रोहित शेखर हत्याकांड न मिला प्यार न मिली दौलत

साल 2017 में दोनों के बीच इश्क का फुतूर क्या चढ़ा, उन का एक पल के लिए एकदूसरे से जुदा होना मुश्किल हो गया. एक के पास सियासत और दौलत का रुतबा था, तो दूसरे के पास बेपनाह हुस्न. वैसे, रोहित शेखर कोई मामूली शख्स भी नहीं था.

वह उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के 4 बार मुख्यमंत्री रहे नारायण दत्त तिवारी का बेटा था. हालांकि खुद को बेटा साबित कराने के लिए रोहित शेखर ने लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी थी. लंबे समय तक साथ रहने के बाद अपूर्वा और रोहित शेखर तिवारी की सगाई हुई और फिर 11 मई, 2018 को दिल्ली के 5, अशोका रोड पर बने आनंद भवन में दोनों की शानदार शादी हुई. हालांकि जिस वक्त उन दोनों की शादी हो रही थी, तब नारायण दत्त तिवारी अस्पताल में भरती थे. एनडी तिवारी के ‘गुंजनू’ एनडी तिवारी रोहित को प्यार से ‘गुंजनू’ बुलाते थे. कानूनी विवाद खत्म होने के बाद मार्च, 2014 से रोहित शेखर अपने पिता एनडी तिवारी के साथ ही रहने लगा था. इस से पहले साल 2008 में रोहित शेखर ने जब अदालत में मामला दायर कर खुद को एनडी तिवारी का बेटा बताया था, तो देश में सनसनी फैल गई थी. शुरुआत में एनडी तिवारी ने रोहित शेखर को अपना बेटा मानने से इनकार किया था, पर बाद में जब डीएनए रिपोर्ट से यह साबित हो गया था कि रोहित एनडी तिवारी का ही बेटा है, तो एनडी तिवारी ने साल 2014 में रोहित शेखर की मां उज्ज्वला से लखनऊ में शादी कर ली थी.

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घूरती निगाहों से परेशान था जानकारों का मानना है कि उज्ज्वला और रोहित शेखर का एनडी तिवारी के घर पर बेरोकटोक आनाजाना होता था. वे अकसर वहां रहते भी थे. पत्नी उज्ज्वला एनडी तिवारी के रुतबे के आगे बोलने से ज्यादा खामोश रहना ही बेहतर समझती थीं. पर बड़े होते बेटे रोहित को समझना उतना आसान नहीं था. रोहित को नाजायज बेटा कहलाना और मां उज्ज्वला को नाजायज रिश्ता नागवार गुजरता था. जब लोगों खासकर करीबियों की घूरती निगाहें रोहित को परेशान करने लगीं तो उस ने अदालत में खुद को एनडी तिवारी का बेटा साबित करने की अर्जी डाल दी. कानूनी लड़ाई, लोगों के सवालात, घूरती निगाहों ने तब रोहित को परेशान किया होगा, इस में शक नहीं. पर इन परेशानियों में खुद को मजबूत करने के बजाय वह नशा करने लग गया था. बातबात पर गुस्सा करना और दबंगई पर उतरना उस की आदतों में शुमार हो चुका था. क्यों शक करती थी अपूर्वा रोहित शेखर की पत्नी अपूर्वा उस पर अलग मकान लेने का दबाव बनाती थी. हालांकि जिस घर में अपूर्वा, रोहित और उज्ज्वला रह रहे थे, वह कोई मामूली जगह भी नहीं है. डिफैंस कालोनी दिल्ली की पौश कालोनियों में शुमार है और यहां मकान होना किसी सपने से कम नहीं है. इन सब से अलग अपूर्वा को रोहित का शादी के बाद भी घुमंतू बने रहना और दोस्तों में समय बिताना पसंद नहीं था.

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वह रोहित पर शक करने लगी थी और जब वह बाहर होता था तो बारबार फोन करती रहती थी. कई बार तो वह वीडियो काल भी करती और रोहित को वीडियो काल पर यह दिखाने को कहती कि वह कहां है और उस के साथ और कौनकौन हैं? झगड़े की वजह पुलिस तफतीश में भी जो बातें सामने आ रही हैं, वे हैरान करने वाली हैं. दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच के मुताबिक, ‘‘एनडी तिवारी के ओएसडी रहे राजीव की पत्नी के साथ रोहित शेखर की बढ़ती नजदीकियों से अपूर्वा परेशान थी. उस की यह परेशानी तब और बढ़ गई, जब उसे पता चला कि राजीव के बेटे को प्रोपर्टी में हिस्सेदार बनाने की बात चल रही है. इन सब वजहों से वह डिप्रैशन में आ गई थी.’’ मीडिया में रोहित शेखर की मां उज्ज्वला का बयान और पुलिस तफतीश में कही गई बातों में समानता भी इस बात की तसदीक कर रही थीं. कुछ दिन पहले रोहित की मां उज्ज्वला ने कहा भी था, ‘‘हां, अपूर्वा की नजर प्रोपर्टी पर थी और इस में हिस्सेदारी को ले कर वह रोहित से आएदिन झगड़ती रहती थी.’’ दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच के ऐडिशनल सीपी राजीव रंजन ने मीडिया से बातचीत में कहा, ‘‘मां ने 60 और 40 फीसदी की हिस्सेदारी में अपने बेटों के नाम प्रोपर्टी कर दी थी. वसीयत में यह साफ कर दिया गया था कि अगर एक लड़के की मौत होती है तो उस की जगह दूसरे को हिस्सेदारी मिल जाएगी. इस में अपूर्वा का कहीं नाम नहीं था. न ही उस की कहीं हिस्सेदारी थी. इस बात को ले कर वह परेशान थी. ‘‘रोहित के भाई, जिस के हिस्से में 40 फीसदी हिस्सेदारी थी, वह कुंआरा है और उस ने यह कह रखा है कि वह अपना हिस्सा उस महिला रिश्तेदार के बेटे के नाम कर देगा. अपूर्वा को इस पर भी एतराज था.’’ यह रही मौत की वजह दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच की तफतीश के बाद जारी बयान की बात करें तो रोहित शेखर तिवारी की मौत उस रात अपूर्वा द्वारा की गई वीडियो काल की वजह से भी बनी. दरअसल, जब रोहित शेखर कार से उत्तराखंड से वापस लौट रहा था तो उसी शाम आदतन अपूर्वा ने वीडियो काल की. वीडियो काल में उसे एक औरत भी दिखाई दी जो रोहित शेखर के बगल में बैठी थी. रोहित उस समय चलती कार में ही शराब पी रहा था. रोहित के बगल में बैठी वह औरत रोहित की भाभी कुमकुम थी, जिस को ले कर अपूर्वा शक करती रहती थी. उसे रोहित के साथ देख कर अपूर्वा अपना आपा खो बैठी और वही वीडियो काल रोहित की मौत की वजह भी बनी. क्या हुआ था उस रात रात को जब रोहित घर आया तो साथ में कुमकुम भी थी. सब ने घर में साथ बैठ कर खाना खाया. बाद में वह औरत, उस का पति और दूसरे लोग उज्ज्वला के साथ तिलक लेन वाले घर पर चले गए तो रोहित पहली मंजिल पर अपने कमरे में जा कर सो गया. वह बेहद नशे में था. अपूर्वा के पूछने पर रोहित ने बताया कि वह औरत भी उस के साथ एक ही गिलास में शराब पी रही थी तो अपूर्वा आगबबूला हो उठी और उस ने रोहित का मुंह और नाक तकिए से दबा दिया.

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चूंकि रोहित नशे में तकरीबन बेहोशी की हालत में था इसलिए वह खिलाफत नहीं कर पाया और दम घुटने से उस की मौत हो गई. यह बात पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आने के बाद भी साबित हो चुकी है. शुरुआत में सभी लोग रोहित की मौत की वजह कुदरती ही मानते रहे, पर जब पुलिसिया तफतीश और पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो परत दर परत सब खुलने लगा. पहली गिरफ्तारी पत्नी अपूर्वा की हुई. पुलिस की मानें तो अपूर्वा चूंकि पेशे से वकील थी, इसलिए कानूनी दांवपेंच में भी वह माहिर थी. वह पुलिस को बरगलाने के लिए मौत की वजह ओवरडोज नशे को बताती रही. वह बारबार बयान भी बदल रही थी. इस से पुलिस का शक और गहरा गया. पुलिस की सख्ती पर अपूर्वा टूट गई और अपना जुर्म कबूल कर लिया. कह सकते हैं कि इस मौत से जहां अभी तक कई अनसुलझे सवाल रह गए हैं, तो वहीं आजकल की महानगरीय संस्कृति में रिश्तों के दरकने और दांपत्य का कमजोर होना भी कई सवाल खड़े करता है. रोहित अगर शराबी हो गया था तो उसे अपूर्वा सही रास्ते पर ला सकती थी.

झगड़े की वजह अगर प्रोपर्टी थी तो रोहित शेखर के नाम हुई प्रोपर्टी पर कानूनन अपूर्वा भी हकदार थी, जिसे नाहक अपने नाम प्रोपर्टी कराने की जिद थी. अपूर्वा रोहित पर शक करती थी. मुमकिन है कि इसी अनदेखी और झगड़े ने रोहित को और बिगड़ैल बना दिया हो. जिस प्यार की खातिर एनडी तिवारी बदनाम हुए थे, उसे सूझबूझ दिखा कर उन्होंने तो अपना लिया, मगर बेटा रोहित अपने प्यार को सहेजने में नाकाम रहा और आखिरकार एक नामी परिवार का हश्र भी किसी मर्डर मिस्ट्री फिल्मों की तरह ही हुआ, जहां न किसी को प्यार मिला और न ही दौलत. सबकुछ एक ही झटके में खत्म…

बेटे ने मम्मी की बना दि ममी…

भोपाल के बागसेवनिया थाने के अंतर्गत आने वाले विद्यासागर के सेक्टर-सी स्थित फ्लैट रामवीर
सिंह ने 6 लाख रुपए में खरीदा था. रामवीर सिंह शहर के ही नेहरू नगर में निधि नाम का एक रेस्टोरेंट चलाते थे. उन के रेस्टोरेंट को इस इलाके में हर कोई जानता है. वजह यह भी है कि उन का रेस्टोरेंट अच्छाखासा चलता था. मूलत: ग्वालियर के रहने वाले रामवीर सिंह सालों पहले रोजगार की तलाश में भोपाल आए थे और फिर यहीं के हो कर रह गए थे.
रेस्टोरेंट चल निकला और कुछ पैसा भी इकट्ठा हो गया तो उन्होंने उस पैसे को कहीं लगा देने की बात सोची. रामवीर के रेस्टोरेंट पर कभीकभार आने वाला एक ग्राहक अमित श्रीवास्तव भी था. अमित पर उन का ध्यान इसलिए भी गया था कि वह आमतौर पर शांत और गुमसुम सा रहता था.
उस की बोलचाल में रामवीर को ग्वालियर, चंबल का लहजा लगा तो उन के मन में उस के बारे में जानने की जिज्ञासा पैदा हुई. दोनों में बातचीत होने लगी तो रामवीर को पता चला कि अमित ग्वालियर का ही रहने वाला है और विद्यानगर में अपनी बूढ़ी मां विमला देवी के साथ रहता है.
एक दिन यूं ही उन के बीच हुई बातों में रामवीर को पता चला कि अमित अपना फ्लैट बेचना चाहता है. यह बात रामवीर को इसलिए अच्छी लगी क्योंकि अपने रेस्टोरेंट की वजह से वह उसी इलाके में रहने के लिए फ्लैट खरीदना चाहते थे.

दोनों के बीच बात चली तो सौदा भी पट गया. 6 लाख रुपए में एक बड़े रूम, किचन और बालकनी वाला फ्लैट रामवीर को घाटे का सौदा नहीं लगा. लिहाजा उन्होंने अमित से बात पक्की कर ली.
जून 2018 में रामवीर ने फ्लैट देख कर उस की रजिस्ट्री अपने नाम करा ली. इसी दौरान उन्हें अहसास हुआ कि इस संभ्रांत कायस्थ परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. फ्लैट विमला के नाम पर था, जिसे बेचने की सहमति उन्होंने रामवीर को दे दी थी. अमित पहले कहीं नौकरी करता था जो छूट गई थी. उस के घर में उस की बूढ़ी लकवाग्रस्त मां विमला श्रीवास्तव ही थीं, जिन की देखरेख की जिम्मेदारी अमित पर थी.
रजिस्ट्री के वक्त रामवीर ने अमित को ढाई लाख रुपए दिए थे और बाकी रकम भोपाल विकास प्राधिकरण यानी बीडीए में जमा कर दी थी, क्योंकि फ्लैट बीडीए का था. इस तरह अमित का हिसाबकिताब बीडीए से चुकता हो गया तो कागजों में फ्लैट पर उन का मालिकाना हक हो गया.

जैसा सोचा था, अमित वैसा नहीं निकला

रजिस्ट्री के पहले ही अमित ने उन से कहा था कि वे मकान खाली करवाने की बाबत जल्दबाजी न करें, कहीं और इंतजाम होते ही वह उस में शिफ्ट हो जाएगा और फ्लैट की चाबी उन्हें सौंप देगा.
चूंकि अमित देखने में उन्हें ठीकठाक और शरीफ लगा था, इसलिए उस की बूढ़ी मां का लिहाज कर के इंसानियत के नाते उन्होंने अमित को कुछ मोहलत दे दी. वैसे आजकल खरीदार रजिस्ट्री तभी करवाता है, जब उसे मकान, दुकान या फ्लैट खाली मिलता है.
उस वक्त रामवीर को जरा भी अंदाजा नहीं था कि यह मानवता उन्हें कितनी महंगी पड़ने वाली है. या कहें उन्होंने फ्लैट नहीं बल्कि एक आफत मोल ले ली है.
दरअसल, अमित उतना सीधासादा या भोला नहीं था, जितना कि वह देखने में लगता था. चूंकि सौदा बिना किसी अड़चन और दलाल के हो गया था, इसलिए उन्होंने किसी बात पर गौर नहीं किया, सिवाय इस के कि अब रजिस्ट्री तो उन के नाम हो ही चुकी है. जब अमित अपना कोई इंतजाम कर चाबी उन्हें सौंप देगा तो मकान की साफसफाई और रंगाईपुताई करा कर वे उस में रहने लगेंगे.
रजिस्ट्री के बाद भी अकसर अमित उन के रेस्टोरेंट पर आता रहता था और उन्हें आश्वस्त करता रहा था कि वह मकान ढूंढ रहा है और ढंग का मकान मिलते ही फ्लैट छोड़ देगा. जब वह कुछ दिन नहीं आता तो रामवीर उस से मोबाइल फोन पर बात कर लेते थे.

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जून से ले कर अगस्त, 2018 तक तो अमित उन के संपर्क में रहा, लेकिन फिर उस का फोन एकाएक बंद जाने लगा. इस से रामवीर थोड़ा घबराए, क्योंकि अमित ने उन्हें फ्लैट खाली करने की सूचना नहीं दी थी. जब उस का फोन लगातार बंद जाने लगा तो वे फ्लैट पर पहुंचे, लेकिन वहां हर बार उन का स्वागत लटकते ताले से होता.
अड़ोसपड़ोस में पूछताछ करने पर भी कुछ हासिल नहीं हुआ. कोई भी यह नहीं बता पाया कि अमित और विमला कहां गए. अलबत्ता रामवीर को यह अंदाजा जरूर लग गया था कि अमित ने वादे के मुताबिक फ्लैट खाली नहीं किया है और उस का सामान भी वहीं रखा है.
कानूनन फ्लैट अब उन का हो चुका था, लेकिन ताला तोड़ कर उस में घुसना उन्हें ठीक नहीं लगा, इसलिए वे इंतजार करते रहे कि आज नहीं तो कल अमित उन से संपर्क करेगा. आखिर कोई इतना सामान तो छोड़ कर जाता नहीं. जब भी वह सामान लेने आएगा तब वे चाबी उस से ले लेंगे. यह सोचसोच कर वे खुद को तसल्ली देते रहे.
जब इंतजार और बेचैनी सब्र की हदें तोड़ने लगे और जनवरी तक अमित का कोई पता नहीं चला तो दिल कड़ा कर रामवीर ने फ्लैट का ताला तोड़ कर उस पर अपना हक लेने का फैसला कर लिया. आखिर उन की खूनपसीने की गाड़ी कमाई का 6 लाख रुपया उस में लगा था.

दीवान में निकली लाश

रविवार 3 फरवरी को रामवीर ने डुप्लीकेट चाबी से फ्लैट का ताला खोला और साफसफाई की जिम्मेदारी अपने बेटे धर्मेंद्र और 2 मजदूरों को दे दी. इन लोगों ने जब फ्लैट में पांव रखा तो उस में चारों तरफ से बदबू आ रही थी. चूंकि 8-9 महीने से मकान बंद पड़ा था, इसलिए बदबू आना स्वाभाविक बात थी. बदबू से ध्यान हटा कर उन्होंने सफाई शुरू कर दी. चारों तरफ कचरा फैला था और सामान भी अस्तव्यस्त पड़ा था.
मजदूरों ने कमरे में रखे एक दीवान को बाहर निकालने की कोशिश की तो भारी होने की वजह से वह हिला तक नहीं. इस पर धर्मेंद्र ने मजदूरों से कहा कि पहले प्लाई हटा लो फिर दीवान बाहर रख देना. जब मजदूरों ने दीवान की प्लाई हटाई तो तेज बदबू का ऐसा झोंका आया कि वे लोग बेहोश होतेहोते बचे. उन्हें लगा कि शायद कोई चूहा दीवान के अंदर सड़ रहा है, इसलिए इतनी बदबू आ रही है.
चूहा ढूंढने के लिए मजदूरों ने दीवान में ठुंसे कपड़े हटाने शुरू किए तो कुछ साडि़यां कंबल और एकएक कर 11 रजाइयां निकलीं. आखिरी कपड़ा हटाते ही तीनों की चीख निकल गई. दीवान के अंदर चूहे की नहीं बल्कि किसी इंसान की लाश थी.
खुद को जैसेतैसे संभाल कर मजदूर आए और पुलिस को खबर दी. उस वक्त दोपहर के 2 बज चुके थे. बागसेवनिया थाने के पुलिसकर्मियों के अलावा मिसरोद थाने के एसडीपीओ दिशेष अग्रवाल भी सूचना मिलने पर घटनास्थल पर पहुंच गए.
पुलिस ने मौके पर पहुंच कर जांच शुरू की तो कई रहस्यमय और चौंका देने वाली बातें सामने आईं. फ्लैट विमला श्रीवास्तव के नाम था जो कुछ साल पहले तक मध्य प्रदेश राज्य परिवहन निगम में नौकरी करती थीं. पति ब्रजमोहन श्रीवास्तव की मौत के बाद उन्हें उन के स्थान पर अनुकंपा नियुक्ति मिल गई थी. परिवहन निगम घाटे की वजह से बंद हो गया था. सभी कर्मचारियों की तरह विमला को भी अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी गई थी.

विमला इस फ्लैट में साल 2003 से अपने 32 वर्षीय बेटे अमित के साथ रह रही थीं. 60 वर्षीय विमला धार्मिक प्रवृत्ति की थीं. अपार्टमेंट में हर कोई उन्हें जानता था. वे अकसर शाम को 4 बजे के लगभग कैंपस में बने मंदिर में पूजापाठ करने जाती थीं और रास्ते में जो भी मिलता था, उसे राधेराधे कहना नहीं भूलती थीं. मंदिर में बैठ कर वह सुरीली आवाज में भजन गाती थीं तो अपार्टमेंट के लोग मंत्रमुग्ध हो उठते थे.

अमित हो गया मनोरोगी

कभीकभी भगवान की मूर्ति के सामने बैठेबैठे वे रोने भी लगती थीं. विमला भगवान से अकसर अपने बेटे अमित के लिए सद्बुद्धि मांगा करती थीं और कभीकभी उन के मन की बात होंठों तक इस तरह आ जाती थी कि आसपास के लोग भी उसे सुन लेते थे. लेकिन भगवान कहीं होता तो उन की सुनता और अमित को रास्ते पर लाता.
श्रीवास्तव परिवार का मिलनाजुलना किसी से इतना नहीं था कि उसे पारिवारिक संबंधों के दायरे में कहा जा सके. विमला तो फिर भी कभीकभार अड़ोसीपड़ोसी से बतिया लेती थीं, लेकिन अमित किसी से कोई वास्ता नहीं रखता था. कुछ दिन पहले तक वह कहीं नौकरी पर जाता था, लेकिन कुछ दिनों से नौकरी पर नहीं जा रहा था. घर पर भी वह कम ही रहता था.

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पड़ोसियों की मानें तो अमित विक्षिप्त यानी साइको था. उस की हरकतें अजीबोगरीब और असामान्य थीं. वह एक खास तरह की पिनक और सनक में रहता और जीता था, जो पिछले कुछ दिनों से कुछ ज्यादा बढ़ गई थी. विमला को कुछ महीनों पहले लकवा मार गया था, जिस से वह चलनेफिरने से भी मोहताज हो गई थीं. उन्हें किडनी की शिकायत भी रहने लगी थी. अब वह पहले की तरह न मंदिर जाती थीं और न ही किसी को उन के भजन सुनने को मिलते थे. चूंकि अमित किसी से संबंध नहीं रखना चाहता था, इसलिए अपार्टमेंट के लोग भी फटे में टांग अड़ाने से हिचकिचाते थे.
पर यह बात हर किसी को अखरती थी कि कई बार वह अपनी मां को मारनेपीटने लगता था. ये आवाजें अब उन के फ्लैट से बाहर आती थीं तो लोग कलयुग है कह कर कान ढंकने की नाकाम कोशिश करने लगते थे. कान ढंकने पर एक मर्तबा आवाज न भी आए, लेकिन आंखें लोग बंद नहीं कर पाते थे. जब अमित विमला को मारतापीटता गैलरी में ला पटकता था तो यह देख कर लोगों का कलेजा फटने लगता था.

राक्षसी प्रवृत्ति का हो गया अमित

पूत कपूत बन चला था, लेकिन कोई कुछ बोल नहीं पाता था तो यह उन की किसी के मामले में दखल देने की आदत कम बल्कि बुजदिली ज्यादा थी. जवान हट्टाकट्टा बेटा उन के सामने ही बूढ़ी अपाहिज मां से मारपीट करता था और लोग तमाशा देखने के अलावा कुछ नहीं करते थे. निस्संदेह ये लोग सभ्य समाज का हिस्सा नहीं थे. हैवानियत और राक्षसी प्रवृत्ति वास्तव में क्या होती है, यह अमित की हरकतों से समझा जा सकता था.
पड़ोसी तो छोडि़ए, अमित ने नातेरिश्तेदारों से भी सबंध नहीं रखे थे. लाश मिलने के बाद यह बात तो एक कागज के जरिए पता चली कि विमला के ससुराल पक्ष के रिश्तेदार ग्वालियर में रहते हैं. बहरहाल, कई दिनों तक जब विमला नहीं दिखीं तो उन की कुछ सहेलियों ने उन की खोजखबर लेने की कोशिश की.
अपार्टमेंट की कुछ बुजुर्ग महिलाएं मई के महीने में उन से मिलने पहुंचीं तो अमित ने उन्हें बेइज्जत किया और दुत्कार कर भगा दिया था. उस दौरान वह अपनी सोती हुई मां का चेहरा कपड़े से ढक कर कह रहा था सो जा मां सो जा…
पुलिस ने जब फ्लैट की तलाशी ली तो उस के हाथ कई अहम सुराग लगे. लेकिन पहली चुनौती लाश की शिनाख्त की थी. लाश बिलकुल सड़ीगली नहीं थी, क्योंकि उसे रजाइयों, कंबल और साडि़यों से ढक कर रखा गया था, जिस से उस का संपर्क हवा से नहीं हो पाया था.

ममी के रूप में मिली लाश

ममी जैसी हालत वाली यह लाश विमला की ही है, इस के लिए पोस्टमार्टम जरूरी था जो एम्स भोपाल में ही कराया गया. पुलिस वालों का शुरुआती अंदाजा यही था कि लाश किसी महिला की ही होनी चाहिए, लेकिन वे दावे से यह बात नहीं कर पा रहे थे.
लाश निकालते वक्त नजारा बहुत वीभत्स था. लाश के पैर दीमक ने कुतर दिए थे और अस्थिपंजर पर मांस बिलकुल भी नहीं था. हड्डियों के ढांचे और ऊपरी परत को देख कर यह नहीं लग रहा था कि उस पर किसी धारदार हथियार का इस्तेमाल किया गया होगा. किसी तरह के चोट के निशान भी लाश पर नहीं थे.
पुलिस ने फ्लैट की तलाशी ली तो उसे विमला और अमित के आधार कार्ड के अलावा बैंक पासबुक, वोटर आईडी, गैस कनेक्शन के कागजात और बिजली के बिल के अलावा अमित की बरकतउल्ला यूनिवर्सिटी भोपाल की एक मार्कशीट भी मिली जोकि कटीफटी थी.
सब से हैरान कर देने वाली चीज भांग की गोलियों के रैपर थे, जिन से लगता था कि अमित भांग के नशे का आदी था. अमित की शुरुआती पढ़ाई भोपाल के ही सेंट जेवियर स्कूल में हुई थी.
विमला की एक सहेली जया एंटनी की मानें तो अमित निहायत ही वाहियात लड़का था, जो मैलेकुचैले कपड़े पहने रहता था और कई दिनों तक नहाता भी नहीं था. खुद जया ने जब कई दिनों तक विमला को नहीं देखा था तो उन्होंने घटना के कोई 3 महीने पहले पुलिस को खबर की थी. उन्हें शक था कि कहीं विमला किसी अनहोनी का शिकार न हो गई हो. लेकिन पुलिस ने उन की शिकायत पर ध्यान नहीं दिया. जया ने यह शिकायत कब और किस से की थी, इस का विवरण वे नहीं दे पाईं.

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जैसे ही ममी मिलने की खबर भोपाल से होती हुई देश भर में फैली तो सुनने वाले हैरान रह गए. हर किसी ने यही अंदाजा लगाया कि अमित ने ही अपनी मां विमला की हत्या की होगी. इस के पीछे लोगों की अपनी दलीलें भी थीं. कइयों को भोपाल का उदयन भी याद हो आया, जिस ने रायपुर में अपने मांबाप की हत्या कर उन की कब्र बना कर दफना दिया था. उदयन अब पश्चिम बंगाल की एक जेल में सजा काट रहा है.
विमला की पोस्टमार्टम रिपोर्ट से उजागर हुआ कि लाश महिला की ही है और उस की हत्या करीब 3 महीने पहले की गई थी. एम्स के 3 डाक्टरों की टीम ने मृतका की उम्र 50 साल के लगभग आंकी. पोस्टमार्टम के बाद लाश को विमला की ही मान कर उसे मोर्चरी में रखवा दिया गया. पुलिस की एक टीम अब तक ग्वलियर भी रवाना हो चुकी थी, जिस से विमला के परिजन अगर कोई मिलें तो उन्हें खबर कर दें ताकि वे अंतिम संस्कार कर दें. साथ ही अमित का सुराग ढूंढना भी जरूरी था.
पोस्टमार्टम रिपोर्ट में लाश के किसी अंग की हड्डी टूटी नहीं पाई गई. चूंकि लाश काफी पुरानी हो चुकी थी, इसलिए डाक्टर मौत की स्पष्ट वजह नहीं बता पाए.

अमित का नहीं लगा सुराग

पुलिस ने तेजी से अमित की खोजबीन शुरू कर दी, जिस से हत्या या मौत पर से परदा हट सके. लेकिन वह ऐसा गायब हुआ था जैसे गधे के सिर से सींग. इन पंक्तियों के लिखे जाने तक अमित का कोई अतापता नहीं चला था. पुलिस ने उस के मोबाइल की काल डिटेल्स भी निकलवाई, पर उस से भी कुछ खास हाथ नहीं लगा.
5 फरवरी को विमला के जेठ व भतीजा सुरेंद्र श्रीवास्तव ग्वालियर से भोपाल आए लेकिन वे भी कोई ठोस जानकारी नहीं दे पाए. सुरेंद्र का कहना था कि पिछले 25 सालों से विमला या अमित ने उन से कोई संपर्क नहीं रखा है.
उन का मायका भिंड जिले के मडगांव में है लेकिन अमित अपने मामा पक्ष से भी संबंध या संपर्क नहीं रखता था. विमला की 2 बेटियां भी थीं, जिन की काफी पहले मौत हो चुकी थी. सुरेंद्र ने भोपाल के सुभाष नगर विश्राम घाट पर विमला का अंतिम संस्कार किया.

मां की हत्या की हैरान कर देने वाली गुत्थी अब तभी सुलझेगी जब अमित का कुछ पता चलेगा. यह अंदाजा या शक हालांकि बेहद पुख्ता है कि उसी ने ही विमला की हत्या की होगी. लगता ऐसा है कि नशे का आदी हो गया अमित अपनी बीमार और अपाहिज मां के प्रति अवसाद के चलते क्रूर हो गया होगा और उन से छुटकारा पाने की गरज से उस ने इसी सनक में हत्या कर दी होगी.
चूंकि भरेपूरे घने इलाके से लाश ले जा कर कहीं ठिकाने लगाना आसान काम नहीं था, इसलिए अपना जुर्म छिपाने के लिए उस ने लाश को कपड़ों से ढक दिया और घर से भाग गया. लेकिन कहां गया और जिंदा है भी या नहीं, यह किसी को नहीं मालूम.

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पुलिस की इस थ्योरी में दम है कि अमित ने जातेजाते एक मोमबत्ती टीवी के ऊपर जला कर रख दी थी, जिस से घर ही जल जाए और लोग इसे एक हादसा समझें. लेकिन मोमबत्ती से टीवी आधा ही जल पाया और वह आग भी नहीं पकड़ पाया.
बढ़ते शहरीकरण, एकल होते परिवार, बेरोजगारी के अलावा हत्या का यह मामला एक युवा के निकम्मेपन और अहसान फरामोशी का ही जीताजागता उदाहरण है, जो इस कहावत को सच साबित करता प्रतीत होता है कि एक मां कई बच्चों को पाल सकती है लेकिन कई संतानें मिल कर एक मां की देखभाल भी नहीं कर सकतीं.

बालिका सेवा के नाम पर…

31जनवरी, 2019 की शाम जावरा क्षेत्र में पिपलोदा रोड स्थित कुटीर बालिका गृह के बाहर अफरातफरी
का माहौल था. बालिका गृह के गेट पर औद्योगिक क्षेत्र के टीआई बी.एल. सोलंकी, एसआई मधु राठौर और पुलिस बल के साथ खड़े थे.
भारी पुलिस बल को देख कर लोगों की भीड़ जुटने लगी थी. उसी समय पूर्व संचालिका रचना भारतीय अपने पति ओमप्रकाश भारतीय के साथ बालिका गृह से बाहर निकल आई.
रचना भारतीय अपने पति ओमप्रकाश के साथ आश्रम के प्रांगण में स्थित घर में रहती थी. रचना ने टीआई सोलंकी से आने की वजह जाननी चाही तो टीआई ने बताया कि वह जिला कलेक्टर के आदेश पर आश्रम में रहने वाली बच्चियों को वहां से हटा कर रतलाम के वन स्टाफ सेंटर में ले जाने के लिए आए हैं.
रचना और उस के पति ओमप्रकाश ने इस बात का विरोध करना चाहा लेकिन पुलिस के सामने उन की एक नहीं चली. पुलिस ने आश्रम में रह रही करीब 300 बालिकाओं को बसों में बैठाया. इतना ही नहीं टीआई बी.एल. सोलंकी ने रचना भारतीय व ओमप्रकाश को भी हिरासत में ले लिया. इस के बाद वह उन्हें ले कर थाने लौट आए. उन्होंने सभी बालिकाओं को रतलाम के वन स्टाफ सेंटर भेज दिया.
रचना और ओमप्रकाश भारतीय को पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाने की बात जल्द ही पूरे जावरा शहर में फैल गई. पर पुलिस की काररवाई चलती रही. टीआई सोलंकी ने अगले दिन क्षेत्र के 2 और चर्चित व्यक्तियों कुंदन वेलफेयर सोसाइटी के अध्यक्ष सुदेश जैन और सचिव दिलीप बरैया को भी गिरफ्तार कर लिया.
दरअसल इन की गिरफ्तारी की वजह यह थी कि कुटीर आश्रम से 24 जनवरी, 2019 को 5 बालिकाएं बालिका गृह का रोशनदान तोड़ कर फरार हो गई थीं.
आश्रम से बालिकाओं के भागने की सूचना मिलते ही पुलिस और बाल कल्याण समिति सक्रिय हो गई. जिस के चलते ये सभी बालिकाएं शाम को मंदसौर में मिल गईं. बालिकाओं से पूछताछ की गई तो पता चला कि रचना और उस का पति अन्य लोगों के साथ मिल कर इन लड़कियों का शारीरिक शोषण करते थे.

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कलेक्टर ने दिए थे जांच के आदेश

यह जानकारी जब रतलाम की कलेक्टर रुचिका चौहान को मिली तो उन्होंने जावरा क्षेत्र के एसडीएम एम.एल. आर्य को संस्था में रह रही दूसरी लड़कियों से पूछताछ करने के निर्देश दिए. एसडीएम ने आश्रम जा कर वहां रह रही करीब 300 लड़कियों से पूछताछ की तो उन्होंने आपबीती एसडीएम साहब को बता दी.
एसडीएम ने अपनी रिपोर्ट कलेक्टर रुचिका चौधरी को सौंप दी. इस के बाद ही कलेक्टर रुचिका चौहान ने आदेश दिया कि कुटीर बालिका गृह में रह रही सभी बच्चियों को वहां से वन स्टाफ सेंटर रतलाम शिफ्ट कर दिया जाए और दोषियों के खिलाफ सख्त काररवाई की जाए.
जिला कलेक्टर के आदेश पर ही पुलिस ने बालिका गृह की पूर्व संचालिका रचना भारतीय तथा उस के पति ओमप्रकाश भारतीय, संस्था के वर्तमान अध्यक्ष और सचिव सुदेश जैन एवं दिलीप बरैया के खिलाफ भादंवि की धारा 354, 376, 324 एवं बालकों की देखरेख संरक्षण अधिनियम की धारा 75, पोक्सो 5डी, 4, 7/8 के तहत मामला दर्ज कर लिया.
जांच में पुलिस को पता चला कि रचना भारतीय पूर्व में इस बालिका गृह की संचालिका के पद पर थी. वह अपने पति ओमप्रकाश के साथ बालिका गृह के एक हिस्से में रहती थी. बाद में अपनी राजनैतिक पकड़ के चलते उसे बाल कल्याण समिति का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया था.

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चूंकि वह एक साथ 2 पदों पर नहीं रह सकती थी, लिहाजा उस ने बालिका गृह की संचालिका का पद छोड़ना जरूरी समझा. यह पद छोड़ने के बाद रचना ने अपने विश्वसनीय सुदेश जैन और दिलीप बरैया को संस्था का अध्यक्ष और सचिव बनवा दिया था. पद छोड़ने के बाद भी रचना अपने पति के साथ इसी आश्रम में रहती थी.
सुदेश जैन और दिलीप बरैया नाम के ही पदाधिकारी थे. बालिका गृह से जुड़े सारे फैसले रचना और उस का पति ही लेते थे.
बहरहाल पुलिस ने दूसरे दिन सभी आरोपियों को न्यायालय में पेश किया जहां से रचना भारतीय को रतलाम एवं ओमप्रकाश भारतीय, सुदेश जैन तथा दिलीप बरैया को जावरा जेल भेज दिया गया.
अदालत में पेश करने से पहले सुदेश जैन एवं दिलीप बरैया की मौजूदगी में टीआई बी.एल. सोलंकी तथा हुसैन टेकरीजहां के तहसीलदार के सामने आश्रम की सील तोड़ कर दस्तावेजों की जांच की गई.
साथ ही लापरवाही बरतने के आरोप में महिला सशक्तिकरण अधिकारी रहे एवं वर्तमान में महिला बाल विकास विभाग के सहायक संचालक रविंद्र मिश्रा को निलंबित कर दिया गया.
इस के अलावा रचना को बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष पद से भी हटा दिया गया. बालिका गृह में लड़कियों के साथ किए जाने वाले शोषण की पूरी कहानी इस प्रकार सामने आई—

कई साल पहले जावरा नगर पालिका के अध्यक्ष हुआ करते थे कुंदनमल भारतीय. ओमप्रकाश भारतीय कुंदनमल का ही बेटा था. जबकि रचना ओमप्रकाश भारतीय की पत्नी थी. कुंदनमल की मृत्यु के बाद सन 2015 में रचना ने कुंदन बेलफेयर सोसाइटी का गठन कर उस के अंतर्गत पिपलौदा रोड पर कुंदन कुटीर नाम से बालिका गृह का संचालन किया.

राजनैतिक पहुंच का उठाया लाभ

रचना और उस के पति की राजनीति में अच्छी पकड़ थी जिस के चलते जल्द ही इस बालिका गृह को शासन से मोटा अनुदान मिलने लगा. जानकारी के अनुसार पिछले 3 साल में ही शासन की तरफ इस बालिका गृह को करीब 38 लाख रुपए की अनुदान राशि मिली थी. सूत्रों की मानें तो इस अनुदान राशि के अलावा रचना प्रदेश भर से काफी बड़ी रकम दान के रूप में बेटोर रही थी.
जो 5 लड़कियां बालिका गृह से भागी थीं, उन्होंने बताया कि हम सभी रचना को मम्मा कहते थे और उस के पति को पापा. लेकिन उन की नीयत लड़कियों के प्रति अच्छी नहीं थी. पापा रोज शराब पीते थे और रचना मम्मा इस दौरान हम में से किसी एक लड़की को शराब के पैग तैयार करने का काम सौंप देती थी. मम्मा खुद भी शराब पीती थी और दूसरे लोग भी रोज आश्रम में आ कर उन दोनों के साथ शराब पीते थे.
रात के समय आश्रम में आने वाली एक महिला भी शराब पीए होती थी. मम्मा एक गुप्त रास्ते से लड़कियों के कमरों में आती थी. रात के खाने में हमें कुछ मिला कर खिलाया जाता था, जिस के बाद हम उठ ही नहीं पाते थे.
यह भी पता चला कि सन 2018 में लड़कियों की शिकायत पर बाल संरक्षण अधिकारी पवन कुमार सिसौदिया ने जांच कर के अपनी रिपोर्ट रतलाम में संबंधित विभाग के 2 अधिकारियों को सौंपी थी. लेकिन उन की जांच रिपोर्ट पर कोई काररवाई नहीं की गई.
शिकायत में बच्चियों ने आरोप लगाए कि रचना मम्मा का व्यवहार काफी खराब है. वह बातबात पर हम लोगों से मारपीट करती हैं. समय पर खाना भी नहीं दिया जाता. लड़कियों ने बताया कि रचना के पति हम लोगों के शरीर पर गलत नीयत से हाथ फेरते थे. मना या विरोध करने पर हमारे साथ मारपीट की जाती थी. वह कभीकभी किचन में आ कर लड़कियों के पैर में हाकी डाल कर उन्हें अपनी तरफ खींच लेते.

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बहरहाल अब शासन ने पूरे मामले को गंभीरता से लेते हुए न केवल 4 आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है बल्कि रचना के आश्रम में रहने वाली सभी बच्चियों को रतलाम और उज्जैन के आश्रमों में शिफ्ट कर दिया है, दूसरी तरफ रतलाम कलेक्टर के निर्देश पर पुलिस उन तमाम बच्चियों से संपर्क कर उन के बयान लेने की कोशिश कर रही हैं, जो कभी न कभी रचना के आश्रम में रही थीं.
कुंदन कुटीर बालिका गृह मामले में एक युवती से वीडियो बनवाने के संबंध में करीब 2 महीने से फरार चल रहे नगर पालिका के पूर्व अध्यक्ष और कांग्रेस से निष्कासित यूसुफ कड़पा को पुलिस ने गिरफ्तार कर भी लिया. गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने आरोपी को आननफानन में कोर्ट में पेश किया, जहां से कोर्ट ने उसे जमानत पर रिहा कर दिया.
इस मामले में पुलिस ने कोर्ट में आरोपी के पुलिस रिमांड की मांग भी नहीं की. पुलिस ने कोर्ट से उसे जेल भेजने का आग्रह किया, लेकिन कोर्ट ने आरोपी के आवेदन पर उसे कोर्ट से ही जमानत पर रिहा कर दिया.

कामुक तांत्रिक…

मध्य प्रदेश के इंदौर शहर की रहने वाली तबस्सुम बेहद खूबसूरत थी. उस की शादी शहर के ही रहने वाले नफीस अहमद से  हुई थी. नफीस का अपना कारोबार था जिस से उसे अच्छीखासी आमदनी हो जाती थी. नफीस से निकाह कर के तबस्सुम खुश थी. उसे नफीस अपने सपनों के राजकुमार की तरह ही मिला था. नफीस भी तबस्सुम को बहुत प्यार करता था. तबस्सुम के व्यवहार की वजह से उस के सासससुर भी उसे बहुत चाहते थे. धीरेधीरे उन्होंने भी घर की बागडोर बहू तबस्सुम को सौंप दी थी. इस तरह हंसीखुशी के साथ उस का समय बीत रहा था. हर सासससुर की तरह तबस्सुम के सासससुर भी यही चाहते थे कि उन की बहू जल्द मां बन जाए और यदि पहली बार  में ही बेटे का जन्म हो जाए तो बात ही कुछ और होगी. फिर वह अपने पोते के साथ ही लगे रहेंगे. पर शादी को डेढ़दो साल  हो गए, लेकिन वह मां नहीं बनी. धीरेधीरे 4 साल बीत गए लेकिन तबस्सुम गर्भवती नहीं हुई. इस के बाद तो सासससुर ही नहीं बल्कि खुद तबस्सुम और नफीस भी परेशान रहने लगे. नफीस पत्नी को ले कर डाक्टर के पास गया. दोनों की कई तरह की जांच कराई गईं, जो सामान्य आईं. डाक्टर भी हैरान था कि सब कुछ सामान्य होने के  बावजूद भी आखिर तबस्सुम को गर्भ क्यों नहीं ठहर रहा. फिर भी डाक्टर ने अपने हिसाब से उन दोनों का इलाज किया. इस के बावजूद भी तबस्सुम की कोख सूनी रही. इस से तबस्सुम बहुत चिंतित रहने लगी. परेशान हाल इंसान को समाज में तमाम सलाहकार फ्री में मिल जाते हैं. लोग नफीस और तबस्सुम को भी तरहतरह की सलाह देने लगे. और वह सलाह भी उदाहरण के साथ देते थे कि फलां औरत वहां गई थी या उस डाक्टर, हकीम से इलाज कराया तो वह मां बन गई. अपने मन में उम्मीद ले कर तबस्सुम भी लोगों की सलाह के अनुसार कई डाक्टरों, हकीमों के पास गई. तमाम धार्मिक स्थलों पर जा कर उस ने माथा टेका लेकिन उस की इच्छा पूरी नहीं हुई.

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इस तरह शादी के 7 साल बाद भी तबस्सुम की कोख नहीं भरी तो मोहल्ले के लोग ही नहीं, बल्कि सासससुर भी उसे बांझ समझने लगे. जो सास उसे सरआंखों पर बिठाए रहती थी वह ही उसे ताने देने लगी.
बातबात पर वह उसे बांझ कहती. अब तबस्सुम की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. हां, नफीस उसे समझाने की कोशिश करता था. केवल उस का पति ही था, जो हमेशा उस की हिम्मत बढ़ाता था.
तबस्सुम को जिस घर की जिम्मेदारी दी गई थी, सास के तानों ने उस का उसी घर में रहना दूभर कर दिया था. उस के जीवन में शांति तो जैसे कोसों दूर चली गई थी, इसलिए उस घर में रहना उसे अब अच्छा नहीं लगता था. अब वह उस घर के बजाए कहीं और रहना चाहती थी. इस बारे में उस ने पति से बात की तो नफीस ने उस का साथ दिया और वह अपना घर छोड़ कर शहर की ही एडवोकेट कालोनी में किराए पर एक मकान में रहने लगा.नफीस जिस कालोनी में रहता था, वह मकान शफीउल्लाह नाम के एक तांत्रिक का था. उस ने शहर के ही चंदननगर के एक मकान में अपना औफिस बना रखा था. वह यह धंधा कर के मोटी रकम कमा रहा था.
किराए के मकान में रहने पर तबस्सुम को एक सुकून यह मिल रहा था कि उसे यहां ताने देने वाला कोई नहीं था. इस तरह वह वहां रह कर शांति महसूस कर रही थी. इस मकान में आए हुए तबस्सुम को करीब 20-22 दिन ही हुए थे कि एक दिन दोपहर के समय में जब वह कमरे में अकेली थी तभी मकान मालिक तांत्रिक शफीउल्लाह उस के कमरे में आया और उस का हालचाल पूछने लगा.

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औपचारिकतावश तबस्सुम ने उसे चाय बना कर पिलाई. इसी दौरान शफी ने उस से कहा, ‘‘मैं जानता हूं कि तुम संतान न
होने की वजह से परेशान हो. लेकिन अब चिंता मत करो. ऊपर वाले ने तुम्हारी गोद भरने के लिए ही तुम्हें मेरे यहां किराएदार बना कर भेजा है.’’तबस्सुम की कुछ समझ में नहीं आया तो शफी ने उसे बताया कि वह तंत्रमंत्र का बड़ा जानकार है. तंत्रमंत्र से संतानहीन महिला की गोद भरने में उसे महारथ हासिल है. न मालूम कितनी महिलाएं उस से यह लाभ ले चुकी हैं. जिस के चलते लोग उसे गोद स्पेशलिस्ट बाबा भी कहते हैं. तुम चिंता मत करो जल्द ही वक्त आने पर वह अपनी तांत्रिक शक्ति से उस की गोद भर देगा. साथ ही उस ने यह भी सलाह दी कि वह इस बारे में अपने पति से कोई बात नहीं करे. शफी की बात सुन कर तबस्सुम खुश हो गई. उसे लगा कि सचमुच अब उस का सपना सच हो जाएगा. उस दिन के बाद शफी उसे अकसर अपने एक कमरे में उस के पति की गैरमौजूदगी में पूजा के लिए बुलाने लगा. चूंकि पूजा के बारे में पति को कुछ भी बताने से तांत्रिक शफी ने उसे मना कर रखा था इसलिए यह सारे काम तबस्सुम अपने शौहर से छिपा कर कर रही थी.
शुरुआती दौर में तो शफी पूजा के दौरान पूरी शराफत दिखाता था लेकिन बाद में धीरेधीरे वह उसे कभीकभार छूने भी लगा. तबस्सुम को छूने का उस का लगातार क्रम बढ़ता गया. कभीकभार वह पूजा के नाम पर उस के वक्षस्थल पर भी हाथ रख देता था. तबस्सुम को यह अजीब सा लगा. उसे तांत्रिक शफी की नीयत पर शक होने लगा. इसलिए वह उस की पूजा में अरुचि दिखाने लगी. इस से शफीउल्लाह को इस बात का अंदाजा होने लगा कि यह उस से दूरी बनाने लगी है. चिडि़या कहीं पिंजरे से उड़ न जाए, यह सोच कर शफी ने भी वक्त जाया करना उचित नहीं समझा.

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19 सितंबर, 2018 को शफी को इस का मौका भी मिल गया. एक रात तबस्सुम का पति नफीस इंदौर से बाहर गया था. यह देख कर शफी ने उसे रात में पूजा करने को बुलाया. तबस्सुम का मन तो नहीं हुआ लेकिन जब शफी ने उसे पूजा को अधूरा बीच में छोड़ देने के नुकसान बता कर डराया तो वह उस रोज तांत्रिक के कहने पर आधी रात में नहाने के बाद खुले गीले बाल ले कर उस के कमरे में चली गई. पूजा करते
समय शफीउल्लाह ने उसे पीने के लिए जन्नती जल के नाम पर पीला सा पानी दिया, जिसे पी कर तबस्सुम को चक्कर सा आने लगा. इस के बाद पूजा करने के नाम पर शफी काफी देर तक उस के शरीर से छेड़छाड़ करता रहा, फिर उस ने उसे जमीन पर लिटा दिया और खुद भी उस के ऊपर लेट गया. तबस्सुम पर बेहोशी सी छाई हुई थी. उस समय वह उस का विरोध करने
की हालत में नहीं थी. शफी ने उस के साथ बलात्कार किया.
इस के बाद तबस्सुम को होश आया तो उस ने शफी को खरीखोटी सुनाई. उस के तेवर देख शफी ने कहा कि यह सब उस ने उस की भलाई के लिए ही किया है. अब पूजा पूरी हो गई है. वह अपने पति के साथ पहली बार सोते ही गर्भधारण कर लेगी. शफी ने उसे धमकाया कि इस बारे में यदि उस ने किसी को बताया तो वह अपनी व पति की जान खो देगी. तबस्सुम जान गई थी कि यह पूरा नाटक शफी ने उसे हासिल करने के लिए किया था. उसे खुद से नफरत हो रही थी, इसलिए उस ने कमरे पर पहुंचने के बाद अगले दिन गले में फंदा डाल कर आत्महत्या करने की कोशिश की. लेकिन अचानक पति के आ जाने के बाद वह ऐसा नहीं कर सकी.
पति ने उसे बचा लिया. फिर तबस्सुम ने पति को सारी कहानी बता दी. नफीस ने उसी दिन तांत्रिक का कमरा खाली कर दिया. चूंकि तांत्रिक शफीउल्लाह ने तबस्सुम को डरा दिया था इसलिए उस के पति की भी तांत्रिक के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने की हिम्मत नहीं हुई. इस वाकये को हुए करीब 3 सप्ताह गुजर गए. तभी तबस्सुम के दिमाग में आया कि तांत्रिक के खिलाफ पुलिस से शिकायत जरूर करनी चाहिए वरना वह किसी और को अपना शिकार बनाएगा.

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इस के बाद वह 9 अक्तूबर, 2018 को पति को साथ ले कर खजराना थाने पहुंच गई. टीआई कमलेश शर्मा को तबस्सुम ने सारी बात विस्तार से बता दी. उस की शिकायत पर पुलिस ने तांत्रिक शफीउल्लाह के खिलाफ बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज कर ली. रिपोर्ट दर्ज करने के बाद पुलिस ने शफीउल्लाह के घर दबिश डाली लेकिन वह घर पर नहीं मिला. वह फरार हो चुका था. तब पुलिस ने उस के पीछे मुखबिर लगा दिए.
10 अक्तूबर, 2018 को टीआई कमलेश शर्मा को मुखबिर द्वारा तांत्रिक के बारे में सूचना मिली. सूचना के बाद टीआई कमलेश शर्मा पुलिस टीम के साथ चंदननगर में स्थित एक मकान के पास पहुंचे.
उस समय रात हो चुकी थी. घर से लोभान के सुलगने की महक आ रही थी. टीआई ने उस मकान का दरवाजा खटखटाया तो कुछ देर बाद एक 26-27 साल की बेहद खूबसूरत युवती ने दरवाजा खोला. उस वक्त रात के 10 बजे थे. उस युवती के लंबे खुले बालों से टपकती पानी की बूंदों को देख कर लग रहा था कि वह अभीअभी नहा कर निकली है. इतनी रात को उस के नहाने की बात आसानी से टीआई शर्मा के गले नहीं उतर रही थी. परंतु टीआई कमलेश शर्मा का टारगेट वह युवती नहीं बल्कि शफीउल्लाह था. उन्होंने उस युवती से शफीउल्लाह के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि बाबा अभी पूजा पर बैठ चुके हैं.

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यह सुन कर टीआई ने कहा कि बाबा की पूजा हम थाने में करवा देंगे. फिर वह कमरे में घुस गए. पूजा का ढोंग कर रहे तांत्रिक शफीउल्लाह को उन्होंने गिरफ्तार कर लिया और इस की सूचना डीआईजी हरिनारायण चारी को दे दी. उन के निर्देश पर उन्होंने तांत्रिक के खिलाफ काररवाई शुरू की. टीआई कमलेश शर्मा ने थाने ले जा कर शफीउल्लाह से पूछताछ की तो पहले तो वह खुद को नेक बंदा साबित करने पर
तुला रहा. लेकिन पुलिस ने सख्ती की तो उस ने तंत्रमंत्र के नाम पर तबस्सुम को धोखे में रख कर उस के साथ बलात्कार करने की बात स्वीकार कर ली.उस ने बताया कि वह आज फिर यही काम एक दूसरी महिला के साथ करने वाला था. वह अपने मकसद में सफल हो पाता उस से पहले वह पुलिस के हत्थे चढ़ गया.
तथाकथित तांत्रिक शफीउल्लाह से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने शफीउल्लाह का मैडिकल करवा कर उसे अदालत में पेश किया जहां से उसे जेल भेज दिया गया. द्य
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित, कथा में तबस्सुम और नफीस अहमद परिवर्तित नाम हैं.

हिस्ट्रीशीटर डौक्टर…

कन्या हो तो उसे कोख में ही मार दिया जाए. डा. इम्तियाज और उस के साथी यही सब कर रहे थे. लेकिन अब…
आमतौर पर आप ने कुख्यात अपराधियों के हिस्ट्रीशीटर होने की बात सुनी और पढ़ी
होगी. पुलिस और कानून की भाषा में हिस्ट्रीशीटर वे होते हैं, जो बारबार अपराध कर आम जनता के लिए खतरा बन जाते हैं. ऐसे अपराधी की उस के रिहायशी इलाके वाले पुलिस थाने में हिस्ट्रीशीट खोल दी जाती है. इस में उस शख्स के अपराधों का पूरा ब्यौरा होता है.  शांति व्यवस्था कायम करनी हो या चुनाव वगैरह शांति से निपटाने हों, तो सब से पहले उस इलाके की पुलिस हिस्ट्रीशीटर को पाबंद करती है. यहां तक कोई भी बड़ा अपराध होने पर सब से पहले हिस्ट्रीशीटर को ही तलब कर पूछताछ की जाती है, ताकि अपराधियों तक पहुंचा जा सके. हिस्ट्रीशीटर को संबंधित पुलिस थाने में निश्चित समयावधि में हाजिरी भी देनी होती है.
लेकिन कोई अच्छा भला डाक्टर भी हिस्ट्रीशीटर हो सकता है, यह बात कल्पना से परे है. कोई कल्पना या यकीन करे न करे पर इस कहानी का अहम किरदार डा. इम्तियाज अली रंगरेज संभवत: देश का पहला हिस्ट्रीशीटर डाक्टर है. इस डाक्टर पर आरोप है कि उस ने हजारों बेटियों को महिलाओं को कोख में ही मार डाला है.
राजस्थान के जोधपुर के रहने वाले डा. इम्तियाज ने सन 2004 में एमबीबीएस की डिग्री हासिल की थी. इस के बाद वह राजस्थान में सरकारी अस्पताल में नौकरी करने लगा. नौकरी करते हुए 2 साल में वह 4 बार भ्रूण परीक्षण करते हुए पकड़ा गया.

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सब से पहले डा. इम्तियाज को राज्य की पीसीपीएनडीटी टीम ने 7 अक्तूबर, 2016 को जोधुपर के शंकर नगर में एक महिला के गर्भ में पल रहे भ्रूण का लिंग परीक्षण करते हुए गिरफ्तार किया था. उस के साथ एम्स जोधपुर का रेडियोलोजिस्ट भी पकड़ा गया था. दबिश देने के दौरान दोनों आरोपियों ने सोनोग्राफी मशीन पहली मंजिल से नीचे फेंक दी थी. बाद में यह मशीन जब्त कर ली गई. डा.
इम्तियाज के बारे में जानकारी मिलने पर पीसीपीएनडीटी टीम ने बाड़मेर की एक गर्भवती महिला को फर्जी ग्राहक बना कर डा. इम्तियाज के पास भेजा था. डा. इम्तियाज ने उस महिला से भ्रूण लिंग परीक्षण के लिए 23 हजार रुपए लिए थे.
इन में 18 हजार डा. के और 5 हजार रुपए रेडियोलौजिस्ट के थे. टीम ने यह रकम बरामद कर ली थी. जांच में सामने आया कि डा. इम्तियाज बेटी नहीं चाहने वाली महिलाओं का गर्भपात कराता था. गर्भपात बालेसर के सरकारी अस्पताल में कराया जाता था.
उस समय डा. इम्तियाज बालेसर में ब्लौक मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी के पद पर कार्यरत था. यह उस की चौथी पोस्टिंग थी. इस मामले में डा. इम्तियाज को जेल भेज दिया गया था. लेकिन जल्दी ही वह जमानत पर बाहर आ गया.
इस के बाद वह 21 मई, 2017 को जोधपुर में निजी अस्पताल के संचालक हनुमान ज्याणी के घर पर भ्रूण परीक्षण करते हुए पकड़ा गया. हनुमान ज्याणी इस से पहले ही पकड़ा जा चुका था
डा. इम्तियाज तीसरी बार 5 जनवरी, 2018 को उस समय पकड़ा गया, जब उस के दलालों ने एक गर्भवती महिला को भ्रूण परीक्षण के लिए पहले झुंझुनूं, फिर सीकर इस के बाद नागौर और बाद में जोधपुर बुलाया. जोधपुर में वह चलती गाड़ी में भ्रूण परीक्षण करते हुए पकड़ा गया. उस से जबत की गई पोर्टेबल सोनोग्राफी मशीन नेपाल से खरीद कर लाई गई थी.
झुंझुनूं के कलेक्टर के सहयोग से पीसीपीएनडीटी (प्री कंसेप्शन ऐंड प्री नेटल डायग्नोस्टिक टेक्नीक्स ऐक्ट) के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक रघुवीर सिंह के नेतृत्व में की गई इस काररवाई में हनुमान ज्याणी और एक दलाल भाग निकले. उस समय डा. इम्तियाज ने पूछताछ में पीसीपीएनडीटी की टीम को बताया कि विभिन्न जिलों में उस के 50 से अधिक दलाल हैं. इन दलालों के माध्यम से वह अब तक 5 हजार से ज्यादा भ्रूण परीक्षण कर चुका है.

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चौथी बार वह 9 सितंबर, 2018 को जोधपुर में ही महामंदिर स्थित एक मकान में गर्भवती महिला का भ्रूण परीक्षण करते हुए पकड़ा गया. राज्य पीसीपीएनडीटी ने अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक शिल्पा चौधरी के निर्देशन में की गई इस काररवाई में संविदा पर कार्यरत लैब तकनीशियन फतेह किशन शर्मा को भी गिरफ्तार किया.
इस दौरान एक अवैध पोर्टेबल सोनोग्राफी मशीन भी बरामद की गई. काररवाई के दौरान डा. इम्तियाज का साथी जोधपुर के निजी हौस्पिटल का संचालक हनुमान ज्याणी फरार हो गया.
डा. इम्तियाज ने भ्रूण परीक्षण और बेटियों को कोख में मारने का गैरकानूनी काम अपने पिता डा. मोहम्मद नियाज से सीखा. डा. इम्तियाज के पिता नियाज रंगरेज भी डाक्टर हैं. उन का नागौर जिले के मकरना शहर में निजी अस्पताल है. करीब 72 साल के डा. नियाज भी सन 2012, 2014 और 2016 में लिंग परीक्षण करते हुए पकड़े जा चुके हैं.
पीसीपीएनडीटी की टीम ने अगस्त 2016 में नागौर जिले के मकराना शहर में डा. नियाज और नर्स रोजा को भ्रूण लिंग जांच करते हुए रंगेहाथ पकड़ा था. उस समय डा. नियाज ने टीम के एक सदस्य को काट भी लिया था. इस संबंध में स्थानीय पुलिस थाने में अलग से मामला दर्ज कराया गया.
भ्रूण परीक्षण के लिए नर्स रोजा के माध्यम से बोगस गर्भवती महिला ने 30 हजार रुपए में सौदा तय किया था. डा. नियाज ने महिला के गर्भ की जांच कर लड़की बताई थी. इस पर गर्भवती की सहयोगी महिला ने कहा कि हमें लड़की नहीं चाहिए, तो डा. नियाज ने 7 माह की गर्भवती महिला से इस काम के लिए 30 हजार रुपए और मांगे थे.
इस से पहले डा. नियाज को जब भ्रूण परीक्षण करते हुए पकड़ा गया था, तो उन की सोनोग्राफी मशीनें सील कर दी गई थीं. लेकिन उस ने सील मशीनों को विशेषज्ञ की मदद से जोड़ लिया था और फिर गैरकानूनी तरीके से लिंग परीक्षण का काम शुरू कर दिया था.
कहा जाता है कि डा. इम्तियाज ने सरकारी नौकरी में आने से कई साल पहले ही लिंग परीक्षण का अवैध काम शुरू कर दिया था. 2008 से वह पेशेवर के रूप में यह अवैध काम करने लगा था.
डाक्टर पिता और पुत्र भ्रूण परीक्षण कर गर्भपात करने का पैकेज लेने के लिए कुख्यात थे. ये किसी महिला के गर्भ में पल रहे भ्रूण का लिंग परीक्षण करने के लिए 25 से 35 हजार रुपए लेते थे. बाद में इतनी ही राशि गर्भपात के लिए वसूलते थे.

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लिंग परीक्षण करते हुए पकड़े जाने के बाद डा. इम्तियाज को जेल भी भेजा गया, लेकिन जमानत पर जेल से बाहर आ कर वह फिर इसी घिनौने धंधे में लग जाता था. सरकारी नौकरी में रहते हुए 2016 में डा. इम्तियाज गैरकानूनी रूप से भ्रूण परीक्षण के मामले में लिप्त पाया गया तो उसे गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया गया था.
राजस्थान के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग ने उसे निलंबित कर दिया था. तब से वह निलंबित चल रहा है. इस के बाद भी वह 3 बार लिंग परीक्षण करते हुए पकड़ा गया, लेकिन सरकार ने उसे नौकरी से बर्खास्त नहीं किया. डा. इम्तियाज के पास अभी तक डाक्टरी का तमगा है. विशेषज्ञों का कहना है कि डाक्टरी की डिग्री छीने जाने के संबंध में स्पष्ट प्रावधान है कि अदालत से सजा होने के बाद ही मेडिकल कौंसिल औफ इंडिया की ओर से डिग्री छीनी जाती है.
सीनियर आईपीएस औफिसर डा. अमनदीप सिंह कपूर की पहल पर डा. इम्तियाज को हिस्ट्रीशीटर घोषित किया गया. डा. कपूर जोधपुर में पुलिस उपायुक्त (पूर्व) के पद पर तैनात हैं. डीसीपी अमनदीप कपूर के पास भी एमबीबीएस की डिग्री है.
अमनदीप कपूर को पता चला कि डा. इम्तियाज लिंग जांच कर के अवैध रूप से गर्भपात करवाने जैसे घिनौने काम में लगा है. वह 4 बार गिरफ्तार हो चुका है. उस के खिलाफ अदालत में कई मामले विचाराधीन हैं, फिर भी वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है.
डा. इम्तियाज की आपराधिक गतिविधियों पर नियंत्रण और आमजन की सुरक्षा के लिए डीसीपी डा. कपूर ने उस की हिस्ट्रीशीट खोलने के निर्देश दिए. इस के बाद दिसंबर 2018 में पुलिस ने 41 साल के डा. इम्तियाज को जोधपुर शहर के नागौरी गेट थाने का हिस्ट्रीशीटर घोषित कर दिया.
कहा जाता है कि डा. इम्तियाज के पिता डा. नियाज का मकराना में अस्पताल और जोधपुर सहित कई शहरों में जमीनें व मकान हैं. दोनों पितापुत्र की चलअचल संपत्ति करीब सौ करोड़ रुपए की बताई जाती है. यह सारी संपत्ति अवैध तरीके से एकत्र करने का अनुमान है.

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लिंग परीक्षण करने और बेटियों को कोख में मारने वाले डा. इम्तियाज के मामले में राज्य मानवाधिकार आयोग ने संज्ञान ले कर राजस्थान के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव, राजस्थान मेडिकल काउंसिल और जोधपुर के पुलिस कमिश्नर से तथ्यात्मक रिपोर्ट मांगी है.
आयोग के अध्यक्ष जस्टिस प्रकाश टाटिया ने चिकित्सा विभाग से पूछा है कि सरकारी सेवारत डाक्टरों के खिलाफ दर्ज प्रत्येक विभागीय काररवाई का विवरण और उस से संबंधित प्रगति रिपोर्ट आयोग के सामने पेश करें.
राजस्थान मेडिकल काउंसिल के रजिस्ट्रार को कहा गया है कि इन डाक्टरों के विरुद्ध कोई प्रकरण शिकायत या स्वत: संज्ञान से कोई प्रकरण दर्ज किया गया या नहीं. अगर प्रकरण दर्ज किए गए हैं तो उन में की गई काररवाई की जानकारी दें और अगर प्रकरण दर्ज नहीं किए तो उस के कारण बताएं.
जस्टिस टाटिया ने जोधपुर पुलिस कमिश्नर से डा. इम्तियाज और उस के पिता डा. नियाज रंगरेज के खिलाफ दर्ज सभी फौजदारी प्रकरणों की एफआईआर की प्रतिलिपियां, हिस्ट्रीशीट खोले जाने के लिए पेश किए गए प्रार्थनापत्र और उन पर जारी आदेशों की प्रतिलिपियां मांगी हैं. इस के अलावा किनकिन प्रकरणों में जांच पूरी कर के अदालत में नतीजा पेश किया गया, उस से संबंधित जानकारी भी देने को कहा गया है.
पीसीपीएनडीटी टीम को अंतरराज्यीय लिंग जांच गिरोह के सरगना रवि सिंह को नवंबर, 2018 में पता चला था. झुंझुनू सहित कई जगह की गई काररवाई में इस घिनौने काम में उस की लिप्तता पाई गई थी. रवि सिंह ने शेखावटी अंचल के अलावा राजस्थान के करीब 20 जिलों में जगहजगह दलाल नियुक्त कर रखे थे. रवि की पत्नी सुनीता सिंह भी लिंग जांच के काम से जुड़ी है.

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झुंझुनूं के सिंघाना कस्बे का रहने वाला रवि सिंह पीसीपीएनडीटी के मामलों में 3 बार पहले भी पकड़ा जा चुका था. वह भी जमानत पर छूटने के बाद फिर से इसी काम में लग जाता था.
उस ने अपने एक दर्जन से ज्यादा सहयोगियों को अवैध पोर्टेबल सोनोग्राफी मशीन से भ्रूण लिंग जांच करने का काम भी सिखा दिया था. वह राजस्थान के अलावा हरियाणा, उत्तर प्रदेश, गुजरात और पंजाब के कुछ जिलों में निर्धारित स्थान पर जा कर भ्रूण लिंग परीक्षण भी करता था.
14 अगस्त, 2018 की देर रात झुंझनूं के सोलाना गांव में भ्रूण लिंग परीक्षण के दौरान पीसीपीएनडी टीम ने रवि के 2 सहयोगियों को पकड़ लिया था, लेकिन रवि सिंह अंधेरे का लाभ उठा कर भाग निकला था. बाद में रवि सिंह ने अपने रिश्तेदारों व सहयोगियों के माध्यम से मुखबिर से संपर्क कर उसे लालच भी दिया था, लेकिन वह इस में कामयाब नहीं हो सका था.
चौथी बार पकडे़ जाने पर रवि सिंह ने पूछताछ में पुलिस को बताया कि शेखावटी इलाके में अवैध सोनाग्राफी मशीनों से लिंग जांच करने वाले अधिकतर लोग उस के शागिर्द हैं. उन्हें मशीनें भी रवि ने ही दिलवाई थीं.
उसे इस का एक फायदा यह हुआ कि उसे लिंग जांच के लिए कहीं भी मशीन ले कर नहीं जाना पड़ता था. जिस इलाके की गर्भवती महिला जांच करवाना चाहती, रवि सिंह उसी क्षेत्र के अपने शार्गिद की मशीन से जांच कर देता था.
रवि सिंह ने लिंग परीक्षण का काम दिल्ली के एक डाक्टर से सीखा था. इस के बाद उस ने खुद की मशीन ला कर अवधेश पांडे के साथ यह काम शुरू किया. अवधेश पांडे लिंग जांच के मामले में 3 बार पकड़ा जा चुका है.
बाद में रवि सिंह ने पांडे से अलग हो कर नया नेटवर्क तैयार किया. रवि के नेटवर्क में सरकारी नर्सों सहित 100 से ज्यादा लोग हैं.
पीसीपीएनडीटी टीम ने रिमांड अवधि पूरी होने पर जब उसे जेल ले कर गई तो उस ने कहा कि वह एक-डेढ़ महीने से ज्यादा यहां नहीं रुकेगा, क्योंकि जल्दी ही उस की जमानत हो जाएगी.
राजस्थान के स्वास्थ्य विभाग की पीसीपीएनडीटी टीम ने दिसंबर 2018 के पहले सप्ताह में पंजाब के मलोट शहर से एक सरकारी महिला नर्स सहित 3 महिलाओं को गिरफ्तार किया. इस मामले में भ्रूण लिंग जांच के लिए श्रीगंगानगर की रहने वाली सरकारी नर्स ने 80 हजार रुपए लिए थे.
श्रीगंगानगर में एक महिला दलाल इन के साथ और जुड़ गई. नर्स व महिला दलाल उस गर्भवती को गंगानगर में घुमाने के बाद ट्रेन से पंजाब के मलोट शहर ले गईं. वहां तीसरी महिला दलाल मिली. वे गर्भवती महिला को पंजाब के फिरोजपुर जिले में ले गई, जहां सोनोग्राफी कर लड़की बताई गई.
बाद में गर्भवती के साथ महिला दलाल वापस मलोट पहुंची तो पीसीपीएनडीटी टीम ने तीनों को पकड़ लिया. राजस्थान पीसीपीएनडीटी की पंजाब में यह आठवीं डिकौय काररवाई थी.
उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा में 8 मार्च, 2018 को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर राजस्थान की पीसीपीएनडीटी टीम ने मुन्नीदेवी अल्ट्रासाउंड पर काररवाई कर एक महिला सहित 2 लोगों को गिरफ्तार किया था. इन से एक सोनोग्राफी मशीन भी जब्त की गई थी. इस दौरान सोनोलोजिस्ट भाग गया था.
पीसीपीएनडीटी टीम की काररवाई में ऐसे मामले भी सामने आए, जिन में पता चला कि लिंग जांच परीक्षण के नाम पर गर्भवती महिलाओं को फर्जी मशीनों से जांच कर बेवकूफ भी बनाया जाता है. ऐसा ही एक मामला अक्तूबर 2018 में जयपुर जिले के चौमूं में ओम डेंटल क्लीनिक का सामने आया.

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पीसीपीएनडीटी की टीम ने सूचना पर कथित दंत चिकित्सक मोहनलाल जाट से बात की, तो उस ने लिंग परीक्षण के 30 हजार रुपए मांगे. उस ने गर्भवती को एक जगह बुलाया. कार से मोहनलाल जाट एक दलाल के साथ पहुंचा और गर्भवती को चौमूं में ओम डेंटल क्लीनिक पर ले गया.
वहां मोहनलाल ने गर्भवती को डेंटल चेयर पर लिटा कर मसाला सुखाने वाली मशीन से लिंग परीक्षण का नाटक किया और भ्रूण की जानकारी दे दी. बाद में मोहनलाल और दलाल ओमप्रकाश को गिरफ्तार कर रकम जब्त कर ली गई.
जनवरी 2018 में राजस्थान की पीसीपीएनडीटी टीम ने उत्तर प्रदेश के आगरा में काररवाई कर मैक्स डायग्नोस्टिक एंड पैथोलौजी सेंटर पर फर्जी तरीके से भ्रूण लिंग परीक्षण करने के मामले में सेंटर संचालक अजय उपाध्याय और उस की सहयोगी महिला प्रीति कुलश्रेष्ठ को गिरफ्तार किया.
इन से 2 फीटल डौपलर व एक कंप्यूटर मौनिटर सहित 20 हजार रुपए की रकम बरामद की गई. इस सेंटर पर बच्चों की हृदय की धड़कन की जांच में काम आने वाले फीटल डौपलर से फर्जी तरीके से गर्भवती महिला की जांच की गई और भ्रूण के लिंग की झूठी जानकारी दी गई.
मोबाइल फोन में एक तार लगातार फर्जी तरीके से लिंग परीक्षण करने के मामले में नवंबर 2018 में हरियाणा के महेंद्रगढ़ शहर से एक महिला सहित 2 लोग पकड़े गए.
यह काररवाई राजस्थान की पीसीपीएनडीटी टीम ने की. जिस गर्भवती की फर्जी तरीके से सोनोग्राफी की गई, वह अलवर शहर से गई थी. दलाल सतपाल यादव ने उसे अलवर जिले में बहरोड़ के जखराना गांव बुलाया.
वहां दलाल ने महिला से 40 हजार रुपए लिए और उसे महेंद्रगढ़ ले गया. वहां दलाल भाग गया, बाकी 2 लोग पकड़े गए. दलाल सतपाल यादव 2017 में लिंग परीक्षण के मामले में हरियाणा में पकड़ा जा चुका है.
अप्रैल 2018 में जयपुर जिले के चौमूं शहर के पास मोरीजा गांव में लिंग परीक्षण करते पकड़े गए आरोपियों के पास उपकरण देख कर पीसीपीएनडीटी की टीम भी हैरान रह गई. ये लोग वाशिंग मशीन के पाइप से एलईडी बल्ब जोड़ते और गर्भवती के पेट पर टच कर सामने लगी एलसीडी स्क्रीन पर गर्भ में भ्रूण का वीडियो दिखाते.
इस के बाद वे महिला को गर्भ में लड़की होने की बात बताते और गर्भपात कराने की बात कहते. ये लोग गर्भपात करने के लिए भी तैयार हो जाते थे. यहां से 3 लोग गिरफ्तार किए गए. इन में 10वीं पास सुरेंद्र डाक्टर बन कर गर्भवती की फर्जी जांच करता था. जयपुर के अचरोल में अगस्त 2018 में 2 लोगों को थंब इंप्रेशन मशीन से फर्जी लिंग परीक्षण के नाम पर ठगी करते पकड़ा गया था.
दरअसल, समाज में अभी भी पुरुष प्रधान मानसिकता हावी है. बेटे को वंश बढ़ाने वाला और बेटी को बोझ समझा जाता है. यही कारण है कि लिंग परीक्षण पर सरकारी प्रतिबंध होने के बावजूद लोग बेटे की चाहत में गर्भवती का भ्रूण परीक्षण कराने के रास्ते तलाशते हैं.
इस धंधे में लगे लोग आमजन की इसी सोच का फायदा उठाते हुए अवैध तरीके से लिंग परीक्षण में जुटे हैं. समाज की मानसिकता का फायदा उठा कर कुछ लोगों ने इसे ठगी का धंधा भी बना लिया है. वे फर्जी तरीके से लिंग परीक्षण कर लोगों से ठगी कर रहे हैं.
गर्भ में भ्रूण जांच और कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए 1996 में देश में पीसीपीएनडीटी एक्ट लागू किया गया था. कोख में कत्ल करने की दिशा में काररवाई करते हुए पीसीपीएनडीटी सेल ने जयपुर में देश का पहला थाना खोला था. राजस्थान के इस मौडल को बाद में कई अन्य राज्यों में भी अपनाया है.
जून 2018 तक के आंकड़ों के अनुसार, देशभर में कन्या भ्रूण हत्या से जुड़े मामलों में 449 लोगों को सजा हुई. इन में सब से ज्यादा 149 लोगों को राजस्थान में सजा हुई.

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फरवरी 2016 से 19 दिसंबर, 2018 तक नेशनल हेल्थ मिशन के मिशन डायरेक्टर के पद पर कार्यरत रहे वरिष्ठ आईएएस अधिकारी नवीन जैन के निर्देशन में पीसीपीएनडीटी सेल ने 3 साल के दौरन 100 से ज्यादा डिकौय आपरेशन किए. इन मामलों में करीब 50 डाक्टर भी पकडे़ गए.
इस दौरान पीसीपीएनडीटी सेल की टीम ने राजस्थान के अलावा हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, गुजरात, पंजाब, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में जा कर भी डिकौय औपरेशन किए. आईएएस नवीन जैन का तबादला अब श्रम एवं रोजगार आयुक्त के पद पर हो गया है. अब सीनियर आईएएस डा. समित शर्मा एनएचएम के मिशन डायरेक्टर का कार्यभार संभाल रहे हैं.
राजस्थान सरकार ने बेटियों को बचाने के लिए भ्रूण लिंग परीक्षण पर अंकुश लगाने के लिए मुखबिर योजना भी चलाई है. इस के तहत सफल डिकौय औपरेशन करवाने पर ढाई लाख रुपए तक प्रोत्साहन राशि देने का प्रावधान है.
राजस्थान में 2011 की जनगणना के अनुसार 1000 लड़कों पर 888 लड़कियां थीं. पीसीपीएनडीटी सेल की ओर से लगातार की गई काररवाई से लिंग परीक्षण की रोकथाम में मदद मिली है और बेटियों को कोख में मारने का सिलसिला कम हुआ है. इस का परिणाम है कि 2017-18 में सैक्स रेशो बढ़ कर 938 पहुंच गया है.

फरेबी चाहत…

लेखक- विजय सोनी

घटना 31 दिसंबर, 2018 की है. 31 दिसंबर होने के कारण इंदौर के शाजापुर क्षेत्र में आधी रात
के समय लोग शराब के नशे में डूब कर नए साल का स्वागत करने में जुटे थे. काशीनगर क्षेत्र के एक मकान से पतिपत्नी के झगड़े की तेज आवाज आ रही थी. वह आवाज सुन कर पड़ोसी डिस्टर्ब होने लगे तो एक पड़ोसी श्याम वर्मा ने कोतवाली में फोन कर झगड़े की सूचना दे दी.

जिस घर से झगड़े की तेज आवाज आ रही थी, वह मकान बलाई महासभा युवा ब्रिगेड के जिला अध्यक्ष और प्रौपर्टी डीलर रहे रमेशचंद्र उर्फ मोनू का था. उस की पत्नी मंजू भी भाजपा की सक्रिय कार्यकत्री थी.
नए साल में लड़ाईझगड़े की संभावना को देखते हुए पुलिस भी अलर्ट थी, इसलिए झगड़े की खबर सुनते ही कुछ ही देर में शाजापुर कोतवाली की मोबाइल वैन मौके पर पहुंच गई. लेकिन यह मामला पतिपत्नी के पारिवारिक झगडे़ का था तथा पतिपत्नी दोनों ही सम्मानित व जानेमाने लोग थे. इसलिए पुलिस दोनों को समझाबुझा कर थाने लौट गई.

करोड़ोें की खूबसूरती..

पुलिस के जाने के बाद पतिपत्नी ने दरवाजा बंद कर लिया, जिस के बाद मकान से झगड़े की आवाज आनी बंद हो गई. फिर पड़ोसी भी अपनेअपने घरों में चले गए. लेकिन 45 मिनट बाद मोनू लहूलुहान अपने घर से निकला और पड़ोस में रहने वाले एक परिचित को ले कर शाजापुर के जिला अस्पताल पहुंचा.
मोनू के पेट से खून बह रहा था. पूछने पर मोनू ने डाक्टर को बताया कि ज्यादा नशे में होने की वजह से वह गिर गया और चोट लग गई. डाक्टर ने रमेश उर्फ मोनू को अस्पताल में भरती कर लिया. परंतु सुबह रमेश उर्फ मोनू की हालत और बिगड़ जाने के कारण उसे इंदौर के एमवाईएच अस्पताल रेफर कर दिया. उस समय मोनू के पास इतना पैसा भी नहीं था कि उसे इलाज के लिए इंदौर ले जाया जा सके, इसलिए मोनू के दोस्तों ने आपस में चंदा जमा कर कुछ रकम जुटाई और वह मोनू को इंदौर ले गए.

कानून के टप्पेबाजी…

बलाई महासभा के युवा ब्रिगेड के बड़े नेता के घायल हो जाने की बात सुन कर समाज के लोग बड़ी संख्या में अस्पताल पहुंचने लगे. रमेश के परिवार वाले भी उस के जल्द ठीक होने की कामना करने लगे. परंतु होनी को कुछ और ही मंजूर था. 6 जनवरी की सुबह मोनू की मौत हो गई. रमेश की मौत से मामला एकदम बदल गया.
5 दिन से अस्पताल में मौजूद उस के पिता गंगाराम बेटे की मौत की खबर सुन कर टूट गए. वह रोते हुए बेटे की मौत का आरोप अपनी बहू मंजू पर लगाने लगे. उन का यह आरोप सुन कर अस्पताल के एमएस ने संयोगितागंज थाने में खबर कर दी. सूचना पा कर थाना पुलिस अस्पताल पहुंच गई. पुलिस ने जरूरी काररवाई पूरी कर के रमेश का शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

रेव पार्टी: डांस, ड्रग्स और सैक्स का तड़का

प्रारंभिक पूछताछ में रमेश के पिता गंगाराम व बुआ गीता बलाई ने पुलिस को बताया कि रमेश ने खुद उन्हें बताया था कि उसे उस की पत्नी मंजू ने चाकू मारा है. लेकिन समाज में बदनामी के डर से वह गिर कर चोट लगने की बात कहता रहा.
पुलिस ने उन से मंजू के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि मंजू तो घटना के बाद से एक बार भी अपने पति को देखने अस्पताल नहीं आई. वह पति को देखने अस्पताल क्यों नहीं आई, यह बात पुलिस की समझ में नहीं आ रही थी. इस से पुलिस का मंजू पर शक गहरा गया.

मुन्ना बजरंगी हत्याकांड : जेल में सब हो सकता है

संयोगितागंज थाना पुलिस ने अपने यहां जीरो एफआईआर दर्ज कर के डायरी शाजापुर कोतवाली भेज दी. यहां रमेश की हत्या किए जाने की बात सामने आने पर बलाई समाज के लोगों में भारी आक्रोश फैल गया.
समाज के लोग बड़ी संख्या में एकत्र हो कर एसपी शैलेंद्र चौहान से मिले और रमेश की पत्नी मंजू को गिरफ्तार करने की मांग करने लगे. जिस पर एसपी ने बलाई समाज के लोगों को आश्वासन दिया कि जल्द ही आरोपी को गिरफ्तार कर लिया जाएगा. तब कहीं जा कर रमेश का अंतिम संस्कार किया गया.
रमेश की चिता की आग शांत होने के बाद आरोपी की गिरफ्तारी को ले कर लोगों में गुस्से की आग फिर भड़क उठी. चूंकि मंजू भी भाजपा नेत्री थी, इसलिए पुलिस भी जल्दबाजी में कोई ऐसा कदम नहीं उठाना चाहती थी, जिस से मामला उलटा पड़ जाए.
कोतवाली इंसपेक्टर के.एल. दांगी बड़ी ही सावधानी से एकएक कदम बढ़ा रहे थे. वरिष्ठ अधिकारियों से मशविरा करने के बाद उन्होंने मृतक रमेश की पत्नी मंजू को हिरासत में ले लिया. जब उस से रमेश की हत्या के संबंध में पूछताछ की गई तो उस ने रमेश चंद्र की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

शाजापुर के मध्यमवर्गीय बलाई परिवार में जन्मे रमेशचंद्र उर्फ मोनू की मां का देहांत उस समय हो गया था, जब रमेश बाल्यावस्था में था. मां के बिना रमेश गलत संगत में पड़ गया, जिस से मिली पिता की डांट से नाराज हो कर वह सन 1995 में घर से भाग कर गुजरात के भावनगर चला गया और वहां के एक होटल में नौकरी करने लगा.

गैंगस्टरों का खूनी खेल

वहां उस की मुलाकात मुंबई के एक जैन व्यापारी से हुई. होटल का काम छोड़ कर वह जैन व्यापारी के साथ चला गया. उसी दौरान उस ने ड्राइविंग सीख ली और जैन व्यापारी की कार चलाने लगा. जैन व्यापारी उन दिनों श्वेतांबर जैन संत सुरेशजी महाराज के भक्त थे और अकसर उन की सेवा करने जाया करते थे. इस दौरान रमेश भी अपने सेठ के साथ रहता था.
संयोग से एक रोज सुरेशजी महाराज ने सेठ से उन के ड्राइवर रमेश को कुछ दिन अपने साथ रखने को ले लिया. सेठजी भला अपने गुरुजी की बात कैसे टाल सकते थे. लिहाजा उन्होंने रमेश को महाराज के हवाले कर दिया. सुरेशजी महाराज के संपर्क में आ कर रमेश ने जैन धर्म को नजदीक से जाना.

राजेश साहनी की खुदकुशी : एटीएस कैंपस में दफन है 

धर्म में उस की रुचि देख कर सुरेशजी महाराज ने उसे दीक्षा दी और उस का नाम तरुणजी महाराज रख दिया. इस तरह रमेश की योग्यता और संयम देख कर उसे स्थानक वासी की पदवी दी गई. जिस के बाद वह देश भर में घूमघूम कर धार्मिक प्रवचन देने लगा.
उस के पिता को जब पता चला कि बेटा संत हो गया है तो वह बहुत खुश हुए. धर्म के मामले में असाधारण योग्यता के चलते रमेश ने समाज में काफी सम्मानित स्थान हासिल कर लिया था.
लेकिन उस की लाइफ काफी एक्सीडेंटल निकली. अचानक ही मालूम नहीं उस के मन को क्या आया कि वह त्याग का मार्ग छोड़ कर वापस सांसारिक दुनिया में आ गया. वह अपने घर लौट आया. बेटे के वापस घर लौटने पर पिता खुश थे.

प्रेमिका और पत्नी के बीच मौत का खेल

शाजापुर आ कर रमेश ने प्रौपर्टी का काम शुरू कर दिया. वह ज्ञानी और धार्मिक प्रवृत्ति का था और सत्य के मार्ग पर चलने वाला भी, इसलिए लोग उस पर आसानी से भरोसा कर लेते थे. देखते ही देखते रमेश का बिजनैस चल निकला, जिस से कुछ ही समय में उस की गिनती समाज और शहर के संपन्न लोगों में होने लगी.
उसी दौरान शहर के एक थाने में पदस्थ सजातीय पुलिसकर्मी की नजर रमेश पर पड़ी. वह रमेश के साथ अपनी बेटी मंजू की शादी करना चाहता था. उस पुलिसकर्मी ने इस बारे में रमेश के पिता से बात की. लड़की सुंदर थी जो रमेश को भी पसंद थी. लिहाजा दोनों तरफ से बातचीत हो जाने के बाद रमेशचंद्र और मंजू की शादी हो गई.

दिल का मामला या कोई बड़ी साजिश

मंजू खूबसूरत तो थी ही, साथ ही पढ़ीलिखी और समझदार भी थी. उन की गृहस्थी हंसीखुशी से चलती रही. इसी बीच मंजू 2 बेटों की मां बन गई. जब रमेश ने बलाई समाज की राजनीति में दखल देना शुरू किया तो अपने दोनों बेटों के बड़े हो जाने के बाद मंजू भी भाजपा से जुड़ कर उभरती नेत्री के रूप में पहचानी जाने लगी.
लेकिन रमेश की जिंदगी ने फिर एक बार करवट ली. समाज की राजनीति में ज्यादा समय देने के कारण उस का अपना बिजनैस एक तरह से ठप हो गया, जिस पर उस ने पहले तो ध्यान नहीं दिया और जब ध्यान दिया तब तक बहुत देर हो चुकी थी.

धीरेधीरे स्थिति बिगड़ती गई, जिस के चलते कभी समाज को शराब जैसी बुराई से दूर रहने का उपदेश देने वाला जैन स्थानक वासी रमेश खुद शराब की गिरफ्त में आ गया. जिस के चलते रमेश की पहचान एक शराबी के रूप में बन गई.
मंजू को यह कतई उम्मीद नहीं थी कि उस का पति शराबी भी हो सकता है. लेकिन अब तो यह बात सड़कों पर भी जाहिर हो चुकी थी. इसलिए खुद की सामाजिक पहचान कायम कर चुकी मंजू के लिए यह बात असहनीय थी. उस ने पति के शराब पीने का विरोध किया तो दोनों में आए दिन झगड़ा होने लगा, जिस की आवाज धीरेधीरे उन के घर के बाहर भी गूंजने लगी.
फिर एक बार यह आवाज बाहर आई तो यह रोज का क्रम बन गया. ऐसे में एक तरफ जहां मंजू का परिवार टूट रहा था तो वहीं दूसरी ओर पार्टी में उस की पकड़ मजबूत होती जा रही थी.
दोनों के अहं टकराने लगे, जिस से रमेश और भी ज्यादा शराब पीने लगा. राजनीति में सक्रिय होने के कारण मंजू देर रात तक घर से बाहर रहती थी. ऐसे में जब कभी रमेश शराब पी कर पत्नी के घर वापस आने से पहले लौट आता तो पत्नी के देर से वापस आने पर उस पर उलटेसीधे आरोप लगाकर उस से झगड़ना शुरू कर देता.

प्रेमिका से शादी के लिए मां बाप से खूनी दुश्मनी

अब मंजू को अपना राजनैतिक भविष्य स्वर्णिम दिखाई देने लगा था. उसे दूर तक जाने का रास्ता साफ दिख रहा था, इसलिए उस का वापस लौटना भी संभव नहीं था. पति के विरोध को दरकिनार कर वह राजनीति में और ज्यादा सक्रिय हो गई. हाल ही में संपन्न हुए प्रदेश के विधानसभा चुनावों में मंजू ने पार्टी के हित में दिनरात मेहनत की.
जाहिर है राजनीति में शामिल कई महिलाओं के अच्छेबुरे किस्से अकसर चर्चा में बने रहते हैं, इसलिए रमेश भी पत्नी पर इसी तरह के आरोप लगाने लगा. वह उस के राजनीति में सक्रिय रहने पर ऐतराज करता था.
इस से दोनों के बीच विवाद इतना बढ़ गया कि वे एक ही छत के नीचे अलगअलग कमरों में रहने लगे. इस से दिन में तो शांति रहती लेकिन रात को रमेश के शराब पी कर आने पर सारी शांति कलह में बदल जाती थी. दोनों में रोजरोज रात में अकसर विवाद होने लगा.

11 दूल्हों को लूटने वाली दुल्हन

31 दिसंबर, 2018 को रात 11 बजे के करीब रमेश ने शराब के नशे में आ कर घर का दरवाजा खटखटाया तो मंजू ने काफी देर बाद दरवाजा खोला. इस से रमेश को शक हो गया कि मंजू तो यह सोच कर बैठी होगी कि आज साल का आखिरी जश्न होने के कारण मैं रात भर घर वापस नहीं लौटूंगा, इसलिए उस ने किसी और के साथ पार्टी करने की योजना बना ली होगी. मंजू के देर से दरवाजा खोलने पर रमेश को शक हो गया कि मंजू के साथ घर में कोई और है.
दरवाजा खोलते ही वह पत्नी पर उलटेसीधे आरोप लगा कर मारपीट करने लगा. इस से विवाद इतना बढ़ गया कि उस का शोर पड़ोसियों के कानों तक पहुंच गया. उसी समय पड़ोसी श्याम वर्मा ने पुलिस को फोन कर दिया. पुलिस ने आ कर दोनों का मामला सुलझा दिया और वापस लौट गई.
लेकिन पुलिस के जाने के बाद एक बार फिर दोनों में विवाद गहरा गया और इस दौरान मंजू ने मोनू की जेब में हमेशा रखा रहने वाला खटके वाला चाकू निकाल कर उस के पेट में घोंप दिया. चाकू काफी गहरा जा घुसा जिस से वह गंभीर रूप से घायल हो गया. लेकिन शराब के नशे में उसे घाव की गंभीरता का अहसास नहीं हुआ इसलिए वह अपने कमरे में जा कर लेट गया.

अल्लाह के नाम पर बेटी की कुर्बानी

कुछ देर बाद रमेश के पेट में दर्द बढ़ा तो पड़ोस में रहने वाले अपने परिचित के साथ वह अस्पताल गया, जहां से सुबह उसे इंदौर भेज दिया गया. लेकिन वहां भी इलाज के दौरान 6 जनवरी को उस की मौत हो गई.
थानाप्रभारी के.एल. दांगी ने मंजू से पूछताछ के बाद हत्या में प्रयुक्त चाकू भी बरामद कर लिया. इस के बाद उसे गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. द्य
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

गुड़गांव का क्लब डांसर मर्डर केस

इसे कर हाथ तापते हुए सर्दी से बचाव का जतन कर रहे थे.
खुशबू चौक के पास ही सड़क किनारे एक कार खड़ी थी. यह कार कुछ देर पहले ही वहां आई थी. कार में 2 युवक और 2 युवतियां सवार थीं. ये लोग कुछ देर तक कार में बैठे हुए आपस में बात करते रहे.
कुछ देर बाद कार से एक युवक बाहर निकला. उस ने इशारे से कार में सवार एक युवती को बाहर बुलाया. परेशान सी 24-25 साल की वह युवती कार से बाहर निकल आई तो युवक ने उस से कहा, ‘‘प्रियंका, अदालत में बयान बदल कर अपना केस वापस ले लो.’’

‘‘देखो संदीप, तुम ने मेरे साथ धोखा किया है. मैं तुम्हें अब माफ नहीं कर सकती.’’ प्रियंका बोली. उस के सामने खड़ा युवक संदीप था.
प्रियंका की बात सुन कर संदीप को गुस्सा आ गया. वह प्रियंका का हाथ पकड़ कर झिंझोड़ते हुए बोला, ‘‘प्रियंका, तुम समझती क्यों नहीं हो. तुम्हारे केस की वजह से मेरी जिंदगी खराब हो रही है. मेरा परिवार टूट रहा है.’’
संदीप के तेवर देख कर प्रियंका भी गुस्से में बोली, ‘‘तुम ने यह बात मेरी जिंदगी बरबाद करने से पहले क्यों नहीं सोची थी.’’

नोटिस का जवाब खून से

फिर आंखें तरेर कर प्रियंका ने कहा, ‘‘संदीप, तुम लगातार मेरा शरीर नोचते रहे. तुम ने मुझे कुंवारी मां बना दिया, जिस से मैं आज समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं रही. अब तुम मुझ पर केस वापस लेने का दबाव बना रहे हो. तुम भी कान खोल कर अच्छी तरह सुन लो, मैं केस हरगिज वापस नहीं लूंगी और तुम्हें तुम्हारे कारनामों की सजा दिलवा कर रहूंगी.’’

प्रियंका की बातें सुन कर संदीप का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया. उस ने प्रियंका से कहा, ‘‘आखिरी बार सोच लो, यह तुम्हारे लिए ठीक नहीं होगा.’’
‘‘अब ठीक होने को बचा ही क्या है. तुम तो पहले ही मेरी जिंदगी खराब कर चुके हो.’’ तमतमाई प्रियंका ने कहा, ‘‘तुम और क्या कर सकते हो, ज्यादा से ज्यादा मेरी जान ले लोगे. इस से ज्यादा तुम कर भी नहीं सकते.’’
‘‘हां, अगर तुम नहीं मानी तो मैं तुम्हारी जान ले लूंगा.’’ कहते हुए संदीप ने अपनी जेब से पिस्टल निकाली और प्रियंका के ऊपर कई गोलियां दाग दीं. गोलियां प्रियंका की गरदन, पेट और हाथों में लगीं.
गोलियों की आवाज सुन कर कार में बैठी युवती और दूसरा युवक बाहर निकल आए. युवती ने प्रियंका को संभाला, उस के बदन से खून बह रहा था. वह आखिरी सांसें गिन रही थी.
आसपास अलाव ताप रहे और चाय की चुस्कियां ले रहे लोग गोलियों की आवाज सुन कर कार के पास आने लगे, तो संदीप ने प्रियंका के हाथ से उस का मोबाइल छीना और दूसरे युवक के साथ कार ले कर वहां से भाग गया.

बेटी ने दी बाप के कत्ल की सुपारी

कार से उतरी युवती ने उसी समय प्रियंका की बहन को फोन कर घटना की जानकारी दी. इस के बाद उस ने पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दे दी. कुछ देर बाद ही पुलिस और क्राइम ब्रांच की टीम मौके पर पहुंच गई. पुलिस ने मौके पर मौजूद युवती से पूछताछ की.
युवती ने बताया कि वह प्रियंका की सहेली है. पुलिस सड़क पर तड़प रही प्रियंका को अस्पताल ले गई. अस्पताल में डाक्टरों ने प्रियंका को मृत घोषित कर दिया. उसे 5 गोलियां लगी थीं. पुलिस ने पोस्टमार्टम काररवाई के बाद प्रियंका का शव उस के परिजनों को सौंप दिया.
पुलिस ने प्रियंका की सहेली के बयान लिए. इस के बाद गुड़गांव के डीएलएफ फेज-1 पुलिस थाने में प्रियंका की हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

प्रियंका और संदीप कौन थे. संदीप ने प्रियंका को इस तरह सरेआम चौराहे पर गोलियों से क्यों भून दिया. पुलिस ने इस की जांचपड़ताल शुरू की. प्रियंका के परिवारजनों और सहेली द्वारा पुलिस को दिए गए बयानों के आधार पर जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार है—
हरियाणा के करनाल शहर की रहने वाली प्रियंका कई साल पहले परिवार के साथ गुड़गांव आ गई थी. उस के पिता की सन 2004 में मौत हो गई थी. प्रियंका की करनाल में ही शादी हो गई थी, लेकिन कुछ दिनों बाद ही उस का तलाक हो गया था. तलाक होने पर प्रियंका अपनी मां के पास आ गई.
घर में कमाने वाला कोई नहीं था. 8 बहनों और एक भाई के परिवार में प्रियंका पांचवें नंबर की थी. परिवार का पेट पालने के लिए प्रियंका ने गुड़गांव में नौकरी तलाशनी शुरू की. वह जहां भी नौकरी मांगने जाती, लोग उस से डिग्री मांगते. डिग्री उस के पास थी नहीं.
प्रियंका के पास भले ही पढ़ाई की कोई डिग्री नहीं थी, लेकिन वह नाकनक्श से खूबसूरत थी. इस के साथ वह डांस में भी पारंगत थी. फिल्मी गानों पर जब वह अपनी कमर लचका कर ठुमके लगाती तो देखने वालों के दिलों में छुरियां सी चलने लगतीं. प्रियंका की खूबसूरती लोगों के दिलोदिमाग पर छा जाती थी.
काफी प्रयासों के बाद भी जब उसे कोई अच्छी नौकरी नहीं मिली, तो प्रियंका ने नाचगाने से ही रोजीरोटी कमाने की सोची. गुड़गांव में कई सारे पब और डांस क्लब हैं. इन क्लबों में रात को झिलमिलाती रंगीन रोशनी में डांस की महफिलें सजती हैं. प्रियंका ने कोशिश की तो उसे एक क्लब में डांसर की नौकरी मिल गई.

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नौकरी मिल गई तो प्रियंका के परिवार को भी घर खर्च के लिए एक सहारा मिल गया. प्रियंका अपनी नौकरी से संतुष्ट थी. वह रोजाना शाम को तय समय पर क्लब जाती. मेकअप करने के बाद डांस फ्लोर पर जाने के लिए रंगबिरंगी ड्रैस पहन कर तैयार होती. फिर महफिल सजने पर फिल्मी गानों की धुन पर फ्लोर पर डांस करती.
डांस क्लब और पब में सजने वाली महफिलें रात गहराने के साथ जवान होती जाती हैं. इन महफिलों में आने वाले ज्यादातर ग्राहक शराब के नशे में डांसर की अदाओं और मादकता को निहारते हैं और छूनाछेड़ना भी चाहते हैं.
प्रियंका की मादक अदाएं ग्राहकों को लुभाती थीं. उस की अदाओं पर कई रसिया नोट भी लुटाते थे. प्रियंका के ठुमके लगाने की अदा कई मनचलों और रसिक लोगों को इतनी पसंद आती थी कि वे उस के दीदार करने के लिए रोजाना क्लब में आते थे.
क्लब में आने वाले कई युवा महिला डांसरों को ललचाई नजरों से देखते थे. वे अपनी यौन इच्छाओं की पूर्ति के लिए ऐसी डांसरों को नोटों की झलक दिखा कर आमंत्रण देते थे. लेकिन प्रियंका ऐसी लड़की नहीं थी. वह ऐसे मनचलों को मुसकरा कर पीछे धकेल देती थी. करीब आधी रात बाद महफिल सिमटती तो प्रियंका क्लब से अपने घर जाती थी.

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प्रियंका जवान थी. क्लब में उस के डांस की मादक अदाओं पर सैकड़ों युवा मरते थे. इन में कई ऐसे नौजवान भी थे, जो उस से प्रेम निवेदन करते थे. हालांकि प्रियंका ने कभी ऐसे लोगों को तवज्जो नहीं दी.
आमतौर पर नाचगाने के पेशे को सम्मान की नजर से नहीं देखा जाता. फिर प्रियंका तो क्लब में डांसर थी. अपनी मादक अदाएं दिखा कर डांस करना उस की मजबूरी थी. प्रियंका के इस पेशे से उस के परिवार वाले खुश नहीं थे. लेकिन वह क्या करती. परिवार का पेट तो पालना ही था. उस के पास कोई दूसरा हुनर होता तो शायद उसे क्लब में डांसर की नौकरी नहीं करनी पड़ती.
उसी डांस क्लब में संदीप भी काम करता था. वह वहां बाउंसर था. उस का काम ऐसे ग्राहकों को काबू करना था, जो क्लब में नशे की हालत में गलत हरकतें करते या डांसरों को परेशान करते थे. ऐसे ग्राहकों को संदीप क्लब से बाहर का रास्ता दिखा देता था.

एकदो बार ऐसा हुआ भी, जब किसी ग्राहक ने फ्लोर पर डांस कर रही प्रियंका पर अश्लील फब्तियां कस दीं या उस से छेड़छाड़ करने की कोशिश की तब संदीप ने प्रियंका को बचाया था. 1-2 बार मनचलों ने प्रियंका को आधी रात के समय क्लब से घर जाते वक्त रोकने की कोशिश की थी, तब भी संदीप ने उसे सुरक्षा दी थी.
ऐसे में प्रियंका उसे अपना हमदर्द मानने लगी. यह हमदर्दी कब प्यार में बदल गई, पता ही नहीं चला. संदीप मजबूत कदकाठी का हैंडसम जवान था. वह भी प्रियंका की डांस करने की अदाओं पर फिदा था.
संदीप फरीदाबाद के तिगांव का रहने वाला था और शादीशुदा था. संदीप ने हमदर्द बन कर प्रियंका से नजदीकियां बढ़ानी शुरू कर दीं. प्रियंका को संदीप से सहारा और सुरक्षा मिल रही थी. इस का कारण था कि डांसर के पेशे के कारण प्रियंका को अपने परिवार का पूरा प्यार नहीं मिल रहा था.
उसे संदीप की आंखों में प्यार का ज्वार नजर आया तो वह भी नजदीक आती चली गई. संदीप ने खुद के शादीशुदा होने की बात प्रियंका को नहीं बताई थी. प्रियंका उस पर भरोसा करने लगी. प्यार बढ़ने लगा तो संदीप ने प्रियंका को शादी करने का आश्वासन दिया.

बेवफाई रास न आई

प्रियंका को भी एक सहारे की जरूरत थी. पेशे के हिसाब से भी और शारीरिक जरूरत के हिसाब से भी. इसी प्यार और विश्वास के भरोसे प्रियंका कब उस के आगोश में समा गई, उसे याद नहीं. लिवइन पार्टनरशिप में रहते हुए संदीप समयसमय पर प्रियंका से संबंध बनाता रहा. इस का नतीजा यह हुआ कि प्रियंका गर्भवती हो गई.
गर्भ ठहरने पर प्रियंका ने संदीप पर जल्द शादी करने का दबाव डाला, लेकिन संदीप बारबार उसे टालता रहा. प्रियंका जब भी उस से शादी की बात करती, तो वह जल्दी ही अपने परिवार वालों को मनाने की बात कहता.
संदीप की बारबार की टालमटोल से प्रियंका को शक होने लगा. उसे जब पता चला कि वह शादीशुदा है तो उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. यह पता चलने पर प्रियंका को बड़ा झटका लगा.
सच सामने आने पर प्रियंका ने संदीप से बात की. संदीप फिर उसे झांसा देता रहा. उस ने कहा कि वह पत्नी को तलाक दे कर जल्दी ही उस से शादी कर लेगा. कुछ दिन बीत गए. प्रियंका दुलहन बनने का इंतजार करती रही. इस बीच संदीप उस का शारीरिक शोषण करता रहा.

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बारबार वादा करने के बाद भी संदीप ने जब प्रियंका से शादी करने की कोई पहल नहीं की तो वह समझ गई कि संदीप केवल उस के बदन से खेलना चाहता है. उस से जब पूरी तरह भरोसा टूट गया तो प्रियंका ने सन 2017 में गुड़गांव के सेक्टर-50 स्थित महिला थाने में संदीप के खिलाफ दुष्कर्म का केस दर्ज करा दिया.
जांचपड़ताल के बाद पुलिस ने संदीप को गिरफ्तार कर लिया. कई महीने जेल में रहने के बाद जुलाई 2018 में वह जमानत पर जेल से बाहर आ गया. इस बीच पुलिस ने संदीप के खिलाफ अदालत में चालान पेश कर दिया था.
वहीं इस दौरान प्रियंका ने एक बेटे को जन्म दिया. यह बच्चा अब करीब 9 महीने का है. प्रियंका ने बेटे की देखभाल के लिए एक नौकरानी लगा रखी थी.

संदीप ने जेल से बाहर आने के बाद प्रियंका से दोबारा दोस्ती का हाथ आगे बढ़ाया. दोनों की मुलाकात हुई. वह प्रियंका को क्लब की डांसर से बाहर निकाल कर अपने दिल की रानी बनाने और बच्चे को अपना कर पिता का नाम देने की बात कहने लगा. प्रियंका की गलती यह रही कि वह फिर से संदीप की चिकनीचुपड़ी बातों में आ गई.
इस का नतीजा यह हुआ कि संदीप उस के घर भी आने लगा. वह प्रियंका की मां और बहनों से भी मिलता रहता था. एकदो बार संदीप ने प्रियंका के घर वालों को भी यह विश्वास दिलाया कि उस से गलती हो गई थी, लेकिन अब वह जल्दी ही प्रियंका से शादी कर लेगा.
संदीप की बेवफाई से टूटने के बाद प्रियंका अकेली रह गई थी. संदीप के लगातार आनेजाने और मुलाकातें करने से उन का इश्क दोबारा परवान चढ़ने लगा. वह पुरानी बातों को भूल कर फिर से संदीप की बांहों में झूल गई. दोनों के बीच दोबारा आंतरिक संबंध कायम हो गए. दोनों फिर से साथ रहने लगे.
प्रियंका इस बात से अनजान थी कि संदीप के मन में क्या है. वह तो उसे अपना प्रेमी और जीवनसाथी मानने लगी थी, इसीलिए वह अपना सब कुछ उसे सौंपती रही.

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दूसरी ओर संदीप ने चाल चली. वह प्रियंका से दोबारा दोस्ती का हाथ आगे बढ़ा कर उस का उपयोग अदालत में करना चाहता था. चूंकि प्रियंका ने ही संदीप के खिलाफ दुष्कर्म का केस
पुलिस में दर्ज कराया था, इसलिए अदालत में उस के बयान ही सब से महत्त्वपूर्ण थे. संदीप प्रियंका से बयान बदलवा कर दुष्कर्म के केस से बरी होना चाहता था, इसीलिए वह प्रियंका और उस के परिवार वालों से बयान बदलने के लिए बारबार मिलता रहता था.

17 जनवरी की शाम को प्रियंका अपनी डांसर सहेली के साथ दिल्ली के हौजखास स्थित एक क्लब में गई थी. इस दौरान संदीप ने उसे फोन किया. संदीप ने उस से मिलने की इच्छा जताते हुए गुड़गांव आने को कहा. प्रियंका को फोन करने के बाद संदीप गुड़गांव में उस के घर गया. वहां वह प्रियंका की मां से मिला.
संदीप ने प्रियंका की मां को बताया कि 19 जनवरी को अदालत में दुष्कर्म मामले की पेशी है. उस ने प्रियंका की मां से कहा कि वह प्रियंका को अदालत में बयान बदलने के लिए समझाएं. प्रियंका की मां ने संदीप से कहा कि वह इस बारे में प्रियंका से बात करेगी और उसे समझा देगी. वैसे प्रियंका की मां भी संदीप के पक्ष में गवाही देने को राजी हो गई थी.

इधर संदीप के कहने पर प्रियंका अपनी सहेली के साथ दिल्ली से टैक्सी ले कर गुड़गांव आ गई. प्रियंका सहेली के साथ नाथूपुर स्थित अपने किराए के घर पहुंची तो वहां उसे संदीप मिल गया. संदीप के साथ उस का एक दोस्त भी था. उस दोस्त को प्रियंका नहीं जानती थी. संदीप और उस का दोस्त कार से वहां आए थे. उस समय तक आधी रात हो गई थी. संदीप कुछ देर प्रियंका से इधरउधर की बातें करता रहा.
रात करीब 2 बजे संदीप ने प्रियंका से कहा कि चलो, आसपास घूम कर आते हैं. प्रियंका को रात 2 बजे घूमने जाना कोई अटपटा नहीं लगा. क्योंकि वह रात की जिंदगी से खूब अच्छी तरह परिचित थी. वह खुद भी क्लब से आधी रात बाद ही घर आती थी. वह संदीप के साथ आधी रात बाद से तड़के तक कई बार घूम चुकी थी. इसलिए उस ने संदीप के घूमने चलने की बात कहने पर न तो कोई अचंभा किया और न ही कोई नाराजगी जताई.

प्रियंका के राजी होने पर संदीप ने उस की सहेली को भी साथ चलने को कहा. सहेली को साथ जाने से कोई ऐतराज नहीं था, इसलिए संदीप और उस के दोस्त के साथ प्रियंका और उस की सहेली कार से चल दिए.
वे चारों लोग रात को कार से गुड़गांव की सड़कों पर इधरउधर घूमते रहे. इस दौरान संदीप प्रियंका से दुष्कर्म केस के बारे में बात करता रहा. वह प्रियंका से अगले दिन अदालत की पेशी में बयान बदलने पर जोर दे रहा था. प्रियंका उस की बात सुन रही थी, लेकिन साफतौर पर उस ने उसे कोई जवाब नहीं दिया था.
इस बीच संदीप एक जगह रास्ते में रुका, वहां चारों ने मोमोज खाए. इस के बाद वे कार में सवार हो कर फिर घूमने लगे. कार में संदीप और प्रियंका के बीच अदालत में बयान देने को ले कर ही बातचीत चलती रही. बीचबीच में संदीप के दोस्त ने प्रियंका को समझा कर दबाव बनाने का प्रयास किया, लेकिन प्रियंका कोई फैसला नहीं ले पा रही थी. वह संदीप के लगातार दबाव बनाने से परेशान सी हो गई.

प्रियंका को परेशान देख कर संदीप ने एक बार कार फिर रोकी. इस बार चारों लोगों ने स्नैक्स खाए. कुछ देर बाद वे वहां से कार ले कर चल दिए और फिर सड़कों पर घूमने लगे. रास्ते में संदीप ने जब फिर वही बात दोहराई तो प्रियंका से उस की कहासुनी हो गई.
इस के कुछ देर बाद सुबह करीब 6-सवा 6 बजे वे लोग कार से गुड़गांव में फरीदाबाद रोड पर स्थित खुशबू चौक पर आ गए. खुशबू चौक पर संदीप ने दुष्कर्म केस की बात करते हुए प्रियंका से गालीगलौज की और उसे गोलियां मार दीं.
मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस और क्राइम ब्रांच की टीमों ने संदीप की तलाश में तिगांव गांव स्थित उस के घर और कई संभावित जगहों पर छापेमारी की, लेकिन उस का पता नहीं चला.
प्रियंका की हत्या के करीब 16-17 घंटे बाद उस की बहन को वाट्सऐप काल कर धमकाया गया. प्रियंका की बहन का आरोप है कि संदीप ने अपने दोस्त के जरिए उसे धमका कर हत्या के मामले में मुंह नहीं खोलने की नसीहत दी. प्रियंका के परिवार ने पुलिस को इस की जानकारी दी. इस के बाद भी धमकी भरे मैसेज भेजे गए.
कथा लिखे जाने तक संदीप पुलिस की पकड़ से बाहर था. पुलिस उस की और उस के दोस्त की तलाश में जुटी थी.

तांत्रिकों के जाल में दिल्ली

बहरहाल, प्रियंका की जान एक डांसर की तरह घूमते हुए ही चली गई. वह डांस कर के लोगों का मन बहलाती थी और संदीप उस के शरीर से खेल कर अपना मन बहलाता रहा. दुष्कर्म के केस से बरी होने के लिए संदीप ने अपने हाथ प्रियंका के खून से रंग लिए.
संदीप के अपराधों की सजा उसे कानून देगा, लेकिन विश्वास का कत्ल होने से 9 महीने के मासूम की जिंदगी भी संकट में पड़ गई है. इस मासूम को न तो मां का आंचल मिला और न ही बाप का दुलार. इस मासूम को तो बाप का नाम भी नहीं मिला. द्य
—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित. कथा में मृतका का नाम बदला हुआ है.

करोड़ोें की खूबसूरती..

अजमेर विद्युत वितरण निगम की सहायक प्रशासनिक अधिकारी शीतल जैन कई दिनों से परेशान थीं. वह कर्मचारियों के वेतन, कैश वाउचर, चैक आदि का हिसाब रखती थीं. उन की परेशानी का कारण यह था कि कई वाउचर नहीं मिल रहे थे.

इस के अलावा कर्मचारियों की वेतन स्लिप और उन के बैंक खातों में जमा हो रही राशि में भी अंतर आ रहा था. शीतल की नजर में कई ऐसे बैंक खाते भी आए, जिन में निगम की ओर से वेतन जमा कराया जा रहा था. लेकिन उन खाताधारक कर्मचारियों का कोई रिकौर्ड नहीं मिल रहा था. शीतल जैन इस औफिस में कुछ समय पहले ही आई थीं.
कर्मचारियों की हाजिरी देख कर उन का मासिक वेतन बनाना, बिल वाउचर और कैश का हिसाबकिताब रखना उन के लिए कोई नई बात नहीं थी. न ही पहले इस काम में उन से कोई गड़बड़ हुई थी, लेकिन उन्हें यहां का काम समझ नहीं आ रहा था.
वह रोजाना कर्मचारियों का रजिस्टर ले कर बैठतीं और उन के वेतन के हिसाबकिताब देखतीं, उन्हें हर जगह भारी गड़बडि़यां नजर आ रही थीं. कई दिनों की माथापच्ची के बाद भी वह यह नहीं समझ पाईं कि यह गड़बडि़यां किस ने, कैसे और क्यों कीं.

रहस्य में लिपटी विधायक की मौत

अलबत्ता यह बात उन की समझ में आ गई थी कि राजस्थान सरकार की अजमेर बिजली वितरण कंपनी में सब कुछ ठीकठाक नहीं चल रहा, बल्कि बड़े पैमाने पर गड़बड़ी हो रही हैं. यह गड़बड़ी किस स्तर पर हो रही हैं, यह पता जांच के बाद ही चल सकता था.
शीतल ने इस गड़बड़ी की जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को देने का फैसला किया. यह दिसंबर 2018 की बात है.
एक दिन उन्होंने एक सहायक लेखाधिकारी के साथ अजमेर बिजली वितरण निगम यानी अजमेर डिस्काम के प्रबंध निदेशक बी.एम. भामू और डायरैक्टर फाइनैंस एस.एम. माथुर के पास पहुंच कर उन्हें इस बारे में बताया. साथ ही उन्हें कुछ सबूत भी दे दिए. सरकारी रकम में गड़बड़ी के सबूत देख कर भामू साहब और माथुर साहब को यकीन हो गया कि अजमेर डिस्काम में बड़ा घपला हो रहा है.

सपा नेत्री की गहरी चाल

डायरेक्टर फाइनैंस माथुर ने 3 अधिकारियों की जांच कमेटी बनाई. इस कमेटी में मुख्य लेखाधिकारी एम.के. जैन, बी.एल. शर्मा और सहायक लेखाधिकारी मनीष मेठानी को शामिल किया गया. तीनों अधिकारियों ने अजमेर डिस्काम मुख्यालय और हाथीभाटा पावर हाउस कार्यालय में कई दिनों तक जांचपड़ताल की.

प्रारंभिक जांच में पता चला कि अजमेर डिस्काम की सहायक प्रशासनिक अधिकारी अन्नपूर्णा सैन ने फरजी दस्तावेज तैयार कर कर्मचारियों के वेतन और बिलों में 96 लाख 36 हजार रुपए का गबन किया है. विस्तृत औडिट में यह राशि बढ़ने की आशंका जताई गई.
गबन का मामला सामने आने पर 17 दिसंबर, 2018 को अन्नपूर्णा सैन को निलंबित कर दिया गया. निलंबन काल में उस का स्थानांतरण नागौर स्थित मुख्यालय में कर दिया गया. इसी के साथ अजमेर डिस्काम प्रशासन ने अन्नपूर्णा के खिलाफ अजमेर के क्रिश्चियनगंज पुलिस थाने में मुकदमा दर्ज करा दिया.

अरबों की गुड़िया: रेडियो एक्टिव डांसिंग डौल

डिस्काम कर्मचारियों का वेतन सीधे उन के बैंक खातों में जाता है. इस के लिए अजमेर डिस्काम की ओर से हर महीने भारतीय स्टेट बैंक की केसरगंज शाखा में कर्मचारियों के नाम, उन के वेतन बिल की राशि और बैंक खाता संख्या की सूची औनलाइन भेजी जाती है. इसी से कर्मचारियों को तनख्वाह मिलती थी.
प्रारंभिक जांच में सामने आया कि अन्नपूर्णा ने रोकडि़या के पद पर रहते हुए 378 कर्मचारियों के वेतन बिलों में काटछांट की थी. उस ने डिस्काम की ओर से अपने परिवार और रिश्तेदारों के बैंक खातों के नंबर भी बैंक को भेजी जाने वाली सूची में शामिल कर दिए थे.
वह कर्मचारियों की संख्या और तनख्वाह की राशि बढ़ा देती थी. बैंक डिस्काम की वेतन शीट के आधार पर खातों में राशि डाल देती थी. इस तरह फरजीवाड़े से डिस्काम कर्मचारियों के वेतन की रकम अन्नपूर्णा के जानकारों के बैंक खातों में पहुंच रही थी. अन्नपूर्णा इस गबन का खुलासा होने से पहले 14 नवंबर से ही स्वास्थ्य कारणों का हवाला दे कर छुट्टी पर चल रही थी. दरअसल, अन्नपूर्णा को अपना भांडा फूटने का अहसास नवंबर में ही हो गया था, इसलिए वह छुट्टी पर चली गई थी.

आगे बढ़ने से पहले उस अन्नपूर्णा की कहानी जानना जरूरी है, जिस ने अपनी खूबसूरती का जाल बिछा कर अजमेर डिस्काम में सवा 2 करोड़ रुपए से ज्यादा का गबन किया. अन्नपूर्णा की खूबसूरती पर फिदा अधिकारी आंखें मूंदे रहे. किसी अधिकारी ने कभी उस के तैयार किए कागजातों को जांचने की जरूरत महसूस नहीं की.

प्यार का खौफनाक पहलू

अजमेर शहर के चंदवरदाई नगर, रामगंज के रहने वाले वीरेंद्र सैन की बेटी अन्नपूर्णा की शादी अजमेर जिले के किशनगढ़ शहर में साधारण सैलून चलाने वाले युवक से हुई थी. अन्नपूर्णा पढ़ीलिखी थी. वह हाईप्रोफाइल तरीके से जीवन जीना चाहती थी, लेकिन उस के पति के सैलून से इतनी आमदनी नहीं थी कि उस के सपने साकार हो पाते.
फलस्वरूप घर में विवाद होने लगे. इस से उन के दांपत्य जीवन में दरार आने लगी. विवाद बढ़ा तो अन्नपूर्णा ने तलाक लेने का फैसला कर लिया. बाद में पतिपत्नी का तलाक हो गया. अन्नपूर्णा अपने पिता के घर आ गई. उस का भाई गौरव सैन रेलवे में लोको पायलट है.
बाद में अन्नपूर्णा ने परित्यक्ता कोटे से अजमेर बिजली वितरण निगम में 2012 में नौकरी हासिल कर ली. उस की पहली नियुक्ति कौमर्शियल असिस्टेंट के पद पर हुई. उसे अजमेर डिस्काम मुख्यालय में रोकडि़या और संस्थापन शाखा में रोकडि़या का काम सौंपा गया.
अन्नपूर्णा खूबसूरत थी, जब वह नौकरी में आई, तो बिलकुल भोलीभाली नजर आती थी. उस समय वह साड़ी पहनती थी और साधारण बन कर रहती थी.
डिस्काम में सर्विस रिकौर्ड में लगी अन्नपूर्णा की पासपोर्ट साइज फोटो उस की मासूमियत बयां करती थी. लेकिन वह ऐसी थी नहीं. वह महत्त्वाकांक्षी तो थी ही, सपने कैसे पूरे हो सकते हैं, यह बात भी जान गई थी.

डिस्काम की नौकरी करते हुए उसे अपने सपने पूरे होते नजर आने लगे. सपनों को पंख लगे, तो अन्नपूर्णा ने दूसरी शादी कर ली. उस की दूसरी शादी सुमित चौधरी से हुई. सुमित गुड़गांव में प्राइवेट नौकरी करता है. अन्नपूर्णा के एक दिव्यांग बेटा और एक बेटी है.
सरकारी नौकरी करते हुए अपने सपने पूरे करने के लिए उस ने अपनी खूबसूरती का जाल फैलाना शुरू किया. चेहरे से तो वह खूबसूरत थी ही, मेकअप करने के बाद वह मनचलों के दिलों पर भी गाज गिराने की क्षमता रखती थी.
अन्नपूर्णा की खूबसूरती से प्रभावित कई अधिकारी और कर्मचारी उस की ओर आकर्षित होने लगे. वह अधिकारियों और कर्मचारियों से नजदीकियां बढ़ाती रही. इसी के साथ वह अपने सपनों की उड़ान भरने के तरीके भी सोचती रही.
अन्नपूर्णा के कामकाज की जांच करने के लिए सीधे तौर पर 4 सहायक लेखाधिकारी थे और इन सहायक लेखाधिकारियों पर लेखाधिकारी, फिर मुख्य लेखाधिकारी और इन से भी बड़े अफसर थे. लेकिन किसी अधिकारी ने कभी अन्नपूर्णा के कामकाज की जांच करने की जरूरत महसूस नहीं की. अधिकारी उस के बनाए वेतन बिलों, बिल, वाउचर, चैक और रोकड़ के हिसाब पर आंख बंद कर के हस्ताक्षर कर देते थे.

परफेक्ट षड्यंत्र

अन्नपूर्णा ने इसी का फायदा उठाया. जब उस ने देखा कि कोई अधिकारी उस के बनाए कागजातों की जांच नहीं करता, तो उस ने अप्रैल 2017 से अजमेर डिस्काम के साथ गबन का खेल शुरू किया. यह सिलसिला अक्टूबर 2018 तक चलता रहा.
इस बीच, अन्नपूर्णा ने मुंबई में आयोजित प्रतियोगिता में मिसेज राजस्थान-2017 और मिसेज इंडिया मोस्ट एंटरटेनिंग-2017 का खिताब हासिल किया. यह प्रतियोगिता 2017 में 26 से 30 जून तक मुंबई के मड आइलैंड स्थित एक रिसोर्ट में हुई थी. इस प्रतियोगिता के अंतिम दौर में पूरे देश से करीब 200 प्रतियोगी पहुंचे थे. इन में राजस्थान की 5 महिलाएं भी शामिल थीं.
प्रतियोगिता के निर्णायक मंडल में फिल्म अभिनेता राज बब्बर, जयाप्रदा, टीवी कलाकार युवराज, किश्वर, पूनम झंवर व जय मदन आदि शामिल थे. राष्ट्रीय नाई महासभा ने अन्नपूर्णा की इस उपलब्धि को उल्लेखनीय बताया था. अन्नपूर्णा के पिता वीरेंद्र सैन नाई महासभा के वरिष्ठ प्रदेश उपाध्यक्ष हैं.

मिसेज राजस्थान का ताज पहनने के बाद अन्नपूर्णा का अपने औफिस में रुतबा और भी बढ़ गया था. उस की खूबसूरती की चर्चाएं भी होने लगी थीं. इसी खूबसूरती की चमक दिखा कर वह अधिकारियों के नजदीक बनी रही और डिस्काम को चपत लगाती रही. अफसरों की चहेती होने के कारण वह अपनी मनमर्जी से दफ्तर आती और जाती थी. वह छुट्टियां ले कर पति के पास गुड़गांव भी जाती रहती थी.
अनापशनाप पैसा आने लगा, तो वह उसी तरह से खर्च भी करने लगी. उस के फैशन स्टाइल और रहनसहन के तौरतरीके बदल गए. वह अपने पति से मिलने के लिए अजमेर से हवाई जहाज से गुड़गांव जाने लगी. वह मौडलिंग करने के प्रयास में भी जुटी हुई थी. इस के लिए वह हवाई जहाज से मुंबई और दिल्ली भी आतीजाती थी. वह सोशल मीडिया पर भी सक्रिय रहती थी.
गबन की राशि से अन्नपूर्णा ने होंडा सिटी जैसी महंगी गाड़ी खरीदी. उस ने कुछ जमीनों में भी निवेश किया. कहा जाता है कि उस ने अपने पिता द्वारा लिए गए कर्ज की मोटी राशि भी चुकाई. परिवार के विवाह में भी उस ने काफी पैसा खर्च किया.

बेरोजगारी ने बनाया पत्नी और बच्चों का कातिल
अन्नपूर्णा ने कर्मचारी नेता और सेवानिवृत्त लेखाधिकारी रामवतार अग्रवाल के साथ मिल कर अजमेर में स्टीफन चौराहे पर ब्यूटी सैलून भी खोला था. उस ने अग्रवाल को काफी आर्थिक नुकसान भी पहुंचाया. वह अग्रवाल के एटीएम कार्ड से खरीदारी करती थी. आपसी विवादों के कारण बाद में यह सैलून बंद हो गया.
इस के बाद अन्नपूर्णा ने अमित वर्मा नामक युवक के साथ मिल कर अजमेर के पंचशील में ‘द रिपेयर’ नाम से दूसरा सैलून खोला. वह अमित के साथ महंगी कार में घूमती थी. गबन का मामला सामने के बाद जब से अन्नपूर्णा गायब हुई, तब से यह सैलून भी बंद है.

अन्नपूर्णा अजमेर डिस्काम के कर्मचारियों की संस्था राजस्थान राज्य विद्युत वितरण सहकारी बचत एवं साख समिति लिमिटेड की कोषाध्यक्ष बनना चाहती थी. इस के लिए उस ने अगस्त 2018 में सोसायटी के डायरेक्टर पद का चुनाव लड़ा. इस में वह जीत भी गई थी, लेकिन किसी भी पैनल का स्पष्ट बहुमत नहीं आने से वह कोषाध्यक्ष नहीं बन सकी थी.
लगभग डेढ़ हजार कर्मचारियों की इस सोसायटी का सालाना टर्नओवर करीब 60 करोड़ रुपए है. गबन का मामला सामने आने के बाद सोसायटी से जुड़े कर्मचारी इस बात को ले कर संतोष जता रहे हैं कि वे अन्नपूर्णा के कारनामे से बच गए. संभव था कि इस सोसायटी में भी हेराफेरी हो जाती.
अन्नपूर्णा ने इस सोसायटी से 6 लाख रुपए का हाउसिंग लोन भी लिया था. इस में से अभी 4 लाख रुपए से ज्यादा बकाया है. सोसायटी ने अब अन्नपूर्णा के नाम से उस के घर नोटिस भेज कर बकाया राशि जमा कराने को कहा है.

खाकी वरदी वाले डकैत

अजमेर डिस्काम प्रशासन ने विस्तार से जांच कराई, तो अधिकारी हैरान रह गए. जांच में सामने आया कि अन्नपूर्णा ने अप्रैल 2017 से अक्टूबर 2018 तक लगभग 2 करोड़ 28 लाख रुपए का गबन किया था. उस ने गबन की यह राशि करीब 65 संदिग्ध बैंक खातों में जमा करवाई थी.
डिस्काम के अधिकारियों ने बैंक से इन खाताधारकों की जानकारी ली है. इन में अधिकांश खाताधारक राजस्थान के और कुछ मध्य प्रदेश के हैं. पुलिस को इन खातों की सूची भी सौंपी गई है.
जांच में पता चला कि अन्नपूर्णा सैन ने 2017 के अप्रैल महीने में सब से पहले 30 हजार रुपए का गबन किया. उस ने मई में 2 लाख 49 हजार, जून में 11 लाख 35 हजार, जुलाई में 7 लाख 80 हजार, अगस्त में 25 लाख 63 हजार, सितंबर में 33 लाख 46 हजार, नवंबर में 7 लाख 68 हजार और दिसंबर में 9 लाख 21 हजार रुपए की हेराफेरी की.
अक्टूबर 2017 में कोई गड़बड़ी सामने नहीं आई. वर्ष 2018 के जनवरी महीने में उस ने 15 लाख 71 हजार, फरवरी में 9 लाख 43 हजार, मार्च में 12 लाख 41 हजार, अप्रैल में 9 लाख 79 हजार, मई में 6 लाख 11 हजार, जून में 11 लाख 16 हजार, जुलाई में 16 लाख 18 हजार, अगस्त में 6 लाख 70 हजार, सितंबर में 20 लाख 88 हजार और अक्टूबर में 15 लाख 30 हजार रुपए का गबन किया.

खूनी पेंच: आखिर क्यों साधना को गंवानी पड़ी जान

अन्नपूर्णा का तबादला 27 जून, 2018 को पंचशील स्थित अजमेर डिस्काम मुख्यालय से हाथीभाटा में अधीक्षण अभियंता कार्यालय में हो गया था. अधीक्षण अभियंता ने उसे अजमेर शहर सर्किल में रोकडि़या के पद पर लगा दिया. हाथीभाटा में भी उस ने 4 महीने गबन किया. इस बीच डिस्काम ने उसे पदोन्नति दे कर सहायक प्रशासनिक अधिकारी बना दिया.
इधर, पुलिस ने जांचपड़ताल के बाद 13 जनवरी 2019 को अन्नपूर्णा के पिता वीरेंद्र सैन और मामा नरेश कुमार सैन को सह आरोपी मानते हुए गिरफ्तार कर लिया.
मामा नरेश अजमेर में न्यू कालोनी सुभाष नगर का रहने वाला है. अन्नपूर्णा ने अपने पिता के खाते में 52 लाख 78 हजार 447 रुपए फरजी तरीके से जमा कराए थे. जबकि मामा नरेश के खाते में 2 लाख 73 हजार 336 रुपए जमा करवाए गए थे.

यह सारी राशि इन्होंने समयसमय पर पहले ही निकलवा ली थी. पुलिस ने संबंधित बैंकों से इन के खातों में हुए लेनदेन का ब्यौरा हासिल किया है. यह भी जानकारी जुटाई जा रही है कि इन आरोपियों के किसी अन्य बैंक में तो खाते नहीं हैं. अदालत ने दोनों आरोपियों को अगले दिन न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया.
अजमेर डिस्काम प्रशासन की ओर से कराई गई विस्तृत औडिट की रिपोर्ट आने के बाद 17 जनवरी को लेखा विभाग से जुड़े 16 अधिकारियों और कर्मचारियों को चार्जशीट थमा दी गई.
डिस्काम की सचिव प्रशासन नेहा शर्मा ने पंचशील स्थित मुख्यालय में अन्नपूर्णा सैन, वरिष्ठ लेखा अधिकारी जितेंद्र मकवाना, लेखा अधिकारी सुरभि पारीक, अशोक तिवाड़ी, सहायक लेखाधिकारी पल्लवी मीणा, तृप्ति तुनगरिया, नीता कृष्णानी, मिंटू जोधा, कनिष्ठ लेखाकार आशीष शर्मा, चंद्रप्रकाश, कीर्ति वर्मा और हाथीभाटा पावर हाउस में पवन कुमार शर्मा, आर.सी. पारीक, रजनी यादव, स्वाति अग्रवाल और शीतल जैन को आरोपपत्र दिए गए हैं.
गबन को उजागर करने वाली सहायक प्रशासनिक अधिकारी शीतल जैन को भी डिस्काम प्रबंधन ने काम में अनदेखी का दोषी मान कर आरोप पत्र दिया है. प्रबंधन का कहना है कि एक निश्चित अवधि तक शीतल जैन की ओर से जांच नहीं की गई.

बेगम बनने की चाह में

अजमेर डिस्काम के एक कर्मचारी की मौत भी अन्नपूर्णा के गबन के मामले से जुड़ी होने की चर्चा है. इसी साल जनवरी की 13 तारीख को डिस्काम कर्मचारी प्रशांत की लाश आनासागर झील में तैरती मिली थी. उस समय प्रशांत की मौत के कारण स्पष्ट नहीं हुए थे. अन्नपूर्णा के गबन में उस के पिता और मामा की गिरफ्तारी भी इसी दिन हुई थी.
बाद में सामने आया कि अन्नपूर्णा ने प्रशांत के खाते में 3 लाख रुपए ट्रांसफर किए थे. प्रशांत की तनख्वाह 38 हजार 400 रुपए थी. अन्नपूर्णा ने उस के वेतन के शुरू में 3 का अंक और जोड़ दिया था. इस से एक बार प्रशांत के खाते में वेतन के रूप में 3 लाख 38 हजार 400 रुपए आ गए थे.
प्रशांत ने इस बारे में अन्नपूर्णा से एक बार पूछा था, तो उस ने बाद में बताने की कह कर उसे टाल दिया था. बाद में प्रशांत ने वह पैसे दूसरे काम में इस्तेमाल कर लिए. गबन की जांच होने पर प्रशांत के खाते में भी ज्यादा राशि जमा होने की बात सामने आई, तो वह परेशान हो गया.
माना जा रहा है कि अन्नपूर्णा के पिता और मामा की गिरफ्तारी से वह डिप्रेशन में आ गया और उस ने आनासागर झील में कूद कर जान दे दी. हालांकि प्रशांत की मौत के कारणों का खुलासा नहीं हुआ.

पुलिस ने गबन की आरोपी अन्नपूर्णा को गिरफ्तार करने के लिए बारबार कई जगह दबिश दी, लेकिन कथा लिखे जाने तक वह पुलिस की गिरफ्त से बाहर थी. डिस्काम प्रशासन की ओर से अन्नपूर्णा को नौकरी से बर्खास्त करने की कार्रवाई पर विचार किया जा रहा है.
बहरहाल, अन्नपूर्णा को पुलिस देरसवेर गिरफ्तार कर ही लेगी, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि बिजली निगम की सवा 2 करोड़ रुपए से ज्यादा की गबन की राशि की वसूली कैसे होगी? अन्नपूर्णा ने जिन खातों में गबन की राशि जमा कराई, उन में अब बहुत थोड़ाथोड़ा पैसा ही बाकी है. इन खातों से अधिकांश पैसा निकाला जा चुका है. यह पैसा किस ने निकाला, यह पुलिस की जांच का विषय है.
बैंक व वित्तीय मामलों के जानकार विधिवेत्ताओं का कहना है कि डिस्काम कानूनी रूप से गबन की राशि अन्नपूर्णा की व्यक्तिगत नामित संपत्तियों से ही वसूल सकता है. इस के अलावा उस की नौकरी के दौरान कटे जीपीएफ व अन्य जमा स्कीमों से भी रकम वसूली जा सकती है, लेकिन अन्नपूर्णा की नौकरी केवल 6-7 साल की है. इस अवधि में उस की जमा राशियां 10 लाख रुपए से कम होंगी.

बेरहम अस्पतालों का खौफनाक सच

पुलिस अगर गबन की राशि का उपयोग करने वाले उस के रिश्तेदारों व अन्य परिचितों के खिलाफ सख्त काररवाई कर अदालत में मामला पेश करे, तो उन से भी वसूली की काररवाई हो सकती है.
अजमेर डिस्काम प्रबंधन अभी यह जांच कर रहा है कि सिस्टम में लूपहोल कहां रही, जिस से गबन का मौका मिला. साथ ही सैलरी सिस्टम में भी बदलाव किया जा रहा है. अब डीओआईटी द्वारा तैयार सौफ्टवेयर लागू किया जाएगा. डिस्काम में स्पैशल औडिट भी कराई जाएगी.

कानून के टप्पेबाजी…

लेखक- सुरेशचंद्र मिश्र  

पैट्रोलपंप मालिक संजय पाल जब कानपुर के थाना किदवईनगर पहुंचे, तब दोपहर के 12 बज रहे
थे. थानाप्रभारी अनुराग मिश्रा थाने में मौजूद थे और क्षेत्र में बढ़ रही आपराधिक घटनाओं को रोकने के लिए अपने अधीनस्थ अफसरों से विचारविमर्श कर रहे थे.
संजय पाल ने उठतीगिरती सांसों के बीच उन्हें बताया, ‘‘सर, मेरे साथ टप्पेबाजी हो गई. 2 टप्पेबाज युवकों ने मेरी कार से नोटों से भरा बैग पार कर दिया. बैग में 10 लाख 69 हजार रुपए थे, जिसे मैं अपने ड्राइवर अरुण पाल के साथ भारतीय स्टेट बैंक की गौशाला शाखा में जमा करने जा रहा था.’’
संजय पाल की बात सुन कर थानाप्रभारी अनुराग मिश्रा चौंके. उन्होंने तत्काल पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दी. जब यह सूचना पुलिस कंट्रोल रूम से प्रसारित हुई तो पूरा पुलिस महकमा अलर्ट हो गया.

बेवफाई की लाश
पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर जाने के लिए रवाना हो गए. टप्पेबाजी की यह बड़ी वारदात संजय वन वाली मेनरोड पर हुई थी. कुछ ही देर में किदवईनगर थानाप्रभारी अनुराग मिश्रा, नौबस्ता थानाप्रभारी संतोष कुमार, अनवर गंज थानाप्रभारी मंसूर अहमद, चकेरी थानाप्रभारी अजय सेठ, सीओ (गोविंद नगर) आर.के. चतुर्वेदी, सीओ (नजीराबाद) अजीत कुमार सिंह, सीओ (बाबूपुरवा) अजीत कुमार रजक, एसपी (पूर्वी) राजकुमार अग्रवाल, एसपी (पश्चिम) संजीव सुमन, एसपी (दक्षिण) रवीना त्यागी तथा एसएसपी अनंत देव तिवारी घटनास्थल पर पहुंच गए.
पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया और पूरे कानपुर शहर में वाहन चैकिंग शुरू करा दी. टूव्हीलरों और फोर व्हीलरों की सघन तलाशी होने लगी. यह बात 19 दिसंबर, 2018 की है.

बदले पे बदला
टप्पेबाजी का शिकार हुए संजय पाल घटनास्थल पर मौजूद थे. एसएसपी अनंत देव ने उन से घटना के संबंध में पूछताछ की. संजय पाल ने बताया कि वह चकेरी थाने के श्याम नगर मोहल्ले में रहते हैं. नौबस्ता के कोयला नगर, मंगला विहार में उन का श्री बालाजी फिलिंग स्टेशन नाम से पैट्रोल पंप है. पैट्रोल बिक्री की रकम वह गौशाला स्थित भारतीय स्टेट बैंक की शाखा में जमा करते हैं.
हर रोज की तरह वह आज भी पैट्रोल बिक्री का 10.69 लाख रुपए अपनी निजी कार से जमा करने जा रहे थे. कार को उन का ड्राइवर अरुण पाल चला रहा था.
संजय पाल ने बताया कि करीब साढ़े 11 बजे जब वह संजय वन चौकी से 80 मीटर पहले एक निर्माणाधीन बिल्डिंग के सामने पहुंचे ही थे कि पीछे से बाइक पर सवार 2 युवकों ने कार के आगे की ओर इशारा किया. ड्राइवर अरुण ने कार रोक कर देखा तो बोनट के पास मोबिल औयल गिरता नजर आया.

अशिकी मे गई जान
अरुण ने बोनट खोल कर चैक किया और कार मिस्त्री को फोन कर के जानकारी दी. मिस्त्री ने कहा कि कोई खास दिक्कत नहीं है. इस पर वे दोनों कार में बैठ गए. संजय ने बताया कि कार में बैठते ही आंखों में तेज जलन हुई. वह आंखें मलते हुए ड्राइवर के साथ बाहर निकले. इसी बीच बाइक सवार युवकों ने कार की पीछे वाली सीट पर रखा रुपयों से भरा बैग उड़ा दिया.
जब उन्हें इस बात की जानकारी हुई तो वे तत्काल संजय वन चौकी गए. लेकिन चौकी पर ताला लटक रहा था. उस के बाद वह थाना किदवईनगर गए और पुलिस को सूचना दी.

अजय विजय के बीच शिववती
संजय पाल की बातों से स्पष्ट था कि किसी बड़े टप्पेबाज गिरोह ने टप्पेबाजी की है. गैंग के अन्य सदस्य भी रहे होंगे जो वारदात के समय आसपास ही होंगे. एसपी (दक्षिण) रवीना त्यागी को शक हुआ कि इस वारदात में कहीं ड्राइवर तो शामिल नहीं.
उन्होंने कार ड्राइवर अरुण पाल को बातों में उलझा कर पूछताछ की लेकिन उस ने वही सब बताया जो संजय पाल ने बताया था. संजय पाल ने भी अरुण पाल को क्लीनचिट दे दी. उन्होंने कहा कि वह उन का विश्वासपात्र ड्राइवर है. घटनास्थल पर एक नाबालिग चश्मदीद था, जो पोस्टर बैनर बना रहा था. पुलिस ने उस से भी पूछताछ की, लेकिन कुछ हासिल नहीं हो सका.
जिस जगह सड़क पर टप्पेबाजी हुई थी, उस के दूसरी ओर एक मकान के बाहर सीसीटीवी कैमरा लगा था. एसएसपी अनंत देव तिवारी तथा एसपी (दक्षिण) रवीना त्यागी ने इस सीसीटीवी फुटेज की जांच की तो उस में पूरी वारदात कैद थी. सीसीटीवी में साफ दिख रहा था कि जब पैट्रोल पंप मालिक संजय पाल और उन का ड्राइवर अरुण पाल कार का बोनट खोल कर जांच करने लगी, तभी बाइकर्स आगे जा कर डिवाइडर कट से मुड़े.
पीछे बैठा युवक बाइक से नीचे उतरा. वह काली शर्ट व नीली जींस पहने था. डिवाइडर फांद कर उस ने कार की पीछे वाली सीट से रुपयों से भरा बैग उठाया और फिर वापस साथी के पास आया. बाइक चलाने वाला युवक नीली शर्ट, जींस, लाल जूते पहने था और हेलमेट लगाए था. इस के बाद बाइकर्स यशोदानगर की ओर भागते दिखे.

सुंदरी की साजिश

इधर देर रात तक पुलिस शहर भर में वाहन चैकिंग करती रही लेकिन वारदात को अंजाम देने वालों का पता नहीं चल सका. उधर दूसरे दिन पैट्रोल और एचएसडी डीलर्स एसोसिएशन ने आपात बैठक बुलाई और पैट्रोल पंप मालिक संजय पाल से 10.69 लाख की टप्पेबाजी की घटना को ले कर रोष व्यक्त किया.
बैठक के बाद अध्यक्ष ओमशंकर मिश्रा, महासचिव सुनील शरन गर्ग, कोषाध्यक्ष संजय गुप्ता, सुखदेव पाल, बसंत माहेश्वरी तथा पवन गर्ग ने पुलिस के आला अधिकारियों एडीजी अविनाश चंद्र तथा आईजी आलोक सिंह से मुलाकात की. उन्होंने पैट्रोल पंप मालिक संजय पाल से टप्पेबाजी की घटना का जल्दी खुलासा करने का अनुरोध किया.

नशे और ग्लैमर का चक्रव्यूह
पैट्रोल और एचएसडी डीलर्स एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने कहा कि पुलिस प्रशासन को पैट्रोल मालिकों को समुचित सुरक्षा देनी चाहिए. असलहों के लाइसैंस शीघ्र निर्गत किए जाएं. अगर ऐसा नहीं होता है तो पैट्रोल पंप मालिक हड़ताल पर चले जाएंगे.
एडीजी अविनाश चंद्र तथा आईजी आलोक सिंह ने पैट्रोल पंप एसोसिएशन के पदाधिकारियों की बात गौर से सुनी और उन्हें आश्वासन दिया कि संजय पाल के साथ हुई टप्पेबाजी की घटना का जल्दी ही खुलासा हो जाएगा. उन की मांगों का भी निस्तारण होगा.
पदाधिकारियों को आश्वासन देने के बाद एडीजी अविनाश चंद्र ने पुलिस अधिकारियों की एक मीटिंग बुलाई. इस में एसपी, सीओ, इंसपेक्टर तथा तेजतर्रार दरोगाओं ने भाग लिया. मीटिंग में शहर में आए दिन हो रही टप्पेबाजी की घटनाओं पर चिंता व्यक्त की गई.
मीटिंग के बाद एडीजी अविनाश चंद्र व आईजी आलोक सिंह ने टप्पेबाजी गैंग को पकड़ने के लिए 4 टीमें बनाईं. इन टीमों की कमान एसएसपी अनंत देव तिवारी, एसपी (दक्षिण) रवीना त्यागी, एसपी (पश्चिम) संजीव सुमन तथा एसपी (पूर्वी) राजकुमार अग्रवाल को सौंपी गई.
टीम में सीओ (गोविंद नगर) आर.के. चतुर्वेदी, सीओ (नजीराबाद) अजीत कुमार सिंह, सीओ (बाबूपुरवा) अजीत कुमार रजक, इंसपेक्टर अनुराग मिश्रा, संतोष कुमार, मंसूर अहमद, अजय सेठ, राजीव सिंह, एडीजीजी की क्राइम ब्रांच से अजय अवस्थी, कुलभूषण सिंह, वंश बहादुर, सीमांत और अखिलेश व एक दरजन तेजतर्रार तथा सुरागसी में दक्ष दरोगा वगैरह के साथसाथ सर्विलांस टीम को शामिल किया गया.

खूनी नशा: ज्यादा होशियारी ऐसे पड़ गई भारी
इन टीमों ने टप्पेबाजों की तलाश शुरू की और एक दरजन से अधिक लोगों को उठा कर उन से कड़ाई से पूछताछ की. लेकिन कोई सफलता नहीं मिली. टीमों ने पैट्रोल पंप पर काम करने वाले कर्मचारियों तथा घटना के चश्मदीद नाबालिग किशोर से भी पूछताछ की, लेकिन कोई क्लू नहीं मिला.
पुलिस टीमों ने शहर के बाहर शिवली, घाटमपुर, महाराजपुर, जहानाबाद आदि कस्बों में टप्पेबाजी करने वालों की तलाश की. जेल से छूटे पुराने टप्पेबाजों को भी हिरासत में ले कर पूछताछ की गई, लेकिन कोई ऐसी जानकारी नहीं मिल सकी, जिस से संजय पाल से की गई टप्पेबाजी का खुलासा हो पाता.
पैट्रोल पंप मालिक संजय पाल के साथ हुई टप्पेबाजी की वारदात एसपी (दक्षिण) रवीना त्यागी के क्षेत्र में हुई थी, इसलिए वह इस वारदात को ले कर कुछ ज्यादा प्रयासरत थीं. उन के दिशानिर्देश में काम कर रही टीम रातदिन एक किए हुए थी. सर्विलांस टीम भी उन के साथ काम कर रही थी.
सर्विलांस टीम ने पुलिस टीम के साथ संजय पाल के घर से घटनास्थल तक मोबाइल टावर डेटा फिल्टरेशन की मदद ली. इस में एक नंबर ऐसा निकला जो वारदात के वक्त घटनास्थल पर एक्टिव था. उस नंबर की लोकेशन यशोदा नगर हाइवे से उन्नाव की ओर मिली थी, इसलिए सर्विलांस टीम ने उस नंबर को लिसनिंग पर लगा दिया.

दिल्ली के लव कमांडो: हीरो नहीं विलेन
29 दिसंबर को उस नंबर धारक ने लखनऊ में रहने वाले एक साथी से बात की, जिसे पुलिस ने सुन लिया. इस के बाद एसपी (दक्षिण) रवीना त्यागी की टीम ने मोबाइल लोकेशन के जरिए आलमबाग, लखनऊ से 2 युवकों को धर दबोचा.
रवीना त्यागी ने जब इन युवकों से पूछताछ की तो उन्होंने अपना नाम विनेश और विकास बताया. इन दोनों से रवीना त्यागी ने संजय वन रोड पर हुई 10.69 लाख की टप्पेबाजी के बारे में पूछा तो दोनों साफ मुकर गए. लेकिन जब उन्हें थाना किदवई नगर लाया गया और पुलिसिया अंदाज में पूछताछ हुई तो दोनों टूट गए. उन्होंने 10.69 लाख रुपए की टप्पेबाजी स्वीकार कर ली. उन दोनों ने बताया कि उन का टप्पेबाजी का गैंग है. गैंग के अन्य सदस्य झकरकटी बसअड्डा स्थित गणेश होटल में ठहरे हुए हैं.
इस के बाद पुलिस की चारों संयुक्त टीमों ने झकरकटी स्थित गणेश होटल पर छापा मारा और 3 बैड वाले एक रूम से 8 लोगों को गिरफ्तार कर लिया. इन में एक महिला और एक नाबालिग भी था.

अतीक जेल में भी बाहुबली
इन के पास से पुलिस ने टप्पेबाजी कर के उड़ाया गया बैग बरामद कर लिया. बैग से 10.69 लाख रुपए सहीसलामत मिले. इस के अलावा पुलिस ने गैंग के पास से एक कार, एक वैन, एक बाइक, पेपर स्प्रे, चिली स्प्रे, गुलेल, लोहे के छर्रे, जले हुए मोबिल औयल की बोतल तथा सूजा बरामद किया.

पुलिस की संयुक्त टीम ने टप्पेबाज गैंग के 11 सदस्यों को पकड़ा. इन सभी को बरामद रुपए और अन्य सामान के साथ थाना किदवई नगर लाया गया. पूछताछ में गैंग के सदस्यों ने अपना नाम आकाश, राहुल, प्रेम, राजेश, रामू, अनिकली, विनेश, विकास, नरेश निवासी मदनगीर, दिल्ली तथा वरदराज और नाबालिग एस. विजय निवासन निवासी इंद्रपुरी दिल्ली बताया.
एसपी (दक्षिण) रवीना त्यागी ने संजय वन रोड पर हुई टप्पेबाजी का खुलासा करने, पूरे गैंग को पकड़ने और टप्पेबाजी का 10.69 लाख रुपए बरामद करने की जानकारी एडीजी अविनाश चंद्र, आईजी आलोक सिंह तथा एसएसपी अनंत देव तिवारी को दी.
इस के बाद एसएसपी अनंत देव तिवारी व एसपी (दक्षिण) रवीना त्यागी ने पुलिस लाइन में प्रैसवार्ता की, जिस में आरोपियों को पेश किया गया. प्रैसवार्ता के दौरान एडीजी अविनाश चंद्र ने टप्पेबाज गैंग को पकड़ने वाली टीम को एक लाख रुपए तथा आईजी आलोक सिंह ने 50 हजार रुपए का पुरस्कार देने की घोषणा की.

राजनीति की अंधी गली में खोई लड़की
प्रैसवार्ता में टप्पेबाजी के शिकार पैट्रोल पंप मालिक संजय पाल तथा पैट्रोल और एचएसडी डीलर्स के पदाधिकारियों को बुलाया गया. संजय पाल ने नोटों से भरे अपने बैग की पहचान की तथा खुलासे के लिए पुलिस की सराहना की.

चूंकि गैंग के सदस्यों ने अपना जुर्म कबूल कर के रुपया भी बरामद करा दिया था. इसलिए किदवईनगर थानाप्रभारी अनुराग मिश्रा ने टप्पेबाजी के शिकार हुए संजय पाल को वादी बता कर भादंसं की धारा 406, 419, 420 के तहत राहुल, प्रेम, राजेश रामू, विकास, विनेश, अनिकली, आकाश, वरदराज, नरेश तथा एस. विजय निवासन (नाबालिग) के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज कर ली और सभी को गिरफ्तार कर लिया. बंदी बनाए गए आरोपियों से की गई पूछताछ में जो घटना सामने आई, उस का विवरण इस तरह है—

डाक्टर नहीं जल्लाद
कानपुर में पकड़े गए टप्पेबाज विनेश, विकास, आकाश, राहुल व उन के गैंग के अन्य सदस्य मूलरूप से तमिलनाडु के चेन्नै व त्रिची के रहने वाले थे. सालों पहले ये लोग दिल्ली आए और मदनगीर जेजे कालोनी तथा इंद्रपुरी के क्षेत्रों में बस गए. इन क्षेत्रों में इन के 25 डेरे हैं, जो आपस में जुड़े हुए हैं. एक डेरे में 12-13 सदस्य होते हैं.
इन सदस्यों के समूह को डेरा नाम दिया जाता है. डेरा स्वामी समूह का सरगना होता है. इन की पीढि़यां कई दशकों से अपराध को जीविकोपार्जन का साधन बनाए हुए हैं. इन्हें बाकायदा ट्रेनिंग दी जाती है. इन के गिरोह में पुरुष, महिला व बच्चे सभी होते हैं.
इन के समुदाय के जो लोग अपराध की ट्रेनिंग नहीं लेते और अपराध नहीं करते, उन्हें डेरे के लोग नकारा मानते हैं. उन्हें हीनभावना से देखते हैं. ऐसे निठल्लों की शादी भी नहीं होती.
दिल्ली का डेरा टप्पेबाज गैंग, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, दिल्ली व राजस्थान के विभिन्न शहरों में वारदातें करता था. वह राज्य के जिस जिले में जाता, वहां के बसअड्डों या रेलवे स्टेशनों के आसपास के होटलों में ठहरता. होटल में वैध आईडी दिखा कर ये लोग कमरा बुक कराते थे. चूंकि इन के साथ महिलाएं व बच्चे होते, इसलिए पुलिस भी इन पर शक नहीं करती. ये लोग किराए का वाहन प्रयोग नहीं करते. अपनी कार, वैन या मोटरसाइकिल ही इस्तेमाल करते हैं.

गैंग के शातिर टप्पेबाज बाइक से वारदात को अंजाम देने के लिए निकलते हैं. उन के पीछे कार होती है, जिस में महिला और एक बच्चा भी रहता है. घटना को अंजाम देने के बाद शातिर टप्पेबाज कार में नकदी व जेवरात ले कर बैठ जाते हैं.
पुलिस को चकमा देने के लिए दूसरे साथी नकदी ले कर बाइक से निकल जाते हैं. ज्यादातर वाहन गैंग की महिलाओं के नाम खरीदे हुए होते हैं. वाहन सही नामपते पर रजिस्टर्ड होते हैं, जिस से पुलिस चैकिंग में कभी नहीं पकड़े जाते.
गैंग के शातिर लोग रेलवे क्रौसिंग, जेब्रा क्रौसिंग, रेड लाइट तथा जाम वाली जगहों पर रेकी करते हैं. वहां घटना को अंजाम दे कर ये लोग दूसरे जिले की ओर कूच कर जाते हैं. ये लोग चलती गाड़ी के बोनट पर जला हुआ मोबिल औयल डाल कर शिकार बनाते हैं या फिर चलती गाड़ी रुकवा कर चिली स्प्रे के सहारे टप्पेबाजी करते हैं.
कभीकभी ये गाड़ी का शीशा तोड़ कर नोटों से भरा बैग या अन्य सामान पार कर लेते हैं. कार के टायर में सूजा चुभो कर ये लोग पंक्चर कर के भी गाड़ी से सामान गायब कर देते हैं. कभीकभी ये लोग खुद को क्राइम ब्रांच का अधिकारी या आयकर विभाग का अधिकारी बता कर भी टप्पेबाजी कर लेते हैं.

दिल्ली के डेरा टप्पेबाज गैंग ने उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों आगरा, मथुरा, लखनऊ, फर्रुखाबाद, शाहजहांपुर आदि शहरों में दरजनों वारदातें कर के काफी धन एकत्र किया. दिसंबर माह के पहले सप्ताह में टप्पेबाज गैंग के डेरा मुखिया विनेश, विकास, आकाश व राहुल अपने डेरे के 2-2 सदस्य ले कर कानपुर शहर आ गए.
कानपुर में इन लोगों ने रेलवे स्टेशन स्थित एक होटल में अपनी वैध आईडी दिखा कर 3 रूम बुक कराए और साथियों के साथ ठहर गए. इस होटल में रुक कर इन लोगों ने कई लोगों को टप्पेबाजी का शिकार बनाया.
इस के बाद इन लोगों ने क्राइम ब्रांच का सिपाही बता कर प्रमोद वर्मा को शिकार बनाया. प्रमोद की बिरहाना रोड पर ज्वैलरी शौप है. प्रमोद दोपहर में घर में रखे 250 ग्राम सोने के आभूषण ले कर अपनी दुकान पर जा रहे थे. जब वह खत्री धर्मशाला के पास पहुंचे, तभी 2 युवकों ने उन्हें रोक लिया और खुद को क्राइम ब्रांच का सिपाही बताते हुए बैग की तलाशी देने को कहा.
इस पर उन्होंने दुकान पर चल कर तलाशी लेने की बात कही तो उन्होंने हड़काते हुए क्राइम ब्रांच औफिस चलने को कहा. इस से घबरा कर उन्होंने बैग खोल दिया. एक ने बैग की तलाशी शुरू कर दी. दूसरे ने उन्हें नामपता नोट करने में उलझा लिया.
कुछ देर बाद इन लोगों ने बैग लौटाते हुए कहा दुकान जाओ. प्रमोद ने दुकान जा कर बैग खोल कर देखा तो उस में पत्थर के टुकड़े थे. टप्पेबाज उन को शिकार बना कर फरार हो गए. प्रमोद ने थाना कलक्टरगंज में रिपोर्ट दर्ज कराई.

19 दिसंबर को टप्पेबाज विनेश और आकाश मोटरसाइकिल से झकरकटी स्थित गणेश होटल से शिकार की तलाश में निकले. मोटरसाइकिल विकास चला रहा था. जबकि पीछे की सीट पर विनेश बैठा था.
जब ये लोग यशोदानगर बाईपास पहुंचे तो वहां जाम लगा था. पैट्रोल पंप मालिक संजय पाल की कार भी इसी जाम में फंसी थी. संजय पाल पीछे की सीट पर बैठे थे और नोटों से भरा बैग उन के पास रखा था. गाड़ी उन का ड्राइवर अरुण पाल चला रहा था.
जाम में फंसी संजय की गाड़ी पर टप्पेबाज विनेश व आकाश की नजर पड़ी. सीट पर रखा बैग देख कर उन दोनों की बांछें खिल उठीं. उन्होंने सहज ही अंदाजा लगा लिया कि बैग में मोटी रकम हो सकती है. उन्होंने संजय पाल को शिकार बनाने की ठान ली.
योजना के तहत उन्होंने कार का पीछा किया और विनेश ने जाम के चलते धीमी चल रही कार के बोनट पर मोबिल औयल गिरा दिया. संजय वन रोड पहुंचने पर विनेश ने ड्राइवर अरुण पाल को इंजन से औयल टपकने का इशारा किया. अरुण ने कार रोक दी. संजय पाल व ड्राइवर अरुण जब कार से उतरे, तभी टप्पेबाज आकाश व विनेश आ गए. उन्होंने चिली स्प्रे कार में छिड़क दिया.

गाड़ी चैक कर के संजय पाल व अरुण पाल आ कर गाड़ी में बैठे तो उन की आंखों में जलन होने लगी. दोनों आंखें मलते हुए गाड़ी के बाहर आए. इसी बीच विनेश ने नोटों से भरा बैग सीट से उठाया और बाइक की पिछली सीट पर जा बैठा. वहां से ये यशोदा नगर की ओर भाग गए.
यशोदा नगर बाईपास के पहले वृंदावन गार्डन के पास टप्पेबाज राहुल कार लिए खड़ा था. वह उन्हीं दोनों का इंतजार कर रहा था. कार में प्रेम, राजेश, नरेश, अनिकली व नाबालिग एस. विजय निवासन बैठे थे. आकाश व विनेश ने आते ही रुपयों से भरा बैग कार में बैठे लोगों को थमा दिया और खुद उन्नाव की ओर चले गए. राहुल कार ले कर वापस गणेश होटल लौट आया.
इधर टप्पेबाजों का शिकार हुए संजय पाल थाना किदवई नगर पहुंचे और थानाप्रभारी अनुराग मिश्रा को टप्पेबाजों द्वारा नोटों से भरा बैग पार करने की जानकारी दी.

पकड़े गए टप्पेबाज गैंग के प्रमुख आकाश, राहुल, विनेश, विकास से जब कड़ी पूछताछ की गई तो उन्होंने बताया कि इन के अलावा शहर में एक और गैंग है, जो टप्पेबाजी कर पुलिस की नींद हराम किए हुए है. यह गैंग महाराष्ट्र का है.
इस गैंग में तमिलनाडु के सदस्य भी हैं. इस गैंग ने अनवरगंज क्षेत्र में कई वारदातें की थीं. इंसपेक्टर (अनवरगंज) मंसूर अहमद पुलिस टीम में शामिल थे. उन से पता चला कि टप्पेबाजों ने उन के थाना क्षेत्र में बांसमंडी के पास बिंदकी (फतेहपुर) निवासी आढ़ती जयकुमार साहू के साथ टप्पेबाजी की थी.
टप्पेबाजों ने उन से कहा कि उन की कार के पहिए से हवा निकल गई है. वह पहिया चैक करने उतरे. इसी बीच टप्पेबाजों ने उन की गाड़ी में रखा बैग पार कर दिया. बैग में ढाई लाख रुपए थे.

इस के बाद टप्पेबाजों ने लालगंज निवासी रेलवे ठेकेदार विजेंद्र सिंह तथा फर्रुखाबाद निवासी अतुल को शिकार बनाया. दोनों की कार से बैग उड़ाया गया था. विजेंद्र सिंह के बैग में लाइसेंसी पिस्टल, रुपए व जरूरी कागजात थे, जबकि अतुल के बैग में नकदी व कागजात थे. तीनों ने थाना अनवरगंज में टप्पेबाजों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई थी.
इंसपेक्टर मंसूर अहमद इन टप्पेबाजों को पकड़ने के लिए प्रयासरत थे, लेकिन सफलता नहीं मिल पा रही थी.

पकड़े गए गैंग से मंसूर अहमद को कुछ क्लू मिला तो उन्होंने टप्पेबाजी करने वाले गैंग की टोह में मुखबिर लगा दिए. वह स्वयं भी प्रयास करते रहे. उन्होंने क्षेत्र के होटलों, विश्राम गृहों तथा रेलवे स्टेशन अनवरगंज में विशेष निगरानी शुरू कर दी.

4 जनवरी शुक्रवार की रात इंसपेक्टर मंसूर अहमद को खास मुखबिर से सूचना मिली कि टप्पेबाज गिरोह बांसमंडी तिराहे पर मौजूद है और किसी बड़ी वारदात की फिराक में है.
मुखबिर की इस सूचना पर विश्वास कर मंसूर अहमद बांसमंडी तिराहा पहुंचे और मुखबिर की निशानदेही पर एक महिला सहित 4 लोगों को हिरासत में ले लिया. सभी को थाना अनवरगंज लाया गया.

एक हत्या ऐसी भी

थाने पर जब उन से नामपता पूछा गया तो एक ने अपना नाम गणेश नायडू, दूसरे ने बाबू नायडू तथा महिला ने अपना नाम पार्वती नायडू बताया. पार्वती नायडू, गणेश नायडू की बहन थी जबकि बाबू नायडू उस का बेटा था. ये तीनों महाराष्ट्र के नदुरवार जिले के नवापुर के रहने वाले थे. चौथा व्यक्ति गणेश का रिश्तेदार चंद्रुक तेली था. वह तमिलनाडु के तिरुपुर जिले के उठकली का रहने वाला था.

सपनों के पीछे भागने का नतीजा
पुलिस ने चारों की जामातलाशी ली तो उन के पास से करीब सवा लाख रुपए नकद, टायर कटर, गुलेल, छर्रे, मोबाइल तथा एटीएम कार्ड बरामद हुए. पूछताछ में टप्पेबाजों ने तीनों घटनाओं का खुलासा किया और कार से बैग उड़ाने की बात कबूली.
पुलिस ने इन टप्पेबाजों से करीब आधी रकम तो बरामद कर ली, लेकिन रेलवे ठेकेदार विजेंद्र सिंह की पिस्टल का पता नहीं चला. संभावना है कि गैंग का कोई अन्य सदस्य आधी रकम व पिस्टल ले कर किसी दूसरे जिले की ओर निकल गया हो.

30 दिसंबर, 2018 को थाना किदवईनगर पुलिस ने टप्पेबाज गिरोह के 11 सदस्यों विनेश, विकास, आकाश, राहुल, प्रेम, नरेश, रामू, वरदराज, राजेश, अनिकली तथा नाबालिग को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट की अदालत में पेश किया, जहां से नाबालिग को छोड़ कर सभी को जेल भेज दिया गया. नाबालिग को बाल सुधार गृह भेजा गया.

कातिल बहन की आशिकी
दूसरे टप्पेबाज गैंग को अनवरगंज पुलिस ने 5 जनवरी को रिमांड मजिस्ट्रैट के सामने पेश किया, जहां से गणेश, बाबू, पार्वती, चंदुक तेली को जिला जेल भेज दिया गया.

बेवफाई की लाश

उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के सिंगरा थाना क्षेत्र में एक गांव है बड़गांव. कल्लू निषाद अपने
परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटे रमेश, दिनेश, संतोष के अलावा एक बेटी थी उमा. कल्लू किसान था. खेती की आय से परिवार चलता था. समय बीतते कल्लू ने अपने सभी बच्चों की शादियां कर दीं. तीनों भाइयों ने पिता के रहते ही घर और खेती की जमीन का बंटवारा भी कर लिया. भाईबहनों में संतोष सब से छोटा था. उस का विवाह गुडि़या से हुआ था. गुडि़या के पिता रघुवीर निषाद गाजीपुर जिले के सुहावल गांव के रहने वाले थे. गुडि़या से शादी कर के संतोष बहुत खुश था.

कातिल बहन की आशिकी

बंटवारे के बाद संतोष के पास खेती की इतनी जमीन नहीं बची थी जिस से परिवार का गुजारा हो सके. फिर भी सालों तक हालात से उबरने की जद्दोजहद चलती रही.
धीरेधीरे वक्त गुजरता गया और इस गुजरते वक्त के साथ गुडि़या एक बेटे कृष्णा और 2 बेटियों की मां बन गई. गुडि़या 3 बच्चों की मां भले ही बन गई थी, लेकिन उस की देहयष्टि से ऐसा लगता नहीं था.
वह पति को अकसर खेती के अलावा कोई और काम करने की सलाह देती थी. लेकिन संतोष खेतीकिसानी में ही खुश था. बाहर जा कर नौकरी करने की बात न मानने पर संतोष का पत्नी के साथ झगड़ा होता रहता था.

संतोष अपनी जमीन पर खेती करने के साथसाथ दूसरों की जमीन भी बंटाई पर लेता था. तब कहीं जा कर परिवार का भरणपोषण हो पाता था. अगर बाढ़ या सूखे से फसल चौपट हो जाती तो उस के पास हाथ मलने के अलावा कुछ नहीं बचता था. इस सब के चलते जब संतोष पर कर्ज हो गया तो उस ने गांव छोड़ दिया.
संतोष ने अपने गांव के कुछ लोगों से सुन रखा था कि कानपुर उद्योग नगरी है और वहां नौकरी आसानी से मिल जाती है. संतोष भी नौकरी की तलाश में कानपुर शहर पहुंच गया. वहां कई दिनों तक भागदौड़ करने के बाद संतोष को पनकी स्थित एक रिक्शा कंपनी में काम मिल गया. वह रिक्शा कंपनी किराए पर रिक्शा भी चलवाती थी.

रहस्य में लिपटी विधायक की मौत

संतोष मेहनती व ईमानदार था. जल्द ही उस ने वहां अपनी अच्छी छवि बना ली, उस की लगन और मेहनत को देख कर मालिक ने उसे किराए पर चलने वाले रिक्शों के चालकों से किराया वसूलने की जिम्मेदारी सौंप दी. इस के साथ ही वह किराए के रिक्शों की भी मरम्मत भी करता था. ज्यादा कमाने के चक्कर में संतोष नौकरी के बाद खुद भी रिक्शा चला लेता था.
संतोष महीने-2 महीने में कानपुर से घर लौटता था और 2-3 दिन घर रुक कर कानपुर चला जाता था. गुडि़या उन दिनों उम्र के उस दौर से गुजर रही थी, जब औरत को पुरुष की नजदीकियों की ज्यादा जरूरत होती है. एक बार संतोष घर आया तो गुडि़या ने उस से कहा कि बच्चों की अब पढ़ने की उम्र है. गांव में रह कर पढ़ नहीं पाएंगे, अत: उसे व बच्चों को साथ ले चले.
संतोष को गुडि़या की बात सही लगी. उस ने पत्नी को आश्वासन दिया कि जब वह अगली बार आएगा, तो उसे व बच्चों को अपने साथ ले जाएगा. संतोष कानपुर पहुंच कर कमरे की खोज में जुट गया. काफी कोशिश के बाद उसे अरमापुर में किराए पर कमरा मिल गया.

सपा नेत्री की गहरी चाल

कमरा मिल जाने के बाद वह पत्नी व बच्चों को कानपुर शहर ले आया. बच्चों का दाखिला उस ने अरमापुर के सरकारी स्कूल में करा दिया. गुडि़या शहर आई तो उस के रंगढंग ही बदल गए. वह खूब सजसंवर कर रहने लगी. अपने व्यवहार की वजह से उस ने आसपड़ोस की महिलाओं से भी अच्छे संबंध बना लिए थे.

संतोष जिस रिक्शा कंपनी में काम करता था, उसी में राजू नाम का युवक भी काम करता था. हालांकि राजू संतोष से कई साल छोटा था, फिर भी दोनों में खूब पटती थी. दोनों साथसाथ लंच करते थे. जरूरत पड़ने पर राजू संतोष की आर्थिक मदद भी कर देता था.
राजू पनकी स्थित रतनपुर कालोनी में अकेला रहता था. वैसे वह मूलरूप से इटावा जिले के अजीतमल गांव का रहने वाला था. उस के मातापिता की मृत्यु हो चुकी थी और भाइयों से उस की पटती नहीं थी. इसलिए कानपुर आ कर रिक्शा कंपनी में काम करने लगा था.

सपा नेत्री की गहरी चाल

एक दिन संतोष ने राजू को बताया कि आज उस के बेटे कृष्णा का जन्मदिन है. उस ने किसी और को तो नहीं बुलाया लेकिन उसे जरूर आना है. अपनेपन की इस बात से राजू खुश हुआ. उस ने कहा, ‘‘संतोष भैया, मैं शाम को जरूर आऊंगा. शाम की पार्टी भी मेरी तरफ से रहेगी.’’

राजू दिन भर काम में व्यस्त रहा. शाम होते ही वह अपने घर पहुंचा और अच्छे कपड़े पहने. फिर सजसंवर कर संतोष के घर पहुंच गया. राजू के पहुंचने पर संतोष बहुत खुश हुआ. उस ने राजू का अपनी पत्नी से परिचय कराते हुए कहा कि यह मेरा अच्छा दोस्त और हमदर्द है.

गुडि़या ने मुसकरा कर राजू का स्वागत किया और बोली, ‘‘यह आप के बारे में बताते रहते हैं और बहुत तारीफ करते हैं.’’
गुडि़या ने राजू की आवभगत की. राजू भी गुडि़या की खूबसूरती में खो गया. कुल मिला कर गुडि़या पहली ही नजर में राजू के दिलोदिमाग पर छा गई.
इस के बाद वह किसी न किसी बहाने संतोष के साथ उस के घर जाने लगा. वह जब भी घर जाता, बच्चों के लिए खानेपीने की चीजें जरूर ले कर आता. बच्चों को उन की मनपसंद चीजें मिलने लगीं तो वह ‘चाचाचाचा’ कह कर उस से घुलमिल गए.

प्यार का खौफनाक पहलू

जल्दी ही राजू ने संतोष के घर में अपनी पैठ बना ली. राजू का घर आना बच्चों को ही नहीं, बल्कि गुडि़या को भी अच्छा लगता था. राजू की लच्छेदार बातें उसे खूब भाती थीं. धीरेधीरे गुडि़या के मन में भी राजू के प्रति चाहत बढ़ गई.

एक रोज गुडि़या कमरे के बाहर खड़ी धूप में बाल सुखा रही थी, तभी अचानक राजू उस के सामने आ कर खड़ा हो गया. गुडि़या ने उसे आश्चर्य से देखते हुए पूछा, ‘‘अरे तुम, इस तरह अचानक, क्या ड्यूटी नहीं गए?’’

‘‘ड्यूटी गया तो था भाभी, पर तुम्हारी याद आई तो चला आया.’’ राजू ने मुसकरा कर जवाब दिया. उस दिन राजू को गुडि़या बहुत ज्यादा खूबसूरत लगी. उस की निगाहें गुडि़या के चेहरे पर जम गईं. यही हाल गुडि़या का भी था. राजू को इस तरह देखते हुए गुडि़या बोली, ‘‘ऐसे क्या देख रहे हो मुझे? क्या पहली बार देखा है? बोलो, किस सोच में डूबे हो?’’
‘‘नहीं भाभी, ऐसी कोई बात नहीं है. मैं तो देख रहा था कि खुले बालों में आप कितनी सुंदर लग रही हैं. वैसे एक बात कहूं, आप के अलावा पासपडोस में और भी हैं, पर आप जैसी सुंदर कोई नहीं है.’’
‘‘बस…बस रहने दो. बहुत बातें बनाने लगे हो. तुम्हारे भैया तो कभी तारीफ नहीं करते. काम के बोझ से इतने थके होते हैं कि खाना खा कर बिस्तर पर लुढ़क जाते हैं और अगर उन से कुछ कहो तो किसी न किसी बात को ले कर झगड़ने लगते हैं.’’

‘‘अरे भाभी, औरत की खूबसूरती सब को रास थोड़े ही आती है. भैया तो लापरवाह हैं. शराब में डूबे रहते हैं, इसलिए तुम्हारी कद्र नहीं करते.’’ राजू बोला.
‘‘तू तो मेरी बहुत कद्र करता है? हफ्ते बीत जाते हैं, झांकने तक नहीं आता. जा बहुत देखे हैं तेरे जैसे बातें बनाने वाले.’’ गुडि़या उसे उकसाते हुए बोली.
‘‘मुझे सचमुच आप की बहुत फिक्र है भाभी. यकीन न हो तो परख लो. अब मैं आप की खैरखबर लेने जल्दीजल्दी आता रहूंगा. छोटाबड़ा जो भी काम कहोगी, मैं करूंगा.’’ राजू ने गुडि़या की चिरौरी सी की.
राजू की यह बात सुन कर गुडि़या खिलखिला कर हंस पड़ी. फिर बोली, ‘‘तू आराम से चारपाई पर बैठ. मैं तेरे लिए चाय बनाती हूं.’’

थोड़ी देर में गुडि़या 2 कप चाय और प्लेट में बिस्कुट व नमकीन ले आई. दोनों पासपास बैठ कर गपशप लड़ाते हुए चाय पीते रहे और चोरीछिपे एकदूसरे को देखते रहे. दोनों के ही दिलोदिमाग में हलचल मची हुई थी. सच तो यह था कि गुडि़या गबरू जवान राजू पर फिदा हो गई थी. वह ही नहीं, राजू भी मतवाली भाभी का दीवाना बन गया था.
दोनों के दिल एकदूसरे के लिए धड़के तो नजदीकियां खुदबखुद बन गईं. इस के बाद राजू अकसर गुडि़या से मिलने आने लगा. गुडि़या को उस का आना अच्छा लगता था. जल्द ही वह एकदूसरे से खुल गए और दोनों के बीच हंसीमजाक होने लगा.
इन्हीं दिनों संतोष खेतों की देखभाल के लिए एक सप्ताह की छुट्टी ले कर अपने गांव चला गया. गुडि़या को यह मौका अच्छा लगा तो उस ने एक रोज रात में राजू को अपने कमरे पर रोक लिया. खाना खाने के बाद एक चारपाई पर राजू लेट गया और दूसरी पर गुडि़या.

राजू सोने की कोशिश कर रहा था लेकिन उसे नींद नहीं आ रही थी. उस का मन भाभी गुडि़या की तरफ ही लगा हुआ था. तभी आधी रात के बाद गुडि़या अपनी चारपाई से उठ कर उस के पास आ लेटी. इस के बाद तो राजू की खुशी का ठिकाना न रहा. वह गुडि़या से बोला, ‘‘क्या हुआ भाभी?’’
‘‘डर लग रहा था, इसलिए तुम्हारे पास चली आई.’’ गुडि़या ने उस से सटते हुए कहा.
‘‘डर लग रहा है तो लाइट जला दूं क्या?’’ राजू ने पूछा.
‘‘नहीं, लाइट जलाने की अब कोई जरूरत नहीं है. क्योंकि अब तुम मेरे पास हो.’’ कहते हुए वह उस से लिपट गई.
राजू गुडि़या की मंशा समझ चुका था. वह भी जवान था. गुडि़या के स्पर्श से उस के शरीर में भी सरसराहट दौड़ गई थी. फिर जब गुडि़या ने उसे उकसाया तो ऐसे में भला वह कैसे शांत रह सकता था. नतीजतन दोनों ने ही उस रात अपनी हसरतें पूरी कीं.

उस दिन के बाद राजू और गुडि़या अकसर कामलीला रचाने लगे. राजू अपनी अधिकांश कमाई गुडि़या व उस के बच्चों पर खर्च करने लगा. उस के घर आने का विरोध संतोष न करे, इसलिए वह उस की भी आर्थिक मदद करने लगा.
इस के अलावा संतोष जब भी शराब पीने की इच्छा जताता तो राजू उसे ठेके पर ले जाता और शराब पिलाता. इतना ही नहीं, राजू अब गुडि़या के घरेलू काम में भी हाथ बंटाने लगा. राशन लाना, बच्चों को स्कूल छोड़ना तथा शाम को सब्जी लाना उस की दिनचर्या बन गई थी.

परफेक्ट षड्यंत्र

संतोष जब गांव चला जाता तो राजू रात में उस के घर रुकता और फिर दोनों रात भर रंगरलियां मनाते. राजू जब संतोष के साथ उस के घर आता तब तो कोई बात नहीं थी, लेकिन उस की गैरमौजूदगी में जब वह अकसर उस के घर पड़ा रहने लगा तो पड़ोसियों के मन में शंका पैदा होने लगी. धीरेधीरे मोहल्ले में गुडि़या और राजू के संबंधों की चर्चा फैल गई.

एक दिन संतोष को उस के पड़ोसी रामसिंह भदौरिया ने अपने पास बुला कर कहा, ‘‘संतोष, तुम रातदिन काम में व्यस्त रहते हो और घर आ कर नशे में डूब जाते हो. कभी अपने घर की तरफ भी ध्यान दिया करो कि तुम्हारे यहां कौन आता है कौन जाता है. तुम्हें कुछ पता भी है?’’
‘‘चाचा, मेरे घर में तो सब ठीक चल रहा है. अगर कोई गड़बड़ है तो बताओ. हमें आप की बात पर पूरा भरोसा है.’’ संतोष ने पूछा.
‘‘वह जो तुम्हारा दोस्त राजू है न, वह ठीक नहीं है. तुम घर पर नहीं होते तब वह तुम्हारे घर आता है. बच्चों को पैसे दे कर घर के बाहर भेज देता है. फिर तुम्हारे घर का दरवाजा बंद हो जाता है. पूरे मोहल्ले में तुम्हारी बीवी और राजू के नाजायज संबंधों की चर्चा हो रही है और तुम कान बंद किए बैठे हो.’’ राम सिंह ने बताया.
संतोष निषाद को जब यह बात पता चली तो उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उस ने इस बारे में पत्नी व राजू से बात की तो दोनों ने साफ कह दिया कि ऐसी कोई बात नहीं है. गुडि़या ने कहा कि राजू उस की मदद करता है, इसलिए पड़ोसी जलते हैं. घर में झगड़ा कराने के लिए वे तुम्हारे कान भर रहे हैं.
संतोष ने उस समय तो पत्नी की बात पर विश्वास कर लिया और फिर कुछ दिनों के लिए जरूरी काम से अपने गांव चला गया. लगभग एक सप्ताह बाद जब वह गांव से लौटा तो घर में राजू मौजूद था. उस समय राजू और गुडि़या हंसीठिठोली और शारीरिक छेड़छाड़ कर रहे थे.
अब उसे विश्वास हो गया कि राम सिंह चाचा ने जो बात उसे बताई थी, वह सच थी. यह देख कर संतोष का पारा चढ़ गया. उसी समय उस ने गुडि़या की जम कर पिटाई कर दी. मौका पा कर राजू वहां से खिसक गया.

अगले दिन संतोष जब अपनी ड्यूटी पर पहुंचा तो कंपनी में उसे राजू मिल गया. संतोष ने राजू को वहीं पर खूब फटकारा. राजू ने उस समय उस से माफी मांग ली, पर बाद में राजू और गुडि़या पहले की तरह मिलते रहे. किसी न किसी तरह संतोष को इस की जानकारी मिलती रही.
पत्नी की इस बेवफाई से संतोष टूट गया था. वह शराब तो पहले भी पीता था लेकिन अब और ज्यादा पीने लगा. उसे गुडि़या से इतनी अधिक नफरत हो गई थी कि उस ने उस से बातचीत तक करनी बंद कर दी.
लेकिन जिस दिन राजू घर के पास दिख जाता था, उस दिन गुस्से से संतोष का खून खौल जाता था. राजू को ले कर गुडि़या से उस की तकरार होती थी. नौबत मारपीट तक आ जाती थी. पूरा मोहल्ला जान गया था कि झगड़े की जड़ राजू और गुडि़या के अवैध संबंध हैं.
इस के बाद तो खुल्लमखुल्ला पूरे मोहल्ले में दोनों के संबंधों की चर्चा होने लगी. इस से संतोष की खूब बदनामी हो रही थी. तब संतोष ने राजू के घर आने पर प्रतिबंध लगा दिया. गुडि़या अपने से 10 साल छोटे प्रेमी राजू की दीवानी थी. वह किसी भी हाल में उस से अलग नहीं होना चाहती थी.

बेरोजगारी ने बनाया पत्नी और बच्चों का कातिल

पति के चौकस हो जाने पर गुडि़या भी सतर्क हो गई. गुडि़या को जब भी मौका मिलता था, वह फोन कर के राजू को बुला लेती थी. पड़ोसियों को भनक न लगे, इस के लिए वह राजू को कमरे के पीछे खुलने वाली खिड़की से अंदर बुलाती थी, फिर शारीरिक मिलन के बाद वह उसी खिड़की से चला जाता था.
लेकिन सतर्कता के बावजूद एक रोज पड़ोसन रेखा निषाद ने राजू को खिड़की के रास्ते गुडि़या के घर में जाते देख लिया. उस ने यह बात संतोष को बताई तो उस का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. उस ने गुडि़या की जम कर पिटाई की और दूसरे दिन बच्चों सहित गुडि़या को अपने गांव वाले घर भेज दिया. गुडि़या ने गांव पहुंचने की जानकारी राजू को दे दी.
गुडि़या के गांव जाने पर राजू परेशान रहने लगा. अब दोनों की बात मोबाइल पर ही हो पाती थी. राजू गुडि़या पर दबाव बनाने लगा कि वह किसी न किसी बहाने से वापस आ जाए. उस के बिना उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा. गुडि़या राजू को आश्वासन देती कि अभी उचित समय नहीं है. संतोष का गुस्सा जब शांत हो जाएगा, तब वह उस से बात कर के आ जाएगी.
संतोष ने पत्नी को मजबूरी में गांव भेज तो दिया था लेकिन उस के जाने के बाद वह भी परेशान हो गया था. अब उसे खाना खुद ही बनाना पड़ता था. काम में व्यस्त रहने से वह इतना थक जाता था कि कभी बिना खाना खाए ही सो जाता था.
उसे बच्चों की भी याद आ रही थी. स्कूल से भी खबर आ रही थी कि आखिर बच्चे स्कूल क्यों नहीं आ रहे हैं? संतोष का मन करता कि वह बच्चों को ले आए, लेकिन पत्नी की चरित्रहीनता याद आते ही वह अपना विचार बदल देता.
जब गुडि़या को गांव से कानपुर आने का मौका नहीं मिला तो राजू संतोष को मनाने तथा उस से फिर से दोस्ती करने का प्रयास करने लगा. लेकिन संतोष उसे झिड़क देता था. एक दिन उस ने कह दिया, ‘‘तू आस्तीन का सांप है. अब मैं तेरे झांसे में नहीं आऊंगा. मैं ने तुझे भाई जैसा मानसम्मान दिया, पर तूने मुझे ही डंस लिया.’’

खाकी वरदी वाले डकैत

‘‘बड़े भैया, मुझे अपनी गलती का अहसास है. बस मुझे एक बार माफ कर दो, फिर ऐसी गलती दोबारा नहीं करूंगा.’’

राजू ने बारबार मिन्नत की तो संतोष का दिल पसीज गया. फिर से दोस्ती बहाल हो जाने पर उस दिन दोनों ने दोस्ती के नाम पर फिर से जाम पर जाम टकराए. राजू ने अपनी कामयाबी की जानकारी गुडि़या को दी तो उस के मन में आस जगी कि संतोष अब उसे अपने पास बुला लेगा.
उन्हीं दिनों संतोष वायरल फीवर की चपेट में आ गया. राजू ही उसे अस्पताल ले गया. राजू ने संतोष को सलाह दी कि वह भाभी को बुला ले तो उस की सही तरीके से देखभाल हो जाएगी. संतोष ने पहले तो मुंह बनाया फिर कुछ सोच कर गुडि़या को फोन कर बताया कि वह बीमार है, अत: बच्चों के साथ जल्दी आ जाए.
पति की बात सुन कर गुडि़या खुशी से उछल पड़ी. उस ने फटाफट अपना सामान बांध कर बच्चों को तैयार किया और दूसरे दिन कानपुर आ गई. गुडि़या की सेवा से संतोष ठीक हो गया और बच्चे भी स्कूल जाने लगे.
राजू और गुडि़या कुछ दिनों तक तो अंजान बने रहे, उस के बाद फिर से दोनों का चोरीछिपे मिलन शुरू हो गया. गुडि़या के आने के बाद राजू संतोष से किए गए अपने वादे को भूल गया.
एक रोज संतोष की अपनी कंपनी में ही तबीयत खराब हो गई. उस का बदन बुखार से तप रहा था इसलिए वह दोपहर के समय ही कंपनी से घर की ओर चल दिया. दरवाजे पर पहुंचते ही उस ने आवाज लगाई, ‘‘गुडि़या, दरवाजा खोल.’’

कई बार दरवाजा खटखटाने के बाद गुडि़या ने दरवाजा खोला. वह कमरे में पहुंचा तो उस ने खिड़की से किसी को भागते देखा. पत्नी से पूछा तो वह साफ मुकर गई. लेकिन गुडि़या के उलझे बाल, बिस्तर की हालत तो कुछ और ही बयां कर रही थी.
वह समझ गया कि जरूर इस का यार राजू यहां से भागा है. यानी इस ने अपने यार से मिलना बंद नहीं किया है. गुस्से में संतोष ने गुडि़या की चोटी पकड़ कर पूछा, ‘‘बता, तेरे साथ कमरे में कौन था? सचसच बता वरना अंजाम अच्छा नहीं होगा.’’
गुडि़या घबरा तो गई, लेकिन फिर संभलते हुए बोली, ‘‘कोई भी नहीं था. तुम्हें जरूर कोई वहम हुआ है. तुम्हारी तबीयत शायद ठीक नहीं है.’’

गुडि़या ने हमदर्दी जताई तो संतोष को लगा कि शायद उसे बुखार है, इसलिए गलतफहमी हुई है. लेकिन उस का मन बारबार कह रहा था कि कमरे के अंदर राजू था जो उस के साथ सोया था. उस रात राजू को ले कर दोनों में झगड़ा होता रहा.

पहले की छेड़छाड़, फिर जिंदा जलाया

संतोष के मन में शक पैदा हुआ तो फिर बढ़ता ही गया. अब तो संतोष राजू की मौजूदगी में भी गुडि़या की पिटाई कर देता. राजू बीचबचाव करने आता तो उसे झिड़क देता.
गुडि़या राजू की दीवानी थी, इसलिए उसे न तो पति की परवाह थी और ही परिवार के इज्जत की. इसी दीवानगी में एक दिन गुडि़या ने राजू से कहा, ‘‘तुम्हारी वजह से संतोष मुझे मारतापीटता है और तुम दुम दबा कर भाग जाते हो. आखिर तुम कैसे प्रेमी हो, कुछ करते क्यों नहीं?’’
‘‘घर का मामला है भाभी, मैं कर भी क्या सकता हूं.’’ राजू ने मजबूरी जाहिर की तभी गुडि़या बोली, ‘‘विरोध तो कर सकते हो. मुझ पर उठने वाला उस का हाथ तो मरोड़ सकते हो.’’
‘‘मैं ऐसा नहीं कर सकता भाभी. क्योंकि तुम पर मेरा कोई अधिकार नहीं है. फिर भी मैं तुम्हारी बात पर गौर करूंगा.’’ राजू ने कहा.

28 नवंबर, 2018 की रात संतोष यह कह कर घर से निकला कि वह अपनी ड्यूटी पर जा रहा है. संतोष चला गया तो गुडि़या ने राजू से मोबाइल पर बात की, ‘‘राजू तुम फटाफट आ जाओ. आज तो मौज ही मौज है. वह घर पर नहीं है. पूरी रात अपनी है. जम कर मौजमस्ती करेंगे.’’
रात 12 बजे के आसपास राजू खिड़की के रास्ते गुडि़या के कमरे में पहुंच गया. गुडि़या ने एक कमरे में अपने बच्चों को सुला दिया था. दूसरे कमरे में गुडि़या सजीसंवरी बैठी थी. आते ही राजू ने गुडि़या को अपने बाहुपाश में लिया और दोनों जिस्मानी भूख मिटाने लगे.
इधर सुबह 5 बजे संतोष घर आया. वह कमरे के पास पहुंचा तो उस ने कमरे के अंदर हंसने की आवाजें सुनीं. संतोष का माथा ठनका, वह समझ गया कि कमरे के अंदर गुडि़या और राजू ही होंगे.
गुस्से में उस ने दरवाजा पीटना शुरू किया तो कुछ देर बाद गुडि़या ने दरवाजा खोला, तो उस ने खिड़की से कूदते राजू को देख लिया था. संतोष ने गुस्से में गुडि़या के बाल पकड़े और उसे जमीन पर गिरा दिया. फिर वह उसे लातघूंसों से पीटने लगा.
अचानक संतोष की नजर कमरे में रखी कुल्हाड़ी पर पड़ी. उस ने कुल्हाड़ी उठाई और ताबड़तोड़ कई वार गुडि़या के सिर और गरदन पर किए. गुडि़या खून से लथपथ हो कर जान बख्श देने की गुहार लगाने लगी.
शोर सुन कर बच्चे भी जाग गए लेकिन पिता का रौद्र रूप देख कर वे सहम गए. फिर भी कृष्णा ने बाप के हाथ से कुल्हाड़ी छीन ली और बोला, ‘‘पापा, मम्मी को मत मारो. हम लोगों को रोटी कौन देगा.’’
कहते हुए कृष्णा कुल्हाड़ी ले कर घर के बाहर भागा.
उस ने पड़ोस में रहने वाली रेखा आंटी को बताया कि उस के पापा उस की मम्मी को कुल्हाड़ी से मार रहे हैं. रेखा भागीभागी गुडि़या के कमरे में पहुंची. गुडि़या की उस समय सांसें चल रही थीं. रेखा पुलिस को फोन करने कमरे से बाहर आई तो संतोष ने कमरे में रखा फावड़ा उठा लिया और जोरदार वार कर के गुडि़या को मौत के घाट उतार दिया. हत्या करने के बाद संतोष भागा नहीं बल्कि पत्नी के शव के पास बैठ कर फूटफूट कर रोने लगा.
इधर रेखा निषाद ने पड़ोसियों व थाना अरमापुर पुलिस को सूचना दे दी. खबर मिलते ही अरमापुर थानाप्रभारी आर.के. सिंह भी वहां आ गए. उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया, फिर मृतका के पति संतोष व उस के बच्चों से बात की.

खूनी पेंच: आखिर क्यों साधना को गंवानी पड़ी जान

संतोष ने हत्या का जुर्म कबूलते हुए पुलिस अधिकारियों को बताया कि उस की पत्नी बदचलन थी, इसलिए उसे मार दिया. उसे हत्या का कोई अफसोस नहीं है. मृतका के बच्चों ने बताया कि मां की हत्या उस के पिता संतोष ने उन की आंखों के सामने की थी. उन्होंने मां को बचाने का प्रयास भी किया था, लेकिन बचा नहीं सके. पड़ोसी रेखा भी हत्या की चश्मदीद गवाह बनी.
थाना अरमापुर के इंसपेक्टर आर.के. सिंह ने मृतका गुडि़या के शव को पोस्टमार्टम हाउस भिजवाया. फिर रेखा निषाद को वादी बना कर संतोष निषाद के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर ली. पोस्टमार्टम के बाद शव को मृतका के मातापिता को सौंप दिया गया. कृष्णा, नंदिनी व लाडो को भी पालनपोषण के लिए नानानानी अपने साथ ले गए.
30 नवंबर, 2018 को पुलिस ने अभियुक्त संतोष निषाद को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक उस की जमानत नहीं हुई थी. सभी बच्चे अपनी ननिहाल में थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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