छत्तीसगढ़ : दंतैल हाथी गणेशा जंजीर तोड़ भागा !

रेसक्यू करने वाली टीम ने गणेशा को रायगढ़ वन प्रांतर से बड़ी जद्दोजहद के पश्चात बेहोश करके काबू में किया था और रायगढ़ के बहेरामार से लाकर उसे कुदमुरा वन परिक्षेत्र जिला कोरबा में रखा गया था . इसी बीच 24 -25 जुलाई की रात्रि 12:00 बजे जैसे ही उसका नशा कमतर हुआ गणेशा भयंकर हो उठा और हाथ पैर पटकने लगा उसकी ताकत का अंदाजा वन विभाग अमला लगा नहीं पाया था यही कारण है कि यह खतरनाक दंतैल हाथी जिसने 9 लोगों की कुचलकर हत्या कर दी है ने बड़े बड़े सांकल जंजीरों को देखते ही देखते तोड़कर फेंक दिया और वन विभाग के अमले की घिग्घी बंध गई. वह अपनी जान बचाकर इघर उधर भागे, ऐसी हालत में आप समझ सकते हैं कि वन विभाग की क्या दुर्गति हुई होगी.
और इस खतरनाक गणेशा हाथी के वन विभाग कैद से भाग खड़े होने से समीपस्थ गांव में पुन: हंगामाखेज स्थिति पैदा हो गई है लोग भयभीत हैं.

भयंकर शक्तिशाली ज़िद्दी और गुस्सैल है गणेशा !

छत्तीसगढ़ के रायगढ़,अंबिकापुर और कोरबा जिला के जंगलों में स्वच्छंद विचरण करने वाला यह गणेशा हाथी जंगल में अकेला ही स्वच्छंद घूमता रहता है. आमतौर पर हाथी समूह में रहते हैं मगर गणेशा अकेला ही कहीं भी निकल पड़ता है और अगर कोई उसके आसपास भी फटक गया तो उसे दौड़ा कर मारता है वन अधिकारी एम. वेंकटरमन (आई एफ एस ) बताते हैं गणेशा ने अभी तक आधा दर्जन से ज्यादा करीब 9 लोगो को कुचल कुचल कर हत्या की है. यह सभी आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखते थे और जंगल के बीच गांव में रहते थे.
रायगढ़, कोरबा जिले के निवासी थे और सरकार ने उन्हें चार-चार लाख रूपय मुआवजा दिया है .

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आईएफएस प्रणव मिश्रा के अनुसार गणेशा युवा है और बिगड़ेल भी. यह छुप कर खड़ा हो जाता है और राहगीरों पर अचानक हमला करके उन्हें खेत कर देता है . यही कारण है कि छत्तीसगढ़ सरकार ने गणेशा को पकड़ कर उसके रेस्क्यू को मंजूरी दी तांकि तीन जिलों के रहवासियों को राहत मिल सके. मगर बीती रात्रि गणेशा के जिद्दी तेवर, उसकी असीम ताकत के सामने छत्तीसगढ़ का वन अमला बौना दिखाई पड़ा.

कुमकी हाथियों के सहयोग से….

लगभग दो दिनों तक वन विभाग का अमला गणेशा को अपनी गिरफ्त में लेने के लिए जूझता रहा .कोरबा से रायगढ़ पहुंचे गणेशा को बहेरामार के जंगल में देखा गया तब टरेकयूलाइन करने की प्रक्रिया शुरू हो सकी गणेशा को काबू करने के लिए तीन कुमकी हाथी जो प्रशिक्षित हैं का सहयोग लिया गया. आगे वन विभाग के परांगत अमले ने उसे नशे का इंजेक्शन दिया तब गणेशा ठंडा पड़ने लगा तो 2 जेसीबी की मदद से उसे ट्रक पर चढ़ाया गया और रायगढ़ से कोरबा जिला के कुदमूरा में चारों पैरों में बड़े-बड़े साकंर लगाकर बांध,काबू में करके सरगुजा के अभ्यारण भेजने की प्रक्रिया प्रारंभ की गई . प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार ट्रक मे ही जैसे ही गणेश को कुछ होश आना शुरू हुआ उसने वही तोड़फोड़ और चिघांड शुरू कर दी . वन अमले ने उसे कुदमुरा के रेस्ट हाउस में लाकर रखा जहां रात्रि को वह बड़ी-बड़ी जंजीर तोड़कर भाग निकला.

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अभी गणेशा हाथी औपरेशन गणेशा को विफल कर के कोरबा जिला से पुणे जाएगा जिला की और आगे बढ़ रहा है इधर वन अधिकारियों ने पुनः औपरेशन गणेशा की तैयारी शुरू कर दी है. देखना होगा आगे चलकर क्या गणेशा को वन विभाग अभ्यारण कब भेज पाता है मगर तब तक कोरबा रायगढ़ जिला के लोगों में हाथी को लेकर दहशत कायम रहेगी

“हुक्का बार” :संसद से सड़क तक चर्चे

जी हां! यह काम कर रही है फिल्में, मनोरंजन और समाज को शिक्षा देने के नाम पर सिनेमा यही कर रहा है .जिसका बड़ा उदाहरण है अक्षय कुमार की फिल्म, खिलाड़ी 786 जिसमें अक्षय कुमार नाच नाच कर हुक्का बार की बड़ाई कर रहे हैं.

हमारे नगर और गांव कस्बे तक अब नशे के सारे सामान मौजूद हैं .सरकार चाहे जो भी कहे, जैसा भी करें, जैसी भी तलवारें  भांजती रहे. मगर धीरे धीरे युवा वर्ग के खून में नशे की लत लगाना जारी है .इस पर हमारी सरकार ने नियम कानून कायदे तो बहुत सारे बना दिए हैं. मगर होता जाता कुछ नहीं,निर्विघ्न गति से नशे का यह कारोबार नेताओं और अफसरों के संरक्षण में जारी है. आजकल हुक्का बार का नया शगल शुरू हुआ है. देश का ऐसा कोई शहर नहीं होगा जहां हुक्का बार ना हो ऐसे में युवा पीढ़ी किस दिशा में जा रही है इसका सहज ही अनुमान लगा सकते हैं. इस संदर्भ में महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि बीच बीच में पुलिस एक्शन जारी रहता है ,मगर फिर भी एक जगह से हुक्का बार जब बंद हो जाता है तो दूसरी जगह प्रारंभ हो जाता है. आप आश्चर्य कर सकते हैं कि हुक्का बार के इस नशे में उच्च एवं निम्न दोनों ही वर्ग के लोग संलिप्त हैं. दरकार है दृढ़ इच्छाशक्ति और संस्कार की जो युवाओं को न समाज से मिल रहा है न परिवार में. आज हम यहां प्रस्तुत कर रहे हैं हमारे देश में एक नवीन तरह का मस्ती भरा हुक्का बार नशे का कारोबार. जो है युवा पीढ़ी के लिए जहर  सामान.

विधानसभा में गूंजा हुक्का बार का मामला

आप देखिए! हुक्का बार किस तरह  युवा पीढ़ी को बर्बाद कर रहा है. और शासन-प्रशासन हक्का-बक्का उसे देख रहा है. शायद यही कारण है की छत्तीसगढ़ की विधानसभा में बीते दिनों यह मामला जोर-शोर से उठा. इससे पता चलता है कि हुक्का बार किस तरह लोगों का जीवन बर्बाद कर रहा है. छत्तीसगढ़ के शिक्षाविद  प्रथम बार विधायक बने शैलेष पांडेय ने हुक्का बार में युवकों के नशाखोरी के मुद्दे पर सरकार का ध्यान आकर्षित किया.

मजे की बात यह है कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है और कांग्रेस के विधायक  हुक्का बार का मामला उठाते हैं. आप समझ सकते हैं कि विधायक के क्षेत्र में हुक्का बार चल रहा है और वे अहसाय देख रहे हैं न उन की कलेक्टर सुनता, न पुलिस कप्तान. ऐसे में उन्होंने मामला विधानसभा में उठाया. जिसके बाद  बिलासपुर पुलिस हरकत में आई, और तारबाहर पुलिस ने टेलीफोन एक्सचेंज रोड स्थित कोयला हुक्का बार में छापा मारा, और डेढ़ दर्जन युवक व आधा दर्जन युवतियों को हिरासत में लिया, और पुलिस  बार संचालक के खिलाफ मामला दर्ज कर कार्रवाई कर रही है.

कोयला  हुक्का बार में पुलिस ने जब दबिश दी, तो यहां हुक्के की कश लगा रहा एक युवक सामने आया और युवती का बर्थडे पार्टी मनाने की जानकारी देने लगा. पुलिस ने युवकों के नाम और पते दर्ज किए. बार में मौजूद आधा दर्जन युवतियों से पुलिस ने नाम पूछा तो युवतियों ने महिला पुलिस अधिकारी द्वारा युवतियों से पूछताछ करने की बात कहते हुए नाम बताने से इनकार कर दिया. जिसके बाद महिला पुलिसकर्मी ने युवतियों का नाम और पता दर्ज किया.पुलिस बार संचालक रविन्द्र देवांगन के खिलाफ पुलिस ने कोकपा एक्ट के तहत अपराध दर्ज किया.

शहर शहर पहुंचा हुक्का बार

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर,बिलासपुर  सहित  कई शहरों  के पाश इलाके में लंबे समय से से अवैध हुक्का बार का संचालन किया जा रहा है . कोरबा के सिटी सेंटर में विगत दिनों अवैध हुक्का बार पकड़ाया.इसी तरह उरगा क्षेत्र के एक होटल में एक भाजपा नेता के पुत्र  को  पकड़ा गया. हालात इतने बदतर है कि पुलिस ने जब चाय की दुकान में चल रहे कथित अवैध हुक्काबार में छापामार कार्रवाई की तो उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई. यहां नशा करने वालों में नाबालिग तक शामिल मिले .

दरअसल, चाय दुकान केवल नाम मात्र की ही चाय दुकान थी जबकि इसकी आड़ में वहां  अवैध हुक्का बार खोल रखा था. जहां अमीर घरानों की बिगड़ैल औलाद अपनी नशे की लत को पूरा किया करते थे. नशा करने वालों में युवा और नाबालिगों के अलावा लड़किया भी शामिल है. एके-47, पिस्टल जैसे कई आकर्षक लाइटर हथियारों की शक्ल में इन अवैध् हुक्का बारों में युवाओ को आकर्षित कर रहे है. पुलिस ने मौके से पकडे गए किशोरों को उनके अभिभावकों की उपस्थिति में समझाईश देकर छोड़ दिया है. दरअसल आवश्यकता है छत्तीसगढ़ में भी हुक्का बार पर सरकार प्रतिबंध लगा दे.

नाबालिगों पर भी हुक्का बार का नशा तारी

हुक्का बार का गुलाबी धुआं हमारी युवा पीढ़ी को बुरी तरह बर्बाद कर रहा है आखिर यह हुक्का बार आया कहां से याद करें एक फिल्म आई थी खिलाड़ी 786 इसमें अक्षय कुमार पर एक गाना फिल्माया गया है, “-तेरी अखियों का वार,  जैसे शेर का शिकार, तेरा प्यार, तेरा प्यार हुक्का मार! ”

इस तरह के गाने हमारी युवा पीढ़ी को बर्बाद कर रहे हैं मगर सेंसर बोर्ड और सरकार कुंभकरणी निद्रा में है ऐसे ही कुछ गाने हैं फिल्में है जिन्होंने युवा पीढ़ी को हुक्का बार की तरफ आकर्षित किया है. हुक्का बार में तंबाकू के कई  फ्लेवर होते हैं ई हुक्का, ई सिगरेट होता है. शहर के पॉश इलाके मॉल पब होटल यहां तक कि छुपकर कर आवासीय परिसरों में भी हुक्का बार चल रहे हैं. हुक्के की ऐसी दीवानगी शुरू हो गई है कि फ्लेवर्ड हुक्का भी परोसा जा रहा है पुलिस  छापा मारती है तो छात्र-छात्राएं, नाबालिक के साथ युवक युवतियां भी पकड़े जा रहे हैं. एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि छत्तीसगढ़ में हुक्का बार को लेकर के कोई कानून नहीं है परिणाम स्वरूप युवक-युवतियों को समझाइश देकर छोड़ना हमारी मजबूरी है इसलिए छत्तीसगढ़ सरकार को चाहिए कि जिस तरह पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र में हुक्का बार पूरी तरीके से अवैध करार दिए गए हैं. छत्तीसगढ़ में भी नया कानून लाकर इसे प्रतिबंधित कर दिया जाना चाहिए.

संस्कार, इच्छाशक्ति और हुक्का बार!

दरअसल आज जो नशे का चलन बढ़ा है उसके पीछे दृढ़ इच्छाशक्ति की कमी, संस्कार की कमी है परिवार में बच्चों को जब अच्छे संस्कार नहीं मिलते तो वह नशे के जाल में फंसकर भटकते चले जाते हैं. पुलिस अधिकारी इंद्र भूषण सिंह बताते हैं हुक्का बार दरअसल सिनेमाई दुनिया की हमारे समाज को दी गई गंदगी है एक तरह से अय्याशी और वेश्यावृत्ति के अड्डे बन चुके हैं.

सरकार एक तरफ नियम कानून कार्य बना करके अपना पिंड छुड़ा रही है दूसरी तरफ चाहती है कि हमारे पास करोड़ों करोड़ों रुपए देश की जनता से आता जाए इसके लिए शराब और नशे के सारे सामान को समाज को बेचने का ठेका दे रही है सवाल है जब सरकार के निर्माण के पीछे मंशा यह है कि समाज को दिशा देने का काम किया जाएगा तब लगातार युवा पीढ़ी नशे में उसकी गिरफ्त में कैसे आते जा रही है आज का दोषी कौन है?

प्रकृति के बीच अप्राकृतिक यौन संबंध

अप्राकृतिक यौन संबंध चिंरतन काल से होते रहे है. यही कारण है कि विधि में इसके सहमति और असहमति को देखते हुए सुस्पष्ट प्रावधान किया हुआ है. अप्राकृतिक योन अर्थात एक ऐसा मनोविज्ञान जो अपने साथी की और एक अलग नजरिए से आकर्षित करता है. इसे लेकर योन- शास्त्रों में भी चर्चा की गई है. लेकिन सार भूत तथ्य यही है कि यह एक बीमारी की जड़ है और इससे बचना चाहिए, मगर इसके बावजूद आम जनमानस में अप्राकृतिक योन के किस्से उजागर होते रहते हैं.कभी किसी शख्स पर या धारा 377 लगाकर हवालात में बंद कर दिया जाता है. हद तो तब हो जाती है जब कभी कोई पत्नी ही पुलिस थाना पहुंच मामले की रिपोर्ट लिखाती है. आखिर यह अप्राकृतिक यौन संबंध का सच क्या है, यह हमें समझना चाहिए.

पति पत्नी और अप्राकृतिक संबंध!

पति-पत्नी के बीच विवाद होना आम बात है. लेकिन छत्तीसगढ़ बालों जिला के डौंडी थाने में एक ऐसा मामला हाल ही में सामने आया है, जिसे सुनकर आप चौक जाएंगे. यहाँ महिला ने अपने पति पर अप्राकृतिक सेक्स करने का आरोप लगाया है. पति के इस उत्पीडन से तंग आकर पत्नी ने थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई है. जिसके बाद पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया . पुलिस के अनुसार युवती की शादी एक साल पूर्व डौंडी थाना क्षेत्र के युवक डुमेश्वर गावडे पिता वीर सिंह गावडे से हुई थी. महिला का कहना है कि शादी के कुछ दिनों तक तो सब ठीक था. उसके बाद पति ने उसके साथ अप्राकृतिक संबंध बनाने पर दबाव डालने लगा. मना करने पर उसके साथ मारपीट की गई. काफी दिनों से वह इस यौन उत्पीड़न से गुजर रही थी.लाख समझाने की कोशिश की, लेकिन नहीं माने और मारपीट कर जबरन अप्राकृतिक सेक्स करता रहा. एक दिन उसने हद ही कर दी. पति की ज्यादती बर्दाश्त से बाहर हो गई तो 18 जुलाई की शाम महिला डौंडी कोतवाली पहुंची और अपने पति के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई.पीड़िता ने महिला पुलिस को सारी बातें बताई और कठोर कार्रवाई की मांग की. महिला की शिकायत पर पुलिस ने पति के खिलाफ आइपीसी की धारा 376, 377, 323, 506 के तहत मुकदमा दर्ज किया है. पुलिस ने आरोपी पति को गांव से गिरफ्तार कर लिया.
ऐसे जाने कितने सच्चे झूठे किस्से हमारे बीच मीडिया के माध्यम से आते जाते रहते हैं. विधि औचित्य की परिप्रेक्ष्य में ऐसे मामलों को देखना समझना होगा.

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अप्राकृतिक योनाचारी हमारे बीच भी हैं!

हमारे शहर में लगभग 40 वर्ष पूर्व एक सुमित्रर सिंह नामक शख्स हुआ करता था.वह पैसे देकर युवकों से अप्राकृतिक संबंध बनाया करता था. शहर में यह चर्चा रहती थी कि देखो! सुमित्रर सिंह आ रहा है…. हंसी मजाक में लोग एक दूसरे को छेड़ा करते थे और बताया करते थे कि यह शख्स अप्राकृतिक यौन संबंध बनाया करता है. इससे बचकर रहना. ऐसे ही सख्त सुमित्रर सिंह अरे शहर कस्बों में रहते हैं, यह एक अलग मनोविज्ञान है एक अलग मानसिक बनावट अथवा इसे बीमारी कहा जा सकता है. मगर ऐसे लोग हमारे बीच होते हैं यह एक बड़ी सच्चाई है यही शख्स जब एक से दो हो जाते हैं तो एक दूसरे का साथ देते हुए जीवन काटने का अवलंबन स्वीकार कर वैवाहिक बंधनों में भी बंध जाते हैं. जिन्हें आजकल समलैंगिक संबंध कहा जाने लगा है .अब देश की उच्चतम न्यायालय और हमारी सरकार ने भी इसे जायज ठहरा दिया है. जब यह संबंध सहमति से बनते हैं तो कानून अपने हाथ खड़े कर लेता है.
छत्तीसगढ़ के बार काउंसिल के अनुशासन समिति के अध्यक्ष बीके शुक्ला बताते हैं ऐसे मामलों में प्रतिरोध होने पर विधि-विधान में इसके लिए दंड की सजा निर्धारित है.

धारा का होता है दुरुपयोग भी!

इस लेखक के एक परिचित मित्र की धर्मपत्नी में तलाक लेने के लिए पति पर ऐसा दबाव बनाया कि आप भी असमंजस में रह सकते हैं…. जी हां! पत्नी ने बकायदा थाना,कोर्ट में यह कहा कि मेरे साथ अप्राकृतिक यौन संबंध मेरा पति बनाता है। महिला पति से बेजार थी व छुटकारा पाना चाहती थी. इसके लिए उसने अप्राकृतिक संबंधों की धारा 377 का दुरुपयोग करने का पूरा प्रयास किया. मगर सुखद तथ्य यह की पीड़ित पति पुलिस प्रशासन और न्यायालय दोनों ही जगह से एक तरह से बाल-बाल बच गया. यह एक ऐसी धारा है जिस का दुरुपयोग भी होता है और यह एक सच्चाई भी है अब यह पुलिस एवं न्यायालय पर निर्भर है क्या फैसला होगा. अगर आप बेगुनाह है तब भी यह धारा आप का मान मर्दन तो कर ही देती है. शातिर वकील, पुलिस एवं लोग इसका भरपूर दुरूपयोग करते रहते हैं. अपने विरोधियों को निपटाने के लिए धारा 377 इस्तेमाल करते हैं ,चाहे भले वह मामला कोर्ट में वर्षों घिसटने के बाद हो जाए. अधिवक्ता उत्पल अग्रवाल बताते हैं धारा 377 का इस्तेमाल अक्सर विरोधियों को निपटाने के लिए किया जाता है. ऐसा ही एक मामला हमारे कोर्ट में भी आया था जिसमें एक श्रमिक नेता ने कोल इंडिया के एक अधिकारी को फंसाने के लिए 377 धारा का मामला दर्ज कराया था. जिसकी शहर में बड़ी चर्चा थी. पुलिस प्रशासन भी जानता था की पेंच कहां है,मगर मामला पंजीबद्ध हुआ और न्यायालय में प्रस्तुत किया गया. दरअसल यह धारा ब्रिटिश शासन काल से1861 से विद्यमान रही है. इसका स्वरूप बदलता रहा है. कभी यह पूर्णता दंडनीय स्वरूप में रही है मगर 2018 के बाद सरकार ने इसे दो वयस्कों के बीच सहमति पर विधिवत मुहर लगा दी है कि यह अपराध नहीं है. इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर आज भी तलवारें खिंची हुई है और लोग पक्ष विपक्ष में अपनी-अपनी दलीलें प्रस्तुत कर रहे हैं. आप भी सोचिए और देखिए आप किस तरफ है.

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Edited By- Neelesh Singh Sisodia 

चालक भी आधी आबादी और सवारी भी

लेखक- शंकर जालान

देश के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति के अलावा प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री व राज्यमंत्रियों के अलावा औरतें जज की, पायलट की, डाक्टर की, बस चालक की सीट पर तो पहले से ही बैठ चुकी हैं, अब देश की सांस्कृतिक राजधानी कहे जाने वाले शहर कोलकाता में औरतें आटोरिकशा व टैक्सी की चालक सीट पर बैठी नजर आ रही हैं.

हालांकि फिलहाल महानगर के एक ही रूट पर ऐसे आटोरिकशा को शुरू किया गया है, लेकिन टैक्सियां कई जगहों पर चल रही हैं. इन की चालक सीट पर औरतें रहेंगी और उन में सफर करने वाली सवारियां भी औरतें ही रहेंगी.

पिंक यानी गुलाबी आटोरिकशा चलाने वाली औरतों को ट्रेनिंग देने वाले और आटोरिकशा यूनियन के नेता गोपाल सूतर ने बताया कि उन्हें इस बात की खुशी है कि उन की इस पहल पर अब राज्य सरकार का ध्यान गया है.

वे कहते हैं कि आज की औरतें किसी भी रूप में मर्दों से कम नहीं हैं. इस बात को इन औरतों ने अपनी मेहनत और लगन से साबित किया है.

ट्रेनिंग पूरी होने के बाद ये औरतें अलगअलग रूटों पर आटोरिकशा चलाती नजर आएंगी, जिन में सिर्फ औरतें ही सफर करेंगी. इस सेवा को ‘पिंक सेवा’ नाम दिया गया है.

मौसमी कोलकाता की ऐसी पहली आटोरिकशा चालक बन गई हैं. भले ही उन्हें इस के लिए कई सालों तक कड़ी मेहनत करनी पड़ी हो, पर उन की मेहनत रंग लाई और आखिरकार बीते दिनों मौसमी का सपना पूरा हुआ.

मौसमी ने बताया कि उन्हें खुद पर इतना भरोसा था कि भले ही किसी काम को पूरा करने में देरी होगी, लेकिन वे लक्ष्य तक जरूर पहुंचेंगी.

मौसमी के साथसाथ दूसरी एक दर्जन औरतों को भी आटोरिकशा चलाने के लिए लाइसैंस मिल गया है, जिस के बाद वे कोलकाता की सड़कों पर आटोरिकशा चला सकेंगी.

मौसमी ने बताया कि जब वे 9 साल की थीं, तभी उन के पिता घर छोड़ कर चले गए थे. घर में मां के साथ 2 छोटी बहनों का क्या होगा, इस बात की चिंता उन्हें रहरह कर सताती थी. जिस उम्र में हाथ में किताबें और खिलौने होने चाहिए थे, उस उम्र में उन के हाथ में हथौड़ी, चाबी जैसे उपकरण थमा दिए गए.

घर का खर्चा सिर्फ गैराज में काम कर के नहीं चलता था, इसलिए गैराज में काम करने के बाद वे मौल के बाहर भीख मांगने को मजबूर थीं, ताकि अपनी मां के साथसाथ 2 छोटी बहनों का भी पेट पाल सकें.

मौसमी के मुताबिक, आटोगैराज में काम करतेकरते उन में औटोरिकशा चलाने की चाह जागी और उन्होंने उसी को अपना कैरियर बनाने की ठान ली.

अपनी लगन से मौसमी ने जो चाहा, वह कर के दिखाया. गैराज में काम करतेकरते वे आटोरिकशा के करीब होती गईं. सारा काम खत्म करने के बाद वे 2 घंटे निकालती थीं और आटोरिकशा चलाना सीखती थीं.

मौसमी कहती हैं, ‘‘कोई भी काम तब तक नहीं होता, जब तक आप में हिम्मत न हो. मेरी ललक और मेहनत को देख कर मेरे पति ने मेरा साथ दिया और हिम्मत बढ़ाई. अब लाइसैंस मिलने के बाद वे मुझ पर गर्व करते हैं.’’

गोपाल सूतर ने बताया कि पत्नी की मौत के बाद 2 बेटियों की जिम्मेदारी ने उन्हें सिखाया कि हर औरत को अपने पैरों पर खड़ा होना चाहिए. इस के बाद उन्होंने औरतों को आटोरिकशा चलाने की ट्रेनिंग देना शुरू किया.

पश्चिम बंगाल सरकार में परिवहन मंत्री शुभेंदु अधिकारी ने कहा, ‘‘हम ‘गतिधारा’ योजना के तहत इस पहल को बढ़ावा देंगे. हम ने कुछ औरतों को रूट परमिट जारी कर दिए हैं. हमारे लिए यह अच्छी बात है कि अब हमारे शहर में भी औरतें आटोरिकशा ड्राइवर होंगी.’’

दक्षिण कोलकाता के टौलीगंज की चंद्रा रोजाना तड़के सुबह उठती हैं. लोगों के घरों तक अखबार पहुंचाती हैं. इस के बाद वे 2-4 ट्यूशन भी पढ़ाती हैं. बीच के समय में वे आटोरिकशा भी चलाती हैं. साल 2016 में उन्होंने आटोरिकशा चलाना सीखा था. जोगेश चंद्र चौधरी कालेज से उन्होंने बंगला औनर्स में पढ़ाई शुरू की थी. हालांकि दूसरा साल पूरा करने बाद पढ़ाई छोड़ दी थी. चंद्रा की तरह ही महानगर के विभिन्न रूटों पर मौसमी, मुमताज बेगम, सावनी सूतारा, कृष्णा समेत तकरीबन 60 औरतें और बालिग लड़कियों ने आटोरिकशा की कमान अपने हाथों में ले ली है.        द्य

शर्मनाक दलितों को सताने का जारी है सिलसिला

लेखक- शंभू शरण सत्यार्थी

जितेंद्र ऊंची जाति वालों के सामने कुरसी पर बैठ कर खाना खा रहा था. यह बात उन लोगों को पसंद नहीं आई और उस की कुरसी पर लात मार दी. इस दौरान जितेंद्र की थाली का भोजन उन लोगों के कपड़ों पर जा गिरा. इस बात पर उस की जम कर पिटाई कर दी गई जिस से उस की मौत हो गई.

मध्य प्रदेश के भिंड जिले के एंडोरी थाने के लोहरी गांव के 60 साला दलित कप्तान की मौत के बाद उस के परिवार वाले जब श्मशान घाट ले गए तो गांव के दबंगों ने उन्हें वहां से भगा दिया. मजबूर हो कर इन लोगों ने अपने घर के सामने कप्तान का दाह संस्कार किया.

उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के कोतवाली इलाके में एक शादी समारोह में फिल्टर जार वाला पानी मंगवाया गया. जब पानी का जार देने वाला आदमी वहां पहुंचा तो मालूम हुआ कि वह तो दलित है. इस से अगड़ों में पानी के अछूत होने का भयानक डर पैदा हो गया और उस जार वाले को काफी फजीहत झेलनी पड़ी.

इसी तरह जालौन जिले के तहत गिरथान गांव में चंदा इकट्ठा कर के भंडारे का आयोजन किया गया था, जिस में सभी जाति के लोगों ने सहयोग दिया था. भोज चल रहा था कि कुछ दलित नौजवान पूरी और खाने की दूसरी चीजें बांटने लगे. ऊंची जाति वालों ने इस का विरोध किया और खाना खाने से इनकार करते हुए दलितों को अलग बिठाने की मांग करने लगे.

दलितों ने इस का विरोध किया तो उन में झगड़ा हो गया. बाद में दबंगों ने फरमान जारी कर दिया कि दलितों का बहिष्कार किया जाए. इस फरमान को तोड़ने वाले पर 1,000 रुपए जुर्माने के साथ ही सरेआम 5 जूते भी मारे जाएंगे.

ये चंद उदाहरण हैं. देशभर में दलितों के साथ आज भी तरहतरह की सताने वाली घटनाएं घटती रहती हैं. देश के नेता जब बुलंद आवाज में दलितों की बात करते हैं तो लगता है कि समाज में बदलाव की बयार चल रही?है.

तसवीर कुछ इस अंदाज में पेश की जाती?है कि लगता है कि देश में जातिगत बराबरी आ रही है, पर सच तो यह है कि जातिवाद और छुआछूत ने 21वीं सदी में भी अपने पैर पसार रखे?हैं.

मध्य प्रदेश के मालवा जिले के माना गांव के चंदेर की बेटी की शादी थी. चंदेर ने बैंड पार्टी बुलवा ली थी. यह बात ऊंची जाति के लोगों को नागवार गुजरी. उन्होंने सामाजिक बहिष्कार करने की धमकी दी, फिर भी उन लोगों ने बैंडबाजा बजवाया और खुशियां मनाईं.

इस बात से नाराज हो कर ऊंची जाति के लोगों ने दलितों के कुएं में मिट्टी का तेल डाल दिया.

दलितों की जरूरत

ऊंची जाति के लोगों को बेगारी करने के लिए, बोझा ढोने के लिए, घर की साफसफाई करने के लिए, घर बनाने के लिए इन्हीं दलितों की जरूरत पड़ती है. लेकिन जब काम निकल जाता है तो वे लोग उन्हें भूल जाते हैं. वे कभी नहीं चाहते हैं कि दलितों की जिंदगी में भी सुधार हो.

उन्हें यह डर सताता रहता है कि अगर दलित उन की बराबरी में खड़े हो गए तो फिर जीहुजूरी और चाकरी कौन करेगा? लेकिन जब काम निकल जाता है तो ऊंची जाति वाले दलितों को दूध में गिरी मक्खी की तरह निकाल कर फेंक देते हैं.

शोषण और गैरबराबरी की वजह से बहुत से दलित ईसाई और बौद्ध धर्म अपना चुके हैं. दलितों का दूसरा धर्म स्वीकार करना भी इन ऊंची जाति वालों को काफी खलता है.

इज्जत से जीने का हक नहीं

हमारे देश में एक तरफ तो दलितों में चेतना बढ़ी है तो वहीं दूसरी तरफ दलितों पर जोरजुल्म की वारदातें भी लगातार जारी हैं. दलित भी पोंगापंथ से बाहर

नहीं निकल पा रहे हैं. इस देश में आज भी 37 फीसदी दलित गरीबी रेखा से नीचे रह रहे हैं. 57 फीसदी दलित कुपोषण के शिकार हैं. हर 18 मिनट पर एक दलित के खिलाफ अपराध होता है.

दुख की बात तो यह है कि आज भी 21वीं सदी में दलितों को इज्जत से जीने का हक नहीं मिल पाता है जिस के वे हकदार हैं.

इन की भूल क्या है

दलित लोगों में से कुछ निरंकारी, राधास्वामी, ईसाई, आर्य समाजी, कुछ कट्टर हिंदू, नकली शर्मा, चौहान, सूर्यवंशी और चंद्रवंशी हैं. वे तकरीबन 1,108 जातियों में बंटे हुए हैं. ज्यादातर मामलों में दलित एकजुट हो कर आवाज नहीं उठाते हैं.

दलित भी इंसाफ मिलने की आस देवताओं से करते हैं. उन्हें पता नहीं है कि देवता खुद रिश्वतखोर हैं और ऊंची जाति वालों का यह शोषण करने का बहुत बड़ा हथियार हैं. दलित समाज अलगअलग खेमों में बंटा हुआ है और ये लोग अपनेअपने संगठन का झंडाडंडा उठा कर खुश हैं.

दलितों में भी जिन की हालत सुधर गई है, उन में से कुछ लोग अपनेआप को ऊंची जाति के बराबर का समझने की भूल कर बैठे हैं. बहुत से मामलों में ये दलित भी ऊंची जाति वालों का साथ देने लगते हैं. इन की हालत जितनी भी सुधर जाए, लेकिन ऊंची जाति के लोग उन्हें दलित और निचला ही समझते हैं.

दलितों पर हो रहे शोषण का विरोध एकजुट हो कर पूरी मुस्तैदी के साथ करना पड़ेगा, तभी उन पर हो रहा जोरजुल्म रुक पाएगा.

हैरानी की बात यह है कि अपनेआप को दलितों का नेता मानने वाले रामविलास पासवान और देश के दलित राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी इस मसले पर चुप दिखाई देते हैं.               द्य

बेड़ियां तोड़ती मुस्लिम लड़कियां

लेखक – जरगाम मियां, मो. अताउल्लाह

वह लड़की है सना नियाज, जो दिल्ली के जामा मसजिद इलाके की तंग गलियों में से एक गली मदरसा हुसैन बख्श में रहने वाले नियाजुद्दीन की बेटी है.नियाजुद्दीन जामा मसजिद के पास ही एक होटल ‘अल जवाहर’ में बावर्ची हैं. सना नियाज 6 भाईबहनों में चौथे नंबर पर है. उस से बड़ी 3 बहनें हैं जिन में पहले नंबर की बहन इलमा दिल्ली के जाकिर हुसैन कालेज से ग्रेजुएशन करने के बाद जामिया मिल्लिया इसलामिया यूनिवर्सिटी से फैशन डिजाइनिंग में डिप्लोमा कर रही है, वहीं दूसरे नंबर की बहन इकरा भी जाकिर हुसैन कालेज से ग्रेजुएशन के बाद उसी यूनिवर्सिटी से फाइन आर्ट्स में डिगरी कोर्स कर रही है, जबकि तीसरे नंबर की बहन उमेरा, जिस ने साल 2017 में 12वीं जमात पास की थी, इस समय नौर्थ कैंपस के हिंदू कालेज में बीए की छात्रा है.

सना नियाज जामा मसजिद इलाके की उन गलियों में रहती है जहां पर आज से कुछ साल पहले तक लड़कियां अपने घरों में लोकल दुकानदारों के लिए थैलियां बनाती थीं, बुक बाइंडरों के लिए किताबों के फर्मों की मुड़ाई किया करती थीं. उन के लिए स्कूली तालीम बेकार की बात समझी जाती थी.

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ऐसे इलाके के एक घर में 1-2 नहीं, बल्कि 5 लड़कियां तालीम हासिल कर रही हैं. इन में से 3 लड़कियों ने स्कूल में टौप किया है और एक लड़की सना नियाज ने तो दिल्ली के सरकारी स्कूलों के नतीजों में 97.6 फीसदी अंकों के साथ पहला मुकाम हासिल किया है.

जब मैं सना नियाज के अब्बा नियाजुद्दीन से मिला तो उन्होंने बताया कि सना और उस की अम्मी इस वक्त पहाड़ी इमली पर एक समिति के औफिस में मौजूद हैं जहां उस के सम्मान में एक कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है.

जब मैं वहां पहुंचा तो सना के साथ उस की अम्मी और कुछ दूसरी लड़कियां भी मौजूद थीं. उन लड़कियों ने भी 12वीं जमात में अच्छे नंबर हासिल किए थे और वे सारी लड़कियां भी जामा मसजिद के सर्वोदय कन्या विद्यालय नंबर 3 की छात्राएं थीं. यह उर्दू मीडियम स्कूल है.

सना नियाज के मुताबिक, उस ने अपनी बड़ी बहनों की परंपरा को ही आगे बढ़ाया है. उस की बड़ी बहनें भी पढ़ाईलिखाई में अच्छी हैं और उस ने भी सर्वोदय कन्या विद्यालय नंबर 3, जामा मसजिद से पढ़ाई की है.

सना नियाज का सपना है कि उसे सैंट स्टीफन कालेज में दाखिला मिल जाए और वहीं से ग्रेजुएशन करने के बाद सिविल सर्विस के इम्तिहान में कामयाबी पाने की कोशिश की जाए.

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वहीं दूसरी ओर सना नियाज की अम्मी असमा परवीन का कहना है, ‘‘आज से 18-20 साल पहले जब मैं ने अपनी बेटियों को पढ़ाने का फैसला किया था तब आसपड़ोस के लोगों ने इस बात पर एतराज जताया था, मगर मैं ने उन पर ध्यान नहीं दिया था क्योंकि मेरे शौहर ने मुझे इस बारे में आजादी दे दी थी कि मैं जिस तरह चाहूं अपनी लड़कियों की परवरिश करूं.’’

नियाजुद्दीन की कम आमदनी में 6 बच्चों की पढ़ाई के साथ घर का खर्च चलाना मुश्किल काम था. मगर सना की अम्मी असमा परवीन का कहना है कि उन्होंने अपने इरादे को अमलीजामा पहनाने के लिए हर मुमकिन कोशिश की. इसी का नतीजा है कि आज उन की बेटियां बेहतर तालीम ले रही हैं.

अपनी इस कामयाबी में सना नियाज अपने स्कूल की प्रिंसिपल नीलम सचदेवा को भी श्रेय देती है. उस के मुताबिक, प्रिंसिपल मैडम का बरताव सख्त टीचर का न हो कर एक अच्छे दोस्त जैसा रहा है जिस से स्कूल में पढ़ने का माहौल बना रहता है.

सना नियाज की ख्वाहिश है कि समाज की हर लड़की पढ़ीलिखी हो, जिस से कि वह अपने पैरों पर खड़ी हो कर एक अच्छे समाज को बना सके.

सना नियाज के साथसाथ जब 12वीं जमात की दूसरी लड़कियों से बात की गई तो उन में से ज्यादातर ने कहा कि उन का पढ़ने का मकसद टीचर बनना है.

एक लड़की का कहना था कि उस की मां की ख्वाहिश है कि वह पढ़लिख कर टीचर बने इसलिए वह टीचर बनना चाहती है जबकि एक और लड़की का कहना था कि वे 4 बहनें हैं और उस की बाकी बहनें भी चाहती थीं कि वे टीचर बनें मगर किसी वजह से वे टीचर नहीं बन सकीं, इसलिए अब वह खुद टीचर बन कर उन सब का ख्वाब पूरा करेगी.

सना नियाज की कामयाबी सिर्फ एक लड़की की कामयाबी नहीं है. यह कामयाबी एक इशारा है कि आज का यह समाज भी तेजी से बदल रहा है जिस को पिछड़ा और परंपराओं की चारदीवारी में कैद बताया जाता रहा है.

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मुसलिमों के पसमांदा समाज में भी औरतें आज तेजी से आगे बढ़ रही हैं. आज वे किसी और पर निर्भर नहीं रहना चाहती हैं. उन के अंदर भी कुछ करने का जज्बा उफान पर है.

सना नियाज के अलावा भी हमें जितनी लड़कियां मिलीं, वे सब मिडिल क्लास परिवारों से ताल्लुक रखती थीं. मगर सना में और उन बाकी लड़कियों में एक बात अलग थी, वह यह कि सना के अलावा सब बुरका पहने हुए थीं.

शायद यही फर्क था कि जहां सना सिविल सर्विस का इम्तिहान दे कर समाज की तरक्की के लिए काम करना चाहती है तो बाकी की सारी लड़कियों की जिंदगी का मकसद टीचर बनना है.

सना नियाज चाहती है कि वह भी उसी तरह अपने समाज की दूसरी लड़कियों के काम आ सके, जिस तरह उस की अम्मी हर समय इलाके की लड़कियों की तालीम के लिए जद्दोजेहद करती रहती हैं.

सना नियाज की अम्मी असमा परवीन चाहती हैं कि कोई भी लड़की बगैर तालीम के नहीं रहे. इस के लिए वे इलाके के लोगों को समझाती रहती हैं. अगर कोई यह कहता है कि वह अपनी लड़की को तालीम नहीं दिलाएगा तो वे उस को समझाने की कोशिश करती हैं.

सना नियाज की भी यही ख्वाहिश है कि वह जिंदगी में एक ऐसा मुकाम हासिल करे, जिस से वह समाज की तरक्की में हिस्सा ले सके.

अश्लीलता: मोबाइल बना जरिया

आज के दौर में सोशल मीडिया के बढ़ते जोर से अब हर हाथ में वह चाबी है जो बड़ी आसानी से किसी भी अश्लील साइट का मुश्किल दरवाजा चुटकियों में खोल देती है, फिर जगह चाहे कोई भी हो. पर अगर कई साल पीछे जाएं तो उस दौर में लोग रंगीन पोस्टरनुमा किताबों में विदेशी अश्लील सितारों के मदमस्त पोज देख कर ही चरमसुख भोग लिया करते थे. ऐसी किताबें एक हाथ से दूसरे हाथ में चलती रहती थीं. जो लाता था वह बीच में बैठ कर देखता था और दूसरों को भी दिखाता था. पर उन्हें अपने बड़ों से छिपा कर रखना बड़ा मुश्किल होता था. नजर पड़ते ही पोल खुल जाए. अगर आप की नईनई मूंछें आई हैं तो पिटाई होने का भी खतरा बना रहता था.

उस के बाद वीडियो कैसेट में भरी जाने वाली अश्लील फिल्में देखते ही देखते हिट हो गईं. बंद कमरे में मस्ती भरा मनोरंजन. बहुत से स्कूली बच्चे थोड़ेथोड़े पैसे मिला कर किराए पर वीसीआर और अश्लील वीडियो कैसेट लाते थे और किसी एक के घर पर बैठ कर चोरीछिपे अपना दिन रंगीन कर लेते थे. बड़ों को इस बात की ज्यादा परवाह नहीं होती थी पर कोई सुरक्षित जगह तो उन्हें भी चाहिए थी.

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लेकिन जब से मोबाइल फोन हाथ में आया है, अश्लील के बाजार में जबरदस्त उछाल आ गया है. लैपटौप और मोबाइल फोन से देखा जाने वाला अश्लील इस इंडस्ट्री से जुड़े लोगों को अरबों रूपए की कमाई करा देता है. इंटरनेट पर यह सब से ज्यादा मुनाफे वाला धंधा बन गया है.

और जब से लोग सेक्स करते खुद के वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर सरेआम कर रहे हैं तब से इस में देशीपन का छोंक भी लग गया है. इन वीडियो में साथी से छुप कर बनाए गए वीडियो से ले कर खेत में रेप के वीडियो तक शामिल होते हैं. कभीकभार तो सेक्स कर रहे जोड़े को ही नहीं पता होता है कि कोई तीसरी डिजिटल आंख उन के प्रेम प्रसंग को सार्वजनिक कर रही है.

कई बार लड़कियां खुद अकेले में अपने अश्लील वीडियो अपलोड कर के लोगों की राय जानना चाहती हैं कि उन की देह में किस हद का मस्तानापन है या पति अपनी पत्नी को चूमते हुए कहता है, ‘अगर आप को मेरी पत्नी की यह अदा पसंद आई है तो इस वीडियो को ज्यादा से ज्यादा लाइक और शेयर कीजिए.’

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ऐसा भी होता है

‘टिकटौक’ और ‘म्यूजिकली’ जैसे ऐप तो ऐसे वीडियो बनाने वालों के लिए वरदान बन गए हैं. एक नजरिए से अश्लील देखना अब एक आम बात हो गई है. लोग मान लेते हैं कि वे अकेले या दोस्तों या फिर अपने सेक्स पार्टनर के साथ अश्लील देख लेते हैं.

पर कभीकभार मामला बिगड़ भी जाता है. पुणे के एक डिजिटल बोर्ड पर तो अश्लील चल गई थी और उसे देखने के लिए वहां लोग जमा हो गए थे. दरअसल, किसी ने गलती से एक बिजी सड़क कर्वे रोड पर लगे डिजिटल बोर्ड पर अश्लील फिल्म चला दी थी जिस के चलते वहां का यातायात जाम हो गया था. यह जाम हायहाय करने के लिए नहीं, बल्कि आहें भरने के लिए लगा था.

इसी तरह केरल के वायनाड जिले में कलपेट्टा इलाके के बसस्टैंड पर अश्लील फिल्म चल गई थी. बस औपरेटर की पेन ड्राइव बदल जाने के चलते वहां इंतजार कर रहे मुसाफिरों ने 30 मिनट तक पौर्न फिल्म देखने का मजा लिया था. इस के बाद उसे बंद कर दिया गया होगा, वरना लोग तो और भी देर तक देखने के मूड में रहे होंगे.

एक अलग ही मामले में भारतीय नेवी के एक कमांडर पर अपनी पत्नी के आपत्तिजनक और मौर्फ्ड (एडिट किए हुए) फोटो को गूगल फोटो ऐप पर डालने का आरोप लगा था.

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इस मामले में उस कमांडर की पत्नी ने पुलिस को बयान दिया था कि उस के पति को पिछले 11 साल से पौर्न देखने की लत है, जिस से वह परेशान हो गई थी. कमांडर के घर वाले और एक प्रोफेशनल काउंसिलर भी उस के पति की यह लत नहीं छुड़वा पाए थे, बल्कि उस के पति ने उसे ही सताना शुरू कर दिया था.

इस का सीधा सा मतलब है कि अब लोगों के मोबाइल फोन में आसानी से अश्लील वीडियो मुहैया हैं. रोजाना हजारों तरह के ऐसे एकदम देशी वीडियो अपलोड होते रहते हैं. गांवदेहात के लोग भी ऐसा करने में पीछे नहीं हैं. अगर आप बालिग हैं तो अश्लील देखने में कोई बुराई नहीं है पर जरा संभल कर, क्योंकि अगर किसी सार्वजनिक जगह पर आप इस का लुत्फ लेते पकड़े गए, तो हंसी का पात्र भी बन सकते हैं.

Edited by- Neelesh Singh Sisodia 

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