समाजसेवा के नाम पर चलाए जा रहे आश्रयगृहों यानी रिमांड होम को सरकारी अफसरों और सफेदपोशों ने एक तरह का चकलाघर बना कर रख दिया है. इस के चलते अपनों से बिछड़ी और भटकी मासूम बच्चियां और आपराधिक मामलों में फंसी महिलाएं बंदी समाज के रसूखदारों की घिनौनी हरकतों की वजह से जिस्मफरोशी के दलदल में फंस कर रह जाती हैं.

कई लड़कियों ने बताया कि उन्हें नशे की हालत में ही जहांतहां भेजा जाता था. बेहोशी की हालत में उन के साथ क्याक्या किया जाता था, इस बारे में उन्हें कुछ पता नहीं चलता था. उन्हें बस इतना ही पता चलता था कि उन के पूरे बदन में भयानक दर्द और जलन होती थी.

पटना के गायघाट इलाके में बने महिला रिमांड होम (उत्तर रक्षा गृह) में कुल 136 बंदी हैं. उन के नहाने और कपड़े धोने की बात तो दूर, पीने के पानी का भी ठीक से इंतजाम नहीं है. कमरों में रोशनी और हवा का आना मुहाल है. तन ढकने के लिए ढंग के कपड़े तक मुहैया नहीं किए जाते हैं. इलाज का कोई इंतजाम नहीं होने की वजह से बीमार संवासिनें तड़पतड़प कर जान दे देती हैं.

पिछले साल टाटा इंस्टीट्यूट औफ सोशल साइंसेज, मुंबई की रीजनल यूनिट ने बिहार के 110 सुधारगृहों और सुधार केंद्रों का सर्वे किया था. उस सर्वे में इस बात का खुलासा हुआ था कि 3 केंद्र मानवाधिकार का उल्लंघन कर रहे थे, जिस में मुजफ्फरपुर का बालिका सुधारगृह भी शामिल था. इस के अलावा मोतिहारी और कैमूर सुधार केंद्रों में भी मानवाधिकार के उल्लंघन का मामला सामने आया था.

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