दोस्त दोस्त ना रहा!

यह मामला है छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिला के पिथौरा थाना अंतर्गत ग्राम किशनपुर का. कैसा आश्चर्य है कि जिस मित्र के साथ नित्य का उठना बैठना था, घर आना जाना था, इंसान उसी की हत्या कर देता है आखिर ऐसा क्या हुआ? क्यों एक शख्स ने अपने ही मित्र की शराब पिलाकर हत्या कर दी आइए, आज आपको इस दर्दनाक घटनाक्रम से अवगत कराते हैं कि आखिर इस अपराध कथा में ऐसा क्या हो गया मशहूर गीतकार शैलेंद्र के लिखा गीत दोस्त दोस्त ना रहा …(फिल्म संगम) जीव॔त हो उठा .

दोस्त की पत्नी को छेड़ना पड़ा महंगा…

घटना के सम्बंध में पिथोरा थाना प्रभारी दीपेश जायसवाल ने हमारे संवाददाता को बताया कि मृतक दुर्गेश पिता कन्हैया यादव एवम आरोपी मनहरण उर्फ मोनो अच्छे दोस्त थे.मृतक दुर्गेश का मोनो के घर अक्सर आना जाना रहता था. परंतु दुर्गेश दोस्त की पत्नी को ही बुरी नजर से देखता था. एक दिन आरोपी की पत्नी सरोजा (काल्पनिक नाम) ने मोनो को उसके दोस्त दुर्गेश द्वारा उससे छेड़छाड़ करने की बात बताई. इसके बाद मोनो ने अपने दोस्त को ऐसा नही करने की नसीहत देते हुए समझाया था.

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परंतु विगत सप्ताह दुर्गेश पुनः मोनो के घर पहुच कर उससे छेड़छाड़ कर ही रहा था कि मोनो ने देख लिया.आरोपी मनहरण उर्फ मोनो द्वारा पुलिस को दिए बयान में बताया कि उक्त घटना के बाद से ही उसने दुर्गेश को ठिकाने लगाने की ठान ली थी और योजना बना कर विगत शनिवार को मोनो ने पहले ग्राम के समीप कन्टरा नाले में महुआ शराब बनाई और मृतक दुर्गेश यादव को शराब पीने नाला बुला लिया .जानकारी के अनुसार दुर्गेश के साथ उसका एक नाबालिग साथी सूरज भी आ धमका .

सभी शराब पीने के पहले मवेशियों के लिए चारा लेने निकले थे.चारा लेकर दोनों दोस्त दुर्गेश मोनो और नाबालिग सूरज ने मिल कर महुआ शराब पी.

इसके बाद सब वापस ग्राम जाने के लिए निकले. नाबालिग सूरज साइकल में चारा पीछे लेकर जा रहा था परंतु वह रास्ते मे ही अत्यधिक नशा होने के कारण गिर पड़ा। पीछे चल रहा दुर्गेश भी नशे में धुत्त था।वह भी सूरज को उठाते उठाते स्वयं भी वही गिर पड़ा. थोड़ी देर बाद ही दुर्गेश उठा और नशे की हालत में जिधर से वे आये थे वापस उसी दिशा में चल पड़ा और रास्ते मे पड़ने वाले तिरिथ राम के खेत मे ही गिर पड़ा. इसी स्थान पर मोनो ने पहले दुर्गेश को उसकी हत्या क्यो कर रहा है इसके बारे में बताया और उसका गला दबाकर उसकी हत्या कर दी.

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अपने दोस्त की हत्या करने के बाद वह घर आ पहुंचा और पत्नी को सारी घटना क्रम बयान कर नित्य के कामों में लग गया.

अंततः हत्या करना स्वीकारा

और जब दूसरे दिन गांव के एक व्यक्ति तीरथराम को अपने खेत में दुर्गेश की लाश मिली तो उसने पुलिस को इत्तला दी. पुलिस ने पंचनामा करने के बाद जांच प्रारंभ की और जांच प्रक्रिया पूछताछ में आरोपी मोनो ज्यादा देर टिक नही पाया और अंततः उसने अपना अपराध कबूल कर लिया.

और पुलिस इकबालिया बयान में बताया कि उसने अपने मित्र की हत्या सिर्फ इसलिए कर दी, क्योंकि वह उसकी पत्नी सरोजा पर बुरी निगाह रखने लगा था,छेड़छाड़ करने लगा था. उसने उसे एक दफे समझाया भी था. बहरहाल स्थानीय पुलिस मनहरण उर्फ मोनो को रिमांड में जेल भेज दिया है.

सेक्स और नाते रिश्तों का टूटना

समाज में आज दिनोंदिन अपराधिक घटनाएं बढ़ती चली जा रही है. अक्सर हम देखते हैं की हत्या का कारण जर जोरू जमीन के इस ट्रायंगल में जोरू अधिकांश रहता है.पत्नी अथवा प्रेमिका के कारण अपराध निरंतर घटित हो रहे हैं. समाज का कोई ऐसा तंतु नहीं है जो इसे रोक सके थाम सके.

इस संदर्भ में सच्चाई यह है कि उपरोक्त हत्याकांड में अपराध घटित होने का सबसे अहम कारण है दुर्गेश का शराब पीकर अपने मित्र मनहरण की पत्नी को पाने का प्रयास करना और जब सरोजा ने सारा घटनाक्रम पति के समक्ष उजागर कर दिया और मनहरण ने दुर्गेश को समझाइश दी इसके बावजूद दुर्गेश अपनी हरकतों से बाज नहीं आया तो अंततः अपने सम्मान और पत्नी की इज्जत बचाने के लिए मनहरण ने अपने ही बचपन के मित्र दुर्गेश की गला घोटकर हत्या कर दी.

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ऐसी अनेक घटनाएं हमारे आसपास समाज में घटित हो रही हैं अगर कोई व्यक्ति बहक जाता है उसके पांव बहक जाते हैं उसका भी अंजाम अंततः ऐसे ही घटनाक्रम में जाकर समाप्त होता है. अच्छा होता मृतक अपनी मर्यादा में रहता, तो संभवतः यह घटनाक्रम घटित ही नहीं होता . जब जब कोई मित्र दुर्गेश की तरह आचरण करता है तो वह मौत का सामना करता है या फिर चौराहे पर पीटा जाता है.

शर्मनाक: रिमांड होम अय्याशी के अड्डे

समाजसेवा के नाम पर चलाए जा रहे आश्रयगृहों यानी रिमांड होम को सरकारी अफसरों और सफेदपोशों ने एक तरह का चकलाघर बना कर रख दिया है. इस के चलते अपनों से बिछड़ी और भटकी मासूम बच्चियां और आपराधिक मामलों में फंसी महिलाएं बंदी समाज के रसूखदारों की घिनौनी हरकतों की वजह से जिस्मफरोशी के दलदल में फंस कर रह जाती हैं.

कई लड़कियों ने बताया कि उन्हें नशे की हालत में ही जहांतहां भेजा जाता था. बेहोशी की हालत में उन के साथ क्याक्या किया जाता था, इस बारे में उन्हें कुछ पता नहीं चलता था. उन्हें बस इतना ही पता चलता था कि उन के पूरे बदन में भयानक दर्द और जलन होती थी.

पटना के गायघाट इलाके में बने महिला रिमांड होम (उत्तर रक्षा गृह) में कुल 136 बंदी हैं. उन के नहाने और कपड़े धोने की बात तो दूर, पीने के पानी का भी ठीक से इंतजाम नहीं है. कमरों में रोशनी और हवा का आना मुहाल है. तन ढकने के लिए ढंग के कपड़े तक मुहैया नहीं किए जाते हैं. इलाज का कोई इंतजाम नहीं होने की वजह से बीमार संवासिनें तड़पतड़प कर जान दे देती हैं.

पिछले साल टाटा इंस्टीट्यूट औफ सोशल साइंसेज, मुंबई की रीजनल यूनिट ने बिहार के 110 सुधारगृहों और सुधार केंद्रों का सर्वे किया था. उस सर्वे में इस बात का खुलासा हुआ था कि 3 केंद्र मानवाधिकार का उल्लंघन कर रहे थे, जिस में मुजफ्फरपुर का बालिका सुधारगृह भी शामिल था. इस के अलावा मोतिहारी और कैमूर सुधार केंद्रों में भी मानवाधिकार के उल्लंघन का मामला सामने आया था.

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ताजा मामला यह है कि पटना के उत्तर रक्षा महिला सुधारगृह, गायघाट में बंगलादेश की 2 लड़कियां पिछले 4 सालों से बंद हैं. ढाका की रहने वाली मरियम परवीन और मौसमी को रेलवे पुलिस ने पटना जंक्शन पर गिरफ्तार किया था. वे मानव तस्करों के चंगुल में फंस गई थीं और किसी तरह भाग निकली थीं. बिहार सरकार की ओर से अब तक उन्हें वापस उन के देश भेजने का कोई इंतजाम नहीं किया गया है.

मरियम परवीन ने बताया कि बंगलादेश की ही लैला नाम की एक औरत नौकरी दिलाने का झांसा दे कर उसे नेपाल ले गई थी. बाद में पता चला कि वह दलालों के चंगुल में फंस चुकी है. एक दिन मौका लगते ही वह भाग निकली. इन दोनों लड़कियों के खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं है, इस के बाद भी ये पिछले 4 सालों से रिमांड होम में रहने के लिए मजबूर हैं.

समाज कल्याण विभाग के सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, रिमांड होम के गेट के भीतर पुरानी और दबंग कैदियों का राज चलता है. उन की बात न मानने वाली कैदियों की थप्पड़ों, लातघूंसों और डंडों से पिटाई तक की जाती है, तो कभी खाना बंद करने का फरमान सुना दिया जाता है.

कुछ साल पहले एक ऐसी ही संवासिन पिंकी ने तो गले में फंदा लगा कर खुदकुशी कर ली थी. पिंकी की चीख रिमांड होम के अंधेरे कमरों की दीवारों में घुट कर रह गई थी. आज तक उस की मौत के गुनाहगारों का पता ही नहीं चल सका है.

गौरतलब है कि पटना के रिमांड होम में प्रेम प्रसंग के मामलों में 34 लड़कियां बंद हैं. बिहार के किशनगंज जिले की रहने वाली लड़की बेबी पिछले 22 महीने से रिमांड होम में कैद है. उस का गुनाह इतना ही है कि उस ने दूसरे धर्म के लड़के से प्यार किया. उस के घर वालों ने पहले तो उसे समझाया, पर वह अपने प्यार को पाने की जिद पर अड़ी रही तो आखिरकार गुस्से में आ कर बेबी के घर वालों ने उस के प्रेमी को मार डाला. उस के बाद लड़के के परिवार ने बेबी समेत उस के समूचे परिवार को हत्या का आरोपी बना दिया.

बेबी सिसकते हुए कहती है कि जिस से मुहब्बत की और साथ जीनेमरने की कसमें खाई थीं, उसे वह कैसे मार सकती है?

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पिछले साल बिहार के मुजफ्फरपुर शहर के बालिका बाल सुधारगृह में बच्चियों के जिस्मानी शोषण के मामले का भंडाफोड़ हुआ था. सेवा, संकल्प एवं विकास समिति नाम की संस्था की ओट में जिस्मफरोशी का धंधा चलता था.

इस संस्था के संचालक ब्रजेश ठाकुर ने अपने घर, प्रिंटिंग प्रैस और बालिकागृह के बीच राज भरी दुनिया बना रखी थी. सीबीआई की टीम जब मुजफ्फरपुर के साहू रोड पर बने उस के घर पर पहुंची तो सीढि़यों की बनावट देख कर हैरान रह गई.

बालिकागृह में 4 सीढि़यां मिलीं और सभी बालिकागृह के मेन भवन तक पहुंचती हैं. एक सीढ़ी प्रिंटिंग प्रैस वाले कमरे में निकलती थी, एक उस के घर की ओर निकलती थी. मकान की तीसरी मंजिल को बालिका सुधारगृह बनाया गया था.

सांसद रह चुके पप्पू यादव साफतौर पर कहते हैं कि मुजफ्फरपुर के बालिका सुधारगृह की मासूम बच्चियों को रसूखदार लोगों के पास ‘मनोरंजन’ के लिए भेजा जाता था. छापेमारी के बाद पता चला कि पीडि़त लड़कियों की उम्र 6 से 15 साल के बीच है, जिन में से 13 लड़कियों की दिमागी हालत ठीक नहीं है.

पुलिस सूत्रों की मानें तो जांच के दौरान यह खुलासा होने लगा है कि कई बच्चियों को नेताओं और अफसरों के पास भेजा जाता था. बालिकागृह में भी हर शुक्रवार को महफिल सजती थी, जिस में कई सफेदफोश और वरदीधारी शामिल होते थे.

कुछ ऐसा ही धंधा पटना की ‘पेज थ्री क्वीन’ कही जाने वाली मनीषा दयाल और उस का पार्टनर चितरंजन भी चला रहा था. मनीषा दयाल की एनजीओ अनुमाया ह्यूमन रिसर्च फाउंडेशन को आसरा होम के संचालन का जिम्मा कैसे मिला, इस के पीछे भी बड़ी कहानी है. आसरा होम का काम मिलने से पहले मनीषा ने बदनाम ब्रजेश ठाकुर द्वारा चलाए जा रहे शैल्टर होम का मुआयना किया था. ब्रजेश ठाकुर की पैरवी से ही मनीषा दयाल को आसरा होम चलाने की जिम्मेदारी समाज कल्याण विभाग ने दी थी.

पटना के राजीव नगर की चंद्रविहार कालोनी के नेपाली नगर में मनीषा दयाल का आसरा होम चलता था. आसरा होम को मिलने वाली सरकारी मदद की रकम में चितरंजन और मनीषा दयाल बड़े पैमाने पर हेराफेरी करते थे.

आसरा होम को चलाने के लिए सरकार की ओर से हर साल 76 लाख, 80 हजार, 400 रुपए देने का करार किया गया था. साल 2018-19 के लिए अब तक 67 लाख रुपए मिल चुके थे.

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आसरा होम के नाम पर करोड़ों रुपए जुटाने वाली मनीषा दयाल इतनी बेदर्द थी कि वह आसरा होम में रहने वाली औरतों और लड़कियों को ठीक से खाना तक नहीं देती थी. उस की गिरफ्तारी के बाद आसरा होम में रहने वाली संवासिनों की मैडिकल जांच की गई तो वे सभी कुपोषण की शिकार निकलीं.

डाक्टरों का कहना है कि इन संवासिनों की नाजुक हालत को देख कर यही लगता है कि इन्हें सही तरीके से खाना और पानी भी नहीं दिया जाता था.

महिला बंदियों को ले कर सोच बदलें :

सुषमा साहू राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य सुषमा साहू कहती हैं कि औरतों को सताने के मामलों में कहीं कोई कमी नहीं आई है. जेल और रिमांड होम की अंदर की बात तो दूर घरों में औरतों के साथ अच्छा रवैया नहीं अपनाया जाता है. वे मानती हैं कि जेलों और रिमांड होम में बंद कैदियों को दोबारा बसाने की सब से बड़ी समस्या है. ऐसी कैदियों को ले कर समाज की सोच बदलने की जरूरत है. उन्हें हुनरमंद बनाना होगा, तभी वे अपने पैरों पर खड़ी हो सकेंगी. इस के लिए कई योजनाएं बनाई गई हैं और जल्दी ही इस का असर भी दिखाई देने लगेगा.

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कहानी सौजन्य– मनोहर कहानियां

बुराडी में चल रहा था औनलाइन जिस्मफरोशी का धंधा, इस हिसाब से लगाया जाता था रेट

बुराडी के संतनगर में ’18+ ब्यूटी टेंपल’ बाहर से आमतौर पर शांत दिखता था. सामने से यह स्पा सैंटर जितना छोटा दिखता था अंदर उस से कहीं बड़ा और आलीशान बनाया गया था. स्पा सैंटर के अंदर एक तहखाना बना हुआ था जिस में ग्राहकों के लिए तमाम तरह की सुविधाएं उपलब्ध थी.

दिन ढलते बढ जाती थी हलचल

स्पा सैंटर से कुछ दूरी पर रहने वाले एक शख्स ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि आमतौर पर दिन भर शांत रहने वाले इस स्पा सैंटर में दिन ढलते ही हलचल बढ जाती थी. लोगों की आवाजाही ज्यादा होने लगती थी. इस सैंटर में जब स्मार्ट ड्रैस पहनी कालेज जाने वाली लडकियां और लोगों का ज्यादा आनाजाना होने लगा तो अगलबगल रहने वाले लोगों को शक हुआ.

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दिल्ली महिला आयोग को मिली शिकायत

लोगों की शिकायत पर दिल्ली महिला आयोग ने दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच के साथ बुराड़ी स्थित इस स्पा सैंटर में छापा मारा. छापे के बाद मीडिया में आई खबर के बाद स्थानीय लोगों को सहसा यह विश्वास ही नहीं हो रहा था कि यहां औनलाइन सैक्स रैकेट चल रहा था.

दिल्ली महिला आयोग स्पा सेंटर से 4 लड़कियों को बचाया गया. इस मामले में 3 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया. दिल्ली महिला आयोग की सदस्य प्रोमिला गुप्ता ने सरस सलिल से बातचीत करते हुए बताया,” देखिए, दिल्ली महिला आयोग के पास एक शिकायत आई थी, जिस में एक वैबसाइट के बारे में बताया गया था. हमें सूचना मिली थी कि इस की आड में यहां सैक्स रैकेट चलाया जा रहा है. शिकायत में कहा गया था कि बुराड़ी में एक स्पा में सैक्स रैकेट चल रहा है. शिकायत पर जब हम ने दिल्ली पुलिस के सहयोग से कार्यवाई की तो वहां का नजारा देख कर हैरान रह गए. दरअसल, वैबसाइट पर वहां लड़कियों की फोटो और रेट कार्ड डाल रखे थे. जब महिला आयोग ने जगह का निरीक्षण कराया तो पता चला कि बहुत बड़ा रैकट है और स्पा में बाउंसर और तहखाने हैं”

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कस्टमर की वेशभूषा में गए अधिकारी ने की तहकीकात

प्रोमिला गुप्ता ने आगे बताते हुए कहा, “दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने इस बारे में दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच से तुरंत बात की. क्राइम ब्रांच ने अपनी एक टीम भेजी. तब दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल, सदस्य प्रोमिला गुप्ता, किरण नेगी व फिरदौस दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच की टीम के साथ बुराड़ी स्थित ‘18 प्लस ब्यूटी टेंपल’ स्पा पहुंचीं. “अपराध शाखा का एक औफिसर और डीसीडब्ल्यू का स्टाफ पहले कस्टमर बन कर स्पा में घुसा. उन को वहां लड़कियों की फ़ोटो और सैक्स के लिए रेट कार्ड स्क्रीन पर दिखाया गया. तभी डीसीडब्ल्यू की पूरी टीम और क्राइम ब्रांच की पूरी टीम स्पा सैंटर जा पहुंची. उन्होंने एकसाथ सभी कमरों का निरीक्षण किया.”

तहखाने के अंदर कई कमरे थे

प्रमिला गुप्ता बताती हैं, “वहां 3 फ्लोर पर छोटेछोटे तहखाने बने मिले, जहां पर बिस्तर थे. वहां से भारी मात्रा में कंडोम्स और अश्लील मैनू कार्ड मिले. 3 लड़कों ने बताया कि वे कस्टमर हैं और यहां सैक्स रैकट चल रहा है. वहां पर बड़े लोहे के गेट हैं जिन्हें बटन द्वारा खोला जाता है। 4 लड़कियां 3 कस्टमर और इस रैकेट को चलाने वाले 3 व्यक्तियों को पुलिस वाले स्थानीय थाने ले गए.

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“आगे की तफ्तीश पुलिस कर रही है. महिला आयोग पुलिस के संपर्क में है और जो भी दोषी होगा उस पर कडी कार्यवाई की जाएगी।”

अंधविश्वास से अपराध : वह डायन नहीं थी

अफवाहें बेलगाम होती हैं. उन की कोई सरहद नहीं होती. लेकिन ये जब हदों को लांघ जाती हैं, तो लोगों और समाज के लिए बहुत बड़ा खतरा बन जाती हैं. ऐसी ही अफवाह ने एक 65 साला गरीब दलित औरत की जान ले ली.

दरअसल, उत्तर प्रदेश के आगरा जिले के मुटनई गांव की रहने वाली दलित मान जाटव के लिए 2 अगस्त, 2017 जिंदगी की आखिरी तारीख बन गई. मान जाटव तड़के शौच के लिए खेतों में गई थीं. उन्हें कम दिखाई देता था. अंधेरे की वजह से वे रास्ता भटक कर बघेल समाज की बस्ती में निहाल सिंह के घर के बाहर पहुंच गईं.

इसी बीच एक लड़की ने उन्हें देख कर शोर मचा दिया, जिस के बाद लोग जाग गए और पहली ही नजर में मान जाटव को चोटी काटने वाली ‘डायन’ करार दे दिया गया.

इस के बाद मान जाटव के साथ रूह कंपा देने वाली हैवानियत हुई. निहाल सिंह के बेटे मनीष व सोनू समेत दूसरे लोगों ने उन्हें लाठीडंडों से पीटना शुरू कर दिया. वे चिल्ला रहे थे कि चोटी काटने वाली ‘डायन’ पकड़ी गई है, जबकि मान जाटव बचने की हरमुमकिन कोशिश कर रही थीं और उन्हें बता रही थीं कि वे ‘डायन’ नहीं हैं, बल्कि उन्हीं के गांव की हैं.

गुस्से के गुबार में मान जाटव की कोई भी सुनने को तैयार नहीं था. अंधविश्वास के चश्मे ने लोगों को एक बेकुसूर औरत को बेरहमी से पीटने वाला मर्द बना दिया था.

पीटने वाले लोग अंधविश्वास में बुरी तरह अंधे थे. इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे मान जाटव को यह कह कर पीपल के पेड़ के पास ले गए कि वहां पीटने से पीपल पर रहने वाले भूतप्रेत भी कभी किसी को परेशान नहीं करेंगे.

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उन्होंने मान जाटव को अधमरा कर के उन्हें दूसरी जगह ले जा कर पटक दिया. शोरशराबा होने पर मान जाटव के परिवार वालों को पता चला, तो वे वहां पहुंचे और उन्हें अस्पताल ले गए, लेकिन चोटें इतनी गंभीर थीं कि उन की मौत हो गई.

अंधविश्वास की इस भेंट से गांव में तनाव पैदा हो गया. पुलिस पहुंची, तो आरोपी अपने घरों से फरार हो गए.

जांच में पता चला कि इलाके में औरतों व लड़कियों की चोटी काटने वाले कथित साए की अफवाह व दहशत थी. आरोपी परिवार की एक औरत की चोटी एक दिन पहले कट गई थी. इसी से उन्हें लगा कि ‘डायन’ चोटी काटने आई है.

अंधविश्वास ने मान जाटव को हमेशाहमेशा के लिए उन के परिवार से दूर कर दिया. उन का बेटा गुलाब कहता है, ‘पीटने वालों ने यह भी नहीं सोचा कि मेरी मां बुजुर्ग हैं. ऐसे तो कोई भी किसी को ‘डायन’ बता कर मार डालेगा.’

वैसे, इस बात में कोई दोराय नहीं है कि अगर मान जाटव का ताल्लुक किसी दबंग परिवार या ऊंची जाति से होता, तो शायद ही उन पर हमला होता. जब सामने वाले से ईंट का जवाब पत्थर से मिलने का डर हो, तो सारा गुरूर हवा हो जाता है.

यह वारदात कानून व्यवस्था पर भी सवाल खड़ा कर गई. अगर कानून का डर होता, तो शायद ऐसा करने से लोग डरते.

एसएसपी दिनेश चंद्र दुबे कहते हैं, ‘घटना के कुसूरवार बख्शे नहीं जाएंगे. लोगों को समझना चाहिए कि चुड़ैल, डायन या भूतप्रेत जैसा कुछ नहीं होता है. अफवाह फैलाने वालों की सूचना पुलिस को देनी चाहिए.’

दरअसल, ‘चोटीकटवा’ की यह अफवाह नए किरदार के रूप में आई. इस से पहले साल 2001 में ‘मंकी मैन’ ने भी खूब दहशत फैलाई थी. इस के बाद ‘मुंहनोचवा’ आ गया था. कभी ‘काली बिल्ली’, कभी ‘बच्चा चोर’, तो कभी लोगों के घरों में आग लगने के किस्से सुने जाते रहे थे.

हैरानी की बात यह है कि किसी का भी कभी ठोस नतीजा सामने नहीं आया. समय के साथ ऐसी घटनाएं और किस्से थम जाते हैं. ऐसी अफवाहों को वैज्ञानिक अंधविश्वास और मनोचिकित्सक ‘आईडैंटिटी डिसऔर्डर’ नामक बीमारी का नाम देते हैं.

अफवाहें और अंधविश्वास जिस तेजी से अपना काम करते हैं, वे कानून व्यवस्था के लिए खतरा बन जाते हैं. इस के चक्कर में कभी किसी बेकुसूर को पीटा जाता है, तो कभी किसी की हत्या कर दी जाती है.

मान जाटव भी इसी का शिकार हुईं. ऐसी अफवाहों से जादूटोना व तंत्रमंत्र करने वालों की दुकानें जरूर चालू हो जाती हैं, क्योंकि समाज में ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो अंधविश्वास का शिकार हो कर हर मर्ज का इलाज ऐसी जगहों पर खोजते हैं. अंधविश्वास का फायदा उठा कर उन्हें जम कर लूटा

जाता है.

डायन या चुड़ैल जैसी कोई चीज दुनिया में नहीं होती, लेकिन ज्यादातर मामलों में अपढ़ व दलित औरतें ही इस का शिकार होती हैं.

नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, देश के झारखंड, छत्तीसगढ़, हरियाणा, कर्नाटक, असम, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, बिहार, मध्य प्रदेश, ओडिशा जैसे राज्यों में यह बुराई फैली हुई है.

साल 2000 से साल 2012 के बीच ही जादूटोना करने के आरोप में देशभर में 2 हजार से ज्यादा लोगों की हत्याएं हुईं. इन में ज्यादातर औरतें ही थीं. बांझ, कुंआरी या विधवा औरतों को शिकार बनाना आसान होता है. ऊंची जाति वाले व दबंग लोग गरीब व आदिवासियों को डायन के रूप में बदनाम कर देते हैं.

संपत्ति का अधिकार छीनने, तंत्रमंत्र के काम को आबाद करने व भेदभाव के चलते भी ऐसी वारदातें होती हैं. यह लोगों की ओछी सोच को दिखाती है कि वे भूतप्रेत, डायन या चुड़ैल के नाम पर किसी की हत्या तक कर देते हैं.

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एक साल पहले झारखंड राज्य के रांची के मांडर गांव में डायन बता कर अलगअलग परिवार की 5 औरतों की हत्या कर दी गई थी. इस राज्य में हत्याओं का आंकड़ा 12 सौ के पार है.

बिहार के भागलपुर जिले में भी एक महिला को ‘डायन’ बता कर मार डाला गया. दरभंगा जिले के पीपरा में तो दबंगों ने एक दलित औरत को डायन बता कर न सिर्फ उस के साथ मारपीट की, बल्कि मूत्र पिलाने की कोशिश भी की.

दहशत में परिवार ने गांव ही छोड़ दिया. इस राज्य की 418 औरतें चंद सालों में ऐसे ही अंधविश्वास की भेंट चढ़ गईं.

असम में ‘डायन’ बता कर एक औरत का सिर काट दिया गया. समाज की ऐसी हैवानियत यह बताने के लिए काफी है कि अंधविश्वास का आईना कितना खौफनाक है.

इस बात में कोई दोराय नहीं है

कि अंधविश्वास से होने वाली घटनाएं सभ्य समाज को कलंकित करती हैं. लोगों को इस से बाहर निकलना चाहिए. अंधविश्वास और अफवाहें न फैलें,

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इस के उपाय सरकार को भी करने होंगे, ताकि फिर कोई मान जाटव अंधविश्वासों के गुस्से का शिकार न हो.

साईको पीड़ित ने की मां की हत्या… और….!!

उस मांस के टुकड़ों को बरतन में रखकर वह उसे खाने की तैयारीमें था. तभी पुलिस आ पहुंची. छत्तीसगढ़ की इस लोमहर्षक घटना से बोतल्दा गांव से लेकर प्रदेश भर में आम जनमानस यह देख स्तब्ध रह गया. प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि अर्धविक्षिप्त युवक को मृतक माँ ने बड़ी मुश्किलों से पाला- पोसा था.
यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि यह पूरा मामला साइको बीमारी से संबंधित है. साइको पीड़ित युवक का इलाज परिवार जन नहीं कर सके अंततः उसका यह भयंकर परिणाम सामने आया है ऐसे में आप सकता है कि हम अपने आसपास ऐसे साइको विक्षिप्त लोगों पर निगाह पड़ते ही उनकी समुचित इलाज की पहल करें.

साइको पीड़ित सीताराम

जिला पुलिस से मिली जानकारी के अनुसार  खरसिया थाना के दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित बोतल्दा गांव में एक अर्धविक्षिप्त युवक ने अपनी मां फुलोबाई उरांव (50 वर्ष) की दिनदहाड़े टांगी से मारकर हत्या कर दी. हत्या करने के बाद सिर का भेजा (मांस) निकालकर उसके टुकड़े-टुकड़े किये.  पड़ोसी से पुलिस को घटना की सूचना मिली और पुलिस दलबल के साथ तत्परता से पहुँच गई. आरोपी सीताराम उरांव (32 वर्ष) पिता बलेश्वर उराव  लंबे समय से अर्धविक्षिप्त है. और उसका इलाज नहीं कराया जा रहा था. इस दिल दह्लाने वाली घटना के पश्चात घटनास्थल पर लोगों की भीड़ जुट गई और घटना की जानकारी आग की तरह चारो ओर फैलती चली गई.

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पुलिस ने आरोपी को अपनी गिरफ्त में लेकर खानापूर्ति प्रारंभ कर दी अब सीतारामपुरा मां की हत्या के आरोप में जेल की सीखचो के पीछे होगा. इस घटना के बाद कई प्रश्न उठ खड़े होते हैं जैसे इस हत्या का दोषी कौन है क्या सीताराम मानसिक रूप से स्वस्थ होता तो क्या वह अपनी मां की हत्या कर सकता था?आज ऐसे प्रश्नों पर गंभीरता से चिंतन करने का समय है. आखिर इस घटना के पीछे दोषी कौन है क्या सीताराम दोषी है या उसका परिवार और अगर परिवार सक्षम था तो समाज और सरकार कहां है? यहां यह भी महत्वपूर्ण है कि जो व्यक्ति अपने मां की हत्या कर सकता है क्या वह किसी और की हत्या नहीं कर सकता था आज ऐसे अनेक मामले देश विदेश में हो रहे हैं मगर इस और न को समाजिक संस्था चिंतन कर रही है और ना ही सरकार.

खानापूरी जारी है

पुलिस बड़े ही गर्व के साथ यह बता रही है कि हमने हत्या का मामला दर्ज कर लिया
है.खरसिया थाना के निरीक्षक एस आर साहू ने हमारे संवाददाता को बताया कि जिस समय यह घटना हुई उस समय घर के पिछवाड़े में आरोपित के छोटे भाई की पत्नी किसी काम में लगी थी. आरोपी सिरफिरा बेटा शराब का आदी था और नशा करने के लिए माँ से पैसे की मांग कर रहा था. पैसा नहीं होने के कारण माँ उसे पैसे नहीं दे पाई जिससे गुस्से में आकर बेटे ने टांगी से माँ की हत्या कर दी और सिर के अन्दर से भेजा निकालकर टुकड़े कर दिए. घर मे जब भाई की पत्नी आई व खून से लथपथ सास को देखा.

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जानकारी मिलने पर ग्रामीण जमा हो गए और 112 को सूचना दी. 112 ने पुलिस को जानकारी दी जिसके बाद पुलिस ने पहुंचकर शव बरामद कर लिया. साहू ने बताया कि पुलिस ने कडाही में रखे मांस के टुकडे को बरामद कर लिया है. उसने पुलिस को बताया कि वह उस मांस को पकाने की तैयारी में था मगर इतने में छोटे भाई की पत्नी आ गई जिससे वह भाग निकला.पुलिस के अनुसार घर में आरोपित और उसकी माँ एक साथ रहते थे जबकि उसका छोटा भाई अपनी पत्नी और बच्चे के साथ दूसरे कमरे में रहता था. एक ही घर में दो चूल्हे जलते थे. आरोपित युवक पहले स्वस्थ और कामकाजी था तथा गाड़ी चलाकर अपना और माँ का पेट पालता था. ड्राइवरी के दौरान ही गांजा-शराब की उसे लत लग गई और बाद में अर्धविक्षिप्त भी हो गया. साईको पीड़ित होने के बाद उसने काम छूट गया जिसके बाद माँ ही अर्धविक्षिप्त को स्वयं कमाकर पाल रही थी और नशे के लिए बेटे को पैसे भी देती थी. लेकिन कब क्या हो जाये इसका कोई अन्दाजा भी नहीं लगा सकता । क्या कोई बेटा ऐसा भी कर सकता है कि अपनी ही माँ की हत्या कर उसके माँस के छोटे छोटे टुकड़े को पकाकर खा जाये।

एक कोतवाल, रंगीन मिजाज ….

यहां भी अपने रंग दिखा रहे हैं. इधर जब जब विवाह के फोटो वायरल हुए तो युवती के माता-पिता को जानकारी मिली. उन्होंने पुलिस अधीक्षक के पास पहुंचकर अपनी लड़की को बरगला कर कोतवाल द्वारा विवाह किए जाने की शिकायत की है और मांग की है कि अगर कोतवाल ने विवाह किया है तो न्याय दिया जाए और कोतवाल पर कठोर कार्रवाई की जाए. यह कहानी है कांकेर जिला मुख्यालय स्थित कोतवाली थाना में पदस्थ थाना प्रभारी अमर सिंह कोमरे की. कानून की वर्दी पहनकर अमर सिंह द्वारा तीसरी शादी का मामला सामने आया है. पीड़ित मां के अनुसार, थाना प्रभारी अमर सिंह कोमरे ने चारामा क्षेत्र की रहने वाली 21 वर्षीय युवती को पहले अपने होटल में काम करने के लिए रखा था.

परिजनों ने युवती के कुछ दिनों तक वापस नहीं लौटने पर पतासाजी की, जिसमें पता चला की युवती वहीं रहकर काम कर रही है. उसे घर वापस लाने पर युवती फिर से भाग गई, जिसके बाद दोबारा युवती नहीं लौटी.

कानून के रखवाले की यह तीसरी शादी

छत्तीसगढ़ में इन दिनों अमर सिंह कोमरे अपनी आशिक मिजाजी और तीसरी शादी के कारण चर्चा में आ गए हैं मजे की बात यह है कि कोतवाल जैसे महत्वपूर्ण पद पर रहते हुए उन्होंने एक युवती को पहले अपने कंप्यूटर ऑपरेटर के पद पर रखा फिर उसे होटल में रखा और अंततः उसकी मांग में सिंदूर भर दिया. सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह रही कि उन्होंने युवती से विवाह करने की बात छुपाई नहीं और साफ मन से स्वीकार कर लिया। युवती अपनी मां को कोतवाली प्रभारी के साथ अपनी मांग में सिंदूर भरी हुई फोटो भेज रही है, जिसके बाद से परिजन काफी परेशान हो उठे हैं .युवती के परिजनों ने बताया कि कोतवाल की उम्र लगभग 49 के पेटे में है, उसने पहले से ही दो शादी कर रखी है. इस मामले पर अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक का कहना है कि परिजनों के आवेदन के आधार पर थाना प्रभारी को बुलाकर पूछताछ की गई है.

वर्दी पहन कोतवाल उड़ा रहे कानून की धज्जियां

छत्तीसगढ़ आदिवासी बाहुल्य पिछड़ा हुआ राज्य है अगर से यह घटना किसी महानगर में घटित हुई होती तो आज राष्ट्रीय चैनलों पर प्रमुखता के साथ परोस दी जाती.इस पर चर्चा बहस के दौर शुरू हो जाते. मगर छत्तीसगढ़ के बस्तर में घटित यह महिला विरोधी एवं पुलिस की वर्दी की एक तरह से धज्जियां उड़ाने की घटना सुर्खियां नहीं बटोर पाई. कोतवाल के रूप में एक जिम्मेदार अफसर अगर पूर्व पत्नी और बच्चों को छोड़कर एक कमसिन युवती से विवाह कर ले तो यह कोई छोटी विसंगति नहीं है.मगर छत्तीसगढ़ के सरकार और पुलिस प्रशासन मानो आंखों में पट्टी बांधकर सो रहा है. यह मामला निजी नहीं हो सकता नियमत: हिंदू विवाह अधिनियम के तहत कोई भी आम शख्स पहली पत्नी से तलाक के बगैर दूसरा विवाह नहीं कर सकता. यह जानकारी क्या छत्तीसगढ़ पुलिस को नहीं है जो उसका एक कारिंदा वर्दी पहनकर कानून को ठेंगा दिखा रहा है. इस संदर्भ में कांकेर पुलिस का दो टूक कहना है युवती ने कोतवाली प्रभारी के साथ शादी करना कबूल किया है. नियमों के आधार पर जो होगा कार्रवाई की जाएगी.

सोशल मीडिया क्राइम: नाइजीरियन ठगों ने किया कारनामा

यह ठगी की क्राइम स्टोरी पढ़कर आप भी चौंक जाएंगे की ठगी के कैसे-कैसे नायाब नमूने लोगों ने इजाद कर लिए हैं. इस संदर्भ में कहा जा सकता है कि छत्तीसगढ़ की
राजनांदगांव पुलिस को बड़ी कामयाबी हासिल हुई है. सोशल मीडिया के जरिए आनलाइन ठगी करने वाले दो नाईनीरियन को पुलिस ने नईदिल्ली से गिरफतार किया है इनके नाम- किबी स्टेनली ओकवो और नवाकोर इमानुएल हैं.

दंपत्ति से 44 लाख की ठगी

पुलिस अधीक्षक कमललोचन कश्यप ने बताया कि राजनांदगांव निवासी श्रीमती सुनीता आर्य पति चैतूराम आर्य ने विगत एक दिसंबर को उक्त आरोपियों के खिलाफ एक रिपोर्ट दर्ज कराते हुए कहा था कि जुलाई 2018 में किसी डेविड सूर्ययन नामक व्यक्ति उन्हें फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी. तथा खुद को लंदन निवासी होना बताया. काफी दिनों तक दोनों के बीच चेटिंग होती रही और एक दिन उपरोक्त व्यक्ति ने कहा कि वह उसे मोबाइल, गोल्डन ज्वेलरी, रिंग, जूते, कोट, घडी चैनल, बैग इत्यादि सामान गिफट करना चाहता है परंतु उसका जहांज फिनलैण्ड में रूका पड़ा है, उसके बाद पीड़िता के पास एक व्यक्ति का फेान आया जिसने खुद को कस्टम अधिकारी बताया और कहा कि उपरोक्त सामान चाहिऐ तो उसे 62500 रूपये जमा कराने होंगे. इस तरह क्राइम प्रारंभ हो गया विश्वास करके आगे दंपत्ति ने यूपी जमाने प्रारंभ कर दिए और धीरे धीरे 44लाख रुपए की चपत उन्हें लग गई.

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ऐसे हुआ ठगी का एहसास

इधर पीड़िता ने उसके झांसे में आते हुए रकम जमा कर दी परंतु जब सामान नही पहुंचा तेा उसने डेविड सूर्ययन से संपर्क करना चाहा मगर उसका सोशल मीडिया एकाउंट और मोबाइल नम्बर बंद बताया जा रहा था. आश्चर्य कि इस तरह पीड़िता से कुल 44 लाख की आनलाइन धोखाधड़ी हो गई. उसके बाद पीड़िता ने राजनंदगांव पुलिस अधीक्षक एवं अधिकारियों से संपर्क किया जिन के निर्देश पर कोतवाली थाना में मामला दर्ज हुआ. रिपोर्ट
दर्ज करने के बाद पुलिस ने भादवि की धारा 420, 34 एवं 66 डी के तहत जुर्म दर्ज किया.

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अंततः अपराधी पकड़े गए

पुलिस ने इस मामले को गंभीरता से लिया और जाल बिछाकर ठगों को दबोच लिया। छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव पुलिस ने ऑनलाइन साइबर क्राइम को बहुत गंभीरता से लिया और इसके लिए एक क्राइम इन्वेस्टिगेशन टीम बनाई गई जोशीला पुलिस कप्तान कश्यप को रिपोर्ट कर रही थी बहुत ही चालाकी से दोनों नाइजीरियन नागरिकों को पुलिस ने जाल में फंसाया और गिरफ्तार करके राजनंदगांव ले आई है पुलिस ने दोनों का बयान दर्ज किया उन्होंने स्वीकार किया कि यह काम वह विगत 2 वर्षों से कर रहे थे और अनेक लोगों को अपना शिकार बनाया है. पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश किया जहां से जमानत के अभाव में उन्हें जेल भेज दिया गया है.

सुलझ ना सकी वैज्ञानिक परिवार की मर्डर मिस्ट्री

लेखक- निखिल अग्रवाल  

एक जुलाई की बात है. सुबह के करीब 7 बजे का समय था. रोजाना की तरह घरेलू नौकरानी जूली डा. प्रकाश सिंह के घर पहुंची. उस ने मकान की डोरबैल बजाई. बैल बजती रही, लेकिन न तो किसी ने गेट खोला और न ही अंदर से कोई आवाज आई. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था. डा. प्रकाश सिंह का परिवार सुबह जल्दी उठ जाता था. रोजाना आमतौर पर डा. सिंह की पत्नी सोनू सिंह उर्फ कोमल या बेटी अदिति डोरबैल बजने पर गेट खोल देती थीं. उस दिन बारबार घंटी बजाने पर भी गेट नहीं खुला तो जूली परेशान हो गई. वह सोचने लगी कि आज ऐसी क्या बात है, जो साहब की पूरी फैमिली अभी तक नहीं जागी है.

बारबार घंटी बजने पर घर के अंदर से पालतू कुत्तों के भौंकने की आवाजें आ रही थीं. कुत्तों की आवाज पर भी गेट नहीं खुलने पर जूली को चिंता हुई. उस ने पड़ोसियों को बताया. पड़ोसियों ने भी डोरबैल बजाई. दरवाजा खटखटाया और आवाजें दीं लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. थकहार कर पड़ोसियों ने पुलिस को सूचना दे दी.

यह बात हरियाणा के जिला गुरुग्राम के सेक्टर-48 के सेक्टर-49 स्थित पौश सोसायटी ‘उप्पल साउथ एंड’ की है. डा. प्रकाश इसी सोसायटी के एफ ब्लौक में 3 मंजिला बिल्डिंग के भूतल पर स्थित आलीशान फ्लैट में रहते थे.

वह वैज्ञानिक थे और नामी दवा कंपनी सन फार्मा में निदेशक रह चुके थे. करीब एक महीने पहले ही डा. सिंह ने इस सन फार्मा कंपनी की नौकरी छोड़ी थी. कुछ दिनों बाद ही उन्हें हैदराबाद की एक बहुराष्ट्रीय फार्मा कंपनी में नई नौकरी जौइन करनी थी.

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55 वर्षीय डा. सिंह के परिवार में उन की पत्नी डा. सोनू सिंह, 20 साल की बेटी अदिति और 14 साल का बेटा आदित्य था. चारों इसी फ्लैट में रहते थे. डा. प्रकाश सिंह दवा कंपनी में वैज्ञानिक की नौकरी करने के साथसाथ अपनी पत्नी के साथ स्कूल भी चलाते थे. गुरुग्राम और पलवल में उन के 4 स्कूल थे. बेटी अदिति भी बी.फार्मा की पढ़ाई कर रही थी जबकि बेटा नवीं कक्षा में पढ़ता था. सोसायटी के लोगों की सूचना पर कुछ ही देर में पुलिस मौके पर पहुंच गई. पुलिस ने भी पहले तो डा. सिंह के मकान की डोरबैल बजाई और कुंडी खटखटाई, लेकिन जब गेट नहीं खुला तो खिड़की तोड़ने का फैसला किया गया. खिड़की तोड़ कर पुलिस मकान के अंदर पहुंची तो भयावह नजारा देख कर हैरान रह गई.

बैडरूम में 3 लाशें पड़ी थीं. खून फैला हुआ था. घर की लौबी में लगे पंखे में बंधी नायलौन की रस्सी से एक अधेड़ आदमी लटका हुआ था. रूम में बैड पर एक लड़की का और बैड से नीचे एक किशोर के शव पड़े थे. इन से करीब 6 फुट दूर जमीन पर अधेड़ महिला की लाश पड़ी थी. तीनों पर हथौड़े जैसी भारी चीज से वार करने के बाद गला काटने के निशान थे.

पुलिस ने बैड और जमीन पर पड़े तीनों लोगों की नब्ज टटोल कर देखी, लेकिन उन की सांसें निकल चुकी थीं. उन के शरीर में जीवन के कोई लक्षण नहीं थे. पंखे से लटके अधेड़ की जान भी निकल चुकी थी.

पड़ोसियों ने की चारों लाशों की शिनाख्त

पड़ोसियों से पुलिस ने उन लाशों की शिनाख्त करवाई तो पता चला कि पंखे से लटका शव डा. प्रकाश सिंह का था और बैड पर उन की बेटी अदिति व बेटे आदित्य की लाशें पड़ी थीं. जमीन पर पड़ा शव डा. सिंह की पत्नी डा. सोनू सिंह का था.

पुलिस ने खोजबीन की तो डा. प्रकाश सिंह के पायजामे की जेब से 4 लाइनों का अंगरेजी में लिखा सुसाइड नोट मिला. सुसाइड नोट में उन्होंने परिवार संभालने में असमर्थता जताते हुए घटना के लिए खुद को जिम्मेदार बताया था. सुसाइड नोट पर एक जुलाई की तारीख लिखी थी.

डा. प्रकाश कोठारी के घर में पुलिस को 4 पालतू कुत्ते भी मिले. जमीन पर खून फैला होने के कारण कुत्ते भी खून से लथपथ थे. इन में 2 कुत्ते जरमन शेफर्ड और 2 कुत्ते पग प्रजाति के थे. परिवार के चारों सदस्यों ने ये अलगअलग कुत्ते पाल रखे थे.

जरमन शेफर्ड कुत्ते डा. प्रकाश और उन के बेटे आदित्य ने तथा पग प्रजाति के कुत्ते डा. सोनू व उन की बेटी आदित्य के प्रिय थे. ये चारों कुत्ते कमरे में शवों के पास बैठे थे. पुलिस के घर आने पर ये कुत्ते भौंकने लगे थे. नौकरानी जूली ने उन्हें पुचकार कर शांत किया.

प्रारंभिक तौर पर यही नजर आ रहा था कि डा. प्रकाश ने पत्नी, बेटी और बेटे की हत्या करने के बाद फांसी लगा कर अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली. डा. प्रकाश के पूरे परिवार की मौत की जानकारी मिलने पर पूरी सोसायटी में सनसनी फैल गई.

लोगों से पूछताछ में ऐसी कोई बात पुलिस के सामने नहीं आई, जिस से यह पता चलता कि डा. प्रकाश ने पत्नी, बेटी और बेटे की हत्या के बाद खुद फांसी क्यों लगा ली. पड़ोसियों ने बताया कि डा. प्रकाश और उन का परिवार खुशमिजाज था. उन्हें पैसों की भी कोई परेशानी नहीं थी.

पड़ोसियों से पूछताछ कर पुलिस ने डा. प्रकाश के परिजनों और रिश्तेदारों का पता लगाया. फिर उन्हें सूचना दी गई. सूचना मिलने पर सब से पहले डा. सोनू सिंह की बहन सीमा अरोड़ा वहां पहुंचीं. दिल्ली में रहने वाली सीमा अरोड़ा हाईकोर्ट में वकील हैं. उन्होंने पुलिस को बताया कि पिछली रात 11 बजे तक डा. प्रकाश के घर में सब कुछ ठीकठाक था. वह खुद रात 11 बजे तक अदिति से वाट्सऐप पर चैटिंग कर रही थीं.

सीमा अरोड़ा की बातों से यह तय हो गया कि यह घटना रात 11 बजे के बाद हुई. दूसरा यह भी था कि सुसाइड नोट पर एक जुलाई की तारीख लिखी थी. एक जुलाई रात 12 बजे शुरू हुई थी. सीमा अरोड़ा से बातचीत में पुलिस को ऐसा कोई कारण पता नहीं चला, जिस से इस बात का खुलासा होता कि डा. प्रकाश ने ऐसा कदम क्यों उठाया.

पुलिस ने शुरू की काररवाई

वैज्ञानिक के परिवार के 4 सदस्यों की मौत की जानकारी मिलने पर गुरुगाम पुलिस के तमाम आला अफसर मौके पर पहुंच गए. एफएसएल टीम भी बुला ली गई. फोरैंसिक वैज्ञानिकों ने घर में विभिन्न स्थानों से घटना के संबंध में साक्ष्य एकत्र किए. पुलिस ने डा. प्रकाश का शव फंदे से उतारा. दोपहर में चारों शवों को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेज दिया गया.

इस दौरान पुलिस ने घर के बाथरूम से 3 मोबाइल फोन बरामद किए. ये फोन पानी से भरी बाल्टी में पड़े थे. तीनों मोबाइलों के अंदर पानी चले जाने से ये चालू नहीं हो रहे थे. इसलिए तीनों मोबाइल फोरैंसिक लैब भेज दिए गए. पुलिस ने इस के अलावा मौके से रक्तरंजित एक तेज धारदार चाकू अैर एक हथौड़ा बरामद किया. माना गया कि इसी चाकू व हथौड़े से पत्नी, बेटी व बेटे की हत्या की गई.

पुलिस ने इसी दिन सीमा अरोड़ा के बयानों के आधार पर सेक्टर-50 थाने में मामला दर्ज कर लिया. डा. सिंह के परिवार के चारों कुत्ते देखभाल के लिए फिलहाल पड़ोसियों को सौंप दिए गए.

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अस्पताल में चारों शवों के मैडिकल बोर्ड से पोस्टमार्टम कराने की काररवाई में रात हो गई. अगले दिन 2 जुलाई को डा. प्रकाश और डा. सोनू सिंह के परिवारों के लोग सुबह ही गुरुग्राम पहुंच गए. पुलिस ने दोनों पक्षों के बयान लिए और जरूरी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद सुबह करीब पौने 12 बजे चारों शव परिजनों को सौंप दिए.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सामने आया कि सोनू के सिर व गले पर तेज धारदार हथियार से 20 से ज्यादा वार किए गए थे. बेटे व बेटी के सिर पर भी धारदार हथियार के 12 से 15 निशान मिले.

शवों को ले कर दोनों पक्षों में हुआ विवाद

शव सौंपे जाने पर अंत्येष्टि को ले कर डा. प्रकाश सिंह और उन की पत्नी के पक्ष के बीच विवाद हो गया. सोनू सिंह की बहन सीमा अरोड़ा ने कहा कि वह सोनू और दोनों बच्चों के शवों की अंत्येष्टि दिल्ली ले जा कर करेंगी. इस पर डा. प्रकाश के परिजन बिफर गए. उन की बहन शकुंतला ने कहा कि अंत्येष्टि कहीं भी करो, लेकिन चारों की एक साथ ही होनी चाहिए.

बाद में अन्य लोगों के दखल पर यह तय हुआ कि चारों की अंत्येष्टि गुरुग्राम में सेक्टर-32 के श्मशान घाट में की जाए. बाद में जब मुखाग्नि देने की बात आई तो इस बात को ले कर भी विवाद होतेहोते बचा. आपसी सहमति से सोनू, अदिति व आदित्य के शव को मुखाग्नि सीमा अरोड़ा के परिवार वालों ने दी. जबकि डा. प्रकाश के शव को उन की बहन के परिवार वालों ने मुखाग्नि दी.

उत्तर प्रदेश में वाराणसी के रघुनाथपुर गांव के रहने वाले डा. प्रकाश सिंह के पिता रामप्रसाद सिंह उर्फ रामू पटेल एक किसान थे. प्रकाश ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई की थी. सोनू सिंह भी उन के साथ ही पढ़ती थीं, इसलिए दोनों में जानपहचान हो गई. फिर वे एकदूसरे से प्यार करने लगे.

बाद में दोनों ने ही रसायन विज्ञान में एम.एससी. की. एम.एससी. में दोनों ने गोल्ड मैडल हासिल किए थे. इस के बाद दोनों ने डाक्टरेट की डिग्री हासिल की. डाक्टरेट की पढ़ाई के दौरान दोनों ने अपनेअपने घर वालों की इच्छा के खिलाफ 1996 में शादी कर ली.

दोनों ने भले ही शादी कर ली, लेकिन इस के बाद दोनों के ही परिवारों के बीच गांठ बन गई, जो नाराजगी के रूप में शवों की अंत्येष्टि के दौरान नजर आई.

विवाह के बाद डा. प्रकाश की पत्नी डा. सोनू ने पहले बेटी अदिति को जन्म दिया. इस के करीब 6 साल बाद बेटा हुआ. उस का नाम आदित्य रखा. डा. प्रकाश सिंह ने सब से पहले बेंगलुरु में नौकरी की थी. इस के बाद से ही उन का पैतृक गांव रघुनाथपुर में आनाजाना कम हो गया था.

करीब 12 साल पहले डा. प्रकाश और डा. सोनू सिंह नौकरी के सिलसिले में दिल्ली आ गए. दिल्ली में डा. प्रकाश ने रैनबैक्सी फार्मा कंपनी में नौकरी शुरू की. कुछ समय बाद वे गुरुग्राम आ कर बस गए और डा. प्रकाश सिंह सन फार्मा में नौकरी करने लगे. गुरुग्राम में उन्होंने ‘उप्पल साउथ एंड’ नाम की सोसायटी में फ्लैट ले लिया.

डा. सोनू सिंह करती थीं समाजसेवा

डा. प्रकाश की अच्छीखासी नौकरी थी. घर में सुखसुविधाओं और पैसे की कोई कमी नहीं थी. पतिपत्नी दोनों ही उच्चशिक्षित थे, इसलिए कोई परेशानी भी नहीं थी. डा. सोनू सिंह ऐशोआराम की जिंदगी जीने के बजाए सामाजिक कार्यों में रुचि लेती थीं. इसलिए एक एनजीओ बना कर उन्होंने गरीब बच्चों को पढ़ाने और उन का जीवनस्तर ऊंचा उठाने का बीड़ा उठाया.

सोनू सिंह ने करीब 8 साल पहले गुरुग्राम के फाजिलपुर में किराए का भवन ले कर गरीब बच्चों के लिए क्रिएटिव माइंड स्कूल खोला था. बाद में उन्होंने सेक्टर-49 में ‘दीप प्ले हाउस’ नाम से दूसरा स्कूल खोल लिया. इन दोनों स्कूलों का संचालन केवल गरीब बच्चों के उत्थान के लिए सोनू सिंह के एनजीओ के माध्यम से किया जाता था.

रसायन वैज्ञानिक होने के बावजूद डा. प्रकाश सिंह भी बच्चों को पढ़ाने का शौक रखते थे, इसलिए उन्होंने सोहना में ‘क्रिएटिव माइंड स्कूल’ खोल लिया. यह स्कूल बिना लाभहानि के चलाया जाता था. डा. प्रकाश ने अप्रैल 2018 में पलवल में व्यावसायिक नजरिए से एन.एस. पब्लिक स्कूल खोल लिया. पहले यह स्कूल एग्रीमेंट पर लिया गया बाद में दिसंबर, 2018 में इसे रजिस्ट्री करवा कर खरीद लिया गया.

डा. प्रकाश सिंह की बेटी अदिति जामिया हमदर्द से बी.फार्मा की पढ़ाई कर रही थी. इस साल वह अंतिम वर्ष की छात्रा थी. उस ने पढ़ाई के साथ सन फार्मा कंपनी में इंटर्नशिप भी शुरू कर दी थी. अदिति ने अपने दोस्तों के साथ मिल कर पिछले साल सोप डायनामिक्स नाम से स्टार्टअप शुरू किया था. सब से छोटा बेटा गुरुग्राम के ही डीएवी सीनियर सेकेंडरी स्कूल में कक्षा 9 में पढ़ रहा था.

डा. प्रकाश और उन की पत्नी सहित परिवार के चारों सदस्यों की मौत हो जाने से चारों स्कूलों के संचालन पर सवालिया निशान लग गए हैं. चारों स्कूलों में डेढ़ सौ से अधिक शैक्षणिक और गैरशैक्षणिक स्टाफ है. इन कर्मचारियों को वेतन और भविष्य की चिंता है. इस क ा मुख्य कारण है कि इन में 2 स्कूलों में खर्चे जितनी भी आदमनी नहीं होती है.

पुलिस को जांचपड़ताल में पता चला कि डा. प्रकाश के घर उन के रिश्तेदारों का बहुत कम आनाजाना था. ज्यादातर सोनू सिंह की बहन सीमा अरोड़ा ही यहां आती थीं. घटना से 10 दिन पहले भी वह परिवार के साथ यहां आई थीं. सीमा अरोड़ा के मुताबिक उस समय ऐसी कोई बात नजर नहीं आई थी, जिस का इतना भयावह परिणाम सामने आ सकता हो.

डा. प्रकाश के परिवार से बहुत कम लोग कभीकभार ही यहां आते थे. डा. प्रकाश की मां अपने अंतिम समय में यहां कुछ दिन रही थीं. डा. प्रकाश 5 भाईबहनों में तीसरे नंबर के थे. 2 बहनें उन से बड़ी थीं और 2 बहनें छोटी. इन में एक बड़ी बहन का निधन हो चुका है. एक बहन परिवार के साथ नोएडा में और 2 बहनें बनारस में ही रहती हैं. डा. प्रकाश के मातापिता का निधन हो चुका है.

पुलिस को आने लगी साजिश की गंध

पुलिस दूसरे दिन भी वैज्ञानिक के परिवार की मौत की गुत्थी सुलझाने में जुटी रही. हालांकि मौके के हालात और सुसाइड नोट से साफ था कि डा. प्रकाश ने पत्नी, बेटी व बेटे की हत्या के बाद खुद आत्महत्या की थी. लेकिन फिर भी पुलिस हर एंगल से जांच करती रही कि कहीं यह कोई साजिशपूर्ण तरीके से किसी बाहरी व्यक्ति की ओर से की गई वारदात तो नहीं है.

मामले की गुत्थी सुलझाने के लिए पुलिस को डा. प्रकाश के घर में बाथरूम में मिले 3 मोबाइल फोन से मदद मिलने की उम्मीद थी, इसलिए इन मोबाइलों की काल डिटेल्स निकलवाई गई. इस के अलावा इन मोबाइलों का डेटा रिकवर करने का प्रयास किया गया.

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फोरैंसिक लैब की जांच में पता चला कि बाथरूम में मिले 3 मोबाइलों में एक वाटरप्रूफ था, लेकिन उस पर पैटर्न लौक था, जिस से वह खुल नहीं सका. पुलिस को दूसरे दिन डा. प्रकाश के घर से 2 मोबाइल और मिले. ये मोबाइल भी बंद थे. इन को भी साइबर एक्सपर्ट के पास भेजा गया. उन के फ्लैट से मिले लैपटौप और आईपैड को जांच के लिए सीआईडी की साइबर लैब भेजा गया.

पुलिस ने अदिति के दोस्तों से भी अलगअलग पूछताछ की. इस में उन्होंने बताया कि अदिति ने उन से नौकरी छूटने की वजह से पापा के तनाव में होने की चर्चा की थी. अदिति के दोस्तों से पुलिस को ऐसी कोई ठोस वजह पता नहीं चली जिस से इस मामले की गुत्थी सुलझने में मदद मिलती. सन फार्मा कंपनी में पूछताछ में पता चला कि डा. प्रकाश ने स्वेच्छा से नौकरी छोड़ी थी. कंपनी में उन का पद और सैलरी पैकेज काफी अच्छा था. कंपनी में किसी से उन का कोई विवाद भी सामने नहीं आया.

बौद्ध धर्म से जुड़ी थीं डा. सोनू सिंह

डा. सोनू सिंह के बारे में पुलिस को पता चला कि उन का बौद्ध धर्म से जुड़ाव था. उन्होंने अपनी सोसायटी में बौद्ध धर्म के अनुयाइयों की कम्युनिटी भी बनाई हुई थी. इस कम्युनिटी की वह ग्रुप लीडर थीं. सोसायटी में सोनू सिंह को बोल्ड महिला माना जाता था जबकि प्रकाश सिंह सौम्य स्वभाव के थे.

तीसरे दिन भी काफी माथापच्ची और जांचपड़ताल के बावजूद पुलिस को इस मामले में कोई तथ्य हाथ नहीं लगा. यह जरूर पता चला कि सोनू सिंह, अदिति और आदित्य की हत्या में जिस चाकू का उपयोग किया गया था, वह करीब एक साल पहले डा. प्रकाश सिंह द्वारा ही खरीदा गया था. अदिति ने उस समय सोप डायनामिक्स स्टार्टअप शुरू किया था. वह घर में कौस्मेटिक व कुछ विशेष साबुन बनाती थी. साबुन व अन्य सामान के टुकड़े करने के लिए अदिति ने यह चाकू पिता से मंगवाया था.

डा. प्रकाश के घर मिले 4 कुत्तों को ले कर भी विवाद हो गया. ये कुत्ते अदिति का दोस्त उस की याद के रूप में सहेज कर अपने पास रखना चाहता था जबकि दूसरी तरफ अदिति की मौसी सीमा अरोड़ा इन कुत्तों को अपने साथ ले जाना चाहती थीं.

विवाद बढ़ने पर यह मामला पीपुल फौर एनिमल संस्था के जरिए सांसद मेनका गांधी तक पहुंच गया. मेनका गांधी के हस्तक्षेप से चारों कुत्तों को पुलिस की निगरानी में नैशनल डौग शेल्टर होम भेज दिया गया.

चौथे दिन नौकरानी जूली से पूछताछ में सामने आया कि सन फार्मा की नौकरी छोड़ने के बाद डा. प्रकाश अधिकांश समय घर पर रहते और यूट्यूब पर वीडियो देखते थे. इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि डा. प्रकाश ने शायद यूट्यूब देख कर हत्याकांड की योजना बनाई होगी.

नौकरानी ने बताया कि कुछ दिन पहले फ्लैट में फरनीचर का काम हुआ था. उस दौरान कारपेंटर अपना एक हथौड़ा इसी घर में छोड़ गया था. संभवत: इसी हथौड़े से डा. प्रकाश ने परिवार के 3 सदस्यों की जान ली.

पांचवें दिन पुलिस ने दोनों पक्षों के रिश्तेदारों की मौजूदगी में डा. प्रकाश के घर की तलाशी ली. इस की वीडियोग्राफी भी कराई गई. घर की अलमारियों और लौकरों में रखे दस्तावेजों की भी जांच की गई. हालांकि पुलिस को तलाशी और जांचपड़ताल में ऐसे कोई तथ्य नहीं मिले, जिस से डा. प्रकाश की परेशानी और इस हत्याकांड के पीछे के कारणों का पता चलता.

मोबाइल फोन का डेटा मिला डिलीट

छठे दिन पुलिस को मोबाइल फोनों की जांच रिपोर्ट मिली. इस में बताया गया कि डा. सोनू व अदिति के मोबाइल में डेटा नहीं मिला. वाट्सऐप चैट व गैलरी से फोटो, वीडियो डिलीट थे. इस से यह नया सवाल खड़ा हो गया कि क्या डा. प्रकाश ने हत्या के बाद पत्नी व बेटी के मोबाइल का डेटा डिलीट किया था.

अगर उन्होंने डेटा डिलीट किया था तो उस में ऐसे क्या मैसेज व फोटो थे. रिपोर्ट आने के बाद पुलिस ने इन मोबाइल फोनों के डेटा रिकवर करने के लिए साइबर एक्सपर्ट की मदद ली.

बाद में की गई जांच में पुलिस को ऐसे कोई तथ्य नहीं मिले, जिन से इस मामले में रहस्य की कोई परत उजागर हो पाती. इस बीच 8 जुलाई को डा. प्रकाश के परिजनों ने पुलिस उपायुक्त (पूर्व) सुलोचना गजराज को एक पत्र दे कर इस पूरे मामले को एक साजिश का परिणाम बताया और मामले की सीबीआई से जांच कराने की मांग की. परिजनों ने सुसाइड नोट की हस्तलिपि पर भी सवाल उठाए.

डा. प्रकाश की बड़ी बहन के दामाद कौशल का कहना था कि इस वारदात के पीछे जमीन का विवाद भी हो सकता है. इस का कारण है कि उन की मामीजी यानी सोनू सिंह के पिता की वाराणसी की जमीन को ले कर सोनू सिंह और उन की बहन के बीच विवाद था. पलवल वाले स्कूल की जमीन को ले कर भी कुछ विवाद चल रहा था. यह जमीन डा. प्रकाश ने अपनी बहन शकुंतला से पैसे उधार ले कर खरीदी बताई. परिजनों का यह भी कहना था कि डा. प्रकाश का 2 साल पहले मेदांता अस्पताल में बाइपास औपरेशन हुआ था. औपरेशन से उन की जिंदगी तो बच गई थी, लेकिन वे अंदर से पूरी तरह खोखले हो गए थे.

कई बिंदुओं पर चल रही है जांच

कौशल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और हरियाणा के मुख्यमंत्री को इस मामले में पत्र लिख कर सुसाइड नोट की हस्तलिपि और दस्तखतों पर भी सवाल उठाए हैं. इस के लिए उन्होंने डा. प्रकाश की ओर से कुछ दिन पहले दिए गए एक चैक की फोटोप्रति भी संलग्न की. कौशल के अनुसार, सुसाइड नोट पर किए हस्ताक्षर पर डा. प्रकाश के जैसे हस्ताक्षर बनाने का प्रयास किया गया है जबकि वे असली हस्ताक्षर नहीं हैं.

यह बात भी सामने आई कि डा. प्रकाश अपनी ससुराल वालों की वाराणसी की जमीन एकडेढ़ करोड़ रुपए में बेचना चाहते थे. इस जमीन पर सोनू सिंह की बहन भी दावा जता रही थीं. जमीन बेचने के सिलसिले में डा. प्रकाश जल्दी ही बनारस भी जाने वाले थे.

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चर्चा यह भी है कि डा. प्रकाश पर बैंकों और रिश्तेदारों का काफी कर्ज था. इस कर्ज को ले कर वह तनाव में थे. गुरुग्राम के मकान की किस्तें भी समय पर नहीं चुकाने की बात सामने आई थी.

सन फार्मा की नौकरी छोड़ने के बाद वह अलग से तनाव में थे. हालांकि कहा यही जा रहा है कि उन की हैदराबाद की एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में नई नौकरी की बात हो गई थी. इस के लिए वह 3 जुलाई को फ्लाइट से हैदराबाद भी जाने वाले थे, लेकिन इस से पहले ही यह मामला हो गया.

डा. प्रकाश की मौत के बाद उन की संपत्तियों को ले कर अलगअलग दावे जताने की चर्चा भी शुरू हो गई थी. हालांकि औपचारिक रूप से तो किसी पक्ष ने दावे नहीं किए थे, लेकिन दोनों ही पक्षों डा. प्रकाश और डा. सोनू सिंह के परिवार के लोग अपनेअपने तरीकों से डा. प्रकाश और उन की पत्नी की संपत्तियों और कर्ज के बारे में पता कर रहे थे.

कहा जा रहा है कि डा. प्रकाश की अधिकांश संपत्तियां उन की पत्नी सोनू सिंह के नाम से हैं. सोनू की बहन सीमा अरोड़ा ने डा. प्रकाश के कुछ स्कूल अभी खोलने के लिए स्टाफ को कह दिया है.

बहरहाल, डा. प्रकाश सिंह का हंसताखेलता खुशहाल परिवार उजड़ गया. कथा लिखे जाने तक पुलिस को इस मामले में ऐसा कोई सुराग नहीं मिला, जिस के जरिए रहस्य का वह परदा उठ पाए कि डा. प्रकाश ने अपनी जान से ज्यादा प्यारी बेटी और बेटे के अलावा पत्नी को मौत के घाट उतारने के बाद खुद आत्महत्या क्यों कर ली.

पुलिस को कोई चश्मदीद गवाह भी नहीं मिला. डा. प्रकाश के घर के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों से भी पुलिस कोई सुराग नहीं लगा सकी. ऐसे भी कोई साक्ष्य नहीं मिले कि इस वारदात में किसी बाहरी व्यक्ति का हाथ हो. इन सभी कारणों से वैज्ञानिक प्रकाश के परिवार की हत्या और आत्महत्या का मामला फिलहाल मिस्ट्री बन कर रह गया.

(कहानी सौजन्य- मनोहर कहानी)

समाज की डोर पर 2 की फांसी

लेखक- सुरेशचंद्र मिश्र

डेयरी संचालक भूरा राजपूत अपना काम निपटा कर वापस घर आया तो उस की नजर घरेलू कामों में लगीं बेटियों पर पड़ी. उन की 4 बेटियों में 3 तो घर में थीं लेकन सब से बड़ी बेटी शैफाली घर में नजर नहीं आई. उन्होंने पत्नी से पूछा, ‘‘रेनू, शैफाली दिखाई नहीं दे रही. वह कहीं गई है क्या?’’

‘‘अपनी सहेली शिवानी के घर गई है. कह रही थी, उस की किताबें वापस करनी हैं.’’ रेनू ने पति को बताया.

पत्नी की बात सुन कर भूरा झल्ला उठा, ‘‘मैं ने तुम्हें कितनी बार समझाया है कि शैफाली को अकेले घर से मत जाने दिया करो, लेकिन मेरी बात तुम्हारे दिमाग में घुसती कहां है. उसे जाना ही था तो अपनी छोटी बहन को साथ ले जाती. उस पर अब मुझे कतई भरोसा नहीं है.’’  पति की बात सही थी. इसलिए रेनू ने कोई जवाब नहीं दिया. शैफाली सुबह 10 बजे अपनी मां रेनू से यह कह घर से निकली थी कि वह शिवानी को किताबें वापस कर घंटा सवा घंटा में वापस आ जाएगी. लेकिन दोपहर एक बजे तक भी वह घर नहीं लौटी थी. उसे गए हुए 3 घंटे हो गए थे. जैसेजैसे समय बीतता जा रहा था, वैसेवैसे रेनू और उस के पति भूरा की चिंता बढ़ती जा रही थी.

रेनू बारबार उस का मोबाइल नंबर मिला रही थी, लेकिन उस का मोबाइल स्विच्ड औफ था. जब भूरा से नहीं रहा गया तो शैफाली का पता लगाने के लिए घर से निकल पड़ा. उस ने बेटे अशोक को भी साथ ले लिया था.

शैफाली की सहेली शिवानी का घर गांव के दूसरे छोर पर था. भूरा राजपूत वहां पहुंचा तो घर का दरवाजा अंदर से बंद था. भूरा ने दरवाजा खटखटाया तो कुछ देर बाद शिवानी के भाई संदीप ने दरवाजा खोला. शैफाली के पिता को देख कर संदीप घबरा गया. लेकिन अपनी घबराहट को छिपाते हुए उस ने पूछा, ‘‘अंकल आप, कैसे आना हुआ?’’

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भूरा गुस्से में बोला, ‘‘शैफाली और शिवानी कहां हैं?’’

‘‘अंकल शैफाली तो यहां नहीं आई. मेरी बहन शिवानी मातापिता और भाई के साथ गांव गई है. वे लोग 2 दिन बाद वापस आएंगे.’’ संदीप ने जवाब दिया.

संदीप की बात सुन कर भूरा अपशब्दों की बौछार करते हुए बोला, ‘‘संदीप, तू ज्यादा चालाक मत बन. तू ने मेरी भोलीभाली बेटी को अपने प्यार के जाल में फंसा रखा है. तू झूठ बोल रहा है कि शैफाली यहां नहीं आई. उसे जल्दी से घर के बाहर निकाल वरना पुलिस ला कर तेरी ऐसी ठुकाई कराऊंगा कि प्रेम का भूत उतर जाएगा.’’  ‘‘अंकल मैं सच कह रहा हूं, शैफाली नहीं आई. न ही मैं ने उसे छिपाया है.’’ संदीप ने फिर अपनी बात दोहराई.

यह सुनते ही भूरा संदीप से भिड़ गया. उस ने संदीप के साथ हाथापाई की. फिर पुलिस लाने की धमकी दे कर चला गया. उस के जाते ही संदीप ने दरवाजा बंद कर लिया. यह बात 13 जून, 2019 की है. भूरा राजपूत लगभग 2 बजे पुलिस चौकी मंधना पहुंचा. संयोग से उस समय बिठूर थाना प्रभारी विनोद कुमार सिंह भी चौकी पर मौजूद थे. भूरा ने उन्हें बताया, ‘‘सर, मेरा नाम भूरा राजपूत है और मैं कछियाना गांव का रहने वाला हूं. मेरे गांव में संदीप रहता है. उस ने मेरी बेटी शैफाली को बहलाफुसला कर अपने घर में छिपा रखा है. शायद वह शैफाली को साथ भगा ले जाना चाहता है. आप मेरी बेटी को मुक्त कराएं.’’

चूंकि मामला लड़की का था. थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह पुलिस के साथ कछियाना गांव निवासी संदीप के घर जा पहुंचे. घर का मुख्य दरवाजा बंद था. थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह ने दरवाजे की कुंडी खटखटाई, साथ ही आवाज भी लगाई. लेकिन अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. संदीप के दरवाजे पर पुलिस देख कर पड़ोसी भी अपने घरों से बाहर आ गए. वे लोग जानने की कोशिश कर रहे थे कि आखिर संदीप के घर ऐसा क्या हुआ जो पुलिस आई है. जब दरवाजा नहीं खुला तो थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह सहयोगी पुलिसकर्मियों के साथ पड़ोसी विजय तिवारी की छत से हो कर संदीप के घर में दाखिल हुए.

घर के अंदर एक कमरे का दृश्य देख कर सभी पुलिस वाले दहल उठे. कमरे के अंदर संदीप और शैफाली के शव पंखे के सहारे साड़ी के फंदे से झूल रहे थे. इस के बाद गांव में कोहराम मच गया. भूरा राजपूत और उस की पत्नी रेनू बेटी का शव देख कर फफक पड़े. शैफाली की बहनें भी फूटफूट कर रोने लगीं. पड़ोसी विजय तिवारी ने संदीप द्वारा आत्महत्या करने की सूचना उस के पिता दिनेश कमल को दे दी.

थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह ने प्रेमी युगल द्वारा आत्महत्या करने की बात वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी तो कुछ देर बाद एसपी (पश्चिम) संजीव सुमन तथा सीओ अजीत कुमार घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया.

उस के बाद पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया और फंदों से लटके शव नीचे उतरवाए. मृतक संदीप की उम्र 20-22 वर्ष थी, जबकि मृतका शैफाली की उम्र 18 वर्ष के आसपास. मौके पर फोरैंसिक टीम ने भी जांच की.

टीम ने मृतक संदीप की जेब से मिले पर्स व मोबाइल को जांच के लिए कब्जे में ले लिया. मृतका शैफाली की चप्पलें और मोबाइल भी सुरक्षित रख ली गईं. पुलिस टीम ने वह साड़ी भी जांच की काररवाई में शामिल कर ली. जिस से प्रेमीयुगल ने फांसी लगाई थी.

दोनों के परिजनों ने लगाए एकदूसरे पर आरोप

अब तक मृतक संदीप के मातापिता  व भाईबहन भी गांव से लौट आए थे और शव देख कर बिलखबिलख कर रोने लगे. संदीप की मां माधुरी गांव जाने से पहले उस के लिए परांठा सब्जी बना कर रख कर गई थी. संदीप ने वही खाया था.

पुलिस अधिकारियों ने मृतकों के परिजनों से घटना के संबंध में पूछताछ की और दोनों के शव पोस्टमार्टम हेतु लाला लाजपत राय अस्पताल कानपुर भिजवा दिए. मृतकों के परिजन एकदूसरे पर दोषारोपण कर रहे थे, जिस से गांव में तनाव की स्थिति बनती जा रही थी. इसलिए पुलिस अधिकारियों ने सुरक्षा की दृष्टि से गांव में पुलिस तैनात कर दी. साथ ही आननफानन में पोस्टमार्टम करा कर शव उन के घर वालों को सौंप दिए.

कानपुर महानगर से 15 किलोमीटर दूर जीटी रोड पर एक कस्बा है मंधना. जो थाना बिठूर के क्षेत्र में आता है. मंधना कस्बे से कुरसोली जाने वाली रोड पर एक गांव है कछियाना. मंधना कस्बे से मात्र एक किलोमीटर दूर बसा यह गांव सभी भौतिक सुविधाओं वाला गांव है.

भूरा राजपूत अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता है. उस के परिवार में पत्नी रेनू के अलावा एक बेटा अशोक तथा 4 बेटियां शैफाली, लवली, बबली और अंजू थीं. भूरा राजपूत डेयरी चलाता था. इस काम में उसे अच्छी आमदनी होती थी. उस की आर्थिक स्थिति मजबूत थी.

भाईबहनों में बड़ी शैफाली थी. वह आकर्षक नयननक्श वाली सुंदर युवती थी. वैसे भी जवानी में तो हर युवती सुंदर लगती है. शैफाली की तो बात ही कुछ और थी. वह जितनी खूबसूरत थी, पढ़ने में उतनी ही तेज थी. उस ने सरस्वती शिक्षा सदन इंटर कालेज मंधना से हाईस्कूल पास कर लिया था. फिलहाल वह 11वीं में पढ़ रही थी.

पढ़ाईलिखाई में तेज होने के कारण उस के नाजनखरे कुछ ज्यादा ही थे. लेकिन संस्कार अच्छे थे. स्वभाव से वह तेजतर्रार थी, पासपड़ोस के लोग उसे बोल्ड लड़की मानते थे.

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कछियाना गांव के पूर्वी छोर पर दिनेश कमल रहते थे. उन के परिवार में पत्नी माधुरी के अलावा 2 बेटे थे. संदीप उर्फ गोलू, प्रदीप उर्फ मुन्ना और बेटी शिवानी थी. दिनेश कमल मूल रूप से कानपुर देहात जनपद के रूरा थाने के अंतर्गत चिलौली गांव के रहने वाले थे. वहां उन की पुश्तैनी जमीन थी. जिस में अच्छी उपज होती थी. दिनेश ने कछियाना गांव में ही एक प्लौट खरीद कर मकान बनवा लिया था. इस मकान में वह परिवार सहित रहते थे. वह चौबेपुर स्थित एक फैक्ट्री में काम करते थे.

दिनेश कमल का बेटा संदीप और बेटी शिवानी पढ़ने में तेज थे. इंटरमीडिएट पास करने के बाद संदीप ने आईटीआई कानपुर में दाखिला ले लिया. वह मशीनिस्ट ट्रेड से पढ़ाई कर रहा था.

शैफाली की सहेली का भाई था संदीप

शिवानी और शैफाली एक ही गांव की रहने वाली थीं, एक ही कालेज में साथसाथ पढ़ती थीं. अत: दोनों में गहरी दोस्ती थीं. दोनों सहेलियां एक साथ साइकिल से कालेज आतीजाती थीं. जब कभी शैफाली का कोर्स पिछड़ जाता तो वह शिवानी से कौपीकिताब मांग कर कोर्स पूरा कर लेती और जब शिवानी पिछड़ जाती तो शैफाली की मदद से काम पूरा कर लेती. दोनों के बीच जातिबिरादरी का भेद नहीं था. लंच बौक्स भी दोनों मिलबांट कर खाती थीं.

एक रोज कालेज से छुट्टी होने के बाद शिवानी और शैफाली घर वापस आ रही थीं. तभी रास्ते में अचानक शैफाली का दुपट्टा उस की साइकिल की चेन में फंस गया. शैफाली और शिवानी दुपट्टा निकालने का प्रयास कर रही थीं, लेकिन वह निकल नहीं रहा था.

उसी समय पीछे से शिवानी का भाई संदीप आ गया. वह मंधना बाजार से सामान ले कर लौट रहा था. उस ने शिवानी को परेशान हाल देखा तो स्कूटर सड़क किनारे खड़ा कर के पूछा, ‘‘क्या बात है शिवानी, तुम परेशान दिख रही हो?’’

‘‘हां, भैया देखो ना शैफाली का दुपट्टा साइकिल की चेन में फंस गया है. निकल ही नहीं रहा है.’’

‘‘तुम परेशान न हो, मैं निकाल देता हूं.’’ कहते हुए संदीप ने प्रयास किया तो शैफाली का दुपट्टा निकल गया. उस रोज संदीप और शैफाली की पहली मुलाकात हुई. पहली ही नजर में दोनों एकदूसरे की ओर आकर्षित हो गए. खूबसूरत शैफाली को देख कर संदीप को लगा यही मेरी सपनों की रानी है. हृष्टपुष्ट स्मार्ट संदीप को देख कर शैफाली भी प्रभावित हो गई.

सहेली के भाई से हो गया प्यार

उसी दिन से दोनों के दिलों में प्यार की भावना पैदा हुई तो मिलन की उमंगें हिलोरें मारने लगीं. आखिर एक रोज शैफाली से नहीं रहा गया तो उस के कदम संदीप के घर की ओर बढ़ गए. उस रोज शनिवार था. आसमान पर घने बादल छाए थे, ठंडी हवा चल रही थी. संदीप घर पर अकेला था. वह कमरे में बैठा टीवी पर आ रही फिल्म ‘एक दूजे के लिए’ देख रहा था. तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. संदीप ने दरवाजा खोला तो सामने खड़ी शैफाली मुसकरा रही थी.

‘‘शिवानी है?’’ वह बोली.

‘‘वह तो मां के साथ बाजार गई है, आओ बैठो. मैं शिवानी को फोन कर देता हूं.’’ संदीप ने कहा.

‘‘मैं बाद में आ जाऊंगी.’’ शैफाली ने कहा ही था कि मूसलाधार बारिश शुरू हो गई.

‘‘अब कहां जाओगी?’’

‘‘जी.’’ कहते हुए शैफाली कमरे में आ गई और संदीप के पास बैठ कर फिल्म देखने लगी.

कमरे का एकांत हो 2 युवा विपरीत लिंगी बैठे हों, और टीवी पर रोमांटिक फिल्म चल रही हो तो माहौल खुदबखुद रूमानी हो जाता है. ऐसा ही हुआ भी शैफाली ने फिल्म देखतेदेखते संदीप से कहा, ‘‘संदीप एक बात पूछूं?’’

‘‘पूछो?’’

‘‘प्यार करने वालों का अंजाम क्या ऐसा ही होता है.’’

‘‘कोई जरूरी नहीं.’’ संदीप ने कहा, ‘‘प्यार  करने वाले अगर समय के साथ खुद अनुकूल फैसला लें और समझौता न कर के आगे बढ़ें तो उन का अंत सुखद होगा.’’

‘‘अपनी बात तो थोड़ा स्पष्ट करो.’’

‘‘देखो शैफाली, मैं समझौतावादी नहीं हूं. मैं तो तुरतफुरत में विश्वास करता हूं और दूसरे मेरा मानना है कि जो चीज सहज हासिल न हो उसे खरीद लो.’’

‘‘अच्छा संदीप अगर मैं कहूं कि मैं तुम से प्यार करती हूं, तब तुम मेरा प्यार हासिल करना चाहोगे या खरीदना पसंद करोगे?’’

शैफाली के सवाल पर संदीप चौंका. उस का चौंकना स्वाभाविक था. वह यह तो जानता था कि शैफाली बोल्ड लड़की है, लेकिन उस की बोल्डनैस उसे क्लीन बोल्ड कर देगी, वह नहीं जानता था. संदीप, शैफाली के प्रश्न का उत्तर दे पाता, उस के पहले ही शिवानी मां के साथ बाजार से लौट आई. आते ही शिवानी ने चुटकी ली, ‘‘शैफाली, संदीप भैया से मिल लीं. आजकल तुम्हारे ही गुणगान करता रहता है ये.’’

‘‘धत…’’ शैफाली ने शरमाते हुए उसे झिड़क दिया. फिर कुछ देर दोनों सहेलियां हंसीमजाक करती रहीं. थोड़ा रुक कर शैफाली अपने घर चली गई.

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बढ़ने लगा प्यार का पौधा

उस दिन के बाद दोनों में औपचारिक बातचीत होने लगी. दिल धीरेधीरे करीब आ रहे थे. संदीप शैफाली को पूरा मानसम्मान देने लगा था. जब भी दोनों का आमनासामना होता, संदीप मुसकराता तो शैफाली के होंठों पर भी मुसकान तैरने लगती. अब दोनों की मुसकराहट लगातार रंग दिखाने लगी थी.

एक रविवार को संदीप यों ही स्कूटर से घूम रहा था कि इत्तेफाक से उस की मुलाकात शैफाली से हो गई. शैफाली कुछ सामान खरीदने मंधना बाजार गई थी. चूंकि शैफाली के मन में संदीप के प्रति चाहत थी. इसलिए उसे संदीप का मिलना अच्छा लगा. उसने मुसकरा कर पूछा, ‘‘तुम बाजार में क्या खरीदने आए थे?’’  ‘‘मैं बाजार से कुछ खरीदने नहीं बल्कि घूमने आया था. मुझे पंडित रेस्तरां की चाय बहुत पसंद है. तुम भी मेरे साथ चलो. तुम्हारे साथ हम भी वहां एक कप चाय पी लेंगे.’’  ‘‘जरूर.’’ शैफाली फौरन तैयार हो गई.

पास ही पंडित रेस्तरां था. दोनों जा कर रेस्तरां में बैठ गए. चायनाश्ते का और्डर देने के बाद संदीप शैफाली से मुखातिब हुआ, ‘‘बहुत दिनों से मैं तुम से अपने मन की बात कहना चाह रहा था. आज मौका मिला है, इसलिए सोच रहा हूं कि कह ही दूं.’’

शैफाली की धड़कनें तेज हो गईं. वह समझ रही थी कि संदीप के मन में क्या है और वह उस से क्या कहना चाह रहा है. कई बार शैफाली ने रात के सन्नाटे में संदीप के बारे में बहुत सोचा था.

उस के बाद इस नतीजे पर पहुंची थी कि संदीप अच्छा लड़का है. जीवनसाथी के लिए उस के योग्य है. लिहाजा उस ने सोच लिया था कि अगर संदीप ने प्यार का इजहार किया तो वह उस की मोहब्बत कबूल कर लेगी.

‘‘जो कहूंगा, अच्छा ही कहूंगा.’’ कहते हुए संदीप ने शैफाली का हाथ पकड़ा और सीधे मन की बात कह दी, ‘‘शैफाली मैं तुम से प्यार करने लगा हूं.’’

शैफाली ने उसे प्यार की नजर से देखा, ‘‘मैं भी तुम से प्यार करती हूं संदीप, और यह भी जानती हूं कि प्यार में कोई शर्त नहीं होती. लेकिन दिल की तसल्ली के लिए एक प्रश्न पूछना चाहती हूं. यह बताओ कि मोहब्बत के इस सिलसिले को तुम कहां तक ले जाओगे?’’

साथ निभाने की खाईं कसमें

‘‘जिंदगी की आखिरी सांस तक.’’ संदीप भावुक हो गया, ‘‘शैफाली, मेरे लफ्ज किसी तरह का ढोंग नहीं हैं. मैं सचमुच तुम से प्यार करता हूं. प्यार से शुरू हो कर यह सिलसिला शादी पर खत्म होगा. उस के बाद हमारी जिंदगी साथसाथ गुजरेगी.’’

शैफाली ने भी भावुक हो कर उस के हाथ पर हाथ रख दिया, ‘‘प्यार के इस सफर में मुझे अकेला तो नहीं छोड़ दोगे?’’

‘‘शैफाली,’’ संदीप ने उस का हाथ दबाया, ‘‘जान दे दूंगा पर इश्क का ईमान नहीं जाने दूंगा.’’

शैफाली ने संदीप के होंठों को तर्जनी से छुआ और फिर उंगली चूम ली. उस की आंखों की चमक बता रही थी कि उसे जैसे चाहने वाले की तमन्ना थी, वैसा ही मिल गया है.

शैफाली और संदीप की प्रेम कहानी शुरू हो चुकी थी. गुपचुप मेलमुलाकातें और जीवन भर साथ निभाने के कसमेवादे, दिनोंदिन उन का पे्रमिल रिश्ता चटख होता गया. दोनों का मेलमिलाप कराने में शैफाली की सहेली शिवानी अहम भूमिका निभाती रही.

एक दिन प्यार के क्षणों में बातोंबातों में संदीप ने बोला, ‘‘शैफाली, अपने मिलन के अब चंद महीने बाकी हैं. मैं कानपुर आईटीआई से मशीनिस्ट टे्रड का कोर्स कर रहा हूं. मेरा यह आखिरी साल है. डिप्लोमा मिलते ही मैं तुम से शादी कर लूंगा.’’

संदीप की बात सुन कर शैफाली खिलखिला कर हंस पड़ी.

संदीप ने अचकचा कर उसे देखा, ‘‘मैं इतनी सीरियस बात कर रहा हूं और तुम हंस रही हो.’’

‘‘बचकानी बात करोगे तो मुझे हंसी आएगी ही.’’

‘‘मैं ने कौन सी बचकानी बात कह दी?’’

‘‘शादी की बात.’’ शैफाली ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘बुद्धू शादी के बाद पत्नी की सारी जिम्मेदारियां पति की हो जाती हैं. एक पैसा तुम कमाते नहीं हो, मुझे खिलाओगे कैसे? मेरे खर्च और शौक कैसे पूरे करोगे?’’

‘यह मैं ने पहले से सोच रखा है,’’ संदीप बोला, ‘‘डिप्लोमा मिलते ही मैं दिल्ली या नोएडा जा कर कोई नौकरी कर लूंगा. शादी के बाद हम दिल्ली में ही अपनी अलग दुनिया बसाएंगे.’’

बनाने लगे सपनों का महल

संदीप की यह बात शैफाली को मन भा गई. दिल्ली उस के भी सपनों का शहर था. इसीलिए संदीप ने उस से दिल्ली में बसने की बात कही तो उस का मन खुशी से झूम उठा.

संदीप और शैफाली का प्यार परवान चढ़ ही रहा था कि एक दिन उन का भांडा फूट गया. हुआ यूं कि उस रोज शैफाली अपने कमरे में मोबाइल पर संदीप से प्यार भरी बातें कर रही थी. उस की बातें मां रेनू ने सुनीं तो उन का माथा ठनका. कुछ देर बाद उन्होंने उस से पूछा, ‘‘शैफाली, ये संदीप कौन है? उस से तुम कैसी अटपटी बातें करती हो?’’

शैफाली न डरी न लजाई, उस ने बता दिया, ‘‘मां संदीप मेरी सहेली शिवानी का भाई है. गांव के पूर्वी छोर पर रहता है. बहुत अच्छा लड़का है. हम दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं.’’

रेनू कुछ देर गंभीरता से सोचती रही, फिर बोली, ‘‘बेटी अभी तो तुम्हारी पढ़नेलिखने की उम्र है. प्यारव्यार के चक्कर में पड़ गई. वैसे तुम्हारी पसंद से शादी करने पर मुझे कोई एतराज नहीं है. किसी दिन उस लड़के को घर ले अना, मैं उस से मिल लूंगी और उस के बारे में पूछ लूंगी. सब ठीकठाक लगा तो तुम्हारे पापा को शादी के लिए राजी कर लूंगी.’’

3-4 दिन बाद शैफाली ने संदीप को चाय पर बुला लिया. होने वाली सास ने बुलाया है. यह जान कर संदीप के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. उसे विश्वास हो था कि शैफाली के घर वालों की स्वीकृति के बाद वह अपने घर वालों को भी मना लगा. उस ने अभी तक अपने मांबाप को अपने प्यार के बारे में कुछ भी नहीं बताया था. घर में उस की बहन शिवानी ही उस की प्रेम कहानी जानती थी.

शैफाली की मां रेनू ने संदीप को देखा तो उस की शक्ल सूरत, कदकाठी तो उन्हें पसंद आई. लेकिन जब जाति कुल के बारे में पूछा तो रेनू की आंखों के आगे अंधेरा छा गया. संदीप दलित समाज का था.

नहीं बनी शादी की बात

संदीप के जाने के बाद रेनू ने शैफाली को डांटा, ‘‘यह क्या गजब किया. दिल लगाया भी तो एक दलित से. राजपूत और दलित का रिश्ता नहीं हो सकता. तू भूल जा उसे, इसी में हम सब की भलाई है. समाज उस से तुम्हारा रिश्ता स्वीकर नहीं करेगा. हम सब का हुक्कापानी बंद हो जाएगा. तुम्हारी अन्य बहनें भी कुंवारी बैठी रह जाएंगी. भाई को भी कोई अपनी बहनबेटी नहीं देगा.’’

शैफाली ने ठंडे दिमाग से सोचा तो उसे लगा कि मां जो कह रही हैं, सही बात है. इसलिए उस ने उस वक्त तो मां से वादा कर लिया कि वह संदीप को भूल जाएगी. लेकिन वह अपना वादा निभा नहीं सकी. वह संदीप को अपने दिल से निकाल नहीं पाई.

संदीप के बारे में वह जितना सोचती थी उस का प्यार उतना ही गहरा हो जाता. आखिर उस ने निश्चय कर लिया कि चाहे जो भी हो, वह संदीप का साथ नहीं छोड़ेगी. शादी भी संदीप से ही करेगी.

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भूरा राजपूत को शैफाली और संदीप की प्रेम कहानी का पता चला तो उस ने पहले तो पत्नी रेनू को आड़े हाथों लिया, फिर शैफाली को जम कर फटकार लगाई. साथ ही चेतावनी भी दी, ‘‘शैफाली, तू कान खोल कर सुन ले, अगर तू इश्क के चक्कर में पड़ी तो तेरी पढ़ाई लिखाई बंद हो जाएगी और तुझे घर से बाहर जाने की इजाजत नहीं मिलेगी.’’

घर वालों के विरोध के कारण शैफाली भयभीत रहने लगी. वह अच्छी तरह जान गई थी कि परिवार वाले उस की शादी किसी भी कीमत पर संदीप के साथ नहीं करेंगे. उस ने यह बात संदीप को बताई तो उस का दिल बैठ गया. वह बोला, ‘‘शैफाली घर वाले विरोध करेंगे तो क्या तुम मुझे ठुकरा दोगी?’’

‘‘नहीं संदीप, ऐसा कभी नहीं होगा., मैं तुम से प्यार करती हूं और हमेशा करती रहूंगी. हम साथ जिएंगे, साथ मरेंगे.’’

‘‘मुझे तुम से यही उम्मीद थी, शैफाली.’’ कहते हुए संदीप ने उसे अपनी बांहों में भर लिया. उस की आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे.

रेनू अपनी बेटी शैफाली पर भरोसा करती थीं. उन्हें विश्वास था कि समझाने के बाद उस के सिर से इश्क का भूत उतर गया है. इसलिए उन्होंने शैफाली के घर से बाहर जाने पर एतराज नहीं किया. लेकिन उस का पति भूरा राजपूत शैफाली पर नजर रखता था. उस ने  पत्नी से कह रखा था कि शैफाली जब भी घर से निकले, छोटी बहन के साथ निकले.

संदीप ने बुला लिया शैफाली को

13 जून, 2019 की सुबह 8 बजे संदीप के पिता दिनेश कमल अपनी पत्नी माधुरी बेटी शिवानी तथा बेटे मुन्ना के साथ अपने गांव चिलौली (कानपुर देहात) चले गए. दरअसल, बरसात शुरू हो गई थी. उन्हें मकान की मरम्मत करानी थी. उन्हें वहां सप्ताह भर रुकना था. जाते समय संदीप की मां माधुरी ने उस से कहा, ‘‘बेटा संदीप, मैं ने पराठा, सब्जी बना कर रख दी है. भूख लगने पर खा लेना.’’.

मांबाप, भाईबहन के गांव चले जाने के बाद घर सूना हो गया. ऐसे में संदीप को तन्हाई सताने लगी. इस तनहाई को दूर करने के लिए उस ने अपनी प्रेमिका शैफाली को फोन किया, ‘‘हैलो, शैफाली आज मैं घर पर अकेला हूं. घर के सभी लोग गांव गए हैं. तुम्हारी याद सता रही थी. इसलिए जैसे भी हो तुम मेरे घर आ जाओ.’’

‘‘ठीक है संदीप, मैं आने की कोशिश करूंगी.’’ इस के बाद शैफाली तैयार हुई और मां से प्यार जताते हुए बोली, ‘‘मां, कुछ दिन पहले मैं अपनी सहेली शिवानी से कुछ किताबें लाई थी. उसे किताबें वापस करने उस के घर जाना है. घंटे भर बाद वापस आ जाऊंगी.’’ मां ने इस पर कोई ऐतराज नहीं किया.

शैफाली किताबें वापस करने का बहाना बना कर घर से निकली ओर संदीप के घर जा पहुंची. संदीप उस का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. उस के आते ही संदीप ने उसे बांहों में भर कर चुंबनों की झड़ी लगा दी. इस के बाद दोनों प्रेमालाप में डूब गए.

दोनों ने लगा लिया मौत को गले

इधर भूरा राजपूत घर पहुंचा तो उसे अन्य बेटियां तो घर में दिखीं पर शैफाली नहीं दिखी. उस ने पत्नी से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह सहेली के घर किताबें वापस करने लगने लगी थी. यह सुनते ही भूरा का मथा ठनका. उसे शक हुआ कि शैफाली बहाने से घर से निकली है और प्रेमी संदीप से मिलने गई है.

भूरा ने कुछ देर शैफाली के लौटने का इंतजार किया, फिर उस की तलाश में घर से निकल से निकल पड़ा. वह सीधा संदीप के घर पहुंचा. संदीप घर पर ही था. शैफाली के बारे में पूछने पर उस ने भूरा से झूठ बोल दिया कि शैफाली उस के घर नहीं है. शैफाली को ले कर भूरा की संदीप से हाथापाई भी हुई फिर वह पुलिस लाने की धमकी दे कर वहां से पुलिस चौकी चला गया.

संदीप ने शैफाली को घर में ही छिपा दिया था. पिता की धमकी से वह डर गई थी. उस ने संदीप से कहा, ‘‘संदीप, घर वाले हम दोनों को एक नहीं होने देंगे. और मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकती. अब तो बस एक ही रास्ता बचा है वह है मौत का. हम इस जन्म में न सही अगले जन्म में फिर मिलेंगे.’’

संदीप ने शैफाली को गौर से देखा फिर बोला, ‘‘शैफाली मैं भी तुहारे बिना नहीं जी सकता. मैं तुम्हारा साथ दूंगा. इस के बाद दोनों ने मिल कर पंखे के कुंडे से साड़ी बांधी और साड़ी के दोनों किनारों का फंदा बनाया, एकएक फंदा डाल कर दोनों झूल गए. कुछ ही देर में उन की मौत हो गई.

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इधर भूरा राजपूत अपने साथ पुलिस ले कर संदीप के घर पहुंचा. बाद में पुलिस को कमरे में संदीप और शैफाली के शव फंदों से झूले मिले. इस के बाद तो दोनों परिवारों में कोहराम मच गया.

(कहानी सौजन्य- मनोहर कहानी )

पटना की सबसे बड़ी डकैती

उस दिन तारीख थी 21 जून. दोपहर करीब एक बजे का समय रहा होगा. सूरज अपने पूरे तेवर दिखा रहा था. लगता था जैसे आसमान से आग बरस रही हो. तेज गरमी और उमस के कारण बाजारों में ज्यादा भीड़भाड़ नहीं थी. बिहार की राजधानी पटना में दीघा-आशियाना रोड पर आभूषणों का नामी शोरूम पंचवटी रत्नालय है. इस शोरूम में उस समय कोई ग्राहक नहीं था. शोरूम मालिक रत्नेश शर्मा को भूख लगी थी. वैसे भी दोपहर के भोजन का समय हो गया था.

उन्होंने सोचा कि कोई ग्राहक नहीं है तो क्यों न इस समय का सदुपयोग कर के भोजन कर लें. शोरूम में 8 कर्मचारी अपनीअपनी सीट पर बैठे ग्राहकों का इंतजार कर रहे थे. गार्ड दीपू श्रीवास्तव शोरूम के अंदर गेट पर बैठा हुआ था.

रत्नेश शर्मा इसी उधेड़बुन में थे कि भोजन करने बैठें या कुछ देर और रुकें. इतनी देर में 2 ग्राहक गेट खोल कर शोरूम में आए. ग्राहकों को देख कर रत्नेश शर्मा और शोरूम के कर्मचारियों के चेहरे पर खुशी आ गई. दोनों ग्राहकों ने एक शोकेस पर पहुंच कर कहा, ‘‘भैया, हमें डायमंड के ईयरिंग्स लेने हैं, कोई लेटेस्ट डिजाइन वाले दिखाओ.’’

शोरूम के कर्मचारी ने दोनों ग्राहकों को शोकेस के सामने रखी आरामदायक कुरसी पर बैठने का इशारा किया और अलमारी से डायमंड के ईयरिंग्स निकालने लगा. शोरूम कर्मचारियों को अचानक याद आया कि ये ग्राहक तो 1-2 बार पहले भी आए थे, लेकिन खरीदारी कुछ नहीं की थी.

कर्मचारियों ने उन में से एक ग्राहक को पहचान लिया था, लेकिन आमतौर पर कई बार ऐसा होता है कि ग्राहक को भले ही किसी दुकान पर कोई चीज पसंद न आए. लेकिन वह दोबारा उस दुकान पर खरीदारी करने पहुंचता है.

उसी दौरान 8-10 युवक तेजी से शोरूम के अंदर घुस आए. इन में से 3 युवकों के चेहरे हेलमेट से ढंके हुए थे. 2-3 युवकों ने चेहरा गमछे से इस तरह ढंका हुआ था, जैसे गरमी से परेशान लोग ढंक लेते हैं. उन में से 2-3 युवकों के चेहरे खुले हुए थे. इन सभी युवकों के पास हाथ में या पीठ पर बैग था. इन में से कुछ युवक जींस और कुछ पैंट टीशर्ट पहने हुए थे.

शोरूम में घुसते ही 3-4 युवकों ने पिस्टल वगैरह निकाल ली. बाद में आए युवकों को देख कर डायमंड के ईयरिंग्स खरीदने आए दोनों युवकों ने भी अपने बैग से हथियार निकाल लिए. उन लोगों के हाथ में पिस्टल देख कर गार्ड दीपू श्रीवास्तव ने विरोध करने का प्रयास किया, तो एक युवक ने उस के सिर पर पिस्टल के बट से हमला कर दिया. इस से दीपक के सिर से खून बहने लगा.

गार्ड दीपू पर हमला होते देख कर शोरूम मालिक रत्नेश शर्मा आगे बढ़े तो एक युवक ने उन के सिर में भी पिस्टल से हमला कर दिया. उन के सिर से भी खून रिसने लगा. रत्नेश समझ गए कि वे लोग बदमाश हैं और शोरूम में डाका डालने आए हैं.

रत्नेश ने दुनिया देखी थी, उन्हें पता था कि ऐसे मौके पर विरोध करने का मतलब अपनी जान जोखिम में डालना होता है. इसलिए उन्होंने बदमाशों से कहा, ‘‘तुम्हें जो ले जाना है, ले जाओ लेकिन ये पिस्टल, तमंचे वगैरह दूर रखो.’’

शोरूम मालिक की बात सुन कर उन युवकों में हावभाव से सरगना नजर आ रहे अच्छी कदकाठी और खुले चेहरे वाले युवक ने कहा, ‘‘सेठजी, समझदार हो. तुम इस दुकान का बीमा करवाए हो न, ज्यादा होशियार बनोगे तो यहीं ठोंक देंगे.’’

ठोंकने की धमकी सुन कर शोरूम के कर्मचारी सहम गए. सरगना ने शोरूम के कर्मचारियों से अपनेअपने मोबाइल देने को कहा. कर्मचारियों ने अपने मोबाइल दे दिए तो सरगना ने शोरूम के कर्मचारियों को एक तरफ जमीन पर बैठा दिया.

इस के बाद सरगना ने शोरूम का गेट अंदर से बंद कर लिया और गेट पर एक कुरसी लगा कर बैठ गया. उस के निर्देशों पर उन बदमाशों ने शोरूम की एकएक अलमारी और शोकेसों को खंगाल कर सारे कीमती आभूषण निकाल लिए. इस बीच सरगना अपने गुर्गों को लगातार हिदायत देता रहा कि जल्दी करो और शांत रहो.वह शोरूम के कोने में जमीन पर बैठे कर्मचारियों को भी बीचबीच में धमकाता रहा कि हिलोगे तो गोली मार दूंगा.सरगना के कहे अनुसार बदमाशों ने सारे आभूषण अपने साथ लाए बैगों में भर लिए. तभी सरगना ने शोरूम मालिक रत्नेश से तिजोरी की चाबी मांगी. तिजोरी खोल कर सारे कीमती रत्नजवाहरात, डायमंड और सोने के आभूषण निकाल लिए. ये सभी जेवर भी एक बैग में भर लिए.

करीब आधे घंटे तक लूटपाट करने के बाद बदमाश जेवरों से भरे बैग ले कर एकएक कर शोरूम से बाहर निकल गए. सरगना नजर आ रहे खुले मुंह वाले बदमाश ने जाते समय शोरूम मालिक रत्नेश से कहा, ‘‘मुझे पहचान लो. हम मोस्टवांटेड हैं. पटना की पुलिस कई साल से हमारे पीछे पड़ी हुई है.’’ सरगना की भाषा लोकल थी. उस के गुर्गे भी स्थानीय भाषा में बात कर रहे थे.

भागने से पहले एक बदमाश ने शोरूम में लगे सीसीटीवी कैमरों का रिकौर्डर निकाल कर अपने बैग में रख लिया. जाते समय सरगना ने शोरूम के गार्ड दीपू श्रीवास्तव के सिर से खून बहता देख कर अपना गमछा उसे देते हुए कहा सिर पर बांध लो. इस के बाद सरगना व बाकी बदमाश शोरूम का गेट बाहर से बंद कर फरार हो गए. शोरूम मालिक व कर्मचारियों के मोबाइल वे अपने साथ ही ले गए थे.डकैतों के भागने के बाद शोरूम कर्मचारियों ने शोर मचा कर गेट खुलवाया. गेट खुला तो आसपास के लोगों को पता चला कि दिनदहाड़े ज्वैलरी शोरूम में डकैती डाली गई है. आसपास के दुकानदार और राहगीर वहां एकत्र हो गए.

पुलिस को सूचना दी गई तो करीब आधे घंटे बाद पुलिस पहुंची. पुलिस ने शोरूम मालिक रत्नेश शर्मा से पूछताछ की. रत्नेश ने मोटे तौर पर हिसाब लगा कर बताया कि डकैत लगभग 5 करोड़ रुपए के हीरेजवाहरात और कीमती आभूषणों के अलावा 13 लाख रुपए नकद लूट कर ले गए हैं. यह पटना की सब से बड़ी डकैती बताई गई.

दिनदहाड़े 5 करोड़ की डकैती की वारदात का पता चलने पर आईजी (जोन) सुनील कुमार, डीआईजी (सेंट्रल) राजेश कुमार, सीआईडी के डीआईजी पी.एन. मिश्रा और एसएसपी गरिमा मलिक सहित पुलिस के तमाम अफसर मौके पर पहुंच गए. शोरूम कर्मचारियों ने अधिकारियों से शिकायत करते हुए कहा कि अगर बाजार में पुलिस गश्त कर रही होती लुटेरे पकड़ लिए जाते.

पुलिस ने जांचपड़ताल शुरू करते हुए शोरूम मालिक और कर्मचारियों से पूछताछ की. शोरूम के आसपास के लोगों से भी पूछताछ की गई. पूछताछ में पता चला कि शोरूम में घुसे 10 बदमाशों की उम्र 20 से 35 साल के बीच थी. वे स्थानीय भाषा में बोल रहे थे.

सुराग की तलाश

मौके पर पुलिस को बदमाशों द्वारा गार्ड को दिया गया केवल एक गमछा ही मिला. बदमाश इस के अलावा कोई चीज वहां नहीं छोड़गए थे, जिस से उन का सुराग मिलता. पुलिस ने बदमाशों का सुराग लगाने और साक्ष्य जुटाने के लिए एफएसएल टीम और डौग स्क्वायड को भी मौके पर बुला लिया.

बदमाशों का सुराग लगाने के लिए पुलिस ने बाजार में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली. आसपास के लोगों से पूछताछ में प्रारंभिक तौर पर पता चला कि बदमाश 3 बाइकों और एक कार में सवार हो कर भागे थे. ये बाइक और कार ज्वैलरी शोरूम से कुछ दूर खड़ी की गई थीं.

इस का मतलब था कि बदमाश अपने वाहनों को शोरूम से दूर खड़ा कर पैदल ही डकैती डालने पहुंचे थे और डकैती डालने के बाद आराम से पैदल ही अपने वाहनों तक गए थे. पुलिस ने अनुमान लगाया कि शोरूम में घुसे बदमाशों के अलावा एकदो बदमाश बाहर भी जरूर रहे होंगे. इस तरह वारदात में 10 से 12 बदमाश शामिल होने का अनुमान लगाया गया.

उसी दिन शोरूम मालिकों की ओर से पटना के राजीव नगर थाने में डकैती की रिपोर्ट दर्ज करा दी गई. दिनदहाड़े सरेबाजार शोरूम मालिक और कर्मचारियें को बंधक बना 5 करोड़ रुपए की ज्वैलरी लूट कर बदमाशों ने पुलिस के सामने चुनौती पैदा कर दी. इस पर आईजी ने बदमाशों का सुराग लगाने के लिए एसएसपी गरिमा मलिक के नेतृत्व में एसआईटी का गठन किया.

एफएसएल टीम ने जांचपड़ताल कर पंचवटी रत्नालय से बदमाशों के करीब 25-30 फिंगरप्रिंट लिए. डौग स्क्वायड को वह गमछा सुंघाया गया, जिसे बदमाश गार्ड को दे गया था. गमछा सूंघ कर खोजी कुत्ता दुकान से बाहर निकला और कुछ दूर दीघा रोड तक जा कर वापस लौट आया.

प्रारंभिक जांच में यह बात भी सामने आई कि बदमाशों ने पंचवटी रत्नालय में डकैती डालने से पहले कई दिन रेकी की थी. वारदात से 2 दिन पहले 2 लोग शोरूम पर खरीदारी करने आए थे. उस दिन उन्होंने डायमंड के आभूषण देखे और बाद में आ कर लेने की बात कही थी.

इस के दूसरे दिन भी वे दोनों दोपहर में करीब एकसवा बजे आए थे और सोने की चेन देखने के बाद एटीएम से पैसा निकालने की बात कह कर चले गए थे. इन में से एक व्यक्ति डकैती डालने वालों में शामिल था. मुंह ढंका न होने से कर्मचारियों ने उसे पहचान लिया था.

वारदात का तरीका जान कर पुलिस अफसर समझ गए कि इस में किसी प्रोफेशनल गिरोह का हाथ है. पुलिस ने बदमाशों का सुराग लगाने के लिए सब से पहले सोना और ज्वैलरी लूटने वाले गिरोहों का रिकौर्ड निकलवाया. उन गिरोहों के सरगनाओं की ताजा गतिविधियों की जानकारी जुटाने के लिए मुखबिर लगा दिए गए.

पता चला कि देश के सब से चर्चित सोना लूटने वाले गिरोह का सरगना सुबोध सिंह पटना के राजीव नगर इलाके का ही रहने वाला है और आजकल जेल में बंद है. लेकिन उस का गिरोह सक्रिय है. सुबोध सिंह कई राज्यों में सोना लूट की बड़ीबड़ी वारदातें कर चुका था. उस के गिरोह के एक बदमाश मनीष को एसटीएफ ने कुछ दिन पहले वैशाली जिले में मुठभेड़ में मार गिराया था.

नालंदा का रहने वाला सुबोध सिंह कुछ महीने पहले रूपसपुर में गिरफ्तार किया गया था. इस के बाद उसे सोना लूट की वारदातों के सिलसिले में जयपुर, कोलकाता, भुवनेश्वर व आसनसोल जेल ले जाया गया था. बाद में उसे आसनसोल से पटना की बेउर जेल में भेज दिया गया था.

बदमाशों की बातचीत के लहजे और वारदात के तरीके से पुलिस ने अनुमान लगाया कि इस में राजीव नगर के 5 किलोमीटर के दायरे में आने वाले फुलवारी शरीफ और दानापुर के बदमाशों का हाथ हो सकता है.

वारदात वाले दिन पुलिस बदमाशों की तलाश, नाकेबंदी और इस तरह की वारदात करने वाले बदमाशों की धरपकड़ व पूछताछ की छापेमारी में जुटी रही, लेकिन कहीं से कोई सुराग नहीं मिला. दूसरे दिन पुलिस अधिकारी फिर से इस वारदात को सुलझाने की मशक्कत करने लगे.

पुलिस को शोरूम के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की रिकौर्डिंग से बदमाशों के बारे में कुछ सुराग जरूर मिले, लेकिन उन के चेहरे साफ नहीं हुए. पुलिस को इतना जरूर पता चला कि बदमाशों ने वारदात में 3-4 बाइकों और एक फार्च्युनर गाड़ी इस्तेमाल की थी. बदमाशों के वाहनों की तसवीर रामनगरी से ले कर रूपसपुर नहर तक कैमरों में कैद हुई. रूपसपुर नहर से कुछ बदमाश जेपी सेतु से फरार हो गए और कुछ खगोल की ओर चले गए.

शोरूम मालिक और कर्मचारियों की ओर से बताए गए हुलिए के आधार पर पुलिस ने 2 बदमाशों के स्कैच बना कर जारी किए. ये स्कैच शोरूम में डकैती डालने वाले गिरोह के सरगना नजर आ रहे बदमाशों के थे.

पुलिस अधिकारियों ने स्कैच बनने के बाद अपराधियों की पहचान कर लेने का दावा किया, लेकिन उन के नामपते का खुलासा नहीं किया. पुलिस इन बदमाशों की तलाश में जुटी रही. इस के लिए अलगअलग जगहों से पचासों बदमाशों को थाने ला कर पूछताछ की गई.

वारदात के दूसरे ही दिन पंचवटी रत्नालय से करीब एक किलोमीटर दूर राजीव नगर नाला रोड साकेत भवन के पास लावारिस हालत में एक अपाचे बाइक खड़ी मिली. जांच में इस बाइक का नंबर फरजी निकला.

अपाचे बाइक पर रौयल एनफील्ड बुलेट का नंबर था. यह बाइक पटना के एक व्यक्ति के नाम पंजीकृत थी. पुलिस ने अनुमान लगाया कि यह बाइक बदमाशों के उन साथियों की हो सकती है, जो वारदात में लाइनर बन कर सहयोग कर रहे थे.

दिनदहाड़े 5 करोड़ की ज्वैलरी की लूट की वारदात को ले कर सर्राफा व्यापारियों में भारी आक्रोश था. पाटलिपुत्र सर्राफा संघ व अन्य व्यावसायिक संगठनों ने बिहार में आए दिन हो रही इस तरह की लूट की वारदातों के खिलाफ राज्यव्यापी अनिश्चित कालीन हड़ताल पर जाने की चेतावनी दी.

पुलिस पहुंची गर्लफ्रैंड तक

तीसरे दिन भी पटना पुलिस, सीआईडी और एसटीएफ  अपने तरीके से जांचपड़ताल और कई जिलों में छापेमारी कर बदमाशों का सुराग लगाने में जुटी रही, लेकिन इस का कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया. पुलिस ने बेउर जेल में बंद सोना लूटने वाले गिरोह के सरगना सुबोध सिंह से भी कई घंटों तक पूछताछ की. सुबोध से पूछताछ के बाद पुलिस ने बेउर जेल से पिछले दिनों छूटे 3-4 कुख्यात बदमाशों को संदिग्ध मानते हुए उन की तलाश शुरू की.

पुलिस ने 3 दिन में एक अपाचे बाइक के अलावा एक स्कौर्पियो और एक आई20 कार लावारिस हालत में बरामद की. इन वाहनों के नंबरों और चेसिस नंबरों के आधार पर भी पुलिस जांच करती रही. इस में अपाचे बाइक का वारदात में उपयोग होने की ज्यादा आशंका जताई गई.

चौथे दिन पुलिस को इस तरह की वारदात करने वाले एक कुख्यात बदमाश की गर्लफ्रैंड के बारे में पता चला. पुलिस ने दीघा इलाके में रहने वाली इस युवती से पूछताछ की. इस से पुलिस को कई अहम जानकारियां मिलीं. यह भी तय हो गया कि वारदात करने वाले कुछ बदमाश पटना सिटी और फुलवारी शरीफ के रहने वाले हैं.

पुलिस की कुछ टीमों ने इन बदमाशों पर फोकस कर दिया और उन की तलाश में जुट गईं. दूसरी तरफ  एसटीएफ  की टीमें नेपाल की सीमाओं, कोलकाता और ओडिशा में बदमाशों की तलाश करती रहीं.

एसटीएफ ने लूटे गए सोने की डीलिंग नेपाल के कसीनो में होने की आशंका में नेपाल पुलिस से भी सहयोग लिया. इस का कारण यह था कि सोना लूट के कुख्यात सरगना सुबोध सिंह का पुलिस मुठभेड़ में मारा गया साथी मनीष सिंह कुछ पार्टनरों के साथ नेपाल में कसीनो भी चलाता था.  पांचवें और छठे दिन भी पुलिस दावा करती रही कि बदमाशों की पहचान कर ली गई है, उन की तलाश में छापेमारी की जा रही है. लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद बदमाश पुलिस की पकड़ से दूर थे. उन का कोई अतापता नहीं मिल रहा था. पुलिस इस तरह की वारदात करने वाले 2-3 गिरोह के बदमाशों को ढूंढने में जुटी हुई थी.

इस बीच, 6 दिन से बंद रहे पंचवटी रत्नालय शोरूम की 27 जून को री-ओपनिंग की गई. शोरूम मालिक रत्नेश शर्मा ने अपने पुराने ग्राहकों, दोस्तों व रिश्तेदारों को बुलाया था. शोरूम को सजाया गया. ग्राहकों के आने से शोरूम में फिर से व्यापार शुरू कर दिया गया. पुलिस ने सुरक्षा के लिहाज से शोरूम पर 2 जवान तैनात कर दिए.

एक कुख्यात बदमाश की गर्लफ्रैंड से लगातार कई दिन की गई पूछताछ से 28 जून को पुलिस को भरोसा हो गया कि वारदात रवि गुप्ता और उस के गिरोह ने की है. पुलिस की ओर से बनवाए गए स्कैच भी रवि की शक्ल से मिलान कर रहे थे. सीसीटीवी फुटेज में भी रवि की तसवीर कुछ जगह नजर आई थी. पुलिस ने रवि के साथ वारदात करने वाले कुछ अपराधियों को सीसीटीवी फुटेज और स्कैच दिखाए तो उस की पुष्टि भी हो गई.

आखिर मिल गई सफलता

इस के बाद पुलिस ने रवि गुप्ता उर्फ नेताजी उर्फ रवि पेशेंट उर्फ मास्टरजी के साथ उस के गिरोह को तलाशने में अपनी सारी ऊर्जा लगा दी. रवि अपने ठिकानों पर नहीं मिला. वह अपनी गर्लफ्रैंड से भी काफी समय से नहीं मिला था. उस के मोबाइल व वाट्सऐप वगैरह भी बंद मिले. पुलिस लगातार जुटी रही. अंतत: उस की मेहनत का परिणाम सामने आ गया.

पंचवटी रत्नालय में हुई डकैती के मामले में पुलिस ने पहली जुलाई को रवि गुप्ता उर्फ रवि पेशेंट के अलावा उस के 2 साथी बदमाशों विकास कुमार और सिपू कुमार को गिरफ्तार कर लिया. एडीजी (मुख्यालय) जितेंद्र कुमार, डीआईजी राजेश कुमार और एसएसपी गरिमा मलिक ने पटना स्थित पुलिस मुख्यालय में प्रैस कौन्फ्रैंस कर वारदात का खुलासा कर दिया.

पुलिस अफसरों ने बताया कि उन के पास सूचना थी कि रवि गुप्ता और उस के गुर्गे दीघा थाना क्षेत्र के कुर्जी बालू में आएंगे. इस सूचना पर घेराबंदी और छापेमारी कर के रवि, विकास और सिपू को पकड़ लिया गया. जबकि इन के कुछ साथी बदमाश भाग गए.

पुलिस ने पूछताछ के बाद इन बदमाशों की निशानदेही पर कुर्जी बालू के विकास नगर में सिपू के ठिकाने से करीब एक करोड़

11 लाख रुपए के सोनेचांदी के आभूषण बरामद किए. बदमाशों से करीब एक लाख रुपए के रत्न, 6 लाख 30 हजार रुपए नकद, एक बाइक, एक बैग, 3 देसी पिस्तौल और 7 कारतूस भी बरामद किए.

डकैत गिरोह के सरगना रवि गुप्ता उर्फ रवि पेशेंट पर डकैती, हत्या, लूट आदि के 17 मामले दर्ज थे. वह पटना में आलमगंज थाना इलाके के मछुआ टोली में रहता है. दूसरे बदमाश विकास कुमार पर डकैती, लूट, आर्म्स एक्ट व अन्य गंभीर अपराधों के 19 मुकदमे चल रहे थे. वह पटना के आलमगंज में माली गायघाट दक्षिणी गली का रहने वाला था.

तीसरे बदमाश सिपू कुमार के खिलाफ  पुलिस रिकौर्ड में लूट का केवल एक मामला दर्ज था. वह मूलरूप से सारण का रहने वाला था और फिलहाल पटना के दीघा इलाके में कुर्जी बालू के विकास नगर में रहता था.

पुलिस की ओर से गिरफ्तार तीनों बदमाशों से की गई पूछताछ में रवि गुप्ता के कुख्यात अपराधी बनने और पंचवटी रत्नालय में डकैती डालने की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार है—

रवि मूलरूप से अररिया के जोगबन का रहने वाला था. उस के पिता हिंदू और मां मुसलिम थी. रवि के जवान होने से पहले ही उस के मातापिता की हत्या हो गई थी. इस के बाद वह अररिया के अपराधियों के संपर्क में आया और छोटेमोटे अपराध करने लगा. बाद में वह पटना आ गया. पटना आ कर वह राजधानी और अन्य जिलों में बड़ी वारदातें करने लगा.

दिनदहाड़े डकैती डालना और विरोध करने पर गोलियां चलाना उस की फितरत थी. वह पटना से ले कर पूरे बिहार, झारखंड, ओडिशा और कोलकाता तक वारदातें करता था. इन सभी राज्यों के कुख्यात अपराधी उस के संपर्क में रहते थे.

वह अलगअलग वारदातों में दूसरे राज्यों के बदमाशों को शामिल करता था, ताकि पुलिस उन को पहचान न सके. आपराधिक वारदातों के बाद वह इन्हीं बदमाशों के जरिए दूसरे राज्यों में छिप जाता था.

रवि कई बार जेल जा चुका था. सन 2010 में उसे पटना की आलमगंज थाना पुलिस ने गिरफ्तार किया था. बाद में उसे जेल भेज दिया गया. जमानत पर छूटने के बाद वह फिर से एक अन्य आपराधिक मामले में जेल चला गया. सन 2017 में वह जेल से बाहर आया था. इस के बाद से वह फरार था. पुलिस उसे कई वारदातों में तलाश रही थी.

कुख्यात लुटेरा होने के साथ रवि अव्वल दरजे का अय्याश भी था. जेल से बाहर होने पर उस की अधिकांश रातें महंगे होटलों में अय्याशी करते हुए बीतती थीं. उस की एक गर्लफ्रैंड पटना सिटी में दीघा इलाके में रहती थी.

गर्लफ्रैंड के माध्यम से मिली सफलता

पुलिस ने इस युवती से पूछताछ की, तो पता चला कि रवि ने पिछले कई महीनों से कोई बड़ी वारदात नहीं की. इसलिए वह पैसे की तंगी से गुजर रहा था. वारदात के बाद रवि का अपनी गर्लफ्रैंड से संपर्क बना हुआ था. इसी से पुलिस को रवि का सुराग मिला था.

वारदात से करीब एक महीने पहले रवि ने पटना में ही बड़ी वारदात की योजना बनाई. इस के लिए उस ने राजधानी की करीब 10 ज्वैलरी शोरूमों की रैकी की. कई बार की रैकी के बाद उस ने पंचवटी रत्नालय को अपना निशाना बनाने का फैसला किया. यह बात रवि की गर्लफ्रैंड को पता थी.

वारदात में किनकिन बदमाशों को शामिल करना है, यह भी रवि ने तय कर लिया. इस में अधिकांश बदमाश धनबाद और झारखंड के थे. वारदात के लिए हथियार और गाडि़यों की व्यवस्था भी रवि ने ही की थी. वारदात से पहले सभी बदमाश दीघा के कुर्जी इलाके में एकत्र हुए. वहां रवि ने सभी बदमाशों को पूरी प्लानिंग समझाई. पंचवटी रत्नालय पहुंचने और वहां से फरार होने का रास्ता भी बताया. रवि की अगुवाई में कुल 10 बदमाशों की ओर से की गई इस वारदात में एक कार और 3 बाइकों का उपयोग किया गया. वारदात के बाद रवि व सिपू के साथ 2 अन्य बदमाश कार में बैठ कर फरार हुए. बाकी 6 बदमाश बाइकों से भागे. फरार होने के तुरंत बाद रवि ने कार में बैठेबैठे ही उन के पास मौजूद लूट के आभूषणों और नकदी का बंटवारा कर दिया.

कुछ किलोमीटर चलने के बाद बदमाश अलगअलग दिशाओं में बंट गए. जेपी सेतु पार कर रवि, सिपू और 2 अन्य बदमाश कार से छपरा की ओर भाग गए, जबकि बाइक पर सवार बदमाश रूपस नहर के सहारे खगोल स्टेशन की ओर चले गए. बाद में रवि और विकास धनबाद चले गए और सिपू अपने पैतृक गांव सारण चला गया. रवि बाद में गिरिडीह और कोलकाता भी गया था.

रवि ने अपने पास जो आभूषण रखे थे, उन में से कुछ गहने उस ने 20 लाख रुपए में एक दुकानदार को बेच दिए थे. रवि से बरामद 6 लाख 30 हजार रुपए उसी रकम में से बचे हुए थे. बाकी रकम रवि ने खर्च कर दी थी. रवि ने पुलिस को बताया कि लूट के बाकी जेवरात दूसरे फरार बदमाशों के पास हैं.

गिरफ्तार बदमाशों से पूछताछ में पुलिस को पता चला कि वारदात में शामिल रहे 4 बदमाश झारखंड के धनबाद व बोकारो के रहने वाले हैं, जबकि सारण के 2 और पटना का एक अन्य बदमाश भी पंचवटी रत्नालय की डकैती में शामिल था. कथा लिखे जाने तक ये सातों बदमाश फरार थे. पुलिस इन की तलाश कर रही थी. अभी करीब 4 करोड़ रुपए के जेवरात बरामद नहीं हुए हैं. द्य

(कहानी सौजन्य मनोहर कहानी)

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