
उत्तर प्रदेश के जिला एटा के थाना मलावन क्षेत्र के गांव बहादुरपुर का एक आदमी नहर की पटरी से होता हुआ अपने खेतों पर जा रहा था. तभी उसे नहर की पटरी के किनारे वाली झाडि़यों में किसी लड़की के कराहने की आवाज सुनाई दी. वह आवाज सुन कर चौंका. जब उस ने झाडि़यों के पास जा कर देखा तो खून से लथपथ एक युवती कराह रही थी. उस ने नीले रंग का सूट पहना हुआ था. उस आदमी ने हिम्मत कर के पूछा कौन है, लेकिन युवती की ओर से कोई जवाब नहीं आया.
उस व्यक्ति ने शोर मचाया तो उधर से गुजर रहे कुछ लोग वहां आ गए. उन्होंने जब झाडि़यों में घायल युवती को देखा तो उसे झाडि़यों से बाहर निकाला. युवती की गरदन से खून रिस रहा था.
युवती उन के गांव की नहीं थी, इसलिए वे उसे पहचान नहीं पाए. सभी परेशान थे कि युवती की ऐसी हालत किस ने की है. इसी दौरान किसी ने इस की सूचना पुलिस के 100 नंबर पर दे दी. यह बात 10 जुलाई, 2019 की सुबह करीब साढ़े 6 बजे की है.
चूंकि वह क्षेत्र थाना मलावन के अंतर्गत आता था, इसलिए खबर पा कर थाना मलावन के थानाप्रभारी विपिन कुमार त्यागी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस को युवती लहूलुहान अवस्था में तड़पती मिली. युवती के गले से बहा खून उस के कुरते तक फैला हुआ था. पुलिस ने वहां जुटी भीड़ से उस की पहचान कराने की कोशिश की लेकिन गांव वालों ने बताया कि युवती उन के गांव की नहीं है.
पुलिस ने युवती को गंभीर हालत में जिला अस्पताल में भरती करा दिया, जहां उपचार के दौरान उसे होश आ गया. पुलिस पूछताछ में उस ने बताया कि उस का नाम निशा है और वह एटा के थाना कोतवाली देहात क्षेत्र के बारथर निवासी अफरोज की बेटी है. फिलहाल वह अपने परिवार के साथ अलीगढ़ के जमालपुर हमदर्द नगर में रह रही थी.
उस ने पुलिस को खुल कर पूरा घटनाक्रम बताया कि 6 जुलाई, 2019 को उस के मांबाप, छोटे भाई व मामा ने अलीगढ़ में उसी की आंखों के सामने उस के प्रेमी आमिर उर्फ छोटू की हत्या कर दी थी.
प्रेमी की हत्या के बाद वह अपने परिजनों के खिलाफ हो गई. इस के बाद परिजनों ने उसे मारपीट कर घर में कैद कर लिया था. उन्हें शक था कि मैं हत्या का राज जाहिर कर बखेड़ा खड़ा कर सकती हूं, इसलिए मुझे गुमराह कर उसी रात मांबाप व मामा एटा के थाना मलावन के गांव बारथर ले आए, जहां मुझे 2 दिन तक रखा गया. मुझे किसी से भी मिलने नहीं दिया गया. फिर वापस अलीगढ़ ले जाने के बहाने रास्ते में ला कर गोली मार दी और मरा समझ कर झाड़ी में फेंक कर भाग गए. निशा ने पुलिस को जो कहानी बताई, वह रोंगटे खड़े करने वाली थी.
डाक्टरों ने निशा को अलीगढ़ के जे.एन. मैडिकल कालेज के लिए रैफर कर दिया. पुलिस ने बहादुरपुर निवासी पंकज तिवारी की तरफ से निशा के पिता अफरोज, मां नूरजहां और मामा हफीज उर्फ इशहाक के खिलाफ भादंवि की धारा 307 के अंतर्गत रिपोर्ट दर्ज कर ली.
रिपोर्ट दर्ज होने के बाद आरोपियों को पकड़ने के लिए मलावन पुलिस ने बारथर गांव में दबिश दी. लेकिन वहां कोई आरोपी नहीं मिला. पुलिस ने वहां रहने वाले निशा के 2 चाचाओं से पूछताछ की लेकिन वे कोई जानकारी नहीं दे सके.
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उधर 7 जुलाई की सुबह अलीगढ़ में भमोला में रेलवे ट्रैक के किनारे एक 25 वर्षीय युवक का शव मिलने से सनसनी फैल गई. सूचना पर अलीगढ़ के थाना सिविल लाइंस के इंसपेक्टर अमित कुमार पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए.
पुलिस को मृतक के गले व शरीर के अन्य भागों पर चोट के निशान मिले. पुलिस को अंदेशा था कि युवक रात के समय ट्रेन से यात्रा के दौरान रेलवे ट्रैक पर गिर गया, जिस से उस की मौत हो गई. पुलिस ने वहां मौजूद लोगों से लाश की शिनाख्त करानी चाही, लेकिन कोई भी उसे नहीं पहचान सका.
पुलिस ने मृतक की तलाशी ली तो उस की पैंट की जेब से मिले आधार कार्ड के पते पर उस के घर वालों को सूचित किया. वह जमालपुर के हमदर्द नगर निवासी अकील अहमद का बेटा आमिर था.
सूचना मिलने पर उस के परिजन वहां पहुंच गए. अकील अहमद ने बताया कि शनिवार की रात को आमिर के फोन पर किसी का फोन आया था, जिस के बाद वह घर से निकल गया था. वह रात भर नहीं लौटा. फोन मिलाया लेकिन उस का फोन बंद आ रहा था.
सुबह उस का शव मिला. आमिर का मोबाइल गायब था. पिता ने इसे रेल हादसा नहीं बल्कि हत्या बताया. उन्होंने आमिर की हत्या की आशंका में अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया.
आमिर की हत्या की गुत्थी सुलझाने में जुटी सिविल लाइंस पुलिस ने आमिर के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर जांच की तो एक नंबर ऐसा मिला जो अलीगढ़ के ही जमालपुर हमदर्द नगर की एक युवती का था. उस नंबर पर आमिर की सब से अधिक बातें होती थीं. प्रेम प्रसंग की जानकारी होने पर पुलिस ने छानबीन की तो घटना की परतें खुलती गईं.
अलीगढ़ पुलिस ने मृतक आमिर के घर वालों से विस्तृत जानकारी ली और इस मामले से संबंधित सारे तथ्य जुटा लिए. पुलिस ने हत्या में युवती निशा के घर वालों के शामिल होने के शक में 8 जुलाई को उन के घर पर दबिश दी लेकिन वहां ताला लटका मिला. इस के चलते पुलिस का शक पूरी तरह यकीन में बदल गया.
10 जुलाई की सुबह मलावन थाना पुलिस ने निशा को अलीगढ़ के जे.एन. मैडिकल कालेज में भरती कराया. इस से आमिर की हत्या व निशा को गोली मारने के तार आपस में जुड़ गए.
डाक्टरों ने बताया कि गोली निशा के गले के पार हो गई थी लेकिन रात भर बेहोशी की हालत में पड़ी रहने व अत्यधिक खून बह जाने से उस की हालत गंभीर हो गई थी. फिर भी वह बातचीत कर रही थी. पुलिस अधिकारियों ने निशा के बयान मजिस्ट्रैट के समक्ष दर्ज कराए. यह मामला अब तक 2 थाना क्षेत्र एटा के मलावन थाना और अलीगढ़ के सिविल लाइंस थाना क्षेत्र से जुड़ गया था.
अलीगढ़ के एसएसपी आकाश कुलहरि ने मामले की गंभीरता को देखते हुए सिविल लाइंस पुलिस को आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए एटा भेजा. पुलिस टीम ने निशा के पिता अफरोज के बारथर गांव में दबिश दी लेकिन वहां दरवाजे पर ताला लटका था. इस के चलते अलीगढ़ पुलिस भी खाली हाथ वापस लौट आई.
12 जुलाई को मलावन पुलिस अलीगढ़ अस्पताल पहुंची. निशा की हालत गंभीर थी. उसे आईसीयू में शिफ्ट कर दिया गया था. हालत में सुधार होने पर उस ने एक बार फिर अपने मातापिता और मामा पर गोली मार कर घायल करने का आरोप लगाया. निशा के बयानों के आधार पर मलावन पुलिस ने अलीगढ़ में दबिश दी, लेकिन मातापिता व मामा का कुछ पता नहीं चला.
पुलिस ने पूछताछ के लिए निशा के 2 रिश्तेदारों को हिरासत में ले लिया, जिन से पूछताछ में पुलिस के हाथ घटना से जुड़े कई अहम सबूत मिले. अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रही निशा से मिलने कोई रिश्तेदार तक नहीं आया जबकि अलीगढ़ में उस के दूसरे मामा व अन्य रिश्तेदार रहते थे.
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एसएसपी के आदेश पर अस्पताल में दोनों घटनाओं की एकमात्र चश्मदीद गवाह निशा की सुरक्षा कड़ी कर दी गई थी. उस की सुरक्षा के लिए एक एसआई, 2 सिपाही और एक महिला सिपाही तैनात कर दिए गए.
पकड़े गए निशा के अब्बूअम्मी
हत्यारों की सुरागरसी के लिए मलावन पुलिस ने चारों ओर मुखबिरों का जाल फैला दिया था. 13 जुलाई की दोपहर को मलावन पुलिस को एक मुखबिर ने सूचना दी कि घटना के आरोपी नूरजहां और उस का पति अफरोज आसपुर से बागवाला जाने वाली रोड पर मौजूद हैं और कहीं जाने की फिराक में हैं.
इस सूचना पर थानाप्रभारी विपिन कुमार त्यागी ने पुलिस टीम के साथ उस जगह की घेराबंदी कर के अफरोज व उस की पत्नी नूरजहां को हिरासत में ले लिया. उन से वारदात में प्रयुक्त मोटरसाइकिल भी बरामद कर ली गई. अफरोज की निशानदेही पर पुलिस ने घटना में प्रयुक्त 315 बोर का तमंचा और कारतूस का खोखा भी बरामद कर लिया.
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कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां
22 वर्षीय तुषार अमरावती जिले के तालुका भातकुली गांव मलकापुर का रहने वाला था. उस के पिता का नाम किरण मसकरे था. वह गांव के एक गरीब किसान थे. उन का और उन के परिवार का गुजारा गांव के संपन्न किसानों के खेतों में मेहनतमजदूरी कर के होता था. परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण तुषार ने इंटरमीडिएट के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी. परिवार में उस के मातापिता के अलावा एक बड़ा भाई और एक छोटी बहन थी.
सुंदर और महत्त्वाकांक्षी अर्पिता तुषार के पड़ोसी गांव कठवा वहान की रहने वाली थी. उस के पिता का नाम दत्ता साहेब ठाकरे था. ठाकरे गांव के प्रतिष्ठित और संपन्न किसान थे. उन के परिवार में अर्पिता के अलावा उस की मां और एक बड़ा भाई था. अर्पिता पढ़ाई लिखाई में तो तेज थी ही, व्यवहारकुशल भी थी. तुषार मसकरे उस की खूबसूरती और व्यवहार का कायल था.
गांव में उच्चशिक्षा की व्यवस्था नहीं थी. अर्पिता दत्ता ठाकरे की लाडली बेटी थी. वह उसे उच्चशिक्षा दिलाना चाहते थे. इसलिए उन्होंने अर्पिता को पूरी आजादी दे रखी थी. लेकिन यह जरूरी नहीं कि आदमी जो सोचे वह हो ही जाए. दत्ता ठाकरे की भी यह चाहत पूरी नहीं हो सकी.
18 वर्षीय अर्पिता और तुषार की लव स्टोरी सन 2017 में तब शुरू हुई थी, जब दोनों ने गांव के हाईस्कूल से निकल कर तालुका के भातकुली केशरभाई लाहोटी इंटर कालेज में दाखिला लिया. दोनों एक ही क्लास में थे, दोनों के गांव भी आसपास थे. जल्दी ही दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं.
कालेज में कई युवकयुवतियों ने अर्पिता से दोस्ती के लिए हाथ बढ़ाए, लेकिन अर्पिता ने उन्हें महत्त्व नहीं दिया. वह मन ही मन तुषार से प्रभावित थी. अर्पिता को जितना भी समय मिलता, तुषार के साथ बिताती थी. तुषार भी अर्पिता जैसी दोस्त पा कर खुश था.
कालेज आनेजाने के लिए अर्पिता के पास स्कूटी थी. तुषार का घर अर्पिता के रास्ते में पड़ता था, इसलिए वह तुषार को अकसर अपनी स्कूटी पर उस के घर तक छोड़ देती थी. इस के चलते दोनों कब एकदूसरे के करीब आ गए, उन्हें पता ही नहीं चला. पहले दोनों में दोस्ती हुई, फिर प्यार हो गया. इस बात का दोनों को तब पता चला जब उन के दिलों की बेचैनी बढ़ने लगी.
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इंटरमीडिएट करतेकरते उन की चाहत इतनी बढ़ गई कि दोनों ने अपने प्यार का इजहार कर लिया. इस के साथ ही दोनों ने साथसाथ जीनेमरने की कसमें भी खा लीं. इतना ही नहीं, दोनों ने सालवर्डी जा कर एक मंदिर में विवाह भी कर लिया. इस विवाह का वीडियो भी बनाया गया था.
जब तक दोनों एक ही कालेज में पढ़ते रहे, उन के प्यार और शादी की किसी को भनक तक नहीं लगी. लेकिन जब अर्पिता ग्रैजुएशन के लिए दूसरे कालेज में गई और तुषार ने पढ़ाई छोड़ दी तो उन के बीच दूरी आ गई.
इसी बीच उन के प्यार और प्रेम विवाह की खबर उन के घर वालों के कानों तक भी पहुंच गई. अर्पिता के पिता ने बेटी के अच्छे भविष्य के लिए उस का दाखिला अमरावती के मधोल पेठ स्थित महात्मा फूले विश्वविद्यालय में करा दिया था. उस ने बीकौम फर्स्ट ईयर में एडमिशन लिया था.
दोनों के परिवार रह गए सन्न
तुषार की पारिवारिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह आगे की पढ़ाई कर पाता. आर्थिक स्थिति कमजोर होने की वजह से वह गांव वालों के खेतों में किराए का ट्रैक्टर चला कर अपने परिवार की आर्थिक मदद करने लगा.
अर्पिता से दूरियां बढ़ जाने के कारण तुषार का एकएक दिन बेचैनी में गुजरता था. जल्दी ही उस का धैर्य जवाब देने लगा. जब उसे लगने लगा कि अब वह अर्पिता के बिना नहीं रह सकता तो वह फोन पर बात कर के या गांव आतेजाते अर्पिता पर दबाव बनाने लगा कि वह अपनी पढ़ाई छोड़ कर उस के पास आ जाए.
इस बात की खबर जब दोनों परिवारों तक पहुंची तो उन के होश उड़ गए. इस हकीकत जान कर तुषार के परिवार वाले सन्न रह गए तो अर्पिता के घर वालों के पैरों के नीचे से जैसे जमीन खिसक गई. उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस बेटी के भविष्य के लिए वह उसे उच्चशिक्षा दिलाना चाहते हैं, वह ऐसा कर बैठेगी.
मामला काफी नाजुक था. फिर भी उन्होंने अर्पिता को आड़े हाथों लिया. उसे उस के भविष्य, मानसम्मान और समाज के बारे में काफी समझायाबुझाया. साथ ही तुषार से दूर रहने की सलाह भी दी.
अर्पिता ने जब अपने परिवार की बातों पर गहराई से सोचविचार किया तो उसे अपनी भूल पर पछतावा हुआ. तुषार के साथ वह उज्ज्वल भविष्य की कल्पना नहीं कर सकती थी, न ही तुषार उस के काबिल था. सोचविचार कर अर्पिता ने तुषार से दूरी बना ली.
अर्पिता की दूरियां तुषार से बरदाश्त नहीं हुई. एक दिन वह बिना किसी डर के अर्पिता का हाथ मांगने उस के घर चला गया. उस ने उस के परिवार को धमकी देते हुए कहा कि अगर आप लोग अर्पिता का हाथ मेरे हाथ में नहीं देंगे तो वह उसे जबरन ले जाएगा. क्योंकि वह अर्पिता के साथ मंदिर में शादी कर चुका है. उस के पास शादी का वीडियो भी है. तुषार ने यह भी कहा कि अगर उस की बात नहीं मानी गई तो वह वीडियो को सोशल मीडिया पर वायरल कर देगा.
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बात मानसम्मान की थी. उस की इस धमकी से अर्पिता का परिवार काफी डर गया. बात उन की इज्जत की थी. उन्होंने इस की शिकायत पुलिस में कर दी. पुलिस की काररवाई से तुषार को बहुत गुस्सा आया. वह अर्पिता और उस के परिवार के प्रति रंजिश रखने लगा. उस ने अर्पिता को कई बार फोन किया लेकिन उस ने फोन नहीं उठाया.
फलस्वरूप उसे अर्पिता से सख्त नफरत हो गई. अंतत: प्रेमाग्नि में जलते तुषार ने एक खतरनाक योजना बना ली. उस ने फैसला कर लिया कि अगर अर्पिता ने उस के मनमुताबिक उत्तर नहीं दिया तो वह उसे किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ेगा. अर्पिता उस की पत्नी है और उस की ही रहेगी.
अपनी योजना को फलीभूत करने के लिए तुषार अपने एक दोस्त से मिला और उस से एक तेजधार वाले लंबे फल के चाकू की मांग की. उस का कहना था कि गांव के आसपास उस के बहुत सारे दुश्मन हो गए हैं, जिन से वह डरता है. दोस्त ने उस की बातों पर विश्वास कर के उस के लिए चाइना मेड एक चाकू का बंदोबस्त कर दिया.
चाकू का इंतजाम हो जाने के बाद तुषार घटना के दिन सुबहसुबह मधोल पेठ पहुंच कर अर्पिता का इंतजार करने लगा. बाद में जब उसे मौका मिला तो उस ने अर्पिता और उस की फ्रेंड पर हमला बोल दिया. इस हमले में अर्पिता की जान चली गई और उस की फ्रैंड अपर्णा बुरी तरह घायल हुई. इस के पहले कि वह भाग पाता, लोगों ने उसे दौड़ा कर पकड़ लिया.
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इस घटना के कुछ घंटों बाद इस वारदात को ले कर पूरा अमरावती शहर एक हो गया. राजनीतिक पार्टियां और सामाजिक संगठन एकजुट हो कर पुलिस प्रशासन के खिलाफ नारे लगाने लगे.
वे अभियुक्त तुषार मसकरे को कड़ी से कड़ी सजा देने की मांग कर रहे थे. बहरहाल, तुषार मसकरे ने अपना गुनाह स्वीकार कर लिया था. पूछताछ के बाद उसे अदालत पर पेश कर के जेल भेज दिया गया.
कहानी सौजन्य – मनोहर कहानियां
केस का खुलासा होने पर एसएसपी एटा स्वप्निल ममगाई ने प्रैसवार्ता आयोजित की. पुलिस पूछताछ और पत्रकारों के सामने निशा के मातापिता ने आमिर की हत्या और अपनी बेटी निशा की हत्या की कोशिश करने की जो कहानी बताई, इस प्रकार थी—
25 वर्षीय आमिर 7 भाइयों में दूसरे नंबर का था. उस का बड़ा भाई सलमान पिता अकील के साथ बिजली के काम में हाथ बंटाता था. जबकि आमिर टाइल्स लगाने का काम करता था. इसी दौरान उस की मुलाकात निशा के पिता अफरोज से हुई.
अफरोज राजमिस्त्री का काम करता था. इसी के चलते आमिर का निशा के घर आनाजाना शुरू हो गया. सुंदर और चंचल निशा को देखते ही आमिर उस की ओर आकर्षित हो गया. निशा की नजरें जब आमिर से टकरातीं तो वह मुसकरा देता. यह देख निशा नजरें झुका लेती थी.
आंखों ही आंखों में दोनों एकदूसरे को दिल दे बैठे. जब भी आमिर निशा के पिता को काम पर चलने के लिए बुलाने आता, उस दौरान उस की मुलाकात निशा से हो जाती. धीरेधीरे दोनों बातचीत करने लगे. दोनों ने एकदूसरे को मोबाइल नंबर भी दे दिए. दोनों की अकसर बातें होती रहतीं.
बेटी के प्रेम संबंधों की जानकारी होने के बाद अफरोज आमिर से नाराज और दूर रहने लगा था. इतना ही नहीं, वह निशा के साथ भी मारपीट कर चुका था. लेकिन प्रेमी युगल दुनिया से बेखबर अपनी ही दुनिया में मस्त रहते थे.
निशा उम्र के ऐसे मोड़ पर थी, जहां उस के कदम बहक सकते थे. इस के चलते अब घर वाले 24 घंटे उस पर नजर रखने लगे थे. बंदिशों के चलते प्रेमी युगल ने रात के समय घर पर ही मिलने की गुप्त योजना बनाई थी.
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6 जुलाई, 2019 की रात अलीगढ़ में अफरोज के परिवार के सभी लोग छत पर सो रहे थे. लेकिन 20 वर्षीय निशा की आंखों की नींद तो उस के 25 वर्षीय प्रेमी आमिर ने चुरा ली थी. परिजनों की सख्ती के चलते आमिर का अफरोज के घर आना बंद हो गया था. इसलिए निशा ने चोरीछिपे आमिर को फोन कर के रात में घर आने के लिए कहा.
आमिर भी अपनी प्रेमिका के दीदार को तरस रहा था. निशा का फोन सुनने के बाद वह उस से मिलने के लिए उस के घर पहुंच गया. निशा ने उस के लिए घर का दरवाजा पहले ही खुला छोड़ दिया था.
निशा और आमिर कमरे में बैठ कर बातें करने लगे. इसी दौरान निशा के मामा हफीज उर्फ इशहाक को टौयलेट लगी तो वह छत से उठ कर नीचे जाने लगा. मगर सीढि़यों का दरवाजा बंद था. दरवाजा खटखटाने पर निशा ने काफी देर बाद दरवाजा खोला. पूछने पर निशा ने बताया कि वह भी पानी लेने छत से नीचे आई थी.
शक होने पर मामा ने आसपास की तलाशी ली तो कमरे में छिपा हुआ आमिर मिल गया. इस के बाद उस ने उसी समय अपने जीजा अफरोज, बहन नूरजहां और 14 वर्षीय नाबालिग भांजे को आवाज दे कर छत से बुला लिया. गुस्से में चारों ने लाठीडंडों से आमिर की पिटाई शुरू कर दी. फिर गला दबा कर उस की हत्या कर दी.
प्रेमी के साथ मारपीट करने का निशा ने विरोध भी किया था. लेकिन हत्यारों के आगे उस की एक नहीं चली. निशा के सामने ही घर वालों ने उस के प्रेमी की हत्या कर दी थी, जिस का निशा को बहुत दुख हुआ.
अफरोज व हफीज ने शव को बोरी में बंद किया और उसे मोटरसाइकिल पर रख कर रात में ही ले गए. वे लोग भमोला रेलवे ट्रैक पर आमिर के शव को बोरी से निकाल कर फेंक आए.
पूरा घटनाक्रम निशा की आंखों के सामने घटित हुआ था. घर वालों ने सोचा कि कुछ दिन निशा यहां से बाहर रहेगी तो इस घटना को भूल जाएगी. मामला शांत होने पर उसे वापस ले आएंगे. यह सोच कर उसी रात मांबाप व मामा निशा को ले कर एटा के गांव बारथर के लिए मोटरसाइकिलों से रवाना हो गए.
बारथर में निशा गुमसुम सी रहती थी. उस की आंखों के सामने प्रेमी की पिटाई और हत्या का दृश्य घूमता रहता था. घर वाले उस से कुछ पूछते तो उस की आंखों से आंसू बहने लगते थे.
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समझाने से नहीं मानी निशा
सभी लोग उसे 2 दिनों तक समझाते रहे और किसी को कुछ न बताने का दबाव डालते रहे. लेकिन निशा के बगावती तेवर देख कर वे लोग घबरा गए. उन्होंने सोचा कि यदि निशा जिंदा रही तो आमिर की हत्या के मामले में फंसा देगी. घर वालों की बात न मानने पर मांबाप व मामा ने निशा को भी ठिकाने लगाने का फैसला कर लिया. इस के लिए फूलप्रूफ योजना बनाई गई. उस की हत्या करने से पहले 3 दिन तक वह लाश ठिकाने लगाने के लिए जगह ढूंढते रहे.
9 जुलाई, 2019 की रात 8 बजे हफीज उर्फ इशहाक व मांबाप 2 मोटरसाइकिलों पर यह कह कर निकले कि सभी लोग अलीगढ़ जा रहे हैं. निशा उन के साथ थी. एक मोटरसाइकिल पर निशा और उस की मां नूरजहां बैठी, जिसे पिता अफरोज चला रहा था. दूसरी पर निशा का 14 वर्षीय भाई बैठा, जिसे मामा हफीज चला रहा था.
गांव से करीब 15 किलोमीटर दूर निकलने के बाद बहादुरपुर गांव में प्रवेश करते ही दोनों मोटरसाइकिलों ने रास्ता बदल दिया. मोटरसाइकिलों के नहर की पटरी की तरफ मुड़ने पर निशा ने कहा, ‘‘ये तो अलीगढ़ का रास्ता नहीं है अब्बू्. आप कहां जा रहे हैं?’’
लेकिन कोई कुछ नहीं बोला. निशा को शक हुआ लेकिन वह बेबस थी. अफरोज व मामा ने आगे जा कर एक जगह मोटरसाइकिलें रोक दीं. तब तक रात के 9 बज चुके थे.
नहर की पटरी पर पहुंचते ही निशा को मोटरसाइकिल से उतार लिया गया और पकड़ कर एक ओर ले जाने लगे. निशा को समझते देर नहीं लगी कि आज उस के साथ कुछ गलत होने वाला है. वह चिल्लाई, लेकिन रात का समय था और दूरदूर तक वहां कोई नहीं था.
पिता और मां ने निशा के हाथ पकड़ लिए. मामा ने तमंचे की नाल उस की गरदन पर सटा कर गोली चला दी. गोली लगते ही तीखी चीख के साथ वह वहीं गिर गई. उस के गिरते ही उसे झाडि़यों में फेंक कर सभी लोग वहां से चले गए.
हत्यारोपियों ने सोचा था कि बेटी को मार कर अलीगढ़ से दूर फेंक दिया है. उस की शिनाख्त नहीं हो सकेगी और पुलिस लावारिस मान कर लाश का अंतिम संस्कार कर देगी. आमिर और निशा दोनों की हत्या राज ही बनी रहेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. गले में गोली लगने के बाद भी निशा बच गई और पुलिस को सच्चाई बता दी. अन्यथा औनर किलिंग की यह घटना हादसा बन कर रह जाती.
आमिर का परिवार निशा के साथ उस के रिश्ते से बेखबर था. आमिर के पिता अकील के मुताबिक आमिर ने कभी निशा के साथ रिश्ते को ले कर घर में जिक्र नहीं किया था. आमिर का रिश्ता अगलास थाना क्षेत्र की एक युवती के साथ तय हो गया था. घर वाले उस की शादी की तैयारियों में मशगूल थे. आमिर की मौत से परिवार गम में डूब गया.
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निकाह तय होने के बाद आमिर घर वालों से खफा रहने लगा था. वह अलीगढ़ से दूर जा कर निशा के साथ अपनी अलग दुनिया बसाना चाहता था. आमिर और निशा ने इस की तैयारी भी कर ली थी. लेकिन इन का सपना पूरा होने से पहले ही टूट गया.
उधर अलीगढ़ पुलिस ने आमिर की मौत को हादसा समझ कर मुकदमा दर्ज कर लिया था. हालांकि पुलिस इस की जांच कर रही थी, लेकिन निशा के जिंदा मिलने पर पूरी घटना साफ हो गई.
इस जानकारी के बाद अलीगढ़ पुलिस ने इस मामले को हत्या में दर्ज करने के साथ ही निशा के मामा हफीज व नाबालिग भाई को क्वासी के शहंशाहबाद इलाके वाले घर से गिरफ्तार कर लिया.
गिरफ्तार करने वाली पुलिस टीम में इंसपेक्टर अमित कुमार एसएसआई योगेश चंद्र गौतम, एसआई चमन सिंह, नितिन राठी, कांस्टेबल पंकज कुमार, जनक सिंह और ऋषिपाल सिंह यादव शामिल थे.
अलीगढ़ के एसएसपी आकाश कुलहरि ने प्रैसवार्ता में बताया कि आरोपी चालाकी कर के बचना चाहते थे. बेटी के प्रेमी की हत्या अलीगढ़ में और बेटी की हत्या एटा जिले में कर के उन्होंने पुलिस को गुमराह करने का प्रयास किया था. लेकिन उन की योजना निशा के बच जाने से धरी की धरी रह गई.
बहरहाल, हफीज, अफरोज व नूरजहां को आमिर के कत्ल व निशा की हत्या के प्रयास में जेल और नाबालिग को बालसुधार गृह भेज दिया गया. इस तरह एक प्रेमकहानी पूरी होने से पहले ही खत्म हो गई.
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कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां
बिहार राज्य के मुजफ्फरपुर जिला अंतर्गत डकरामा नाम के गाँव में डायन के नाम पर तीन महिलाओं को सिर मुड़वाकर, पेशाब पिलाई और पूरे गाँव मे घुमाया.तीन औरतें लाचार बैठी हैं. पास खड़ी भीड़ शोर कर रही है. उन औरतों का सिर का मुंडन किया जा रहा है और पेशाब पिलाया जा रहा है. और लोग हँस रहे हैं. इस तरह का वीडियो वायरल हो रहा है. एक आदमी जब मदद करने के लिए आया तो उसे भी यही सजा सुना दी गयी जो इन औरतों को सुनाई गयी थी.उसके बाद पंचायत ने तीनों औरतों को गाँव से निकाल दिया.वे लोग चली भी गयीं.एक औरत इस गाँव की थी बाकी दो उसके रिश्तेदार थे.
द फ्रीडम के संस्थापक सुधीर कुमार ने दिल्ली प्रेस को बताया कि एक ओर सरकार, प्रशासन और बुद्धिजीवी तबका डायन प्रथा को खत्म करने के प्रयास में जुटा है, दूसरी ओर पुरोहित बिरादरी और पाखंड समर्थक पूरे जोर-शोर से डायन प्रथा को बढ़ावा देने में लगे हुए हैं. पुरोहितों और उनकी ढकोसलेबाजी का प्रमुख समर्थक मीडिया भी इसमें अप्रत्यक्ष रूप से खूब समर्थन कर रहा है.
पहले हम जानते हैं कि डायन प्रथा का मूल आधार क्या है ? डायनों के बारे में कहा जाता है कि वह मंत्र पढ़कर (देहातों में बान मारना भी कहा जाता है) किसी की जान ले सकती है या फिर बीमार कर दे सकती है.मंत्र और टोटके के सहारे वह ऐसे कारनामें कर सकती है, जो और किसी भी तरह संभव ही नहीं है.यानी मंत्रों में शक्ति होती है, यह डायन प्रथा का मुख्य आधार है.
विज्ञान के विकास ने और मानवाधिकारों के प्रति बढ़ती जागरुकता ने इन ढकोसलों के खिलाफ काफी काम किया है. लोगों को लगातार लंबे अरसे तक समझाने के बाद काफी हद तक यह समझाने में सफलता मिली है कि डायन का असर केवल मन का वहम है.ऐसा कुछ नहीं होता. बीमारियों और मौतों के पीछे दूसरे कारण होते हैं.
परंतु, दूसरी ओर हर धर्म के पुरोहित लगातार मंत्रवाद को बढ़ावा देने में लगे हुए हैं.वे दिन-रात इस थ्योरी में लगे रहते हैं कि मंत्रों में शक्ति होती है.मंत्रों का असर होता है. हालांकि मंत्रों के असर का षड्यंत्रों का काफी हद तक पर्दाफाश हो चुका है, लेकिन पुरोहित वर्ग इसे फिर से लोगों के मन में बिठाने में लगा है. इसमें पूरा साथ दे रहा है मीडिया.
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लगभग सभी समाचार पत्रों और चैनलों में मंत्रों की महिमा बार-बार बताई जा रही है. फलाने मंत्र से यह लाभ होता है, फलाने मंत्र से शक्ति बढ़ती है, फलाने मंत्र से पुत्रों की रक्षा होती है.कई बार तो यह चुटकुला की हद तक हास्यास्पद हो जाता है.जैसे हाल ही में नागपंचमी के दिन एक समाचार पत्र में छपा कि फलाने मंत्र के जाप से सर्पदंश का असर कम हो जाता है.पाखंड फैलाने वाला यह आलेख आधे पेज पर छपा था.यह लिखने वाला पुरोहित और छापने वाला संपादक दोनों ही जानते हैं कि यह कोरा पाखंड फैलाने से अधिक कुछ नहीं है.
इसी तरह चैनलों और अखबारों में देवी-देवताओं को खुश करने वाले मंत्र लगातार बताये जा रहे हैं. कई दीर्घायु होने के मंत्र भी हैं. हालांकि हाल के वर्षों में देवताओं को खुश करने में लगे भक्त ही थोक में मर रहे हैं या मारे जा रहे हैं.केदारनाथ, वैष्णो देवी, बोलबम यात्रा से लेकर हज आदि इसके ढेर सारे उदाहरण हैं.
पुरोहित वर्ग लगातार ढोंग ढकोसले फैलाने के उपाय तलाशते रहता है. कभी गणेश को दूध पिलाकर, कभी पेड़ में देवी-देवताओं के चेहरे दिखाकर.और फिर ढेर सारे पर्व-त्यौहार तो हैं ही.
लेकिन मंत्रों का प्रभाव बताना इन सबमें सबसे अधिक खतरनाक है. यह सीधे तौर पर डायन प्रथा और झाड़-फूंक को बढ़ावा देना है. अपनी दुकानदारी चलाने के लिए पुरोहित वर्ग यह लगातार कर रहा है.शर्मनाक है कि इसमें मीडिया घराने भी सहयोग कर रहे हैं. तिलक लगाने वाले ढोंगियों का बाजार गुलजार हो जाएगा, यह उतना खतरनाक नहीं है.लेकिन मंत्रों का असर अगर लोगों को दिमाग में बैठने लगा तो फिर डायन के नाम पर गरीब और लाचार औरतों की शामत आएगी ही.उन पर अमानवीय जुल्म तेजी से बढ़ने लगेंगे.
इसी तरह हवन आदि कर्मकांडों को भी बढ़ावा देने पर जोर दिया जा रहा है.चंद दिन पहले कोरोना जब फैलना शुरू हुआ था तो पाखंड समर्थकों ने देश भर में हवन किया.दूसरे मजहब के पाखंडियों ने अल्लाह से रहम की अपील और गॉड की विशेष प्रार्थना शुरू कर दी.हवन और दुआ में इतनी ही शक्ति है तो फिर खुद पुजारी, मौलवी और पादरी अस्पताल में भर्ती होने की मूर्खता क्यों कर रहे हैं? जो भगवान अपना मंदिर और जो खुदा अपनी मस्जिद नहीं बचा सकता, वह दूसरों को क्या बचाएगा?
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ऐसा ही नजारा क्रिकेट विश्वकप के दौरान भी दिखता है. प्रशंसक टीम को जीतने के लिए हवन करते हैं.जब टीम हारती है तो क्रिकेटरों पर गुस्सा करते हैं. अरे मूर्खों, जब तुम्हारे देवताओं की जीत दिलाने की औकात नहीं थी तो बेचारे क्रिकेटर तो साधारण मनुष्य हैं.अखबार वाले भी देवी-देवताओं की बजाय खिलाड़ियों को कोसने लगते हैं.इससे यह तो साफ जाहिर हो जाता है कि सबको पता है कि हवन और प्रार्थना सिवाय ढोंग-ढकोसला के और कुछ नहीं है. लेकिन पुरोहित प्रपंच जारी रखने के लिए यह आवश्यक है.चाहे देश जितना बदहाल हो जाए. मंत्र की शक्ति साबित करने के पाखंड को बढ़ावा देते रहेंगे.
पुरोहितों को इससे क्या ? उन्हें तो सिर्फ अपनी दुकान की फिक्र है. वे अपनी दुकान चलाने के लिए साईं को लेकर तो धर्मसभा कर सकते हैं, लेकिन एक बार भी डायन प्रथा का विरोध नहीं कर सकते. लेकिन वे भी बेचारे क्या करें, डायन प्रथा को झूठा कहेंगे तो उनके मंत्रों के पाखंड का पर्दाफाश हो जाएगा. उनकी दुकान बंद होने लगेगी.और मीडिया भी आजकल दुकानदारी ही हो गया है. उसे चाहिए मसाला और विज्ञापन चाहे निर्मल जैसे चुटकुलेबाज बाबा को ही क्यों न दिन-रात चलाना पड़े. चाहे इसके लिए लोगों को जागरूक करने की बजाय अंधविश्वास ही क्यों न फैलाना पड़े.अंधविस्वास के विरोध में सच्चाई के पक्ष में दिल्ली प्रेस की पत्रिकाएँ लगातार आर्टिकल प्रकाशित करते रहती है.चंद मीडिया घराना और कुछ सामाजिक संगठन लगातार संघर्षरत हैं.लेकिन उनलोगों के सामने इनका संघर्ष छोटा पड़ जा रहा है.
तो फिर हाल क्या है? पुरोहितों को तो कोई समझा नहीं सकता कि अब पाखंड फैलाना बंद करो. जो लोग डायन प्रथा को गलत मानते हैं, उन्हें मुखर होना पड़ेगा.डायन प्रथा की जड़ पर प्रहार करना होगा.वह यह है कि लोगों को बताया जाए कि मंत्रों में, दुआओं में, हवन-रोजा, नमाज में कोई शक्ति नहीं होती.ये सब पाखंड और शोषण के तरीके हैं.यह पुरोहितों की चाल है अपनी दुकानदारी चमकाने के लिए.
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सीधी सी बात है कि अगर आप मानते हैं कि मंत्र, दुआ और प्रार्थना में शक्ति होती है तो आप भी डायन प्रथा के समर्थक हैं, क्योंकि डायन प्रथा का मूलाधार ही यही है.डायन प्रथा के झूठे विरोध की नौटंकी मत कीजिए.
जावेद और राहिल काफी शातिर दिमाग थे. दोनों जानते थे कि स्थानीय स्तर पर ठगी का कारोबार ज्यादा दिन नहीं चल पाएगा, इसलिए फरजी कालसेंटर के जनक माने जाने वाले सागर ठक्कर उर्फ शग्गी से प्रेरणा ले कर दोनों ने द यूनाइटेड स्टेट्स सोशल सिक्युरिटी एडमिनिस्ट्रेशन के नाम पर अमेरिकी नागरिकों को ठगने की योजना बनाई. उन्होंने पहले अहमदाबाद, फिर पुणे में कुछ समय तक ठगी का कारोबार करने के बाद इंदौर का रुख किया.
इंदौर में दोनों 2018 से इस तरह के 2 कालसेंटर चला रहे थे. इस काम के लिए उन्होंने काफी हाइटेक उपकरण जमा कर रखे थे. अमेरिकी नागरिकों को झांसा देने के लिए पूर्वोत्तर राज्यों के युवकयुवतियों को नौकरी देने के नाम पर अपने साथ जोड़ लिया था.
इस के 2 कारण थे, पहला तो यह कि इन राज्यों के युवकों की अंगरेजी भाषा पर अच्छी पकड़ होती है. दूसरे उन का अंगरेजी बोलने का लहजा अमेरिकी लहजे से काफी मिलताजुलता होता है.
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इंदौर में जावेद और राहिल के 2 कालसेंटरों से जो 75 से ज्यादा युवकयुवती पकड़े गए, उन्हें जावेद रहनेखाने के खर्च के अलावा 22 हजार रुपए प्रतिमाह वेतन देता था. सभी के रहने के लिए इंदौर की महंगी कालोनियों में 30 हजार रुपए प्रतिमाह किराए पर फ्लैट लिए गए थे. युवकयुवतियों को एक साथ रहने की सुविधा दी गई थी.
शटर बंद कर के करते थे काम
चूंकि ठगी अमेरिकी नागरिकों से की जाती थी, इसलिए जावेद का कालसेंटर रात 10 बजे खुलता था. वजह यह कि जब भारत में रात के 10 बजे होते हैं, तब अमेरिका में सुबह के लगभग 11 बजे का समय होता है. रात के 10 बजे शटर उठा कर सभी कर्मचारियों को अंदर कर शटर बंद कर दिया जाता था. जिस के बाद असली खेल शुरू होता था.
लीड जैक इंफोकाम और सर्वर के माध्यम से एक साथ 10 हजार अमेरिकी नागरिकों को वायस मैसेज भेजा जाता था. मैसेज द यूनाइटेड स्टेट्स सोशल सिक्योरिटी एडमिनिस्ट्रेशन अधिकारी की तरफ से भेजा जाता था, जिस में कभी कर चोरी तो कभी उन की गाड़ी के आपराधिक मामले में इस्तेमाल किए जाने की रिपोर्ट से संबंधित वायस मैसेज होता था. इस के अलावा ऐसे ही कई दूसरे मामलों में उन के खिलाफ शिकायत मिलने की बात कह कर एक टोल फ्री नंबर पर कौंटैक्ट करने को कहा जाता था.
वायस मैसेज भेजने वाली नौर्थ ईस्ट की लड़कियां इस लहजे में मैसेज देती थीं कि कोई भी अमेरिकी नागरिक उन के अंगरेजी बोलने के लहजे से यह नहीं सोच सकता था कि वह किसी भारतीय लड़की की आवाज है.
इस के लिए मैजिक जैक डिवाइस का उपयोग किया जाता था. मैजिक जैक एक ऐसी डिवाइस है जिसे कंप्यूटर व लैंडलाइन फोन से कनेक्ट कर विदेशों में काल कर सकते हैं. इस से विदेश में बैठे व्यक्ति के फोन पर फेक नंबर डिसप्ले होता है. यह वायस ओवर इंटरनेट प्रोटोकाल (वीओआईपी) के प्लेटफार्म पर चलती है. इस से अमेरिका और कनाडा में काल कर सकते हैं और रिसीव भी कर सकते हैं.
एसपी जितेंद्र सिंह के अनुसार ठगी का कारोबार 3 स्तर पर पूरा होता था. ऊपर बताया गया काम डायलर का होता था. इस के बाद काम शुरू होता था ब्रौडकास्टर का. जिन 10 हजार अमेरिकी नागरिकों को फरजी तौर पर द यूनाइटेड स्टेट्स सोशल सिक्योरिटी एडमिनिस्ट्रेशन अधिकारी की ओर से नियम तोड़ने या किसी अपराध से जुड़े होने की शिकायत मिलने का फरजी वायस मैसेज भेजा जाता था, उन में से कुछ ऐसे भी होते थे जिन्होंने कभी न कभी अपने देश का कोई कानून तोड़ा होता था.
इस से ऐसे लोग और कुछ दूसरे लोग डर जाने के कारण मैसेज में दिए गए नंबर पर फोन करते थे. इन काल को ब्रौडकास्टर रिसीव करता था, जो प्राय: नार्थ ईस्ट की कोई युवती होती थी.
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आमतौर पर ऐसे लोगों द्वारा किए जाने वाले संभावित सवालों का अनुमान उन्हें पहले से ही होता था, इसलिए ब्रौडकास्टर युवती सामने वाले को कुछ इस तरह संतुष्ट कर देती थी कि अच्छाभला आदमी भी खुद को अपराधी समझने लगता था.
जब कोई अमेरिकी जाल में फंस जाता था, तो उस की काल तीसरे स्टेज पर बैठने वाले क्लोजर को ट्रांसफर कर दी जाती थी.
यह क्लोजर पहले तो विजिलेंस अधिकारी बन कर अमेरिकी लैंग्वेज में कठोर काररवाई के लिए धमकाता था, फिर उसे सेटलमेंट के मोड पर ला कर गिफ्ट कार्ड, वायर ट्रांसफर, बिटकौइन और एकाउंट टू एकाउंट ट्रांजैक्शन के औप्शन दे कर डौलर ट्रांसफर के लिए तैयार कर लेता था.
इस के बाद गिफ्ट कार्ड के जरिए अमेरिकी खातों में डौलर में रकम जमा करवा कर उसे हवाला के माध्यम से भारत मंगा कर जावेद और राहिल खुद रख लेते थे. हवाला से रकम भेजने वाला 40 प्रतिशत अपना हिस्सा काट कर शेष रकम जावेद को सौंप देता था.
एसपी जितेंद्र सिंह के अनुसार यह गिरोह रोज रात को कालसेंटर खुलते ही एक साथ नए 10 हजार अमेरिकी लोगों को फरजी वायस मैसेज भेजने के बाद फंसने वाले लोगों से लगभग 3 से 5 हजार डौलर यानी लगभग 3 लाख की ठगी कर सुबह औफिस बंद कर अपने घर चले जाते थे.
अनुमान है कि जावेद और राहिल के गिरोह ने अब तक लगभग 20 हजार से अधिक अमेरिकी नागरिकों से अरबों रुपए ठगे होंगे. उस के पास 10 लाख दूसरे अमेरिकी नागरिकों का डाटा भी मिला, जिन्हें ठगी के निशाने पर लिया जाना था.
गिरोह का दूसरा मास्टरमाइंड राहिल छापेमारी की रात अहमदाबाद गया हुआ था, इसलिए वह पुलिस की पकड़ से बच गया जिस की तलाश की जा रही है.
राहिल के अलावा संतोष, मिनेश, सिद्धार्थ, घनश्याम तथा अंकित उर्फ सन्नी चौहान को भी पुलिस तलाश रही है, जो इस फरजी कालसेंटर को 12 से 14 रुपए प्रति अमेरिकी नागरिक का डाटा उपलब्ध कराते थे.
कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां
घटना 10 जून, 2019 की है. इंदौर साइबर सेल के एसपी जितेंद्र सिंह ने साइबर सेल के अफसरों और कुछ सहकर्मियों को अपने केबिन में बुला कर इंदौर के किसी क्षेत्र में छापा डालने के बारे में बताया. छापेमारी में कोई चूक न हो इस के लिए हर पुलिसकर्मी की शंका और उस के समाधान के बारे में 4 घंटे तक मीटिंग चली. इस के बाद एसपी जितेंद्र सिंह के निर्देश पर रात लगभग साढ़े 12 बजे 2 टीमें बनाई गईं.
इन टीमों में एसआई राशिद खान, आमोद राठौर, संजय चौधरी, विनोद राठौर, रीना चौहान, पूजा मुबेल, अंबाराम प्रधान व सिपाही आनंद, दिनेश, रमेश, विजय विकास, राकेश और राहुल को शामिल किया गया. इन टीमों को सी-21 मौल के पीछे स्थित टारगेट पर धावा बोलना था. समय तय कर दिया गया था.
मामला काफी गंभीर था, इसलिए टीमों के रवाना होने के बाद एसपी जितेंद्र सिंह बैकअप देने के लिए औफिस में ही बैठे रहे. उन्हें भेजी गई टीमों से मिलने वाली सूचनाओं का इंतजार करना था. साइबर सेल के एसपी जितेंद्र सिंह को 25 दिन पहले सी-21 मौल के पीछे स्थित प्लाजा प्लैटिनम के 2 तलों पर संदिग्ध गतिविधियां संचालित होने की जानकारी मिली थी.
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एसआई राशिद खान ने जो सूचना जुटाई थी, उस के अनुसार प्लैटिनम में 2 औफिस रात को 11 बजे खुलते थे और सुबह होते ही बंद हो जाते थे. लगभग सौ सवा सौ युवकयुवतियां रात 11 बजे औफिस में जाते थे. इस के बाद सुबह तक के लिए शटर बंद हो जाता था. वहां क्या होता है, इस का किसी को पता नहीं था. हां, इतना आभास जरूर था कि वहां जो भी होता है, वह कानून के दायरे के बाहर थी.
एसपी जितेंद्र सिंह ने इस संबंध में जो जानकारी जुटाई, उस में पता चला कि संदिग्ध औफिस के मालिक पिनकेल डिम व श्रीराम एनक्लेव में रहने वाले जावेद मेनन और राहिल अब्बासी हैं, जो रईसी की जिंदगी जी रहे हैं. ये लोग क्या काम करते हैं, इस की जानकारी किसी को नहीं थी.
एसपी जितेंद्र सिंह को सब से बड़ी बात यह पता चली कि इन औफिसों में काम करने वाले युवकयुवतियों में 80 प्रतिशत से अधिक भारत के पूर्वोत्तर राज्यों से हैं.
जावेद ने इन लोगों को आसपास के इलाकों में किराए पर फ्लैट ले क र दे रखे थे. पूर्वोत्तर के नागरिक आसानी से इंदौर के लोगों में घुलमिल नहीं सकते थे, इसलिए साफ था कि ऐसे कर्मचारियों का चुनाव आमतौर पर तभी किया जाता है, जब संबंधित व्यक्ति अपने कार्यकलाप को गुप्त रखने की मंशा रखता हो.
एसपी जितेंद्र सिंह इस बात को अच्छी तरह समझते थे, इसलिए दबिश देने पर आपराधिक गतिविधियों का खुलासा हो सकता था. एसपी साहब ने इस मामले की सूचना पुलिस महानिदेशक पुरुषोत्तम शर्मा, अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक राजेश गुप्ता व अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक अशोक अवस्थी को पहले दे दी थी. अब उन्हें परिणाम का इंतजार था.
उस समय रात का 1 बजा था, जब एसआई राशिद खान की टीम ने सी-21 मौल के पीछे स्थित टारगेट के दरवाजे पर दस्तक दी. कुछ देर के इंतजार के बाद शटर उठाया गया तो एसआई राशिद खान पूरी टीम के साथ धड़धड़ाते हुए अंदर दाखिल हो गए. औफिस में अंदर रखी करीब 20-22 टेबलों पर 60-70 कंप्यूटरों की स्क्रीन चमक रही थीं.
110-112 के आसपास युवकयुवतियां एक ही स्थान पर मौजूद थे. उस दिन किसी महिला कर्मचारी का जन्मदिन था, इसलिए औफिस का मालिक जावेद मेनन भी वहां मौजूद था. उस ने युवती का जन्मदिन सेलिब्रेट करने के लिए खुद ही केक मंगवाया था.
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पुलिस को आया देख वहां मौजूद सभी कर्मचारी घबरा गए. राशिद खान की टीम ने उन्हें केक काटने का समय दिया. इस के बाद वहां चल रहे कंप्यूटरों की जानकारी खंगाली गई तो टीम की आंखें फटी रह गईं. वास्तव में वहां की 2 मंजिलों पर 2 ऐसे कालसेंटर चल रहे थे, जो इंदौर में बैठ कर हाइटेक तरीके से अमेरिकी नागरिकों को ठगने का काम करते थे.
कालसेंटर के मालिक जावेद मेनन ने पहले तो पुलिस को अपने द्वारा किए जा रहे काम को लीगल ठहराने की कोशिश करते हुए वहां से खिसकने की सोची, लेकिन साइबर सेल की सतर्कता से उसे ऐसा मौका नहीं मिला.
इस दौरान हुए खुलासे की जानकारी मिलने पर एसपी जितेंद्र सिंह खुद भी मौके पर पहुंच गए. उन के पहुंचने के बाद देर रात शुरू हुई काररवाई अगले दिन सुबह तक चली. इस काररवाई में जावेद मेनन और उस के राइट हैंड शाहरुख के साथ 8 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया, जिन में पूर्वोत्तर राज्यों की रहने वाली लड़कियां भी शामिल थीं.
पुलिस टीम ने कालसेंटर से 60 कंप्यूटर, 70 मोबाइल फोन, सर्वर और अन्य गैजेट्स तथा लगभग 10 लाख अमेरिकी नागरिकों का डाटा बरामद किया.
गिरफ्तार आरोपियों से पूछताछ में स्थिति साफ होने पर उन के खिलाफ 468, 467, 471, 420, 120बी, आईपीसी और 66 डी आईटी एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया.
गिरफ्तार किए गए सभी 78 युवकयुवतियों को 2 चार्टर्ड बसों में भर कर अदालत ले जाया गया और उन्हें अदालत के सामने पेश किया गया, जहां से पुलिस ने पूछताछ के लिए जावेद मेनन, भाविल प्रजापति और शाहरुख मेनन को रिमांड पर ले लिया, जबकि नगालैंड, मेघालय, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और हरियाणा सहित 10 राज्यों के रहने वाले 75 युवकयुवतियों को जेल भेज दिया गया.
जावेद मेनन, भाविल प्रजापति और शाहरुख मेनन से पूछताछ के बाद उन के औफिस दिव्या त्रिस्टल, प्लैटिनम प्लाजा, घर पिनेकल डीम और श्रीराम एनक्लेव में छापा मारा गया. करीब 5 घंटे की तलाशी के बाद पुलिस ने वहां से फरजीवाड़े से संबंधित ढेरों सामग्री जब्त की.
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इस के बाद पूछताछ में तीनों आरोपियों ने जो बताया, उस के आधार पर पता चला कि जावेद मेनन और उस का दोस्त राहिल अब्बासी मूलरूप से अहमदाबाद के रहने वाले थे. दोनों 2018 में इंदौर आए थे. यहां उन्होंने बीपीओ कंपनी की आड़ में कालसेंटर शुरू किए.
इंदौर में दोनों ने जिस कंपनी के नाम से किराए पर इमारतें लीं, वे विपिन उपाध्याय के नाम से रजिस्टर्ड हैं. जबकि इस के वास्तविक मालिक जावेद और राहिल हैं. कंपनी विपिन के नाम थी, इसलिए इस कंपनी के नाम से ही किराए का एग्रीमेंट किया गया था.
कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां
बिहार राज्य के सिवान जिला अंतर्गत जानकीनगर गाँव में पंचायत ने एक युवती को तालिबानी सजा दी है. प्रेमी के साथ फरार रहने के आरोप में उसे भरी पंचायत में गर्म सरिया से दागा गया. पंचायत में युवती अपनी सफाई देती रही लेकिन किसी ने उसकी बात नहीं सुनी.
इस तरह की घटनाएँ पूरे देश से आते रहती है. कहीं तो चुपके रूप से कभी बेटी की हत्या उसके परिवार वालों द्वारा किया जाता है.कभी प्रेमी प्रेमिका दोनों की हत्या की जाती है. ग्रामीण क्षेत्रों में प्रेम करना महापाप घोर अन्याय के रूप में देखा जाता है.
जब गाँव में प्रेम का कोई मामला आता है तो पंचायत बुलायी जाती है. फैसला करने वाले अधिकांशतः गाँव के बुजुर्ग और प्रतिष्ठित लोग होते हैं. जिनका गाँव में मान सम्मान होता है.आज भी लोग गाँव में दकियानूसी विचारों से ग्रसित होकर तरह तरह के तालिबानी फैसला सुनाते रहते हैं.थूक गिराकर चटाना,बाल मुड़ाकर चुना का टीका लगाकर गधा पर बैठाकर पूरे गाँव में घुमाना, पाँच जाति के लोगों द्वारा दस दस जूते मारना से लेकर आर्थिक और शारीरिक दण्ड देने का रिवाज आज भी कमोवेश चालू है.आज भी डायन के नाम पर महिलाओं को पेशाब पिलाने,नँगा करके घुमाने जैसी कुकृत्य इन पंचों द्वारा सुनाये जाते हैं.
बहुत सारी इस तरह की घटनाएँ प्रकाश में नहीं आती.गाँव स्तर तक ही सीमित रहकर दबा दी जाती है. अब ग्रामीण क्षेत्रों में भी लोगों के पास एंड्रॉयड मोबाइल है और इस तरह की घटनाओं का वीडियो वायरल होने लगा है जिसकी वजह से बहुत सारे मामले प्रकाश में आ जाते हैं.
हम अपने लड़के लड़कियों को पढा लिखाकर नॉकरी कराना चाहते हैं.अपने आपको गाँव में भी रुतबा दिखाना चाहते हैं. लेकिन वही लड़के लड़कियाँ जब आपस में प्रेम करने लगते हैं. साथ जीने मरने का ख्वाब देखने लगते हैं तो नागवार गुजरने लगता है. इज्जत में बट्टा लगने लगता है. ऐसा महसूस होने लगता है कि अब हम समाज में रहने लायक नहीं हैं.
गाँव में अगर अपने जाति बिरादरी में कोई लड़का लड़की प्रेम करता है तो यह घोर अपराध है. एक ही गाँव में एक जाति के लड़के लड़कियों की शादी नहीं हो सकती.दूसरी तरफ अन्य जाति वाले लोगों से तो प्रेम करना भी पाप है और अगर कहीं कर लिया और लोगों को जानकारी हो गयी तो दोनों लोगों की खैरियत नहीं.
यहाँ प्यार करनेवाले लोगों के लिए सिर्फ एक ही उपाय है. वह है पलायन.यानी लड़का लड़की को सदा के लिए अपने माँ बाप को छोड़कर कहीं दूसरे जगह चले जाना.उसमें भी अगर पुलिस वाले ने पकड़ लिया तो तरह तरह की परेशानियाँ. मारपीट धमकी से लेकर जेल तक.
हम एक सभ्य समाज मे जी रहें हैं.इस तरह के पंचायत में जो फैसले लिए जाते हैं.जिनके द्वारा यह फैसला सुनाया जाता है.वे गाँव के सबसे मानींदे और उँच्चे कद के ब्यक्ति होते हैं.उनका सम्मान और इज्जत पूरे गाँव वालों द्वारा किया जाता है.तभी तो उनकी किसी भी हद दर्जे तक निच्चे गिरी हुवी बातों को भी पूरा समाज मान लेता है.अगर आप गाँव के सम्मानित ब्यक्ति हैं तो आपका सोंच भी उँच्चे दर्जे का होना चाहिए लेकिन अफसोस इस बात का है कि भौतिक रूप से हम भले ही कुछ विकसित हो गए है.वैचारिक रूप से हम आज भी जात ,धर्म की संकीर्णताओं से ऊपर नहीं उठ पा रहे हैं.
हमारा समाज आज जितना भी आधुनिक और मॉडर्न होने का राग अलापते रहे.अलग धर्म जाति में प्रेम और विवाह करने के मामले में हमारा सोंच अभी भी दकियानूसी विचारों को ही ढो रहा है.पढ़े लिखे बुद्धिजीवि प्रगतिशील कहे जाने वाले लोग भी इस खोल से बाहर नहीं निकल पाए हैं.
आय दिन समाज और परिवार वालों द्वारा प्रेम करने वाले लड़के लड़कियों को जब इजाजत नहीं दी जाती तो प्रेम में मर मिटने की कसम खाने वाले युवा युवती आत्महत्या तक का रुख अपना रहे हैं.
युवा हो रहे लड़के लड़कियाँ आपस मे प्रेम करेंगे ही.यह जरूरी नहीं है कि प्रेम अपने जाति बिरादरी और अपने धर्म सम्प्रदाय वाले के बीच ही हो.प्रेम तो इन सबसे ऊपर ही होता है.
जरूरत है कि भौतिकता के साथ साथ आधुनिक सोंच को भी वैज्ञानिक और तर्क के दृष्टिकोण से वास्तविक बातों को धरातल पर सोंचने का प्रयास करें.
जब हमारे बच्चे इंजीनियरिंग डॉक्टरी और अन्य पढ़ाई पढ़ने के लिए कॉलेजों विश्वविद्यालयों
में जायेंगे तो वहाँ विपरीत लिंगों के साथ आकर्षण बढ़ना एक स्वभाविक प्रक्रिया है.हम अपने लड़के लड़कियों के हर बदलाव खान पान,रहन सहन,उनके बदलते संस्कार को जब स्वीकार कर रहें है तो प्रेम को भी स्वीकार करना पड़ेगा तभी हम विकसित और मॉडर्न समाज की कल्पना कर सकते हैं.
सिर्फ हमें फिल्मों और कहानियों में तो प्यार की कहानियाँ अच्छी लगती है. लेकिन जब हमारे समाज परिवार में लड़के लड़कियाँ आपस में प्यार करते हैं. साथ मरने जीने की कसमें खाते हैं तो हमें नागवार गुजरता है. बदलते दौर में हमारी मानशिकता भी बदलनी होगी.सोंच को नया आयाम देगा होगा.