लेखक- डा. सत्यवान सौरभ

नोवल कोरोना वायरस  के चलते लागू किए गए लौकडाउन ने  मिट्‌टी बरतन बनाने वाले कारीगरों के सपनों को भी चकनाचूर कर दिया है. इन कारीगरों ने मिट्टी के बरतन बना कर रखे लेकिन बिक्री न होने की वजह से इन के लिए खाने के लाले पड़ गए हैं. लौकडाउन के चलते न तो चाक (बरतन बनाने का उपकरण) चल रहा है और न ही दुकानें खुल रही हैं. घर व चाक पर बिक्री के लिए पड़े मिट्टी के बरतनों की इन्हें रखवाली अलग करनी पड़ रही है. देशभर में प्रजापति समाज के लोग मिट्टी के बरतन बनाने का काम करते हैं.

लौकडाउन ने इन की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है. इन के बरतनों की बिक्री नहीं हो रही है. महीनों की मेहनत घर के बाहर पड़ी है. इन हालात में परिवार का गुजारा करना मुश्किल हो गया है. गरमी के सीजन को देखते हुए बरतन बनाने वालों ने बड़ी संख्या में मटके बनाए. डिजाइनर टोंटी लगे मटकों के साथ छोटी मटकी और गुल्लक, गमले भी तैयार किए. दरअसल,  आज भी ऐसे लोग हैं जो मटके के पानी को प्राथमिकता देते हैं. मगर इस बार इन को घाटा हो गया. इन का परिवार कैसे गुजरबसर करेगा. कोई भी मटके खरीदने नहीं आ रहा है. धंधे से जुड़े लोगों ने ठेले पर रख कर मटके बेचने भी बंद कर दिए हैं.

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मिट्टी के बरतनों के जरिए अपनी आजीविका चलने वाले कुशल श्रमिकों के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहल से देशभर के प्रजापति समाज के लोगों के लिए एक आस जगी है, जिस के अनुसार राज्य के हर प्रभाग में एक माइक्रो माटी कला कौमन फैसिलिटी सेंटर (सीएफसी) का गठन किया जाएगा.  सीएफसी की लागत 12.5 लाख रुपए होगी, जिस में सरकार का योगदान 10 लाख रुपए का होगा. शेष राशि समाज या संबंधित संस्था को वहन करनी होगी. भूमि, यदि संस्था या समाज के पास उपलब्ध नहीं है, तो ग्रामसभा द्वारा प्रदान की जाएगी. हर केंद्र में गैसचालित भट्टियां, पगमिल, बिजली के बरतनों की चक और पृथ्वी में मिट्टी को संसाधित करने के लिए अन्य उपकरण होंगे. श्रमिकों को एक छत के नीचे अपने उत्पादों को विकसित करने के लिए सभी सुविधाएं उपलब्ध होंगी. इन केंद्रों के माध्यम से अधिक से अधिक लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया जाएगा.

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