हैदराबाद में चार आरोपियों के साथ कानून का भी हुआ एनकाउंटर

तेलंगाना पुलिस जिंदाबाद के नारे लगाए. दोषियों को अदालत ने सजा ए मौत भले न दी हो लेकिन कानून के रखवालों ने तामील कर दी. आज मैं बस इतना कहना चाहता हूं कि एक कुप्रथा का सहारा लेकर तथाकथित न्याय किया गया. आज चार आरोपियों के एनकाउंटर के साथ एक और एनकाउंटर किया गया वो एनकाउंटर हुआ कानून का.

अभी वो केवल आरोपी ही थे दोषी नहीं. आरोपियों को 10 दिन की पुलिस रिमांड पर भेजा गया था. अभी तक ये भी पता नहीं कि आरोपी वही है या फिर और कोई. आरोपियों को पुलिस की कस्टडी पर रखकर सारे साक्ष्य और सबूत इकट्ठा किए जा रहे थे. कहा जा रहा है कि उन्होंने पुलिस के सामने गुनाह कबूल किया था. ये बात किसी से छिपी नहीं है कि पुलिस कैसे गुनाह कबूल करा देती है. इसी वजह से अदालत में जज के सामने जब किसी मुजरिम को पेश किया जाता है तो जज पूछते हैं कि आप किसी दबाव में तो नहीं बयान नहीं दे रहे. मतलब की जज को भी पता होता है कि पुलिस रिमांड के दौरान पुलिस के पास कौन-कौन से तरीके होते हैं गुनाह को कबूल कराने के.

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दोषियों को सजा ए मौत मिलनी चाहिए. बेशक मिलनी चाहिए. गैंगरेप और हत्या के आरोपियों को सरे आम फांसी पर लटका देना चाहिए. अदालत चाहे तो आरोपियों की फांसी का लाइव टेलिकास्ट करा देते  ताकि जहां कहीं भी हैवान होते उनको रूह कांप जाती. अगर इससे भी मन नहीं भरता तो दुनिया की सबसे कठोर जो सजा होती वो दे दी जाती. किसी को कोई गम नहीं होता. उन आरोपियों से किसी को भी हमदर्दी नहीं हो सकती.

खैर, महिला डॉक्टर को तो न्याय मिल गया लेकिन क्या न्याय उनको भी मिल पाएगा, जिनके जिस्म को तार-तार करने वाले हैवान आज भी न्याय के मंदिर पर सजा काट रहे हैं. जिस जगह पर महिला डॉक्टर की जली लाश मिली थी उससे कुछ ही दूरी पर 48 घंटे के भीतर एक दूसरी महिला की जली हुई निर्वस्त्र लाश मिली थी. लेकिन आज तक उसके बारे में कुछ नहीं हुआ. कोई खबर नहीं, कोई प्रदर्शन नहीं, सड़कों पर आक्रोश नहीं. मतलब साफ है कि न्याय भी उसी को मिलेगा जिसका कोई ओहदा होगा. क्या तेलंगाना पुलिस को उस महिला के साथ ऐसा जघन्य अपराध करने वालों को भी उतनी ही जल्दी नहीं पकड़ना चाहिए? ये सवाल है.

वरिष्ठ अधिवक्ता फ़ेलविया ऐग्निस ने इस एनकाउंटर को लोकतंत्र के लिए ‘भयावह’ बताते हुए कहा, “रात के अंधेरे में निहत्थे लोगों को बिना सुनवाई बिना अदालती कार्यवाही के मार देना भयावह है. पुलिस इस तरह से क़ानून अपने हाथों में नहीं ले सकती. इस तरह के एनकाउंटर को मिल रहे सार्वजनिक समर्थन की वजह से ही पुलिस की हिम्मत इतनी बढ़ जाती है कि वह चार निहत्थे अभियुक्तों को खुले आम गोली मारने में नहीं हिचकिचाते”.

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वरिष्ठ अधिवक्ता और महिला अधिकार कार्यकर्ता वृंदा ग्रोवर का कहना है कि इससे उपजे ध्रुवीकरण और बहस में सबसे बड़ी हार महिलाओं की ही होगी. बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, “यह एनकाउंटर संदेहास्पद है. और जो लोग भी इसको ‘न्याय’ समझ कर उत्सव मना रहे हैं वो यह नहीं देख पा रहे हैं कि इस पूरी बहस में सबसे बड़ा नुक़सान महिलाओं का होने वाला है.”

उन्होंने कहा कि इसके दो कारण है. पहला तो यह कि अब जिम्मेदारी तय करने की बात ही खत्म हो जाएगी. महिलाएं जब भी शहरों में बेहतर आधारभूत ढांचे की मांग करेंगी, सरकार और पुलिस दोनों ही रोजमर्रा की कानून व्यवस्था और आम पुलिसिंग को दुरुस्त करने की बजाय इस तरह हिरासत में हुई गैर-कानूनी हत्याओं को सही ठहराने में लग जाएंगे.

वृंदा ग्रोवर ने कहा, “दूसरी सबसे चिंताजनक बात यह है कि इस एनकाउंटर को मिल रही सार्वजनिक स्वीकृति पुलिस को अदालत और क़ानून की जगह स्थापित करती सी नज़र आती है. मतलब अगर पुलिस ही इस तरह न्याय करने लग जाए तो फिर अदालत की ज़रूरत ही क्या है?”

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भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सांसद व पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने हैदराबाद पुलिस द्वारा किए गए मुठभेड़ पर सवाल उठाए हैं. मुठभेड़ की निंदा करते हुए मेनका गांधी ने कहा, “जो भी हुआ है बहुत भयानक हुआ है इस देश के लिए. आप लोगों को इसलिए नहीं मार सकते, क्योंकि आप चाहते हैं. आप कानून को अपने हाथ में नहीं ले सकते, वैसे भी उन्हें अदालत से फांसी की सजा मिलती.” उन्होंने कहा, “अगर न्याय बंदूक से किया जाएगा तो इस देश में अदालतों और पुलिस की क्या जरूरत है?”

डा. प्रियंका रेड्डी: कानून, एनकाउन्टर और जन भावना

6 दिसंबर की सुबह सुबह जो समाचार देश की मीडिया में आकाश के बादलों की तरह छा गया वह था हैदराबाद में हुए डा. प्रियंका रेड्डी के साथ हुए बलात्कार एवं नृशंस हत्याकांड के बाद देशभर में गुस्से के प्रतिकार स्वरुप पुलिस के एनकाउंटर का. जिसमें बताया गया था कि डॉ प्रियंका रेड्डी के साथ हुई अनाचार के चारों आरोपियों को पुलिस ने एक एनकाउंटर में मार गिराया है.

इस खबर के पश्चात चारों तरफ मानो खुशियों का सैलाब उमड़ पड़ा. सोशल मीडिया हो या देश का इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जब समाचार को लेकर आया तो इसके पक्ष में कसीदे पढ़े जाने लगे. यह अच्छी बात है कि लोगों में बलात्कार अनाचार के प्रति रोष दिखाई पड़ता है. मगर इस एनकाउंटर के पश्चात जिस तरह एकतरफा एनकाउंटर को जायज ठहराया गया वह कई प्रश्न खड़े करता है और यह संकेत देता है कि हमारा समाज, देश किस दिशा में जाने को तैयार खड़ा है. देखिए सोशल मीडिया कि कुछ प्रतिक्रियाएं-

प्रथम-हैदराबाद में रेप के चारों आरोपियों को पुलिस ने मार गिराया. बहुत लोग खुश हो रहे हैं. सत्ता यही चाहती है कि आप ऐसी घटनाओं पर खुश हों और आपकी आस्था बनी रहे.

द्वितीय- क्या एनकाउंटर की इसी तर्ज पर बड़ी मछलियों को भी मार दिया जाएगा? लिस्ट बहुत लंबी है. किस किस का नाम लिया जाय और किसे छोड़ा जाय?

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तृतीय- शायद मानवाधिकार और बुद्धिजीवी वर्ग पुनः सक्रिय होनेवाला है, इस एनकाउंटर के लिए पर आम जनता प्रसन्न है. तुरंत दान महा कल्याण. डिसीजन ओन द स्पॉट.निर्भय  की तरह न झूलेगा केस न जुवेनाइल कोर्ट का झमेला. जियो जियो .

चतुर्थ- सेंगर, कांडा, चिन्मयानंद, मुजफ्फरपुर शेल्टर होम के मालिक और एम जे अकबर जैसों का एनकाउंटर कब होगा ?

पंचम- “कुछ देर बाद कई मानवाधिकार के ढोल वाले अपना शटररुपी मुँह खोलेंगे.उन्हें अवॉयड करियेगा. आज पीड़ित बेटी को अधिकार मिला है.

सुबह सुबह की तल्ख  खबर

हैदराबाद गैंगरेप और मर्डर केस के चारों आरोपियों का एनकाउंटर कर दिया गया है. चारों आरोपियों को गुरुवार देर रात नेशनल हाइवे-44 पर क्राइम सीन पर ले जाया गया था. जहां उन्होंने भागने की कोशिश की तो पुलिस को एनकांउंटर करना पड़ा.हालांकि अभी तक यह साफ नहीं हो पाया है कि इन चारों का एनकाउंटर किन परिस्थितियों में हुआ है.हैदराबाद में महिला वेटनरी डॉक्टर के साथ जिस तरह से चार लोगों ने कथित रूप से गैंगरेप किया और उसे जिंदा जला दिया उसके बाद देशभर में लोगों के भीतर इस घटना को लेकर आक्रोश था. लेकिन अब इन चारों ही आरोपियों को पुलिस ने एनकाउंटर में ढेर कर दिया है.

बता दें कि गैंगरेप और बर्बरता से हत्या के मामले तेलंगाना सरकार ने बुधवार को आरोपियों के खिलाफ मुकदमे की सुनवाई के लिए महबूबनगर जिले में स्थित प्रथम अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश की अदालत को विशेष अदालत (फास्ट ट्रैक कोर्ट) के रूप में नामित किया था. इस मामले में पुलिस ने सोमवार को अदालत में याचिका दाखिल करके आरोपियों की दस दिनों की हिरासत की मांग की . लगातार तीन दिनों तक अभियोजन पक्ष की दलीलें सुनने के बाद सात दिनों की पुलिस हिरासत दे दी गई.

 डॉ प्रियंका के साथ जो हुआ, और अनुत्तरित प्रश्न

गौरतलब है कि 28 नवंबर को इन चार आरोपियों की जिनकी उम्र 20 से 26 साल के बीच थी ने डॉक्टर  प्रियंका रेड्डी को टोल बूथ पर स्कूटी पार्क करते देखा था. आरोप है कि इन लोगों ने जानबूझकर उसकी स्कूटी पंक्चर की थी. इसके बाद मदद करने के बहाने उसका एक सूनसान जगह पर लेकर गैंगरेप किया और बाद में पेट्रोल डालकर आग के हवाले कर दिया. पुलिस के मुताबिक घटना से पहले इन लोगों ने शराब भी पी रखी थी. रेप और मर्डर की घटना के बाद पूरे देश में गुस्सा था .

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वहीं इस एनकाउंटर के बाद लोगों की अलग-अलग प्रतिक्रिया देखने की मिल रही है. एक चैनल  से बात करते हुए एक्टिविस्ट और वकील वृंदा ग्रोवर ने सवाल उठाया है. उन्होंने कहा कि वह सभी के लिए “न्याय” चाहती हैं लेकिन इस तरह नहीं होना चाहिए था. वहीं इसी मुद्दे पर अनशन पर बैठीं दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने कहा कि जो हुआ अच्छा है कम से कम वह सरकारी दामाद बनकर रहेंगे जैसा कि दिल्ली के निर्भया केस में हुआ.

सबसे बड़ा प्रश्न इस संपूर्ण मामले में यह है कि क्या प्रियंका रेड्डी को इन चार आरोपियों के एनकाउंटर से न्याय मिल गया?

अगर पुलिस ने निअपराधियों को आरोपी बनाकर, देश को दिखा दिया होगा तो, जैसा कि अक्सर फिल्मों में होता है, तो क्या होगा?

सवाल यह भी है कि जैसी प्रसन्नता लोग सोशल मीडिया पर जाहिर कर रहे हैं क्या वह सही  कही जा सकती  है?

यह भी सच है कि लोगों में  प्रियंका रेड्डी बलात्कार कांड के बाद भयंकर रोष था, यह भी सच है कि कानून अपना काम अच्छे से नहीं कर पा रहा.यह भी सच है कि जिस त्वरित गति से प्रकरण की सुनवाई होनी चाहिए, नहीं हो पा रही. यह भी सही है कि मामला ले देकर राष्ट्रपति दया याचिका  पर फंस जाता है.  तो क्या इलाज अब एनकाउंटर ही बच गया है?

डॉक्टर प्रियंका रेड्डी कांड  के दोषी निसंदेह कानून के अपराधी हैं और हमारा कानून इतना सक्षम है कि वह दूध का दूध पानी का पानी कर सकता है. कानून की मंशा यही है कि चाहे सो गुनाहगार बचे जाएं मगर एक बेगुनाह नहीं मारा जाना चाहिए. इसी सारभूत तत्व को लेकर हमारा कानून  काम कर रहा है, अगर इसी तरह एनकाउंटर करके लोगों को मारा जाएगा तो फिर क्या  कानून की भावना, कानून की आत्मा के साथ क्या हमारा समाज और सिस्टम गलत नहीं कर रहा है.

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आने वाले समय में इस एनकाउंटर को जांच आयोग बनाकर और न्यायालय की देहरी पर हर तरीके से परखा जाएगा तब शायद यह तथ्य सामने आ जाएंगे की किस जगह एनकाउंटर में कई बड़ी गलतियां हुई हैं.

– जैसे सुबह सवेरे अंधेरी रात में चारों आरोपियों को घटनास्थल पर रीक्रिएशन के लिए ले जाना….?

-क्या आरोपियों के हाथों में हथकड़ीयां नहीं बांधी गई थी?

क्या आरोपी फिल्मी सितारों की तरह इतने ताकतवर थे की पुलिस की भारी दस्ते पर सरासर भारी पड़ गए? सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि इन चारों के चेहरे देखकर लगता है कि यह आम गरीब  परिवार से थे. क्या यह लोग किसी बड़ी शख्सियत के वारिस होते, तो क्या पुलिस इस तरह काउंटर का पाती.

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि डॉ प्रियंका के हत्यारों के रूप में आरोपियों के साथ जो हुआ उससे देश में खुशी का माहौल दिखाई दे रहा है. मगर हमें  यह समझना होगा कि आरोपियों की जगह हम या हमारे कोई परिजन होते,उनके साथ अगर ऐसा पुलिस करती, तो हम क्या सोचते!

और अगर हम यह जानते होते की यह अपराधी नहीं है और तब यह एनकाउंटर होता तब क्या व्यतीत होता? क्योंकि यह सच जानना समझना होगा कि पुलिस के द्वारा गिरफ्तार कियाा जाना, कोई अपराधी सिद्ध हो जाना नहीं है. हमारे देश में जिस तरह पुलिस काम करती है, उससे यह समझा जा जा सकता है कि कभी भी किसी को भी पुलिस गिरफ्तार कर सकती है मगर अंतिम फैसला इजलास पर होता है.

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फांसी से बचाने के लिए सालाना खर्च करते हैं 36 करोड़ रुपए

हर देश का अपना अलगअलग कानून होता है. कहींकहीं, खासतौर पर अरब देशों में कानून बहुत सख्त है. पाकिस्तान को ही ले लीजिए, वहां एक बच्ची से रेप और हत्या के दोषी को 2 महीने में फांसी की सजा सुना दी गई, लेकिन हमारे यहां देश के सब से चर्चित मामले निर्भया रेप और हत्या के मामले में दोषी साबित हो जाने के बाद भी मुजरिमों को जेल में पाला जा रहा है.

अगर ऐसा अरब देशों में हुआ होता तो मुजरिमों को अब से 6 साल पहले फांसी हो चुकी होती. सख्त कानून के चलते अरब देशों में यह भी कानून है कि अगर कोई व्यक्ति किसी की हत्या कर देता है और शरिया कानून के अंतर्गत उसे फांसी की सजा हो जाती है तो फांसी से बचने के लिए उस के पास एक ही उपाय होता है, पीडि़त परिवार से सौदेबाजी.

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अगर पीडि़त परिवार उस से इच्छित रकम ले कर उसे माफ कर देता है तो अदालत फांसी की सजा को रद्द कर देती है. लेकिन सौदेबाजी की यह रकम इतनी बड़ी होती है, जिसे चुकाना आसान नहीं होता. इस रकम को वहां ब्लड मनी कहा जाता है.

दुबई में रहने वाले भारतीय मूल के बड़े बिजनैसमैन एस.पी.एस. ओबराय ऐसे व्यक्ति हैं, जो लोगों को फांसी से बचाने के लिए प्रतिवर्ष 36 करोड़ रुपए खर्च करते हैं. यानी फांसी पाए लोगों को बचाने के लिए ब्लड मनी खुद देते हैं. अब तक वह 80 से ज्यादा युवाओं को फांसी से बचा चुके हैं, जिन में से 50 से ज्यादा भारतीय थे. ये ऐसे लोग थे, जो काम की तलाश में सऊदी अरब गए थे और हत्या या अन्य अपराधों में फंसा दिए गए.

2015 में भारत के पंजाब से अबूधाबी जा कर काम करने वाले 10 युवकों से झड़प के दौरान पाकिस्तानी युवक की हत्या हो गई. अबूधाबी की अल अइन अदालत में केस चला, जहां 2016 में दसों युवकों को फांसी की सजा सुनाई गई. बाद में जब इस सिलसिले में याचिका दायर की गई तो अदालत ब्लड मनी चुका कर सजा को माफी में बदलने के लिए तैयार हो गई.

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सौदेबाजी में मृतक का परिवार 6 करोड़ 50 लाख रुपए ले कर माफी देने को तैयार हुआ. यह ब्लड मनी चुकाई एस.पी.एस. ओबराय ने.

इस तरह दसों युवक फांसी से बच गए. ओबराय साहब यह काम सालों से करते आ रहे हैं और उन के अनुसार जीवन भर करते रहेंगे.

सदियों के श्रापों की देन कलयुगी बलात्कार

आसाराम व रामरहीम के बाद वीरेंद्र देव दीक्षित नाम का हिंदुत्व का नया वाहक पिछले दिनों प्रकट हुआ है. धर्म की नफरतों की दीवारों पर रंगाईपुताई करता अध्यात्म का यह नया देवता अवतारी बन कर उभरा तो देशभर में चर्चा का विषय बन गया. बने भी क्यों नहीं, क्योंकि अब तक जितने भी बाबा के नाम मीडिया ने उछाले हैं, वे ज्यादातर गैरब्राह्मण थे और यह ब्राह्मण है.

ब्राह्मण बाबा मीडिया व ब्राह्मणवादी उद्योगपतियों की मदद से बचते रहे हैं, लेकिन यह मामला कुछ ज्यादा ही बड़ा हो गया. इसलिए जनता की आंखों में धूल झोंकने के लिए कानून के लूपहोल में खेल रहे हैं.

अब तक तकरीबन 500 लड़कियां इस हैवान के चंगुल से छुड़ाई जा चुकी हैं. वीरेंद्र देव दीक्षित नाम का यह तथाकथित नया अवतारी अपनेआप को कृष्ण अवतार बता रहा है. वह 5 हजार से अधिक लड़कियों से बलात्कार का टारगेट पूरा कर चुका है और उस का असली टारगेट, 16,000 लड़कियों का बलात्कार कर हासिल करना था, लेकिन इस बीच उस की करतूत का परदाफाश हो गया. देश की पुलिस व कानूनी एजेंसियां बाबा को खोजने में अभी तक नाकाम रही हैं.

वैसे, हिंदू धर्म में बलात्कार को अनैतिक नहीं बताया गया है. पुराण भरे पड़े हैं श्रापों व देवदासियों के बहाने महिलाओं के शोषण के किस्सों से. मत्स्यगंधा जैसी मैलीकुचैली महिलाओं को भी ऋषि पाराशर जैसे लोगों ने नहीं छोड़ा. ऐसे में आप सोच सकते हैं कि थोड़ा सा भी खुलापन ले कर शृंगार करने वाली महिलाओं की उस दौर में क्या हालत होती रही होगी.

हवस के तो ये इतने भूखे थे कि गौतम को बेवकूफ बना कर नहाने भेज दिया और पीछे अहल्या के साथ बलात्कार कर डाला. क्या तभी इन लोगों ने नारा चलाया कि ब्रह्ममुहूर्त में नहाना शुभ रहता है, क्योंकि पति अंधेरे में नदीतालाब में नहाने चला जाए और इन को पीछे मौका मिल जाए.

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शंकर तपस्या में थे और पीछे, पार्वती के गणेश पैदा हो गए. तर्क तो देखो इनके कि मैल से पैदा हो गए. जैसे पार्वती सदियों से नहीं नहाई हों और मैल को उतार कर पुतला बना लिया हो. कुंती व माद्री के जो 6 लड़के हुए उन में भी पांडु की कोई भूमिका नहीं थी. एक तो शादी से पहले ही पैदा हो गया. बता दिया गया कि महर्षि दुर्वासा ने कुंती को वरदान दे रखा था कि वह जब चाहे जिस देवता को बुला कर बच्चा पैदा कर सकती थी.

धर्म को बुला कर युधिष्ठिर पैदा कर लिया, वायुदेव से भीम पैदा करवा लिया व इंद्र को बुला कर अर्जुन पैदा करवा लिया. फिर यह वरदान माद्री को ट्रांसफर कर दिया, जिस के बूते माद्री ने अश्विनी को बुला कर नकुल व सहदेव पैदा करवा लिए.

ऋषि दुर्वासा तो तीनों युगों में पाए जाते हैं. आदमी थे या कुछ और? हर कालखंड में ऐसे मामलों के इर्दगिर्द ही नजर आता था. कहीं यह वीरेंद्र देव दीक्षित महर्षि दुर्वासा का कलियुगी रूप तो नहीं है. जब इन तथाकथित देवताओं, ऋषिमुनियों की मौज कम होने लगी तो इन लोगों ने वर्तमान को कलियुग कहना शुरू कर दिया. इन को तो वह वाला सतयुग चाहिए जहां ये कभी भी किसी भी महिला को पकड़ कर आनंद की अनुभूति ले सकें और किसी भी प्रकार की रोकटोक न हो.

वीरेंद्र देव दीक्षित ने क्या गुनाह किया है. अपने पूर्वजों की तरह जीवन जीने की कोशिश की थी. अब असली शिलाजीत मिली नहीं, तो कुछ नकली दवाइयां खा ली थीं, इसलिए टारगेट थोड़ा हाई रख लिया था.

इस में इस की गलती थोड़े ही है. यह तो कलियुगी दवाइयां ही खराब निकली हैं. सत्यवती, वाचा, अंबिका, अंबालिका, अहल्या, कुंती, माद्री आदि को एक जगह एकत्रित कर रहा था बेचारा. जब इस के पास आतीं तो उम्र 16 से 19 साल तय थी, लेकिन जब उम्रसीमा क्रौस हो जाती तो वह दूसरों के इस्तेमाल के लिए भी तो व्यवस्था करता था. देवदासियों की तरह खानेपीने का इंतजाम कर के वह अपने शिष्यों व अन्य संगी देवताओं के लिए भी तो माकूल बंदोबस्त किया था.

आप लोग कितने ही नाटक कर लो, लेकिन धर्म में इस तरह के कारनामे हर ग्रंथ में बोलते हैं. मध्ययुग में राम महिमा गातेगाते तुलसीदास को औरत ने मना कर दिया तो दुनिया की सारी महिलाओं को ताड़न की वस्तु बता दिया और ये लोग गोस्वामी तुलसीदासजी की चौपाइयां हर गलीमहल्ले में ले कर घूम रहे हैं. ये गागा कर बता रहे हैं कि महिलाएं सिर्फ उपभोग के लिए हैं, उपयोग में लें और लताड़ लगाएं.

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अब वीरेंद्र देव दीक्षित उस स्वर्णकाल के हिसाब से, अपने ग्रंथों के हिसाब से लड़कियों को उपयोग में ही तो ले रहा था. अब बालिगनाबालिग की सीमा तो इन्होंने तय की नहीं थी न. ये तो कलियुगी चोंचले हैं. क्या औरतों के बिकने की मंडियां लगने वाला रामराज्य चाहिए, देवदासियों के रूप में मंदिरों को नईनई लड़कियों का इंतजाम वाला स्वर्णयुग चाहिए?

स्वर्णकाल का भोग

यह ब्राह्मण देवता यानी वीरेंद्र देव दीक्षित गिरफ्त में इतनी आसानी से नहीं आएगा क्योंकि इस ने बहुत सारे देवताओं के लिए इंतजाम किए होंगे. इस का टारगेट तो 16,000 महिलाओं से बलात्कार करने का था, इसलिए एक बार श्राप दिया और आगे बढ़ गया होगा. फिर तो शिष्यों के लिए यही वरदान बन जाता होगा. आध्यात्मिक विश्वविद्यालय बनाया है व जगहजगह उस की शाखाएं खोली गई थीं तो यह काम अकेला ब्राह्मण देवता तो कर नहीं सकता.

कलियुग गुप्तकाल के बाद ही तो आया है. 1200-1300 साल तो छद्म कलियुग के थे, असली कलियुग तो आजादी के बाद ही आया है. अब देखो, बेचारा छिप कर स्वर्णकाल का भोग कर रहा था और हम लोगों ने हंगामा कर दिया. जिस तरह के छापे, जांच व मीडिया कवरेज हो रही है, उस के हिसाब से वीरेंद्र देव दीक्षित नामक ब्राह्मण देवता सोने की तरह तप कर, बेदाग हो कर निकलेगा.

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बुराडी में चल रहा था औनलाइन जिस्मफरोशी का धंधा, इस हिसाब से लगाया जाता था रेट

बुराडी के संतनगर में ’18+ ब्यूटी टेंपल’ बाहर से आमतौर पर शांत दिखता था. सामने से यह स्पा सैंटर जितना छोटा दिखता था अंदर उस से कहीं बड़ा और आलीशान बनाया गया था. स्पा सैंटर के अंदर एक तहखाना बना हुआ था जिस में ग्राहकों के लिए तमाम तरह की सुविधाएं उपलब्ध थी.

दिन ढलते बढ जाती थी हलचल

स्पा सैंटर से कुछ दूरी पर रहने वाले एक शख्स ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि आमतौर पर दिन भर शांत रहने वाले इस स्पा सैंटर में दिन ढलते ही हलचल बढ जाती थी. लोगों की आवाजाही ज्यादा होने लगती थी. इस सैंटर में जब स्मार्ट ड्रैस पहनी कालेज जाने वाली लडकियां और लोगों का ज्यादा आनाजाना होने लगा तो अगलबगल रहने वाले लोगों को शक हुआ.

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दिल्ली महिला आयोग को मिली शिकायत

लोगों की शिकायत पर दिल्ली महिला आयोग ने दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच के साथ बुराड़ी स्थित इस स्पा सैंटर में छापा मारा. छापे के बाद मीडिया में आई खबर के बाद स्थानीय लोगों को सहसा यह विश्वास ही नहीं हो रहा था कि यहां औनलाइन सैक्स रैकेट चल रहा था.

दिल्ली महिला आयोग स्पा सेंटर से 4 लड़कियों को बचाया गया. इस मामले में 3 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया. दिल्ली महिला आयोग की सदस्य प्रोमिला गुप्ता ने सरस सलिल से बातचीत करते हुए बताया,” देखिए, दिल्ली महिला आयोग के पास एक शिकायत आई थी, जिस में एक वैबसाइट के बारे में बताया गया था. हमें सूचना मिली थी कि इस की आड में यहां सैक्स रैकेट चलाया जा रहा है. शिकायत में कहा गया था कि बुराड़ी में एक स्पा में सैक्स रैकेट चल रहा है. शिकायत पर जब हम ने दिल्ली पुलिस के सहयोग से कार्यवाई की तो वहां का नजारा देख कर हैरान रह गए. दरअसल, वैबसाइट पर वहां लड़कियों की फोटो और रेट कार्ड डाल रखे थे. जब महिला आयोग ने जगह का निरीक्षण कराया तो पता चला कि बहुत बड़ा रैकट है और स्पा में बाउंसर और तहखाने हैं”

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कस्टमर की वेशभूषा में गए अधिकारी ने की तहकीकात

प्रोमिला गुप्ता ने आगे बताते हुए कहा, “दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने इस बारे में दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच से तुरंत बात की. क्राइम ब्रांच ने अपनी एक टीम भेजी. तब दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल, सदस्य प्रोमिला गुप्ता, किरण नेगी व फिरदौस दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच की टीम के साथ बुराड़ी स्थित ‘18 प्लस ब्यूटी टेंपल’ स्पा पहुंचीं. “अपराध शाखा का एक औफिसर और डीसीडब्ल्यू का स्टाफ पहले कस्टमर बन कर स्पा में घुसा. उन को वहां लड़कियों की फ़ोटो और सैक्स के लिए रेट कार्ड स्क्रीन पर दिखाया गया. तभी डीसीडब्ल्यू की पूरी टीम और क्राइम ब्रांच की पूरी टीम स्पा सैंटर जा पहुंची. उन्होंने एकसाथ सभी कमरों का निरीक्षण किया.”

तहखाने के अंदर कई कमरे थे

प्रमिला गुप्ता बताती हैं, “वहां 3 फ्लोर पर छोटेछोटे तहखाने बने मिले, जहां पर बिस्तर थे. वहां से भारी मात्रा में कंडोम्स और अश्लील मैनू कार्ड मिले. 3 लड़कों ने बताया कि वे कस्टमर हैं और यहां सैक्स रैकट चल रहा है. वहां पर बड़े लोहे के गेट हैं जिन्हें बटन द्वारा खोला जाता है। 4 लड़कियां 3 कस्टमर और इस रैकेट को चलाने वाले 3 व्यक्तियों को पुलिस वाले स्थानीय थाने ले गए.

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“आगे की तफ्तीश पुलिस कर रही है. महिला आयोग पुलिस के संपर्क में है और जो भी दोषी होगा उस पर कडी कार्यवाई की जाएगी।”

कठुआ गैंगरेप और मर्डर केस: उड़ते पंख कटे

10 जनवरी, 2018 को बकरवाल समुदाय से ताल्लुक रखने वाली 8 साला बच्ची का अपहरण किया गया. इस के बाद 17 जनवरी को उस की लाश कटीफटी बरामद हुई थी. कठुआ में इस बच्ची को ड्रग्स दे कर दरिंदगी की जाती रही. बच्ची को ड्रग्स के नशे में इसलिए रखा गया, ताकि वह दर्द के मारे चिल्ला भी न सके.

यह खुलासा जम्मूकश्मीर पुलिस की क्राइम ब्रांच की उस 15 पन्नों की चार्जशीट में हुआ है जो पठानकोट की अदालत में पेश की गई.  इस बच्ची को मन्नार कैंडी यानी गांजा और एपिट्रिल 0.5 एमजी जैसी दवाएं दी गईं. ड्रग्स की बहुत ज्यादा मात्रा के चलते वह रेप और हत्या का विरोध नहीं कर पाई.

बच्ची को आरोपियों ने 11 जनवरी, 2017 को जबरदस्ती 0.5 एमजी की क्लोनाजेपाम की 5 गोलियां दीं जो सुरक्षित डोज से ज्यादा थीं. बाद में भी उसे और गोलियां दी गईं.

अपने फैसले में जज ने बस इतना ही कहा कि इस केस में तथ्य बहुत हैं लेकिन सच एक ही है- एक आपराधिक साजिश के तहत एक बेकुसूर 8 साला मासूम का अपहरण किया गया, उसे नशीली दवाएं दी गईं, रेप किया गया और आखिर में उसे मार दिया गया.

इस तरह 8 साला मासूम को 17 महीने यानी 380 दिन बाद पठानकोट जिला एवं सत्र न्यायालय से इंसाफ मिल गया. मुख्य आरोपी सांझी राम एक स्थानीय मंदिर का पुजारी था, जहां बच्ची को कैद कर के रखा गया था. सांझी राम और उस के दोस्त परवेश कुमार व स्पेशल पुलिस अधिकारी दीपक खजुरिया को रणबीर पैनल कोड यानी आरपीसी की धारा 302 (हत्या), 376 (रेप) और 120 बी (आपराधिक साजिश) के तहत कुसूरवार पाया गया और उम्रकैद की सजा सुनाई. साथ ही, अपराध के पहलुओं से संबंधित कई दूसरी सजाएं भी दी गईं जो आजीवन कारावास के साथ ही चलती रहेंगी. तीनों पर एकएक लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया गया, वहीं 3 पुलिस वालों सबइंस्पैक्टर आनंद दत्ता, स्पैशल पुलिस अधिकारी सुरेंदर वर्मा और हेड कांस्टेबल तिलक राज को आरपीसी की धारा 201 (सुबूतों को मिटाना) के तहत कुसूरवार पाया गया. इन्हें 5 साल की सजा दी गई और 50,000 रुपए जुर्माना लगाया गया.

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अभियोजन पक्ष ने मामले को रेयरेस्ट औफ द रेयर बता कर मौत की सजा की मांग की. 10 जून 2019 की शाम 4 बज कर 50 मिनट पर कोर्ट ने जैसे ही उम्रकैद की सजा सुनाई तो सांझी राम ने कोर्ट में खुद को बेकुसूर बताया, वहीं कोर्ट के बाहर सांझी राम की बेटी ने भी यह मामला सुप्रीम कोर्ट में ले जाने की बात कही.

एक सच को छिपाने के लिए भले ही कितने झूठ का सहारा ले लो, पर जज ने भी अपना फैसला सुना कर यह जता दिया कि अपराधी कहीं न कहीं कोई ऐसा सुराग छोड़ जाता है जो अपराध के होने की वजह बनता है.

यह फैसला उन वहशियों के लिए एक सबक हैं जो आएदिन ऐसी ही तमाम वारदातों को अंजाम देते हैं और खुलेआम छुट्टा घूमते हैं कि देखते हैं कि हमारा कौन क्या बिगाड़ लेगा. जो भी सामने आएगा उसे भी इसी तरह मौत के घाट उतार देंगे.

पेचीदा मामला होने के बावजूद भी पठानकोट जिला और सत्र न्यायाधीश डॉक्टर तेजविंदर सिंह ने अपनी पैनी निगाहों से जो फैसला सुनाया वह दूसरों के लिए सबक है.

आरोप जो तय हुए

सांझी राम- आरपीसी की धारा 302 (हत्या), 376 (रेप), 120 बी (साजिश) के तहत दोषी करार. रासना गांव में देवीस्थान, मंदिर के सेवादार सांझी राम को मुख्य साजिशकर्ता बताया गया है. सांझी राम बकरवाल समुदाय को हटाने के लिए इस घिनौने काम को अंजाम देना चाहता था. इस के लिए वह अपने नाबालिग भतीजे  समेत दूसरे 6 लोगों को लगातार उकसा रहा था.

आनंद दत्ता- आरपीसी की धारा 201 (सुबूतों को मिटाना) के तहत दोषी करार. सबइंस्पैक्टर आनंद दत्ता ने सांझी राम से 4 लाख रुपए रिश्वत ले कर अहम सुबूत मिटाए.

परवेश कुमार- आरपीसी की धारा 120 बी, 302 और 376 के तहत दोषी करार. वह साजिश रचने में शामिल था. उस ने बच्ची के साथ रेप किया और गला दबा कर उस की हत्या की.

दीपक खजुरिया- आरपीसी की 120बी, 302, 34, 376डी, 363, 201, 343 के तहत दोषी करार. विशेष पुलिस अधिकारी दीपक खजुरिया ने बच्ची को नशीली दवाएं दे कर रेप किया. इस के बाद उस का गला घोंट कर मार दिया.

सुरेंदर वर्मा- आरपीसी की धारा 201 के तहत दोषी करार. जम्मूकश्मीर में विशेष पुलिस अधिकारी सुरेंदर वर्मा ने भी सुबूत मिटाने दिए.

तिलक राज- आरपीसी की धारा 201 के तहत दोषी करार. हेड कांस्टेबल तिलक राज ने भी सांझी राम से रिश्वत ले कर अहम सुबूत मिटाए.

-कठुआ गैंगरेप और मर्डर केस में सातवें आरोपी सांझी राम के बेटे विशाल को कोर्ट ने बरी कर दिया.

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पुलिस ने पठानकोट कोर्ट में जो चार्जशीट पेश की, उस के मुताबिक:

4 जनवरी, 2018 : साजिशकर्ता सांझी राम ने बकरवाल समुदाय को इलाके से हटाने के लिए खजुरिया और परवेश कुमार की इस योजना में शामिल होने के लिए अपने नाबालिग भतीजे को तैयार किया.

7 जनवरी, 2018 : दीपक खजुरिया और उस के दोस्त विक्रम ने नशे की गोलियां खरीदीं. सांझी राम ने अपने भतीजे विशाल को कहा कि वह बच्ची का अपहरण कर ले.

8 जनवरी, 2018 : नाबालिग ने अपने एक दोस्त को इस बारे में जानकारी दी.

9 जनवरी, 2018: नाबालिग ने भी कुछ नशीली दवाएं खरीदीं.

10 जनवरी, 2018 : साजिश के तहत नाबालिग ने मासूम बच्ची को घोड़ा ढूंढऩे में मदद की बात कही. वह उसे जंगल की तरफ ले गया. बाद में बच्ची ने भागने की कोशिश की लेकिन आरोपियों ने उसे धर दबोचा. इस के बाद उसे नशीली दवाएं दे कर उसे एक देवीस्थान के पास ले गए, जहां रेप किया गया.

11 जनवरी, 2018: नाबालिग ने अपने दोस्त विशाल को कहा कि अगर वह मजे लूटना चाहता है तो आ जाए. परिजनों ने बच्ची की तलाश शुरू की. देवीस्थान भी गए लेकिन वहां उन्हें सांझी राम ने झांसा दे दिया. दोपहर में दीपक खजुरिया और नाबालिग ने मासूम को फिर नशीली दवाएं दीं.

12 जनवरी, 2018 : मासूम को फिर नशीली दवाएं दे कर रेप. पुलिस की जांच शुरू. दीपक खजुरिया खुद जांच टीम में शामिल था जो सांझी राम के घर पहुंचा. सांझी राम ने रिश्वत की पेशकश की. हेड कांस्टेबल तिलक राज ने कहा कि वह सबइंस्पेक्टर आनंद दत्ता को रिश्वत दे. तिलक राज ने डेढ़ लाख रुपए रिश्वत ली.

13 जनवरी, 2018 : विशाल, सांझी राम और नाबालिग ने देवीस्थान पर पूजा की. इस के बाद लड़की के साथ रेप किया और उसे फिर नशीली दवाएं दीं. इस के बाद बच्ची को मारने के लिए वे एक पुलिया पर ले गए. यहां पुलिस अधिकारी दीपक खजुरिया ने कहा कि वह कुछ देर और रुक जाएं क्योंकि वह पहले रेप करना चाहता है. इस के बाद उस का गला घोंट कर मार दिया गया.

15 जनवरी, 2018: आरोपियों ने मासूम के शरीर को जंगल में फेंक दिया.

17 जनवरी, 2018 : जंगल से मासूम बच्ची का शव बरामद.

Edited By- Neelesh Singh Sisodia 

अलीगढ़ मर्डर केस : दर्दनाक घटना मासूम की हत्या ने दहला दिया दिल

मासूम बच्ची के पिता को उधारी में 50,000 रुपए मिल तो गए, पर हर रोज तकादा करना. रोजरोज तकादा करने पर किसी तरह से जाहिद को 40,000 रुपए लौटा दिए गए और बाकी की रकम 10,000 रुपए भी जल्दी ही लौटाने की बात की तो मामला तूल पकड़ गया. तय रकम समय पर न देने पर उन्हें देख लेने की धमकी देना इस कदर भारी पड़ गया कि पिता को अपनी मासूम बच्ची खोनी पड़ी.
यह वारदात तालानगरी अलीगढ़ के टप्पल गांव की है. 28 मई को पैसे न देने पर जाहिद की मासूम बच्ची के पिता से कहासुनी हुई. इस के बाद 30 मई को जाहिद ने ढाई साल की बच्ची को अगवा किया और उस की हत्या कर साथी असलम की मदद से शव को ठिकाने लगाया.
बच्ची का शव परिवार को 2 जून को घर से महज 100 मीटर की दूरी पर कूड़े के ढेर में मिला. शव को कपड़े की पोटली में लपेट कर फेंका गया था, जो गल गया था. उस का हाथ अलग मिला. उस की आंखें बाहर निकली हुई थीं.

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पुलिस ने बच्ची की मौत की वजह गला घोंटना बताया है, वहीं पोस्टमार्टम रिपोर्ट दिल दहला देने वाली है. बच्ची की एक किडनी नहीं मिली. एक हाथ शरीर से अलग था. बच्ची की सारी पसलियां टूटी हुई थीं, बाएं पैर में फ्रैक्चर था, आंखों में जख्म थे और सिर पर चोट के गहरे निशान थे. मासूम को इस कदर मारा गया था कि उस की नोजल ब्रिज (नाक और माथे को जोड़ने वाली हड्डी) टूट गई थी. डाक्टरों का कहना है कि शव इस लायक नहीं था कि रेप की जांच हो सके.
ढाई साला बच्ची की जघन्य हत्या को सुन कर हर किसी का दिल दहल गया. लखनऊ में एडीजी (कानून व्यवस्था) आनंद कुमार ने कहा कि मामले के दोनों आरोपियों जाहिद और मोहम्मद असलम ने जुर्म कबूल कर लिया है. इन दोनों पर एनएसए और पाक्सो एक्ट की धाराएं लगाई गई हैं. मामला फास्टट्रैक कोर्ट में चलेगा.
वारदात को अंजाम देने वाले तीसरे आरोपी मेहंदी हसन को भी पुलिस ने गिरफ्तार किया है. वह आरोपी जाहिद का भाई है. जिस दिन मासूम बच्ची का शव मिला, उसी दिन लोगों ने मेहंदी की जम कर पिटाई की थी. इस के बाद से ही वह फरार हो गया था. वहीं दूसरी ओर आरोपी मेहंदी हसन के बाद महिला आरोपी को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है.
आरोपी मोहम्मद असलम साल 2014 में एक रिश्तेदार की बच्ची से यौनशोषण में गिरफ्तार हुआ था. वहीं साल 2017 में उस पर दिल्ली के गोकलपुरी में छेड़छाड़ और अपहरण का मामला दर्ज है. असलम के खिलाफ पहले से ही अपहरण, दुष्कर्म और गुंडा एक्ट सहित 5 मुकदमे दर्ज हैं.
इस बर्बरता की लोगों ने सोशल मीडिया पर तीखी आलोचना की और इंसाफ की आवाज बुलंद की. जब मामला ज्यादा ही तूल पकड़ गया तो 5 पुलिस वाले सस्पैंड कर दिए गए. वजह, बच्ची जब गायब हुई थी तो इन्होंने रिपोर्ट नहीं लिखी थी. पीडि़त परिवार ने जब प्रदर्शन किया, तब पुलिस जागी और 2 लोगों की गिरफ्तारी की गई.
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के ट्वीट से मामले ने तूल पकड़ा. उन्होंने लिखा कि बच्ची की भयावह हत्या से वे सदमे में हैं. कोई इनसान एक बच्ची से ऐसी बर्बरता कैसे कर सकता है. उत्तर प्रदेश पुलिस को हत्यारों को सजा दिलाने के लिए तेजी से कार्यवाही करनी चाहिए. वहीं पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी ने कहा कि इस घटना ने उन्हें हिला कर रख दिया है.

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बीएसपी प्रमुख मायावती ने कहा कि कानून का राज कायम करने के लिए प्रदेश सरकार को तत्काल कार्यवाही करनी चाहिए. वहीं केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने कहा कि इस तरह की घटनाएं इनसानियत को कंपा देती हैं.
सोशल मीडिया भी अछूता नहीं रहा
क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग ने ट्वीट किया कि टप्पल में सब से भयानक तरीके से ढाई साल की बच्ची की दुष्कर्म के बाद हत्या की खबर से बेहद परेशान हूं.
फिल्म हीरोइन सोनम कपूर ने ट्वीट किया कि इस मुद्दे का इस्तेमाल निजी स्वार्थ के लिए न करें. छोटी सी बच्ची की मौत आप के नफरत फैलाने की वजह नहीं है.
ट्विंकल खन्ना ने लिखा है कि बच्ची की भयानक हत्या के बारे में सुन कर दिल दहल गया. अपराधियों के खिलाफ त्वरित कार्यवाही के लिए केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी से अनुरोध किया है. वहीं रवीना टंडन ने लिखा है कि यह बर्बर घटना है. कानून को तेजी से काम करना चाहिए.
अभिषेक बच्चन ने ट्वीट किया कि बच्ची के बारे में सुन कर गुस्सा आ गया. कोई ऐसा काम करने की सोच भी कैसे सकता है. यह एक घृणात्मक और गुस्सा पैदा करने वाली घटना है और वे निशब्द हैं.
सनी लियोनी ने लिखा कि वे इस घटना से बेहद दुखी हैं. वहीं आयुष्मान खुराना ने ट्वीट किया कि यह घटना अमानवीय है.
सिद्धार्थ मल्होत्रा ने लिखा कि इस खबर से मैं बेहद परेशान हूं.
फिल्म अभिनेता अर्जुन कपूर बच्ची की हत्या मानवता के लिए एक शर्म की बात है.
न आंखें गायब थीं और न एसिड अटैक : एसएसपी
टप्पल में ढाई साल की बच्ची की हत्या को ले कर एसएसपी आकाश कुलहरि ने सोशल मीडिया पर अफवाह न फैलाने की अपील की है. उन्होंने बताया कि बच्ची पर न एसिड अटैक हुआ है और न उस की आंखें गायब थीं. इस तरह की बातें सोशल मीडिया पर की जा रही हैं, जो पूरी तरह गलत हैं. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में ऐसा कुछ भी नहीं पाया गया है. रेप की भी पुष्टि नहीं हुई है. हालांकि जांच के लिए स्लाइड आगरा भेजी गई है, जिस की रिपोर्ट से स्थिति साफ हो पाएगी. शव 3 दिन पुराना था. काफी हिस्सा गल चुका था. कीड़े भी पड़ गए थे. आंख के नीचे चोट के निशान थे, जबकि आंखें ठीक थीं.

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पोस्टमार्टम रिपोर्ट तो यही कहती है
शव क्षतविक्षत हालत में था, जिसे कुत्ते खींच रहे थे. डाक्टर उसे जहां से भी पकडऩे की कोशिश कर रहे थे, वह अलग हो रहा था.
हत्या 3-4 दिनों पहले होने की वजह से शव में कीड़े पड़ चुके थे.
बालिका की पीठ पर कटे के निशान थे. एक पैर तोड़ दिया गया था.
बालिका का दायां हाथ गायब था.
बालिका के बाल जलाए गए थे. ऐसा लग रहा था कि शव पर एसिड डाला गया है, लेकिन इस की पुष्टि नहीं हुई.
आंख के नीचे सौफ्ट टिश्यू क्षतिग्रस्त पाए गए.

अब कंगना से डरा ये एक्टर, सता रहा है ‘रेप’ केस का डर

बौलीवुड के खेल बड़े निराले हैं. आज अर्श पर तो कल फर्श पर. कभी सुपरस्टार माधुरी दीक्षित की फिल्म ‘सैलाब’ में हीरो बने हैंडसम आदित्य पंचोली आज एक ऐसे अनजाने डर में जी रहे हैं जिस ने उन की रातों के नींदें हराम कर दी हैं. कौन लाया है आदित्य पंचोली की शांत जिंदगी में यह सैलाब?

कंगना ने उड़ाई नींद…

उस इनसान का नाम है कंगना राणावत, जो फिलहाल सिल्वर स्क्रीन की क्वीन हैं और जब बड़े परदे पर तलवार उठाती हैं तो झांसी की रानी बन जाती हैं. निजी जिंदगी में भी कंगना दूसरों की साथ लोहा लेने में पीछे नहीं हटती हैं, फिर चाहे वह सैफ अली खान हों या करन जौहर. आलिया भट्ट हों या वरुण धवन.
कंगना राणावत जब बौलीवुड में अपना नाम कमाने आई थीं तब ऐसा माना गया था कि आदित्य पंचोली ने उन की मदद की थी. इस हद तक कि बाद में उन दोनों के अफेयर के रंगीन परचे तक छपने लगे थे. आदित्य पंचोली की पत्नी जरीना वहाब ने तो यह भी डंके की चोट पर कहा है कि आदित्य पंचोली और कंगना राणावत के बीच साढ़े 4 साल तक डेटिंग का चक्कर चला था.

बौलीवुड गौसिप के मुताबिक इन दोनों का रिश्ता ठीक चल रहा था लेकिन अचानक कुछ ऐसा हुआ कि इस में दरार आ गई. ब्रेकअप के बाद दोनों के बीच काफी झगड़ा हुआ. कंगना ने आदित्य पंचोली पर शारीरिक हिंसा और मारपीट करने का आरोप लगाया था. फिर खबर आई कि आदित्य पंचोली ने कुछ दिन पहले कंगना राणावत के खिलाफ मानहानि की शिकायत दर्ज कराई. लेकिन अब आदित्य पंचोली को एक डर बारबार सताने लगा है कि कंगना राणावत उन को रेप के झूठे केस में फंसा सकती हैं.

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आदित्य को ‘फेक’ रेप केस का डर…

खुद पर कोई आंच न आए इस लिहाज से आदित्य पंचोली ने गुरुवार, 30 मई को मुंबई के वर्सोवा पुलिस स्टेशन में कंगना राणावत और उन के वकील रिजवान सिद्दीकी के खिलाफ एक शिकायत दर्ज कराई जिस में कहा गया है कि आदित्य पंचोली को डर है कि उन्हें ‘फेक’ रेप केस में फंसाया जा सकता है और इसलिए वे पुलिस के पास आए हैं.

मामला इतना ही नहीं है. इस से पहले आदित्य पंचोली ने आरोप लगाया था कि रिजवान सिद्दीकी ने उन्हें कंगना के खिलाफ मानहानि का मामला वापस लेने के लिए कहा था और अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो उन पर रेप का केस कर दिया जाएगा.

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कंगना और रंगोली के खिलाफ एक्शन की मांग…

अपने पक्ष को और मजबूत करने के लिए आदित्य पंचोली ने पुलिस के सामने एक वीडियो भी पेश किया जिस में कथिततौर पर रिजवान सिद्दीकी उन्हें रेप केस की धमकी देते दिखाई दे रहे हैं और इसी वजह से आदित्य पंचोली ने पुलिस से रिजवान सिद्दीकी, कंगना राणावत और उनकी बहल रंगोली चंदेल के खिलाफ तुरंत और सख्त एक्शन लिए जाने की मांग की है.

अब कौन किस के खिलाफ साजिश रच रहा है या झूठे मामले में फंसाने की कोशिश कर रहा है, यह तो आने वाला समय ही बताएगा, पर फिलहाल तो आदित्य और कंगना का मामला ऐसा ‘हौट केक’ बना हुआ है, जिस पर पहली छुरी किस की पड़ेगी, इस पर सभी की निगाहें टिकी हैं.

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बलात्कारी बहादुर नहीं बल्कि डरपोक है

हाल ही में दिल्ली पुलिस की वार्षिक रिपोर्ट में एक बड़ा खुलासा हुआ है, जिस के अनुसार हर घंटे एक महिला अपराध का शिकार हो रही है. चाहे वह दुष्कर्म की घटना हो या फिर छेड़छाड़ का मामला. साथ ही यह भी खुलासा किया गया है कि महिलाओं से दुष्कर्म की करीब 97त्न घटनाओं में उन के जानकारों का ही हाथ होता है. वहीं ऐसी वारदातों में 3त्न अपरिचित आरोपी निकले. हकीकत यह है कि दुष्कर्म या बलात्कार के ज्यादातर मामले लोकलाज के भय से या तो दबा दिए जाते हैं या उन की रिपोर्ट दर्ज नहीं होती, लेकिन दुष्कर्म के बाद जो मानसिक पीड़ा या त्रासदी महिला को झेलनी पड़ती है वह अकल्पनीय है.

सब से बड़ा सवाल यह है कि एक बलात्कारी किन मानसिक परिस्थितियों में इस तरह के कुकृत्य को अंजाम देता है? क्या वह उस के बाद होने वाले परिणामों को भूल जाता है या फिर उन के बारे में सोचता ही नहीं.

दुष्कर्म या बलात्कार सब से घृणास्पद कुकृत्यों में शामिल है. ऐसे कुकृत्यों को अंजाम देने के बाद कोई बहादुर नहीं बन जाता या फिर समाज उसे कोई बड़ा तमगा नहीं दे देता. इस के उलट सचाईर् सामने आने पर वह घृणा या दुराव का ही शिकार होता है. उस की सोशल आईडैंटिटी खतरे में पड़ जाती है और उसे सजा के साथसाथ रिजैक्शन भी भोगना पड़ता है.

हद तो तब होती है जब ये दुष्कर्मी सरेआम सीना ठोक कर ऐसे घूमते हैं मानो उन्होंने कोई बड़ा तीर मारा हो. देश के सुदूर ग्रामीण आदिवासी इलाकों में उच्चजाति के लोगों द्वारा दलित आदिवासी महिलाओं की अस्मत लूटने और उन्हें जिंदा जलाए जाने की खबरें सुर्खियां बनती रहती हैं पर पीड़ाजनक स्थिति तब होती है जब ऐसे लोग अपने कुकृत्यों का सरेआम ढिंढोरा पीटते हैं. पुलिस और कानून को धताबता कर ये अपनी जांबाजी में एक तमगा और जोड़ लेते हैं, पर यह विडंबना है कि हम आंख मूंदे इन बलात्कारियों का साथ देते हैं.

दुष्कर्मियों का कोई नैतिक बल नहीं होता. न ही कोई चारित्रिक संबल. असंतुलित भावनाओं के उन्माद में वे दुष्कर्म के दलदल में जा गिरते हैं पर एक सच यह भी है कि इस क्षणिक ज्वार के ठंडा पड़ते ही वे अपने पुराने स्वरूप में लौट आते हैं और ताउम्र पश्चात्ताप व ग्लानि की पीड़ा में अपनी बची जिंदगी गुजार देते हैं.

इस की सब से बड़ी बानगी दिल्ली में घटा निर्भया कांड है. बलात्कारियों ने क्षणिक आवेश में वह कर डाला जो उन्हें नहीं करना चाहिए था. इस के बदले उन आरोपियों को मिला क्या? केवल सामाजिक बहिष्कार, अलगाव, घृणा और सजा.

सामाजिक बहिष्कार इन आरोपियों पर इस कदर हावी हुआ कि उन में से एक ने तो खुदखुशी कर ली. बाकी या तो सजा भुगत रहे हैं या अदालती ट्रायल के चक्कर काटते हुए भारी मानसिक तनाव व कुंठा से गुजर रहे हैं.

अपराध छोटा हो या बड़ा उसे कभी सामाजिक स्वीकृति नहीं मिलती. दुष्कर्मियों के लिए तो समाज में कोई स्थान है ही नहीं. अपराध हमेशा कुंठा, पीड़ा व सजा ही दिलवाता है, सम्मान नहीं.

हमें चाहिए कि इन दुराचारियों को किसी भी स्तर पर बिलकुल न सराहें और न सहें. इन्हें बढ़ावा तभी मिलता है जब हम मौन साध लेते हैं. हमारी दहाड़ इन के हौसले पस्त करेगी. सामाजिक और पारिवारिक बहिष्कार से ये अलगथलग पडे़ंगे और इन का वहशीपन कमजोर पड़ेगा.

ऐसे प्रयास सिर्फ अपराधियों की तरफ से ही नहीं करने होंगे बल्कि हमें महिलाओं का पक्ष भी मजबूत करना होगा. दुष्कर्म की शिकार पीडि़ताओं के लिए स्वाभिमान कार्यक्रम चलाने होंगे. उन के भीतर के ग्लानि और कुंठा के भाव को स्नेह व प्रेम से निकालना होगा. उन्हें समाज व परिवार में दोबारा उचित स्थान दिलाने के लिए उन का मनोबल बढ़ाना होगा. तभी हम इन बलात्कारियों को मजबूत इरादों वाली महिलाओं से टक्कर दे सकेंगे.

बलात्कारियों का बहिष्कार और पीडि़ताओं की सम्मानजनक वापसी उन के होश ठिकाने लगाने का सब से बड़ा मूलमंत्र है.

चलती कार में खींचकर महिला से जबर्दस्ती की कोशिश

महिला को किडनैप कर चलती कार में सेक्सुअली असौल्ट करने की कोशिश की और विरोध करने पर शराब की बोतल से हमला किया. आरोपी महिला को यूपी गेट के पास चलती कार से धक्का देकर फरार हो गया था. पुलिस ने आरोपी को मेरठ से अरेस्ट कर लिया. आरोपी की पहचान राम कौशिश (22) के रूप में हुई. आरोपी जमरुदपुर में रहता है, वहां बेकरी शौप चलाता है. आरोपी शादीशुदा है, उसके दो बच्चे भी हैं.

डीसीपी चिन्मय बिश्वाल ने बताया कि शुक्रवार देर रात 1 बजे के करीब सनालाइट कौलोनी पुलिस को सूचना मिली थी कि वैशाली गाजियाबाद स्थित मैक्स हौस्पिटल में एक महिला को जख्मी हालत में भर्ती कराया गया. महिला को शाम 4 बजे के करीब सराय काले खां बस अड्डे के पास से किडनैप किया गया था. आरोपी ने कार के अंदर महिला का शोषण करने की कोशिश की. विरोध करने पर महिला पर शराब की बोतल से हमला किया, उसके साथ मारपीट भी की. फिर महिला को चलती कार से सड़क पर धक्का देकर फरार हो गया.

सूचना मिलते ही पुलिस हौस्पिटल पहुंच गई. पुलिस ने महिला के बयान पर किडनैपिंग, छेड़छाड़ और रौबरी की धाराओं में मामला दर्ज कर लिया. आरोपी को अरेस्ट करने के लिए सनलाइट कौलोनी थाने के एसएचओ हनुमंत सिंह और एसआई आरएस डागर सहित अन्य पुलिसवालों की टीम बनाई गई. टीम ने आरोपी की तलाश में दिल्ली के अलावा नोएडा और गाजियाबाद में दबिश दी, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला. तब पुलिस को पता चला कि आरोपी मेरठ में छिपा हुआ है.

एक सूचना के आधार पर मेरठ में दबिश देकर आरोपी को दबोच लिया. उसके पास से वारदात में इस्तेमाल स्विफ्ट डिजायर कार और पीड़ित महिला से लूटा गया मोबाइल बरामद कर लिया. पूछताछ में आरोपी ने बताया कि वह अक्सर यहां पार्क में घूमने के लिए आता रहता है. 23 नवंबर को उसकी नजर इस महिला पर पड़ी. उसने महिला के पास जाकर कहा कि वह उसकी मां को जानता है.

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