बाप का कातिल

लेखक- रघुनाथ सिंह

दक्षिण नागपुर के हुड़केश्वर रोड इलाके में साधारण आमदनी वाले परिवार रहते हैं. इसी इलाके के सन्मार्ग नगर बांते लेआउट शिव गौरी कौंवैस्ट के पास विजय गोविंदराव पिल्लेवार परिवार समेत रहते थे.

55 साला विजय पिल्लेवार प्रोपर्टी डीलिंग का काम करते थे. कुछ साल पहले तक तो हालात ठीक थे, लेकिन समय का पहिया कुछ ऐसा घूमा कि विजय गोविंदराव पिल्लेवार की माली मामले में हिम्मत हारने लगी. विजय पिल्लेवार इस मामले में खुशनसीब थे कि ‘हम दो हमारे दो’ की तर्ज पर उन का छोटा परिवार था. पत्नी कांताबाई घरेलू औरत थीं. बेटा विक्रांत उर्फ रोहित 26 साल का हो चला था. बेटी अवंती 20 साल की थी.

नागपुर में प्रोपर्टी के धंधे में बरकत का यह आलम रहा कि एक समय में यहां कई लोगों की लौटरी सी लग गई. सामान्य घर वालों के बंगले बन गए. दोपहिया की जगह पर चारपहिया वाहन घर की शान बन गए.

लेकिन, साल 2016 में हवा का एक झोंका सा आया, जिस ने कइयों की खुशियों को झकझोर कर रख दिया. भारत सरकार ने नोटबंदी क्या कराई, कइयों की जिंदगी में पाबंदिया लग गईं. खर्चों के लिए खुले रहने वाले हाथ बंधने से लगे. रुपए का गणित गड़बड़ा गया. दौलत के साथ शोहरत का भी ग्राफ गिरने लगा.

विजय गोविंदराव पिल्लेवार भी उन कई लोगों की कतार में शामिल हो गए, जो मुफलिसी की आहट सुन दबेदबे से रहने लगे. उन की पत्नी कांताबाई की खुशियों पर तो मानो सांप लोट गया था. गर्दिश के दिन आने की चिंता का झटका दिमाग पर लगा, तो उन्होंने खाट पकड़ ली. वे बीमार रहने लगीं.

ऐसे में पिल्लेवार परिवार के लिए बेटा विक्रांत उर्फ रोहित आस का नया दीया जलाने लगा था. विक्रांत ने कम समय में तरक्की के नएनए पायदान छुए थे. घर के सामने खड़ी बेटे की कार पिल्लेवार परिवार की अमीरी की ओर बढ़ते कदम का परिचय देने लगी थी.

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विक्रांत न केवल बौडी बिल्डर था, बल्कि वह बौडी ट्रेनर भी था. कई रईसजादों से ले कर अफसरों को वह फिटनैस ट्रेनिंग दिया करता था.

बेचैन बाप बहका बेटा

25 अप्रैल, 2020 को विजय पिल्लेवार काफी बेचैन व घबराए हुए थे. कोरोना संकट को ले कर लौकडाउन का ऐलान हुए एक महीना हो गया था. घर में रहते हुए बेटे विक्रांत ने गुस्सैल स्वभाव के कई रंग दिखाए थे. 3-4 दिन पहले ही वह किसी दोस्त के साथ झगड़ा कर के आया था.

कर्फ्यू में घर से बाहर नहीं निकलने की हिदायत के बाद भी विक्रांत का अनियंत्रित सा रहना परिवार वालों के लिए परेशानी का सबब बनने लगा था. पहले वह दिन में कम समय ही घर पर रहता था, लेकिन अब वह घर में रहने को मजबूर तो था, लेकिन अपनी हरकतों से घर का माहौल डर वाला बना रखा था.

विक्रांत बातबात पर घर के लोगों पर भड़क उठता था. मांबाप कुछ कहते, तो उन्हें भलाबुरा कहते हुए वहशी तरीके से घूर कर देखता था. छोटी बहन स्नेह जताती, तो उसे भी चुप कर देता था.

पिता विजय पिल्लेवार बेटे के स्वभाव को ले कर सोचविचार में ही थे कि किसी बात को ले कर विक्रांत उपद्रवी हो गया. वह घर के बरतन फेंकने लगा. दीवारों पर हाथ व सिर पटकने लगा. हिंसक पशु की तरह वह गुर्राने भी लगा था.

पासपड़ोस के लोग भी समझ नहीं पा रहे थे कि आखिरकार अच्छेखासे हैंडसम दिखते लड़के को हो क्या गया है.

पूरा पिल्लेवार परिवार घर में ही डरासहमा सा था. विक्रांत अजीब सी हरकतें करते हुए इधरउधर हाथ पटक रहा था. विजय पिल्लेवार ने छिप कर अपने दोस्त को फोन लगाया. विक्रांत की हरकतों के बारे में जानकारी दी. तब वह दोस्त मदद के लिए उन के घर आया.

कुछ समय बातचीत करने के बाद वे विक्रांत को घूम कर आने के बहाने मैडिकल अस्पताल क्षेत्र के एक डाक्टर के घर ले गए.

डाक्टर ने जांच के बाद कहा कि कभीकभी ऐसी हालत हो जाती है कि साधारण इनसान भी असाधारण हरकत करने लगता है. उस के साथ सामान्य बरताव होता है, तो वह भी सामान्य हो जाता है.

डाक्टर ने कुछ गोलियां खाने को दीं और यह कह कर घर लौटा दिया कि फिलहाल विक्रांत का लंबा चैकअप नहीं किया जा सकता है. लौकडाउन है, इसलिए किसी अस्पताल में भरती भी नहीं किया जा सकेगा. सो, बेहतर यही होगा कि उसे घर में ही रखा जाए. वह जो भी कहे, उस की बात की खिलाफत न की जाए.

जाग उठा शैतान

डाक्टर के यहां से लौटने के बाद विक्रांत घर पर अपने कमरे में जा कर सो गया. रात के 8 बजने वाले थे. वह जागा. रात 9 बजे बहन अवंती ने उसे बड़े लाड़ के साथ भोजन करने को कहा. वह थोड़ा मुसकराया. फिर टीवी वाले कमरे में सोफे पर जा कर बैठ गया. उस के मातापिता भी करीब में आ कर बैठ गए थे.

सभी टीवी देख रहे थे. उसी दौरान विक्रांत अपने कमरे में गया. उस ने एक इजैंक्शन अपने हाथ में लगाया. माना गया कि वह इंजैक्शन स्टेरौयड का था.

स्टेरौयड का इंजैक्शन लगा कर विक्रांत फिर से सोफे पर बैठ कर टीवी देखने लगा. शायद उस पर स्टेरौयड का नशा चढ़ने लगा था.

कुछ मिनटों में ही पिता विजय पिल्लेवार सोफे से उठ कर मोबाइल फोन अपने हाथ में ले रहे थे, उसी दौरान विक्रांत चिल्ला उठा, ‘‘कोई मोबाइल फोन को हाथ नहीं लगाएगा. जो जहां बैठा है, वहीं बैठा रहे.’’

विक्रांत की बात पर उस के परिवार वाले पहले तो दंग रह गए, फिर सभी ने सोचा कि शायद विक्रांत मजाक कर रहा है.

पिता ने बगैर कुछ बोले फिर से मोबाइल फोन की ओर  हाथ बढ़ाया, तब विक्रांत ने पिता के गाल पर थप्पड़ मार दिया. मां कांताबाई से रहा नहीं गया. उन्होंने हिम्मत कर के विक्रांत को फटकारा, ‘‘होश में तो है पगले, अपने बाप पर हाथ उठाता है. तेरे को नरक में भी जगह नहीं मिलेगी.’’

विक्रांत और भी गुस्से से लाल हो गया. उस ने मां को भी थप्पड़ मारा. छोटी बहन कुछ बोलती, इस से पहले ही उसे भी एक तमाचा रसीद कर दिया.

क्रूर करतूत

थप्पड़ खा कर गिरे पिता ने उठ कर विक्रांत की खिलाफत करने की कोशिश की, तो घर में कुहराम मच गया. मां और बहन बीचबचाव करती रह गईं.

विक्रांत पिता पर टूट पड़ा. उस के सिर पर मानो खून सवार था. लोहे की छड़ से सिर पर वार कर उस ने पिता को फिर से गिरा दिया और जोरजोर से उन का सिर फर्श पर पटकता रहा.

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विक्रांत की हैवानियत यहीं खत्म नहीं हुई. उस ने बड़ी बेरहमी से अपने दांतों से पिता का गला काट दिया, फिर उन का अंग काट कर चबा गया.

यह देख कर मांबेटी सिहर उठीं. वे दोनों अपनी जान बचाते हुए पड़ोसी के घर भाग गईं और शोर मचा कर लोगों से मदद की गुहार लगाती रहीं.

इधर विक्रांत का तांडव जारी था. वह रसोईघर से सब्जी काटने का चाकू ले आया. बेहोश से हुए पिता के गले पर चाकू से वार करने लगा. फिर पिता को घसीटते हुए दरवाजे तक ले आया. वहां भी वह नहीं रुका. पिता की छाती पर बैठ कर उन की गरदन मरोड़ने लगा.

इस हैवानियत की खबर महल्ले में फैली. कुछ लोग बचाव के लिए आए, लेकिन विक्रांत का खतरनाक रूप देखने के बाद कोई उस के पास जाने की हिम्मत नहीं कर पा रहे थे.

विक्रांत के वार से उस के पिता मरने जैसी हालत में थे. दरवाजे पर पड़े उन के शरीर में कोई हलचल नहीं थी.

इसी बीच विक्रांत को न जाने और क्या सूझा, वह फिर से अपने कमरे में गया. वहां से पेचकश ला कर पिता की आंख निकालने की कोशिश करने लगा. फिर अचानक पेचकश छोड़ कर कमरे के कोने में लहूलुहान हालत में बैठ गया.

तब किसी ने फोन पर हुड़केश्वर पुलिस स्टेशन में सूचना दी. लौकडाउन के चलते पुलिस स्टेशन में पुलिस कम थी. 2 सिपाही मोटरसाइकिल से घटनास्थल पर पहुंचे, लेकिन विक्रांत उन्हें भी दूर से ही मार डालने की धमकी देता रहा. तब वे दोनों सिपाही थाने में लौटे. बड़े अफसरों को इस घटना की सूचना दी. आननफानन कुछ अफसर जमा हुए. आसपास के इलाकों में सुरक्षा बंदोबस्त में लगे पुलिस जवानों को भी सूचना दी गई. तब 8 से 10 पुलिस जवानों का दल पुलिस थाने की गाड़ी ले कर विक्रांत को पकड़ने पहुंचा.

जवानों ने विक्रांत पर डंडे बरसाए, जैसेतैसे उस के पैरों में रस्सी बांधी, फिर उसे थाने में ले कर आए.

उधर पिता विजय पिल्लेवार को तत्काल उपचार के लिए मैडिकल अस्पताल ले जाया गया, लेकिन अस्पताल में डाक्टर ने विजय पिल्लेवार को मरा हुआ बता दिया.

हुड़केश्वर थाने की पुलिस ने विजय पिल्लेवार की बेटी अवंती की शिकायत पर अपराध क्रमांक 166-2020 भारतीय दंड विधान की धारा 302 के तहत मामला दर्ज किया.

विक्रांत थाने में भी बेकाबू हो रहा था. काफी देर तक वह कपड़े उतार कर थाने में हंगामा मचाता रहा. वह कह रहा था कि चाहे उस से जितने भी रुपए ले लो, लेकिन उसे पावर डोज दिला दो.

पुलिस आयुक्त भूषण कुमार उपाध्याय, सहआयुक्त रवींद्र कदम, अपर आयुक्त डाक्टर नीलेश भरणे के मार्गदर्शन में हुड़केश्वर थाने की पुलिस ने विक्रांत के हाथपैर बांध कर कस्टडी में रखा.

दिमाग कैसे सरका

फिलहाल इस वारदात में यही माना जा रहा है कि विक्रांत को स्टेरौयड दवाओं के शौक ने हिंसक बना दिया. लौकडाउन में उस का शौक बाधित होने लगा, तो वह मानसिक तनाव में रहने लगा.

पुलिस ने उस के कमरे व कार से कुछ दवाओं के अलावा इंजैक्शन के सीरिंज बरामद किए. मनोचिकित्सकों से चर्चा के आधार पर पुलिस कह रही है कि शक्तिवर्धक दवा के असर में ही यह वारदात होने की ज्यादा संभावना है.

दरअसल, विक्रांत जिम ट्रेनर है. फिटनैस गुरु के तौर पर वह कई जानीमानी हस्तियों को भी ट्रेनिंग देता रहा है. आईपीएस लैवल के अफसर से ले कर बड़े कारोबारी व नेता भी उसे घर बुला कर उस से फिटनैस की टिप्स लेते रहे हैं.

12वीं क्लास में फेल होने के बाद उस ने कुछ समय तक मैडिकल स्टोर में काम किया. उसे पहले से ही जिम का शौक था. जिम ट्रेनर को कोर्स करने के बाद वह बतौर ट्रेनर काम करता था.

वह मौडल की तरह दिखता है. उस ने पार्टनरशिप में जिम शुरू किया. जिम के साथ ही वह स्टेरौयड दवाओं व इंजैक्शन की बिक्री का काम करता रहा है. उस ने बाकायदा वी चैंपियन नाम से एक मोटिवेशनल संस्था शुरू की. सिक्स पैक बौडी के लिए चर्चित विक्रांत के कई युवा नेताओं से भी संबंध हैं. वह बौडी बनाने के लिए अलगअलग दवाओं के इस्तेमाल व उन के लाभ के बारे में भी क्लास लेता रहा है. इस संबंध में वह औनलाइन टिप्स भी देता रहा है.

विक्रांत के नैटवर्क में कई हसीन युवायुवतियां हैं. कुछ महीने पहले ही उस ने एक बौडी डवलपमैंट इवैंट का आयोजन किया था. उस में बौडी फिटनैस से संबंधित स्टार्स को मुंबई से बुलवा कर शामिल किया था.

2-3 साल में ही उस की जिंदगी में काफी बदलाव आ गया था. उस का आपराधिक रिकौर्ड नहीं है, लेकिन उस के दोस्तों में ऐसे युवाओं की संख्या बढ़ने लगी, जो विविध क्षेत्रों में दबदबा रखते हैं. हुक्का पार्लर्स से ले कर युवाओं के रोमांस स्थल माने जाने वाले कुछ रैस्टोरैंटों में भी उस का खास दबदबा था.

दक्षिण नागपुर में ही ड्रग्स तस्कर आबू रहता था. चर्चा है कि आबू से भी विक्रांत की करीबी जानकारी थी. फिलहाल आबू नागपुर सैंट्रल जेल में है.

विक्रांत ने अपने पिता की हत्या की, उस के 3 दिन बाद आबू ने जेल में खुदकुशी करने की कोशिश की. आबू की इस कोशिश को ले कर प्रशासन हड़बड़ाया है.

आबू ड्रग तस्कर है. उस के पास न केवल बेहिसाब दौलत पाई गई, बल्कि कई पुलिस वाले भी उस के सहयोगी पाए गए. ड्रग तस्करी के जिस मामले में उसे जेल में डाला गया है, उसी मामले में उस के सहयोगी के तौर पर 4 पुलिस वालों को महकमे ने निलंबित किया है.

घातक दवाओं का सेवन

इस मामले को ले कर डाक्टरों व मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि सेहत बनाने के लिए युवा जानेअनजाने में घातक दवाओं का सेवन कर रहे हैं. आधुनिकता की दौड़ और उस की चमक के पीछे भाग रहा युवा वर्ग इस कदर अंधा हो गया है कि परफैक्ट बौडी बनाने के लिए प्रोटीन पाउडर और स्टेरौयड इंजैक्शन का सहारा ले रहा है.

इस से उस के शरीर की मांसपेशियां तो फूल जाती हैं, लेकिन बदले में मानसिक अस्थिरता, कमजोरी के साथ उसे हिंसक भी बना देती है.

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जानकार सलाह देते हैं कि प्रोटीन पाउडर और स्टेरौयड इंजैक्शन लेना बंद कर दें. मनोचिकित्सक डाक्टर अविनाश जोशी कहते हैं कि जिम में बौडी बनाने के लिए मिलने वाला प्रोटीन किसी दवा की दुकान में नहीं मिलता है. यह सिर्फ जिम में मिलता है. इसे खाने से दिमाग पर बुरा असर पड़ सकता है. इस का सेवन करने वाले की कई बार सोचनेसमझने की ताकत कमजोर हो जाती है.

महाराष्ट्र मैडिकल काउंसिल के सदस्य डाक्टर विंकी रुघवानी कहते हैं, ‘‘बौडी बिल्डिंग का चसका युवाओं को ऐसे गंभीर मोड़ की ओर ले जा रहा है, जिस से वे अपनी बुद्धिमता, मानसिक ताकत और शारीरिक ताकत को कमजोर कर रहे हैं.

‘‘उन्हें इस बात का तब पता चलता है, जब अपनी कमजोरी, उदासीनता, घबराहट, चिड़चिड़ापन और मानसिक विक्षिप्तता की हरकतों का उपचार कराने वे डाक्टर के पास जाते हैं. ऐसी अवस्था को साइकोसिस कहा जाता है.’’

मनोवैज्ञानिक डाक्टर अरूप मुखर्जी कहते हैं, ‘‘बाजार में जब भी कोई दवा खरीदो तो उस पर लिखा होता है कि अपने चिकित्सक से सलाह के बाद ही लें.

‘‘शक्तिवर्धक कैप्सूल पर भी यह बात लिखी होती है कि हर किसी के लिए यह फायदेमंद साबित नहीं हो सकता है, क्योंकि किसी को क्या बीमारी है, यह तय नहीं रहता है. यह भी मालूम नहीं रहता है कि संबंधित दवा से फायदा होगा या नहीं.’’

नागपुर पुलिस विभाग में अपराध शाखा के प्रमुख अपर आयुक्त डाक्टर नीलेश भरणे कहते हैं कि नागपुर में ड्रग्स सप्लायर की कड़ी को तोड़ने के लिए पुलिस को सदैव अलर्ट रहना पड़ता है. यहां मुंबई के मार्ग से नाइजीरियन ड्रग सप्लायरों की सक्रियता देखी गई है.

Manohar Kahaniya: पड़ोसन का चसका

सौजन्य- मनोहर कहानियां

नूप की उम्र 17 साल थी. वह पास के ही एक स्कूल में 12वीं जमात में पढ़ता था. एक दिन जब वह स्कूल से घर आया तो देखा कि उस की मम्मी के साथ एक खूबसूरत औरत बैठी थी. वह औरत जवान थी और काफी पढ़ीलिखी भी लग रही थी.

मम्मी ने अनूप को बताया कि वह औरत साथ वाले घर में अपने पति के साथ रहने आई है. बातों ही बातों में जब पता चला कि माया नाम की वह खूबसूरत पड़ोसन इंगलिश में एमए है तो अनूप की मम्मी ने बिना देर किए माया के यहां अनूप का ट्यूशन लगवा दिया.

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अनूप तो अपनी माया भाभी के पास पढ़ने के खयाल से ही झूमने लगा था. अगले हफ्ते से अनूप का ट्यूशन शुरू हुआ तो वह पढ़ने से ज्यादा माया भाभी पर नजरें टिका कर रखता था.

हैरत की बात तो यह थी कि माया भाभी उसे कभी इस बात के लिए टोकती नहीं थीं. वे कभी कौपी पकड़ाने के बहाने उस के हाथों को छूती थीं तो कभी उसे अपने करीब बिठाती थीं.

शुक्रवार का दिन था. अनूप रोज की तरह माया भाभी के पास पढ़ने गया, पर भाभी तो कुछ बीमार दिख रही थीं. उन्होंने अनूप को बैडरूम में आ कर पढ़ने के लिए कहा.

जब अनूप बैड पर बैठा पढ़ रहा था तो उस का ध्यान अपनी पढ़ाई पर कम और माया भाभी पर ज्यादा था.

माया भाभी अचानक कराहीं तो अनूप को लगा कि उन की तबीयत बिगड़ रही है. वह उन्हें पानी पिलाने लगा तो उन्होंने गिलास उस के हाथ से ले कर पानी अपनी गरदन पर उड़ेल लिया. उन्होंने अनूप को पानी पोंछने के लिए कहा तो अनूप उन की बात मान कर वैसा ही करने लगा.

पर माया भाभी की मंशा कुछ और ही थी. उन्होंने अनूप को अपनी तरफ खींचा और उसे चूम लिया.

पहले अनूप थोड़ा सकपकाया, मगर खुद को दूर करने के बजाय उस ने माया भाभी के वश में रहना ज्यादा अच्छा समझा. इस के बाद तो वे दोनों उसी बैड पर प्यार का ट्यूशन पढ़ने लगे.

माया भाभी और अनूप के इन नाजायज संबंधों का सिलसिला तकरीबन 2-3 हफ्तों तक चला. न किसी को शक हुआ, न उन्होंने किसी की परवाह ही की.

लेकिन एक दिन जब माया भाभी के पति दिनेश औफिस से बिना बताए जल्दी घर लौटे और उन्होंने डोरबैल बजाने से बेहतर अपने पास रखी चाबी से दरवाजा खोला तो चौंक गए.

अनूप और अपनी पत्नी माया को बिस्तर पर देख दिनेश हैरान रह गए. उन्होंने दोनों को खूब गालियां दीं.

अनूप किसी तरह अपने कपड़े उठा कर वहां से भागा. वह घर पहुंचा और अपने कमरे का दरवाजा बंद कर के वहीं बैठा रहा.

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कुछ देर बाद जब मम्मीपापा आए तो उन्होंने जबरदस्ती अनूप को कमरे से निकाला और खरीखोटी सुनाई. पापा ने तो उसे कई चांटे भी जड़ दिए.

जब माया और अनूप के नाजायज संबंधों की जानकारी दूसरे लोगों को लगी तो उन का मजाक बनाया जाने लगा. अनूप को खूंटे से बांधने की हिदायतें दी जाने लगीं. माया का तो घर से बाहर निकलना ही बंद हो गया था.

स्कूल में भी अनूप को कोई छिछोरा कहता तो कोई बेशर्म. इन तानों से अनूप की जिंदगी नरक बन गई थी.

एक दिन अनूप माया भाभी के घर जा पहुंचा. माया ने दरवाजा खोला तो अनूप ने उन के मुंह पर थप्पड़ जड़ दिया और जेब से ब्लेड निकाल कर उन की गरदन पर चलाने की कोशिश की.

जब माया चिल्लाईं तो आसपड़ोस के कुछ लोगों ने अनूप को रोका और उस की मां को वहां बुलाया.

माया तो बच गईं, पर अनूप को उन की जान लेने की कोशिश के जुर्म में बाल सुधारगृह भेज दिया गया.

इसी तरह अगस्त, 2015 की बात है. 23 साला प्रवीण को पुलिस ने 3 लोगों के खून के इलजाम में उस के घर से गिरफ्तार किया था.

प्रवीण ने अपनी 37 साला पड़ोसन रीना और उस के 2 बच्चों की हत्या की थी. हत्या की वजह भी यही थी कि रीना इन्हीं बातों से तिलमिलाए प्रवीण को पिछले एक साल से जिस्मानी संबंध बनाने के लिए मजबूर कर रही थी. पर अब प्रवीण इस रिश्ते को खत्म करना चाहता था. रीना उसे ऐसा करने नहीं दे रही थी. इसी के चलते प्रवीण ने रीना और उस के 12 साल के बेटे आदिल और 5 साल की बेटी साहित्य की हत्या कर दी.

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इस तरह के नाजायज संबंधों में अकसर लड़के की उम्र औरत से छोटी होती है, पर आने वाले खतरों के शिकार वे दोनों ही किसी न किसी तरह से होते हैं. किसी औरत की उम्र ज्यादा होने के चलते उस के लिए ऐसे संबंध केवल मनोरंजन का जरीया मात्र हो सकते हैं, इसलिए जवान होते लड़कों को इन के आने वाले खतरों के बारे में सचेत रहना बहुत जरूरी है.

Best of Crime Stories : जिस्म की खातिर किया इश्क

मीना अपने 3 भाईबहनों में सब से बड़ी ही नहीं, खूबसूरत भी थी. उस का परिवार औरैया जिले के कस्बा दिबियापुर में रहता था. उस के पिता अमर सिंह रेलवे में पथ निरीक्षक थे. मीना ने इंटर पास कर लिया तो मांबाप उस के विवाह के बारे में सोचने लगे. उन्होंने उस के लिए घरवर की तलाश शुरू की तो उन्हें कंचौसी कस्बा के रहने वाले राम सिंह का बेटा अनिल पसंद आ गया. जून, 2008 में मीना की शादी अनिल से हो गई. मीना सुंदर तो थी ही, दुल्हन बनने पर उस की सुंदरता में और ज्यादा निखार आ गया था. ससुराल में जिस ने भी उसे देखा, उस की खूबसूरती की खूब तारीफ की. अपनी प्रशंसा पर मीना भी खुश थी. मीना जैसी सुंदर पत्नी पा कर अनिल भी खुश था.

दोनों के दांपत्य की गाड़ी खुशहाली के साथ चल पड़ी थी. लेकिन कुछ समय बाद आर्थिक परेशानियों ने उन की खुशी को ग्रहण लगा दिया. शादी के पहले अनिल छोटेमोटे काम कर के गुजारा कर लेता था. लेकिन शादी के बाद मीना के आने से जहां अन्य खर्चे बढ़ ही गए थे, वहीं मीना की महत्त्वाकांक्षी ख्वाहिशों ने उस के इस खर्च को और बढ़ा दिया था. आर्थिक परेशानियों को दूर करने के लिए वह कस्बे की एक आढ़त पर काम करने लगा था.

आढ़त पर काम करने की वजह से अनिल को कईकई दिनों घर से बाहर रहना पड़ता था, जबकि मीना को यह कतई पसंद नहीं था. पति की गैरमौजूदगी में वह आसपड़ोस के लड़कों से बातें ही नहीं करने लगी थी, बल्कि हंसीमजाक भी करने लगी थी. शुरूशुरू में तो किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया. लेकिन जब उस की हरकतें हद पार करने लगीं तो अनिल के मातापिता से यह देखा नहीं गया और वे यह कह कर गांव चले गए कि अब वे गांव में रह कर खेती कराएंगे.

सासससुर के जाने के बाद मीना को पूरी आजादी मिल गई थी. अपनी शारीरिक भूख मिटाने के लिए उस ने इधरउधर नजरें दौड़ाईं तो उसे राजेंद्र जंच गया. फिर तो वह उसे मन का मीत बनाने की कोशिश में लग गई. राजेंद्र मूलरूप से औरैया का रहने वाला था. उस के पिता गांव में खेती कराते थे. वह 3 भाईबहनों में सब से छोटा था. बीकौम करने के बाद वह कंचौसी कस्बे में रामबाबू की अनाज की आढ़त पर मुनीम की नौकरी करने लगा था.

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राजेंद्र और अनिल एक ही आढ़त पर काम करते थे, इसलिए दोनों में गहरी दोस्ती थी. अनिल ने ही राजेंद्र को अपने घर के सामने किराए पर कमरा दिलाया था. दोस्त होने की वजह से राजेंद्र अनिल के घर आताजाता रहता था. जब कभी आढ़त बंद रहती, राजेंद्र अनिल के घर आ जाता और फिर वहीं पार्टी होती. पार्टी का खर्चा राजेंद्र ही उठाता था.

राजेंद्र पर दिल आया तो मीना उसे फंसाने के लिए अपने रूप का जलवा बिखेरने लगी. मीना के मन में क्या है, यह राजेंद्र की समझ में जल्दी ही आ गया. क्योंकि उस की निगाहों में जो प्यास झलक रही थी, उसे उस ने ताड़ लिया था. इस के बाद तो मीना उसे हूर की परी नजर आने लगी थी. वह उस के मोहपाश में बंधता चला गया था.

एक दिन जब राजेंद्र को पता चला कि अनिल 2 दिनों के लिए बाहर गया है तो उस दिन उस का मन काम में नहीं लगा. पूरे दिन उसे मीना की ही याद आती रही. घर आने पर वह मीना की एक झलक पाने को बेचैन था. उस की यह ख्वाहिश पूरी हुई शाम को. मीना सजधज कर दरवाजे पर आई तो उस समय वह उसे आसमान से उतरी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी. उसे देख कर उस का दिल बेकाबू हो उठा.

राजेंद्र को पता ही था कि अनिल घर पर नहीं है, इसलिए वह उस के घर जा पहुंचा. राजेंद्र को देख कर मीना ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘आज तुम आढ़त से बड़ी जल्दी आ गए, वहां कोई काम नहीं था क्या?’’

‘‘काम तो था भाभी, लेकिन मन नहीं लगा.’’

‘‘क्यों?’’ मीना ने पूछा.

‘‘सच बता दूं भाभी.’’

‘‘हां, बताओ.’’

‘‘भाभी, तुम्हारी सुंदरता ने मुझे विचलित कर दिया है, तुम सचमुच बहुत सुंदर हो.’’

‘‘ऐसी सुंदरता किस काम की, जिस की कोई कद्र न हो.’’ मीना ने लंबी सांस ले कर कहा.

‘‘क्या अनिल भाई, तुम्हारी कद्र नहीं करते?’’

‘‘जानबूझ कर अनजान मत बनो. तुम जानते हो कि तुम्हारे भाई साहब महीने में 10 दिन तो बाहर ही रहते हैं. ऐसे में मेरी रातें करवटों में बीतती हैं.’’

‘‘भाभी जो दुख तुम्हारा है, वही मेरा भी है. मैं भी तुम्हारी यादों में रातरात भर करवट बदलता रहता हूं. अगर तुम मेरा साथ दो तो हमारी समस्या खत्म हो सकती है.’’ कह कर राजेंद्र ने मीना को अपनी बांहों में भर लिया.

मीना चाहती तो यही थी, लेकिन उस ने मुखमुद्रा बदल कर बनावटी गुस्से में कहा, ‘‘यह क्या कर रहे हो, छोड़ो मुझे.’’

‘‘प्लीज भाभी शोर मत मचाओ, तुम ने मेरा सुखचैन सब छीन लिया है.’’ राजेंद्र ने कहा.

‘‘नहीं राजेंद्र, छोड़ो मुझे. मैं बदनाम हो जाऊंगी, कहीं की नहीं रहूंगी मैं.’’

‘‘नहीं भाभी, अब यह मुमकिन नहीं है. कोई पागल ही होगा, जो रूपयौवन के इस प्याले के इतने करीब पहुंच कर पीछे हटेगा.’’ कह कर राजेंद्र ने बांहों का कसाव बढ़ा दिया.

दिखावे के लिए मीना न…न…न… करती रही, जबकि वह खुद राजेंद्र के शरीर से लिपटी जा रही थी. राजेंद्र कोई नासमझ बच्चा नहीं था, जो मीना की हरकतों को न समझ पाता. इस के बाद वह क्षण भी आ गया, जब दोनों ने मर्यादा भंग कर दी.

एक बार मर्यादा भंग हुई तो राजेंद्र को हरी झंडी मिल गई. उसे जब भी मौका मिलता, वह मीना के घर पहुंच जाता और इच्छा पूरी कर के वापस आ जाता. मीना अब खुश रहने लगी थी, क्योंकि उस की शारीरिक भूख मिटने लगी थी, साथ ही आर्थिक समस्या का भी हल हो गया था. मीना जब भी राजेंद्र से रुपए मांगती थी, वह चुपचाप निकाल कर दे देता था.

काम कोई भी हो, ज्यादा दिनों तक छिपा नहीं रहता. ठीक वैसा ही मीना और राजेंद्र के संबंधों में भी हुआ. उन के नाजायज संबंधों को ले कर अड़ोसपड़ोस में बातें होने लगीं. ये बातें अनिल के कानों तक पहुंची तो वह सन्न रह गया. उसे बात में सच्चाई नजर आई. क्योंकि उस ने मीना और राजेंद्र को खुल कर हंसीमजाक करते हुए कई बार देखा था. तब उस ने इसे सामान्य रूप से लिया था. अब पडोसियों की बातें सुन कर उसे दाल में काला नजर आने लगा था.

अनिल ने इस बारे में मीना से पूछा तो उस ने कहा, ‘‘पड़ोसी हम से जलते हैं. राजेंद्र का आनाजाना और मदद करना उन्हें अच्छा नहीं लगता, इसलिए वे इस तरह की ऊलजुलूल बातें कर के तुम्हारे कान भर रहे हैं. अगर तुम्हें मुझ पर शक है तो राजेंद्र का घर आनाजाना बंद करा दो. लेकिन उस के बाद तुम दोनों की दोस्ती में दरार पड़ जाएगी. वह हमारी आर्थिक मदद करना बंद कर देगा.’’

अनिल ने राजेंद्र और मीना को रंगेहाथों तो पकड़ा नहीं था, इसलिए उस ने मीना की बात पर यकीन कर लिया. लेकिन मन का शक फिर भी नहीं गया. इसलिए वह राजेंद्र और मीना पर नजर रखने लगा. एक दिन राजेंद्र आढ़त पर नहीं आया तो अनिल को शक हुआ. दोपहर को वह घर पहुंचा तो उस के मकान का दरवाजा बंद था और अंदर से मीना और राजेंद्र के हंसने की आवाजें आ रही थीं. अनिल ने खिड़की के छेद से अंदर झांक कर देखा तो मीना और राजेंद्र एकदूसरे में समाए हुए थे.

अनिल सीधे शराब के ठेके पर पहुंचा और जम कर शराब पी. इस के बाद घर लौटा और दरवाजा पीटने लगा. कुछ देर बाद मीना ने दरवाजा खोला तो राजेंद्र कमरे में बैठा था. उस ने राजेंद्र को 2 तमाचे मार कर बेइज्जत कर के घर से भगा दिया. इस के बाद मीना की जम कर पिटाई की. मीना ने अपनी गलती मानते हुए अनिल के पैर पकड़ कर माफी मांग ली और आइंदा इस तरह की गलती न करने की कसम खाई.

अनिल उसे माफ करने को तैयार नहीं था, लेकिन मासूम बेटे की वजह से अनिल ने मीना को माफ कर दिया. इस के बाद कुछ दिनों तक अनिल, मीना से नाराज रहा, लेकिन धीरेधीरे मीना ने प्यार से उस की नाराजगी दूर कर दी. अनिल को लगा कि मीना राजेंद्र को भूल चुकी है. लेकिन यह उस का भ्रम था. मीना ने मन ही मन कुछ दिनों के लिए समझौता कर लिया था.

अनिल के प्रति यह उस का प्यार नाटक था, जबकि उस के दिलोदिमाग में राजेंद्र ही बसता था. उधर अनिल द्वारा अपमानित कर घर से निकाल दिए जाने पर राजेंद्र के मन में नफरत की आग सुलग रही थी. उन की दोस्ती में भी दरार पड़ चुकी थी. आमनासामना होने पर दोनों एकदूसरे से मुंह फेर लेते थे. मीना से जुदा होना राजेंद्र के लिए किसी सजा से कम नहीं था.

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मीना के बगैर उसे चैन नहीं मिल रहा था. अनिल ने मीना का मोबाइल तोड़ दिया था, इसलिए उस की बात भी नहीं हो पाती थी. दिन बीतने के साथ मीना से न मिल पाने से उस की तड़प बढ़ती जा रही थी. आखिर एक दिन जब उसे पता चला कि अनिल बाहर गया है तो वह मीना के घर जा पहुंचा. मीना उसे देख कर उस के गले लग गई. उस दिन दोनों ने जम कर मौज की.

लेकिन राजेंद्र घर के बाहर निकलने लगा तो पड़ोसी राजे ने उसे देख लिया. अगले दिन अनिल वापस आया तो राजे ने उसे राजेंद्र के आने की बात बता दी. अनिल को गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन वह चुप रहा. उसे लगा कि जब तक राजेंद्र जिंदा है, तब तक वह उस की इज्जत से खेलता रहेगा. इसलिए इज्जत बचाने के लिए उस ने अपने दोस्त की हत्या की योजना बना डाली. उस ने मीना को उस के मायके दिबियापुर भेज दिया. उस ने उसे भनक तक नहीं लगने दी थी कि उस के मन में क्या चल रहा है. मीना को मायके पहुंचा कर उस ने राजेंद्र से पुन: दोस्ती गांठ ली. राजेंद्र तो यही चाहता था, क्योंकि दोस्ती की आड़ में ही उस ने मीना को अपनी बनाया था. एक बार फिर दोनों की महफिल जमने लगी.

एक दिन शराब पीते हुए राजेंद्र ने कहा, ‘‘अनिलभाई, तुम ने मीना भाभी को मायके क्यों पहुंचा दिया? उस के बिना अच्छा नहीं लगता. मुझे आश्चर्य इस बात का है कि उस के बिना तुम्हारी रातें कैसे कटती हैं?’’

अनिल पहले तो खिलखिला कर हंसा, उस के बाद गंभीर हो कर बोला, ‘‘दोस्त मेरी रातें तो किसी तरह कट जाती हैं, पर लगता है तुम मीना के बिना बेचैन हो. खैर तुम कहते हो तो मीना को 2-4 दिनों में ले आता हूं.’’

अनिल को लगा कि राजेंद्र को उस की दोस्ती पर पूरा भरोसा हो गया है. इसलिए उस ने राजेंद्र को ठिकाने लगाने की तैयारी कर ली. उस ने राजेंद्र से कहा कि वह भी उस के साथ मीना को लाने चले. वह उसे देख कर खुश हो जाएगी. मीना की झलक पाने के लिए राजेंद्र बेचैन था, इसलिए वह उस के साथ चलने को तैयार हो गया.

5 जुलाई, 2016 की शाम अनिल और राजेंद्र कंचौसी रेलवे स्टेशन पहुंचे. वहां पता चला कि इटावा जाने वाली इंटर सिटी ट्रेन 2 घंटे से अधिक लेट है. इसलिए दोनों ने दिबियापुर (मीना के मायके) जाने का विचार त्याग दिया. इस के बाद दोनों शराब के ठेके पर पहुंचे और शराब की बोतल, पानी के पाउच और गिलास ले कर कस्बे से बाहर पक्के तालाब के पास जा पहुंचे.

वहीं दोनों ने जम कर शराब पी. अनिल ने जानबूझ कर राजेंद्र को कुछ ज्यादा शराब पिला दी, जिस से वह काफी नशे में हो गया. वह वहीं तालाब के किनारे लुढ़क गया तो अनिल ने ईंट से उस का सिर कुचल कर उस की हत्या कर दी. राजेंद्र की हत्या कर के अनिल ने उस के सारे कपडे़ उतार लिए और खून सनी ईंट के साथ उन्हें तालाब से कुछ दूर झाडि़यों में छिपा दिया. इस के बाद वह ट्रेन से अपनी ससुराल दिबियापुर चला गया.

इधर सुबह कुछ लोगों ने तालाब के किनारे लाश देखी तो इस की सूचना थाना सहावल पुलिस को दे दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी धर्मपाल सिंह यादव फोर्स ले कर घटनास्थल पहुंच गए. तालाब के किनारे नग्न पड़े शव को देख कर धर्मपाल सिंह समझ गए कि हत्या अवैध संबंधों के चलते हुई है.

लाश की शिनाख्त में पुलिस को कोई परेशानी नहीं हुई. मृतक का नाम राजेंद्र था और वह रामबाबू की आढ़त पर मुनीम था. आढ़तिया रामबाबू को बुला कर राजेंद्र के शव की पहचान कराई गई. उस के पास राजेंद्र के पिता रामकिशन का मोबाइल नंबर था. धर्मपाल सिंह ने उसी नंबर पर राजेंद्र की हत्या की सूचना दे दी.

घटनास्थल पर बेटे की लाश देख कर रामकिशन फफक कर रो पड़ा. लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई. धर्मपाल सिंह ने जांच शुरू की तो पता चला कि मृतक राजेंद्र कंचौसी कस्बा के कंचननगर में किराए के कमरे में रहता था. उस की दोस्ती सामने रहने वाले अनिल से थी, जो उसी के साथ काम करता था.

राजेंद्र का आनाजाना अनिल के घर भी था. उस के और अनिल की पत्नी मीना के बीच मधुर संबंध भी थे. अनिल जांच के घेरे में आया तो धर्मपाल सिंह ने उस पर शिकंजा कसा. उस से राजेंद्र की हत्या के संबंध में पूछताछ की गई तो पहले वह साफ मुकर गया. लेकिन जब पुलिस ने सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गया.

उस ने बताया कि राजेंद्र ने उस की पत्नी मीना से नाजायज संबंध बना लिए थे, जिस से उस की बदनामी हो रही थी. इसीलिए उस ने उसे ईंट से कुचल कर मार डाला है. अनिल ने हत्या में प्रयुक्त ईंट तथा खून सने कपड़े बरामद करा दिए, जिसे उस ने तालाब के पास झाडि़यों में छिपा रखे थे.

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अनिल ने हत्या का अपराध स्वीकार कर लिया था. इसलिए धर्मपाल सिंह ने मृतक ने पिता रामकिशन को वादी बना कर राजेंद्र की हत्या का मुकदमा दर्ज कर अनिल को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जिला कारागार भेज दिया गया.

खतरनाक मंसूबे की चपेट में नीलम

4अप्रैल, 2019 गुरुवार का दिन था. सुबह के लगभग साढ़े 4 बजे थे. सिपाही नीलम शर्मा की सुबह 5 बजे से दोपहर एक बजे तक मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर ड्यूटी थी. नीलम ने तैयार हो कर अपना लंच बौक्स पिट्ठू बैग में रखा और दामोदरपुरा के मुख्यद्वार पर प्याऊ के पास पहुंच गई. यहीं पर रोजाना उसे लेने के लिए पुलिस की बस आती थी. प्याऊ के पास खड़ी हो कर वह स्टाफ की बस का इंतजार करने लगी. बस आने के लगभग 5 मिनट पहले एक कार नीलम शर्मा से लगभग 200 मीटर की दूरी पर आ कर रुकी. उस समय नीलम का ध्यान अपनी बस के आने की तरफ था. अचानक आगे बढ़ी कार नीलम के पास आई. झटके से रुकी कार से उतर कर एक युवक तेजी से नीलम की ओर बढ़ा. जबकि कार में बैठे अन्य युवकों ने कार स्टार्ट रखी.

कार से उतरे युवक ने नीलम से कुछ बात की, इस के बाद उस ने नीलम के ऊपर तेजाब फेंक दिया. नीलम ने अपना बैग उस के मुंह पर मारा तो वह फुरती से कार में जा कर बैठ गया. कार वहां से कुछ दूर जा कर खड़ी हो गई.

अचानक हुए एसिड अटैक से झुलसी 26 वर्षीय नीलम घबरा गई. वह तेजाब की जलन से तड़पने लगी. उस ने शोर मचाया. मदद के लिए वह इधरउधर भागने लगी. जो भी उसे मिला, उस ने उसी से मदद की गुहार लगाई.

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इस बीच अखबार के एक हौकर ने महिला सिपाही को बचाने का प्रयास किया. तभी हमलावरों ने उन दोनों पर कार चढ़ाने की कोशिश की. लेकिन हौकर महिला सिपाही को ले कर एक तरफ हट गया, जिस से दोनों बच गए. हौकर ने उस कार पर पत्थर भी फेंके पर कार रुकी नहीं, तेज गति से चली गई.

रोतेबिलखते वह सिपाही एक दुकान के आगे गिर गई और दर्द की वजह से चीखने लगी. तेजाब से नीलम के कपड़े भी जल गए थे. यह देख दुकानदार ने मौर्निंग वाक पर निकली महिलाओं को बुलाया और उन की चुन्नी से नीलम को ढंका. उसी समय किसी ने इस घटना की जानकारी फोन द्वारा पुलिस को दे दी.

नीलम ने किसी तरह अपनी सहकर्मी सिपाही नीतू को फोन कर दिया था. थोड़ी देर में पुलिस मौके पर पहुंच गई और नीलम को जिला अस्पताल में भरती करा दिया.

जानकारी मिलते ही एसएसपी सत्यार्थ अनिरुद्ध पंकज, एसपी (सिटी) राजेश कुमार सिंह, एसपी (क्राइम) अशोक कुमार मीणा, एसपी (सुरक्षा) ज्ञानेंद्र कुमार सिंह भी अस्पताल पहुंच गए. फोरैंसिक टीम ने भी घटनास्थल पर पहुंच कर साक्ष्य जुटाए. यह घटना विश्वप्रसिद्ध धार्मिक नगरी मथुरा में घटी थी.

नीलम पिछले एक साल से थाना सदर बाजार क्षेत्र के दामोदरपुरा में प्रधान सुरेंद्र सिंह के यहां अपनी सहकर्मी नीतू के साथ रह रही थी. नीलम के मकान मालिक सुरेंद्र सिंह भी नीतू के साथ अस्पताल पहुंच गए.

महिला सिपाही नीलम पर एसिड अटैक की घटना से पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया. पूछताछ में नीलम ने पुलिस को बताया कि इस वारदात को संजय नाम के युवक ने अपने साथियों के साथ अंजाम दिया था.

वह संजय को पहले से जानती थी. नीलम ने सदर बाजार थाने में संजय सिंह उर्फ बिट्टू निवासी नेमताबाद, खुर्जा (बुलंदशहर) व सोनू सहित 4 लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी. भादंवि की धारा 326(ए), 332 व 506 के तहत मुकदमा दर्ज कर पुलिस हमलावरों की तलाश में जुट गई.

नीलम की हालत थी नाजुक

जिला अस्पताल के डाक्टरों ने बताया कि नीलम तेजाब से लगभग 45 फीसदी झुलस गई है. एसिड से उस का चेहरा, एक आंख, हाथ व शरीर के अन्य हिस्से जल गए थे. नीलम की नाजुक हालत को देखते हुए उसी दिन शाम को उसे आगरा के सिकंदरा क्षेत्र स्थित सिनर्जी अस्पताल रेफर कर दिया गया. एसपी (सिटी) राजेश कुमार सिंह खुद उसे ले कर सिनर्जी अस्पताल में भरती कराने पहुंचे.

सिनर्जी अस्पताल के डाक्टर नीलम के इलाज में जुट गए. उन्होंने बताया कि नीलम की हालत स्थिर बनी हुई है. जब नीलम के घर वालों को बेटी के साथ घटी दिल दहलाने वाली घटना की जानकारी मिली तो उन के होश उड़ गए. वे भी सीधे सिनर्जी अस्पताल पहुंच गए.

आगरा के सिनर्जी अस्पताल में भरती नीलम इस हादसे से बेहद डरी हुई थी. कहने को अस्पताल में पर्याप्त सुरक्षा लगाई गई थी लेकिन पीडि़ता के परिजनों ने पुलिस अधिकारियों से और कड़ी सुरक्षा की मांग की. उन्हें डर था कि फरार संजय उसे जिंदा नहीं छोड़ेगा.

इस पर एसएसपी ने पीडि़ता व उस के घर वालों को हरसंभव सुरक्षा देने का वायदा किया. घर वालों के अलावा अन्य किसी को भी अस्पताल में पीडि़ता से मिलने पर रोक लगा दी गई.

महिला सिपाही पर एसिड अटैक की यह दुस्साहसिक घटना पुलिस के लिए सिरदर्द बन गई थी. हर कोई पुलिस की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर रहा था. इलैक्ट्रौनिक और प्रिंट मीडिया में यह खबर सुर्खियां बन गई थीं. इस से पुलिस की किरकिरी हो रही थी.

अभियुक्तों के फरार होने को ले कर उस दिन सोशल मीडिया पर भी सवाल खड़े होते रहे. लोगों का कहना था कि जब पुलिस वाले ही सुरक्षित नहीं रहेंगे तो भला आम आदमी का क्या होगा.

उत्तर प्रदेश पुलिस के मुखिया ओ.पी. सिंह ने मथुरा के एसएसपी सत्यार्थ अनिरुद्ध पंकज से महिला कांस्टेबल नीलम शर्मा पर हुए एसिड अटैक की पूरी जानकारी ली. उन्होंने निर्देश दिए कि हमलावरों को तत्काल गिरफ्तार किया जाए. इस एसिड अटैक के लिए जिम्मेदार कहीं भी हों, उन्हें ढूंढ निकाला जाए.

मथुरा में पुलिसकर्मी नीलम पर हुए एसिड अटैक के बाद महिला संगठनों के साथसाथ छात्राओं ने भी आक्रोश व्यक्त किया. वात्सल्य पब्लिक स्कूल, राधाकुंड, चरकुला ग्लोबल पब्लिक स्कूल और गौड़ शिक्षा निकेतन में शिक्षिकाओं एवं छात्रछात्राओं ने पीडि़ता के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना की.

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उन्होंने एसिड फेंकने वाले दोषी लोगों को फांसी देने की मांग की. वहीं आगरा के सिनर्जी अस्पताल में भरती नीलम को देखने के लिए महिला शांति सेना की सदस्याएं पहुंची. संरक्षिका कुंदनिका शर्मा ने आरोपियों को शीघ्र पकड़ने व कड़ी सजा दिलाने की मांग की.

पकड़ा गया मुख्य आरोपी

एसएसपी सत्यार्थ अनिरुद्ध पंकज ने आरोपियों को पकड़ने के लिए अलगअलग थानों के तेजतर्रार पुलिस अफसरों की 5 पुलिस टीमें बनाईं. ये टीमें मथुरा के अलावा खुर्जा और बुलंदशहर जा कर आरोपियों को तलाशने लगीं. इस बीच पुलिस को हमलावरों की कार नंबर डीएल 2पीए8381 घटनास्थल से कुछ दूर लावारिस हालत में खड़ी मिली. कार पुलिस ने जब्त कर ली. पुलिस टीम ने अगले दिन 5 अप्रैल को शाम 5 बजे मुखबिर की सूचना पर एक आरोपी सोनू को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उस ने बताया कि नीलम शर्मा के ऊपर तेजाब संजय सिंह ने डाला था. सोनू की निशानदेही पर रात करीब 11 बजे घटना के मुख्य आरोपी संजय सिंह को मुठभेड़ के बाद यमुनापार इलाके के राया रोड स्थित राधे कोल्डस्टोरेज के पास से गिरफ्तार कर लिया गया.

मुठभेड़ के दौरान संजय के बाएं पैर में गोली लग गई थी. पुलिस ने इलाज के लिए उसे अस्पताल में भरती करा दिया था. संजय के कब्जे से पुलिस ने एक तमंचा और एक बाइक बरामद की. पुलिस ने संजय सिंह से जब सख्ती से पूछताछ की तो सिपाही नीलम शर्मा पर एसिड अटैक करने की जो कहानी सामने आई, वह प्यार की चाशनी में डूबी हुई निकली—

नीलम शर्मा मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला बुलंदशहर की कोतवाली शिकारपुर के गांव आंचरू कलां की रहने वाली थी. उस के पिता का नाम सुंदरलाल शर्मा था. जबकि मुख्य आरोपी संजय सिंह खुर्जा में एक कंप्यूटर सेंटर चलाता था. जब नीलम पढ़ाई कर रही थी, तब उस का संजय सिंह की दुकान पर आनाजाना लगा रहता था.

संजय और नीलम की मुलाकात कंप्यूटर सेंटर में हुई जो बाद में दोस्ती में बदल गई थी. दोस्त बन जाने के बाद दोनों फोन पर भी बातें करने लगे. दोस्ती बढ़ी तो संजय नीलम को एकतरफा प्यार करने लगा, जबकि नीलम

उसे केवल अपना दोस्त ही समझती थी.

एक दिन संजय ने अपने मन की बात नीलम के सामने जाहिर कर दी तो नीलम ने उसे झिड़क दिया और उस से दूरी बना ली. इस पर संजय ने इस बारे में नीलम के घर वालों से बात की. चूंकि संजय उन की बिरादरी का नहीं था, इसलिए नीलम के पिता सुंदरलाल शर्मा ने नीलम की शादी संजय से करने को मना कर दिया.

इस के बाद नीलम की सन 2016 में उत्तर प्रदेश पुलिस में कांस्टेबल के पद पर नौकरी लग गई. नौकरी लगने के बाद भी संजय ने उसे परेशान करना बंद नहीं किया. और कोई रास्ता न देख नीलम ने अपना फोन नंबर बदल दिया. लेकिन इस के बावजूद संजय ने उसे ढूंढ निकाला और परेशान करने लगा.

संजय लगातार उस पर शादी के लिए दबाव डाल रहा था. इस से परेशान हो कर नीलम के घर वालों ने उस की शादी कहीं दूसरी जगह तय कर दी.यह बात संजय को बुरी लगी. उसे लगने लगा कि उस की प्रेमिका अब किसी और की हो जाएगी.

सन 2017 में नीलम की पोस्टिंग मथुरा में हो गई. कुछ दिनों वह पुलिस लाइन में रही, इस के बाद सन 2018 में उस की तैनाती श्रीकृष्ण जन्मस्थली की सुरक्षा में हो गई. इस पर नीलम मथुरा के दामोदरपुरा में प्रधान सुरेंद्र सिंह के यहां किराए पर रहने लगी. उस ने अपनी बैचमेट और सहेली नीतू को भी उस कमरे में अपने साथ रख लिया था.

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पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में संजय सिंह ने बताया कि वह नीलम से प्यार करता था. उस से उस की पिछले 10 सालों से जानपहचान थी. वह उस से शादी करना चाहता था, लेकिन उस ने बात तक करनी बंद कर दी थी. जब उसे पता चला कि नीलम की शादी कहीं और तय हो गई है, तब उस ने तय कर लिया था कि वह अपनी प्रेमिका को किसी और की हरगिज नहीं होने देगा.

खतरनाक इरादे

उस की शादी रोकने के लिए उस ने नीलम के ऊपर तेजाब डालने का फैसला कर लिया. इस काम के लिए उस ने अपने दोस्तों हिमांशु ठाकुर, बौबी, किशन शर्मा और सोनू को भी तैयार कर लिया. ये सब उस की प्रेम कहानी को जानते थे.

सब से पहले इन लोगों ने नीलम के आनेजाने के मार्ग की रेकी की. इस से पता लग गया कि उस की ड्यूटी श्रीकृष्ण जन्मस्थली की सुरक्षा पर लगी है और वह सुबह पैदल ही दामोदरपुरा के प्याऊ पर पहुंचती है. वहां से वह पुलिस की बस में बैठ कर जाती है.

उन्होंने प्याऊ के पास ही योजना को अंजाम देने का फैसला कर लिया. यह भी तय कर लिया था कि यदि नीलम बच गई तो उसे गोली मार देंगे. और अगर उस के साथ उस की सहेली नीतू हुई तो उसे भी जिंदा नहीं छोड़ेंगे.

सभी ने बौबी की कार से घटना को अंजाम देने की बात तय कर ली. योजना बनाने के बाद संजय ने खुर्जा में पाहसू रोड स्थित दुकानदार पुनीत शर्मा के यहां से तेजाब खरीद लिया. फिर 4 अप्रैल, 2019 की सुबह उन्होंने वारदात को अंजाम दे दिया.

संजय की निशानदेही पर पुलिस ने तेजाब विक्रेता पुनीत शर्मा को भी गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद पुलिस ने संजय सिंह, सोनू और पुनीत शर्मा को कोर्ट में पेश कर संजय का रिमांड मांगा. गोली लगने की वजह से संजय अस्पताल में भरती था. अदालत ने पुलिस की मांग मंजूर कर सोनू और पुनीत शर्मा को जेल भेज दिया और गोली से घायल संजय को पुलिस कस्टडी में सौंप दिया.पुलिस को अभी कई आरोपी गिरफ्तार करने थे. संजय की निशानदेही पर 6 अप्रैल को पुलिस ने बौबी और किशन शर्मा को गोकुल बैराज मोड़ से गिरफ्तार कर लिया. शाम 6 बजे के करीब वे दोनों मथुरा आए हुए थे. पुलिस के अनुसार, उन का अपराध इसलिए भी गंभीर हो गया क्योंकि उन्होंने संजय को रोकने के बजाए उकसाया था.

पुलिस ने दोनों आरोपियों से पूछताछ कर रविवार को जेल भेज दिया. एसिड अटैक के अब तक 5 आरोपी गिरफ्तार किए जा चुके थे. अभी एक आरोपी हिमांशु ठाकुर पुलिस की गिरफ्त से दूर था. पुलिस को 9 अप्रैल, 2019 को पता चला कि फरार आरोपी हिमांशु मथुरा आ रहा है. इस के बाद स्वाट टीम प्रभारी राजीव कुमार, थाना सदर बाजार प्रभारी लोकेश भाटी और छाता कोतवाली प्रभारी हरवेंद्र मिश्रा ने घेराबंदी कर के गोकुल बैराज पर उसे पकड़ने की कोशिश की, लेकिन वह फायर कर के बाइक से भागने लगा. उसे पकड़ने के लिए पुलिस ने भी गोली चलाई. गोली उस की दाहिनी टांग में लगी थी. घायल आरोपी वहीं गिर गया. इस के बाद पुलिस ने उसे हिरासत में लेने के बाद जिला अस्पताल में भरती करा दिया.

अपराध में हिमांशु भी था बराबर का हिस्सेदार

हिमांशु की सीधे हाथ की अंगुलियां तेजाब से जल गई थीं. पुलिस ने उस के पास से बाइक व तमंचा भी बरामद कर लिया. पूछताछ में उस से काम की कई बातें पता चलीं. हिमांशु को भी अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

उधर मुख्य आरोपी संजय सिंह जिस की बाईं टांग में गोली लगी थी, उस का औपरेशन किया गया. उसे 2 यूनिट खून भी चढ़ाया गया.

प्रैस कौन्फ्रैंस में एसएसपी ने बताया कि आरोपी संजय ने जबरन शादी के लिए इस घटना को अंजाम दिया था. महिला पुलिसकर्मी पर एसिड अटैक की दिल दहला देने वाली घटना में शामिल सभी 6 आरोपी गिरफ्तार कर लिए गए.

इन में से 4 को जेल भेज दिया गया, जबकि 2 घायल आरोपी अस्पताल में भरती हैं, जहां उन का उपचार चल रहा है. सभी पर एनएसए भी लगाया जाएगा. एसिड अटैक से घायल महिला पुलिसकर्मी नीलम की हरसंभव सहायता की जाएगी.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Best of Crime Stories : कामुक तांत्रिक और शातिर बेगम

मध्य प्रदेश के जिला देवास की एक तहसील है खातेगांव, जहां से 5-7 किलोमीटर दूर स्थित है गांव सिराल्या. इसी गांव में रूप सिंह पत्नी मीराबाई और एकलौती बेटी सत्यवती के साथ झोपड़ी बना कर रहता था. रूप सिंह को कैंसर होने की वजह से उस के इलाज से ले कर पेट भरने और तन ढकने तक की जिम्मेदारी मीराबाई उठा रही थी.

आदमी कितना भी गरीब क्यों न हो, जान पर बन आती है तो सब कुछ दांव पर लगा कर जान बचाने की कोशिश करता है. मीराबाई भी खानेपहनने से जो बच रहा था, पति रूप सिंह के इलाज पर खर्च कर रही थी. लेकिन उस की बीमारी मीराबाई की कमाई लील कर भी कम होने के बजाय बढ़ती जा रही थी.

जब सारी जमापूंजी खर्च हो गई और कोई फायदा नहीं हुआ तो रूप सिंह दवा बंद कर के तंत्रमंत्र से अपनी जीवन की बुझती ज्योति को जलाने की कोशिश करने लगा. वह एक मुसीबत से जूझ ही रहा था कि अचानक एक और मुसीबत उस समय आ खड़ी हुई, जब जुलाई, 2016 के आखिरी सप्ताह में एक दिन उस की 16 साल की बेटी सत्यवती अचानक गायब हो गई. एकलौती होने की वजह से सत्यवती ही मीराबाई और रूप सिंह के लिए सब कुछ थी.

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उस के अलावा पतिपत्नी के पास और कुछ नहीं था. इसलिए बेटी के गायब होने से दोनों परेशान हो उठे. रूप सिंह बीमारी की वजह से लाचार था, इसलिए मीराबाई अकेली ही बेटी की तलाश में भटकने लगी. जब बेटी का कहीं कुछ पता नहीं चला तो आधी रात के आसपास वह रोतीबिलखती थाना खातेगांव जा पहुंची.

मीराबाई ने पूरी बात ड्यूटी अफसर को बताई तो उन्होंने तुरंत इस बात की जानकारी थानाप्रभारी तहजीब काजी को दे दी. वह तुरंत थाने आ पहुंचे और मीराबाई को शांत करा कर पूरी बात बताने को कहा.

मीराबाई ने जवानी की दहलीज पर खड़ी अपनी बेटी सत्यवती के लापता होने की पूरी बात तहजीब काजी को बताई तो उन्हें समझते देर नहीं लगी कि सत्यवती भले ही नाबालिग थी, लेकिन इतनी छोटी भी नहीं थी कि उस के गायब होने के पीछे किसी बुरी घटना की आशंका न हो, जबकि आजकल तो लोग दूधपीती बच्चियों को भी नहीं छोड़ रहे हैं.

तहजीब काजी को प्रेमप्रसंग को ले कर सत्यवती के भाग जाने की आंशका थी. लेकिन जब इस बारे में उन्होंने मीराबाई से पूछताछ की तो उन की यह आशंका निराधार साबित हुई, क्योंकि मीराबाई का कहना था कि सत्यवती की न तो गांव के किसी लड़के से दोस्ती थी और न ही किसी लड़के का उस के घर आनाजाना था.

बस, एक राशिद बाबा का उस के घर आनाजाना था. यही वजह थी कि गांव वालों ने उस के परिवार का सामाजिक बहिष्कार कर रखा था. लेकिन नेमावर के रहने वाले राशिद बाबा पांचों वक्त नमाजी और पक्के मजहबी हैं, इसलिए उन पर शंका नहीं की जा सकती. फिर वह सत्यवती के दादा की उम्र के भी हैं. इसलिए मासूम बच्ची पर नीयत खराब कर के वह अपना बुढ़ापा क्यों बेकार करेंगे.

बहरहाल, सत्यवती की उम्र को देखते हुए उस की तलाश करना जरूरी था. इसलिए तहजीब काजी पूछताछ करने के लिए रात में ही मीराबाई के गांव जा पहुंचे, जहां उन्हें चौकाने वाली बात यह पता चली कि राशिद बाबा के आनेजाने से लगभग पूरा गांव रूप सिंह से नाराज था. इस की वजह यह थी कि एक तो वह दूसरे मजहब का था, जो गांव वालों को पसंद नहीं था, इस के अलावा वह तंत्रमंत्र करता था, जिस से गांव वाले उस से डरते थे.

राशिद के तांत्रिक होने की जानकारी होते ही तहजीब काजी को उसी पर शक हुआ. क्योंकि पुलिस की अब तक की नौकरी से उन्हें यह अच्छी तरह पता चल चुका था कि तंत्रमंत्र कुछ नहीं है, सिर्फ मन का वहम है. इसलिए जो लोग खुद को तांत्रिक होने का दावा करते हैं, सीधी सी बात है कि वे बहुत ही शातिर किस्म के होते हैं.

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तांत्रिकों द्वारा महिलाओं और मासूम लड़कियों के यौनशोषण की घटनाएं आए दिन सामने आती रहती हैं. यही सब सोच कर तहजीब काजी को राशिद बाबा पर शक हुआ. उन्होंने तुरंत एसपी शशिकांत शुक्ला और एएसपी राजेश रघुवंशी को घटना के बारे में बता कर दिशानिर्देश मांगे.

अधिकारियों के आदेश पर समय गंवाए बगैर वह 15 किलोमीटर दूर स्थित राशिद के घर जा पहुंचे, लेकिन वह घर पर नहीं मिला. इस से उन का शक और बढ़ गया. घर वालों से पूछताछ कर के वह वापस आ गए.

तहजीब काजी सत्यवती की तलाश में तत्परता से जुट गए थे. उन्होंने अपने मुखबिरों को भी राशिद बाबा की तलाश में लगा दिया था. उन की इस सक्रियता का ही नतीजा था कि अगले दिन नेमावर की ही रहने वाली कमला सत्यवती को ले कर थाने आ पहुंची.

कमला ने बताया कि किसी बात को ले कर कल मीराबाई ने सत्यवती को डांट दिया था, जिस से नाराज हो कर यह उस के पास आ गई थी. सुबह उसे पता चला कि इसे पुलिस खोज रही है तो वह इसे ले कर इस के घर पहुंचाने आ गई.

बेटी को देख कर मीराबाई तो सब भूल गई, लेकिन तहजीब काजी को याद था कि पूछताछ में मीराबाई ने सत्यवती के साथ डांटडपट वाली बात से मना करते हुए कहा था कि वही तो उस की सब कुछ है, इसलिए उस ने या उस के पति ने इसे डांटनेडपटने की कौन कहे, इस की तरफ कभी अंगुली तक उठा कर बात नहीं की.

इसीलिए तहजीब काजी को लगा कि कमला सत्यवती को ले कर आई है, यह तो ठीक है, लेकिन जो बता रही है, वह झूठ है. क्योंकि कमला जिस अंदाज में बात कर रही थी, उस से उन्होंने अनुमान लगाया कि यह काफी शातिर किस्म की औरत है. वह समझ गए कि मामला कुछ और ही है.

तहजीब काजी जानते थे कि यह औरत सच्चाई बता नहीं सकती, इसलिए उन्होंने सत्यवती से सच्चाई जानने की जिम्मेदारी एसआई रविता चौधरी को सौंप दी.

एसआई रविता चौधरी थानाप्रभारी के मकसद को भली प्रकार समझ रही थीं, इसलिए उन्होंने जल्दी ही बातों ही बातों में सत्यवती का विश्वास जीत कर उस से सचसच बताने को कहा तो उस ने कमला और राशिद बाबा की जो सच्चाई बताई, उसे सुन कर सभी हक्केबक्के रह गए.

मीराबाई को तो भरोसा ही नहीं हो रहा था कि जिस राशिद बाबा को वह भला आदमी समझ कर पूज रही थी, वही उस की बेटी को गंदा कर रहा था. सत्यवती के बयान से साफ हो गया था कि राशिद बाबा के जुर्म में कमला भी बराबर की हकदार थी, इसलिए पुलिस ने उसे तो गिरफ्तार कर ही लिया, उस की निशानदेही पर राशिद बाबा को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

पकड़े जाने के बाद राशिद ने दीनईमान की बातों में उलझा कर तहजीब काजी को प्रभावित करने की काफी कोशिश की, लेकिन उन्होंने राशिद और कमला के खिलाफ दुष्कर्म एवं धोखाधड़ी का मामला दर्ज कर उन्हें अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

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राशिद, उस की सहयोगी कमला और सत्यवती के बयान के आधार पर तंत्रमंत्र के नाम पर सत्यवती के यौनशोषण की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार थी—

नेमावर के अपने घर में साइकिल सुधारने और छोटीमोटी जरूरत के सामानों की दुकान चलाने वाला राशिद बाबा जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही कामुक और शातिर प्रवृत्ति का हो गया था. उस का निकाह जल्दी हो गया था, परंतु बीवी के आ जाने के बाद भी उस की आदत में कोई सुधार नहीं हुआ था.

कहा जाता है कि राशिद के मन में किशोर उम्र की लड़कियों के प्रति अजीब सी चाहत थी, इसलिए उम्र बढ़ने पर भी वह लड़कियों को हसरत भरी नजरों से देखता रहता था. दुकान पर आने वाली लड़कियों से भी वह छेड़छाड़ करता रहता था. यही वजह थी कि गांव की कुछ आवारा किस्म की औरतों से उस के संबंध बन गए थे. उन्हीं में एक कमला भी थी.

कमला राशिद के पड़ोस में ही रहती थी. कहा जाता है कि राशिद के संबंध कमला से तो थे ही, उस के माध्यम से उस ने कई अन्य औरतों से भी संबंध बनाए थे. लेकिन बढ़ती उम्र की वजह से अब औरतें उस के पास आने से कतराने लगी थीं.

इस से परेशान राशिद को अखबारों से ऐसे तांत्रिकों के बारे में पता चला, जो तंत्रमंत्र की ओट में महिलाओं का यौनशोषण करते थे. उस ने वही तरीका अपनाने की ठान कर कमला से बात की तो वह उस का साथ देने को राजी हो गई. राशिद जानता था कि तांत्रिक बनने में डबल फायदा है. एक तो नईनई औरतें अय्याशी के लिए मिलेंगी, दूसरे कमाई भी होगी.

इस के बाद पूरी योजना बना कर उस ने दाढ़ी बढ़ा ली और पांचों वक्त का नमाजी बन गया. इस के अलावा यहांवहां से कुछ तंत्रमंत्र सीख कर वह तांत्रिक बन गया. इस में कमला ने उस का पूरा साथ दिया. अगर वह मदद न करती तो शायद राशिद की तंत्रमंत्र की दुकान इतनी जल्दी न जम पाती.

दरअसल, कमला ने ही गांव की औरतों में यह बात फैला दी कि राशिद बाबा को रूहानी ताकत ने तंत्रमंत्र की शक्ति दी है, इसलिए उन की झाड़फूंक से बड़ी से बड़ी समस्या और बड़ी से बड़ी बीमारी दूर हो जाती है. अगर इस तरह की बातें फैलानी हों तो औरतों की मदद ले लो, फिर देखो इस तरह की बात फैलते देर नहीं लगेंगी.

राशिद के मामले में भी यही हुआ था. कमला ने नमकमिर्च लगा कर देखतेदेखते राशिद को आसपास के गांवों में बड़ा तांत्रिक के रूप में घोषित कर दिया. फिर क्या था, राशिद बाबा के यहां अपनी समस्याओं के हल और बीमारियों के इलाज के लिए औरतों की भीड़ लगने लगी.

राशिद ने तो योजना बना कर ही काम शुरू किया था. उस ने अपनी तंत्रमंत्र की दुकान कुछ इस तरह जमाई कि उस के पास समस्या ले कर आने वाली महिलाओं से पहले कमला बात करती थी, उस के बाद कमला उस की पूरी बात राशिद बाबा को बता देती थी.

समस्या ले कर आई महिला राशिद बाबा के सामने जाती थी तो वह उस के बिना कुछ कहे ही उस की समस्या के बारे में बता देता था. गांव की भोलीभाली औरतें समझ नहीं पातीं कि बाबा को यह बात कमला ने बताई होगी. वे तो बाबा को अंतरयामी मान कर उन के चरणों में गिर जाती थीं.

बाबा उन की पीठ पर हाथ फेर कर उन्हें ढेरों आशीर्वाद देता. जबकि असलियत में शातिर राशिद आशीर्वाद देने के बहाने वह अपनी ठरक मिटा रहा होता था.

इस दौरान वह महिला के हावभाव पर पूरी नजर रखता था. इसी पहले स्पर्श में वह समझ जाता था कि किस महिला के साथ कैसे पेश आना है. जो महिला उस के चंगुल में फंस सकती थी, उस के लिए वह कमला को इशारा कर देता था. कमला उस औरत को धीरेधीरे बाबा की विशेष सेवा के लिए राजी कर लेती थी. इस तरह कमला की मदद से राशिद बाबा की दुकानदारी बढि़या चल रही थी, साथ ही उसे अय्याशी के लिए नईनई औरतें भी मिल रही थीं.

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राशिद पैसा भी कमा रहा था और मौज भी कर रहा था. कमला को भी इस का फायदा मिल रहा था, इसलिए वह आसपास के गांवों में ऐसी महिलाओं पर नजर रखती थी, जो किसी न किसी परेशानी में होती थीं. वह ऐसी औरतों को पकड़ती थी, जो बाबा पर पैसा भी लुटा सकें और जरूरत पड़ने पर बाबा को मौज भी करा सकें.

कमला को जब मीराबाई के पति रूप सिंह की बीमारी के बारे में पता चलने के साथ यह भी पता चला कि उस के घर युवा हो रही बेटी भी है तो वह मीराबाई से मिली और उसे राशिद बाबा के बारे में खूब बढ़ाचढ़ा कर बताया.

मीराबाई परेशान तो थी ही, उस ने कमला के पैर पकड़ कर कहा कि अगर वह उस के पति की बीमारी ठीक करवा दे तो वह जिंदगी भर उस का एहसान मानेगी. कमला ने उसे भरोसा दिलाया कि वह बाबा से रूप सिंह की बीमारी ठीक करवा देगी.

इस के बाद कमला बाबा को ले कर अगले ही दिन मीराबाई के घर आ पहुंची. दुर्भाग्य से जिस समय राशिद मीराबाई के घर पहुंचा, सत्यवती सजीधजी कहीं जाने को तैयार थी. उसे देखते ही राशिद की नीयत डोल गई. उस ने मीराबाई और रूप सिंह से मीठीमीठी बातें कर के तंत्रमंत्र का नाटक करते हुए कहा कि साल भर में वह उस की बीमारी ठीक कर देगा. लेकिन इस के लिए उसे उस के यहां से दवा ला कर खानी होगी.

रूप सिंह तो चलफिर नहीं सकता था, मीराबाई उस की देखाभाल में लगी रहती थी, इसलिए तय हुआ कि सत्यवती हर सप्ताह बाबा के यहां दवा लेने जाएगी. इस के अलावा जरूरत पड़ने पर बाबा खुद आ कर रूप सिंह की झाड़फूंक कर देगा.

सत्यवती हर सप्ताह दवा के लिए नेमावर जाने लगी. राशिद बाबा ने कमला की मदद से सत्यवती पर जाल फेंकना शुरू कर दिया. उस ने सत्यवती से कहा कि उस की सरकारी अफसरों से अच्छी जानपहचान है. अगर वह चाहे तो वह उस की सरकारी नौकरी ही नहीं लगवा सकता, बल्कि अच्छे लड़के से उस की शादी भी करवा सकता है. शादी की बात सुन कर सत्यवती लजाई तो बाबा ने हंस कर उसे सीने से लगा लिया और आशीर्वाद देने के बहाने कभी पीठ तो कभी कंधे पर हाथ फेरने लगा.

सत्यवती के कंधे से सरक कर राशिद बाबा का हाथ कब नीचे आ गया, सत्यवती को पता ही नहीं चला. इसी तरह एक दिन उस ने पूजा के नाम पर उसे निर्वस्त्र कर के उस के साथ जबरदस्ती शारीरिक संबंध बना डाला. वह रोने लगी तो राशिद ने उसे धमकी दी कि अगर उस ने इस बारे में किसी को कुछ बताया या दवा लेने नहीं आई तो वह अपने तंत्रमंत्र से न केवल उस के पिता की जान ले लेगा, बल्कि उस के शरीर में कोढ़ भी पैदा कर देगा.

मासूम सत्यवती को राशिद ने तो डराया ही, कमला ने भी कसर नहीं छोड़ी. उस ने सत्यवती से कहा कि बाबा ने उस के साथ जो किया है, उस से उस की किस्मत खुल गई है. बाबा जल्दी ही उस की सरकारी नौकरी लगवा देगा. उस के पिता भी एकदम ठीक हो जाएंगे. उस ने भी यह बात किसी को बताने से मना किया.

पिता की मौत और खुद को कोढ़ हो जाने के डर से सत्यवती ने बाबा के पाप को मां से छिपा लिया तो राशिद बाबा की हिम्मत बढ़ गई. सत्यवती जब भी उस के यहां दवा लेने आती, कमला की मदद से वह उस से अपनी हवस मिटाता.

बाबा की यह पाप लीला न जाने कब तक चलती रहती. लेकिन बरसात में बाबा का रंगीन मन कुछ ज्यादा ही मचल उठा. कमला को भेज कर उस ने चुपचाप सत्यवती को बुला लिया. सत्यवती घर में बता कर नहीं आई थी, इसलिए मांबाप परेशान हो उठे.

इधरउधर तलाशने पर सत्यवती नहीं मिली तो मीराबाई पुलिस तक पहुंच गई. उस के बाद तांत्रिक राशिद बाबा की पोल खुल गई. राशिद बाबा की सारी हकीकत सामने आने के बाद थानाप्रभारी तहजीब काजी ने उसे और उस की सहयोगी कमला को अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.  ?

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. सत्यवती बदला हुआ नाम है.

सोने के लालच की “फांस”

अक्सर हम सुर्खियों में देखते हैं सोना देने, दिलाने की लालच में किस तरह ठगी  हो जाती है. मगर इसके बावजूद लोग आज भी सोने की पीली धातु की चमक में आकर ठगी का शिकार हो रहे हैं. छत्तीसगढ़ की स्टील सिटी कहे जाने वाले भिलाई एवं आदिवासी जिले जशपुर  में दो बड़ी सनसनीखेज घटना घटित हुई है. जो यह दर्शाता  है कि देश में आज भी सोने का लालच किस तरह बुरी बला बना हुआ है.

भिलाई शहर  स्थित एक हार्डवेयर व्यापारी को लालच में फांस कर एक व्यक्ति ने सोने का ऐसा झांसा दिया की वह दिन दहाड़े लुट गया. एक  व्यक्ति 2जून  को  नकली सोना थमाकर व्यापारी से 5 लाख रुपये लेकर फरार हो गया. दरअसल,  नंदिनी रोड में हुई इस घटना के बाद  छावनी पुलिस ने धारा 420,34 के तहत अपराध भी  कायम कर लिया है. ठगी के शिकार हुए निर्मल  जैन (53 वर्ष ) शांति नगर का रहवासी है.  निर्मल को  एक अनजान शख्स ने महिला सहयोगी के साथ मिल जाल मे फंसा ठगी का शिकार बनाया. इस वारदात को अंजाम देने से पहले आरोपी ने व्यापारी निर्मल कुमार जैन पर पेशेवर ठग की तर्ज पर पहले दाना डाला.

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कथित आरोपी 20 मई को निर्मल की दुकान पर प्लायी  क्रय करने  पहुंचा. इस दौरान रुपये कम होने का हवाला देकर उसने एक चांदी का सिक्का सामने रख दिया. निर्मल ने कहा,- यह तो प्लायी की कीमत से काफी महंगा है. तब उस शख्स ने संजीदगी से  कहा  कि उसके पास बहुत  सा  सोना है, जिसे वह बाजार रेट से कम में निकालना  चाहता है. शख्स की बातों से प्रभावित निर्मल जैन ने सोना देखने के बाद सौदा करने हामी भर दी.  दूसरी  बार 22 मई को वह अनजान शख्स एक सोने का चेन लेकर निर्मल की दुकान पर फिर से पहुंचा. इस बार उसके साथ एक महिला भी थी.आदिनाथ सेल्स एजेंसी के संचालक को विश्वास में लेकर ठग ने पांच लाख रुपये  लेकर चलता बना.

सोने की लालच बनी  बला

भिलाई छावनी  मामले के जांच अधिकारी विनय बघेल  बताते हैं  करुणा हॉस्पिटल के पास  सुपेला शांति नगर सड़क-3 क्र्वाटर- 238 निवासी निर्मल जैन (53 वर्ष) की नंदनी रोड में आदिनाथ सेल्स एजेन्सी के संचालक है कोरोना काल के संक्रमण समय मे  20 मई को सुबह 10 बजे उनकी दुकान आया और अपनी मोहक बातों में फंसा कर ठग ने  विश्वास में ले लिया. ठग ने निर्मल का भरोसा जीतने के लिए उसे 4 दाना सोने की चेन से तोड़कर उसी के सामने  रख  दिया. ठग ने कहा कि इसकी पहले जांच करा लीजिए. इसके बाद खरीदना. निर्मल जैन ने सोने के दाना को निकट के  राधा ज्वेलर्स  में चेक कराया. चारों दाना पक्का गोल्ड था. ठग पर निर्मल का भरोसा पक्का हो गया. अज्ञात  ठग ने कहा कि उसके पास बहुत चांदी और सोना है जो  वह निकालना चाहता है.

2 जून को पीतल धातु में सोने का पानी चढ़ाकर वह ले आया.  और निर्मल जैन से  5 लाख नकद ले लिए. दोनों के बीच 7 लाख 50 हजार में सौदा हुआ था . निर्मल ने उसे पांच लाख रुपए नकद दिया.बाकि 2.50 लाख बाद में देने की बात तय हुई . ठग राजी खुशी  उसकी बात पर सहमत हो गया.पांच लाख रुपए  लेकर चलता बना. शाम को जब निर्मल ने जब सोना की जांच कराई को वह पीतल का निकला तो मानो उसके होश उड़ गए .

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महिला थी ठग की साथी

भिलाई शहर में हुई ठगी से सनसनी का माहौल निर्मित हो गया. एक शिक्षित उच्च वर्गीय शख्स  को ठगे जाने की मिश्रित प्रतिक्रिया हुई. यह तथ्य भी सामने आया कि ठग के साथ एक खूबसूरत महिला थी. उसके रूप लावण्य में फंसकर जैन साहब ठगी का शिकार हो गए! इसी तरह छत्तीसगढ़ के जशपुर में थाना बगीचा अंतर्गत एक गांव की सरपंच जो पूर्व में शिक्षिका थी  लाखों रुपए लाल सोना प्राप्त करने के लिए लुटा बैठी. छत्तीसगढ़ पुलिस इस मामले की भी तत्परता से जांच कर रही है.

प्रतीक्षा की गलती

यशवंत की जगह कोई दूसरा होता तो सुहागरात को ही प्रतिक्षा की कामेच्छाओं के वेग को समझ जाता, लेकिन यशवंत को इस बात का अहसास तक नहीं हुआ. पत्नी की खूबसूरती ने उसे कुछ भी सोचनेसमझने का मौका नहीं दिया, दिमाग कुंद हो गया था उस का.

सुहागरात को यशवंत कमरे में पहुंचा तो प्रतीक्षा पलंग पर लेटी थी. उस की आहट पाते ही उस ने सिर उठा कर दरवाजे की ओर देखा. पति को आया देख वह उठ कर बैठ गई और साड़ी के पल्लू को घूंघट बना कर मुंह ढक लिया.

मिलन की उमंगों से भरा यशवंत अपनी दुलहन प्रतीक्षा के पास जा बैठा. उसे उन शादीशुदा दोस्तों की बातें याद आ रही थी, जिन्होंने उसे सुहागरात को बीवी का तनमन जीतने का हुनर सिखाया था. उसे दोस्तों की पहली टिप्स याद आई. जब तुम दुलहन का घूंघट उठाओगे, तब उस के गाल शर्म से गुलाबी हो जाएंगे. उस के होठों पर मुसकान तो रहेगी, मगर लाज से नजरें झुक जाएंगी. हालांकि सुहागरात का यह दूसरा अनुभव था यशवंत का, फिर भी वह प्रतीक्षा के सामने पहली बार बने दूल्हे की तरह व्यवहार कर रहा था.

यशवंत ने उंगलियों से साड़ी का किनारा पकड़ा और अपनी दुलहन का घूंघट उलट दिया. चेहरे की दमक तो सामने आ गई, लेकिन न तो लाज से दुलहन की नजरें झुकीं और न होठों पर सौम्य मुसकान आई. कुछ देर तक वह यशवंत की आंखों में देखती रही, फिर खिलखिला कर हंसने लगी. हतप्रभ यशवंत प्रतीक्षा का मुंह ताकता रह गया.

पति के भावों को समझने की कोशिश करते हुए प्रतीक्षा शोखी से बोली, ‘‘ऐ ऐसे क्यों देख रहे हो, मैं पागल नहीं हूं.’’

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‘‘तुम हंस क्यों रही हो?’’ कुछ नहीं सूझा तो हैरानपरेशान यशवंत ने सवाल किया, ‘‘दूल्हा घूंघट उठाए तो इस तरह नहीं हंसना चाहिए.’’

‘‘यह क्या बात हुई’’ प्रतीक्षा की हंसी घट कर मुसकान में तबदील हो गई. ‘‘सुहागरात को दुलहन पति के लिए निर्वस्त्र हो सकती है, मगर हंस नहीं सकती. मैं हंस दी तो कौन सा पाप हो गया?’’

‘‘पाप तो नहीं हुआ,’ यशवंत ने धीमे से मुंह खोला, ‘‘लेकिन दुलहनें इस तरह नहीं हंसा करतीं.’’

‘‘मैं पुराने जमाने की नहीं, इक्कीसवी सदी की दुलहन हूं’’ प्रतीक्षा का लहजा बेबाक था, ‘‘मैं जानती हूं कि तुम मेरे पास क्यों आए हो. मैं जानती हूं कि तुम मेरे साथ क्याक्या करने वाले हो. मेरे मातापिता जानते हैं कि आज की रात दूल्हादुलहन कैसे खेलेंगे. तुम्हारे घर वालों ने तुम्हें मेरे पास खेलने के लिए ही भेजा है. सब जानते हैं कि आज क्या होगा, फिर मैं क्यों लाज का आडंबर करूं.’’

यशवंत हैरत से प्रतीक्षा का मुंह देखता रह गया. प्रतीक्षा अपनी रौ में बोली, ‘‘मैं जिंदगी के हर पल को शिद्दत से जीना चाहती हूं. आज रात हमारी देहों का मिलन होना है. लाज संकोच के बजाय अगर सबकुछ हंसीखुशी हो तो उस का आनंद ही निराला होगा.’’ वह यशवंत की आंखों में देखते हुए मुसकराई. ‘‘होगा न?’’

यशवंत प्रतीक्षा के तर्कों से प्रभावित हुआ. सोचा, नए जमाने की लड़कियां शर्म की गुडि़यां थोड़े ही बनेंगी. पुराने जमाने की बात अलग थी, जब लड़कियां स्त्रीपुरूष के अंतरंग संबंध से अंजान होती थीं. शादी के पहले भावी दुलहनों को रिश्ते की भाभियां समझाती थीं कि सुहागरात को दूल्हादुल्हन के बीच क्या होता है. अब तो फिल्मों, केबल और इंटरनेट सब कुछ सिखा देते हैं. लड़केलड़कियों को होश संभालते ही इस सब की समझ आने लगती है. यही सब सोच कर यशवंत के होठों पर मुसकान आ गई.

‘‘तुम सही कहती हो प्रतीक्षा, एक घंटे बाद हमें बेशर्म होना है तो क्यों न पहले ही शर्म का लबादा उतार कर खूंटी पर टांग दें. मिलन का आनंद दूना हो जाएगा.’’

‘‘तो फिर दूर क्यों हो, करीब आओ.’’ प्रतीक्षा ने मुसकरा कर बांहे फैला दी. यशवंत सारी बातें भूल कर प्रतीक्षा की बांहों में समा गया. 40 वर्षीय प्रतीक्षा फतेहपुर जनपद के दुर्गा कालोनी, हरिहरगंज की रहने वाली थी. उस की मां का नाम कमला और पिता का नाम चंद्रभान था. चंद्रभान विकास भवन में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थे. प्रतीक्षा के अलावा उन की कोई संतान नहीं थी.

प्रतीक्षा मांबाप की एकलौती संतान थी. इसलिए न तो उस के कहीं घूमने पर पाबंदी थी, और न ही उसे किसी चीज के लिए तरसना पड़ता था. फरमाइश करते ही मनचाही चीज हाजिर हो जाती थी. संभवत: परिवार में मिली आजादी का ही नतीजा था कि प्रतीक्षा जीवन के हर पल को खुल कर और मस्ती से जीने की आदी हो गई थी.

मांबाप भी प्रतीक्षा के खुल कर मस्ती से जीने के अंदाज को जानते थे. इसलिए जब वह जवान हुई तब उन्हें डर सताने लगा कि कहीं प्रतीक्षा जवानी को भी खुल कर एंजौय न करने लगे. यह अलग बात थी कि प्रतीक्षा ने न किसी से प्रेमिल संबंध बनाया, न किसी को अपने यौवन का अनमोल तोहफा दिया. उस ने अपना कौमार्य पति की अमानत समझ कर सहेजे रखा. हां, उस की यह तमन्ना जरूर थी कि शादी के बाद का जीवन वह खुल कर मस्ती से जीएगी और इस की शुरुआत वह सुहागरात से ही कर देगी.

क्रांतिकारी विचारधारा की पुत्री को मातापिता अधिक दिनों तक घर में बैठाए रखने के पक्ष में नहीं थे. जवानी का क्या भरोसा, कब बहक जाए. लेकिन सोचने भर से सब काम नहीं हो जाते. प्रतीक्षा के लिए कई रिश्ते देखे गए लेकिन बात नहीं बनी. शायद समय और किस्मत को कुछ और ही मंजूर था.

बीतते समय के साथ प्रतीक्षा की उम्र बढ़ती जा रही थी, लेकिन कहीं भी उस का रिश्ता नहीं हो पा रहा था. ऐसे में उस के मांबाप को चिंता सताने लगी. जवान बेटी को अधिक दिनों तक घर में नहीं बैठाया जा सकता, लोग तरहतरह की बातें बनाने लगते हैं.

फतेहपुर के थाना हुसैनगंज क्षेत्र के गांव चांदपुर में भवानी शंकर सिंह रहते थे. वह एक स्कूल में अध्यापक थे. इस के साथ ही खेतीबाड़ी का काम भी करते थे. परिवार में पत्नी शिवरानी देवी और 3 बेटे थे. कालिका, रवींद्र और यशवंत. बेटे जवान हो गए तो उन्होंने अपनी जमीनजायदाद का बराबरबराबर बंटवारा कर दिया. बड़े बेटे कालिका का विवाह करने के बाद 1994 में भवानी शंकर दुनिया से चल बसे. रवींद्र शिक्षा पूरी करने के बाद सरकारी स्कूल में अध्यापक हो गया. सन 2000 में विवाह के बाद वह फतेहपुर शहर में शिफ्ट हो गया था.

सब से छोटा यशवंत सरल स्वभाव का था. बीएससी करने के बाद वह गांव में ही खेती करने लगा. 2003 में उस का विवाह फतेहपुर के मलौली थाना क्षेत्र की कुर्रा कनक गांव निवासी गुड्डन से हुआ. गुड्डन ने 2 बेटों को जन्म दिया लेकिन दूसरे बच्चे की डिलीवरी के समय उस की मृत्यु हो गई. गुड्डन की मौत के बाद दोनों बच्चों को उन की नानी अपने साथ ले गई.

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2013 में चंद्रभान अपनी बेटी प्रतीक्षा का रिश्ता ले कर आए तो यशवंत के घर वाले मना नहीं कर पाए क्योंकि यशवंत के सामने लंबी जिंदगी पड़ी थी. बिना हमसफर के जिंदगी काटना मुश्किल था.

शादी तय हो जाने के बाद दोनों का विवाह हो गया. प्रतीक्षा सुर्ख जोड़े में मायके से ससुराल आ गई. ससुराल में दूल्हादुलहन के मिलन की पहली रात थी, अरमानों की रात सुहागरात. सुहागशैया पर यशवंत के घूंघट उठाते ही जिस तरह प्रतीक्षा खुलेपन से पेश आई, उस से यशवंत स्तब्ध रह गया. यह अलग बात है कि प्रतीक्षा ने उसे गलत सोचने नहीं दिया. उस ने यशवंत को विश्वास दिला दिया कि वह इक्कीसवीं सदी की औरत है, बिंदास जिंदगी के हर पल का आनंद ले कर शिद्दत से जीने वाली.

नई और पुरानी का फर्क

यशवंत को भी अलग अनुभव हुआ. पहली पत्नी गुड्डन पुराने ढर्रे पर चलने वाली ठेठ परिवारिक युवती थी. उस के साथ यशवंत ने वहीं अनुभव किया था जो वह सोच रहा था. लेकिन प्रतीक्षा के साथ उसे एक अलग ही अनुभव मिला.

जो युवती पहली रात को खुल कर खेल सकती थी, वह आगामी रातों में क्या गजब करेगी कहना मुश्किल था. यही सोच कर सशवंत के मन में संदेह का कीड़ा कुलबुलाने लगा. वह सोचने लगा कि प्रतीक्षा शायद ऐसा अनुभव मायके से ले कर आई है. यशवंत ने उसे कटघरे में खड़ा भी किया, मगर उस का जवाब था कि वह जीवन के हर पल को आनंद से जीने की आदी है. खुलापन उस के जीने का अंदाज है, चरित्रहीनता का प्रमाण नहीं.

यशवंत उस समय तो चुप रहा, पर प्रतीक्षा की तरफ से उस का मन साफ नहीं हुआ. यशवंत ने किसी तरह प्रतीक्षा के मायके से जानकारी जुटाई तो उस पर उंगली उठाने लायक कोई बात पता नहीं चली. इस से यशवंत ने मान लिया कि प्रतीक्षा तबियत से शौकीन जरूर है, पर उस का चरित्र बेदाग है.

यह प्रतीक्षा का शौक ही था कि वह एक रात भी न तो यशवंत से अलग रहती थी और न उसे अलग सोने देती थी. फलस्वरूप प्रतीक्षा ने 5 वर्ष पूर्व एक पुत्र को जन्म दिया, जिस का नाम यतेंद्र रखा गया. उस के कुछ बड़ा होने पर दोनों ने उसे अच्छे स्कूल में पढ़ाने के लिए उस के नाना के घर भेज दिया.

यशवंत की यह दूसरी शादी थी, उस की उम्र भी 40 के पार हो गई थी. अब उस में इतना दमखम नहीं रह गया था कि हर रोज प्रतीक्षा के बिस्तर का साथी बन कर रास रचाए. दूसरी ओर प्रतीक्षा को काफी देर से पुरूष सुख मिलना शुरू हुआ था, बढ़ती उम्र के साथ उस की कामेच्छाएं भी बढ़ गई थीं.

रात को यशवंत जब उस के पास नहीं आता तो वह झुंझला जाती. इस बात को ले कर दोनों में काफी बहस भी होती. प्रतीक्षा जिस तरह सुहागरात में यशवंत पर हावी हुई थी, उसी तरह समय के साथसाथ उस की जिंदगी पर भी हावी होती चली गई. उस के गलत व्यवहार के कारण ही यशवंत के भाई और परिवार उन दोनों से दूर हो गए थे. वे लोग उन से किसी तरह का संबंध नहीं रखते थे. यशवंत कभीकभी चोरीछिपे अपने भाइयों से बात कर लेता था.

दूसरी ओर प्रतीक्षा ने शादी से पहले तक अपने यौवन को किसी के हवाले नहीं किया था, अब वह पति की बेरुखी के चलते अपने यौवन के खजाने को दूसरों पर लुटाने को अमादा थी. यशवंत के ठंडेपन के चलते वह अपनी मर्यादा की सीमा को भी लांघने को तैयार थी. लेकिन इस के लिए उसे उपयुक्त साथी की जरूरत थी.

नवंबर 2018 में यशवंत के बड़े भाई कालिका की मुत्यु हो गई. उस की तेरहवीं में खाना बनाने के लिए एक व्यक्ति से बात की गई. पेसा वगैरह तय हो जाने के बाद उसे खाना बनाने का काम दे दिया गया. खाना बनाने के लिए आए कारीगरों में 30 वर्षीय संग्राम सिंह भी था. संग्राम सिंह फतेहपुर के थाना मलवां के गांव नसीरपुर बेलवारा निवासी कुंवर बहादुर सिंह का बेटा था. जो अविवाहित था.

खाना बनाने के दौरान संग्राम प्रतीक्षा के संपर्क में आया. प्रतीक्षा ने कुंवारे खूबसूरत जवान संग्राम को देखा तो वह उसे मन भा गया. कभी कोई सामान देने तो कभी खाना कैसे बनाना है, को ले कर प्रतीक्षा उसे अपने पास बुलाती और रिझाने की कोशिश करती.

प्रतीक्षा की चालढाल और उस की हरकतों से संग्राम को भी समझते देर नहीं लगी कि वह उस पर डोरे डाल रही है. संग्राम खुद से 10 साल बड़ी प्रतीक्षा की खूबसूरती पर फिदा हो गया. जब शिकार खुद शिकार होने को तैयार था तो शिकारी क्यों चिंता करता.

दोनों में हंसीमजाक, चुहलबाजियां हुई लेकिन लोगों की नजरों से बच कर. संग्राम जब अपना काम निपटा कर जाने लगा तो प्रतीक्षा की नजरों में बेचैनी झलकने लगी, जिसे संग्राम ने अच्छी तरह समझ लिया था. वह प्रतीक्षा से बोला, ‘‘अब हमारी इतनी जानपहचान तो हो ही गई है कि आगे भी मिलते रहें.’’

संग्राम खेलने के लिए कूदा प्रतीक्षा की पिच पर

प्रतीक्षा ने मुसकरा कर संग्राम को हरी झंडी दे दी. यशवंत के गांव चांदपुर से संग्राम के गांव की दूरी महज 8 किलोमीटर थी. उस दिन के बाद से संग्राम अपनी बाइक से प्रतीक्षा से मिलने आने लगा.

जब वह आता तो यशवंत खेतों पर होता. घर में प्रतीक्षा अकेली रहती थी. बारबार मिलते रहने से उन के बीच की झिझक खत्म होती गई. झिझक खत्म होते ही दोनों एकदूसरे से बेशर्मी से पेश आने लगे. उन के बीच अश्लील मजाक भी होने लगे.

एक दिन ऐसे ही अश्लील मजाक के दौरान संग्राम ने प्रतीक्षा को दबोच लिया. घबराने का नाटक करते हुए बोली, ‘‘यह क्या कर रहे हो संग्राम?’’

जबकि मन ही मन वह संग्राम की इस हरकत से खुश थी. संग्राम ने उस के नाटक को भांप लिया था, क्योंकि वह यह सब दिखावे के लिए कर रही थी. संग्राम ने प्रतीक्षा को और ज्यादा कसके दबोचते हुए कहा, ‘‘मैं तो वही कर रहा हूं, जो तुम चाहती हो.’’

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‘‘मैं ऐसा चाहती हूं, यह मैं ने तुम से कहा?’’

‘‘हर बात जुबां से ही नहीं कही जाती, आंखों भी बहुत कुछ बता देती हैं. मुझे तुम्हारी खूबसूरत आंखों ने बता दिया कि तुम्हें मेरे प्यार की बेहद जरूरत है.’’

‘‘अच्छा जी, मेरी आंखों ने तुम्हें सब कुछ बता दिया. जब बता ही दिया तो मेरी देह की किताब के पन्ने भी खोल कर पढ़ लो.’’

प्रतीक्षा बेचैन हो कर संग्राम के बदन से लिपट गई. इस के बाद संग्राम ने उस की देह की किताब का एकएक पन्ना खोल कर ऐसा पढ़ा कि प्रतीक्षा उस की दीवानी हो गई. उस दिन के बाद तो यह सिलसिला ही बन गया.

29 जनवरी, 2020 की सुबह साढ़े 9 बजे प्रतीक्षा घर से निकल कर चीखनेचिल्लाने लगी. उस की चीखपुकार सुन कर गांव के लोग घर के सामने इकट्ठा हो गए. प्रतीक्षा ने बताया कि कुछ बदमाशों ने घर में घुस कर उस के पति यशवंत की हत्या कर दी है. लगभग 10 बजे प्रतीक्षा ने 112 नंबर पर काल कर के पुलिस को घटना की सूचना दी. चूंकि घटनास्थल थाना हुसैनगंज क्षेत्र में आता था, सो कंट्रोल रूप से इस घटना की सूचना हुसैनगंज थाने को दे दी गई.

सूचना पा कर इंसपेक्टर निशिकांत राय पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. मृतक यशवंत के शरीर, सिर व गले पर किसी तेज धारदार हथियार के निशान थे. प्रतीक्षा से पूछताछ की गई तो उस ने कुछ लोगों द्वारा घर में घुस कर यशवंत को मारने की बात बताई.

प्रतीक्षा की बातें इंसपेक्टर राय के गले से नहीं उतर रही थीं. एक तो सुबह कोई घर में नहीं घुस सकता था. ऐसा होता तो हत्यारों के आते जाते या शोर मचने पर पड़ोसियों को पता चल जाता.

दूसरे बदमाशों ने यशवंत की तो हत्या कर दी थी, लेकिन प्रतीक्षा को छोड़ दिया, उसे एक खरोंच तक नहीं आई थी. इस से इंसपेक्टर निशिकांत राय का शक प्रतीक्षा पर ही गया. फिलहाल उन्होंने यशवंत की लाश को पोस्टमार्टम के लिए मौर्चरी भेज दिया.

मौके पर आए यशवंत के भाई रविंद्र और पड़ोसियों से पूछताछ के बाद इंसपेक्टर राय का शक प्रतीक्षा पर और गहरा हो गया.

रविंद्र ने अपनी लिखित तहरीर में प्रतीक्षा और उस के प्रेमी संग्राम सिंह पर हत्या का शक जताया था. रविंद्र की तहरीर मिलने के बाद इंसपेक्टर निशिकांत राय ने थाने में प्रतीक्षा और संग्राम सिंह के विरूद्ध भादवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.

गिरफ्तार हुई प्रतीक्षा

31 जनवरी को इंसपेक्टर राय ने प्रतीक्षा को घर से गिरफ्तार कर लिया. महिला कांस्टेबल की उपस्थिति में जब उस से कड़ाई से पूछताछ की गई तो उस ने यशवंत की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. इस हत्या में उस का साथ उस के प्रेमी संग्राम सिंह ने दिया था.

प्रतीक्षा ने बताया कि जब उस के संग्राम से नाजायज संबंध बने, तो फिर बेरोकटोक जारी रहे. लेकिन ऐसा कब तक चलता. लोगों की नजरों में उन के नाजायज संबंध छिपे नहीं रह सके. गांव में तरहतरह की बातें होने लगीं. यशवंत के कानों तक भी प्रतीक्षा की बेवफाई के किस्से पहुंच गए.

इस के बाद उस के और प्रतीक्षा के बीच काफी तीखी बहस होने लगी. लेकिन उस बहस का कोई नतीजा नहीं निकला, क्योंकि प्रतीक्षा पर उस का कोई असर नहीं हुआ था. यशवंत को उस के अवैध रिश्ते के बारे में पता चलने के बाद प्रतीक्षा संग्राम से खुल कर मिलने लगी. वह यशवंत की उपस्थित में भी आने लगा. वह पूरेपूरे दिन यशवंत के घर में पड़ा रहता.

यशवंत खून का घूंट पी कर रह जाता. जब उस से बर्दाश्त नहीं होता तो वह उन दोनों से भिड़ जाता था. लेकिन दोनों के सामने उस की एक नहीं चलती थी.

मिलन में यशवंत के बारबार व्यवधान डालने से प्रतीक्षा और संग्राम परेशान हो गए. इसलिए दोनों ने यशवंत नाम के कांटे को हमेशा के लिए हटाने का फैसला कर लिया.

28/29 जनवरी, 2020 की रात यशवंत के खाने में प्रतीक्षा ने कोई नशीला पदार्थ मिला दिया. खाना खाने के बाद यशवंत बेसुध हो कर बिस्तर पर लेट गया. संग्राम देर रात प्रतीक्षा के पास पहुंचा और बेसुध पड़े यशवंत पर कुल्हाड़ी से ताबड़तोड़ कई प्रहार कर दिए.

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यशवंत चीखचिल्ला भी न सका, उस ने दम तोड़ दिया. इस के बाद संग्राम वहां से चला गया. सुबह साढ़े 9 बजे प्रतीक्षा ने चीखचिल्ला कर बदमाशों द्वारा यशवंत को मार देने की झूठी कहानी लोगों को सुनाई, लेकिन वह अपने को बचाने में सफल नहीं हो सकी.

पुलिस ने प्रतीक्षा की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त कुल्हाड़ी बरामद कर ली. फिर कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद उसे न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया गया. पुलिस के दबाव के चलते संग्राम सिंह ने न्यायालय में आत्मसमर्पण कर दिया.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Best of Crime Stories : देवर को खेत में लाई भाभी

भाभी और देवर का रिश्ता हमेशा से पवित्र माना गया है, कहा जाता है कि देवर के लिए भाभी मां के समान होती है. लेकिन हाल ही में राजस्थान के श्रीगंगानगर से सबको हैरान कर देने वाले मामला सामने आया है. जिसने भाभी-देवर के पवित्र रिश्ते को शर्मसार करके रख दिया है. इस चौंकाने वाले मामले से पूरा गांव सकते में है.

स्थानीय लोगों के बताए अनुसार उन्होंने भरी दोपहर में पास ही के एक खेत में एक महिला और दो युवकों को आपत्तिजनक हालत में झाड़ियों के बीच पकड़ा. लोगों ने तुरंत पुलिस को इस बारे में खबर दी. पुलिस ने मौके से तीनों को गिरफ्तार कर लिया है.

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पुलिस के अनुसार पकड़े गए आरोपियों के नाम संजय कुमार और राजू हैं. पुलिस को उनके पास से शराब की बोतल और कंडोम मिले है. पकड़े जाने के दौरान महिला ने संजय को अपना देवर बताया और महिला ने पुलिस को बताया कि वह अपनी मर्जी से उसके साथ आई है.

पुलिस की मानें तो महिला काफी नशे में थी. वहीं दोनों युवकों ने भी शराब या किसी अन्य प्रकार का नशा किया हुआ था. पुलिस ने महिला का मेडिकल करवाकर उसके परिजनों को सौंप दिया है. इस घटना के बाद स्थानीय लोगों में काफी गुस्सा है.

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नई सुबह : शीला के साथ उन लड़कों ने क्या किया

शीला का अंगअंग दुख रहा था. ऐसा लग रहा था कि वह उठ ही नहीं पाएगी. बेरहमों ने कीमत से कई गुना ज्यादा वसूल लिया था उस से. वह तो एक के साथ आई थी, पर उस ने अपने एक और साथी को बुला लिया था. फिर वे दोनों टूट पड़े थे उस पर जानवरों की तरह. वह दर्द से कराहती रही, पर उन लोगों ने तभी छोड़ा, जब उन की हसरत पूरी हो गई.

शीला ने दूसरे आदमी को मना भी किया था, पर नोट फेंक कर उसे मजबूर कर दिया गया था. ये कमबख्त नोट भी कितना मजबूर कर देते हैं.

जहां शीला लाश की तरह पड़ी थी, वह एक खंडहरनुमा घर था, जो शहर से अलग था. वह किसी तरह उठी, उस ने अपनी साड़ी को ठीक किया और ग्राहकों के फेंके सौसौ रुपए के नोटों को ब्लाउज में खोंस कर खंडहर से बाहर निकल आई. वह सुनसान इलाका था. दूर पगडंडी के रास्ते कुछ लोग जा रहे थे.

शीला से चला नहीं जा रहा था. अब समस्या थी कि घर जाए तो कैसे? वह ग्राहक के साथ मोटरसाइकिल पर बैठ कर आई थी. उसे बूढ़ी सास की चिंता थी कि बेचारी उस का इंतजार कर रही होगी. वह जाएगी, तब खाना बनेगा. तब दोनों खाएंगी.

शीला भी क्या करती. शौक से तो नहीं आई थी इस धंधे में. उस के पति ने उसे तनहा छोड़ कर किसी और से शादी कर ली थी. काश, उस की शादी नवीन के साथ हुई होती. नवीन कितना अच्छा लड़का था. वह उस से बहुत प्यार करता था. वह यादों के गलियारों में भटकते हुए धीरेधीरे आगे बढ़ने लगी.

शीला अपने मांबाप की एकलौती बेटी थी. गरीबी की वजह से उसे 10वीं जमात के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी. उस के पिता नहीं थे. उस की मां बसस्टैंड पर ठेला लगा कर फल बेचा करती थी.

घर संभालना, सब्जी बाजार से सब्जी लाना और किराने की दुकान से राशन लाना शीला की जिम्मेदारी थी. वह अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाती थी. साइकिल पकड़ती और निकल पड़ती. लोग उसे लड़की नहीं, लड़का कहते थे.

एक दिन शीला सब्जी बाजार से सब्जी खरीद कर साइकिल से आ रही थी कि मोड़ के पास अचानक एक मोटरसाइकिल से टकरा कर गिर गई. मोटरसाइकिल वाला एक खूबसूरत नौजवान था. उस के बाल घुंघराले थे. उस ने आंखों पर धूप का रंगीन चश्मा पहन रखा था. उस ने तुरंत अपनी मोटरसाइकिल खड़ी की और शीला को उठाने लगा और बोला, ‘माफ करना, मेरी वजह से आप गिर गईं.’ ‘माफी तो मुझे मांगनी चाहिए. मैं ने ही अचानक साइकिल मोड़ दी थी,’ शीला बोली.

‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं. आप को कहीं चोट तो नहीं आई?’

‘नहीं, मैं ठीक हूं,’ शीला उठ कर साइकिल उठाने को हुई, पर उस नौजवान ने खुद साइकिल उठा कर खड़ी कर दी.

वह नौजवान अपनी मोटरसाइकिल पर सवार हो गया और स्टार्ट कर के बोला, ‘‘क्या मैं आप का नाम जान सकता हूं?’’

‘शीला… और आप का?’

‘नवीन… अच्छा चलता हूं.’

इस घटना के 4 दिन बाद फिर दोनों की सब्जी बाजार में मुलाकात हो गई.

‘अरे, शीलाजी आप…’ नवीन चहका, ‘सब्जी ले रही हो?’

‘हां, मैं तो हर दूसरेतीसरे दिन सब्जी खरीदने आती हूं. आप भी आते हैं…?’

‘नहीं, सच कहूं, तो मैं यह सोच कर आया था कि शायद आप से फिर मुलाकात हो जाए…’ कह कर नवीन मुसकराने लगा, ‘अगर आप बुरा न मानें, तो क्या मेरे साथ चाय पी सकती हैं?’

‘चाय तो पीऊंगी… लेकिन यहां नहीं. कभी मेरे घर आइए, वहीं पीएंगे,’ कह कर शीला ने उसे घर का पता दे दिया.शीला आज सुबह से नवीन का इंतजार कर रही थी. उसे पूरा यकीन था कि नवीन जरूर आएगा. वह घर पर अकेली थी. उस की मां ठेला ले कर जा चुकी थी, तभी मोटरसाइकिल के रुकने की आवाज आई. वह दौड़ कर बाहर आ गई. नवीन को देख कर उस का मन खिल उठा, ‘आइए… आइए न…’

नवीन ने शीला के झोंपड़ी जैसे कच्चे मकान को गौर से देखा और फिर भीतर दाखिल हो गया. शीला ने बैठने के लिए लकड़ी की एक पुरानी कुरसी आगे बढ़ा दी और चाय बनाने के लिए चूल्हा फूंकने लगी.

‘रहने दो… क्यों तकलीफ करती हो. चाय तो आप के साथ कुछ पल बिताने का बहाना है. आइए, पास बैठिए कुछ बातें करते हैं.’

दोनों बातों में खो गए. नवीन के पिता सरकारी नौकरी में थे. घर में मां, दादी और बहन से भरापूरा परिवार था. वह एक दलित नौजवान था और शीला पिछड़े तबके से ताल्लुक रखती थी. पर जिन्हें प्यार हो जाता है, वे जातिधर्म नहीं देखते.

इस बात की खबर जब शीला की मां को हुई, तो उस ने आसमान सिर पर उठा लिया. दोनों के बीच जाति की दीवार खड़ी हो गई. शीला का घर से निकलना बंद कर दिया गया. शीला के मामाजी को बुला लिया गया और शीला की शादी बीड़ी कारखाने के मुनीम श्यामलाल से कर दी गई.

शीला की शादी होने की खबर जब नवीन को हुई, तो वह तड़प कर रह गया. उसे अफसोस इस बात का रहा कि वे दोनों भाग कर शादी नहीं कर पाए. सुहागरात को न चाहते हुए भी शीला को पति का इंतजार करना पड़ रहा था. उस का छोटा परिवार था. पति और उस की दादी मां. मांबाप किसी हादसे का शिकार हो कर गुजर गए थे.

श्यामलाल आया, तो शराब की बदबू से शीला को घुटन होने लगी, पर श्यामलाल को कोई फर्क नहीं पड़ना था, न पड़ा. आते ही उस ने शीला को ऐसे दबोच लिया मानो वह शेर हो और शीला बकरी. शीला सिसकने लगी. उसे ऐसा लग रहा था, जैसे आज उस की सुहागरात नहीं, बल्कि वह एक वहशी दरिंदे की हवस का शिकार हो गई हो.

सुबह दादी की अनुभवी आंखों ने ताड़ लिया कि शीला के साथ क्या हुआ है. उस ने शीला को हिम्मत दी कि सब ठीक हो जाएगा. श्यामलाल आदत से लाचार है, पर दिल का बुरा नहीं है. शीला को दादी मां की बातों से थोड़ी राहत मिली.

एक दिन शाम को श्यामलाल काम से लौटा, तो हमेशा की तरह शराब के नशे में धुत्त था. उस ने आते ही शीला को मारनापीटना शुरू कर दिया, ‘बेहया, तू ने मुझे धोखा दिया है. शादी से पहले तेरा किसी के साथ नाजायज संबंध था.’

‘नहीं…नहीं…’ शीला रोने लगी, ‘यह झूठ है.’

‘तो क्या मैं गलत हूं. मुझे सब पता चल गया है,’ कह कर वह शीला पर लातें बरसाने लगा. वह तो शायद आज उसे मार ही डालता, अगर बीच में दादी न आई होतीं, ‘श्याम, तू पागल हो गया है क्या? क्यों बहू को मार रहा है?’

‘दादी, शादी से पहले इस का किसी के साथ नाजायज संबंध था.’

‘चुप कर…’ दादी मां ने कहा, तो श्यामलाल खिसिया कर वहां से चला गया.

‘बहू, यह श्यामलाल क्या कह रहा था कि तुम्हारा किसी के साथ…’

‘नहीं दादी मां, यह सब झूठ है. यह बात सच है कि मैं किसी और से प्यार करती थी और उसी से शादी करना चाहती थी. मेरा विश्वास करो दादी, मैं ने कोई गलत काम नहीं किया.’

‘मैं जानती हूं बहू, तुम गलत नहीं हो. समय आने पर श्याम भी समझ जाएगा.’ और एक दिन ऐसी घटना घटी, जिस की कल्पना किसी ने नहीं की थी. श्यामलाल ने दूसरी शादी कर ली थी और अलग जगह रहने लगा था.

श्यामलाल की कमाई से किसी तरह घर चल रहा था. उस के जाने के बाद घर में भुखमरी छा गई. शीला मायके में कभी काम पर नहीं गई थी, ससुराल में किस के साथ जाती, कहां जाती. घर का राशन खत्म हो गया था.

दादी के कहने पर शीला राशन लाने महल्ले की लाला की किराने की दुकान पर पहुंच गई. लाला ने चश्मा लगा कर उसे ऊपर से नीचे तक घूर कर देखा, फिर उस की ललचाई आंखें शीला के उभारों पर जा टिकीं. ‘मुझे कुछ राशन चाहिए. दादी ने भेजा है,’ शीला को कहने में संकोच हो रहा था.

‘मिल जाएगा, आखिर हम दुकान खोल कर बैठे क्यों हैं? पैसे लाई हो?’

शीला चुप हो गई. ‘मुझे पता था कि तुम उधार मांगोगी. अपना भी परिवार है. पत्नी है, बच्चे हैं. उधारी दूंगा, तो परिवार कैसे पालूंगा? वैसे भी तुम्हारे पति ने पहले का उधार नहीं दिया है. अब और उधार कैसे दूं?’

शीला निराश हो कर जाने लगी.

‘सुनो…’

‘जी, लालाजी.’

‘एक शर्त पर राशन मिल सकता है.’

‘बोलो लालाजी, क्या शर्त है?’

‘अगर तुम मुझे खुश कर दो तो…’

‘लाला…’ शीला बिफरी, ‘पागल हो गए हो क्या? शर्म नहीं आती ऐसी बात करते हुए.’

लाला को भी गुस्सा आ गया, ‘निकलो यहां से. पैसे ले कर आते नहीं हैं. उधार में चाहिए. जाओ कहीं और से ले लो…’

शीला को खाली हाथ देख कर दादी ने पूछा, ‘क्यों बहू, लाला ने राशन नहीं दिया क्या?’

‘नहीं दादी…’

‘मुझ से अब भूख और बरदाश्त नहीं हो रही है. बहू, घर में कुछ तो होगा? ले आओ. ऐसा लग रहा है, मैं मर जाऊंगी.’

शीला तड़प उठी. मन ही मन शीला ने एक फैसला लिया और दादी मां से बोली, ‘दादी, मैं एक बार और कोशिश करती हूं. शायद इस बार लाला राशन दे दे.’

‘लाला, तुम्हें मेरा शरीर चाहिए न… अपनी इच्छा पूरी कर ले और मुझे राशन दे दे…’ लाला के होंठों पर कुटिल मुसकान तैर गई, ‘यह हुई न बात.’

लाला उसे दुकान के पिछवाड़े में ले गया और अपनी हवस मिटा कर उसे कुछ राशन दे दिया. इस के बाद शीला को जब भी राशन की जरूरत होती, वह लाला के पास पहुंच जाती. एक दिन हमेशा की तरह शीला लाला की दुकान पर पहुंची, पर लाला की जगह उस के बेटे को देख कर ठिठक गई.

‘‘क्या हुआ… अंदर आ जाओ.’’

‘लालाजी नहीं हैं क्या?’

‘पिताजी नहीं हैं तो क्या हुआ. मैं तो हूं न. तुम्हें राशन चाहिए और मुझे उस का दाम.’

‘इस का मतलब?’

‘मुझे सब पता है,’ कह कर शीला को दुकान के पिछवाड़े में जाने का इशारा किया. अब तो आएदिन बापबेटा दोनों शीला के शरीर से खेलने लगे. इस की खबर शीला के महल्ले के एक लड़के को हुई, तो वह उस के पीछे पड़ गया.

शीला बोली, ‘पैसे दे तो तेरी भी इच्छा पूरी कर दूं.’ यहीं से शीला ने अपना शरीर बेचना शुरू कर दिया था. एक से दूसरे, दूसरे से तीसरे. इस तरह वह कई लोगों के साथ सो कर दाम वसूल कर चुकी थी. उस की दादी को इस बात की खबर थी, पर वह बूढ़ी जान भी क्या करती.

शीला अब यादों से बाहर निकल आई थी. दर्द सहते, लंगड़ाते हुए वह भीड़भाड़ वाले इलाके तक आ गई थी. उस ने रिकशा रोका और बैठ गई अपने घर की तरफ जाने के लिए.

एक दिन हमेशा की तरह शीला चौक में खड़े हो कर ग्राहक का इंतजार कर रही थी कि तभी उसे किसी ने पुकारा, ‘शीला…’

शीला ग्राहक समझ कर पलटी, लेकिन सामने नवीन को देख कर हैरान रह गई. वह अपनी मोटरसाइकिल पर था. ‘‘तुम यहां क्या कर रही हो?’’ नवीन ने पूछा.

शीला हड़बड़ा गई, ‘‘मैं… मैं अपनी सहेली का इंतजार कर रही थी.’’

‘‘शीला, मैं तुम से कुछ बात करना चाहता हूं.’’

‘‘बोलो…’’

‘‘यहां नहीं… चलो, कहीं बैठ कर चाय पीते हैं. वहीं बात करेंगे.’’

शीला नवीन के साथ नजदीक के एक रैस्टोरैंट में चली गई.

‘‘शीला,’’ नवीन ने बात की शुरुआत की, ‘‘मैं ने तुम से शादी करने के लिए अपने मांपापा को मना लिया था, लेकिन तुम्हारे परिवार वालों की नापसंद के चलते हम एक होने से रह गए.’’ ‘‘नवीन, मैं ने भी बहुत कोशिश की थी, लेकिन हम दोनों के बीच जाति की एक मजबूत दीवार खड़ी हो गई.’’

‘‘खैर, अब इन बातों का कोई मतलब नहीं. वैसे, तुम खुश तो हो न? क्या करता है तुम्हारा पति? कितने बच्चे हैं तुम्हारे?’’

शीला थोड़ी देर चुप रही, फिर सिसकने लगी, ‘‘नवीन, मेरे पति ने दूसरी शादी कर ली है,’’ शीला ने अपनी आपबीती सुना दी.

‘‘तुम्हारे साथ तो बहुत बुरा हुआ,’’ नवीन ने कहा.

‘‘तुम अपनी सुनाओ. शादी किस से की? कितने बच्चे हैं?’’ शीला ने पूछा.

‘‘एक भी नहीं. मैं ने अब तक शादी नहीं की.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘क्योंकि मुझे तुम जैसी कोई लड़की नहीं मिली.’’

शीला एक बार फिर तड़प उठी.

‘‘शीला, मेरी जिंदगी में अभी भी जगह खाली है. क्या तुम मेरी पत्नी…’’

‘‘नहीं… नवीन, यह मुमकिन नहीं है. मैं पहली वाली शीला नहीं रही. मैं बहुत गंदी हो गई हूं. मेरा दामन मैला हो चुका है. मैं तुम्हारे लायक नहीं रह गई हूं.’’

‘‘मैं जानता हूं कि तुम गलत राह पर चल रही हो. पर, इस में तुम्हारा क्या कुसूर है? तुम्हें हालात ने इस रास्ते पर चलने को मजबूर कर दिया है. तुम चाहो, तो इस राह को अभी भी छोड़ सकती हो. मुझे कोई जल्दी नहीं है. तुम सोचसमझ कर जवाब देना.’’

इस के बाद नवीन ने चाय के पैसे काउंटर पर जमा कए और बाहर आ गया. शीला भी नवीन के पीछे हो ली.नवीन ने मोटरसाइकिल स्टार्ट कर के कहा, ‘‘मुझे तुम्हारे जवाब का इंतजार रहेगा. उम्मीद है कि तुम निराश नहीं करोगी,’’ कह कर नवीन आगे बढ़ गया.

शीला के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. उस ने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि वक्त उसे दलदल से निकलने का एक और मौका देगा. अभी शीला आगे बढ़ी ही थी कि एक नौजवान ने उस के सामने अपनी मोटरसाइकिल रोक दी, ‘‘चलेगी क्या?’’

‘‘हट पीछे, नहीं तो चप्पल उतार कर मारूंगी…’’ शीला गुस्से से बोली और इठलातीइतराती अपने घर की तरफ बढ़ गई.

डौक्टर पायल

लेखक: निखिल अग्रवाल

सत्तर के दशक से जब पिछड़ी जातियों या समुदायों के गरीब छात्रों ने उच्चस्तरीय पढ़ाई के लिए कदम बढ़ाने शुरू किए तभी से रैगिंग की शुरुआत हुई, जो उन के बढ़ते कदमों को रोकने के लिए थी. आश्चर्य यह है कि इक्कीसवीं सदी में पहुंचने के बाद भी रैगिंग हो रही है. रोहित बेमुला और डा. पायल तड़वी इस मानसिकता का शिकार…

करीब साढ़े 3 साल पहले सन 2016 के जनवरी माह में दलित छात्र रोहित वेमुला ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली थी. हैदराबाद

इस सुसाइड नोट में लिखी गई बातों पर उस समय देश भर में जम कर बहस हुई. जातिवादी व्यवस्था को देश का सब से बड़ा खतरा बताया गया. शिक्षण संस्थानों, कालेजों और यूनिवर्सिटी कैंपस में बढ़ते जातिवाद पर रोक लगाने की मांग उठी. संविधान में वर्णित समानता और सामाजिक सुरक्षा के अधिकारों की रक्षा पर भी जोर दिया गया.

इन बातों को 3 साल से ज्यादा का समय बीत गया. इस दौरान कई बार इन मुद्दों पर गर्मागर्मी के बीच बहस और चर्चाएं होती रहीं लेकिन धरातल पर कोई बदलाव नहीं आया. स्कूल से ले कर उच्च शिक्षा के प्रतिष्ठानों में रैगिंग होती रही. कभी शारीरिक या मानसिक प्रताड़ना तो कभी मौखिक रूप से अभद्र टीकाटिप्पणियां.

रैगिंग के नाम पर हर साल हजारों विद्यार्थी अपने सीनियर्स का भयावह व्यवहार झेलते रहे और उन के इशारों पर नाचते रहे. मैडिकल, इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट जैसे उच्च शिक्षा के संस्थानों में रैगिंग के नाम पर कई बार सीनियर विद्यार्थियों का अमानवीय व्यवहार सामने आया.

मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने शिक्षण संस्थानों में रैगिंग के खिलाफ कड़े निर्देश जारी किए हुए हैं. कई राज्यों में रैगिंग पर रोक लगाने के लिए सख्त कानून भी बनाए गए हैं. सुप्रीम कोर्ट की बैंच ने 11 फरवरी, 2009 को स्पष्ट कहा था कि रैगिंग में लिप्त पाए गए विद्यार्थियों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज होना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस के सख्ती से पालन कराने के निर्देश भी दिए गए. इस के बावजूद अभी तक रैगिंग की घटनाएं नहीं रुकीं हैं.

इसी 22 मई को मुंबई में एक दलित डाक्टर रैगिंग की कुत्सित मानसिकता की भेंट चढ़ गई. महाराष्ट्र के जलगांव के आदिवासी परिवार की डाक्टर पायल तड़वी मुंबई में रह कर डाक्टरी की स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर रही थी. अपनी साथी महिला डाक्टरों के तानों से तंग आ कर उस ने जान दे दी.

डा. पायल तड़वी ने मौत को गले लगाने से पहले मां को बताई थी कथा. डा. पायल तड़वी मुंबई के बी.वाई.एल. नायर हौस्पिटल की रेजिडेंट डाक्टर थी. वह इस हौस्पिटल से जुड़े मैडिकल कालेज में पोस्ट ग्रैजुएशन की सेकंड ईयर की स्टूडेंट थी. वह गायनोकोलौजी की पढ़ाई कर रही थी. डा. पायल इस हौस्पिटल से जुड़े टोपीवाला नैशनल मैडिकल कालेज के हौस्टल में रहती थी. करीब 26 साल की डा. पायल शादीशुदा थी. उस के पति डा. सलमान मुंबई में ही एच.बी.टी. मैडिकल कालेज एंड कूपर हौस्पिटल में एनेस्थेसिओलौजी डिपार्टमेंट में सहायक प्रोफेसर हैं.

टोपीवाला नैशनल मैडिकल कालेज के हौस्टल के अपने कमरे में डा. पायल की रहस्यमय परिस्थति में मौत हो गई. डा. पायल उस दिन दोपहर में हौस्पिटल से अपने कमरे पर आई थी. इस के बाद शाम करीब 4 बजे उस ने अपनी मां आबिदा को फोन किया था. फोन पर उस ने मां से अपनी 3 सीनियर डाक्टर्स द्वारा प्रताडि़त और शोषण करने की बात कही थी.

तब मां ने पायल से पूछा, ‘‘आज कोई नई बात हुई क्या?’’

रुआंसी होते हुए पायल बोली, ‘‘मम्मी, अब मैं ज्यादा बरदाश्त नहीं कर पाऊंगी. आप को पता ही है कि मेरी सीनियर्स डा. हेमा, डा. भक्ति और डा. अंकिता मुझ से चिढ़ती हैं. वे रोजाना मुझे किसी न किसी बात पर प्रताडि़त करती रहती हैं.’’

मां आबिदा ने डा. पायल को दिलासा देते हुए कहा, ‘‘बेटी मुझे पता है तुम पर अत्याचार हो रहा है, लेकिन तुम अपने काम पर ध्यान दो. जल्दी ही सब ठीक हो जाएगा.’’

डा. पायल ने मां की दी हुई दिलासा पर मन को शांत करते हुए कुछ देर इधरउधर की बातें की.

बाद में शाम को 6-7 बजे के बीच आबिदा ने पायल को फिर फोन लगाया. उस समय उस के फोन की घंटी बजती रही पर वह काल रिसीव नहीं कर रही थी. इस पर आबिदा ने सोचा कि पायल शायद टौयलेट गई होगी. कुछ देर बाद उन्होंने दोबारा पायल को फोन लगाया, लेकिन इस बार भी कोई जवाब नहीं मिला. इस पर आबिदा चिंतित हो गईं.

आबिदा मुंबई में ही थीं. उन्होंने हौस्टल जा कर पायल के बारे में पता लगाने की सोची. वे बेटी के हौस्टल के लिए चल दी. इस बीच, शाम करीब साढ़े 7 बजे पायल की एक साथी डाक्टर ने डिनर पर चलने के लिए पायल के कमरे का दरवाजा खटखटाया, लेकिन उसे कोई जवाब नहीं मिला. कई बार दरवाजा पीटने पर जब नहीं खुला, तो साथी डाक्टर ने हौस्टल के सिक्योरिटी गार्ड को सूचना दी.

हौस्टल के सिक्योरिटी गार्ड ने भी वहां पहुंच कर कमरे का दरवाजा खटखटाया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. तब तक हौस्टल में रहने वाली कई डाक्टर वहां एकत्र हो गई थीं. काफी प्रयासों के बाद भी जब दरवाजा नहीं खुला, तो हौस्टल के गार्ड ने कमरे का दरवाजा तोड़ दिया.

दरवाजा टूटते ही अंदर का नजारा देख कर हौस्टल का गार्ड और वहां मौजूद डाक्टर सब हतप्रभ रह गए. कमरे के अंदर पायल छत पर लगे पंखे से लटकी हुई थी. उस के गले में दुपट्टे का फंदा लगा था.

हौस्टल के गार्ड की मदद से डाक्टरों ने पायल के शव को पंखे से नीचे उतारा. उन्होंने पायल की नब्ज और स्टेथेस्कोप से उस के दिल की धड़कनें देखीं, लेकिन उस में जीवन के कोई लक्षण नजर नहीं आए. फिर भी वे बड़ी उम्मीद के साथ पायल को तत्काल हौस्पिटल के इमरजेंसी वार्ड में ले गए. वहां डाक्टरों ने आवश्यक जांचपड़ताल के बाद डा. पायल को मृत घोषित कर दिया.

इस बीच हौस्पिटल प्रशासन ने डा. पायल के पति डा. सलमान को फोन कर कहा कि डा. पायल की हालत नाजुक है. डा. सलमान उस समय जैकब सर्किल स्थित अपने घर पर थे. सूचना मिलने के 10 मिनट के भीतर वे हौस्पिटल के इमरजेंसी वार्ड में पहुंच गए. उस समय डाक्टर अपने प्रयासों में जुटे हुए थे. डा. सलमान ने भी पायल की जान बचाने की हरसंभव कोशिश की, लेकिन सब कुछ खत्म हो चुका था.

उधर, डा. पायल की मां आबिदा व अन्य परिजन हौस्टल पहुंच गए. वहां पर उन्हें पता चला कि पायल अपने कमरे में पंखे से लटकी हुई थी और उसे उस के साथी डाक्टर हौस्पिटल के इमरजेंसी वार्ड में ले गए हैं, तो वे वहां पहुंच गए. इमरजेंसी वार्ड में उन्हें डा. पायल के पति डा. सलमान भी मिल गए.

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3 महिला डाक्टरों के खिलाफ मां ने दर्ज कराई रिपोर्ट. डा. पायल को मृत देख कर आबिदा और डा. सलमान रोने लगे. पायल के साथी डाक्टरों की आंखों से भी आंसू टपकने लगे. किसी को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उन के साथ पढ़ने और अपने काम के प्रति समर्पित साथी डा. पायल अब उन के बीच नहीं रही.

हौस्टल प्रशासन ने डा. पायल की मौत की सूचना पुलिस को दी तो पुलिस ने हौस्पिटल पहुंच कर शव को कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. तब तक रात के करीब 10 बज गए थे. इसलिए पोस्टमार्टम दूसरे दिन होना था.

बाद में पुलिस ने हौस्टल में डा. पायल के कमरे में पहुंच कर जांचपड़ताल की. हौस्टल में रहने वाली डाक्टरी की छात्राओं और कर्मचारियों से प्रारंभिक पूछताछ की. रात ज्यादा हो जाने के कारण पुलिस ने डा. पायल का कमरा बंद करवा दिया.

अगले दिन 23 मई, 2019 को देशभर में लोकसभा चुनाव की मतगणना हो रही थी. इसलिए डा. पायल की आत्महत्या का मामला चुनावी सुर्खियों में दब गया.

इस बीच, डा. पायल की मां आबिदा ने अग्रीपाड़ा पुलिस थाने पहुंच कर 3 सीनियर महिला डाक्टरों हेमा आहूजा, डा. भक्ति मेहर और डा. अंकिता खंडेलवाल के खिलाफ  रिपोर्ट दर्ज करा दी. तीनों आरोपी डाक्टर गायनोकोलोजिस्ट थीं.

पुलिस ने एससी/एसटी एक्ट, आत्महत्या के लिए उकसाने, एंटी रैगिंग एक्ट और इंफारमेशन टेक्नौलोजी एक्ट के तहत मामला दर्ज किया. आबिदा ने पुलिस को बताया कि जब से उन की बेटी पायल का एडमिशन बी.वाई.एल. नायर हौस्पिटल एंड कालेज में हुआ था, तब से उसे सीनियर डाक्टरों द्वारा परेशान किया जा रहा था. इस संबंध में हमने कालेज प्रशासन से भी शिकायत की, लेकिन कुछ नहीं हुआ.

चुनाव परिणाम का शोर थमने पर डा. पायल की आत्महत्या के मामले ने तूल पकड़ लिया. दलित डाक्टर को प्रताडि़त कर आत्महत्या करने के लिए मजबूर करने के मामले में विभिन्न संगठनों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए.

महाराष्ट्र एसोसिएशसन औफ रेजिडेंट डाक्टर (मार्ड) ने घटना की निंदा करते हुए तीनों आरोपी सीनियर डाक्टरों की सदस्यता निरस्त कर दी. वहीं, नायर हौस्पिटल के डीन डा. रमेश भारमल ने मामले की आंतरिक जांच के आदेश दे कर 6 सदस्यीय कमेटी गठित कर दी. इसके अलावा 2 सीनियर डाक्टरों को नोटिस दे कर उन से इस मामले में जवाब मांगा गया.

मार्ड की अध्यक्ष डा. कल्याणी डोंगरे ने कहा कि डा. पायल जिंदगी के हर पल को एंजौय करती थी. सोशल मीडिया पर भी एक्टिव थी, आत्महत्या वाले दिन भी उस ने हौस्पिटल में 2 सर्जरी की थीं.

डा. पायल की मौत को ले कर मुंबई में लगातार हो रहे विरोध प्रदर्शन को देखते हुए पुलिस कमिश्नर ने जोन-3 के डीसीपी अविनाश कुमार और अन्य अधिकारियों को इस मामले की गंभीरता से जांच करने और आरोपी डाक्टरों की गिरफ्तारी के निर्देश दिए.

पुलिस ने मामले की जांच में तेजी लाते हुए रैगिंग के नाम पर डा. पायल को प्रताडि़त करने के सबूत जुटाए. पायल की मां आबिदा ने उस के मोबाइल के वे स्क्रीनशौट पुलिस को उपलब्ध कराए, जिन में आरोपी डाक्टरों की ओर से उसे जातिसूचक शब्दों से प्रताडि़त किया गया था.

घर वालों का आरोप था कि हौस्टल के कमरे में डा. पायल पंखे से लटकी मिलने के काफी देर बाद तक उस का कमरा खुला हुआ रहा था. इस दौरान तीनों आरोपी डाक्टर वहां देखी गई थीं. उन्होंने ने शक जताया कि यदि डा. पायल ने आत्महत्या की है तो उस ने कमरे में कोई सुसाइड नोट जरूर छोड़ा होगा, लेकिन वहां कोई सुसाइड नोट नहीं मिला. आरोपी डाक्टरों ने पायल का लिखा सुसाइड नोट संभवत: नष्ट कर दिया.

मामले की आंतरिक जांच के लिए बनाई गई 6 सदस्यीय कमेटी की जांच रिपोर्ट आने के बाद 27 मई को नायर अस्पताल प्रशासन ने डा. पायल को परेशान करने और उस पर जातिगत टिप्पणियां करने के आरोप में 4 डाक्टरों को निलंबित कर दिया.

इन में प्रसूति विभाग की प्रमुख डा. यी चिंग लिंग के अलावा तीनों आरोपी सीनियर रेजिडेंट डा. हेमा आहूजा, डा. भक्ति मेहर और डा. अंकिता खंडेलवाल शामिल थीं. अगले आदेश तक चारों निलंबित डाक्टरों के बौंबे म्युनिसिपल कारपोरेशन (बीएमसी) के किसी भी अस्पताल में काम करने पर रोक लगा दी गई. नायर अस्पताल भी बीएमसी की ओर से संचालित है.

दूसरी ओर, 27 मई को महाराष्ट्र महिला आयोग ने नायर अस्पताल प्रशासन को नोटिस भेज कर मामले की पूरी जानकारी मांगी. आयोग ने अस्पताल को नोटिस भेज कर रैगिंग रोकने के लिए अब तक उठाए गए कदमों का विवरण भी मांगा. साथ ही यह भी पूछा कि भविष्य में ऐसी घटनाएं रोकने के लिए अस्पताल प्रशासन ने क्या कदम उठाए हैं.

सीनियर छात्र अब भी रैगिंग को अपना अधिकार समझते हैं. अस्पताल प्रशासन की एंटी रैगिंग कमेटी की जांच रिपोर्ट में डा. पायल के मानसिक शोषण और जातिगत टिप्पणियां करने की बात सही पाई गई. यह रिपोर्ट महाराष्ट्र यूनिवर्सिटी औफ हेल्थ साइंस को सौंप दी गई. रिपोर्ट आने के बाद मैडिकल एजुकेशन विभाग ने 4 सदस्यीय कमेटी बना कर मौजूदा एंटी रैगिंग नियमों की समीक्षा कर रिपोर्ट देने को कहा.

इस बीच, डा. पायल तड़वी की आत्महत्या का मामला देशभर में सुर्खियों में छा गया. शिवसेना ने अपने मुखपत्र ‘सामना’ में कहा कि पायल की दर्दनाक दास्तान महाराष्ट्र जैसे प्रगतिशील कहलाने वाले समाज पर सवालिया निशान है.

डा. पायल के पिता सलीम, मां आबिदा व पति डा. सलमान को साथ ले कर कई दलित और जनजातीय संगठनों ने 28 मई, 2019 को अस्पताल के बाहर प्रदर्शन कर आरोप लगाया कि मुमकिन है कि तीनों महिला डाक्टरों ने पायल की हत्या की हो, इसलिए सरकार इस मामले में हस्तक्षेप करे. पायल के आदिवासी समुदाय से होने के कारण तीनों सीनियर डाक्टर उसे प्रताडि़त करती थीं.

लगातार हो रहे विरोध और प्रदर्शनों को देखते हुए दबाव में आई पुलिस ने डा. भक्ति मेहर को 28 मई को और डा. हेमा आहूजा एवं डा. अंकिता खंडेलवाल को भी उसी रात गिरफ्तार कर लिया. तीनों आरोपी महिला डाक्टरों को पुलिस ने 29 मई को अदालत में पेश किया. अदालत ने उन्हें 31 मई तक पुलिस रिमांड पर भेज दिया.

पायल की मौत का मामला लगातार संवेदनशील और गंभीर होता जा रहा था. इसलिए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के आदेश पर मुंबई के पुलिस कमिश्नर ने 30 मई को इस की जांच का काम क्राइम ब्रांच को सौंप दिया.

क्राइम ब्रांच ने मामले की जांचपड़ताल शुरू कर 31 मई को कुछ डाक्टरों से पूछताछ की. इस के अलावा राजा ठाकरे को इस मामले में विशेष सरकारी वकील नियुक्त किया गया. क्राइम ब्रांच तीनों आरोपियों को रिमांड पर लेना चाहती थी, लेकिन इस से पहले ही पुलिस रिमांड की अवधि पूरी होने पर अदालत ने 31 मई को तीनों आरोपी डाक्टरों को 10 जून तक के लिए न्यायिक हिरासत में भायखला जेल भेज दिया.

बाद में क्राइम ब्रांच ने बौंबे हाईकोर्ट में अरजी दायर कर तीनों आरोपी महिला डाक्टरों का पुलिस रिमांड मांगा. रिमांड तो नहीं मिला, लेकिन न्यायमूर्ति एस. शिंदे ने 9 जून को सुबह 9 से शाम 6 बजे के बीच तीनों आरोपी डाक्टरों से पूछताछ की अनुमति जरूर दे दी. अपने आदेश में उन्होंने यह भी कहा कि शुरुआत में ही मामले की जांच योग्य अधिकारियों को सौंपनी चाहिए थी.

मामले की जांचपड़ताल के लिए दिल्ली से राष्ट्रीय अनुसूचित जाति/जनजाति आयोग का 5 सदस्यीय दल 6 जून को मुंबई पहुंच गया. आयोग के अध्यक्ष नंद कुमार की अगुवाई में इस दल ने महाराष्ट्र के मुख्य सचिव, स्वास्थ्य सचिव, मुंबई के पुलिस आयुक्त सहित उच्चाधिकारियों से बैठक कर डा. पायल तड़वी मामले की तथ्यात्मक जानकारी हासिल की. दल ने नायर अस्पताल और टोपीवाला नैशनल मैडिकल कालेज के प्रबंधन से जुड़े लोगों से भी मुलाकात की.

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निशाना थी डा. पायल तड़वी की पृष्ठभूमि. महाराष्ट्र के जलगांव की रहने वाली डा. पायल आदिवासी समाज से थी. एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के बाद उस ने 1 मई, 2018 को गायनोकोलोजी में पोस्ट ग्रैजुएशन के लिए मुंबई के टोपीवाला नैशनल मैडिकल कालेज में एडमिशन लिया था. यह मैडिकल कालेज मुंबई के ही बी.वाई.एल. नायर अस्पताल से संबद्ध है.

कालेज में एडमिशन लेने के कुछ दिन बाद ही कुछ सीनियर महिला डाक्टर रैगिंग के नाम पर उसे प्रताडि़त करने लगीं. पायल को जातिसूचक शब्दों से अपमानित किया जाता था. डा. हेमा आहूजा और डा. भक्ति मेहर कुछ दिनों के लिए डा. पायल की रूममेट रही थीं. आबिदा का आरोप है कि उन की बेटी के साथ प्रताड़ना की शुरुआत उसी समय हुई थी.

दोनों रूममेट सीनियर डाक्टर पायल की बेडशीट से अपने गंदे पैर पोंछती थीं. उस का सामान इधरउधर फेंक देती थीं. बाद में दोनों सीनियर डाक्टर हेमा आहूजा और डा. भक्ति मेहर दूसरा कमरा आवंटित होने पर उस में रहने लगी थीं, लेकिन उन के अत्याचार कम होने के बजाय बढ़ते गए.

उन के साथ डा. अंकिता खंडेलवाल भी पायल को टौर्चर करती थी. कहा जाता है कि तीनों सीनियर डाक्टर कई बार मरीजों के सामने ही पायल को बुरी तरह डांटती थीं. उस की फाइलों को मुंह पर फेंक देती थीं.

वे पायल को औपरेशन थिएटर में भी नहीं घुसने देती थीं, जबकि उस की पढ़ाई के लिहाज से थिएटर में होने वाले औपरेशन देखना और समझना उस के लिए बेहद जरूरी था. वे वाट्सएप गु्रप पर भी पायल की खिल्ली उड़ाती थीं.

पायल ने सीनियर डाक्टरों की ओर से प्रताडि़त करने की बात अपनी मां आबिदा को बताई थी. आबिदा ने बेटी को छोटीमोटी बातों पर ध्यान नहीं देने और पढ़ाई पर फोकस रखने की सलाह दी थी. जब पायल पर अत्याचार ज्यादा बढ़े, तो दिसंबर 2018 में उस ने अपने परिवार से इस की शिकायत की. इस पर पायल के पति डा. सलमान ने पायल के डिपार्टमेंट में लिखित शिकायत की. इस शिकायत पर डा. पायल की यूनिट बदल दी गई.

यूनिट बदलने पर डा. पायल को कुछ राहत जरूर मिली. अब उसे सीधे तौर पर प्रताडि़त नहीं किया जाता था, बल्कि सोशल मीडिया के माध्यम से उसे मानसिक यंत्रणा दी जाती थी. कुछ दिनों बाद डा. पायल को वापस पुरानी यूनिट में भेज दिया गया, तो उस पर तीनों सीनियर डाक्टरों के अत्याचार बढ़ गए. डा. पायल और उस के परिजनों ने इस बारे में बाद में भी कई बार शिकायतें की, लेकिन कुछ नहीं हुआ.

डा. सलमान के अनुसार, घटना से एक दिन पहले 21 मई को डा. पायल ने फोन कर उन्हें बताया था कि वह अपने दोस्तों के साथ हौस्टल से बाहर मोहम्मद अली रोड पर होटल में डिनर पर जा रही है. पति डा. सलमान से हुई इस आखिरी बातचीत में डा. पायल ने अगले दिन मिलने का वादा किया था.

होटल में डिनर के दौरान सभी दोस्तों ने सेल्फी ली थी. डा. पायल ने भी सेल्फी ली थी. डा. पायल ने यह सेल्फी वाट्सएप के एक गु्रप पर पोस्ट कर दी थी. इस सेल्फी को लेकर सीनियर डाक्टरों हेमा, डा. भक्ति और डा. अंकिता ने सोशल मीडिया पर डा. पायल का खूब मजाक बनाया और उसे मानसिक रूप से प्रताडि़त किया.

डिनर करने पर मारे ताने

22 मई, 2019 को डा. पायल की सुबह से नायर हौस्पिटल में ड्यूटी थी. ड्यूटी के दौरान सीनियर डाक्टर हेमा, डा. भक्ति और डा. अंकिता ने होटल में डिनर करने को ले कर डा. पायल को खूब ताने मारे. इस के बावजूद डा. पायल अपने काम में जुटी रही. उसने 2 सर्जरी में सीनियर डाक्टरों का सहयोग भी किया.

दोपहर करीब ढाई बजे वह अस्पताल से निकल कर हौस्टल में अपने कमरे पर पहुंची. शाम करीब 4 बजे पायल ने अपनी मां आबिदा को मोबाइल पर काल कर कहा था कि मम्मी अब बरदाश्त नहीं होता. इस पर आबिदा ने पायल को जल्दी ही सब ठीक होने की दिलासा देते हुए दामाद डा. सलमान के साथ समय बिताने को कहा था ताकि मन कुछ शांत हो सके.

इस के बाद शाम करीब साढ़े 7 बजे डा. पायल अपने कमरे में पंखे से लटकी हुई मिली. कथा लिखे जाने तक मुंबई क्राइम ब्रांच इस मामले की जांच कर रही थी. तीनों आरोपी महिला डाक्टर न्यायिक अभिरक्षा में जेल में थीं. डा. पायल के परिजनों का आरोप है कि अगर उन की शिकायत पर अस्पताल प्रशासन ने ध्यान दे कर कोई काररवाई की होती तो आज पायल जीवित होती.

राज्य अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति आयोग ने पुलिस की जांच में कई खामियां मानी हैं. डा. पायल के मामले की जांच के लिए आयोग ने 4 लोगों की एक कमेटी बनाई थी. इस में एक रिटायर्ड आईएएस और आईपीएस अधिकारी के अलावा एक भूतपूर्व जज और आयोग के सचिव को शामिल किया गया. इस कमेटी ने मौका मुआयना कर अपनी रिपोर्ट बनाई, लेकिन इसे अंतिम रूप नहीं दिया है. रिपोर्ट में कहा है कि पुलिस ने कई महत्त्वपूर्ण बातों को जांच में शामिल नहीं किया. सही धाराएं भी नहीं लगाई गईं.

इस कमेटी ने जांच में देखा कि पायल के बैड और पंखे के बीच करीब 9 फीट का अंतर है. बिना टेबल या कुरसी लगाए पंखे तक नहीं पहुंचा जा सकता जबकि कमरे में कोई टेबल या कुरसी नहीं थी. कमेटी ने जांच एजेंसी से सीसीटीवी फुटेज और विसरा रिपोर्ट भी मांगी है. कमेटी यह भी जांच कर रही है कि सबसे पहले शिकायत मिलने पर अस्पताल प्रशासन ने स्थानीय पुलिस को सूचित क्यों नहीं किया.

चौंकाने वाली बात यह भी है कि पिछले 7 सालों में महाराष्ट्र में रैगिंग से जुड़े 248 मामले सामने आए हैं. इस में 17 प्रतिशत यानी 43 मामले मैडिकल कालेजों से जुड़े हुए हैं. इन में 7 मामले मुंबई के मैडिकल कालेजों के हैं.

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पुलिस भले ही इस मामले में सारे सबूत जुटा ले और अदालत आरोपी डाक्टरों को सजा भी दे दे, लेकिन सवाल यह उठता है कि उच्च शैक्षणिक संस्थानों में रैगिंग पर प्रभावी तरह से रोक क्यों नहीं लग पा रही है. इस के अलावा सवाल यह भी है कि जातिवाद का जहर कब तक फैलता रहेगा?

डा. पायल की मौत किसी भी संवेदनशील मन को झकझोर देने वाली है. यह घटना जहां समाज के लिए शर्मिंदगी का सबक है, वहीं यह सोचने को भी मजबूर करती है कि ऐसी स्थितियों के चलते शिक्षा व्यवस्था क्या नई पीढ़ी में स्वस्थ मानसिकता का विकास कर पाएगी.

(कहानी सौजन्य मनोहर कहानी)

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