जादू टोना : और एक महिला ने  दी अग्नि परीक्षा!

हम चाहे जितना भी आधुनिक होने का ढोल पीट लें, हम चाहे जितना भी दुनिया जहान में आधुनिक होने, विकासशील होने का दंभ भरें. मगर सच्चाई यह है कि आज भी देश के ग्रामीण अंचल में महिला को अग्नि परीक्षा देकर के अंगारों पर चलना पड़ता है, तब जाकर के समाज और परिवार की भौंहे ढीली पड़ती है.

कोई आपसे यह कहें कि आज भी भारत में अग्नि परीक्षा का वही समय चल रहा है जो कथित रूप से राम राज्य में था तो आप निश्चित रूप से इसे नहीं मानेंगे. और आपकी ही तरह शासन प्रशासन ने भी इसे व्यक्तिगत मामला कह कर के पल्ला झाड़ लिया है इसका अभिप्राय यह है कि कानून की किताब में इसका कोई उल्लेख नहीं होगा और ना ही संसद या विधानसभा में इस पर कोई चर्चा होगी.

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जी हां!  यह सच्चाई एक बार पुनः देश के सामने है. जब घर परिवार की एक घरेलू महिला को परिवार में प्रताड़ित होकर के इस दफा सास के समक्ष अग्नि परीक्षा देनी पड़ी है.और सबसे मजेदार बात यह है कि समाज कानून शासन आज भी  आंख बंद करके कानों को ढक करके मौन है.

यह सच्ची कहानी है मध्य प्रदेश के जिला छिंदवाड़ा के सौसर विकास खंड की. जहां एक महिला (लक्ष्मी बदला हुआ नाम) को अग्नि-परीक्षा देनी पड़ी. लक्ष्मी पर कथित रूप से सास ने आरोप लगाया  कि उसने टोना-टोटका करके अपने पति को अपने वश में कर लिया है!

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और इस छोटी सी साधारण बात पर  महिला को नंगे पैर सुलगते अंगारों पर चलना पड़ा. सौसर तहसील के  रामकोना गांव में 15 अगस्त आजादी के दूसरे दिन मोहर्रम पर्व के बीच एक दरगाह का वीडियो इंटरनेट मीडिया पर वीडियो वायरल  है, जिसमें एक बाबा महिला पर उसके रिश्तेदारों द्वारा कलंक लगाए जाने के बात कर रहा है. वह उस महिला को पाक साफ साबित करने के लिए बलते हुए अंगारों पर चलने का आदेश देता है. वीडियो आज लोग देख रहे हैं उसमें साफ देखा जा सकता है कि  महिला दो दफा गर्म अंगारों पर चल रही है. और जैसा कि सीता की अग्नि परीक्षा में दिखाया गया था यहां भी महिला का संयोग वश बाल भी बांका नहीं हुआ. अब सवाल यह है कि यह वीडियो कितना तथ्य पूर्ण है यह प्रशासन की जांच का विषय है.

पति को वश में करने का अपराध?

लक्ष्मी के मुताबिक  उसकी सास और ससुराल पक्ष के अन्‍य परिजन उस पर अपने ही पति को अपने वश में करने का आरोप लगा रहे थे.

अब समझने वाली बात यह है कि कोई पत्नी अपने पति को वश में नहीं रखेगी तो भला किसे रखेगी. अब इस बात पर भी किसी महिला को अग्नि परीक्षा देनी पड़े तो यह समाज की एक ऐसी त्रासदी है जिसका प्रतिउत्तर भी समाज को ही देना होगा.

कुल मिलाकर के पति को अपने कब्जे में करने के आरोप को लेकर ससुराल पक्ष के द्वारा महिला को  सबूत देने के लिए  बाबा की दरगाह में लाया गया था. मामला जब शासन प्रशासन तक पहुंचा है तब महिला का यह बयान सामने लाया गया है कि  उसने अपनी मर्जी से अंगारों पर चलकर अपनी बेगुनाही का सबूत दिया है. याने कि मामला खत्म! अब इस पर ना पुलिस कोई कार्रवाई करेगी और नहीं संसद में कोई चर्चा होगी. व्यक्तिगत मामला बताकर इस एक गंभीर प्रश्न को उसकी गर्भ में ही भ्रूण हत्या कर दी जाएगी.

ऑनलाइन वर्क: युवाओं में बढ़ता डिप्रेशन

कोरोना के बाद से वर्क फ्रौम होम और औनलाइन क्लासेज का कल्चर पूरे विश्व में बढ़ा है. इस कल्चर के जहां कुछ शुरुआती नफे दिखे, वहीं इस के उलट नुकसान भी दिखाई दे रहे हैं, खासकर, युवाओं को इन से अधिक जू झना पड़ रहा है.

वर्क फ्रौम होम और औनलाइन क्लासेज युवाओं की मैंटल हैल्थ को प्रभावित कर रहे हैं. आज साइकोलौजिस्ट के पास आने वालों में बड़ी संख्या युवाओं की है. वर्क फ्रौम होम और औनलाइन क्लासेज के साइड इफैक्ट्स युवाओं को बीमार बना रहे हैं.

कोरोना के चलते कालेज से ले कर औफिस तक में युवाओं की निर्भरता मोबाइल और नैटवर्क पर बढ़ गई है. शुरूआत के दिनों में इस सिस्टम की सभी ने तारीफ की. कुछ लोगों ने माना कि बढि़या व्यवस्था है. बिना औफिस और कालेज जाए काम चल रहा है. पेरैंट्स इस बात को ले कर खुश थे कि युवाओं की निगरानी नहीं करनी पड़ रही. खासतौर पर लड़कियां अगर घर में हैं तो पेरैंट्स एकदम से चिंतामुक्त थे. बड़े शहरों में काम करने वाले युवा अपने घर वापस आ गए थे और वर्क फ्रौम होम से काम करने लगे थे. शुरुआती दिनों में अच्छा लगने वाला यह माहौल धीरेधीरे मैंटल हैल्थ पर भारी पड़ने लगा.

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साइकोलौजिस्ट डाक्टर नेहा आनंद कहती हैं, ‘‘मेरी क्लीनिक में कई पेरैंट्स अपने युवा बच्चों को ले कर आ रहे हैं जो कालेज या यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले होते हैं या नईनई जौब में होते हैं. कुछ दिनों से या तो वे काफी गुस्से में रहने लगे हैं या फिर एकदम गुमसुम से हो गए हैं. कई में हाई ब्लडप्रैशर के लक्षण दिखने लगे हैं. उन से जब अच्छी तरह से बात की जाती है तो यह पता चलता है कि ‘वर्क फ्रौम होम’ और ‘औनलाइन क्लासेज’ की वजह से परेशानी बढ़ी है. ‘‘दरअसल, इन का उन के स्वास्थ्य पर ही प्रभाव नहीं पड़ रहा बल्कि उन के कार्य की क्षमता भी प्रभावित हो रही है और काम में गलतियां भी निकलने लगी हैं. सामान्य दिनों में अच्छी तरह से काम करने वाले लोग अब गलतियां करने लगे हैं.’’

बोझ बन गईं औनलाइन क्लासेज

ग्रेजुएशन में पढ़ रही वर्तिका बताती हैं, ‘‘शुरू में कुछ दिन तो औनलाइन क्लासेज अच्छी लगीं, लेकिन अब इस में दिक्कत आने लगी है. क्लास में क्या पढ़ाया जा रहा है सम झ नहीं आ रहा. नैटवर्क के कमजोर होने से कनैक्टिविटी सही नहीं होती. कोई जरूरी बात पूछनी हो तो समय निकल जाता है. कई युवा ऐसे होते हैं जो पढ़ाई को गंभीरता से नहीं ले रहे होते हैं. जिन की वजह से और दिक्कतें आती हैं. लगातार औनलाइन क्लासेज से आंखों पर जोर पड़ रहा है. इस के अलावा जब हम क्लासरूम में होते हैं तो केवल वहीं का ध्यान रखना पड़ता है. औनलाइन क्लासेज करते समय हमें पेरैंट्स और घर के दूसरे लोगों की बातें सुननी पड़ती हैं. बीचबीच में कुछ घर के काम भी मैनेज करने होते हैं. इन सब की वजह से अब औनलाइन क्लासें बो झ सी लगने लगी हैं.’’

क्लास ही नहीं, कोचिंग और ट्यूशन भी औनलाइन चल रहे हैं. कालेज और क्लासरूम में एकाग्रता बनी रहती थी. घर में पेरैंट्स की टोकाटाकी लगी रहती है. कालेज के दिनों में जब क्लासरूम में युवा होते थे तब उन का मोबाइल या तो बंद रहता था या फिर साइलैंट मोड पर होता था. औनलाइन क्लासों के समय मोबाइल खुला रहता है. इस वजह से तमाम मैसेज और नोटिफिकेशन आते रहते हैं. इस के कारण पढ़ाई से ध्यान भंग होता रहता है. एक ही जगह बंद रह कर काम करने से टैंशन और गुस्सा बढ़ने लगा है. जो डिप्रैशन और ब्लडप्रैशर को बढ़ाने का काम कर रहा है.

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वर्क फ्रौम होम ने बढ़ाए काम के घंटे

साइकोलौजिस्ट डाक्टर सोनल गुप्ता बताती हैं, ‘‘मैंटल हैल्थ की परेशानियों को ले कर आने वालों में सब से अधिक संख्या युवाओं की है. निजी कंपनियों में काम कर रहे युवा इस वजह से परेशान होते हैं कि उन के काम के घंटे खत्म हो गए हैं. वर्क फ्रौम होम में कंपनी यह मानती है कि हम घर से काम कर रहे हैं तो हमारे खर्चे घट गए हैं. उस ने तमाम तरह के इंसैंटिव खत्म कर दिए. सैलरी में कटौती कर दी. जब औफिस में काम करते थे तो काम के घंटे तय थे. अब सारे दिन और रात काम में लगे रहना पड़ता है. घरों में औफिस जैसा काम करने का माहौल नहीं है. ऐसे में काम करने में असुविधा होती है. औफिस में काम कई लोगों में बंट जाता था. कुछ सम झ नहीं आ रहा हो तो किसी सहयोगी से सलाह मिल जाती थी. अब ऐसा नहीं होता है, जिस की वजह से उन में तनाव बढ़ने लगा है.’’

यह सही है कि औफिस में काम करते समय दिनचर्या का रूटीन होता था. सुबह तैयार हो कर औफिस जाना, वहां दोस्तोंसहयोगियों से मिलना, रास्ते में शहर को देखते जाना आदि.

अब सुबह से शाम घर से ही काम करने में बोरियत होने लगी है. ऐसे में नौकरी के जाने, वेतन के कटने और दूसरी तमाम तरह की मुसीबतों से डिप्रैशन बढ़ने लगा है. यह युवाओं में तमाम तरह के हैल्थ इशू ले कर आ रहा है. हार्ट की बीमारियां ज्यादा बढ़ रही हैं.

दोस्त और सहयोगियों से दूरी

औफिस में तमाम ऐसे काम होते थे जो एकदूसरे की सलाह और सहयोग से पूरे हो जाते थे. वर्क फ्रौम होम में सारे काम खुद करने पड़ रहे हैं. ईमेल, व्हाट्सऐप, वीडियोकौल और जूम मीटिंग अब बोरियत का कारण होने लगे हैं. वर्क फ्रौम होम में घर वालों को लगता है कि अब तो औफिस भी नहीं जाना पड़ता है. औफिस वालों को लगता है घर से काम चल रहा है. ऐसे में युवा औफिस और घर दोनों की नजरों में काम नहीं कर रहा. औफिस से घर आने पर पहले स्वागत होता था. अच्छाअच्छा खाना मिलता था. अब ऐसा लग रहा जैसे खाना मांग कर अपराध कर रहे हों. घर के लोग भी ऐसे व्यवहार कर रहे हैं जैसे हम घर के काम न कर के केवल टाइमपास कर रहे हों.

वर्क फ्रौम होम में काम कर रहे हरीश नौटियाल कहते हैं, ‘‘घर और औफिस दोनों की नजरों में हम मेहनत नहीं कर होते हैं. इस से भी अधिक कमी हम दोस्तों, सहयोगियों के साथ चाय की चुस्कियों, उन के साथ हंसीखुशी के पलों, चुहलबाजियों और गौसिप को मिस कर रहे हैं. इस की वजह से हम तमाम तरह की बीमारियों के शिकार हो रहे हैं. हमें रविवार की छुट्टी का रोमांच नहीं रह गया. हम वीकैंड की मस्ती को जी नहीं पा रहे. वर्क फ्रौम होम हमें युवावस्था में ही बुढ़ापे की तरफ ले कर जा रहा है.’’

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कैसे संभालें हालात

कोरोना का प्रभाव कम होने के साथ ही साथ हालात को धीरेधीरे पटरी पर लाने का प्रयास करना चाहिए.

वर्चुअल वर्क से ही काम नहीं चलेगा. ऐसे में वापस औफिस कल्चर पर आना चाहिए.

वर्क फ्रौम होम में काम के घंटे तय हों. ऐसे लोगों के प्रोत्साहन के लिए प्रयास किए जाएं.

आर्थिक हालात के लिए तमाम दूसरे कारण जिम्मेदार हैं. केवल कर्मचारियों को ही जिम्मेदार नहीं मानना चाहिए.

लौकडाउन के पहले जो स्टाफ था, अचानक उसे खराब बताना तार्किक नहीं है. आपसी सामंजस्य से ही हालात बेहतर होंगे.

युवाओं को अपनी डाइट और ऐक्सरसाइज पर ध्यान देना चाहिए. उन को अपने आत्मविश्वास को बनाए रखने की जरूरत है.

युवाओं को अपने दोस्तोंसहयोगियों से बात करते रहना चाहिए. सावधानी से खुली हवा में घूमना चाहिए.

आंखों में धूल झोंकने का नया ड्रामा!

ग्रामीण अंचल के सीधे साधे लोगों के अलावा शहर के पढ़े-लिखे लोग भी नटवरलाल बनकर घूमने वाले अपने आसपास के लोगों के शिकार हो रहे हैं. क्या है इसका मूल कारण और कैसे आप ठगी से बच सकते हैं, पढ़िए यह आलेख.

रूपए चार गुना करने के नाम पर ठगी  का  तरीका सामने आया है.  दरअसल, एक काले रंग के कपड़े में रुपए लपेट कर चार गुना करने का सपना दिखाकर 10 लाख रुपए की ठगी हो गई. पुलिस ने मामले में एक ढोंगी बाबा समेत 4 लोगों को  गिरफ्त में लिया है .  पूछताछ में फर्जी बाबा ने ठगे गए पैसे से ऐश करने शराब पीने और जमीन खरीदने की बात कबूल कर ली है.

ठगी के इस हैरतअंगेज मामले में प्रार्थी को पहले डेमो दिखाकर विश्वास जीत लिया गया. तरुण साहू ने ठगी का अहसास होने पर पुलिस में  एक शिकायत दर्ज कराई . उसने बताया   संतोष विश्वकर्मा ने अपने साथी संतराम जोशी और यादव बाबा के साथ मिलकर उसके साथ 10 लाख रुपए की ठगी की है. तरुण साहू ने बताया कि तीनों ने उसे पैसे को चार गुना करने का झांसा देकर उसे अपने मायाजाल में फंसाया. उन्होंने डेमो दिखाकर  उसका विश्वास जीत लिया . इसके बाद  जुलाई के अंतिम सप्ताह में  10 लाख रुपए को एक काले कपड़े में लपेटकर रकम चार गुना करने का दावा करने लगे, लेकिन जैसी ही पीड़ित किसी काम के लिए अपने कमरे में घुसा. वैसे ही आरोपियों  10 लाख रुपए लेकर गायब कर स्वयं भी नदारद हो गए.   पुलिस ने 24 घंटे के अंदर ही संतोष विश्वकर्मा और संतराम जोशी को गिरफ्तार कर लिया  था.इधर ढोंगी बाबा अपने साथियों को धोखा देकर भाग गया था दोनों ने पूछताछ में अपना अपराध स्वीकार कर लिया और पुलिस को बताया कि उन्होंने यादव बाबा के फेर में आ कर ठगी की घटना को अंजाम दिया था.

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मजे की बात यह है कि कथित यादव बाबा उन्हें भी गच्चा दे कर सारे रूपए लेकर रफूचक्कर हो गया था.

अब आगे पुलिस के समक्ष ढोंगी बाबा एक चुनौती के रूप में सामने थे और उस यादव बाब की  तलाश कर रही थी. पुलिस के अनुसार  उसका कुछ पता नहीं चल रहा था . भारी मशक्कत के बाद दूसरे जिले से पुलिस टीम ने उसे गिरफ्तार किया .इधर पुलिस ने  आरोपियों से 2 लाख 40 हजार नकद और अन्य सामग्री बरामद की  है. बताया जा रहा है बाकी रुपयों से ढोंगी बाबा ने मोह माया के चक्कर में जमीन खरीद ली है.

लालच से बचिए

अक्सर लालच में पड़कर आदमी अपनी गाढ़ी कमाई को लूटा बैठता है. ऐसी प्रतिदिन जाने कितनी घटनाएं देशभर में घटित हो रही हैं.

हमने इस संदर्भ में आपके लिए पुलिस अधिकारी विधि के जानकार लोगों से बातचीत करके यह आलेख तैयार किया है. जिसमें हम यह स्पष्ट रूप से बताना चाहते हैं कि आप किस तरह समाज में होने वाली ठगी और लूट से बच सकते हैं. आपकी थोड़ी भी लापरवाही और लालच आपको ठगी का शिकार बना सकती है.

इस महत्वपूर्ण सामाजिक त्रासदी पर हमने पुलिस की अधिकारी इंद्र भूषण सिंह से  चर्चा की उनके मुताबिक मेरे पुलिसिया कार्यकाल के लगभग 30 वर्षों के समय में अनेक मामले ठगी के  हमारे जांच में आते रहे हैं और अगर मैं इसका मूल स्रोत आपको बताऊं तो वह सिर्फ एक है, और वह है लालच.

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आमतौर पर गांव के सीधे-साधे ग्रामीण लोगों के अलावा शहर के चतुर चालाक समझे जाने वाले शिक्षित वर्ग के लोग भी रुपए पैसों की लालच में पड़कर के ढोंगी ठगों के शिकार बन जाते हैं.

हाईकोर्ट के अधिवक्ता अविनाश शुक्ला के मुताबिक समाज में हो रही ठगी की मामलों की जो बारीक समझ मैं आपके पाठकों को बताना चाहता हूं, वह यह है कि अगर कोई आपको यह कहे कि बिना श्रम के आपको यह रुपए मिलने वाले हैं तो आप समझ जाइए कि आगे आप ठगी का शिकार हो सकते हैं.

संगीत मनोविज्ञान के जानकार घनश्याम तिवारी एक शिक्षक हैं आपके मुताबिक रुपए पैसों की लालच में आकर के लोग ठगी का शिकार बन जाते हैं, आम लोगों को यह समझ लेना चाहिए कि अगर कोई आपको 1 का 4 गुना देने की बात कर रहा है तो फिर वह स्वयं अपना पैसा 4 गुना क्यों नहीं कर लेता.

ऐंटी सेक्स बेड: मैदान से पहले बिस्तर का खेल

कोरोना महामारी के चंगुल में फंसी दुनिया के लिए राहत की बात यह है कि 23 जुलाई, 2021 से जापान के टोक्यो शहर में ओलिंपिक खेलों का महामेला शुरू हो गया है. वहां के खेलगांव में कोरोना का कहर न दिखे, इस के लिए खेल प्रशासन ने बहुत ज्यादा कड़े नियम बनाए हैं. उन में सोशल डिस्टैंसिंग यानी सामाजिक दूरी का पालन कराना बहुत बड़ी चुनौती है.

चूंकि सोशल मीडिया का जमाना है, सो जापान से आने वाली ओलिंपिक खेलों से जुड़ी खबरों का यहां से वहां तैरना लाजिमी है. ऐसे में वहां इस्तेमाल होने वाले ‘ऐंटी सैक्स बैड’ का मामला काफी ज्यादा वायरल हो गया है.

क्या बला है ‘ऐंटी सैक्स बैड’

खेल आयोजकों की कोशिश है कि टोक्यो ओलिंपिक खेलगांव कोविड-19 की आफत से बचा रहे, इस के लिए उन्होंने वहां तथाकथित ‘ऐंटी सैक्स बैड’ लगाने का फैसला किया. ऐसे बैड यानी पलंग कार्डबोर्ड से बनाए जाते हैं जिन्हें ऐसे डिजाइन किया गया है कि एक ही इंसान उस पर सो सकता है. अगर एक से ज्यादा लोगों ने बैड पर चढ़ने की कोशिश की या फिर ज्यादा जोर भी लगाया तो वह टूट सकता है.

जापान वालों की यह ‘पलंगतोड़ तरकीब’ दुनिया के सामने पहली बार तब सामने आई थी जब ऐथलीट पौल चेलिमो ने 17 जुलाई, 2021 को ‘ऐंटी सैक्स बैड’ को ले कर एक ट्वीट किया था, जिस के बाद से यह मामला इंटरनैट पर छा गया था.

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पौल चेलिमो ने बैड के फोटो शेयर करते हुए ट्विटर पर लिखा था, ‘‘टोक्यो ओलिंपिक खेलगांव में लगाए जाने वाले बैड कार्डबोर्ड से बने होंगे, जिन का मकसद ऐथलीटों के बीच इंटिमेसी (सैक्स करने) को रोकना है. यह बिस्तर एक इंसान का वजन उठाने के लायक होगा.’’

बाद में पौल चैलिमो ने इस मुद्दे पर कई मजाकिया ट्वीट किए. एक ट्वीट में उन्होंने लिखा, ‘‘लगता है कि अब मु झे जमीन पर सोना सीखना होगा क्योंकि अगर बैड टूट गया और मु झे जमीन पर सोना नहीं आता होगा तो भैया मैं तो गया.’’

सोशल मीडिया के यूजर

इस मामले पर एक सोशल मीडिया यूजर ने लिखा, ‘‘यह बेहद बचकाना है. वे (ऐथलीट) एडल्ट हैं और अपने फैसले खुद ले सकते हैं और अगर आप को वायरस का इतना ही खतरा था व सोशल डिस्टैंसिंग से इतना ही लगाव था तो यह ओलिंपिक कराना ही नहीं चाहिए था.’’

एक यूजर तो चार कदम आगे निकला. उस ने लिखा, ‘‘‘ऐंटी सैक्स बैड’ बना लिए, लेकिन फ्लोर और बाथरूम का क्या?’’

इस यूजर की बात में दम था कि अगर कोई खेलगांव में सैक्स करेगा तो वह बिस्तर के भरोसे थोड़े ही रहेगा. मजबूत जमीन किस दिन काम आएगी… या फिर बाथरूम.

गौरतलब है कि टोक्यो ओलिंपिक खेलों के आयोजकों ने कंडोम की 4 कंपनियों के साथ करार भी किया है. करार के मुताबिक, ये कंपनियां ऐथलीटों को 1 लाख 60 हजार कंडोम बांटेंगी. पर आयोजकों के मुताबिक, ये कंडोम खेलगांव में इस्तेमाल करने के लिए नहीं हैं बल्कि ऐथलीट इन्हें अपने घर ले जा कर लोगों को सैक्स से जुड़ी बीमारियों के बारे में जागरूक कर सकते हैं.

इस पूरे मसले पर कुछ ऐथलीटों ने अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए सोशल मीडिया पर लिखा था कि ये बैड तो उन का खुद का वजन नहीं  झेल पाएंगे. कई खिलाड़ी ऐसा भी कह रहे हैं कि जब ऐसे ही बैड देने थे तो 1 लाख 60 हजार कंडोम क्यों बांटे?

मामला ज्यादा उछलता देख कर खेल आयोजकों ने ‘ऐंटी सैक्स बैड’ को ले कर बयान दिया कि ये बैड काफी मजबूत हैं और इन को ले कर जो बातें फैलाई गई थीं वे सभी अफवाहें थीं.

आयरलैंड के जिमनास्ट रिस मैकलेगन ने खुद नकली बैड की रिपोर्ट को खारिज किया. एक वीडियो में उन्होंने पलंग के ऊपर छलांग लगा कर इस बात को साबित किया और ट्विटर पर पोस्ट किए गए अपने वीडियो में कहा ‘‘ये पलंग ‘ऐंटी सैक्स’ कहे जा रहे थे. ये कार्डबोर्ड से बनाए गए हैं. हां, ये खास तरह की मूवमैंट रोकने के लिए हैं. यह फेक… फेक न्यूज है.’’

इस ट्वीट से ओलिंपिक आयोजकों ने राहत की सांस ली और उन के आधिकारिक ट्विटर अकाउंट ने भी इस  झूठी खबर से परदा हटाने के लिए रिस मैकलेगन का शुक्रिया अदा किया. उन्होंने कहा कि ये पलंग टिकाऊ और मजबूत हैं.

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अब यह खबर ज्यादा मजबूत है या ये तथाकथित ‘ऐंटी सैक्स बैड’, इस का फैसला तो वे ऐथलीट ही करेंगे जो इन पर सोएंगे. पर लगता है कि इस बार ओलिंपिक खेलों में मैदान पर खेल रिकौर्ड टूटने के साथसाथ पलंग टूटने के रिकौर्ड भी बन सकते हैं.

कुछ भी कहें, इस खबर से भारत के ‘पलंगतोड़ पान’ बनाने वाले बहुत खुश हो रहे होंगे. क्यों भैयाजी?

इन की सुन लीजिए

जहां तक ओलिंपिक खेलों में सैक्स का मुद्दा है, तो साल 2016 में हुए रियो ओलिंपिक खेलों के दौरान साढ़े 4 लाख कंडोम खेलगांव में बांटे गए थे. मतलब साफ है कि खिलाड़ी सैक्स से जुड़ी किसी बीमारी के शिकार न हों, इसलिए वे इस प्रोटैक्शन का इस्तेमाल करें.

फिलहाल ‘ऐंटी सैक्स बैड’ पर मचे बवाल पर पूर्व जरमन ऐथलीट सुसेन टाइडटके ने कहा कि ओलिंपिक खेलगांव में सैक्सुअल गतिविधियां न हों, ऐसा नहीं हो सकता है.

उन्होंने जरमन अखबार ‘बाइल्ड’ के साथ बातचीत में कहा, ‘‘मु झे इस बैन को सुन कर हंसी आ रही है. ऐसे बैन कभी काम नहीं करते हैं. सैक्स हमेशा से ही ओलिंपिक खेलगांव में मुद्दा रहा है. ऐथलीट ओलिंपिक में अपने पीक पर होते हैं. वे इन नामचीन खेलों की तैयारियों के लिए काफी कड़ी मेहनत करते हैं, ऐसे में कंपीटिशन के बाद एनर्जी रिलीज करनी होती है. ओलिंपिक के दौरान कौफी पार्टी चलती रहती है और फिर शराब भी इन पार्टियों में सर्व हो जाती है.’’

इस के अलावा ब्रिटेन के पूर्व टेबल टैनिस स्टार मैथ्यू सईद ने भी माना कि ओलिंपिक खेलगांव में सैक्सुअल गतिविधियां होती हैं.

मैथ्यू सईद ने ‘द टाइम्स’ में लिखे एक लेख में कहा था कि वे खास आकर्षक नहीं हैं लेकिन इस के बावजूद वे साल 1992 में बार्सिलोना में हुए ओलिंपिक खेलों के दौरान काफी सैक्सुअल गतिविधियों में शामिल रहे थे.

उन्होंने लिखा, ‘‘मु झ से अकसर पूछा जाता है कि क्या ओलिंपिक खेलगांव, जहां दुनिया के अव्वल ऐथलीट कुछ हफ्तों के लिए पहुंचते हैं, में काफी खुलापन होता है? मैं हमेशा से कहता रहा हूं कि यह काफी हद तक सही है. मैं ने साल 1992 में हुए ओलिंपिक खेलों में हिस्सा लिया था और उस दौरान मैं ने काफीकुछ ऐसा देखा, जिस की उम्मीद नहीं थी.’’

उन्होंने आगे कहा कि वे उस समय 21 साल के थे और उन की तरह कई लोग थे जो ओलिंपिक वर्जिन थे. उन सब में से कई लोगों के लिए ओलिंपिक खेलों में हिस्सा लेने के साथ ही ओलिंपिक खेलगांव के ग्लैमर वर्ल्ड की चकाचौंध से भी रूबरू होने का मौका था.’’

टोक्यो ओलिंपिक: खेल को अर्श और फर्श पर ले जाने वाले 2 खिलाड़ी

इस बार के ओलिंपिक खेलों में 2 ऐसी बातें या घटनाएं देखने को मिलीं, जिन में पहली घटना में एक खिलाड़ी ने वह कारनामा किया कि उस की दुनिया जहान में खूब वाहवाही हुई, जबकि दूसरी घटना में एक खिलाड़ी ने अपनी करतूत से खेल को ही शर्मसार कर दिया.

पहला मामला ऊंची कूद यानी हाई जंप से जुड़ा है. दरअसल, 30 साल के मुताज बरशीम और 29 साल के गियानमार्को टेंबरी ने हाई जंप के फाइनल में 2.37 मीटर जंप के साथ मुकाबला खत्म किया था. वे दोनों खिलाड़ी 3-3 बार 2.39 मीटर जंप की कोशिश में नाकाम रहे थे.

इस टाई पर ओलिंपिक रैफरी ने दोनों को ‘जंप औफ’ रूल के बारे में बताया और कहा कि इस ‘जंप औफ’ में जो जीतेगा, गोल्ड मैडल उस का होगा.

रैफरी के प्रस्ताव के बाद मुताज बरशीम ने उन से पूछा कि अगर आगे मुकाबला न हो तो क्या उन दोनों को गोल्ड मिल सकता है?

इस पर रैफरी ने हामी भरी, तो यह सुनते ही मुताज बरशीम तुरंत गियानमार्को टेंबरी के पास गए और हाथ मिला कर गोल्ड मैडल की जीत का गोल्डन हैंडशेक किया.

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इतना सुनते ही खुशी के मारे गियानमार्को टेंबरी ने मुताज बरशीम को गले से लगा लिया और तकरीबन उन पर कूद पड़े. इस के बाद उन दोनों ने पूरे मैदान का चक्कर लगाया.

यह वाकई एक ऐतिहासिक पल था जब ओलिंपिक हाई जंप में इन 2 दोस्तों ने मैच टाईब्रेकर में ले जाने के बजाय गोल्ड मैडल साझा करने का सुनहरा रास्ता चुना.

गौरतलब है कि मुताज बरशीम और गियानमार्को टेंबरी दोनों अच्छे दोस्त हैं. मुताज बरशीम ने लंदन और रियो ओलिंपिक में सिल्वर मैडल जीता था.  इस के अलावा वे साल 2017 और साल 2019 में 2 वर्ल्ड चैंपियनशिप का खिताब भी हासिल कर चुके हैं.

इटली के गियानमार्को टेंबरी के पैर में साल 2016 के रियो ओलिंपिक से पहले चोट लग गई थी. चोट के बाद वे खेलों में अच्छी वापसी चाहते थे और उन्हें अब गोल्ड मैडल मिल गया है. भावुक गियानमार्को टेंबरी ने बताया कि उन्होंने इस पल का कई बार सपना देखा, जो अब पूरा हुआ है.

खेल भावना की इस शानदार मिसाल के बाद उस मामले पर गौर करते हैं, जिस ने टोक्यो ओलिंपिक का मजा किरकिरा कर दिया.

हुआ यों कि मैराथन के दौरान अपने साथ दौड़ रहे धावकों से आगे निकलने के लिए एथलीट मोरहाद अमदौनी ने तमाम एथलीटों के लिए रखी पानी की बोतलों को गिरा दिया. उन की यह करतूत वहां मौजूद कैमरे में कैद हो गई.

टोक्यो में भीषण गरमी के बावजूद एथलीटों को किसी भी तरह की छूट नहीं दी गई थी, लेकिन उन के लिए आयोजकों ने ट्रैक के किनारे मेज पर पानी की बोतलें रखी थीं, ताकि एथलीट दौड़ते हुए ही पानी की बोतल उठा सकें और पिए या फिर सिर पर उड़ेल लें, ताकि प्यास और गरमी से बचे रहें.

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लेकिन मोरहाद अमदौनी ने पानी की बोतल उठाने की जगह बाकी बोतलों को भी जानबूझ कर गिरा दिया. शायद उस की मंशा थी कि कुछ खिलाड़ी गिरी बोतलों में उलझ कर पीछे रह जाएं. ऐसा कितना हुआ यह तो पता नहीं, पर सोशल मीडिया पर यह वीडियो सामने आने के बाद इस खिलाड़ी की खूब किरकिरी हुई.

एक शख्स ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, ‘टोक्यो ओलिंपिक में सब से घटिया करतूत करने वाले इस फ्रांसीसी खिलाड़ी धावक मोरहाद अमदौनी को गोल्ड मैडल मिलना चाहिए, जिन्होंने जानबूझ कर अपने साथियों का पानी गिरा दिया.’

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वैसे, फ्रांसीसी खिलाड़ी अमदौनी की इस घटिया हरकत से कोई खास फर्क नहीं पड़ा, क्योंकि वे खुद 2 घंटे, 14 मिनट और 33 सैकंड में रेस पूरी करने के बाद 17वें नंबर पर रहे, जबकि उन के पीछे नीदरलैंड्स के आब्दी नगेई थे, जिन्होंने 2 घंटे, 9 मिनट और 58 सैकंड के साथ अपनी रेस पूरी की और  सिल्वर मैडल पर अपना कब्जा जमाया.

केन्या के एलियुड किपचोगे ने 2 घंटे, 8 मिनट और 38 सैकंड के समय में ओलिंपिक पुरुष मैराथन का खिताब अपने पास ही बरकरार रखा.

65 साल की उम्र में की शादी, कर्मकांडों में फंसा

दलित समाज  

बाबा साहब अंबेडकर और कांशीराम ने दलित समाज को कर्मकांडों से बाहर निकालने के लिए बहुतेरे उपाय किए थे. बहुजन समाज पार्टी के लोग ‘बाबा तेरा मिशन अधूरा, कांशीराम करेंगे पूरा’ नारा लगाते थे.

बहुजन समाज पार्टी और बामसेफ के कार्यक्रमों में दलित समाज की चेतना को जगाने के लिए तमाम उदाहरण दिए जाते थे कि मूर्तिपूजा और मंदिर जाने से कोई फायदा नहीं होने वाला.

मायावती के भाषण की एक सीडी वायरल हुई थी, जिस में वे कहती हैं कि ‘जो देवीदेवता कुत्तों से अपनी रक्षा नहीं कर पाते, वे आप की रक्षा कैसे करेंगे?’

बाद में सत्ता के लिए जब मायावती ने अगड़ी जातियों के साथ समझौते किए, तो बसपा का यह मिशन गायब हो गया. तब बसपा का नारा ‘हाथी नहीं गणेश है ब्रह्मा, विष्णु, महेश है’ हो गया. इस का असर दलितों की सोच पर भी पड़ा.

जो दलित समाज 80 के दशक में जिन कर्मकांडों से दूर हो रहा था, अब वही अगड़ी जातियों से बढ़चढ़ कर कर्मकांडी बनने लगा है. अपनी जिस मेहनत की कमाई को उसे अपनी पढ़ाईलिखाई और रहनसहन पर खर्च करना था, उसे वह मंदिरों, कर्मकांडों और पुजारियों पर चढ़ाने लगा.

उस के पास घर बनवाने और अच्छे कपड़े पहनने का समय भले ही न हो, पर वह पूजापाठ और मंदिरों में चढ़ावा चढ़ाने के लिए पैसे और समय दोनों निकाल ले रहा है.

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अमेठी जिले के गांव खुटहना में 40 साल बिना शादी किए साथसाथ रहने वाले मोतीलाल और मोहिनी देवी को कर्मकांडों के लिए धार्मिक रीतिरिवाज से अपनी शादी करनी पड़ी, जिस में पंडित भी था और पूजा की वेदी भी थी. शादी के मंत्र भी पढ़े गए.

डरासहमा मोतीलाल

इस अनोखी की शादी की जानकारी मिलने के बाद जब यह संवाददाता लखनऊ से तकरीबन 130 किलोमीटर दूर गांव खुटहना में मोतीलाल और मोहिनी देवी से मिलने के लिए पहुंचा तो पता चला कि दुलहन मोहिनी देवी अपने बच्चों के साथ मंदिर  गई हैं. उन के घर में मौजूद लड़की कुछ भी बोलने से मना कर के दरवाजा बंद कर घर के अंदर चली गई.

मोहिनी देवी और मोतीलाल के घर के लोग इस बात से डर रहे थे कि किसी बाहरी और अनजान आदमी से बात करने से उन को कोई नुकसान हो सकता है. परिवार वालों को डर लग रहा था कि बुढ़ापे में शादी कर के उन्होंने कोई गुनाह तो नहीं कर दिया है. कहीं किसी तरह से पुलिस या कानून की कोई दिक्कत पैदा न हो जाए, इस वजह से वे बातचीत करने से मना करने लगे.

जानकारी लेने पर गांव के लोगों  ने बताया कि मोतीलाल गांव से  3 किलोमीटर दूर गोदाम पर काम करने के लिए गए हुए हैं. हम ने वहां जा कर उन से बात करने की योजना बनाई.

यह मालगोदाम जामो ब्लौक के पास था. वहीं मोतीलाल माल ढुलाई का काम करते थे. मोतीलाल को जैसे ही हमारे पहुंचने की सूचना मिली, वे छिप गए.

हम ने लोकल नेताओं और कुछ दबदबे वाले लोगों को अपने साथ लिया, तब मोतीलाल का डर कुछ कम हुआ. हमारे ऊपर उन्हें थोड़ा सा भरोसा हुआ और वे बातचीत के लिए तैयार हुए.

हमारे सामने आते ही मोतीलाल हाथ जोड़ कर बोले, ‘‘साहब, शादी कर के कोई गलती कर दी क्या, जिस से आप लोग हमें तलाश कर रहे हैं?’’

जब सभी लोगों ने यह कहा कि ‘गलती की कोई बात नहीं है. ‘सरस सलिल’ देश की बड़ी पत्रिका है, उस में तुम्हारी शादी के बारे में छापा जाएगा…’ तब कहीं जा कर वे धीरेधीरे बात करने लगे.

असल में गांव में रहने वाला गरीब, कमजोर और कम पढ़ालिखा आदमी हर किसी से डरता है. उस को लगता है कि कोई उस का गलत फायदा न उठा ले. उसे कानून और अपने हकों की जानकारी नहीं होती. चार लोग जैसा कहने लगते हैं, वह वैसा करने लगता है.

मोतीलाल को जब हमारे ऊपर भरोसा हो गया, तब उन्होंने बुढ़ापे में शादी करने की पूरी वजह बताई.

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65 साल का दूल्हा और 60 साल की दुलहन

गौरीगंज विधानसभा की जामो ग्राम पंचायत के गांव खुटहना में ही मोतीलाल रहते हैं. सुलतानपुरलखनऊ हाईवे से तकरीबन 10 किलोमीटर दूर जामो ब्लौक और थाना बना है.

जामो में रहने वालों की दिक्कत यह है कि यहां से न तो अमेठी जिला हैडक्वार्टर जाने के लिए कोई सीधी सरकारी बस चलती है और न ही प्रदेश की राजधानी लखनऊ जाने के लिए बस जाती है.

जामो से जब गौरीगंज जाने वाली सड़क पर चलते हैं, तो 3 किलोमीटर के बाद खुटहना गांव आता है. यहां सभी घर दलितों के पासी जाति से हैं. वहीं के मोतीलाल अचानक सुर्खियों में आ गए.

सुर्खियों की वजह यह थी कि  65 साल के मोतीलाल ने 40 साल एकसाथ रहने के बाद 60 साल की मोहिनी देवी से धार्मिक रीतिरिवाज, ढोलबाजे और बरात ले कर शादी की.

मोहिनी देवी ने रंगबिरंगी साड़ी पहनी थी. मोतीलाल ने भी पाजामा और कमीज पहनी थी. बरात में दूल्हा बने मोतीलाल ने दूसरे बरातियों के साथ डांस भी किया.

बरात मोतीलाल के घर से निकल कर उन के ही घर जानी थी, जो गांव  की संकरी गलियों से होते हुए वापस मोतीलाल के घर पहुंच गई, जहां पूजापाठ कर के और एकदूसरे को फूलों की माला पहना कर बुढ़ापे में शादी की रस्म निभाई.

मोतीलाल और मोहिनी देवी की कहानी रोचक है. तकरीबन 45 साल पहले मोतीलाल की शादी अपनी ही जाति की श्यामा से हुई थी.

शादी के 2 साल के बाद ही श्यामा की मौत हो गई. दोनों के कोई बच्चा नहीं था. मोतीलाल अकेले पड़ गए थे.

मोतीलाल का पड़ोस के गांव मकदूमपुर आनाजाना होता था. वहां  की रहने वाली मोहिनी देवी के साथ उन की जानपहचान हुई. मोहिनी भी गरीब परिवार की थीं. उन के मातापिता से बात कर के मोतीलाल मोहिनी देवी को अपने साथ ले कर गांव आ गए.

उन दोनों के घरपरिवार को कोई दिक्कत नहीं थी. लिहाजा, वे बिना किसी शादी के कर्मकांड के साथ रहने लगे. उन्हें कभी इस बात की जरूरत ही महसूस नहीं हुई कि वे रीतिरिवाज वाली शादी करें. वे दोनों ही मेहनत करते हुए अपनी जिंदगी गुजारने लगे.

यहां दोनों के पास रहने के लिए झोंपड़ीनुमा घर था. समय के साथसाथ दोनों के 4 बच्चे हो गए. उन में 2 लड़के सुनील कुमार और संदीप कुमार और  2 लड़कियां सीमा और मीरा हैं.

मोतीलाल ने पूरी कोशिश की कि बच्चे पढ़लिख जाएं. पर बच्चे केवल  8वीं जमात से 10वीं जमात तक ही पढ़ सके. मोतीलाल ने सब से पहले अपनी दोनों बेटियों की शादी कर दी. दोनों लड़के भी मेहनतमजदूरी करने लगे.

इस के बाद भी मोतीलाल और उन की पत्नी मोहिनी देवी मेहनतमजदूरी करते हैं, जिस में उन का समय भी कटता है और पैसे भी मिलते हैं.

40 साल एकसाथ रहने के बाद भी मोहिनी देवी और मोतीलाल के संबंधों को धार्मिक मंजूरी नहीं मिली थी. मोहिनी देवी और मोतीलाल दोनों ही अनपढ़ थे. मोतीलाल तो बोझा ढोने की मजदूरी करते थे और मोहिनी देवी खेतीकिसानी के काम में मजदूरी कर के जो समय बचता था, उस में मंदिर जा कर देवी भवानी के दर्शन करतीं और वहां कथाप्रवचन सुनतीं. धर्म के इन प्रवचनों में शादी की अहमियत को बताया जाता था.

मोहिनी देवी को बताया गया कि ‘बिना शादी किए घर के बेटेबेटियों की शादी में होने वाली पूजापाठ का फल नहीं मिलता है. मरने के बाद घरपरिवार का दिया पानी भी नहीं मिलता, इसलिए शादी करना जरूरी हो गया. बिना शादी के हमारे संबंध पवित्र नहीं माने जा रहे थे.’

बिना शादी के किसी को अपनी पत्नी बना कर रखने में औरत को ‘उढरी’ कहा जाता है. मोहिनी देवी को अब लग रहा था कि ‘उढरी’ कहलाना अच्छा नहीं होता है.

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शादीशुदा बनी मोहिनी देवी

40 साल पहले जब मोतीलाल मोहिनी देवी को अपने गांव ले कर आए थे, तो उन के पास शादी में खर्च करने लायक पैसा नहीं था. अपनी बिरादरी को खिलाने के लिए भी पैसे नहीं थे. ऐसे में वे बिना शादी किए ही मोहिनी देवी के साथ रहने लगे थे.

दलित जाति में बिना शादी के साथ रहने वाली औरत को ‘उढरी’ कहा जाता है. दलित जातियों की पंचायतों में नियम था कि अगर बिना शादी के कोई किसी औरत के साथ रह रहा है, तो पंचायत के चौधरी और पंचों को ‘भात’ खिलाना जरूरी होता था.

‘भात’ एक तरह की दावत होती है. जब तक ‘भात’ नहीं खिलाया जाता था, तब तक ‘उढरी’ औरत को शादीशुदा  नहीं माना जाता था. उस के बच्चों को  भी सामाजिक और धार्मिक मंजूरी नहीं मिलती थी. सामाजिक और धार्मिक मंजूरी के अलगअलग मतलब होते हैं. सामाजिक मंजूरी न मिलने के चलते उन के बच्चों के शादीब्याह नहीं हो सकते थे. बिरादरी के लोग उन को दावत में नहीं बुलाते थे.

धार्मिक मंजूरी में यह माना जाता है कि बच्चों के द्वारा किए गए क्रियाकर्म का पुण्य मातापिता को नहीं मिलता था. बहुत सारी दलित चेतना के बाद भी दलितों की रूढि़वादी सोच में अंतर नहीं आया है. आज भी वे धर्म के प्रभाव में हैं. ऐसी ही बातों के प्रभाव में आ  कर मोहिनी देवी ने मोतीलाल से कहा, ‘‘हमें भी शादी कर लेनी चाहिए, तभी हमें कर्मकांडों का हक मिल सकेगा और हमें ‘उढरी’ भी कोई नहीं कह सकेगा.’’

‘श्राद्ध’ और ‘पिंडदान’ का डर

मोहिनी देवी की बात का समर्थन उन के बच्चों ने भी दिया. इस के बाद घरपरिवार के लोगों ने मिल कर शादी का आयोजन किया.

यह शादी कराने वाले तेजराम पांडेय बताते हैं, ‘‘मोतीलाल ने मोहिनी देवी से धार्मिक रीतिरिवाज से शादी नहीं की  थी. धर्म कहता है कि ‘उढरी’ के लड़के मातापिता के मरने के बाद जब उन का श्राद्ध करते हैं, पिंडदान करते हैं, तो वह उन को नहीं मिलता है, जिस से उन को मोक्ष नहीं मिलता. इस बात की जानकारी होने पर अब यह शादी की जा रही है.’’

मरने के बाद होने वाले कर्मकांडों  में श्राद्ध और पिंडदान किया जाता है. समाज में कर्मकांडों को इस तरह से महिमामंडित किया जा रहा है कि  40 साल एकसाथ रहने के बाद मोतीलाल और मोहिनी देवी को शादी का कर्मकांड करना पड़ा. इस से पूरे समाज को यह संदेश देने का काम किया गया कि बिना शादी के साथ रहने को धार्मिक मंजूरी नहीं है. शादी के सहारे धार्मिक कर्मकांडों को मजबूत करने की कोशिश की जा रही है.

मोहिनी देवी के मन में इस बात को ठूंसठूंस कर भर दिया गया कि जब तक कर्मकांड वाली शादी नहीं होगी, तब तक शादी मानी नहीं जाएगी. शादी करने के बाद ही मोहिनी देवी को पत्नी का दर्जा मिल सका. इस के पहले उन्हें ‘उढरी’ ही माना जा रहा था.

मोतीलाल और मोहिनी देवी पर कर्मकांड का इतना दबाव पड़ा कि उन्हें धार्मिक हिसाब से शादी करनी पड़ी. यह शादी तमाम तरह की रूढि़वादी सोच को उजागर करती है.

अमेठी जिले में तमाम धार्मिक स्थान हैं. पीपरपुर गांव में महर्षि पिप्पलाद का पौराणिक आश्रम है. सिंहपुर ब्लौक में मां अहरवा भवानी, मुसाफिरखाना में मां हिंगलाज देवी धाम, गौरीगंज में मां दुर्गाभवानी देवी, अमेठी में मां कालिकन देवी धाम सती महारानी मंदिर भी हैं.

इन जगहों पर मेले भी लगते हैं. तमाम तरह की मान्यताएं भी हैं. अपनी मन्नत पूरी करने के लिए दलित औरतें यहां बड़ी तादाद में आती हैं. धार्मिक कहानियों के प्रभाव में वे कर्मकांडों के कहे अनुसार चलने लगती हैं.

यहां के दलित बहुत सारी कोशिशों के बाद भी आगे नहीं बढ़ सके हैं. वे अगड़ी जातियों के पीछे ही चलते रहे हैं. चुनाव लड़ने वाली पार्टी कोई भी रही हो, यहां से जीतने वाले नेता हमेशा ही अगड़ी जातियों के रहते हैं.

तेरह साल का लड़का, क्यों फांसी चढ़ गया!

आज देश का उच्चतम न्यायालय ऑनलाइन गेम्स को लेकर चिंतित है और सरकार को  निर्देश दे रहा है. दूसरी तरफ उसका भयावह रूप सामने आ गया, जब एक 13 साल के लड़के ने ऑनलाइन गेम्स में चालीस हजार रूपए की चपत लग जाने के बाद, मैं मां को कैसे मुंह दिखाऊंगा, सोच कर के दुखी होकर आत्महत्या कर ली है.

आपको ऑनलाइन के भयानक रूप का एहसास करना है तो आपको उस मां के आंसू देखने होंगे, महसूस करने होंगे जिसका एक नौनिहाल ऑनलाइन गेम्स के चक्कर में फंस कर मौत को गले लगा लेता है.

आज जिस तरीके से ऑनलाइन गेम लोगों विशेष तौर पर बच्चों के बीच प्रचलित है और जिसके कारण कितने ही लोग बर्बाद हो रहे हैं उसकी कोई गणना नहीं है. एक तरफ हम तेजी से अंजान दौड़ में भागे चले जा रहे हैं, दूसरी तरफ अपने ही युवा पीढ़ी को पुरी तरह से बर्बाद करने के लिए छोड़ रखा है. यह सब क्यों हो रहा है, और इस सब के पीछे का क्या षड्यंत्र है, इस चक्रव्यू के संदर्भ में आज हम भी रिपोर्ट में आपको आगाह करते हुए तथ्यात्मक जानकारी प्रस्तुत कर रहे हैं. जिसके आधार पर आप अपने घर, अपने आसपास नौनिहालों पर निगाह रखते हुए उनकी भविष्य को स्वच्छ बना सकते हैं.

यहां यह भी महत्वपूर्ण तथ्य है कि जिस तरीके से आज बच्चे ऑनलाइन गेम्स में अपना बेशकीमती समय दे रहे हैं, उसके कारण जहां उनकी शिक्षा पर गहरा असर पड़ रहा है वहीं स्वास्थ्य भी खतरे में है. एक तरफ परिवार के अभिभावक एक तरह से कुंभकरणी निद्रा में है दूसरी तरफ सरकार भी अपने दायित्व का निर्वहन ईमानदारी से नहीं कर रही है. यही कारण है कि मामला आज देश के सर्वोच्च न्यायालय में संज्ञान में है.

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मैं चालीस हजार रुपए हार गया हूं

नाबालिक बच्चा जिसके लिए आज के समय में पचास  सौ रुपए  बहुत बड़ी वैल्यू रखता है अगर रूपए चालीस हजार हार जाता है तो उसकी मानसिक दशा क्या होगी, इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है.

मध्यप्रदेश के छतरपुर में एक मां ने ऑनलाइन गेम में पैसे खर्च करने को लेकर 13 साल के इकलौते बेटे को डपट दिया, और बस इतनी सी बात पर लड़के ने फांसी लगा ली. पुलिस को मौके से सुसाइड नोट मिला है. किशोर ने अंतिम पत्र में स्वीकार करते हुए बताया  कि- फ्री फायर खेलते हुए 40 हजार रुपए गंवा बैठा हूं. साथ ही, लिखा है- आई एम सॉरी मां, डोंट क्राइ. इस संवेदनशील मामले की गूंज अनुगूंज बहुत दूर तक हो रही है.

दरअसल, मध्य प्रदेश में  छतरपुर में विवेक पांडेय अपनी पत्नी प्रीति पांडेय, बेटे कृष्णा और बेटी के साथ सुखमय जीवन व्यतीत कर रहे थे . विवेक एक पैथालॉजी संचालक हैं, जबकि प्रीति जिला अस्पताल में कार्यरत हैं.कृष्णा 6वीं स्टेंडर्ड का होनहार छात्र था.30 जुलाई 2021दिन शुक्रवार दोपहर 3 बजे पिता पैथोलॉजी पर थे, जबकि मां प्रीति अस्पताल में थीं. इसी दौरान प्रीति को को अपने बैंक अकाउंट से 1500 रुपए कटने का मैसेज मोबाइल पर मिला. प्रीति ने घर पर मौजूद बेटे को फोन लगाया और पूछा कि यह पैसे क्यों कट गए.

कृष्णा ने बताया, यह ऑनलाइन गेम के कारण कट गए हैं. इस पर प्रीति को गुस्सा आ गया  उसे डपट लगा दी. उसके बाद जो हुआ उस की कल्पना नहीं की जा सकती. 13 वर्ष के कृष्णा ने मां की नाराजगी से अवसाद में आकर के फांसी  लगा आत्महत्या कर ली.

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जब अचानक कृष्णा कमरे में चला गया.और अंदर से दरवाजा बंद कर लिया तो घर में मौजूद बड़ी बहन ने कुछ देर बाद दरवाजा खटखटाया, तो जवाब नहीं मिला.बेटी ने पिता को इस बारे में बताया.माता-पिता तुरंत घर पहुंचे. दरवाजा तोड़कर देखा, तो अंदर कृष्णा फंदे पर लटका हुआ था.और सब कुछ खत्म हो चुका था.

13 साल के कृष्णा ने  सुसाइड नोट में मां को संबोधित करते हुए लिखा है- मां आप मत रोना!
दरअसल, इस घटना से ऑनलाइन गेम्स की भयावहता का आपको एहसास हो सकता है. विगत कुछ महीनों से कृष्णा पांडेय ऑनलाइन गेम फ्री फायर का शिकार हो गया था. उसकी संवेदना की झलक पत्र में देखने को मिलेती है.

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“ऑनलाइन गेम्स” का भयावह संजाल!

ऑनलाइन गेम्स आज एक बड़ी चिंता का सबब बन गया है. परिणाम स्वरूप देश की उच्चतम न्यायालय अर्थात सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर संज्ञान लेते हुए केंद्र सरकार को आदेश दिए हैं. आज नौनिहालों में फैलता ऑनलाइन गेम्स का यह भयावह प्रकोप जहां उनके जीवन के लिए स्याह पक्ष बन चुका है . यह एक राष्ट्रीय चिंता का विषय बन कर सामने है. इससे अगर निजात नहीं पाई गई तो भावी पीढ़ी पर इसका जो भयावह असर देखने को मिलेगा उसके लिए हमें तैयार रहना होगा.

ऐसे में‌ हमारे लिए यह चिंता का विषय है कि किस तरह नौनिहालों को इस संजाल से बचाया जा सके.
दरअसल, कोविड-19 महामारी ने बच्चों सहित घर के सभी सदस्यों को घर पर ही एक प्रकार से बंधक बना दिया है.बच्चों की पढ़ाई भी ऑनलाइन ही हो रही है . ऑनलाइन अध्ययन भले ही बच्चों के लिए वर्तमान समय के अनुसार विवशता ही है लेकिन यही विवशता शनैः-शनैः बच्चों के लिए घातक भी सिध्द हो रही है. कई बच्चे ऑनलाइन गेम के आदी होते जा रहे हैं .वे अपने अभिभावकों से ऑनलाइन अध्ययन के नाम से मोबाइल लेते हैं पर उन्हें जैसे ही समय मिलता है वे ऑनलाइन गेम्स खेलना आरंभ कर देते हैं .

दरअसल,निरंतर मोबाइल स्क्रीन में नजरें टिकाने से आँखों पर बुरा प्रभाव तो पड़ता ही है साथ ही साथ यदि ऑनलाइन गेम्स के आदी हो रहें हैं इससे बच्चे मानसिक रूप से भी विकलांग हो रहे हैं .
आए दिन अपने आसपास और समाचार पत्रों में इसके दुष्प्रभाव के बारे में पढ़ते रहते हैं यहाँ तक कि ऑनलाइन गेम इतना घातक है कि कई बच्चों में अपराध का भाव भी पैदा हो जाता है और वे इनते अग्रेसिव हो जाते हैं कि कुछ भी अपराध कर जाते हैं.

अंचल के शिक्षाविद प्राचार्य डॉ. संजय गुप्ता के मुताबिक सर्वप्रथम तो यह हम सभी को नैतिक जिम्मेदारी है कि बच्चा हमारा है तो उसके भविष्य का निर्धारण भी हम ही करेंगें. क्या हुआ वर्तमान परिपेक्ष्य में हमारे पास अध्ययन के लिए ऑनलाइन विकल्प है पर प्रत्येक माता-पिता को स्वयं सक्रिय रहकर समयानुसार बच्चे के पढ़ाई की मानिटरिंग तो करनी ही चाहिए.

बच्चों के मनो विज्ञान के जाने-माने शिक्षक घनश्याम तिवारी के मुताबिक बच्चों को
यदि हम पूरी स्वतंत्रता देंगें तो उनका बालमन तो भटकेगा ही तो उनको भटकाव से बचाने के लिए हमें चाहिए कि बच्चा केवल सीखने व जानकारी हासिल करने के लिए ही मोबाइल का उपयोग करें . हमारी नजर उनके हर क्रियाकलाप पर होनी चाहिए.

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डाक्टर जी आर पंजवानी बताते हैं- ऑनलाइन गेम्स में हमें केवल दुष्प्रभाव ही नजर आएँगें लाभ कुछ भी नहीं, यह सच भी है.निरंतर मोबाइल के उपयोग से बच्चा इसका आदी तो होगा ही साथ ही वह मानसिक रूप से भी तनाव महसूस करेगा. यदि बच्चे को ऑनलाइन गेम्स की लत लग गई तो उसके व्यवहार में हमें अप्रत्याशित परिवर्तन नजर आते हैं जैसे उसके व्यवहार में हमें चिड़चिड़ापन, क्रोध, स्मरण शक्ति की कमी, एकाग्रता में कमी व अंदर अशांत इत्यादि . वे 100 प्रतिशत मानसिक रोगी बन जाते हैं .धीरे-धीरे उनका स्वास्थ्य भी गिरने लगता है. तात्पर्य यह है कि ऑनलाइन गेम्स मेंटल हेल्थ के लिए खतरा है. लगातार विडियो गेम्स या ऑनलाइन गेम्स खेलकर बच्चे अपना महत्वपूर्ण समय नष्ट कर देते हैं जिस समय में वे बहुत कुछ सीख सकते थे एवं पारिवारिक जनों के साथ मधुर पल बिताकर उनकी सीख व सलाह ले सकते थे.

बच्चों के लिए स्लो पाइजन के समान

अध्ययन में यह बात बारंबार सामने आई है कि ऑनलाइन जीएम बच्चों के लिए बेहद हानिकारक है उनके स्वास्थ्य उनके चिंतन इनके विकास हर दृष्टि से ऑनलाइन गेम्स के भयावह परिणाम अध्ययन में सामने आ चुके हैं.

वस्तुत: अत्यधिक ऑनलाइन गेम्स की लत जानलेवा भी साबित हो सकती है. हमें हर संभव इससे अपने भावी पीढ़ी को बचाना है. यह ऑनलाइन गेम्स स्लो पॉइजन की तरह होता है. हमें पता भी नहीं चलता कि कब हमें इसकी लत लग जाती है और अंतिम परिणाम दुखद होता है .ऑनलाइन गेम्स हमें मनोरंजन का साधन तो लगता है पर बहुत जल्दी इसका लत में तब्दील होकर बच्चें के भविष्य के लिए घातक सिध्द होती है .हमें हर हाल में अपने बच्चों को इससे बचाना होगा . तकनीकी का जाल वरदान भी है और अभिशाप भी. मानवीय स्वभाव है वह गलत दिशा की ओर जल्दी भागता है. वहीं हाल इस कोरोनाकाल में ऑनलाइन शिक्षा के लिए वरदान बने मोबाइल अब छात्रों के लिए लत बन गए हैं.

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हर समय हाथ में मोबाइल होना एवं क्लास की जगह ऑनलाइन गेम्स बालमन पर हावी हो रहा है .तकनीकी ने हमें बहुत सी सहूलियतें दी है, लेकिन सदुपयोग न होने से उसका नुकसान भी उठाना पड़ रहा है. ऑनलाइन गेम्स के कारण बच्चों में मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएँ खड़ी हो गई है. अतिआवश्यक है कि हम अपने बच्चों पर निगरानी रखें और उनकी काउंसलिंग कर उन्हें उनकी जिम्मेदारी व शिक्षा के महत्व से अवगत कराएँ . ऑनलाइन गेम्स ही खेलें बच्चे तो कुछ समय के लिए शिक्षाप्रद ऑनलाइन गेम्स खेलें जिससे उनमें गणना करने की क्षमता, तर्क करने की क्षमता बढ़े .

कहने का तात्पर्य यह है कि बच्चों को तकनीकी से दूर नहीं करना है अपितु उसका उपयोग सतर्कता के साथ होना चाहिए.ऑनलाइन गेम्स के बारे में शीघ्र राष्ट्रीय नीति भी अमल में आनी चाहिए जिससे हमारी भावी पीढ़ी सुरक्षित रहे. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद पूरा मामला देश की केंद्रीय सरकार के पाले में है ऐसे में देश के बौद्धिक वर्ग शिक्षाविदों चिकित्सकों को सरकार को, इस मसले पर सलाह दे कर के कुछ ऐसे रास्ते निकालने होंगे, जिनसे भावी पीढ़ी पर मंडराता यह संकट खत्म हो जाए.

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बाप की छोटी दुकान का मजाक न उड़ाएं

आधुनिकता के मौजूदा दौर में छोटीमोटी दुकान के टिके रहने के लिए बाजार में हो रहे परिवर्तनों के ऊपर सतत निगरानी रखते हुए मौडर्न ट्रैंड को अपनाया जाना जरूरी है. ऐसे में पिता की दुकान से कन्नी काटने या उस का मजाक बनाने की जगह उस में हाथ बंटाना फायदे का सौदा है.

विनय गुप्ता निर्मल डेरी एवं किराना एजेंसी नामक एक किराना स्टोर के मालिक हैं. किराने की यह दुकान उन के पिताजी ने उन्हें आज से 25 वर्षों पहले तब खुलवाई थी जब वे मात्र 21 वर्ष के थे. तब से वे अपनी दुकान को अपने अनुकुल ही चला रहे हैं. वे बताते हैं कि दुकान ही उन की आजीविका का साधन है, इसलिए सुबह 8.30 से ले कर रात्रि 11 बजे तक दुकान पर ही उन का समय बीतता है. कुछ दिनों पूर्व मैं उन की दुकान पर सामान लेने गई तो दुकान में काफी कुछ बदलाव सा अनुभव किया. विनयजी भी पहले की अपेक्षा काफी खुश और संतुष्ट नजर आ रहे थे. पूछने पर पता चला कि उन का बेटा जो कि दिल्ली के किसी कालेज से एमबीए कर रहा था अपनी पढ़ाई पूरी कर के वापस आ गया है और अब उस ने अपनी इच्छानुसार दुकान में काफी बदलाव किए हैं.

विनय हंसते हुए कहते हैं, ‘‘बेटे के आने के बाद से ग्राहकी और दुकान का स्टैंडर्ड बढ़ने के साथसाथ मेरा सुकून भी बढ़ा है.’’ वहीं उन का युवा बेटा अंकित कहता है, ‘‘हां, यह सही है कि पहले मु  झे दुकान पर बैठना बिलकुल भी पसंद नहीं था परंतु अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद मैं ने अनुभव किया कि किसी दूसरी कंपनी में किसी दूसरे के अधीन काम करने की अपेक्षा अपनी ही दुकान में पिताजी के अधीन काम कर के उसे ही एक कंपनी का रूप क्यों न दे दिया जाए. क्यों न अपनी शिक्षा का उपयोग दूसरों की अपेक्षा अपने लिए ही किया जाए. बस, यह खयाल आते ही मैं ने अपने पिताजी की नौकरी जौइन कर ली. मेरे आने से यहां एक ओर मेरे पिता को एक हैंड मिला है वहीं मु  झे अपने पिता को सपोर्ट कर पाने का सुकून.’’

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अपनी बात को जारी रखते हुए अंकित आगे कहते हैं, ‘‘दुकान पर काम प्रारंभ करने से पूर्व हम ने सर्वप्रथम अपने काम के घंटे और तरीकों पर बहुत तरह का विचारविमर्श किया ताकि मु  झे स्पेस भी मिले और पिताजी को आराम भी, साथ ही हमारी दुकान का आउटपुट भी बढ़ कर मिले. मैं खुशनसीब हूं कि पिताजी ने मेरे हर सु  झाव को न केवल ध्यान से सुना बल्कि उन पर अमल करने के लिए पर्याप्त बजट और आजादी भी दी और अब मैं अपने बिजनैस को बढ़ाने के लिए सतत प्रयासरत हूं.’’

अपने बेटे के बारे में बात करते हुए विनय गुप्ता कहते हैं, ‘‘ये आज के युवा हैं. यह सही है कि अनुभव में हम इन से काफी आगे हैं परंतु मौडर्न तकनीक व नईर् पीढ़ी की पसंद से ये लोग हम से बहुत आगे हैं. यदि हम चाहते हैं कि वे हमारे साथ काम करें तो इस के लिए उन्हें उन के तरीके से काम करने की आजादी देनी ही होगी. आखिर जब वे आजाद होंगे तभी तो अपने पंख फैला कर उड़ पाएंगे.’’

अपनी दुकान के बदलावों के बारे में बात करते हुए अंकित कहते हैं, ‘‘अपनी दुकान के आधारभूत ढांचे में बिना कोई बदलाव किए मैं ने उसे कुछ आधुनिक रूप देने का प्रयास किया है. आज हर चीज एक्सपोजर मांगती है तो उस के लिए कुछ रैक्स की व्यवस्था कर के दुकान के सामान को एक्सपोज करने का प्रयास किया ताकि ग्राहक को दुकान में निहित सारा सामान दिख सके क्योंकि ग्राहक कितने भी सामान की लिस्ट बना कर ले आए परंतु दुकान पर सामान देख कर उसे अधिकांश सामान याद आ जाता है. परंतु यह तभी संभव है जब दुकान का सामान उसे दिखाई देगा.’’

इसी प्रकार मिलतीजुलती कहानी कानपुर के एक मिठाई दुकान के संचालक सुनील की है. उन्होंने अपनी युवावस्था में इस दुकान को खोला था. तब से उन की दुकान दूध से बनाए जाने वाले पेड़ों की विशेषता के लिए प्रसिद्ध है. आज कानपुर में उन की दुकान की लगभग 10 ब्रांचें हैं और व्यापार के इस प्रचारप्रसार का पूरा श्रेय वे अपने दोनों बेटों को ही देते हैं.

होटल मैनेजमैंट में स्नातक उन का बेटा कार्तिक कहता है, ‘‘पिताजी के बनाए पेड़ों की दूरदूर तक प्रसिद्धि थी. सच पूछा जाए तो उन की मेहनत का पूरा आउटपुट उन्हें नहीं मिल पा रहा था. हम ने उसे आधुनिक तकनीक के सहारे से चैनलाइज करने का प्रयास किया है. आज न केवल कानपुर बल्कि देश के सभी बड़े शहरों में हमारे पेड़े अपनी खुशबू बिखेर रहे हैं.

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‘‘हम ने अपने व्यवसाय को पूरी तरह औनलाइन कर दिया है जिस से कोई भी कहीं से भी हमें और्डर कर सकता है. होटल मैनेजमैंट से स्नातक करने के कारण मैं ने पेड़ों के बेसिक इंग्रीडिएंट्स में कुछ नए प्रयोग कर के उन्हें विभिन्न फ्लेवर्स में बनाने का प्रयास किया है जिस से उन की डिमांड में बेहताशा वृद्धि हुई है.

‘‘आजकल नवीनता, पैकिंग, डैकोरेशन और एक्सपोजर का जमाना है. मैं ने पहले स्वयं को एक ग्राहक महसूस किया कि मैं एक मिठाई की दुकान पर जा कर क्या अपेक्षा करूंगा और फिर अपनी अपेक्षाओं के अनुकूल अपने व्यवसाय में परिवर्तन लाने का प्रयास किया. हां, इस में पापा का योगदान सब से बड़ा है कि उन्होंने हम पर भरोसा किया. हमें दुकानरूपी एक उन्मुक्त आकाश दिया जिस में हम ने अपनी शिक्षारूपी ब्रश के माध्यम से कल्पनाओं के रंग भर कर उसे सजाया है.’’

अपने बेटों के बारे में बात करते हुए सुनीलजी कहते हैं, ‘‘मु  झे मेरे बेटों की शिक्षा का बहुत लाभ हो रहा है. आज न केवल हमारी बिक्री बढ़ी है, बल्कि हमारी साख भी बढ़ी है. मेरा अनुभव और बच्चों की तकनीक दोनों का जब तालमेल हुआ तो परिणाम तो सुखद आना ही था. हां, मैं ने उन्हें उन के मनमुताबिक काम करने की पूरी छूट दी ताकि वे हमारे व्यवसाय को बढ़ाने में अपना भरपूर योगदन दे सकें. आखिर किसी भी प्रकार के बंधन में रह कर कोई कैसे अपने मन का कर सकता है और जब मन का कर नहीं पाएगा तो मन का लगातार काम करना संभव नहीं है.’’

वास्तव में आज की नई पीढ़ी बहुत अधिक सम  झदार, प्रयोगधर्मी और बाजार की डिमांड के अनुकूल कार्य करने वाली है. आवश्यकता है उन के विचार, सु  झाव और तरीकों को भरोसापूर्वक सुनने की और उस के अनुकूल उन्हें बजट व आजादी देने की. परंतु कई बार अभिभावक अपने आगे बच्चों की बात को तवज्जुह नहीं दे पाते.

इंजीनियरिंग से स्नातक 20 वर्षीय नमन कहता है, ‘‘मैं जानता हूं कि किसी भी महानगर में पूरे दिन खपने के बाद मैं जो कमाऊंगा, उस से कहीं अधिक मैं अपने पिता की कपड़े की दुकान से कमाऊंगा. साथ में, अच्छा खानापीना और मातापिता व भाईबहन का साथ भी रहेगा. हां, यह सही है कि परिवार के साथ रहने पर कुछ बंदिशें तो होती हैं परंतु आगामी सुखद भविष्य के लिए वे बंदिशें भी अच्छी हैं. पर मैं पुराने ढर्रे पर चलने की अपेक्षा आज के समय के अनुसार बदलाव अवश्य करना चाहूंगा और इस के लिए अपने अभिभावकों से मेरी इच्छाओं को मानने की अपेक्षा भी रखता हूं.’’

भोपाल के अग्रवाल किराना स्टोर के 24 वर्षीय युवा संचालक रोहन अपने क्षेत्र के प्रसिद्ध किराना स्टोर संचालकों में माने जाते हैं. वे बताते हैं, ‘‘इंजीनियरिंग करने के बाद मैं ने एक प्राइवेट कंपनी में बतौर सौफ्टवेयर इंजीनियर 2 वर्ष नौकरी की. मैं जब भी अवकाश में घर आता तो दुकान पर पापा को विभिन्न कंपनियों के और्डर्स लेने वाले बंदों और ग्राहकों के बीच संघर्ष करते देखता था क्योंकि पापा और्डर्स देते थे तो कस्टमर को इंतजार करना पड़ता. यही नहीं, कई बार देर होने पर वह दूसरी दुकान से सामान ले लेता था जिस का नुकसान हमें ही उठाना होता था.

‘‘अपने अवकाश के दिनों में मैं बैठता तो था पर वहां मेरा मन नहीं लगता था क्योंकि हाथ से बिल बनाना, ग्राहक की

लिस्ट से सामान देना, ढेर सामान से भरी अव्यवस्थित दुकान, छोटीछोटी बातों पर ग्राहकों की  ि झक ि झक जैसी बातें मु  झे बहुत उबाऊ लगती थीं. जब भी मैं पापा से उस में बदलाव की बात करता तो वे आधुनिक तकनीक और चीजों को अपनाने की अपेक्षा मु  झे ही  ि झड़क देते.

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‘‘वे दुकान के ढर्रे को तनिक भी बदलने को तैयार नहीं होते थे. मैं जानता हूं बड़े लोगों को बदलाव करना जल्दी पसंद नहीं आता परंतु हमें अवसर मिलेगा हम तभी तो खुद को प्रूव कर पाएंगे. 2 वर्ष पूर्व स्पाइन में बीमारी के चलते पापा को डाक्टर ने 3 माह का टोटल बैड रैस्ट बताया और परिस्थितियों को देखते हुए मैं ने अपनी नौकरी को छोड़ कर अपने बिजनैस को जौइन कर लिया. बस, इस दौरान मु  झे अपने मनमुताबिक दुकान में परितर्वन करने का सुअवसर मिल गया. इस दौरान मैं ने कंप्यूटराइज्ड बिलिंग सिस्टम को डैवलप किया. शौप के सामान को गुणवत्तापूर्ण बनाने के लिए टोटल पैकेजिंग सिस्टम अपना कर हर वस्तु को और्गेनाइज्ड किया, साथ ही, ग्राहकों की डिमांड को ध्यान में रख कर सामान लाना प्रारंभ किया.

‘‘दरअसल, आजकल मौल कल्चर का युग है, इसलिए हमें अपने सिस्टम को आधुनिक बनाना ही होगा अन्यथा कुछ ही समय में हमारे विकास के रास्ते ही बंद हो जाएगें. जब पिताजी बीमारी के बाद दुकान पर आए तो दुकान का कायापलट देख कर वे दंग रह गए, बोले, ‘यह मेरी ही दुकान है, पहचान ही नहीं पा रहा हूं मैं.’’

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए रोहन कहते हैं, ‘‘इस से पहले मैं ने जब भी पापा से औनलाइन डिलिवरी के लिए ऐप डैवलप करने की बात की तो वे इस में इन्वैस्ट करने के लिए तैयार नहीं थे परंतु अब जब हम ऐप के माध्यम से औनलाइन और्डर्स ले कर होम डिलिवरी करते हैं तो पापा को ही बहुत अच्छा लगता है.’’

किसी भी दुकान को चलाने के लिए मैनपावर, अर्थात दुकान के कर्मचारी, सर्वाधिक आवश्यक तत्त्व है क्योंकि अकेला दुकान मालिक दुकान को संचालित नहीं कर सकता. इस बारे में बात करते हुए हाल ही में अपने पिता के व्यवसाय को जौइन करने वाले प्रणय गुप्ता कहते हैं, ‘‘मेरे आने से पहले कई बार ऐसे अवसर आए जब पापा के विरुद्ध सारे कर्मचारी वेतन या अवकाश बढ़ाने जैसी मांगों को ले कर एकजुट हो जाया करते थे और पापा को उन के समक्ष   झुकना ही पड़ता था. परंतु मेरे आने के बाद वे जानते हैं कि अब पापा के पास एक अतिरिक्त हैंड है जिस के सहारे वे आपातकाल में अकेले भी दुकान को संचालित कर सकते हैं.’’

पहले की अपेक्षा आज परिवार का स्वरूप 3 या 4 तक ही सिमट गया है. चारों ओर मुंहबाए खड़ी बेरोजगारी के इस दौर में अपने ही व्यवसाय को जौइन करना एक बुद्धिमत्तापूर्ण कदम है. इस में एक बेहतर भविष्य की गारंटी तो है ही, साथ ही, भले ही कितने भी कोरोना के स्ट्रेन क्यों न आ जाएं पर यहां रिसैशन का दौर नहीं आ सकता. इस में आप जितनी अधिक मेहनत करेंगे उतना अधिक फल पाएंगे. परंतु आधुनिकता के इस दौर में टिके रहने के लिए बाजार में हो रहे परिवर्तनों के ऊपर सतत निगरानी रखते हुए मौडर्न ट्रैंड को अपनाना भी अत्यंत आवश्यक है. आज के बच्चे अपने पिता के व्यवसाय को अपनाएं, इस के लिए मातापिता को भी कुछ बिंदुओं पर विचार अवश्य करना चाहिए.

 स्पेस देना है जरूरी

अकसर अपना बच्चा होने के कारण हम उसे स्पेस देना भूल जाते हैं. जबकि आवश्यक है कि उसे भी अन्य कर्मचारियों की ही भांति वेतन, अवकाश और सुविधाएं मिलनी चाहिए ताकि वह अपने काम को बो  झ सम  झने की अपेक्षा आनंदित हो कर कार्य करे. दुकान के अन्य कर्मचारियों के सामने उस का अपमान करने से बचें. विवादित विषयों पर चर्चा दुकान की अपेक्षा घर पर करने का प्रयास करें.

 आजादी दें

बच्चे को दुकान में अपने मनमुताबिक बदलाव करने की आजादी दें. हो सकता है कभी वह अपने प्रयास में असफल भी हो जाए परंतु इस के लिए उसे बारबार ताने देने से बचें. दुकान के हितों से जुड़े मुद्दों पर उस से राय अवश्य लें. इस से उसे विभिन्न विषयों की जानकारी तो होगी ही, साथ ही उसे अपने अस्तित्व व जिम्मेदारी की भावना का एहसास भी होगा.

ज्ञान को हवा में न उड़ाएं

अकसर अभिभावक बच्चों की बातों को ‘हमें सब पता है या हमारे बाल धूप में सफेद नहीं हुए हैं,’ कह कर उन की बातों को हवा में उड़ा देते हैं जबकि तकनीक और विज्ञान के इस युग में आज की युवा पीढ़ी अपने मातापिता से बहुत आगे है. आज हर चीज के लिए औनलाइन प्लेटफौर्म मौजूद है जिस से व्यापार का बहुत अधिक विस्तार किया जा सकता है. इसलिए उन के इस ज्ञान को हवा में उड़ाने की अपेक्षा उस से लाभ उठाने का प्रयास करें ताकि अनुभव और तकनीक के संयोजन से व्यापार उत्तरोतर प्रगति के मार्ग पर अग्रसर रहे.

पिता नहीं, दोस्त बनें

यह कहावत हम सब ने सुनी ही है कि बाप का जूता जब बेटे के पैर में आने लगे तो पिता को उस का दोस्त बन जाना चाहिए परंतु कई बार पिता अपने युवा बेटे के सदैव पिता ही बने रहते हैं जिस से अकसर उन में वादविवाद या मनमुटाव की स्थिति आ जाती है. बेटे के दोस्त या पार्टनर बन कर उस की भावनाओं, निर्णयों और बदलावों का सम्मान करने से व्यापार में उत्तरोतर प्रगति होना निश्चित है क्योंकि तभी आप का बेटा खुल कर दुकान में काम कर सकेगा.

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