दीपक उत्तरी बिहार के छोटे से शहर वैशाली का रहने वाला था. वैशाली पटना से लगभग 30 किलोमीटर दूर है. 1982 में गंगा नदी पर गांधी सेतु बन जाने के बाद वैशाली से पटना आनाजाना आसान हो गया था. वैशाली की अपनी एक अलग ऐतिहासिक पहचान भी है.

दीपक इसी वैशाली के एनएनएस कालेज से बीएससी कर रहा था. उस की मां का देहांत बचपन में ही हो चुका था. उस के पिता रामलाल की कपड़े की दुकान थी. दुकान न छोटी थी न बड़ी. आमदनी बस इतनी थी कि बापबेटे का गुजारा हो जाता था. बचत तो न के बराबर थी. वैशाली में ही एक छोटा सा पुश्तैनी मकान था. और कोई संपत्ति नहीं थी. दीपक तो पटना जा कर पढ़ना चाहता था, पर पिता की कम आमदनी के चलते ऐसा नहीं हो सका.

दीपक अभी फाइनल ईयर में ही था कि अचानक दिल के दौरे से उस के पिता भी चल बसे. उस ने किसी तरह पढ़ाई पूरी की. वह दुकान पर नहीं बैठना चाहता था. अब उसे नौकरी की तलाश थी. उस ने तो इंडियन सिविल सर्विस के सपने देखे थे या फिर बिहार लोक सेवा आयोग के द्वारा राज्य सरकार के अधिकारी के. पर अब तो उसे नौकरी तुरंत चाहिए थी.

दीपक ने भारतीय वायुसेना में एअरमैन की नियुक्ति का विज्ञापन पढ़ा, तो आवेदन कर दिया. उसे लिखित, इंटरव्यू और मैडिकल टैस्ट सभी में सफलता मिली. उस ने वायुसेना के टैक्नीकल ट्रेड में एअरमैन का पद जौइन कर लिया. ट्रेनिंग के बाद उस की पोस्टिंग पठानकोट एअरबेस में हुई. ट्रेनिंग के दौरान ही वह सीनियर अधिकारियों की प्रशंसा का पात्र बन गया. पोस्टिंग के बाद एअरबेस पर उस की कार्यकुशलता से सीनियर अधिकारी बहुत खुश थे.

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