यह सब कई बार सपने जैसा लगता है -विक्की कौशल

इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद कुछ रचनात्मक काम करने की मंशा के साथ बौलीवुड से जुड़ने के लिए जब विक्की कौशल फिल्म ‘‘गैंग्स आफ वासेपुर’’ में निर्देशक अनुराग कष्यप के सहायक के रूप में काम कर रहे थे,तब किसी को अनुमान नहीं था कि एक दिन वह अपनी अभिनय प्रतिभा के बल पर बहुत ही कम समय में एक नैशनल व दो फिल्मफेअर सहित कई अवार्ड अपनी झोली में डालने के साथ ही फोब्र्स पत्रिका में भी अपना नाम दर्ज कराने में सफल हो जाएंगे.फिल्म ‘मसान’ से शुरू हुई विक्की कौशल की अभिनय यात्रा ‘जुबान’,‘रामन राघव 2’,‘राजी’, ‘संजू’,‘उरीः द सर्जिकल स्ट्ाइक’, ‘सरदार उधम’ से होते हुए ‘‘गोविंदा नाम मेरा’’ तक पहंुच गयी है.इस अभिनय यात्रा के दौरान उनकी अभिनय क्षमता के नित नए आयाम सामने आते रहे हैं.उनका यह सफर आगे अभिनय के किन आयामों को छूने वाला है,यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा.इन दिनों वह सोलह दिसंबर से ‘डिज्नी प्लस हाॅटस्टार’ पर स्ट्ीम होने वाली शश्ंााक खेतान निर्देशित फिल्म ‘‘गोविंदा नाम मेरा’’ को लेकर चर्चा में हैं.जिसमें उन्होेने अब तक निभाए गए किरदारों से काफी अलग किरदार निभाया है.

प्रस्तुत है ‘धर्मा प्रोडक्शंस’ के आफिस में विक्की कौशल से हुई

बातचीत के अंश…

सवाल- ‘मसान’ से ‘गोविंदा नाम मेरा’ तक की अपनी अभिनय यात्रा को आप किस तरह से देखते हैं?

जवाब -बहुत ही ग्रेटीट्यूड के साथ देखता हॅूं.मेरा हमेशा से मानना रहा कि इस इंडस्ट्ी में मुझसे भी ज्यादा प्रतिभा शाली लोग रहे हैं और आगे भी आते रहेंगें.मुझसे काफी मेहनती लोग भी रहे हैं और हैं भी.लेकिन उपर वाला मुझ पर मेहरबान था.वह सही समय पर सही लोगांे से मुझे मिलवाता रहा.लोगों को मेरे काम के जरिए मेरी प्रतिभा पर भरोसा होता गया.मुझे कुछ अच्छी फिल्में मिलती गयी और मैं भी अपनी तरफ से मेहनत कर अच्छा काम करता गया.और लोगों से जुड़ पाया.दर्शकांे का प्रेम बटोर पाया.यह सब कई बार सपने जैसा लगता है.सब कुछ अपने आप हो रहा है,कई बार मानना मुश्किल हो जाता है कि यह सब हो रहा है.जब नई फिल्म मिलती है,तो लगता है कि ऐसा भी हो रहा है.जो मैं सोचता था कि वह हो रहा है.मैं उपर वाले के साथ ही उनका शुक्रगुजार हॅूं,जो मुझे मौका दे रहे हैं.जितने भी मशहूर निर्देशक हैं,जिन्होने मुझ पर भरोसा करके मुझे चुनौतीपूर्ण किरदार निभाने के अवसर दिए,उन सभी का मैं शुक्रगुजार हॅूं.सही मायनों में सबसे बड़ा मैनेजर उपर बैठा है,जो करिश्मे दिखाए जा रहा है और मैं सिर्फ उसका हिस्सा बन पा रहा हॅूं. एक किरदार को निभाते समय दो चीजें महत्वपूर्ण होती हैं.

 

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Vicky Kaushal (@vickykaushal09)

सवाल- आपकी अपनी कल्पना शक्ति और आपके जीवन के निजी अनुभव.आप किसी किरदार को निभाते समय किसका कितना उपयोग करते हैं?

जवाब– आप एकदम सही हैं.किसी भी किरदार को निभाने के दो हथियार होते हैं-एक कल्पना शक्ति और दूसरा आब्जर्वेशन यानी कि जिंदगी के अनुभव.मेेरे लिए आब्जर्वेशन बहुत अधिक महत्व रखता है.हम जब फिल्म नही कर रहे होते हैं,तब भी चल रहा होता है.हम अपनी जिंदगी में जिन लोगों से मिलते हैं,उन्हे देखकर अहसास होता है कि यह इंसान कुछ अलग था.इसको मैं कहीं उपयोग कर सकता हॅूं.तो आपकी स्टडी चल रही होती है.आप आब्जर्व कर रहे होते हैं.यह अलग अंदाज में बहुत अच्छा चल रहा है.

जब मैने फिल्म ‘संजू’ की थी.इसमें मेरा कमली का किरदार गुजराती था.तो इस फिल्म के किरदार कमली को निभाने से पहले मैं सूरत चला गया था.वहां पर एक हीरा/डायमंड बाजार है.वहां पर एक दुकान पर एक लड़का बैठा हुआ था,मैंने दूर बैठकर उसका वीडियो रिकार्ड किया था.वह वीडियो आज भी मेरे पास है.उस लड़के से मैं मिला नहीं,पर दूर चाय की दुकान पर बैठकर उसके हाव भाव देखे,उसका वीडियो रिकार्ड किया और उस लड़के के कई हाव भाव मैने कमली के किरदार में पिरोए.उसकी एक हरकत यह थी कि जब भी वह बात करता था,तो उसके हाथ बहुत चलते थे.मुझे लगा कि अगर इसके हाथ बांध दिए जाएं,तो यह बोल नहीं पाएगा.आपने फिल्म ‘संजू’ देखी होगी,तो देखा होगा कि कमली के हाथ बहुत चलते हैं.वैसे भी हर गुजराती हाथ चलाते हुए ही बात करता है.तो आब्जर्वेशन बहुत काम करता है. और जब आप उस पल में होते हैं,तब कल्पना शक्ति काम करती हैं.

हम सेट पर कैमरे के सामने कल्पना करते हैं कि अगर हमारा दोस्त इस परिस्थिति से गुजर रहा है,तो मुझे कैसा फील होगा? बौडी लैगवेज/ हाव भाव मंे आब्जर्वेशन काम आता है.कल्पना शक्ति और आब्जर्वेशन का मिश्रण ही एक नए किरदार को जन्म देता है. आपने दो फिल्में की हैं-एक ‘उरी.द सर्जिकल स्ट्ाइक.’ और दूसरी सरदार उधम सिंह.दोनो फिल्में देशभक्ति की बात करती हैं.पर दोनों का परिवेश, कहानी व किरदार एक दूसरे से बहुत अलग हैं.

सवाल- आप किस फिल्म में सबसे ज्यादा मेहनत करनी पड़ी.किसमें कल्पना शक्ति व आब्जर्वेशन में से किसका ज्यादा उपयोग करना पड़ा?

जवाब- दोनों में बहुत मेहनत करनी पड़ी,पर दोनों में ही अलग किस्म की मेहनत करनी पड़ी.‘उरी’ में कमांडो का किरदार था.एक्शन था.उसकी सारी तैयारी दिमागी कम,शारीरिक ज्यादा थी.पहले तो मुझे अपनी शारीरिक बनावट उस तरह की बनानी थी.फिर एक्शन की ट्ेनिंग लेनी पड़ी.फिर आर्मी के अनुशासन को सीखना पड़ा.आर्मी के लोग मार्च कैसे करते हैं,उनकी बौडी लैंगवेज कैसी होती है,उनके इशारे क्या होते हैं,जब वह क्रिटिकल सर्जिकल स्ट्ाइक के लिए जाते हैं,जहां आवाज नहीं करना है.यह सब मुझे मिलिट्ी से ही सीखना पड़ा. जबकि फिल्म ‘सरदार उधम सिंह’ में हम यह नही दिखा रहे थे कि सरदार उधम सिंह ने क्या क्या किया.बल्कि हम यह दिखा रहे थे कि उस वक्त उनका स्टेट आफ माइंड क्या था.जब देश में बहुत कुछ घट रहा था,ब्रिटिशांे का राज था,यह इंसान अपने देश मंे रहकर नहीं बल्कि उनके देश में जाकर उनसे लड़ रहा था.वह सात समंुदर पारकर वहां गया था.आज भी अप लंदन जाना चाहते है तो 15 चीजे ंसोचते हैं.टिकट कैसे कराना है,वीजा लगवाना है,यह तैयारी,वह तैयारी…पर उधम सिंह की कहानी तो सौ साल पहले की है,जब हवाई जहाज होते नही थे. तब यह बंदा सात देशो में पैदल घूमता हुआ, कई वर्ष लगाकर वहां पहुॅचा.वहां रहते हुए कई वर्ष तक अपने गुस्से को पालकर रखा कि मैं अपने देश पर हो रहे जुर्म का बदला लूूंगा.और ऐसा बदला लूंूगा कि पूरी दुनिया जानेगी.तो उसका स्टेट आफ माइंड क्या था? यह जानने के लिए हमें बहुत इंटरनल मेहनत करनी पड़ी,वह शारीरिक मेहनत नही थी.एक इंसान को समझना,जिसने 21 वर्ष तक उस गुस्से को जिया,वह मनःस्थिति क्या है? इसको एक्स्प्लोर करना कए इंटरनल प्रोसेस था.इस तरह दोनो फिल्मांे के किरदारांे को निभाने का प्रोसेस बहुत ही अलग था.

 

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Vicky Kaushal (@vickykaushal09)

सवाल- उधमसिंह अगर ओटीटी की बजाय सिनेमाघरों में प्रदर्शित होती,तो उसका असर कुछ ज्यादा होता?

जवाब- देखिए,वह कैनवास तो सिनेमाघर के लिए ही बनाया गया था.पर जब हम फिल्म लेकर उस वक्त दुनिया जिस हालात में थी,उसे देखते हुए फिल्म को लोगों तक पहुॅचाने के लिए ओटीटी प्लेटफार्म ही बेहतर विकल्प था.तब कोविड कई देशों में चल रहा था,कई देशों में समाप्ति की ओर था.किसी को नही पता था कि कब सिनेमाघर बंद हो जाएंगे,कब ख्ुालेंगे, क्या होगा..सब कुछ अनिश्चितता का वातावरण था.फिल्म के निर्देशक सुजीत दा और हम सभी के लिए जरुरी था कि दुनिया भर में रह रहे भारतीयांे तक यह कहानी पहुॅचायी जाए.जिससे उन्हे पता चले कि हमारे यहां ऐसा भी हुआ है.आजादी से पहले यह किरदार भी था,जिसे हम सभी भूल गए हैं.जलियांवाला बाग की कहानी हमारी किताब में एक छोटा सा अध्याय है कि जलियांवाला बाग में गोलियंा चली थीं और इतने लोग मरे थे.पर उसकी ग्रैविटी को हम कभी नहीं जानते कि इतने लोगों का मरना कितना भयावह व दुःखद लगता है.एक उन्नीस साल का लड़का जब यह सब कुछ देख लेता है,तो कैसे एक रात में उसकी जिंदगी बदल जाती है.हम चाह रहे थे कि दुनिया भर में रह रहे भारतीय इसकी ग्रैविटी को समझें.आप अगर आज इंग्लैंड जाएं, तो वहां की नई पीढ़ी,युवा वर्ग को तो पता ही नही है कि ऐसा कुछ हुआ था.वह अपनी किताबों में नहीं बताएंगे कि हमारे पूर्वजों ने यह कर्म किया था.हमारी फिल्म ‘उधमसिंह’ देखकर उन्हे भी अहसास हुआ कि अच्छा,हमें किसी ने बताया नहीं कि ऐसा हुआ था.हमारी इतिहास की किताबों में भी इसका जिक्र नहीं है.तो हमारे लिए पहली प्राथमिकता उस दुनिया तक पहुॅचना जरुरी था.उस वक्त कोविड के चलते जो हालात थे,उसे देखते हुए हमारे लिए ओटीटी ही सर्वश्रेष्ठ प्लेटफार्म था.लोग जब चाहें तब फिल्म देख सकते हैं.मगर यह सच है कि अगर यह फिल्म सिनेमाघर मंे आती,तो लोगों पर इसका असर कुछ अलग हो सकता था.सिनेमाघर की अपनी खूबी है कि वह उस वक्त आपको इधर उधर देखने, सोचने नहीं देता और अपनी बात पहुॅचा देता है.

सवाल- आपने नसिरूद्दीन शाह व मानव कौल के साथ थिएटर किया.दोनों अलग किस्म का थिएटर करते हैं.वह अभिनय की जो ट्ेनिंग थी,अब किस तरह से मदद करती है?

जवाब- थिएटर पर काम करना रियाज था.थिएटर की खूबी यह है कि वह कलाकार को गलती करने का अवसर देता है.सिनेमा में आपने गलती की,तो अगला काम नही मिलेगा.थिएटर में आप गलतियों से ही समझ पाते हो कि अब नाटक में करना क्या है? नाटक में हम कम से कम तीन माह रिहर्सल करते हैं,जिसमें हम यह सीखते हैं कि हमें क्या नहीं करना है.रिहर्सल के दौरान हम हर दिन उसी नाटक को अलग ढंग से करके देखते हैं कि कुछ नया मिलेगा क्या? जबकि हमें पता होता है कि इस ढंग से करेंगे नहीं.तो उस वक्त कलाकार को अपने बेसिक इंस्टेंट्स का पता लग जाता है.थिएटर में लाइव दर्शक होता है,उससे हमें काफी कुछ सीखने को मिलता है.एक ही नाटक के हम कई षो करते हैं,उस वक्त हमें पता चलता रहता है कि नाटक कब खराब होता है और कब अच्छा.नाटक में कलाकार को सिर से लेकर पैर तक ख्ुाद को जानने का अवसर मिलता है.सिनेमा में कैमरा तो हमारे चेहरे तक ही नहीं आंखों तक आ जाता है.पर थिएटर में पूरा अभिनय करना होता है,वहंा आपके हाथ कहां जा रहे हैं,पैर कहां है,हर अंग पर ध्यान देना होता है.सिनेमा में मैने कई कलाकार को मैने देखा है कि उन्हें पता नहीं होता कि हाथों के साथ करना क्या है? हाथ छूट जाते हंैं, तो अलग से लगते हैं.थिएटर में वह सारी झिझक निकल जाती है.माना कि थिएटर में रीटेक नहीं होते और सिनेमा में रीटेक होते हैं.इसीलिए थिएटर को कलाकार का और सिनेमा को निर्देशक का माध्यम कहा जाता है.जब आप कलाकार के माध्यम से सिनेमा के माध्यम में आते हैं,तो आपका आत्म विश्वास बढ़ा रहता है.इंसान हमेशा गलतियंा करने से डरता है.अगर आपने गलती कर ही ली है,तो फिर डर खत्म हो जाता है.

सवाल- आपको नहीं लगता कि हर फिल्म कलाकार को दो तीन वर्ष बाद एक दो माह के लिए थिएटर करना चाहिए?

जवाब –मैं ऐसा कोई जरुरी नहीं मानता.थिएटर कलाकार को यही सिखाता है कि आप कितनी खूबी से आब्जर्व करते हो.कितनी खूबी से अपने काम को सराहते हैं.वह आप कहीं भी कर सकते हैं.मेरी नजर में हर इंसान कलाकार है.हर इंसान झूठ बोलता है,झूठ बोलना भी अभिनय ही तो है.एक बच्चा घर से बाहर कुछ करके आ जाता है और उसे पता होता है कि घर में डाॅंट पड़ेगी,तो वह अपनी एक कहानी गढ़कर पहुॅचता है. उस वक्त वह बच्चा ख्ुाद स्क्रिप्ट लिखता है,ख्ुाद निर्देशित करता है और ख्ुाद ही अभिनय भी करता है.और वह भी एकदम सच्चाई से परफार्म करता है. तो थिएटर सिर्फ यह सिखाता है कि आपसे जब परफार्मेंस मांगी जाए,तब आप दे सकंे.मेरी नजर में अक्षय कुमार बहुत अच्छे कलाकार हैं.जब वह काॅमेडी करते है, तो बहुत कमाल करते हैं.

पूरे कंविक्शन के साथ करते हैं.उन्होने तो कभी थिएटर नही किया.तो कलाकार का थिएटर करना जरुरी नही है.कलाकार के अंदर एक अवेयरनेस आना जरुरी है,फिर चाहे वह थिएटर से आए या किसी अन्य माध्यम से.

सवाल- फिल्म ‘गोविंदा नाम मेरा’ में आपको क्या खूबी नजर आयी थी? मैंने सुना है कि निर्देशक शशांक खेतान ने इस फिल्म के संदर्भ में आपसे पहले ही कोई चर्चा की थी?

जवाब- ‘उरीः द सर्जिकल स्ट्ाइक’ और ‘सरदार उधम सिंह’ के बाद मैं भूखा था,कुछ हल्का फुल्का करने के लिए.मैं सोच रहा था कि कुछ काॅमेडी,कुछ ंरंगीन सा करने को मिल जाए.मैं यह बात कैरियर में कुछ अच्छा होने की सोच के साथ नहीं सोच रहा था.कुछ समय से गंभीर किरदार करते हुए मुझे अंदर से कुछ अलग व नया करने की भूख पैदा हो गयी थी.मुझे बतौर कलाकार एक ताजगी का अहसास करना था.ऐसा कुछ करना था,जो इंटेस न हो,जिसमंे रोना धोना न हो.पर मुझे पता नही था कि ऐसा कुछ मेरे पास आएगा या नहीं…ऐसे वक्त में एक दिन शश्ंााक ने मुझे बुलाया,हमारी बातचीत हुई.तब कोविड की शुरूआत हो रही थी.शशांक ने कहा कि इस वक्त बहुत त्रासदी है.हर इंसान के अपने अपने तनाव हैं.क्यो न हम कुछ ऐसा बनाए,जहां दो घंटे के लिए हम तनाव भूल सके.लोग हमारी फिल्म देखकर अपनी टेंशन भूल जाएं.उन्होने कहा कि क्यों न काॅमेडी फिल्म बनायी जाए? तो मैने कहा कि यह विचार तो बहुत अच्छा है.शशांक ने कहा कि ठीक है.मैं कुछ लिख रहा हॅूं.लिखने के बाद वह मुझे बुलाएंगे.फिर जब उनका लेखन पूरा हो गया.उन्होने मुझे बुलाया और पूरी स्क्रिप्ट सुनायी,मुझे कमाल की स्क्रिप्ट लगी.कन्फ्यूजन से जो ह्यूमर पैदा होता है, उसे दर्शक की हैसियत से भी देखने में मजा आता है.जिस तरह से प्रियदर्शन,राज कुमार हिरानी, डेविड धवन की फिल्में होती है.इन सभी की फिल्मों में कन्फ्यूजन से हास्य पैदा होता है.इतने सारे किरदार होते हैं और इतनी अधिक खिचड़ी पक जाती है कि उसी से हास्य उभरकर आ जाता है.इसे देखने मंे मजा आता है.ऐसा ही फिल्म ‘गोविंदा नाम मेरा’ मंे है.कई अलग अलग तरह के किरदार इस कहानी का हिस्सा हैं.यह सारे किरदार किस तरह एक दूसरे से भिड़ते हैं और बीच में मर्डर हो जाता है.फिर हास्य के साथ क्या खिचड़ी पकती है,वही इस फिल्म की कहानी है.इसमें कुछ भी गंभीर से लेने वाली बात नही है.इसमें न सीख है और न ही सबक है.

सवाल- फिल्म के अपने किरदार को किस तरह से परिभाषित करेंगें?

जवाब- इस फिल्म में मेरे किरदार का नाम गोविंदा वाघमारे है.आप अपने आस पास नजर दौड़ाएंगे,तो पाएंगे कि हर इंसान का अपना संघर्ष चल रहा है.हर कोई अपनी अपनी जिंदगी में गोविंदा वाघमारे है.बेचारा सुबह उठता है.कोई इधर से तो कोई उधर से मार खाता है.घर से मार नहीं खाता,तो ट्ेन में चढ़कर मार खाता है.ट्ेन से उतरते वक्त मार खाता है.कहीं नौकरी कर रहा है,तो वहंा बाॅस की डांट खाता है.यानी कि कहीं न कहीं से हर इंसान हर दिन मार खाता रहता है.भले ही शारीरिक तौर पर न पड़ रही हो,पर उसे मार जरुर पड़ रही होती है.तो गोविंदा वाघमारे ऐसे ही लोगों का प्रतिनिधित्व करता है.फिल्म में गोविंदा वाघमारे अपनी पत्नी से मार खाता है.नौकरी में भी संघर्ष है, वह उसे बेहतर करना चाहता है.तो वहीं फिल्म में डाॅन है,वकील है, सौतेला भाई है.उसकी मां भी है,जो उसका घर हड़पना चाहती है.बीच मेे हत्या हो जाती है.आरोप गोविंदा पर ही लगता है,पर यह कैसे बचता है,यही इस किरदार की खूबी है.यही हम सभी की निजी जिंदगी मे भी होता है.जैसे ही नौ बजते हंैं,आप सड़क पर होते हैं और संघर्ष शुरू हो जाता है.रात में जिस तरह से कूड़ादान घर से बाहर रखा जाता हैउसी तरह हर इंसान दिन भर के संघर्ष को समेटकर कूड़ादान मंे भर रखते हैं.ऐसा हर दिन वह करता है.यही जिंदगी है.

तो गोविंदा वाघमारे के किरदार में भी इतनी सारी समस्याएं हैं,कि कुछ न कुछ कन्फयूजन,कुछ न कुछ टेंशन चलते ही रहते हैं.फिर भी जिंदगी ऐसी है कि उसमें काॅमेडी ढूढ़़ो,तो कुछ न कुछ मिल ही जाती है.मुस्कुराने की कोई न कोई वजह मिल ही जाती है.जब इंसान दूसरे की समस्या देखता है,तो उसकी अपनी समस्या खत्म हो जाती है.तो इस फिल्म में भी समस्या के साथ काॅमेडी की तलाश है.

सवाल- आप और आपकी पत्नी कटरीना कैफ दोनों एक ही क्षेत्र में कार्यरत हैं.यह कितना बोरिंग होता है और कितना फायदेमंद होता है?

जवाब –फायदेमंद तो जरुर होता है.जब हम लंबे समय के लिए शूटिंग करने बाहर जाते हैं,तो जो इसी क्षेत्र से हैं,वह इस स्थिति को समझ सकते हैं.जब दोनो एक ही प्रोफेशन में होते है,तो यह सुविधा होती है.क्यांेकि हम प्रोफेशन की प्लस व माइनस को समझते हैं.तो शाक नहीं लगता.बोरिंग या तकलीफ यह होती है कि हम घर में भी वही बातें होती हैं,जो बाहर हो रही थीं.तो कई बार हमें कामरशियसली बोलना पड़ता है कि अब हम काम की बात नही करेंगे.

सवाल- रचनात्मकता में कहीं कोई मदद मिलती है?

जवाब- जी हा हम लोग कई आडियाज एक दूसरे को देते रहते हैं.वह इतना अच्छा डांस करती हंै कि मैं अपने डांस के रिहर्सल वीडियो दिखाकर उनसे सलाह लेता हॅूं.वह अच्छा गाइड करती हैं.उन्होने तो ढेर सारे यादगार डांस किए हैं.

Anupamaa: पाखी की सुसाइड की धमकी पर भड़केंगे घरवाले, वनराज सुनाएगा खरी खोटी

रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर ‘अनुपमा’ इन दिनों खूब चर्चा में है. शो ने टीआरपी लिस्ट में टॉप पर जगह बनाने के साथ-साथ दर्शकों के दिलों-दिमाग में भी टॉप पर जगह बनाई हुई है. इन दिनों ‘अनुपमा‘ (Anupama) की पूरी कहानी पाखी और अधिक के रिश्ते के इर्द-गिर्द घूम रही है. वहीं अनुज अनुपमा को इन सबसे दूर रखने की कोशिश कर रहा है. बीते दिन भी रुपाली गांगुली के ‘अनुपमा’ में दिखाया गया कि पाखी अधिक को खुदकुशी की धमकी देती है. इस बात से घबराकर अधिक, अंकुश और बरख तुरंत शाह हाउस पहुंचते हैं. दूसरी तरफ अनुपमा, अनु और किंजल के साथ पिकनिक पर गई होती है. लेकिन ‘अनुपमा’ में आने वाले ट्विस्ट और टर्न्स यहीं पर खत्म नहीं होते हैं.

धमकी को कैजुअलबताएगी पाखी:

दूसरी ओर, पाखी के वॉइस मैसेज से अधिक डरा हुआ है, उन्होंने कहा, “तुम मुझसे दूर रहना चाहते हो तो ठीक है लेकिन मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती.” वह जोर देकर कहती हैं, अगर मुझे कुछ होता है और मैं अपनी जान लेती हूं, तो केवल आप ही जिम्मेदार होंगे. अधिक और पूरे परिवार के दरवाजा खटखटाने के बाद पाखी कमरे से बाहर निकलती है.  लेकिन उसके कानों में इयरफोन लगा होता है, जिसे देखकर पूरे घरवालों का पारा चढ़ जाता है. अधिक सहित बाकी परिवार वाले उसे डांटते हैं कि जान से मारने की धमकी देकर वह यहां एंजॉय कर रही है. वहीं पाखी अपनी इस धमकी को कैजुअल बताती है और कहती है, “अधिक को बुलाने के लिए इसके अलावा मेरे पास कोई चारा नहीं था.”

 

 

View this post on Instagram

 

A post shared by anupama serial (@anupama_serialss)

एंजॉय करती छोटी अनु :

अनुपमा ने अपने वैवाहिक जीवन और अपनी छोटी बेटी अनु पर ध्यान देना शुरू करने का फैसला किया. वह उसे एक पिकनिक के लिए बाहर ले जाती है और वे दोनों खेल खेलते हैं और एक साथ नृत्य करते हैं. दूसरी ओर अनुपमा का साथ देती है किंजल . दोनों पिकनिक स्पॉट पर बहुत एंजॉय करते है. साथ खेलना-नाचना और खूब मस्ती.

 

 

View this post on Instagram

 

A post shared by anupama serial (@anupama_serialss)

अनुपमा के चक्कर में भिड़ेंगे अनुज और वनराज:

‘अनुपमा’ में दिखाया जाएगा कि वनराज और बा ऐसे मौके पर अनुपमा को याद करेंगे. वनराज उसे फोन करेगा, लेकिन उसका फोन लेकर अनुज शाह हाउस पहुंच जाएगा. वह वनराज से कहेगा कि अनुपमा यहां नहीं आएगी. वहीं वनराज के हक जताने पर अनुज भड़क जाएगा और कहेगा, वह मेरी बीवी है और मेरी जिम्मेदारी है. दोनों इस चीज के लिए बहस शुरू कर देते हैं.

BIGG BOSS 16: शालीन को रोता देख पिघला EX वाइफ दलजीत का दिल, देखें वीडियो

टीवी के कॉन्ट्रोवर्शियल रियलिटी शो ‘बिग बॉस 16‘ (Bigg Boss 16) का बीता एपिसोड काफी इमोशनल रहा। बीते एपिसोड में शालीन भनोट (Shalin Bhanot) और निमृत कौर अहलूवालिया (Nimrit Kaur Ahluwalia) को उनके घर से आई चिट्ठी पढ़ने के लिए मिली थी, जिसके बाद दोनों ही फूट-फूटकर रोते हुए नजर आए. शालीन अपने पापा के हाथ से लिखी चिट्ठी को पढ़ते वक्त काफी ज्यादा भावुक हो गए थे. सोशल मीडिया पर भी उनका एक वीडियो वायरल हुआ. वहीं, अब शालीन भनोट की एक्स वाइफ दलजीत कौर (Dalljiet Kaur) ने एक नोट शेयर किया है, जिसमें उन्होंने शालीन के लिए प्यार जताया है. सोशल मीडिया पर दलजीत के इस नोट की काफी चर्चा हो रही है.

 

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Shalin Bhanot (@shalinbhanot)

शालीन के लिए दलजीत का नोट

दरअसल, दलजीत कौर ने अपने ऑफिशियल इंस्टाग्राम अकाउंट की स्टोरी पर शालीन भनोट का एक वीडियो शेयर किया है. इस वीडियो में शालीन ‘बिग बॉस हाउस’ में अपने घर से मिली चिट्ठी पढ़ते दिख रहे हैं. इस वीडियो के साथ दलजीत ने लिखा, ‘शालीन, मैंने बहुत समय से बिग बॉस नहीं देखा है, लेकिन मैंने इस वीडियो को देखा. मैं आपको इस सफर के लिए शुभकामनाएं देती हूं. ईमानदार होकर खेलो. अपने दिल के साथ खेलो.’ बता दें कि शालीन भनोट और दलजीत कौर साल 2009 में शादी के बंधन में बंधे थे। इससे पहले दोनों ने एक-दूसरे को डेट भी था. हालांकि, आपसी तनाव के चलते दोनों ने कुछ सालों बाद तलाक ले लिया.

यहां देखें शालीन की बिग बॉस जर्नी

 

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Shalin Bhanot (@shalinbhanot)

शलीन भनोट ने ‘बिग बॉस’ के घर में धाकड़ एंट्री ली थी लेकिन शो में आने के कुछ समय बाद ही उनका नाम सुंबुल तौकीर खान के साथ जुड़ने लगा. दोनों के बीच गहरी दोस्ती थी लेकिन शो से लेकर सोशल मीडिया तक पर दावा किया जाने लगा कि सुंबुल- शालीन को पसंद करती हैं, जिस वजह से कई बार यह बात घर का मुद्दा भी बनी. इस बीच, शालीन-टीना दत्ता के भी करीब आए. लेकिन शो के नौवे हफ्ते में आते-आते अकेले अपनी गेम खेल रहे हैं.

क्रिकेट: ट्वैंटी 20 वर्ल्ड कप- मरती खेल भावना, ट्रोल होते खिलाड़ी

रविवार, 13 नवंबर, 2022 को आस्ट्रेलिया के मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंड में आईसीसी ट्वैंटी20 वर्ल्ड कप का फाइनल मुकाबला था. सामने थे पाकिस्तान और इंगलैंड. स्टेडियम में तकरीबन 80,000 दर्शक थे और ज्यादातर पाकिस्तान के पक्ष में दिखाई दे रहे थे.

पर इस मैच में इंगलैंड के खिलाडि़यों ने उम्दा खेल दिखाते हुए खिताब अपने नाम किया. पाकिस्तान ने कुल बनाए 137 रनों को बचाने की पूरी कोशिश की, पर सब बेकार गया.

इस तरह 16 अक्तूबर, 2022 को शुरू हुआ यह खेल तमाशा खत्म हो गया, लेकिन अगर ध्यान से देखें तो सोशल मीडिया पर एक अलग ही खेल चल रहा था, जो क्रिकेट की भलाई के लिए तो बिलकुल भी नहीं था.

इस खेल में खिलाडि़यों के लिए नफरत भरी ट्रोलिंग के साथसाथ ऐसे बचकाने संयोगों की बात की गई थी, जो क्रिकेट के माहिरों को भी अपनी चपेट में ले चुकी थी.

सब से बड़ा और अजबगजब संयोग तो पाकिस्तान के साथ जुड़ा था. दरअसल, साल 1992 के वनडे वर्ल्ड कप में पाकिस्तान की टीम जैसे हालात में फाइनल मुकाबले में पहुंची और उसे जीती थी, तकरीबन वैसा ही कुछ इस बार भी दिखा था.

जैसे, इस बार की तरह साल 1992 में भी वर्ल्ड कप आस्ट्रेलिया में हुआ था. तब भी आस्ट्रेलियाई टीम लीग मुकाबलों से आगे नहीं पहुंच पाई थी. उस समय भी पाकिस्तान अपने लीग मुकाबले में भारत से हार गया था. फिर सैमीफाइनल मुकाबले में पाकिस्तान ने न्यूजीलैंड को मात दी थी और फाइनल में इंगलैंड से भिड़ कर उस ने ट्रौफी जीती थी.

इतना ही नहीं, इस बार के फाइनल मुकाबले में जब इंगलैंड के तेज गेंदबाज बेन स्टोक्स ने मैच की पहली ही गेंद ‘नो बाल’ फेंकी, तो पाकिस्तानी फैन खुशी से उछल पड़े, क्योंकि साल 1992 के फाइनल मुकाबले में भी इंगलैंड ने पहले गेंदबाजी की थी और मैच का पहला ओवर फेंकने वाले डेरेक प्रिंगल ने भी ‘नो बाल’ फेंकी थी. इस से पाकिस्तानियों को यकीन हो गया कि 30 साल पहले जो कारनामा हुआ था, वह दोहराया जाएगा.

पर अफसोस, ऐसा हो न सका और इंगलैंड ने आसानी से यह मैच जीत कर साबित कर दिया कि संयोग नाम की कोई चीज नहीं होती और खेल में जो खिलाड़ी आखिर तक दिमागी तौर पर मजबूत रह कर खेलता है, वह मुकाबला अपने हक में कर सकता है.

अगर इस संयोग को सिर्फ आम लोग ही तरजीह देते, तो यह बात मान ली जा सकती थी कि वे भावनाओं में बह कर ऐसी बचकानी बातों पर यकीन कर लेते हैं, पर जब क्रिकेट के माहिर और खुद खिलाड़ी ही ‘सबकुछ ऊपर वाले की बदौलत होता है’ का प्रचार करते हैं, तो वे अपनी मेहनत पर ही सवालिया निशान लगा देते हैं.

अगर संयोग ही इतने ज्यादा मजबूत थे, तो फिर पाकिस्तान के गेंदबाज क्यों मैदान पर अपनी जान झोंक रहे थे? सब संयोग और ऊपर वाले पर ही छोड़ देते. लेकिन वे भी मन से तो यही जानते हैं कि संयोग जैसी चीज कुछ नहीं होती है. खिलाड़ी की खेल भावना और कोशिश ही नतीजे पर असर डालती है.

वैसे, यह अच्छा हुआ कि पाकिस्तान फाइनल मुकाबला हार गया, क्योंकि अगर वह जीत जाता तो खबरों में इसी संयोग का ऐसा प्रचारप्रसार किया जाता कि लोगों के मन में एक नए तरीके का अंधविश्वास घर कर जाता.

इस संयोग के अलावा खेल भावना का जिस ने कत्ल किया, वह थी ट्रोलर समाज की वाहियात सोच. इस टूर्नामैंट में 12 देशों ने हिस्सा लिया था, पर लग ऐसा रहा था कि भारत और पाकिस्तान ही खेलने आए हैं, बाकी देश तो बस तफरीह कर के वापस चले जाएंगे.

भारत का पहला मुकाबला ही पाकिस्तान के साथ था और इस मैच का इतना ज्यादा प्रचार किया गया था मानो यही फाइनल मुकाबला है.

यह सच है कि भारत और पाकिस्तान के बीच किसी भी खेल में आपसी मुकाबला हो तो एक अलग तरह का तनाव रहता है और इस में कोई बुराई भी नहीं है, पर इस तनाव से खेल कहीं मर जाता है. खेल का मैदान लड़ाई का मैदान बन जाता है और सब के दिमाग में यही बात चल रही होती है कि चाहे किसी से भी हार जाना, पर पाकिस्तानी से मत हारना. ऐसा ही कुछ दबाव सरहद पार वालों पर भी रहता है.

भारत ने पाकिस्तान के साथ हुआ वह रोमांचक मुकाबला आखिरी गेंद पर जीता था. जीत भी ऐसी कि जो पाकिस्तान

से मुंह के निवाले की तरह छीनी गई थी. जब पाकिस्तान को लग रहा था कि

यह मुकाबला उस के हक में जा रहा है, तब विराट कोहली ने अपनी शानदार बल्लेबाजी से मैच का रुख ही नहीं पलटा, बल्कि उस पर कब्जा भी जमा लिया था.

पाकिस्तान उस हार को किसी तरह जज्ब कर गया और जब फाइनल में पहुंचा तो उसे लगा कि चूंकि सामने इंगलैंड की टीम है तो वह ट्रौफी पर कब्जा जमा सकता है. उसे इस बात की भी खुशी थी कि इंगलैंड ने सैमीफाइनल मुकाबले में भारत को 10 विकेट से धो डाला था.

इस के बाद शुरू हुआ ट्रोल करने

का गंदा खेल, जिस में शामिल हुए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ, जिन्होंने  ट्वीट कर भारत पर तंज कसा था कि रविवार को 152/0 बनाम 170/0 का फाइनल मुकाबला होगा.

बता दें कि ट्वैंटी20 वर्ल्ड कप, 2022 के सैमीफाइनल मुकाबले में भारत के खिलाफ इंगलैंड का स्कोर 170/0 रहा था, जबकि पिछले ट्वैंटी20 वर्ल्ड कप

में पाकिस्तान ने भारत को 10 विकेट से हराया था. उस वक्त पाकिस्तान का स्कोर 152/0 था.

पर प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ का यह तंज उन पर ही भारी पड़ गया. भारतीय यूजर्स ने उन्हें करारा जवाब दिया. किसी ने ट्वीट कर लिखा कि आप किस को सपोर्ट करोगे, क्योंकि आप का पैसा तो इंगलैंड में ही इंवैस्ट हुआ है.

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के ट्वीट का जवाब देते हुए भारत के तेज गेंदबाज रह चुके इरफान पठान ने लिखा, ‘आप में और हम में यही फर्क है. हम अपनी खुशी से खुश और आप दूसरे की तकलीफ से, इसलिए खुद के मुल्क को बेहतर करने पर ध्यान नहीं है.’

ट्रोलिंग के इस खेल से खिलाड़ी भी अछूते नहीं रहे. जब पाकिस्तान अपना फाइनल मुकाबला इंगलैंड से हारा तो वहां के तेज गेंदबाज रह चुके ‘रावलपिंडी ऐक्स्प्रैस’ शोएब अख्तर ने सोशल मीडिया पर टूटे दिल के इमोजी से हार का दुख मनाया. शोएब अख्तर के उस ट्वीट पर भारतीय तेज गेंदबाज मोहम्मद शमी ने लिखा, ‘सौरी भाई, इसे ही कर्म कहते हैं.’

मोहम्मद शमी के इस ट्वीट पर पाकिस्तान के आलराउंडर रह चुके शाहिद अफरीदी ने टैलीविजन पर कहा, ‘हम लोग जो क्रिकेटर हैं, हम एंबेसडर हैं, रोल मौडल हैं. हमारी कोशिश होनी चाहिए कि यह सब खत्म होना चाहिए. हम एकदूसरे के पड़ोसी हैं. ऐसी चीज नहीं होनी चाहिए, जिस से लोगों के बीच में नफरत फैले.’

मोहम्मद शमी की इस ट्वीट पर पाकिस्तान के तेज गेंदबाज रहे वसीम अकरम ने पाकिस्तान के एक चैनल ‘ए स्पोर्ट्स’ पर ‘द पवेलियन शो’ के दौरान कहा, ‘हमें इन मामलों में न्यूट्रल रहना चाहिए. भारतीय अपने देश के लिए देशभक्त हैं, मुझे इस में कोई परेशानी नहीं और हम अपने देश को ले कर देशभक्त हैं. लेकिन जलती पर तेल डालना, ट्वीट पर ट्वीट करना… ऐसा मत करो यार…’

शाहिद अफरीदी और वसीम अकरम की चिंता जायज है, पर आने वाले समय में ऐसा होगा, यह लग तो नहीं रहा है, क्योंकि अब क्रिकेट खेल से ज्यादा ट्रोलिंग करने का बहाना हो गया है. पाकिस्तान और भारत के मैच में लोग उस का लुत्फ लेने से ज्यादा अपनी जान जलाते हैं. उन्हें हर हाल में अपनी जीत चाहिए होती है, ताकि हारने वाले को ट्रोल किया जा सके.

बहुत बार यह ट्रोलिंग उस लैवल तक चली जाती है, जहां हिंदूमुसलिम मुद्दे को भड़काया जा सके. फिर चाहे पाकिस्तान कितना ही अच्छा खेल दिखा दे या कोई भारतीय मैच पलटने वाली पारी खेल दे, पर चूंकि हिंदूमुसलिम या भारतपाकिस्तान दिमाग में घुसा होता है, तो ऐसे में खेल और उस का मजा मर जाता है. अच्छी बल्लेबाजी, गेंदबाजी या फील्डिंग पर ताली बजाने के बजाय लोग इस बात की दुआ करते हैं कि चाहे विरोधी टीम वालों के हाथपैर टूट जाएं, पर जीत हमें ही मिले.

लोगों की यह सोच बड़ी खतरनाक है और सोशल मीडिया इस आग में घी डालने का काम करता है. सच तो यह है कि सोशल मीडिया अब टैंशन बढ़ाने की मशीन बन चुका है और इस की चपेट में खेल और खिलाड़ी दोनों आ रहे हैं.

अपराध: श्रद्धा हत्याकांड- बेबस हैं लड़कियां, चाहे शादीशुदा चाहे लिवइन

दुनिया के किसी भी समाज में अपराध को पूरी तरह रोक पाना तकरीबन नामुमकिन है. लेकिन ऐसा न हो, इसलिए पुलिस के साथसाथ मीडिया वाले भी किसी अपराध की हकीकत बताते हुए लोगों को जागरूक करते रहते हैं, ताकि भविष्य में ऐसे कांड न होने पाएं. पिछले काफी सालों से टैलीविजन पर हत्या जैसे अपराधों की कहानियां ‘क्राइम पैट्रोल’ या ‘सावधान इंडिया’ या फिर दूसरे नामों से दिखाई जाती हैं और ‘मनोहर कहानियां’ या ‘सत्यकथा’ जैसी अपराध खोजी पत्रिकाएं भी देशविदेश में होने वाले अपराधों की जानकारी देती रहती हैं, ताकि लोग अपने आसपास नजरें जमाए रखें कि कहीं कोई बड़े कांड की तैयारी तो नहीं कर रहा है.

इस के बावजूद अगर देश की राजधानी में कोई लड़का अपनी लिवइन पार्टनर की हत्या कर के काफी दिनों तक मासूम होने का ढोंग करता रहे तो समझ लीजिए कि लोगों की भावनाओं के साथसाथ उन की इनसानियत भी दम तोड़ रही है.

दिल्ली के महरौली इलाके में 18 मई, 2022 को ऐसा ही एक दिल दहलाने वाला कांड हुआ था, पर इस का खुलासा कई महीने बाद हुआ. वह भी तब जब दिल्ली पुलिस ने पीडि़ता श्रद्धा के पिता विकास वालकर द्वारा दर्ज कराई गई गुमशुदगी की शिकायत की जांच शुरू की थी.

श्रद्धा की हत्या उस के तथाकथित प्रेमी आफताब ने की थी और इस की जड़ में था उन के बीच का झगड़ा. दिल्ली पुलिस सूत्रों ने बताया कि इस प्रेमी जोड़े के बीच 18 मई, 2022 को पहली बार झगड़ा नहीं हुआ था, बल्कि वे दोनों पिछले काफी समय से झगड़ा करते आ रहे थे. समाचार एजेंसी एएनआई को सूत्रों ने बताया कि 18 मई को मुंबई से घर का सामान लाने को ले कर आफताब और श्रद्धा के बीच झगड़ा हुआ था. घर का खर्च कौन उठाएगा और सामान कौन लाएगा, इस बात को ले कर भी उन में झगड़े होते थे. इस बात को ले कर आफताब काफी गुस्से में आ गया था.

18 मई, 2022 की रात को तकरीबन 8 बजे दोनों के बीच जम कर झगड़ा शुरू हुआ. झगड़ा इतना ज्यादा बढ़ गया कि आफताब ने श्रद्धा की गला दबा कर हत्या कर दी. उस ने रातभर श्रद्धा की लाश को कमरे में रखा और अगले दिन

चाकू और रैफ्रिजरेटर खरीदने चला गया. पर क्यों?

क्या है पूरा मामला आफताब और श्रद्धा पिछले 3 साल से झगड़ रहे थे. वे आपस में क्यों झगड़ते थे, इस से पहले यह जान लेते हैं कि वे दोनों कौन थे और मुंबई छोड़ कर दिल्ली में क्या कर रहे थे?पेशे से शैफ और फोटोग्राफर तकरीबन 28 साल के आफताब पूनावाला का जन्म मुंबई में हुआ था और वह वहां अपने छोटे भाई अहद, पिता आमिन और मां मुनीरा बेन के साथ वसई उपनगर में बनी यूनिक पार्क हाउसिंग सोसाइटी में रहता था.

मुंबई के एलएस रहेजा कालेज से ग्रेजुएट आफताब पूनावाला इस साल की शुरुआत में श्रद्धा से मिलने के बाद दिल्ली में रहने लगा था.श्रद्धा का पूरा नाम श्रद्धा वाकर था. वह मूल रूप से महाराष्ट्र के पालघर जिले की रहने वाली थी और मुंबई के मलाड इलाके में एक मल्टीनैशनल कंपनी के एक काल सैंटर में काम करती थी. यहीं से उस की मुलाकात आफताब पूनावाला से हुई थी.

कुछ ही समय में श्रद्धा और आफताब एकदूसरे से बेहद प्यार करने लगे थे और उन्होंने शादी तक का फैसला कर लिया था, लेकिन उन दोनों के परिवार वाले इस रिश्ते से खुश नहीं थे. नतीजतन, उन दोनों ने अपने प्यार की खातिर परिवार और मुंबई छोड़ दी. इस के बाद वे दिल्ली आ गए और महरौली के एक फ्लैट में लिवइन में रहने लगे. पुलिस की पूछताछ में आरोपी आफताब पूनावाला ने अपना गुनाह कबूल करते हुए बताया कि श्रद्धा उस पर लगातार शादी करने का दबाव बना रही थी. वह रोजाना सुबह से ले कर शाम तक बस एक ही बात कहती थी कि शादी कर लो. इसी बात को ले कर उन के बीच आएदिन झगड़ा होता था. पूछताछ में यह भी सामने आया कि आफताब की कई दूसरी लड़कियों से भी दोस्ती थी, जिन को ले कर श्रद्धा को उस पर शक हो रहा था. जब श्रद्धा ने इस बारे में पूछा तो आफताब ने सिरे से खारिज कर दिया.

18 मई, 2022 की रात भी दोनों के बीच इन्हीं सब बातों को ले कर झगड़ा हुआ था, जिस के बाद आफताब ने श्रद्धा की बेरहमी से हत्या कर दी. श्रद्धा को मारने वाले आफताब की हैवानियत से इनकार नहीं किया जा सकता है. उस ने उस लड़की को मौत के घाट उतार दिया, जिस से वह प्यार करता था और उस के साथ एक ही घर में रहता था. पर ऐसा क्यों होता है कि कोई इनसान किसी के साथ जानवर जैसा बरताव करने पर उतारू हो जाता है?

क्या श्रद्धा ने शादी की बात कह कर इतनी बड़ी गलती कर दी थी कि उसे अपनी ही जान से हाथ धोना पड़ा? आफताब जैसे लोगों की यह कैसी फितरत होती है कि वे कोल्ड ब्लडेड मर्डर को अंजाम दे देते हैं और किसी को खबर तक नहीं लगती? सब से बड़ा सवाल यह कि ऐसे मामलों में लव जिहाद का एंगल कैसे जुड़ जाता है लव जिहाद का हौआ उन्हीं मामलों में उछाला जाता है, जहां लड़का मुसलिम और लड़की हिंदू होती है, पर यहां तो शादी ही नहीं हुई थी. आफताब ने एक दिल दहला देने वाला कांड सिर्फ इसलिए किया, क्योंकि वह मुसलिम था, यह बात गले से नीचे नहीं उतरती है.

जब आफताब ने श्रद्धा का कत्ल किया था, तब वह नशे में था. अब अगर पुलिस को शक है कि आफताब सीरियल किलर हो सकता है, तो लव जिहाद का बुलबुला वैसे ही फूट जाता है.इस हत्याकांड ने साल 2010 की उसी खौफनाक कहानी को याद दिला दिया है, जिस में श्रद्धा की तरह ही एक और औरत की हत्या की गई थी. तब 36 साल की अनुपमा गुलाटी की उस के पति राजेश गुलाटी ने उत्तराखंड के देहरादून में हत्या कर दी थी.हत्यारे राजेश ने अनुपमा को मारने के बाद उस के शरीर के 70 टुकड़े करने के लिए बिजली से चलने वाले कटर का इस्तेमाल किया था. वहां तो लव जिहाद की कोई गुंजाइश नहीं थी, जबकि कांड बहुत बड़ा था.

अगर कोई अपना जानवर सरीखा हो कर जुल्म करे तो यकीनन हमें ही उसे पहचानने में कोई कमी रह गई है. श्रद्धा को जरूर अंदाजा रहा होगा कि आफताब जब आपा खो बैठता है, तो वह किस हद तक जा सकता है. इस के बावजूद वह उस के दिमाग को पढ़ नहीं पाई. दरअसल, आफताब पूनावाला या राजेश गुलाटी जैसे लोग स्वभाव से गुस्सैल होते हैं, जो सामने वाले की छोटी से छोटी बात को दिल से लगा लेते हैं. फिर वे सामने वाले पर हावी होने की कोशिश करते हैं और जब उन्हें ‘न’ सुनने को मिलती है, तो वे इसे बरदाश्त नहीं कर पाते हैं.

साल 1995 के दिल्ली में हुए जेसिका लाल हत्याकांड में आरोपी मनु शर्मा को जेसिका की ‘न’ ही चुभ गई थी कि एक बारमेड कैसे उसे ड्रिंक देने से मना कर सकती है और मनु शर्मा ने जेसिका पर गोली दागने में देर नहीं की. आफताब ने श्रद्धा की लाश के टुकड़े करने में झिझक महसूस नहीं की. तो क्या वह चाकू का इस तरह इस्तेमाल करने का आदी था? ऐसा हो सकता है, क्योंकि गला घोंट कर मारने के बाद फुतूर सिर से उतरने के बाद वह घबरा सकता था, पर उस ने ऐसा नहीं किया और श्रद्धा की लाश के टुकड़ेटुकड़े करने में कोई दया नहीं दिखाई.

चूंकि श्रद्धा अब इस दुनिया में नहीं है, तो उसे ही पीडि़ता समझा जाएगा, पर आफताब पूनावाला जैसे अपराधी दिमाग के लोग खुद को पीडि़त समझते हैं और पीड़ा देने वाले को सजा देना अपना हक समझते हैं. गला दबा कर मारने के बाद भी आफताब को संतुष्टि नहीं मिली थी. वह श्रद्धा की लाश को भी सजा देना चाहता था, ताकि खुद के अहम को संतुष्टि मिले. अगर दूसरी तरफ श्रद्धा आफताब पर शादी करने का जोर दे रही थी, तो इस में कोई गलत बात नहीं थी. लेकिन उन के रोजरोज के झगड़ों के बावजूद श्रद्धा आफताब की बदनीयती नहीं समझ पाई तो यही उस की सब से बड़ी गलती थी.

श्रद्धा ने अपने मांबाप की नहीं सुनी और आफताब के साथ बिना शादी किए एकसाथ रहने लगी, यहां तक तो सब ठीक था, पर उसे आफताब के गुस्सैल स्वभाव को समझ जाना चाहिए था. वह उस से तुरंत अलग हो जाती. अगर मांबाप के घर नहीं जाती तो भी कोई बात नहीं थी. वह अपने पैरों पर खड़ी थी, इसलिए अकेली रह सकती थी. उसे पीजी में तो जगह मिल ही जाती, जहां उस की जान बची रह सकती थी. पर वह ऐसा न करने की गलती कर बैठी.

ऐसे मामलों में गलती तो उन पड़ोसियों की भी होती है, जो ऐसे झगड़ों की जड़ में जाने के बजाय कन्नी काट लेते हैं. इस मामले में पड़ोसी जानते थे कि आफताब और श्रद्धा झगड़ते थे, पर उन्हें भी इतना बड़ा अपराध होने की भनक तक नहीं लग पाई. आफताब ने श्रद्धा का सिर काट कर उसे रैफ्रिजरेटर में रखा और जिस्म के कई टुकड़े कर दिए थे. हत्या के 5 महीने बाद उस ने उन्हें ठिकाने लगाना शुरू किया, पर मजाल है कि पड़ोसी यह हत्याकांड सूंघ पाए. आफताब लाश काटते समय पानी का नल चला देता था, ताकि खून नाली में बह जाए. उस पर पानी के बिल के 300 रुपए पैंडिंग थे, पर मकान मालिक को जरा भी शक नहीं हुआ.

दिक्कत यह है कि शहरों में लोग धीरेधीरे सामाजिक सरोकारों को भूलते जा रहे हैं. कोई आप के पड़ोस में आया तो यह कह कर नाकभौं सिकोड़ लेते हैं कि बड़ा अजीब है, ‘नमस्ते’ तक नहीं की. पर क्या हम खुद कोई पहल करते हैं? पड़ोस में जब भी कोई आता है, तो उसे चायपानी पूछ कर अच्छे पड़ोसी होने का संकेत दे सकते हैं, फिर यह उस पर है कि वह अपना मेलजोल बढ़ाता है या नहीं. इस से एकदूसरे को कुछ हद तक समझने में मदद मिल जाती है.

इस सब के बावजूद आफताब पूनावाला जैसे अपराधी का दिमाग पढ़ना मुश्किल होता है, पर श्रद्धा को अगर यह पता लगने लगा था कि आफताब उस पर हावी होने की नाजायज कोशिश करने लगा है, तो उसे सतर्क हो जाना चाहिए था. उसे कतई आफताब की उंगलियों पर नहीं नाचना चाहिए था और किसी को अपने इस बिगड़ते रिश्ते के बारे में बता देना चाहिए था.लेकिन जिस देश में बड़ी आसानी से निठारी कांड हो जाता हो या जहां आज तक आरुषी हत्याकांड के हत्यारे के बारे में पता नहीं चल पाया हो, वहां आम लोगों की समाज के प्रति जागरूकता की असलियत की पोल खुल जाती है.

पहले लोग आसपड़ोस में आंखें खुली रख कर जिम्मेदार नागरिक होने के संकेत दे देते थे, पर अब तो मकान मालिक को किराएदार से किराया लेने के अलावा कोई सरोकार नहीं होता है. पड़ोसी भी बंद कमरों से आती झगड़े की आवाजों को नजरअंदाज कर देते हैं और जब कोई बड़ा कांड हो जाता है, तो ऐसे चौंकते हैं, जैसे उन्हें कुछ मालूम ही नहीं था.आफताब पूनावाला जैसे लोग समाज का वे अटूट हिस्सा हैं, जो कहीं भी हो सकते हैं और अपने आसपड़ोस में बड़े अच्छे होने की ऐक्टिंग करते हैं, इसीलिए उन्हें कांड होने से पहले समझ लेना बड़ा मुश्किल होता है, पर यह नामुमकिन भी नहीं है.अगर हम सतर्क रहें, क्योंकि हर बड़े अपराध की दस्तक बहुत पहले होने लगती है, अगर उसे सुन लिया जाए तो. लेकिन हमारे इसी बहरेपन का फायदा अपराधी उठाते हैं.

मैं 27 साल की ब्याहता हूं,मेरी मां मुझे मेरी सास के खिलाफ भड़काती है, क्या करे ?

मैं 27 साल की ब्याहता हूं. मेरे मांबाप को लगता है कि ससुराल में किसी पर भी यकीन नहीं करना चाहिए और इसीलिए मेरी मां मुझे अपनी सास के खिलाफ भड़काती रहती हैं. इसी वजह से वे कभी मुझे मायके बुला लेती हैंतो कभी खुद वहां आ जाती हैं. वे मेरी ससुराल की हर खबर रखती हैं. इस के उलट मेरी ससुराल वाले बहुत अच्छे हैंपर मेरे मायके वालों की इन सब बातों से वहां पर बेवजह तनाव का माहौल रहता है. मैं क्या करूं?

आप जैसी करोड़ों ब्याहताएं मायके और उस में भी खासतौर से अपनी मां की दखलअंदाजी से अपनी जिंदगी नरक बना लेती हैं और बाद में पछताती हैं. आप तुरंत घर वालों से कहिए कि वे आप की जिंदगी और ससुराल में दखल न दें.  आप को अपनी जिंदगी मायके वालों के साथ नहीं, बल्कि ससुराल वालों के साथ गुजारनी है. अगर वे अच्छे हैं, तो बेवजह का तनाव लेना ठीक नहीं. अपनी मां के कहने में आ कर सास से पंगा न लें और अपनी ससुराल पर ध्यान दें.

मुझे चुनौती वाले किरदार पसंद हैं- दुलकर सलमान

मलयालम सिनेमा के सुपरस्टार ममूटी के बेटे दुलकर सलमान को हमेशा लगता था कि वे अपने पिता के जूते में पैर रखने के काबिल नहीं हैं. इसी के चलते उन्होंने खुद को फिल्मों से दूर रखते हुए एमबीए की पढ़ाई कर दुबई में नौकरी करनी शुरू की, पर यह नौकरी उन्हें रास नहीं आ रही थी. आखिरकार 26 साल की उम्र में उन्होंने साल 2012 में मलयालम फिल्म ‘सैकंड शो’ में हरीलाल नामक गैंगस्टर का किरदार निभाते हुए ऐक्टिंग जगत में कदम रखा और देखते ही देखते वे मलयालम सिनेमा के सुपरस्टार बन गए.

यही वजह है कि दुलकर सलमान अब तक तकरीबन 35 फिल्मों में ऐक्टिंग, 13 फिल्मों में गीत गाने के अलावा 4 फिल्में भी बना चुके हैं. उन्होंने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में इरफान खान के साथ फिल्म ‘कारवां’ से कदम रखा था.  सितंबर महीने में आई आर. बाल्की की फिल्म ‘चुप : रिवैंज औफ द आर्टिस्ट’ में भी दुलकर सलमान के काम की काफी तारीफ हुई थी, जिस में सनी देओल भी थे. पेश हैं, दुलकर सलमान से हुई लंबी बातचीत के खास अंश :

आप की परवरिश फिल्मी माहौल में हुई थी. अगर आप को ऐक्टर ही बनना था, तो फिर एमबीए की पढ़ाई कर दुबई में नौकरी करने के पीछे कोई खास सोच थी? यह सच है कि मैं ने पहले ऐक्टिंग को अपना कैरियर बनाने के बारे में नहीं सोचा था. इस के पीछे मूल वजह यह थी कि मेरे पिता मलयालम सिनेमा के महान अभिनेता हैं. मैं जानता था कि मेरे अभिनेता बनने पर लोग मेरी तुलना उन से करेंगे, जो मैं नहीं चाहता था.

 

 

View this post on Instagram

 

A post shared by dulkar_salman (@dulkar_salman.dq)

दूसरी बात यह कि उन दिनों मलयालम सिनेमा में दूसरी पीढ़ी का कोई भी कलाकार नहीं था, इसलिए मेरे मन में विचार आया था कि लोग मुझे अभिनेता के तौर पर स्वीकार नहीं करेंगे. इस के अलावा उन दिनों मेरे सभी सहपाठी और दोस्त बिजनैस फैमिली से थे. वे सभी एमबीए की पढ़ाई करने गए, तो मैं भी चला गया. फिर नौकरी भी की, मगर नौकरी करते समय मुझे अहसास हुआ कि इस में कुछ भी क्रिएटिविटी नहीं है, तो मैं अपने दोस्तों के साथ समय मिलने पर लघु फिल्में बनाने लगा. फिर एक दिन फैसला लिया कि अब मुझे ऐक्टिंग करनी है और उस के बाद नौकरी छोड़ कर मैं भारत वापस आ गया. आप गायक भी हैं. आप ने संगीत कहां से सीखा?

मैं खुद को बहुत बुरा गायक मानता हूं. शुरू में तो मुझे फिल्म प्रमोशन करने में भी बहुत डर लगता था. तभी एक मार्केटिंग हैड ने मुझ से सवाल किया कि क्या आप गा सकते हो? हमारी फिल्म में गाना गाओगे? तब मैं ने ‘आटोट्यून’ और कंप्यूटर की मदद से एक गाना गाया था. आप किस तरह के गाने सुनना पसंद करते हैं? मैं ज्यादातर फिल्म के गाने ही सुनता हूं. कभीकभी मूड होने पर कुछ दूसरी तरह का संगीत भी सुन लेता हूं. मैं तमिल और मलयालम के अलावा कभीकभी हिंदी और पंजाबी गाने भी सुनता हूं. अकसर देखा गया है कि हर नया कलाकार अपने कैरियर की शुरुआत रोमांटिक फिल्म से करता है, मगर आप ने तो अपनी पहली ही फिल्म ‘सैकंड शो’ में हरीलाल नामक गैंगस्टर का किरदार निभाया था. क्या अलग राह पर चलने के मकसद से आप ने ऐसा किया था?

 

 

View this post on Instagram

 

A post shared by dulkar_salman (@dulkar_salman.dq)

मेरी ऐसी कोई सोच नहीं थी. मुझे इस फिल्म की कहानी पसंद आई थी. दूसरी बात यह कि इस फिल्म में सभी नए कलाकार थे. यह बात मुझे ज्यादा अच्छी लगी थी, क्योंकि यह मेरे कैरियर की पहली फिल्म थी. मेरे दिमाग में आया कि जो भी गलती होगी, हम सभी एकसाथ करेंगे और एकसाथ ही सीखेंगे भी. अपनी पहली ही फिल्म में गैंगस्टर का किरदार करने की वजह यही थी कि मुझे हर वह किरदार करना है, जो मेरे अंदर के कलाकार को चुनौती दे. फिल्म ‘चुप : रिवैंज औफ द आर्टिस्ट’ की कहानी के केंद्र में एक कलाकार के कैरियर के उतारचढ़ाव और फिल्म समीक्षक की समीक्षा को रखा गया था. आप की फिल्में भी कामयाब व नाकाम हुई हैं. तब क्या आप को भी किसी समीक्षक की लिखी समीक्षा पढ़ कर गुस्सा आया था?

जी हां, ऐसा हुआ है. हम भी इनसान हैं. हमारी अपनी भावनाएं हैं. हम कई महीने तक काफी मेहनत कर के कोई फिल्म बनाते हैं और फिल्म समीक्षक महज डेढ़दो घंटे की फिल्म देख कर एक सैकंड में पूरी फिल्म को खारिज कर देता है. कुछ तो फिल्म देखते हुए लाइव रिव्यू डालते हैं. ऐसे में कई बार हमें भी गुस्सा आता है, दुख भी होता है, पर मैं अपने काम से आलोचकों को गलत साबित करना चाहता हूं. हम सभी जानते हैं कि मणिरत्नम की फिल्में पूरे देश और विदेशों में भी देखी जाती हैं. आप ने हिंदी, मलयालम, तमिल व तेलुगु भाषा की फिल्मों में काम कर लिया है, पर आज की तारीख में कुछ दक्षिणभाषी कलाकार खुद को ‘पैन इंडिया कलाकार’ होने का ढिंढोरा पीट रहे हैं. इस पर आप क्या कहेंगे?

सच तो यही है कि ‘पैन इंडिया सिनेमा’ या ‘पैन इंडिया कलाकार’ की बात मेरी समझ से भी परे है, क्योंकि पिछले कई सालों से हम सभी बड़े कलाकारों या स्टार कलाकारों की फिल्में पूरे देश में देखते आए हैं. अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान, रजनीकांत, कमल हासन व मेरे पिताजी समेत कई कलाकारों की फिल्में पूरी दुनिया में देखी जाती हैं, तो यह कोई नई बात नहीं है. मगर आजकल कुछ लोग इसे ‘ओवर यूज’ कर रहे हैं. मेरे पास कई फोन आते हैं कि सर, आपके लिए मेरे पास ‘पैन इंडिया’ वाली स्क्रिप्ट है, तो मैं उन से कहता हूं कि यह बात मुझे समझ में नहीं आती. मैं तो अच्छी स्क्रिप्ट और अच्छे किरदार वाली फिल्म करना चाहता हूं.

10 साल के कैरियर में आप के द्वारा निभाए गए किरदारों में से क्या किसी किरदार ने आप की जिंदगी पर कोई असर किया? जी हां. अकसर ऐसा हुआ है. जब भी हम कोई संजीदा किरदार निभाते हैं, तो मेरी और किरदार की सोच या जजमैंट अलग होता है. कई बार किरदार निभाते हुए हमें लगता है कि मैं ऐसा कभी नहीं करूंगा, पर यह किरदार तो करेगा, तो मुझे इस के मन और दिमाग से सोचना पड़ेगा. ऐसे किरदार को निभाते समय और सीन के कट के बाद भी कुछ समय तक उस का असर हमारी जिंदगी पर रहता है. जब हम अपनी निजी जिंदगी को भूल कर किरदार में बहुत ज्यादा घुस जाते हैं, तब भी किरदार का मूड हमारे साथ ही रह जाता है.

महाराष्ट्र: संजय राउत जेल से लौटे- अदालत का इंसाफ और नरेंद्र मोदी

अब तो देश के सामने सबकुछ खुला खेल फर्रुखाबादी की तरह साफसाफ है. महाराष्ट्र में शिव सेना नेता संजय राउत की गिरफ्तारी और तकरीबन 100 दिन की जेल और अदालत से रिहाई. सब से बड़ी बात अदालत की टिप्पणी से साफ है कि केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार और अमित शाह का गृह मंत्रालय किस तरह काम कर रहा है. अगर हम लोकतंत्र और लोकतांत्रिक संस्थाओं की बात करें, तो आज का समय एक काले अंधेरे की तरह है और देश की जनता अगर इस का अपने मतदान के माध्यम से रास्ता नहीं निकालेगी, तो आखिर में डंडा देश की आम जनता की पीठ पर ही पड़ने वाला है.

शिव सेना सांसद संजय राउत 100 दिन बिता कर एक विजेता की भूमिका में जेल से आ गए हैं. उन की वापसी पर शिव सेना समर्थकों ने जगहजगह ‘टाइगर इज बैक’, ‘शिव सेना का बाघ आया’ जैसे पोस्टर लगाए और यह संदेश दे दिया है कि चाहे कोई कितना जुल्म कर ले, शिव सेना और संजय राउत झुकने वाले नहीं हैं. दरअसल, शिव सेना नेता संजय राउत को प्रवर्तन निदेशालय ने पात्रा चाल घोटाले में मनी लौंड्रिंग से जुड़े मामले में इस साल जुलाई महीने में गिरफ्तार किया था. जेल से बाहर आने के बाद संजय राउत ने अपने घर के बाहर मीडिया से चर्चा की. उन्होंने कहा कि उन की सेहत ठीक नहीं है. अपनी कलाई की ओर इशारा करते हुए संजय राउत ने कहा, ‘‘3 महीने बाद यह घड़ी पहनी है. यह भी कलाई पर ठीक से नहीं आ रही है.’’

जेल में बिताए दिनों को इस से बेहतर दर्दभरे शब्दों में जाहिर नहीं किया जा सकता. इस से पहले संजय राउत ने बाला साहब ठाकरे की समाधि शिवाजी पार्क पहुंच कर उन्हें नमन किया और यह संदेश दे दिया कि आने वाले समय में उन की दिशा क्या होगी. दूसरी तरफ उन्होंने शिव सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से भी मुलाकात की. इस मौके पर उद्धव ठाकरे ने साफसाफ कहा कि केंद्र की जांच एजेंसियां किसी पालतू की तरह काम कर रही हैं. संजय राउत नजीर बन गए नरेंद्र मोदी और अमित शाह की खुल कर आलोचना करने वाले संजय राउत ने जेल से बाहर आते ही अपने तेवर दिखा दिए और कहा, ‘वे नहीं जानते हैं कि उन्होंने कितनी बड़ी गलती मुझे गिरफ्तार कर के की है. यह उन के राजनीतिक जीवन की सब से बड़ी गलती साबित होगी.’

दरअसल, आज देश के हर नागरिक के लिए सोचने वाली बात है कि क्या हम तानाशाही की ओर बढ़ रहे हैं? अगर हम महाराष्ट्र की राजनीति पर नजर डालें तो यह साफ है कि जो भी घट रहा है, मानो उस की पटकथा पहले ही लिखी जा चुकी है. उद्धव ठाकरे का शरद पवार और कांग्रेस के साथ हाथ मिला कर सत्तासीन होना केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को रास नहीं आया और एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में विधायकों को तोड़ दिया गया. यह सच सारे देश ने देखा है और यह लोकतंत्र की हत्या से कम नहीं कहा जा सकता.

मगर एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद महाराष्ट्र की सत्ता और शिव सेना का नाम और निशान खोने वाले उद्धव ठाकरे के लिए यह राहत का सबब है. पहले अंधेरी पूर्व उपचुनाव में जीत और अब संजय राउत की रिहाई ने उन्हें बड़ी राहत दी है. दशहरे की रैली में बड़ी तादाद में लोगों को जुटाने के बाद से ही उद्धव ठाकरे गुट आक्रामक अंदाज में नजर आ रहा है. शायद आज की नरेंद्र मोदी सरकार की विचारधारा यह मानती है कि जो विरोधी हैं, उन्हें खत्म कर दिया जाए. चाहे बिहार हो या फिर उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र हो या फिर मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड हर प्रदेश में भाजपा आक्रामक है और उस के नेता चाहते हैं कि विरोधी खत्म हो जाएं, मगर वे भूल जाते हैं कि लोकतंत्र की खूबसूरती विपक्ष से ही होती है.

सब से बड़ी बात यह कि भाजपा भी कभी विपक्ष में थी. अगर जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी या कांग्रेस के दूसरे बड़े नेता चाहते तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी कहां होती, यह शायद अंदाजा लगाया जा सकता है. अब चूंकि संजय राउत जेल से निकल आए हैं, लिहाजा वे चुप तो बैठेंगे नहीं. उन का हर वार नरेंद्र मोदी की केंद्र सरकार पर ज्यादा होगा, ताकि भविष्य की राजनीति में खलबली मची रहे.

Bigg Boss fame: शेफाली जारिवाला ने पति संग मनाया 40वां जन्मदिन

कांटा लगा’ के जरिए जबरदस्त पहचान बनाने वाली एक्ट्रेस और बिग बॉस 13 की कंटेस्टेंट रह चुकीं शेफाली जरीवाला ने बीते दिन अपना 40वां जन्मदिन मनाया. उनके बर्थडे सेलिब्रेशन की तस्वीरें सोशल मीडिया पर भी जमकर वायरल हो रही हैं.

 उनके जन्मदिन के इस खास मौके पर फैंस से लेकर सितारों तक ने उन्हें ढेर सारी बधाइयां दीं. अपने बर्थडे पर बिग बॉस कंटेस्टेंट्स काफी एक्साइटेड नजर आईं.  शेफाली जरीवाला ने अपना 40वां जन्मदिन पति पराग त्यागी और परिवार के साथ सेलिब्रेट किया. एक्ट्रेस के बर्थडे सेलिब्रेशन की फोटोज सोशल मीडिया पर भी जमकर वायरल हो रही है.

परिवार संग नजर आईं शेफाली जरीवाला

शेफाली जरीवाला ने अपना बर्थडे परिवार और खास दोस्तों की मौजूदगी में मनाया। फोटो में एक्ट्रेस परिवार के साथ केक कट करती दिखाई दीं. शेफाली जरीवाला और पराग त्यागी ने बर्थडे सेलिब्रेशन के बीच जमकर रोमांस का तड़का भी लगाया.  केक कटिंग के दौरान पराग त्यागी अपनी पत्नी को किस करते दिखाई दिए. ‘कांटा लगा’ गर्ल शेफाली जरीवाला देर रात पति पराग त्यागी के साथ पार्टी करने के लिए घर से निकलीं. इस दौरान शेफाली को पैपराजी ने स्पॉट किया. शेफाली की इस दौरान की काफी सारी प्यारी तस्वीरें सामने आई हैं

शेफाली के चेहरे पर नजर आई एक्साइटमेंट

शेफाली जरीवाला अपने बर्थडे के मौके पर काफी एक्साइटेड नजर आईं। खास बात तो यह है कि केक कटिंग के दौरान शेफाली ने अपने भतीजे को भी गोद में लिया हुआ था. शेफाली जरीवाला ने बर्थडे पार्टी में पिंक आउटफिट और ब्लैक बूट में एंट्री की.  फोटोज में शेफाली जरीवाला का स्टाइलिश लुक देखने लायक रहा.  एक्ट्रेस का एक बार फिर से नया लुक सामने आया है जो कि काफी तेजी से वायरल हो रहा है. हाल ही में शेफाली जरीवाला देर रात पार्टी में शिरकत करने के लिए पहुंचीं. यहां से शेफाली की तस्वीरें सोशल मीडिया पर सामने आई हैं जिनकी फैंस चर्चा करते नहीं थक रहे हैं.

 

शेफाली जरीवाला भले ही इंडस्ट्री में ज्यादा एक्टिव ना हो लेकिन वह सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती हैं. उनका इंस्टाग्राम उनकी खूबसूरत और बोल्ड फोटो से भरा हुआ हैं. शेफाली अक्सर इंस्टाग्राम पर अपना स्टाइलिश और ग्लैमरस लुक शेयर कर इंटरनेट पर सनसनी मचा देती हैं.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें