सौजन्य-मनोहर कहानियां
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के थाना निगोहां के गांव भगवानगंज के रहने वाले सरकारी नौकरी से रिटायर सत्यनारायण ने अपनी बहू रागिनी के रंगढंग से क्षुब्ध हो कर कहा, ‘‘बहू, जब तुम्हारा पति बाहर रहता है तो मायके के ऐसे लोगों को घर में न रोका करो, जो तुम्हारे करीबी न हों. देखने वालों को यह अच्छा नहीं लगता. लोग तरहतरह की बातें करते हैं.’’
सत्यनारायण की बहू रागिनी जिला रायबरेली के थाना बछरावां के गांव भक्तिनखेड़ा की रहने वाली थी. 14 जून, 2012 को सत्यनारायण के बेटे दिलीप के साथ उस की शादी हुई थी. तब से वह ससुराल में ही रहती थी. उस का मायका ससुराल के नजदीक ही था, इसलिए अकसर उस से मिलने के लिए घर के ही नहीं, गांव के लोग भी आते रहते थे. उन में से कुछ लोगों की रिश्तेदारी उस के ससुराल के गांव में थी, इसलिए जब भी उस के मायके का कोई आता, वह रागिनी से भी मिलने चला आता.
इसीलिए ससुर की बात का जवाब देते हुए रागिनी ने कहा, ‘‘पिताजी, मायके के लोग हम से मिलने पहले भी आते थे. जब पहले नहीं रोका तो अब उन्हें कैसे रोक सकते हैं. अगर किसी को आने से मना करेंगे तो लोग क्या कहेंगे. और रही बात गांव वालों की तो उन का क्या, वे तो कुछ न कुछ कहते ही रहते हैं.’’
दरअसल, पहले सत्यनारायण को बहू के मायके से कोई आता था तो उन्हें कोई दिक्कत नहीं होती थी, लेकिन जब 10 महीने पहले उन की पत्नी कलावती की मौत हो गई तो घर में रागिनी अकेली ही रह गई. 61 साल के सत्यनारायण एक साल पहले ही नौकरी से रिटायर हुए थे. रागिनी के डेढ़ साल का बेटा भी था.
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