अनाज के थैलों पर मोदी जी का फोटो! कितना सही

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने कहलवाया है कि तेलंगाना में भी जो अनाज राशन से बंटता है उस के थैलों पर नरेंद्र मोदी का फोटो हो. यह कुछ महाशियां दी हट्टी वाला हिसाब है जो अपने मसालों का प्रचार अपने फोटोग्राफ के साथ ही करता था. निर्मला हालांकि महाशियां से प्रभावित हैं या नहीं पर पुराणों को जेएनयू में पढ़ने के बाद सिर पर लाद कर चलने वाली जनता में से एक जरूर होंगी.

अब कूर्म पुराण को लें. इस में इंद्रद्युम्न का वाकिआ है जिसे पुराणों के हिसाब से इस दुनिया को बनाने वाले नारायण के साक्षात दर्शन– लंबी समाधि यानी बिना कामधाम किए एकांत में बैठने के बाद (इस दौरान किस ने उन्हें खिलाया, किस ने उन के लायक अनाज बोया, यह न पूछें).

जब नारायण, जिन्होंने पुराण के हिसाब से पूरी सृष्टि बनाई और जिस का मतलब है इंद्रद्युम्न को भी बनाया, बड़ा किया, दिख गए तो भक्त ने क्या किया. उन की तारीफ के पुल बांधने शुरू कर दिए जैसे निर्मला सीतारमन कर रही हैं, ‘हे हरि, आप की वजह से दुनिया है. आप की वजह से प्रलय आती है. आप बहुत ताकतवर हैं. आप को कुछ नहीं चाहिए. आप कोई प्रपंच नहीं करते, गलत काम नहीं करते. आप सब के पिता हैं. आप कभी खत्म नहीं होने वाले हैं.’ इस तरह की बहुत सी बातें यह भक्त कहता है.

सवाल है कि क्या नारायण की तरह राशन में अनाज की भरी थैली भी मोदीजी ने दी है जैसा निर्मला सीतारमन कहती हैं? क्या यह अनाज उन्होंने उगाया, किसी किसान ने नहीं? क्या यह खेत से राशन की दुकान तक मोदीजी के चमत्कार से पहुंच गया, ट्रकों में भर कर नहीं? क्या सरकार ने इस के लिए कोई टैक्स नहीं लगाया? क्या चमत्कार कर के केंद्र सरकार ने अनाज पैदा कर दिया? क्या प्रधानमंत्री नारायण बन गए हैं?

देश में आदमी की पूजा करने का जो रिवाज बन गया है वह खतरनाक है. पूजा कर के भक्त सम झते हैं कि उन का काम पूरा हो गया. मोदीजी को जिता दिया अब सब वही करेंगे. यही उन की वित्त मंत्री कह रही हैं कि सस्ता अनाज मोदीजी अपनी जेब से निकाल कर दे रहे हैं, शायद तथास्तु वे करें.

यह हर किसान की बेइज्जती है जिस ने अनाज उगाया. यह उस जनता की बेइज्जती है जिस ने टैक्स दिया, जिस के बल पर अनाज सरकार ने खरीदा. यह उस सस्ते अनाज पाने वाले देश के नागरिक की भी बेइज्जती है कि वह शुक्रिया अदा करे उस का करे जिस ने न उगाया, न इकट्ठा किया, न पहुंचाया.

डैमोक्रेसी का मतलब है कि सब बराबर हैं और सरकार के पास जो पैसा है, साधन हैं, वे सब जनता के हैं. हमें नेताओं को चुनना है जो जनता के पैसे का, जनता की बनाई चीजों का सही इस्तेमाल करना जानते हों, न कि उन्हें जो अपनी जयजयकार कराएं, पूजा कराएं. जय करने और पूजा करने के लिए तो हमारे पास 33 करोड़ देवता वैसे ही हैं जिन के बावजूद भूख, बीमारी, बेकारी, दंगेफसाद, हत्या, जुल्म, बाढ़, सूखा, आग सबकुछ है.

एक लाख की दुल्हन : भाग 3

चायनाश्ता ले कर महेंद्री आई तो उस ने सानिया के साथ चायनाश्ता किया. फिर सानिया से बोला, ‘‘सानिया, इसे भी अपना ही घर समझो, मौसी शाम को लड़का दिखा देगी. मुझे जरूरी काम न होता तो मैं भी शाम तक रुक जाता. लड़का पसंद आ जाए तो मैं और नीलम तुम्हारे हाथ पीले कर देंगे.’’
‘‘ठीक है अंकल,’’ सानिया मुसकरा कर बोली.सानिया को महेंद्री के सुपुर्द कर के दिलीप वहां से चला आया. उसे सानिया की कीमत मिल गई थी. एक ही रात में उस ने 40 हजार रुपए कमा लिए थे.

महेंद्री ने सानिया को आराम करने को कहा और दूसरे कमरे में जा कर किसी से फोन पर बात करने लगी.
शाम को 2-3 आदमी सानिया को देखने आए. उन्होंने चेहरों पर मास्क लगा रखे थे. महेंद्री से बात करने के बाद दूसरे दिन वह अपने साथ सानिया को ले कर राजस्थान के लिए चले गए. वहां कितनी ही जगह सानिया को दिखाया गया. एक पार्टी से एक लाख रुपए में शादी के लिए सौदा हुआ, लेकिन उन्होंने पूरी रकम का इंतजाम नहीं किया तो वे लोग सानिया को वापस महेंद्री के पास छोड़ कर चले गए.
महेंद्री को अपने 40 हजार रुपयों की फिक्र होने लगी. वह सानिया को अच्छे दाम में बेचना चाहती थी. इस के लिए सानिया को अच्छा भी दिखना जरूरी था. महेंद्री उस के बनावशृंगार और कपड़ों की खरीद के लिए सावित्री के घर ले गई.

सावित्री बवाना में ही रहती थी. सावित्री को महेंद्री ने बताया कि सानिया उस की रिश्तेदार है. लेकिन पारखी सावित्री ने एक ही नजर में ताड़ लिया कि महेंद्री इस लड़की को बेचने के लिए कहीं से फांस लाई है.
महेंद्री के काले कारनामों से सावित्री परिचित थी. उसे सानिया पर तरस आ गया. उस ने एकांत में सानिया को महेंद्री की हकीकत से वाकिफ करा दिया. सानिया सकते में आ गई. उस का दिल बैठ गया. वह यह जान कर घबरा गई कि वह गलत लोगों के हाथों में फंस गई है. उस ने निर्णय ले लिया कि वह सावित्री के पास रहेगी.सानिया ने महेंद्री के साथ जाने को मना किया तो महेंद्री गुस्से में आ गई. उस ने सावित्री को खरीखोटी सुनाई. सावित्री ने उसे अच्छे से जलील कर के भगा दिया.

सानिया अब सावित्री को अपनी मां मान कर उसी के साथ रहने लगी थी लेकिन महेंद्री को यह कैसे सहन होता कि उस का माल सावित्री हड़प जाए. वह फिर सावित्री से मिलने के लिए और सानिया को ले जाने के लिए उस के घर पहुंची तो मालूम हुआ कि वह सानिया को ले कर बाजार गई है.महेंद्री बाजार में उसे तलाश करने निकली तो डिफेंस कालोनी थाने की एसआई चंचल की नजर में आ गई. एसआई चंचल के साथ कांस्टेबल होशियार सिंह था. उसी की मदद से उस ने महेंद्री को पकड़ लिया और डिफेंस कालोनी थाने में ले आई.

दरअसल, कुछ दिनों से 3 लड़कियां घर से लापता थीं. उन की रिपोर्ट डिफेंस कालोनी थाने में दर्ज थी. एसआई चंचल उन्हीं की तलाश में बवाना आई थी. उसे मालूम था कि महेंद्री लड़कियों की खरीदफरोख्त करती है.महेंद्री से जब सख्ती से पूछताछ हुई तो उन गुमशुदा लड़कियों का तो नहीं, सानिया का महेंद्री के पास से सावित्री के कब्जे में जाने का राज जरूर खुल गया.डिफेंस कालोनी पुलिस ने इस मामले की जानकारी उच्च अधिकारियों को दी. उन के दिशानिर्देशन में एक पुलिस टीम का गठन किया गया, जिस की कमान एसआई चंचल, किशोर, कांस्टेबल होशियार के हाथों में सौंपी गई.

एसआई चंचल की टीम ने सानिया का एम्स में मैडिकल एग्जामिनेशन करवा कर इस बात की पुष्टि की कि क्या सानिया के साथ यौनाचार भी किया गया.ऐसी बात सामने नहीं आई तो पुलिस जांच दल ने सानिया को निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन, नई दिल्ली, शिवाजी ब्रिज, मिंटो ब्रिज आदि स्टेशनों के प्लेटफार्म दिखाए. पुलिस टीम यह पता लगाना चाहती थी कि पहली बार वह किस स्टेशन और किस प्लेटफार्म पर नीलम को मिली थी.सानिया दिल्ली के स्टेशनों और स्थानों से अपरिचित थी, उसे मालूम नहीं था कि वह टे्रन से कहां उतरी थी.

एसआई चंचल ने अपनी टीम के साथ इस विषय पर माथापच्ची की तो उन्हें पुरानी दिल्ली स्टेशन को जांच के दायरे में लेने का खयाल आया, कारण सानिया गुवाहाटी से अवध आसाम एक्सप्रैस से दिल्ली आई थी और यह ट्रेन पुरानी दिल्ली स्टेशन ही आती है.जांच के लिए टीम सानिया को पुरानी दिल्ली स्टेशन ले कर आई. सानिया ने वह प्लेटफार्म और जगह पहचान ली, जहां बैठ कर वह हताशा में रोने लगी थी. वह 13 नंबर का प्लेटफार्म था.जांच दल ने वहां लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली तो पहली अगस्त के दिन शाम के समय सानिया 2 कैमरों में दिखाई दे गई. उस के साथ नीलम भी बैठी नजर आ रही थी. पुलिस के लिए यह एक पुख्ता सबूत था.

जांच दल चूंकि डिफेंस कालोनी थाने का था और पुरानी दिल्ली का एरिया उन के क्षेत्र में नहीं आता था, इसलिए अपने यहां जीरो एफआईआर दर्ज कर के यह केस पुरानी दिल्ली स्टेशन के दायरे में आने वाले थाने को 23 अगस्त, 2022 को ट्रांसफर कर दिया गया.क्षेत्र के एसीपी प्रवीण कुमार के संज्ञान में यह केस आया तो उन्होंने थाने के प्रभारी शिवदत्त जैमिनी को आदेश दिया कि इस केस को बड़ी संजीदगी से हैंडल करें.थानाप्रभारी शिवदत्त जैमिनी ने एसआई राजेंद्र कुमार के दिशानिर्देशन में काम करने के लिए एक टीम का गठन कर दिया. इस में एएसआई सुखपाल, कांस्टेबल रवि, पल्लवी को शामिल किया गया.
महेंद्री को भी इस थाने की कस्टडी में दे दिया गया था. सानिया और सावित्री भी इस थाने को सौंप दी गईं.
पुख्ता सबूत एकत्र करने के बाद एसआई राजेंद्र ने अपनी टीम के साथ शास्त्री पार्क इलाके में दबिश दे कर दिलीप और नीलम को भी गिरफ्तार कर लिया.

दिलीप अपनी पत्नी नीलम के साथ शास्त्री पार्क की गली नंबर 1, मकान नंबर एफ-3 में रहता था. उस का पुश्तैनी पता वार्ड नंबर-15, खाटी गांव, थाना छातापुर, जिला सुपोल, बिहार था. शास्त्री पार्क में अपनी पत्नी नीलम के साथ रहते हुए छोटेमोटे अपराध करता था. कभीकभी वे दोनों कोई बड़ा अपराध भी करते थे.महेंद्री लड़कियां खरीद कर उन्हें ऐसे लोगों को बेचती थी, जिन की किसी कारणवश शादी नहीं हो पाती थी. वह कई लड़कियों को देहमंडी में भी बेच चुकी थी. उस पर पहले भी कई केस चल रहे थे. इस बार सानिया को बेचने के चक्कर में वह फिर पकड़ी गई थी. पुलिस ने भादंवि धारा 363, 366ए, 370, 370ए, 372, 373,120/34 तथा 21 पोक्सो एक्ट लगा कर दिलीप पूर्वे, नीलम और महेंद्री को कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. सावित्री बेकुसूर थी, इसलिए उसे छोड़ दिया गया.

सानिया के पिता का नाम नौइमुल था. सानिया को मां का नाम मालूम नहीं था. मांबाप बांग्लादेश में कहां काम करते हैं, वह नहीं जानती थी.बचपन से वह दादादादी के पास पली थी. दादा की मौत के बाद घर में फाके पड़े तो वह काम की तलाश में दिल्ली आ गई थी और लड़कियों का सौदा करने वाले लोगों के चंगुल में फंस गई थी.पुलिस ने दिलीप पूर्वे, उस की पत्नी नीलम और महेंद्री से पूछताछ कर उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. सानिया वापस अपने घर रामपुर टाउन नहीं जाना चाहती थी, इसलिए पुलिस ने उसे नारी निकेतन में भेज दिया.

औकात से ज्यादा – भाग 1 : क्या करना चाहती थी निशा

लड़कियों को काम कर के पैसा कमाते देख निशा के अंदर भी कुछ करने का जोश उभरा. सिर्फ जोश ही नहीं, निशा के अंदर ऐसा आत्मविश्वास भी था कि वह दूसरों से बेहतर कर सकती थी. निशा कुछ करने को इसलिए भी बेचैन थी क्योंकि नौकरी करने वाली लड़कियों के हाथों में दिखलाई पड़ने वाले आकर्षक व महंगे टच स्क्रीन मोबाइल फोन अकसर उस के मन को ललचाते थे और उस की ख्वाहिश थी कि वैसा ही मोबाइल फोन जल्दी उस के हाथ में भी हो. निशा के सपने केवल टच स्क्रीन मोबाइल फोन तक ही सीमित नहीं थे.  टच स्क्रीन मोबाइल से आगे उस का सपना था फैशनेबल कीमती लिबास और चमचमाती स्कूटी. निशा की कल्पनाओं की उड़ान बहुत ऊंची थी, मगर उड़ने वाले पंख बहुत छोटे. अपने छोटे पंखों से बहुत ऊंची उड़ान भरने का सपना देखना ही निशा की सब से बड़ी भूल थी. वह जिस उम्र में थी, उस में अकसर लड़कियां ऐसी भूल करती हैं. वास्तव में उन को इस बात का एहसास ही नहीं होता कि सपनों की रंगीन दुनिया के पीछे की दुनिया कितनी बदसूरत व कठोर है.

अपने सपनों की दुनिया को हासिल करने को निशा इतनी बेचैन और बेसब्र थी कि मम्मी और पापा के समझाने के बावजूद 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद उस ने आगे की पढ़ाई के लिए कालेज में दाखिला नहीं लिया. वह बोली, ‘‘नौकरी करने के साथसाथ आगे की पढ़ाई भी हो सकती है. बहुत सारी लड़कियां आजकल ऐसा ही कर रही हैं. कमाई के साथ पढ़ाई करने से पढ़ाई बोझ नहीं लगती.’’ ‘‘जब हमें तुम्हारी पढ़ाई बोझ नहीं लगती तो तुम को नौकरी करने की क्या जल्दी है?’’ मम्मी ने निशा से कहा. ‘‘बात सिर्फ नौकरी की ही नहीं मम्मी, दूसरी लड़कियों को काम करते और कमाते हुए देख कई बार मुझ को कौंप्लैक्स  महसूस होता है. मुझे ऐसा लगता है जैसे जिंदगी की दौड़ में मैं उन से बहुत पीछे रह गई हूं,’’ निशा ने कहा. ‘‘देख निशा, मैं तेरी मां हूं. तुम को समझाना और अच्छेबुरे की पहचान कराना मेरा फर्ज है. दूसरों को देख कर कुछ करने की बेसब्री अच्छी नहीं. देखने में सबकुछ जितना अच्छा नजर आता है, जरूरी नहीं असलियत में भी सबकुछ वैसा ही हो. इसलिए मेरी सलाह है कि नौकरी करने की जिद को छोड़ कर तुम आगे की पढ़ाई करो.’’

‘‘जमाना बदल गया है मम्मी, पढ़ाई में सालों बरबाद करने से फायदा नहीं.  बीए करने में मुझे जो 3 साल बरबाद करने हैं, उस से अच्छा इन 3 सालों में कहीं जौब कर के मैं अपना कैरियर बनाऊं,’’ निशा ने कहा. मम्मी के लाख समझाने के बाद भी निशा नौकरी की तलाश में निकल पड़ी. उस के अंदर जबरदस्त जोश और आत्मविश्वास था. उस के पास ऊंची पढ़ाई के सर्टिफिकेट और डिगरियां नहीं थीं, लेकिन यह विश्वास अवश्य था कि अगर अवसर मिले तो वह बहुतकुछ कर के दिखा सकती है. वैसे देखा जाए तो लड़कियों के लिए काम की कमी ही कहां? मौल्स, मोबाइल और इंश्योरैंस कंपनियों, बड़ीबड़ी ज्वैलरी शौप्स और कौस्मैटिक स्टोर आदि पर ज्यादातर लड़कियां ही तो काम करती नजर आती थीं. ऐसी जगहों पर काम करने के लिए ऊंची क्वालिफिकेशन से अधिक अच्छी शक्लसूरत की जरूरत थी जोकि निशा के पास थी. सिर्फ अच्छी शक्लसूरत कहना कम होगा, निशा तो एक खूबसूरत लड़की थी. उस में वह जबरदस्त चुंबकीय खिंचाव था जो पुरुषों को विचलित करता है. कहने वाले इस चुंबकीय खिंचाव को सैक्स अपील भी कहते हैं.

निशा उत्साह और जोश से भरी नौकरी की तलाश में निकली अवश्य, मगर जगह- जगह भटकने के बाद मायूस हो वापस लौटी. नौकरी का मिलना इतना आसान नहीं जितना लगता था. निशा 3 दिन नौकरी की तलाश में घर से निकली, मगर उस के हाथ सिर्फ निराशा ही लगी. इस पर मम्मी ने उस को फिर से समझाने की कोशिश की, ‘‘मैं फिर कहती हूं, यह नौकरीवौकरी की जिद छोड़ और आगे की पढ़ाई कर.’’ निशा अपनी मम्मी की कहां सुनने वाली थी. उस पर नौकरी का भूत सवार था. वैसे भी, बढ़े हुए कदमों को वापस खींचना अब निशा को अपनी हार की तरह लगता था. वह किसी भी कीमत पर अपने सपनों को पूरा करना चाहती थी. फिर एक दिन नौकरी की तलाश में निकली निशा, घर आई तो उस के चेहरे पर अपनी कामयाबी की चमक थी. निशा को नौकरी मिल गई थी. नौकरी के मिलने की खुशखबरी निशा ने सब से पहले अपनी मम्मी को सुनाई थी. निशा को नौकरी मिलने की खबर से मम्मी उतनी खुश नजर नहीं आईं जितना कि निशा उन्हें देखना चाहती थी.

मम्मी शायद इसलिए एकदम से अपनी खुशी जाहिर नहीं कर सकीं क्योंकि एक मां होने के नाते जवान बेटी की नौकरी को ले कर दूसरी तरह की कई चिंताएं थीं. इन चिंताओं को अपनी रंगीन कल्पनाओं में डूबी निशा नहीं समझ सकती थी. बेटी की नौकरी की खबर से खुश होने से पहले मम्मी कई बातों को ले कर अपनी तसल्ली कर लेना चाहती थीं.

‘‘किस जगह पर नौकरी मिली है तुम को?’’ मम्मी ने पूछा.

‘‘शहर के एक बहुत बड़े शेयरब्रोकर के दफ्तर में. वहां पहले भी बहुत सारी लड़कियां काम कर रही हैं.’’

‘‘तनख्वाह कितनी होगी?’’

‘‘शुरू में 20 हजार रुपए, बाद में बढ़ जाएगी,’’ इतराते हुए निशा ने कहा. नौकरी को ले कर मम्मी के ज्यादा सवाल पूछना निशा को अच्छा नहीं लग रहा था. तनख्वाह के बारे में सुन मम्मी का माथा जैसे ठनक गया. उन को सबकुछ असामान्य लग रहा था.  बेटी की योग्यता को देखते हुए 20 हजार रुपए तनख्वाह उन की नजर में बहुत ज्यादा थी. एक मां होने के नाते उन को इस में सब कुछ गलत ही गलत दिख रहा था. वे जानती थीं कि मात्र 7-8 हजार रुपए की नौकरी पाने के लिए बहुत से पढ़ेलिखे लोग इधरउधर धक्के खाते फिर रहे थे. ऐसे में अगर उन की इतनी कम पढ़ीलिखी लड़की को इतनी आसानी से 20 हजार रुपए माहवार की नौकरी मिल रही थी तो इस में कुछ ठीक नजर नहीं आता था. निशा की मम्मी ने दुनिया देखी थी, इसलिए उन को मालूम था कि अगर कोई किसी को उस की काबिलीयत और औकात से ज्यादा दे तो इस के पीछे कुछ मतलब होता है, और औरत जात के मामले में तो खासकर. लेकिन निशा की उम्र शायद अभी इस बात को समझने की नहीं थी. उजालों के पीछे की अंधेरी दुनिया के सच से वह अनजान थी. सोचने और विचार करने वाली बात यह थी कि मात्र दरजा 10+2 तक पढ़ी हुई अनुभवहीन लड़की को शुरुआत में ही कोई इतनी मोटी तनख्वाह कैसे दे सकता था. मम्मी को हर बात में सबकुछ गलत और संदेहप्रद लग रहा था, इसलिए उन्होंने निशा को उस नौकरी के लिए साफसाफ मना किया, ‘‘नहीं, मुझ को तुम्हारी यह नौकरी पसंद नहीं, इसलिए तुम वहां नहीं जाओगी.’’

मम्मी की बात को सुन निशा जैसे हैरानी में पड़ गई और बोली, ‘‘इस में नापसंद वाली कौन सी बात है, मम्मी? इतनी अच्छी सैलरी है. किसी प्राइवेट नौकरी में इतनी बड़ी सैलरी मिलना बहुत मुश्किल है.’’ ‘‘सैलरी इतनी बड़ी है, इस कारण ही तो मुझ को यह नौकरी नापसंद है,’’ मम्मी ने दोटूक लहजे में कहा.

‘‘सैलरी इतनी बड़ी है इसलिए तुम को यह नौकरी पसंद नहीं?’’

‘‘हां, क्योंकि मैं नहीं मानती सही माने में तुम इतनी बड़ी सैलरी पाने के काबिल हो. जो कोई भी तुम को इतनी सैलरी देने जा रहा है उस की मंशा में जरूर कुछ खोट होगी,’’ मम्मी ने अपने मन की बात निशा से कह दी. मम्मी की बात को निशा ने सुना तो गुस्से से उत्तेजित हो उठी, ‘‘आप पुरानी पीढ़ी के लोगों को न जाने क्यों हर अच्छी चीज में कुछ गलत ही नजर आता है. वक्त बदल चुका है मम्मी, अब काबिलीयत का पैमाना सर्टिफिकेटों का पुलिं?दा नहीं बल्कि इंसान की पर्सनैलिटी और काम करने की उस की क्षमता है.’’

‘‘मैं इस बात को नहीं मानती.’’

‘‘मानना न मानना तुम्हारी मरजी है मम्मी, मगर ऐसी बातों का खयाल कर के मैं इतनी अच्छी नौकरी को हाथ से जाने नहीं दे सकती. मैं बड़ी हो गई हूं, इसलिए अपनी जिंदगी के फैसले खुद लेने का मुझे हक है,’’ निशा के तेवर बगावती थे. उस के बगावती तेवरों को देख मम्मी एकाएक जैसे ठिठक सी गईं, ‘‘एक मां होने के नाते तुम को समझाना मेरा फर्ज था, मगर लगता है तुम मेरी बात मानने के मूड में नहीं हो. अब इस मामले में तुम्हारे पापा ही तुम से कोई बात करेंगे.’’

‘‘मैं पापा को मना लूंगी,’’ निशा ने लापरवाही से कहा. मम्मी के विरोध को दरकिनार कर के निशा ने जैसा कहा, वैसे कर के भी दिखलाया और नौकरी पर जाने के लिए पापा को मना लिया. लेकिन मम्मी निशा से नाराज ही रहीं. मम्मी की नाराजगी की परवा नहीं कर के निशा नौकरी पर चली गई. एक नौकरी उस के कई सपनों को पूरा करने वाली थी, इसलिए वह रुकती तो कैसे रुकती. मगर उस को यह नहीं मालूम था कि कभीकभी अपने कुछ सपनों की अप्रत्याशित कीमत भी चुकानी पड़ती है. संजय शहर का एक नामी शेयरब्रोकर था. पौश इलाके में स्थित उस का एअरकंडीशंड औफिस काफी शानदार था और उस में कई लड़कियां काम करती थीं. शेयरब्रोकर संजय की उम्र तकरीबन 40 वर्ष थी. उस का सारा रहनसहन और जीवनशैली एकदम शाही थी. ऐसा क्यों नहीं होता, एक ब्रोकर के रूप में वह हर महीने लाखों की कमाई करता था. संजय के औफिस में एक नहीं, कई कंप्यूटर थे जिन के जरिए वह दुनियाभर के शेयर बाजारों के बारे में पलपल की खबर रखता था.

एक लाख की दुल्हन : भाग 2

सानिया उठ कर खड़ी हो गई.‘‘पहले नल पर चल कर आंसुओं से भीगा यह चेहरा धो डालो, फिर मेरे साथ नाश्ता करो.’’ नीलम ने कहा.सानिया ने एक नल पर चेहरा धो कर बालों को ठीक किया, फिर नीलम की ओर देख कर बोली, ‘‘अब ठीक है न आंटी.’’नीलम मुसकरा पड़ी, ‘‘अब अच्छी लग रही हो. चलो, तुम्हें नाश्ता करवाती हूं.’’सानिया उस के साथ स्टेशन से बाहर आ गई. बाहर एक पटरी पर सजी चाय की दुकान पर नीलम ने 2 चाय और बिसकुट लिए और सानिया को नाश्ता करवाया. नाश्ता कर लेने के बाद सानिया को ले कर नीलम एक आटो में सवार हो गई और उसे अपने घर ले आई.

39 साल का दिलीप पूर्वे खूबसूरत शख्स था. वह जरायम की दुनिया का मंझा हुआ खिलाड़ी था. उस ने अपनी पत्नी नीलम के साथ आटो से उतर रही युवती को देखा तो तुरंत ताड़ गया कि पत्नी किसी चिडि़या को फांस लाई है.उस ने उस युवती को सिर से पांव तक देखा. वह नवयौवना नौर्थईस्ट की लग रही थी. उस में गजब का आकर्षण था. यह लड़की सोने का अंडा देगी, यह ताड़ते ही दिलीप की आंखों में गहरी चमक आ गई.वह लपक कर पत्नी नीलम के पास आया और बोला, ‘‘तुम इस मेहमान को अंदर ले कर जाओ. मैं आटो का किराया देता हूं.’’

नीलम सानिया को ले कर अपने घर में आ गई. कुछ ही क्षणों में दिलीप भी आटो का किराया चुका कर कमरे मेआ गया.उस ने नीलम की तरफ प्रश्नसूचक नजरों से देख कर पूछा, ‘‘यह तो अजनबी लगती है.’’
‘‘बेचारी स्टेशन पर बैठी रो रही थी. इस का इस शहर में कोई नहीं है. मैं इसे अपने साथ ले आई.’’ नीलम ने मुसकरा कर बताया.‘‘खाने का समय हो रहा है, तुम फ्रैश होना चाहो तो वहां बाथरूम है. फ्रैश हो जाओ, फिर हम तीनों खाना खाएंगे.’’ नीलम ने सानिया से कहा.

सानिया को नीलम ने तौलिया दे दिया. वह बाथरूम में चली गई तो दिलीप ने नीलम का चेहरा हथेलियों में भर लिया.‘‘कहां मिला यह हीरा?’’ उस ने मुसकरा कर पूछा.‘‘पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर. मैं शिकार की तलाश में भटक रही थी कि इस पर नजर पड़ गई. बस, सहानुभूति का मरहम लगा कर पटा लाई. अब तुम इसे संभालो, मैं खाना तैयार कर लाती हूं.’’दिलीप पूर्वे ने सिर हिलाया.नीलम रसोई में चली गई. दिलीप ने इस बीच सानिया के विषय में बहुत कुछ जान लिया.

एक घंटे बाद वे तीनों एक साथ बैठ कर खाना खा रहे थे. सानिया अब तक काफी सामान्य अवस्था में आ गई थी और उन दोनों से इस प्रकार से हंसबोल रही थी जैसे उन्हें बरसों से जानती हो.‘‘सानिया, तुम अपनी सहेली के पास किस मकसद से आई थी?’’ दिलीप ने पूछा.‘‘काम की तलाश में आई थी अंकल.’’
‘‘कोई बात नहीं. सहेली तुम्हें काम ही तो दिलवाती, यह काम तो मैं भी कर सकता हूं. तुम्हें परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है.’’ दिलीप ने उसे आश्वासन दिया. फिर नीलम को आंख से इशारा किया.
नीलम ने तुरंत दांव चला, ‘‘ऐ जी, मैं एक बात सोच रही हूं.’’

‘‘क्या?’’ दिलीप ने पूछा.‘‘सानिया काम किस के लिए करेगी, अपनी जरूरत के लिए ही न, क्यों सानिया?’’
‘‘हांहां आंटी, इंसान की जरूरतें ही तो उस से कामधंधा करवाती हैं. मैं भी अपनी जरूरतों के लिए काम करना चाहती हूं.’’‘‘तुम्हारे मांबाप, भाईबहन भी होंगे. कमाओगी तो रुपया उन्हें भी भेजोगी?’’ दिलीप ने पूछा.‘‘मांपिताजी बांग्लादेश में कहीं काम करते हैं, उन्होंने मुझे बचपन में ही दादादादी के पास छोड़ दिया था. मुझे दादादादी पढ़ा रहे थे और पाल रहे थे. अब दादाजी चल बसे तो खानेपीने की परेशानी आ गई, इसलिए…’’‘‘हूं…’’ नीलम ने उस की बात काट दी, ‘‘तब तो केवल तुम्हें पेट भर कर खाना, कपड़ा और शौक पूरा करने का सामान चाहिए, इसी के लिए तो काम करना चाहोगी.’’‘‘हां, आंटी.’’‘‘तो फिर इस नाजुक शरीर को क्यों मेहनत की भट्ठी में झोंकना चाहती हो. तुम्हारी उम्र ऐसी नहीं है कि कहीं नौकरी करो.’’
‘‘बगैर मेहनत किए रोटी कहां से मिलेगी आंटी?’’ सानिया ने प्रश्न किया.

‘‘मिलेगी. बगैर मेहनतमजदूरी किए भी रोटी, कपड़ा मिलेगा सानिया.’’ नीलम ने कहा.
‘‘कैसे?’’‘‘हम तुम्हारा घर बसा देंगे. अच्छा सा लड़का देख कर तुम्हारी शादी कर देंगे. तुम्हें वह रोटी, कपड़ा और जरूरत की तमाम चीजें देगा. प्यार भी.’’ नीलम ने कहने के बाद सानिया की तरफ देखा.सानिया के चेहरे पर लाज की रेखाएं उभर आईं, ‘‘अभी से शादी…’’‘‘क्यों?’’ नीलम मुसकराई, ‘‘कितने साल की हो तुम?’’‘‘17 पूरे हो गए हैं, 18वां लगा है.’’ सानिया ने बताया.‘‘अरे, तो कौन सा छोटी हो,’’ नीलम हंस कर बोली, ‘‘मेरी इन से शादी हुई थी तब मैं तो 16 साल की थी और यह मुझ से दोगुनी उम्र के. देख लो, मैं फिट हूं और इन का घर संभाल रही हूं.’’

‘‘जैसा आप लोग ठीक समझें,’’ सानिया धीरे से बोली.‘‘आप बहुत अच्छे हैं,’’ सानिया भावुक स्वर में बोली, ‘‘मुझ अजनबी लड़की को सहारा दिया और अब मेरा घर बसाने की सोच रहे हैं. मैं आप लोगों की जीवन भर अहसानमंद रहूंगी.’’‘‘अहसान नहीं कर रहे हैं,’’ नीलम तुरंत बोली, ‘‘मेरा काम ही है समाज सेवा का. अब तुम सो जाओ. कल तुम्हारे अंकल अपने मिशन पर लग जाएंगे.’’
सानिया मुसकराई और फिर चारपाई पर लेट गई. सुबह सो कर उठी तो नीलम ने उसे फ्रैश हो कर तैयार होने के लिए कह दिया.दिलीप के साथ तैयार हो कर सानिया घर से निकली. दिलीप उसे बस से बाहरी दिल्ली क्षेत्र में स्थित बवाना ले कर आया.

मोहल्ला धुलान के मकान नंबर 294 में महेंद्री रहती थी. दिलीप ने सानिया को बताया कि महेंद्री उस की मौसी है. उस ने 2-3 लड़के देख रखे हैं. वह तुम्हें अच्छे घर में बिठा देगी.महेंद्री ने सानिया को सिर से पांव तक देखा और खुशी से बोली, ‘‘ऐसी हसीन लड़की को कौन पसंद नहीं करेगा. नीलम ने मुझे रात को ही बता दिया था कि इस के लिए अच्छा सा लड़का देखना है. मैं ने एक लड़का देख रखा है. वह शाम तक यहां आ जाएगा.’’‘‘लेकिन मैं शाम तक नहीं रुक सकता मौसी,’’ दिलीप ने असहज होने का नाटक किया.
‘‘तुझे रुक कर करना भी क्या है. सानिया को छोड़ जा, मैं इसे लड़के वालों को दिखा दूंगी.’’ महेंद्री ने कहा, ‘‘तुम दूर से आए हो, बैठो मैं चायनाश्ता लाती हूं.’’

महेंद्री दूसरे कमरे में गई तो दिलीप भी थोड़ी देर में उठ कर उस के पास पहुंच गया.‘‘मैं इस की कीमत 30 हजार दूंगी.’’ महेंद्री ने दिलीप से कहा.‘‘30 हजार? मौसी, यह सोने की चिडि़या है, 30 हजार बहुत कम हैं.’’‘‘रंग सांवला है और उम्र भी कम है. इस के सौदे में रिस्क है…’’‘‘फिर भी 30 हजार कम है.’’ दिलीप ने बात काटी, ‘‘ऐसा करो, तुम 50 हजार दे दो.’’‘‘नहीं, यह बहुत ज्यादा है.’’ महेंद्री गंभीरता से बोली, ‘‘ज्यादा से ज्यादा मैं 40 हजार दे सकती हूं.’’

‘‘ठीक है, दो 40 हजार.’’ दिलीप खुश हो कर बोला.महेंद्री ने ट्रंक से निकाल कर उसे 40 हजार रुपए दे दिए.
‘‘अब तुम जा कर बैठक में बैठो, मैं चायनाश्ता ले कर आती हूं.’’
दिलीप पूर्वे रुपए पैंट की जेब में रख कर बैठक में आ गया.

एक लाख की दुल्हन : भाग 1

अवध आसाम एक्सप्रैस ट्रेन अपना लंबा सफर तय करती हुई दिल्ली के करीब पहुंच गई थी. जिन्हें दिल्ली
उतरना था, वे अपनाअपना सामान संभालने लगे थे. उन के चेहरे प्रफुल्लित थे, दिल्ली पहुंचने का उत्साह व खुशी थी. वहीं पैसेंजर डिब्बे के एक कोने में गठरी बनी बैठी 18 साल की सानिया परेशान और चिंता में डूबी बारबार अपने छोटे से मोबाइल को उलटपुलट कर देख रही थी.

दिल्ली में उसे जिस के पास पहुंचना था, उस का न तो उस के पास एडे्रस था, न उस से फोन से संपर्क हो पा रहा था. शायद यही सानिया की परेशानी का सबब था.जब वह गुवाहाटी से इस ट्रेन में सवार हुई थी, उस ने अपनी परिचित को फोन किया था और अपने दिल्ली आने की खबर की थी. परिचित जो उस की गांव की ही थी और 8वीं तक उस के साथ पढ़ी थी, ने उसे आश्वस्त करते हुए कहा था कि वह दिल्ली आ जाए, वह उसे यहां स्टेशन पर लेने पहुंच जाएगी.

सानिया तब बेफिक्र ट्रेन में सवार हो गई थी. जब दिल्ली करीब आने की सुगबुगाहट उस के कानों में पड़ी तो उस ने अपनी सहेली को फिर से संपर्क करना चाहा था, लेकिन संपर्क नहीं हो पाया था.बस, इसी चिंता ने सानिया को परेशान कर के रख दिया था. उस के चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आई थीं, उसे दिल्ली के नजदीक आने की जरा भी खुशी नहीं हो रही थी.सानिया अपना छोटा सा बैग ले कर वह डिब्बे से नीचे आ गई. प्लेटफार्म पर बहुत भीड़ थी. बहुत शोर था. वह घबरा गई.

अपना बैग सीने से चिपकाए वह अंजान लोगों की भीड़ से बचतीबचाती निकास द्वार की तरफ बढ़ने लगे. तभी उसे भीड़ का धक्का लगा और वह गिर गई. हाथ से छूट कर उस का बैग एक तरफ उछल गया. सानिया ने उठना चाहा तो भीड़ के बीच से उठ नहीं पाई. कितने ही लोग उसे रौंदते हुए निकल गए.
सानिया ज्यादा घबरा गई. वह एक बेंच पर आ कर बैठ गई. बैग में उस के कपड़े और पर्स था, जिस में डेढ़ सौ रुपए के करीब थे. वह बैग के खो जाने से परेशान हो उठी. उस के पास एक रुपया नहीं बचा था.
मोबाइल निकाल कर उस ने अपनी सहेली का नंबर मिलाया. दूसरी ओर से मोबाइल के स्विच्ड औफ होने का संदेश आने लगा. सानिया रो पड़ी. उस की आंखों से झरझर कर आंसू बहने लगे. उस ने घुटनों में सिर छिपा लिया और अपनी बेबसी पर आंसू बहाने लगी.अभी कुछ ही देर हुई थी कि उस के कंधे पर किसी का स्पर्श हुआ और किसी का सुरीला स्वर उस के कानों में पड़ा, ‘‘क्या हुआ, तुम रो क्यों रही हो?’’

सानिया ने घुटनों से सिर ऊपर उठाया. सामने एक युवती खड़ी हुई उसे देख रही थी.
‘‘कौन हो तुम, इस तरह यहां बैठी क्यों रो रही हो?’’ उस युवती ने प्यार से पूछा.सानिया और जोर से रो पड़ी. वह युवती उस के पास बैठ गई. स्नेह से उस के सिर पर हाथ फेरते हुए बोली, ‘‘रोओ मत, मुझे बताओ, तुम्हें क्या परेशानी है?’’‘‘मेरा बैग…’’ सानिया रोते हुए बोली, ‘‘वह भीड़ के धक्के से नीचे गिरा, मैं भी गिर गई थी, संभल कर उठी तो बैग मुझे नहीं मिला.’’‘‘उस में तुम्हारे कपड़े होंगे और खानेपीने का सामान..?’’ युवती ने पूछा.

‘‘कपड़े और पैसे थे,’’ सानिया ने आंसू बहाते हुए बताया, ‘‘अब इस अजनबी शहर में मेरा क्या होगा.’’
युवती की आंखों में तीखी चमक उभर आई, ‘‘अजनबी शहर… तो यहां तुम्हारा कोई अपना नहीं रहता है क्या?’’‘‘मेरी एक सहेली है, उसी के पास आई हूं. उस का नंबर मोबाइल में है, वह नहीं लग पा रहा है.’’
‘‘तुम्हारे पास उस का एड्रेस तो होगा? मुझे बताओ, मैं उस के घर तुम्हें पहुंचा दूंगी.’’
‘‘एड्रेस नहीं है,’’ सानिया ने रुंधे गले से बताया.‘‘कहां से आई हो?’’‘‘डिब्रूगढ़, असम से.’’
‘‘ओह?’’ उस युवती ने होंठों को गोल सिकोड़ा, ‘‘इतनी दूर से आई हो, इतने बड़े शहर में कहां जाओगी, तुम्हारे पास पैसे भी नहीं हैं… अब क्या करोगी?’’

सानिया ने आशा और उम्मीद भरी नजरों से उस युवती की ओर देखते हुए कहा, ‘‘आप मेरी मदद करेंगी?’’
‘‘हां, इस अंजान शहर में तुम कहां भटकोगी, मैं तुम्हें सहारा दूंगी.’’ उस युवती ने प्यार से कहा तो सानिया ने उस के सीने पर अपना सिर रख दिया और भर्राए कंठ से बोली, ‘‘आप बहुत अच्छी हैं.’’
‘‘वो तो मैं हूं ही,’’ युवती होंठों में बुदबुदाई और प्रत्यक्ष में बोली, ‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’
‘‘सानिया.’’‘‘मेरा नाम नीलम है,’’ अपना नाम बताने के बाद नीलम ने सानिया का हाथ पकड़ लिया, ‘‘उठो, मेरे साथ चलो.’’

मोनिका बत्रा टेबल टेनिस का सितारा

कहते हैं पूत के पांव पालने में ही दिखाई दे जाते हैं. इस कहावत को चरितार्थ करते हुए मोनिका बत्रा ने अपने भाई बहन को टेबल टेनिस खेलते हुए देखा और उसे ऐसे आत्मसात कर लिया कि आज मोनिका बत्रा ओलंपिक खेलों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुकी है, वहीं विश्व में भारत का लगातार प्रतिनिधित्व करके हार जीत की मजे लेते हुए खेल की दुनिया में एक ऐसा सितारा बन गई है जो बड़ी दूर से आभा फैला रहा है.

यह सच है कि अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में देश के अनेक खिलाड़ी अपने प्रभावशाली प्रदर्शन से खेलों के नक्शे पर भारत का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा रहे हैं. इधर भारतीय महिला खिलाड़ियों ने  खास तौर से देश का परचम दुनिया में लहराया है.

एक महत्वपूर्ण  भारतीय महिला खिलाड़ियों में गिने जाने वाली मनिका बत्रा ने  अब एक और ऊंचाई हासिल करते  हुए एशियाई कप टेबल टेनिस में कांस्य पदक हासिल किया है और खास बात यह है कि आप ऐसा करने वाली भारत की पहली महिला खिलाड़ी हैं.

मोनिका बत्रा ने अपने सधे हुए खेल से खेल प्रेमियों का कई दफा दिल जीता है. यही कारण है कि भारत सरकार द्वारा वर्ष 2020 में देश के सबसे बड़े खेल सम्मान  “मेजर ध्यान चंद खेल रत्न” पुरस्कार से सम्मानित किया गया. यहां रेखांकित करने वाली बात यह है कि मनिका बत्रा ने बैंकाक, थाईलैंड में खेली गई इस प्रतियोगिता में महिला सिंगल्स का सेमीफाइनल मुकाबला हारने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी और कांस्य पदक के लिए हुए मुकाबले में जापान की हीना हयाता को हरा कर  तीसरा स्थान हासिल कर लिया . इस तरह  इतिहास में कोई भी मेडल जीतने वाली देश की पहली महिला खिलाड़ी मोनिका बत्रा बन गई.

शिखर पर है मोनिका

स्मरण रहे कि एशियाई कप टेबल टेनिस प्रतियोगिता के पुरुष वर्ग में भारत को देश के  खिलाड़ी चेतन बबूर ने पदक दिलाया था. बबूर वर्ष 1997 में पुरुष सिंगल्स के फाइनल तक पहुंच गए और उन्होंने रजत पदक हासिल किया था. , तत्पश्चात वर्ष 2000 में चेतन बबूर ने एक बार फिर कांस्य पदक जीतकर भारत के पदकों की संख्या में वृद्धि कर दिखाई .

टेबल टेनिस में देश में आज एक सितारे का रूतबा हासिल कर चुकी मोनिका बत्रा का जन्म पंद्रह जून 1995 को देश की राजधानी दिल्ली में हुआ. मोनिका परिवार में  तीन भाई-बहनों में सबसे छोटी हैं. बड़ी बहन आंचल और भाई साहिल टेबल टेनिस के अच्छे खिलाड़ी थे और उन्हीं की प्रेरणा से नन्हीं मनिका ने भी पांच साल की उम्र से ही टेबल टेनिस खेलना शुरू कर दिया.

और आगे परिवार ने उनका समर्पण देख कर , भविष्य की एक प्रतिभावान खिलाड़ी की छवि देखकर मोनिका को बहुत कम उम्र में ही टेबल टेनिस का बाकायदा प्रशिक्षण दिलाने का फैसला किया . खास बात यह है कि मनिका को किशोरावस्था में ही माडलिंग के कई प्रस्ताव मिले, लेकिन उन्होंने जीवन में हमेशा टेबल टेनिस को महत्व दिया  और यहां तक कि उन्हें खेल पर अपना पूरा ध्यान केंद्रित करने के लिए अपनी पढ़ाई भी बीच में ही छोड़ दी . यही समर्पण है कि आज मोनिका बत्रा खेल की दुनिया में महत्वपूर्ण मुकाम रखती है और भारत सरकार ने उन्हें सम्मानित किया.

मनिका के खाते में एक और उपलब्धि  दर्ज है, वह अपने हमवतन खिलाड़ी एस ज्ञानशेखरन के साथ मिश्रित युगल विश्व वरीयता क्रम में नंबर पांच पर पहुंचीं और किसी भारतीय जोड़ी के लिए टेबल टेनिस विश्व रैंकिंग में यह अब तक की शीर्ष वरीयता है.

मोनिका बत्रा ओलंपिक खेलों में देश का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं. 27 साल की मनिका बत्रा विश्व में 44 वें नंबर की खिलाड़ी हैं और उन्हें टेबल टेनिस के खेल में देश की अब तक की सबसे प्रतिभा पूर्ण तथा सफलतम महिला खिलाड़ी माना जाता है. देश को मोनिका से और भी बहुत ज्यादा आशाएं हैं और अभी उनके पास भविष्य में समय भी है कि वे अपना और बेहतर प्रदर्शन दिखा सकें.

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