कोरोना के बाद से वर्क फ्रौम होम और औनलाइन क्लासेज का कल्चर पूरे विश्व में बढ़ा है. इस कल्चर के जहां कुछ शुरुआती नफे दिखे, वहीं इस के उलट नुकसान भी दिखाई दे रहे हैं, खासकर, युवाओं को इन से अधिक जू झना पड़ रहा है.

वर्क फ्रौम होम और औनलाइन क्लासेज युवाओं की मैंटल हैल्थ को प्रभावित कर रहे हैं. आज साइकोलौजिस्ट के पास आने वालों में बड़ी संख्या युवाओं की है. वर्क फ्रौम होम और औनलाइन क्लासेज के साइड इफैक्ट्स युवाओं को बीमार बना रहे हैं.

कोरोना के चलते कालेज से ले कर औफिस तक में युवाओं की निर्भरता मोबाइल और नैटवर्क पर बढ़ गई है. शुरूआत के दिनों में इस सिस्टम की सभी ने तारीफ की. कुछ लोगों ने माना कि बढि़या व्यवस्था है. बिना औफिस और कालेज जाए काम चल रहा है. पेरैंट्स इस बात को ले कर खुश थे कि युवाओं की निगरानी नहीं करनी पड़ रही. खासतौर पर लड़कियां अगर घर में हैं तो पेरैंट्स एकदम से चिंतामुक्त थे. बड़े शहरों में काम करने वाले युवा अपने घर वापस आ गए थे और वर्क फ्रौम होम से काम करने लगे थे. शुरुआती दिनों में अच्छा लगने वाला यह माहौल धीरेधीरे मैंटल हैल्थ पर भारी पड़ने लगा.

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साइकोलौजिस्ट डाक्टर नेहा आनंद कहती हैं, ‘‘मेरी क्लीनिक में कई पेरैंट्स अपने युवा बच्चों को ले कर आ रहे हैं जो कालेज या यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले होते हैं या नईनई जौब में होते हैं. कुछ दिनों से या तो वे काफी गुस्से में रहने लगे हैं या फिर एकदम गुमसुम से हो गए हैं. कई में हाई ब्लडप्रैशर के लक्षण दिखने लगे हैं. उन से जब अच्छी तरह से बात की जाती है तो यह पता चलता है कि ‘वर्क फ्रौम होम’ और ‘औनलाइन क्लासेज’ की वजह से परेशानी बढ़ी है. ‘‘दरअसल, इन का उन के स्वास्थ्य पर ही प्रभाव नहीं पड़ रहा बल्कि उन के कार्य की क्षमता भी प्रभावित हो रही है और काम में गलतियां भी निकलने लगी हैं. सामान्य दिनों में अच्छी तरह से काम करने वाले लोग अब गलतियां करने लगे हैं.’’

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