मेरी उम्र 23 साल है, मैं एक 30 साल की विधवा से प्यार करता हूं…

सवाल

मेरी उम्र 23 साल है और मैं एक 30 साल की विधवा से प्यार करता हूं. क्या हमारी शादी हो सकती है?

जवाब….

शादी तो हो सकती है पर 7 साल बड़ी एक विधवा. शादी कर के उसे निभा पाना आसान बात नहीं है. अगर आप की आमदनी ठीकठाक? है और आप समाज का मुकाबला कर सकते हैं तो ही शादी करें. शादी से पहले कुछ दिन साथ रह कर देख लें कि आप का प्यार सिर्फ बातों का ही तो नहीं है. वैसे, अब जब जीवन 60-70 साल तक आराम से चलता है, तब 7 साल का फर्क ज्यादा नहीं है.

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क्यों है लहसुन मर्दों के लिए फायदेमंद? जानें यहां

लहसुन को किसी भी सब्जी मे दालने से उसका स्वाद तो बढ़ता है साथ ही वो कई मायनों में फायदेमंद है. लहसुन की अगर बात करें तो वेद में इसको “मेडिसिनल हर्ब”  के  तौर पर जाना जाता है. लहसुन में कई ऐसे पोषक तत्व पाए जाते है जो पेठ संबंध बीमारी के लिए काफी लाभकारी है. पर पुरुषों के लिए लहसुन का सेवन थोड़ा खास है, दरअसल लहसुन की कच्ची कली पेट के जीवाणु और विषाक्त पदार्थों को दूर करने में मदद करती है पर इसके अलावा शरीरिक रूप से कमजोर मर्दों के लिए लहसुन की कलियां बेहद फायदेमंद होती हैं. एक शोध से  ये बात  सामने आई है की शारीरिक रूप से कमजोर मर्द अगर सुबह खाली पेट लहसुन की 2 कलियां चबाए तो उनके प्राइवेट पार्ट के कार्पस कैवर्नोसा में रक्त का बहाव पूरा होता है, जिससे इरेक्टाइल डिस्फंक्शन की समस्या दूर हो जाती है. कच्चा लहसुन उन पुरुषों के लिए रामबाण है, जो किसी कारणवश गुप्त रोग का शिकार हो गए हैं. लहसुन में में ऐफ्रोडिजिएक नाम का कामोत्तेजक गुण पाया जाता है, जो पुरुषों के लिए फायदेमंद साबित होता है.

पुरुषों को लहसुन से होने वाले फायदे क्या है?

  • लहसुन में सेलेनियम नाम का गुण पाया जाता है, जो पुरुषों को इंफर्टिलिटी से बचाता है.
  • लहसुन में प्रोटीन की भी मात्रा होती है, जो मांसपेशियां टोंड करने में मदद करती हैं.
  • लहसुन में पाए जाने वाले कार्बोहाइड्रेट्स से कमजोरी दूर होती है और आपकी बौडी को ऊर्जा मिलती है.
  • लहसुन में पाए जाने वाले एलिसिन से फैट बर्निंग की प्रक्रिया में गति आती है, जिससे वजन नियंत्रित होता है.
  • लहसुन में मौजूद फाइबर कब्ज जैसी पेट की समस्या को दूर करने में मदद करता है.

लहसुन में पाए जाने वाले एलिकिन नाम के तत्व में जीवाणुरोधी, एंटीवायरल, एंटीफंगल और एंटीऔक्सिडेंट गुण होते हैं. इसके अलावा इसमें विटामिन B1, B6 और C के साथ-साथ मैगनीज़ कैल्शिम, तांबा, सेलेनियम और अन्य जरूरी तत्व भी पाए जाते हैं.

ह्रदय संबंधी समस्या

लहसुन खाने से रक्त वाहिकाओं (Blood vessels) में खून का जमाव नहीं होता, जिससे हार्ट अटैक जैसी दिल से संबंधित समस्याओं का खतरा कम हो जाता है. लहसुन और शहद को मिलाकर खाने से दिल तक जाने वाली धमनियों में जमा फैट निकल जाता है, जिससे रक्त प्रवाह सही हो जाता है.

पेट की समस्या को रखें दूर

लहसुन का प्रयोग पेट से जुड़ी बीमारियों जैसे डायरिया और कब्‍ज की रोकथाम में बेहद मददगार है. उबले पानी में लहसुन की कलियां डालें और खाली पेट इस पानी को पी लें. इसे पीने से डायरिया और कब्‍ज से आराम मिलेगा. इतना ही नहीं यह पानी शरीर के अंदर मौजूद जहरीलें पदार्थों को भी बाहर निकालने में मदद करता है.

टेंशन से मिले राहत

लहसुन टेंशन दूर करने में भी मददगार है. दरअसल कई बार हमारे पेट के अंदर कई प्रकार के एसिड बनते हैं, जिनके कारण हमें घबराहट होने लगती है. लहसुन उन एसिडों को बनने से रोकता है, जिससे सिर दर्द और हाइपर टेंशन में आराम मिलता है.

तो ये है लहसुन के कुछ ऐसे फायदे जिससे शायद आप अब तक अंजान थे.

वह फांकी वाली : सुनसान गलियों की प्रेम कहानी

वह एक उमस भरी दोपहर थी. नरेंद्र बैठक में कूलर चला कर लेटा हुआ था. इस समय गलियों में लोगों का आनाजाना काफी कम हो जाता था और कभीकभार तो गलियां सुनसान भी हो जाती थीं.

उस दिन भी गलियां सुनसान थीं. तभी गली से एक फेरी वाली गुजरते हुए आवाज लगा रही थी, ‘‘फांकी ले लो फांकी…’’

जैसे ही आवाज नरेंद्र की बैठक के नजदीक आई तो उसे वह आवाज कुछ जानीपहचानी सी लगी. वह जल्दी से चारपाई से उठा और गली की तरफ लपका. तब तक वह फेरी वाली थोड़ा आगे निकल गई थी.

नरेंद्र ने पीछे से आवाज लगाई, ‘‘लच्छो, ऐ लच्छो, सुन तो.’’

उस फेरी वाली ने मुड़ कर देखा तो नरेंद्र ने इशारे से उसे अपने पास बुलाया. वह फेरी वाली फांकी और मुलतानी मिट्टी बेचने के लिए उस के पास आई और बोली, ‘‘जी बाबूजी, फांकी लोगे या मुलतानी मिट्टी?’’

नरेंद्र ने उसे देखा तो देखता ही रह गया. दोबारा जब उस लड़की ने पूछा, ‘‘क्या लोगे बाबूजी?’’ तब उस की तंद्रा टूटी.

नरेंद्र ने पूछा, ‘‘तुम लच्छो को जानती हो, वह भी यही काम करती है?’’

उस लड़की ने मुसकरा कर कहा, ‘‘लच्छो मेरी मां है.’’

नरेंद्र ने कहा, ‘‘वह कहां रहती है?’’

उस लड़की ने कहा, ‘‘वह यहीं मेरे साथ रहती है. आप के गांव के स्कूल के पास ही हमारा डेरा है. हम वहीं रहते हैं. आज मां पास वाले गांव में फेरी लगाने गई है.’’

नरेंद्र ने उस लड़की को बैठक में बिठाया, ठंडा पानी पिलाया और उस से कहा कि कल वह अपनी मां को साथ ले कर आए. तब उन का सामान भी खरीदेंगे और बातचीत भी करेंगे.

अगले दिन वे मांबेटी फेरी लगाते हुए नरेंद्र के घर पहुंचीं. उस ने दोनों को बैठक में बिठाया, चायपानी पिलाया. इस के बाद नरेंद्र ने लच्छो से पूछा, ‘‘क्या हालचाल है तुम्हारा?’’

लच्छो ने कहा, ‘‘तुम देख ही रहे हो. जैसी हूं बस ऐसी ही हूं. तुम सुनाओ?’’

नरेंद्र ने कहा, ‘‘मैं बिलकुल ठीक हूं. अभी 2 साल पहले रिटायर हुआ हूं. 2 बेटे हैं. दोनों सर्विस करते हैं. बेटीदामाद भी भी सर्विस में हैं.

‘‘पत्नी छोटे बेटे के पास चंडीगढ़ गई है. मैं यहां इस घर की देखभाल करने के लिए. तुम अपने परिवार के बारे में बताओ,’’ नरेंद्र ने कहा.

लच्छो बोली, ‘‘तुम से बाबा की नानुकर के बाद हमारी जात में एक लड़का देख कर बाबा ने मेरी शादी करा दी थी. पति तो क्या था, नशे ने उस को खत्म कर रखा था.

‘‘यह मेरी एकलौती बेटी है सन्नो. इस के जन्म के 2 साल बाद ही इस के पिता की मौत हो गई थी. तब से ले कर आज तक अपनी किस्मत को मैं इस फांकी की टोकरी के साथ ढो रही हूं.’’

उन दोनों के जाने के बाद नरेंद्र यादों में खो गया. बात उन दिनों की थी जब वह ग्राम सचिव था. उस की पोस्टिंग राजस्थानहरियाणा के एक बौर्डर के गांव में थी. वह वहीं गांव में एक कमरा किराए पर ले कर रहता था.

वह कमरा गली के ऊपर था. उस के आगे 4-5 फुट चौड़ा व 8-10 फुट लंबा एक चबूतरा बना हुआ था. उस चबूतरे पर गली के लोग ताश खेलते रहते थे. दोपहर में फेरी वाले वहां बैठ कर आराम करते थे यानी चबूतरे पर रात तक चहलपहल बनी रहती थी.

राजस्थान से फांकी, मुलतानी मिट्टी, जीरा, लहसुन व दूसरी चीजें बेचने वाले वहां बहुत आते थे. कड़तुंबा, काला नमक, जीरा वगैरह के मिश्रण से वे लोग फांकी तैयार करते थे जो पेटदर्द, गैस, बदहजमी जैसी बीमारियों के लिए इनसानों व पशुओं के लिए बेहद गुणकारी साबित होती है.

उस दिन भी गरमी की दोपहर थी. फेरी वाली गांव में फेरी लगा कर कमरे के बाहर चबूतरे पर आ कर आराम कर रही थी. उस ने किवाड़ की सांकल खड़काई. नरेंद्र ने दरवाजा खोल कर देखा कि 18-20 साल की एक लड़की राजस्थानी लिबास में चबूतरे पर बैठी थी.

नरेंद्र ने पूछा था, ‘क्या बात है?’

उस ने मुसकरा कर कहा था, ‘बाबूजी, प्यास लगी है. पानी है तो दे देना.’

नरेंद्र ने मटके से उस को पानी पिलाया था. पानी पी कर वह कुछ देर वहीं बैठी रही. नरेंद्र उस के गठीले बदन के उभारों को देखता रहा. वह लड़की उसे बहुत खूबसूरत लगी थी.

नरेंद्र ने उस से पूछ लिया, ‘तुम्हारा नाम क्या है?’

उस ने कहा था, ‘लच्छो.’

‘तुम लोग रहते कहां हो?’ नरेंद्र के यह पूछने पर उस ने कहा था, ‘बाबूजी,  हम खानाबदोश हैं. घूमघूम कर अपनी गुजरबसर करते हैं. अब कई दिनों से यहीं गांव के बाहर डेरा है. पता नहीं, कब तक यहां रह पाएंगे,’ समय बिताने के बहाने नरेंद्र लच्छो के साथ काफी देर तक बातें करता रहा था.

अगले दिन फिर लच्छो चबूतरे पर आ गई. वे फिर बातचीत में मसरूफ हो गए. धीरेधीरे बातें मुलाकातों में बदलने लगीं. लच्छो ने बाहर चबूतरे से कमरे के अंदर की चारपाई तक का सफर पूरा कर लिया था.

दोपहर के वीरानेपन का उन दोनों ने भरपूर फायदा उठाया था. अब तो उन का एकदूसरे के बिना दिल ही नहीं लगता था.

नरेंद्र अभी तक कुंआरा था और लच्छो भी. वह कभीकभार लच्छो के साथ बाहर घूमने चला जाता था. लच्छो उसे प्यारी लगने लगी थी. वह उस से दूर नहीं होना चाहता था. उधर लच्छो की भी यही हालत थी.

लच्छो ने अपने मातापिता से रिश्ते के बारे में बात की. वे लगातार समाज की दुहाई देते रहे और टस से मस नहीं हुए. गांव के सरपंच से भी दबाव बनाने को कहा.

सरपंच ने उन को बहुत समझाया और लच्छो का रिश्ता नरेंद्र के साथ करने की बात कही लेकिन लच्छो के पिताजी नहीं माने. ज्यादा दबाव देने पर वे अपने डेरे को वहां से उठा कर रातोंरात कहीं चले गए.

नरेंद्र पागलों की तरह मोटरसाइकिल ले कर उन्हें एक गांव से दूसरे गांव ढूंढ़ता रहा लेकिन वे नहीं मिले.

नरेंद्र की भूखप्यास सब मर गई. सरपंच ने बहुत समझाया, लेकिन कोई फायदा नहीं. बस हर समय लच्छो की ही तसवीर उन की आंखों के सामने छाई रहती. सरपंच ने हालत भांपते हुए नरेंद्र की बदली दूसरी जगह करा दी और उस के पिताजी को बुला कर सबकुछ बता दिया.

पिताजी नरेंद्र को गांव ले आए. वहां गांव के साथियों के साथ बातचीत कर के लच्छो से ध्यान हटा तो उन की सेहत में सुधार होने लगा. पिताजी ने मौका देख कर उस का रिश्ता तय कर दिया और कुछ समय बाद शादी भी करा दी.

पत्नी के आने के बाद लच्छो का बचाखुचा नशा भी काफूर हो गया था. फिर बच्चे हुए तो उन की परवरिश में वह ऐसा उलझा कि कुछ भी याद नहीं रहा.

आज 35 साल बाद सन्नो की आवाज ने, उस के रंगरूप ने नरेंद्र के मन में एक बार फिर लच्छो की याद ताजा कर दी.

आज लच्छो से मिल कर नरेंद्र ने आंखोंआंखों में कितने गिलेशिकवे किए.  लच्छो व सन्नो चलने लगीं तो नरेंद्र ने कुछ रुपए लच्छो की मुट्ठी में टोकरी उठाते वक्त दबा दिए और जातेजाते ताकीद भी कर दी कि कभी भी किसी चीज की जरूरत हो तो बेधड़क आ कर ले जाना या बता देना, वह चीज तुम तक पहुंच जाएगी.

लच्छो का भी दिल भर आया था. आवाज निकल नहीं पा रही थी. उस ने उसी प्यारभरी नजर से देखा, जैसे वह पहले देखा करती थी. उस की आंखें भर आई थीं. उस ने जैसे ही हां में सिर हिलाया, नरेंद्र की आंखों से भी आंसू बह निकले. वह अपने पहले की जिंदगी को दूर जाता देख रहा था और वह जा रही थी.

नाबालिग घरेलू नौकरानी के साथ हैवानियत, जिम्मेदार कौन

चंद घंटों की बरसात में डूब जाने वाले गुरुग्राम, हरियाणा में ऐसा कुछ है, जिसे सुनदेख कर शरीफ आदमी तो शर्म के मारे ही डूब कर मर जाए. वहां एक घरेलू नौकरानी को पहले खूब मारापीटा गया और बाद में उसे कुत्ते से भी कटवाया गया. यह भी आरोप लगा कि उस का अश्लील वीडियो बनाया गया.

पुलिस ने आरोपी के खिलाफ मामला दर्ज कर अपनी जांच शुरू कर दी और बताया कि शनिवार, 9 दिसंबर, 2023 को 13 साल की एक लड़की, जो गुरुग्राम के क्यूबर सिटी इलाके के सैक्टर 57 में एक घर में काम कर रही थी, को उस के मालिकों द्वारा कथिततौर पर पीटा, कुत्ते से कटवाया और कपड़े उतारने के लिए मजबूर किया गया.

लड़की की मां ने पुलिस को बताया कि उस की बेटी को गुरुग्राम में जिस औरत ने अपने घर में नौकरानी के रूप में रखा था, उस ने अपने 2 बेटों के मिल कर लड़की के कपड़े उतार कर हथौड़े और लोहे की छड़ से पीटा और उस के मुंह पर टेप लगा कर बंद कर दिया था.

इतना ही नहीं, वे लोग पीड़िता का वीडियो बना रहे थे और उसे गलत तरीके से छू रहे थे. उन्होंने नाबालिग लड़की को धमकी दी कि अगर उस ने उन लोगों की बात नहीं मानी, तो वे उसे वेश्यालय भेज देंगे.

बिहार की रहने वाली लड़की की मां ने कहा कि उन्होंने अपनी बेटी को 27 जून, 2023 को सैक्टर 57 में शशि शर्मा के घर पर पास के इलाके में गाड़ी साफ करने वाले एक आदमी की मदद से नौकरी दिलाई थी. पर लड़की को वहां सताया जाता था और उसे दिन में एक बार ही खाने को दिया जाता था.

यह कोई एकलौता मामला नहीं है. कभी नोएडा, उत्तर प्रदेश में एक मालकिन ने लिफ्ट में अपनी घरेलू नौकरानी को पीटा, तो कभी पटना की बुद्धा कालोनी में रहने वाली एक मालकिन ने 12 साल की नौकरानी की गरम सलाखों से दाग कर हत्या कर दी थी.

असम के दिमा हसाओ जिले में रहने वाले सेना के मेजर और उन की पत्नी ने अपनी नाबालिग नौकरानी को इतना ज्यादा मारापीटा था कि उस की नाक टूटी गई थी. उस की जीभ और दांत में भी चोट आई थी.

जुलाई, 2023 में दिल्ली के द्वारका में सनसिटी इलाके में एक नाबालिग बच्ची से घर में काम कराने और उस दौरान उसके साथ मारपीट करने और प्रैस से हाथ जलाने का मामला सामने आया था.

आरोपी दोनों पतिपत्नी एयरलाइंस में काम करते थे और उन्होंने घरेलू कामकाज के लिए 10 साल की एक नाबालिग बच्ची को नौकरानी बना कर रखा था, जो इन के फ्लैट पर 24 घंटे रहती थी. कामकाज में किसी भी कमी पर बच्ची को मारपीटा जाता था और उस का हाथ तक गरम प्रैस से जला दिया गया था.

जैसे ही मौका मिला, यह बच्ची फ्लैट से भाग निकली. जब बच्ची के साथ मारपीट की जानकारी उस के एक रिश्तेदार को लगी तो गुस्साए परिवार वालों ने आरोपी जोड़े की पिटाई कर दी.

अगस्त, 2023 की बात है. उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी के पलिया कोतवाली क्षेत्र में ड्राई फ्रूट के एक होलसेलर शंकर गोयल के घर से घरेलू नौकरानी 16 साल की नाबालिग लड़की कंचन की लाश तीसरी मंजिल के एक कमरे से मिली थी और उस के गले, गालों और शरीर पर चोट के कई निशान थे.

गुरुग्राम में जो कांड हुआ है, वहां पीड़िता महज 13 साल की बताई जा रही है. ज्यादातर लोग नाबालिग घरेलू नौकरानी के लिए इस उम्र की बच्चियों को इसलिए अपने घर रख लेते हैं, क्योंकि उन्हें कम पैसे देने पड़ते हैं और चूंकि नाबालिग को अपने हक नहीं पता होते हैं, तो उन्हें डराधमका कर ज्यादा काम भी करा लिया जाता है.

पर लोग भूल जाते हैं कि घर में नाबालिग के काम करने की शिकायत किसी ने भी की, तो चाइल्ड लेबर ऐक्ट, जुविनाइल जस्टिस ऐक्ट और बोंडेड लेबर ऐक्ट के तहत कार्यवाही हो सकती है. इस के तहत जुर्माना और 3 साल तक की सजा भी मिल सकती है.

याद रखिए कि 14 साल से कम बच्चों को घर में काम पर नहीं रखा जा सकता है. अगर ऐसा कोई केस मिलता है, तो बाल श्रम कानून की धारा 3 व 3ए के तहत आरोपी पर कार्यवाही की जाती है. इस में 20,000 रुपए का जुर्माना तत्काल देना होता है. लिहाजा, घरेलू नौकर रखने से पहले उस का पुलिस वैरिफिकेशन जरूर करा लें.

गरीबी है बड़ी वजह

कम उम्र के घरेलू नौकर रखने वालों से ज्यादा कुसूरवार तो वे मांबाप हैं, जो अपने बच्चों को ऐसा काम करने के लिए मजबूर करते हैं. कड़वी हकीकत तो यह है कि छोटी उम्र में दूसरों के घरों में बच्चों का घरेलू नौकर की तरह काम करना गरीबी की देन है.

बिहार के नालंदा का एक मामला देखिए. साल 2019 की बात है. पैसे न होने के चलते एक औरत अपने इलाज के लिए अपने दोनों बच्चों को बेचना चाहती थी. वह औरत पिछले काफी समय से कुपोषण और ट्यूबरक्लोसिस यानी टीबी से जूझ रही थी. पति ने दूसरी औरत से शादी करने के लिए उसे छोड़ दिया था.

जब उस औरत को बीमारी के डर से जान जाने का खतरा बढ़ता दिखा और उस की मदद के लिए कोई आगे नहीं आया, तो उस ने अपने इलाज के लिए दोनों बच्चों को ही बेचने का फैसला लिया.

अगर हम भारत में गरीबी के भौगोलिक हालात को देखें, तो ज्यादातर गरीब बच्चे झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में मिलेंगे. ये बच्चे इन राज्यों के वंचित तबकों यानी अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के परिवारों से ताल्लुक रखते हैं. हैरत की बात तो यह भी है कि ये सब ऐसे राज्य हैं, जो जंगल और जल संसाधन के मामले में काफी आगे हैं.

इन्हीं राज्यों के बच्चों की मानव तस्करी की खबरें बनती हैं. दलाल गरीब मांबाप को चंद रुपयों का लालच दे कर उन के बच्चे यह कह कर खरीद लेते हैं कि वे उन्हें शहर भेज कर अच्छी नौकरी लगवा देंगे.

एक मामला साल 2020 का है. डूंगरपुर के टेंगरवाड़ा गांव का रामजी, गुड्डी, चुंडई और उदयपुर के उमरिया, सामोली और कुकावास गांवों के कई बच्चों को दलाल के मारफत इन के मातापिता ने गुजरात की फैक्टियों में मजदूरी करने और गड़रियों के पास भेड़ चराने के लिए गिरवी रखा था. इस के बदले बच्चों को दोनों समय का खाना और परिवार के मुखिया को 2,500 से 3,000 रुपए हर महीने दिए गए थे.

पर बच्चे जब कुछ महीने में वापस घर लौटे तो या तो वे अपाहिज थे या फिर उन का शरीर इतना खराब हो चुका था कि वे काम करने की हालत में नहीं रहे. किसी का मशीन से हाथ कट गया था, तो किसी का पैर खराब हो गया था.

दरअसल, हमारा सामाजिक ढांचा इस तरह बना हुआ है कि अमीर लोग निचलों को दबाने में अपनी शान समझते हैं. यही वजह है कि ज्यादातर घरेलू नौकरानियां निचली जाति की होती हैं. उन से खूब काम कराया जाता है और पैसे भी कम ही दिए जाते हैं. अगर कोई नौकरानी अपने हक की बात करती है, तो उस पर कोई झूठा इलजाम लगा कर मारापीटा जाता है. बहुत बार तो उन के साथ जिस्मानी रिश्ता तक बना लिया जाता है.

हालिया केंद्र सरकार गरीबों के उद्धार की रट तो लगाए रखती है, पर इस तरह के मामले उस के ‘राम राज्य’ के दावे की पोल खोल देते हैं और यह साबित कर देते हैं कि पिछले कुछ सालों में देश में जातपांत, धर्म और अमीरीगरीबी के बीच जो खाई बढ़ी है, वह समाज के लिए घातक साबित हो रही है. गरीब घरों की नाबालिग बच्चियों के दूसरों के घरों में पिसने की यही सब से बड़ी वजह है.

गांव में पहुंचे पैटीजबर्गर, इस बीमारी का खतरा बढ़ा

पिछले साल की बात है. मैं अपने गांव रत्ता खेड़ा (सफीदों, हरियाणा) गया था. दोपहर के समय वहां एक आदमी साइकिल पर गरमागरम पैटीज और बर्गर बेच रहा था. मतलब, गांव के माहौल में जंक फूड की ऐंट्री हो चुकी है. ऐसी चीजें आमतौर पर बच्चों को ज्यादा लुभाती हैं और अगर गांव की गली में आप के घर के सामने बर्गर वगैरह बिक रहे हैं, तो समझ लीजिए कि मोटापा भी कहीं आसपास ही है.

यह बड़े अफसोस और हैरत की बात है कि गांवदेहात के बच्चों में कुपोषण की समस्या तो पहले से ही फैली हुई है, अब मोटापा भी दस्तक दे चुका है. दिसंबर, 2020 में जारी नैशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 5 के आंकड़ों के मुताबिक, भारत के गांवों में मोटापे के मामलों में काफी बढ़ोतरी हुई है.

आज से तकरीबन 30-40 साल पहले गांवदेहात में बहुत कम लोग ऐसे दिखते थे, जिन के पेट बाहर हों. जो लोग खेतीबारी से जुड़े थे, वे तो मोटे हो ही नहीं पाते थे. औरतें भी इतना ज्यादा शारीरिक काम करती थीं कि मोटापा उन से कोसों दूर रहता था, पर अब वहां के मर्दऔरतों का लाइफ स्टाइल इतना ज्यादा सुस्त हो चुका है कि वे मोटापे की गिरफ्त में आ गए हैं. खेतखलिहान मशीनों के सहारे फसल पैदा कर रहे हैं और लोग घर बैठे मोटे हो रहे हैं. यही वजह है कि अब गांवदेहात में भी ब्लड प्रैशर, डायबिटीज, सर्वाइकल जैसी शहरी बीमारियों के मरीज बढ़ते जा रहे हैं.

गांवदेहात में मोटापे की वजह यह भी है कि अब लोग मोटा अनाज खाना बंद कर चुके हैं. भारत में हरित क्रांति के बाद चावल और गेहूं की इतनी ज्यादा पैदावार बढ़ी है कि लोग इन्हीं का सेवन करने लगे हैं.इस के अलावा शहरों से सटे गांवों का माहौल भी शहरों जैसा ही हो चुका है. वहां मोटा अनाज कब मोमोज में बदल गया, पता ही नहीं चला.

दरअसल, पिछले 30-35 सालों में शहरों से सटे गांवदेहात में बहुत से लोगों की आमदनी में सुधार हुआ है, वहां का बुनियादी ढांचा बेहतर हुआ है, जिस से उन के घर पक्के हुए हैं, उन में एयरकंडीशनर तक लगने लगे हैं, घरों मे टैलीविजन और हाथ मे मोबाइल फोन आ गया है, मोटरसाइकिल और कार दरवाजे पर खड़ी दिख जाती हैं, जिस से उन के रहनसहन में एकदम से बदलाव दिख रहा है. पर इस के साथसाथ वे लोग और शरीर की मेहनत वाले कामों से दूर हो गए हैं, जिस से उन में वजन बढ़ने और मोटापे में तेजी से बढ़ोतरी देखी जा रही है.

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) 2015-16 के आंकड़ों के मुताबिक, भारत की तकरीबन 20 फीसदी आबादी मोटापे से पीड़ित है. शहर के आसपास के गांवों पर पड़ने वाले शहरीकरण के असर का दायरा जब एक किलोमीटर बढ़ता है, तो गांवदेहात की तकरीबन 3,000 महिलाओं में मोटापा बढ़ जाता है. यह खतरे की घंटी है और बड़े जोर से बज रही है.

फर्क कथनी और करनी का : सुच्चामल फैला रहा था रायता

सुच्चामल हमारी कालोनी के दूसरे ब्लौक में रहते थे. हर रोज मौर्निंग वाक पर उन से मुलाकात होती थी. कई लोगों की मंडली बन गई थी. सुबह कई मुद्दों पर बातें होती थीं, लेकिन बातों के सरताज सुच्चामल ही होते थे. देशदुनिया का ऐसा कोई मुद्दा नहीं होता था जिस पर वे बात न कर सकें. उस पर किसी दूसरे की सहमतिअसहमति के कोई माने नहीं होते थे, क्योंकि वे अपनी बात ले कर अड़ जाते थे. उन की खुशी के लिए बाकी चुप हो जाते थे. बड़ी बात यह थी कि वे, सेहत के मामले में हमेशा फिक्रमंद रहते थे. एकदम सादे खानपान की वकालत करते थे. मोटापे से बचने के कई उपाय बताते थे. दूसरों को डाइट चार्ट समझा देते थे. इतना ही नहीं, अगले दिन चार्ट लिखित में पकड़ा देते थे. फिर रोज पूछना शुरू करते थे कि चार्ट के अनुसार खानपान शुरू किया कि नहीं. हालांकि वे खुद भी थोड़ा थुलथुल थे लेकिन वे तर्क देते थे कि यह मोटापा खानपान से नहीं, बल्कि उन के शरीर की बनावट ही ऐसी है.

एक दिन सुबह मुझे काम से कहीं जाना पड़ा. वापस आया, तो रास्ते में सुच्चामल मिल गए. मैं ने स्कूटर रोक दिया. उन के हाथ में लहराती प्लास्टिक की पारदर्शी थैली को देख कर मैं चौंका, चौंकाने का दायरा तब और बढ़ गया जब उस में ब्रैड व बड़े साइज में मक्खन के पैकेट पर मेरी नजर गई. मैं सोच में पड़ गया, क्योंकि सुच्चामल की बातें मुझे अच्छे से याद थीं. उन के मुताबिक वे खुद भी फैटी चीजों से हमेशा दूर रहते थे और अपने बच्चों को भी दूर रखते थे. इतना ही नहीं, पौलिथीन के प्रचलन पर कुछ रोज पहले ही उन की मेरे साथ हुई लंबीचौड़ी बहस भी मुझे याद थी.

वे पारखी इंसान थे. मेरे चेहरे के भावों को उन्होंने पलक झपकते ही जैसे परख लिया और हंसते हुए पिन्नी की तरफ इशारा कर के बोले, ‘‘क्या बताऊं भाईसाहब, बच्चे भी कभीकभी मेरी मानने से इनकार कर देते हैं. कई दिनों से पीछे पड़े हैं कि ब्रैडबटर ही खाना है. इसलिए आज ले जा रहा हूं. पिता हूं, बच्चों का मन रखना भी पड़ता है.’’

‘‘अच्छा किया आप ने, आखिर बच्चों का भी तो मन है,’’ मैं ने मुसकरा कर कहा.

‘‘नहीं बृजमोहन, आप को पता है मैं खिलाफ हूं इस के. अधिक वसा वाला खानपान कभीकभी मेरे हिसाब से तो बहुत गलत है. आखिर बढ़ते मोटापे से बचना चाहिए. वह तो श्रीमतीजी भी मुझे ताना देने लगी थीं कि आखिर बच्चों को कभी तो यह सब खाने दीजिए, तब जा कर लाया हूं.’’ थोड़ा रुक कर वे फिर बोले, ‘‘एक और बात.’’

‘‘क्या?’’ मैं ने उत्सुकता से पूछा, तो वे नाखुशी वाले अंदाज में बोले, ‘‘मुझे तो चिकनाईयुक्त चीजें हाथ में ले कर भी लगता है कि जैसे फैट बढ़ रहा है, चिकनाई तो दिल की भी दुश्मन होती है भाईसाहब.’’

‘‘आइए आप को घर तक छोड़ दूं,’’ मैं ने उन्हें अपने स्कूटर पर बैठने का इशारा किया, तो उन्होंने सख्त लहजे में इनकार कर दिया, ‘‘नहीं जी, मैं पैदल चला जाऊंगा, इस से फैट घटेगा.’’

आगे कुछ कहना बेकार था क्योंकि मैं जानता था कि वे मानेंगे ही नहीं. लिहाजा, मैं अपने रास्ते चला गया.

2 दिन सुच्चामल मौर्निंग वौक पर नहीं आए. एक दिन उन के पड़ोसी का फोन आया. उस ने बताया कि सुच्चामल को हार्टअटैक आया है. एक दिन अस्पताल में रह कर घर आए हैं. अब मामला ऐसा था कि टैलीफोन पर बात करने से बात नहीं बनने वाली थी. घर जाने के लिए मुझे उन की अनुमति की जरूरत नहीं थी. यह बात इसलिए क्योंकि वे कभी भी किसी को घर पर नहीं बुलाते थे बल्कि हमारे घर आ कर मेरी पत्नी और बच्चों को भी सादे खानपान की नसीहतें दे जाते थे.

मैं दोपहर के वक्त उन के घर पहुंच गया. घंटी बजाई तो उन की पत्नी ने दरवाजा खोला. मैं ने अपना परिचय दिया तो वे तपाक से बोलीं, ‘‘अच्छाअच्छा, आइए भाईसाहब. आप का एक बार जिक्र किया था इन्होंने. पौलिथीन इस्तेमाल करने वाले बृजमोहन हैं न आप?’’

‘‘ज…ज…जी भाभीजी.’’ मैं थोड़ा झेंप सा गया और समझ भी गया कि अपने घर में उन्होंने खूब हवा बांध रखी है हमारी. सुच्चामल के बारे में पूछा, तो वे मुझे अंदर ले गईं. सुच्चामल ड्राइंगरूम के कोने में एक दीवान पर पसरे थे. मैं ने नमस्कार किया, तो उन के चेहरे पर हलकी सी मुसकान आई. चेहरे के भावों से लगा कि उन्हें मेरा आना अच्छा नहीं लगा था. हालचाल पूछा, ‘‘बहुत अफसोस हुआ सुन कर. आप तो इतना सादा खानपान रखते हैं, फिर भी यह सब कैसे हो गया?’’

‘‘चिकनाई की वजह से.’’ जवाब सुच्चामल के स्थान पर उन की पत्नी ने थोड़ा चिढ़ कर दिया, तो मुझे बिजली सा झटका लगा, ‘‘क्या?’’

‘‘कैसे रोकूं अब इन्हें भाईसाहब. ऐसा तो कोई दिन ही नहीं जाता जब चिकना न बनता हो. कड़ाही में रिफाइंड परमानैंट रहता है. कोई कमी न हो, इसलिए कनस्तर भी एडवांस में रखते हैं.’’ उन की बातों पर एकाएक मुझे विश्वास नहीं हुआ.

‘‘लेकिन भाभीजी, ये तो कहते हैं कि चिकने से दूर रहता हूं?’’

‘‘रहने दीजिए भाईसाहब. बस, हम ही जानते हैं. किचेन में दालों के अलावा आप को सब से ज्यादा डब्बे तलनेभूनने की चीजों से भरे मिलेंगे. बेसन का 10 किलो का पैकेट 15 दिन भी नहीं चलता. बच्चे खाएं या न खाएं, इन को जरूर चाहिए. बारिश की छोड़िए, आसमान में थोड़े बादल देखते ही पकौड़े बनाने का फरमान देते हैं.’’

यह सब सुन कर मैं हैरान था. सुच्चामल का चेहरा देखने लायक था. मन तो किया कि उन की हर रोज होने वाली बड़ीबड़ी बातों की पोल खोल दूं, लेकिन मौका ऐसा नहीं था. सुच्चामल हमेशा के लिए नाराज भी हो सकते थे. यह राज भी समझ आया कि सुच्चामल अपने घर हमें शायद पोल खुलने के डर से क्यों नहीं बुलाना चाहते थे. इस बीच, डाक्टर चैकअप के लिए वहां आया. डाक्टर ने सुच्चामल से उन का खानपान पूछा, तो वह चुप रहे. लेकिन पत्नी ने जो डाइट चार्ट बताया वह कम नहीं था. सुच्चामल सुबह मौर्निंग वाक से आ कर दबा कर नाश्ता करते थे.

हर शाम चाय के साथ भी उन्हें समोसे चाहिए होते थे. समोसे लेने कोई जाता नहीं था, बल्कि दुकानदार ठीक साढ़े 5 बजे अपने लड़के से 4 समोसे पैक करा कर भिजवा देता था. सुच्चामल महीने में उस का हिसाब करते थे. रात में भरपूर खाना खाते थे. खाने के बाद मीठे में आइसक्रीम खाते थे. आइसक्रीम के कई फ्लेवर वे फ्रिजर में रखते थे. मैं चलने को हुआ, तो मैं ने नजदीक जा कर समझाया, ‘‘चलता हूं सुच्चामल, अपना ध्यान रखना.’’

‘‘ठीक है.’’

‘‘चिकने से परहेज कर के सादा खानपान ही कीजिए.’’

‘‘मैं तो सादा ही…’’ उन्होंने सफाई देनी चाही, लेकिन मैं ने बीच में ही उन्हें टोक दिया, ‘‘रहने दीजिए, तारीफ सुन चुका हूं. डाक्टर साहब को भी भाभीजी ने आप की सेहत का सारा राज बता दिया है.’’ मेरी इस सलाह पर वे मुझे पुराने प्राइमरी स्कूल के उस बच्चे की तरह देख रहे थे जिस की मास्टरजी ने सब से ज्यादा धुनाई की हो. अगले दिन मौर्निंग वाक पर गया, तो हमारी मंडली के लोगों को मैं ने सुच्चामल की तबीयत के बारे में बताया, तो वे सब हैरान रह गए.

‘‘कैसे हुआ यह सब?’’ एक ने पूछा, तो मैं ने बताया, ‘‘अजी खानपान की वजह से.’’

एक सज्जन चौंक कर बोले, ‘‘क्या…? इतना सादा खानपान करते थे, ऐसा तो नहीं होना चाहिए.’’

‘‘अजी काहे का सादा.’’ मेरे अंदर का तूफान रुक न सका और सब को हकीकत बता दी. मेरी तरह वे भी सुन कर हैरान थे. सुच्चामल छिपे रुस्तम थे. कुछ दिनों बाद सुच्चामल मौर्निंग वाक पर आए, लेकिन उन्होंने खानपान को ले कर कोई बात नहीं की. 1-2 दिन वे बोझिल और शांत रहे. अचानक उन का आना बंद हो गया.

एक दिन पता चला कि वे दूसरे पार्क में टहल कर लोगों को अपनी सेहत का वही ज्ञान बांट रहे हैं जो कभी हमें दिया करते थे. हम समझ गए कि सुच्चामल जैसे लोग ज्ञान की गंगा बहाने के रास्ते बना ही लेते हैं. यह भी समझ आ गया कि कथनी और करनी में कितना फर्क होता है. सुच्चामल से कभीकभी मुलाकात हो जाती है, लेकिन वे अब सेहत के मामले पर नहीं बोलते.

मायके जाने की धमकी : मिर्जा को आया गुस्सा

उस दिन मिर्जा इस तरह से फुफकारते हुए चले आ रहे थे, जैसे जलेबी का खमीर उबाल खा रहा हो. बाल ऐसे बिखरे हुए थे, जैसे तूफान आने के बाद पेड़ गिरे होते हैं. जुमे का दिन और… दिन के 11 बजे मिर्जा मैलेकुचैले कपड़ों में? देखते ही मुझ पर तो जैसे आसमान की बिजली गिर पड़ी.

मैं ने अपनेआप को बड़ी मुश्किल से काबू में किया और मन ही मन कहा. ‘जलते जलाल तू, कुदरत कमाल तू, आई बला को टाल तू,’ फिर झपट कर मिर्जा का हाथ थामा और कहा, ‘‘मिर्जा, यह तुम ही हो…’’

ऐसा सुनना था कि मिर्जा गरजते हुए बोले, ‘‘तो क्या तुझे मोनिका लेवेंस्की दिखाई दे रही है?’’

मैं ने मौके की नजाकत को समझा और कहा, ‘‘यार, मैं ने तो यों ही कहा था. पहले अंदर आओ.’’

उन्हें सोफे पर बैठाते हुए मैं बोला, ‘‘देख मिर्जा, मैं तेरा लंगोटिया यार हूं. मुझे बता कि आज तू ने जुमे की तैयारी क्यों नहीं की? जुमे के दिन 11 बजे तक तो तुम दूल्हे की तरह सजसंवर कर जामा मसजिद में इमाम साहब के सामने खड़े हो कर अजान पढ़ा करते थे. लेकिन आज यहां पर, वह भी इस हालत में… कहीं भाभी ने…’’

मैं बात पूरी उगल भी न पाया था कि मिर्जा गरजते हुए बोले, ‘‘अगर तू वाकई मेरा सच्चा यार है, तो बता कि शादी पर औरत ही क्यों ब्याह कर लाई जाती है? मर्द को ब्याह कर ससुराल क्यों नहीं ले जाया जाता?’’

यह सुनते ही मेरा दिमाग घूम गया. मैं ने हंस कर कहा, ‘‘यार मिर्जा, तू यह बता कि पान की लत तो खैर तुम्हें विरासत में ही मिली है, अब कहीं भांग वगैरह तो नहीं लेनी शुरू कर दी?’’

मिर्जा तमतमा उठे और बोले, ‘‘एक मुसलमान पर इस तरह की तुहमत लगाते हो. क्या तू ने मुझे काफिर समझा है? मैं पक्का मुसलमान हूं और सात वक्त की नमाज पढ़ता हूं.’’

अब तो मेरा वहम यकीन में बदल चुका था. शायद खुदा ने दो वक्त अलग से मिर्जा को दिए हैं. तभी मिर्जा बोले, ‘‘मैं इशराक व तहज्जुद 12 महीने की पढ़ता हूं.’’ इस के बाद मिर्जा खड़े होते हुए बोले, ‘‘तू भी मेरा दुख बांटने वाला वह सच्चा यार नहीं रहा.’’

मिर्जा की आवाज भर्रा गई थी और गला रुंध गया था. मैं ने सोफे पर बैठाते हुए मिर्जा को समझाया, ‘‘तुम गलत समझ रहे हो. मुझे आज भी तुम से उतनी ही हमदर्दी है, जितनी कभी कुंआरेपन में भी नहीं रही होगी.’’

‘‘तो क्या औरतों के मायके जाने की धमकी जायज है?’’ मिर्जा बोले. मेरी समझ में अब सारा माजरा आ रहा था कि आज जरूर इन की बेगम ने मायके जाने की धमकी दी है और यह जोरू का परमानैंट गुलाम मिर्जा उसे बरदाश्त नहीं कर पा रहा है.

मैं ने कहा, ‘‘जायज तो नहीं है, पर मर्दों से लड़ने के वास्ते फर्स्ट क्वालिटी का हथियार तो यही है न?’’ इतना सुनते ही मिर्जा एकदम आपे से बाहर हो गए और बोले, ‘‘तो क्या दूसरा हथियार भी होता है?’’

मैं ने कहा, ‘‘हां मिर्जा, तुम तो खुशनसीब हो, जो भाभी ने अपना दूसरा हथियार यानी बेलन तुम्हें नहीं दिखाया.’’

मिर्जा गुस्से में भड़क कर चिल्लाए, ‘‘अरे बेवकूफ, मत पूछ कि आज तो उस ने अमेरिका इराक युद्ध की तरह अपने बड़े हथियार का भी इस्तेमाल कर लिया. यह तो अच्छा हुआ कि मैं किवाड़ के पास खड़ा था, फुरती से उस की आड़ ले ली, नहीं तो जुमे की नमाज के साथ आज तो अपनी भी नमाजे जनाजा अदा की जाती.’’

मैं ने मिर्जा से कहा, ‘‘चलो, अच्छा हुआ, लेकिन अभी तक तुम्हारी दूल्हा ब्याह कर ले जाने वाली बात समझ में नहीं आई.’’

यह सुन कर मिर्जा कुछ संजीदा हो कर बोले, ‘‘देख, ध्यान से सुन. घर में तकरार होने पर बीवी हमेशा मायके जाने की धमकी देती है और यह धमकी अच्छेअच्छे मर्द को मेमने की तरह मिमियाने को मजबूर कर देती है.

‘‘अगर दूल्हा ब्याह कर ससुराल ले जाया जाता, तो बेलन वगैरह का खतरा होने पर मायके जाने की धमकी को काम में ला सकता था और मर्द सीना तान कर ससुराल में शान से राज करता.’’

मैं ने मिर्जा की बात पर दिखावटी हमदर्दी दिखाते हुए कहा, ‘‘देखो, जैसे एक जीभ बत्तीस दांतों से घिरी हो कर काबू में नहीं रह सकती, उसी तरह औरत ससुराल में अकेली सभी पर भारी पड़ती है. ‘‘अगर तुम्हारे चालू फार्मूले पर समाज चलता, तो बच्चू मिर्जा, खोपड़ी का नटबोल्ट कस कर समझ ले कि अगर दूल्हा ससुराल में रहता, तो पता है क्या होता? होता यह कि पत्नी बेलन से तुम्हारा सिर तोड़ती.

‘‘अगर जीजा साले की बहन को घूर कर भी धमकाता, तो वे उसे लठिया देते. सासससुर के उपदेश अलग से दिमाग चाट कर रख देते.‘‘सालियां अमरबेल की तरह तुम्हारे जेबरूपी पेड़ को परजीवी बन कर सुखा देतीं. सालों के बच्चों को जिद करने पर न जाने महीने में कितनी बार फिल्म दिखाने ले जाना पड़ता और तब भी वे घर आ कर कहते, ‘पापापापा, फूफाजी ने फिल्म तो दिखाई, पर हमें वहां चाट नहीं खिलाई.’

‘‘इस तरह तुम्हें बेकार में ही कंजूस मक्खीचूस की उपाधि मिल जाती. भले ही तुम ने चाट पर मक्खियों का परमानैंट कब्जा होने के चलते न खिलाई हो, पर इसे कोई नहीं मानता.

‘‘अगर चाट खिलाने से बच्चे बीमार पड़ जाते, तो सास ऐसे लताड़ती जैसे कि पता नहीं क्या खिला लाया. बड़ी मनौतियां मान कर 2 पोते हुए, इन्हें तो मार कर ही इस का कलेजा ठंडा होगा.

‘‘इसलिए मिर्जा, जो कायदेकानून हमारे बड़ों ने बनाए हैं, वे जरूर सोचसमझ कर ही बनाए हैं, इसलिए तू अपना दिल छोटा न कर और भाभी को अपने मन की भड़ास निकाल लेने दिया कर… समझे हजरत मिर्जा?’’

अब मिर्जा धीरेधीरे मुसकराए और बोले, ‘‘यार, वाकई आज तो तू ने कमाल कर दिया. इतने काम की बात मेरे दिमाग में आज तक क्यों नहीं आई? मैं ने इतनी उम्र यों ही गंवाई.’’

मैं ने कहा, ‘‘ठीक है, अब जा कर घर में जुमे की नमाज अदा कर. और हां, दुआ में मुझे मत भूल जाना और भाभी की अच्छी सेहत की दुआ जरूर मांगना.’’ यह सुन कर मिर्जा झेंपते हुए अपने घर की तरफ चल दिए.

मैं एक युवती से पिछले 2 साल से प्यार करता हूं, लेकिन मेरा प्यार एकतरफा है, मैं उसे कैसे प्रपोज करूं.

सवाल
मैं एक युवती से पिछले 2 साल से प्यार करता हूं, लेकिन मेरा प्यार एकतरफा है, क्योंकि हम सिर्फ दोस्त की तरह बात करते हैं. मैं ने अभी तक उसे अपने दिल की बात नहीं बताई. मैं उसे कैसे प्रपोज करूं?

जवाब
आप की दोस्ती 2 साल पुरानी है, तो आप यह समझते ही होंगे कि उस का मिजाज कैसा है, उस की पसंद क्या है. उस का जन्मदिन आदि भी आप को पता होगा. तो बस, सही मूड देख कर उस की पसंद का उसे कुछ खिलाएं या दें. उन के जन्मदिन को सैलिब्रेट करें और इसी दौरान अपने दिल की बात भी उसे बताएं. इस के अलावा आजकल व्हाट्सऐप, फेसबुक जैसे साधन भी हैं, जो मन की बात उस तक पहुंचा सकते हैं. नहीं तो मिलते रहिए और बातोंबातों में प्यार हो जाने का इंतजार कीजिए.

सिर्फ पत्नियों के लिए ही नहीं पतियों के लिए भी जरूरी है पार्लर जाना

सपना अपनी सहेली ज्योति की शादी में अपने पति के साथ गई. वहां ज्योति ने अपनी छोटी बहन आरती से सपना कोे मिलवाया तो वह बोली, ‘‘हैलो सपना दी, हैलो अंकल. सपना दी, क्या जीजाजी को साथ नहीं लाईं?’’

‘‘आरती, यही तो हैं सपना के पति. ये अंकल नहीं तुम्हारे जीजाजी हैं,’’ ज्योति ने बताया.

यह सुन कर आरती बोली, ‘‘सौरी सपना दी, मैं ने पहचाना नहीं.’’

फिर तो मियांबीवी दोनों ने बेमन से शादी अटैंड की और घर लौट आए. सपना को रहरह कर आरती की कही बात याद आती रही. इस भागदौड़ भरी जिंदगी में लापरवाही की वजह से पुरुष अकसर उपहास का पात्र बन जाते हैं. ऐसा अकसर देखा जाता है कि फैस्टिवल हो या शादीब्याह का सीजन, महिलाएं तो निकल पड़ती हैं सुंदर दिखने की चाहत में, जबकि पति महोदय ‘हम ठीक लग रहे हैं’ की तख्ती गले में लटकाए फिरते हैं. और ऐसे में कहीं कोई और आरती जैसी उन्हें अंकल कह देती है तो मियांबीवी दोनों के आत्मसम्मान को ठेस पहुंच जाती है और फंक्शन का सारा मजा किरकिरा हो जाता है. इसलिए जरूरी है कि उपहास का पात्र बनने से पहले ही ऐसी स्थिति न आए इस के लिए जागरूक रहा जाए.

आकर्षण दोनों के लिए जरूरी

सौंदर्य एवं आकर्षण को हमेशा से ही स्त्री से जोड़ कर देखा गया है. जबकि हकीकत तो यह है कि जिस तरह से पुरुष सुंदर स्त्री चाहता है, उसी तरह स्त्री भी यही चाहती है कि उस का साथी किसी भी माने में उस से या किसी और से कम न हो. इसीलिए मौजूदा समय में हर छोटेबड़े शहर में खुलने वाले यूनीसैक्स सैलून ऐसे हैं, जहां एक ही छत के नीचे पुरुष व महिला दोनों सुंदर दिखने की चाह को पूरा करते हैं. लेकिन बदलती तसवीर के बावजूद भी कई कपल ऐसे हैं, जो लकीर के फकीर बन कर बैठे हैं या तो अज्ञानता के कारण या फिर लोग क्या कहेंगे इस डर से और फिर गाहेबगाहे वे अपना मजाक बनवा लेते हैं.

सकरात्मक सोच अपनाएं

पति को सौंदर्य के प्रति जागरूक करने के लिए सकारात्मक सोच अपनाएं. उन्हें समझाएं कि जैसे वे आप को सजासंवरा देखना चाहते हैं, वैसे ही आप भी उन्हें स्मार्ट और हैंडसम देखना चाहती हैं. उन के ‘ना’ को ‘हां’ में बदलने के लिए प्यारभरी बातों का सहारा लें.

रिलैक्स थेरैपी

काम की आपाधापी, टैंशन आदि के कारण शरीर व दिमाग थकने लगता है, जिस के कारण उत्सव चाहे जो भी हो भारी लगने लगता है. इसीलिए बौडी व माइंड को रिलैक्स देने के लिए किसी अच्छे स्पा सैंटर में जा कर आप दोनों बौडी स्पा, सोना, पूल, स्टीम रूम और वर्लपूल जैसी सुविधाओं का लाभ उठाएं. इन से उन की बौडी रिलैक्स तो फील करेगी ही, उन में नई स्फूर्ति व ताजगी का संचार भी होगा. इस पौजिटिव चेंज के बाद वे अपने कायाकल्प के लिए आगे भी झिझकेंगे नहीं.

खुद करें पहल

पति की कायापलट करने से पहले यह जानना बहुत जरूरी है कि आप को क्याक्या तैयारी करनी है. मसलन, अगर उन के ड्रैसिंग स्टाइल में चेंज लाना है, तो उन की पसंद को ध्यान में रखते हुए ही आप कदम उठाएं. इस के लिए आप ड्रैस डिजाइनर कीहैल्प भी ले सकती हैं.

बौडी ऐक्सफोलिएशन

प्रदूषण के कारण पुरुषों में टैनिंग व डैड स्किन की समस्या बेहद कौमन होती है. त्वचा से डैड सैल्स की परत को हटाने के लिए ऐक्सफोलिएशन बेहद कारगर उपाय है. वैसे तो ऐक्सफोलिएशन ट्रीटमैंट सैलून में उपलब्ध है, लेकिन अगर आप चाहें तो घर पर भी अपने पतिदेव की नियमित रूप से स्क्रबिंग कर सकती हैं. मार्केट में कई ब्रैंड के बौडी स्क्रब उपलब्ध हैं, आप अपनी पसंद का उन में से कोई ले सकती हैं.

फेशियल

महिलाओं की तुलना में पुरुषों की त्वचा ज्यादा संवेदनशील होती है. उन की त्वचा ज्यादा ही रूखीसूखी होने के अलावा ब्लैक पोर्स, ब्लैक हैड्स और टैनिंग आदि से घिरी होती है. इसलिए उन की त्वचा के अनुरूप प्रोडक्ट व सर्विसेज मार्केट में उपलब्ध हैं. फेशियल द्वारा पुरुषों की स्किन को हैल्दी व ग्लोइंग इफैक्ट दिया जा सकता है.

पुरुषों की स्किन के अनुरूप कुछ खास फेशियल ये हैं:

बूस्ट फेशियल: इस को मिनी फेशियल भी कहा जाता है. अगर आप के पास बिजी शैडयूल के चलते समय की कमी है, तो रेडियंस बूस्ट फेशियल बेहतर औप्शन है. इस में क्लींजिंग, एक्फोलिएशन स्टीम, बूस्टिंग मास्क, टोनिंग, मौइश्चराइजिंग और शोल्डर मसाज की जाती है. इसे करवाने में तकरीबन 30-35 मिनट लगते हैं.

रिजेनिरेटिंग फेशियल: यह फेशियल हर प्रकार की स्किन के अनुकूल है. अगर आप पैचेज को लाइट करवाने के इच्छुक हैं तो यह फेशियल इस्तेमाल करें. यह सनडैमेज व पिग्मैंटेशन पैचेज के लिए भी बेहद कारगर है. इस में ड्यूल क्लींजिंग, स्टीम ऐक्सफोलिएशन, प्रैशर पौइंट मसाज, टैन रिमूविंग पैक, शोल्डर मसाज व सनप्रोटैक्शन वाला मौइश्चराइजर इस्तेमाल किया जाता है. इस में लगने वाला समय तकरीबन 1 घंटे का होता है. सूरज के हानिकारक प्रभाव से झुलसी त्वचा के लिए यह बेहद कारगर स्किन ट्रीटमैंट फेशियल है.

डर्मालौजिकल फेशियल: रूखीसूखी डिहाइड्रेट त्वचा के लिए डर्मालौजिकल फेशियल एकदम उपयुक्त फेशियल है. इस में सी माइल्ड क्लींजिंग, स्ट्रीम ऐक्सफोलिएशन, शोल्डर मसाज, फेशियल प्रैशर पौइंट मसाज, हाइड्रेटिंग मास्क, सीरम व स्कैल्प मसाज आती है. इस फेशियल का समय 1 घंटा रहता है.

ऐंटी ऐजिंग ट्रीटमैंट

ऐंटी ऐजिंग ट्रीटमैंट की बात करें तो स्किनपील, लेजर स्किन रिसर्फेसिंग, बोटोक्स ट्रीटमैंट, डर्माबे्रजन, कोलाजन ट्रीटमैंट व कौस्मैटिक सर्जरी पुरुषों के लिए समान रूप से कारगर है. लेकिन ये ट्रीटमैंट महंगे व कुशल डाक्टर की देखरेख में हीप्रभावशाली परिणाम देने वाले होते हैं.

हेयरकट व हेयरस्टाइलिंग

पिछले कुछ सालों से पुरुषों में हेयरकट व हेयरस्टाइलिंग को ले कर काफी क्रेज व बदलाव देखा जा रहा है. इस की शुरुआत आमिर खान की फिल्म ‘तारे जमीं पर’ की हेयरस्टाइल से हुई. फिर इन्हीं की फिल्म ‘गजनी’ के इन के लुक, सलमान के फिल्म ‘वीर’ के लुक, रितिक रोशन के फिल्म ‘जोधा अकबर’ के बैंगबैंग लुक व योयो हनी सिंह आदि के स्टाइलिश लुक का क्रेज सिर चढ़ कर बोला. इसी में बाउंस हेयर, ऐंगुलर फ्रिंज व डीप हेयरकट प्रमुख हैं.

प्रोडक्ट्स

बालों को वाल्यूम व मनपसंद स्टाइल देने के लिए मार्केट में कई हेयरस्टाइलिंग प्रोडक्ट उपलब्ध हैं. इन का इस्तेमाल आप अपनी जरूरत के हिसाब से आराम से कर सकते हैं: पौलिश स्पे्र: बालों में चमक बढ़ाने के लिए इस का प्रयोग किया जाता है.

जैल व क्रीम: बालों में वेट लुक के लिए जैल व बालों को घना दिखाने के लिए क्रीम का इस्तेमाल किया जाता है.

ऐरोसोल स्प्रे: बालों को परफैक्ट बाउंस देने के लिए ऐरोसोल हेयर स्प्रे का इस्तेमाल किया जाता है.

मूस: बालों को ब्लो ड्राइंग व स्कं्रच करने के लिए मूस का इस्तेमाल किया जाता है. मार्केट में अलगअलग कंपनी के स्टाइलिंग प्रोडक्ट उपलब्ध हैं.

मैनिक्योर पैडिक्योर

ज्यदातर पुरुषों के हाथपैर रूखे, बेजान व भद्दे से दिखाई देते हैं. फिर वे चाहे कितने ही अच्छे कपड़े क्यों न पहने, उन के हाथपैर उन के आलसी व बेढंगेपन का भंडा फोड़ देते हैं. इसलिए किसी नेल सैलून में जा कर क्यूटिकल को रिमूव करवाएं व नेल्स को ट्रिम करवा कर अपने हाथपैरों की खूबसूरती बढ़ाएं. कई पुरुषों के नाखून बहुत हार्ड होते हैं, जो अंदर ही अंदर धंस कर दर्द पैदा कर देते हैं. इसलिए नेल सौफ्टनर का इस्तेमाल कर के नाखूनों को नरम बना कर काट लें. इस के अलावा जैल, औयल, स्पा व वैक्स मैनिक्योर पैडिक्योर करवाएं.

हेयर रिमूवल

हेयर रिमूवल से मतलब बिकनी, आर्म्स व लैग्स वैक्सिंग से नहीं है. बल्कि कितनी ऐसी जगहें होती हैं जहां पर आप का ध्यान नहीं जाता, लेकिन देखने वाले उन्हें नोटिस जरूर कर लेते हैं. जैसे कानों के ऊपर, नाक के किनारों पर व हेयरकट के बाद गले के आसपास बेतरतीब छोटेछोटे बाल और अंडरआर्म्स के बाल जिन के कारण बदबूदार पसीने और संक्रमण के कारण भी पुरुष बेढंगे व बैरोनक नजर आते हैं. इन्हें आसानी से ट्रिम व रिमूव करवाया जा सकता है, जिस से आप दोनों की जोड़ी भी हिट नजर आए.

रखें उन की पसंद का खयाल

माना कि आप उन की पर्सनैलिटी को निखारने की कोशिश कर रही हैं, मगर इस बात का ध्यान रखें कि उन की पसंद को अनजाने में ही आप नजरअंदाज न कर दें. हम बात कर रहे हैं ड्रैसिंग सैंस की. महिलाओं और पुरुषों के डै्रसिंग सैंस बिलकुल अलगअलग होता है, इसलिए अपनी पसंद उन पर थोपने से अच्छा है कि आप काउंटर बौय या गर्ल की मदद लें. ऐसा करने से आप के पतिदेव को अपने ऊपर कुछ थोपा हुआ महसूस नहीं होगा. इस फैस्टिवल सीजन में अपने साथसाथ अपने पतिदेव का भी रूप निखार के आप पा सकती हैं लोगों की तारीफ का अवार्ड, जो फैस्टिवल सीजन में आप की खुशियों में चार चांद लगा देगा.

नो प्रौब्लम : रितिका के साथ राघव ने क्या किया..

‘‘प्लीज राघव, मैं अब सोने जा रही हूं. बाहर काफी ठंड है. बाद में बात करते हैं,’’ रितिका ने राघव को समझाया.

सचमुच रितिका को ठंड लग गई थी. पूरा दिन औफिस में खटने के बाद कमरे में मोबाइल पर बात करना तक संभव नहीं था. कारण, वह पीजी में रहती थी. एक कमरा 3 युवतियां शेयर करती थीं. वह तो पीजी की मालकिन अच्छी थीं जो ज्यादा परेशान नहीं करती थीं वरना रितिका इस से पहले 3 पीजी बदल चुकी थी.

राघव को उस की परेशानी का भान था पर फिर भी वह उसे बिलकुल नहीं समझता था. रितिका ने राघव को कई बार दबे स्वर में विवाह के लिए कहना शुरू कर दिया था परंतु वह बड़ी सफाई से बात घुमा देता था.

रितिका डेढ़ साल पहले करनाल से दिल्ली नौकरी करने आई थी. रहने के लिए रितिका ने एक पीजी फाइनल किया. जहां उस की रूममेट रिंपी थी जो पंजाब से थी. कमरा भी ठीक था. नई नौकरी में रितिका ने खूब मेहनत की.

रितिका तो दिन भर औफिस में रहती थी, पर रिंपी के पास कोई काम नहीं था. सो वह दिन भर पीजी में ही रहती थी. कभीकभी बाहर जाती तो देर रात ही वापस आती. ऐसे में रितिका चुपके से उस के लिए दरवाजा खोल देती.

धीरेधीरे दोनों की दोस्ती गहरी होती जा रही थी. अब रिंपी ने अपने दोस्तों से रितिका को भी मिलवाना शुरू कर दिया था. राघव से भी रिंपी के जरिए ही मुलाकात हुई. तीनों शौपिंग करते, लेटनाइट डिनर और डिस्क में जाते.

पीजी मालकिन ने अचानक दोनों युवतियों को लेटनाइट आते देख लिया. उस ने कुछ कहा तो रितिका ने पीजी मालकिन से झगड़ा कर दिया. उस दिन उस ने शराब पी रखी थी.

फिर क्या था, रितिका को पीजी छोड़ना पड़ा. उस के बाद रितिका ने 2 पीजी और बदले. रिंपी भी पंजाब वापस चली गई थी. उस के मातापिता ने उस का रिश्ता पक्का कर दिया था.

आज शाम को रितिका को राघव के साथ बाहर जाना था. राघव ने फोन पर कई बार उस से कहा था कि अपनी फ्रैंड्स को भी साथ में लाए.

फ्री की शराब और डिनर के लिए शाइना तैयार हो गई. शाइना को देख कर राघव बहुत खुश हुआ. बेहद खूबसूरत शाइना को देख कर राघव रितिका को बिलकुल भूल ही गया.

कार का दरवाजा भी शाइना के लिए राघव ने ही खोला. डिनर और शराब भी शाइना की पसंद की हीमंगवाई गई, लेकिन इस से रितिका को अपना तिरस्कार लगा और रितिका की आंखों में आंसू आ गए.

पीजी आ कर रितिका पूरी रात रोती रही. अगले दिन इतवार था. राघव ने रितिका को एक फोन भी नहींकिया. तभी रात को शाइना रितिका के पास आ कर कहने लगी, ‘‘प्लीज रितिका, तुम अपने बौयफ्रैंड को समझा लो. देखो, कितनी मिस्ड कौल पड़ी हैं. मैं अपनी लाइफ में तुम्हारे स्टुपिड राघव की वजह से कोई प्रौब्लम नहीं चाहती. मेरा बंदा वैसे ही बहुत पजैसिव है मेरे लिए.’’

रितिका को बहुत बुरा लग रहा था. उस ने शाइना को सुझाव दिया कि वह राघव को ब्लौक कर दे. अब राघव ने रितिका को फोन किया. पहले तो उस ने फोन नहीं उठाया, फिर राघव का मैसेज पढ़ा, ‘‘डार्लिंग, तैयार हो जाओ. मैं तुम्हें अपने मम्मीपापा से मिलवाना चाहता हूं.’’

बस, रितिका तुरंत पिघल गई. उस ने पीजी में सभी लड़कियों को सुनासुना कर आगे का मैसेज पढ़ा.

‘‘मैं तुम्हें जैलेस यानी जलाना चाहता था. तुम्हें छोड़ कर मैं किसी लड़की की तरफ नजर भी नहीं डालता. आई लव यू सो मच.’’

रितिका ने गुलाबी रंग का सूट और हलकी ज्वैलरी पहनी. हलके मेकअप में वह बेहद खूबसूरत लग रही थी. उसे देखते ही राघव बौखला गया, ‘‘यह क्या है. ये सब पहन कर चलोगी मेरे साथ. जाओ, चेंज कर के आओ.’’

‘‘पर तुम अपने पेरैंट्स से मिलवाने वाले थे न,’’ रितिका हैरानी से बोली.

‘‘ओह हां, मेरी मां मौडर्न हैं. आज अचानक मम्मीपापा किसी रिश्तेदार को देखने अस्पताल गए हैं,’’ राघवको गुस्सा आ रहा था.

रितिका ने ड्रैस चेंज कर ली. राघव ने बहलाफुसला कर रितिका को समझा दिया था. फिर एक दिन रितिका के पापा ने उसे फोन कर के बताया कि उन्होंने रितिका के लिए लड़का पसंद कर लिया है.

उस ने राघव को फौरन अपने मम्मीपापा से मिलवाने को कहा. राघव ने उसे फिर से फुसला कर चुप कराना चाहा, ‘‘मेरे मम्मीपापा यूरोप गए हैं. 2 महीने बाद ही लौटेंगे.’’

‘‘ठीक है, तो मेरे पापा से मिल लो,’’ इस पर राघव बिना कोई जवाब दिए रितिका को कल मिलने की बात कह कर चला गया.

रितिका बेहद परेशान थी. राघव के साथ वह सारी हदें पार कर चुकी थी. पीजी में रहना तो उस की मजबूरी थी. राघव ने एक छोटे से फ्लैट का इंतजाम किया हुआ था. वहीं रितिका और राघव अपना समय बिताते थे.

उस ने रिंपी को फोन किया. राघव के बरताव के बारे में सबकुछ बताया. रिंपी भी दोस्त न हो कर ऐसे बात कर रही थी मानो अजनबी हो, ‘‘देखो रितिका, मुझे नहीं पता तुम क्या कह रही हो. राघव तो शादीशुदा है. वह तुम से कैसे शादी कर सकता है.’’

‘‘तुम ने मुझे ऐसे लड़के के साथ क्यों फंसाया,’’ रितिका ने रोना शुरू कर दिया था.

‘‘उस के पैसे से तुम घूमीफिरी, ऐश किया और इलजाम मुझ पर. मुझे आगे से फोन मत करना,’’ रिंपी ने टका सा जवाब दे कर फोन काट दिया, ‘‘और हां, पापा की मरजी से शादी कर लो. अरेंज मैरिज सब से अच्छी होती है. पापा भी खुश और तुम भी खुश. नो प्रौब्लम एट औल.’’

रितिका भी दोचार दिन रोनेधोने के बाद संभल गई. फोन कर के मम्मीपापा को पूछने लगी कि घर कब आना है. इस जमाने में दिल्ली जैसे महानगर में भी पापा की मरजी से शादी करने वाली लड़की पा कर मातापिता निहाल हो गए थे. रितिका ने भी अपनी प्रौब्लम सुलझा ली थी.

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