर काम कर सकते हैं, लेकिन अधिक देर तक न करें. 2 दिन में आप अपना सामान्य कार्य कर सकते हैं.

5. सर्जरी के पश्चात अगले दिन पहले फौलो-अप के लिए डॉक्टर के पास जरूर जाएं.

6. दो सप्ताह तक भारी काम जैसे जौगिंग, वेट लिफ्टिंग, स्विमिंग, जिमिंग आदि न करें,

7. दो सप्ताह तक कौस्मेटिक्स और मेकअप का इस्तेमाल न करें.

8. सर्जरी के पश्चात आपको ग्रीन शील्ड्स दी जाती हैं, जिन्हें आपको अगली दो रातों तक पहनना होता है.

कितना कारगर है लेसिक लेज़र

लेसिक लेज़र में रिस्क बहुत कम होता है. सर्जरी के पहले कईं जांचे करने के पश्चात जब आप को फिट घोषित किया जाता है तभी लेज़र सर्जरी की जाती है वर्ना आप को अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा. इस सर्जरी में कोई दर्द नहीं होता क्यों कि न तो कोई इंजेक्शन लगाया जाता है न ही ब्लेड का इस्तेमाल किया जाता है. चूंकि पूरी सर्जरी में कोई चीरा नहीं लगाया जाता इसलिए टांके लगाने और बैंडेज की जरूरत नहीं पड़ती है.

आई 7 चौधरी आई सेंटर के डॉ राहिल चौधरी से की गई बातचीत पर आधारित…

मेरे पति के मेरे अलावा 2 महिलाओं के साथ संबंध हैं, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं विवाहित युवती हूं. मेरे पति के मेरे अलावा 2 महिलाओं के साथ संबंध हैं. मैं बहुत परेशान हूं और मुझे आपसे बहुत उम्मीद है. कृपया बताएं कि मैं ऐसा क्या करूं जिस से अपने पति को उन युवतियों के चंगुल से बचा सकूं?

जवाब

लगता है, आप अपनी घरगृहस्थी में कुछ ज्यादा ही व्यस्त हो पति के प्रति लापरवाह होती गईं. घर में अपेक्षित प्यार और तवज्जो न मिलने के कारण ही आप के पति ने बाहर दूसरी महिलाओं से संबंध बना लिए. उन्हें वापस पाने के लिए आप को अब थोड़े धीरज से काम लेना होगा.

पति जब भी घर आएं उन के साथ बिलकुल सामान्य व्यवहार करें. उन्हें तानेउलाहने न दें, न ही उन से लड़ाई झगड़ा करें, वरना वे घर आने से भी कतराने लगेंगे, जो आप के हित में नहीं होगा. पति जितनी देर घर रहें उन्हें भरपूर प्यार दें. धीरेधीरे उन का बाहर से वैसे भी मोहभंग हो जाएगा. विवाहित पुरुषों को युवतियां ज्यादा दिनों तक घास नहीं डालतीं, साथ ही अवैध संबंधों की मियाद भी ज्यादा लंबी नहीं होती. इसलिए चिंता छोड़ कर पति को वापस पाने के प्रयास में लग जाएं.

दीपावली: अंधविश्वास के उल्लू

हमारे देश की यह बलिहारी है की हम अच्छाई में भी बुराई ढूंढ लेते हैं और बुराई में भी अच्छाई. दीपावली का पर्व हर एक दृष्टिकोण से पावन और पवित्र है अंधेरे में भी उजाला इस भारतीय पर्व का निचोड़ है.
मगर दीपावली पर्व में अमावस्या पर तंत्र मंत्र साधना और बलि की कहानियां सच्चे किस्सों में शामिल है तो दूसरी तरफ दीपावली में जुआ खेलना एक ऐसी परंपरा है जो अंधविश्वासों से भरी हुई है कि इस दिन तो जुआ खेलना ही चाहिए. जो यह बताती है कि भारतीय समाज किस तरह आधुनिक युग में भी अंधविश्वास में डूबा हुआ है और इसके लिए आवश्यकता है निचले तबके तक जन जागरूकता अभियान की.
दरअसल दीपावली यह संदेश देती है कि हमें जीवन को उज्जवल कैसे बनाना चाहिए. दूसरी तरफ मुंढ मगज लोगों का एक बहुत बड़ा तबका तरह-तरह के अंधविश्वास में जी रहा है.
चाहे उत्तर प्रदेश हो या बिहार या फिर संपूर्ण देश दीपावली को लेकर के हर समाज और प्रदेश में कुछ गहरे अंधविश्वास फैले हुए हैं.
इसका सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि जब दीपावली में पटाखों के प्रदूषण के कारण उन पर रोक लगाने का आदेश हुआ तो मानो धर्म पर संकट आ गया. हिंदुत्व का सिहासन हिलने लगा.
यह सब देख कर के शर्म आती है कि भारत जैसे महान राष्ट्र में कैसी क्षुद्र बुद्धि के लोग कैसी कैसी बातें प्रसारित करते जाते हैं.
अगर हम बात दक्षिण भारत की करें तो दीपावली के समय दक्षिण भारत की यह परंपरा है जिसका कि कथित तौर पर दाक्षडात्य ब्रित और रावण संहिता नामक शास्त्रों में उल्लेख है कि उल्लू की बलि दिए जाने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं…!
अगर धार्मिक ग्रंथों का ही उदाहरण दिया जाए रामायण चाहे वह वाल्मीकि की हो या तुलसीदास की उनमें भी कुछ ऐसी ऐसी बातें लिखी गई है जो अंधविश्वास को बढ़ावा देती हैं और वैज्ञानिक चेतना से दूर है.

कुल मिलाकर दीपावली में उल्लू बलि का मामला अशिक्षा के ही कारण है मगर ऐसे भी बौद्धिक लोग हैं जिनका मानना है कि लक्ष्मी का वाहन कहे जाने वाले उल्लू की जब आप बलि देंगे तो मां लक्ष्मी भला कैसे प्रसन्न हो सकती हैं.
दरअसल, कुछ जगहों पर तांत्रिक जादू- टोना आदि तंत्र विद्या प्राप्ति के लिए उल्लू की बलि देते हैं. जबकि सच्चाई यह है कि किसी भी प्राणी की बलि देना एक पाप है और यह किसी भी धर्म ग्रंथ के अनुसार आवश्यक नहीं है कि अपने लाभ के लिए किसी की हानि पंहुचाई जाए .
इस संदर्भ में हमने अनेक लोगों से बातचीत की जिसमें विधि विद्वान, समाज सेवा से जुड़े हुए राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता और साधारण कामकाजी लोग. बातचीत का निष्कर्ष यह सामने आया है कि दरअसल कुछ लोग पैसों की लालच में और अदृश्य शक्तियों को प्राप्त करने के लिए दिवाली की अमावस्या की रात तंत्र मंत्र के लिए साधना करते हैं और उल्लू की बलि चढ़ाते हैं. जिसका एकमात्र कारण अशिक्षा और अंधविश्वासी है. समाज में अगर इसके लिए पहल की जाए और जानकारियां दी जाए तो यह समाप्त हो सकता है.

दीपावली और दीवाला

वस्तुत: दीपावली का पर्व जन जन के लिए खुशियां लेकर आता है, लेकिन इस मौके पर पर्यावरण संतुलन के लिए एक महत्वपूर्ण पक्षी उल्लू अंधविश्वास की भेंट चढ़ जाते हैं. कुछ लोग तंत्र मंत्र साधना के नाम पर उल्लू की बलि चढ़ाते हैं और जब भी हासिल नहीं होता तो हाथ मल कर रह जाते हैं. ऐसे मूर्ख लोग होते हैं जो दूसरे साल प्रयास करते हैं मगर यह नहीं समझ पाते कि सच्चाई यह है कि किसी भी पक्षी चाहे वह उल्लू हो की बलि चढ़ा कर के आपको कुछ हासिल नहीं हो सकता.
इस दफा दिवाली से पूर्व उल्लू के संरक्षण के लिए विश्व वन्यजीवन कोष (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ भारत ) ने जागरूकता के माध्यम प्रयास किया है कि उल्लू की बलि रुक जाए और तस्करी बंद हो .

देश में उल्लू के विषय में यह झूठ प्रचलित है कि अगर दीपावली धन-संपदा में वृद्धि करनी है तो उल्लू की बलि चढ़ा दो . ऐसे में कई अपढ़ जाहिल लोग इस पावन पर्व पर अपने स्वार्थ के लिए उल्लू बलि चढ़ाते हैं मगर उन्हें कुछ भी हासिल नहीं होता क्योंकि बलि एक ऐसी झूठी धारण है जिसका कोई वैज्ञानिक अस्तित्व नहीं है.
दरअसल, हमारे देश में दीपावली पर के इर्दगिर्द काफी संख्या में इस पक्षी को जान से हाथ धोना पड़ता यह है. डब्ल्यूडब्ल्यूएफ भारत के एक नए आलेख में कहा गया है कि देश में उल्लू की 36 प्रजातियां पाई जाती हैं और इन सभी को भारत के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत शिकार, कारोबार या किसी प्रकार के उत्पीड़न से संरक्षण मिला हुआ है .

सच तो यह है कि दीपावली पर त्यौहार जुआ खेल करके लोग अपना दिवाला निकालने का काम भी करते हैं. दिवाली के समय में विशेष रुप से मारवाड़ी समाज के लोग आज भी जुआ खेलना शुभ मानते हैं और इसके बैगर दिवाली को दिवाली नहीं समझते यह समझ और दृष्टि इस सत्य को अंकित करती है कि समाज का एक ऐसा वर्ग जो धनाढ्य वर्ग में शामिल है किस तरह पुरातन पंथी सोच में आज भी डूबा हुआ है. जुआ के कारण ही दिवाली के दिन जाने कितने लोग बर्बाद भी हो जाते हैं.
आज सबसे बड़ी आवश्यकता है इस सत्य को समझने की कि अगर हमें स्वयं अपने परिवार को सुरक्षित और विकसित बनाना है तो इन सब बुराइयों से दूर रहें क्योंकि यह बुराइयां सिर्फ हमारे जीवन में अंधेरा लाती है.

सूर्य ग्रहण और अंधविश्वास के उल्लू

संसार में ऐसी बहुत सी घटनाएं है जो नियति है उनसे घबरा करके शुतुरमुर्ग की तरह अपना सर छुपा लेना क्या जायज है. हां, यह भी ठीक है कि जब विज्ञान का आविर्भाव नहीं हुआ था और हमारे देश में अशिक्षा और पुरातन पंथी समाज था तब तक तो सूर्यग्रहण को लेकर के जो भी किंवदंतियां थी उन्हें आम आदमी सर झुका कर के मान लेता था. मगर आज 21 वी शताब्दी में सूर्य ग्रहण को लेकर के भारतीय समाज में जो रुख दिखाई दे रहा है वह चकित करने वाला है और यह सवाल आज हमारे सामने है कि क्या हम आज भी अंधविश्वास के उल्लू बने हुए हैं. विज्ञान की प्रगति के बाद भी अगर हम चंद धार्मिक झंडाबरदारों के चंगुल में बुरी तरह फंसे हुए हैं तो यह एक बड़ी चिंता का सबब है और आने वाले समय में इसका नुकसान समाज और देश को होने की पूरी संभावना है. इसलिए आज इस आलेख में हम कुछ ऐसे प्रश्न उठा रहे हैं जो हमें चिंतित कर रहे हैं और समाज और देश की सरकार को, बौद्धिक वर्ग को चाहिए कि इन पर चिंतन करें और समाज में एक बदलाव लाने का प्रयास किया जाए ताकि आने वाले समय में सूर्य ग्रहण जैसी घटनाओं को लेकर के भय और अफवाहों का वातावरण नहीं बनना चाहिए. इसे विज्ञान के अनुसार एक घटना मान करके हमें सहज भाव से स्वीकार करना चाहिए क्योंकि सबसे बड़ा सवाल यह है कि आने वाली पीढ़ी सूर्यग्रहण को लेकर के क्या प्रतिक्रिया व्यक्त करेंगी.

मंदिरों के द्वार बंद हो गए

दरअसल, हमारा समाज धर्म से संचालित होने वाली ऐसी इकाईयां है जो धर्म के बिना अपने अस्तित्व की कल्पना नहीं करता. और ऐसे में धर्म के चंद ठेकेदार जो कहते हैं समाज उन्हें के कथन पर विश्वास करता है और आगे पीछे देखे बिना दौड़ पड़ता है. यह एक विद्रूप सच है कि धार्मिक हुए बैगर समाज और उसकी इकाई अपने अस्तित्व को मानो शून्य मानते हैं और उसी रास्ते पर आंख बंद करके चलते हैं.
यहां हम कार्ल मार्क्स को स्मरण करते हुए उनका सुप्रसिद्ध वाक्य उद्धृत कर रहे हैं उन्होंने कहा था कि धर्म अफीम की मानिंद होता है. उनका यह प्रसिद्ध कथन पूरी दुनिया में चर्चित है और मानव सभ्यता को उद्वेलित करता रहता है मगर इसके बावजूद धर्म की जकड़न ऐसी है कि भारतीय मानव समाज उससे बाहर नहीं निकल पा रहा है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण एक बार पुनः 25 अक्टूबर को दिखाई दिया जब सूर्य ग्रहण की घटना घटित हुई जैसा कि सदैव होता रहा है. सूर्य ग्रहण के समय वही सब कुछ हुआ जो हर हमेशा होता रहा है लोग अपने घरों में दुबक गए धार्मिक ग्रंथों का पाठ होने लगा. यहां तक की चारो धार्मिक केंद्रों के द्वार बंद हो गए लाखों लोग पवित्र कही जाने वाली नदियों में स्नान करने लगे और गर्भवती महिलाओं को यह कर करके घर में निकलने से मनाही की गई कि इससे नवजात शिशु पर असर होता है.
इस संपूर्ण घटनाक्रम पर अगर आप दृष्टि बात करेंगे तो पाते हैं कि आज के समय में भी विज्ञान को मानने की जगह धर्म की ही जय जयकार है फिर चाहे यह धर्म हमें कूप मंडूक ही सिद्ध क्यों ना करता हो.
यहां सबसे बड़ा सच यह भी है कि जहां हमें विज्ञान का लाभ मिलता है, वहां विज्ञान के सारे लाभ लेने से कोई गुरेज नहीं करते है.

टीवी एक्टर शालीन मल्होत्रा और रोहित सुचांती के दिल के बहुत करीब है ‘प्यार तूने क्या किया’

भारत का पसंदीदा युवा चैनल ज़िंग अपने प्रतिष्ठित शो ‘प्यार तूने क्या किया’ का एक नया सीज़न लॉन्च २२ अक्टूबर से लेकर आ रहा है . यह शो प्यार, रोमांस, दोस्ती और दिल टूटने के इमोशन से भरा हुआ है और इसका स्लोगन है  ‘हर लव है खास’ , जो सभी रूपों में प्यार के हर पहलू को दिखाने वाला है .

नए सीज़न के लॉन्च के बारे में बात करते हुए, ‘प्यार तूने क्या किया’ के सीज़न 8 के होस्ट के रूप में नज़र आए अभिनेता शालीन मल्होत्रा ने कहा कि “मुझे बहुत खुशी है कि यह शो अपने 13 वें सीज़न के लिए तैयार है. यह सबसे अच्छे शो में से एक है जिनका मैं कभी हिस्सा रहा हूं और अब इसका नया सीजन आ रहा है ,सच मानिये मुझे मेरे समय की सब बाते ताजा हो गई है . मैं नए सीजन को देखने के लिए बहुत उत्साहित हूं और टीम को ढेर सारी शुभकामनाएं देता हूँ .”

 

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इसके अलावा, अभिनेता रोहित सुचांती, जिन्हें कई सीज़न में देखा गया था, नए सीज़न के बारे में अपनी खुशी व्यक्त करते हैं और कहते हैं कि  “इतने सालों बाद भी,  शो का नाम लेते ही मुझे वो हर पल याद आता है जो मैंने सेट पर बिताये थे . अपने करियर के शुरुआती दिनों में मैंने यह शो किया था इस वजह से ‘प्यार तूने क्या किया’ का मेरे दिल में एक विशेष स्थान है जिसे मैं हमेशा संजो कर रखूंगा. यह शो अनूठी प्रेम कहानियों के बारे में है और मैं टीम को उनके नए सीजन के लॉन्च के लिए शुभकामनाएं देना चाहता हूं.”

 

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शालीन और रोहित की तरह, ‘प्यार तूने क्या किया’ के सोशल मीडिया समूह और प्रशंसक बहुत उत्साहित हैं और इस अक्टूबर में आने वाले सीजन का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं.

22 अक्टूबर से शुरू हो रहे प्यार तूने क्या किया सीजन 13 के सभी बेहतरीन एपिसोड्स सिर्फ झिंगो पर देखें.

फिल्मफेयर ने ‘ओटीटी पुरस्कार’ के तीसरे संस्करण की घोषणा की

‘फिल्मफेयर ओटीटी अवॉर्ड्स 2022’ के लिए ओटीटी प्लेटफॉर्म और प्रोडक्शन हाउस अपने आवेदन भेज सकते है. जी हाँ , 01 अगस्त, 2021 और 31 जुलाई 2022 के बीच जारी की गई जो भी हिंदी वेब ओरिजिनल है वो अपने आवेदन भेज सकते है, आवेदन जमा करने की अंतिम तिथि 10 नवंबर, 2022 है.

पिछले 2 संस्करणों की शानदार सफलता के बाद, फिल्मफेयर अपनी बहुप्रतीक्षित मान्यता, ‘फिल्मफेयर ओटीटी अवार्ड्स 2022’ के तीसरे संस्करण के साथ वापस आ गया है. दर्शकों को  पसंद आ रहे तरह तरह के कॉन्टेंट और ओटीटी प्लेटफॉर्म के तरफ उनके बदलते रुझान के साथ तालमेल बिठाते हुए, फिल्मफेयर ओटीटी अवार्ड्स गतिशील और विकसित इंडियन ओवर द टॉप (ओटीटी) स्पेस में सर्वश्रेष्ठ कलाकारों और कहानीकारों को सम्मानित करता  हैं.

 

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तीसरे संस्करण के लिए प्रक्रिया की शुरुआत करते हुए, फिल्मफेयर ने इन प्रतिष्ठित पुरस्कारों के लिए आवेदन भेजने की घोषणा कर दी है. ओटीटी प्लेटफॉर्म और प्रोडक्शन हाउस विभिन्न श्रेणियों में अपनी प्रविष्टियां भेज सकते हैं जिन्हें दर्शकों के मतदान के लिए रखा जाएगा. मतदान के आधार पर, शीर्ष प्रविष्टियां को फाइनल  नामांकन में शामिल किया जाएगा , जिसमें से प्रतिष्ठित जूरी विजेताओं का चयन करेगी. प्रतिभागी https://www.filmfare.com/awards/filmfare-ott-awards-2022/ पर उपलब्ध प्रवेश फॉर्म भरकर और उससे जुड़े प्रवेश शुल्क का भुगतान करके प्रत्येक श्रेणी में कई प्रविष्टियां भेज सकते हैं. प्रविष्टियां जमा करने की अंतिम तिथि 10 नवंबर, 2022 है.

वर्ल्डवाइड मीडिया प्राइवेट लिमिटेड के सीईओ श्री दीपक लांबा ने कहा, “हम फिल्मफेयर ओटीटी अवार्ड्स के तीसरे संस्करण के लिए प्रविष्टियां आमंत्रित करने के लिए उत्साहित हैं. हाल ही में फिल्मफेयर अवार्ड्स और फिल्मफेयर अवार्ड्स साउथ की सफलताओं को आगे बढ़ाते हुए, हम सर्वश्रेष्ठ कंटेंट क्रिएटर्स और कलाकारों को हिंदी वेब ओरिजिनल में उनके उत्कृष्ट काम के लिए सराहना और सम्मानित करेंगे . हम इस संस्करण को सफल बनाने के लिए ओटीटी प्लेटफॉर्म्स, प्रोडक्शन हाउस और दर्शकों से समर्थन की उम्मीद करते हैं.”

आवेदन  के लिए खुली श्रेणियां हैं:

सर्वश्रेष्ठ सीरीज

सर्वश्रेष्ठ निर्देशकसीरीज

सर्वश्रेष्ठ अभिनेतासीरीज  (पुरुष): कॉमेडी

सर्वश्रेष्ठ अभिनेतासीरीज (पुरुष): ड्रामा

सर्वश्रेष्ठ अभिनेतासीरीज (महिला): कॉमेडी

सर्वश्रेष्ठ अभिनेतासीरीज (महिला): ड्रामा

सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेतासीरीज  (पुरुष): कॉमेडी

सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेतासीरीज  (पुरुष): नाटक

सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेतासीरीज  (महिला): कॉमेडी

सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेतासीरीज  (महिला): नाटक

सर्वश्रेष्ठ मूल कहानीसीरीज

सर्वश्रेष्ठ हास्य (सीरीज /विशेष)

सर्वश्रेष्ठ (नॉनफिक्शन) ऑरिजनल  (सीरीज /विशेष)

सर्वश्रेष्ठ फिल्मवेब ऑरिजनल

सर्वश्रेष्ठ अभिनेतावेब ऑरिजनल (पुरुष)

सर्वश्रेष्ठ अभिनेतावेब ऑरिजनल (महिला)

सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेतावेब ऑरिजनल (पुरुष)

सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेतावेब ऑरिजनल (महिला)

बेस्ट डायलॉगसीरीज

सर्वश्रेष्ठ ऑरिजनल पटकथासीरीज

सर्वश्रेष्ठ रूपांतरित पटकथासीरीज

सर्वश्रेष्ठ छायांकनसीरीज

बेस्ट प्रोडक्शन डिजाइनसीरीज

सर्वश्रेष्ठ संपादन,सीरीज

बेस्ट कॉस्टयूम डिजाइनसीरीज

बेस्ट बैकग्राउंड म्यूजिकसीरीज

बेस्ट साउंडट्रैकसीरीज

सर्वश्रेष्ठ वीएफएक्स (सीरीज )

‘फिल्मफेयर ओटीटी अवार्ड्स 2022’ के लिए अपने आवेदन  कैसे भेजें, इस पर एक त्वरित मार्गदर्शिका यहां दी गई है:

– प्रविष्टि मुख्य रूप से हिंदी भाषा में बनाई जानी चाहिए और इसे एक ऑरिजनल कृति के रूप में समझा जाना चाहिए, जिसे 1 अगस्त, 2021 और 31 जुलाई, 2022 के बीच एक ओटीटी प्लेटफॉर्म पर जारी किया गया हो .

–  प्रत्येक आवेदन  के लिए 10,000 + GST शुल्क लिया जाएगा, यानी कुल  11,800/- राशि  प्रति आवेदन के लिए जमा करना होगा .

प्रवेश से पहले या साथ में भागीदारी शुल्क का अग्रिम भुगतान करना आवश्यक है. डब्ल्यूडब्ल्यूएम द्वारा भागीदारी शुल्क की वसूली पर ही भागीदारी पर विचार किया जाएगा.

-सभी ओटीटी प्लेटफॉर्म के साथ-साथ प्रोडक्शन हाउस अपनी प्रविष्टियां भेजने के लिए स्वागत करते हैं.

-प्रोडक्शन हाउस द्वारा प्रस्तुत सभी प्रविष्टियों को ओटीटी प्लेटफॉर्म द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए, जिस पर शो की मेजबानी की जाती है.

-प्लेटफॉर्म द्वारा प्रविष्टियों को स्वीकृत कराने की जिम्मेदारी पूरी तरह से प्रोडक्शन हाउस की है.

-प्रवेश फॉर्म यहां डाउनलोड के लिए उपलब्ध है: https://www.filmfare.com/awards/filmfare-ott-awards-2022/

-इच्छुक ओटीटी प्लेटफॉर्म और प्रोडक्शन हाउस को 10 नवंबर 2022 को या उससे पहले ऑनलाइन एंट्री फॉर्म और पेमेंट रेफरेंस आईडी के साथ ईमेल के जरिए अपनी प्रविष्टियां जमा करनी होंगी.

-कृपया प्रवेश फॉर्म को पूर्ण विवरण और आवश्यक अनुलग्नकों के साथ filmfareottawards@wwm.co.in पर ईमेल करें.

मेरी योनि में काफी ढीलापन आ गया है और मेरा सैक्स के प्रति रुझान घट गया है, मुझे क्या करना चाहिए?

सवाल
मैं 28 साल की विवाहित स्त्री हूं. मेरे पति और मेरी कामेच्छा में जमीन आसमान का अंतर है. मुझे लगता है कि मेरी योनि में पहले की तुलना में काफी ढीलापन आ गया है और मेरा सैक्स के प्रति रुझान घट गया है. लेकिन पति की कामेच्छा पहले की ही तरह बनी हुई है. मैं उन का साथ नहीं दे पाती. इस से उन के व्यवहार में मेरे प्रति रूखापन आता जा रहा है. मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब
कामसुख दांपत्य जीवन की महत्त्वपूर्ण कड़ी है. इस से दांपत्य में अबाध प्रेम, भावात्मक बंधन, सुख, संतोष और आस्था के स्वर गहरे होते हैं, परस्पर आकर्षण बना रहता है और प्रेम गाढ़ा होता है.

प्रत्येक विवाहित स्त्री के लिए यह जानना जरूरी है कि पति के लिए कामसुख प्रेम की तीव्रतम अभिव्यक्ति है. पति के अंतर्मन में पत्नी की अस्वीकृति शूल सी चुभ जाती है. उस का मन क्षोभ और पीड़ा से भर उठता है, जिस के फलस्वरूप वैवाहिक जीवन में असंतोष और बिखराव की रेखाएं सघन होने लगती हैं, दांपत्य संबंधों में ठंडापन आ जाता है और कलह सिर उठाने लगती है.

आप के लिए उचित यही होगा कि आप अपने पति की भावनाओं का आदर करें. यदि किसी कारण कभी मन संबंध बनाने का न हो, तब भी अपने मधुर व्यवहार से पति के मन को संभालें, उन्हें टीस न लगने दें.

योनि में आए ढीलेपन को मिटाने के लिए आप श्रोणि पेशियों का व्यायाम करें. यह व्यायाम आप दिन के किसी भी पहर कर सकती हैं. इसे आप लेटे हुए, बैठे हुए या खड़े किसी भी मुद्रा में कर सकती हैं. करने की विधि बिलकुल आसान है. बस, श्रोणि पेशियों को इस प्रकार सिकोड़ें और भींच कर रखें मानो मूत्रत्याग की क्रिया पर रोक लगाने की जरूरत है. 10 की गिनती तक श्रोणि पेशियों को भींचे रखें और फिर उन्हें ढीला छोड़ दें. अगले 10 सैकंड तक श्रोणि पेशियों को आराम दें. इस के लिए 10 तक गिनती गिनें. यह व्यायाम पहले दिन 12 बार दोहराएं. फिर धीरेधीरे बढ़ाते हुए सुबहशाम 24-24 बार इसे करने का नियम बना लें. 2-3 महीनों के भीतर ही आप योनि की पेशियों को फिर से कसा हुआ पाएंगी. नतीजतन आप पतिपत्नी के बीच यौनसुख भी दोगुना हो जाएगा.

मैं एक लड़की से 8 वर्षों से प्यार करता हूं, उसके पापा को शादी के लिए कैसे मनाऊं?

सवाल-

मैं एक लड़की से 8 वर्षों से प्यार करता हूं. वह सुंदर है और मुझे बहुत प्यार करती है. मेरे पिताजी की मृत्यु तब हो गई थी जब मैं ग्रैजुएशन कर रहा था. मैं आज अच्छी जौब करता हूं और ट्यूशन भी पढ़ाता हूं. मेरी गर्लफ्रैंड दूसरी जाति से है. मैं हार्डवर्क कर के पैसे कमा रहा हूं ताकि फाइनैंशियली स्ट्रौंग बन कर उस के पापा से शादी की बात कर सकूं. मुझे गाइड करें कि कैसे मैं उस के पापा को मनाऊं?

जवाब-

प्यार इंसान से किया जाता है न कि जाति से. आप अपने परिवार का पालनपोषण अच्छे तरीके से कर सकते हैं, इसलिए डरें नहीं बल्कि हिम्मत जुटाएं. पहले अपने परिवार वालों को इस बात से परिचित कराएं ताकि वे लड़की के पिता से बात कर सकें. आप यकीन मानिए, अगर दोनों परिवार एकदूसरे से संतुष्ट हो गए तो आप को मिलने से कोई नहीं रोक सकता. अगर लड़की के घर वाले न मानें तो आप दोनों अपनी मरजी से विवाह कर सकते हैं. ऐसे विवाह कोर्टमैरिज प्रक्रिया से ही किए जाने चाहिए ताकि बाद में कठिनाई न हो.

मेरे पति वैसे तो काफी अच्छे हैं लेकिन उन का नौकरी में बिलकुल मन नहीं लगता. इस कारण परिवार के समक्ष आर्थिक संकट खड़ा हो गया है. परिवार के किसी भी सदस्य की बात उन्हें समझ नहीं आ रही. आप ही बताएं कि कैसे उन्हें सही रास्ता दिखाया जाए?

पति कमाए नहीं तो जिंदगी चलती ही नहीं है. उन के नौकरी न करने से सब बेहाल हो जाएंगे और बिना नौकरी वाले आदमी को न तो घर में इज्जत मिलती है न ही बाहर.

ऐसे इंसान के साथ रहने का कोई फायदा नहीं है जो दो वक्त की रोटी का भी जुगाड़ न कर सके. हो सकता है आप का यह सख्त रुख उन्हें सुधरने पर मजबूर कर दे. आप भी खुद को आत्मनिर्भर बनाएं और उन से साफ कह दें कि प्यार एक तरफ है और जिम्मेदारी एक तरफ.

क्या पुरुषों को भी होता है मोनोपौज?

मेनोपोज, यानी एक उम्र के बाद शरीर में होने वाले हार्मोनल चेंज और कुछ शारीरिक क्रियाओं में आने वाली कमी. अधेड़ावस्था की शुरुआत है मेनोपोज. मेनोपोजसे उत्पन्न कुछ शारीरिक समस्याओं की चर्चा अब तक स्त्रियों के सम्बन्ध में ही की जाती रही हैं, लेकिन यह चर्चा बहुत कम होती है कि मेनोपोज की स्थिति और इससे उत्पन्न समस्याओं से पुरुष भी जूझते हैं.

45 से 50 साल की उम्र में पहुंचने पर महिलाओं में मेनोपोज का समय शुरू होता है, जब धीरे धीरे करके पीरियड्स आने बंद हो जाते हैं. ऐसा शरीर में स्त्री हॉर्मोन बनना बंद होने के कारण होता है. यह दौर महिलाओं के लिए मुश्किल भरा होता है. मूड स्विंग, चिड़चिड़ापन, कमजोरी, हड्डियों का भुरभुराना, बालों का झड़ना जैसी अनेक परेशानियों से महिलायें इस दौर में गुज़रती हैं, लेकिन ऐसा सिर्फ महिलाओं के साथ ही नहीं होता, बल्कि पुरुष भी इस उम्र में होने वाले हार्मोनल बदलाव के कारण काफी समस्याओं का सामना करते हैं, जिनका ज़्यादा जिक्र नहीं होता है.

50-55 की उम्र में होने वाले मेनोपोज की अवस्था में सीधेतौर पर पुरुषों की सेहत और मनोदशा प्रभावित होती है. पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन नाम का हार्मोन होता है, जिससे उनकी सेक्स लाइफ संचालित होती है. 50 की उम्र के बाद इसमें बदलाव आने लगता है, और इसका बनना कम होने लगता है, जिससे पुरुषों की मानसिक और शारीरिक सेहत प्रभावित होती है. पुरुषों में इस दौर को एंट्रोजेन डिफिसिएंसी ऑफ दी एजिंग मेल कहते हैं. टेस्टोस्टेरोन का स्तर घटने से पुरुषों को मानसिक समस्याओं के साथ ऊर्जा में कमी, डिप्रेशन या उदासी, जीवन में अचानक मोटिवेशन की कमी लगना, सेल्फ कॉन्फ‍िडेंस में कमी, किसी चीज़ में ध्यान केंद्रित करने में मुश्क‍िल आना, नींद न आना, मोटापा बढ़ना, शारीरिक तौर पर कमजोरी महसूस करना जैसी समस्याएं पैदा होने लगती हैं.

हेल्थ एक्सपर्ट- श्री नियाज़ अहमद

पुरुषों में मेनोपोज की स्थिति 50 से 60 साल की उम्र में आती है. महिलाओं की तरह पुरुषों को भी इस दौरान अपनी मेंटल और फिजिकल हेल्थ का ध्यान रखने की जरूरत होती है क्योंकि इस दौरान उनका शरीर अनेक बदलावों से गुजर रहा होता है. इनमें भावनात्मक और शारीरिक दोनों तरह के बदलाव शामिल हैं.

पुरुषों में 50 की उम्र के बाद कार्डियोवस्कुलर प्रॉब्लम्स होने का खतरा भी काफी हद तक बढ़ जाता है क्योंकि इस उम्र तक पहुंने पर बॉडी वेन्स में लचक कम होने लगती है और ब्लड वेसल्स पहले की तुलना में काफी कमजोर हो जाते हैं. इस कारण हार्ट से जुड़ी कई तरह की समस्याएं अचानक से हावी हो जाती हैं. इनमें हार्ट अटैक भी शामिल है.

मेनोपौज के कारण पुरुषों के शरीर में ऐस्ट्रोजन हौर्मोन का बनना भी कम होने लगता है और इसका सीधा असर मानसिक सेहत पर पड़ता है.इस कारण पुरुषों में बहुत तेजी से मूड स्विंग्स देखने को मिलता ही. वे चिड़चिड़े से रहने लगते हैं. आमतौर पर इस उम्र में पुरुष खुद को बहुत अकेला और भावनात्मक रूप से कमजोर भी महसूस करने लगता है.

हेल्थ एक्सपर्ट- श्री नियाज़ अहमद

मेल हॉर्मोन्स की कमी से सेहत पर कई अन्य बीमारियों का खतरा भी मंडराने लगता है. जिसमे हृदय से जुडी कई बीमारियां सिर उठाने लगती हैं. कार्डियोवस्कुलर डिजीज के दौरान पुरुषों को कमर में तेज दर्द, मितली आना, सीने पर जलन होना, भूख ना लगना या बहुत कम लगना, खांसी आना और कफ निकलना, हर समय थकान रहना और धड़कन बढ़ने जैसी समस्याएं होने लगती हैं.  इस दौर से गुजरते हुए कई लोगों में प्रॉस्टेट ग्रंथि का साइज़ भी बड़ा होने लगता है जो कि टेस्टोस्टेरोन लेवल के कम होने का प्रमुख लक्षण है. प्रॉस्टेट ग्रंथि बड़ी और कठोर हो जाती है. हालांकि यह बात अलग अलग व्यक्तियों पर अलग तरह से निर्भर करता है. टेस्टोस्टेरोन लेवल कम होना और प्रोस्टेट ग्रंथि का बढ़ जाना दोनों ही समस्याओं का इलाज दवाइयों से संभव है. इसलिए ऐसे कोई भी लक्षण दिखने पर नजदीकी डॉक्टर की सलाह ज़रूर लें.

मेनोपोज  के कारण पुरुषों को इस उम्र में न्यूरॉलजिकल दिक्कतें भी शुरू हो जाती हैं. इनमें ऐंग्जाइटी, टेंशन और अपने काम पर फोकस ना कर पाने जैसी समस्याएं शामिल हैं. कुछ पुरुषों को तो इस दौरान मेमोरी लॉस जैसी परेशानियां भी हो जाती हैं. इन सबकी वजह एस्ट्रोजन हॉर्मोन यानी मेल हॉर्मोन्स की कमी ही होती है.

55 से 65 की उम्र के बीच हड्डियां तेजी से कमजोर होती हैं क्योंकि इस दौरान पुरुषों में बोन टिश्यूज तेजी से डिजनरेट होते हैं. इससे हड्डियां कमजोर और सॉफ्ट हो जाती हैं. इसलिए जरूरी है कि इस उम्र में पुरुष अपनी डायट में कैल्शियम, आयरन और विटमिन्स की मात्रा बढ़ा दें. साथ ही फास्ट फूड से जितना हो सके दूर रहें. कैल्शियम जहाँ हड्डियों को मजबूत बनाए रखने का काम करता है तो वहीं आयरन शरीर में ब्लड का फ्लो बनाए रखता है. इसके साथ ही यह हमारी ब्लड वेसल्स का वॉल्यूम बनाए रखने में मदद करता है. यानी रक्त धमनियों को संकरी होने से रोकता है. इससे कॉर्डियोवस्कुलर डिजीज यानी दिल की बीमारी होने का खतरा कम होता है.

मेनोपॉज की स्थिति से गुजर रहे पुरुषों को तनाव से दूर रहने का प्रयास करना चाहिए. नहीं तो डिप्रेशन में जा सकते हैं. आमतौर पर पुरुष अपना दुःख-तकलीफ जल्दी किसी से शेयर नहीं करते, लिहाज़ा मेनोपोज से पुरुषों में उत्पन्न समस्याओं के बारे में ना ज़्यादा बात होती है और ना वे इन समस्याओं को लेकर डॉक्टर के पास जाते हैं. ‘बुढ़ापे में तो सब चलता है’ ऐसा कह कर तकलीफ को नज़रअंदाज़ करने का चलन भारतीय समाज में है. लेकिन 55 से 65 की उम्र ऐसी होती है, जब पुरुष खुद को सबसे अधिक असहाय और कमजोर महसूस करने लगते हैं. यदि परिवार उनकी मानसिक स्थिति को समझकर उनका सपोर्ट ना करे तो हालात ज़्यादा खराब हो सकते हैं.

लखनऊ के हेल्थ एक्सपर्ट्स नियाज़ अहमद का कहना है कि सेहत से जुड़ी इन समस्याओं से बचने के लिए पुरुषों को अपनी मानसिक, शारीरिक और सामाजिक सेहत पर ध्यान देना चाहिए। खासतौर पर सामाजिक सेहत पर… जी हाँ, सामाजिक सेहत, जिसका मतलब है 50 की उम्र के बाद आप अकेले उदास ना रहें, बल्कि अपने दोस्तों का दायरा बढ़ाएं. सामाजिक सेहत ठीक होने से आपकी मानसिक और शारीरिक सेहत भी अच्छी रहेगी. इनडोर और आउटडोर गेम्स में हिस्सा लें. चौकड़ी जमाएं, बातचीत, हंसी-ठिठोली, हल्ला-गुल्ला करें. बागबानी या अन्य कार्यों को अपनी दिनचर्या में शामिल करके थोड़ा शारीरिक श्रम करें और अधिक से अधिक खुश रहने का प्रयास करें.

नियाज़ अहमद कहते हैं आमतौर पर पुरुष अपनी युवावस्था के दौरान खुद को करियर और नौकरी के बीच इनता उलझा लेते हैं कि उनकी सोशल लाइफ बहुत सीमित हो जाती है. ऐसे में 55 की उम्र के बाद जब उन्हें कुछ समय मिलना शुरू होता है तो वे यह सोचकर परेशान होने लगते हैं कि उनके पास तो कोई है ही नहीं, जिसके साथ वे अपनी बातें शेयर कर सकें, जिसकी कंपनी को इंजॉय कर सकें. इसलिए अगर आप बुढ़ापे में सठियाना नहीं चाहते हैं तो पुराने दोस्तों का संग-साथ हमेशा बनाये रखिये. पुराने दोस्त दूर हों तो नए दोस्त बनाइए और उनसे अपनी बातें, शौक, विचार, पसंद शेयर करिए. जो लोग अपनी युवावस्था में खेल के शौक़ीन होते हैं और खेलों में भाग लेते रहते हैं, वो 50-55 की उम्र में भी खेलों में भाग लेने से कतराते नहीं हैं. उनके दोस्तों का दायरा भी लंबा-चौड़ा होता है. ऐसे में खेलना-खिलाना चलता रहता है, फिर चाहे मोहल्ले के बच्चों के साथ खेलना हो, या नए-पुराने दोस्तों के साथ पार्क में मैच खेलना हो, खेल प्रेमी तो कहीं भी रंग जमाने पहुंच जाते हैं. खेल बहुत हद तक पुरुषों की शारीरिक, मानसिक और सामाजिक हेल्थ को संतुलित रखते हैं. जो लोग खुद को व्यस्त रखते हैं, वे तनाव और एकाकीपन से दूर रहते हैं, और मीनोपोज़ की स्टेज को आसानी से पार कर लेते हैं.

अपने पति के अलावा एक और लड़के के साथ मेरे शारीरिक संबंध हैं, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं 28 साल की महिला हूं. मैं और मेरे पति एकदूसरे का बहुत खयाल रखते हैं, मगर इधर कुछ दिनों से मैं किसी दूसरे के प्रेम में पड़ गई हूं. हमारे बीच कई बार शारीरिक संबंध भी बन चुके हैं. मुझे इस में बेहद आनंद आता है. मैं अब पति के साथसाथ प्रेमी को भी नहीं खोना चाहती हूं. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब

आप के बारे में यही कहा जा सकता है कि दूसरे के बगीचे का फूल तभी अच्छा लगता है जब हम अपने बगीचे के फूल पर ध्यान नहीं देते. आप के लिए बेहतर यही होगा कि आप अपने ही बगीचे के फूल तक ही सीमित रहें. फिर सचाई यह भी है कि यदि पति बेहतर प्रेमी साबित नहीं हो पाता तो प्रेमी भी पति के रहते दूसरा पति नहीं बन सकता. विवाहेतर संबंध आग में खेलने जैसा है जो कभी भी आप के दांपत्य को झुलस सकती है.

ऐसे में बेहतर यही होगा कि आग से न खेल कर इस संबंध को जितनी जल्दी हो सके खत्म कर लें. अपने साथी के प्रति वफादार रहें. अगर आप अपनी खुशियां अपने पति के साथ बांटेंगी तो इस से विवाह संबंध और मजबूत होगा.

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सुरक्षित सेक्स के इन खतरों के बारे में भी जानिए

हम सभी की तरह मार्केटिंग प्रोफेशनल प्रिया चौहान को भी पूरा भरोसा था कि कंडोम का इस्तेमाल उन्हें हर तरह की सेक्स से फैलनेवाली बीमारियों (एसटीडीज) से महफूज रखेगा. आखिरकार इस बात को लगभग सभी स्वीकार करने लगे हैं. वे तब अचरज से भर गईं, जब उन्हें वेजाइनल हिस्से में लालिमा और जलन की वजह से त्वचा विशेषज्ञ के पास जाना पड़ा.

‘‘डौक्टर ने मुझे बताया कि मुझे सिफलिस का संक्रमण हुआ है, जो एक तरह की एसटीडी है,’’ गायत्री बताती हैं. ‘‘मुझे लगता था कि कंडोम मुझे इस तरह की बीमारियों से सुरक्षित रखता है और जलन की वजह के बारे में मैं सोचती थी कि शायद मैं पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं पी रही हूं.’’

ये चुंबन से भी हो सकता है

गायत्री और उनके बौयफ्रेंड को कुछ ब्लड टेस्ट कराने कहा गया और ऐंटीबायोटिक्स दिए गए, ताकि सिफलिस के वायरस को फैलने से रोका जा सके. ये वो सबसे आम एसटीडी है, जिसे रोकने में कंडोम सक्षम नहीं है.

सेक्सोलौजिस्ट डा. राजीव आनंद, जो कई जोड़ों को कंडोम और एसटीडीज से जुड़े इस मिथक की सच्चाई बता चुके हैं, कहते हैं कि अधिकतर लोग कंडोम को एसटीडीज से बचने का सबसे सुरक्षित तरीका मानते हैं, लेकिन कुछ इन्फेक्शंस ऐसे हैं, जो ओरल सेक्स या चुंबन के जरिए भी फैल सकते हैं.

‘‘ये भ्रांति शायद इसलिए है कि एड्स से जुड़ी जानकारी के केंद्र में कंडोम ही है. हालांकि यह एड्स की रोकथाम में कारगर है, लेकिन यह कुछ एसटीडीज की रोकथाम में कारगर नहीं है,’’

वे कहते हैं. ‘‘कंडोम प्रेगनेंसी और कुछ एसटीडीज से बचाव करता है, लेकिन हरपीज वायरस के इन्फ़ेक्शन से बचाने में यह कारगर नहीं है. यह एचपीवी (ह्यूमन पैपिलोमा वायरस) और कुछ फंगल इन्फ़ेक्शंस, जो त्वचा के उन हिस्सों के संपर्क के कारण फैलते हैं, जो कंडोम से नहीं ढंके हैं, से भी बचाव नहीं कर पाता.’’

कंडोम के इस्तेमाल से शारीरिक स्राव का विनिमय तो रुक जाता है, लेकिन हरपीज, एचपीवी और गोनोरिया आदि होने की संभावना बनी रहती है.

इस खतरे को कम करें

अपने साथी को अच्छी तरह जानना तो जरूरी है ही, पर ऐसे लोगों की संख्या को सीमित रखें, जिनसे आप सेक्शुअल संबंध रखती हैं, ताकि आप एसटीडीज के खतरे से बच सकें. यदि आप किसी नए साथी के साथ संबंध बना रही हैं तो उसका चेकअप जरूर कराएं.

‘‘यह महत्वपूर्ण है कि आप अपने साथी से चेकअप कराने को कहें और उसकी रिपोर्ट्स देखें. मुझे पता है कि ये थोड़ा अटपटा लगेगा, लेकिन हमें समय के साथ चलना होगा,’’ कहती हैं रश्मि बंसल, जो दो वर्षों तक लिव-इन रिश्तों में थीं. ‘‘यदि वह आपको सच में पसंद करता है तो ऐसा करने में उसे कोई समस्या नहीं होगी.’’ इसके अलावा हेपेटाइटिस बी और एचपीवी के लिए वैक्सीन लेना भी अच्छा रहता है.

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