Manohar Kahaniya: नशा मुक्ति केंद्र में चढ़ा सेक्स का नशा- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

परिवार में मानो तूफान आ गया था. मातापिता अपने बच्चों को हमेशा अच्छी नजर से देखते हैं और उन्हें प्यार भी करते हैं, इसलिए जल्द शक नहीं कर पाते. यह अच्छी बात है, लेकिन बच्चों की संगत को भी नजरंदाज कर दिया जाए, यह लापरवाही है.

निधि का परिवार भी यह गलती कर चुका था. निधि अपने परिवार की इकलौती बेटी थी. मातापिता ने उसे समझाया. एकदो दिन तो वह घर पर ही रही, लेकिन फिर बाहर घूमने की जिद करने लगी. उस का स्वभाव भी बदल चुका था. वास्तव में नशे की तलब उसे बेचैन कर रही थी.

दरअसल, निधि ड्रग्स की बुरी तरह आदी हो चुकी थी. वह पहले जैसी कतई नहीं रही थी. पढ़ाई का रिजल्ट आया तो उस में भी वह फेल थी. एक समय ऐसा भी आया जब वह अपनी तलब पूरी करने को पैसे मांगती और न देने पर झगड़ा करती.

घर के हालात तनावपूर्ण थे. मातापिता की रातों की नींद उड़ चुकी थी, क्योंकि वह बेटी को समझा कर थक चुके थे, लेकिन वह मानने को तैयार नहीं थी. बेटी के भविष्य को बचाना उन के लिए चुनौतीपूर्ण हो गया. वह हर सूरत में निधि को बुरी लत से निकालना चाहते थे.

ये भी पढ़ें- Best of Manohar Kahaniya: प्यार पर प्रहार

उन लोगों के सामने अब एक ही रास्ता था कि बेटी को किसी नशा मुक्ति केंद्र में छोड़ दिया जाए. देहरादून में ऐसे कई नशा मुक्ति केंद्र थे. ऐसे ही एक अच्छे सेंटर के बारे में नवीन को पता चला.

उस का नाम था ‘वाक एंड विन सोबर लिविंग होम एंड काउंसलिंग सेंटर’. यह नशा मुक्ति केंद्र थाना क्लेमेनटाउन के अंतर्गत टर्नर रोड पर प्रकृति विहार में स्थित था. एक आवासीय कोठी को नशा मुक्ति केंद्र का रूप दिया गया था.

नशा मुक्ति केंद्र में ऐसे लड़केलड़कियों को रखा जाता था, जो नशे के आदी थे. नशा छुड़ाने के बदले उन के परिजनों से महीने में तय फीस ली जाती थी. यह फीस 20 से 40 हजार रुपए होती थी.

बच्चों के भविष्य के लिए मातापिता खुशीखुशी फीस चुकाने को तैयार रहते थे. इस नशा मुक्ति केंद्र के संचालक विद्यादत्त रतूड़ी थे, जबकि डायरेक्टर विभा सिंह.

नवीन और प्रिया ने यहां अपनी बेटी के बारे में बताया और सभी बातें तय होने के बाद बेटी को वहां रहने के लिए छोड़ दिया. वह खुश थे कि बेटी वहां रह कर अब पूरी तरह ठीक हो जाएगी, लेकिन उस की फिक्र जरूर बनी रहती थी.

प्रिया के लिए बेटी का नशा मुक्ति केंद्र में जाना किसी बुरे सपने की तरह था. प्रिया अकसर बेटी के बारे में सोचती रहती थीं. उस दिन भी वह फोटो एलबम देखते हुए बेटी को याद कर रही थीं तभी पतिपत्नी उस के बारे में चर्चा करने लगे थे.

4 लड़कियां हुईं गायब

प्रिया फोन पर बेटी से बात कर लिया करती थीं तो एक दिन बेटी ने बताया था कि वहां सब कुछ ठीक नहीं है. इस बात ने उन्हें चिंतित किया था, लेकिन नवीन ने अपनी बातों से उन की चिंता को दूर कर दिया था. लेकिन उन की बेटी की बात तब सच साबित हुई, जब नशा मुक्ति केंद्र से एक हैरान कर देने वाली खबर निकली.

दरअसल, 6 अगस्त, 2021 के अखबारों में एक खबर सुर्खी बनी कि ‘नशा मुक्ति केंद्र से 4 लड़कियां फरार’. इस खबर ने लोगों को चौंका दिया. थाना क्लेमेनटाउन पुलिस को सूचना मिली कि नशा मुक्ति केंद्र से 5 अगस्त की शाम 4 लड़कियां वार्डन को चकमा दे कर भाग गईं.

ये भी पढ़ें- Crime Story- गुड़िया रेप-मर्डर केस: भाग 3

जातेजाते वह सेंटर का बाहर से ताला भी लगा गईं. इस से सेंटर में हड़कंप मच गया. जिस की सूचना नशा मुक्ति केंद्र की डायरेक्टर विभा सिंह की तरफ  से पुलिस को दी गई थी. थानाप्रभारी धर्मेंद्र रौतेला अपनी टीम के साथ सेंटर पहुंचे और पूछताछ की.

पूछताछ में पता चला कि चारों लड़कियां चकमा दे कर भागी थीं, लेकिन बड़ा सवाल यह था कि लड़कियां सेंटर से आखिर क्यों भागीं? इस का ठीक जवाब लड़कियां ही दे सकती थीं. पुलिस को इस की आशंका जरूर हुई कि वजह कोई बड़ी रही होगी. बहरहाल पुलिस ने गुमशुदगी दर्ज कर ली.

किसी नशा मुक्ति केंद्र से लड़कियों का इस तरह से भाग जाना बेहद संवेदनशील था. एसएसपी योगेंद्र सिंह रावत ने अधीनस्थों को तुरंत लड़कियों की तलाश करने के निर्देश दिए. एसपी (सिटी) सरिता डोभाल ने इस प्रकरण की मौनिटरिंग शुरू कर दी.

जिस के बाद एक पुलिस टीम का गठन कर दिया गया. सीओ अनुज कुमार के निर्देशन में इस टीम में थानाप्रभारी धर्मेंद्र रौतेला, एसआई शोएब अली, रजनी चमोली, आशीष रवियान, हैड कांस्टेबल राजकुमार, कांस्टेबल सुनील पंवार, हितेश, भूपेंद्र व पिंकी आदि को शामिल किया गया.

पुलिस ने सीसीटीवी कैमरों की फुटेज की मदद ली, लेकिन तत्काल कोई सफलता नहीं मिली. 7 अगस्त को पुलिस ने चारों लड़कियों को एक होटल से खोज निकाला.

पुलिस ने लड़कियों से पूछताछ की तो उन्होंने नशा मुक्ति केंद्र के बारे में ऐसा सनसनीखेज खुलासा किया, जिसे सुन कर पुलिस भी चौंक गई. एक लड़की ने आगे बढ़ कर बताया, ‘‘सर, वह नशा मुक्ति केंद्र नहीं नरक केंद्र है.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘वहां छेड़छाड़ की जाती है, मेरे साथ तो कई बार दुष्कर्म किया गया. मैं ने इस की शिकायत डायरेक्टर विभा से की तो उन्होंने उल्टा मेरे साथ मारपीट की.’’

लड़कियों के आरोप वाकई संगीन थे, ऐसे में तत्काल एक्शन लेना जरूरी था. पुलिस ने लड़की की तहरीर पर नशा मुक्ति केंद्र के संचालक विद्यादत्त रतूड़ी व डायरेक्टर विभा सिंह के खिलाफ  दुराचार, मारपीट, छेड़छाड़ व गालीगलौज की धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया.

डायरेक्टर हुई गिरफ्तार

पुलिस टीम नशा मुक्ति केंद्र पहुंची और वहां से डायरेक्टर विभा सिंह को गिरफ्तार कर लिया, जबकि संचालक फरार हो चुका था. डायरेक्टर विभा सिंह ने चौंकाने वाली बातें पुलिस को बताईं.

अगले दिन पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया. इस बीच लड़कियों को उन के परिजनों के हवाले कर दिया गया.

इस जांच में पुलिस को पता चला कि उक्त नशा मुक्ति केंद्र का संचालक विद्यादत्त रतूड़ी मूलरूप से पौड़ी गढ़वाल के उरमोला पट्टी गांव का रहने वाला था. पुलिस टीम उस के गांव रवाना हो गई, लेकिन वह वहां भी नहीं मिला. उस का मोबाइल भी स्विच्ड औफ  आ रहा था.

यह सनसनीखेज प्रकरण सुर्खियां बन चुका था. पुलिस उस की तलाश में जुटी रही. आखिर 9 अगस्त, 2021 को आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया. वह श्यामपुर क्षेत्र के एक होटल में छिपा हुआ था.

पुलिस ने उस से गहराई से पूछताछ की तो संचालक, डायरेक्टर के साथ ही नशा मुक्ति केंद्र की ऐसी कहानी निकल कर सामने आई जिस ने न सिर्फ चौंका दिया, बल्कि नशा मुक्ति केंद्र का काला सच भी सामने आ गया.

दरअसल, विद्यादत्त रतूड़ी के पिता हर्ष मनी रतूड़ी एयरफोर्स में नौकरी करते थे. कई साल पहले उन की तैनाती कानपुर में थी. विद्यादत्त कम उम्र में ही बुरी संगत का शिकार हो गया और उसे शराब पीने की लत लग गई.

मातापिता ने बेटे को बहुत संभालने की कोशिश की, लेकिन वह हाथ से निकल चुका था. समय अपनी गति से चलता रहा. इस बीच उस का विवाह भी कर दिया गया. वह नशे का इतना आदी हो गया कि दिन में भी नशा करने लगा.

साल 2018 में उसे देहरादून के सरस्वती विहार स्थित एक नशा मुक्ति केंद्र में भरती कराया गया. वहां पर अपने नशे के इलाज के दौरान ही उस ने नशा मुक्ति केंद्र में स्टाफ के रूप में काम करना शुरू कर दिया. विद्यादत्त ने करीब 3 साल वहां काम किया.

अगले भाग में पढ़ें- संचालक हो गया अंडरग्राउंड

छाया : विनोद पुंडीर

Satyakatha- ऊधमसिंह नगर में: धंधा पुराना लेकिन तरीके नए- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

इस सूचना पर काररवाई करते हुए इंसपेक्टर बसंती आर्या अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंचीं. अपनी टीम के साथ चारों तरफ से कार को घेरते हुए उस कार से 3 लोगों को पकड़ा गया. उन में एक आदमी और 2 औरतें थीं.

जब वे पकड़े गए, तब उन की हरकतें बेहद आपत्तिजनक थीं. तीनों को अपनी कस्टडी में ले कर पूछताछ के लिए थाने लाया गया.

आदमी की पहचान उत्तर प्रदेश में बरेली जिले के बहेड़ी थाना के रहने वाले 29 वर्षीय भगवान दास उर्फ अर्जुन के रूप में हुई. महिला की पहचान 32 वर्षीया भारती के रूप में हुई.

उस ने बताया कि वह उत्तर प्रदेश में रामपुर जिले के अंतर्गत दिनकरी की रहने वाली है, लेकिन अब वह ऊधमसिंह नगर जिला में  सिडकुल ढाल ट्रांजिट कैंप में रहती है.

इसी तरह से दूसरी 21 वर्षीया युवती ने अपना नाम पूजा यादव बताया. उस ने कहा कि उस का पति उत्तर प्रदेश में बाराबंकी जिले के गांव सनसडा में रहता है. तीनों से गहन पूछताछ के बाद उन की तलाशी ली गई. तलाशी में उन के पास से 2 स्मार्टफोन बरामद हुए. मोबाइलों में तमाम अश्लील फोटो, वीडियो के साथ ही अनेक अश्लील मैसेज भी भरे हुए थे.

उन्हीं मैसेज से मालूम हुआ कि ये दोनों महिलाएं एक रात के 1000 से 1500 रुपए लेकर ग्राहकों की रातें रंगीन करती थीं.

ये भी पढ़ें- Crime Story: मसाज पार्लर की आड़ में देह धंधा

उन के साथ पकड़ा गया भगवान दास का काम ग्राहक तलाशना होता था. वह उन्हें ग्राहकों तक पहुंचाने का काम करता था. बदले में 500 रुपए वसूलता था. दास ने बताया कि वह ग्राहक की जानकारी होटलों में ठहरने वालों से जुटाता था.

इस के लिए अपने संपर्क में आई युवतियों को किसी एकांत जगह पर कार में बैठा कर रखता था और फिर वहीं से ग्राहकों के फोन का इंतजार करता था. जैसे ही किसी ग्राहक का फोन आता वह 10 से 15 मिनट में उस के बताए स्थान पर लड़की को पहुंचा देता था.

तीनों 21 जुलाई को ग्राहक का फोन आने का ही इंतजार कर रहे थे. उन की कोई सूचना नहीं मिल पाने के कारण वे आपस में ही हंसीमजाक करते हुए टाइमपास कर रहे थे. ऐसा करते हुए वे बीचबीच में अश्लील हरकतें भी करने लगे थे.

उस दिन भगवान दास ने दोनों को 1500-1500 रुपयों में तय किया था. लेकिन जब काफी समय गुजर जाने के बाद भी उसे कोई ग्राहक नहीं आया था. पुलिस मुखबिर की निगाह उन पर गई और उन्होंने पुलिस को इस की सूचना दे दी.

पूछताछ में भगवान दास ने कई मोबाइल नंबर दिए, जो देहव्यापार करने वाली महिलाओं के थे.

वे अपनी बुकिंग एक दिन पहले करवा लेती थीं. बुकिंग के आधार पर ही उन्हें होटल या किसी निजी घर पर ले जाया जाता था. उन्हें ले जाने वाला ही उन का सौदा पक्का कर देता था. औनलाइन पेमेंट आने के बाद ही बताए जगह पर पहुंचती थीं.

इस मामले को थाना ट्रांजिट कैंप में दर्ज किया गया. पकड़े गए व्यक्तियों पर  सार्वजनिक स्थान पर अश्लील हरकतें कर अनैतिक देह व्यापार करने के संबंध में रिपोर्ट दर्ज की गई.

ये भी पढ़ें- Best of Manohar Kahaniya: प्यार पर प्रहार

उन पर आईपीसी की धारा 294/34 लगाई गईं. इसी के साथ उन्हें अनैतिक देह व्यापार निवारण अधिनियम की धारा 5/7/8 के तहत काररवाई की गई.

3साल पहले यानी 2018 तक काशीपुर की अनाज मंडी भी इस धंधे के लिए काफी बदनाम थी. आज भी स्थिति कमोबेश वैसी ही बनी हुई है. हालांकि कोरोना काल की वजह से उस में थोड़े समय के लिए मंदी जरूर आई, फिर पहले जैसी स्थिति बन गई.

मंडी देह का फूलनेफलने की भी वजह है. फसल ले कर आने वाले किसानों के अनाज की साफसफाई के लिए आढ़तियों की दुकानों पर औरतें काम करती हैं. उन की संख्या वे 2 ढाई सौ के करीब है.

फसल के ढेर पर झाड़ू लगाने वाली अधिकतर औरतें बिजनौर जिले की रहने वाली हैं, लेकिन काशीपुर में ही किराए का कमरा ले कर रहती हैं.

वे औरतें सुबहसुबह सजसंवर कर मंडी पहुंच जाती हैं. अपनी खूबसूरती का जलवा दिखा कर किसानों और व्यापारियों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं. वह मजदूरों को भी अपने जाल में आसानी से फांस लेती हैं. यह सब उन की आमदनी का एक अतिरिक्त जरिया होता है.

जितने पैसे वे मंडी में अनाजों के ढेर पर झाड़ू लगा कर नहीं कमा पातीं, उस से कहीं ज्यादा पैसा उन्हें देह व्यापार के धंधे में मिल जाता है.

हालांकि वह सब उन को ठीक भी नहीं लगता. उन्हें न केवल परिवार और समाज की नजरों से छिप कर रहना पड़ता है, बल्कि पुलिसप्रशासन से बच कर भी रहना जरूरी होता है. ऊपर से बदनामी का भी डर लगा रहता है.

उन की कोशिश रहती कि वे किसी के साथ आपत्तिजनक स्थिति में नहीं पकड़ी जाएं. जबकि हमेशा उन के मन के अनुकूल स्थिति बनी रहना संभव नहीं होती. नतीजा पुलिस की छापेमारी में कुछ पकड़ी जाती हैं तो कुछ अड्डे से भागने में सफल हो जाती हैं.

देह व्यापार के धंधे में लगे रहने की उन की मजबूरी थी. एक अड्डा बंद होता है तो उन के द्वारा तुरंत नया ठिकाना बना लिया जाता है. वैसे अधिकतर औरतों के पति दिहाड़ी मजदूरी करने वाले या फिर रिक्शा चलाने वाले हैं. वह शाम तक जितना कमाते हैं, उस का बड़ा हिस्सा शराब में उड़ा देते हैं.

शाम को घर पहुंचने पर घर का खर्च बीवी से चलाने की उम्मीद करते हैं. घर चलाने के खर्च से ले कर कमरे का किराया, कपड़ेलत्ते, बच्चों की परवरिश आदि तक उन्हीं के कंधों पर रहती है.

उस के बावजूद शराबी पतियों की मारपीट भी झेलनी पड़ती है. यह उन की दिनचर्या में शामिल हो चुका है. इस तरह देह के धंधे को अपनाने की मजबूरी बन गई है.

किसान कानून में बदलाव आने का असर उन के धंधे पर भी हुआ. कारण इस कानून के लागू होने पर किसान अपनी फसल कहीं भी बेचने के लिए आजाद हो गए. इस वजह से उन का काशीपुर की मंडी में आनाजाना बहुत कम हो गया. इस का असर उन औरतों के धंधे पर भी हुआ.

अनाज की मंडियों का काम ढीला होने से पहले के मुकाबले वहां औरतें कम आने लगी हैं. मजबूरी में उन्होंने नया तरीका निकाला और अपने घरों में ही धंधा करना शुरू कर दिया. जबकि वह जानती हैं कि यह धंधा किसी भी सूरत में महफूज नहीं है.

मैं हल्दीराम कंपनी से बोल रहा हूं…. ठगी के रंग हजार

अब आपको सावधान रहना है डिजिटल ठगी ट्रेंडिंग से. जी हां! आप अपने शहर में कोई दुकान चलाते हैं प्रतिष्ठित व्यवसायी हैं तो आपको सावधान रहने की दरकार है. क्योंकि अब ठगों ने देश की प्रतिष्ठित कंपनियों की डीलरशिप की लुभावनी लालच देकर के ठगने की एक नई योजना पर क्रियान्वयन करना शुरू कर दिया है.

इसी क्रम में रांची झारखंड में एक युवक से हल्दीराम नाम की स्नैक्स कंपनी के नाम पर 5 लाख रुपए ठग लिए गए.

हमारे संवाददाता ने इस संबंध में पुलिस अधिकारियों से चर्चा की तो उन्होंने जो जानकारियां दी वह चौंकाने वाली हैं .

पुलिस अधिकारी के मुताबिक दूसरी तरफ से कहा जाता है- हैलो, मैं हल्दीराम कंपनी से बोल रहा हूं आपके लिए एक अच्छा ऑफर आया है.

ये भी पढ़ें- Best of Crime Story: मोहब्बत दूसरी नहीं होती

हल्दीराम जैसी प्रतिष्ठित कंपनी के फोन को भला कोई छोटा मोटा व्यापारी कैसे इग्नोर कर सकता है. वह तो स्वयं को धन्य समझने लगता है और मुंगेरीलाल के सपनों में खो जाता है की हल्दीराम की मिलने के बाद कैसे लाखों रुपए कमा लूंगा.

सोशल मीडिया बड़ा माध्यम

छोटी पूंजी में कुछ बड़ा करने का सपना लिए अशोक नगर इलाके में रहने वाले अक्षर भारती नाम के युवक ने इंटरनेट पर कुछ सर्च किया. उसने सोचा कि हल्दीराम स्नैक्स कंपनी की एजेंसी लेकर काम शुरू भला कैसे किया जा सकता है और उसके बाद जो कुछ हुआ वह चौंकाने वाला है. अक्षर के मुताबिक मैंने एक वेबसाइट पर हल्दीराम फ्रेंचाइजी डिस्ट्रीब्यूटर के अप्लाय किया था वेबसाइट थी WWW. Franchiseidea.org इसके बाद  जुलाई के दूसरे पखवाड़े में  करण  नाम के आदमी ने मुझे अपने नंबर 7208612492 से कॉल किया.उसने कहा – मैं हल्दीराम कंपनी से बोल रहा हूं. मैं सेल्स मैनेजर हूं.

करण ने रजिस्ट्रेशन, प्रोसेसिंग और सिक्योरिटी मनी के तौर पर कुल 2 लाख 6 सौ रुपए मांग लिए. बातों में आकर अक्षर ने गूगल पे के जरिए रुपए करण के बताए खाते में जमा करवा दिए.

उसके बाद ठगी का खेल देखिए- Haldiram Foods International Pvt Ltd info@haldiram.online के ईमेल से कंपनी का कंन्फर्मेशन लेटर भी मिल गया. ठग ने नागपुर के भारतीय स्टेट  बैंक खाते में रुपए जमा करवाए.और  इसके बाद ठग करण से लुट चुके अक्षर का कोई संपर्क नहीं हो पाया. ठगी का शिकार हो चुके अक्षर को इंटरनेट से ही अक्षर को हल्दीराम कंपनी के कुछ और नंबर मिले. उसने आगे पूछताछ की तो  पता चला कि वहां करण वर्मा नाम का तो कोई आदमी काम ही नहीं करता.फिर टिकरा पारा थाने आकर अक्षर ने रपट दर्ज करवाई. कुल मिलाकर के दिन बीतते चले जा रहे हैं और अक्षर ठगी के बाद अपना सर पकड़े बैठा है क्योंकि उसे कोई राहत नहीं मिल पा रही इसलिए अच्छा है कि आप समझदारी से काम ले और किसी भी तरह की लेनदेन से पहले अच्छी तरीके से जानकारी एकत्र कर लें इसके पश्चात ही पैसों का निवेश करें.

किस्म किस्म के ठग

इन दिनों जहां सोशल मीडिया का प्रभाव बढ़ता चला जा रहा है. उसके साथ ही ठगी के प्रकरण भी तेजी से सामने आ रहे हैं. इसलिए इस आलेख के माध्यम से हम ऐसे तथ्य आपके समक्ष रख रहे हैं जिन्हें पढ़ समझ कर के आप ठगी से बच सकते हैं.

छत पर मोबाइल टावर लगाने का झांसा देकर ठगी के अनेक मामले लंबे समय से सामने आ रहे हैं जो अभी भी जारी है. बिहार के पटना के एक रेलकर्मी की पत्नी से मोबाइल टावर लगाने के नाम पर 5 लाख की ऑनलाइन ठग लिए गए. टीएस नारायण रेलकर्मी हैं. उनकी पत्नी के पास  जियो कंपनी के नाम से फोन कॉल आया कहा गया -आप भाग्यशाली हैं जियो ने मोबाइल टावर लगाने आपका घर चुना है. टावर लगेगा तो हर माह 40-50 हजार किराया मिलेगा. वह झांसे में आ गई और रुपए लुटा बैठी. इस तरीके के प्रकार सामने आ रहे हैं वह बताते हैं कि इतने चतुर सुजान हैं और ठगी के शिकार कितने भोले भाले. इस लेख में हम आपको ठगी से बचने के सहज रास्ते बता रहे हैं.

ये भी पढ़ें- Satyakatha: रिश्तों का कत्ल

दरअसल , साइबर सेल ने लोगों से अपील की है कि ऑनलाइल डेटिंग एप पर लड़के, लड़कियों से दोस्ती न करें, कोई लुभावनी स्कीम, बिजनेस प्रॉफिट वगैरह की बातों पर सरलता से  यकीन न करें, और किसी भी तरह  अपनी बैंक डिटेल किसी अनजान कॉलर को न दें. बहुत जरूरी ट्रांजेक्शन होने पर नजदीकी बैंक में जाकर खुद संपर्क करें. ऑनलाइन ठगी की घटना होने पर या फोन आने पर रायपुर साइबर सेल के नंबर पर कॉल करें. आप नजदीकी थाने पहुंचकर भी अपनी शिकायत दर्ज करवा सकते हैं.

सच्चा प्यार- भाग 3: जब उर्मी की शादीशुदा जिंदगी में मुसीबत बना उसका प्यार

Writer- Girija Zinna

ललित ने बिना किसी हिचकिचाहट के कहा, ‘‘उर्मी, मैं बातों को घुमाना नहीं चाहता हूं. मैं तुम से प्यार करता हूं. अगर तुम्हें भी मंजूर है, तो मैं तुम से शादी करना चाहता हूं.’’

यह सुन कर मुझे सच में झटका लगा. मुझे जरा सा भी अंदाजा नहीं था कि ललित इस तरह मुझ से पूछेगा.

मैं ने ललित के बारे में बहुत सोचा. मुझे तब तक मालूम हो चुका कि मेरे पास जो पैसे हैं वे मेरी शादी के लिए बहुत कम हैं और फिर मेरी मां को भी अपनाने वाला दूल्हा मिलना लगभग नामुमकिन ही था. इस बारे में मेरे दिल ने नहीं दिमाग ने निर्णय लिया और मैं ने ललित को अपनी मंजूरी दे दी.

उस के बाद हर हफ्ते हम रविवार को हमारे घर के सामने वाले पार्क में मिलते. इसी बीच यकायक ललित 3 दिन की छुट्टी पर चला गया.

ललित चौथे दिन कालेज आया. उस का चेहरा उतरा हुआ था. शाम को हम दोनों पार्क में जा कर बैठ गए. मुझे मालूम था कि ललित मुझ से कुछ कहना चाह रहा, मगर कह नहीं पा रहा.

फिर उस ने मेरा हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘मुझे माफ कर दो उर्मी… मैं ने खुद ही तुम से प्यार का इजहार किया था और अब मैं ही इस रिश्ते से पीछे हट रहा हूं. तुम्हें मालूम है कि मेरी एक बहन है. वह किसी लड़के से प्यार करती है और उस लड़के की एक बिन ब्याही बहन है. उन लोगों ने साफ कह दिया कि अगर मैं उन की लड़की से शादी करूं तो ही वे मेरी बहन को अपनाएंगे. मेरे पास अब कोई रास्ता नहीं रहा.’’

मैं 1 मिनट के लिए चुप रही. फिर कहा, ‘‘फैसला ले ही लिया तो अब किस बात का डर… शादी मुबारक हो ललित,’’ और फिर घर चली आई.

1 महीने में ललित और उस की बहन की शादी धूमधाम से हो गई. अब ललित कालेज की नौकरी छोड़ कर अपनी ससुराल की कंपनी में काम करने लगा.

अब मनोहर से मेरी शादी हुए 1 महीना हो गया है. मेरी ससुराल वालों ने मेरे पति को मेरे साथ मेरे फ्लैट में रहने की इजाजत दे दी ताकि मेरी मां को भी हमारा सहारा मिल सके. इस नई जिंदगी से मुझे कोई शिकायत नहीं. मेरे पति एक अच्छे इनसान हैं. मुझे किसी भी बात को ले कर परेशान नहीं करते हैं. मेरी बहुत इज्जत करते हैं. औरतों को पूरा सम्मान देते हैं. उन का यह स्वभाव मुझे बहुत अच्छा लगा.

‘‘उर्मी जल्दी से तैयार हो जाओ. हमारी शादी के बाद तुम पहली बार मेरे दफ्तर की पार्टी में चल रही हो. आज की पार्टी खास है, क्योंकि हमारे मालिक के बेटे दिल्ली से मुंबई आ रहे हैं. तुम उन से भी मिलोगी.’’

जब हम पार्टी में पहुंचे तो कई लोग आ चुके थे. मेरे पति ने मुझे सब से मिलवाया. इतने में किसी ने कहा चेयरमैन साहब आ गए. उन्हें देख कर एक क्षण के लिए मेरी सांस रुक गई. चेयरमैन कोई और नहीं शेखर ही था.

ये भी पढ़ें- मॉडर्न दकियानूसी: क्या थी अलका की मॉर्डन सोच?

तभी सभी को नमस्कार कहते हुए शेखर मुझे देख कर 1 मिनट के लिए चौंक गया.

मेरे पति ने उस से कहा, ‘‘मेरी बीवी है सर.’’

शेखर ने हंसते हुए कहा, ‘‘मुबारक हो… शादी कब हुई?’’

मेरे पति उस के सवालों के जवाब देते रहे और फिर वह चला गया.

कुछ देर बाद शेखर के पी.ए. ने आ कर कहा, ‘‘मैडम, चेयरमैन साहब आप को बुला रहे हैं अकेले.’’ मैं ने चुपके से अपने पति के चेहरे को देखा. पति ने भी सिर हिला कर मुझे जाने का इशारा किया.

शेखर एक बड़ी मेज के सामने बैठा था. मैं उस के सामने जा कर खड़ी हो गई.

शेखर ने मुझे देख कर कहा, ‘‘आओ उर्मी, प्लीज बैठो.’’

मैं उस के सामने बैठ गई.

शेखर ने कहा, ‘‘मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं. मैं सीधे मुद्दे पर आ जाऊंगा… मैं हमारी पुरानी दोस्ती को फिर से शुरू करना चाहता हूं बिलकुल पहले जैसे. मैं तुम्हारे पति का दिल्ली में तबादला कर दूंगा. अगर तुम चाहती हो तो तुम्हें दिल्ली के किसी कालेज में लैक्चरर की नौकरी दिला दूंगा.’’

वह ऐसे बोलता रहा जैसे मैं ने उस की बात मान ली. मगर मैं उस वक्त कुछ नहीं कह सकी. चुपचाप लौट कर पति के सामने आ कर बैठ गई. कुछ भी नहीं बोली. टैक्सी से लौटते समय भी कुछ नहीं पूछा उन्होंने.

घर लौटने के बाद मेरे पति ने मुझ से कुछ भी नहीं पूछा. मगर मैं ने उन से सारी बातें कहने का फैसला कर लिया. पति ने मेरी सारी बातें चुपचाप सुनीं. मैं ने उन से कुछ नहीं छिपाया.

ये भी पढ़ेें- मजाक: जो न समझो सो वायरस

मेरी आंखों से आंसू आने लगे. मेरे पति ने मेरा हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘उर्मी, तुम ने कुछ गलत नहीं किया. हम सब के अतीत में कुछ न कुछ हुआ होगा. अतीत के पन्नों को दोबारा खोल कर देखना बेकार की बात है. कभीकभी न चाहते हुए भी हमारा अतीत हमारे सामने खड़ा हो जाता है, तो हमें उसे महत्त्व नहीं देना चाहिए. हमेशा आगे की सोच रखनी चाहिए. शेखर की बातों को छोड़ो. उस का रुपया बोल रहा है… हम कभी उस का मुकाबला नहीं कर सकते… मैं कल ही अपना इस्तीफा दे दूंगा. दूसरी नौकरी ढूंढ़ लूंगा. तुम चिंता करना छोड़ो और सो जाओ. हर कदम मैं तुम्हारे साथ हूं,’’ और फिर मुझे बांहों में भर लिया. उन की बांहों में मुझे फील हुआ कि मैं महफूज हूं. इस के अलावा और क्या चाहिए एक पत्नी को?

Manohar Kahaniya:10 साल में सुलझी सुहागरात की गुत्थी- भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

एएसआई जयवीर की टीम बारबार अलवर में कमल सिंगला और शकुंतला की तलाश करने के लिए जाती. लेकिन उन दोनों का कोई सुराग नहीं मिल रहा था.

क्राइम ब्रांच की इस टीम में एक कांस्टेबल हरेंद्र संयोग से राजस्थान का ही रहने वाला था. उस की मदद से पुलिस टीम को स्थानीय स्तर पर ऐसे लोगों की मदद मिलने लगी, जिस से कमल व शकुंतला के बारे में छनछन कर जानकारियां सामने आने लगी थीं. लेकिन इस पूरी कवायद में कई महीने गुजर गए.

इसी बीच एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट के एसीपी सुरेंद्र गुलिया ने रवि के अपहरण की जांच करने वाले इंसपेक्टर अमलेश्वर राय और एसआई करमवीर सिंह, एएसआई जयवीर सिंह, नरेश कुमार तथा कास्टेबल हरेंद्र से जांच में तेजी लाने के लिए कहा. तब तक पुलिस टीम को कमल सिंगला के मोबाइल का नंबर हासिल हो चुका था.

कमल के फोन नंबर की मौनिटरिंग शुरू हो गई और उस की काल डिटेल्स खंगालने का काम शुरू कर दिया गया. रवि के अपहरण में कमल की भूमिका होने की पुष्टि हो चुकी थी, इसलिए पुलिस ने उस के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट हासिल कर लिया.

लेकिन जब वह कहीं नहीं मिला तो उसे भगोड़ा घोषित कर के उस के ऊपर 50 हजार का ईनाम दिल्ली पुलिस ने घोषित कर दिया.

इस दौरान पुलिस ने उस के घर की कुर्की के वारंट भी जारी करवा लिए. पुलिस की एक टीम ने स्थाई रूप से अलवर में ही डेरा डाल दिया.

मोबाइल की लोकेशन और उस से बात करने वाले हर शख्स की जानकारी अलवर में बैठी पुलिस टीम को मिल रही थी. लेकिन इसे संयोग कहें या कमल की किस्मत कि पुलिस टीम के पहुंचने से पहले ही वह मौजूद जगह से निकल जाता था.

लेकिन पुलिस जब किसी को पकड़ने की ठान लेती है तो देर से ही सही, चालाक अपराधी भी पुलिस के चंगुल में फंस ही जाता है.

आखिरकार 27 सितंबर, 2019 को कमल सिंगला (27) को अलवर की शालीमार कालोनी से गिरफ्तार कर लिया गया. यहां भी उस का एक घर था, जहां छिप कर वह रह रहा था. हालांकि शकुंतला उस के साथ नहीं थी. लेकिन कमल का पकड़ा जाना भी पुलिस के लिए बड़ी उपलब्धि थी.

ये भी पढ़ें- Satyakatha: शादी से 6 दिन पहले मंगेतर ने दिया खूनी तोहफा

दिल्ली ला कर जब पुलिस टीम ने उस से पूछताछ शुरू की तो वह हमेशा की तरह पुलिस को अपने झूठ के जाल में उलझाने की कोशिश करता रहा.

लेकिन इस बार जांच दल के पास उस के खिलाफ ब्रेनमैपिंग टेस्ट की रिपोर्ट से ले कर बबली से अदालत में शकुंतला की शादी से जुड़ा गलत शपथपत्र दिलाने जैसे कई ठोस सबूत मौजूद थे. जिन का उस के पास कोई उत्तर नहीं था.

पुलिस टीम ने थोड़ी सख्ती की तो कमल सिंगला सब कुछ तोते की तरह बताने लगा. पूछताछ में पता चला कि रवि का अपहरण कर उस की हत्या कर दी गई थी और इस काम में उस की मदद उस के ड्राइवर गणेश महतो ने की थी. गणेश को उस ने 2012 में ही नौकरी से हटा दिया था, जिस के बाद वह बिहार चला गया.

कमल यह तो नहीं बता सका कि ड्राइवर गणेश किस गांव का है और उस का फोन नंबर क्या है, लेकिन दिल्ली में रहने वाले उस के जीजा अनिल का नंबर पुलिस को कमल से मिल गया.

पुलिस टीम ने उसी दिन अनिल से संपर्क किया और गणेश महतो के बारे में जानकारी हासिल कर ली. अनिल को साथ ले कर पुलिस टीम तत्काल बिहार के समस्तीपुर में करवां थानांतर्गत चकमहेशी गांव पहुंची, जहां से गणेश महतो पुत्र सुरेश महतो (31) को गिरफ्तार कर लिया गया. उस ने शुरुआती पूछताछ में ही अपना गुनाह कुबूल कर लिया.

पुलिस टीम गणेश को ट्रांजिट रिमांड पर दिल्ली ले आई. इस के बाद कमल व गणेश से आमनेसामने बैठा कर पूछताछ की गई, फिर उन से हुई पूछताछ का मिलान किया गया.

पुलिस टीम दोनों को ले कर टपूकड़ा गई, जहां स्थानीय पुलिस की मदद से कमल के औफिस के सामने एक खाली प्लौट की जेसीबी मशीनों से खुदाई करवाई, जिसमें करीब 25 मानव अस्थियां बरामद हुईं, जिन्हें जांच के लिए फोरैंसिक लैब भेज दिया गया.

इश्क में अंधा हुआ कमल

ये अस्थियां रवि कुमार की थीं या नहीं, यह पुष्टि करने के लिए पुलिस ने 10 अक्तूबर, 2019 को दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल में डीएनए जांच के लिए जयभगवान और उन की पत्नी के ब्लड सैंपल लिए.

रवि कुमार के अपहरण व हत्या के मामले की जांच जितनी पेचीदा थी, उस के अपहरण व हत्या की कहानी उस से कहीं ज्यादा चौंकाने वाली है. जिस से पता चलता है कि प्रेम में अंधा एक आशिक किस तरह शातिर अपराधी की तरह न सिर्फ अपने गुनाह को अंजाम देता रहा बल्कि 8 साल तक चली जांच में पुलिस की आंखों में भी धूल झोंकता रहा.

ये भी पढ़ें- Satyakatha: रिश्तों का कत्ल- भाग 1

2010 में टपूकड़ा में रहने वाली शकुंतला अचानक कमल सिंगला के संपर्क में आई थी. कमल का ट्रांसपोर्ट और बिल्डिंग मटीरियल सप्लाई का कारोबार था. उस के कुछ ट्रक, टैक्सियां और मैटाडोर भी किराए पर चलते थे. इस के अलावा कमल प्लौट ले कर उन में फ्लैट बना कर बेचने का भी काम करता रहता था.

साल 2010 में कमल ने शकुंतला के पड़ोस में एक एक खाली प्लौट ले कर उस में फ्लैट निर्माण का काम कराया तो इसी दौरान बगल के मकान में रहने वाली शकुंतला पर उस की नजर पड़ी.

कमल उन दिनों ठीक से बालिग भी नहीं हुआ था, जबकि तीखे नाकनक्श और गदराए बदन वाली शकुंतला जवानी की दहलीज पर पहले ही कदम रख चुकी थी.

यहीं पर दोनों की एकदूसरे से आंखें लड़ीं और कमल ने किसी तरह शकुंतला के घर में आनाजाना शुरू कर दिया. दोनों का इश्क परवान चढ़ने लगा और नाजायज रिश्ते बन गए. जबकि परिवार बेटी की इस करतूत से अंजान था.

इसी बीच 8 फरवरी, 2011 को परिवार ने शकुंतला की शादी समालखा के रवि से करा दी. कमल को जब  शकुंतला के रिश्ते की भनक लगी तो उस ने शकुंतला से इस का विरोध किया.

उस पर दबाव बनाया कि वह अपने परिवार वालों से इस रिश्ते के लिए मना कर दे. लेकिन लोकलाज और मातापिता के डर से शकुंतला ऐसा न कर सकी. इसी असमंजस में उस के हाथ में किसी और के नाम की मेहंदी लग गई.  लेकिन कमल सिंगला ने तय कर लिया था कि वह शकुंतला को किसी और की होने नहीं देगा. उस के मन में एक साजिश पलने लगी.

इसी साजिश के तहत रवि को देखने जाने के लिए जब शकुंतला के परिवार वाले पहली बार गए तो कमल खुद अपनी गाड़ी में परिवार के लोगों को ले कर गया था.

शकुंतला की शादी होने तक जितनी बार भी उस का परिवार के रवि के घर गया, हर बार कमल ही उन्हें अपनी गाड़ी से ले कर दिल्ली गया.

सुहागरात पर नहीं छूने दिया शरीर

जैसेतैसे शादी हो गई. लेकिन ससुराल जाने से पहले ही कमल ने शकुंतला से वादा ले लिया कि वह ससुराल जा तो रही है लेकिन वह किसी भी कीमत पर अपना तन अपने पति को न सौंपे.

शकुंतला तो खुद ये शादी मजबूरी में कर रही थी. इसलिए उस ने भी कमल से वादा कर लिया कि ऐसा ही होगा. लेकिन तुम को मुझे अपनी बनाना है तो जल्द ही कुछ करना होगा.

शादी के बाद उस ने इसी साजिश के तहत बहाने बना कर रवि को अपना शरीर छूने तक नहीं दिया.

इस दौरान कमल के दिमाग में रवि को रास्ते से हटाने की साजिश तैयार हो चुकी थी. साजिश के मुताबिक 20 मार्च, 2011 को रवि अपनी ससुराल टपूकड़ा, अलवर पहुंचा तो कमल भी दोस्त की तरह उस से मिला और दोस्त की तरह घुमायाफिराया.

अगले भाग में पढ़ें- रवि कुमार हत्याकांड का पटाक्षेप हो गया

गृहप्रवेश- भाग 3: किसने उज्जवल और अमोदिनी के साथ विश्वासघात किया?

4-5 महीने की भागदौड़ और कुछ दोस्तों की सहायता से मु झे एक प्राइवेट कालेज में परमानैंट नौकरी मिल गई थी. स्नेह और सारा का स्कूल 3 बजे समाप्त हो जाता था. बसस्टैंड से मोहिनी दोनों बच्चों को अपने घर ले जाती. उज्जवल चाहता था कि स्नेह मोहिनी को अपना ले हालांकि मोहिनी और स्नेह दोनों ही इस प्रबंध से नाखुश थे. शाम को कालेज से लौटते हुए मैं स्नेह को अपने साथ ले आती थी.

परिवर्तन इस बार भी सभी के जीवन में आया था. अपनी पीड़ा को पीछे छोड़ कर मैं स्वावलंबी हो रही थी. मोहिनी को अब 2 बच्चों को संभालना पड़ रहा था, जो उस के लिए किसी चुनौती से कम नहीं था. दीपक की कंपनी ने उस का स्थानांतरण स्पेन कर दिया था. और उज्जवल, उस के ऊपर तो अब 3 घरों की जिम्मेदारी आ गई थी.

स्नेह और मोहिनी के अतिरिक्त, इकलौता बेटा होने के कारण उस के ऊपर अपनी मां की जिम्मेदारी भी थी. पति की मृत्यु के बाद उज्जवल की मां मेरठ में अपने संयुक्त परिवार के साथ रहती थीं. लेकिन छुट्टियों में उन का इंदौर आनाजाना लगा रहता था. उज्जवल के इस निर्णय से वे भी खुश नहीं थीं. वैसे, इस के पीछे का कारण मेरे प्रति कोई लगाव नहीं, बल्कि वर्षों पुराना रोग कि ‘क्या कहेंगे लोग’ था.

लेकिन इस सब में सब से अधिक नुकसान दोनों बच्चों का हुआ था. उन की तो पूरी दुनिया बदल गई थी. उन की बालसुलभ जिज्ञासा को उत्तर ही नहीं मिल रहा था. जहां सारा को उज्जवल का उस के घर रहना पसंद नहीं था, वहीं स्नेह को मोहिनी के घर जाना.

मैं स्नेह की उधेड़बुन सम झ रही थी. धीरेधीरे मैं ने उसे परिस्थिति से अवगत कराना शुरू किया. अपने पिता से अलगाव उस के लिए सरल नहीं था. लेकिन मेरा बेटा मु झ से भी अधिक सम झदार था. वह घटनाओं को देखने के साथसाथ सम झने लगा और उन का आकलन भी करने लगा था. अब इस विषय पर हमारे बीच खुल कर बातें होने लगी थीं.

प्रेम मात्र शरीर का समर्पण नहीं है, बल्कि भावनाओं के समंदर में निस्वार्थ भाव से खुद को समर्पण करने का नाम भी है. प्रेम में एक साथी की कमी को दूसरा साथी पूर्ण करता है. प्रेम शक्ति का स्रोत है और मोह व दुर्बलता का सागर. प्रेम स्वतंत्रता का भाव है जबकि मोह उल झनों से भरा हुआ बंदिश का स्वरूप. प्रेम कुछ मांगता नहीं है और मोह मांगना छोड़ता नहीं है. प्रेम का कोई अस्तित्व मिल नहीं सकता जबकि मोह का कोई अस्तित्व होता ही नहीं.

मोहिनी उज्जवल से मोहित थी. लेकिन अभावग्रस्त सम्मोहन के साथ जीने के लिए समर्पित नहीं थी. उस की गलती भी नहीं थी. वह एक धनी परिवार की बेटी थी. विवाह के पश्चात भी उस का जीवन सुखसुविधाओं से पूर्ण रहा था. दीपक की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी थी. मोहिनी ने उज्जवल से भी यह ही अपेक्षा की थी. एक प्रेमी के रूप में सुदर्शन उज्जवल उस के हृदय के सिंहासन पर बैठ गया था, लेकिन जब उसी प्रेमी की कमजोर पौकेट का उसे पता चला, प्रेम भाप बन कर उड़ने लगा.

ये भी पढ़ें- भीगी-भीगी सड़कों पर

उज्जवल की हालत भी इस से भिन्न नहीं थी. प्रेयसी के नखरे उठाने का आनंद उस की जेब पर भारी पड़ रहा था. अब वह सम झ रहा था जिस मुसकान और जिंदादिल व्यक्तित्व से वह अपनी प्रेमिका के हृदय पर शासन कर पाया था, उस के पीछे का कारण उस की पत्नी का समर्पण था. मैं ने जिस चतुराई से घर को संभाल रखा था, उसी ने उज्जवल को एक तनावरहित जीवन प्रदान किया था. समय के साथ उन दोनों का मोहभंग होना शुरू हो गया था. उन की लड़ाइयां बढ़ गई थीं.

मैं ने कालेज के नजदीक एक घर किराए पर ले लिया और स्नेह को किसी अप्रिय परिस्थति से बचाने के लिए उस का उज्जवल के घर जाना बंद करा दिया था.

मैं ने यों तो पुराने जीवन की कड़वी यादों को उस मकान के साथ ही त्याग दिया था लेकिन अब भी कुछ शेष था. इसलिए, मेरा शरीर तो इस घर में आ गया, लेकिन मेरा मन पुरानी चौखट पर खड़ा इंतजार कर रहा था.

‘‘आप सो गईं मम्मी?’’

कुछ पता ही नहीं चला यादों की गाड़ी पर सवार हो कर कितनी दूर निकाल आई थी. स्नेह पुकारता नहीं, तो कुछ देर यों ही यादों की सैर करती रहती.

‘‘नहीं बेटा, बस आंखें बंद कर कुछ सोच रही थी. क्या हुआ,  तुम तो बाहर खेल रहे थे?’’

‘‘बाहर पापा खड़े हैं.’’

‘‘पापा?’’

‘‘हां.’’

‘‘तुम अपने कमरे में टौयज लगाओ, मैं पापा से मिल कर आती हूं.’’

एक साल, 2 महीने 5 दिन और 4 घंटे बाद उज्जवल मेरे सामने बैठ कर अपनी गलती की माफी मांग रहा था. उस की प्रेमिका अपने रिश्ते को एक और मौका देने अपने पति के पास स्पेन चली गई थी. पराजित प्रेमी अपनी त्यक्त पत्नी के पास वापस चला आया, इस आशा के साथ कि वह इसे अपना अच्छा समय सम झ उस की बांहों में समा जाएगी. भटकना पुरुष का स्वभाव है और प्रतीक्षा स्त्री की नियति. समाज भी सोचता है कि परित्यक्ता पत्नी को फिर से पति का सान्निध्य प्राप्त हो जाए, तो उस के लिए इस से बड़ी खुशी और क्या होगी.

ये भी पढ़ें- ऊंची उड़ान: अंकुर का सपना कैसे पूरा हुआ

‘‘अमोदिनी.’’

‘‘हां.’’

‘‘मु झे माफ कर दो.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘मेरे अपराध के लिए.’’

‘‘तुम जानते हो कि तुम्हारा अपराध क्या है?’’

‘‘मैं मोहिनी के जाल में फंस गया था.’’

उज्जवल की बात सुन कर मैं जोर से हंस पड़ी थी. वह अचंभित हो कर मु झे देखने लगा.

‘‘इस पुरुषसत्तात्मक समाज के लिए कितना सरल है स्त्री को दोषी कह देना. कदम दोनों के भटकते हैं, मन दोनों का चंचल होता है, लेकिन चरित्रहीन स्त्री हो जाती है. स्त्री को अपराधी बना तुम खुद फिर से पवित्र हो जाते हो. मोहिनी ने तुम्हें नहीं, तुम दोनों ने एकदूसरे को छला है. प्रेम तुम दोनों का अपराध नहीं है, विश्वासघात है.’’

‘‘दीपक और मोहिनी अपने रिश्ते को एक और मौका दे रहे हैं.’’

‘‘उन के रिश्ते में रिश्ता कहने लायक कुछ शेष होगा.’’

‘‘तुम अब भी मु झ से नाराज हो?’’

‘‘बिलकुल नहीं, मैं तो तुम्हारी आभारी हूं. मेरे स्वाभिमान पर, मेरे विश्वास पर मारे गए तुम्हारे एक थप्पड़ ने मेरा परिचय मेरी त्रुटियों से करा दिया. आज मैं यह सम झ पाई हूं कि किसी भी प्रेम और रिश्ते से ऊपर होता है मनुष्य का खुद के प्रति सम्मान और प्रेम. इसीलिए हर स्त्री को अपना आर्थिक प्रबंध रखना चाहिए. समय और रिश्ता बदलते देर नहीं लगती. स्त्री के लिए विधा का उपार्जन और धन का संचय आवश्यक है. एक खूबसूरत सपने में रहना अच्छा लगता है. लेकिन इतना ध्यान रहे कि सपना टूट भी सकता है. मूसलाधार प्रलय से बचने के लिए हर स्त्री को एक रेनकोट तैयार रखना ही चाहिए.’’

ये भी पढ़ें- पिया का घर: क्यों कृष्णा ने पति को सुधारने के लिए अंधविश्वास का सहारा लिया?

‘‘स्नेह के लिए ही मुझे माफ कर दो.’’

‘‘हर रिश्ता प्रेम और विश्वास पर टिका होता है. प्रेम तो मैं तुम से करती नहीं और विश्वास इस जीवन में कभी कर नहीं पाऊंगी. यदि स्नेह के लिए हम साथ होते भी हैं तो आगे चल कर यह रिश्ता कड़वाहट और छल को ही जन्म देगा. ऐसे विषैले माहौल में न हम खुश रह पाएंगे और न स्नेह.’’

‘‘अमोदिनी, काश कि मैं तुम्हारे योग्य हो पाता,’’ यह कह कर उस ने अपना सिर  झुका लिया.

‘‘कल सही समय पर कोर्ट पहुंच जाना,’’ मैं ने कहा और आगे बढ़ गई.

आज मैं ने घर की चौखट लांघ गृहप्रवेश कर लिया था अपने घर में, जिस में उज्जवल की कोई जगह नहीं थी.

Crime- डर्टी फिल्मों का ‘राज’: राज कुंद्रा पोनोग्राफी केस- भाग 1

20जुलाई, 2021 की सुबह का सूरज ठीक से उदय भी नहीं हुआ था, उस से पहले ही दिन फिल्म इंडस्ट्री  की पटाखा गर्ल कही जाने वाली अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी के मुंबई में सब से पौश इलाके जुहू बीच पर बने आलीशान बंगले के बाहर मीडिया का जमावड़ा होना शुरू हो चुका था.

हर कोई बीती रात की कहानी के बारे में शिल्पा की प्रतिक्रिया लेना चाहता था. शिल्पा शेट्टी और उन के पति राज कुंद्रा अपने दोनों बच्चों बेटा विहान राज कुंद्रा और बेटी शमिषा कुंद्रा  के साथ समुद्र किनारे बने बंगले में रहते थे. समुद्र किनारे बने ‘किनारा’ नाम के इस बंगले के बाहर उस दिन मीडिया के लोगों की जो भीड़ उमड़ी थी उस ने शिल्पा शेट्टी को असहज कर दिया था. क्योंकि एक दिन पहले यानी 19 जुलाई की रात को शिल्पा के पति राज कुंद्रा को मुंबई के भायखला से क्राइम ब्रांच की टीम ने गिरफ्तार कर लिया था.

दरअसल क्राइम ब्रांच की साइबर सेल की टीम अश्लील फिल्में बनाने वाले गैंग की जांच कर रही थी. जिस की जांच करते हुए खुलासा हुआ कि इस गैंग का मास्टरमाइंड राज कुंद्रा ही था. पूरी मुंबई और बौलीवुड हस्तियों तक रात में ही राज कुंद्रा की गिरफ्तारी की खबर जंगल की आग की तरह फैलते हुए पहुंच गई. इसी का नतीजा था कि अगली सुबह शिल्पा और राज कुंद्रा के बंगले के बाहर मीडिया के लोगों की भारी भीड जमा थी.

ये भी पढ़ें- दीया और सुमि

राज कुंद्रा को जिस मामले में गिरफ्तार किया गया था, उस में लगे आरोप इतने घिनौने और संगीन थे कि शिल्पा शेट्टी के लिए उन आरोपों से जुड़े सवालों का जवाब देना मुमकिन नहीं था. इसलिए उन्होंने मीडिया से दूरी बना ली.

दरअसल, राज कुंद्रा की गिरफ्तारी की पटकथा इसी साल फरवरी में लिखी गई थी. मुंबई क्राइम ब्रांच की प्रौपर्टी सेल को एक गुप्त सूचना मिली थी कि मलाड वेस्ट के मडगांव में एक किराए के आलीशान बंगले में अश्लील फिल्म की शूटिंग चल रही है.  इसी सूचना के आधार पर सेल के एपीआई लक्ष्मीकांत सालुंखे ने अपनी टीम के साथ उस बंगले पर छापेमारी की.

टीम ने मौके पर देखा कि एक न्यूड वीडियो की शूटिंग चल रही थी. वहां 2 लड़कियों समेत कुल 5 लोग थे, जिन्हें  हिरासत में ले लिया गया.

पूछताछ व छानबीन शुरू हुई तो पता चला कि यह शूटिंग मोबाइल एप्लिकेशन के लिए की जा रही थी, जिस पर अश्लील वीडियो अपलोड किए जाते हैं. इन वीडियोज को देखने के लिए पैसा दे कर मोबाइल एप्लिकेशन की सदस्यता लेनी पड़ती है.

जिस लड़की की अश्लील फिल्म  शूट की जा रही थी, उस के साथ पुलिस ने रौनक नाम के कास्टिंग डायरेक्टर, रोवा नाम की एक महिला वीडियोग्राफर तथा इस अश्लील फिल्म में काम कर रहे लीड एक्टर भानु और रोवा की दोस्त प्रतिभा को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

ये भी पढ़ें- Satyakatha: शादी से 6 दिन पहले मंगेतर ने दिया खूनी तोहफा

जांच में पता चला है ये गिरोह मोबाइल एप्लिकेशन के अलावा कुछ ओटीटी प्लेटफार्म के लिए भी ओटीटी फिल्म बनाते हैं. ऐप के बारे में पड़ताल शुरू हुई तो राज कुंद्रा का नाम भी सामने आया.

जब मुंबई क्राइम ब्रांच ने इस मामले का खुलासा किया तो सामने आया कि इस गिरोह से जुड़े आरोपी अश्लील वीडियो बना कर उन के ट्रेलर इंस्टाग्राम, ट्विटर, टेलीग्राम, वाट्सऐप और अन्य सोशल मीडिया साइटों पर भी जारी करते थे.

इस खुलासे के बाद 4 फरवरी 2021 को मुंबई के क्राइम ब्रांच ने  मालवानी थाने में राज कुंद्रा समेत गिरफ्तार आरोपियों के खिलाफ मुकदमा अपराध संख्या 103/2021 दर्ज  कराया था.

जिस में उन के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 292, 293, 420, 34 और आईटी एक्ट की धारा 67, 67ए व अन्य संबंधित धाराएं भी एफआईआर में लगाई थीं.

मुकदमा तो फरवरी में दर्ज हो गया था, लेकिन मुंबई क्राइम ब्रांच को तलाश थी एक ऐसे पुख्ता सबूत की, जो राज कुंद्रा को बेनकाब कर सके. क्योंकि उन पर अश्लील फिल्में बनवाने से ले कर कुछ ऐप्स के जरिए उन्हें प्रसारित और शेयर करने का इलजाम था.

छानबीन में मुंबई क्राइम ब्रांच को जो सबूत हाथ लगे वो राज कुंद्रा की तरफ मुख्य साजिशकर्ता होने का इशारा कर रहे थे.

अगले भाग में पढ़ें- एडवांस पेमेंट मिलने के बाद गहना और कामत अश्लील फिल्में बनाने का काम करते थे 

मिसफिट पर्सन- भाग 1: जब एक जवान लड़की ने थामा नरोत्तम का हाथ

‘‘आप के सामान में ड्यूटी योग्य घोषित करने का कुछ है?’’ कस्टम अधिकारी नरोत्तम शर्मा ने अपने आव्रजन काउंटर के सामने वाली चुस्त जींस व स्कीवी पहने खड़ी खूबसूरत बौबकट बालों वाली नवयौवना से पूछा.

नवयौवना, जिस का नाम ज्योत्सना था, ने मुसकरा कर इनकार की मुद्रा में सिर हिलाया. नरोत्तम ने कन्वेयर बैल्ट से उतार कर रखे सामान पर नजर डाली.

3 बड़ेबड़े सूटकेस थे जिन की साइडों में पहिए लगे थे. एक कीमती एअरबैग था. युवती संभ्रांत नजर आती थी.

इतना सारा सामान ले कर वह दुबई से अकेली आई थी. नरोत्तम ने उस के पासपोर्ट पर नजर डाली. पन्नों पर अनेक ऐंट्रियां थीं. इस का मतलब था वह फ्रीक्वैंट ट्रैवलर थी.

एक बार तो उस ने चाहा कि सामान पर ‘ओके’ मार्क लगा कर जाने दे. फिर उसे थोड़ा शक हुआ. उस ने समीप खड़े अटैंडैंट को इशारा किया. एक्सरे मशीन के नीचे वाली लाल बत्तियां जलने लगीं. इस का मतलब था सूटकेसों में धातु से बना कोई सामान था.

‘‘सभी अटैचियों के ताले खोलिए,’’ नरोत्तम ने अधिकारपूर्ण स्वर में कहा.

‘‘इस में ऐसा कुछ नहीं है,’’ प्रतिवाद भरे स्वर में युवती ने कहा.

‘‘मैडम, यह रुटीन चैकिंग है. अगर इस में कुछ नहीं है तब कोई बात नहीं है. आप जल्दी कीजिए. आप के पीछे और भी लोग खड़े हैं,’’ कस्टम अधिकारी ने पीछे खड़े यात्रियों की तरफ इशारा करते हुए कहा.

विवश हो युवती ने बारीबारी से सभी ताले खोल दिए. सभी सूटकेसों में ऊपर तक तरहतरह के परिधान भरे थे. उन को हटाया गया तो नीचे इलैक्ट्रौनिक वस्तुओं के पुरजे भरे थे.

सामान प्रतिबंधित नहीं था मगर आयात कर यानी ड्युटीएबल था.

ये भी पढ़ें- Romantic Story in Hindi: चार आंखों का खेल

नरोत्तम ने अपने सहायक को इशारा किया. सारा सामान फर्श पर पलट दिया गया. सूची बनाई गई. कस्टम ड्यूटी का हिसाब लगाया गया.

‘‘मैडम, इस सामान पर डेढ़ लाख रुपए का आयात कर बनता है. आयात कर जमा करवाइए.’’

‘‘मेरे पास इस वक्त पैसे नहीं हैं,’’ युवती ने कहा.

‘‘ठीक है, सामान मालखाने में जमा कर देते हैं. ड्यूटी अदा कर सामान ले जाइएगा,’’ नरोत्तम के इशारे पर सहायकों ने सारे सामान को सूटकेसों में बंद कर सील कर दिया. बाकी सामान नवयुवती के हवाले कर दिया.

ज्योत्सना ने अपने वैनिटी पर्स से एक च्युंगम का पैकेट निकाला. एक च्युंगम मुंह में डाला, एअरबैग कंधे पर लटकाया और एक सूटकेस को पहियों पर लुढ़काती बड़ी अदा से एअरपोर्ट के बाहर चल दी, जैसे कुछ भी नहीं हुआ था.

सभी यात्री और अन्य स्टाफ उस की अदा से प्रभावित हुए बिना न रह सके. नरोत्तम पहले थोड़ा सकपकाया फिर वह चुपचाप अन्य यात्रियों को हैंडल करने लगा.

नरोत्तम शर्मा चंद माह पहले ही कस्टम विभाग में भरती हुआ था. वह वाणिज्य में स्नातक यानी बीकौम था. कुछ महीने प्रशिक्षण केंद्र में रहा था. फिर बतौर अंडरट्रेनी कस्टम विभाग के अन्य विभागों में रहा था.

उस के अधिकांश उच्चाधिकारी उस को सनकी या मिसफिट पर्सन बताते थे. वह स्वयं को हरिश्चंद्र का आधुनिक अवतार समझता था, न रिश्वत खाता था न खाने देता था.

शाम को रिटायरिंग रूम में कौफी पीते अन्य कस्टम अधिकारी आज की घटना की चर्चा कर रहे थे. आव्रजन काउंटर पर अघोषित माल या तस्करी का सामान पकड़ा जाना नई बात नहीं थी. असल बात तो नरोत्तम जैसे असहयोगी या मिसफिट पर्सन नेचर वाले व्यक्ति की थी. ऐसा अधिकारी कभीकभार महकमे में आ ही जाता था.

‘‘यह नया पंछी शर्मा चंदा लेता नहीं है या इस को चंदा लेना नहीं आता?’’ सरदार गुरजीत सिंह, वरिष्ठ कस्टम अधिकारी ने पूछा.

‘‘लेता नहीं है. यह इतना भोंदू नजर नहीं आता कि चंदा कैसे लिया जाता है, न जानता हो,’’ वधवा ने कहा.

‘‘एक बात यह भी है कि लेनादेना सब के सामने नहीं हो सकता,’’ रस्तोगी की इस बात का सब ने अनुमोदन किया.

ये भी पढ़ें- Social Story in Hindi: गोधरा में गोदनामा

‘‘एअरपोर्ट पर आने से पहले यह कहां था?’’

‘‘कंपनियों को चैक करने वाले स्टाफ में था.’’

‘‘वहां क्या परेशानी थी?’’

‘‘वहां भी ऐसा ही था.’’

‘‘इस का मतलब यह इस लाइन का नहीं है. कितने समय तक यहां टिक पाएगा?’’ गुरजीत सिंह के इस सवाल पर सब हंस पड़े.

ज्योत्सना अपनी सप्लायर मिसेज बख्शी के सामने बैठी थी.

‘‘आज माल कैसे फंस गया?’’

‘‘एक नया कस्टम अधिकारी था, उस ने माल चैक कर मालखाने में जमा करवा दिया.’’

‘‘बूढ़ा है या नौजवान?’’

‘‘कड़क जवान है. लगता है अभी कालेज से निकला है.’’

‘‘शादीशुदा है?’’

‘‘यह उस के माथे पर तो नहीं लिखा है? वैसे कुंआरा है या शादीशुदा, आप को क्या करना है?’’ एक आंख दबाते हुए ज्योत्सना ने कहा.

‘‘मेरा मतलब है जब उस ने तेरे रूप और जवानी का रोब नहीं खाया तो, या तो शादीशुदा है या…’’ मिसेज बख्शी ने भी उसी की तरह आंख दबाते हुए कहा.

हक ही नहीं कुछ फर्ज भी- भाग 2: क्यों सुकांत की बेटियां उन्हें छोड़कर चली गई

Writer- Dr. Neerja Srivastava

इस पर उन्नति बोली, ‘‘और क्या… कह रहे थे कुछ करने की जरूरत नहीं है. बस रानी बन कर रहना… पलकों पर बैठा कर रखेंगे तू देखना,’’ और वह हंस दी थी.

‘‘दीदी तुम्हें मालूम है न कि मम्मीपापा अब रिटायर हो चुके हैं… हम लोगों के चक्कर में बेचारे मकान तक नहीं बनवा सके… बैंक से स्टूडैंट लोन तो है ही प्राइवेट लोन अलग से, विदेश की पढ़ाई उन्हें कितनी महंगी पड़ी पता है?’’

‘‘भाई, तू तो लड़का है. सीए बनते ही बढि़या कंपनी में लग जाना है. तू ठहरा तेज दिमाग… फिर धड़ाधड़ पैसे कमाएगा तू… थोड़ा ओवरटाइम भी कर लेना हमारे लिए… मुझे तो गृहस्थी संभालने दे… लाइफ ऐंजौय करनी है मुझे तो, वह अपने लंबे नाखूनों में लगी ताजा नेलपौलिश सुखाने लगी.’’

‘‘कमाल है दीदी पहले विदेश की महंगी प्रोफैशनल पढ़ाई पर खर्च करवाया, फिर फाइवस्टार में शादी की… दहेज न देने पर भी इतना खर्च हुआ जिस की गिनती नहीं. अब काम नहीं करेगी तो तुम्हारा लोन कैसे अदा होगा, सोचा है? माना काव्या दीदी का और मेरा लोन तुम्हारी जिम्मेदारी नहीं पर अपना लोन तो चुकता कर जो बैंक से तुम ने अपने नाम लिया है… काम क्यों नहीं करोगी? फिर प्रोफैशनल पढ़ाई क्यों की? इतना पैसा क्यों बरबाद करवाया जब तुम्हें केवल हाउसवाइफ ही बनना था?’’

‘‘तू तो करेगा न भाई काम?’’

‘‘तुम काम नहीं करोगी तो कुछ दिनों में ही प्यार हवा हो जाएगा रवि का.’’

‘‘तमीज से बात कर. रवि तेरे जीजू हैं.’’

‘‘तुम्हारी वजह से मैं ने डाक्टरी की पढ़ाई नहीं की जबकि मैं बचपन से ही डाक्टर बनना चाहता था. घर की स्थिति देख कर अपना इरादा ही बदल लिया. न… न… करतेकरते भी इतना खर्च करवा डाला… कर्ज में डूब गए हैं मम्मीपापा… शर्म नहीं आती तुम्हें? कब जीएंगे वे अपने लिए कभी सोचा है?’’

ये भी पढ़ें- मैं सास ही भली: क्या वाणी एक अच्छी बहू बन पाई

‘‘तू है न उन का बेटा… करना सेवा सारी उम्र लायक बेटा बन कर.’’

‘‘वाह, बाकी हर चीज में बराबरी पर जिम्मेदारी में नहीं. वह तो शुक्र है मकान नहीं बना वरना बिकवा कर उस में से भी अपना शेयर लेती… छोड़ उन्नति दीदी तुम क्या समझोगी… जाओ खुश रहो,’’ सुरम्य बाकी का सारा उफान पी गया.

उधर काव्या ने भी लंदन में कमाल कर दिया. वहीं अपने एक दोस्त प्रतीक से ब्याह रचा लिया. 1 महीने के गर्भ से थी. पढ़ाई अधूरी छोड़ कर भारत लौट आई. ससुराल वालों ने उसे स्वीकारा नहीं.

वे कट्टर रीतिरिवाजों वाले दक्षिण भारतीय मूल के थे. बड़ी जद्दोजहद के बाद राजी हुए पर घर में फिर भी नहीं रखा. लिहाजा प्रतीक और वह घर से अलग रहने पर मजबूर हो गए. दोनों में से किसी के अभी जौब में न होने की वजह से सारा खर्च सुकांत और निधि के कंधों पर ही आ गया.

काव्या ने तो पढ़ाई छोड़ ही दी थी पर प्रतीक ने अपना एमबीए पूरा कर लिया. बाद में उसे जौब भी मिल गई.

उधर उन्नति की ससुराल की असलियत सामने आने  लगी. आए दिन सास तकाजा करतीं, ताने देतीं, ‘‘बहू, तुम्हारी हर महीने की इनकम कहां है. हम ने रवि को तुम से शादी की इजाजत इसलिए दी थी कि दोनों मिल कर घरपरिवार का स्तर बढ़ाने में मदद करोगे… वैसे ही लंबाचौड़ा परिवार है हमारा… बहू तुम से न घर का काम संभाला जाता है न बाहर का… देखती हूं रवि भी कितने दिन तुम्हारी आरती उतारता है,’’ भन्नाई हुई सास रेवती महीने बाद ही अपने असली रूप में आ गई थी.

रवि जब अपने दोस्तों की प्रोफैशनल वर्किंग पत्नियों को देखता तो उन्नति को ले कर अपमानित सा महसूस करता. रोजरोज दोस्तों की महंगी पार्टियों से उसे हाथ खींचना पड़ता. उन्नति को न ढंग का कुछ पकाना आता न कुछ सलीके से करनेसीखने में ही दिलचस्पी लेती. सजनेसंवरने में वक्त बरबाद करती.

फिर वही हुआ जो सुरम्य ने कहा था. खर्चे से रवि परेशान था, क्योंकि अपनी बहनों की ससुराल और रिश्तेदारी निभाने के लिए वही एक जरीया था. उस पर छोटे भाई आकाश की पढ़ाई भी उस के सिर थी.

बहनों की ससुराल वालों ने उस की पुश्तैनी प्रौपर्टी बिकवा कर उस में से हिस्सा लेने के बाद भी मुंह बंद नहीं किया. आए दिन फरमाइशें होती रहतीं, जिन से घर के सभी सदस्य चिड़ेचिड़े से रहते.

ये भी पढ़ें- चाहत: क्या शोभा के सपने पूरे हुए?

तब उन्नति को समझ आया कि बहनों की शादी के बाद प्रौपर्टी और पैसों में ही नहीं घर की जिम्मेदारियों में भी अपनी कुछ हिस्सेदारी समझनी चाहिए. उन्नति को मम्मीपापा और सुरम्य की बहुत याद आई.

आंखें सजल हो उठीं कि कितनी मुश्किल हुई होगी उन्हें. इतने कम पैसों में वे कैसे घर चलाते थे? हमारी जरूरतें, शौक पूरे करते रहे वे… अपना तो उन से सब कुछ करवा लिया हम ने पर उन की जरूरतों को कभी न समझा. सिर्फ नाम के लिए महंगी पढ़ाई कर ली. अपनी मस्ती और स्वार्थ के चलते न काम किया न अपना लोन ही चुकाया. वह आत्मग्लानि से भर उठी.

Satyakatha: रिश्तों का कत्ल- भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

एक मोटरसाइकिल पर सवार 2 युवक तेजी से सरपट दौड़ रही सफेद रंग की स्कौर्पियो कार का दूर से पीछा कर रहे थे. ओवरटेक कर के बाइक जैसे ही स्कौर्पियो के समानांतर आई, बाइक के पीछे बैठे नकाबपोश ने ड्राइवर को लक्ष्य बना कर उस के हाथ पर गोली मार दी.

गोली लगते ही स्कौर्पियो के ड्राइवर के हाथ से स्टीयरिंग छूट गया और कार लहराते हुए डिवाइडर से जा टकराई. तभी घायल ड्राइवर ने कार का दरवाजा खोला. वह कार से निकल कर भागने ही वाला था कि तभी वह बाइक सवार बदमाश उस के करीब जा पहुंचे और उस से पूछा, ‘‘कार में पीछे बैठा बैंक मैनेजर शैलेंद्र ही है न?’’

दर्द से कराह रहे ड्राइवर ने ‘हां’ में सिर हिला दिया. तभी हथियारबंद नकाबपोेश बदमाश ने कार में पिछली सीट पर बैठे बैंक मैनेजर शैलेंद्र कुमार सिन्हा के पास पहुंच कर सिर में एक और सीने में 2 गोलियां उतार दीं. इस के बाद वह हवा में असलहा लहराते हुए आराम से निकल गए.

जिस समय यह घटना घटी थी, उस समय सुबह के 8 बजे थे. राष्ट्रीय राजमार्ग होने के बावजूद सड़क पर सन्नाटा पसरा था.

सड़क पर खून से लथपथ युवक को दर्द से कराहता देख कर कुछ बाइक वाले वहां रुके तो ड्राइवर ने उन से मदद मांगी और 100 नंबर पर फोन कर के घटना की सूचना पुलिस को देने का अनुरोध किया.

ड्राइवर ने अपना नाम अनिल बताया और कहा कि बदमाशों ने कार में बैठे उस के मालिक को भी गोली मारी है.

यह घटना बिहार के नालंदा जिले की फतुहा थाना क्षेत्र के भिखुआचक राष्ट्रीय राजमार्ग पर 5 जून, 2021 को सुबह 8 बजे के करीब घटी थी.

इस के बाद भीड़ में से एक व्यक्ति ने 100 नंबर पर फोन कर घटना की सूचना पुलिस को दे दी थी. सूचना मिलते ही फतुहा थाने के थानाप्रभारी मनोज कुमार सिंह अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए.

कार चालक अनिल डिवाइडर के किनारे बैठा दर्द से कराह रहा था. उस के दाएं हाथ से खून लगातार बह रहा था. कार में पिछली सीट पर खून से लथपथ रिटायर्ड बैंक मैनेजर शैलेंद्र कुमार सिन्हा की लाश पड़ी हुई थी.

क्राइम सीन देख कर ऐसा लग रहा था कि बदमाश ने शैलेंद्र को करीब से गोली मारी थी. छानबीन में पुलिस को 7.65 एमएम का एक खोखा कार में से बरामद हुआ था.

साक्ष्य के तौर पर पुलिस ने खोखे को अपने कब्जे में ले लिया. इस बीच थानाप्रभारी मनोज कुमार ने एसपी (ग्रामीण) कांतेश कुमार मिश्र और एसएसपी उपेंद्र कुमार शर्मा को इस घटना की जानकारी दे दी थी. घटना की जानकारी मिलते ही दोनों  पुलिस अधिकारी मौके पर पहुंच गए.

ये भी पढ़ें- Crime Story- रिश्तों की हद की पार: ससुर और बहू दोनों जिम्मेदार

एक बात पुलिस अधिकारियों को खटक रही थी कि बदमाशों ने चालक को क्यों छोड़ दिया? उस की हत्या क्यों नहीं की? कहीं दाल में कुछ काला तो नहीं है?

गोली लगने से चालक अनिल की हालत बिगड़ती जा रही थी. इसलिए पुलिस ने उसे जल्द से जल्द जिला हौस्पिटल भेज दिया ताकि उस के जरिए बदमाशों तक आसानी से पहुंचा जा सके. शैलेंद्र कुमार की हत्या का वही एक चश्मदीद गवाह था.

बेहतर इलाज के बाद चालक अनिल के स्वास्थ्य में तेजी से सुधार हुआ तो उसी शाम 3 बजे के करीब थानाप्रभारी मनोज कुमार सिंह बयान लेने जिला अस्पताल पहुंचे, जहां वह भरती था.

‘‘कैसे हो अनिल? अब कैसा फील कर रहे हो?’’ थानाप्रभारी मनोज कुमार ने मुसकराते हुए पूछा.

‘‘सर, पहले से बेहतर हूं और अच्छा महसूस कर रहा हूं.’’ अनिल ने बताया.

‘‘अच्छा बताओ कि यह कैसे और क्या हुआ था?’’

‘‘साहब, मैं कार चला रहा था कि तभी साइड से आए एक बाइक वाले ने मुझे गोली मारी जो हाथ में लगी. गोली लगते ही कार की स्टीयरिंग मेरे हाथ से छूट गई और कार डिवाइडर से जा टकराई. फिर बाइक पर पीछे बैठे नकाबपोश बदमाश ने मुझ से पूछा कि कार में बैठा क्या शैलेंद्र यही है. मैं ने हां कह दिया. मेरे हां कहते ही उस बदमाश ने साहब को गोलियों से भून डाला और फरार हो गए.’’ अनिल बोला.

‘‘ओह! बाइक पर कितने बदमाश थे.’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘साहब, 2.’’ उस ने बताया.

‘‘दोनों बदमाशों में से किसी का चेहरा याद है तुम्हें?’’ उन्होंने अगला सवाल किया.

‘‘नहीं, साहब. कैसे चेहरा देखता, जब दोनों के चेहरे नकाब से ढके थे.’’ अनिल बोला.

‘‘ओह!’’ थानेदार मनोज कुमार ने एक लंबी सांस छोड़ी, ‘‘अच्छा, यह बताओ तुम आ कहां से रहे थे?’’

‘‘नालंदा के गड़पर स्थित प्रोफेसर कालोनी से आ रहे थे. साहब के छोटे बेटे मनीष गुवाहाटी से पटना आ रहे थे. उन्हें ही रिसीव करने साहब को ले कर पटना जा रहा था कि…’’ कह कर अनिल रोने लगा.

‘‘तुम्हारे साहब के घर में कौनकौन रहता है और तुम्हारे यहां आने की जानकारी किस किस को थी?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘साहब के साथ मेमसाहब और उन का बड़ा बेटा पीयूष रहते हैं. पीयूष दिव्यांग हैं. मेम साहब और पीयूष बाबा के अलावा किसी को भी इस की जानकारी नहीं थी.’’ उस ने बताया.

‘‘ठीक है. अभी तो मैं चलता हूं बाद में आ कर फिर तुम से मिलूंगा.’’

थानेदार मनोज कुमार सिंह ड्राइवर अनिल उर्फ धर्मेंद्र से पूछताछ कर वहां से थाने लौट आए थे. इधर शैलेंद्र कुमार की हत्या की जानकारी मिलते ही उन के घर में कोहराम छा गया था. मृतक शैलेंद्र कुमार की पत्नी सरिता देवी का रोरो कर बुरा हाल था.

ससुर की हत्या की जानकारी जैसे ही दामाद पवन कुमार को हुई, वह भागाभागा मोर्चरी पहुंचा, जहां पोस्टमार्टम के बाद लाश मोर्चरी में रखी हुई थी. गुवाहाटी से पटना आ रहे बेटे मनीष को रास्ते में ही फोन से पिता की हत्या की जानकारी दे दी गई थी, इसलिए वह भी सीधा मोर्चरी पहुंच गया था.

ये भी पढ़ें- Crime Story: पीपीई किट में दफन हुई दोस्ती

इस बीच में पुलिस ने मनीष की तरफ से 2 अज्ञात बदमाशों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. बेटा, दामाद और रिश्तेदारों ने मिल कर शैलेंद्र कुमार का गंगा के किनारे श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार किया और अपनेअपने घरों को लौट आए. फिर मनीष जीजा पवन के साथ घर देर रात पहुंचा.

बेटे को देख कर मां की आंखें फफक पड़ीं तो मनीष भी खुद को रोक नहीं पाया. मां को रोता देख उस की आंखें बरस पड़ीं. रोतेरोते दोनों एकदूसरे को हिम्मत दे रहे थे.

पलभर के लिए वहां का माहौल एकदम से फिर गमगीन हो गया था. दामाद पवन कुमार कुछ देर वहां रुका. उस ने सास और साले को समझाया और फिर रामकृष्णनगर, पटना अपने किराए के कमरे पर वापस लौट गया.

अगले दिन थानाप्रभारी मनोज कुमार सिंह हत्या की गुत्थी सुलझाने और जानकारी लेने के लिए गड़पर प्रोफेसर कालोनी में स्थित मृतक शैलेंद्र कुमार के आवास पहुंचे. घर में वैसे ही मातम छाया हुआ था.

घर का गमगीन माहौल देख कर थानाप्रभारी का मन द्रवित हो गया. वह यह नहीं समझ पा रहे थे कि बैंक मैनेजर की पत्नी से कैसे पूछताछ करें, लेकिन ड्यूटी तो ड्यूटी होती है. उसे पूरा तो करना ही था.

उन्होंने मृतक की पत्नी सरिता देवी से हत्या के संबंध में कुछ जरूरी सवाल पूछे. सरिता देवी के जवाब से इंसपेक्टर मनोज कुमार सिंह को ऐसा कहीं नहीं लगा कि उन की किसी से कोई दुश्मनी हो. उन के जवाब से एक बात साफ हो गई थी कि पूर्व बैंक मैनेजर शैलेंद्र कुमार की हत्या सुनियोजित तरीके से की गई थी.

निश्चित ही उन का कोई ऐसा अपना था, जिसे उन की गतिविधियों के बारे में पलपल की जानकारी थी. उसी अपने ने बदमाशों के साथ मुखबिरी का खेल खेला और उन की जान ले ली.

सरिता देवी से पूछताछ करने के बाद विवेचनाधिकारी मनोज सिंह थाने वापस लौट आए थे.

रास्ते भर में वे यही सोच रहे थे कि आखिर वह कौन हो सकता है, जिस ने मुखबिर की भूमिका निभाई होगी और उन की हत्या से किस का क्या लाभ हुआ होगा?

हत्या की गुत्थी एकदम से उलझती चली जा रही थी. इस के सुलझाने का एक आखिरी रास्ता काल डिटेल्स ही बचा था.

अगले भाग में पढ़ें- तीनों आरोपियों ने भी अपने जुर्म कुबूल कर लिए

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें