3 साल बाद मिला इंसाफ

बंगलादेश की राजधानी ढाका में होली आर्टिसन बेकरी नाम का एक कैफे है. उस दिन शाम सुहानी थी. तारिषी जैन अपने पिता संजीव जैन व 2 दोस्तों अबिंता कबीर व फराज अयाज हुसैन के साथ कैफे में डिनर पर गई थी. यह कैफे ढाका के दूतावास क्षेत्र में था. डिनर आया भी नहीं था कि तारिषी के पिता के मोबाइल पर किसी का फोन आया, जिस की वजह से उन्हें जरूरी काम से कैफे से जाना पड़ गया.

पिता संजीव जैन को गए अभी कुछ समय ही हुआ था कि अचानक कैफे गोलियों और धमाकों की आवाज से गूंज उठा. पता ही नहीं चला कि कैफे में कब दबेपांव आतंकवादी घुस आए थे. ताबड़तोड़ गोलियां चलते ही कैफे में अफरातफरी मच गई. आतंकवादियों ने गोलियां चलाते हुए कैफे में घुस कर डिनर कर रहे मेहमानों को बंधक बना लिया.

उन्होंने कैफे में मौजूद मेहमानों को 12 घंटे तक अपने कब्जे में रखा. बंधक बनाने के बाद उन्होंने एकएक कर 22 लोगों को मौत के घाट उतार दिया. मरने वालों में उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद शहर की छात्रा तारिषी जैन सहित इटली के 9, जापान के 7, बंगलादेश में जन्मा एक अमेरिकी, बंगलादेश के 2 नागरिकों के अलावा 2 पुलिस अधिकारी भी शामिल थे.

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कुछ देर में सेना के कमांडो भी वहां पहुंच गए. कमांडो औपरेशन में वे 5 आतंकवादी मारे गए, जिन्होंने कैफे में गोलीबारी की थी. यह घटना पहली जुलाई, 2016 को घटी थी. हमले के बाद बंगलादेश में चरमपंथ को ले कर नई बहस छिड़ गई. इतना ही नहीं, देश के उद्योग, व्यापार को ले कर भी चिंता बढ़ गई थी. क्योंकि देश के इतिहास में यह सब से भीषण आतंकवादी हमला था.

करीब 3 साल तक इस बहुचर्चित मामले की सुनवाई ढाका की आतंकरोधी विशेष ट्रिब्यूनल में चल रही थी. विशेष ट्रिब्यूनल द्वारा 27 नवंबर, 2019 को इस केस का फैसला सुनाया जाना था.

हाईप्रोफाइल मामला होने के कारण कोर्ट परिसर और आसपास सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे. इस विशेष अदालत में इन आतंकियों को कड़ी सुरक्षा के बीच लाया गया था. फैसले को ले कर कोर्टरूम पत्रकारों, वकीलों व अन्य लोगों से भरा हुआ था. सभी को इस फैसले का बड़ी ही बेसब्री से इंतजार था. निर्धारित समय पर विशेष अदालत के जज मुजीबुर रहमान कोर्टरूम में आ कर अपनी कुरसी पर बैठे तो वहां मौजूद सभी लोगों की नजरें उन पर जम गईं.

आगे बढ़ने से पहले आइए हम इस आतंकवादी हमले को याद कर लें. यह आतंकवादी हमला इतना वीभत्स था कि विश्वभर में इस की गूंज सुनाई दी. इस आतंकवादी हमले ने बंगलादेश को ही नहीं, भारत सहित कई देशों को स्तब्ध कर दिया था. दूतावास इलाके में हमला होने से बंगलादेश की छवि धूमिल हुई थी. इस के बाद पुलिस ने जगहजगह छापेमारी कर सैकड़ों संदिग्धों को हिरासत में लिया था.

इस आतंकी हमले के तुरंत बाद इस की जिम्मेदारी आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएस) ने ली थी. लेकिन जांच में यह बात सामने आई कि इन आतंकियों का आईएस से कोई संबंध नहीं था. यह बात बंगलादेश सरकार ने भी स्वीकारी कि इस हमले में किसी विदेशी आतंकी संगठन का हाथ नहीं था. हमले के पीछे जिहादी संगठन जमायतुल मुजाहिदीन बंगलादेश (जेएमबी) का हाथ था. जांच में यह भी सामने आया था कि कमांडो औपरेशन में मारे गए 5 आतंकियों में से 2 आतंकी जाकिर नाइक से प्रभावित थे.

बंगलादेश पुलिस मामले की जांच में जुट गई. जांच में पता चला कि इस हमले में कई संदिग्ध हमलावर थे. इन में से 5 हमलावर कमांडो ने मौके पर ही ढेर कर दिए थे, अन्य की जांच एजेंसियों ने तलाश शुरू कर दी. अपने तलाशी अभियान में पुलिस ने अलगअलग मुठभेड़ के दौरान 8 आतंकी और मार गिराए, जबकि 8 जीवित आतंकियों को गिरफ्तार कर लिया गया.

गिरफ्तार हुए दहशतगर्दों में जहांगीर हुसैन, रकीबुल हसन, असलम हुसैन, अब्दुल सबूर, सोहिल महफूज, हादुर रहमान और शरीफुल इसलाम मामूनुर रशीद थे.

हमले में मारे गए लोगों में शामिल 19 वर्षीय भारतीय लड़की तारिषी जैन का परिवार मूलरूप से उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद स्थित मोहल्ला सुहागनगर का रहने वाला था. तारिषी बर्कले यूनिवर्सिटी, कैलिफोर्निया की मेधावी छात्रा थी. वह वहां एमबीए (इकोनौमिक्स) कर रही थी.

तारिषी के पिता संजीव कुमार जैन ढाका में कपड़े का कारोबार करते थे. पिता संजीव जैन बिजनैस के सिलसिले में करीब 20 साल पहले हांगकांग शिफ्ट हो गए थे. उन के 2 बच्चे थे, तारिषी और संचित. तारिषी की शुरुआती पढ़ाई हांगकांग में ही हुई. संचित कनाडा में इंजीनियर की नौकरी कर रहा है.

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गारमेंट कारोबार की वजह से संजीव जैन का परिवार सन 2007 में ढाका शिफ्ट हो गया था. 3 महीने की छुट्टियां होने पर तारिषी अपने मातापिता के साथ ढाका आई हुई थी. दूसरे दिन वह पिता संजीव जैन, मां तूलिका जैन व बड़े भाई संचित के साथ अपने चाचा राकेश मोहन के पास फिरोजाबाद जाने वाली थी. उस का भाई संचित जैन भी कनाडा से दिल्ली पहुंच गया था. सभी लोगों को दिल्ली से फिरोजाबाद जाना था. लेकिन खानाखाने गई तारिषी दहशतगर्दों का निवाला बन गई.

सेना के कमांडो ने लोगों को बचाने की काररवाई के दौरान कैफे में घुस कर 22 लोगों की हत्या करने वाले पांचों दहशतगर्दों को मार गिराया था. इन में निबरस इसलाम, रिहान इम्तियाज, मीर समी मुबस्सिर, रिपान व बिकाश शामिल थे.

घटना के बाद इन पांचों के फोटो आईएसआईएस द्वारा जारी किए गए. फोटो में ये लोग एके-47 व आईएसआईएस के झंडे के साथ दिखाई दे रहे थे.

खास बात यह कि इन पांचों ने मदरसे में तालीम नहीं ली थी, बल्कि सभी नामचीन स्कूलों के पढ़ने वाले, बड़े घरानों के युवक थे. इन के मासूम चेहरों के पीछे छिपी हैवानियत का किसी को पता नहीं था. ये लोग आईएसआईएस से कैसे जुडे़, इन के घर वालों तक को पता नहीं थी.

मृत आतंकियों के घर वालों को इस घटना के दूसरे दिन अखबारों व टीवी की खबरों से उन के मरने की जानकारी मिली. पहचान होने के बाद आतंकी के दोस्तपरिचित हैरान रह गए. इन में एक तो हिंदी फिल्मों की अभिनेत्री श्रद्धा कपूर का प्रशंसक था.

पांचों आतंकी जनवरी, 2016 से अपनेअपने घरों से गायब हुए थे. कुछ के घर वालों ने थाने में गुमशुदगी भी दर्ज करा रखी थी. सवाल यह था कि आखिर किस ने उन के हाथ से किताबें ले कर बंदूक थमा दी और उन के बस्तों में बारूद भर दी.

हमले के दौरान तारिषी जैन अपने दोस्तों अबिंता कबीर व फराज अयाज हुसैन के साथ कैफे के टौयलेट में छिप गई थी. वहीं से उस ने अपने पिता संजीव जैन व चाचा राकेश मोहन को फोन किया था. तारिषी के अंतिम शब्द रोंगटे खड़े करने वाले थे. उस ने कहा, ‘आतंकी रेस्तरां में घुस आए हैं. मैं बुरी तरह से डरी हुई हूं और दोस्तों के साथ टौयलेट में छिपी हूं. पापा, मुझे नहीं लगता कि मैं जिंदा बच पाऊंगी. आतंकी एकएक कर के लोगों को मार रहे हैं.’

तारिषी निरीह परिंदे की तरह फड़फड़ा रही थी. संजीव जैन भले ही बेटी का हौसला बढ़ाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन उन का दिल बैठा जा रहा था.

आयतें सुन कर अलग किए गैरइसलामी

सेना के कमांडो द्वारा रेस्क्यू में बचाए गए 18 प्रत्यक्षदर्शियों में से एक हसनात करीम भी थे. उन के पिता रिजाउल करीम के अनुसार पांचों आतंकवादियों ने रेस्टोरेंट के हाल में सभी बंधकों को बंदूक की नोंक पर इकट्ठा किया.

फिर उन से कुरआन की 1-2 आयतें सुनाने को कहा. जो लोग आयतें सुना देते, उन्हें एक ओर कर देते थे और जो नहीं सुना पाते थे, उन्हें दूसरी ओर खड़ा कर दिया जाता था. इस के बाद आयतें न सुना पाने वाले लोगों की तेज धारदार हथियारों से हत्या कर दी गई. इन में तारिषी के साथ अधिकतर विदेशी शामिल थे.

जब आतंकी मजहब जानने के लिए आयतें सुन कर लोगों को मार रहे थे, तब तारिषी के दोस्त इंसानियत का धर्म निभा रहे थे. तारिषी के दोनों दोस्त अबिंता और फराज ने आखिरी वक्त तक दोस्ती और इंसानियत का साथ नहीं छोड़ा.

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फराज ने आतंकियों को कुरआन की आयतें सुना दी थीं. इस पर फराज से उन्होंने दूसरी ओर जाने को कहा, लेकिन फराज ने अपनी दोस्त तारिषी और अबिंता के बिना जाने से इनकार कर दिया. इस पर आतंकियों ने तीनों दोस्तों की हत्या कर दी थी.

तारिषी जैन की हत्या की खबर मिलने के बाद उस के परिजनों व परिचितों में मातम छा गया. पलभर में परिवार की खुशियां काफूर हो गईं. घटना वाली रात तारिषी ने फिरोजाबाद में रहने वाले अपने चाचा राकेश मोहन से फोन पर बात की थी और वहां के हालात के बारे में भी बताया था.

राकेश मोहन के अनुसार, 3 जुलाई, 2016 रविवार को तारिषी परिवार के साथ फिरोजाबाद आने वाली थी, लेकिन उस से पहले दरिंदों ने उन की बेटी की हत्या कर दी.

तारिषी की मौत के बाद फिरोजाबाद व देश में अलगअलग स्थानों पर घटना की निंदा की गई. कैंडल मार्च निकाल कर श्रद्धांजलि दी गई.

भारत सरकार की सक्रियता के कारण तारिषी का शव 4 जुलाई, 2016 को बंगलादेश से नई दिल्ली अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे लाया गया. वहां से कार द्वारा शव को गुरुग्राम (हरियाणा) ले जाया गया, जहां तारिषी के पिता संजीव जैन का घर था. गुरुग्राम में ही तारिषी का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

लंबी सुनवाई के बाद सुनाया गया फैसला

लगभग 3 साल तक यह मामला विशेष ट्रिब्यूनल में चला. जांच अधिकारी हुमायूं कबीर ने 113 गवाहों के बयान कोर्ट में दर्ज कराए. पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए 8 दहशतगर्दों ने अदालत में खुद को बेकसूर बताया. गवाहों के बयान और दोनों पक्षों के वकीलों की जिरह सुनने के बाद जज मुजीबुर रहमान ने सबूतों के आधार पर 27 नवंबर, 2019 को अपना फैसला सुनाया.

जज मुजीबुर रहमान ने इसलामी आतंकवादी संगठन के 7 आतंकियों जहांगीर हुसैन, रकीबुल हसन रेगन, असलम हुसैन उर्फ रशीदुल इसलाम, अब्दुल सबूर खान उर्फ सोहिल महफूज, हादुर रहमान सागर, शरीफुल इसलाम, खालिद और मामूनुर रशीद को फांसी की सजा सुनाई.

अदालत ने आतंकी हमले में 22 निर्दोष लोगों की दर्दनाक मौत को अमानवीय करार दिया. जज ने सभी दोषियों पर 50-50 हजार टका का जुरमाना भी लगाया. जब कोर्ट ने फैसला सुनाया तो दोषी बिना किसी पछतावे के बेखौफ खड़े थे और उन्होंने अल्लाह हू अकबर का नारा भी लगाया.

न्यायाधीश ने आठवें आरोपी मिजानुर रहमान को बरी कर दिया, क्योंकि अभियोजन पक्ष प्रतिबंधित संगठन नव-जमायतुल मुजाहिदीन बंगलादेश (नव जेएमबी) द्वारा किए गए हमले में उस के संबंध को साबित नहीं कर सका था.

अपने फैसले में न्यायाधीश ने बंगलादेशी मूल के कनाडाई नागरिक तमीम चौधरी को हमले का मास्टरमाइंड बताया, जो हमले के बाद राष्ट्रव्यापी आतंकवादरोधी सुरक्षा अभियान के दौरान मारा गया था. आतंकरोधी शाखा ने आतंकी हमले की 2 साल की जांच के बाद पिछले साल जुलाई में अदालत में चार्जशीट दाखिल की थी.

फैसला सुनाए जाने के बाद सरकारी वकील गुलाम सरवर खान ने पत्रकारों को जानकारी देते हुए बताया कि मामले की जांच में पता चला कि दोषियों ने आतंकवादियों को धन मुहैया कराया था. हथियारों की आपूर्ति की थी या फिर हमले में सीधे तौर पर शामिल लोगों की मदद की थी. उन के खिलाफ जो आरोप थे, वे साबित हो गए.

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जिन 7 आतंकियों को सजा सुनाई गई है, वे हमले की साजिश में शामिल थे. कोर्ट ने उन्हें अधिकतम सजा सुनाई. सभी दोषी करार दिए गए अपराधियों का संबंध जमायतुल मुजाहिदीन बंगलादेश से था. यह संगठन बंगलादेश में शरिया कानून लागू करना चाहता था.

फिरोजाबाद के सुहागनगर में रहने वाले तारिषी के ताऊ राजीव जैन को 27 नवंबर, 2019 की शाम यह खबर मिली कि ढाका के रेस्टोरेंट में आतंकी हमला करने वाले 7 आतंकियों को विशेष अदालत ने मौत की सजा सुनाई है तो उन के दिल को सुकून मिला.

बेटी को खोने का गम आज भी परिवार के सदस्यों की आंखों में झलकता है. बर्कले यूनिवर्सिटी, कैलिफोर्निया की छात्रा तारिषी मेधावियों में अपना स्थान रखती थी. तारिषी के मातापिता ने बेटी की स्मृति में बर्कले यूनिवर्सिटी में एक मेधावी स्कौलरशिप शुरू करने की घोषणा की है.

कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

हत्या: मासूम ने खोला बुआ, दादी का राज!

छत्तीसगढ़ के महासमुन्द मे ग्यारह साल की एक मासूम बुआ और दादी की पोल खोल दोनों  को जेल के सींखचों के पीछे  पहुंचा दिया. कुछ फिल्मी कुछ रहस्यमयी इस अपराध कथा पर सुनकर आप चौक जायेंगे की एक मासूम बच्ची ने बताया की कैसे उसके पिता की हत्या बुआ और दादी ने मिल ठीक एक साल पहले कर दी थी. महत्वपूर्ण  यह की एक साल तक पुलिस को गुमराह करने वाली आरोपी बहन एवं  मां को सिटी कोतवाली पुलिस ने हत्या व  उसे छुपाने के आरोप में गिरफ्तार कर भादवि की धारा 302, 201, 34 के तहत जेल भेज दिया . सिटी कोतवाली प्रभारी ने हमारे संवाददाता को जानकारी देते हुए बताया  कि एक साल पहले 20 फरवरी 2019 को मृतक आश कुमार यादव 30 साल बिमचा निवासी को महासमुन्द के अस्पताल आरएलसी में यह कहते हुए भर्ती कराया था कि आश कुमार यादव घर की सीढ़ी से गिर गया और उसके सिर पर चोट लगने की वजह से घायल हो गया है. बाद मे उसकी मृत्यु  हो गयी.

मामूली बात,रिश्ते का खून!

छोटी सी बात कब कैसे मोड़ लेती है कोई नहीं जानता महासमुंद के इस हत्याकांड में भी देखिए कुछ ऐसा ही हुआ- घायल अवस्था में आश कुमार यादव को अस्पताल में भर्ती कराया गया . तत्पश्चात डाक्टरोंं ने मामले की गंभीरता को देखते हुए  घायल आश कुमार यादव को राजधानी रायपुर डीकेएस अस्पताल रिफर कर दिया. बाद में घायल आश कुमार यादव कि  मौत 3 मार्च 2019 को वहीं चिकित्सा के दरमियान हो गई.

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पोस्टमार्टम के पश्चात राजधानी रायपुर पुलिस ने शून्य में मर्ग कायम कर महासमुंद के सिटी कोतवाली पुलिस को डायरी भेज दी थी. सिटी कोतवाली पुलिस ने मामले में जांच शुरू की तो मामला संदेहास्पद लगा और पुलिस ने जांच शुरू कर दी. कोतवाली पुलिस ने  मामले की सारी जानकारी पुलिस अधीक्षक जितेन्द्र शुक्ल को दी.पुलिस अधीक्षक ने सिटी कोतवाली थाना क्षेत्र के एसडीओपी नारद सुयवंशी और सिटी कोतवाली पुलिस राकेश खुटेश्वर को आदेशित किया कि मामले में सूक्ष्मता से जांच की जाए. सिटी कोतवाली पुलिस बिमची पहुंच  मामले की तफतीश  करने  लगी. एक साल पहले किस तरह से आश कुमार यादव घायल हुआ था ? इसकी पूछताछ की  तो मृतक की मां और उसकी बहन व पिता ने पुलिस को झूठी कहानी बताने लगी. पुलिस का मामले में संदेह बढ़ता गया. पुलिस जब भी जांच में जाती तो बड़ी चालाकी से बच्चों को दूसरे गांव भेज दिया जाता था. पुलिस को मृतक के बच्चे कही नजर नहीं आते थे. बच्चों के बारे में मृतक के परिवार से पूछा जाता तो कोई ना कोई बहाना बता कर बच्चों की सही जानकारी पुलिस को नहीं देते थे.

बेटी ने बताया  सच!

पुलिस अपने स्तर से मामले में बच्चों की जांच पड़ताल की तो पुलिस को जानकारी मिली की मृतक आश कुमार यादव के दोनों बच्चे तुमगांव थाना क्षेत्र के अछरीडीह में है. पुलिस वहां पहुंच गई  बच्चों से पूछताछ करने के लिए  सकारात्मक माहौल तैयार कर सादी वर्दी में बच्चों के पास पहुंचे और मृतक आश कुमार यादव के बच्चों से बात चीत  की. मृतक की 11 साल की बेटी हितेश्वरी ने  बातों बातों मे कहा – उसके पिता  आश कुमार यादव और उसकी बुआ माधुरी यादव के बीच झगड़ा हुआ और उसकी बुआ माधुरी नेे पिता  को घर के बरामदे में रखे “खटिया के खुरे” से सिर में वार किया. माधुरी यादव का वार इतना जोर का था कि मृतक वहीं बेहोश हो कर गिर गया. घटना के वक्त मृतक की मां भी साथ  थी,उसने घटना के बाद खून साफ किया और झूठा बहाना बनाया था.

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सिटी कोतवाली पुलिस ने मृतक की आरोपी बहन माधुरी यादव से पूछताछ की तो उसने बताया कि घटना दिनांक को उसका भाई मृतक आश कुमार यादव शराब पीकर आया था और वह उसका मोबाइल लेकर गया था. माधुरी ने जब अपने भाई से मोबाइल ले जाने पर नाराजगी जाहिर की तो मृतक आश कुमार यादव अपनी बहन और मां से गाली गलौच करने लगा और दोनों भाई बहन में झगड़ा हो गया. गुस्से में आकर माधुरी यादव ने पास ही रखे खटिये के खुरे से अपने भाई पर प्रहार कर दिया,जिसकी वजह से वह घायल हो गया और तीन दिन के बाद उसकी रायपुर के अस्पताल में मृत्यु हो गई. पुलिस ने मामले में बहन और मां  को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

संगीन विश्वासघात

28 सितंबर, 2017 को जिला गुरदासपुर के गांव मिताली के रहने वाले रंजीत सिंह की विधवा जसविंदर कौर ने एसएसपी हरचरण सिंह भुल्लर को एक शिकायत दी थी, जिस में उस ने जो लिखा था, वह कुछ इस प्रकार था—

2 बच्चों की मां जसविंदर कौर के पति रंजीत सिंह पंजाब पुलिस में थे, जिन की अप्रैल, 2008 में अचानक मौत हो गई थी. जसविंदर पढ़ीलिखी थी, इसलिए अनुकंपा के आधार पर उसे पति की जगह नौकरी मिल जानी चाहिए थी. इस के लिए उस ने काफी कोशिश की, लेकिन उसे नौकरी नहीं मिल सकी. किसी ने जसविंदर कौर को सलाह दी कि इस तरह कुछ नहीं होना. अगर वह किसी मंत्री या बड़े नेता से कहलवा दे तो उस का काम आसानी से हो जाएगा. जसविंदर को याद आया कि उस की एक सहपाठिन के पिता बड़े नेता हैं. वह राज्य सरकार में मंत्री भी हैं. जसविंदर जा कर उन से मिली. यह सन 2009 के शुरू की बात है.

जसविंदर कौर ने मंत्री महोदय से पूरी बात बता कर यह भी बताया कि उन की बेटी कालेज में उस के साथ पढ़ती थी. मंत्री महोदय ने उस के सिर पर हाथ फेरते हुए हरसंभव मदद का आश्वासन दिया. उन्होंने कहा कि उन के लिए यह काम जरा भी मुश्किल नहीं है.

यह मंत्री महोदय कोई और नहीं, सरदार सुच्चा सिंह लंगाह थे, जिन से जसविंदर कौर चंडीगढ़ स्थित उन के सरकारी आवास पर अपने घर वालों के साथ मिली थी. लंगाह ने जसविंदर को काम कराने का आश्वासन देते हुए 2-3 दिनों बाद अकेली किसान भवन में आ कर मिलने को कहा. आने से पहले फोन कर लेने की बात कहते हुए उन्होंने उसे अपना मोबाइल नंबर भी दे दिया था.

2 दिनों बाद जसविंदर कौर ने मंत्री सुच्चा सिंह लंगाह को फोन किया तो उन्होंने उसे अगले दिन दोपहर को किसान भवन आने को कहा, साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि वह वहां अकेली ही आएगी. जसविंदर कौर ने वैसा ही किया. अगले दिन दोपहर को वह अकेली ही चंडीगढ़ के सैक्टर-35 स्थित किसान भवन पहुंच गई. वहां ठहरने के लिए होटलों की तरह हर सुखसुविधा वाले कमरे बने हैं. इन्हीं कमरों में से एक कमरे में लंगाह आराम कर रहे थे. उन्होंने जसविंदर को अपने कमरे में बुलवा लिया.

जसविंदर ने अपनी शिकायत में लंगाह पर जो आरोप लगाए हैं, उस के अनुसार वह किसान भवन के उस कमरे में पहुंची तो मंत्री सुच्चा सिंह उसे अपनी बगल में बिठा कर उस के साथ अश्लील हरकतें करने लगा. इस से जसविंदर बुरी तरह डर गई.

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उस ने लंगाह को रोकने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘अंकल, मैं आप की बेटी सरबजीत कौर के साथ बेबे नानकी कालेज में पढ़ी हूं. इस नाते मैं आप की बेटी की तरह हूं. आप को अपने पिता की तरह मान कर मैं आप के पास मदद के लिए आई हूं. आप मुझ पर रहम करें. मैं विधवा हूं. मेरे 2 बच्चे हैं. प्लीज, मुझे जाने दीजिए.’’

जसविंदर के अनुसार, इस चिरौरी का सुच्चा सिंह लंगाह पर कोई असर नहीं हुआ. पहले तो उस ने अपनी ऊंची पहुंच के बारे में बताते हुए उसे जल्दी सरकारी नौकरी दिलवाने का लालच दिया. लेकिन जसविंदर काबू में नहीं आई तो उस ने उसे धमकी दी कि वह चाहे तो उसे अभी किसी केस में फंसा कर उस की जिंदगी बरबाद कर सकता है. इस के बाद उस ने जबरदस्ती जसविंदर की अस्मत लूट ली.

जसविंदर ने अपनी शिकायत में आगे लिखा है कि सुच्चा सिंह लंगाह का रुतबा देख कर वह डर के मारे चुप रह गई. बस पकड़ कर वह अपने गांव लौट आई. इस बारे में उस ने किसी को कुछ नहीं बताया. फिर वह एक लाचार विधवा औरत थी, जिस के लिए अपने बच्चों को पालने की खातिर नौकरी बहुत जरूरी थी.

यही वजह थी कि इज्जत लुटने के बाद भी जसविंदर लंगाह से संबंध तोड़ नहीं सकी. वह उसे फोन कर के अपने काम के बारे में पूछती रहती. उन का एक ही जवाब होता था कि वह कोशिश कर रहा है कि उस का काम जल्दी हो जाए.

एक बार लंगाह ने बीएमडब्ल्यू कार भेज कर जसविंदर कौर को पंजाब सिविल सेक्रेटेरिएट स्थित अपने औफिस में बुलवाया और उस के सामने ही किसी बड़े पुलिस अफसर को फोन कर के कहा कि वह जसविंदर को उस के पास भेज रहे हैं, उस का काम किसी भी सूरत में आज ही हो जाना चाहिए. इस के बाद लंगाह ने जसविंदर को अपने एक आदमी के साथ उस पुलिस अधिकारी के पास भेज दिया.

पुलिस अधिकारी भला आदमी था, उस ने उसी दिन नियुक्तिपत्र जारी करवा दिया. इस तरह जसविंदर को स्टेट विजिलेंस विभाग में क्लर्क की नौकरी मिल गई. नौकरी पा कर जसविंदर कौर बहुत खुश थी. वह लंगाह को धन्यवाद देने भी गई.

जसविंदर की मजबूरी का फायदा उठाते हुए लंगाह ने एक बार नहीं, कई बार शारीरिक शोषण किया. उस दिन भी वह उसे यह कहते हुए एक जगह ले जा कर वही सब किया कि अभी उस की नौकरी कच्ची है, जल्दी वह उसे पक्की करवा देगा.

डराधमका कर मंत्रीजी करते रहे उस का यौनशोषण

इस के बाद सुच्चा सिंह लंगाह जसविंदर से यह कहने लगा कि उस ने कई लोगों को एजेंसियां दिलवाई हैं, जो हर महीने लाखों रुपए कमा रहे हैं. वह चाहे तो उस के परिवार के किसी सदस्य के नाम एजेंसी दिलवा सकता है, जिस के माध्यम से वह मोटी कमाई कर सकती है. इस तरह की बातें करते हुए अकसर वह कुछ ऐसी बातें कह देते थे, जिस से जसविंदर इतना डर जाती कि उसे अपनी मौत का अहसास होने लगता था.

जसविंदर कौर के अनुसार, मंत्री सुच्चा सिंह लंगाह अकसर उस से कहा करते थे कि उन की इतनी पहुंच है कि अगर वह किसी का कत्ल भी करवा दें तो कोई उन का कुछ नहीं बिगाड़ सकता. यूपी, बिहार के कई गैंगस्टरों से उन की बहुत पटती है. वे उन के इशारे पर कभी भी कुछ भी कर सकते हैं. यहां तक कि वह जिस का कह दें, वे उस का कत्ल भी कर सकते हैं. इस तरह लंगाह जसविंदर को डरा कर अलगअलग जगहों पर ले जा कर उस का यौनशोषण करता रहा.

एसएसपी को दी गई अपनी शिकायत में जसविंदर ने आगे जो लिखा था कि मंत्री सुच्चा सिंह लंगाह ने उसे अलगअलग जगहों पर ले जा कर उस के साथ इतनी बार दुष्कर्म किया है कि अब वह बता भी नहीं सकती. कुछ ऐसी जगहों पर भी वह उसे ले गया था, जिन के बारे में उसे आज भी कुछ पता नहीं है. लंगाह जब भी उसे कहीं ले जाता था, गाड़ी खुद चलाता था. उस आदमी ने उस से सिर्फ अपनी हवस ही नहीं मिटाई, बल्कि आर्थिक रूप से भी उसे खूब लूटा.

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सुच्चा सिंह लंगाह ने जसविंदर को चंडीगढ़ में प्लौट दिलाने के नाम पर गांव की उस की जमीन बिकवा दी. उस रकम से सिपहिया नामक आदमी को प्लौट खरीदने के नाम पर बयाने के रूप में 15 लाख रुपए दिलवा दिए. इस के बाद एक वकील को 30 लाख रुपए दिए. बाद में उस से कहा गया कि अब वे लोग अपना प्लौट नहीं बेचना चाहते. जसविंदर को एक लाख रुपए दे कर लंगाह ने कहा कि बकाया रकम उसे धीरेधीरे दे दी जाएगी. कुछ दिनों बाद साढ़े 3 लाख रुपए दे कर उस से कहा गया कि उसे जो रकम मिल गई, वही बहुत है, बयाने की रकम भला कोई वापस करता है. इस तरह बाकी रकम लंगाह ने खुद रख ली थी.

जसविंदर कठपुतली बनी हुई थी मंत्री की

इस के बाद सुच्चा सिंह लंगाह ने जसविंदर के नाम पर सहकारी बैंक से 8 लाख रुपए कर्ज ले कर 1 लाख रुपए उसे दे दिए और बाकी के 7 लाख रुपए खुद रख लिए. इस के बाद यह कह कर जसविंदर के गांव वाले मकान का सौदा करवा दिया कि वह उसे जालंधर शहर में फ्लैट खरीदवा देगा. इस के बाद उस से प्रार्थना पत्र लिखवा कर उस का तबादला जालंधर करवा दिया.

जसविंदर कौर के अनुसार, लंगाह उसे नदी पार अपनी जमीनों के बीच बनी कोठी पर भी बुलाया करता था, जहां जाने में उसे बहुत डर लगता था. जसविंदर को लगता कि अगर उसे मार कर वहां दफना दिया गया तो किसी को पता तक नहीं चलेगा. वैसे भी उस ने उसे इतना डरा दिया था कि वह उस के हाथों की कठपुतली बनी हुई थी. इसीलिए वह उस के खिलाफ किसी के सामने मुंह खोलने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी.

एक बार जसविंदर के बेटे का एक्सीडेंट हुआ तो लंगाह ने यह कह कर उसे और डरा दिया कि कहीं यह एक्सीडेंट किसी ने कराया तो नहीं? उस ने यह बात इस तरह कही थी कि जसविंदर ने सोचा कि अगर उस ने कभी उस के खिलाफ जाने की सोची तो वह उस के परिवार को नुकसान पहुंचा सकता है.

जसविंदर जितना सुच्चा सिंह से डरती रही, वह उस का उतना ही शारीरिक और आर्थिक शोषण करता रहा. क्योंकि बेसहारा अकेली जसविंदर कौर की उस के सामने औकात ही क्या थी? इस बीच जसविंदर को पता चल गया कि सुच्चा सिंह ने उस की तरह और भी कई औरतों को उसी की तरह लूट कर उन की जिंदगी बरबाद कर दी.

इस के बाद जसविंदर को लगने लगा कि अब वह अति की सीमा पार कर चुका है. आखिर अपनी जान हथेली पर रख कर किसी तरह हिम्मत जुटा कर जसविंदर कौर ने सुच्चा सिंह लंगाह के खिलाफ उपर्युक्त शिकायत लिख कर एसएसपी को दे दी थी.

अपने ऊपर हुई ज्यादतियों को साबित करने के लिए मजबूरन जसविंदर ने इस सब की वीडियो बना ली थी. क्योंकि अगर वह ऐसा न करती तो अपनी पहुंच की बदौलत लंगाह उस की शिकायत को दबवा कर वह उसे किसी केस में फंसवा सकता था. इसीलिए सबूत के तौर पर जसविंदर ने एक वीडियो शिकायत पत्र के साथ नत्थी कर दी थी.

जसविंदर कौर ने शिकायत देने के बाद गुहार लगाई थी कि उसे और उस के परिवार को सुच्चा सिंह लंगाह से बहुत ज्यादा खतरा है. वह इतना खतरनाक आदमी है कि कभी भी उस पर हमला करवा कर मरवा सकता है. इसलिए उस ने निवेदन किया था कि उस की व उस के परिवार की सुरक्षा की व्यवस्था की जाए. उसे इंसाफ दिलवाया जाए और उस के आर्थिक नुकसान की भरपाई करवाई जाए.

सुच्चा सिंह लंगाह ने मंत्री और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का सदस्य रहते हुए तमाम गैरजिम्मेदाराना काम करते हुए बहुत ज्यादतियां की हैं. इसलिए इस मामले को अत्यंत गंभीरता से लेते हुए एक बेसहारा मजलूम औरत की फरियाद पर ध्यान दे कर उस के खिलाफ तुरंत काररवाई की जाए.

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शिकायत पत्र के अंत में जसविंदर कौर ने अपने दस्तखत कर के नामपता और मोबाइल नंबर भी लिख दिया था. इस के साथ एक एफिडेविट के अलावा पैनड्राइव और सीडी भी संलग्न थी, जिस में 20 मिनट की वीडियो थी, जो किसी नीली फिल्म से कम नहीं थी. उस में लंगाह को निर्वस्त्र हो कर शिकायतकर्ता के साथ शारीरिक संबंध बनाते दिखाया गया था.

सबूतों के आधार पर सुच्चा सिंह के खिलाफ दर्ज हो गई शिकायत

एसएसपी हरचरण सिंह भुल्लर ने मार्क कर के जसविंदर की शिकायत की काररवाई के लिए डीएसपी (सिटी) गुरबंस सिंह बैंस को भिजवा दी. उन्होंने इस के तथ्यों एवं वीडियो वगैरह की जांच कर के कानूनी राय लेने के लिए उसे जिला न्यायवादी के पास भिजवा दिया. डिस्ट्रिक्ट अटार्नी ने भादंवि की धारा 376, 384, 420 एवं 506 के तहत आपराधिक मामला दर्ज करने की संस्तुति दे दी.

इस तरह 29 सितंबर, 2017 को गुरदासपुर के थाना सिटी में अपराध संख्या 168 पर उपर्युक्त धाराओं के तहत सुच्चा सिंह लंगाह के खिलाफ मुकदमा दर्ज हो गया. इस के बाद लंगाह की वह अश्लील वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गई.

इस के बाद सुच्चा सिंह लंगाह ने भूमिगत हो कर पार्टी के सभी पदों तथा शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) की सदस्यता से इस्तीफा दे कर अदालत में आत्मसमर्पण करने की घोषणा कर दी. अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने उस के इस्तीफे को तत्काल प्रभाव से स्वीकार कर लिया. एसएसपी हरचरण सिंह भुल्लर ने मामले की जांच डीएसपी आजाद दविंद्र सिंह एवं इंसपेक्टर सीमा देवी को सौंपने के अलावा जसविंदर कौर को सुरक्षा मुहैया करा दी.

उसी दिन सुच्चा सिंह ने बयान जारी करते हुए कहा कि उन के विरुद्ध यह झूठा मामला सरकार द्वारा गुरदासपुर उपचुनाव जीतने के लिए एक सोचीसमझी साजिश के तहत दर्ज कराया गया है. लेकिन उन्हें न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है. वह 30 सितंबर, 2017 को माननीय अदालत में आत्मसमर्पण कर देंगे.

लेकिन सुच्चा सिंह 30 सितंबर को किसी भी अदालत में आत्मसमर्पण करने नहीं पहुंचा. हालांकि उस दिन छुट्टी थी, फिर भी गुरदासपुर की अदालत में ड्यूटी मजिस्ट्रैट दिन भर बैठे रहे. इतना ही नहीं, मीडियाकर्मी, पुलिस फोर्स और अकाली दल के समर्थक भी अदालत पहुंच कर उस के बंद होने तक उस का इंतजार करते रहे.

जिस तरह सोशल मीडिया पर सुच्चा सिंह लंगाह का आपत्तिजनक वीडियो वायरल हुआ था, उसी तरह यह खबर भी सामने आई कि केस दर्ज करवाने वाली महिला ने 12 दिन पहले उसे चेतावनी देते हुए कहा था कि जो हुआ, सो हुआ. अब वह उस का पीछा छोड़ दें, वरना उसे मजबूरन पुलिस की शरण में जाना पड़ेगा.

लेकिन सुच्चा सिंह लंगाह ने उस की इस चेतावनी की जरा भी परवाह नहीं की थी. वह जाने कहां छिपा बैठा था. उसी बीच पहली अक्तूबर को भाजपा के पंजाब प्रभारी प्रभात झा ने बयान जारी करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह अकाली नेता पूर्वमंत्री सुच्चा सिंह लंगाह को फंसाने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन उसी दिन शाम को शिरोमणि अकाली दल पार्टी ने उसे निकाले जाने का आदेश सार्वजनिक कर दिया.

गिरफ्तारी के डर से भूमिगत हो गया सुच्चा सिंह

मुकदमा दर्ज होने के 3 दिनों बाद सुच्चा सिंह लंगाह वकीलों की टीम के साथ चंडीगढ़ की जिला अदालत में आत्मसमर्पण करने पहुंचा, पर अदालत ने उसे गुरदासपुर जाने को कहा. इस के बाद सुच्चा सिंह फिर भूमिगत हो गया. श्री अकालतख्त साहिब समेत अन्य तख्तों के जत्थेदारों ने इस मामले पर नोटिस लेते हुए उस पर कड़ी काररवाई करने की बात की.

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श्री अकालतख्त साहिब के जत्थेदार सिंह साहिब ज्ञानी गुरबचन सिंह ने इस घटना की भर्त्सना करते हुए अपना बयान जारी किया कि सुच्चा सिंह लंगाह ने एसजीपीसी जैसी सर्वोच्च धार्मिक संस्था का सदस्य रहते हुए जो कृत्य किया है, वह अति निंदनीय है. दुनिया भर में बैठी संगत इस की जोरदार शब्दों में निंदा करती है. जल्दी ही इस मामले पर सिंह साहिबान की बैठक बुला कर और उस में धार्मिक मामलों को ले कर गठित कमेटी की राय ले कर लंगाह के खिलाफ जो काररवाई की जानी चाहिए, वह की जाएगी.

3 अक्तूबर को सुच्चा सिंह लंगाह की गिरफ्तारी के लिए पुलिस ने लुकआउट नोटिस जारी कर दिया. उस ने अग्रिम जमानत के लिए हाईकोर्ट में जमानत की अर्जी लगाई, जो खारिज कर दी गई. आखिर 4 अक्तूबर को उस ने अपने वकीलों के साथ जा कर गुरदासपुर की सीजेएम कोर्ट में आत्मसमर्पण कर दिया. पुलिस ने पूछताछ के लिए उसे 9 अक्तूबर तक के लिए कस्टडी रिमांड पर ले लिया.

उस समय सुच्चा सिंह ने अदालत में मौजूद पत्रकारों से कहा था कि उन के विरुद्ध साजिश रची गई है, जिस में एक कांग्रेसी नेता तथा एक पुलिस अधिकारी ने मुख्य भूमिका निभाई है. इसी के साथ उस ने यह भी कहा कि उसे न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है.

अदालत परिसर में ही कुछ लोगों ने सुच्चा सिंह पर हमला कर दिया, जिस में वह बालबाल बच गया. इस घटना के बाद पुलिस ने एक हमलावर युवक को नंगी तलवार के साथ गिरफ्तार कर लिया था.

उसी दिन सरबतखालसा पंथ के जत्थेदारों की ओर से सिख पंथ के नाम जारी एक हुकमनामे के अनुसार, सुच्चा सिंह को पंथ से निकाल दिया गया. इस के बाद इस फैसले पर 5 सिंह साहिबानों श्री अकालतख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी गुरबचन सिंह, तख्त श्री दमदमा साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह, तख्त श्री पटनासाहिब के जत्थेदार ज्ञानी इकबाल सिंह, ज्ञानी जगतार सिंह व ज्ञानी रघबीर सिंह ने इस फैसले पर मुहर लगा दी.

कस्टडी रिमांड के दौरान सुच्चा सिंह लंगाह की उम्र अथवा रुतबे की परवाह न करते हुए पुलिस ने उस से गहन पूछताछ की.

कपूरथला से 10वीं पास कर के राजनीति में आने वाले सुच्चा सिंह लंगाह का मूल गांव था लंगाह, जहां उस के पिता तारा सिंह खेतीकिसानी करते थे. माझा में उस की अच्छी पहचान थी. उस के राजनीतिक कद को देखते हुए पार्टी में कई अहम पदों की जिम्मेदारी उसे सौंपी गई थी. क्योंकि वह पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल का बहुत करीबी और खासमखास था.

सुच्चा सिंह सन 1997 से 2002 तक बादल के नेतृत्व वाली सरकार में लोकनिर्माण मंत्री रहा. इस के बाद सन 2007 से 2012 तक की अकाली-भाजपा सरकार में उसे कृषि मंत्री बनाया गया था. सन 2012 के विधानसभा चुनाव में डेरा बाबा नानक सीट पर वह कांग्रेस के सुखजिंदर सिंह रंधावा से चुनाव हार गया.

उस ने 2 शादियां की थीं. उस के 2 बेटे और 2 बेटियां हैं. उस की पहली पत्नी गुरदासपुर के कस्बा धारीवाल में रहती है, जबकि दूसरी पत्नी नरेंद्र कौर नयागांव (मोहाली) में रहती है. 61 साल के हो चुके सुच्चा सिंह लंगाह पुलिस रिकौर्ड के अनुसार हिस्ट्रीशीटर है. जमीनों पर नाजायज कब्जे के उस पर अनेक मामले चले हैं. सन 2002 में उसे पंजाब के सतर्कता विभाग ने गिरफ्तार कर उस पर मुकदमा चलाया था. सन 2015 में उसे 3 साल की कैद हुई थी. इस फैसले के खिलाफ  की गई उस की अपील हाईकोर्ट में विचाराधीन है.

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इस मामले में सुच्चा सिंह लंगाह बुरी तरह से फंस चुके है. अन्य धाराओं के अलावा पुलिस ने उस के खिलाफ धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने की धारा 295-ए जोड़ कर उस के कस्टडी रिमांड में एक दिन की बढ़ोत्तरी करवाई थी. 10 अक्तूबर को उसे न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया है.

बहरहाल, अपनी बेटी की सहपाठिन रही विधवा औरत के साथ विश्वासघात का संगीन खेल खेल कर पूर्व मंत्री सुच्चा सिंह ने अपने इर्दगिर्द नफरत की एक ऐसी फसल उगा ली है, जिसे काट पाना उस के लिए आसान नहीं है.

कहानी सौजन्य – मनोहर कहानियां

तेजाब से खतरनाक तेजाबी सोच

लड़की और उस की मां ने विरोध किया तो अपराधियों ने छात्रा पर तेजाब उड़ेल दिया जिस से उस का चेहरा और पेट बुरी तरह से जल गया. अपराधी सामूहिक बलात्कार करने की नीयत से वहां आए थे.

तेजाब फेंकने की वारदातें देश के अलगअलग हिस्सों में आएदिन होती रहती हैं और लगातार बढ़ती ही जा रही हैं. पहले तो ये शहरों तक ही सिमटी थीं, पर अब तो गांवदेहात की लड़कियों पर भी तेजाब फेंकने के मामले बढ़ रहे हैं.

मथुरा, उत्तर प्रदेश के दामोदरपुर में 25 साला महिला पुलिसकर्मी के ऊपर बदमाशों ने तेजाब फेंक दिया था जिस से वे बुरी तरह से घायल हो गई थीं. वे ड्यूटी कर के अपने घर जा रही थीं कि दरिंदों ने इस वारदात को अंजाम दे दिया.

इसी तरह बिहार के औरंगाबाद जिले के कुटुंबा थाना क्षेत्र की एक लड़की कोचिंग के लिए जा रही थी कि अचानक उस के ऊपर एक मोटरसाइकिल सवार मनचले ने तेजाब फेंक दिया. वहां मौजूद लोग उस घायल लड़की को इलाज के लिए तत्काल अस्पताल ले गए.

इसी जिले के हसपुरा ब्लौक के रघुनाथपुर गांव के नजदीक एक लड़की, जो पुलिस की बहाली के लिए सुबह दौड़ने की प्रैक्टिस कर रही थी, की कुछ दरिंदों ने उस के साथ रेप कर के उस

की हत्या कर दी और चेहरे पर तेजाब डाल दिया.

बिहार के बाहुबली नेता शहाबुद्दीन द्वारा अंजाम दिए गए तेजाब कांड को आज भी लोग भूल नहीं पाते हैं, जिस में चंदा बाबू के परिवार के 2 सदस्यों सतीश और गिरीश पर तेजाब की बालटी उलट कर उन की हत्या कर के लाश को टुकड़ेटुकड़े कर बोरे में भरवा कर फिंकवा दिया था.

बरेली, उत्तर प्रदेश में पानी लेने आई 3 औरतों पर तेजाब फेंक दिया गया था जिस से वे तीनों बुरी तरह से झुलस गई थीं.

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वाराणसी, उत्तर प्रदेश में एक दोस्त के घर ठहरी रूसी लड़की पर उसी के दोस्त ने तेजाब फेंक दिया था जिस से वह 50 फीसदी झुलस गई थी.

इसी तरह उत्तर प्रदेश के मेरठ में एक आदमी द्वारा अपनी पत्नी, सासससुर समेत 7 दूसरे लोगों पर तेजाब फेंक कर घायल करने का मामला सामने आया था.

पत्नी द्वारा दुष्कर्म और दहेज व सताने का मामला दर्ज कराया गया था जिस से नाराज हो कर पति ने यह घिनौना काम किया था. इस तेजाबी कांड में एक 6 महीने का बच्चा भी चपेट में आ गया था और 3 लड़कियां भी बुरी तरह से झुलस गई थीं.

शामली जिले में 4 सगी बहनें बोर्ड के इम्तिहान से ड्यूटी कर के लौट रही थीं कि तभी मोटरसाइकिल से 2 लड़के आए और उन चारों पर तेजाब फेंक कर चलते बने.

छत्तीसगढ़ में 4 नाबालिग लड़कियों पर तेजाब फेंकने की वारदातें हो चुकी हैं. महाराष्ट्र में एक पत्रकार और उस के परिवार के सदस्यों पर एक अज्ञात लड़की ने तेजाब फेंक दिया था.

मुजफ्फरनगर में एक बस में सवार लड़की पर एक लड़के ने तेजाब फेंक दिया था जिस से लड़की के साथसाथ दूसरी सवारियां भी घायल हो गई थीं.

इसी तरह उत्तराखंड के देहरादून

में भी एक कालेज छात्रा पर एक लड़के ने तेजाब फेंक दिया था.

तेजाब फेंकने की बढ़ती वारदातें लोगों को झकझोर कर रख देती हैं. लड़के पहले लड़की से प्यार करते हैं और फिर किसी तरह अनबन होने से प्यार का धागा टूटने पर ऐसे वहशी दरिंदों द्वारा लड़कियों पर तेजाब फेंकने की वारदातों को अंजाम दिया जाता है.

आमतौर पर यह देखा जा रहा है

कि प्यार में ज्यादातर लड़कियां धोखा खाती हैं. यहां तक कि उन के जिस्म से खिलवाड़ भी किया जाता है और जब शादी करने की बात आती है तो ज्यादातर लड़के मुकर जाते हैं. वे तो प्यार का सिर्फ ढोंग करते हैं और लड़कियों के जिस्म से खेलना चाहते हैं.

बहुत से मनचले तो किसी लड़की को एकतरफा चाहते हैं और जब लड़की उन्हें तवज्जुह नहीं देती है तो उस पर तेजाब फेंकने जैसी वारदात कर बैठते हैं.

लड़की के मातापिता लड़की की शादी किसी दूसरे लड़के के साथ करने के लिए ठान लेते हैं तो उन हालात में

भी लड़की के ऊपर तेजाब फेंकने की वारदातें हो जाती हैं.

अगर कोई लड़का हकीकत में किसी लड़की से प्यार करता है तो वह किसी भी सूरत में तेजाब नहीं फेंक सकता. इतिहास इस बात का गवाह है कि प्यार में धोखा खाने वाले लोग मासूम की तसवीर के सहारे मरते दम तक उस से प्यार करते हैं.

तेजाब फेंकने वाले प्रेमी अपराधी सोच के होते हैं. जिन लड़कियों का तेजाब से चेहरा झुलस गया है, वे बदसूरत दिखने लगी हैं. वे उन दहशतगर्दों से सवाल भी पूछती हैं कि क्या तुम मुझे इस रूप में आज भी चाहते हो? इस का जवाब इन दहशतगर्दों के पास शायद नहीं होगा.

औरंगाबाद जिले के रजानगर महल्ले की 9वीं जमात की छात्रा सलमा पर एक लड़के ने साल 2016 में तेजाब फेंक दिया था जिस से वह बुरी तरह से झुलस गई थी.

सलमा ने बताया, ‘‘जब मेरे साथ साल 2016 में तेजाब की घटना घटी थी तो लोगों द्वारा हमदर्दी और मदद करने का आश्वासन देने वालों का तांता लगा था. पत्रकारों की भी भीड़ जमा हुई थी. रिश्तेदारों ने भी तरहतरह से भरोसा दिया था. लेकिन आज सभी लोग भूल गए हैं. अब तो जिंदगी काटनी ही मुश्किल हो गई है. मेरा चेहरा देखने से लोगों की यात्रा खराब होने लगी है. मुझे देख कर बच्चे भी डरने लगे हैं.

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‘‘अब तो मैं घर वालों पर ही बोझ बन कर रह रही हूं. कोई दूसरा उपाय भी नहीं है. अपराधी को सजा हो भी जाए तो थोड़ी देर के लिए तसल्ली जरूर होगी, लेकिन मेरी जिंदगी तो नरक ही बन गई है.

‘‘मैं लड़की नहीं, एक जिंदा लाश के समान हूं. बारबार खुदकुशी करने का जी करता है. लेकिन यह सोच कर फैसला बदल देती हूं कि परिवार ने मेरे चलते बहुत दुख झेला है और मेरी वजह से इन लोगों को जेल नहीं जाना पड़े. अब तो भूल से कभी आईना भी नहीं देखती. गलती से अगर देख लेती हूं, आंखों से आंसू रुकते नहीं हैं.’’

दिल्ली की लक्ष्मी अग्रवाल, जिन के साथ भी तेजाब की वारदात घटी थी, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से सवाल किया

कि तेजाब खुलेआम बिकता क्यों है? कोर्ट ने खुलेआम तेजाब बेचने पर रोक लगाई थी, लेकिन आज भी हालात जस के तस बने हुए हैं.

सामाजिक सरोकार से जुड़ी रंजीता सिंह का कहना है कि जब तक इन दहशतगर्दों पर कड़ी कार्यवाही नहीं की जाएगी, इन का मनोबल बढ़ता जाएगा.

सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए तेजाब फेंकने वालों पर 10 साल की सजा का प्रावधान किया है, फिर भी इन वारदातों पर रोक लगने के बजाय ये और ज्यादा बढ़ती जा रही हैं.

इस पुजारी ने की 5 शादियां और फिर उन को धकेल दिया जिस्मफरोशी के धंधे में

धर्म के नाम पर काले कारनामे करने वाले बाबाओं की फिहरिस्त यों तो काफी लंबी है पर हम आप को एक ऐसे बाबा के बारे में बताने जा रहे हैं, जिस की करतूत जान कर आप के होश फाख्ता हो जाएंगे.
उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में स्वामी अनुज चेतन सरस्वती नाम के एक ढोंगी बाबा को पुलिस ने गिरफ्तार किया है. इस पर आरोप है कि इस ने सत्संग के बहाने महिलाओं को अपने जाल में फंसा कर गलत काम को अंजाम दिया है.

महिलाओं को फंसाता था जाल में

माथे पर तिलक और शरीर में भभूत लगा कर इस ढोंगी बाबा ने न जाने कितनी ही महिलाओं को अपने जाल में फंसाया होगा पर मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इस बाबा पर 5 महिलाओं ने धोखा देने, यौन शोषण करने और फिर जिस्मफरोशी कराने को मजबूर करने का आरोप लगाया है.
महंगी गाङी में चलने वाले और मीठीमीठी बातें करने वाले इस बाबा का नाम है स्वामी अनुज चेतन सरस्वती.

शातिराना अंदाज

इस का काम करने का अंदाज इतना शातिराना था कि एकबारगी लोगों को यकीन ही नहीं हुआ कि यह बाबा ऐसा भी कर सकता है.
तथाकथित यह बाबा पहले सत्संग में महिलाओं को धर्मकर्म की बातें बताता था फिर उन्हें अपनी बातों में फंसा कर शादी कर लेता था और बाद में उन्हें जिस्मफरोशी का धंधा करने के लिए मजबूर करता था.

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नशे का इंजैक्शन लगाता था

इस ने 1-2 नहीं 5-5 शादियां की हैं. इस पर आरोप है कि यह महिलाओं को नशे का इंजैक्शन भी लगता था ताकि वे इस का आदी हो जाएं और फिर उन से यह मनमानी कर सके.
इंसानियत को शर्मसार करने वाली इस घटना पर से परदा तब उठा जब इन महिलाओं ने भाग कर पुलिस में शिकायत दी.

पुलिस गिरफ्त में यह ढोंगी बाबा

क्षेत्र के डीआईजी राजेश कुमार पांडेय ने मीडिया से बातचीत में खुलासा किया कि उक्त ढोंगी बाबा को गिरफ्तार कर जानकारी जुटाई जा रही है और दोष साबित होने पर कानूनन उसे कङी से कङी सजा दिलाई जाएगी.
वैसे, यह घटना कोई नई भी नहीं है. समाज में आएदिन ऐसे ढोंगी बाबाओं की पोल खुलती रही है. बावजूद जागरूकता के अभाव में सब से अधिक महिलाएं ही इन जैसों की जाल में फंसती रही हैं.
इन बाबाओं को यह पता है कि महिलाएं कोमल मन की होती हैं और अधिकतर धर्मभीरु भी जिन्हें धर्म का डर दिखा कर आसानी से शिकार बनाया जा सकता है.

सतर्क रहें ताकि…

धर्म के नाम पर खुद की जिंदगी दांव पर लगाने से बेहतर है कि सतर्क रहा जाए और इन बाबाओं की चिकनीचुपङी बातों में न आया जाए.

हमारे समाज में ऐसे कई तथाकथित बाबाओं की काली करतूत से परदा उठता आया है और कईयों को उस के किए की कानूनन सजा भी मिल चुकी है. कुछ जेल में हैं और कुछ खुद के पकङाए जाने के डर से देश से बाहर भी भाग चुके हैं.

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अपना ध्यान इस तरह के धर्मकर्म से हटा कर समाजिक कामों में भी लगाया जा सकता है, जहां नाम भी है और शोहरत भी.

इसलिए सावधान रहिए और ऐसे ढोंगी बाबाओं की शिकायत पुलिस में करिए.

लव में हत्या : नेता जी आखिरकार जेल गए

छत्तीसगढ़  के रायगढ़ जिले में वर्ष 2016 में हुए दोहरे सनसनीखेज हत्याकाण्ड की गुत्थी रायगढ़ पुलिस ने अब जाकर  सुलझायी . ओडिशा के बृजराजनगर के  विधायक  रहे अनुप कुमार साय को हत्या के आरोप मे गिरफ्तार किया गया है. राजनीतिक प्रभाव  के कारण  मामला  वर्षों तक लटकता  रहा मगर अंततः  महिला के साथ अवैध संबंध को लेकर मां और नाबालिग बेटी की जघन्य हत्या के आरोपी पूर्व विधायक को जेल की सींखचों के पीछे  भेज दिया गया है.

दरअसल, 7 मई 2016 को एक अज्ञात महिला व एक लड़की  की लाश पुलिस को हमीरपुर रोड़ के पास मिली थी . इस अंधे कत्ल की गुत्थी को सुलझाने मे पुलिस को चार साल लगे.पुलिस के अनुसार मृतका कल्पना दास का अवैध संबंध पूर्व विधायक अनुप कुमार साय के साथ था. और जैसा कि होता है  महिला शादी का दबाव विधायक अनूप कुमार पर बना रही थी लिहाजा उसकी  और  14 साल की बेटी बबली दास की हत्या कर दी गई.इस हत्याकांड  की जांच में रायगढ़ पुलिस ने  6 राज्यों में लगभग सात सौ लोगो से पूछ ताछ की. तब जाकर यह खुलासा हुआ . रायगढ़ पुलिस आरोपी पूर्व विधायक की डीएनए टेस्ट के साथ साथ नार्को टेस्ट भी कराएगी.

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विधायक का  प्रभाव ऐसा रहा की  जांच 4 वर्षों तक चलती रही.पुलिस ने सारे मोबाईल डिटेल व सबुत जुटा लिया है.कुल मिलाकर यह हत्या अवैध संबंधों का नतीजा कही जा सकती है पुलिस के अनुसार आरोपी अनुपकुमार साय के साथ साथ और भी कई आरोपी इस हत्या में शामिल हो सकते है. इस दिशा में भी पुलिस  जांच पुलिस कर रही है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि लंबे समय तक मृतका की शिनाख्त ही नहीं हो पा रही थी. अंतत: हत्या का खुलासा तब हुआ जब मृतिका का एक रिश्तेदार, जो  पुलिस में था, ने थाने में लगे फोटो की शिनाख्ती की.

कानून के हाथ लंबे  होते हैं

इस हाई प्रोफाइल हत्याकांड  और अपराधियों के कानून की  जद मे आने के बाद यह सिद्ध हो गया कि सचमुच कानून के हाथ लंबे होते हैं. अपराधी चाहे कितना ही बड़ा और प्रभावशाली क्यों ना हो, बच नहीं सकता. घटना का खुलासा करते हुए रायगढ़ जिले के पुलिस अधीक्षक संतोष सिंह ने बताया कि सात मई 2016 को संबलपुरी गांव के रहने वाले कमलेश गुप्ता ने चक्रधरनगर थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई  थी.  हमीरपुर मार्ग मे एक महिला व एक बालिका की हत्या कर शव की पहचान छिपाने के उद्देश्य से कार से कुचल कर  फेंक दी गयी है. रिपोर्ट पर थाना चक्रधरनगर में अज्ञात आरोपी के विरूद्ध अपराध दर्ज कर विवेचना शुरू की गई थी.

जिला पुलिस द्वारा अन्तर्राज्यीय ईश्तहार जारी किया गया था और इसी ईश्तहार से, मृतक की पहचान उसके पूर्व पति सुनील श्रीवास्तव द्वारा कल्पना दास पिता रूदाक्ष दास उम्र 32 वर्ष और लड़की बबली श्रीवास्तव पिता सुनील श्रीवास्तव उम्र 14 वर्ष के रूप में की गई थी.  चक्रधरनगर पुलिस की जांच चलती  रही  और मृतका कल्पना दास के मोबाईल नम्बर का डिटेल निकालकर विशलेषण कर अन्य साक्ष्यों को एकत्र किया जाता रहा . मृतका के कॉल डिटेल पर ओडिसा के हाई प्रोफाईल शख्स विधायक  अनुप कुमार साय के नाम की जानकारी मिली. जिसके विरूद्ध चक्रधरनगर पुलिस पुख्ता साक्ष्य जुटाने में जुट गई.

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जब पुलिस को संदेही विधायक  के विरुद्ध पर्याप्त साक्ष्य के मिलने पर थाना प्रभारी चक्रधरनगर निरीक्षक विवेक पाटले द्वारा पुलिस अधीक्षक  को अवगत कराया गया जिनके दिशा निर्देशन पर संदेही अनूप कुमार साय, पूर्व विधायक ओडिस को चक्रधरनगर पुलिस द्वारा नोटिस देकर थाना तलब किया गया था. संदेही अनूप कुमार साय के थाना चक्रधरनगर आने पर अधिकारियों के सुपरविजन में पूछताछ की जाती  रही. मगर आरोपी बड़ी चालाकी से अपने आप को इस संपूर्ण प्रकरण से अलग बताता था.

 जब शादी करने डाला दबाव तो कर दी हत्या

विवेचना के बीच चक्रधरनगर पुलिस ने संदेही के विरुद्ध लिए गए गवाहों के बयान, कॉल डिटेल रिकार्ड व अन्य महत्वपूर्ण साक्ष्यों को उसके सामने रखा तो पूर्व विधायक अनुप कुमार साय  का पसीना निकल आया और उसने हथियार डाल दिए. और इस तरह अंधे हत्याकांड का  पर्दाफाश हुआ.आरोपी अनूप कुमार साय पिता हरिशचन्द्र साय उम्र 59 वर्ष निवासी बघरा चकरा थाना बृजराजनगर जिला झारसुगुड़ा (ओडिसा) ने अपने  कथन में बताया कि वह पूर्व विधायक है. वर्तमान में वह ओडिशा में स्टेटवेयर हाऊस कार्पोरेशन का चेयरमेन है.

सन 2004-05 में कल्पना दास को उसके पति सुनील श्रीवास्वत ने छोड़ दिया था. इसी दरमियान कल्पना दास के पिता ने कल्पना और उसकी लड़की बबली को उसके पास भेजा था. मृतका कल्पना व आरोपी पूर्व विधायक के बीच प्रेम संबंध पनपा और दोनों मिलने  लगे. पूर्व विधायक ने एक फ्लैट खरीद कर कल्पना को आवास के लिए दिया और वहां आने-जाने लगा. आरोपी ने बताया कि बाद में कल्पना शादी का दबाव बनाने और पैसे की मांग को परेशान  करने लगी.

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पहले से शादीशुदा आरोपी ने महिला को रास्ते से हटाने के लिए उसकी और उसकी 14 साल की बेटी की निर्ममता से हत्या कर लाश को कोई पहचान ना पाए उस पर कार चला दी थी. आरोपी ने इस जुर्म की सजा से बचने के लिए तमाम हथकंडे अपनाये , लेकिन अंतत: वह कानून के शिकंजे से बच नहीं  पाया.

जहरीली सब्जियां और फल!

छत्तीसगढ़ के भिलाई में सब्जियों को खतरनाक रसायनों से “सब्जी ताजा” बनाने का खेल अधिकारियों ने पकड़ा और उन्हें सिर्फ जुर्माना लगाकर छोड़ दिया. यह एक गंभीर अपराध सामाजिक और कानूनी दृष्टि  दोनों से है, मगर हमारे देश का माहौल कुछ ऐसा बन चुका है कि कोई कितना ही बड़ा अपराध कर ले जुर्माना लेकर उसे छोड़ दिया जाता है और वह पुनः वही अपराध करने लगता है. इसलिए आप जब सब्जियां लेने  बाजार पहुंचे  तो  सब्जियों और फलों के “चटक रंगों” को देखकर यह न समझ ले कि यह ताजे हैं.आप जरा रुक जाइए! और पड़ताल कर लीजिए की  ये सब्जी, फल जहरीले रंगों से रंगे तो नहीं हैं.

छत्तीसगढ़ की स्टील नगरी के रूप में देश दुनिया में प्रसिद्ध भिलाई नगर  में ऐसा  एक मामला सामने आया है. नगर निगम भिलाई की एक टीम को इसकी बारंबार शिकायत मिल रही थी  और जब यह टीम  मौके पर पहुंची तो सच देखकर उसकी भी  हाथों के तोते उड़ गए . आखिरकार, टीम ने सब्जियों को रंगने का सनसनीखेज खुलासा किया है. जो छत्तीसगढ़ में अपने आप में पहला है. यहां हम बताना चाहेंगे कि छत्तीसगढ़ सहित देश की हर छोटे-बड़े शहरों में आजकल यह खेल आम हो गया है और धड़ल्ले से सिर्फ चंद रुपयों की खातिर जहरीले रसायनों के द्वारा फलों और सब्जियों को रंगा जा रहा है जो बेहद नुकसानदायक है.

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स्थिति बेहतर रूप से कुछ ऐसी त्रासदी पूर्ण हो गई है कि सुनी सुनाई खबरों के के बाद और तथ्यात्मक रूप से सच को जानने के बावजूद आम जन को इससे बचने का कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा है. ऐसे में सरकार और न्यायालय दोनों की ओर जनता आशा से निहार रही है.

‘रंगे हाथ’ पकड़ा उड़नदस्ता ने

छत्तीसगढ़ की सबसे बड़ी मंडी में कहलाने वाली आकाशगंगा सब्जी मंडी में सब्जियों को  खतरनाक रंगो  रंगने का  खेल चल रहा था. सब्जी मार्केट में निरीक्षण करती हुई निगम के उड़न दस्ते की टीम अचानक “विंध्यवासिनी सब्जी भंडार” पहुंची तो उन्होंने देखा कि गाजर और मटर को रंग के बर्तन में डाला गया है. उड़न दस्ते की टीम ने पाया गया कि गाजर एवं मटर को धोकर उसे रंग के बर्तन में डालकर विक्रय हेतु आकर्षक बनाने की प्रक्रिया को अंजाम दिया  जा रहा है.

टीम ने रंगे हुए गाजर एवं रंग के डिब्बे को जप्त किया. और कठोर कानून नहीं होने के कारण फिर किसी अज्ञात के सर में उक्त व्यक्तियों पर मात्र 10 हजार  रुपए जुर्माना  वसूल किया गया  और उन्हें छोड़ दिया. निगम की टीम ने मौके पर पंचनामा कार्रवाई की और व्यापारी को  औपचारिक हिदायत दे दी गई कि आगे ऐसा ना हो. सामाजिक एवं गांधीवादी कार्यकर्ता शिवदास महंत कहते हैं कि आजकल यह बहुत बड़ी शिकायत हो चुकी है. ऐसे में छत्तीसगढ़ सरकार को मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार से प्रेरणा लेनी चाहिए और खाद्य अपमिश्रण व रासायनिक पदार्थों के उपयोग करने वालों को जेल भेजना चाहिए, रासुका लगाई जानी चाहिए.

विधि विशेषज्ञ बी. के. शुक्ला इस संदर्भ में कहते हैं की रसायनों का सब्जियों और फलों में उपयोग करके बेचना सीधे-सीधे संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आता है. होना यह चाहिए था कि नगर निगम के उड़नदस्ता टीम को खाद्य विभाग को बुलाकर इस प्रकरण को सौप देनाथा और मामला न्यायालय में प्रस्तुत किया जाना चाहिए था जो कि नहीं किया गया है.

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स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है क्या सब

एक तरफ बाजारवाद की  दौड़ में फलों और सब्जियों में इस तरह के घालमेल शुरू हो गए हैं. वहीं यह भी सच है कि आम आदमी और सरकार कुंभकरणी निद्रा में है. परिणाम स्वरूप इन रासायनिक पदार्थों से चटक दार सब्जियां और फल घरों में उपयोग हो रहे हैं और सीधे-सीधे अनेक प्रकार की बीमारियों को आमंत्रित किया जा रहा है.

डॉ आशीष अग्रवाल(एम डी) के अनुसार ऐसे फल और सब्जियों के उपयोग से कैंसर त्वचा हार्ट संबंधी अनेक बीमारियों से आम आदमी ग्रसित हो रहा है.

डॉक्टर गुलाबराय  पंजवानी बताते हैं कि  रासायनिक अम्लों के प्रयोग से चटक सब्जियां उपभोक्ता खरीद तो लेते हैं मगर यह सीधे-सीधे बीमारियों को आमंत्रण देना ही है.

विधि विशेषज्ञ जी पटेल बताते हैं ऐसे मामलों पर सरकार को कठोर कानून बनाकर नकेल कसनी होगी और अगर ऐसे मामले न्यायालय में आते हैं तो वहां तो उन्हें सजा मिलनी ही है.

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मां बाप की शादी की गवाह बनी बेटी

25 अक्तूबर 2017 को धौलपुर के आर्यसमाज मंदिर में एक शादी हो रही थी. इस शादी में हैरान करने वाली बात यह थी कि वहां न लड़की के घर वाले मौजूद थे और न ही लड़के के घर वाले. इस से भी ज्यादा हैरान करने वाली बात यह थी कि जिस लड़के और लड़की की शादी हो रही थी, उन की ढाई साल की एक बेटी जरूर इस शादी में मौजूद थी.

इस शादी में लड़की के घर वालों की भूमिका बाल कल्याण समिति धौलपुर के अध्यक्ष अदा कर रहे थे तो इसी संस्था के अन्य सदस्य लड़के के घर वालों तथा बाराती की भूमिका अदा कर रहे थे. इस के अलावा कुछ अन्य संस्थाओं के कार्यकर्ता भी वहां मौजूद थे.

दरअसल, इस के पीछे जो वजह थी, वह बड़ी दिलचस्प है. राजस्थान के भरतपुर का रहने वाला 19 साल का सचिन धौलपुर के कोलारी के रहने वाले अपने एक परिचित के यहां आताजाता था. उसी के पड़ोस में अनु अपने मांबाप के साथ रहती थी. लगातार आनेजाने में सचिन और अनु के बीच बातचीत होने लगी.

ऐसे परवान चढ़ा दोनों का प्यार

15 साल की अनु को सचिन से बातें करने में मजा आता था. चूंकि दोनों हमउम्र थे, इसलिए फोन पर भी उन की बातचीत हो जाती थी. इस का नतीजा यह निकला कि उन में प्यार हो गया. मौका निकाल कर दोनों एकांत में भी मिलने लगे.

जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी अनु सचिन पर फिदा थी. उस ने तय कर लिया था कि वह सचिन से ही शादी करेगी. ऐसा ही कुछ सचिन भी सोच रहा था. जबकि ऐसा होना आसान नहीं था. इस के बावजूद उन्होंने हिम्मत कर के अपनेअपने घर वालों से शादी की बात चलाई.

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सचिन ने जब अपने घर वालों से कहा कि वह धौलपुर की रहने वाली अनु से शादी करना चाहता है तो उस के पिता ने उसे डांटते हुए कहा, ‘‘कमाताधमाता कौड़ी नहीं है और चला है शादी करने. अभी तेरी उम्र ही क्या है, जो शादी के लिए जल्दी मचाए है. पहले पढ़लिख कर कमाने की सोच, उस के बाद शादी करना.’’

सचिन अभी इतना बड़ा नहीं हुआ था कि पिता से बहस करता, इसलिए चुप रह गया.

दूसरी ओर अनु ने अपने घर वालों से सचिन के बारे में बता कर उस से शादी करने की बात कही तो घर के सभी लोग दंग रह गए. क्योंकि अभी उस की उम्र भी शादी लायक नहीं थी. उन्हें चिंता भी हुई कि कहीं नादान लड़की ने कोई ऐसावैसा कदम उठा लिया तो उन की बड़ी बदनामी होगी. उन्होंने अनु को डांटाफटकारा भी और समझाया भी. यही नहीं, उस पर घर से बाहर जाने पर पाबंदी भी लगा दी गई.

घर वालों की यह पाबंदी परेशान करने वाली थी, इसलिए अनु ने सारी बात प्रेमी सचिन को बता दी. उस ने कहा कि उस के घर वाले किसी भी कीमत पर उस की शादी उस से नहीं करेंगे. जबकि अनु तय कर चुकी थी कि उस की राह में चाहे जितनी भी अड़चनें आएं, वह उन से डरे बिना सचिन से ही शादी करेगी.

घर वालों के मना करने के बाद कोई और उपाय न देख सचिन और अनु ने घर से भागने का फैसला कर लिया. लेकिन इस के लिए पैसों की जरूरत थी. सचिन ने इधरउधर से कुछ पैसों का इंतजाम किया और घर से भागने का मौका ढूंढने लगा.

दूसरी ओर अनु के घर वालों को लगा कि उन की बेटी बहक गई है, वह कोई गलत कदम उठा सकती है. हालांकि उस समय उस की उम्र महज 15 साल थी, इस के बावजूद उन्होंने उस की शादी करने का फैसला कर लिया. इस से पहले कि वह कोई ऐसा कदम उठाए, जिस से उन की बदनामी हो, उन्होंने उस के लिए लड़का देखना शुरू कर दिया.

यह बात अनु ने सचिन को बताई. सचिन अपनी मोहब्बत को किसी भी सूरत में खोना नहीं चाहता था, इसलिए योजना बना कर एक दिन अनु के साथ भाग गया. अनु को घर से गायब देख कर घर वाले समझ गए कि उसे सचिन भगा ले गया है. अनु के पिता अपने शुभचिंतकों के साथ थाने पहुंचे और सचिन के खिलाफ अपहरण और पोक्सो एक्ट के तहत रिपोर्ट दर्ज करा दी.

मामला नाबालिग लड़की के अपहरण का था, इसलिए पुलिस ने तुरंत काररवाई शुरू कर दी. धौलपुर के कोलारी का रहने वाला सचिन का जो परिचित था, उस से पूछताछ की गई. उसे साथ ले कर पुलिस भरतपुर स्थित सचिन के घर गई, लेकिन वह वहां नहीं मिला.

पुलिस ने उस के घर वालों से भी पूछताछ की, पर उन्हें सचिन और अनु के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. सचिन की जहांजहां रिश्तेदारी थी, पुलिस ने वहांवहां जा कर जानकारी हासिल की. सभी ने यही बताया कि सचिन उन के यहां नहीं आया है.

सचिन का फोन नंबर भी स्विच्ड औफ था. पुलिस के पास अब ऐसा कोई जरिया नहीं था, जिस से उस के पास तक पहुंच पाती. इधरउधर हाथपैर मारने के बाद भी पुलिस को सफलता नहीं मिली तो वह धौलपुर लौट आई.

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पुलिस को महीनों बाद भी न मिला दोनों का सुराग

अनु के गायब होने से उस के मातापिता बहुत परेशान थे. उन्हें चिंता सता रही थी कि उन की बेटी पता नहीं कहां और किस हाल में है. पुलिस में रिपोर्ट वे करा ही चुके थे. जब पुलिस उसे नहीं ढूंढ सकी तो उन के पास ऐसा कोई जरिया नहीं था कि वे उसे तलाश पाते. महीना भर बीत जाने के बाद भी जब अनु के बारे में कहीं से कोई खबर नहीं मिली तो वे शांत हो कर बैठ गए.

पुलिस को भी लगने लगा कि सचिन और अनु किसी दूसरे शहर में जा कर रह रहे हैं. पुलिस ने राजस्थान और उत्तर प्रदेश के सभी थानों में दोनों का हुलिया भेज कर यह जानना चाहा कि कहीं उस हुलिए से मिलतीजुलती डैडबौडी तो नहीं मिली है.

सचिन उत्तर प्रदेश के इटावा का मूल निवासी था और उस के ज्यादातर रिश्तेदार उत्तर प्रदेश में ही रहते थे. इसलिए वहां के थानों को भी सूचना भेजी गई थी. इस से भी पुलिस को कोई सफलता नहीं मिली.

समय बीतता रहा और पुलिस की जांच अपनी गति से चलती रही. थानाप्रभारी ने हिम्मत नहीं हारी. वह अपने स्रोतों से दोनों प्रेमियों के बारे में पता करते रहे. एक दिन उन्हें मुखबिर से जानकारी मिली कि सचिन अनु के साथ इटावा में रह रहा है.

यह उन के लिए अच्छी खबर थी. अपने अधिकारियों को सूचित करने के बाद वह पुलिस टीम के साथ मुखबिर द्वारा बताए गए इटावा वाले पते पर पहुंच गए. मुखबिर की खबर सही निकली. सचिन और अनु वहां मिल गए. लेकिन उस समय अनु 7 महीने की गर्भवती थी. पुलिस ने दोनों को हिरासत में ले लिया और उन्हें धौलपुर ले आई.

पुलिस ने दोनों को न्यायालय में पेश किया, जहां अनु ने अपने प्रेमी सचिन के पक्ष में बयान दिया.  अनु के मातापिता को बेटी के मिलने पर खुशी हुई थी. वे उसे लेने के लिए कोर्ट पहुंचे. बेटी के गर्भवती होने की बात जान कर भी उन्होंने अनु से घर चलने को कहा. पर अनु ने कहा कि वह मांबाप के घर नहीं जाएगी. वह सचिन के साथ ही रहेगी.

चूंकि सचिन के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज थी, इसलिए न्यायालय ने उसे जेल भेजने के आदेश दे दिए थे. घर वालों के काफी समझाने के बाद भी जब अनु नहीं मानी तो कोर्ट ने उसे बालिका गृह भेज दिया. अनु 7 महीने की गर्भवती थी, इसलिए बालिका गृह में उस का ठीक से ध्यान रखा गया. समयसमय पर उस की डाक्टरी जांच भी कराई जाती रही. वहीं पर उस ने बेटी को जन्म दिया. बेटी के जन्म के बाद भी अनु की सोच नहीं बदली, वह प्रेमी के साथ रहने की रट लगाए रही.

सचिन जमानत पर छूट कर जेल से बाहर आ गया था. उसे जब पता चला कि अनु ने बेटी को जन्म दिया है और वह अभी भी बालिका गृह में है तो उसे बड़ी खुशी हुई. वह उसे अपने साथ रखना चाहता था. इस बारे में उस ने वकील से सलाह ली तो उस ने कहा कि जब तक उस की उम्र 18 साल नहीं हो जाएगी, तब तक शादी कानूनन मान्य नहीं होगी. अनु ने तय कर लिया था कि जब तक वह बालिग नहीं हो जाएगी, वह बालिका गृह में ही रहेगी.

अनु अपनी बेटी के साथ वहीं पर दिन बिताती रही. उस के घर वालों ने उस से मिल कर उसे लाख समझाने की कोशिश की, पर वह अपनी जिद से टस से मस नहीं हुई. उस ने साफ कह दिया कि वह सचिन को हरगिज नहीं छोड़ सकती.

बाल कल्याण समिति, धौलपुर के अध्यक्ष बिजेंद्र सिंह परमार को जब अनु और सचिन के प्रेम की जानकारी हुई तो वह इन दोनों से मिले. इन से बात करने के बाद उन्होंने तय कर लिया कि वह इन की शादी कराएंगे, ताकि इन की बेटी को भी मांबाप दोनों का प्यार मिल सके. वह भी अनु के बालिग होने का इंतजार करने लगे.

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16 अक्तूबर, 2017 को अनु की उम्र जब 18 साल हो गई तो उसे आशा बंधी कि लंबे समय से प्रेमी से जुदा रहने के बाद अब वह उस के साथ रह सकेगी. अब तक उस की बेटी करीब ढाई साल की हो चुकी थी. उसे भी पिता का प्यार मिलेगा.

सामाजिक संस्थाओं के पदाधिकारियों ने कराया दोनों का विवाह

अनु के बालिग होने पर धौलपुर की बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष बिजेंद्र सिंह परमार ने उन के विवाह की तैयारियां शुरू कर दीं. इस बारे में उन्होंने भरतपुर की बाल कल्याण समिति और सामाजिक संस्था प्रयत्न के पदाधिकारियों से बात की. वे भी इस काम में सहयोग करने को तैयार हो गए.

अनु धौलपुर की थी और बिजेंद्र सिंह परमार भी वहीं के थे, इसलिए उन्होंने तय किया कि वह इस शादी में लड़की वालों का किरदार निभाएंगे. जबकि सचिन भरतपुर का था, इसलिए बाल कल्याण समिति, भरतपुर के पदाधिकारियों ने वरपक्ष की जिम्मेदारियां निभाने का वादा किया.

हैरान करने वाली इस शादी का आयोजन धौलपुर के आर्यसमाज मंदिर में किया गया. इस मौके पर विभिन्न सामाजिक संस्थाओं के पदाधिकारियों के अलावा पुलिस अधिकारी भी मौजूद थे. तमाम लोगों की मौजूदगी में सचिन और अनु की शादी संपन्न हुई. शादी में उन की ढाई साल की बेटी भी मौजूद थी.

सामाजिक संस्था प्रयत्न के एडवोकेसी औफिसर राकेश तिवाड़ी ने बताया कि उन का मकसद था कि ढाई साल के बच्चे को उस के मातापिता का प्यार मिले और अनु को भी समाज में अधिकार मिल सके.

सचिन और अनु दोनों वयस्क हैं. वे अपनी मरजी से जीवन बिताने का अधिकार रखते हैं. यह शादी सामाजिक दृष्टि से भी उचित है. अब वे अपना जीवन खुशी से बिता सकते हैं. खास बात यह रही कि इस शादी में वर और कन्या के घर का कोई भी मौजूद नहीं था.

वहां मौजूद सभी लोगों ने वरवधू को आशीर्वाद दिया. शादी के बाद सचिन अनु को अपने घर ले गया. सचिन के घर वालों ने अनु को अपनी बहू के रूप में स्वीकार कर लिया. अनु भी अपनी ससुराल पहुंच कर खुश है.

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बीमा पौलिसी के नाम पर ठगी

8-10  महीने पहले की बात है. जयपुर शहर के उनियारों का रास्ता में रहने वाले नेमीचंद सैन एक दिन अपने घर पर आराम कर रहे थे. दोपहर का समय होने वाला था, वे भोजन करने का मन बना रहे थे. इसी दौरान उन के मोबाइल की घंटी बजी. नेमीचंद ने मोबाइल का स्विच औन कर के कान पर लगाया और हैलो बोलने ही वाले थे कि दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘हैलो, नेमीचंदजी बोल रहे हैं?’’

‘‘हां, बोल रहा हूं.’’ नेमीचंद ने सहज भाव से जवाब दिया, लेकिन पूछा भी कि आप कौन बोल रहे हैं? मैं ने आप को पहचाना नहीं.

‘‘नेमीचंदजी, हम दिल्ली से बीमा कंपनी के कस्टमर केयर से बोल रहे हैं.’’ काल करने वाले ने बताया.

‘‘हां, ठीक है, बताइए आप को क्या काम है?’’ नेमीचंद ने सवाल किया.

‘‘नेमीचंदजी, हम ने इसलिए फोन किया है कि आप को कुछ फायदा हो सके. अगर आप की इच्छा हो तो आगे बात करें.’’ दूसरी ओर से फोन करने वाले ने कहा.

‘‘मेरी समझ में नहीं आया कि तुम कैसे फायदे की बात कर रहे हो?’’ नेमीचंद ने फिर सवाल किया.

‘‘नेमीचंदजी, आप के पास बीमा पौलिसी है. बीमा कंपनी तो आप को कुछ देगी नहीं, लेकिन हम आप का फायदा करवा सकते हैं. इस पर आप को अच्छाभला बोनस मिल जाएगा.’’ दूसरी ओर से कहा गया.

‘‘ठीक है, लेकिन अभी मैं कहीं बाहर जा रहा हूं. तुम 1-2 दिन बाद फोन करना.’’ नेमीचंद ने उस समय टालने के लिहाज से कहा.

‘‘ठीक है सर, आप की जैसी इच्छा. हम 1-2 दिन में आप को फिर फोन करेंगे. तब तक आप विचार बना लेना.’’ दूसरी तरफ से फोन करने वाले ने कहा. इस के बाद फोन कट गया.

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नेमीचंद हाथमुंह धो कर भोजन करने लगे. भोजन करते हुए उन के मन में फोन करने वाले की बात घूमती रही कि बीमा पौलिसी पर बोनस दिलवा देंगे. नेमीचंद के पास जीवन बीमा पौलिसियां थीं. ये पौलिसियां उन्होंने अपने भविष्य के हिसाब से ले रखी थीं, ताकि जीवन में जरूरत के समय पर पैसा मिल जाए.

मोटे बोनस का लालच दे कर फंसाया नेमीचंद को

उन्हें यह तो पता था कि जब पौलिसी की समयावधि पूरी हो जाएगी तो उन्हें पूरी रकम मिल जाएगी, लेकिन उन्हें यह पता नहीं था कि पौलिसी पर कोई बोनस भी मिलता है. इसलिए फोन करने वाले ने जब बोनस दिलाने की बात कही तो उन की दिलचस्पी बढ़ गई थी.

इस बात के तीसरे दिन नेमीचंद के मोबाइल पर दिल्ली से फिर फोन आ गया. इस बार एक युवती बोल रही थी. उस ने नेमीचंद से कहा कि साहब 2 दिन पहले हमारी कंपनी के मैनेजर ने आप को फोन कर के बीमा पौलिसी पर बोनस दिलाने की बात बताई थी. उस के बारे में आप ने क्या सोचा है?

‘‘हां, फोन तो आया था लेकिन मैं ने अभी तक कुछ भी नहीं सोचा है. तुम ये बताओ, मुझे करना क्या होगा?’’ नेमीचंद ने उस युवती से सवाल किया.

‘‘पहले आप यह बताइए कि आप के पास कितनी राशि की बीमा पौलिसियां हैं?’’ युवती ने पूछा.

‘‘मेरे पास कोई 10-20 लाख रुपए की पौलिसियां नहीं हैं, मैं तो गरीब आदमी हूं. अपना पेट काट कर बुढ़ापे के लिए 2-3 लाख रुपए की पौलिसियां करवा रखी हैं.’’ नेमीचंद ने कहा साथ ही यह भी पूछा कि इन पर कितना बोनस मिल जाएगा?

‘‘नेमीचंदजी, अगर आप के पास 10 लाख रुपए की पौलिसी होती तो हम आप को करीब 2 लाख रुपए बोनस दिलवा देते. लेकिन आप बता रहे हैं कि 2-3 लाख रुपए की ही पौलिसियां हैं.’’ युवती ने जवाब देते हुए कहा, ‘‘अगर 3 लाख रुपए की पौलिसी है तो हम आप को 50-60 हजार रुपए बोनस दिलवा देंगे.’’

‘‘ठीक है, मैं घर में सलाह करने के बाद 1-2 दिन बाद बताऊंगा.’’ कहते हुए नेमीचंद ने फोन काट दिया.

उसी दिन शाम को नेमीचंद ने अपने परिवार वालों से इस मुद्दे पर बात की. परिवार वालों को भी पौलिसियों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी, इसलिए उन्होंने कहा कि जैसा आप ठीक समझो, कर लो. इस के 2-3 दिन बाद नेमीचंद के मोबाइल पर दिल्ली से फिर फोन आया. इस बार कोई तीसरा आदमी बोल रहा था. उस ने नेमीचंद से सीधे ही पूछा कि पौलिसी के बारे में आप ने अपने परिवार में बात कर ली होगी. अब आप ने क्या विचार बनाया है?

‘‘विचार तो हम ने बना लिया है, लेकिन मुझे करना क्या होगा?’’ नेमीचंद ने पूछा.

‘‘सर, आप अपनी पौलिसियों के नंबर, कंपनी और उन की मैच्योरिटी डेट बताइए.’’

नेमीचंद ने झुंझलाते हुए कहा, ‘‘पौलिसी क्या मैं जेब में रख कर घूमता हूं, जो उन के नंबर और दूसरी चीजें बता दूं.’’

‘‘साहब, नाराज होने की बात नहीं है. मैं 10 मिनट बाद आप को फोन करूंगा. आप तब तक अपनी पौलिसी निकाल लें, फिर मुझे बता देना.’’

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फोन कटने के बाद नेमीचंद ने अलमारी से पौलिसी निकाल कर देखी. इतनी देर में दिल्ली से फिर उसी आदमी का फोन आ गया. उस ने जो बातें पूछीं, वह नेमीचंद ने पौलिसी देख कर बता दीं. फोन करने वाले ने सारी बातें पूछने के बाद कहा, ‘‘नेमीचंदजी, आप को 50 हजार रुपए से ज्यादा बोनस मिल जाएगा, लेकिन इस के लिए पहले आप को कंपनी के खाते में 15 हजार रुपए जमा कराने होंगे.’’

‘‘15 हजार रुपए क्यों?’’ नेमीचंद ने सवाल किया.

‘‘नेमीचंदजी, बीमा कंपनी वैसे तो पौलिसी होल्डर को सीधे तौर पर कोई बोनस नहीं देती है, लेकिन हम कंपनी के एजेंट हैं. कंपनी हमें बिजनैस प्रमोशन के नाम पर इंसेंटिव देती है. हम उस इंसेंटिव में से आप को बोनस की रकम देंगे. आप जो 15 हजार रुपए देंगे, वह पैसा कंपनी के खाते में ही जमा होगा.’’ फोन करने वाले ने नेमीचंद को संतुष्ट करते हुए कहा.

नेमीचंद को उस की बातें ज्यादा समझ नहीं आईं. फिर भी उन्होंने सोचा कि अगर 15 हजार रुपए दे कर 50 हजार रुपए बोनस मिल जाए तो क्या बुराई है. यही सोच कर उन्होंने फोन करने वाले से पूछा, ‘‘मुझे पैसे कहां जमा कराने होंगे?’’

फोन करने वाले ने नेमीचंद से कहा कि उस के मोबाइल नंबर पर एसएमएस के जरिए एक खाता नंबर भेजा जा रहा है, इसी खाते में पैसे जमा कराने हैं.

इस के बाद फोन कट गया. एक मिनट बाद ही नेमीचंद के मोबाइल पर मैसेज आ गया. मैसेज में एक खाता नंबर लिखा था. नेमीचंद ने वह खाता नंबर एक कागज पर नोट कर लिया. फिर उसे ध्यान आया कि वह पैसे तो भेज देगा, लेकिन बोनस की रकम कब और कैसे मिलेगी? यह बात तो उस ने पूछी ही नहीं.

नेमीचंद ने सोचा कि 1-2 दिन रुक जाता हूं. दोबारा फोन आएगा तो सारी बातें पूछने के बाद ही पैसा भेजूंगा. दिल्ली से फिर 2-3 दिन बाद फोन आ गया. इस बार एक युवती बोल रही थी. युवती ने कहा, ‘‘नेमीचंदजी, आप ने अभी तक कंपनी के खाते में 15 हजार रुपए नहीं भेजे. आप जितनी देर करेंगे, आप के बोनस के भुगतान में उतनी ही देर होती जाएगी. इसलिए आप तुरंत पैसे भेज दीजिए.’’

‘‘अरे भई, पैसे तो मैं आज ही भेज दूंगा, लेकिन यह बताओ कि मुझे बोनस कब और कैसे मिलेगा?’’ नेमीचंद ने सवाल किया.

‘‘आप को बोनस एक महीने के अंदर मिल जाएगा. बोनस की रकम सीधे आप के खाते में आएगी. जब चैक तैयार हो जाएगा, तब आप से आप का खाता नंबर पूछेंगे और उसी में रकम ट्रांसफर कर दी जाएगी.’’ युवती ने नेमीचंद की शंका का समाधान कर दिया.

बड़ी ही चालाकी से करते थे ठगी

नेमीचंद ने उसी दिन 15 हजार रुपए उस बैंक खाते में जमा करा दिए. इस के बाद कई दिन गुजर गए. इस बीच न तो नेमीचंद के पास फिर कोई फोन आया और न ही बोनस की रकम उन के खाते में आई.

एक दिन नेमीचंद ने उन नंबरों पर फोन किया, जिन से उस के पास 4-5 बार फोन आए थे. वहां बात हुई तो एक आदमी ने खुद को बिजनैस प्रमोशन मैनेजर बताते हुए कहा कि आप का चैक तैयार हो गया है. आप अपना खाता नंबर बता दीजिए. 2-4 दिन में चैक आप के खाते में जमा हो जाएगा.

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नेमीचंद ने अपना खाता नंबर बता दिया.

2-4 दिन क्या, करीब एक महीना बीत गया लेकिन खाते में कोई पैसा नहीं आया. नेमीचंद ने फिर उन्हीं नंबरों पर फोन किया, लेकिन इस बार उसे कोई रिस्पौंस नहीं मिला. नेमीचंद को मामला गड़बड़ नजर आया. उस ने अपने परिचितों से बात की तो लोगों ने ठगी की आशंका जताते हुए उसे पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराने की सलाह दी.

नेमीचंद ने 15 सितंबर, 2017 को जयपुर कमिश्नरेट के नाहरगढ़ रोड थाने में मुकदमा दर्ज करा दिया. पुलिस ने 420 व 406 आईपीसी में मामला दर्ज कर लिया. जयपुर कमिश्नरेट के विभिन्न पुलिस थानों में इस से पहले भी बीमा पौलिसी के नाम पर ठगी के कई मुकदमे दर्ज हुए थे.

पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल ने साइबर अपराधों के ऐसे मामलों का खुलासा करने के लिए एडीशनल पुलिस कमिश्नर (प्रथम) प्रफुल्ल कुमार के निर्देशन व डीसीपी (क्राइम) डा. विकास पाठक के नेतृत्व में एक टीम का गठन किया. इस में क्राइम ब्रांच की संगठित अपराध शाखा के एसीपी राजवीर सिंह तथा सबइंसपेक्टर मनोज कुमार व तकनीकी शाखा के कर्मचारियों को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने कई दिनों की लंबी जांचपड़ताल में पता लगाया कि अभियुक्त संगठित रूप से कालसेंटर की आड़ में अपराधों को अंजाम दे रहे हैं. यह बात भी पता चली कि अभियुक्त सफेदपोश बन कर अलगअलग कंपनियों की आड़ में उत्तर प्रदेश के नोएडा में कालसेंटर चलाते हैं और धोखाधड़ी के जरिए लोगों से करोड़ों रुपए की ठगी कर रहे हैं.

एसीपी राजवीर सिंह के नेतृत्व में जयपुर पुलिस की टीम 9 अक्तूबर को नोएडा पहुंची. नोएडा पुलिस को सूचना दे कर जयपुर पुलिस की टीम ने सैक्टर-2 के मकान नंबर ए-23 पर दबिश दी. इस मकान में डेस्टिमनी सिक्योरिटी प्राइवेट लिमिटेड, एचडीएफसी तथा भारती एक्सा के नाम से कंपनियां चल रही थीं. कालसेंटर भी इसी मकान में चल रहा था. पुलिस इस कालसेंटर को देख कर चौंक गई. इस कालसेंटर में 150 से अधिक युवकयुवतियां काम करते थे.

देश के हर राज्य में फैला था ठगों का नेटवर्क

यहां से पुलिस ने एक युवती सहित 9 लोगों को गिरफ्तार किया. इन में दिलशाद गार्डन, सीमापुरी, दिल्ली निवासी नेहा त्यागी, टीम लीडर हरमपुर, लोनी, गाजियाबाद निवासी गौरव त्यागी, गाजियाबाद के मुरादनगर के रहने वाले भारत सिंह, शामली के कृष्णानगर निवासी संजीव कुमार, दिल्ली के कबीरनगर निवासी यतींद्र कुमार शर्मा, दिल्ली के पांडवनगर कौंप्लेक्स निवासी नितिन शर्मा, बुलंदशहर जिले में औरंगाबाद थाना क्षेत्र के बखोरा गांव निवासी शिवराज सिंह, एटा के कैलाशगंज निवासी राम कन्हैया और बिहार के सहरसा जिले के रहने वाले अमूल्य कुमार तोमर को गिरफ्तार कर लिया. तोमर दिल्ली के जैतपुर में रह रहा था.

पुलिस ने यहां से बड़ी संख्या में मोबाइल फोन, सिम कार्ड्स, इंटरकौम फोन व वाकीटाकी सहित बड़ी संख्या में दस्तावेज बरामद किए. पुलिस ने इस कालसेंटर पर काम करने वाले युवकयुवतियों को भी हिरासत में ले लिया. गिरफ्तार किए गए 9 आरोपियों व हिरासत में लिए गए कालसेंटर के कर्मचारियों से पूछताछ में पता चला कि नोएडा के सेक्टर-2 में ही 2 साल से अभियुक्त इस कालसेंटर के जरिए लोगों को फोन कर के औनलाइन ठगी कर रहे थे. ये लोग रोजाना देश भर में बड़ी संख्या में लोगों को फोन करते थे और लाइफ इंश्योरेंस में बोनस दिलवाने के बहाने उन से अपने खातों में औनलाइन पैसे डलवा लेते थे.

गिरफ्तार आरोपी फरजी आईडी के जरिए ली गई दर्जनों सिम व मोबाइलों को ठगी की वारदातों के काम में लाते थे ताकि पुलिस उन तक न पहुंच सके. ठगी गई राशि को ये लोग खुद के और अपने परिवार के सदस्यों के नाम से खोले गए विभिन्न बैंक खातों में जमा करवाते थे.

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जांचपड़ताल में सामने आया कि आरोपियों ने एक साल के दौरान देश के लगभग 23 राज्यों में 4,755 से ज्यादा काल फरजी नंबरों से किए थे. इन में से राजस्थान में 249 काल की गई थीं. राजस्थान के 18 जिलों में इस गिरोह ने 37 लोगों से एक करोड़ 30 लाख 68 हजार 400 रुपए की ठगी की थी.

क्राइम ब्रांच ने पीडि़तों से संपर्क कर के इन तथ्यों की पुष्टि की है. गिरोह की ठगी का शिकार हुए लोग जयपुर के अलावा भीलवाड़ा, जोधपुर, अजमेर, सीकर, चित्तौड़गढ़, बांसवाड़ा, उदयपुर, कोटा, जालौर, झालावाड़, नागौर, टोंक, अलवर, भरतपुर, पाली तथा श्रीगंगानगर के रहने वाले हैं. गिरोह ने सब से बड़ी ठगी 30 लाख रुपए की भीलवाड़ा के एक व्यक्ति से थी. इस का मुकदमा जयपुर के साइबर थाने में दर्ज है. इस के अलावा 16 लाख रुपए, 14 लाख रुपए, 2 लाख रुपए और 1 लाख रुपए से ले कर 3400 रुपए की धोखाधड़ी इस गिरोह ने की है.

गिरोह के संचालक कालसेंटर पर काम करने वाले युवकयुवतियों को 8-10 हजार रुपए वेतन देते थे. इस के अलावा लोगों को झांसा दे कर खाते में रकम डलवाने के लिए अलग से कमीशन देते थे. पुलिस ने हिरासत में लिए इस कालसेंटर के कर्मचारियों को पूछताछ के बाद छोड़ दिया.

बीमा पौलिसी की ठगी करने वाले गिरोह में सीए तथा एमबीए के छात्र भी शामिल   

बीमा पौलिसी की किस्त औनलाइन जमा करवाने पर डिसकाउंट मिलने का झांसा दे कर लोगों से 50 लाख रुपए से ज्यादा की ठगी करने वाले 4 बदमाशों को जयपुर पुलिस ने इसी साल मई के दूसरे सप्ताह में गिरफ्तार किया था. इन में एक सीए और एक एमबीए का छात्र था.

इसी साल 6 मई को जयपुर के प्रतापनगर थाने में हरेंद्र सिंह ने रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि मेरी मैक्स लाइफ इंश्योरेंस पौलिसी की सालाना 49 हजार 500 रुपए किस्त जाती है. एक दिन एक अज्ञात आदमी ने मोबाइल पर काल कर के कहा कि आप पौलिसी का औनलाइन पेमेंट कर दोगे तो आप को डिसकाउंट मिलेगा. इस के लिए 45 हजार 500 रुपए जमा कराने होंगे. उस आदमी ने मुझे मोबाइल पर मैसेज भेजा. मैसेज में मोबाइल नंबर नहीं आया, बल्कि मैक्स लाइफ इंश्योरेंस कंपनी का नाम आया और खाता नंबर लिखा था.

एकाउंट होल्डर की जगह मैक्स लाइफ कंपनी का नाम लिखा था, जिस से हरेंद्र को भरोसा हो गया. उस ने औनलाइन बैंकिंग के जरिए 4 मई को अपने बैंक खाते से 45 हजार 500 रुपए उस खाते में ट्रांसफर कर दिए. इस के बाद हरेंद्र ने जमा कराई रकम की रसीद लेने के लिए जब मैक्स लाइफ इंश्योरेंस कंपनी में संपर्क किया तो उसे पता चला कि वह औनलाइन ठगी का शिकार हो चुका है.

जयपुर पुलिस ने दिल्ली जा कर जांचपड़ताल की तो पता चला कि जिस खाते में हरेंद्र से रकम डलवाई गई थी, वह एसबीआई दिल्ली का खाता था. यह खाता दिल्ली के मंगोलपुरी निवासी अमन छीपी का था.

बाद में पुलिस ने अमन के अलावा मूलरूप से पंजाब के मोहाली निवासी और आजकल दिल्ली में रह रहे जीत सिंह संधूजा, यूपी के पंचशील नगर निवासी और हाल दिल्ली में बादली मेट्रो स्टेशन के पास रहने वाले संदीप कुमार छीपी तथा दिल्ली के मंगोलपुरी निवासी राहुल खटीक को गिरफ्तार कर लिया. इन से पुलिस ने 15 फरजी सिम कार्ड भी बरामद किए. इन में अमन छीपी सीए और जीत सिंह संधूजा एमबीए का छात्र है.

पूछताछ में पता चला कि इस गिरोह ने लोगों को ठगने के लिए 13 बैंक खाते खुलवा रखे थे. सितंबर, 2016 से इन्होंने औनलाइन ठगी की करीब 100 वारदातें की थीं.

इन वारदातों में लोगों से 50 लाख रुपए से ज्यादा की ठगी की गई थी. पूछताछ में यह बात भी पता चली कि आरोपियों का मैक्स लाइफ इंश्योरेंस कंपनी में संपर्क था.

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वे वहां कंपनी के अफसरों और कर्मचारियों से मिल कर पौलिसीधारक की डिटेल्स हासिल कर के उस की पौलिसी की किस्त आदि पता कर लेते थे. इस के बाद ये लोग पौलिसी धारकों को फोन कर के अपने जाल में फंसाते थे.

कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

 प्रवीण सोमानी के अपहरण के “वो 300 घंटे!”

छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित प्रवीण सोमानी अपहरणकांड को सुलझाने में पुलिस को 14 दिन बाद अंततः  सफलता मिली. राजधानी रायपुर पुलिस ने उद्योगपति प्रवीण सोमानी को अंतर प्रांतीय अपहरणकर्ताओं के चंगुल से छुड़ाकर सकुशल परिजनों के  सुपुर्द कर दिया है. सन 2020 की 8 जनवरी को प्रवीण सोमानी के अपहरण के बाद पुलिस की नींद हराम हो गई थी. पुलिस के अनुसार प्रवीण को सकुशल घर लाने के लिए रायपुर पुलिस ने 10 लाख फोन कॉल और 1500 सीसीटीवी कैमरे की पड़ताल की तब जाकर उत्तर प्रदेश से छुड़ाने में सफल हुई.

पुलिस के उच्च अधिकारियों के अनुसार  अपहरणकर्ता काफी शातिर हैं, इसलिए फूंक-फूंक कर कदम रखना पड़ रहा था. छत्तीसगढ़ के पुलिस महानिदेशक  डीएम अवस्थी ने प्रेस कांफ्रेंस में पत्रकारों को बताया कि 08 जनवरी को प्रवीण सोमानी का सिलतरा क्षेत्र से अपहरण हुआ। इस घटना से प्रदेश भर में सनसनी फैल गई थी उद्योगपतियों में भय व्याप्त हो गया था और पुलिस के ऊपर दबाव बढ़ता चला जा रहा था. मामला विधानसभा में भी उठा और छत्तीसगढ़ सरकार के समक्ष एक प्रेशर बन कर सामने था कि जल्द से जल्द उद्योगपति  प्रवीण सोमानी को ओपन खतरों से छुड़ाया जाए.

यह था घटनाक्रम

छत्तीसगढ़ पुलिस को अपहरणकर्ताओं तक पहुंचने के लिए रायपुर,छत्तीसगढ़  से उत्तर-प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के मध्य आनेवाले  वाले रास्तों के करीब डेढ़ हजार सीसीटीवी कैमरे खंगालने पड़े . रेलवे स्टेशन, एयरपोर्ट, होटल, टोल नाके में लगे सीसीटीवी खंगाले . पांच लाख फोन कॉल को चार दिन तक लगातार खंगाला . सीसीटीवी कैमरे से पुलिस क्लू मिलता गया. उसके बाद पुलिस की एक टीम तुरंत उत्तर प्रदेश के लिए रवाना कर दी गई.अपहरणकर्ता इतने शातिर थे कि एक बार फोन करने के बाद दोबारा उस सिम का इस्तेमाल नहीं करते थे. वह सिम तोड़कर फेंक देते थे.इस कारण  पुलिस को ” क्लू” नहीं मिल पा रहा था.

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डीजीपी अवस्थी ने बताया कि 8 जनवरी को प्रवीण सोमानी को उठाने पप्पू समेत आठ लोग ईडी अधिकारी बनकर रायपुर आये थे. धरसींवा  सिलतरा के सरडा एनर्जी से करीब 200 मीटर पहले सोमानी की कार को रोका और  प्रवीण  सोमानी को अपने कब्जे में  ले लिया.

तत्पश्चात अपहरणकर्ता सोमानी को लगातार बेहोशी के इंजेक्शन लगाते रहे. अपहरणकर्ताओं ने चालाकी पूर्वक अपनी कार में फर्जी नम्बर लगा रखा था.जांच में यह नंबर एक ट्रैवल एजेंसी का पाया गया.अपहरणकर्ता प्रवीण को सिमगा, चिल्फी होते हुए कटनी और फिर इलाहाबाद ले गए.उसके बाद  उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर में ही एक घर में बंद कर दिया और गैंग का सरगना पुलिस को छकाने के लिए खुद बिहार के वैशाली पहुंच गया. यहीं से  अपहरणकर्ता प्रवीण सोमानी के लिए फिरौती मांगने लगे और कथित रूप से 50  करोड़ रुपए फिरौती मांगी गई थी.

यहां बनाई थी अपहरण की योजना

छत्तीसगढ़ के डीजीपी अवस्थी ने बताया कि प्रवीण सोमानी के अपहरण की पूरी योजना सूरत, गुजरात  जेल में बनाई गई थी. पप्पू चौधरी गिरोह के सदस्यों ने आपस मे टारगेट तय करने के लिए बाकायदे “गूगल”  का सहारा लिया था. इस तरह हाईटेक तरीके से अपहरणकर्ताओं  द्वारा उद्योगपति की अपहरण की गहरी साजिश रची गई थी.

पुलिस का कहना था  अपहरणकर्ता इस कदर शातिर थे कि उन्होंने किडनैपिंग की इस पूरी वारदात में हर एक कदम, एक्शन के बाद अपने सिम कार्ड को बदल दिया  जाता . यह  गैंग अलग-अलग लेवल पर बंटा हुआ था. गाडिय़ों का बंदोबस्त करने की जिम्मेदारी, प्रवीण सोमानी को छुपाने की जिम्मेदारी और फिेरौती के लिए फोन करने की जिम्मेदारी गैंग के अलग-अलग लोग, दस्ते  को दी गई थी.

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और सबसे बड़ी बात इन ग्रुप्स का आपस में कोई संपर्क नहीं था. यहां तक कि जब प्रवीण सोमानी को एसएसपी ने छुड़ा लिया उसके बाद भी लगातार फिरौती के लिए फोन आते रहे. बुधवार 22 जनवरी की देर रात उद्योगपति प्रवीण को छत्तीसगढ़ ले करके आई पुलिस और रात को ही मीडिया के समक्ष सारे तथ्य उद्घाटित कर दिया जाए.

23 जनवरी को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने स्वयं प्रवीण सोमानी को अपने निवास स्थान पर आमंत्रित किया व अपहरण की संपूर्ण जानकारी ली. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने  छत्तीसगढ़ पुलिस के   अपहरण कांड के जांच दस्ते को इस बड़ी सफलता के लिए  पुरस्कृत करने की भी घोषणा की है.

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