टॉप 10 बेस्ट फैमिली कहानियां हिंदी में

Family Story in Hindi: फैमिली हमारे लाइफ का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है. जो  आपका सपोर्ट सिस्टम भी है. फैमिली बिना स्वार्थ का आपके साथ खड़ी रहती है. इस आर्टिकल में हम आपके लिए लेकर आये हैं सरस सलिल की 10 Best Family Story in Hindi. रिश्तों से जुड़ी दिलचस्प कहानियां, जो आपके दिल को छू लेगी. इन Family Story से आपको  कई तरह की सीख मिलेगी. जो आपके रिश्ते को और भी मजबूत करेगी. तो अगर आपको भी है कहानियां पढ़ने के शौक तो पढ़िए सरस सलिल की Best Family Story in Hindi.

  1. अगली बार कब: आखिर क्यों वह अपने पति और बच्चों से परेशान रहती थी?

family-story-in-hindi

उफ, कल फिर शनिवार है, तीनों घर पर होंगे. मेरे दोनों बच्चों सौरभ और सुरभि की भी छुट्टी रहेगी और अमित भी 2 दिन फ्री होते हैं. मैं तो गृहिणी हूं ही. अब 2 दिन बातबात पर चिकचिक होती रहेगी. कभी बच्चों का आपस में झगड़ा होगा, तो कभी अमित बच्चों को किसी न किसी बात पर टोकेंगे. आजकल मुझे हफ्ते के ये दिन सब से लंबे दिन लगने लगे हैं. पहले ऐसा नहीं था. मुझे सप्ताहांत का बेसब्री से इंतजार रहता था. हम चारों कभी कहीं घूमने जाते थे, तो कभी घर पर ही लूडो या और कोई खेल खेलते थे. मैं मन ही मन अपने परिवार को हंसतेखेलते देख कर फूली नहीं समाती थी.

2.  वजूद से परिचय: भैरवी के बदले रूप से क्यों हैरान था ऋषभ?

family-story-in-hindi
family-story-in-hindi

‘‘मम्मी… मम्मी, भूमि ने मेरी गुडि़या तोड़ दी,’’ मुझे नींद आ गई थी. भैरवी की आवाज से मेरी नींद टूटी तो मैं दौड़ती हुई बच्चों के कमरे में पहुंची. भैरवी जोरजोर से रो रही थी. टूटी हुई गुडि़या एक तरफ पड़ी थी.

मैं भैरवी को गोद में उठा कर चुप कराने लगी तो मुझे देखते ही भूमि चीखने लगी, ‘‘हां, यह बहुत अच्छी है, खूब प्यार कीजिए इस से. मैं ही खराब हूं… मैं ही लड़ाई करती हूं… मैं अब इस के सारे खिलौने तोड़ दूंगी.’’

भूमि और भैरवी मेरी जुड़वां बेटियां हैं. यह इन की रोज की कहानी है. वैसे दोनों में प्यार भी बहुत है. दोनों एकदूसरे के बिना एक पल भी नहीं रह सकतीं.

मेरे पति ऋषभ आदर्श बेटे हैं. उन की मां ही उन की सब कुछ हैं. पति और पिता तो वे बाद में हैं. वैसे ऋषभ मुझे और बेटियों को बहुत प्यार करते हैं, परंतु तभी तक जब तक उन की मां प्रसन्न रहें. यदि उन के चेहरे पर एक पल को भी उदासी छा जाए तो ऋषभ क्रोधित हो उठते, तब मेरी और मेरी बेटियों की आफत हो जाती.

3. आखिरी खत- नैना की मां और शीलू का क्या रिश्ता था?

family-story-in-hindi

नैना बहुत खुश थी. उस की खास दोस्त नेहा की शादी जो आने वाली थी. यह शादी उस की दोस्त की ही नहीं थी बल्कि उस की बूआ की बेटी की भी थी. बचपन से ही दोनों के बीच बहनों से ज्यादा दोस्ती का रिश्ता था. पिछले 2 वर्षों में दोस्ती और भी गहरी हो गई थी. दोनों एक ही होस्टल में एक ही कमरे में रह रही थीं अपनी पढ़ाई के लिए. यही कारण था कि नैना कुछ अधिक ही उत्साहित थी शादी में जाने के लिए. वह आज ही जाने की जिद पर अड़ी थी जबकि उस के पिता चाहते थे कि हम सब साथ ही जाएं. उन की भी इकलौती बहन की बेटी की शादी थी. उन का उत्साह भी कुछ कम न था…

4. मेरी खातिर-  माता-पिता के झगड़े से अनिका की जिंदगी पर असर

family-story-in-hindi

‘‘निक्की तुम जानती हो कि कंपनी के प्रति मेरी कुछ जिम्मेदारियां हैं. मैं छोटेछोटे कामों के लिए बारबार बौस के सामने छुट्टी के लिए मिन्नतें नहीं कर सकता हूं. जरूरी नहीं कि मैं हर जगह तुम्हारे साथ चलूं. तुम अकेली भी जा सकती हो न. तुम्हें गाड़ी और ड्राइवर दे रखा है… और क्या चाहती हो तुम मुझ से?’’

‘‘चाहती? मैं तुम्हारी व्यस्त जिंदगी में से थोड़ा सा समय और तुम्हारे दिल के कोने में अपने लिए थोड़ी सी जगह चाहती हूं.’’

‘‘बस शुरू हो गया तुम्हारा दर्शनशास्त्र… निकिता तुम बात को कहां से कहां ले जाती हो.’’

‘‘अनिकेत, जब तुम्हारे परिवार में कोई प्रसंग होता है तो तुम्हारे पास आसानी से समय निकल जाता है पर जब भी बात मेरे मायके जाने की होती है तो तुम्हारे पास बहाना हाजिर होता है.’’

5. वो कमजोर पल: क्या सीमा ने राज से दूसरी शादी की?

family-story-in-hindi

वही हुआ जिस का सीमा को डर था. उस के पति को पता चल ही गया कि उस का किसी और के साथ अफेयर चल रहा है. अब क्या होगा? वह सोच रही थी, क्या कहेगा पति? क्यों किया तुम ने मेरे साथ इतना बड़ा धोखा? क्या कमी थी मेरे प्यार में? क्या नहीं दिया मैं ने तुम्हें? घरपरिवार, सुखी संसार, पैसा, इज्जत, प्यार किस चीज की कमी रह गई थी जो तुम्हें बदचलन होना पड़ा? क्या कारण था कि तुम्हें चरित्रहीन होना पड़ा? मैं ने तुम से प्यार किया. शादी की. हमारे प्यार की निशानी हमारा एक प्यारा बेटा. अब क्या था बाकी? सिवा तुम्हारी शारीरिक भूख के. तुम पत्नी नहीं वेश्या हो, वेश्या.

6. पश्चाताप: आज्ञाकारी पुत्र घाना को किस बात की मिली सजा?

family-story-in-hindi

ट्रेन से उतर कर टैक्सी किया और घर पहुंच गया. महीनों बाद घर वापस आया था. मुझे व्यापार के सिलसिले में अकसर बाहर रहना पड़ता है. मैं लंबी यात्रा के कारण थका हुआ था, इसलिए आदतन सब से पहले नहाधो कर फ्रेश हुआ. तभी  पत्नी आंगन में चायनाश्ता ले आई. चाय पीते हुए मां से बातें कर रहा था. अगर मैं घर से बाहर रहूं और कुछ दिनों बाद वापस आता हूं तो  मां  घर की समस्याएं और गांवघर की दुनियाभर की बातें ले कर बैठ जाती है. यह उस की पुरानी आदत है. इसलिए कुछ उस की बातें सुनता हूं. कुछ बातों पर ध्यान नहीं देता हूं. परंतु इस प्रकार अपने गांवघर के बारे में बहुतकुछ जानकारी मिल जाती है.

7. सच उगल दिया: क्या था शीला का सच

family-story-in-hindi

जब वह बाबा गली से गुजर रहा था, तब रुक्मिणी उसे रोकते हुए बोलीं, ‘‘बाबा, जरा रुकना.’’

‘‘हां, अम्मांजी…’’ बाबा ने रुकते हुए कहा.

‘‘क्या आप हाथ देख कर सबकुछ सहीसही बता सकते हैं?’’ रुक्मिणी ने सवाल पूछा.

बाबा खुश हो कर बोला, ‘‘हां अम्मांजी, मैं तो ज्योतिषी हूं. मैं हाथ देख कर सबकुछ सचसच बता सकता हूं.’’

बाबा को अपने आंगन में बैठा कर रुक्मिणी अंदर चली गईं. तिलकधारी बाबा के गले में रुद्राक्ष की माला थी, बढ़ी हुई दाढ़ी, उंगलियों में न जाने कितने नगीने पहन खे थे. चेहरे पर चमक थी.

रुक्मिणी उस बाबा को देख भीतर ही भीतर खुश हुईं. आखिरकार बाबा बोला, ‘‘लाओ अम्मांजी, अपना हाथ दो.’’

8. परीक्षा: क्यों सुषमा मायके जाना चाहती थी?

family-story-in-hindi

पंकज दफ्तर से देर से निकला और सुस्त कदमों से बाजार से होते हुए घर की ओर चल पड़ा. वह राह में एक दुकान पर रुक कर चाय पीने लगा. चाय पीते हुए उस ने पीछे मुड़ कर ‘भारत रंगालय’ नामक नाट्यशाला की इमारत की ओर देखा. सामने मुख्यद्वार पर एक बैनर लटका था, ‘आज का नाटक-शेरे जंग, निर्देशक-सुधीर कुमार.’

सुधीर पंकज का बचपन का दोस्त था. कालेज के दिनों से ही उसे रंगमंच में बहुत दिलचस्पी थी. वैसे तो वह नौकरी करता था किंतु उस की रंगमंच के प्रति दिलचस्पी जरा भी कम नहीं हुई थी. हमेशा कोई न कोई नाटक करता ही रहता था…

9. घुटन: मैटरनिटी लीव के बाद क्या हुआ शुभि के साथ?

family-story-in-hindi

शुभि ने 5 महीने की अपनी बेटी सिया को गोद में ले कर खूब प्यारदुलार किया. उस के जन्म के बाद आज पहली बार औफिस जाते हुए अच्छा तो नहीं लग रहा था पर औफिस तो जाना ही था. 6 महीने से छुट्टी पर ही थी.

मयंक ने शुभि को सिया को दुलारते देखा तो हंसते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘मन नहीं हो रहा है सिया को छोड़ कर जाने का.’’

‘‘हां, आई कैन अंडरस्टैंड पर सिया की चिंता मत करो. मम्मीपापा हैं न. रमा बाई भी है. सिया सब के साथ सेफ और खुश रहेगी, डौंट वरी. चलो, अब निकलते हैं.’’

शुभि के सासससुर दिनेश और लता ने भी सिया को निश्चिंत रहने के लिए कहा, ‘‘शुभि, आराम से जाओ. हम हैं न.’’

पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

10. औलाद: क्यों कुलसूम अपने बच्चे को खुद से दूर करना चाहती थी?

family story in hindi
family story in hindi

नरगिस की खूबसूरती के चर्चे आम होने लगे. गांवभर की औरतें नरगिस की मां से कहने लगीं कि उस की शादी की फिक्र करो जुबैदा. उम्र भले ही कम सही, लेकिन कुदरत ने इस को खूबसूरती ऐसी दी है कि बड़ेबड़ों का ईमान डोल जाए.

इस पर जुबैदा कहती, “तुम लोग मेरी बेटी की फिक्र में मत मरा करो. मेरे पास दौलत भले ही नहीं है, लेकिन बेटी ऐसी मिली है कि राजेमहाराजे तक आएंगे रिश्ता ले कर मेरे दरवाजे पर.”

एक दिन ऐसा हुआ भी. हवेली से बड़े नवाब के बड़े साहबजादे शाहरुख मिर्जा के लिए नरगिस का रिश्ता आ गया. जुबैदा की खुशी का ठिकाना न रहा.

नरगिस के अब्बा अब इस दुनिया में नहीं थे, इसलिए मंगनी की रस्म भी जुबैदा ने खुद पूरी की और अगले साल बेटी के निकाह का दिन तय कर दिया.

तलाक के बाद- भाग 1: जब सुमिता को हुआ अपनी गलतियों का एहसास

Writer- Vinita Rahurikar

3 दिनों की लंबी छुट्टियां सुमिता को 3 युगों के समान लग रही थीं. पहला दिन घर के कामकाज में निकल गया. दूसरा दिन आराम करने और घर के लिए जरूरी सामान खरीदने में बीत गया. लेकिन आज सुबह से ही सुमिता को बड़ा खालीपन लग रहा था. खालीपन तो वह कई महीनों से महसूस करती आ रही थी, लेकिन आज तो सुबह से ही वह खासी बोरियत महसूस कर रही थी.

बाई खाना बना कर जा चुकी थी. सुबह के 11 ही बजे थे. सुमिता का नहानाधोना, नाश्ता भी हो चुका था. झाड़ूपोंछा और कपड़े धोने वाली बाइयां भी अपनाअपना काम कर के जा चुकी थीं. यानी अब दिन भर न किसी का आना या जाना नहीं होना था.

टीवी से भी बोर हो कर सुमिता ने टीवी बंद कर दिया और फोन हाथ में ले कर उस ने थोड़ी देर बातें करने के इरादे से अपनी सहेली आनंदी को फोन लगाया.

‘‘हैलो,’’ उधर से आनंदी का स्वर सुनाई दिया.

‘‘हैलो आनंदी, मैं सुमिता बोल रही हूं, कैसी है, क्या चल रहा है?’’ सुमिता ने बड़े उत्साह से कहा.

‘‘ओह,’’ आनंदी का स्वर जैसे तिक्त हो गया सुमिता की आवाज सुन कर, ‘‘ठीक हूं, बस घर के काम कर रही हूं. खाना, नाश्ता और बच्चे और क्या. तू बता.’’

‘‘कुछ नहीं यार, बोर हो रही थी तो सोचा तुझ से बात कर लूं. चल न, दोपहर में पिक्चर देखने चलते हैं,’’ सुमिता उत्साह से बोली.

‘‘नहीं यार, आज रिंकू की तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही है. मैं नहीं जा पाऊंगी. चल अच्छा, फोन रखती हूं. मैं घर में ढेर सारे काम हैं. पिक्चर देखने का मन तो मेरा भी कर रहा है पर क्या करूं, पति और बच्चों के ढेर सारे काम और फरमाइशें होती हैं,’’ कह कर आनंदी ने फोन रख दिया.

ये भी पढ़ें- खुशी के आंसू: आनंद और छाया ने क्यों दी अपने प्यार की बलि?

सुमिता से उस ने और कुछ नहीं कहा, लेकिन फोन डिस्कनैक्ट होने से पहले सुमिता ने आनंदी की वह बात स्पष्ट रूप से सुन ली थी, जो उस ने शायद अपने पति से बोली होगी. ‘इस सुमिता के पास घरगृहस्थी का कोई काम तो है नहीं, दूसरों को भी अपनी तरह फुरसतिया समझती है,’ बोलते समय स्वर की खीज साफ महसूस हो रही थी.

फिर शिल्पा का भी वही रवैया. उस के बाद रश्मि का भी.

यानी सुमिता से बात करने के लिए न तो किसी के भी पास फुरसत है और न ही दिलचस्पी.

सब की सब आजकल उस से कतराने लगी हैं. जबकि ये तीनों तो किसी जमाने में उस के सब से करीब हुआ करती थीं. एक गहरी सांस भर कर सुमिता ने फोन टेबल पर रख दिया. अब किसी और को फोन करने की उस की इच्छा ही नहीं रही. वह उठ कर गैलरी में आ गई. नीचे की लौन में बिल्डिंग के बच्चे खेल रहे थे. न जाने क्यों उस के मन में एक हूक सी उठी और आंखें भर आईं. किसी के शब्द कानों में गूंजने लगे थे.

‘तुम भी अपने मातापिता की इकलौती संतान हो सुमि और मैं भी. हम दोनों ही अकेलेपन का दर्द समझते हैं. इसलिए मैं ने तय किया है कि हम ढेर सारे बच्चे पैदा करेंगे, ताकि हमारे बच्चों को कभी अकेलापन महसूस न हो,’ समीर हंसते हुए अकसर सुमिता को छेड़ता रहता था.

बच्चों को अकेलापन का दर्द महसूस न हो की चिंता करने वाले समीर की खुद की ही जिंदगी को अकेला कर के सूनेपन की गर्त में धकेल आई थी सुमिता. लेकिन तब कहां सब सोच पाई थी वह कि एक दिन खुद इतनी अकेली हो कर रह जाएगी.

ये भी पढ़ें- लिपस्टिक: क्या नताशा बॉस का दिल जीत पाई?

कितना गिड़गिड़ाया था समीर. आखिर तक कितनी विनती की थी उस ने, ‘प्लीज सुमि, मुझे इतनी बड़ी सजा मत दो. मैं मानता हूं मुझ से गलतियां हो गईं, लेकिन मुझे एक मौका तो दे दो, एक आखिरी मौका. मैं पूरी कोशिश करूंगा कि तुम्हें अब से शिकायत का कोई मौका न मिले.’

समीर बारबार अपनी गलतियों की माफी मांग रहा था. उन गलतियों की, जो वास्तव में गलतियां थीं ही नहीं. छोटीछोटी अपेक्षाएं, छोटीछोटी इच्छाएं थीं, जो एक पति सहज रूप से अपनी पत्नी से करता है. जैसे, उस की शर्ट का बटन लगा दिया जाए, बुखार से तपते और दुखते उस के माथे को पत्नी प्यार से सहला दे, कभी मन होने पर उस की पसंद की कोई चीज बना कर खिला दे वगैरह.

Best of Manohar Kahaniya: जीजा साली के खेल में

सौजन्य- मनोहर कहानियां

मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले के वारासिवनी थाने के टीआई कमल निगवाल को रात करीब 9 बजे किसी अज्ञात व्यक्ति ने फोन कर के सूचना दी कि क्षेत्र के गांव कायदी के बनियाटोला, वैष्णो देवी मंदिर के पास एक युवक ट्रेन से कट गया है. खबर मिलते ही टीआई थाने में मौजूद एएसआई विजय पाटिल व महिला आरक्षक लक्ष्मी के साथ घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए.

टीआई निगवाल ने घटनास्थल पर देखा कि एक युवक का शव रेल लाइनों पर बुरी तरह क्षतविक्षत हालत में पड़ा था. वहीं लाइनों के पास सड़क किनारे एक मोटरसाइकिल भी खड़ी थी. इस से टीआई ने अंदाजा लगाया कि युवक आत्महत्या करने के लिए ही अपनी मोटरसाइकिल से यहां आया होगा.न लाइनों पर टूटा हुआ मोबाइल भी पड़ा था. जिसे पुलिस ने कब्जे में ले लिया. शव को देख कर उस की पहचान संभव नहीं थी, इसलिए पुलिस ने कपड़ों की तलाशी ली. तलाशी में मृतक की जेब में एक सुसाइड नोट मिला. पुलिस ने उस टूटे हुए मोबाइल फोन से मिले सिम कार्ड को दूसरे फोन में डाल कर जांच की. फलस्वरूप जल्द ही मृतक की पहचान हो गई, वह वारासिवनी के निकटवर्ती गांव सोनझरा का रहने वाला डा. संजय डहाके था.

पुलिस ने फोन कर के डा. संजय डहाके के सुसाइड करनेकी खबर उस के घर वालों को दे दी. खबर सुनते ही डा. संजय के घर में मातम छा गया. डा. संजय की पत्नी और भाई रोतेबिलखते वारासिवनी पहुंच गए. उन्होंने कपड़ों के आधार पर उस की शिनाख्त संजय डहाके के रूप में कर दी.

लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद टीआई कमल निगवाल ने केस की जांच एएसआई विजय पाटिल को सौंप दी. दूसरे दिन मृतक का पोस्टमार्टम हो जाने के बाद पुलिस ने डा. संजय का शव उन के परिवार वालों को सौंप दिया. डा. संजय के अंतिम संस्कार के बाद एएसआई विजय पाटिल ने डा. संजय के परिवार वालों से पूछताछ की.  पता चला कि एमबीबीएस करने के बाद डा. संजय काफी लंबे समय से बालाघाट के अंकुर नर्सिंग होम में काम कर रहे थे. वह रोजाना अपनी बाइक से बालाघाट जाते और रात 8 बजे ड्यूटी पूरी कर बाइक से ही घर आते थे. घटना वाले दिन भी वह अपनी ड्यूटी पूरी कर बाइक से घर लौट रहे थे, लेकिन उस रोज उन के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था. इसलिए रास्ते में बाइक खड़ी कर के ट्रेन के आगे कूद गए.

ये भी पढ़ें-  मुझे नहीं जाना

डा. संजय उच्चशिक्षित थे, इस के बावजूद ऐसी क्या वजह रही जो उन्होंने अपनी जीवन लीला खुद ही समाप्त कर ली. जेब में मिले सुसाइड नोट की जांच की गई तो आत्महत्या करने के पीछे की कहानी पता चल गई.

डा. संजय ने अपने सुसाइड नोट में अपने साथ काम करने वाली 22 वर्षीय खूबसूरत नर्स सुधा पर ब्लैकमेल करने का आरोप लगाया था. उन्होंने नोट में लिखा था कि सुधा ने उन्हें अपने रूपजाल में फंसा कर संबंध बना लिए थे. इस के बाद अस्पताल के सामने स्थित एक मैडिकल स्टोर पर नौकरी करने वाले अपने 25 वर्षीय जीजा मनोज दांदरे के साथ मिल कर उन पर शादी करने का दबाव बना रही थी.

चूंकि डा. संजय पहले से ही शादीशुदा थे, इसलिए उन्होंने सुधा के साथ शादी करने से मना कर दिया तो वह अपने जीजा के साथ मिल कर उन्हें ब्लैकमेल करने लगी.

इस पत्र के आधार पर जांच अधिकारी एएसआई विजय पाटिल ने बालाघाट जा कर अंकुर नर्सिंग होम के दूसरे कर्मचारियों से पूछताछ की. पूछताछ में यह बात साफ हो गई कि डा. संजय और वहां काम करने वाली नर्स सुधा ठाकरे में काफी नजदीकियां थीं.

सुधा नौकरी के साथसाथ बीएससी की परीक्षा भी दे रही थी. इसलिए पढ़ाई के चलते कुछ समय पहले वह अस्पताल आती रहती थी. इस दौरान दोनों में कुछ विवाद होने की बात भी कर्मचारियों ने बताई. यह भी पता चला कि इस विवाद के बाद डा. संजय पिछले कुछ दिनों से काफी परेशान रहने लगे थे.

घटना वाले दिन वह कुछ ज्यादा ही परेशान थे. उस दिन उन्होंने अस्पताल में किसी से भी ज्यादा बात नहीं की थी और शाम को अपनी ड्यूटी पूरी कर अस्पताल से चुपचाप चले गए थे. इस के बाद अस्पताल वालों को दूसरे दिन सुबह उन के द्वारा अत्महत्या करने की खबर मिली.

एएसआई विजय पाटिल और उन की टीम ने वारासिवनी सिकंदरा निवासी सुधा ठाकरे और मरारी मोहल्ला, बालाघाट निवासी उस के जीजा मनोज से गहराई से पूछताछ की, जिस में उन दोनों के द्वारा डा. संजय को प्रताडि़त करने की बात समाने आई. सुधा ठाकरे और उस के जीजा मनोज दांदरे से की गई पूछताछ और अन्य सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

एमबीबीएस करने के बाद डा. संजय बालाघाट स्थित एक प्रसिद्ध निजी नर्सिंग होम में नौकरी करने लगे थे. गांव सोनझरा से बालाघाट ज्यादा दूर नहीं था, इसलिए वे अपनी ड्यूटी पर रोजाना मोटरसाइकिल पर आतेजाते थे. अपनी योग्यता के चलते डा. संजय ने जल्द ही अच्छा नाम कमा लिया था.

इसी बीच करीब 2 साल पहले वारासिवनी के सिकंदरा इलाके की रहने वाली सुधा ठाकरे ने उसी अस्पताल में नर्स के रूप में काम शुरू किया, जिस में डा. संजय काम करते थे.

सुधा बेहद खूबसूरत थी. वह अपनी खूबसूरती का फायदा उठा कर नर्सिंग होम में सब से चर्चित डा. संजय के नजदीक आने की कोशिश करने लगी. बालाघाट में ही सुधा की बड़ी बहन की शादी हुई थी. उस का पति मनोज दांदरे इसी नर्सिंग होम के सामने स्थित एक मैडिकल स्टोर पर काम करता था. सुधा बालाघाट में अपनी बहन के साथ ही रहती थी. लेकिन साप्ताहिक छुट्टी पर वह अपने घर वारासिवनी चली जाती थी.

सुधा डा. संजय के नजदीक आने की पूरी कोशिश कर रही थी. लेकिन डा. संजय उस की तरफ ध्यान नहीं दे रहे थे. इसलिए सुधा ने एक चाल चली. करीब डेढ़ साल पहले एक रोज बारिश का मौसम था. उस ने डा. संजय से कहा कि वह घर जाते समय अपनी मोटरसाइकिल पर उसे भी वारासिवनी तक ले चलें. डा. संजय को भला इस पर क्या ऐतराज हो सकता था सो उन्होंने उसे अपनी मोटरसाइकिल पर लिफ्ट दे दी.

सुधा की योजना बहुत दूर तक की थी, इसलिए मोटरसाइकिल जैसे ही शहर से बाहर निकली वह डा. संजय से सट कर बैठ गई. डा. संजय को अजीब तो लगा लेकिन वे भी आखिर इंसान थे, खूबसूरत जवान लड़की का सट कर बैठना उन के दिल की धड़कन बढ़ाने लगा. संयोग से उस रोज मौसम ने सुधा का साथ दिया और कुछ ही दूर जाने के बाद अचानक तेज बारिश होने के कारण दोनों को मोटरसाइकिल खड़ी कर एक पेड़ के नीचे आश्रय लेना पड़ा. तब तक रात का अंधेरा भी फैल चुका था. अंधेरे में अपने साथ जवान लड़की को भीगे कपड़ों में खड़ा देख डा. संजय का दिल भी मचलने लगा था.

कुछ देर बाद ठंड लगने के बहाने सुधा उन के पास आ कर खड़ी हुई तो डा. संजय ने उस की कमर में हाथ डाल दिया. सुधा को तो मानो इस पल का इंतजार था. वह एकदम से उन के सीने से लग कर गहरी सांसें लेने लगी.

बारिश काफी देर तक होती रही और उतनी ही देर तक दोनों एकदूसरे के दिल की धड़कनें सुनते हुए पेड़ के नीचे खड़े रहे. इस के बाद सुधा और डा. संजय एकदूसरे से नजदीक आ गए, नतीजतन कुछ ही समय बाद उन के बीच शारीरिक संबंध बन गए. फिर ऐसा अकसर होने लगा.

ये भी पढ़ें- एक तवायफ मां नहीं हो सकती

सुधा ने अपने जीजा के कहने पर बिछाया जाल

डा. संजय शादीशुदा थे, यह बात सुधा पहले से ही जानती थी. लेकिन उसे इस से कोई फर्क नहीं पड़ता था. क्योंकि उस की योजना कुछ और ही थी. वैसे सुधा के अवैध संबंध अपने जीजा मनोज से भी थे. मनोज काफी चालाक किस्म का इंसान था.

मैडिकल पर काम करते हुए उसे इस बात की जानकारी थी कि डा. संजय को नर्सिंग होम से तो बड़ा वेतन मिलता ही है, इस के अलावा भी उन्हें कई दवा कंपनियों से कमीशन मिलता है. इसलिए उस के कहने पर ही सुधा ने साजिश रच कर संजय को अपने जाल में फंसा लिया था.

कुछ समय बाद जब सुधा को लगने लगा कि डा. संजय अब पूरी तरह से उस के कब्जे में आ चुके हैं तो उस ने उन पर शादी करने का दबाव बनाना शुरू कर दिया. डा. संजय ने शादी करने से मना किया तो सुधा का जीजा मनोज सामने आया और डा. संजय को बदनाम करने की धमकी देने लगा. इस से डा. संजय परेशान हो गए. वे जानते थे कि यदि ऐसा हुआ तो उन की नौकरी जाने में एक पल भी नहीं लगेगा और पूरे इलाके में बदनामी होगी सो अलग. इसलिए उन्होंने सुधा और मनोज को समझाने की कोशिश की तो दोनों उन से चुप रहने के बदले पैसों की मांग करने लगे. जिस से डर कर डा. संजय ने अलगअलग किस्तों में सुधा और मनोज को 8 लाख रुपए दे भी दिए. लेकिन सुधा जहां उन पर लगातार शादी के लिए दबाव बना रही थी, वहीं मनोज चुप रहने के बदले कम से कम 5 लाख रुपयों की और मांग कर रहा था.

इसी बीच सुधा ने नौकरी छोड़ दी और डा. संजय को धमकी दी कि एक महीने के अंदर अगर उन्होंने उस के संग शादी नहीं की तो वह अपने संबंधों का ढिंढोरा पूरे बालाघाट में पीट देगी.

इस बात से डा. संजय काफी परेशान रहने लगे थे. जब उन्हें इस परेशानी से बचने का कोई रास्ता नहीं सूझा तो उन्होंने नर्सिंग होम में ही सुसाइड नोट लिख कर अपनी जेब में रख लिया.

वह सुसाइड करने का फैसला ले चुके थे. अपने गांव सोनझरा लौटते समय रात लगभग 8 बजे वह बनियाटोला स्थित वैष्णो देवी मंदिर के पास पहुंचे. उन्होंने अपनी मोटरसाइकिल वहीं खड़ी कर दी और बालाघाट की ओर से कटंगी जाने वाली ट्रेन के सामने कूद कर आत्महत्या कर ली.

ये भी पढ़ें- एक घड़ी औरत : प्रिया की जिंदगी की कहानी

पुलिस ने सुधा और उस के जीजा मनोज को भादंवि की धारा 306/34 के तहत गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

हताश जिंदगी का अंत- भाग 3: क्यों श्यामा जिंदगी से हार गई थी?

विपिन की चाहत पूरी नहीं हुई तो उस ने श्यामा के जीवन को बरबाद करने का निश्चय कर लिया. शाम होते ही विपिन रामभरोसे को ठेके पर ले जाता, उसे जम कर शराब पिलाता. फिर श्यामा के विरुद्ध भड़काता. इस के बाद रामभरोसे नशे में धुत हो कर घर पहुंचता. बातबेबात श्यामा से उल झता, फिर उसे जानवरों की तरह पीटता. बेटियां बचाने आतीं तो उन्हें गला दबा कर मारने की धमकी देता. पासपड़ोस के लोग चीखपुकार सुन कर श्यामा को बचाने आते, तो वह उन से भी भिड़ जाता. उन को भद्दीभद्दी गालियां बकता और वापस जाने को कहता.

रामभरेसे जब अधिक शराब पीने लगा और रातदिन नशे में धुत रहने लगा तो गैराज मालिक ने उसे नौकरी से निकाल दिया. विपिन ने भी अब उसे मुफ्त में शराब पिलाना बंद कर दिया था. वह शराब की जुगत के लिए कभी रिक्शा चलाता तो कभी ढाबों पर जा कर बरतन मांजता. शराब पीने के बाद कभी वह घर आता तो कभी ढाबे पर ही सो जाता. उसे अब न पत्नी की चिंता रह गई थी और न ही बेटियों की.

पति की नशेबाजी से घर की आर्थिक स्थिति डांवांडोल हो चुकी थी. जब बेटियों के भूखे मरने की नौबत आ गई तब श्यामा नौकरी की तलाश में जुटी. 8वीं पास श्यामा को भला अच्छी नौकरी कहां मिलती. उस ने महल्ले में ही स्थित निरंकारी बालिका इंटर कालेज की प्रधानाचार्या से संपर्क किया और अपनी व्यथा बताते हुए जीवनयापन करने के लिए काम मांगा. प्रधानाचार्या ने श्यामा पर तरस खाते हुए रसोइया की नौकरी दे दी. इस के बाद श्यामा 2 हजार रुपए वेतन पर मिडडे मील बनाने का काम करने लगी.

ये भी पढ़ें- देह से परे: मोनिका ने आरव से कैसे बदला लिया?

नौकरी पाने के बाद श्यामा किसी तरह अपनी बेटियों का पालनपोषण करने लगी. श्यामा की बड़ी बेटी पिंकी अब तक निंरकारी बालिका इंटरकालेज से इंटर मीडिएट की परीक्षा पास कर बीए (प्रथम वर्ष) में पढ़ने लगी थी. उस की अन्य 3 बेटियां प्रियंका, वर्षा और रूबी निरंकारी बालिका में ही पढ़ रही थीं. वह उन्हें सुबह अपने साथ ले जाती और फिर छुट्टी होने के बाद साथ ही ले आती थी. मिडडे मील का बचा भोजन भी वह अपने साथ लाती जो शाम को उस की बेटियां खा लेती थीं.

नशेड़ी पति की दहशत से श्यामा व उस की बेटियां डरीसहमी रहती थीं. जब वह ज्यादा नशे में होता तो श्यामा दरवाजा नहीं खोलती थी. तब वह दरवाजा तोड़ने का प्रयास करता और खूब गालियां बकता. श्यामा के कमरे के सामने जगह पड़ी थी. उस ने इस खाली जगह पर घासफूस का एक छप्पर रखवा दिया था और एक चारपाई डलवा दी थी ताकि नशेड़ी पति कमरे के बजाय इसी छप्पर के नीचे सो जाए.

श्यामा की बड़ी बेटी  पिंकी अब तक 19 वर्ष की अवस्था पार कर चुकी थी. वह महल्ले के कुछ बच्चों को ट्यूशन पढ़ा कर अपना व अपनी पढ़ाई का खर्च भी निकालने लगी थी. पिंकी की एक सहेली पूजा थी. वह उस के साथ ही पढ़ती थी. वह उस से कहती थी कि मां के हौसले से ही वह जिंदा है. पहले वह छोटी बहनों को पढ़ा कर पैरों पर खड़ा करेगी. उस के बाद ही वह अपनी शादी करेगी. मां का हैसला टूटने नहीं देगी. उस की छोटी बहन 14 वर्षीया प्रियंका कक्षा 9 व 13 वर्र्षीया वर्षा कक्षा 7 और

10 वर्षीया रूबी कक्षा 5 में पढ़ रह थी.

रामभरेसे पक्का शराबी था. उस के पास जिस दिन शराब पीने को पैसे नहीं होते उस दिन वह श्यामा से मांगता. न कहने पर उसे मारतापीटता और बक्से में रखे पैसे निकाल लेता. पैसा न मिलने पर वह घर का सामान बरतन, अनाज व कपडे़ उठा कर ले जाता और बेच कर शराब पी जाता. बेटियों की गुल्लक तक को तोड़ कर पैसे निकाल लेता.

नशेड़ी पति की हरकतों से परेशान श्यामा की हसरतें अधूरी रह गई थीं. उस के हौसले टूटने लगे थे और वह मानसिक तनाव में रहने लगी थी. वह अपना दर्द सहयोगी कर्मी तारावती से कभीकभी बयां करती थी. वह उस से कहती थी कि बड़ी बेटी पिंकी के ब्याह की चिंता सता रही है. घर की माली हालत खराब है. ऐसे में उस की शादी कैसे होगी. पिंकी के अलावा उस की 3 अन्य बेटियां भी हैं. जो सालदरसाल बड़ी हो रही हैं. उन की चिंता भी उसे सता रही है.

ये भी पढ़ें- मन के बंधन: दिल पर किसी का जोर नहीं चलता!

30 जनवरी की शाम 4 बजे रामभरोसे घर आया. उस समय श्यामा व उस की चारों पुत्रियां घर पर थीं. रामभरोसे ने आते ही श्यामा से शराब पीने को पैसे मांगे. श्यामा ने पैसे देने से मना किया तो उस ने पास में रखा डंडा उठाया और श्यामा को पीटने लगा. मां को क्रूर पिता की मार से बचाने उस की बड़ी बेटी पिंकी आई तो वह उसे भी पीटने लगा. प्रियंका और रूबी शोर मचाने लगीं तो रामभरोसे ने उन्हें भी पीटना शुरू कर दिया. मांबेटी अपनी जान बचा कर भागीं तो उस ने उन का पीछा किया. किसी तरह रामशरण के घर में घुस कर मांबेटियों ने जान बचाई. गुस्से से लाल रामभरोसे घर आया. उस ने घर का सामान तहसनहस कर दिया. घर के बाहर पड़ा छप्पर उलट दिया. फिर तांडव करने के बाद शराब ठेके पर शराब पीने पहुंच गया.

इधर श्यामा पति की हैवानियत से इतनी ऊब गई कि उस ने आत्महत्या करने का निश्चय कर लिया. वह बाजार गई और बीज बेचने वाली दुकान से क्विक फौस के

?7 पाउच खरीद लाई. यह दवा गेहूं को कीडे़घुन से बचाने के लिए गेहूं भंडारण में रखी जाती है. दवा लाने के बाद श्यामा ने चारों बेटियों को अपने सामने बिठाया और बोली, ‘तुम्हारे नशेड़ी बाप की हैवानियत से मैं टूट चुकी हूं. उस के जुल्म अब सह नही पाऊंगी. इसलिए मैं ने आत्महत्या करने का निश्चय कर लिया है.’

पिंकी बोली, ‘मां आप तो मेरी संबल हैं. आप के हौसले से ही हम जिंदा हैं. जब आप ही नहीं रहेंगी तो हम जी कर क्या करेंगी. हम सब एकसाथ ही मरेंगे.’

शायद तुम ठीक कहती हो. क्योंकि मेरे न रहने पर वह नशेड़ी अपनी नशापूर्ति के लिए या तो तुम सब को बेच देगा या फिर घर को देहव्यापार का अड्डा बना देगा. इसलिए उस के जुल्मों से बचने के लिए आत्महत्या करना ही बेहतर रहेगा.

श्यामा की जब चारों बेटियां एक राय हो कर श्यामा के साथ आत्महत्या को राजी हो गईं तब श्यामा ने कमरे की अंदर से कुंडी बंद की, फिर जहर की 7 में से 4 पुडि़यां खोलीं और आटे में मिला कर भगोने में डाल कर घोल बनाया. इस के बाद दिल को कड़ा कर के बारीबारी से चारों बेटियों को घोल पिला दिया, फिर स्वयं भी घोल पी लिया. कुछ देर बाद ही जहरीले घोल ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया. सभी मूर्च्छित हो कर आड़ीतिरछी एकदूसरे पर पसर गईं. फिर उन के प्राणपखेरू कब उड़ गए, किसी को पता ही नहीं चला.

ये भी पढ़ें- मायका: सुधा को मायके का प्यार क्यों नहीं मिला?

लगभग 33 घंटे बाद घटना की जानकारी तब हुई जब निरंकारी बालिका की छात्रा प्रीति श्यामा के घर आई. उस ने  दरवाजा न खोलने की जानकारी श्यामा के ससुर रामसागर को दी. रामसागर ने पुलिस को सूचना दी. पुलिस ने दरवाजा तोड़ा तब मां व उस की 4 बेटियों द्वारा आत्महत्या किए जाने की जानकारी हुई. पुलिस ने शवों को कब्जे में ले कर जांच शुरू की तो नशेड़ी पति की हैवानियत से ऊब कर आत्महत्या करने की घटना प्रकाश में आई.

दिनांक 3 फरवरी, 2020 को थाना सदर कोतवाली पुलिस ने अभियुक्त रामभरोसे को फतेहपुर की जिला अदालत में पेश किया. जहां उसे जिला जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक उस की जमानत स्वीकृत

द चिकन स्टोरी- भाग 2: क्या उपहार ने नयना के लिए पिता का अपमान किया?

लेखक- अरशद हाशमी

अभी मेरी सांस में सांस वापस आई भी नहीं थी कि अंदर से अंकलजी के चिल्लाने की आवाज सुनाई दी. ‘‘यह राक्षस फिर आ गया इस घर में.’’ अब तो मेरी सांस ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे ही रह गई. मु?ो लगा, अंकलजी को शायद पता चल गया. मैं तो उठ कर भागने ही वाला था कि अंदर से एक थैली उड़ती हुई आई और बाहर आंगन में आ कर गिरी. उस में से ढेर सारा प्याज निकल कर चारों तरफ फैल गया.

‘‘तु?ो कितनी बार मना किया है लहसुनप्याज खाने को, सुनता क्यों नहीं,’’ अंकलजी आग्नेय नेत्रों से उपकार को घूरते हुए बोले. अंकलजी को देख कर मु?ो घिग्गी बंध गई, लगा कि आज हम दोनों भस्म हुए ही हुए.

उपकार मुंह नीचे किए चुपचाप बैठा था. मु?ो काटो तो खून नहीं. और अंकलजी बड़बड़ाते हुए घर से बाहर चले गए.

मैं ने तुरंत टेबल के नीचे से डब्बा निकाला और बाहर की तरफ जाने लगा.

‘‘यह डब्बा तो छोड़ता जा, कल ले जाना,’’ उपकार की दबीदबी सी आवाज आई.

‘‘इतना सुनने के बाद तु?ो अभी भी चिकन खाना है,’’ मैं हैरत में डूबा हुआ उपकार को देख रहा था.

जवाब में उपकार ने मेरे हाथ से डब्बा ले लिया. उसी समय अंकलजी वापस आए और मैं उन को नमस्ते कर के घर से निकल गया.

पूरे एक हफ्ते तक मैं ने उपकार के घर की तरफ रुख न किया. पूरे एक साल तक मैं ने चिकन को हाथ भी नहीं लगाया. घर वाले हैरान थे कि मु?ो क्या हो गया. कहां मैं इतने शौक से चिकन खाता था और कहां मैं चिकन की तरफ देखता भी नहीं.

मैं अकसर उपकार को सम?ाता कि एक ब्राह्मण के लिए मांसाहार उचित नहीं है. साथ ही, उस को अपने पिताजी की भावनाओं का सम्मान करते हुए लहसुनप्याज भी नहीं खानी चाहिए. लेकिन, उस पर कोई असर हो तब न. उलटे, उस को तो मेरे घर का चिकन इतना अच्छा लगा कि कभी भी मेरे घर आ जाता और मां से चिकन बनवाने की फरमाइश कर बैठता. छोटी बहन नयना तो चिकन बहुत ही स्वादिष्ठ बनाती थी.

मां कहती थी, ऐसा स्वादिष्ठ चिकन पूरे महल्ले में कोई नहीं बनाता था. पता नहीं मां ऐसा, बस, अपनी बेटी के मोह में कहती थी या सचमुच नयना सब से अच्छा चिकन बनाती थी. हमें तो महल्ले की किसी कन्या के हाथ का बना चिकन खाने का मौका मिला नहीं था, इसलिए नयना का बनाया चिकन ही हमारे लिए सब से अच्छा था.

ये भी पढ़ें- श्यामली: जब श्यामली ने कुछ कर गुजरने की ठानी

यों ही समय कटता चला गया और फिर हमारी ग्रेजुएशन पूरी हो गई. उपकार ने पूरी यूनिवर्सिटी में टौप किया था. मैं भी उस के साथ पढ़पढ़ कर ठीकठाक नंबर से पास हो गया था. उपकार ने तो अपने ही कालेज में एमएससी में ऐडमिशन ले लिया था जबकि मु?ो दिल्ली में एक एक्सपोर्ट कंपनी में नौकरी मिल गई. महीने में एक बार ही मैं घर आ पाता. उपकार मु?ा से मिलने आ जाता और फिर चिकन खा कर ही जाता.

देखतेदेखते 2 साल गुजर गए. उपकार को अपने ही कालेज में लैक्चरर की नौकरी मिल गई. बधाई देने के लिए मैं उस के घर गया, तो उस ने बड़ी गर्मजोशी से मेरा स्वागत किया. मु?ो लगा जैसे वह मु?ा से कुछ कहना चाह रहा है लेकिन कह नहीं पा रहा था.

‘‘क्या बात है, कुछ कहना चाह रहे हो?’’ मैं ने उस से पूछ ही लिया.

‘‘हां, नहीं… कुछ नहीं.’’ मेरे पूछने पर वह थोड़ा हड़बड़ा गया.

‘‘कालेज में सब ठीक तो है?’’ मु?ो लगा शायद उसे नई नौकरी में एडजस्ट करने में कोई दिक्कत हो रही हो.

‘‘कालेज में तो सब ठीक है, असल में, मैं तुम से कुछ बात करना चाहता हूं, पर डरता हूं कि पता नहीं तुम क्या सोचो,’’ उस ने थोड़ी हिम्मत जुटाई.

‘‘अरे, तो बोल न. अगर कुछ चाहिए तो बता. बस, मु?ा से चिकन लाने को मत बोलना,’’ मैं बोल कर जोर से हंस दिया.

‘‘मैं चिकन नहीं, चिकन वाली को इस घर में लाना चाहता हूं,’’ उपकार ने धीमी सी आवाज में कहा.

‘‘मतलब?’’ मैं सच में कुछ नहीं सम?ा था.

‘‘मैं नयना से शादी करना चाहता हूं, अगर तुम को कोई आपत्ति न हो.’’ आखिर उस ने हिम्मत कर के बोल ही दिया.

‘‘नयना, अपनी नयना.’’ मु?ो उपकार की बात सुन कर एक ?ाटका सा लगा, लेकिन अगले ही पल मु?ो लगा नयना के लिए उपकार से अच्छा लड़का और कहां मिलेगा.

‘‘हां, हम दोनों एकदूसरे को पसंद करते हैं और शादी करना चाहते हैं,’’ उपकार ने नजरें नीची किए हुए कहा.

‘‘सच कहूं तो मु?ो तो बहुत खुशी होगी अगर नयना को इतना अच्छा घरपरिवार मिल जाए,’’ मैं ने मुसकरा कर कहा लेकिन अगले ही पल मेरी आंखों के आगे अंकलजी यानी उपकार के पिताजी का चेहरा घूम गया.

ये भी पढ़ें- खुशी: पायल खुद को छला हुआ क्यों महसूस करती थी?

‘‘लेकिन तुम्हारे पिताजी? वे तो लहसुनप्याज को भी घर में नहीं आने देते, भला एक मांसाहारी, गैरब्राह्मण लड़की को अपनी बहू बनाने के लिए कैसे तैयार होंगे,’’ मैं ने अपनी शंका उपकार के सामने रखी.

‘‘उन की चिंता तुम मत करो. उन को मैं किसी तरह मना ही लूंगा. मु?ो पहले तुम्हारी अनुमति की आवश्यकता थी,’’ उपकार ने मेरा हाथ पकड़ते हुए कहा.

‘‘मेरी अनुमति की कोई आवश्यकता नहीं है. नयना और तुम दोनों सम?ादार हो. मु?ो पूरा विश्वास है तुम दोनों की आपस में खूब बनेगी,’’ मैं एक बड़े भाई की तरह ज्ञान दे रहा था.

फिर घर आ कर मैं ने पहले मां व पिताजी से नयना और उपकार के बारे में बात की. मां तो बहुत प्रसन्न थीं, पिताजी यद्यपि थोड़े सशंकित थे कि एक कट्टर ब्राह्मण परिवार नयना को कैसे अपनी बहू बनाने के लिए तैयार होगा. लेकिन मैं ने उन को विश्वास दिलाया कि शादी उपकार के पिताजी की सहमति के बाद ही होगी.

फिर एक दिन उपकार ने मौका देख कर अपने पिताजी से नयना के बारे में बात की. जब उस ने बताया कि लड़की ब्राह्मण नहीं है तो वे थोड़े निराश हो गए. जानते तो थे ही कि उपकार जातपांत में विश्वास नहीं रखता, इसलिए उन्होंने भी अपने मन को सम?ा लिया.

लेकिन अगले ही पल उन का सवाल था, ‘‘लड़की मांसाहारी तो नहीं है?’’

अब उपकार ठहरा आज के जमाने का महाराजा हरिश्चंद्र, बता दिया सच. सुनते ही पिताजी हत्थे से उखड़ गए.

‘‘लड़की ब्राह्मण नहीं है, मैं यह तो स्वीकार कर सकता हूं, लेकिन एक मांसाहारी लड़की को मैं अपनी बहू स्वीकार नहीं कर सकता,’’ पिताजी अपने रौद्र रूप में आ गए थे.

‘‘आप एक बार उस से मिल तो लीजिए. वह एक बहुत अच्छी लड़की है,’’ उपकार ने पिताजी को मनाने की कोशिश की.

‘‘चाहे वह कितनी भी अच्छी हो और कितनी भी सुंदर हो, मैं तुम्हें उस से शादी की अनुमति नहीं दे सकता,’’ पिताजी ने उपकार से साफसाफ बोल दिया.

‘‘लेकिन मैं उस के अलावा किसी और से शादी नहीं करूंगा,’’ अब उपकार को भी थोड़ा गुस्सा आने लगा था.

‘‘ठीक है, तो जाओ और कर लो उस से शादी. लेकिन उस से पहले तुम्हें मु?ो और इस घर को त्यागना होगा,’’  उपकार के पिताजी ने हाथ उठा कर उपकार को आगे कुछ भी बोलने से रोक दिया और उठ कर अपने कमरे में चले गए.

यहीं आ कर उपकार अपने को बड़ा असहाय पा रहा था. वह जानता था कि उस के पिताजी ने उस को किस तरह पाला है. मां के देहांत के बाद जब सभी रिश्तेदार उन से दूसरी शादी के लिए कह रहे थे, उन्होंने कहा था कि वे अपना सारा जीवन उपकार के लिए बिता देंगे. उन्होंने कभी भी उपकार को किसी चीज की कमी नहीं होने दी, कभी किसी चीज के लिए मना नहीं किया. लेकिन आज जब उपकार को पसंद की जीवनसाथी का साथ चाहिए था, तो उस के पिताजी किसी भी तरह तैयार नहीं थे.

उपकार ने एकदो बार फिर पिताजी को मनाने की कोशिश की, लेकिन वे कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे.  बड़ी मुश्किल थी. उधर उपकार, इधर नयना – दोनों दुखी और निराश थे.

‘‘यार, कोई रास्ता तो बताओ पिताजी को मनाने का. वे तो मेरी बात सुनने को ही तैयार नहीं हैं,’’ एक दिन उपकार मु?ा से मिला और बोला.

‘‘यार, मैं ने कहीं पढ़ा था अगर लड़की के पिता को मनाना हो तो एक काले कपड़े पर मिट्टी का पुतला रख कर उस पर लाल धागा बांध कर लालमिर्च और नारियल चढ़ाने से मनोकामना पूरी होती है, लेकिन मु?ो यह नहीं पता कि इस से लड़के के पिता भी मानेंगे या नहीं,’’ मैं ने उस को एक टोटके के बारे में बताया.

‘‘यार, तुम को मजाक सू?ा रही है. यहां मैं टैंशन लेले कर गंजा न हो जाऊं,’’ उपकार ने मु?ो घूरते हुए कहा.

‘‘मैं मजाक नहीं कर रहा. अब तुम न मानो तो तुम्हारी मरजी,’’ मैं ने सुरेश के मशहूर गोलगप्पे मुंह में डालते हुए कहा

Manohar Kahaniya: किसी को न मिले ऐसी मां- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

अधिकारियों के निर्देश पर जश्न व हरन की गुमशुदगी के मामले को गलत नीयत से हुए अपहरण की धारा में दर्ज कर लिया गया. मामले का खुलासा करने के लिए थाना खेड़ी गंडियां इंचार्ज कुलविंदर सिंह के नेतृत्व में थाने के तेजतर्रार पुलिसकर्मियों की टीम गठित कर दी गई.

जिस के बाद पुलिस ने दीदार सिंह के आसपड़ोस के दुकानदारों से पूछताछ तेज कर दी. पड़ोसियों से भी पूछताछ कर ली गई. लेकिन किसी ने भी इस बात की तस्दीक नहीं की कि दोनों बच्चे उन के यहां कोल्डड्रिंक लेने आए थे.

एक बच्चे की मिली लाश

पुलिस ने दीदार सिंह के परिवार की कुंडली भी खंगालनी शुरू कर दी. दीदार सिंह के पिता दर्शन सिंह के3 बच्चे हैं. सब से बड़ी बेटी है गुरमेज कौर जिस की शादी हो चुकी है. छोटा भाई जसंवत सिंह भी शादीशुदा है. जिस घर में दीदार अपनी पत्नी मंजीत कौर व दोनों बेटों हरन व जश्न के साथ रहता है वह उस का पैतृक मकान है.

ये भी पढ़ें- Crime Story: पुलिस वाले की खूनी मोहब्बत- भाग 1

दोनों बेटों की शादी के बाद दर्शन सिंह ने मकान 2 हिस्सों में बांट दिया. दोनों भाई अपने परिवारों के साथ अपनेअपने हिस्सों में रहने लगे. दीदार सिंह और जसवंत सिंह दोनों ही पेशे से ड्राइवर थे.

दीदार पटियाला की एक बड़ी ट्रांसपोर्ट कंपनी में ड्राइवर था और ज्यादा समय घर के बाहर ही रहता था. वैसे दोनों भाइयों और उन के परिवार अलग जरूर रहते थे, लेकिन उन के बीच भाईचारे और प्यार की कोई कमी नहीं थी.

पुलिस को दुश्मनी के बिंदु पर जांच करने के बाद कोई सुराग नहीं मिला. जांच चल ही रही थी कि 27 जुलाई, 2019 को भाखड़ा नहर नरवाना ब्रांच में करीब 6-7 साल के एक बच्चे का शव सड़ीगली अवस्था में तैरते हुए पुलिस ने बरामद किया.

पुलिस ने जब आसपास के इलाकों में इस उम्र के लापता बच्चों के बारे में जानकारी हासिल की तो पता चला कि दीदार सिंह के छोटा बेटा हरनदीप सिंह भी इसी उम्र का था.

थानाप्रभारी कुलविंदर सिंह ने परिवार वालों को बुलवा कर जब शव की शिनाख्त का प्रयास किया तो उन्होंने शव को पहचानने से ही इनकार कर दिया.

दरअसल शव इतनी बुरी तरह सड़गल गया था कि उस में पहचान करने के लिए कोई चिह्न ही नहीं बचा था. बहरहाल पुलिस ने शव को बिना पहचान के ही डीएनए टेस्ट के लिए उस का सैंपल ले कर मोर्चरी में सुरक्षित रखवा दिया.

ये भी पढ़ें- Crime Story- गुड़िया रेप-मर्डर केस: भाग 2

दरअसल, दीदार सिंह को यकीन ही नहीं था कि उस के बच्चे की कोई हत्या भी कर सकता है. इसीलिए उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि भाखड़ा नहर के नरवाना इलाके में जो शव बरामद हुआ है वह उन के बेटे का हो सकता है.

इधर खेड़ी प्रभारी कुलविंदर सिंह को लगने लगा कि अगर नहर से एक बच्चे का शव बरामद हो गया है तो निश्चित ही दूसरा शव भी नहर में ही मिलेगा.

लिहाजा उन्होंने उच्चाधिकारियों से अनुमति ले कर तैराक व गोताखोरों को बुला कर भाखड़ा नहर के खेड़ी गंडिया से लगे 5 किलोमीटर इलाके में दूसरे शव की तलाश शुरू कर दी.

आखिरकार 4 अगस्त, 2019 को भाखड़ा नहर से करीब 10 साल के एक और बच्चे  का सड़ागला शव बरामद हुआ. उस की उम्र दीदार सिंह के बडे़ बेटे जशनदीप सिंह जितनी थी. लेकिन इस बार बच्चे के हेयरस्टाइल, काला धागा व कपड़ों को देख कर दीदार सिंह के पिता दर्शन सिंह ने उसकी पहचान अपने बडे़ पोते जश्न के रूप में कर दी.

अब दीदार सिंह की समझ में भी यह बात आ गई थी कि अगर बड़े बेटे का शव नहर में मिला है तो जाहिर है पहले जो शव मिला था वह छोटे बेटे का ही होगा.

आखिरकार 5 अगस्त को दीदार सिंह के परिवार ने दोनों बच्चों की लाश पहचानने व उन के शव अपनी सुपुर्दगी में लेने की काररवाई पूरी कर दी. उसी दिन दोनों बच्चों के शवों का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

सवाल था कि दीदार के दोनों बच्चों की मौत नहर में डूबने से हुई थी या उन्हें  किसी ने नहर में ले जा कर धकेल दिया था. दीदार का तो कोई ऐसा दुश्मन भी नहीं था जो ऐसा कर सके. आखिर कौन ऐसा शख्स हो सकता है.

बच्चों का अंतिम संस्कार होने के बाद पुलिस ने दीदार सिंह से एक बार फिर पूछताछ की और उस से ऐसे लोगों के बारे में जानकारी ली जो उस के बच्चों को अपहरण कर हत्या कर सकते थे.

लेकिन दिमाग पर पूरा जोर डालने के बाद भी दीदार सिंह या उन का परिवार किसी ऐसे शख्स के बारे में नहीं बता सका, जिस पर शक किया जा सके.

धीरेधीरे वक्त तेजी से गुजरने लगा. 17 अगस्त, 2019 को पटियाला के एसएसपी विक्रमजीत दुग्गल ने हत्या की आशंका को देखते हुए एक स्पैशल इनवैस्टीगेशन टीम गठित कर दी, जिस में डीएसपी (घनौर) जसविंदर सिंह टिवाणा, डीएसपी (हैडक्वार्टर) गुरदेव सिंह धालीवाल तथा थानाप्रभारी कुलविंदर सिंह को शामिल किया गया.

इस बीच अक्तूबर, 2019 को पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई, जिस से साफ हो गया कि बच्चों की मौत डूबने से हुई थी.

इस मामले में दर्ज अपहरण के केस को दोनों बच्चों के शव मिलने के बाद अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का केस दर्ज कर लिया गया था. चूंकि इस मामले में कोई खास जानकारी मिल नहीं रही थी, लिहाजा पुलिस केवल धूल में लट्ठ मारती रही.

वक्त तेजी से गुजरता चला गया. पहले दिन बीते, फिर महीने बीतने लगे. दीदार सिंह थाने से ले कर एसआईटी के अफसरों और उच्चाधिकारियों के सामने अपने बच्चों के कातिलों का सुराग जल्द लगाने के लिए धक्के खाता रहा.

इधर इलाके के विधायक व सांसद भी पुलिस पर दबाव देते रहे. पुलिस अपने काम में कुछ कदम आगे बढ़ती, इस से पहले ही मार्च 2020 में कोरोना महामारी के कारण देशव्यापी लौकडाउन लग गया.

5 महीने तक लौकडाउन लगा रहा, जिस कारण पुलिस की जांच जहां की तहां फाइलों में कैद हो कर रह गई. इस दौरान एक साल का वक्त गुजर चुका था. दिसंबर, 2020 में एसएसपी दुग्गल ने हरन व जश्न की जांच के मामले में गठित हुई एसआईटी के इंचार्ज डीएसपी घनौर जसविंदर सिंह टिवाणा को बुला कर जांच को तेजी से आगे बढ़ाने के निर्देश दिए.

अगले भाग में पढ़ें- घटनास्थल से पलटी हत्याकांड की थ्यौरी

खुशी के आंसू- भाग 1: आनंद और छाया ने क्यों दी अपने प्यार की बलि?

लेखिका- डा. विभा रंजन  

आनंद आजकल छाया के बदले ब्यवहार से बहुत परेशान था. छाया आजकल उस से दूरी बना रही थी, जो आनंद के लिए असह्य हो रहा था. दोनों की प्रगाढ़ता के बारे में स्कूल के सभी लोगों को भी मालूम था. वे दोनों 5 वर्षों से साथ थे. छाया और आनंद एक ही स्कूल में शिक्षक के रूप में कार्यरत थे. वहीं जानपहचान हुई और दोनों ने एकदूसरे को अपना जीवनसाथी बनाने का फैसला कर लिया था.

दोनों की प्रेमकहानी को छाया के पिता का आशीर्वाद मिल चुका था. वे दोनों शादी के बंधन में बंधने वाले थे कि छाया के पिता को कैंसर जैसी भंयकर बीमारी से मृत्यु हो गई थी. विवाह एक वर्ष के लिए टल गया था. छाया की छोटी बहन ज्योति थी जो पिता की बीमारी के कारण बीए की परीक्षा नहीं दे पाई थी. छाया उसे आगे पढ़ाना चाहती थी. छाया के कहने पर आनंद उसे पढ़ाने उस के घर जाया करता था.

आजकल वह ज्योति के ब्यवहार में बदलाव देख रहा था. उसे महसूस होने लगा था कि ज्योति उस की तरफ आकर्षित हो रही है. उस ने जब से यह बात छाया को बताई तब से छाया उस से ही दूरी बनाने लगी. अब वह न पहले की तरह आनंद से मिलतीजुलती है और न बात करती है.

आनंद को समझ नहीं आ रहा था आखिर छाया  ने अचानक उस से बातचीत क्यों बंद कर दी. कहीं वह ज्योति की प्यार वाली बात में उस की गलती तो नहीं मान रही. नहींनहीं, वह अच्छी तरह जानती है मैं उस से कितना चाहता हूं. आखिर कुछ तो पता चले उस की बेरुखी का कारण क्या है?

ये भी पढ़ें- प्यार का पहला खत: सौम्या के दिल में उतरा आशीष

आज 3 दिन हो गए एक स्कूल में रह कर भी हम न मिल पाए न उस ने मेरी एक भी कौल का जवाब दिया. आनंद छाया की गतिविधियों पर अपनी नज़र  जमाए हुए था. वह स्कूल आया जरूर, पर अंदर दाखिल नहीं हुआ. बस, छाया को स्कूल में दाखिल होते देखता रहा.

छुट्टी के समय छाया जैसे ही गेट से बाहर निकलने वाली थी, आनंद ने अपनी बाइक उस के सामने खड़ी कर दी और बोला, “पीछे बैठो, मैं कोई तमाशा नहीं चाहता.”

छाया ने उस की वाणी में कठोरता महसूस की, वह डर गई. वह चुपचाप बाइक पर बैठ गई. बाइक तेजी से सड़क पर दौड़ने लगी. थोड़ी देर बाल आनंद ने बाइक को एक छोटे से पार्क के पास रोक दिया. पार्क में और भी जोड़े बैठे थे. आनंद ने छाया का हाथ पकड़ा और छाया के साथ एक बैंच पर बैठ गया.

दो पल दोनों खामोश बैठे रहे, फिर आनंद ने कहा,  “छाया,  मैं ने तुम्हें कितनी कौल कीं, तुम ने न फोन उठाया, न मुझे कौल ही किया. आखिर क्या बात है, क्यों मुझ से दूर रह कर मुझे परेशान कर रही हो? मेरी क्या गलती है, मुझे बताओ? मैं ने ऐसा  क्या कर दिया?”

“आनंद, तुम्हारी कोई गलती नहीं है.”

“तब फिर, इस बेरुखी का मतलब?”

“मैं खुद बहुत परेशान हूं,” छाया ने भीगे स्वर में कहा.

“तुम्हारी ऐसी कौन सी परेशानी है जो मुझे पता नहीं? मैं तुम्हारा साथी हूं, सुखदुख का भागीदार हूं. मुझे बताओ, हम मिल कर हर समस्या का हल निकाल लेंगे.”

ये भी पढ़ें- जैसा भी था, था तो

छाया एकटक आनंद को देखे जा रही थी.

“ऐसे क्यों देख रही हो, तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है? तुम जानती हो,मैं झूठ नहीं बोलता, बताओ क्या बात है?” आनंद ने कहा,-

Satyakatha: स्पा सेंटर की ‘एक्स्ट्रा सर्विस’- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

राजेश ने खुश हो कर अपने बटुए से रीटा को उस की एक्स्ट्रा सर्विस के पैसे दिए और नीचे रिसैप्शन पर आ कर पूनम को स्पैशल मसाज के लिए शुक्रिया कहा और दुकान के बाहर से आटो पकड़ा और घर आ गया. राजेश शारीरिक थकावट और दर्द के मारे अगले 2 दिनों तक औफिस नहीं जा पाया.

स्पा सेंटर की अनोखी दुकानें, जिस का बोर्ड देख कर ही लोगों के मन में अनोखे खयाल पैदा हो जाते हैं, आजकल बढ़ते ‘गुलाबी धंधे’ का अड्डा बन रहे हैं. बौडी मसाज के नाम पर लोग आजकल स्पा सेंटरों में जाते हैं और अपने दिलों में दबी इच्छाओं की पूर्ति कर लेते हैं.

स्पा सेंटरों में मसाज कराने का मेनू कार्ड बेशक लंबाचौड़ा क्यों न हो, लेकिन लोग कीमत की परवाह किए बगैर स्पा व मसाज सेंटरों में जा कर अपनी पसंद की महिला से मनचाहा मसाज करवाते हैं.

चाहे वह स्वीडिश मसाज हो, डीप टिश्यू मसाज हो, हौट स्टोन मसाज हो या फिर ट्रिगर पौइंट मसाज हो. मसाज कराने के ग्राहक के पास दरजनभर औप्शन होते हैं, जिस में से वह कोई एक चुनता है और उस के दिल में एक ही तरह के मसाज की तमन्ना होती है.

दिल्ली के बड़ेबड़े और हर रिहाइशी इलाकों में स्पा सेंटर खुले हैं. पहाड़गंज, करोलबाग, ग्रीन पार्क, महिपालपुर, द्वारका, रमेश नगर, लाजपत नगर वगैरह जैसे कई इलाकों में स्पा सेंटरों की दुकानों की भरमार है.

पहले के समय देह व्यापार के लिए खास जगह मौजूद होते थे. लेकिन जैसेजैसे प्रशासन का शिकंजा इस तरह के गैरकानूनी धंधों को रोकने के लिए मजबूत हुए हैं, वैसेवैसे देह व्यापार से जुड़े लोगों ने खुद को बनाए रखने के लिए अपना रूप भी बदला है.

ये भी पढ़ें- Best of Manohar Kahaniya: प्रेम या अभिशाप

बड़े शहरों में मौजूद रेलवे स्टेशनों के आस पास मौजूद होटल आज कल स्पा सेंटरों में तब्दील होने लगे हैं. यही नहीं बड़ेबड़े होटलों के भीतर भी स्पा सेंटर जैसी सुविधाएं मौजूद होती हैं, जो चौबीसों घंटे काम करती हैं.

इन स्पा सेंटरों में देह व्यापार से जुड़े कई लोग जुड़े हुए होते हैं. स्पा सेंटरों में मौजूद मसाज करने वाले कई ऐसे हैं जिन्हें मसाज करना आता भी नहीं है, बस, वो देह व्यापार के चलते इन स्पा सेंटरों से जुड़ जाते हैं और अपना धंधा चला रहे हैं.

ऐसे सेंटरों से कई विदेशी कालगर्ल्स भी जुड़ी होती हैं. ग्राहकों की मांग पर विशेष रूप से मसाज करने के बहाने उन्हें बुलाया जाता है.

दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने साल 2018 में दिल्ली पुलिस, श्रम विभाग और सिविक एजेंसियों से उन के इलाके में चलने वाले स्पा सेंटरों की एक सूची मांगी थी. इस में मुख्यरूप से, कितनों के पास लाइसेंस हैं, कितनों के खिलाफ काररवाई हुई, स्पा सेंटरों का निरीक्षण इत्यादि जानकारी देने के लिए कहा गया था. 28 नवंबर, 2018 तक इन सभी के बारे में विस्तृत जानकारी मांगी गई थी.

स्पा सेंटर वाले कहते हैं कि उन के स्पा सेंटर सुरक्षित और सही हैं, रेड पड़ने का कोई चांस ही नहीं है. लेकिन अखबारों में बेहद कम ही ऐसी खबरें देखने को मिलती हैं जिस में स्पा सेंटरों पर काररवाई होती हुई कोई खबर दिखाई देती हो.

इस से अंदाजा लगाया जा सकता है कि स्पा सेंटरों की हर किसी से सेटिंग हैं और इन सेंटरों में होने वाला ‘गुलाबी धंधा’ धड़ल्ले से चल रहा है.  द्य

दिल्ली सरकार के सख्त कदम

हाल ही में 2 अगस्त को दिल्ली सरकार ने शहर में स्पा और मालिश केंद्रों के संचालन पर नजर रखने और विनियमित करने के लिए सख्त दिशानिर्देश दिए. जिस में ग्राहकों और कर्मचारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सभी कर्मचारियों के लिए अनिवार्य रूप से पुलिस मंजूरी हासिल करना और परिचालन घंटे को सुबह 9 बजे से रात 9 बजे तक सीमित करना शामिल है.

ये भी पढ़ें- Crime Story- गुड़िया रेप-मर्डर केस: भाग 3

दिल्ली सरकार ने यौन शोषण, तसकरी और क्रौस जेंडर मालिश को रोकने के लिए भी इन दिशानिर्देशों को जारी किया है. इसी के साथ ही दिल्ली सरकार कई गाइडलाइंस जारी कर के इन स्पा सेंटरों पर पैनी नजर गड़ाने का काम कर रही है.

नए दिशानिर्देशों में कई प्रावधानों को शामिल किया गया हैं. जैसे केंद्रों के कमरों में केवल स्वत: बंद होने वाले दरवाजे लगाने होंगे, कोई कुंडी या बोल्ट की अनुमति नहीं होगी. और सभी बाहरी दरवाजे काम के घंटों के दौरान खुले रहने के आदेश दिए हैं.

इसी के साथ ही इन स्पा सेंटरों में पुरुषों और महिलाओं के लिए अलगअलग मालिश के कमरे, शौचालय, चेंजिंग रूम और स्नानघर के होने की बातें कही हैं.

अब देखना यह है कि क्या सरकार के इन कठोर दिशानिर्देशों और नियमों का स्पा सेंटरों में चलने वाले देह व्यापार पर कोई असर पड़ता है या नहीं.

अच्छा सिला दिया तूने मेरे प्यार का- भाग 3: जब प्रभा को अपनी बेटी की असलियत पता चली!

‘‘मां, क्या हुआ, पापा ठीक हैं न?’’ लेकिन जब उसे प्रभा की सिसकियों की आवाज आई तो वह समझ गई कि कुछ बात जरूर है. घबरा कर वह बोली, ‘‘मां, मां, आप रो क्यों रही हैं, कहिए न क्या हुआ?’’ अपने ससुर के बारे में सब जान कर कहने लगी, ‘‘मां, आ…आ…आप घबराइए मत, कुछ नहीं होगा पापा को. मैं कुछ करती हूं.’’ उस ने तुरंत अपनी दोस्त शोना को फोन लगाया और सारी बातों से उसे अवगत कराते हुए कहा कि तुरंत वह पापा को अस्पताल ले कर जाए, जैसे भी हो.

अपर्णा की जिस दोस्त को प्रभा देखना तक नहीं चाहती थी और उसे बंगालनबंगालन कह कर बुलाती थी, आज उसी की बदौलत भरत की जान बच पाई, वरना पता नहीं क्या हो जाता. डाक्टर का कहना था कि मेजर अटैक था. अगर थोड़ी और देर हो जाती मरीज को लाने में, तो वे इन्हें नहीं बचा पाते.

तब तक अपर्णा और मानव आ चुके थे. फिर कुछ देर बाद रंजो भी आ गई. बेटेबहू को देख कर बिलखबिलख कर रो पड़ी प्रभा और कहने लगी, आज अगर शोना न होती, तो शायद तुम्हारे पापा जिंदा न होते.’’

अपर्णा के भी आंसू रुक नहीं रहे थे. उस ने अपनी सास को ढांढ़स बंधाया और अपनी दोस्त को तहेदिल से धन्यवाद दिया कि उस की वजह से उस के ससुर की जान बच पाई. अपनी भाभी को मां के करीब देख कर रंजो भी मगरमच्छ के आंसू बहाते हुए कहने लगी, ‘‘मां, मैं तो मर ही जाती अगर पापा को कुछ हो जाता. कितनी खराब हूं मैं जो आप की कौल नहीं देख पाई. वह तो सुबह आप की मिस्डकौल देख कर वापस आप को फोन लगाया तो पता चला, वरना यहां तो कोई कुछ बताता भी नहीं है.’’ यह कह कर अपर्णा की तरफ घूरने लगी रंजो.

ये भी पढ़ें- Top 10 Social Story in Hindi: टॉप 10 सोशल कहानियां हिंदी में

तभी उस का 7 साल का बेटा बोल पड़ा, ‘‘मम्मी, आप झूठ क्यों बोल रही हो? नानी, मम्मी झूठ बोल रही हैं. जब आप का फोन आया था, हम टीवी पर ‘बाहुबली’ फिल्म देख रहे थे. मम्मी यह कह कर फोन नहीं उठा रही थीं कि पता नहीं कौन मर गया जो मां इतनी रात को हमें परेशान कर रही हैं. पापा ने कहा भी उठा लो, पर मां ने फोन नहीं उठाया और फिल्म देखती रहीं.’’ यह सुन कर तो सब हैरान हो गए.

सचाई खुलने से रंजो की तो सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. उसे लगा, जैसे उसे करंट लग गया हो. अपने बेटे को एक थप्पड़ लगाते हुए बोली, ‘‘पागल कहीं का, कुछ भी बकवास करता रहता है.’’ फिर हकलाते हुए कहने लगी, ‘‘अरे, वह तो कि…सी और का फोन आ रहा था, मैं ने उस के लिए कहा था,’’ दांत निपोरते हुए आगे बोली, ‘‘देखो न मां, कुछ भी बोलता है, बच्चा है न इसलिए.’’

प्रभा को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था. कहने लगी, ‘‘इस का मतलब तुम उस वक्त जागी हुई थी और तुम्हारा फोन भी तुम्हारे आसपास ही था? तुम ने एक बार भी यह नहीं सोचा कि इतनी रात को तुम्हारी मां किसी कारणवश ही तुम्हें फोन कर रही होगी? अच्छा सिला दिया तू ने मेरे प्यार और विश्वास का, बेटा. आज मेरा सुहाग उजड़ गया होता, अगर यह शोना न होती. जिस बहू के प्यार को मैं ढकोसला और बनावटी समझती रही, आज पता चल गया कि वह, असल में, प्यार ही था. मैं तो आज भी इस भ्रम में ही जीती रहती अगर तुम्हारा बेटा सचाई न बताता तो.’’

अपने हाथों से सोने का अंडा देने वाली मुरगी निकलते देख कहने लगी रंजो, ‘‘ना, नहीं मां, आप गलत समझ रही हैं.’’

‘‘समझ रही थी, पर अब मेरी आंखों पर से परदा हट चुका है. सही कहते थे तुम्हारे पापा कि तुम मेरी ममता का सिर्फ फायदा उठा रही हो, कोई मोह नहीं है तुम्हारे दिल में मेरे लिए,’’ कह कर प्रभा ने अपना चेहरा दूसरी तरफ फेर लिया और अपर्णा से बोली, ‘‘चलो बहू, देखें तुम्हारे पापा को कुछ चाहिए तो नहीं?’’ रंजो, ‘‘मां, मां’’ कहती रही. पर पलट कर एक बार भी नहीं देखा प्रभा ने, मोह टूट चुका था उस का.

मेरी एक परिचिता के बेटे का विवाह होने वाला था. शादी का जो कार्ड पसंद किया गया, वह काफी महंगा था. उन्होंने ज्यादा कार्ड न छपवा कर एक तरकीब आजमाई, जिस में उन्हें पूरी सफलता मिली. पति व बेटे के बौस और कुछ बहुत महत्त्वपूर्ण लोगों को तो कार्ड दे दिए, बाकी जिस के घर भी गईं, कार्ड पर उन्हीं के सामने नाम लिखने से पहले बोलतीं, ‘‘बस, क्या बताऊं, कैसे गलती हो गई, कार्ड्स कम हो गए.’’

सुनने वाला फौरन बोलता, ‘‘अरे, हमें कार्ड की जरूरत नहीं, हम आ जाएंगे.’’

परिचिता पूछतीं, ‘‘सच, आप आ जाओगे? फिर आप को कार्ड रहने दूं?’’

सामने वाला कहता है, ‘‘हां, हां, हम ऐसे ही आ जाएंगे.’’

सामने वाला भी अपने को उन का खास समझता कि वे ऐसी बात शेयर कर रही हैं. परिचिता ने सब को एक खाली कार्ड दिखाते हुए निबटा दिया.

मैं उन के साथ 2 घरों में कार्ड देने गई थी, इसलिए इस कलाकारी की प्रत्यक्षदर्शी हूं. खैर, कार्ड मुझे भी नहीं मिला. मैं ने बाद में उन्हें छेड़ा, ‘‘जब सब को दिखा देना, तो आखिर में कार्ड मुझे चाहिए.’’  इस पर

वे खुल कर हंसीं, बोलीं, ‘‘नहीं मिलेगा, बहुत खर्चे हैं शादी के. चलो, कार्ड के तो

पैसे बचाए.’’

मेरी मौसी ने एक दिलचस्प किस्सा बताया. वे रोडवेज की बस से बनारस जा रही थीं. उन की दूसरी तरफ की सीट पर एक बूढ़ी अम्मा आ कर बैठ गईं. कंडक्टर भला आदमी था, उस ने बूढ़ी अम्मा से टिकट के लिए पैसे भी नहीं लिए.

ये भी पढ़ें- प्रसाद: रधिया के साथ तांत्रिक ने क्या किया?

बस चल पड़ी. थोड़ी देर में कंडक्टर ने देखा कि अम्मा कुछ परेशान सी हैं. उस ने पूछा तो वे बोलीं, ‘‘बेटा, इलाहाबाद आ जाए तो बता देना.’’

कंडक्टर ने हां बोला और चला गया. लेकिन बाद में वह भी भूल गया, तब तक बस इलाहाबाद से आगे निकल गई थी.

कंडक्टर को अच्छा न लगा, उस ने बस वापस मुड़वाई. इलाहाबाद आया तो सोती हुई को जगाते हुए वह बोला, ‘‘अम्मा, इलाहाबाद आ गया.’’

‘‘अच्छा बेटा, चलो, अपनी दवाई खा लेती हूं.’’

‘‘अरे अम्मा, यहां उतरना नहीं है क्या,’’ कंडक्टर बोला.

‘‘मुझे तो बनारस जाना है. बेटी ने कहा था कि इलाहाबाद आने पर दवाई खा लेना,’’ अम्मा बोलीं.

सवारियों का हंसहंस कर बुरा हाल हो गया और कंडक्टर की शक्ल देखने लायक थी.

Best of Crime Story: मोहब्बत दूसरी नहीं होती

लेखक- सुरेशचंद्र मिश्र 

कानपुर शहर में आवास विकास द्वारा निर्मित एक जगह है केशवपुरम. वहां के नागेश्वर अपार्टमेंट में फ्लैट नंबर 612 कोचिंग से करोड़पति बने मोहम्मद सहवान का था. अन्य दिनों की तरह बीती 30 अप्रैल को भी नौकरानी राधा सहवान के फ्लैट पर पहुंची तो दरवाजा बंद था. लेकिन चाबी लौक में फंसी हुई थी.  इस फ्लैट में सहवान अपनी दूसरी बीवी नमरा खान के साथ रहते थे. नौकरानी राधा ने पहले तो घंटी बजाई, लेकिन जब जवाब नहीं मिला तो वह दरवाजा खोल कर अंदर दाखिल हुई. वहां फर्श पर खून से लथपथ नमरा का शव पड़ा देख कर उस की चीख निकल गई. वह उलटे पैर फ्लैट के बाहर आई और शोर मचाना शुरू कर दिया. राधा की आवाज सुन कर अन्य फ्लैटों में रहने वाले लोग बाहर आ गए. राधा ने उन्हें नमरा की हत्या की सूचना दी तो सभी अवाक रह गए. इसी नागेश्वर अपार्टमेंट के फ्लैट नंबर 610 में सहवान का भाई इरफान रहता था. लोगों ने उसे जानकारी दी तो वह भी आ गया. इरफान ने राधा से कुछ सवालजवाब किए, फिर तत्काल मोबाइल फोन द्वारा थाना कल्याणपुर पुलिस को भाभी नमरा की हत्या की सूचना दे दी. इमरान ने ही मृतका के पिता शहंशाह खान तथा अपने अन्य परिजनों को यह खबर दी. इस के बाद तो कोहराम मच गया.

सुबह 10 बजे हत्या की सूचना पा कर थाना कल्याणपुर के इंसपेक्टर अश्वनी पांडेय चौंके. उन्होंने महिला की हत्या की सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी, फिर पुलिस टीम के साथ केशवपुरम स्थित नागेश्वर अपार्टमेंट जा पहुंचे.बहुमंजिला अपार्टमेंट के बाहर भीड़ जुटी थी और लोग कानाफूसी कर रहे थे. इंसपेक्टर अश्वनी पांडेय फ्लैट नंबर 612 पर पहुंचे, जहां महिला की हत्या किए जाने की सूचना मिली थी. फ्लैट के बाहर कुछ लोग बदहवास हालत में खड़े थे. पुलिस को देख कर एक युवक सामने आ कर बोला, ‘‘सर, मेरा नाम इरफान है. मैं ने ही आप को नमरा भाभी की हत्या की सूचना दी थी.’’

इंसपेक्टर अश्वनी पांडेय ने एक नजर इरफान पर डाली, फिर उसे साथ ले कर फ्लैट के अंदर दाखिल हुए. कमरे के अंदर का दृश्य बड़ा ही वीभत्स था. खून में डूबी नमरा की लाश फर्श पर पड़ी थी. पलंग पर बिछी सफेद चादर पर भी खून लगा था. पलंग पर खून से सना चाकू, चश्मा तथा कान में लगाने वाली हैंड्सफ्री लीड पड़ी थी. शव के पास खून सना नया कुकर पड़ा था. देखने से लग रहा था कि कुकर से सिर पर प्रहार कर नमरा की हत्या की गई थी. बाथरूम में खून से सनी जींस हुक पर टंगी थी.

कमरे के अंदर नमरा की लाश तो पड़ी थी, लेकिन उस के शौहर मोहम्मद सहवान का कोई अतापता नहीं था. पूछने पर इरफान ने बताया कि भाईसाहब अपनी स्कोडा कार सहित घर से गायब हैं.वह कहां हैं, किस हालत में हैं, हम में से किसी को कुछ नहीं पता. मैं ने हर संभावित स्थान पर पता किया है, लेकिन उन की कोई जानकारी नहीं मिल रही है. इरफान की बात सुन कर इंसपेक्टर अश्वनी पांडेय का माथा ठनका. वह सोचने लगे कि कहीं शौहर ही तो बीवी का कत्ल कर फ रार नहीं हो गया. इंसपेक्टर अश्वनी पांडेय अभी जांचपड़ताल कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसएसपी अनंतदेव तिवारी, एसपी (पश्चिम) संजीव सुमन, एएसपी (ट्रेनिंग) आदित्य लांग्हे तथा सीओ (कल्याणपुर) अजय कुमार भी घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया और पांडेय जी से कत्ल के बारे में जानकारी ली. फोरैंसिक टीम ने भी बड़ी बारीकी से जांच की. टीम ने घर का कोनाकोना छान मारा. इस टीम को रसोई में गैस चूल्हे पर भगौने में कौफी मिली जो उबल कर चूल्हे पर गिरी थी. गैस के पास ही एक कप रखा था. टीम ने उस कप की जांच की तो उस में जहर के अंश मिले. पुलिस टीम ने कुकर, चश्मा, खून सनी जींस, चाकू तथा कप जांच के लिए कब्जे में ले लिए. बाथरूम, वाश बेसिन तथा जींस पर मिले खून के धब्बों का भी परीक्षण किया गया. जांच में वाश बेसिन में खून सने हाथ धोने की पुष्टि हुई. जींस व बाथरूम में भी खून होने की पुष्टि हुई. इस के अलावा टीम ने अन्य साक्ष्य भी जुटाए.

डायरी के पन्नों पर बिखरा दर्द और कत्ल की हकीकत

पुलिस अधिकारियों ने भी पूरे घर की छानबीन की. इस छानबीन में सीओ अजीत कुमार को सहवान की एक डायरी मिली. उन्होंने डायरी के  पन्नों को पलटा तो 2 पेज का एक नोट मिला. इस में सहवान ने अपनी दूसरी शादी से ले कर आए दिन तकरार, बेटे से अलग होने का दर्द और दूसरी पत्नी नमरा की हत्या से ले कर अपनी आत्महत्या की मजबूरी बयां की थी. डायरी के अंश इस तरह थे.

‘बीवी (पहली) से मेरी लड़ाई थी. सितंबर 2016 में नमरा मेरी जिंदगी में आई. मैं ने इसे कई बार टोका, लेकिन नहीं मानी. अपने बच्चों के बारे में भी बताया फिर भी… इस के कहने पर मैं ने समराना को तलाक दे दिया. फिर हम दोनों ने 21 जुलाई, 2018 में शादी कर ली.

‘नमरा के घर वालों को पता चला तो वे लोग उसे घर ले गए. उन्होंने 27 सितंबर, 2018 को हमारी दोबारा शादी कराई. इस के घर वालों ने बहुत दबाव दे कर 20 करोड़ मेहर बंधवाया. शादी के बाद से ही इस ने मेरे बेटे को मारनापीटना शुरू कर दिया. फाइनली मुझे अपने बच्चे को दूर करना पड़ा. नमरा खुद दिन भर सोती थी और रात में मुझे सोने नहीं देती थी. सीने पर नोचती और इतनी गंदी तरह से बात करती कि मन करता मर जाओ या कहीं भाग जाओ. पता नहीं कैसेकैसे लड़कों से बात करती थी. आज मुझ से यह हो गया, अब मैं भी नहीं जी सकता.’

डायरी के पन्नों में बयां दर्द से स्पष्ट था कि मोहम्मद सहवान ने अपनी दूसरी बीवी नमरा का कत्ल किया और खुद भी जान देने के लिए अपनी कार से घर से निकल गया. लेकिन वह कहां है, किस हालत में है, इस की जानकारी पुलिस अधिकारियों को अभी तक नहीं थी. नागेश्वर अपार्टमेंट की बहुमंजिला इमारत में लगभग 60 सीसीटीवी कैमरे लगे थे. मोहम्मद सहवान के फ्लैट के बाहर भी कैमरा लगा था.

पुलिस अधिकारियों ने उस कैमरे को खंगाला तो पता चला कि वह 28 अप्रैल से बंद था, जिस से मोहम्मद सहवान के आनेजाने का पता नहीं चल सका. लेकिन नमरा की हत्या के बाद तथा सहवान के घर से जाने के बाद सीसीटीवी कैमरा चालू हो गया था.

कैमरा किस ने बंद और चालू किया, इस पर पुलिस को संदेह हुआ. पुलिस अधिकारियों ने वाचमैन रमेशचंद से पूछताछ की तो उस ने रजिस्टर चैक कर बताया कि 29 अप्रैल की रात पौने 9 बजे मोहम्मद सहवान अपने फ्लैट पर आए थे और रात 12.10 बजे अपनी कार से बाहर चले गए थे. तब से वापस नहीं आए.

पुलिस अधिकारी अभी जांच कर ही रहे थे कि थाना बिल्हौर पुलिस से सूचना मिली कि एक युवक ने जहर खा लिया है. उसे गंभीर हालत में हैलट अस्पताल में भरती कराया गया है. इस सूचना पर कल्यापुर के इंसपेक्टर अश्वनी पांडेय इरफान को साथ ले कर हैलट अस्पताल पहुंचे. वहां भरती व्यक्ति को देख कर इरफान फफक कर रो पड़ा. उस ने भाई की मौत की सूचना घर वालों को भी दे दी.

थाना बिल्हौर पुलिस ने इंसपेक्टर अश्वनी पांडेय को बताया कि धौरसलार रेलवे स्टेशन के पास जीटी रोड पर सड़क किनारे एक स्कोडा कार खड़ी थी. वहां से थोड़ी दूरी पर यह व्यक्ति सड़क किनारे अचेतावस्था में पड़ा मिला. यह सूचना श्याम मिश्रा नाम के व्यक्ति ने पुलिस को दी थी.

सूचना पर पहुंची पुलिस ने तत्काल इसे हैलट अस्पताल में भरती कराया, जहां इस ने दम तोड़ दिया. कार की जामातलाशी में प्रौपर्टी के कागजात, थाना कल्याणपुर को दिया गया एक प्रार्थनापत्र तथा सल्फास की 3 खाली पुडि़या बरामद हुई थी. कार में सीट पर उल्टी भी की गई थी.

आत्महत्या ही ठीक लगी सहवान को

चूंकि प्रार्थनापत्र में थाना कल्याणपुर का जिक्र था, अत: कल्याणपुर के सीओ को सूचना दी गई. इंसपेक्टर अश्वनी पांडेय ने मोहम्मद सहवान के शव को मोर्च्युरी में रखवा दिया. फिर कार से बरामद कागजात व सल्फास की खाली पुडि़या अपने कब्जे में ले कर वापस लौट आए. पांडेय ने सारी जानकारी पुलिस के आला अधिकारियों को दी और कार से मिले कागजात उन्हें सौंप दिए. अधिकारियों ने निरीक्षण हेतु मृतक सहवान की स्कोडा कार यूपी 78सीबी 6040 को भी थाना कल्याणपुर मंगवा लिया.

अब तक घटनास्थल पर मृतका नमरा खान के पिता शहंशाह खान तथा मृतक सहवान की पहली पत्नी समराना भी आ गई थी. नौकरानी राधा तथा मृतक के भाई इरफान, इमरान तथा जिबरान पहले से ही पुलिस की निगरानी में थे.

पुलिस अधिकारियों ने सारे सबूत एकत्र कर मृतका नमरा खान के शव को पोस्टमार्टम के लिए हैलट अस्पताल भिजवा दिया. उधर इंसपेक्टर अश्वनी पांडेय ने हैलट अस्पताल की मोर्च्युरी में रखे मृतक सहवान के शव को पोस्टमार्टम हाउस भिजवा दिया.

दोनों शवों को पोस्टमार्टम हाउस भिजवाने के बाद पुलिस अधिकारियों ने मामले की तह तक जाने के लिए सब से पहले मृतक के भाई इरफान से पूछताछ की. इरफान ने अधिकारियों को बताया कि भैयाभाभी में आपस में नहीं बनती थी. उन में अकसर झगड़ा होता रहता था. उस से लड़ाईझगड़े की बात सहवान भाई बताया करते थे, लेकिन वह उन दोनों के बीच पड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था.

इमरान ने बताया कि उस की पत्नी निदा गर्भवती थी. 2 दिन पहले वह उसे छोड़ने ससुराल मसवानपुर गया था और वहां से आज सुबह ही लौटा था. कोचिंग जाने के लिए निकला तो पार्किंग में सहवान भाई की कार न देख कर गार्ड से जानकारी ली. लेकिन वह सही जवाब नहीं दे पाया. इसी बीच अपार्टमेंट में हत्या का शोर मचा. लोगों ने बताया कि फ्लैट नंबर 612 में एक महिला की हत्या हो गई है. चूंकि यह फ्लैट उस के भाई का था, सो वह तुरंत वहां पहुंचा. नौकरानी राधा वहां बदहवास हालत में खड़ी थी. उस ने राधा से बातचीत की, फिर भाभी की हत्या की जानकारी थाना कल्याणपुर पुलिस को दी.

इरफान के भाई इमरान व जिबरान ने बताया कि वह मांबाप के साथ मछरिया नौबस्ता में रहते हैं. वे दोनों सहवान की काकादेव स्थित कोचिंग में पढ़ाते थे. उन दोनों को पढ़ाने के एवज में सहवान 40-40 हजार रुपए प्रतिमाह देते थे. उन की निजी जिंदगी के बारे में उन्हें ज्यादा जानकारी नहीं थी. आज जब वे दोनों कोचिंग में थे, तभी इरफान भाई द्वारा नमरा की हत्या और सहवान भाई द्वारा आत्महत्या किए जाने की जानकारी मिली. इस के बाद दोनों यहां आ गए.

राधा ने बताया कलह के बारे में

नौकरानी राधा ने पुलिस अधिकारियों को बताया कि साहब और मेमसाहब के बीच बहुत खराब रिश्ता था. दोनों अकसर मारपीट करते रहते थे. झगड़ा ज्यादातर रात में होता था. सुबह जब वह काम करने आती थी तो फर्श पर ग्लास या फूलदान टूटा मिलता था. एक दिन तो टीवी बिखरा पड़ा था. आज सुबह जब वह काम पर आई तो दरवाजा बंद था, लेकिन चाबी लौक में फंसी थी.

पहले तो उस ने घंटी बजाई लेकिन जब जवाब नहीं मिला तो वह दरवाजा खोल कर अंदर दाखिल हुई. फर्श पर मेमसाहब की खून से लथपथ लाश देख कर उस के मुंह से चीख निकल गई. तब वह बाहर आई और यह जानकारी लोगों को दी.

मृतक सहवान की पहली पत्नी समराना ने पुलिस अधिकारियों को बताया कि सन 2007 में उस का निकाह मोहम्मद सहवान से हुआ था. शादी के बाद उस के 2 बच्चे भी हुए. वह शौहर के साथ खुशहाल जिंदगी गुजार रही थी. लेकिन उस के जीवन में ग्रहण लगा वर्ष 2016 में जब नमरा खान कोचिंग में पढ़ने आई.

पढ़ने के दौरान उस के और सहवान के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं, जो बाद में प्यार में तब्दील हो गईं. इस के बाद नमरा को ले कर उस के और शौहर सहवान के बीच झगड़ा होने लगा. फिर एक दिन नमरा के उकसाने पर सहवान ने उसे तलाक दे दिया. वह बेटी अंसरा के साथ मायके जा कर रहने लगी. फिर नमरा और सहवान ने शादी कर ली. नमरा उस के बेटे अयान को मारतीपीटती थी, जिस की वजह से सहवान ने बेटे को अपने मांबाप के पास छोड़ दिया था.

इस के बावजूद दोनों में लड़ाई होती थी. नमरा के व्यवहार से सहवान बहुत दुखी रहते थे. उस के और सहवान के बीच गुजाराभत्ता तथा उत्पीड़न का मुकदमा चल रहा था, फिर भी  वह उस से नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश करने लगे थे. वह बेटी अंसरा से मिलने के बहाने घर आते थे. बेटी से वह फोन पर भी बात किया करते थे. उन्हें लगने लगा था कि नमरा से दूसरा निकाह कर के उन्होंने भारी भूल की है.

29 अप्रैल, 2019 की रात 8 बजे सहवान ने उसे फोन किया और बेटी अंसरा से बात कराने को कहा. उस ने अंसरा से उन की बात करा दी. सहवान ने अंसरा से कहा था कि बेटी मैं तुम को बहुत मिस करता हूं. आई लव यू.

अंसरा ने भी आई लव यू पापा कहने के साथ फल और कुछ सामान ले कर आने को कहा था. सहवान ने उसे जल्द आने का भरोसा दिया था. सहवान तो नहीं आए लेकिन आज उन की मौत की खबर जरूर आ गई. इतना कह कर समराना फफक पड़ी.

पुलिस अधिकारियों ने मृतका नमरा खान के पिता शहंशाह खान से पूछताछ की तो वह रो पड़े और बोले, ‘‘नमरा ने अगर उन की बात मानी होती तो वह जिंदा होती. नमरा छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय से बीटेक की पढ़ाई कर रही थी. वह काकादेव स्थित सहवान की कोचिंग में पढ़ाई करने जाती थी. पढ़ाई के दौरान ही नमरा को सहवान से मोहब्बत हो गई और दोनों ने शादी रचा ली. जब यह जानकारी उन्हें हुई तो वह नमरा को बांगरमऊ, उन्नाव स्थित अपने घर ले आए. उन्होंने नमरा को समझाया कि सहवान शादीशुदा और 2 बच्चों का पिता है. उम्र में भी वह उस से दोगुना बड़ा है. लेकिन सहवान के प्रेम में अंधी नमरा ने उन की बात नहीं मानी. मजबूर हो कर बेटी की जिद के आगे उन्हें झुकना पड़ा.’’

नमरा की हत्या की तसवीर तो साफ हो गई लेकिन कई सवाल खड़े हो रहे थे.

नमरा खान की हत्या की तसवीर अब तक काफी साफ हो चुकी थी. फिर भी पुलिस के मन में काफी आशंकाएं पनप रही थीं. जैसे सीसीटीवी कैमरा किस ने बंद किया और फिर किस ने चालू किया. नमरा की हत्या की सूचना थाना पुलिस को देर से क्यों दी गई. सहवान ने अगर घर में जहर पीया तो वह इतनी देर तक कैसे जिंदा रहा. क्या नमरा की हत्या में कोई और भी शामिल था, जो नमरा की हत्या कर सहवान को उतनी दूर तक ले गया था?

अभी तक पुलिस को दोनों मृतकों के मोबाइल फोन नहीं मिले थे. पुलिस को शक था कि दोनों मोबाइलों को सहवान ने कहीं फेंक दिया होगा. पुलिस ने दोनों मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई, जिस से पता चला कि रात 12.10 बजे अपार्टमेंट से निकलने के बाद सहवान कार से नवाबगंज क्षेत्र में घूमता रहा.

सुबह पौने 4 बजे उस की लोकेशन चिडि़याघर के पास मिली. 4 बजे रानीघाट तथा 4 बज कर 8 मिनट पर उस की लोकेशन गंगा बैराज के पास की थी. पुलिस को शक हुआ कि उस ने गंगा बैराज के पास ही दोनों मोबाइल तोड़ कर फेंक दिए होंगे.

नमरा के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स से पता चला कि उसने 28 अप्रैल की रात 3 बजे से 5 बजे के बीच लगातार एक नंबर पर बात की. उस के बाद उस के नंबर पर कोई बात नहीं हुई. नमरा ने जिस नंबर पर बात की थी, उस की लोकेशन उस समय दिल्ली से सटे नोएडा की थी.

पुलिस ने उस नंबर को डायल किया तो पता चला कि वह नंबर एक जिम ट्रेनर का था. वह जिम टे्रनर पहले कल्याणपुर में रहता था और एक जिम में ट्रेनर था. इस जिम में नमरा हर रोज तथा सहवान कभीकभी कसरत करने जाते थे. इसी जिम में नमरा की मुलाकात जिम ट्र्रेनर से हुई थी. बाद में अकसर दोनों के बीच बातचीत होने लगी थी. कुछ दिन पहले जिम ट्रेनर नौकरी छोड़ कर नोएडा चला गया था, तब भी नमरा की उस से बात होती रहती थी.

सीओ अजय कुमार ने जब इस जिम ट्रेनर से नमरा के बारे में जानकारी चाही तो उस ने बताया कि नमरा और सहवान का वैवाहिक जीवन सही नहीं चल रहा था. दोनों के विचारों में अहं और विरोधावास था. दोनों एकदूसरे के चरित्र पर शक करते थे. इस सब का जिक्र नमरा उस से फोन पर करती रहती थी. वह अपनी हर बात उस से शेयर करती थी.

जांचपड़ताल से पुलिस को यह भी पता चला कि सहवान ने पत्नी की हत्या करने के बाद चिडि़याघर पहुंचने पर पुलिस के 100 नंबर पर भी फोन किया था. उस ने कहा था कि मैं सहवान बोल रहा हूं. मैं ने अपनी पत्नी की हत्या कर दी है. उस की लाश केशवपुरम के फ्लैट नंबर 612 में पड़ी है.

इस सूचना पर पुलिस केशवपुरम तक गई थी लेकिन अपार्टमेंट का सही नाम मालूम न होने के कारण वापस लौट आई थी. पुलिस ने पलट कर वही नंबर डायल किया, लेकिन नंबर बंद मिला. पुलिस ने समझा कि किसी ने मजाक किया होगा क्योंकि पुलिस कंट्रोल रूम को आए दिन झूठी काल मिलती रहती हैं.

पुलिस टीम ने इस चर्चित हत्याकांड की तह तक पहुंचने के लिए एक सप्ताह से अधिक गहन जांचपड़ताल की. इस बीच पुलिस ने दरजनों लोगों से पूछताछ की. उन के मोबाइल की कालडिटेल्स भी खंगाली. सहवान की पहली पत्नी समराना से भी कई राउंड पूछताछ की गई. सीसीटीवी कैमरे से छेड़छाड़ की जांच भी हुई तथा श्याम मिश्रा का बयान भी दर्ज किया. उस ने ही सहवान को सब से पहले कार से नीचे उतरते समय तड़पते देखा था.

सिमराना ने पुलिस को वह रिकौर्डिंग भी सौंपी, जिस में सहवान ने कहा था कि यदि मुझे कुछ हो जाए तो सारी प्रौपर्टी तुम्हारी होगी. नौमिनी तुम ही हो. बच्चों को अच्छी तालीम देना. जांच के बाद पुलिस इस नतीजे पर पहुंची कि नमरा की हत्या सहवान ने ही की थी. फिर बचाव का कोई रास्ता न देख कर स्वयं भी सल्फास खा कर आत्महत्या कर ली थी.

सहवान की पृष्ठभूमि

उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर के नौबस्ता थानांतर्गत एक मोहल्ला है मछरिया. मुसलिम बाहुल्य मछरिया के सी ब्लौक में मोहम्मद रमजान सिद्दीकी अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी हाजरा खातून के अलावा 4 बेटे मोहम्मद सहवान सिद्दीकी, मोहम्मद इरफान, मोहम्मद इमरान, मोहम्मद जिबरान तथा एक बेटी नूरजहां थी. मोहम्मद रमजान सिद्दीकी एक्सपोर्ट कंपनी में नौकरी करते थे. उन्हें जो वेतन मिलता था, उसी से वह परिवार का भरणपोषण करते थे.

मोहम्मद रमजान सिद्दीकी खुद तो ज्यादा पढ़ेलिखे नहीं थे लेकिन वह अपने बच्चों को अच्छी तालीम देना चाहते थे. इस के लिए वह खानपान व अन्य घरेलू खर्चों में कटौती कर बच्चों की पढ़ाई पर खर्च करते थे. वैसे तो उन के चारों बच्चे पढ़ने में होशियार थे लेकिन बड़ा बेटा मोहम्मद सहवान पढ़ाई में कुछ ज्यादा ही तेज था.

मोहम्मद सहवान का सपना आईआईटी करना था. उस ने इस की तैयारी शुरू की. फलस्वरूप उस का चयन आईआईटी रुड़की में हो गया. उस ने जी जान से पढ़ाई की और सन 1998 में आईआईटी रुड़की से कंप्यूटर साइंस से बीटेक पास किया. यही नहीं वह अपने बैच का टौपर भी बना.

साधारण परिवार से ताल्लुक रखने वाले मोहम्मद सहवान ने बीटेक करने के बाद सन 2003 में कोचिंग मंडी काकादेव में हार्वर लिमिट क्लासेज नाम से कोचिंग इंस्टीट्यूट खोला. शुरुआत में उस के इंस्टीट्यूट में छात्रों की संख्या कम रही लेकिन बाद में बढ़ती गई. सहवान ने एक बार इस क्षेत्र में कदम रखा तो फिर आगे और आगे बढ़ता गया. अपने काम की बदौलत उसे इज्जत, शोहरत और नाम मिला. वह मैथ का जानामाना टीचर था.

कोचिंग इंस्टीट्यूट चल जाने के बाद उस का ध्यान अपने भाइयों की ओर गया. उस ने एक भाई इरफान को अपने इंस्टीट्यूट का मैनेजिंग डायरेक्टर बना दिया, जबकि अन्य 2 भाइयों इमरान व जिबरान को पहले एक प्राइवेट संस्थान से बीटेक कराया फिर अपने ही इंस्टीट्यूट में जौब दे दी. इमरान फिजिक्स पढ़ाता था जबकि जिबरान कैमिस्ट्री का टीचर था.

पूरी तरह सेटल होने के बाद मोहम्मद सहवान ने अगस्त 2007 में समराना से निकाह कर लिया. समराना रेडीमेड मार्केट बेकनगंज निवासी नासिर की बेटी थी. समराना पढ़ीलिखी व खूबसूरत थी. उस ने क्राइस्ट चर्च कालेज से एमएससी किया था. निकाह के बाद समराना मछरिया स्थित अपनी ससुराल में रहने लगी.

समराना अपने शौहर के प्रति पूर्णरूप से समर्पित थी और उस का हर तरह से खयाल रखती थी. मोहम्मद सहवान भी समराना को बहुत चाहता था. दोनों की जिंदगी खुशहाल थी. समय के साथ समराना एक बेटे अयान और एक बेटी अंसरा की मां बन गई.

समराना लकी चार्म थी सहवान की

समराना सहवान के घर साक्षात लक्ष्मी बन कर आई थी. जब से वह उस के घर आई थी, तभी से उस की आय, इज्जत और शोहरत बढ़ती गई. मोहम्मद सहवान ने अब तक हार्वर लिमिट क्लासेज कोचिंग को बंद कर ग्लोबल कैरियर एकेडमी के नाम से 3 कोचिंग सेंटर खोल लिए थे. इन में एक काकादेव, दूसरा गोविंदनगर तथा तीसरा साकेत नगर में था.

इन कोचिंग सेंटरों पर हजारों की संख्या में छात्रछात्राएं आते थे. बेहतरीन गणित पढ़ाने के चलते सहवान ने कोचिंग के क्षेत्र में बड़ा मुकाम हासिल कर लिया था. उस की कोचिंग आईआईटी, जेईई की तैयारी के लिए गणित के साथ ही फिजिक्स, कैमिस्ट्री ही नहीं एनडीए, सीडीएस, एसएसबी, नेवी, एयरफोर्स, एसएससी, बैंक आदि की तैयारी के लिए भी मशहूर थी.

मोहम्मद सहवान ने कोचिंग से बहुत पैसा कमाया. इस कमाई से उस ने कई फ्लैट, फार्महाउस, करोड़ों का बैंक बैलेंस और जगुआर, स्कोडा, एंडेवर, इंडिगो जैसी महंगी कारें खरीदीं. उस के पास जो जगुआर कार थी, उस की कीमत 1.31 करोड़ रुपए थी.

सहवान ने कानपुर की आवास विकास कालोनी केशवपुर के नागेश्वर अपार्टमेंट में 5 फ्लैट खरीदे. जिस में एक उस के भाई इरफान, दूसरा समराना तथा तीसरा खुद उस के नाम है. नागेश्वर अपार्टमेंट के फ्लैट नंबर 612 में सहवान पत्नी सिमराना के साथ रहने लगा. फ्लैट नंबर 610 में उस का भाई इरफान अपनी पत्नी निदा के साथ रहता था. फ्लैट नंबर 309 जो समराना के नाम था, उस में ताला लगा दिया था.

समराना शौहर के साथ खुशहाल जिंदगी व्यतीत कर रही थी, लेकिन सन 2016 में उस की जिंदगी में एक ऐसा तूफान आया कि उस का सब कुछ तहसनहस हो गया. दरअसल सन 2016 में नमरा खान उस के शौहर सहवान की काकादेव स्थित ग्लोबल कैरियर एकेडमी में कोचिंग के लिए आई.

18 वर्षीया नमरा खान उन्नाव के बांगरमऊ कस्बा निवासी शहंशाह खान की बेटी थी. वह धनाढ्य परिवार की थी. नमरा के पिता शहंशाह खान सपा के दबंग नेता तथा चर्चित व्यापारी थे. नमरा के बाबा जुम्मन खान बांगरमऊ नगर पालिका के चेयरमैन रहे थे.

नमरा खान कानपुर के शारदा नगर स्थित गर्ल्स हौस्टल में रह कर बीटेक की पढ़ाई कर रही थी. वह छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय की छात्रा थी. साथ ही आईआईटी की भी तैयारी कर रही थी. इस के लिए उस ने कोचिंग जौइन की थी.

40 वर्षीय मोहम्मद सहवान अपने पहनावे, शारीरिक फिटनैस व लाइफस्टाइल के लिए छात्राओं के बीच चर्चित था. नमरा खान भी उस के लाइफस्टाइल से प्रभावित थी और मन ही मन अपने सहवान सर से मोहब्बत करने लगी थी.

नमरा की खतरनाक एंट्री

मोहम्मद सहवान के पास कुछ स्टूडेंट्स एक्स्ट्रा क्लास के लिए आते थे. इन में नमरा खान भी थी. एक रोज पढ़ने के बाद अन्य छात्रछात्राएं तो चले गए लेकिन नमरा खान नहीं गई. उस रोज उस ने हिम्मत जुटा कर सहवान से अपने प्यार का इजहार कर दिया. इतना ही नहीं, उस ने यह भी कह दिया कि वह उस से शादी करना चाहती है.

नमरा खान की बात सुन कर सहवान चौंक पडे़, ‘‘तुम यह कैसी बातें कर रही हो? मैं शादीशुदा और 2 बच्चों का बाप हूं. मेरी तुम्हारी उम्र में दोगुना का अंतर है. इसलिए तुम मुझे पाने का खयाल दिल से निकाल दो और अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो. पहले कैरियर सुधारो फिर शादी की सोचना.’’

‘‘सर, मैं बहुत जिद्दी हूं. मैं ने आप को दिल में बसा लिया है तो हासिल कर के ही दम लूंगी.’’ वह बोली.

उस रोज के बाद नमरा सहवान के पीछे पड़ गई. इस के बाद सहवान के दिल में भी हलचल होने लगी. दरअसल 18 वर्षीय नमरा बेहद खूबसूरत व हंसमुख थी, जबकि उस की पत्नी समराना की उम्र ढल चुकी थी. नमरा के आगे वह उसे फीकी लगने लगी थी. सहवान ने नमरा के प्यार को स्वीकारा तो इस प्यार के चर्चे आम होने लगे.

नमरा और सहवान की मोहब्बत की जानकारी समराना को हुई तो उसे अपने पैरों तले से जमीन खिसकती नजर आई. समराना ने इस बेमेल मोहब्बत का विरोध किया तो पतिपत्नी में झगड़ा होने लगा. एक रोज झगड़े के दौरान ही सहवान ने समराना को 3 तलाक कह दिया.

इस के बाद मार्च, 2017 में समराना अपने मायके बेकनगंज चली गई. वह अपने साथ बेटी अंसरा को भी ले आई थी. समराना अपने बेटे अयान को भी साथ लाना चाहती थी लेकिन सहवान व उस के घर वालों ने बेटे को नहीं जाने दिया. मायके में रहते समराना ने शौहर सहवान, उस के मातापिता तथा भाइयों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न तथा घरेलू हिंसा का मुकदमा दर्ज करा दिया. साथ ही गुजारा भत्ता भी मांगा.

लेकिन सहवान ने मुकदमे की परवाह नहीं की और अपनी उम्र से आधी उम्र की नमरा खान से 21 जुलाई, 2018 को निकाह कर लिया. इस प्रेम विवाह की जानकारी जब नमरा के पिता शहंशाह खान को हुई तो उन्होंने बेटी को समझाया. लेकिन सहवान के प्यार में अंधी नमरा ने पिता की बात नहीं मानी.

निकाह के बाद नमरा और सहवान केशवपुरम स्थित नागेश्वर अपार्टमेंट के फ्लैट नंबर 612 में रहने लगे. शादी के 4 महीने तो सब कुछ ठीक रहा लेकिन उस के बाद दोनों के बीच तनाव बढ़ने लगा. तनाव का पहला कारण बना सहवान का 8 वर्षीय बेटा अयान.

मासूम अयान नमरा के प्यार के क्षणों में दखल देता था सो वह उसे पीट देती थी. अयान को पीटना सहवान को खलता था. नमरा का अत्याचार जब ज्यादा बढ़ा तो सहवान ने अयान को मछरिया वाले घर में अपने मातापिता के पास छोड़ दिया.

तनाव का दूसरा कारण बना उम्र का अंतर. नमरा जवानी के उस दौर में थी, जहां उसे रात दिन शौहर का साथ चाहिए था. वह उसे नींबू की तरह निचोड़ना चाहती थी. लेकिन सहवान के पास वक्त नहीं था. उसे कोचिंग से ही फुरसत नहीं थी. यही कारण था कि जब सहवान रात को सोता तो वह उसे नोचतीखसोटती और हिंसक हो जाती. गुस्से में उसे जो भी सामान दिखता, तोड़ देती थी.

तनाव का तीसरा कारण था एकदूसरे पर शक करना. नमरा की कामेच्छा पूरी नहीं होती तो उसे शौहर पर शक होता कि उस का झुकाव कहीं और है. सहवान जब नमरा को गैरमर्दों से मोबाइल पर बात करते देखता तो उसे शक होता कि नमरा किसी अन्य के प्यार के जाल में फंसी हुई है.

नमरा और सहवान दोनों स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहते थे. दोनों जिम जाते थे. नमरा रोज जिम जाती थी. जबकि सहवान कभीकभी जाता था. जिम ट्रेनर हंसमुख और मृदुभाषी था. नमरा की उस से खूब पटती थी. वह अपनी परेशानी उस से साझा कर लेती थी. जब वह जिम से नौकरी छोड़ कर नोएडा चला गया तो नमरा ने भी जिम जाना छोड़ दिया. लेकिन उस से फोन पर बात करना बंद नहीं किया.

नमरा सहवान को नोचतीखसोटती ही नहीं थी, बल्कि भद्दी व गंदी गालियां भी बकती थीं. उस के इस व्यवहार से सहवान टूट चुका था. उसे लगता था कि वह या तो कहीं भाग जाए या फिर नमरा को ही सबक सिखा दे.

सहवान को अब आभास होने लगा था कि उस ने समराना को तलाक दे कर अच्छा नहीं किया. वह समराना से समझौते का प्रयास करने लगा था. बेटी से बात करने के बहाने वह उसे फोन करता था. उस ने एक रोज कहा था कि अगर उसे कुछ हो जाए तो सारी संपत्ति उसी (समराना) की होगी. नौमिनी वही है. बच्चों का खूब खयाल रखे और उन्हें पढ़ाएलिखाए.

नमरा खान तो दिन में सो लेती थी, लेकिन दिन में काम करने वाले सहवान को रात में सोने नहीं देती थी. वह उस के सीने पर सवार हो कर नोचती भद्दी गालियां देती तथा पानी उड़ेल देती थी. कभीकभी गुस्से में सहवान उसे पीट देता था. दोनों के बीच दिन पर दिन तनाव बढ़ा तो सहवान को लगने लगा कि अब उस का नमरा के साथ रहना संभव नहीं है.

खतरनाक स्थितियां नमरा ने ही बनाई थीं

28 अप्रैल, 2019 की रात सहवान की आंख खुली तो नमरा दूसरे कमरे में जिम ट्रेनर से बतिया रही थी. वह उस से प्रात: 5 बजे तक बतियाती रही. सुबह सहवान ने फोन पर बात करने के बारे में पूछा तो नमरा उस से भिड़ गई और हिंसा पर उतर आई. उस ने नाखूनों से सहवान का चेहरा, गरदन और पीठ नोच डाली.

गुस्से में सहवान गाड़ी ले कर घर से निकल गया. उस ने सोच लिया कि वह या तो नमरा को मार देगा या फिर खुद जहर खा कर मर जाएगा. यही सोच कर वह रावतपुर बीज भंडार पर गया और सल्फास की 4 पुडि़या खरीद कर ले आया. उस रोज वह कोचिंग भी नहीं गया. देर शाम उस ने बेटी अंसरा से बात की और फोन पर रोया भी.

रात पौने 9 बजे सहवान अपने फ्लैट पर लौट आया. कुछ देर बाद नमरा ने कौफी बनाई और सहवान से कौफी पीने के लिए पूछा लेकिन सहवान ने मना कर दिया. इस पर नमरा गुस्सा हो गई और अपशब्द बकने लगी. फिर वह पलंग पर आ कर बैठ गई. सहवान गुस्से में था ही, उस ने किचन में रखा नया कुकर उठाया और लपक कर नमरा के सिर पर वार कर दिया. भरपूर वार से नमरा का सिर फट गया और वह बेहोश हो कर पलंग के नीचे आ गिरी. कुछ ही पल में उस ने दम तोड़ दिया.

नमरा की हत्या के बाद सहवान घबरा गया. वह अपने बचाव का प्रयत्न करने लगा. वह रसोई से चाकू ले आया और हाथ की नस काटने का प्रयास किया पर हिम्मत नहीं जुटा पाया. कुछ देर वह नमरा के शव के पास बैठा रहा, फिर उस ने नमरा का मोबाइल अपनी जेब में रख लिया.

बचाव का कोई उपाय नहीं सूझा तो उस ने सल्फास की एक पुडि़या चाय वाले कप में पानी में घोली और किसी तरह आधीअधूरी पी ली. फिर रात 12.10 बजे वह स्कोडा कार से घर से निकला और नवाबगंज क्षेत्र में घूमता रहा. उस ने दोनों फोन तोड़ कर फेंक दिए. रात पौने 4 बजे उसने 100 नंबर डायल कर के पुलिस कंट्रोल रूम को पत्नी की हत्या की सूचना दे दी. लेकिन सही पता न होने से पुलिस वहां तक नहीं पहुंच पाई. प्रात: 5 बजे मोहम्मद सहवान धौरसलार रेलवे स्टेशन क्रौसिंग पहुंचा.

सड़क किनारे उस ने गाड़ी खड़ी की और सल्फास की तीनों पुडिया एक के बाद एक फांक कर पानी पी लिया. कुछ देर बाद ही जहर ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया. उसे कार में ही उल्टियां होने लगीं. बेचैनी और घबराहट में सहवान गाड़ी से बाहर आ गया.

उसी समय श्याम मिश्रा नाम का युवक वहां से गुजरा. सहवान ने उसे भाई का मोबाइल नंबर बताया और फोन करने को कहा. लेकिन श्याम सही नंबर नोट नहीं कर पाया. तब तक सहवान बेहोश हो कर सड़क किनारे गिर गया था. इस पर श्याम मिश्रा ने थाना बिल्हौर जा कर सूचना दी. सूचना के बाद बिल्हौर पुलिस ने सहवान को हैलट अस्पताल में भरती कराया, जहां उस ने दम तोड़ दिया.

इधर नमरा की हत्या की जानकारी तब हुई जब नौकरानी राधा फ्लैट में काम करने आई. उस के बाद पुलिस को सूचना दी गई. थाना काकादेव पुलिस मौके पर आई और शव को कब्जे में ले कर जांच शुरू की. जांच में दोनों लोगों की मौत की वजह बेमेल विवाह निकला.

थाना काकादेव पुलिस ने मृतका नमरा के पिता शहंशाह खान को वादी बना कर भादंवि की धारा 302 के तहत मोहम्मद सहवान के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज कर ली. लेकिन सहवान द्वारा स्वयं आत्महत्या कर लेने से पुलिस ने इस मामले में फाइनल रिपोर्ट लगा दी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें