बाबाओं की अय्याशी, क्यों लुटती गरीब घर की बेटियां

Society News in Hindi: आसाराम (Asaram), रामरहीम (Ram Rahim) व फलाहारी बाबा (Phalhari Baba) के बाद रंगीनमिजाजी में एक और नाम वीरेंद्र दीक्षित (Virender Dixit) का सामने आया. 21 दिसंबर, 2017 को पुलिस ने कोर्ट के आदेश पर दिल्ली में उस की आध्यात्मिक यूनिवर्सिटी पर छापा मार कर दर्जनों लड़कियों को बाहर निकाला. उन में से कुछ लड़कियों ने मीडिया को बताया कि वह बाबा खुद को कृष्ण व उन्हें अपनी गोपियां बता कर गुप्त ज्ञान व प्रसाद देने के नाम पर उन के साथ मुंह काला करता था. यह असर धर्म की उस अफीम का है, जिस की घुट्टी जीने से मरने तक कदमकदम पर लोगों को पिलाई जाती है. बेकार की बातों को हवा देने वाली तमाम ऊलजुलूल किस्सेकहानियां धर्म की किताबों में भरी पड़ी हैं. बातों की चाशनी चढ़ा कर प्रवचनों में उन्हें दोहराया जाता है. स्वर्ग व मोक्ष मिलने का लालच दे कर लोगों को बहकाया जाता है. सारे दुखों से छुटकारा मिलने का झांसा दे कर उन्हें भरमाया जाता है. इस से ज्यादातर लोग चालबाज बाबाओं की लुभावनी बातों में आ जाते हैं.

इन्हीं बातों के असर से धर्म के दलदल में डूबे लोग सहीगलत में फर्क करना भूल जाते हैं. अपनी बेटियों व पत्नियों को बाबाओं के आश्रमों में ले जा कर कुरबान कर देते हैं.

ऐसी लड़कियां व औरतें बाबाओं के चंगुल में फंस कर जबतब अपनी इज्जतआबरू गंवा देती हैं तो उन्हें बताया जाता है कि वे तो भगवान की हो चुकी हैं, बाहरी दुनिया पाप की गठरी है.

पीडि़त लड़कियों में से ज्यादातर लोकलाज व बलात्कारी बाबाओं व उन के गुंडों के डर से चुप्पी साध जाती हैं. अपनी जबान सिल कर वे हालात से समझौता कर लेती हैं. किसी से कोई शिकायत भी नहीं करतीं. गिरोह की कई मुफ्तखोर सदस्या तो खुद बाहर आने से इनकार कर देती हैं. इतना ही नहीं, उन पाखंडी बाबाओं के हक में बोलने व लड़ने के लिए वे खड़ी हो जाती हैं.

अपने पैर पर कुल्हाड़ी…

देश में तकरीबन 5 फीसदी अमीर, 10 फीसदी मझले व 85 फीसदी गरीब हैं. ये पाखंडी बाबा ज्यादातर निचले व मझले तबके के कम पढ़े लोगों को अपना शिकार बनाते हैं. ज्योतिषी, तांत्रिक व बाबा जानते हैं कि माली तौर परकमजोर लोग ही समस्याओं से ज्यादा घिरे रहते हैं. ऊपर से उन का खुद पर यकीन भी नहीं होता इसलिए वे टोनेटोटके, गंडेतावीज, बाबाओं की मेहरबानी व चमत्कारों में अपने मसलों का हल ढूंढ़ते हैं.

जिस तरह बहुत ज्यादा महंगी गाड़ियां बनाने वाली कंपनियां टैलीविजन पर अपने इश्तिहार इसलिए नहीं देती हैं कि इतनी महंगी गाड़ियां खरीदने वालों के पास टैलीविजन देखने का समय नहीं होता है, उसी तरह पाखंडी बाबा भी ऊंची जाति के रसूखदार व अमीर लोगों को अपना शिकार कम ही बनाते हैं, क्योंकि एक तो वे जल्दी से हर किसी के झांसे में नहीं आते, ऊपर से बाबाओं को भी अपनी पोल खुलने व पकड़े जाने का डर रहता है.

नीचे से ऊपर छलांग

निचले व मझले तबके के ज्यादातर लोग अमीर लोगों की बराबरी के सपने देखते रहते हैं. धर्म के मनगढ़ंत प्रचार से उन्हें लगने लगता है कि करामातों से उन के दुखदर्द मिट जाएंगे. ये बाबा उन की दुनिया बदल देंगे, इसलिए अकसर उपायों के नाम पर वे छलांग लगाने के लिए तैयार हो जाते हैं, चाहे इस के लिए उन्हें कुछ भी कुरबानी क्यों न देनी पड़े.

बहुत से मक्कार बाबाओं के चेलेचपाटे भोलेभाले भक्तों को पटाने में लगे रहते हैं कि तुम तो बहुत खुशनसीब हो. तुम्हारी लड़की को बाबा ने अपनी सेवा के लिए चुना है. ऐसा तो हजारोंलाखों में से किसी एक के साथ होता है. तुम्हें तो खुश होना चाहिए. तुम्हारा नाम होगा. तुम्हारी सारी पुश्तें तर जाएंगी. तुम पर बाबा की खास कृपा बरसेगी.

कई लोग इसी झूठी शान, भरम व अपने भले की उम्मीद में मौत के कुएं में छलांग लगा लेते हैं. धोखेबाज बाबाओं पर भरोसा कर के वे अपने मासूम बीवीबच्चों को उन की शरण में छोड़ देते हैं.

कई बार बाबाओं की ऐश व दौलत देख कर कुछ निकम्मे लोग खुद भी वैसा बनने के सपने देखने लगते हैं. उन्हें आत्मा व परमात्मा के ज्ञान का दौरा सा पड़ने लगता है. किसी के मिलते ही वे उसे ज्ञान देने लगते हैं. यह बात अलग है कि उन के ये हवाई किले पूरे नहीं हो पाते. सभी लोग बाबा तो नहीं बन पाते, लेकिन उन के पक्के चेले जरूर हो कर रह जाते हैं. ये चेले बाबाओं की दुकानदारी चलाने व उसे आगे बढ़ाने में मदद करते हैं.

कथा, कीर्तन, प्रवचन करने और आश्रम वगैरह चला कर धनदौलत कमाने वालों की गिनती तेजी से बढ़ रही है. इस की अहम वजह धर्म के धंधों में बढ़ती चकाचौंध है, इसलिए बहुत से लड़केलड़कियां गेरुए कपड़े पहन कर जल्दी पैसा बनाने की ओर बढ़ रहे हैं. कम उम्र के बहुत से लड़केलड़कियां ऊंचेऊंचे स्टेज से कथाप्रवचन और जागरण कर के माल बटोर रहे हैं.

अब पछताए होत क्या…

धर्म का कारोबार करने वाले धंधेबाज बड़े ही शातिर होते हैं. ये भोलेभाले लोगों में से छांटछांट कर अपने चेलाचेली बना लेते हैं. हद से ज्यादा गरीबी, तालीम व जागरूकता की कमी धर्मांधता की आग में घी का काम करती हैं. मसलन माली तंगी होने से कई लोग लड़की को आज भी बोझ मानते हैं, इसलिए कई मांबाप तो मुफ्त में पढ़ाईलिखाई कराने के लालच में पहले लड़कियों को बाबाओं के आश्रमों में भेज देते हैं, बाद में हंगामा करते हैं.

दरअसल, जवान लड़कियां छांट कर अपनी हवस मिटाने की गरज से पाखंडी बाबाओं ने जाल फैला रखे हैं. धार्मिक तालीम देने के नाम पर उन्होंने अपने आश्रमों में 12वीं जमात तक के कन्या इंटर कालेज खोल रखे हैं.

ज्यादातर निकम्मे, नशेड़ी व गैरजिम्मेदार लोग अब लड़कियों को पालना भी बड़ा मुश्किल काम समझते हैं. इस के बाद उन की शादी करना व दहेज देना उन्हें झंझट लगता है, इसलिए कई बार छुटकारा पाने के लिए भी कुछ लोग अपनी लड़कियों को बाबाओं के आश्रमों में भेज कर बेफिक्र हो जाते हैं.

शिकार की तलाश में मक्कार बाबाओं व उन के चालबाज चेलों का बहुत से घरों में आनाजाना लगा रहता है. भोलीभाली औरतें धार्मिक कर्मकांड, दोष, दुर्भाग्य, नरक व पाप के नाम पर डरीसहमी रहती हैं. वे बाबाओं के दिमाग में घूम रहे शैतान व हैवान को नहीं पहचान पातीं और उन के झांसे में आ कर पैसा व आबरू दोनों गंवा देती हैं.

फैलता जाल

देश के हर हिस्से में शिरडी के सांईं बाबा, वैष्णो देवी, शनि महाराज व बालाजी वगैरह के नाम पर नएनए मंदिर और बाबाओं के आश्रम बढ़ रहे हैं, इसलिए उन के महंतों व पाखंडी बाबाओं की गिनती व उन का जाल भी बढ़ रहा है.

बहुत से शहरोंकसबों में अकसर बाबाओं के कथाप्रवचन होते रहते हैं. खातेपीते घरों की औरतें व मर्द अपने घर में काम छोड़ कर इन बाबाओं के प्रवचन सुनने चले जाते हैं, फिर उन से कान में नाम व मंत्र की दीक्षा लेते हैं.

धर्म की आड़ में बलात्कार करने वाले कई बाबाओं का गिरोह बहुत बड़ा है. शिकायत व जांच के बाद जब ये फंस जाते हैं तो इन के गुंडे शिकायत करने वालों को धमकाते हैं, गवाहों को मार तक देते हैं.

आसाराम के केस में अब तक कई गवाह मारे जा चुके हैं. आसाराम को सलाखों के पीछे पहुंचाने वाली लड़की को भी बदनाम करने व मार देने की धमकी मिली थी, इसलिए उसे 20 दिसंबर, 2017 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में आसाराम व उसके 11 गुरगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराना पड़ा और सरकार को उस की सिक्योरिटी बढ़ानी पड़ी. अपने धन बल व भक्तों की भीड़ वाले वोट बैंक के चलते ज्यादातर नेता इन बाबाओं के तलवे चाटते हैं. भ्रष्ट व कमजोर अफसर इन के खिलाफ सख्त कदम उठाना तो दूर जांच करने से भी कतराते हैं.

ये हैं उपाय

बाबाओं के चक्कर में फंस चुके तमाम लोग आज भी थानाकचहरी के चक्कर काटकाट कर परेशान हैं. उन की बहूबेटियां बरसों से इन दरिंदों के आश्रमों में कैद हैं, मारी जा चुकी हैं या लापता हैं. ये गुनाहगार हत्यारे उन के दस्तखत से जबरन या बहलाफुसला कर लिखाए गए हलफनामों की आड़ में बचने की नाकाम कोशिशें करने में लगे रहते हैं.

पिछले दिनों मेरठ का एक बाबा अपने एक चेले की जवान व बेऔलाद बीवी को औलाद देने का झांसा दे कर अपने साथ ले कर भाग गया.

इतना ही नहीं, पाखंडी बाबा आज भी जेल से बाहर अपना कारोबार धड़ल्ले से चला कर अपनी ऐशगाहों में मौज मार रहे हैं. भोलेभाले भक्त उन पर अंधा भरोसा कर के भेड़ों की तरह मुंड़ रहे हैं.

इस में कुसूर धर्म प्रचार व लोगों की लापरवाही का है. पाखंडी बाबाओं को पकड़ने के ज्यादातर मामले कोर्ट के आदेश से खुले हैं. गैरसरकारी संगठन व महिला आयोग को पहल करनी चाहिए ताकि ढोंगियों व पाखंडियों को उन के किए की सजा मिले, वरना अनगिनत पाखंडी बाबा धर्म की आड़ ले कर अपना घर भरते रहेंगे. वे भोलेभाले लोगों के घर इसी तरह बरबाद करते रहेंगे.

अब तो धर्म का सहारा ले कर कई सालों से सत्ता पाई जा रही है और ऐसे में कौन सी सरकार इन बाबाओं पर नकेल कसेगी? ये तो नेताओं और अफसरों की तरह चाहे जैसे मरजी जनता की जेबें काटेंगे.

शादीशुदा जीवन में हो रही है सैक्स की कमी

Sex News in Hindi: सैक्सलैस विवाह के 70% केस युवा जोड़ों के हैं और यह समस्या तेजी से बढ़ रही है. इस के लिए एक ही उपाय है कि दूसरी चीजों की तरह सैक्स के लिए भी समय निकालें, क्योंकि जब आप इस का स्वाद जानेंगे तभी इसे करेंगे. कुछ समय एकदूसरे के साथ जरूर बिताएं. कन्फ्यूशियस ने कहा था कि खाना व यौन इच्छा (Sex Desire) दोनों मानव की प्राकृतिक जरूरतें हैं. मनोविज्ञानी (psychologist) और मनोचिकित्सक (psychiatrist) डा. पुलकित शर्मा इस बढ़ते रोग के संबंध में कुछ सवालों के जवाब दे रहे हैं:

सैक्सलैस विवाह सामान्य होने का कोई सूचक है?

हां, है. विवाहित लोग कैरियर के तनाव से घिरे हैं और अब उन के पास अंतरंगता के लिए बिलकुल भी समय नहीं है. दूसरा, अब चिड़चिड़ाहट को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. विवादों को सुलझाने के बजाय स्त्री तथा पुरुष सैक्स की इच्छापूर्ति को बाहर ढूंढ़ रहे हैं.

क्यों कोई विवाह सैक्सलैस होता है?  

यदि हम इन बातों को छोड़ दें कि किसी साथी को सैक्स संबंधी या मानसिक समस्या हो तो भी विवाह की शुरुआत सैक्सलैस नहीं होती, लेकिन बाद में हो जाती है. शुरुआत में अपनी यौन क्षमता को ले कर पुरुषों में विशेष घबराहट होती है. उन्हें डर रहता है कि वे अपने साथी को संतुष्ट कर पाएंगे या नहीं और यह डर इतना ज्यादा होता है कि वे अपनी यौन क्रिया को सही अंजाम नहीं दे पाते. शुरुआत में जोड़े सैक्स तथा अपने संबंधों को अच्छा बताते हैं, लेकिन समय के साथ प्यार तो बढ़ता है, परंतु विवाह सैक्सलैस हो जाता है.

तनाव से डिप्रेशन बढ़ता है, जिस से सैक्सुल इच्छा घटती है व प्रदर्शन ठीक प्रकार से नहीं हो पाता है. तीसरा कारण है पोर्नोग्राफी. यह लोगों की कल्पनाओं को रंग देती है, जिस से वे जो रील में देखते हैं वैसा ही रियल में करने की कोशिश करते हैं.

क्या सैक्सलैस विवाह वाले जोड़े कम खुश रहते हैं?

भले ही रिश्ता अच्छा हो, परंतु सैक्सहीन विवाहित जोड़े नाखुश रहते हैं, क्योंकि सैक्स प्यार व आत्मीयता का जरूरी हिस्सा है. इस विवाह को कोई एक साथी इच्छाहीन व बेकार महसूस करता है.

क्या सैक्स को दोबारा सक्रिय किया जा सकता है?

हां. बस पहले यह जानने की जरूरत है कि समस्या कहां है? क्या यह समस्या बाह्य है जैसे तनाव, पारिवारिक माहौल आदि. इस बारे में खुल कर बात करें व बिना साथी की इच्छा से कोई फैसला न करें ताकि दूसरा साथी बुरा न महसूस करे. काम का तनाव घटा कर एकदूसरे के साथ ज्यादा समय बिताएं, आपसी विवाद सुलझाएं, यौन क्रियाओं को बढ़ाएं, एकदूसरे की जरूरतों को समझें व इच्छापूर्ति की कल्पना करें, साथी को आराम दें, उसे उत्साहित करें. मनोवैज्ञानिक से सलाह भी ले सकते हैं.

क्या सैक्सहीन विवाह वाले तलाक की ओर बढ़ रहे हैं?

हां, ऐसा हो रहा है, क्योंकि एक साथी अपनेआप को उत्तेजित महसूस करने लगता है या वह महसूस करने लगता है कि उसे धोखा दिया जा रहा है. इसलिए वह भी सैक्स का विकल्प बाहर खोजने लगता है, जिस से बंधेबंधाए रिश्ते में समस्या आने लगती है.

यौन संतुष्टि दर में कमी

भारत में हुए सैक्स सर्वे दर्शाते हैं कि पिछले दशक में यौन संतुष्टि की दर मात्र 29% रह गई. सैक्स से बचने के लिए पत्नियों की पुरानी आदत है कि आज नहीं हनी. आज मुझे सिरदर्द है. 50% पुरुष भी अपनी पत्नी से सैक्स न करने के लिए सिरदर्द का झूठा बहाना बनाते हैं. 43% पति मानते हैं कि उन की आदर्श बिस्तर साथी उन की पत्नी नहीं है. 33% के करीब पत्नियां मानती हैं कि विवाह के कुछ सालों बाद सैक्स अनावश्यक हो जाता है. 14% स्त्रीपुरुषों को नहीं पता कि वे बैडरूम में किस चीज से उत्तेजित होते हैं जबकि 18% के पास कोई जवाब नहीं है कि वे सैक्स के बाद भी संतुष्ट हुए हैं. 60% जोड़े यौन आसन के बारे में कल्पना करते हैं. फिर भी आधे से ज्यादा जोड़े नए आसन के बजाय नियमित आसन ही अपनाते हैं. 39% जोड़े ही यौन संतुष्टि पाते हैं.

क्लासी है मौनी रॉय का रेस्टोरेंट, इतनी स्टाइलिश फोटोज हो रही है वायरल

टीवी सीरियल की जानी-मानी एक्ट्रेस मौनी रॉय अक्सर ही अपने फैशन स्टाइल के लिए जानी जाती है. हाल ही में वो अपने मुंबई के रेस्टोरेंट को लेकर सुर्खियों में है. मौनी रॉय ने मुंबई में रेस्टोरेंट ‘बदमाश’ नाम से खोला है. जिसकी तस्वीरें अब सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है. जो कि काफी क्लासी और खूबसूरत तस्वीरें है.

 

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मौनी रॉय ने कुछ दिनों पहले ही अपने नए रेस्टोरेंट चेन के लिए एक ग्रैंड पार्टी दी थी. अब एक्ट्रेस के इस नए रेस्टोरेंट चेन की फोटोज फैंस के बीच वायरल हो रही हैं. एक्ट्रेस मौनी रॉय ने अपने नए रेस्टोरेंट चेन की फोटोज फैंस को सोशल मीडिया पर शेयर की है. तस्वीरों में एक्ट्रेस मौनी रॉय फैंस को रेस्टोरेंट खुलने की जानकारी दे रही हैं. मौनी रॉय ने इन तस्वीरों को शेयर कर घर के अंदर की खूबसूरत तस्वीरें फैंस को दिखाई है. जिसकी फोटोज आते ही फैंस का दिल जीत ले गईं.

 

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एक्ट्रेस मौनी रॉय ने फोटोज में फैंस को दिखाया है कि उनके क्लासी रेस्टोरेंट का मेन्यू बेहद दिलचस्प है. ये तस्वीरें खुद बयां करती हैं कि यहां का खाना काफी स्वादिष्ट होगा. मौनी रॉय की ये तस्वीरें बयां करती हैं कि एक्ट्रेस के नए रेस्टोरेंट की चेन जंगल थीम से बनी है. जो काफी क्लासी लुक देता है. एक्ट्रेस मौनी रॉय का रेस्टोरेंट बेहद कलरफुल है. इस बात की गवाही सामने आईं ये तस्वीरें देती है.मौनी रॉय की ये तस्वीरें आते ही वायरल होने लगीं. मौनी रॉय की ये तस्वीरें बताती हैं कि उन्होंने रेस्टोरेंट चेन के लिए इंटीरियर का खास ध्यान रखा है. ये एक्ट्रेस की तस्वीरें आते ही छा गईं.

मौनी रॉय के रेस्टोरेंट का नजारा कुछ इस तरह का है. जो बेहद रॉयल लुक लिए हुए है. मौनी रॉय के रेस्टोरेंट की फोटोज फैंस का ध्यान खींच ले गईं. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो मौनी रॉय के मुंबई में 2 रेस्टोरेंट्स चेन्स हैं. जिसकी तस्वीरें अक्सर एक्ट्रेस सोशल मीडिया हैंडल पर शेयर करती रहती हैं.

सिसकता शैशव : अमान का अबोध बचपन- भाग 2

शाम को पिताजी उसे माल रोड पर घुमाने ले गए. छोटे घोड़े पर चढ़ा कर घुमाया और बहुत प्यार किया, फिर वहीं बैंच पर बैठ कर उसे खूब समझाते रहे, ‘‘बेटा, तुम्हारी मां वही कहानी वाली राक्षसी है जो बच्चों का खून पी जाती है, हाथपैर तोड़ कर मार डालती है, इसलिए तो हम लोगों ने उसे घर से निकाल दिया है. उस दिन वह स्कूल से जब तुम्हें उड़ा कर ले गई थी, तब हम सब परेशान हो गए थे. इसलिए वह यदि आए भी तो कभी भूल कर भी उस के साथ मत जाना. ऊपर से देखने में वह सुंदर लगती है, पर अकेले में राक्षसी बन जाती है.’’

अमान डर से कांपने लगा. बोला, ‘‘पिताजी, मैं अब कभी उन के साथ नहीं जाऊंगा.’’

दूसरे दिन सवेरे 8 बजे ही पिताजी उसे बड़े से गेट वाले जेलखाने जैसे होस्टल में छोड़ कर चले गए. वह रोता, चिल्लाता हुआ उन के पीछेपीछे भागा. परंतु एक मोटे दरबान ने उसे जोर से पकड़ लिया और अंदर खींच कर ले गया. वहां एक बूढ़ी औरत बैठी थी. उस ने उसे गोदी में बैठा कर प्यार से चुप कराया, बहुत सारे बच्चों को बुला कर मिलाया, ‘‘देखो, तुम्हारे इतने सारे साथी हैं. इन के साथ रहो, अब इसी को अपना घर समझो, मातापिता नहीं हैं तो क्या हुआ, हम यहां तुम्हारी देखभाल करने को हैं न.’’

अमान चुप हो गया. उस का दिल जोरजोर से धड़क रहा था. फिर उसे उस का बिस्तर दिखाया गया, सारा सामान अटैची से निकाल कर एक छोटी सी अलमारी में रख दिया गया. उसी कमरे में और बहुत सारे बैड पासपास लगे थे. बहुत सारे उसी की उम्र के बच्चे स्कूल जाने को तैयार हो रहे थे. उसे भी एक आया ने मदद कर तैयार कर दिया.

फिर घंटी बजी तो सभी बच्चे एक तरफ जाने लगे. एक बच्चे ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘चलो, नाश्ते की घंटी बजी है.’’

अमान यंत्रवत चला गया, पर उस से एक कौर भी न निगला गया. उसे दादी का प्यार से कहानी सुनाना, खाना खिलाना याद आ रहा था. उसे पिता से घृणा हो गई क्योंकि वे उसे जबरदस्ती, धोखे से यहां छोड़ कर चले गए. वह सोचने लगा कि कोई उसे प्यार नहीं करता. दादी ने भी न तो रोका और न ही पिताजी को समझाया.

वह ऊपर से मशीन की तरह सब काम समय से कर रहा था पर उस के दिल पर तो मानो पहाड़ जैसा बोझ पड़ा हुआ था. लाचार था वह, कई दिनों तक गुमसुम रहा. चुपचाप रात में सुबकता रहा. फिर धीरेधीरे इस जीवन की आदत सी पड़ गई. कई बच्चों से जानपहचान और कइयों से दोस्ती भी हो गई. वह भी उन्हीं की तरह खाने और पढ़ने लग गया. धीरेधीरे उसे वहां अच्छा लगने लगा. वह कुछ अधिक समझदार भी होने लगा.

इसी प्रकार 1 वर्ष बीत गया. वह अब घर को भूलने सा लगा था. पिता की याद भी धुंधली पड़ रही थी कि एक दिन अचानक ही पिं्रसिपल साहब ने उसे अपने औफिस में बुलाया. वहां 2 पुलिस वाले बैठे थे, एक महिला पुलिस वाली तथा दूसरा बड़ी मूंछों वाला मोटा सा पुलिस का आदमी. उन्हें देखते ही अमान भय से कांपने लगा कि उस ने तो कोई चोरी नहीं की, फिर क्यों पुलिस पकड़ने आ गई है.

सोफिया अंसारी कंटैंट के नाम पर परोसती न्यूडिटी

बदलते दौर में सोशल मीडिया एक खास पावर बन कर उभरा है. एक ऐसा पावर जिस के सहारे आम आदमी भी अपने टैलेंट के जरिए देश और दुनिया में नाम कमा रहे हैं. देखा जाए तो सिर्फ नाम ही नहीं, ढेर सारा पैसा भी. इसी फेम और पैसों के लालच में आ कर कुछ लोग सोशल मीडिया पर कंटैंट क्रिएट करने के नाम पर कचरा ही फैला रहे हैं.

इन्हीं में से एक सोफिया अंसारी भी हैं, जिन्होंने बहुत कम समय में नाम कमा लिया है. उन्होंने इतने कम समय में अपने किसी टैलेंट के जरिए नाम नहीं कमाया, बल्कि अपनी सैमीन्यूड, बोल्ड, हौट एंड सैक्सी फोटोज और रील्स का सहारा लिया है.

हम कोई हवाबाजी नहीं कर रहे हैं. ऐसा उन की फोटोज और वीडियोज बयां करती हैं. उन के अकाउंट पर पोस्ट हुईं फोटोज और रील्स इन्हीं सब चीजों से भरी पड़ी हैं. एक से बढ़ कर एक डल्ट रील्स अपलोड हैं. ऐसी रील्स और फोटोज जिन्हें अकेले भी देख लें तो भी दो बार गरदन घुमा कर देखना पड़ता है कि कहीं कोई देख तो नहीं रहा.

 

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एक रील देखो तो स्क्रौल करते हुए कई और रील्स देखने के औप्शन आ जाते हैं. मैट्रो या बस में इंस्टाग्राम स्क्रौल करतेकरते सोफिया की कोई रील आ जाए तो शर्मिंदगी उठानी पड़ जाती है. हां लेकिन यह है कि जिन लोगों को इस तरह के कंटैंट पसंद आते हैं वे इन रील्स का अकेले में लुत्फ भी उठाते हैं.

ये बोल्ड और एडल्ट रील्स सोफिया के सोशल मीडिया के अलगअलग प्लेटफौर्म्स, जैसे इंस्टाग्राम, फेसबुक, स्नैपचैट अकाउंट से पोस्ट होती हैं. स्शद्घद्बड्ड9ट्ठशद्घद्घद्बष्द्बड्डद्य नाम से उन की इंस्टाग्राम आईडी है. इस में उन्होंने अभी तक 623 पोस्ट की हैं जबकि उन के फौलोअर्स लाखों में हैं. उन के इंस्टाग्राम पर करीब 9.7 मिलियन यानी 97 लाख फौलोअर्स हैं.

न्यूडिटी दिखा कर पैसा

सोफिया भी जानती हैं कि एडल्ट और न्यूडिटी के बलबूते पैसा कमाया जा सकता है. तभी तो वे ऐसा कंटैंट पेश करती हैं. वे जानती हैं कि इस दुनिया के लगभग सभी मर्दों के दिमाग में क्या उपज रहा होता है. बस, इसी का फायदा उठा कर वे पैसा कमा रही हैं. इसी के सहारे उन का सालाना टर्नओवर 80 लाख रुपए के करीब बताया जाता है. उन के इतने पैसे कमाने में इस देश के उन्हीं मर्दों का हाथ है जो नकारा हैं, खाली फोकटिया समय काट रहे हैं.

 

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इस से यह भी साबित होता है कि बिना टैलेंट के भी पैसे कमाया जा सकता है. कमर मटका कर, कपड़ा खिसका कर कंटैंट बनाया जा सकता है. इस फूहड़पन को देखदेख कर तो इस देश की लड़कियां यही समझेंगी कि हम भी इस तरह का कंटैंट बना कर सोफिया की तरह फेमस हो जाएं. वैसे भी, इस पढ़ाईलिखाई में क्या ही रखा है. बस, 9 से 5 जौब करो. उस में भी एक फिक्स सैलरी, बस. जिस में गुजारा तो बिलकुल भी नहीं होता है. तो क्यों न इंस्टाग्राम पर एडल्ट कंटैंट ही दिखाया जाए. वैसे भी, मर्दों को यही पसंद आता है.

गुजरात में 30 अप्रैल, 1996 को जन्मी सोफिया अंसारी को 25 जनवरी को इंस्टाग्राम की तरफ से ब्लू टिक मिल गया था. ब्लू टिक का सीधा फंडा है कि आप कितने पौपुलर हैं. इंस्टाग्राम में ब्लू टिक का मतलब है कि आप का अकांउट इंस्टाग्राम की तरफ से वैरिफाई हो गया है. अब कंपनियां डायरैक्ट आप से कौन्टैक्ट करेंगी. इस से कमाई के सोर्स बढ़ जाते हैं. ब्लू टिक मिल जाने से सोफिया एक सैलिब्रिटी बन कर उभरीं.

इंस्टाग्राम पर ब्लू टिक पाने से पहले सोफिया टिकटौक पर कौमेडी वीडियो, कपल क्लिप और अपने डांस मूव्स के लिए मशहूर थीं. इस के अलावा सोफिया ने ‘गोरी तेरे जिया और न हो कोई मिलिया…’ गाने को भी गाया था. इस गाने पर सोफिया का एक लिप्सिंग वीडियो टिकटौक पर काफी वायरल हुआ था. इसी के बाद वे लोगों की नजरों में आईं.

असल में, यह ब्लू टिक उन्हें एक सैमीन्यूड मिरर सैल्फी की पोस्ट पर मिला था. उस के बाद वे और ज्यादा फेमस हो गईं. इस सैल्फी में उन्होंने सिर्फ एक टौवेल ऊपर से पकड़ रखा था जिस में से उन की पूरी बैक दिख रही थी. उन के हिप्स और ब्रैस्ट भी सैमीन्यूड ही थे. बालों के लिए उन्होंने जूड़ा बनाया था जो किसी भी व्यक्ति की नजरों में चढ़ जाए. यह एक मिरर सैल्फी थी.

उक्त सैल्फी में गीले बालों में वे हौट दिख रही हैं. लगता है, सोफिया को टौवल ज्यादा ही पसंद है. यह भी हो सकता है कि उन्हें बचत करना पसंद हो, इसलिए कपड़ों के नाम पर, बस, टौवल ही खरीदा हो. ऐसा करने से कम से कम शौपिंग के चार पैसे तो बचते हैं.

 

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न्यूडिटी के बलबूते फेमस

उन के अकांउट पर हजारों ऐसी पोस्ट होती हैं जिन के कंटैंट से न्यूडिटी झलकती है. जैसे, ब्लैक ड्रैस में उन की आई रील, जिस में ड्रैस कहां थी, यह ढूंढ़ना मुश्किल है. कंटैंट के नाम पर आधे से भी कम ढका शरीर, मानो शरीर ही कंटैंट है.

उन्होंने इस रील में ड्रैस के नाम पर शौर्ट हौट ट्रांसपेरैंट ड्रैस पहनी थी, जिस में से उन की लौंजरी साफ झलक रही है. इस से बढि़या तो सिर्फ लौंजरी ही पहन लेतीं, यही काफी होता ताकि लोगों को कपड़े ढूंढ़ने की मेहनत तो न करनी पड़ती.

लेकिन उन की इस रील्स से उन लोगों को बहुत आनंद मिलता है जो सोफिया को इस तरह देखना पसंद करते हैं. असल में वे लोग बहुत ही ज्यादा फ्री हैं जो हर जगह अवेलेबल हैं. इतने फ्री कि उंगलियां कंप्यूटर के कीबोर्ड पर नहीं, मोबाइल के स्क्रीन पर सोफिया की रील्स को ही ढूंढ़ती हैं.

ऐसे लोग कभी जिंदगी में आगे नहीं बढ़ पाते क्योंकि उन्होंने कुछ सीखा ही नहीं होता है. सारा समय तो सोफिया जैसों को देखनेसोचने में लगा देते हैं. सोफिया भी जानती हैं कि एडल्ट और न्यूडिटी के बलबूते पैसा कमाया जा सकता है. तभी तो वे ऐसा कंटैंट पेश करती हैं. वे जानती हैं कि इस दुनिया के लगभग सभी मर्दों के दिमाग में क्या चल रहा होता है. बस, इसी का फायदा उठा कर वे नोट छाप रही हैं.

इसी के सहारे उन का सालाना टर्नओवर 80 लाख रुपए के करीब हो गया है और देखने वाले एक जीबी इंटरनैट से धमाल मचा रहे हैं. मसला यह है कि अगर आप में टैलेंट है तो उस टैलेंट के बलबूते नाम कमाएं, न कि न्यूडिटी दिखा के. इस फूहड़पन को देखदेख कर तो इस देश की लड़कियां यही समझेंगी कि हम भी इस तरह का कटैंट बना कर सोफिया की तरह फेमस हो सकते हैं.

वैसे भी, इस पढ़ाईलिखाई में क्या ही रखा है. बस, 9 से 5 जौब करो. उस में भी एक फिक्स सैलरी है जिस में गुजारा तो बिलकुल भी नहीं होता है. बहुत सी वीडियोज में सोफिया के साड़ी का पल्लू जबतब गिरता रहता है. वे जब भी साड़ी पहनती हैं तो उस का पल्लू वह गिरा देती है. शायद वे हम सभी को अपने ब्लाउज का कलैक्शन दिखाना चाहती हैं.

हम सभी जब घर से बाहर जाते हैं तो बौडी के अपर पार्ट और लोअर पार्ट दोनों के ही कपड़े पहनते हैं. लेकिन सोफिया सब से अलग हैं. वे सिर्फ लोअर बौडी पार्ट पर ही कपड़े पहनती हैं. उन के इस तरह के एडल्ट कंटैंट की वजह से एक बार उन का इंस्टाग्राम अकाउंट बैन भी कर दिया गया था. कुछ ही दिनों बाद वह फिर से चालू कर दिया गया.

इंस्टाग्राम कम्युनिटी भी समझ गई है कि लोगों को पसंद ही एडल्ट कटैंट आता है. वे इसी तरह का कटैंट देखना चाहते हैं. उन की हर फोटो और रील पर हजारों की संख्या में लाइक और कमैंट आते हैं. उन के कमैंटबौक्स में उन के प्रशंसक भी हैं और विरोधी भी.

 

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ट्रौलिंग की वजह

कुछ लोग उन की खूबसूरती की तारीफ करते नहीं थकते तो कुछ उन्हें गालियां देते. उन का कमैंटबौक्स भद्दी बातों से भरा पड़ा होता है. पर इस के बावजूद, समस्या यह है कि आखिर कितना खाली समय है नौजवानों के पास, एक तो बेसिरपैर के कंटैंट में समय बरबाद कर रहे हैं और फिर समर्थन और गाली देने में.

सोफिया के कमैंट सैक्शन पर नजर डालें तो तारीफों के साथ एक से बढ़ कर एक घटिया और भद्दे कमैंट देखने को मिलते हैं. कई मर्द उन से उन का रेट पूछते हैं. इस श्रेणी में हर उम्र के मर्द शामिल हैं- क्या 15-16 साल के स्कूल स्टूडैंट, क्या 24-25 साल के युवा, क्या 50-55 साल के अधेड़.

मतलब, हर पुरुष उन्हें उसी एक नजर से देखता है जिस नजर से एक महिला बिना अपनी मरजी के खुद को दिखाना नहीं चाहती है. हम यहां कुछ लोगों के कमैंट्स को शामिल कर रहे हैं. जो लोग कहते हैं कि ईश्वर की शरण में रहने वाले लोग इन सब मोह माया से दूर रहते हैं उन्हें बता दें कि ये ईश्वर की शरण में रहने वाले लोग ही उन के कमैंट सैक्शन में भद्दीभद्दी बातें और गालियां लिखते हैं.

भगवान की तसवीर लगा कर जो ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं उन का दिमाग कितना ही चलता होगा और कहां ही चलता होगा, यह तो सब समझते ही हैं.

 

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सोफिया की आलोचना करने वालों में खुद लड़कियां भी शामिल हैं. वे उन की पोस्ट पर अपनी भड़ास निकालती हैं. कई बार तो वे सोसाइटी में हो रहे रेप की दोषी भी उन्हें ही मानती हैं क्योंकि उन के कपड़े बहुत रिवीलिंग होते हैं, जिस की वजह से लड़कियों के साथ छेड़छाड़ होती है.

बात बिलकुल साफ है, देखने वाले हर तरह का कंटैंट देखेंगे. इंफौर्मेशनल, क्रिटिक, फूड, ट्रैवलिंग, एडल्ट आदि. अब चुनना व्यूअर को है कि वे किस तरह का कंटैंट देखना चाहते हैं. फूहड़पन और एडल्ट से भरा कंटैंट या ऐसा कंटैंट जिस से उन को कोई नौलेज मिले.

मेरे कपड़े उन के कपड़े : कैरैक्टर की कहानी

खैर, कैरैक्टर तो मैं अपना बहुत पहले नीलाम कर चुका हूं. यह जो मेरे पास दोमंजिला मकान, आलीशान गाड़ी है, सब मैं ने अपना कैरैक्टर नीलाम करने के बाद ही हासिल की है. इनसान जिंदगी में चाहे कितनी ही मेहनत क्यों न करे, पर जब तक वह अपने कैरैक्टर को बंदरिया के मरे बच्चे सा अपने से चिपकाए रखता है, तब तक भूखा ही मरता है.

इधर बंदे ने अपना कैरैक्टर नीलाम किया, दूसरी ओर हर सुखसुविधा ने उसे सलाम किया. कहने वाले जो कहें सो कहते रहें, पर अपना तजरबा है कि जब तक बंदे के पास कैरैक्टर है, उस के पास केवल और केवल गरीबी है.

पर कैरैक्टर नीलाम करने के बाद कमबख्त फिर गरीबी आन पड़ी. जमापूंजी कितने दिन चलती है? अब मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं अपना क्या नीलाम करूं? अनारकली होता, तो मीना बाजार जा पहुंचता.

जब मुझे पता चला कि उन के कपड़े डेढ़ करोड़ रुपए में बिके, तो अपना तो कलेजा ही मुंह को आ गया. लगा, मेरे लिए नीलामी का एक दरवाजा और खुल गया. जिस के कपड़े ही डेढ़ करोड़ के नीलाम हो रहे हों, वह बंदा आखिर कितना कीमती होगा?

बस, फिर क्या था. मुझे उन के कपड़ों की नीलामी की बोली के अंधेरे में उम्मीद की किरण नहीं, बल्कि दोपहर का चमकता सूरज दिखा और मैं ने आव देखा न ताव, अपने और बीवी के सारे कपड़ों के साथ पड़ोसी की बीवी के भी चार फटेपुराने कपड़ों की गठरी बांधी और लखपति होने के सपने लेता बाजार चलने को हुआ, तो बीवी ने टोका, ‘‘अब ये मेरे कपड़े कहां लिए जा रहे हो? पागलपन की भी हद होती है.’’

‘‘मैं बाजार जा रहा हूं… नीलाम करने,’’ मैं ने ऐसा कहा, तो बीवी चौंकी, ‘‘अपना सबकुछ नीलाम करने के बाद अब कपड़े भी नीलाम करने की नौबत आ गई क्या?’’

‘‘आई नहीं. नौबत क्रिएट कराई है उन्होंने. तेरेमेरे इन कपड़ों में मुझे लाखों रुपए की कमाई दिख रही है. चल फटाफट बंधी गांठ उठवा और शाम को मेरे आते ही लखटकिया की बीवी हो जा.’’

‘‘पर, इन कपड़ों को कौन गधा खरीदेगा?’’ कहते हुए वह परेशान हो गई.

‘‘अरी भागवान, ये कोई मामूली कपड़े नहीं हैं, बल्कि ये लैलामजनूं, हीररांझा, शीरींफरहाद के ऐतिहासिक कपड़े हैं.

‘‘तू भी न… सारा दिन टैलीविजन के पास बैठीबैठी बस सासबहू के सीरियल ही देखती रहती है. कभी समाचार सुनने नहीं, तो कम से कम देख ही लिया कर. उन के कपड़े की एक जोड़ी डेढ़ करोड़ रुपए में बिकी. हो सकता है कि लाखों रुपए में न सही, तो कम से कम हजारों रुपए में अपने ये कपड़े भी कोई खरीद ले.’’

‘‘घर में कोई जोड़ी बदलने के लिए भी छोड़ी है कि नहीं? कोई क्या पागल है, जो हमारे न पहनने लायक कपड़ों की बोली लगाएगा?’’

यह मेरी बीवी भी न, जब देखो शक में ही जीती रहती है.

‘‘क्यों न लगाएगा… मैं अपने कपड़ों को चमत्कारी रंग दे कर ऐसा प्रचार करूंगा कि… मसलन, ये कपड़े मेरी बीवी को हीर ने उसे तब दिए थे, जब वह पहली बार मुझ से मंदिर जाने के बहाने मिलने आई थी.

‘‘और ये कपड़े मेरी बीवी को लैला ने हमारी फर्स्ट मैरिज एनिवर्सरी पर दिए थे. यह वाला सूट हीर ने उसे उस की बर्थडे पर गिफ्ट किया था.

‘‘यह सूट तो तुम्हें महारानी विक्टोरिया ने खुद अपने हाथों से सिल कर दिया था. और मेरा कुरतापाजामा मजनूं ने मेरी शादी पर तब मुझे पहनाया था, जब मैं घोड़ी लायक पैसे न होने के चलते गधे पर शान से बैठ कर तुम्हें ब्याहने गया था.

‘‘यह तौलिया महात्मा गांधी का है, जिस से वे अपनी नाक पोंछा करते थे. यह उन्होंने मेरे दादाजी को भेंट में दिया था. यह रूमाल जवाहरलाल नेहरू का है. मेरे पिताजी जब 15 अगस्त को उन से मिलने गए थे, तो लालकिले पर झंडा फहराने के बाद इसे उन्होंने उन्हें उपहार के तौर पर दिया था.’’

‘‘और यह मफलर?’’

‘‘रहने दे. इसे बाद में देखेंगे. इसे कुछ काम तो करने दे,’’ जब मैं बोला, तो पहली बार उसे मुझ पर यकीन हुआ और उस ने कोई सवाल नहीं उठाया.

उलटे सुनहरे ख्वाब बुनते हुए मैं ने अपने सिर पर कपड़ों की बंधी गांठ रखी और मैं एक बार फिर अपने माल को नीलाम करने बाजार में जा खड़ा हुआ.

बाजार में पहुंचते ही खाली जगह देख कर दरी बिछाई और अपने और अपनी परीजादी को गिफ्ट में मिले सारे कपड़े उस पर बिखेर दिए.

पर यह क्या… एक घंटा बीता… 2 घंटे बीते… कोई कपड़ों के पास आ ही नहीं रहा था. उलटा, जो भी हमारे कपड़ों के पास से गुजर रहा था, नाक पर हाथ रख लेता. शाम तक मैं नीलामी करने वालों को टुकुरटुकुर ताकता रहा. अब समस्या यह कि गांठ जो बांध भी लूं, तो उठवाए कौन?

तभी एक पुलिस वाला आ धमका. वह डंडे से मेरी बीवी के कपड़ों को टटोलने लगा, तो मुझे उस की इस हरकत पर बेहद गुस्सा आया. पर बाजार की बात थी, सो चुप रहा.

‘‘अरे, यह सब क्या है? चोरी के कपड़े हैं क्या? यमुना के किस छोर से चिथड़े उठा लाया?’’

‘‘नहीं साहब, ये वाले हीर के हैं, ये वाले लैला के हैं. ये वाले मजनूं के हैं और ये वाले ओबामा की जवानी के दिनों के…

‘‘और ये…

‘‘फरहाद के…’’

‘‘छि:, इतने गंदे?’’

‘‘बरसों से धोए नहीं हैं न साहब. जस के तस संभाल कर रखे हैं.’’

‘‘मतलब, पुलिस वाले को उल्लू बना रहा है?’’

‘‘उल्लू… और आप को? मर जाए, जो आप को उल्लू बनाए,’’ कह कर मैं ने उस के दोनों पैरों को हाथ लगाया, तो वह आगे बोला, ‘‘म्यूजियम से चुरा कर लाया है क्या?’’ कह कर वह मुसकराता हुआ मेरी जेब में झांकने लगा, तो मैं ने दोनों हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘साहब, उन की देखादेखी मैं भी इन्हें नीलाम करने ले आया था.’’

‘‘पता है, वे किस के कपड़े थे? चल उठा जल्दी से इन गंदे कपड़ों को, वरना…’’

तभी सामने से पुराने कपड़े लेने वाली एक औरत आ धमकी और कमर नचाते हुए बोली, ‘‘ऐ, क्या लोगे इन सब पुराने कपड़ों का? 2 पतीले लेने हों, तो जल्दी बोलो…’’

कुछ खट्टा कुछ मीठा: वीर के स्वभाव में कैसे बदलाव आया?

फोन की घंटी लगातार बज रही थी. सब्जी के पकने से पहले ही उस ने तुरंत आंच बंद कर दी और मन ही मन सोचा कि इस समय किस का फोन हो सकता है. रिसीवर उठा कर कहा, ‘‘हैलो.’’

‘‘हैलो ममा,’’ उधर मिनी थी.

मिनी का इस समय फोन? सोच उस ने पूछा, ‘‘तू अभी तक औफिस नहीं गई?’’

‘‘बस जा रही हूं. सोचा जाने से पहले आप को फोन कर लूं,’’ मिनी का उत्तर था.

‘‘कोई खास बात?’’ उस ने जानना चाहा.

‘‘नहीं, वैसे ही. आप ठीक हैं न?’’ मिनी ने पूछा.

‘‘लो, मुझे क्या हुआ है? भलीचंगी हूं,’’ उस ने हैरान हो कर कहा.

‘‘आप ने फोन देर से उठाया न, इसलिए पूछ रही हूं,’’ मिनी बोली.

‘‘मैं किचन में काम कर रही थी,’’ उस ने कहा.

‘‘और सुनाइए कैसा चल रहा है?’’ मिनी ने बात बढ़ाई.

‘‘सब ठीक है,’’ उस ने उत्तर दिया, पर मन ही मन सोच रही थी कि मिनी को क्या हो गया है. एक तो सुबहसुबह औफिस टाइम पर फोन और उस पर इतने इतमीनान से बात कर रही है. कुछ बात तो जरूर है.

‘‘ममा, पापा का अभी फोन आया था,’’ मिनी बोली.

‘‘पापा का फोन? पर क्यों?’’ सुन कर वह हैरान थी.

‘‘कह रहे थे मैं आप से बात कर लूं. 3-4 दिन से आप का मूड कुछ उखड़ाउखड़ा है,’’ मिनी ने संकोच से कहा.

अच्छा तो यह बात है, उस ने मन ही मन सोचा और फिर बोली, ‘‘कुछ नहीं, बस थोड़ा थक जाती हूं. अच्छा तू अब औफिस जा वरना लेट हो जाएगी.’’

‘‘आप अपना ध्यान रखा करो,’’ कह कर मिनी ने फोन काट दिया.

वह सब समझ गई . पिछले हफ्ते की बात है. वीर टीवी देख रहे थे. उस ने कहा, ‘‘आज दोपहर को आनंदजी के घर चोरी हो गई है.’’

‘‘अच्छा.’’

‘‘आनंदजी की पत्नी बस मार्केट तक ही गई थीं. घंटे भर बाद आ कर देखा तो सारा घर अस्तव्यस्त था. चोर शायद पिछली दीवार फांद कर आए थे. आप सुन रहे हैं न?’’ उस ने टीवी की आवाज कम करते हुए पूछा.

‘‘हांहां सब सुन रहा हूं. आनंदजी के घर चोरी हो गई है. चोर सारा घर अस्तव्यस्त कर गए हैं. वे बाहर की दीवार फांद कर आए थे वगैरहवगैरह. तुम औरतें बात को कितना खींचती हैं… खत्म ही नहीं करतीं,’’ कहते हुए उन्होंने टीवी की आवाज फिर ऊंची कर दी.

सुन कर वह हक्कीबक्की रह गई. दिनदहाड़े कालोनी में चोरी हो जाना क्या छोटीमोटी है? फिर आदमी क्या कम बोलते हैं? वह मन ही मन बड़बड़ा रही थी.

उस दिन से उस के भी तेवर बदल गए. अब वह हर बात का उत्तर हां या न में देती. सिर्फ मतलब की बात करती. एक तरह से अबोला ही चल रहा था. तभी वीर ने मिनी को फोन किया था. उस का मन फिर अशांत हो गया, ‘जब अपना मन होता तो घंटों बात करेंगे और न हो तो जरूरी बात पूछने पर भी खीज उठेंगे. बोलो तो बुरे न बोलो तो बुरे यह कोई बात हुई. पहले बच्चे पास थे तो उन में व्यस्त रहती थी. उन से बात कर के हलकी हो जाती थी, पर अब…अब,’ सोचसोच कर मन भड़क रहा था.

उसे याद आया. इसी तरह ठीक इसी तरह एक दिन रात को लेटते समय उस ने कहा,  ‘‘आज मंजू का फोन आया था, कह रही थी…’’

‘‘अरे भई सोने दो. सुबह उठ कर बात करेंगे,’’ कह कर वीर ने करवट बदल ली.

बहुत बुरा लगा कि अपने घर में ही बात करने के लिए समय तय करना पड़ता है, पर चुपचाप पड़ी रही. सुबह वाक पर मंजू मिल गई. उस ने तपाक से मुबारकबाद दी.

‘‘किस बात की मुबारकबाद दी जा रही है. कोई हमें भी तो बताए,’’ वीर ने पूछा.

‘’पिंकू का मैडिकल में चयन हो गया है. मैं ने फोन किया तो था,’’ मंजू तुरंत बोली.

‘‘पिंकू के दाखिले की बात मुझे क्यों नहीं बताई?’’ घर आ कर उन्होंने पूछा.

‘‘रात आप को बता रही थी पर आप…’’

उस की बात को बीच ही में काट कर वीर बोल उठे,  ‘‘चलो कोई बात नही. शाम को उन के घर जा कर बधाई दे आएंगे,’’ आवाज में मिसरी घुली थी.

शाम को मंजू के घर जाने के लिए तैयार हो रही थी. एकाएक याद आया कुछ दिन पहले शैलेंद्र की शादी की वर्षगांठ थी.

‘‘जल्दी से तैयार हो जाओ, हम हमेशा लेट हो जाते हैं,’’ वीर ने आदेश दिया था.

‘‘मैं तो तैयार हूं.’’

‘‘क्या कहा? तुम यह ड्रैस पहन कर जाओगी…और कोई अच्छी ड्रैस नहीं है तुम्हारे पास? अच्छे कपड़े नहीं हैं तो नए सिलवा लो,’’ वीर की प्रतिक्रिया थी.

उस ने तुरंत उन की पसंद की साड़ी निकाल कर पहन ली.

‘‘हां? अब बनी न बात,’’ आंखों में प्रशंसा के भाव थे.

अपनी तारीफ सुनना कौन नहीं चाहता. इसीलिए  तो भी उस दिन उस ने 2-3 साडि़यां निकाल कर पूछ लिया, ‘‘इन में से कौन सी पहनूं?’’

‘‘कोई भी पहन लो. मुझ से क्यों पूछती हो?’’ वीर ने रूखे स्वर में उत्तर दिया.

कहते हैं मन पर काबू रखना चाहिए, पर वह क्या करे? यादें थीं कि थमने का नाम ही नहीं ले रही थीं. उस पर मिनी के फोन ने आग में घी का काम किया था. कड़ी से कड़ी जुड़ती जा रही थी. मंजू और वह एक दिन घूमने गईं. रास्ते में मंजू शगुन के लिफाफे खरीदने लगी. उस ने भी एक पैकेट ले लिया. सोचा 1-2 ले जाऊंगी तो वीर बोलेंगे कि जब खरीदने ही लगी थी तो पूरा पैकेट ले लेती.

उस के हाथ में पैकेट देखते ही वीर पूछ बैठे, ‘‘कितने में दिया.’’

‘‘30 में.’’

इतना महंगा? पूरा पैकेट लेने की क्या जरूरत थी? 1-2 ले लेती. कलपरसों हम मेन मार्केट जाने वाले हैं.’’

सुनते ही याद आया. ठीक इसी तरह एक दिन वह लक्स की एक टिक्की ले रही थी.

‘‘बस 1?’’ वीर ने टोका.

‘‘हां, बाकी मेन मार्केट से ले आएंगे,’’ वह बोली.

‘‘तुम क्यों हर वक्त पैसों के बारे में सोचती रहती हो. पूरा पैकेट ले लो. मेन मार्केट पता नहीं कब जाना हो,’’ उन का जवाब था.

वह समझ नही पा रही थी कि वह कहां गलत है और कहां सही या क्या वह हमेशा ही गलत होती है. यादों की सिलसिला बाकायदा चालू था. आज उस पर नैगेटिव विचार हावी होते जा रहे थे. पिछली बार मायके जाने पर भाभी ने पनीर के गरमगरम परांठे बना कर खिलाए थे. वीर तारीफों के पुल बांधे जा रहे थे. सुनसुन कर वह ईर्ष्या से जली जा रही थी. परांठे वाकई स्वादिष्ठ थे. पर जो भी हो, कोई भी औरत अपने पति के मुुंह से किसी दूसरी औरत की प्रशंसा नहीं सुन सकती. फिर यहां तो मामला ननदभाभी का था. उस ने भी घर आ कर खूब मिर्चमसाला डाल कर खस्ताखस्ता परांठे बना डाले. पर यह क्या पहला टुकड़ा मुंह में डालते ही वीर बोल उठे,  ‘‘अरे भई, कमाल करती हो? इतना स्पाइसी… उस पर लगता है घी भी थोक में लगाया है.’’

सुन कर वह जलभुन गई. दूसरे बनाएं तो क्रिस्पी, वह बनाए तो स्पाइसी…पर कर क्या सकती थी. मन मार कर रह गई. कहते हैं न कि एक चुप सौ सुख.

मन का भटकाव कम ही नहीं हो रहा था. याद आया. उस के 2-4 दिन इधरउधर होने पर जनाब उदास हो जाते थे. बातबात में अपनी तनहाई का एहसास दिलाते, पर पिछली बार मां के बीमार होने पर 15 दिनों के लिए जाना पड़ा. आ कर उस ने रोमांचित होते हुए पूछा, ‘‘रात को बड़ा अकेलापन लगता होगा?’’

‘‘अकेलापन कैसा? टीवी देखतेदेखते कब नींद आ जाती थी, पता ही नहीं चलता था.’’

वाह रे मैन ईगो सोचसोच कर माथा भन्ना उठा सिर भी भारी हो गया. अब चाय की ललक उठ रही थी. फ्रिज में देखा, दूध बहुत कम था. अत: चाय पी कर घड़ी पर निगाह डाली, वीर लंच पर आने में समय था. पर दुकान पर पहुंची ही थी कि फोन बज उठा, ‘‘इतनी दोपहर में कहां चली गई हो? मैं घर के बाहर खड़ा हूं. मेरे पास चाबी भी नहीं है,’’ वीर एक ही सांस में सब बोल गए. आवाज से चिंता झलक रही थी.

‘‘घर में दूध नहीं था. दूध लेने आई हूं.’’

‘‘इतनी भरी दोपहर में? मुझे फोन कर दिया होता, मैं लेता आता.’’

उस के मन में आया कह दे कि फोन करने पर पैसे नहीं कटते क्या? पर नहीं जबान को लगाम लगाई .

‘‘ बोली सोचा सैर भी हो जाएगी.’’

‘‘इतनी गरमी में सैर?’’ बड़े ही कोमल स्वर में उत्तर आया.

आवाज का रूखापन पता नहीं कहां गायब हो गया था. मन के एक कोने से आवाज आई कह दे कि मार्च ही तो चल रहा है. कौन सी आग बरस रही है पर नहीं बिलकुल नहीं दिमाग बोला रबड़ को उतना ही खींचना चाहिए जिस से वह टूटे नहीं.

रहना तो एक ही छत के नीचे है न. वैसे भी अब यह सब सुनने की आदत सी हो गई है. फिर इन छोटीछोटी बातों को तूल देने की क्या जरूरत है? उस ने अपने उबलते हुए मन को समझाया और चुपचाप सुनती रही.

‘‘तुम सुन रही हो न मैं क्या कह रहा हूं?’’

‘‘हां सुन रही हूं.’’

‘‘ठीक है, तुम वहीं ठहरो. मैं गाड़ी ले कर आता हूं. सैर शाम को कर लेंगे,’’ शहद घुली आवाज में उत्तर आया.

‘‘ठीक है,’’ उस ने मुसकरा कर कहा.

‘‘इतनी मिठास. इतने मीठे की तो वह आदी नहीं है. नहीं, ज्यादा मीठा सेहत के लिए अच्छा नहीं होता, यह सोच कर वह स्वयं ही खिलखिला कर हंस पड़ी मन का सारा बोझ उतर चुका था. वह पूरी तरह हलकी हो चुकी थी.

बिमला महाजन

मैं 23 साल का लड़का हूं और 21 साल की लड़की से बहुत प्यार करता हूं. क्या करूं.

सवाल
मैं 23 साल का लड़का हूं और 21 साल की लड़की से बहुत प्यार करता हूं. हम अलग अलग जाति के हैं, पर शादी करना चाहते हैं. लड़की की रिश्तेदारी में एक लड़की ने घर से भाग कर शादी की थी, इसलिए उस के घर वालों को समाज से अलग कर दिया गया था. बताएं कि मैं क्या करूं?

जवाब

आप अपने घर वालों को लड़की के घर वालों से बात करने को कहें. अगर वे लोग राजीखुशी से इस शादी के लिए तैयार हो जाएं तो ठीक है, वरना लड़की को भूल जाएं. आप लोग घर से भाग कर कोर्ट मैरिज तो कर सकते हैं, मगर इस में तमाम तरह के झंझट हैं..

मायावती के भतीजे को मिली बसपा की कमान, पर क्या यह कांटों भरा ताज

बर्फ की सिल्ली जैसी ठंडी पड़ चुकी बहुजन समाज पार्टी में गरमाहट लाने के मायावती ने नई पीढ़ी को कमान सौंपी है. उन्होंने अपने भतीजे आकाश आनंद को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित किया है, जो उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड को छोड़ कर दूसरे राज्यों में बहुजन समाज पार्टी का कामकाज देखेंगे, क्योंकि यहां मायावती ही काम संभाल रही हैं.

10 दिसंबर, 2023 को लखनऊ में हुई पार्टी की बैठक में मायावती ने देश के सभी प्रदेश अध्यक्षों, जोनल कोऔर्डिनेटरों और कोऔर्डिनेटरों से आकाश आनंद का सीधा परिचय कराया था और तभी उन्हें बड़ी जिम्मेदारी देने का ऐलान भी किया था.

अब देखना यह होगा कि वंचित समाज की कभी मजबूत पक्षधर रही बहुजन समाज पार्टी का यह सियासी बदलाव राजनीतिक जगत पर क्या और कितना असर डाल पाएगा. मायावती के अलावा आज बसपा में कितने बड़े नेता बचे हैं, शायद ही अब किसी को याद होंगे. नीले रंग का हाथी सियासी खेल में थक कर चूर होता दिख रहा है, फिर आकाश आनंद नाम का महावत उसे फिर मतवाला बना पाएगा, यह भी देखने की बात होगी.

28 साल के आकाश आनंद के पिता का नाम आनंद कुमार है, जो बसपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं. वे मायावती के छोटे भाई हैं. ट्विटर अकाउंट पर खुद को ‘बाबा साहेब के दृष्टिकोण का एक युवा समर्थक’ बताने वाले आकाश आनंद ने लंदन से मास्टर औफ बिजनैस एडमिनिस्ट्रेशन यानी एमबीए किया है. इन्हें साल 2017 में सहारनपुर रैली में मायावती के साथ पहली बार मंच पर देखा गया था और आज 6 साल बाद मायावती ने आकाश आनंद पर इतना ज्यादा भरोसा किया है कि उन्हें अपना सियासी वारिस बना दिया है.

अगर परिवार की बात करें तो आकाश आनंद की शादी मार्च, 2023 में बसपा सांसद रह चुके अशोक सिद्धार्थ की बेटी प्रज्ञा सिद्धार्थ से गुरुग्राम में हुई थी. आकाश के एक भाई और 2 बहन हैं.

ये होंगी चुनौतियां

आकाश आनंद को मायावती ने अपनी गद्दी तो सौंप दी है, पर कहीं यह कांटों भरा ताज बन कर न रह जाए, क्योंकि उन के सामने कई तरह की चुनौतियां भी मुंह बाए खड़ी हैं.

अगले साल ही लोकसभा के चुनाव होने हैं और बसपा की हालत कुछ खास अच्छी नहीं है. इस का कट्टर वोटबैंक छिटक चुका है और पिछली बार की 11 लोकसभा सीटों को कैसे आगे बढ़ाना है, यह किसी भी बसपाई को सूझ नहीं रहा है. आकाश आनंद को अपनी रणनीति इस तरह बनानी होगी, ताकि बसपा की सीटों में इजाफा हो सके या फिर वे पहले से तो कतई कम न हों.

आज भारतीय जनता पार्टी अपने पूरे दमखम के साथ बसपा जैसी पार्टी में सेंध लगा चुकी है. सही कहें, तो मायावती की पार्टी के प्रति अनदेखी से वोटर बड़े मायूस हुए थे और वे भाजपा की तरफ चले गए. आकाश आनंद को नए सिरे से पार्टी में जान फूंकनी होगी, ताकि यह न लगे कि बूआ की तरह भतीजे ने भी भगवाधारियों को चुनाव से पहले ही ‘वाक ओवर’ दे दिया है.

आकाश आनंद पढ़ेलिखे हैं. पिछले 6 साल से राजनीति में सक्रिय हैं. उन्हें मायावती से राजनीति करने के गुर भी मिल चुके हैं. ये सब बातें उन के लिए पौजिटिव हैं, पर बसपा से जो वोटबैंक दूर हो चुका है, उसे दोबारा हाथी की सवारी कराना सब से बड़ी चुनौती रहेगी. वे इस चक्रव्यूह को कैसे भेदते हैं, यह देखने वाली बात होगी. वैसे, आकाश आनंद अंबेडकरवादी चंद्रशेखर आजाद ‘रावण’ से बेहतर नेता साबित होंगे, यह तो दिख रहा है.

मास्साबों का दर्द : गांवभर की भौजाई क्यों हो गए हैं मास्साब

हमारे गांवदेहात में एक कहावत मशहूर है कि ‘गरीब की लुगाई गांवभर की भौजाई’. कुछ यही हाल हमारे देश के मास्साबों का हो गया है. सरकार ने इन्हें भी गांवभर की भौजाई समझ लिया है. जनगणना से ले कर पशुगणना तक, ग्राम पंचायत के पंच से ले कर संसद सदस्य तक के चुनाव मास्साबों के जिम्मे है.

किस गांव में कितने कमउम्र बच्चों को पोलियो की खुराक देनी है, गांव के कितने मर्दऔरतों ने नसबंदी कराई है, कितने बच्चों के जाति प्रमाणपत्र कचहरी में धूल खा रहे हैं, कितनों की आईडी रोजगार सहायक के कंप्यूटर में कैद है, कितने परिवार गरीबी की रेखा के नीचे दब कर छटपटा रहे हैं और कितने गरीबी की रेखा को पीछे सरकाते हुए आगे निकल गए हैं, कितने परिवार घर में शौचालय न होने के चलते खुले में शौच करते हैं. कितने लोगों के आधार कार्ड नहीं बने हैं, कितनों के बैंक में लिंक नहीं हुए, बच्चों का वजीफा, साइकिल, खाता खोलने के लिए बैंकों के कितने चक्कर लगाने हैं, इन सब बातों की जानकारी भला मास्साबों से बेहतर कौन जान सकता है. सरकार ने मास्साबों के इसी हुनर को देख कर पढ़ाई को छोड़ कर बाकी सारे काम उन्हें दे रखे हैं. सरकार जानती है कि पढ़ाई का क्या है, वह तो बच्चे को जिंदगीभर करनी है. पढ़ाईलिखाई के महकमे की बैठकों में अफसर पढ़ाई को छोड़ कर बाकी सारी बातें करते हैं. किसी गांव को पूरी तरह पढ़ालिखा बनाना मास्साबों को बाएं हाथ का खेल लगता है.

मास्साब कहते हैं कि हम तो सरकारी आदेशों के गुलाम हैं. सरकार जो चाहे खुशीखुशी कर देते हैं. आखिर पगार काहे की लेते हैं. सरकार द्वारा दिए गए लोगों के भले के कामों की वजह से मास्साब की ईमानदारी पर शक किया जाने लगा है. जब सरकारी स्कूलों में मास्साब कभी किचन शैड, शौचालय या ऐक्स्ट्रा कमरा बनाने का काम कराते हैं, तो वे देश के लिए इंजीनियर और ठेकेदार का रोल भी निभाते हैं. यही बात गांव वालों को खलती है और वे मास्साब की ईमानदारी पर भी बेवजह शक करने लगते हैं. गांवों में अकसर ही लोगों को यह शिकायत रहती है कि मास्साब नियमित स्कूल नहीं आते, बच्चों को ठीक से नहीं पढ़ाते, घर में कोचिंग क्लास चलाते हैं.

अरे जनाब, आप को पता होना चाहिए कि बच्चे मास्साब के कंधों पर कितना बड़ा बोझ हैं. बच्चे भी क्या कम हैं, वे स्कूल पढ़ने नहीं रिसर्च करने आते हैं. बच्चे मास्साब के स्मार्टफोन का मजा लेते हैं. ह्वाट्सऐप पर भेजे वीडियो व फोटो को भी वे शेयर करते हैं. मास्साब की फेसबुक पर वे कमैंट करने में भी पीछे नहीं हैं. कभी मास्साब को समय मिलता है और वे लड़कों को भारत का इतिहास पढ़ाते हैं, तो भी क्लास की लड़कियों के इतिहास की जानकारी लेने में बिजी रहते हैं. लड़कियों के इतिहास पर लड़कों

की रिसर्च चलती रहती है. इस के लिए थीसिस, जिसे नासमझ प्रेमपत्र भी कहते हैं, लिखने का काम भी करते हैं, तभी उन्हें पीएचडी यानी शादी बतौर अवार्ड मिल पाती है. यह बात और है कि ज्यादातर लड़कों का इस काम में भूगोल बिगड़ने का खतरा रहता है. रिजल्ट भी खराब आता है, जिस की जिम्मेदारी मास्साबों पर थोपी जाती है. लड़कों की गलतियों की सजा मास्साबों की वेतन वृद्धि रोक कर वसूल की जाती है.

यही वजह है कि मास्साब कभीकभी नकल की खुली छूट दे देते हैं. इस से रिजल्ट भी अच्छा बन जाता है और छात्रों की नजर में मास्साब की इज्जत भी बढ़ जाती है. इस तरह मास्साब एक पंथ दो काज निबटा लेते हैं. मास्टरी के क्षेत्र में औरतों की चांदी है. मैडमजी सुबहसवेरे ही सजसंवर कर स्कूल चली जाती हैं और चूल्हाचौका सासूजी के मत्थे मढ़ जाती हैं.

कुमारियां तो स्कूल को किसी फैशन परेड का रैंप समझती हैं, तो श्रीमतियां अपने घर के काम निबटा लेती हैं. वे स्कूल समय में मटर छील लेती हैं, पालकमेथी के पत्तों को तोड़ कर सब्जी बनाने की पूरी तैयारी कर लेती हैं. कभीकभार जब समय नहीं रहता, तो स्कूल के मिड डे मील की बची हुई रेडीमेड सब्जीपूरी भी घर ले जाती हैं. ठंड के दिनों में स्वैटर बुनने की सब से अच्छी जगह सरकारी स्कूल ही होती है, जहां पर कुनकुनी धूप में बच्चों को मैदान में बिठा कर उन्हें जोड़घटाने के सवालों में उलझा कर मैडम अपने पति के स्वैटर के फंदों का जोड़घटाना कर ह्वाट्सऐप के मजे लेती हैं.

कुछ मैडमें अपने नन्हेमुन्ने बच्चों को भी साथ में स्कूल ले आती हैं, जिन के लालनपालन की जिम्मेदारी क्लास के गधा किस्म के बच्चों की होती है. उन की इस सेवा के बदले उन का प्रमोशन अगली क्लास में कर दिया जाता है. जब से सरकार ने मास्साबों की भरती में औरतों को 50 फीसदी रिजर्वेशन व उम्र की सीमा को खत्म किया है, तब से सास बनी बैठी औरतों ने भी मास्टरनी बनने की ठानी है. अब देखना यही है कि रसोई की कमान मर्दों के हाथों में आती है या नहीं?

देश के महामहिम राष्ट्रपति रह चुके डा. राधाकृष्णन के जन्मदिन 5 सितंबर को ‘शिक्षक दिवस’ मनाया जाता है. स्कूली बच्चे चंदा कर के मास्साब के लिए शाल और चायबिसकुट का इंतजाम करते हैं.

देश के राष्ट्रपति द्वारा इस दिन दिल्ली में होनहार मास्साबों को सम्मानित किया जाता है. कुछ मास्साब यहां भी अपने हुनर को दिखा कर टैलीविजन चैनलों पर अवार्ड लेते दिख जाते हैं. अवार्ड लेने के बाद मास्साबों को गांवगांव, गलीगली में सम्मानित किया जाता है. इसी चक्कर में मास्साब कईकई दिनों तक स्कूल नहीं पहुंच पाते. पर कभीकभार स्कूल के हाजिरी रजिस्टर पर दस्तखत कर उसे भी गौरवान्वित कर आते हैं.

ठीक ही तो है कि सारी ईमानदारी का बोझ अकेले मास्साबों के कंधों पर नहीं डाला जा सकता. जब से देश को बनाने की जिम्मेदारी अंगूठा लगाने वाले जनप्रतिनिधि निभाने लगे हैं, तब से मास्साबों को शर्म आने लगी है. इतनी पढ़ाई के बाद भी मास्साब अंगूठे की छाप नहीं बदल सके? काश, मास्साबों का यह दर्द कोई समझ पाता.

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