लेखिका- भावना ठाकर

एक शब्द 'रंडी', जो कुछ मर्दों की जबान से फिसल कर औरतों की इमेज को गंदगी में तबदील करता हुआ बातोंबातों में तीर की तरह छूटता है, वह कली के पूरे वजूद को भी नासूर की तरह जिंदगीभर चुभता रहा. बचपन से ले कर जिंदगी का आधा सफर कटने तक 'रंडी' शब्द पहरन की तरह कली से लिपटा रहा. कली को लगता है कि शायद हर औरत का उपनाम बन गया है यह 'रंडी' शब्द.

छोटी सी बात पर 2 परिवारों में झगड़ा होना, गालीगलौच, मारपीट और लड़ाइयां नन्ही कली बचपन से देखती आ रही है. छोटी थी तब वह सहम जाती थी, पर एक शब्द कली के नाजुक मन में घर कर गया... 'रंडी'. हर मर्द की जबान पर बातबात पर यह शब्द सुन कर कली सोचती, 'यह 'रंडी' का मतलब क्या होता होगा? क्यों झगड़ा करते समय हर कोई इस शब्द का इस्तेमाल करता है?'

एक दिन कली का बापू दारू पी कर आया और कली ने कुछ मांगा, तो 'हट रंडी, जब देखो कुछ न कुछ मांगती रहती है' कह कर नकार दिया.

कली को बापू ने डांटा उस का बुरा नहीं लगा, पर 'रंडी' शब्द अखर गया. 11 साल की कली ने अपनी मां से पूछा, "मां, यह 'रंडी' का मतलब क्या होता है? बताओ न?"

मां ने पहले तो उसे चांटा जड़ दिया और फिर कहा, "खबरदार जो ऐसे शब्दों का जिक्र भी किया. यह शब्द गंदी और धंधा करने वाली औरतों के लिए इस्तेमाल होता है."

कली को हैरानी हुई कि अगर यह गंदा शब्द है तो हर कोई क्यों एकदूसरे को 'रंडी की औलाद' और 'रंडी' शब्द को जोड़ कर न जाने क्याक्या कहता रहता है और बापू क्यों बातबात पर मुझे और मां को 'रंडी' बोलते हैं? मां तो परिवार के लिए सारे काम करती है, फिर भी वह क्यों सहन कर लेती है? मां तो गंदे काम नहीं करती, फिर क्यों बापू की जबान पर मां के लिए यह शब्द आता है?

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