ससुराल स्वर्ग या अभिशाप… ?
मेरा एक सवाल समाज से ,घर और परिवार से क्या एक स्त्री को ससुराल भेजने के लिए ही पैदा किया जाता है ? अपनी बेटी को अचानक से एक अंजान घर में भेज दिया जाता है ,जहां उससे ये कहा जाता है कि अब तुम इस घर की बहू हो इस घर को संभालो तुम्हारी जिम्मेदारी बढ़ गई है. इतना ही नहीं वो स्त्री सारे काम सीख जाती है,उस घर को अपना बना लेती है.लेकिन उस वक्त क्या जब उस देवी समान स्त्री को घरेलू हिंसा का शिकार होना पड़ता है. कभी दहेज के रूप में ये हिंसा उसके सामने आती है तो कभी बेटे को जन्म न दे पाने के कारण ये हिंसा उसके साथ होती है.
एक माता-पिता अपनी बेटी को बड़े अरमानों के साथ ससुराल भेजते हैं और साथ उसकी सुविधा के ध्यान रखते हुए सारे सामान देते हैं और इतना ही नहीं उनकी बेटी को कोई तकलीफ न हो इसके लिए वो दहेज के नाम पर ससुराल वालों को भी कुछ समान देते हैं....लेकिन ये दहेज प्रथा आज समाज और स्त्री के लिए अभिशाप बन गई है क्योंकि यही दहेज जब कम पड़ता है और लड़के वालों की मांगे पूरी नहीं होती है तो उस स्त्री को प्रताड़ित किया जाता है. अक्सर ससुराल वाले चाहते हैं कि मेरी बहू लड़के को जन्म दे..लेकिन अगर लड़की जन्म लेती है तो उस स्त्री को फिर प्रताड़ित किया जाता है. लोग ये क्यों नहीं समझते हैं कि लड़के या लड़की का पैदा होना किसी भी मनुष्य के हाथ में नहीं है.