वायरसी मार के शिकार कुम्हार

लेखक- डा. सत्यवान सौरभ

नोवल कोरोना वायरस  के चलते लागू किए गए लौकडाउन ने  मिट्‌टी बरतन बनाने वाले कारीगरों के सपनों को भी चकनाचूर कर दिया है. इन कारीगरों ने मिट्टी के बरतन बना कर रखे लेकिन बिक्री न होने की वजह से इन के लिए खाने के लाले पड़ गए हैं. लौकडाउन के चलते न तो चाक (बरतन बनाने का उपकरण) चल रहा है और न ही दुकानें खुल रही हैं. घर व चाक पर बिक्री के लिए पड़े मिट्टी के बरतनों की इन्हें रखवाली अलग करनी पड़ रही है. देशभर में प्रजापति समाज के लोग मिट्टी के बरतन बनाने का काम करते हैं.

लौकडाउन ने इन की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है. इन के बरतनों की बिक्री नहीं हो रही है. महीनों की मेहनत घर के बाहर पड़ी है. इन हालात में परिवार का गुजारा करना मुश्किल हो गया है. गरमी के सीजन को देखते हुए बरतन बनाने वालों ने बड़ी संख्या में मटके बनाए. डिजाइनर टोंटी लगे मटकों के साथ छोटी मटकी और गुल्लक, गमले भी तैयार किए. दरअसल,  आज भी ऐसे लोग हैं जो मटके के पानी को प्राथमिकता देते हैं. मगर इस बार इन को घाटा हो गया. इन का परिवार कैसे गुजरबसर करेगा. कोई भी मटके खरीदने नहीं आ रहा है. धंधे से जुड़े लोगों ने ठेले पर रख कर मटके बेचने भी बंद कर दिए हैं.

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मिट्टी के बरतनों के जरिए अपनी आजीविका चलने वाले कुशल श्रमिकों के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहल से देशभर के प्रजापति समाज के लोगों के लिए एक आस जगी है, जिस के अनुसार राज्य के हर प्रभाग में एक माइक्रो माटी कला कौमन फैसिलिटी सेंटर (सीएफसी) का गठन किया जाएगा.  सीएफसी की लागत 12.5 लाख रुपए होगी, जिस में सरकार का योगदान 10 लाख रुपए का होगा. शेष राशि समाज या संबंधित संस्था को वहन करनी होगी. भूमि, यदि संस्था या समाज के पास उपलब्ध नहीं है, तो ग्रामसभा द्वारा प्रदान की जाएगी. हर केंद्र में गैसचालित भट्टियां, पगमिल, बिजली के बरतनों की चक और पृथ्वी में मिट्टी को संसाधित करने के लिए अन्य उपकरण होंगे. श्रमिकों को एक छत के नीचे अपने उत्पादों को विकसित करने के लिए सभी सुविधाएं उपलब्ध होंगी. इन केंद्रों के माध्यम से अधिक से अधिक लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया जाएगा.

खादी और ग्रामोद्योग विभाग का यह बहुत अच्छा प्रयास है. यदि उत्पाद गुणवत्ता के हैं और उन की कीमतें उचित हैं, तो बाजार में उन के लिए अच्छी मांग होगी. इस से व्यापार से जुड़े लोगों के लिए स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर बढ़ेंगे. इस के अलावा, तालाबों से मिट्टी उठाने से बाद की जलसंग्रहण क्षमता बढ़ जाएगी. इन उत्पादों को पौलिथीन का विकल्प बनने से पौलिथीन संदूषण को भी रोका जा सकेगा. कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए किए गए लौकडाउन से लगभग हर क्षेत्र में कामकाज बिलकुल ठप पड़ा है.

केंद्र सरकार छोटे, मझोले और कुटीर उद्योगों के लिए स्पेशल पैकेज की घोषणा कर के उन को जीवित रखने का प्रयास भले कर रही है. लेकिन, अस्पष्टता और सही दिशानिर्देश के अभाव में बहुत राहत मिलती नहीं दिख रही है. देश में बहुत से ऐसे वर्ग हैं जिन पुश्तैनी धंधा रहा है और कई जातियां ऐसी भी है जो विशेष तरह का काम कर के अपना जीवनयापन करती हैं, जैसे माली, लोहार, कु्म्हार, दूध बेचने वाले ग्वाला, दर्जी, बढ़ई, नाई, पत्तलदोने का काम कर के जीवनयापन करने वाले मुशहर जाति के लोग. ये ऐसे लोग हैं जिन का कामकाज लौकडाउन से सब से अधिक प्रभावित हुआ है. सरकार ने बड़े व मझोले कारोबारियों के लिए तो काफी कुछ दे दिया है, लेकिन उपर्युक्त लोगों के लिए सरकार की तरफ से कोई विशेष राहत का ऐलान नहीं किया गया है.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र ने मोदी देश को संबोधित करते हुए आत्मनिर्भर भारत बनाने पर जो दिया. उन्होंने देश को आगे बढ़ाने के लिए एमएसएमई को फौरीतौर पर राहत देने की घोषणा की. लेकिन, बजट का निर्धारण करना वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पर छोड़ दिया. साथ ही, उन्होंने लोकल के प्रति वोकल होने की बात जरूर की लेकिन लौकडाउन से प्रभावित होने वाले ऐसे लोगों के बारे में जिक्र नहीं किया जिन की रोजीरोटी खुद के कारोबार और हुनर पर निर्भर है. लौकडाउन से उन के ऊपर गहरा असर हुआ है. ऐसे लोगों के पास बचत भी बहुत अधिक नहीं होती है कि वे अपनी जमापूंजी खर्च कर के घरखर्च चला सकें. ऐसे लोग हर रोज कमाते हैं, जिस से उन के खाने का इंतजाम हो पाता है. अब लौकडाउन हो जाने से उन का कामकाज बिलकुल बंद हो गया है. ऐसे में सरकार को इन लोगों के लिए कुछ न कुछ अलग से उपाय करना चाहिए, ताकि उन का जीवन भी सुचारु रूप से चल सके.

आज जब भारत के गांव बदलाव के दौर से गुजर रहे हैं तो गांवों के परंपरागत व्यवसायों को भी नया रूप दिए जाने की जरूरत है. गुजरात के राजकोट निवासी मनसुख भाई ने कुछ ऐसा ही नया करने का बीड़ा उठाया है. पेशे से कुम्हार मनसुख ने अपने हुनर और इनोवेटिव आइडिया का इस्तेमाल कर के न सिर्फ अच्छा बिजनेस स्थापित किया, बल्कि नेशनल अवार्ड भी हासिल किया. आज उन के नाम और काम की तारीफ भारत ही नहीं, दुनिया में हो रही है. उन के मिट्टी के बरतन विदेशों में भी बिक रहे हैं. पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने उन्हें ‘ग्रामीण भारत का सच्चा वैज्ञानिक’ कहा था. एक अन्य पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने उन्हें सम्मानित करते हुए कहा था कि ग्रामीण भारत के विकास के लिए उन के जैसे साहसी और नवप्रयोगी लोगों की जरूरत है. आज वे उद्यमियों के लिए एक मिसाल हैं.

कुछ लोग गांवों के परंपरागत व्यवसाय के खत्म होने की बात करते हैं, जो गलत है. अभी भी हम ग्रामीण व्यवसाय को जिंदा रख सकते हैं, बस, उस में थोड़ी सी तबदीली करने की जरूरत है. भारत के गांव अब नई तकनीक और नई सुविधाओं से लैस हो गए हैं. भारत के गांव बदल रहे हैं, इसलिए अपने कारोबार में थोड़ा सा बदलाव करने की जरूरत है. नई सोच और नए प्रयोग के जरिए ग्रामीण कारोबार को बरकरार रखा जा सकता है और उस के जरिए अपनी जीविका चलाई जा सकती है.

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जब हम गांव में कोई कारोबार शुरू करते हैं, उस से सिर्फ हमें ही फायदा नहीं मिलता, बल्कि हमारी सामाजिक जिम्मेदारी भी पूरी होती है. हम आत्मनिर्भर बनते हैं और तमाम बेरोजगारों को रोजगार देते हैं. हर व्यक्ति की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह अपने साथ ही दूसरे लोगों को भी प्रोत्साहित करे. उन्हें काम करने के प्रति जागरूक करे. इसी से ग्रामीण भारत के सशक्तीकरण का सपना पूरा होगा.

भोजपुरी अभिनेता आनंद ओझा रियल हीरो के रूप में लोगों के लिए बनें मसीहा

Lockdown के चलते देश भर में डौक्टर्स और पुलिस की जिम्मेदारी बढ़ गई है. यह लोग कोरोना प्रकोप के चलते न ही पूरी नींद ले पा रहें हैं और न ही इन्हें भरपेट पेट भोजन मिल रहा है. फिर भी देश के असली हीरो के रूप में यह लोग डटे हुए है.

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इसी में एक नाम आनंद ओझा (Anand Ojha) का भी है. वह भोजपुरी के सफलतम अभिनेताओं में गिने जाते हैं. उन्होंने कई हिट फ़िल्में भी दी हैं. आनंद ओझा सिर्फ फिल्मों के हीरो ही नहीं हैं बल्कि वह रियल हीरो है. इन दिनों वह आगरा जोन में उत्तर प्रदेश सरकार में ट्रैफिक इन्सपेक्टर के रूप में सेवा दे रहें हैं. आनंद ओझा एक पुलिस अधिकारी के रूप में दिन रात लॉक डाउन में सेवा देकर यह साबित कर दिया है की वह रियल लाइफ के भी हीरो हैं.

एक ट्रैफिक इंस्पेक्टर के रूप में वह लोगों की मदद मे दिन-रात लगे हैं. वह आगरा में फंसे लोगों के लिए दिन रात एक कर ना केवल कानून व्यवस्था बनाए रखने में अपनी भूमिका  निभा रहें है. बल्कि वह चप्पे- चप्पे पर अपनी नजर बनाये हुए हैं, ताकी कोई बेसहारा खाली पेट न सो पाये. इसके पहले भी आनंद ओझा नें कोरोना के चलते पलायन करने वालों के लिए आगरा के अलग-अलग हिस्सों में में खुद जाकर राहत सामग्री उपलब्ध कराया. इसके साथ ही उन्होंने उन पलायन करने वालों को सही सलामत उनके घरो तक भेजने मे में मदद भी की.

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अभिनेता और इन्सपेक्टर आनंद ओझा नें बताया की जो भी व्यक्ति आगरा के अंदर फंसा है उसके तत्काल रहने और खाने पीने की व्यवस्था की गई. और जो भी लोग दूसरे राज्यो से पलायन कर आगरा या आगरा के सीमा क्षेत्र मे फंसे है उन्हे घबराने की जरूरत नहीं है. आगरा पुलिस उनकी सेवा के लिए हर वक्त मदद के लिए तत्पर हैं, बस वह अपना धैर्य बनाये रखें.

आनंद ओझा जल्द ही काजल रघवानी के साथ फिल्म  “रण” में नजर आयेंगे. यह फिल्म से जुड़े लोगों का कहना है की यह फिल्म भोजपुरी सिनेमा की बड़ी बजट वाली फिल्मों में शुमार है. इसके अलावा इस साल उनकी दर्जन भरके करीब फ़िल्में रिलीज होने वाली है. आनंद ओझा नें अपनी फिल्म “पुलिसगीरी” में अपने रोल की बदौलत दर्शकों पर अलग ही छाप छोड़ी थी. इस फिल्म में आनंद ओझा के साथ ही काजल राघवानी, मनोज सिंह टाइगर, संजय पाण्डेय, सीपी भट्ट ,रितु पाण्डेय, ने भी अपनी एक्टिंग का जलवा बिखेरा था.

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गहरी पैठ

अपने घर को अपनों ने गिराया है. इस देश की आज जो हालत कोरोना की वजह से हो रही है उस के लिए हमारी सरकार ही नहीं, वे लोग भी जिम्मेदार हैं जिन्होंने धर्म और जाति को देश की पहली जरूरत समझा और फैसले उसी पर लेने के लिए उकसाया. आज अगर कोरोना के कारण पूरे देश में बेकारी फैल रही है तो इस की जड़ों में ?वे फैसले हैं जो सरकार ने नोटबंदी और जीएसटी के लिए ही नहीं, बहुत तरीके से छोटेछोटे फैसले भी लिए जिन में धर्म के हुक्म सब से ऊपर थे.

लोगों ने 2014 में अगर सत्ता पलटी तो यह सोच कर कि जो हिंदू की बात करेगा वही राज करेगा तो ही देश सोने की चिडि़या बनेगा. यह देश सोने की चिडि़या केवल तब था जब देश पर कट्टरपंथी हिंदू राज ही नहीं कर रहे थे. 1947 से पहले देश में अंगरेजों का राज था. उस से पहले मुगलों का था. उस से पहले शकों, हूणों, बौद्धों का राज था. हां, घरों पर राज हिंदू सोचसमझ का था और वही देश को आगे बढ़ने से रोकता रहा. 2014 में सोचा गया था कि हिंदू राज मनमाफिक होगा, पर इस ने न केवल सारे मुसलमानों को कठघरे में खड़ा कर दिया, दलित, पिछड़े, औरतें चाहे सवर्णों की क्यों न हों, कमजोर कर दिए गए.

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कोरोना ने तो न सिर्फ जख्मों पर लात मारी है, उन को इस तरह खोल दिया है कि आज सारा देश लहूलुहान है. करीब 6 करोड़ मजदूर शहरों से गांवों की ओर जाने लगे हैं. जो लोग 24 मार्च, 2020 को चल दिए थे उन की छठी इंद्री पहले जग गई थी. उन्होंने देख लिया था कि जिस हिंदू कहर से बचने के लिए वे गांवों से भागे थे वह शहरों में पहुंच गया है. महाराष्ट्र में जो मराठी मानुष का नाम ले कर शिव सेना बिहारियों को बाहर खदेड़ना चाहती थी, वह मराठी लोगों के ऊंचे होने के जिद की वजह से था.

आजादी से पहले भी, पर आजादी के बाद, ज्यादा ऊंची जातियों ने शहरों में डेरे जमाने शुरू किए और अपनी बस्तियां अलग बनानी शुरू कीं. गांवों से तब तक दलितों को निकलने ही नहीं दिया था. काफी राजाओं ने तो दलितों पर इस तरह के टैक्स लगा रखे थे कि एक भी जना भाग जाए तो बाकी सब पर जुर्माना लग जाता था. अब ये लोग गांवों से आजादी पाने के लिए शहरों में आए तो शहरों में मौजूद ऊंची जातियों के लोगों ने इन्हें न रहने की जगह दी, न पानी, न पखाने का इंतजाम किया. ये लोग नालों के पास रहे, पहाडि़यों में रहे, बंजर जमीन पर रहे.

1947 से 2014 तक राजनीति में इन की धमक थी क्योंकि ये पार्टियों के वोट बैंक थे. फिर धार्मिक सोच वालों ने मीडिया, सोशल मीडिया, अखबारों, पुलिस पर कब्जा कर लिया. इन्हीं दलितों, पिछड़ों और इन की औरतों को धार्मिक रंग में रंग दिया और इन्हें लगने लगा कि भगवान के सहारे इन का भाग्य बदलेगा. मुसलमानों को डरा दिया गया और हिंदू दलितों को बहका दिया गया कि उन की नौकरियां उन्हें मिल जाएंगी.

पर हमेशा की तरह सरकारी फैसले गलत हुए. 1947 के बाद भारी टैक्स लगा कर सरकारी कारखाने लगाए गए जिन में पनाह मिली निकम्मे ऊंची जातियों के अफसरों, क्लर्कों, मजदूरों को. वे अमीर होने लगे. सरकारी कारखाने चलाने के लिए टैक्स लगे जो गांवों में भूखे किसानों और उन के मजदूरों के पेट काट कर भरे गए. मरते क्या न करते वे शहरों को भागे.

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शहरों में उन्हें बस जीनेभर लायक पैसे मिले. वे कभी उस तरह अमीर नहीं हो पाए जैसे चीन से गए मजदूर अमेरिका में हुए. जाति का चंगुल ऐसा था कि वह शहरों तक गलीगली में पहुंच गया. गरीबों की झुग्गी बस्तियों में शराब, जुए, बीमारी की वजह से गरीबों की जो थोड़ी बचत थी, लूट ली गई. महाजन शहरों में भी पहुंच गए.

कोरोना ने तो बस अहसास दिलाया है कि शहर उन के काम का नहीं. अगर गांवों में ठाकुरों, उन के कारिंदों की लाठियां थीं तो शहरों में माफियाओं और पुलिस का कहर पनपने लगा. जब नौकरी भी न हो, घर भी न हो, इज्जत भी न हो, आंधीतूफान से बचाव भी न हो तो शहर में रह कर क्या करेंगे?

कोरोना ने तो यही अहसास दिलाया है कि धर्म का ओढ़ना उन्हें इस बीमारी से नहीं बचाएगा क्योंकि वे अमीर जो रातदिन पूजापाठ में लगे रहते हैं, कोरोना से नहीं बच पाए हैं. कोरोना की वजह से धर्म की दुकानें बंद हो गई हैं. चाहे छोटामोटा धर्म का व्यापार घरों में चलता रहे. कोरोना की वजह से ऊंची जातियों की धौंस खत्म हो गई है. शायद इतिहास में पहली बार ऊंची जातियों के लोग निचलों की गुलामी को नकारने को मजबूर हुए हैं कि कहीं वे एक अमीर से दूसरे अमीर तक कोरोना वायरस न ले जाएं. कोरोना इन गरीबों को छू रहा है पर ये उसे ऐसे ही ले जा रहे हैं जैसे कांवडि़ए गंगा जल ले जाते हैं जिसे छूने की मनाही है. कोरोना अमीरों में ही ज्यादा फैल रहा है.

कोरोना ने देश की निचलीपिछड़ी जातियों और ऊंची जातियों की औरतों के काम अब ऊंची जाति वालों को खुद करने को मजबूर किया है. अगर देश में हिंदूहिंदू या हिंदूमुसलिम या आरक्षण खत्म करो, एससीएसटी ऐक्ट खत्म करो की आवाजें जोरजोर से नहीं उठ रही होतीं तो लाखोंकरोड़ों मजदूर अपने गांवों की ओर न भागते. इस शोर ने उन्हें समझा दिया था कि वे शहरों में भी अब बचे हुए नहीं हैं. पुलिस डंडों की मार ये ही लोग खाते रहते हैं. 1,500 किलोमीटर चल रहे इन लोगों को ऊंची जातियों के आदेशों पर किस तरह पुलिस ने रास्ते में पीटा है यह साफ दिखाता है कि देश में अभी ऊंची जातियों का दबदबा कम नहीं हुआ है. गिनती में चाहें ऊंची जातियां कम हों पर उन के पास पैसा है, अक्ल है, लाठियां हैं, बंदूकें हैं, जेलें हैं. जब अंगरेज भारत में थे वे कभी भी 20,000 से ज्यादा गोरी फौज नहीं रख पाए थे, उन्हें जरूरत ही नहीं थी. उन के 1,500 आदमी हिंदुस्तान के 50,000 आदमियों पर भारी पड़ते थे.

देश के दलितों, पिछड़ों, गरीब मजदूरों ने कैसे एकसाथ फैसला कर लिया कि उन की जान तो अब गांवों में बच सकती है, यह अजूबा है. यह असल में एक अच्छी बात है. यह पूरे देश को नया पाठ पढ़ा सकता है. अब शहरों में महंगे मजदूर मिलेंगे तो उन्हें ढंग से ट्रेनिंग दी जाएगी. गांवों में जो शहरी काम करते मजदूर पहुंचे हैं, वे जम कर मेहनत से काम भी करेंगे और अपने को लूटे जाने से भी बचा सकेंगे. गांवों में ऊंची दबंग जातियां तो अब न के बराबर बची हैं. वे काम करेंगी तो इन के साथ.

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कोरोना वायरस दोस्त साबित हो सकता है. शर्त है कि हम धर्म की दुकानों को बंद ही रहने दें. कारखाने खुलें, लूट की पेटियां नहीं.

जानें इस Lockdown में क्या कर रहें हैं भोजपुरी फिल्मों के स्टार विलेन देव सिंह

भोजपुरी फिल्मों में अपनें दमदार अभिनय की बदौलत निगेटिव किरदार निभा कर चर्चित स्टार अभिनेता देव सिंह (Dev Singh) ने अलग ही छवि बनाई है. इस साल उनकी कई फ़िल्में प्रदर्शित होनें वाली हैं और कई फिल्मों का शेड्यूल भी लगा हुआ था. लेकिन कोरोना के चलते लगाये गये Lockdown के चलते चल रही शूटिंग बीच में ही कैंसिल करनी पड़ी तो फिल्मों के शूटिंग के लिए पहले से तय तारीखें भी आगे बढ़ानी पड़ी. इस दशा में अभिनेता देव सिंह भी दूसरे एक्टर्स की तरह घर में अपने पत्नी और बच्चे के बीच इज्वाय कर रहें हैं.

इस Lockdown के बीच उपजी बोरियत को भगाने के लिए देव सिंह बहुत ही फनी तरीकें अपना रहें हैं जिससे जुडी तस्वीरें और वीडियोज वह अपने सोशल मीडिया एकाउंट पर शेयर करते रहतें हैं.

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Lockdown के बीच हाल ही में उन्होंने अपने इन्स्टाग्राम पर एक वीडियो शेयर किया है जिसमें वह अपने एक साल के बच्चे की तेल मालिश कर रहें हैं. इन्स्टाग्राम पर शेयर इस वीडियो के कैप्सन में उन्होंने लिखा है “अपना लॉक डाउन चालू है,,आंनद है इसमें. सोनम जी ने चोरी से वीडीयो बना दिया”. सोनम उनके पत्नीं का नाम हैं.

 

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तंदूरी चाय ☕ गुड़ वाली, ख़ुद के द्वारा निर्मित

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वहीं इन्स्टाग्राम पर ही शेयर किये गए एक दूसरे वीडियो में वह किचन में कुछ बनाते हुए नजर आ रहें अब क्या बना रहें हैं इसके बारे में उन्होंने खुद ही वीडियो के कैप्सन लिखा है “तंदूरी चाय गुड़ वाली, ख़ुद के द्वारा निर्मित” वैसे इस वीडियो को देख कर भी आप जान जायेंगे की देव क्या कर रहें है क्यों की इस वीडियो मेंवह छलनी से कप में चाय छानते हुए नजर आ रहें हैं.

 

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देवांश बाबू अपना सहयोग करते हुए।।

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शेयर किये गए एक वीडियो में अपने बेटे देवांश को पीठ पर बैठा कर वर्कआउट करते नजर आ रहें है तो एक दूसरे वीडियो में वह बेटे को पैरों पर बैठा कर वर्कआउट कर रहें हैं. इस वर्कआउट वीडियो के कैप्शन में उन्होंने लिखा है “लॉकडाउन का मज़ा लेते हुए,परिवार के साथ टाइम स्पेंड कर रहा हूं. फोन खराब होने की वजह से दूर था, अब फोन आ गया, लेकिन बिना फोन के ज्यादा सुकून था. वक़्त है एन्जॉय करिए परिवार के साथ, सतर्क रहिये सुरक्षित रहिये.”एक वीडियो में उन्होंने नें किसी का चैलेन्ज भी एक्सेप्ट किया है जिसे भी उन्होंने शेयर किया है.

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वह अपने पोस्ट में लोगों को कोरोना से बचाव को लेकर जागरूक करनें वाले पोस्ट भी कर रहें हैं. जिसके जरिये वह लोगों से वह सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखनें की अपील करते नजर आ रहें हैं.

 

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Stay home ,stay safe🙏

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देव सिंह नें भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री मे कई यादगार रोल किये हैं जिसमें मैं सेहरा बांध के आऊंगा, भाई जी, बजरंग, इंडियन मदर, मोकामा जीरो किलोमीटर, जिगर, लागी नहीं छूटे रामा, रब्बा इश्क न होवे, डमरू, पवन राजा , राजा जानी, संघर्ष,  निरहुआ चलल ससुराल 2, पत्थर के सनम, राज तिलक, लल्लू की लैला, स्पेशल इनकाउंटर, कुली नंबर, जिद्दी, के रोल को दर्शकों ने खूब पसंद किया था. इन दिनों वह भोजपुरी इंडस्ट्री के सबसे व्यस्त अभिनेता हैं वह हर साल दर्जन भर से अधिक फ़िल्में करते हैं. यही कारण विलेन के रूप में भोजपुरी बेल्ट में दर्शकों के बीच वह काफी पॉपुलर हैं.

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अमिताभ बच्चन नें पढ़ी पिता की कविताएं, तो आंखों में छलके आंसू

सदी के महानायक अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) को लेकर ट्रोलर्स ने कोरोना त्रासदी में फंसे लोगों की सहायता के लिए पीएम केयर फंड में सहयोग न करने के चलते तमाम तरीके से उनका मजाक बनाया था और उनकी बुराइयां भी की. लेकिन अमिताभ बच्चन ने हजारों दिहाड़ी मजदूरों को सीधे सहयोग किये जाने की बात कर उन सभी लोगों की बोलती बंद कर दी जो उन्हें ट्रोल कर रहे थे. उन्होंने औल इंडिया फिल्म एंप्लॉइज कन्फेडरेशन से जुड़े एक लाख दिहाड़ी मजदूरों के परिवार की मदद के लिए मासिक राशन मुहैया कराने का ऐलान किया है. अमिताभ बच्चन के कदम से अब चारो ओर उनकी सराहना हो रही है.

इन सबके बीच हर रोज अमिताभ बच्चन के तरह से किसी न किसी वीडियो और पोस्ट के जरिये लोगों में कोरोना से बचाव और निराशा से उबरने के लिए पोस्ट और वीडियो जारी किये जा रहें हैं. इन सभी के बीच अमिताभ बच्चन नें अपने ट्विटर, इन्स्टाग्राम, और फेसबुक एकाउंट पर अपने पिता और मशहूर कवि हरिवंश राय बच्चन के कविताओं की कुछ पंक्तियों को अपने आवाज में रिकार्ड कर शेयर किया है.

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अमिताभ बच्चन नें अपने पिता के कविता की जिन पंक्तियों को अपनी आवाज में रिकार्ड किया है. वह “है अंधेरी रात पर दीपक जलाना कब मना है.” उन्होंने छः पंक्तियों वाली इस कविता के तीसरे और अंतिम छठी  पंक्ति को रिकार्ड किया है. वीडियो के बैकग्राउंड में उनकी आवाज में रिकार्ड की गई इस इस कविता की पंक्तियां गूंज रहीं हैं. और उनके हाथ में उनके पिता के कविताओं की पुस्तक है जिसे वह पलट कर उसी कविता पर आ जातें हैं. यह पल बहुत ही भावुक करने वाला हैं कभी उनके चहेरे पर मुस्कराहट आ रही है तो कभी आंखों में आँसू. इस वीडियो को देख कर लगता है की अमिताभ बच्चन अपने पिता की यादों में खो से गयें हैं.

अमिताभ बच्चन नें इसी से जुडा वीडियो अपने ट्विटर पर अपलोड कर लिखा है “बाबूजी और उनकी आशा भारी कविता को याद करता हूँ. बाबूजी कवि सम्मेलनों में  ऐसे ही गा के सुनाया करते थे”. (T 3495 – I reminisce my Father and his poem, which expresses hope and strength. The singing is exactly how Babu ji recited it at Kavi Sammelans, which I attended with him).

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उन्होंने अपने इन्स्टाग्राम पोस्ट में लिखा है “इन अकेली घड़ियों में, मैं बाबूजी और उनकी कविता को याद करता हूँ, जो आशा भरी हैं, शक्ति सम्पूर्ण गाने की धुन बिलकुल वैसी है जैसे बाबूजी कवि सम्मेलनों में गा के सुनाया करते थे. मैं उनके साथ होता था” (In these times of isolation I reminisce my Father and his poem , which expresses hope and strength. The singing is exactly how Babu ji recited and sang it at Kavi Sammelans, which I attended with him).

 

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In these times of isolation I reminisce my Father and his poem , which expresses hope and strength. The singing is exactly how Babu ji recited and sang it at Kavi Sammelans, which I attended with him .. इन अकेली घड़ियों में, मैं बाबूजी और उनकी कविता को याद करता हूँ, जो आशा भरी हैं, शक्ति सम्पूर्ण । गाने की धुन बिलकुल वैसी है जैसे बाबूजी कवि सम्मेलनों में गा के सुनाया करते थे । मैं उनके साथ होता था ।

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अमिताभ बच्चन ने इस कविता को उस समय अपलोड किया है जब कोरोना के चलते ओर निराशा है. ऐसे में इस कविता की यह पंक्तियाँ आशा की किरण पैदा करती है. इस कविता को रिकार्ड करने में उनकी बेटी श्वेता और नातिन का बड़ा हाथ है. जब की जिस वीडियो को अपलोड किया गया है उसे अमिताभ बच्चन ने अपने घर में ही रिकार्ड कराया है जिसे उनके ही फोन से अभिषेक बच्चन ने रिकार्ड किया है. उन्होंने अपने इस वीडियो को फेसबुक एकाउंट पर भी शेयर किया है.

हरिवंश राय बच्चन की वह पंक्तियां जिसे उन्होंने नें गाकर सुनाया है

क्या घड़ी थी, एक भी चिंता नहीं थी पास आई
कालिमा तो दूर, छाया भी पलक पर थी न छाई
आँख से मस्ती झपकती, बात से मस्ती टपकती
थी हँसी ऐसी जिसे सुन बादलों ने शर्म खाई
वह गई तो ले गई उल्लास के आधार, माना
पर अथिरता पर समय की मुस्कुराना कब मना है
है अंधेरी रात पर दीपक जलाना कब मना है.

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क्या हवाएं थी कि उजड़ा प्यार का वह आशियाना
कुछ न आया काम तेरे शोर करना, गुल मचाना
नाश की उन शक्तियों के साथ चलता ज़ोर किसका
किंतु ऐ निर्माण के प्रतिनिधि, तुझे होगा बताना
जो बसे हैं वे उजड़ते हैं प्रकृति के जड़ नियम से
पर किसी उजड़े हुए को फिर बसाना कब मना है
है अंधेरी रात पर दीपक जलाना कब मना है.

बंदी के कगार पर मझोले और छोटे कारोबारी

लौकडाउन की वजह से डूबते कारोबारी जगत को अब सरकार से ही राहत की उम्मीद है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके अखिलेश यादव ने कहा कि सरकार को जरूरी एहतियात के साथ कारोबार जगत को पटरी पर लाने के लिए सतर्कता बरतते हुए उपाय करने चाहिए और कारोबारियों की मदद करनी चाहिए.

देश में कारोबार और कारोबारियों की हालत बहुत खराब है. नोटबंदी और जीएसटी की गलत नीतियों से कारोबार जगत उबर भी नहीं पाया था कि कोरोना और लौकडाउन से कारोबार और भी ज्यादा टूट गया और अब यह बंदी के कगार पर पहुंच गया है.

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लखनऊ की युवा कारोबारी रोली सक्सेना ने 3 साल पहले गारमैंट्स का अपना कारोबार शुरू किया था. अपनी छोटी सी दुकान को बड़े शोरूम में बदल दिया था. 40,000 रुपए के किराए पर एक जगह ले कर दुकान शुरू की थी. अचानक नोटबंदी और जीएसटी की वजह से कारोबार में काफी उथलपुथल आ गई.

वे किसी तरह से इन हालात को संभाल रही थीं कि इसी बीच जब कोरोना और लौकडाउन का समय आया, तो कारोबार पूरी तरह बंद हो गया. दुकान के मालिक ने 40,000 रुपए किराए की मांग की. रोली सक्सेना ने किराया देने का तो तय कर लिया, पर यह सोच लिया कि अब वे यह कारोबार नहीं करेंगी.

रोली सक्सेना कहती हैं, ‘‘सरकार कारोबारियों के हालात समझती है. उसे इन की मदद का कोई ऐक्शन प्लान तैयार करना चाहिए, वरना हमारे जैसे न जाने कितने कारोबारी अपना कारोबार बंद कर सड़क पर आ जाएंगे.’’

राहत पैकेज दे सरकार

अखिल भारतीय उद्योग व्यापार मंडल के राष्ट्रीय अध्यक्ष संदीप बंसल ने कहा है, ‘‘देश और प्रदेश की सरकार को उन कारोबारियों की चिंता करनी चाहिए, जो मध्यम वर्ग के हैं और जरूरी सेवाओं का कारोबार नहीं करते हैं. ये कारोबारी ऐसी किसी भी सरकारी राहत योजना में भी नहीं आते, जिस से उन को सरकार की मदद मिल सके.

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‘‘होली के समय से ही इन सब का कारोबार नहीं चल रहा है. ये अपने खर्चे और मुलाजिमों की तनख्वाह का इंतजाम तभी कर सकते हैं, जब इन की दुकानें खुलेंगी. जब तक इन कारोबारियों की दुकानें नहीं खुल रही हैं, तब तक ये खुद भुखमरी के कगार पर हैं.

‘‘जो बड़े कारोबारी हैं और सक्षम हैं, वे प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री राहत कोष में पैसा दे रहे हैं. तमाम कारोबारी जनता को खाना खिलाने और दूसरी मदद का काम भी कर रहे हैं, इस के बाद भी देश में करोड़ों ऐसे कारोबारी हैं, जो रोज कमाने और खाने वाले हैं.

‘‘सरकार के पास ऐसे कारोबार और उस को करने वाले लोगों के लिए कोई योजना नहीं है. ये कारोबारी अपने कारोबार के बंद होने से परेशान हैं.’’

केंद्र सरकार ने लाखों करोड़ का जो राहत पैकेज दिया है, वह सही हाथों में पहुंचने के बाद ही कारोबारी जगत को उठाने में मदद मिलेगी.

शव-वाहन बना एम्बुलेंस

  • शव-वाहन बना जीवन रक्षक एम्बुलेंस..
  • एम्बुलेंस न मिलने पर शव-वाहन में लाये घायलों को..
  • शव वाहन चालक ने बचाई घायल वृद्धों की जान..
  • सड़क पर पड़े कर रहे थे एम्बुलेंस का इंतज़ार..
  • समय रहते पाहुंचे अस्पताल तो बच गई जान..

कहते हैं कि मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है और फिर अगर आपका जज्बा आपकी सोच पॉजिटिव हो तो मृत्यु को भी टाला जा सकता है. और बन सकता है मौत का वाहन भी जीवनरक्षक.

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जी हां ऐसा ही कुछ हुआ है मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले में जहां एम्बुलेंस ने नहीं शव-वाहन ने लोगों की जानें बचाईं हैं. हमेशा लाशों को ढोने वाले शव-वाहन ने घायलों को समय पर अस्पताल पहुंचाकर उन्हें मौत में मुँह से निकालकर उनकी जान बचाईं हैं.

घायल वृद्ध लक्ष्मणदास और रमेश ने बताया..

मामला छतरपुर शहर सिटी कोतवाली थाना क्षेत्र के राजनगर-खजुराहो रोड का है जहां तेज़ रफ़्तार 2 बाईक सवार आपने-सामने भिड़ गये. जिससे उनमें बैठे 2 वृद्ध गंभीर घायल हो गये जो अचेत अवस्था में सड़क पर पड़े थे उनसे काफी खून बह रहा था. जिन्हें अस्पताल ले जाने के लिए उनके साथी यहां-वहां लोगों से मदद मांग आस्पताल ले जाने की गुहार लगा रहे थे. और लोग भी एम्बुलेंस बुलाने की फिराक में थे तभी राजनगर क्षत्र के प्रतापपुरा गांव में मृतक के शव छोड़कर आ रहा शव-वाहन वहां से गुजरा और उसका चालक गोविंद घायलों को देख रूक गया. और खुद ही घायलों की मदद की बात कही, कि आप लोग मेरे शव-वाहन में इन घायलों को अस्पताल ले चलो क्यों कि एम्बुलेंस को फोन करने और यहां तक आने में 20 से 25 मिनिट लगेंगे, जिससे बेहतर है कि हमारे शव-वाहन में ही इन्हें ले चलो हम 10 से 15 मिनिट में जिला अस्पताल पहुंच जाएंगे और इनका इलाज हो जायेगा और जान बच जायेगी. रूक गये तो बहुत देर हो जायेगी जिससे कुछ भी अनहोनी हो सकती है.

मौजूद लोगों ने ऐसा ही किया शव-वाहन चालक गोविंद की बात मान तत्काल घायलों को शव वाहन में रखवा दिया. जहां घायलों को समय रहते जिला अस्पताल ले जाया गया. और डॉक्टरों ने उनका समय पर ईलाज कर दिया जिससे उनकी जान बच गई.

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मामला चाहे जो भी हो पर इतना तो तय है कि गर समय रहते शव-वाहन ने घायलों को अस्पताल नहीं पहुंचाया होता और वहीं रुककर एम्बुलेंस का इंतज़ार किया होता तो इनकी जानें भी जा सकतीं थीं.

हमेशा मृत लोगों के शवों को लाने ले जाने वाला “शववाहन” इस बार घायलों को अस्पताल लाकर उनका “जीवनरक्षक” वाहन “एम्बुलेंस” बन गया.  इसके लिये प्रसंशा का पात्र शव वाहन का ड्राईवर है.

अंधविश्वास को बढ़ावा : बिहार में ‘कोरोना माई’ की पूजा

तकरीबन हर साल जूनजुलाई  महीने में बिहार के गांवों में कोई न कोई अफवाह फैलती है. किसी साल कोई ‘लकड़सुंघवा’ बच्चों को लकड़ी सुंघा कर बेहोश कर के चुराता है, तो किसी साल कोई ‘मुंहनोचवा’ छत पर या बाहर सोए लोगों का रात में आ कर मुंह नोच लेता है, तो किसी साल ‘चोटीकटवा’ का हल्ला होता है, जिस में सोई हुई लड़कियों के रात में बाल कट जाते हैं और लड़की बेहोश हो जाती है.

इस साल ‘कोरोना माई’ के बिगड़ने की अफवाह उतरी, बिहार के छपरा, गोपालगंज और सिवान जिले में यह अफवाह फैलाई गई. इस सिलसिले में वीडियो बना कर एंड्रायड मोबाइल फोन से वायरल किया गया. नतीजतन, दलित और निचले तबके की औरतें ‘कोरोना माई’ की पूजा कर रही हैं. लोगों को यकीन है कि इस से बिगड़ी ‘कोरोना माई’ का गुस्सा शांत होगा और इस बीमारी में कमी आएगी.

इस संबंध में एक औरत वीडियो के जरीए एक कहानी बताती है कि एक खेत में 2 औरतें घास काट रही थीं. वहीं बगल में एक गाय घास चर रही थी. कुछ देर के बाद वह गाय एक औरत बन गई. इस के बाद घास काट रही औरतें डर कर भागने लगीं.

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तब गाय से औरत ने कहा, ‘तुम लोग डरो नहीं. हम कोरोना माता हैं. अभी हम नाराज हैं, जिस का ही प्रकोप आजकल कोरोना के रूप में देखा जा रहा है. देश में मेरा प्रचारप्रसार करो और सोमवार और शुक्रवार को मेरी पूजा करो. इस से हम खुश हो जाएंगे. अगर इसे कोई मजाक में लेता है या हंसता है, तो इस का अंजाम बहुत ही बुरा होगा…’

वीडियो में पूजा करने की पूरी विधि भी बताई गई. इस वीडियो के वायरल होते ही कई गांवों में औरतें पूजा करते देखी गईं.

एक तरफ कोरोना के इस संकट से निकलने के लिए पूरी दुनिया में इस का इलाज ढूंढ़ने के लिए वैज्ञानिक रातदिन लगे हुए हैं, वहीं बिहार के गांवों में ‘कोरोना माई’ की पूजा की जा रही है और इस तबके को विश्वास है कि इस से कोरोना जरूर खत्म हो जाएगा. इस दौरान सोशल डिस्टैंसिंग का भी खयाल नहीं रखा जा रहा है. मास्क का भी इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है.

सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है जिस में एक औरत बता रही है कि कोरोना कोई वायरस नहीं, बल्कि देवी का एक रूप है. रजंती देवी, मालती देवी, संगीता देवी जैसी औरतें बताती हैं कि अगर ‘कोरोना माई’ की पूजा की जाएगी तो इन का प्रकोप कम हो जाएगा और देवी खुश हो कर लौट जाएंगी. इस अफवाह ने इतना जोर पकड़ा कि छपरा, गोपालगंज और सिवान से  औरतों की पूजा करने की खबरें आने लगीं. ऐसी औरतें 9 लड्डू, उड़हुल के 9 फूल और 9 लौंग से ‘कोरोना माई’ की पूजा कर रही हैं. औरतें पहले एक फुट गड्ढा खोद रही हैं और उस में 9 जगह सिंदूर लगाया जा रहा है और फिर 9 लड्डू, 9 लौंग और उड़हुल के 9 फूल उस में डाल कर मिट्टी से भर दिया जा रहा है.अगरबती जलाई जा रही है. कहींकहीं तो लड्डू की माँग इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि दुकान में लड्डू तक नहीं मिल रहे हैं.

पहले अफवाह एकदूसरे से बातचीत के जरीए फैलती थी, पर आजकल अफवाहें सोशल मीडिया के जरीए फैलाई जा रही हैं. डिजिटल इंडिया का इस्तेमाल इन अफवाहों को फैलाने में किया जा रहा है. डिजिटल इंडिया पर हम गर्व तो नहीं पर इस तरह की घटनाओं से शर्म ही कर सकते हैं. सरकार और हुक्मरान चाहते तो वीडियो बनाने वाली औरत को गिरफ्तार किया जा सकता था. अफवाह फैलाने के जुर्म में उसे सजा दी जा सकती थी, लेकिन सरकार भी यही चाहती है कि इस देश का निचला तबका इन्हीं चीजों में उलझा रहे, दूसरी समस्याओं की तरफ उस का ध्यान नहीं जाए. पढ़ेलिखे लोग भी इन औरतों को समझा नहीं रहे हैं. इस की वजह से इस अंधविश्वास का रूप और बढ़ता जा रहा है.

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सरकार विज्ञान को बढ़ावा देने का झूठा राग जितना भी अलाप ले, उस का अंतिम हश्र यही होता है कि जनता झाड़फूंक और अंधविश्वास में ही लिप्त हो जाती है. इस कोरोना काल में इन देवीदेवताओं और मंदिरमसजिद से बहुत लोगों का विश्वास जब उठने लगा तो सरकार की तरफ से तत्काल मंदिरों को खोलने का आदेश जारी किया गया. पूरे देश के कई हिस्सों में कोरोना से नजात पाने के लिए हवन और पूजा करने की भी खबरें आ रही हैं. मौलाना लोग नमाज पढ़ कर कोरोना के खत्म होने की दुआ मांग रहे हैं. और ये लोग ही बोलते हैं कि जब पूजापाठ और हवन से ही इस बीमारी से मुक्ति मिल सकती है तो दवा की बात क्यों करते हो? इस देश में लोगों को अंधविश्वास और धार्मिक जाल में उलझा कर देश के हुक्मरान अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने में कामयाब हो रहे हैं.

सामाजिक सरोकारों से जुड़े गालिब साहब ने कहा कि हम जैसा समाज बनाएंगे, वैसा ही उस का नतीजा भी सामने आएगा. वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने की तो बात छोड़ ही दीजिए. सरकार द्वारा अंधविश्वास और धार्मिक नफरत फैलाने की साजिश बड़े पैमाने पर लगातार जारी है.

जानिये इस Lockdown में क्या कर रहीं है लोक गायिका मैथिली ठाकुर

सोशल मीडिया को जरिया बना कर बेहद ही कम उम्र में लोक गायन में छा जानें वाली मैथिली ठाकुर (Maithili Thakur) को आज देश का बच्चा –बच्चा जानता हैं. मैथिली नें देश के लगभग सभी बड़े मंचों और कार्यक्रमों में अपनी प्रस्तुति दी है. मैथिली जब मंच पर लोक गायन कर रहीं होती हैं तो लोग मंत्रमुग्ध से हो उनके गानों में खो जाते हैं, या यह कह लिया जाए की उनके गाने की शैली के लोग मुरीद हैं.

मैथिली ठाकुर की आज जो भी पहचान है वह उन्हें केवल सोशल मीडिया (Social Media) के जरिये मिली है. शुरूआती दौर में मैथिली ठाकुर और उनके भाई मैथिली के गाये गानों को अपने मोबाइल से रिकार्ड कर फेसबुक पर अपलोड करते थे. जिस पर उनके वीडियोज को पसंद करनें वालों की तादाद इस कदर बढ़ी की आज मैथिली ठाकुर (Maithili Thakur), और उनके दोनों भाइयों  ऋषभ ठाकुर (Rishabh Thakur) व  अयाची ठाकुर (Ayachi Thakur) के लाखों फालोवर  है. मैथिली के साथ उनके दोनों भाई ऋषभ ठाकुर (Rishabh Thakur) तबले पर और ठाकुर (Ayachi Thakur) ताली व कोरस के जरिये सपोर्ट करते हैं. इन तीनों की जोड़ी ही मैथिली के सफलता का कारण हैं.

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लौक डाउन (Lockdown) के पहले मैथिली ठाकुर का सेड्यूल इतना व्यस्त रहता था की वह अपने कार्यक्रमों के सिलसिले में अक्सर बाहर ही रहा करतीं थी. लेकिन इन दिनों जब लौक डाउन है तो निश्चित ही मैथिली के शो पर लगाम लग गया है. ऐसे में मैथिली ठाकुर फिर से घर बैठ सोसल मीडिया के जरिये लोगों का अपने लोक गायन के जरिये मनोरंजन करती नजर आ रहीं हैं. इस दौरान उनकी इंटरनेट लोकप्रियता और भी रहीं हैं. लौक डाउन (Lockdown) के दौरान मैथिली द्वारा अपलोड किये जा रहें वीडियोज उनके यूट्यूब (YouTube), फेसबुक (Facebook) और इन्स्टाग्राम (Instagram)पर लाखों बार देखें जा रहें हैं. वह हर रोज एक से दो वीडियोज अपने सोशल मीडिया एकाउंट पर अपलोड कर रहीं हैं.

इस लौक डाउन में मैथिली लोक गायन के साथ ही भजन, गजल, कव्वाली, सहित तमाम विधाओं से जुड़े गीत अपलोड कर रहीं हैं जिस पर उन्हें काफी तारीफ भी मिल रही हैं. उनके द्वारा सोशल मीडिया और यूट्यूब पर अपलोड किये जा रहे इन वीडियोज पर लाखों लाइक्स और ब्युअर्स मिल रहें हैं.

कोरोना पर गीत के जरिये जागरूक कर बटोर चुकीं हैं सुर्खियां

दूसरे चर्चित गायकों की तरह मैथिली ठाकुर नें भी जानलेवा कोरोना वायरस पर बना पैरोडी सॉंग गाकर लोगों को कोरोना से बचाव के लिए जागरूक किया. यह गाना उन्होंने फिल्म ‘कुर्बानी’ के ‘लैला ओ लैला’ की तर्ज पर गाया. 46 सेकंड के इस विडियो में अंत में मैथिली ने लोगों से सुरक्षित रहने और घर पर रहने की सलाह भी दी.

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कोरोना पर मैथली का गाया –

इन्स्टाग्राम पर अपलोड किये गए वीडियोज के लिंक-

 

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New Video on Rishav’s YouTube Channel. Link in my Story.

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Is Shaan-E-Karam ka Kya kehna. Full Video on YouTube.🙏 @rishavthakur.official @ayachithakur

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Ekla cholo re ❤️ . #maithilians

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बताब पहुना, फेर कहिया ले अइब 🙏 . . #maithilians #maithilithakur

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जनता तो अब चंदन ही घिसेगी

वर्तमान सरकार की नीतियों से सब गङबङ हो गया, अब तो ऐसा ही लगता है. पहले नोटबंदी ने आम लोगों से ले कर गृहिणियों तक को परेशान किया और फिर जीएसटी के मकङजाल में व्यापारी ऐसे उलझे कि उन्हें इस कानून को समझने में वैसा ही लगा जैसे किसी क्रिकेट प्रेमियों को डकवर्डलुइस के नियम को समझने में लगता है.

नोटबंदी ने मारा कोरोना ने रूलाया

एक के बाद एक लागू कानूनों से पहले सरकार ने मौकड्रिल करना जरूरी नहीं समझा. परिणाम यह हुआ कि देश में असमंजस की स्थिति बन गई. नोटबंदी के समय तो आलम यह था कि लोग अपने ही कमाए पैसे मनमुताबिक निकाल नहीं सकते थे.

तब आर्थिक विशेषज्ञों ने भी माना था कि आगे चल कर देश को इस से नुकसान होगा. निवेश कम होंगे तो छोटे और मंझोले व्यापार पर इस का तगङा असर पङेगा. और हुआ भी यही. छोटेछोटे उद्योगधंधे बंद हो गए या बंदी के कगार पर पहुंच गए. बेरोजगारी चरम पर पहुंच गई.

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मगर उधर सरकार कोई ठोस नतीजों पर पहुंचने की बजाय धार्मिक स्थलों, मूर्तियों और स्टैचू बनाने में व्यस्त रही.

परिणाम यह हुआ कि निवेश कम होते गए, किसानों को प्रोत्साहन न मिलने से वे खेती के प्रति भी उदासीन होते गए और रहीसही कसर अब कोरोना ने पूरी कर दी.

कोरोना वायरस के बीच देश में लागू लौकडाउन भी सरकारी उदासीनता की भेंट चढ़ गया और इस से सब से अधिक वही प्रभावित हुए जो देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहे जाते हैं.

विश्व बैंक की रिपोर्ट और भारतीय अर्थव्यवस्था

सरकारी उदासीनता और लापरवाही का नतीजा भारत की अर्थव्यवस्था पर तेजी से पङा. हाल के दिनों में छोटेबङे उद्योगधंधे या तो बंद हो गए या बंदी के कगार पर जा पहुंचे. लाखों नौकरियां खत्म हो गईं. और अब तो भारतीय अर्थव्यवस्था को ले कर विश्व बैंक ने जो कहा है वह चिंता बढ़ाने वाली बात है.

विश्व बैंक ने हाल ही में यह कहा है कि कोरोना संकट से दक्षिण एशिया के 8 देशों की वृद्धि दर सब से ज्यादा प्रभावित हो सकती है, जिस में भारत भी एक है.

40 सालों में सब से खराब स्थिति

विश्व बैंक का यह कहना कि भारत और अन्य दक्षिण एशियाई देश 40 सालों में सब से खराब आर्थिक दौर में हैं, तो जाहिर है आगे हालात और भी बदतर दौर में बीतेंगे.

‘दक्षिण एशिया की अर्थव्यवस्था पर ताजा अनुमान : कोविड-19 का प्रभाव’ रिपोर्ट पेश करते हुए विश्व बैंक ने कहा है कि भारत समेत दक्षिण एशियाई देशों में 40 सालों में सब से खराब आर्थिक विकास दर दर्ज की जा सकती है. दक्षिण एशिया के क्षेत्र, जिन में 8 देश शामिल हैं, विश्व बैंक का अनुमान है कि उन की अर्थव्यवस्था 1.8% से लेकर 2.8% की दर से बढ़ेगी जबकि मात्र 6 महीने पहले विश्व बैंक ने 6.3% वृद्धि दर का अनुमान लगाया था.

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भारत के बारे में विश्व बैंक का अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष में यहां वृद्धि दर 1.5% से लेकर 2.8% तक रहेगी.

विश्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया कि 2019 के आखिर में जो हरे निशान के संकेत दिख रहे थे उसे वैश्विक संकट के नकारात्मक प्रभावों ने निगल लिया है.

जाहिर है, इस से आने वाले दिनों में हालात बिगङेंगे ही. उधर सरकार के पास इस से निबटने और आर्थिक प्रगति के अवसर को आगे बढ़ाने में भयंकर दिक्कतों का सामने करना पङ सकता है.

मुश्किल में कारोबारी और मजदूर

कोरोना वायरस के फैलाव को रोकने के उपायों के कारण पूरे दक्षिण एशिया में सप्लाई चैन प्रभावित हुई, तो कामगाज ठप्प पङ गए.

सरकार की खामियों की वजहों से लौकडाउन भी पूरी तरह असफल हो गया. देश में फिलहाल 2 लाख से अधिक कोरोना पीङितों की संख्या है और इस का फैलाव भी अब तेजी से होने लगा है.

उधर भारत में तालाबंदी के कारण सवा सौ करोङ लोग घरों में बंद हैं, करोङों लोग बिना काम के हैं और हालात इतने बदतर होते जा रहे कि कुछ बाजारों के खुलने के बावजूद कारोबार चौपट है. इस से बड़े और छोटे कारोबार बेहद प्रभावित हैं.

शहरों में रोजीरोटी मिलनी मुश्किल हो गई तो लाखों प्रवासी मजदूर शहरों से अपने गांवों को लौट चुके हैं और यह पलायन बदस्तूर जारी है.

विश्व बैंक ने किया आगाह

रिपोर्ट में यह आगाह किया गया है कि यह राष्ट्रीय तालाबंदी आगे बढ़ती है तो पूरा क्षेत्र आर्थिक दबाव महसूस करेगा. अल्पकालिक आर्थिक मुश्किलों को कम करने के लिए विश्व बैंक ने क्षेत्र के देशों से बेरोजगार प्रवासी श्रमिकों का समर्थन करने के लिए वित्तीय सहायता देने और व्यापारियों और व्यक्तियों को ऋण राहत देने को कहा है.

मगर भारत में जहां की राजनीति हर कामों पर भारी पङती है, वहां लोगों व व्यापारियों को आसानी से ॠण मिल जाएगा, इस में संदेह ही है. भारतीय बैंक की हालत पहले ही बङेबङे घोटालों की वजह से पतली है. भ्रस्टाचार ऊपर से नीचे तक है और यह भी सरकार की नीतियों को आगे ले जाने में बाधक है.

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उधर, सरकार के पास कोई माकूल रोडमैप भी नहीं है जिन से बहुत जल्दी देश में आर्थिक असमानता को दूर किया जा सके. सरकार के अधिकतर सांसद व मंत्री एसी कमरों में बैठ कर सरकार चलाना चाहते हैं.

जनता सरकार के कामकाज से संतुष्ट नहीं दिखती. पर जैसाकि हमेशा से होता आया है, वही आगे भी होगा. देश को धर्म और जाति पर बांटा जाएगा फिर वोट काटे जाएंगे.

जनता जनार्दन क्या करे, सरकार के पास कहने के लिए तो है ही- प्रभु के श्रीचरणों में रहो, वही बेङापार करेंगे. यानी अब तो सिर्फ चंदन ही घिसते रहो…

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