Writer- Vaibhav Jain
उस दिन करीब 8 साल के बाद मानसी को एक हेयर सैलून से बाहर आते देखा तो आंखों पर विश्वास नहीं हुआ. कालेज के दिनों में वह कभी मेरी बहुत अच्छी दोस्त हुआ करती थी. फिर वह एमबीए करने मुंबई चली गई और हमारे बीच संपर्क कम होतेहोते समाप्त हो गया था.
मैं मुसकराता उस के सामने पहुंचा तो उस ने भी मुझे फौरन पहचान लिया. हम ने बड़े अपनेपन के साथ हाथ मिलाया और हंसतेमुसकराते एकदूसरे के बारे में जानकारी का आदानप्रदान करने लगे.
‘‘तुम यहां दिल्ली में कैसे नजर आ रही हो?’’
‘‘मेरे पति को यहां नई जौब मिली है.’’
‘‘क्या पति को घर छोड़ कर केश कटवाने आई हो?’’
‘‘नहीं भई. वे मुझे यहां छोड़ कर किसी दोस्त से मिलने गए हैं. बस, अब लेने आते ही होंगे. तुम बताओ जिंदगी कैसी गुजर रही है?’’
‘‘ठीकठीक सी गुजर रही है.’’
‘‘तुम्हारी पत्नी क्या करती है?’’
‘‘अंजु नौकरी करती है.’’
‘‘तुम तो कहा करते थे कि पत्नी को सिर्फ घरगृहस्थी की जिम्मेदारियां संभालनी चाहिए. फिर अंजु को नौकरी कैसे करा रहे हो?’’ उस ने हंसते हुए पूछा.
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‘‘मैं तो अभी भी यही चाहता हूं कि अंजु घर में रहे पर आज की महंगाई में डबल इनकम का होना जरूरी है.’’
‘‘बच्चे कितने बडे़ हो रहे हैं?’’
‘‘हमारा 1 बेटा है समीर, जो पिछले महीने 6 साल का हुआ है.’’
‘‘उस के लिए भाई या बहन अभी तक क्यों नहीं लाए हो?’’
‘‘अरे, दूसरे बच्चे की बात ही मत छेड़ो. आजकल 1 बच्चे को ही ढंग से पालना आसान नहीं है. तुम अपने बारे में बताओ.’’