सवाल
मैं 21 वर्षीय युवती हूं. पिछले कई महीनों से मैं अपने बौयफ्रैंड के साथ उस के फ्लैट पर जाया करती थी. वहां हम दोनों के बीच शारीरिक संबंध बन गए. इस दौरान बौयफ्रैंड ने जरूरी ऐहतियात नहीं बरता, बल्कि मेरे बारबार आग्रह करने पर वह मुझ से नाराज हो जाता था. मैं मजबूर थी कहीं मैं उसे खो न दूं. लेकिन अब मुझे डर है कि कहीं मैं प्रैगनैंट न हो जाऊं. अब मुझे क्या करना चाहिए?
जवाब
यदि संबंध बनाने के बाद आप को मासिकधर्म नहीं हुआ है तो डरने की जरूरत है. मासिकधर्म न होने पर आप प्रैगनैंसी टैस्ट किट का इस्तेमाल कर के जांच कर सकती हैं. यह जांच आप घर पर खुद भी कर सकती हैं. यदि जांच के बाद किट में 2 लाल लकीरें दिखें तो आप जल्द ही डाक्टर से कंसल्ट करें. यदि आप के और आप के बौयफ्रैंड के बीच रिलेशन गहरे हैं तो आप को जल्द ही शादी कर लेनी चाहिए. यदि आप का बौयफ्रैंड शादी के लिए राजी नहीं है तो उस के न कहने की वजह जानने की कोशिश करें और उस के हाथों इमोशनली ब्लैकमेल होने से बचें. यदि आप अपनी इच्छा से संबंध बनाती हैं तो हर हाल में प्रोटैक्शन यूज करें.
आराध्या के जन्मदिन के मौके पर एक्ट्रेस ने अपने सोशल मीडिया पे ये फोटो शेयर करते हुए लिखा ‘मेरा प्यार , मेरी ज़िंदगी ॥ आई लव यू मेरी आराध्या . यह पोस्ट लोगों को बहुत पसंद आया और पर कुछ लोगों ने उन्हें ट्रोल भी किया . इस पोस्ट पर फैन्स ने जमकर कमेन्ट किया और आराध्या को बधाई दी .कुछ यूजर ने इसपे कमेन्ट करते हुए कहा की ‘ माँ का प्यार , और दूसरी तरफ यूजर ने कहा यह हमारे देश का कल्चर नहीं .
ऐश्वर्या की इस पोस्ट पर अब तक 4 लाख से भी ज्यादा लाइक आ चुके है.
ऐश्वर्या और अभिषेक ने 2007 में की थी शादी
बता दे कि ऐक्ट्रिस ऐश्वर्या और अभिषेक बच्चन ने 2007 में शादी की थी. ये शादी की चरचाए सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी खूब सुर्खिया बटोरी थी . शादी के 4 साल बाद यानि की 2011 में ऐक्ट्रिस ने बेटी को जन्म दिया था. अपनी पोती का नाम अमिताभ बच्चन खुद ने ही रखा था . अमिताभ बच्चन को आराध्या नाम बहुत ही पसंद है इसी कारण उन्होंने अपनी पोती का नाम आराध्या बच्चन रखा .
आराध्या को लेकर ऐश्वर्या है प्रोटेक्टिव
आराध्या को लेकर ऐक्ट्रिस ऐश्वर्या राय बच्चन काफी प्रोटेक्टिव रहती है ऐक्ट्रिस हमेशा पापराजी और कैमरा से बचाती है . ऐश्वर्यस अपनी बेटी के काफी क्लोज़ है , यही कारण है की ऐश्वर्या हमेशा अपने बेटी के साथ ही नजार आती है.
तमिलनाडु के धर्मपुरी की रहने वाली 52 वर्षीया पद्मम अपने परिवार से दूर पिछले 15 सालों से कोच्चि शहर में रह रही थी. जबकि उस का बीमार पति और 2 बच्चे धर्मपुरी में ही रहते थे. पद्मम वहां लौटरी की टिकटें बेचने का काम करती थी. वह कोच्चि के एर्नाकुलम स्थित कदावंथरा इलाके में किराए पर कमरा ले कर रह रही थी. बीते 6 महीने पहले उस का यह धंधा मंदा पड़ गया था, जिस के चलते वह दिहाड़ी मजदूरी का काम करने लगी थी.
अपना काम खत्म करने के बाद वह हर दिन अपने परिवार से फोन से बात करना नहीं भूलती थी. वह रोजाना अपने छोटे बेटे सेल्वम को फोन किया करती थी. एक दिन भी नहीं गुजरा जब उस ने अपने बेटे सेल्वम को फोन नहीं किया हो, लेकिन 26 सितंबर को देर शाम तक जब सेल्वम के पास मां का फोन नहीं आया तब वह चिंतित हो गया. वह तुरंत अपनी मां से मिलने के लिए कदावंथरा के लिए रवाना हो गया.
अगले रोज वह मां के कमरे पर गया, वहां ताला लगा था. मां को नहीं पा कर वह चिंतित हो गया. आसपास के लोगों से उस ने मां के बारे में पूछा तो किसी ने उसे बताया कि वह तो एक दिन पहले से ही अपने काम से वापस नहीं लौटी है.
मां को ले कर सेल्वम और अधिक परेशान हो गया. किसी अनहोनी की आशंका से वह डर गया. वह तुरंत कदावंथरा पुलिस थाने गया और अपनी मां की गुमशुदगी की सूचना दर्ज करवा दी.
पुलिस को ऐसी ही अधेड़ महिला के लापता होने की शिकायत 4 माह पहले भी जून के महीने में मिल चुकी थी. वह भी लौटरी टिकट बेचने का ही काम करती थी. दोनों घटनाओं ने पुलिस को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि एक ही धंधे से जुड़ी बुजुर्ग महिलाएं अखिर कहां लापता हो सकती हैं.
दूसरी लापता महिला 49 वर्षीय रोजली थी. वह भी मूलरूप से त्रिशूर की रहने वाली थी, लेकिन कलाडी के मट्टूर में किराए के घर में एक व्यक्ति के साथ रह रही थी. उस के बारे में पुलिस को पता चला कि उस की शादी टूट गई थी और वह अपने पति से अलग रह रही थी. वह 6 जून, 2022 को लापता हो गई थी, जिस की गुमशुदगी बेटी मंजू ने 18 अगस्त, 2022 को कलाडी थाने में दर्ज कराई थी. शिकायत में उस ने बताया था कि वह जिस आदमी के साथ रह रही थी, उस के साथ भी उस के अच्छे संबंध नहीं थे.
सीसीटीवी फुटेज से मिला सुराग
उस के काम के बारे में बेटी ने बताया था कि वह एक आयुर्वेदिक चिकित्सालय में भी काम कर रही थी, लेकिन कोच्चि शहर में लौटरी टिकट बेचने का काम भी करती थी. उस की मां से आखिरी मुलाकात जनवरी में तब हुई थी, जब वह छुट्टी मनाने मां के पास आई थी. उस के बाद वह वापस अपने पिता के पास चली गई थी.
जब 6 जून के बाद उस का मां से कोई संपर्क नहीं हो पाया, तब उस ने उस आदमी से संपर्क किया था, जिस के साथ वह रहती थी. किंतु उस ने मां के बारे में कोई सही जानकारी नहीं दी. उस के बाद उस ने अपनी मां के लापता होने की शिकायत की.
पुलिस ने सेल्वम से उस की मां का मोबाइल नंबर ले कर उसे सर्विलांस पर लगा दिया. इस के अलावा सीसीटीवी कैमरे की फुटेज की भी स्टडी शुरू कर दी. उस के लिए ज्यादातर सीसीटीवी तसवीरें और लापता पद्मम की फोन पर हुई सभी बातचीत की रिकौर्डिंग निकलवाई.
जल्द ही पुलिस को पद्मम की एक सीसीटीवी तसवीर मिल गई, जिस में वह त्रिरुवल्ला में एक युवक के साथ जाती हुई दिख रही थी. उन के मोबाइल की आखिरी लोकेशन भी वहीं की मिली थी.
इस तरह कोच्चि शहर की कदावंथरा पुलिस और एर्नाकुलम ग्रामीण की कलाडी पुलिस द्वारा 2 लापता महिलाओं के दर्ज मामलों में सब से पहला सुराग सेल्वम की मां पद्मम के फोन सर्विलांस और सीसीटीवी फुटेज से मिला था.
पुलिस ने जब इस दिशा में जांचपड़ताल की तब एर्नाकुलम के पेरुंबवुर निवासी शफी उर्फ रशीद के बारे में पता चला. उसे हिरासत में ले कर जब पूछताछ की जाने लगी, तब उस के जवाब अटपटे और भ्रमित करने वाले थे.
बातोंबातों में वह भगवान, तंत्रमंत्र और पूजापाठ की बातें असहजता के साथ करने लगा था. हर बात पर कभी भगवान की तो कभी अल्लाह व ईसा मसीह की कसमें खाने लगा था. उस की बातों से पुलिस को वह एक सनकी और बेतुका इंसान ही लगा.
थाने में एक पुलिसकर्मी ने जब नजरें तरेर कर हड़काया तो वह डर गया. फिर भी वह कहने लगा कि मुझे भगवान पर भरोसा है कि वह उसे बचा लेंगे.
इसी पूछताछ के दौरान पुलिस ने उसे 26 सितंबर, 2022 की वह सीसीटीवी की फुटेज दिखाई, जिस में वह पद्मम के साथ जाता हुआ दिख रहा था. कुछ सेकेंड के उस वीडियो को देखते ही बोल पड़ा, ‘‘वह तो मर गई…उसे मार दिया.’’
‘‘मर गई…! तूने मार दिया?’’
‘‘नहीं नहीं मैं क्यों मारूंगा? मैं तो सभी भगवान की पूजा करता हूं… यह पाप मैं भला क्यों करूंगा?’’ शफी डरता हुआ बोला.
‘‘तो किस ने मारा?’’ पुलिस अधिकारी ने एक झापड़ के साथ डांट लगाई.
‘‘मैं ने नहीं, उसी ने मारा. उस को पैसा चाहिए था,’’ शफी बोला.
‘‘पैसा चाहिए था! साफसाफ बताओ, क्या हुआ उस औरत के साथ..? जरा भी झूठ बोला तो देख ले ऊपर उसी खूंटी में लटकी रस्सी में लटका दूंगा.’’ जांच अधिकारी ने ऊपर की ओर अंगुली दिखाई और उस के बाल पकड़ कर उस का सिर उस ओर कर दिया.
‘‘छोड़ दो, मुझे छोड़ दो. मैं निर्दोष हूं, मैं ने कुछ नहीं किया. जो कुछ किया उस मसाज वाले ने किया साहब.’’ शफी बोला.
‘‘क्या किया उस ने?’’
‘‘उस की बलि दे दी!’’
‘‘बलि दे दी? क्या बक रहे हो, तुम होश में तो हो न?’’ चौंकते हुए जांच अधिकारी ने कहा.
‘‘हां साहब, मैं एकदम होश में हूं. उस की भागवल सिंह और लैला ने बलि दे दी है. उसी ने 4 महीने पहले भी एक और महिला की बलि दी थी,’’ शफी बोला.
‘‘और क्या जानते हो उस के बारे में, विस्तार से बताओ. भागवल कौन है, कहां रहता है? तुम उसे कैसे जानते हो? सब कुछ बताओ.’’ जांच अधिकारी की जिज्ञासा बढ़ी और उन्हें एहसास हुआ कि अब मामला जल्द ही सुलझने वाला है.
शफी ने उस बारे में आगे जो बताया वह काफी हैरान करने वाला था.
दरअसल, पथनामथिट्टा में एलंथूर के रहने वाले दंपति भागवल सिंह और उस की पत्नी लैला ने तांत्रिक मोहम्मद शफी के साथ मिल कर 3 महीने में दोनों महिलाओं की अलगअलग दिनों में पूजा के दौरान बलि दे दी थी.
इस बारे में तीनों से रात भर की गई गहन पूछताछ के बाद दोनों हत्याओं का विस्फोटक खुलासा हो गया. साथ ही पुलिस रिकौर्ड में दर्ज दोनों लापता महिलाओं के बारे में पूरी जानकारी मिल गई थी.पता चला कि तीनों आरोपियों ने उन की नृशंस हत्या कर के उन के शवों के 56 टुकड़े कर मकान के पास अगलबगल दफना दिए थे. यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस कमिश्नर सी.एच. नागराजू ने 11 अक्तूबर, 2022 को मीडिया को सनसनीखेज मामले की जानकारी दी.
अब पुलिस को दोनों महिलाओं के शव बरामद करने थे. शवों की पहचान के लिए पुलिस ने शिकायतकर्ता बेटे और बेटी को बुलवा लिया, साथ ही डीएनए टेस्ट कराने की भी बात कही.
आरोपियों को घटनास्थल पर ले जाने के बाद पुलिस ने महिलाओं की लाशों के 56 टुकड़े गड्ढा खोद कर बरामद कर लिए.
सबूत बरामद कर पुलिस ने आरोपियों को गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया, जहां से तीनों को 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.
पुलिस कमिश्नर सी.एच. नागराजू ने बताया कि यह कई परतों वाला एक बहुत ही जटिल मामला है. चौंकाने वाले इस मामले के संबंध में सब से ज्यादा शिक्षित राज्य केरल से किसी को ऐसी घटना की उम्मीद नहीं थी. इस बारे में विस्तृत कहानी इस प्रकार सामने आई—
कोरोना के दरम्यान कई लोगों के रोजगार ठप हो गए थे. उन में डा. भागवल सिंह भी था. वह आयुर्वेद का डाक्टर है और उस ने अपने घर में ही आयुर्वेदिक मसाज का छोटा सा क्लिनिक खोल रखा था.
वह पंचकर्म और दूसरे तरह की आयुर्वेदिक तेल मसाज आदि का काम करता था. इस में उस की पत्नी लैला भी योगदान करती थी. स्थानीय मरीज से ले कर विदेशी पर्यटक तक उस के ग्राहकों में शामिल थे. किंतु कोरोना फैलने के बाद लोगों का आनाजाना लगभग बंद हो गया था, जिस का बुरा असर उस के काम पर भी पड़ा था.
वह भारी कर्ज में डूब गया था. उसे पैसे की सख्त जरूरत थी, ताकि वह अपने कारोबार को नए सिरे से खड़ा कर सके.
बात इसी साल मईजून महीने की है. वह किसी भी तरह से पैसा पाना चाहता था. उन्हीं दिनों उस की नजर फेसबुक पेज पर गई, जो श्रीदेवी के नाम से बना हुआ था. उस में जो जानकारी दी गई थी, वह उस के मतलब की थी. उस ने तुरंत उसे फ्रैंडशिप रिक्वेस्ट भेज दी. उस ने समझा कोई श्रीदेवी फैंस का ग्रुप होगा, जो जरूरतमंदों की मदद का काम करता है.
फेसबुक पेज पर एक क्रिएटिव में आर्थिक तंगी की समस्या के समाधान का शर्तिया उपाय करने का दावा किया गया था. उस ने तुरंत उस में दिए गए मोबाइल नंबर पर काल की. वह नंबर तांत्रिक मोहम्मद शफी का था.
शफी ने उसे बताया कि उस के पास आर्थिक तंगी दूर करने का जो तरीका है, उस बारे में मिल कर बताएगा. उस ने यह भी कहा कि वह उस पर भरोसा करे, ऐसा करने से उन के घर में धनवैभव आने लगेगा. इस काम में वह उन की पूरी मदद करेगा.
डा. भागवल उस की बातों पर भरोसा कर पत्नी लैला के साथ तांत्रिक शफी से जा कर मिला. शफी ने बताया कि उसे एक पूजा करनी होगी, जो मानव बलि का होगी. इस से भगवान खुश होंगे.
साथ ही यह भी बताया कि वो ही बलि के लिए महिलाओं का इंतजाम भी कर देगा. बदले में उसे थोड़े पैसे खर्च करने होंगे. पतिपत्नी इस के लिए तैयार हो गए. उस के बाद शफी इस काम में जुट गया.
इसी क्रम में शफी ने पहले कलाडी मट्टूर और बाद में धर्मपुरी की रहने वाली महिलाओं को पैसों और काम का लालच दे कर त्रिरुवल्ला ले आया.
कलाडी से लाई गई रोजली नाम की महिला को उस ने 6 जून को फिल्मों में काम दिलवाने का झांसा दिया था, जिस में उसे 10 लाख रुपए मिलने की बात बताई थी. दूसरी महिला पद्मम को उस ने 26 सितंबर को नौकरी दिलवाने का झांसा दिया था.
तांत्रिक पहले जून में कलाडी की रहने वाली रोजली (49) को ले कर पथनामथिट्टा के एलंथूर ले गया. वहीं उस ने तंत्र साधना की और उस की बलि दी गई. डाक्टर की पत्नी लैला ने रोजली का सिर धड़ से अलग किया और डा. भागमल सिंह ने उस के स्तन काट कर अलग किए. फिर लाश के अनेक टुकड़े कर डाले. अनुष्ठान करने के बाद शव के टुकड़े वहीं दफना दिए.
इस तांत्रिक अनुष्ठान के बाद 3 माह बीत गए, लेकिन डा. भागवल की आर्थिक स्थिति में जरा भी सुधार नहीं हुआ. उस ने फिर तांत्रिक शफी से संपर्क किया. इस पर शफी ने उसे फिर झांसे में ले लिया और कहा कि उसे एक और मानव बलि देनी होगी. इस के लिए शफी ने ही दूसरी महिला पद्मम (52) का इंतजाम भी कर लिया. उस की तय कार्यक्रम के अनुसार बलि दे दी गई.
उन्होंने इस का भी गला काटा था. भागवल ने पद्मम के भी स्तन काट दिए थे. बलि दे कर मारी गई महिलाओं के शवों के 56 टुकड़े कर घर के पिछवाड़े में दफन कर दिए थे.
भून कर खाए महिलाओं के स्तन
काले जादू की रस्म के तहत दीवारों और फर्श पर खून के छींटे पड़े हुए थे. पुलिस को जांच में पता चला कि डा. भागवल ने दोनों महिलाओं के काटे हुए स्तन भून कर खाए थे. यह सब तांत्रिक के कहने पर काला जादू को प्रभावशाली बनाने के लिए किया था, ताकि धनसंपदा को अपनी ओर खींचा जा सके.
पुलिस की गिरफ्त में आने के बाद तांत्रिक मोहम्मद शफी के पुराने कुकर्मों का काला चिट्ठा भी खुल गया. जिस में वह मानव तस्करी के धंधे में लिप्त पाया गया.
पता चला कि वह एक सनकी और मनोरोगी इंसान है, जिस पर वर्ष 2020 में एर्नाकुलम के पथनामथिट्टा में 75 वर्षीय महिला के साथ दुष्कर्म का मामला दर्ज किया जा चुका था.
पता चला कि पिछले 15 सालों में उस के खिलाफ 10 मामले दर्ज हो चुके हैं. पुलिस के मुताबिक शफी की आपराधिक पृष्ठभूमि रही है. वही नरबलि मामले का मास्टरमाइंड भी था. वह बहुत ही शातिरदिमाग का था. श्रीदेवी के नाम से फेसबुक अकाउंट खोलने वाला शफी और राशिद एक ही व्यक्ति था, जिस ने भागवल सिंह को मानव बलि के लिए उकसाया था.
दरअसल, वह खुद मोहम्मद शफी था. भागवल सिंह और उस की पत्नी लैला उसे राशिद समझते थे.
पकड़े गए तीनों आरोपियों की ओर से अदालत में अधिवक्ता बी.ए. अलूर पेश हुए, जिन्हें कई सनसनीखेज मामलों में आरोपियों की पैरवी करने के लिए जाना जाता है. आईपीएस आर. निशानथिनी ने इस मामले को सुलझाते हुए बताया कि यह अपराध आर्थिक तंगी दूर करने और समृद्धि प्राप्त करने के लिए किया गया था.
इस लोमहर्षक घटना को ले कर केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने शोक व्यक्त करते हुए नाराजगी जताई. उन्होंने कहा कि मानसिक रूप से बीमार लोग ही इस तरह के अपराध कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि इस तरह के काला जादू और जादूटोना की रस्मों को सभ्य समाज के लिए एक चुनौती के रूप में ही देखा जा सकता है.
इस बीच नरबलि का मामला सामने आने के बाद राज्य में सत्तारूढ़ मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के युवा संगठन डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन औफ इंडिया की ओर से विरोध मार्च निकाला, जहां काले जादू के तहत कथित तौर पर महिलाओं की बलि दी गई थी.
डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन औफ इंडिया ने कहा कि इस तरह की घटना केरल राज्य के लिए एक अपमानजनक बात है, जो देश में सामाजिक, सांस्कृतिक और साक्षरता के क्षेत्र में एक आदर्श है.
युवा संगठन ने बाद में एक विरोध सभा आयोजित की और कहा कि यह शर्म की बात है कि लोग अभी भी अंधविश्वास वाली मान्यताओं में विश्वास रखते हैं.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
कहते हैं कि समाज सेवा से बड़ा कोई कर्म और धर्म नहीं है. यह मुरादाबाद के डा. अरविंद कुमार गोयल ने कर दिखाया है. उन्होंने इस के लिए कितना किया है, इस का हिसाब लगाना आसान नहीं. लेकिन इतना जरूर है कि उन्होंने सामाजिक जरूरतों को महसूस करते हुए अपनी 600 करोड़ रुपए की प्रौपर्टी दान करने का जो कदम उठाया, उसे एक मिसाल कह सकते हैं.
25 साल पहले बात उस समय की है, जब एक बार डा. अरविंद कुमार गोयल अपने मैडिकल प्रोफेशन के सिलसिले में ट्रेन से दिल्ली जा रहे थे. दिसंबर महीने की सर्दी की रात थी. उन की ट्रेन एक स्टेशन पर रुकी थी. तब उन्हें चाय पीने की तलब हुई.
वह चाय पीने के लिए प्लेटफार्म पर उतरे. उन्हें कहीं चाय बेचने वाला नहीं दिखा. कुहासे में बहुत कुछ साफ भी नहीं दिख रहा था. इधरउधर नजरें घुमाईं. चार कदम पर ही बेंच पर लेटे एक आदमी को ठिठुरता देख उन की निगाहें उस पर टिक गईं.
उन्होंने देखा कि वह आदमी ठंड के कारण बुरी तरह से ठिठुर रहा था. उस के पास कोई कंबल नहीं था. साधारण सी चादर से वह खुद को किसी तरह से ढंके हुए था. उस के पैर चादर से बाहर निकले हुए थे. पैरों में कोई जुराब या चप्पल तक नहीं थे.
डा. गोयल ट्रेन में तुरंत अपनी सीट पर गए. अपना कंबल समेटा, जूते खोले, उन में जुराबें डालीं और ठिठुरने वाले उस आदमी के पास जा पहुंचे. उन्होंने उसे अच्छी तरह से कंबल ओढ़ाया और उसे जूतेमोजे पहना दिए.
वापस गाड़ी में आ गए. बैग से अपना शाल निकाला और ओढ़ कर बैठ गए. उन्होंने पानी के 2-4 घूंट पिए तो लगा चाय की तलब खत्म हो गई हो. गाड़ी चल पड़ी. इसी के साथ उन के दिमाग में कई बातें भी चलती रहीं.
कुछ देर तक उन्होंने सर्दी सहन करने की कोशिश की. कड़ाके की ठंड होने की वजह से उन की हालत भी खराब होने लगी थी. लेकिन उस आदमी की हालत उन के जेहन में बस चुकी थी. इस के बाद उन्होंने गरीब बेसहारों के लिए काम करना शुरू कर दिया था. यहीं से समाज सेवा न केवल उन की दिनचर्या का हिस्सा बनी, बल्कि जीवन का लक्ष्य भी.
उस के बाद से ठंड हो या बारिश, वह रोजाना ही गरीबों की आर्थिक मदद करने लगे थे. लिहाफ या कंबल वितरण वह स्वयं करते हैं.
सारी संपत्ति दान कर के बचा है सिर्फ स्कूटर
इस बात का जिक्र डा. गोयल ने पिछले दिनों तब किया, जब उन्होंने 18 जुलाई, 2022 को मीडिया के सामने अपनी 600 करोड़ रुपए की संपत्ति दान में देने की घोषणा की. इस बारे में उन्होंने राज्य सरकार को लिखा पत्र भी दिखाया. उन्होंने बताया कि दान की संपत्ति को इस्तेमाल करने के लिए सरकार को एक कमेटी बनाने की सलाह दी है.
पुरानी घटना का जिक्र करते हुए डा. गोयल ने बताया, ‘‘उस रात मैं ने सोचा कि न जाने कितने लोग ठंड में ठिठुरते होंगे. तब से मैं ने गरीब और बेसहारा लोगों की मदद करने की कोशिश शुरू की थी. मैं ने काफी तरक्की की है, लेकिन जीवन का कोई भरोसा नहीं है. इसलिए जीवित रहते अपनी संपत्ति सही हाथों में सौंप रहा हूं. ताकि ये किसी जरूरतमंद के काम आ सके. गरीबों की शिक्षा और चिकित्सा के लिए राज्य सरकार को सहयोग मिल सके.’’
अपने जीवन भर की कमाई से डा. गोयल ने मुरादाबाद के सिविल लाइंस का सिर्फ बंगला ही अपने पास रखा है, जिस में वह अपने परिवार के साथ रहते हैं. परिवार में उन की पत्नी रेणु गोयल के अलावा उन के 2 बेटे और एक बेटी है.
उन के बड़े बेटे मधुर गोयल मुंबई में रहते हैं. छोटा बेटा शुभम प्रकाश गोयल मुरादाबाद में रहते हैं और अपने पिता को समाजसेवा और व्यवसाय में मदद करते हैं. दान के बाद आनेजाने के लिए उन के पास मात्र एक स्कूटर बचा हुआ है. उन की इसी पुराने स्कूटर की वजह से सादगी को ले कर भी चर्चा होती रही है.
वह जब भी अपने वृद्धाश्रम जाते हैं तो वहां रह रही महिलाओं के आशीर्वाद के हाथ स्वत: उठ जाते हैं. सभी उन्हें अपने बेटे की तरह स्नेह करती हैं. वह भी उन के साथ घंटों गुजारते हैं. घरेलू खेल और दूसरे कार्यों में सहभागी बनते हैं. उन्हें वृद्ध महिलाओं के साथ कैरम बोर्ड खेलते हुए और मां की तरह सेवा करते अकसर देखा जा सकता है.
गरीबों और असहायों की सेवा में जुटे रहने वाले शहर के समाजसेवी एवं शिक्षाविद डा. गोयल का नाम उन की सेवा कार्यों को ले कर ही चर्चा में बना रहता है. देश और विदेश तक उन की चर्चा होती है.
वृद्धों की सेवा के साथ ही हजारों निराश्रित बच्चों की पढ़ाई के खर्च का भी जिम्मा उन्होंने उठा रखा है. देश के अलगअलग राज्यों में उन की शिक्षण संस्थाओं में गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा दी जाती है.
इस संबंध में बीते साल 2021 में उन्हें दिल्ली में आयोजित एक निजी कार्यक्रम में आमंत्रित किया गया था. इस दौरान उन्होंने बच्चों को कैसे संस्कार दिया जाएं, के बारे में संबोधित किया था. इस कार्यक्रम में अलगअलग राज्यों से आए समाजसेवी और कारोबारियों को सम्मानित किया गया था.
इसी कार्यक्रम का एक वीडियो उन की एक प्रशंसक द्वारा फेसबुक और इंस्टाग्राम पर अपलोड कर दिया गया था. वह वीडियो इस कदर वायरल हुआ कि 2 दिनों में ही फेसबुक पर इस वीडियो को 50 लाख और इंस्टाग्राम में 89 लाख लोगों ने देखा.
देशविदेश की अनेक हस्तियों ने किया सम्मानित
इस उपलब्धि पर उन्हें लोगों ने बधाइयां दीं. वीडियो के वायरल होने का एक कारण यह भी बताया जाता है कि समाजसेवा के साथ ही शिक्षा क्षेत्र में किए गए कार्यों को ले कर देश और विदेश में कई बार उन्हें सम्मानित किया जा चुका है. उन के बारे में एक बात सर्वमान्य हो चुकी है कि वह हमेशा असहायों की मदद को तत्पर रहते हैं.
डा. गोयल के पिता प्रमोद कुमार गोयल और मां शकुंतला देवी स्वतंत्रता सेनानी थे. पिता का भी बड़ा कारोबार था. उन के कई कोल्डस्टोरेज, राइस मिल, स्टील फैक्ट्री आदि थे. समाज सेवा की भावना डा. अरविंद के अंदर अपने मातापिता के संस्कार के कारण ही आई.
डा. अरविंद गोयल को देश के 4 राष्ट्रपति सम्मानित कर चुके हैं. पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रणव मुखर्जी, प्रतिभा देवी पाटिल, डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने इन्हें सम्मानित किया तो इन्हें भी अपार खुशी महसूस हुई.
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह व क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर, शाहरुख खान, सदी के महानायक अमिताभ बच्चन, अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ भी इन्हें सम्मानित कर चुके हैं.
थाईलैंड सरकार द्वारा इन्हें ग्लोब लीडरशिप अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है. फिल्म इंडस्ट्री के सब से बड़े आइफा अवार्ड समारोह में वह 3 बार मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए हैं.
उत्तराखंड की तत्कालीन राज्यपाल मार्गरेट अल्वा ने अरविंद गोयल को उत्तराखंड रत्न सम्मान से सम्मानित किया था. कपिल सिब्बल भी एकता सम्मान से इन्हें सम्मानित कर चुके हैं. पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने गोयल को भारत के गौरव रत्न दे कर सम्मानित किया था. 2015 में टाइम्स औफ इंडिया द्वारा आयोजित इकोनौमिक टाइम्स इंडिया कार्यक्रम में राजनेता राजीव प्रताप रूड़ी ने इन्हें सम्मानित किया था.
अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने भी डा. अरविंद गोयल को स्टार्टअप योजना के शुभारंभ पर लखनऊ में उन्हें प्रतीक चिह्न दे कर सम्मानित किया.
यही नहीं, उन के परिवार में कई सदस्य जिम्मेदार पदों पर काम कर चुके हैं. बहनोई मुख्य चुनाव आयुक्त और ससुर जज रह चुके हैं, जबकि उन के दामाद सेना में कर्नल हैं.
उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद शहर के रहने वाले डा. अरविंद गोयल के पास उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में 100 से ज्यादा शिक्षण संस्थान, वृद्धाश्रम और अस्पताल हैं. उन में वह ट्रस्टी हैं. कोविड 19 लौकडाउन के दौरान उन्होंने मुरादाबाद के 50 गांवों को गोद ले कर लोगों को मुफ्त खाना और दवा दिलवाई थी. वह भी अपनी जान जोखिम में डाल कर.
डा. गोयल का यह फैसला व्यक्तिगत नहीं था. बल्कि इस में उन्हें पूरे परिवार वालों की सहमति मिली. पत्नी रेणु और तीनों बच्चों ने इस फैसले पर खुशी जताई.
डा. गोयल द्वारा संपत्ति दान करने की घोषणा से नगर के लोग खुश हैं तो हतप्रभ भी हैं कि आखिर वह क्या वजह रही, जो उन्होंने अपनी मेहनत से अर्जित की गई संपत्ति 3 बच्चों के होते हुए भी सरकार के हवाले करने का निर्णय लिया. जबकि सरकार की संस्थाएं घिसटती हुई चलती हैं.
बहरहाल, डा. गोयल द्वारा दान की गई संपत्ति की निगरानी को लेकर भी लोगों के मन में कई सवाल हैं, हालांकि उस के लिए कमेटी बनाने का बात कही गई है.
आईएएस और आईपीएस की टीम करेगी निगरानी
सरकार संपत्ति लेने से पहले 5 सदस्यीय टीम गठित करेगी, जिस में आईएएस और आईपीएस अफसर शामिल होंगे. इस टीम के द्वारा दान की गई जमीन में परियोजनाओं का संचालन करने की योजना बनाई जाएगी.
टीम द्वारा संपत्ति का पूर्ण आकलन कर गरीबों के लिए बेहतर उपचार, शिक्षा की व्यवस्था के केंद्र खोले जाएंगे.
अरविंद गोयल ने मुरादाबाद के जिलाधिकारी शैलेंद्र कुमार सिंह को पत्र द्वारा अपनी 600 करोड़ रुपए की संपत्ति राज्य सरकार को दान देने की घोषणा कर दी है. दान की प्रक्रिया जिलाधिकारी शैलेंद्र कुमार सिंह के माध्यम से पूरी की जाएगी.
डा. अरविंद गोयल की मदद से देश में सैकड़ों स्कूल, हजारों प्याऊ, अनेकों वृद्धाश्रम, बड़ी संख्या में अस्पताल, सैकड़ों सुलभ शौचालय, रैन बसेरे, अनेक विकलांग आश्रम, विधवा आश्रम संचालित हैं. वह अनेक गांवों को गोद ले कर उन्हें आदर्श गांव में बदल चुके हैं.
अरविंद गोयल व उन के परिवार के पास देश भर में 250 से ज्यादा स्कूल थे. कोरोना काल में कुछ स्कूल बंद हो गए. वर्तमान में करीब 200 से ज्यादा स्कूल चल रहे हैं.
इन स्कूलों का संचालन डा. अरविंद गोयल की मदद से होता है. विभिन्न प्रदेशों में जो स्कूल गोद लिए हैं, उन का नाम तक नहीं बदला है. प्रदेश में स्थित संपत्तियों को दान करने का प्रस्ताव उत्तर प्रदेश शासन को भेजा जा चुका है, जल्द ही इस की प्रक्रिया पूर्ण हो जाएगी.
यों तो इस तरह के पत्र आते रहते थे और मैं उन्हें अनदेखा करता रहता था, लेकिन इन पत्रों पर गौर करना तब से शुरू कर दिया जब से शहर के एक लेखक ने मित्रमंडली में बताया कि उसे अब तक देश की विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं से एक हजार सम्मान मिल चुके हैं. मित्र लोग वाहवाह कर उठे. एक दिन मुझ से पूछा, ‘‘तुम्हें कोई सम्मान नहीं मिला आज तक? तुम भी तो काफी समय से लिख रहे हो.’’ उस समय मैं ने स्वयं को अपमानित सा महसूस किया.
मेरे शहर के इस लेखक मित्र के बारे में अकसर अखबार में छपता रहता था कि शहर का गौरव बढ़ाने वाले लेखक को दिल्ली की एक प्रसिद्ध साहित्यिक संस्था से एक और पुरस्कार. मैं ने अपने लेखक मित्र से पूछा, ‘‘इन पुरस्कारों की क्या योग्यता होती है?’’
उस ने गर्व से कहा, ‘‘मेहनत, लगन और लेखन. इस में कोई भाईभतीजावाद नहीं चलता. जो अच्छा लेखक होता है उसे सम्मान मिलता ही है.’’
मैं ने कहा, ‘‘आप की आयु तो मुझ से बहुत कम है. आप ने शायद मेरे बाद ही लिखना शुरू किया है. अब तक कितना लिख चुके हो.’’
उन्होंने नाराज हो कर कहा, ‘‘ कितना लिखा है, यह जरूरी नहीं है और आयु का लेखन से लेनादेना नहीं है. मेरी 2 किताबें छप चुकी हैं. मैं ने 20 कविताएं और 10 के आसपास कहानियां लिखी हैं. लेकिन लेखन इतना शानदार है कि साहित्यिक संस्थाएं स्वयं को रोक नहीं पातीं मुझे सम्मान देने से.’’
मैंने कहा, ‘‘मुझे भी बताइए कहां से कैसे सम्मान मिलते हैं? क्या करना पड़ता है? पुस्तकें कैसे छपती हैं?’’
उन्होंने कहा, ‘‘आप बड़े स्वार्थी हैं. साहित्य सेवा का काम है. साहित्य से यह उम्मीद मत रखिए कि आप को कुछ मिले. आप को देना ही देना होता है. 2 पुस्तकें मैं ने स्वयं के खर्च पर छपवाई हैं. और सम्मान मिलते हैं योग्यता पर.’’
खैर, दोस्त ने अपना उत्तर दे दिया. मैं ने फिर वे पत्र निकाले जिन्हें मैं अनदेखा करता रहता था. जो पत्र बचे हुए थे, उन्हें पढ़ना शुरू किया. काफी तो मैं फाड़ चुका था, बेकार समझ कर. ठीक वैसे ही जैसे अकसर मोबाइल पर एसएमएस आते रहते हैं कि आप को 10 करोड़ मिलने वाले हैं कंपनी की ओर से. आप इनकम टैक्स और अन्य खर्च के लिए हमारी बैंक की शाखा में फलां नंबर के अकाउंट में 10 हजार रुपए डिपौजिट करवा दें.
बाद में समाचारपत्रों से खबर मिलती है कि इन्हें ठग लिया गया है. इन की रकम डूब चुकी है. बैंक अकाउंट से सारे रुपए निकाल कर इनाम का लालच देने वाले गायब हो चुके हैं. खाता बंद हो चुका है. पुलिस की विवेचना जारी है. ऐसे ठगों से जनता सावधान रहे.
पहले पत्र में लिखा था कि हमारी अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक संस्था ने आप को श्रेष्ठ लेखन का पुरस्कार देने का निर्णय लिया है. यदि आप इच्छुक हों तो कृपया अपना पासपोर्ट साइज कलर फोटो, संपूर्ण परिचयपत्र, साहित्यिक उपलब्धियां और 1,500 रुपए का एमओ या नीचे दिए बैंक खाते में राशि जमा करें. एक फौर्म भी संलग्न था. प्रविष्टि भेजने की अंतिम तारीख निकल चुकी थी. दूसरा पत्र भी इसी तरह था. बस, अंतर राशि की अधिकता और पुरस्कार श्रेष्ठ कविता पर था. साथ में पुस्तक की 2 प्रतियां भेजनी थीं. इस की भी अंतिम तिथि निकल चुकी थी.
सम्मान का लोभ हर लेखक को होता है, थोड़ा सा मुझे भी हुआ. मैं ने पत्र के अंत में दिए नंबरों पर बात करने की सोची. पहले को फोन किया, कहा, ‘‘महोदय, आप की संस्था अच्छा कार्य कर रही है. अंतिम तिथि निकल चुकी है. कुछ प्रश्न भी हैं मन में.’’
उन्होंने उधर से कहा, ‘‘आप भेज दीजिए. अंतिम तिथि की चिंता मत कीजिए. हम आप की प्रविष्टि को एडजस्ट कर लेंगे.’’
मैं ने दूसरा प्रश्न किया, ‘‘जनाब, साहित्यिक उपलब्धियों में क्या लिखूं? लिख तो पिछले 20 साल से रहा हूं लेकिन कोई उपलब्धि नहीं हुई. बस, कहानियां, लेख लिख कर अखबार में भेजता रहता हूं. फिर उसी अखबार, जिस में रचना छपी होती है, को खरीदता भी हूं क्योंकि समाचारपत्र वालों से पूछने पर यही उत्तर मिलता है, ‘हम छाप कर एहसान कर रहे हैं. आप 2 रुपए का अखबार नहीं खरीद सकते. हमारे पास और भी काम हैं.’
‘‘‘हम अखबार की प्रति नहीं भेज सकते. आप चाहें तो अपनी रचनाएं न भेजें. हमें कोई कमी नहीं है रचनाओं की. रोज 10-20 लेखकों की रचनाएं आती हैं और हां, भविष्य में रचनाएं छपवाना चाहें तो पहला नियम है कि अखबार की वार्षिक, आजीवन सदस्यता ग्रहण करें. साथ ही, समाचारपत्र में दिया साहित्य वाला कूपन भी चिपकाएं. आजकल नया नियम बना है लेखकों के लिए. आप लोगों को छाप रहे हैं तो अखबार को कुछ फायदा तो पहुंचे.’’’
उधर से साहित्यिक संस्था वाले ने अखबार वालों को कोसा. उन्हें व्यापारी बताया और खुद को लेखकों को प्रोत्साहन देने वाला सच्चा उपासक. ‘‘आप उपलब्धि में जो चाहे लिख कर भेज दीजिए. जैसे, पिछले कई वर्षों से लगातार लेखन कार्य. चाहे तो अखबार में छपी रचनाओं की फोटोकौपी भेज दीजिए. ज्यादा नहीं, दोचार.’’
मैं ने फिर पूछा, ‘‘श्रीमानजी, ये 1,500 रुपए किस बात के भेजने हैं?’’ उन्होंने समझाया. मैं ने समझने की कोशिश की. ‘‘देखिए सर, सम्मानपत्र छपवाने का खर्चा, संस्था के बैनरपोस्टर लगवाने का खर्चा और आप के लिए चायनाश्ता का इंतजाम भी करना होता है. आप को संस्था का स्मृतिचिह्न भी दिया जाएगा. शौल ओढ़ा कर माला पहनाई जाएगी. आप को जो सुंदर आमंत्रणपत्र भेजा है उस की छपवाई से ले कर डाक व्यय तक. फिर मुख्य अतिथि के रूप में बड़े अधिकारी, नेताओं को बुलाना पड़ता है. उन की खातिरदारी, सेवा में लगने वाला व्यय. बहुत खर्चा होता है साहब. जो हौल हम किराए पर लेते हैं उस का भी खर्चा.’’
पाकिस्तानी क्रिकेटर शोएब मलिक और इंडियन बेडमिनटन क्वीन सानिया मिर्जा अपने तलाक की खबरों के चलते सुर्खियों में हैं. हालांकि इसी बीच सानिया अपना 36वां बर्थडे मना रही हैं. वहीं उनके पति शोएब मलिक ने सोशल मीडिया के जरिए वाइफ को बर्थडे विश किया है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…
पति ने ऐसे किया बर्थडे विश
पाकिस्तानी क्रिकेटर शोएब मलिक ने पत्नी सानिया मिर्जा को सोशलमीडिया के जरिए बर्थडे विश करते हुए एक प्यारी सी फोटो शेयर की है. इसके साथ ही उन्होंने कैप्शन में लिखा आपको जन्मदिन मुबारक हो सानिया, आपकी बहुत स्वस्थ और सुखी जीवन की कामना! दिन का भरपूर आनंद उठाएं.’ क्रिकेटर की इस फोटो पर फैंस जमकर कमेंट कर रहे हैं और सानिया को जन्मदिन की ढेरों बधाई दे रहे हैं.
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तलाक की उड़ी खबरें
बीते दिनों बैडमिंटन प्लेयर सानिया मिर्जा के पति के साथ तलाक की खबरों ने फैंस को चौंका दिया था. दरअसल, खबरों की माने तो किक्रेटर अफेयर के चलते तलाक की नौबत आ पहुंची हैं. हालांकि दोनों ने आधिकारिक तौर पर कोई बयान नहीं दिया है. लेकिन तलाक की खबरों के बीच बैडमिंटन प्लेयर सानिया ने पति संग अपने नए शो का ऐलान किया है. वहीं इस शो के आने की खबरों के बाद लोग तलाक की खबरों को पब्लिसिटी स्टंट का नाम दे रहे हैं.
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बता दें, तलाक की खबरों के बीच टेनिस क्वीन ने अपना 36वां जन्मदिन दुबई में अपने खास दोस्त अनन्या बिड़ला और फराह खान कुंदर के साथ सेलिब्रेट किया है. जबकि इस सेलिब्रेशन में सानिया के पति शोएब मलिक शामिल होते हुए नहीं दिखे, जिसके बाद तलाक की खबरों ने फिर तूल पकड़ ली है.
साहस रोजाना आरुषी को कालेज पहुंचाने और लेने जाने लगा. फिर भी वे लड़के आरुषी को परेशान कर ही रहे थे. आरुषी उन के ध्यान में तो थी, पर साहस ने उन के खिलाफ कालेज में शिकायत कर रखी थी, इसलिए वे ज्यादा कुछ कर नहीं पा रहे थे.
उस दिन आरुषी कालेज के गेट नंबर एक की ओर जा रही थी, तभी कैंटीन में काम करने वाला एक लड़का आरुषी को एक चिट्ठी दे गया. जिस में लिखा था कि आरुषी आज तुम गेट नंबर 2 की ओर आना. वहां बसस्टाप पर मैं तुम्हें मिलूंगा-साहस.
आरुषी गेट नंबर 2 के पास बने बसस्टाप पर खड़ी हो कर साहस का इंतजार करने लगी. तभी वे गुंडे मोटरसाइकिल से आ कर आरुषी को घेर कर उस के साथ छेड़छाड़ करने लगे.
गेट नंबर 2 की ओर कोई आताजाता नहीं था, इसलिए वहां सुनसान रहता था. इसीलिए उन गुंडों ने साहस के नाम से फरजी चिट्ठी लिख कर कैंटीन के लड़के को भेज कर आरुषी को धोखे से वहां बुलाया था.
रोज की तरह साहस गेट नंबर एक पर खड़े हो कर आरुषी का इंतजार कर रहा था. पर जब आरुषी को आने में देर होने लगी तो वह कालेज के अंदर जा कर आरुषी को खोजने लगा.
दूसरी ओर आरुषी को अपनी सुंदरता पर बड़ा घमंड है, कह कर वे लड़के आरुषी को डराधमका रहे थे. अंत में जो लड़का आरुषी को काफी समय से प्रपोज कर रहा था, उस ने आरुषी के चेहरे पर एसिड फेंकते हुए कहा, ‘‘अगर तू मेरी नहीं हुई तो मैं तुझे किसी और की भी नहीं होने दूंगा.’’
इस के बाद सभी गुंडे मोटरसाइकिल से भाग गए. आरुषी दर्द और जलन से जोरजोर चीखते हुए जमीन पर पड़ी तड़प रही थी. पर उन गुंडों के डर और धाक की वजह से कोई मदद के लिए आगे नहीं आ रहा था. साहस को आरुषी की चीख सुनाई दी तो वह गेट नंबर 2 की ओर भागा. आरुषी की हालत देख कर उस के पैरों तले जैसे जमीन खिसक गई.
आरुषी को उस ने अपनी गाड़ी से नजदीक के अस्पताल पहुंचाया, जहां तत्काल उस का इलाज शुरू किया गया. उस की आंखें तो बच गईं, पर उस का नाजुक कोमल चेहरा भयानक हो चुका था. मम्मीपापा की परी अब परी नहीं रही.
जितना हो सका, उतनी सर्जरी कर के आरुषी को घर लाया गया. अपने कमरे में लगे आईने में अपना चेहरा देख कर आरुषी जिंदा लाश बन गई. आईने के सामने घंटों बैठने वाली आरुषी अब आईने के सामने जाने से डरने लगी थी. अब वह सब से दूर भागने लगी थी.
आरुषीकी हालत देख कर साहस भी परेशान रहने लगा था. आरुषी पर एसिड अटैक करने वाले सभी के सभी लड़कों को साहस ने जेल भिजवा दिया था, साथ ही साथ आरुषी को भी संभाल रहा था.
आरव जो आरुषी को चिढ़ाने के लिए चुहिया कहता था, अब उसी तरह आरुषी चूहे की तरह कोने में छिप गई थी. जो लड़की हाथ पर दाल गिरने से मां से लिपट कर रोने लगी थी, अब वही असह्य पीड़ा सहते हुए मां के पास बैठी रोती रहती थी.
आरुषी और साहस की शादी की तारीख नजदीक आती जा रही थी. एक दिन साहस ने आरुषी के पास आ कर कहा, ‘‘आरुषी शादी की तारीख नजदीक आ गई है, चलो आज थोड़ी शौपिग कर आते हैं. अभी तक हम ने शादी की कोई तैयारी नहीं की है.’’
आरुषी जोरजोर से रोने लगी. उस ने साहस से शादी के लिए मना कर दिया और कहा कि वह किसी दूसरी सुंदर लड़की से शादी कर ले. इस के बाद वह साहस से दूर रहने लगी, जो साहस से सहन नहीं हो रहा था.
आरुषी के इस व्यवहार से दुखी हो कर एक दिन साहस ने कहा, ‘‘आरुषी, तुम मेरे साथ ऐसा व्यवहार क्यों कर रही हो? मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकता. मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम देखने में कैसी लगती हो. मैं ने तुम्हें पहली बार देखा था, तभी तुम्हारा भोलापन मुझे बहुत भा गया था. उसी समय तुम मेरे दिल में उतर गई थी. तुम अपनी ही कही बात भूल गई?
‘‘तुम ने ही तो कहा था कि अपना जीवनसाथी खूब प्यार करने वाला होना चाहिए. प्रेम करना आसान है, पर किसी का प्रेम पाना बहुत मुश्किल है. आरुषी, मैं सचमुच तुम्हें बहुत प्यार करता हूं. जितना तुम मुझे करती हो, उस से भी बहुत ज्यादा. इसी तरह का जीवनसाथी चाहती थीं न तुम?’’
‘‘साहस, तब की बात अलग थी. अब मैं तुम्हारे लायक नहीं रही.’’ आरुषी ने कहा.
‘‘ऐसा क्यों कहती हो आरुषी? अगर यही घटना मेरे साथ घटी होती तो..? तो क्या तुम मुझे छोड़ देती? अगर शादी के बाद ऐसा होता तो… जवाब दो?’’
‘‘साहस, तुम समझने की कोशिश करो. अब मैं पहले जैसी नहीं रही.’’ आरुषी ने साहस को समझाने की कोशिश की.
आरुषी के इस व्यवहार से नाराज हो कर साहस वहां से चला गया. उस के जाने के लगभग एक घंटे बाद आरुषी के यहां फोन आया. आरुषी सहित घर के सभी लोग तुरंत अस्पताल भागे. अस्पताल पहुंच कर पता चला कि साहस ने लोहे का सरिया गरम कर के अपना चेहरा उतना ही दाग लिया था, जितना आरुषी का जला था. आरुषी ने साहस के पास जा कर उस का हाथ पकड़ कर रोते हुए कहा, ‘‘साहस, तुम ने यह क्या किया?’’
‘‘अब तो हम दोनों एक जैसे हो गए हैं न? अब मैं तुम्हारे लायक हो गया न? अब तो तुम शादी के लिए मना नहीं करोगी न?’’ साहस ने कहा.
‘‘सौरी साहस, तुम सचमुच मुझे बहुत प्यार करते हो. मैं भी तुम्हें बहुत प्यार करती हूं, तुम से भी ज्यादा. मैं तुम्हें कभी नहीं छोड़ूंगी, कभी नहीं.’’
इस दृश्य को देख कर दोनों ही परिवारों के सभी लोगों की आंखें भर आईं. शायद इसे ही सच्चा प्यार कहते हैं. प्यार सुंदरता का मात्र आकर्षण नहीं होना चाहिए, प्यार तो एक दिल से दूसरे दिल तक पहुंचने का कठिन जरिया है.
कविता रुपए जोड़ती और वकील को भेज देती थी. आखिर पूरे 22 महीने बाद वकील ने कहा, ‘जमानतदार ले आओ, साहब ने जमानत के और्डर कर दिए हैं.’
फिर एक परेशानी. जमानतदार को खोजा, उसे रुपए दिए और जमानत करवाई, तो शाम हो गई. जेलर ने छोड़ने से मना कर दिया.
कविता सास के भरोसे बेटियां घर पर छोड़ आई थी, इसलिए लौट गई और राकेश से कहा कि वह आ जाए. सौ रुपए भी दे दिए थे.
रात कितनी लंबी है, सुबह नहीं हुई. सीताजी ने क्यों आत्महत्या की? वे क्यों जमीन में समा गईं? सीताजी की याद आई और फिर कविता न जाने क्याक्या सोचने लगी.
सुबह देर से नींद खुली. उठ कर जल्दी से तैयार हुई. बच्चियों को भी बता दिया था कि उन का बाप आने वाला है. राकेश की पसंद का खाना पकाने के लिए मैं जब बाजार गई, तो बाबाजी का भाषण चल रहा था. कानों में वही पुरानी कहानी सुनाई दे रही थी. उस ने कुछ पकवान लिए और टोले पर लौट आई.
दोपहर तक खाना तैयार कर लिया और कानों में आवाज आई, ‘राकेश आ गया.’
कविता दौड़ते हुए राकेश से मिलने पहुंची. दोनों बेटियों को उस ने गोद में उठा लिया और अपने घर आने के बजाय वह उस के भाई और अम्मां के घर की ओर मुड़ गया.
कविता तो हैरान सी खड़ी रह गई, आखिर इसे हो क्या गया है? पूरे
22 महीने बाद आया और घर छोड़ कर अपनी अम्मां के पास चला गया.
कविता भी वहां चली गई, तो उस की सास ने कुछ नाराजगी से कहा, ‘‘तू कैसे आई? तेरा मरद तेरी परीक्षा लेगा. ऐसा वह कह रहा है, सास ने कहा, तो कविता को लगा कि पूरी धरती, आसमान घूम रहा है. उस ने अपने पति राकेश पर नजर डाली, तो उस ने कहा, ‘‘तू पवित्तर है न, तो क्या सोच रही है?’’
‘‘तू ऐसा क्यों बोल रहा है…’’ कविता ने कहा. उस ने बेशर्मी से हंसते हुए कहा, ‘‘पूरे 22 महीने बाद मैं आया हूं, तू बराबर रुपए ले कर वकील को, पुलिस को देती रही, इतना रुपया लाई कहां से?’’
कविता के दिल ने चाहा कि एक पत्थर उठा कर उस के मुंह पर मार दे. कैसे भूखेप्यासे रह कर बच्चियों को जिंदा रखा, खर्चा दिया और यह उस से परीक्षा लेने की बात कह रहा है.
उस समाज में परीक्षा के लिए नहाधो कर आधा किलो की लोहे की कुल्हाड़ी को लाल गरम कर के पीपल के सात पत्तों पर रख कर 11 कदम चलना होता है.
अगर हाथ में छाले आ गए, तो समझो कि औरत ने गलत काम किया था, उस का दंड भुगतना होगा और अगर कुछ नहीं हुआ, तो वह पवित्तर है. उस का घरवाला उसे भोग सकता है और बच्चे पैदा कर सकता है.
राकेश के सवाल पर कि वह इतना रुपया कहां से
लाई, उसे सबकुछ बताया. अम्मांबापू ने दिया, उधार लिया, खिलौने बेचे, लेकिन वह तो सुन कर भी टस से मस नहीं हुआ.
‘‘तू जब गलत नहीं है, तो तुझे क्या परेशानी है? इस के बाप ने मेरी 5 बार परीक्षा ली थी. जब यह पेट में था, तब भी,’’ सास ने कहा.
कविता उदास मन लिए अपने झोंपड़े में आ गई. खाना पड़ा रह गया. भूख बिलकुल मर गई.
दोपहर उतरतेउतरते कविता ने खबर भिजवा दी कि वह परीक्षा देने को तैयार है. शाम को नहाधो कर पिप्पली देवी की पूजा हुई. टोले वाले इकट्ठा हो गए. कुल्हाड़ी को उपलों में गरम किया जाने लगा.
शाम हो रही थी. आसमान नारंगी हो रहा था. राकेश अपनी अम्मां के साथ बैठा था. मुखियाजी आ गए और औरतें भी जमा हो गईं.
हाथ पर पीपल के पत्ते को कच्चे सूत के साथ बांधा और संड़ासी से पकड़ कर कुल्हाड़ी को उठा कर कविता के हाथों पर रख दिया. पीपल के नरम पत्ते चर्रचर्र कर उठे. औरतों ने देवी गीत गाने शुरू कर दिए और वह गिन कर 11 कदम चली और एक सूखे घास के ढेर पर उस कुल्हाड़ी को फेंक दिया. एकदम आग लग गई.
मुखियाजी ने कच्चे सूत को पत्तों से हटाया और दोनों हथेलियों को देखा. वे एकदम सामान्य थीं. हलकी सी जलन भर पड़ रही थी.
मुखियाजी ने घोषणा कर दी कि यह पवित्र है. औरतों ने मंगलगीत गाए और राकेश कविता के साथ झोंपड़े में चला आया. रात हो चुकी थी. कविता ने बिछौना बिछाया और तकिया लगाया, तो उसे न जाने क्यों ऐसा लगा कि बरसों से जो मन में सवाल उमड़ रहा था कि सीताजी जमीन में क्यों समा गईं, उस का जवाब मिल गया हो. सीताजी ने जमीन में समाने को केवल इसलिए चुना था कि वे अपने घरवाले राम का आत्मग्लानि से भरा चेहरा नहीं देखना चाहती होंगी.
राकेश जमीन पर बिछाए बिछौने पर लेट गया. पास में दीया जल रहा था. कविता जानती थी कि 22 महीनों के बाद आया मर्द घरवाली से क्या चाहता होगा?
राकेश पास आया और फूंक मार कर दीपक बुझाने लगा. अचानक ही कविता ने कहा, ‘‘दीया मत बुझाओ.’’
‘‘क्यों?’’
‘‘मैं तेरा चेहरा देखना चाहती हूं.’’
‘‘क्यों? क्या मैं बहुत अच्छा लग रहा हूं?’’
‘‘नहीं.’’
‘‘तो फिर?’’
‘‘तुझे जो बिरादरी में नीचा देखना पड़ा, तू जो हार गया, वह चेहरा देखना चाहती हूं. मैं सीताजी नहीं हूं, लेकिन तेरा घमंड से टूटा चेहरा देखने की बड़ी इच्छा है.’’
उस की बात सुन कर राकेश भौंचक्का रह गया. कविता ने खुद को संभाला और दोबारा कहा, ‘‘शुक्र मना कि मैं ने बिरादरी में तेरी परीक्षा लेने की बात नहीं कही, लेकिन सुन ले कि अब तू कल परीक्षा देगा, तब मैं तेरे साथ सोऊंगी, समझा,’’ उस ने बहुत ही गुस्से में कहा.
‘‘क्या बक रही है?’’
‘‘सच कह रही हूं. नए जमाने में सब बदल गया है. पूरे 22 महीनों तक मैं ईमानदारी से परेशान हुई थी, इंतजार किया था.’’
राकेश फटी आंखों से उसे देख रहा था, क्योंकि उन की बिरादरी में मर्द की भी परीक्षा लेने का नियम था और वह अपने पति का मलिन, घबराया, पीड़ा से भरा चेहरा देख कर खुश थी, बहुत खुश. आज शायद सीता जीत गई थी.