सयाना इश्क: क्यों अच्छा लाइफ पार्टनर नही बन सकता संजय- भाग 3

नंदिता ने अंदाजा लगाया संजय से ही बात कर रही होगी, ”नहीं, अब एग्जाम्स के बाद ही मिलेंगे, बहुत मुश्किल है पहली बार में पास होना, बहुत मेहनत करेंगे.‘’

संजय ने क्या कहा, वह तो नंदिता कैसे सुनती, पर कान पीहू की बात की तरफ लगे थे जो कह रही थी, ”नहीं, नहीं, मैं इतना हलके में नहीं ले सकती पढ़ाई. मुझे पहली बार में ही पास होना है. तुम भी सब छोड़ कर पढ़ाई में ध्यान लगाओ.”

नंदिता जानती थी कि उस ने हमेशा पीहू को स्वस्थ माहौल दिया है. वह अपने पेरैंट्स से कुछ भी, कभी भी कह सकती थी. यह बात भी पीहू नंदिता को बताने आ गई, बोली, ”मुझे अभी बहुत गुस्सा आया संजय पर, कह रहा है कि सीए के एग्जाम्स तो कितने भी दे सकते हैं. फेल हो जाएंगें तो दोबारा दे देंगे.” और फिर अपने रूम में जा कर पढ़ने बैठ गई.

नंदिता पीहू की हैल्थ का पूरा ध्यान रखती, देख रही थी, रातदिन पढ़ाई में लग चुकी है पीहू. संजय कभी घर आता तो भी उस से सीए के चैप्टर्स, बुक, पेपर्स की ही बात करती रहती. संजय इन बातों से बोर हो कर जल्दी ही जाने लगा. वह कहीं आइसक्रीम खाने की या ऐसे ही बाहर चलने की ज़िद करता तो कभी पीहू चली भी जाती तो जल्दी ही लौट आती. जैसेजैसे परीक्षा के दिन नजदीक आने लगे. वह बिलकुल किताबों में खोती गई. और सब के जीवन में वह ख़ुशी का दिन आ भी गया जब पीहू ने पहली बार में ही सीए पास कर लिया. संजय बुरी तरह फेल हुआ था. पीहू को उस पर गुस्सा आ रहा था, बोली, “मम्मी, देखा आप ने, अब भी उसे कुछ फर्क नहीं पड़ा, कह रहा है कि अगली बार देखेगा, नहीं तो अपना दूसरा कैरियर सोचेगा.”

नंदिता ने गंभीर बन कर कहा, ”देखो, हम बहुत खुश हैं, तुम ने मेरी बात मान कर पढ़ाई पर ध्यान दिया. अब हमारी बारी है तुम्हारी बात मानने की. बोलो, संजय के पेरैंट्स से मिलने हम कब उस के घर जाएं?”

”अभी रुको, मम्मी, अब तो प्रौपर जौब शुरू हो जाएगा मेरा उसी बिग फोर कंपनी में जहां मैं आर्टिकलशिप कर रही थी. अब औफिस जाने में अलग ही मजा आएगा. ओह्ह, मम्मी, मैं आप दोनों को बड़ी पार्टी देने वाली हूं.”

पीहू नंदिता और विनय से लिपट गई.

अगले कुछ दिन पीहू बहुत व्यस्त रही. अब जौब शुरू हो गया था. अच्छी सैलरी हाथ में आने की जो ख़ुशी थी, उस से चेहरे की चमक अलग ही दिखती. फोन पर ‘माय लव’ की जगह संजय नाम ने ले ली थी. संजय अब पीहू की छुट्टी के दिन ही आता. दोनों साथसाथ मूवी देखने भी जाते, खातेपीते, पर अब नंदिता को वह बेटी का ख़ास बौयफ्रैंड नहीं, एक अच्छा दोस्त ही लग रहा था. पीहू अब उस से शादी की बात कभी न करती. उलटा, ऐसे कहती, ”मम्मी, संजय बिलकुल सीरियस नहीं है अपने कैरियर में. मुझे तो लगता है इन की फेमिली बहुत ही लापरवाह है. कोई भी सैट ही नहीं होता. कोई भी कभी कुछ करता है, कभी कुछ. इन के घर जाओ तो सब अस्तव्यस्त दिखता है. मेरा तो मन ही घबरा जाता है. फौरन ही आने के लिए खड़ी हो जाती हूं.‘’

नंदिता सब सुन कर बहुतकुछ सोचने लगी. सीए के एग्जाम्स 6 महीने बाद फिर आए. संजय ने फिर पढ़ाई में कमी रखी, फिर फेल हुआ. पीहू को संजय पर बहुत गुस्सा आया, बोली, ”बहुत लापरवाह है, इस से नहीं होगा सीए. अब बोल रहा है, फिर 6 महीने में एग्जाम्स तो देगा पर बहुत ज्यादा मेहनत नहीं कर पाएगा.’’

नंदिता ने यों ही हलके से मूड में कहा, ”अब इसे शादी की जल्दी नहीं, पीहू?”

”है, अब भी बहुत ज़िद करता है, शादी कर लेते हैं, मैं पढ़ता रहूंगा बाद में.”

विनय ने पूछा, ”तुम क्या सोचती हो?”

”अभी मुझे समय चाहिए. पहले यह देख लूं कि यह अपनी लाइफ को ले कर कितना सीरियस है. बाकी तो बाद की बातें हैं.”

उस रात नंदिता को ख़ुशी के मारे नींद नहीं आ रही थी. पीहू तो बहुत समझदार है, प्यार भी किया है तो एकदम दीवानी बन कर नहीं घूमी, होशोहवास कायम रखे हुए, गलत फैसले के मूड में नहीं है पीहू. नंदिता को पीहू पर रहरह कर प्यार आ रहा था, सोच रही थी कि अच्छा है, आज का इश्क थोड़ा सयाना, प्रैक्टिकल हो गया है, थोड़ा अलर्ट हो गया है, यह जरूरी भी है.

पीहू रात में लेटीलेटी ठंडे दिमाग से सोच रही थी, संजय की बेफिक्री, उस के कूल नैचर पर फ़िदा हो कर ही उस के साथ जीवन में आगे नहीं बढ़ा जा सकता. संजय और उस का पूरा परिवार लापरवाह है. मैं ने पढ़ाई में बहुत मेहनत की है. इस प्यार मोहब्बत में कहीं अपना कोई नुकसान न कर के बैठ जाऊं. संजय अच्छा दोस्त हो सकता है पर लाइफपार्टनर तो बिलकुल भी नहीं.

और ऐसा भी नहीं है कि संजय उस से शादी न करने के मेरे फैसले से मजनू बन कर घूमता रहेगा. उसे लाइफ में बस टाइमपास से मतलब है, यह भी मैं समझ चुकी हूं. ऐसा भी नहीं है कि मैं कोई वादा तोड़ रही हूं और उसे धोखा दे रही हूं. वह खुद ही तो कहता है कि वह लाइफ में किसी भी बात को सीरियसली नहीं लेगा. फिर क्यों बंधा जाए ऐसे इंसान से. अब वह जमाना भी नहीं कि सिर्फ भावनाओं के सहारे भविष्य का कोई फैसला लिया जाए. मैं कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाऊंगी जिस से मुझे कभी बाद में पछताना पड़े. जल्दबाजी में फैसला ले कर रोज न जाने कितनी ही लड़कियां अपना नुकसान कर बैठती हैं. न, न, अब जब भी इश्क होगा, सयाना होगा, कोई बेवकूफी नहीं करेगा.

पोंगापंथ: काले जादू के नाम पर नरबलि

26 सितंबर, 2022 को कोच्चि शहर के एक थाने में शिकायत मिली थी, जिस में एक औरत ने बताया था कि उस की 50 साल की बहन पद्मा कई दिनों से लापता है, जो कुछ महीने पहले से ही कोच्चि में रह रही थी. इस से पहले वह तमिलनाडु के धर्मापुरी इलाके में रहती थी.

पुलिस द्वारा जब पद्मा के फोन की जांच हुई, तो उस में किसी रशीद उर्फ मोहम्मद शफी का नंबर भी था. पुलिस ने शक के आधार पर उस के बारे में जानकारी जुटाई और हिरासत में ले कर पूछताछ की, तबएक सनसनीखेज जानकारी सामने आई.

पता चला कि एक औरत की नहीं, बल्कि 2 औरतों की नरबलि दी गई थी. दूसरी औरत का नाम रोजलीन था, जो 49 साल की थी.

पद्मा और रोजलीन में दोनों लौटरी वैंडर थीं. रशीद ने उन्हें झांसा दिया था कि अगर वे एक खास जगह पर एकसाथ काला जादू करेंगी, तो उन्हें पैसे के तौर पर काफी ज्यादा फायदा होगा.

पद्मा और रोजलीन को पैसों की जरूरत थी, इसलिए वे जल्दी ही रशीद के झांसे में आ गईं और अपनी जान से हाथ धो बैठीं. पुलिस जांच में यह भी पता चला कि रोजलीन 8 जून, 2022 को ही लापता हो गई थी. वह एर्नाकुलम जिले की रहने वाली थी.

रोजलीन की बेटी मंजू उत्तर प्रदेश में टीचर है. उसे जब अपने मां की कोई जानकारी नहीं मिली, तब केरल आ कर उस ने 17 अगस्त, 2022 को कैलडी थाने में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई थी, लेकिन कोई सुराग नहीं मिल पाया था.

ये भी थे शामिल

रशीद अकेला ही नहीं था, जो इस नरबलि में शामिल था. पुलिस ने भगवल सिंह और उस की पत्नी लैला को भी हिरासत में लिया. वे दोनों देशी तरीके से लोगों का इलाज करने का दावा करते थे. उन का एक मसाज पार्लर बताया जा रहा था.

रशीद सोशल मीडिया के जरीए भगवल सिंह के संपर्क में आया था. वहीं पर उस ने बताया था कि अगर औरतों की नरबलि दी जाए, तो भगवल सिंह और लैला को पैसे के लिहाज से काफी फायदा मिलेगा. पुलिस को दिए गए अपने बयान में भगवल सिंह और लैला ने बताया कि उन्होंने पद्मा और रोजलीन का गला काट कर उन की हत्या कर दी थी और फिर लाश को खेत में दफना दिया था.

जून और सितंबर में पद्मा और रोजलीन को तंत्रमंत्र और काला जादू करने के बाद उन के सिर को काट कर पहले धड़ से अलग किया गया था. इस के बाद उन के शरीर को कई टुकड़ों में काट कर घर से थोड़ी दूरी पर ही जंगल में दफना दिया गया था.

अंधविश्वास है जड़

धर्म की आड़ और अंधविश्वास की ढाल के सहारे हमारे देश में ऐसी तमाम बुराइयों को जिंदा रखा गया है, जिस से लोगों में पैसे का लालच बना रहे और वे उस के लिए कुछ भी करने को तैयार रहें. भगवल सिंह और लैला के साथसाथ पद्मा और रोजलीन अपराधी किस्म के रशीद के लालच में इसलिए फंसे, क्योंकि पैसे की कमी उन की दुखती रग थी.

भगवल सिंह और लैला कहने को तो लोगों का इलाज करते थे, पर अपने ही दिमाग पर पड़ी काले जादू की काली चादर को उतार नहीं पाए और एक आदमी के कहने पर उन्होंने अपने हाथ खून से रंग दिए.

किसी की वहशी तरीके से हत्या करने से पहले उन्होंने एक बार भी नहीं सोचा कि आज के मोबाइल फोन के जमाने में हत्या करने जैसा बड़ा अपराध छिपाना आसान नहीं है. पुलिस को पद्मा के फोन से ही पहला अहम सुराग मिला था.

लेकिन लोग समझते ही नहीं हैं और आज भी काले जादू और तंत्रमंत्र पर आंख मूंद कर यकीन कर लेते हैं. पिछले कुछ सालों में जब से भारत में धर्म के नाम पर लोगों को सोशल मीडिया पर बरगलाने का खेल शुरू हुआ है, तब से अंधविश्वास भी बुलेट ट्रेन की रफ्तार से आगे बढ़ा है.

पिछले साल दशहरा त्योहार के मौके पर बिहार के अररिया में अंधविश्वास के चक्कर में एक 25 साल के एमबीए छात्र की गला काट कर हत्या कर दी गई थी. इस नरबलि में तांत्रिक औरत, उस के पति और बेटे का नाम सामने आया था.

इस तरह के अंधविश्वास से जुड़े अपराध को पढ़ाईलिखाई से ही दूर किया जा सकता है खासकर वंचित और गरीब समाज के लोगों को पढ़ाई पर पूरा जोर देना चाहिए. पढ़ने से बोलनेचालने का तरीका आता है, समाज में रुतबा बढ़ता है और फुजूल के अंधविश्वास से दूरी बनी रहती है.

लिहाजा, गरीब और वंचित परिवारों की नई पीढ़ी को जरूर पढ़ना चाहिए, ताकि नरबलि जैसे उन तमाम अपराधों पर अंकुश लग सके, जिन की जड़ में पैसे की कमी होती है.

राजकुमार राव को चाहिए शहनाज गिल जैसी स्वीट बेटी, देखें Video

टीवी एक्ट्रेस शहनाज गिल ( Shehnaaz Gill) इन दिनों सुर्खियों में छायी हुई हैं. वह अपने चैट शो देसी वाइब्स (Desi Vibes) को लेकर चर्चा में बनी हुई है. इस शो का पहला एपिसोड सामने आया है, जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है. बता दें कि इस शो के पहले एपिसोड में राजकुमार राव गेस्ट बनकर पहुंचे थे.

इस चैट शो में राजकुमार राव ने अपनी पर्सनल लाइफ को लेकर कई बड़े खुलासे किए हैं, जिसे जानने के बाद उनके आप भी हैरान हो जाएंगे. दरअसल शहनाज गिल ने शो के दौरान राजकुमार राव से कई सवाल किए.

 

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इसी दौरान शहनाज गिल ने कहा ‘हाल ही में आलिया भट्ट और रणबीर कपूर (Alia Bhatt and Ranbir Kapoor Baby) पेरेंट्स बनें हैं, आप कब बेबी प्लानिंग कर रहे हों? राजकुमार राव शहनाज के सवाल का जवाब देते हुए कहा कि मैं कब बेबी कर रहा हूं, ये तो मेरे घरवाले भी नहीं पूछते हैं. सच कहूं तो इस बारे में कुछ नहीं सोचा है. मुझे अभी भी लगता है कि मैं खुद एक बच्चा हूं.

राजकुमार राव इसके बाद शहनाज से कहते हैं, अगर मुझे बेबी गर्ल होगी तो मैं चाहूंगा कि वो बिल्कुल आपके जैसी हो. सिंपल, स्वीट और सुंदर.

 

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आपको बता दें कि राजकुमार राव इन दिनों अपनी फिल्म ‘मोनिका ओ माय डार्लिंग’ को लेकर सुर्खियां बटोर रहे हैं.  इसी फिल्म के प्रमोशन के लिए राजकुमार राव, शहनाज चैट शो में पहुंचे थे. उन्होंने इस शो में फिल्म और अपने लाइफ को लेकर ढेर सारी बातें की. फैंस शहनाज गिल के चौट शो को काफी पसंद कर रहे हैं. इस शो में शहनाज अपने इनोसेंट अंदाज से दर्शकों का दिल जीत रही हैं.

इसे कहते हैं सच्चा प्यार: भाग 2

साहस को देखते ही आरुषी के मम्मीपापा के मन में बेटी की शादी का विचार आ गया. आखिर आता क्यों न. साहस राजकुमार की तरह सुंदर था. फिर वह डाक्टर भी था. शादी में शामिल होने के लिए साहस के मम्मीपापा भी आए थे.

साहस ने आरुषी के मम्मीपापा से अपने मम्मीपापा को मिलवाया. बातचीत में उन लोगों का काफी पुराना परिचय निकल आया. साहस और आरुषी की शादी की बात चल निकली. 2 दिन बाद साहस अपनी मम्मीपापा के साथ शादी की बात करने आरुषी के घर आ पहुंचा.

उस दिन आरुषी और साहस बहुत खुश थे. सभी ने दोनों को बात करने के लिए घर के बाहर लौन में भेज दिया. लौन में लगे झूले पर बैठते हुए साहस ने पूछा, ‘‘अब तुम्हारा हाथ कैसा है आरुषी?’’

‘‘अब तो काफी ठीक है. आप ने बहुत सही समय पर बर्फ ला कर लगा दी थी, इसलिए ज्यादा तकलीफ नहीं हुई.’’ आरुषी ने कहा.

‘‘जरा अपना हाथ दिखाओ, देखूं तो कैसा है?’’

खूब शरमाते हुए आरुषी ने अपना हाथ आगे बढ़ाया तो बहुत ही आराम से उस का हाथ पकड़ कर साहस देखने लगा. साहस के हाथ पकड़ने से आरुषी कुछ अलग तरह का रोमांच अनुभव कर रही थी, जिसे शायद साहस ने महसूस कर लिया था.

इस के बाद अपना दूसरा हाथ उस के हाथ पर रख कर सहलाने लगा. आरुषी ने अपनी नजरें झुका लीं. पर अपना हाथ साहस के हाथों से छुड़ाने की कोशिश नहीं की.

उसे साहस का स्पर्श अच्छा लग रहा था. इसी छोटी सी मुलाकात में साहस ने आरुषी के दिल की स्थिति समझ ली थी. उस ने पूछा, ‘‘आरुषी तुम्हें कैसा जीवनसाथी चाहिए?’’

‘‘बस, इस तरह का कि जितना प्यार मैं उस से करूं, वह उस से ज्यादा मुझे प्यार करे.’’ आरुषी ने कहा.

‘‘मैं समझा नहीं,’’ साहस ने कहा.

‘‘किसी को प्यार करना आसान है. पर किसी का प्यार पाना उतना ही मुश्किल है. आप किसी को प्यार करने के लिए मजबूर नहीं कर सकते हैं. इसलिए मुझे इस तरह का जीवनसाथी चाहिए, जो मुझे बहुत ज्यादा प्यार करे. मैं जैसी हूं, मुझे उसी रूप में अपना सके.

‘‘मेरा रूप देख कर कोई मेरी ओर आकर्षित हो, मैं इसे जरा भी प्यार नहीं समझती. यह सुंदरता जीवन भर साथ थोड़े ही साथ देने वाली है. जो जीवनसाथी मुझे बदले बगैर प्यार कर सके, वही सच्चा प्यार है. मैं सुंदरता में जरा भी विश्वास नहीं करती. चेहरे की सुंदरता के बजाय हृदय सुंदर होना चाहिए.’’ आरुषी ने दिल की बात कह दी.

साहस एकटक आरुषी को ताकता रहा. अभी दोनों के हाथ एकदूसरे के हाथ में ही थे. दोनों में से किसी ने भी हाथ छुड़ाने की कोशिश नहीं की थी. अपने दिल की बात कहने के बाद आरुषी ने पूछा, ‘‘तुम्हें कैसा जीवनसाथी चाहिए?’’

साहस ने छूटते ही कहा, ‘‘तुम्हारे जैसा.’’

‘‘क्या?’’ आरुषी चौंकी.

दोनों एकदूसरे की आंखों में आंखें डाल कर एकदूसरे को ताकते रहे. तभी आरुषी और साहस की मम्मी दोनों को बुलाने लौन में आ गईं. दोनों के हाथों में एकदूसरे के हाथ देख कर वे समझ गईं कि इन के जवाब क्या होंगे. दोनों ही एकदूसरे की ओर देख कर मुसकराईं. इस के बाद आरुषी की मम्मी ने कहा, ‘‘आरुषी बेटा अंदर आओ, नाश्ता करने.’’

आरुषी और साहस ने जल्दी से अपनेअपने हाथ अलग किए और सामान्य होने की कोशिश करने लगे. थोड़ा सामान्य होने के बाद आरुषी बोली, ‘‘हां मम्मी, आप चलें, हम आते हैं.’’

आरुषी झूले से उठ कर घर के अंदर जातेजाते पलट कर साहस की ओर देख कर शरमा गई. दोनों को ही एकदूसरे का जवाब मिल चुका था. दोनों के मातापिता को भी उन के जवाब मिल गए थे. 10 दिन बाद उन की सगाई की तारीख रख दी गई.

दोनों के ही घर यह पहला शुभ प्रसंग था, इसलिए उन की सगाई खूब धूमधाम से हुई. अपने पापा की परी आरुषी उस दिन सचमुच परी सी लग रही थी. बड़ी खुशी और शांति के साथ आरुषी और साहस की सगाई की रस्म संपन्न हो गई थी. सभी बहुत खुश थे.

सगाई हो जाने के बाद आरुषी और साहस अकसर मिलने लगे थे. एक दिन आरुषी एक कैफे में बैठी साहस का इंतजार कर रही थी, तभी उस के कालेज के 4 लड़के उस के अगलबगल बैठ कर उस से छेड़छाड़ करने लगे. तभी साहस आ गया और उन लड़कों की हरकत देख कर गुस्से में बोला, ‘‘तुम लोग यहां क्या कर रहे हो, किसी लड़की से कोई इस तरह की हरकत करता है?’’

उन लड़कों में से एक लड़के ने कहा, ‘‘तू कौन है बे, जो बीच में आ टपका. हम आरुषी को 4 साल से जानते हैं.’’

‘‘मेहरबानी कर के ढंग से बात करो. तुम जिस तरह बात कर रहे हो, यह क्या कोई बात करने का तरीका है?’’ साहस ने कहा, ‘‘आरुषी, तुम इन लोगों को जानती हो?’’

‘‘हां, ये मेरे कालेज के गुंडे हैं. 4 साल से मुझे परेशान कर रहे हैं. मुझे अकेली देख कर यहां भी मुझे परेशान करने आ गए.’’

इस के बाद तो साहस और उन गुंडों के बीच हाथापाई शुरू हो गई. अंत में पुलिस को सूचना दी गई. पुलिस के आने पर मामला शांत हुआ. जातेजाते वे गुंडे आरुषी को धमका गए. उस दिन पहली बार जिस सुंदरता पर आरुषी को घमंड था, उस पर उसे अफसोस हुआ.

आरुषी बहुत डर गई. साहस ने उसे तसल्ली दी. आरुषी ने कहा, ‘‘साहस इन लड़कों में एक लड़का मुझे बहुत दिनों से प्रपोज कर रहा था. पर मैं ने कभी उस की ओर ध्यान नहीं दिया. इसलिए अब वह गुंडागर्दी और धमकी पर उतर आया है.’’

‘‘आरुषी इन लोगों से डरने की जरूरत नहीं है. ये लोग तुम्हारा कुछ नहीं कर सकते.’’ साहस ने कहा.

‘‘साहस, ये ऐसेवैसे लड़के नहीं हैं. बहुत ही खतरनाक लोग हैं. सभी के सभी बड़े बाप की बिगड़ी औलादें हैं. हम लोग घर पहुंचेंगे, उस के पहले ही ये थाने से छूट जाएंगे. अब मैं कालेज नहीं जाऊंगी.’’ आरुषी ने कहा.

‘‘डरने की कोई बात नहीं है आरुषी. मैं तुम्हें कालेज से ले आने और ले जाने रोजाना आऊंगा.’’ साहस ने कहा.

गरम लोहा: बबीता ने क्यों ली पति व बच्चों के साथ कहीं न जाने की प्रतिज्ञा?- भाग 2

‘‘मैं भी तुम सब के साथ ही लंबा सफर कर के आई हूं. मैं भी इनसान हूं, इसलिए थकान मुझे भी होती है, पर तुम लोगों के हिसाब से आराम करने का हक मुझे नहीं है. तुम लोगों की सोच यह है कि बाहर बिखरे सारे काम निबटाना मुझ अकेली की जिम्मेदारी है. इसलिए मैं ने भी अब तय कर लिया है कि अब आगे से मैं तुम लोगों के साथ कहीं भी आनेजाने का प्रोग्राम नहीं बनाऊंगी. प्रोग्राम बनाने में तो तुम तीनों आगे रहते हो पर जाने के समय की तैयारी में न कोई हाथ बंटाने को तैयार होता है और न ही आने के बाद बिखरे कामों को समेटने में. जाते वक्त अपने कपड़े तक छांट कर नहीं देते हो तुम सब कि कौनकौन से रखूं. ऊपर से वहां पहुंच कर नखरे दिखाते हो कि मम्मा, यह शर्ट क्यों रख ली. यह तो मुझे बिलकुल पसंद नहीं, यह जींस क्यों रख ली यह तो टाइट होती है. वापस आने के बाद इस समय कितने काम हैं करने को, जिन में तुम लोग मेरी मदद कर सकते हो पर तुम में से किसी के कान पर जूं नहीं रेंग रही है. तुम सब को आराम चाहिए. तुम सब को एसी चाहिए पर क्या मुझे जरूरत महसूस नहीं हो रही इन चीजों की?’’

मेरी बात का तीनों पर तुरंत असर पड़ा. गौरव तुरंत टीवी बंद कर के उठ गया. पति भी एसी बंद कर बाहर आ गए. उन दोनों की देखादेखी छोटा भी अनमना सा चादर फेंक कर हाल में आ कर खड़ा हो गया.

तीनों ही अपने करने लायक काम की तलाश में इधरउधर नजर डाल ही रहे थे कि अचानक मेरा सेलफोन बज उठा. गुस्से की वजह से मेरा फोन उठाने का मन नहीं कर रहा था पर मम्मी का नाम देख कर फोन उठाने को मजबूर हो गई.

‘‘हैलो बबीता, तुझे खुशखबरी देनी थी. आयूष की शादी पक्की हो गई है. लड़की वाले अभी यहीं बैठे हैं. हम सगाई और शादी की तारीख तय कर रहे हैं. तय होते ही तुम्हें दोबारा फोन करूंगी. तारीख बहुत जल्दी की तय करेंगे, इसलिए बस तुम फटाफट आने की तैयारी शुरू कर दो, क्योंकि जब तक तुम नहीं आओगी मैं कोई भी काम ठीक से नहीं कर पाऊंगी,’’ कह कर मम्मी ने फोन रख दिया.

मम्मी के फोन रखते ही मैं चहक उठी, ‘‘सुनो, आयूष की शादी पक्की हो गई है और शादी की बहुत जल्दी की तारीख भी निकलने वाली है. मम्मी ने हमें तैयारी शुरू कर देने को कहा है.’’

‘‘पर मम्मा आप जाएंगी क्या मामा की शादी में?’’ छोटे बेटे ने बड़ी मासूमियत से कहा.

‘‘हां, क्यों नहीं जाऊंगी? क्या तुम लोगों को नहीं जाना मामा की शादी में?’’ मैं ने आश्चर्य से ऋतिक की ओर देखा.

‘‘जाना तो था पर अभीअभी तो आप ने भीष्म प्रतिज्ञा की है कि अब आप हम लोगों के साथ कहीं आनेजाने का प्रोग्राम नहीं बनाएंगी, तो मैं नानी को फोन कर के बता देता हूं कि मम्मा मामा की शादी में नहीं आ पाएंगी. आप हम लोगों का इंतजार न करें.’’

बस फिर क्या था. अपूर्व को भी मौका मिल गया बच्चों के साथ मिल कर मेरी टांग खींचने का. उन्होंने ऋतिक के हाथ से फोन ले लिया और कहने लगे कि बेटा मेरे होते हुए तुम नानी को यह खबर दो, कुछ ठीक नहीं लगता. लाओ, मैं ठीक से समझा कर बता देता हूं नानी को कि वे अपनी प्यारीदुलारी बेटी का इंतजार न करें शादी में.

थोड़ी देर पहले ही मेरे गुस्से का जो असर तीनों पर पड़ा था और तीनों ही मेरी मदद के लिए आ गए थे उस पर मम्मी के फोन से पानी फिर गया.

मेरा मूड अच्छा हुआ देख थोड़ाबहुत इधरउधर कर के दोबारा फिर सब टीवी के सामने जा बैठे. अब दोबारा चीखनेचिल्लाने के बजाय मैं ने अकेले ही काम में जुट जाना बेहतर समझा.

दूसरे दिन से अपूर्व अपने औफिस और बच्चे स्कूल में व्यस्त हो गए. मैं भी बिखरे काम समेटने के साथसाथ आयूष की शादी की कल्पना में जुट गई.

लेकिन जब आयूष की शादी में जाने और शादी की तैयारी के बारे में सोचना शुरू किया तो जाने के पहले की तैयारी और आने के बाद के बिखरे काम के बारे में सोच कर मेरा मानसिक तनाव फिर से बढ़ गया.

अपूर्व और बच्चों के असहयोगात्मक रवैए के कारण कहीं आनेजाने के नाम पर सचमुच मुझे घबराहट होने लगी थी. मुझे दिलोजान से चाहने वाले मेरे पति और बच्चे कहीं भी आनेजाने की तैयारी में कोई भी मदद नहीं करते थे. सब से अधिक परेशानी मुझे होती है सब के कपड़ों के चयन में. कब और किस अवसर पर तीनों कौनकौन से कपड़े पहनेंगे यह भी मुझे अकेले ही तय करना पड़ता है. बच्चों को साथ बाजार चल कर पसंद के कपड़े लेने को कहती हूं तो जवाब मिलता है, ‘‘प्लीज मम्मा, तुम ले आओ. हमें शौपिंग पर जाना बिलकुल पसंद नहीं है. जब कहती हूं कि बेटा मुझे तुम लोगों की पसंदनापसंद समझ में नहीं आती है तो कहते हैं कि आप व्हाट्सऐप पर फोटो भेज देना हम बता देंगे कि पसंद हैं या नहीं.’’

मैं जब हार कर अपनी पसंद के कपड़े ले जाती तो कभी किसी को रंग पसंद नहीं आता तो कभी डिजाइन. मैं गुस्सा हो कर कहती कि इसीलिए कहती हूं कि अपने कपड़े खरीदने मेरे साथ चला करो पर कोई मेरी बात नहीं मानता. अब कल चलो मेरे साथ और इन्हें बदल कर अपनी पसंद के लेना.उन्हें क्या पता कि मां जब तक अपने बच्चों को नए कपड़े नहीं पहना लेती खुद अपने तन पर नए कपड़े नहीं डालती. बच्चों का पहनावा और संस्कार मां की परवरिश और सुघड़ता को उजागर करते हैं, इसलिए मेरे बच्चे और पति का पहनावा हर अवसर पर सलीकेदार हो, इस का मैं विशेष ध्यान रखती हूं

मेरी शादी हुए 8 वर्ष हो गए हैं लेकिन मेरे पति मुझे बातबात पर डांटा करते हैं, मै क्या करूं?

सवाल-

मैं 38 वर्षीया हूं, शादी हुए 8 वर्ष हो गए हैं. शुरुआत में तो पति मेरी बहुत केयर करते थे लेकिन अब वे मुझे बातबात पर डांटा करते हैं, आनेजाने वालों के सामने मेरी बेइज्जती करते हैं. इस से मेरा मन बहुत दुखी होता है. आप बताएं कि मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब-

शादी के बाद के जीवन की शुरुआत में हम किसी के स्वभाव से उस के व्यक्तित्व को नहीं जान पाते, धीरेधीरे जब हम उस की आदतों से वाकिफ होते हैं तब उस के व्यक्तित्व की असली पहचान हो पाती है.

आप के पति में शायद ईगो बहुत है और वे समझते हैं कि वे ही सबकुछ हैं. इसलिए वे आप को सब के सामने अपमानित करते हैं. उन्हें लगता है कि इस से दूसरों पर यह प्रभाव पड़ेगा कि उन की घर में कितनी चलती है. ऐसे में आप उन्हें समझाएं कि उन का ऐसा रवैया आप को बिलकुल अच्छा नहीं लगता और अगर वे फिर भी न सुधरें तो आप सख्ती अपनाएं, न कि घुटघुट कर जिएं. अगर आप खुद को अबला दिखाएंगी तो हर कोई आप पर हावी होगा ही, इसलिए हिम्मत से इस परिस्थिति का मुकाबला कर पति को ट्रैक पर ले आइए.

इसे कहते हैं सच्चा प्यार: भाग 1

पिछले एक घंटे से ड्रेसिंग टेबल के सामने बैठी आरुषी अभी सज ही रही थी. उस के पूरे कमरे में कपड़े ही कपड़े बिखरे हुए थे. अचानक किसी ने कमरे का दरवाजा खटखटाया. पलट कर दरवाजे की ओर देखते हुए आरुषी ने पूछा, ‘‘कौन है?’’

दरवाजे के बाहर से आवाज आई, ‘‘बेटा मैं हूं, तुम्हारी मम्मी, अभी और कितनी देर लगेगी?’’

‘‘मम्मी अंदर आ जाइए, दरवाजा खुला है.’’ आरुषी ने ड्रेसिंग टेबल में लगे आईने में खुद को निहारते हुए कहा.

आरुषी के कमरे के अंदर आ कर इधरउधर देखते हुए मम्मी ने कहा, ‘‘यह क्या है आरुषी, कमरे की हालत तो देखो, किस तरह अस्तव्यस्त कर रखा है. अभी तुम शीशे के सामने ही बैठी हो. हमें 10 बजे तक शादी में पहुंचना था. घड़ी तो देखो, साढ़े 10 बज रहे हैं. इतनी सुंदर तो हो, फिर इतना सजने की क्या जरूरत है. इतने कपड़े पहनपहन कर फेंके हैं, तुम्हें थकान नहीं लगी?’’

आरुषी मम्मी के सामने आ कर दाहिने हाथ से आगे आई बाल की लट को पीछे धकेलते हुए बोली, ‘‘सांस ले लो मम्मी, मैं सारे कपड़े तह कर के रख दूंगी. तुम इस की चिंता मत करो. जरा यह बताओ, मैं कैसी लग रही हूं?’’

मम्मी ने आगे बढ़ कर ड्रेसिंग टेबल पर रखी काजल की डिब्बी से अंगुली में काजल लगा कर आरुषी के कान के पीछे टीका लगा दिया. मम्मी का हाथ पकड़ कर हटाते हुए आरुषी ने कहा, ‘‘मम्मी, तुम ने तो मेरे बाल ही खराब कर दिए, अब ये फिर से संवारने पड़ेंगे.’’

‘‘अब बस करो बेटा, देर हो रही है.’’

मम्मी की बात पूरी ही हुई थी कि आरुषी का छोटा भाई आरव उस के कमरे के बाहर आ कर चीखते हुए कहने लगा, ‘‘अभी कितनी देर लगेगी चुहिया दीदी, तुम्हारी वजह से पापा मुझ पर नाराज हो रहे हैं. जल्दी करो न दीदी.’’

‘‘चलो आ रही हूं. पापा मुझे कुछ नहीं कहेंगे. मैं तो लाडली हूं उन की. तुम ने कोई कांड किया होगा, इसलिए तुझ पर खीझे होंगे. कौवा कहीं का.’’

आरव कमरे के अंदर आ कर बोला, ‘‘मम्मी इस चुहिया से कह दो मुझे कौवा न कहे. इस के मुकाबले मेरा रंग थोड़ा गहरा जरूर है, पर कौवे की तरह तो नहीं है. सुन चुहिया, तेरी शादी नहीं है, जो इस तरह सज रही है. अरे, अपने रिश्तेदार की शादी है, जल्दी कर न.’’

आरुषी जल्दी से भाग कर पापा के पास पहुंची. पापा की आंखों में झांकते हुए बोली, ‘‘मैं कैसी लग रही हूं पापा?’’

‘‘तू तो मेरा चांद है मेरी लाडली. भगवान ने तुझे फुरसत में बनाया है बेटा.’’

‘‘पापा चांद में तो दाग है. आप की लाडली के चेहरे पर तो एक खरोंच तक नहीं है.’’ आरुषी ने कहा.

पापा ने आरुषी के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘नाराज हो गई मेरी बेटी, तू तो मेरी परी है. एक दिन कोई राजकुमार आ कर मेरी लाडली को अपने साथ ले जाएगा.’’

‘‘बस, पापा बस,’’ आरुषी ने पैर पटकते हुए कहा, ‘‘मैं आप को छोड़ कर कहीं नहीं जाने वाली समझ गए न. और हां, मम्मी और आप का बेटा आरव कितनी देर लगा रहे हैं तैयार होने में.’’

दरवाजे से बाहर आते हुए आरव ने आरुषी की बात सुन ली थी. वह वहीं से चिल्लाया, ‘‘पापा, दीदी एकदम झूठ बोल रही है. यही एक घंटे से शीशे के सामने बैठ कर तैयार हो रही थी. और अब मेरा और मम्मी का नाम लगा रही है… चुहिया.’’

‘‘आरव बड़ी बहन को कोई इस तरह कहता है.’’ पापा ने कहा.

आरुषी खुश हो कर पापा न देख पाएं इस तरह जीभ निकाल कर आरव को चिढ़ाया. इस के बाद सभी कार में सवार हो कर जहां शादी हो रही थी, वहां के लिए रवाना हो गए.

आरुषी विवाह स्थल पर पहुंच कर जैसे ही कार से निकल कर बाहर खड़ी हुई, सभी की नजरें उसी पर टिक गईं.

रूप का अंबार, पापा की परी आरुषी अब शादी लायक हो चुकी थी. इसलिए हर कोई आरुषी को अपने घर की बहू बनाना चाहता था. और हर युवा दिल तो उसे देख कर अपनी धड़कन बना लेना चाहता था.

एक ओर विवाह की रस्में हो रही थीं तो दूसरी ओर खाना चल रहा था. आरुषी को बहुत जोर की भूख लगी थी. आरुषी खाना खाने के लिए प्लेट ले कर लाइन में लग गई. एक अंजान लड़का उस के पीछे आ कर खड़ा हो गया. आरुषी उसे नजरअंदाज करते हुए खाने की चीजें उठाउठा कर प्लेट में रखती जा रही थी.

दाल काफी गरम थी. चमचा भर कर दाल वह प्लेट में डालने लगी तो चमचा पलट गया और सारी दाल उस के हाथ पर गिर गई. उस के मुंह से जोर की चीख निकल गई.

पीछे खड़ा लड़का दौड़ कर शरबत के काउंटर से बर्फ ले आया और आरुषी के हाथ पर रगड़ने लगा. आरुषी को थोड़ा आराम हुआ तो उस ने उस लड़के का आभार व्यक्त करते हुए उसे धन्यवाद कहा. इस के बाद उस लड़के ने अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘हाय, आई एम साहस. आई एम ए डाक्टर.’’

‘‘साहसजी, आप का बहुतबहुत आभार.’’ आरुषी ने कहा.

तभी आरुषी के मम्मीपापा आ गए. आरुषी छोटे बच्चे की तरह मम्मी से लिपट कर रोते हुए बताने लगी कि वह दाल से जल गई है. मम्मी ने उस के आंसू पोंछते हुए उसे सांत्वना दी तो वह शांत हुई. इस के बाद उस ने अपने मम्मीपापा से साहस का परिचय कराया.

फिल्म समीक्षाः अंत- द एंडः रहस्य और रोमांच विहीन फिल्म

रेटिंग: डेढ़ स्टार

निर्माताः होली बेसिल फिल्मस

निर्देशकः के.एस मल्होत्रा

कलाकारः दिव्या दत्ता, समीक्षा भटनागर, देव शर्मा, मुकुल देव, दीपराज राणा, युगंत बद्री पांडे और अमन दहलीवाला व अन्य

अवधि: दो घंटे

इन दिनों रहस्य व रोमांच से भरपूर फिल्में दर्शकों द्वारा पसंद की जा रही हैं. इसी को देखते हुए फिल्मकार के एस मल्होत्रा रहस्य प्रधान फिल्म ‘‘अंत- द एंड’’ लेकर आए हैं. मगर कमजोर कहानी व पटकथा के चलते फिल्म बोर करने के अलावा कुछ नही करती.

कहानीः

कहानी के केंद्र में खूंखार व सनकी हत्यारा रंजीत (दीपराज राणा) है. वह कई हत्याओं के आरोप में जेल में बंद होता है. जेल मे वह पुलिस कांस्टेबल की भी हत्या कर देता है. अदालत उसे फांसी की सजा सुनाती है. मगर रास्ते में पुलिस वैन में दूसरे अपराधी से रंजीत की मारा मारी हो जाती है. तब घायल अवस्था में उसे अस्पताल में भरती कराया जाता है. वह वेश बदलकर अस्पताल से फरार होकर अपनी प्रेमिका सिमरन के घर पहुंचता है.

उसकी मंगेतर व मॉडल सिमरन (समीक्षा भटनागर) उसे धोखा देकर एक फैशन फोटोग्राफर (देव शर्मा) संग रंगरेलियां मना रही है. उसे अपने दस करोड़ रूपए की तलाश है. पता चलता है कि सिमरन ने उस रकम को अपने नए प्रेमी व फैशन फोटोग्राफर को दे दिया है. रंजीत को अपने दस करोड़ चाहिए, पर उसके हाथ से सिमरन की भी हत्या हो जाती है. अब रंजीत फैशन फोटोग्राफर के घर पहुंचता है, जहां उसकी पत्नी (दिव्या दत्ता) व एक छोटी बेटी मिलती है. इसके बाद कहानी में कई घटनाक्रम बदलते हैं.

लेखन व निर्देशनः

रहस्य व मर्डर मिस्ट्री वाली फिल्म ‘‘अंत- द एंड’’ की कहानी व पटकथा अति लचर व दिशाविहीन है. लेखक पूरी तरफ से कंफयूज नजर आते हैं. कहानी के अभाव में बार बार सीन्स का दोहराव कर फिल्म को जबरन खींचा गया है. निर्देशक के एस मल्होत्रा का निर्देशन औसत दर्जे का है.

अभिनयः

फैशन फोटोग्राफर के किरदार में देव शर्मा पूरी तरह से निराश करते हैं. रंजीत के किरदार में दीप राजा राणा का अभिनय औसत दर्जे का है. सिमरन के किरदार में ‘पोस्टर ब्वॉयज’ फेम अदाकारा समीक्षा भटनागर की प्रतिभा को जाया किया गया है. समीक्षा ने इस फिल्म में क्या सोचकर अभिनय करना स्वीकार किया, यह तो वही जाने. राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता दिव्या दत्ता की गिनती बेहतरीन अदाकारा के रूप में होती है. लोग आज भी ‘ट्रेन टू पाकिस्तान’ सहित कई फिल्मों में उनके अभिनय के कायल हैं. मगर इस फिल्म में उनके अभिनय की धार गायब नजर आयी.

मेनिया या सनकीपन: कारण, लक्षण और इलाज

गणेश एक कारखाने में स्टोरकीपर का काम करता है. वह जिम्मेदार आदमी माना जाता है. कुछ महीनों से वह अलग दिखने लगा है. उस ने बहुत ज्यादा बातें करनी शुरू कर दी हैं.

पहले गणेश खुद तक ही सीमित रहता था, अब वह कारखाने में सभी तरफ जाता है और अलगअलग मुद्दों पर सभी से बातें करता है. सभी को अपनी सलाह देता है. कभी वह कहता है कि  उस के पास कोविड की देशी दवा का अचूक फार्मूला है, तो कभी कहता है कि रूसी भारत पर हमला कर देंगे.

गणेश यह घोषणा भी करता है कि 3 महीने के भीतर वह एक कारखाना खोलने जा रहा है. उस कारखाने में काम करने वाले सभी कर्मचारियों को दोगुनी तनख्वाह, रहने के लिए फ्री क्वार्टर और गाड़ी भी देगा.

वह यह भी कहता है कि वह मुख्यमंत्री को अच्छी तरह से जानता है. सिर्फ एक फोन लगाने पर ही वे उसे कारखाना शुरू करने के लिए जरूरी पैसा मुहैया करवा देंगे.

गणेश बेहद खुश रहता है. हालांकि वह दूसरों के लिए हंसी का पात्र बन गया है. वह बहुत उदार भी हो गया है. दूसरों के मनोरंजन के लिए काफी पैसा खर्च करने लगा है. घर में वह परिवार के लिए मुसीबत बन गया है. वह देर रात तक सोता नहीं है. रेडियो बजा कर दूसरों को भी सोने नहीं देता है. उसे दिए जाने वाले भोजन से वह संतुष्ट नहीं है. उसे ज्यादा मिठाइयां व देशी घी से बनी चीजें चाहिए, जिस के लिए वह घर वालों से मांग करता रहता है.

गणेश परिवार के कामों में भी दखलअंदाजी करता रहता है. अगर वे उसे इस तरह के बरताव के लिए कुछ कहते हैं, तो वह गुस्सा हो जाता है और उन सभी पर चिल्लाने लगता है. वह आसपड़ोस, महल्ले में घूमता है, लोगों से कहता है कि उन्हें जो भी सुविधाएं चाहिए, वह दिलवाएगा, क्योंकि वह बहुत मंत्रियों को जानता है.

गणेश का कहना है कि वह बहुत होशियार है और बुद्धिमान भी. जब तक वह है, लोगों को कोई भी समस्या आनी नहीं चाहिए. उस के इस तरह के रवैए को देख कर व उस के साथ बातें करने से लोगों को मनोरंजन होता है. लेकिन वे डर गए हैं, जब उन्होंने उसे एक दुकानदार के साथ उस के द्वारा मांगी गई चीजों को तुरंत न देने पर ?ागड़ा करते हुए देखा. अब वह सोचते हैं कि वह खुद ही मानसिक रूप से बीमार हैं, लेकिन वे जानते नहीं हैं कि  उसे किस तरह अस्पताल ले जाएं.

गणेश एक गंभीर मानसिक बीमारी मैनिक साइकोसिस से पीडि़त है. यह एक बेहद रसप्रद बीमारी है, जिस में पीडि़त असामान्य रूप से ज्यादा क्रियाशील, ज्यादा बातूनी हो जाता है. वह अपनी ताकत और सामाजिक लैवल के बारे बढ़ाचढ़ा कर बोलना शुरू कर देता है. वह एक ही समय में अनेक कामों को करने की कोशिश शुरू कर देता है, लेकिन उन में से किसी को भी पूरा नहीं कर पाता है. वह जल्दी ही विचलित भी हो जाता है. उस की रुचियां बदलती रहती हैं. उसे सौंपे हुए काम करना वह बंद कर देता है, घूमता रहता है.

हालांकि शुरूशुरू में लोग उस की बातों और बदलते मिजाज का मजा लेते हैं, लेकिन जल्द ही वे उसे उपद्रवी या परेशानी पैदा करने वाले इनसान की तरह जान जाते हैं. वह ?ागड़ालू, गुस्सैल व उग्र हो कर समस्याएं पैदा करता है और सब से बहस करता रहता है. परिवार वाले उसे संभालने में कठिनाई महसूस करते हैं. वह बहुत उदार हो जाता है. वह पैसे, चीजें सभी को बांटने लगता है.

इस बीमारी के बहुत ज्यादा असर में मरीज हिंसक हो जाता है. वह खुद के साथसाथ दूसरे के लिए भी खतरनाक साबित हो सकता है. वह खुद की सुरक्षा पर ध्यान नहीं देता है और मूलभूत जरूरतें जैसे नींद, खाना खाने के प्रति लापरवाह हो जाता है.

सामान्य तौर पर ‘मेनिया’ के लक्षण 3 से 4 महीनों तक रहते हैं. धीरेधीरे ये लक्षण कम हो जाते हैं और आदमी पूरी तरह से लक्षणों से मुक्त हो जाता है.

मानसिक पागलपन बीमारी में दोहराव होता है. बीमारी की तीव्रता हर पीडि़त के साथ बदलती रहती है. कुछ को साल में एक या 2 बार दौरे पड़ते हैं और कुछ को 2 या 3 साल में एक बार ही दौरा पड़ता है. वहीं कुछ मामलों में मरीज ‘मेनिया’ व ‘डिप्रैशन’ जैसी बीमारियों से बारबार पीडि़त होते रहते हैं.

‘डिप्रैशन’ में बीमारी के लक्षण ‘मेनिया’ से बिलकुल उलट होते हैं. आदमी किसी छोटी सी वजह को ले कर या बगैर किसी कारण के भी दुखी रहने लगता है. वह सुस्त रहता है. पहले वह जिन बातों में खुशी महसूस करता था, उन के प्रति वह उदासीन हो जाता है. वह आधी रात में उठ जाता है और खुद को दुखी महसूस करता है. वह अपने कामों व जिम्मेदारियों के प्रति लापरवाह हो जाता है. वह खुद को कोसता है और अपराधबोध से पीडि़त रहता है.

उसे जिंदगी में जीने की कोई दिलचस्पी नहीं रहती. उसे खुद को खत्म करने की इच्छा भी हो सकती है. वह खुदकुशी करने की कोशिश भी कर सकता है और उस में कामयाब भी हो सकता है. ‘डिप्रैसिव’ घटनाचक्र तकरीबन 4 महीनों का या और भी लंबा हो सकता है.

न्यूरोट्रांसमीटर

मेनिया में यह मानने के लिए काफी सुबूत हैं कि दिमाग के न्यूरोट्रांसमीटर यानी तंत्रिका संचारक में डोपामीन का बहुत ज्यादा स्राव होता है, जबकि डोपामीन पर्याप्त मात्रा में कम स्रावित होने पर डिप्रैशन की वजह बनता है.

डोपामीन एक उत्पाद है, जो ब्लड प्रैशर को बढ़ाने का काम करता है और केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में तंत्रिका संचारक की तरह काम करता है.

मेनिया की वजह

वैज्ञानिक स्टडी बताती है कि मेनिया या डिप्रैशन होने का डर आनुवांशिक तौर पर उन बच्चों में होता है, जिन के मातापिता इस के शिकार रहे हों.

साफतौर पर कहा जाए, तो यह बीमारी वातावरण के कारकों पर निर्भर करती है. मेनिया के मरीज की औलाद में जरूरी नहीं कि उसे भी यह बीमारी हो. ऐसे मरीज की औलाद जिंदगीभर सेहतमंद रह सकती है. ‘मेनिया’ डायबिटीज व ब्लड प्रैशर की तरह एक जैविक बीमारी है.

इलाज

मेनिया का जितनी जल्दी इलाज शुरू किया जाएगा, समस्याएं उतनी ही जल्दी कम होंगी. जैसे क्लोरोप्रोमैजिन हैलोपीरियल, लिथियम जैसी बीमारी के लक्षणों को काबू में करने के लिए ऐंटीमेनिक दवाएं दी जाती हैं. दवाओं की मात्रा डाक्टर द्वारा तय की जाती है. दबाव के तहत कभीकभी मरीज को अस्पताल में भरती करना जरूरी हो जाता है.

जब दवाएं बीमारी को काबू करने में नाकाम हो जाती हैं, तो ईसीटी यानी शौक ट्रीटमैंट दिया जाता है. मरीज को डाक्टर की निगरानी में 4 से 6 महीनों तक दवाएं लेनी होती हैं.

ये बीमारियां उन लोगों में ज्यादा तेज हो जाती हैं, जो झाड़फूंक में भरोसा रखते हैं और तरहतरह के टोटके मरीज पर अपना कर उसे और ज्यादा बीमार कर देते हैं.

बकुला पारेख

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