पकड़ा गया 5 लाख का इनामी डौन : भाग 1

(कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां)

लाख के इनामी माफिया डौन अखिलेश  सिंह को झारखंड और बिहार की पुलिस सालों से तलाश रही थी. वह जमशेदपुर के अदालत परिसर में की गई झारखंड मुक्ति मोर्चा के कद्दावर नेता और रीयल एस्टेट कारोबारी उपेंद्र सिंह की हत्या में जेल से पैरोल पर बाहर आने के बाद से फरार चल रहा था. जेलर उमाशंकर पांडेय हत्याकांड में भी उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई जा चुकी थी.

दोनों मामलों में उसे न्यायालय में पेश होने का आदेश दिया जा चुका था, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चल रहा था. जमशेदपुर के जिला जज (पंचम) सुभाष ने पुलिस को आदेश दिया था कि अखिलेश सिंह को किसी भी तरह ढूंढ कर 11 दिसंबर, 2017 को अदालत में पेश किया जाए. पुलिस को यह आदेश अगस्त, 2017 में दिया गया था.

जिला न्यायालय से आदेश आने के बाद जमशेदपुर पुलिस ऊहापोह की स्थिति में थी. हार्डकोर क्रिमिनल अखिलेश सिंह झारखंड और बिहार पुलिस के लिए सिरदर्द बना हुआ था. 36 मुकदमों में वांछित डौन अखिलेश सिंह पर प्रदेश के बड़े पुलिस अधिकारियों और राजनेताओं का वरदहस्त था, इसलिए पुलिस उस के गिरेबान पर हाथ डालने से कतराती थी. डौन सालों से कहां छिपा था, किसी को पता नहीं था. झारखंड पुलिस कई महीनों से उस की तलाश में जुटी थी.

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आखिर जमशेदपुर पुलिस की मेहनत रंग लाई. सर्विलांस के जरिए जमशेदपुर (झारखंड) पुलिस को माफिया डौन अखिलेश सिंह की लोकेशन हरियाणा के गुरुग्राम की मिली. पुलिस ने सूचना की पुष्टि की तो वह पक्की निकली. अखिलेश सिंह महीनों से अपनी पत्नी गरिमा सिंह के साथ गुरुग्राम के सुशांत लोक स्थित एक गेस्टहाउस में छिपा बैठा था और किसी बड़ी घटना को अंजाम देने की योजना बना रहा था.

आखिर निशाने पर आ ही गया डौन अखिलेश

जमशेदपुर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अनूप टी. मैथ्यू ने गुरुग्राम के पुलिस आयुक्त संदीप खिरवार से संपर्क कर के 5 लाख के इनामी डौन अखिलेश सिंह को गिरफ्तार कराने में सहयोग मांगा. संदीप खिरवार इस के लिए तैयार हो गए. इस के बाद 8 सितंबर, 2017 को झारखंड पुलिस गुरुग्राम पहुंच गई.

दोनों प्रदेशों के पुलिस अधिकारियों ने डौन अखिलेश सिंह को जिंदा पकड़ने का एक ब्लूप्रिंट तैयार किया. पुलिस जानती थी कि अखिलेश सिंह के पास आधुनिक हथियार हो सकते हैं, इसलिए इस योजना को बड़े ही गोपनीय ढंग से तैयार किया गया.

इस औपरेशन में जमशेदपुर पुलिस के एसपी (ग्रामीण) प्रभात कुमार, एसएसपी अनूप टी. मैथ्यू, गुरुग्राम के पुलिस आयुक्त संदीप खिरवार, डीसीपी (क्राइम) सुमित कुमार और सीआईए यूनिट-9 के इंचार्ज इंसपेक्टर राजकुमार सहित चुनिंदा पुलिसकर्मी शामिल हुए.

डौन की पहचान के लिए एसएसपी मैथ्यू के पास उस की युवावस्था की एक पुरानी तसवीर थी, जिस में वह काफी खूबसूरत दिख रहा था. गोपनीय तरीके से बनाई गई योजना पूरी हुई तो 9 अक्तूबर, 2017 को पुलिस ने गुरुग्राम के सुशांत लोक स्थित उस गेस्टहाउस को चारों ओर से घेर लिया, जिस में अखिलेश रह रहा था.

एसपी प्रभात कुमार, डीसीपी सुमित कुमार और इंसपेक्टर राजकुमार ने रिसैप्शन पर अखिलेश सिंह नाम के गेस्ट का पता किया तो एंट्री रजिस्टर में उस नाम से कोई कस्टमर नहीं मिला. गेस्टहाउस के कमरा नंबर 102 में अजय कुमार नाम का एक कस्टमर अपनी पत्नी के साथ ठहरा था.

पुलिस कमरा नंबर 102 पर पहुंची. एसपी प्रभात कुमार ने दरवाजे की झिर्री से भीतर झांक कर देखा तो बैड पर एक युवक बैठा था. उस के चेहरे पर काली और घनी दाढ़ी थी. देखते ही वह पहचान गए कि अजय

कुमार नाम से ठहरा गेस्ट अखिलेश सिंह ही है. कमरे के सामने पहुंच कर सुमित कुमार ने जैसे ही दरवाजा खटखटाया तो भीतर से गोलियां चलने लगीं. मौके पर पोजीशन लिए पुलिस अधिकारी सतर्क हो कर साइड हो गए. उस के बाद आधा दरवाजा तोड़ कर पुलिस की ओर से कई राउंड गोलियां चलाई गईं.

भीतर से गोलियां चलनी बंद हो चुकी थीं. जब अंदर कोई हलचल नहीं हुई तो पोजीशन ले कर पुलिस टीम पूरा दरवाजा तोड़ कर भीतर घुसी. कमरे में कसरती बदन वाला एक युवक और एक महिला मौजूद थी. युवक के चेहरे पर घनी दाढ़ी थी और उस के दोनों पैरों के घुटने के ऊपर गोली लगी थी. गोली लगने से घायल हो कर बिस्तर पर पड़ा तड़प रहा था.

पूछताछ में पता चला कि वही माफिया डौन अखिलेश सिंह है और महिला उस की पत्नी गरिमा सिंह. जब पुलिस अखिलेश को वहां से ले जाने लगी तो गरिमा सिंह इंसपेक्टर राजकुमार की सर्विस रिवौल्वर छीनने की कोशिश करने लगी. इस से पहले कि कोई अप्रिय घटना घटती, महिला पुलिस ने उसे दबोच लिया.

मुठभेड़ के बाद 5 लाख के इनामी डौन अखिलेश सिंह और उस की पत्नी गरिमा सिंह के गिरफ्तार होने की सूचना जैसे ही पत्रकारों को मिली, वे गुरुग्राम के थाना सुशांत लोक पहुंच गए. इस बीच पुलिस ने अखिलेश सिंह के विरुद्ध गुरुग्राम के थाना सेक्टर-29 में भादंवि की धारा 307, 353, 436 और शस्त्र अधिनियम का मुकदमा दर्ज कर लिया था.

अखिलेश के दोनों पैरों में घुटनों के ऊपर गोलियां लगी थीं. इलाज के लिए उसे गुरुग्राम के जिला अस्पताल भिजवा दिया गया. उस के बाद पुलिस अधिकारियों ने संयुक्त प्रैसवार्ता कर मुठभेड़ की पूरी कहानी विस्तार से बताई.

बिजनैस से कैरियर की शुरुआत की अखिलेश ने

अखिलेश सिंह मामूली हैसियत वाला आदमी नहीं था. वह सेवानिवृत्त सबइंसपेक्टर और आजसू पार्टी (औल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन पार्टी) के नेता चंद्रगुप्त सिंह का बेटा था. अखिलेश ने ट्रांसपोर्ट का धंधा शुरू किया था, लेकिन वह ऐसी बुरी संगत में पड़ गया कि एक मामूली ट्रांसपोर्टर से झारखंड राज्य का 5 लाख का सब से बड़ा मोस्टवांटेड डौन बन गया, जिस की एक बोली पर बड़ेबड़े व्यापारियों की तिजोरियां खुल जाती थीं.

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अखिलेश सिंह मूलत: जमशेदपुर जिले के थाना बिष्टुपुर क्षेत्र के बिष्टुपुर इलाके का रहने वाला था. वह चंद्रगुप्त सिंह का बड़ा बेटा था. उन का दूसरा बेटा अमलेश सिंह है.

चंद्रगुप्त सिंह ने पुलिस में सिपाही के पद से नौकरी शुरू की थी. अपनी ईमानदारी, लगन और मेहनत से वह सबंइसपेक्टर के ओहदे तक पहुंचे. अतिमहत्त्वाकांक्षी और तेजदिमाग का अखिलेश सिंह पढ़लिख कर पिता की तरह काबिल अफसर बनना चाहता था. इस के लिए उस ने पोस्टग्रैजुएशन भी किया. लेकिन वह पिता जैसे मुकाम को छू तक नहीं पाया.

व्यवसाय के रूप में अखिलेश सिंह ने पार्टनरशिप में ट्रांसपोर्ट का काम शुरू किया था. उस ने और अशोक शर्मा ने गुलशन रोडलाइंस की शुरुआत की थी. अखिलेश और अशोक का यह व्यवसाय चल निकला. वैसे भी अशोक शर्मा इस धंधे का पुराना मास्टर था. उस का ट्रांसपोर्ट का धंधा सालों से मजे में चल रहा था. अखिलेश के आने से उस का काम और भी अच्छा चलने लगा था.

अशोक ने अखिलेश को इसलिए पार्टनर बनाया था, क्योंकि वह एक ताकतवर आदमी का बेटा था. उस के पिता चंद्रग्रप्त सिंह की पुलिस और सत्ता के गलियारों में अच्छी पहुंच थी. कोई परेशानी आने पर वह काम आ सकता था. वैसे भी अखिलेश व्यवसाय के प्रति काफी ईमानदार था.

ट्रांसपोर्ट की कमाई से अशोक शर्मा ने करोड़ों की प्रौपर्टी अर्जित की थी. उस के खास दोस्तों में एक था हरीश अरोड़ा. वह उस से अपने दिल की हर बात शेयर करता था. हरीश को उस की यही बात सब से अच्छी लगती थी.

हरीश जानता था कि अशोक के पास किसी चीज की कमी नहीं है. अगर किसी चीज की कमी थी तो वह थी बीवीबच्चों की. हरीश ने सन 1997 में अपनी परिचित मधु शर्मा उर्फ पिंकी नाम की युवती के साथ उस की शादी करा दी. इस के बाद अशोक हरीश को पहले से ज्यादा मानने लगा.

शादी के करीब 1 साल बाद की बात है. उस दिन तारीख थी 18 सितंबर, 1998 और समय दिन. अशोक शर्मा किसी काम से घर से बाहर जा रहे थे. बिष्टुपुर थानाक्षेत्र में हिलव्यू रोड स्थित सेक्रेड हार्ट कौन्वेंट स्कूल के पास कुछ अज्ञात बंदूकधारियों ने दिनदहाड़े गोली मार कर उन की हत्या कर दी.

अपराध की राह खुद उतर आई अखिलेश की जिंदगी में

ट्रांसपोर्टर अशोक शर्मा की हत्या से जमशेदपुर में सनसनी फैल गई. व्यवसाई एकजुट हो कर पुलिस के खिलाफ नारेबाजी करते हुए आंदोलन के लिए सड़कों पर उतर आए. वैसे भी दिन पर दिन जिले की कानूनव्यवस्था बिगड़ती जा रही थी और अपराधियों के हौसले बुलंद थे. हरीश अरोड़ा ने थाना बिष्टुपुर में अशोक के व्यावसायिक पार्टनर अखिलेश सिंह के साथ 3 अन्य लोगों बालाजी बालकृष्णन, विक्रम शर्मा और विजय कुमार सिंह उर्फ मंटू के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज करा दी.

अशोक शर्मा हत्याकांड में नामजद होते ही अखिलेश सिंह जमशेदपुर छोड़ कर फरार हो गया. विक्रम शर्मा और विजय कुमार गिरफ्तार कर लिए गए. अखिलेश सिंह के खिलाफ पहली बार हत्या जैसे संगीन मामले में मुकदमा दर्ज हुआ. इस के बाद वह चर्चाओं में आ गया.

3 साल तक बिष्टुपुर पुलिस हत्या के कारणों की जांच करती रही, लेकिन उसे कुछ हासिल नहीं हुआ. इस घटना की जांच सबइंसपेक्टर विश्वेश्वरनाथ पांडेय कर रहे थे. जांच के दौरान पता चला कि अशोक शर्मा को शूटर रवि चौरसिया ने गोली मार कर हत्या की थी. पुलिस ने रवि चौरसिया को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया. 28 जनवरी, 2000 को रवि चौरसिया के खिलाफ आरोपपत्र तैयार कर के न्यायालय को सौंप दिया गया.

बिष्टुपुर पुलिस द्वारा मामले की लीपापोती के बाद सन 2001 में अशोक हत्याकांड की जांच सीआईडी को सौंप दी गई. सीआईडी इंसपेक्टर कन्हैया उपाध्याय ने अशोक हत्याकांड का परदाफाश कर दिया. जांच में घटना का असल सूत्रधार हरीश अरोड़ा ही निकला. उसी ने दोस्त की संपत्ति हथियाने और उस की पत्नी को पाने के लिए यह दांव खेला था.

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घटना का खुलासा उस समय हुआ, जब सन 2001 में जमशेदपुर के एक बड़े मोबाइल व्यापारी ओमप्रकाश काबरा का अपहरण कर लिया गया. काबरा के अपहरण में एक बार फिर अखिलेश सिंह का नाम उछला तो पुलिस की पेशानी पर बल पड़ गए. अब तक अखिलेश सिंह गैंगस्टर बन चुका था.

खैर, पुलिस ने ओमप्रकाश काबरा अपहरण की जांच शुरू की तो ट्रांसपोर्टर अशोक शर्मा हत्याकांड में एक चौंकाने वाले राज का खुलासा हुआ. इस मामले की जांच करते हुए पुलिस को पता चला कि अशोक शर्मा की हत्या की साजिश हरीश अरोड़ा ने रची थी.

यह लालच, विश्वासघात और प्रेम का मामला था. दरअसल, पुलिस जांच में पता चला कि मधु शर्मा उर्फ पिंकी और हरीश अरोड़ा आपस में एकदूसरे से प्रेम करते थे. हरीश अरोड़ा ट्रांसपोर्टर अशोक शर्मा का जिगरी यार था. करोड़पति अशोक शर्मा की शादी नहीं हुई थी.

हरीश अरोड़ा की नीयत अपने दोस्त अशोक की संपत्ति पर थी. वह एक झटके में उस की संपत्ति हासिल कर लेना चाहता था. इस के लिए उस ने एक बड़ी साजिश रची.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

पकड़ा गया 5 लाख का इनामी डौन : भाग 3

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(कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां)

लेकिन अखिलेश सिंह ने बीच में आ कर आशीष डे को हट जाने को कहा. आशीष डे ने अखिलेश की बात नहीं मानी तो उस ने उन्हें जान से मारने की धमकी दी. इस के बाद भी आशीष डे ने अखिलेश की बात नहीं सुनी. मामला दोनों के बीच अहं पर आ टिका.

2 नवंबर, 2007 की सुबह साढ़े 9 बजे आशीष डे अपने चेनार रोड स्थित घर से साकची बाजार स्थित दुकान पर जा रहे थे. बाजार में गाड़ी पार्किंग की समस्या थी. इस वजह से वह पैदल ही जा रहे थे. इस का फायदा उठाते हुए अखिलेश सिंह ने अपने शूटरों के साथ मिल कर बीच चौराहे पर एके 47 से आशीष डे को भून डाला और हवा में असलहे लहराता हुआ फरार हो गया. जबकि आशीष डे का अखिलेश के पिता चंद्रगुप्त सिंह से पारिवारिक रिश्ता था.

दोनों परिवारों का एकदूसरे के घर आनाजाना था, फिर भी 2 गज जमीन के लिए अखिलेश ने आशीष डे की जान लेने से तनिक भी संकोच नहीं किया. हत्या करने के बाद उस ने राज्य के एक पुलिस अफसर के घर पनाह ली. उस की तलाश में पुलिस यहांवहां मारी फिर रही थी, लेकिन उसे पकड़ना तो दूर, पुलिस उस की परछाईं तक नहीं छू पाई थी.

मार्च, 2008 में पूर्व न्यायाधीश आर.पी. रवि के घर पर फायरिंग, टाटा स्टील के सुरक्षा अधिकारी जयराम सिंह की हत्या, प्रतिद्वंदी परमजीत सिंह के घर पर फायरिंग वगैरह में अखिलेश शामिल था. पकड़े जाने के डर से वह फरार था. अखिलेश सिंह को 31 दिसंबर, 2011 को उत्तर प्रदेश के विशेष कार्यबल और झारखंड पुलिस ने नोएडा के एक मौल से गिरफ्तार किया. सन 2014 में जेल के भीतर अफवाह उड़ी कि वह राजनीति में शामिल हो रहा है. यह अफवाह उस के सहयोगियों ने उड़ाई थी. इस के बाद पुलिस ने उसे साकची जेल से दुमका जेल में ट्रांसफर कर दिया.

मई, 2015 में जेलर उमाशंकर पांडेय के हत्यारे अखिलेश को दोषी ठहराया गया था और उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. हालांकि 4 सितंबर, 2015 को उसे जमानत मिल गई.

जबकि उस पर क्राइम कंट्रोल एक्ट (सीसीए) के तहत अपराध दर्ज किया गया था, जिस के तहत एक साल के लिए कोई जमानत याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता था. लेकिन उस ने अपनी ऊपर तक की पहुंच के बल पर झारखंड हाईकोर्ट से स्टे ले लिया और स्टे के आधार पर उच्च न्यायालय से जमानत ले ली. जमानत मिलने के बाद एक बार फिर वह जेल से बाहर आ गया.

जमानत पर बाहर आने के बाद अखिलेश करीब 15 महीने तक खामोश रहा. 30 नवंबर, 2016 को जमशेदपुर न्यायालय के भीतर उस के गुर्गों ने रीयल एस्टेट कारोबारी और झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता उपेंद्र सिंह को एके 47 से भून कर राज्य भर में सनसनी फैला दी.

झारखंड मुक्ति मोर्चा नेता उपेंद्र सिंह कोई दूध का धुला नहीं था. वह हत्या, हत्या के प्रयास और अपहरण जैसे कई संगीन मामलों का आरोपी था. 30 नवंबर, 2016 को दिन के डेढ़ बजे नेता उपेंद्र सिंह एक मुकदमे में अगली तारीख लेने जमशेदपुर न्यायालय आया था.

1 अगस्त, 2015 को बिजनैस पार्टनर और ठेकेदार रामशकल यादव की सुबह मौर्निंग वाक करते समय मोटरसाइकिल सवार कुछ अज्ञात हमलावरों ने एके47 से हत्या कर दी थी.

उपेंद्र सिंह के मर्डर ने फैलाई सनसनी

इस हत्याकांड में नेता उपेंद्र सिंह का नाम उछला था. यही नहीं दोनों के बीच खिंची दुश्मनी की रेखा भी किसी से छिपी नहीं थी. उपेंद्र सिंह और विकी टापरिया ने पटना के हार्डकोर गैंगस्टर मनोज सिंह के साथ मिल कर रामशकल यादव की हत्या की 75 लाख रुपए में डील की थी.

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जिस में से 25 लाख बतौर पेशगी मनोज सिंह को एडवांस में दिए गए थे और बाकी के 50 लाख रुपए काम हो जाने के बाद देना तय हुआ था. कारोबारी रामशकल यादव की हत्या के मामले में उपेंद्र सिंह को आरोपी बनाया गया था. उसी सिलसिले में उपेंद्र सिंह अदालत में हाजिर हो कर मुकदमे की अगली तारीख लेने आया था.

पुलिस के अनुसार, विनोद सिंह अखिलेश सिंह का सब से निकटतम सहयोगी था. विनोद सिंह को 1 दिसंबर, 2016 को तड़के 3 बजे पुलिस ने उस के घर से उठाया. पहले उसे मानगो थाना में रखा गया. उस के बाद उस से साकची थाने में पूछताछ की गई. साथ ही शहर के विभिन्न इलाकों से अनिल सिंह, विजय यादव, मनोज सिंह, एक महिला सहित 15 लोगों को उठाया गया.

इन में अनिल सिंह और मनोज सिंह, उपेंद्र सिंह पर गोली चलाने वाले विनोद सिंह उर्फ मोगली के भाई थे. विनोद सिंह ने पूछताछ में पुलिस को बताया था कि हत्या अखिलेश सिंह के कहने पर की गई थी. उपेंद्र की हत्या रंगदारी न देने की वजह से की गई थी. इस के 6 दिनों बाद 6 दिसंबर, 2016 को रंगदारी न देने पर उपेंद्र सिंह के करीबी अमित राय की गोली मार कर हत्या कर दी गई.

एक के बाद एक ताबड़तोड़ 2 हत्याओं से जमशेदपुर हिल उठा. दोनों हत्याओं में पुलिस को अखिलेश सिंह के शामिल होने के पर्याप्त सबूत भी मिल गए. पुलिस अखिलेश की तलाश में लग गई. लेकिन उसे पकड़ना तो दूर की बात, उस का पता तक नहीं चल रहा था. अखिलेश पर दबाव बनाने के लिए उस के घर की कुर्की और जब्ती हुई, पुलिस ने उस के घर में सीसीटीवी कैमरा, बंदूक, कारतूस, पलंग, फ्रिज, टीवी, एसी से ले कर अलमारी, एक्वेरियम, शोकेस, गैस चूल्हा, गद्दा, अटैची, पाजामाकुरता, चौकीबेलन, डिब्बा, कटोरी और चम्मच तक कुछ नहीं छोड़ा.

सिदगोड़ा के क्वार्टर नंबर 28 से सारे सामान को उठा कर गोलमुरी थाने में रख दिया गया. चंद्रगुप्त सिंह के 2 लाइसेंसी हथियार और 12 बोर के कारतूसों का डिब्बा भी पुलिस ले गई.

यहां यह बताना जरूरी होगा कि जिस फ्लैट में कुर्कीजब्ती की गई, वहां अखिलेश के पिता चंद्रगुप्त सिंह रहते थे, जबकि अखिलेश सिंह बारीडीह के सृष्टि अपार्टमेंट के एक फ्लैट में रहता था. केस में चूंकि अखिलेश का आवासीय पता उसी क्वार्टर था, इसलिए वहीं काररवाई हुई.

पूरे मामले को देखते हुए झारखंड के मुख्यमंत्री रघुबर दास ने प्रदेश के पुलिस प्रमुख डी. कश्मीर पांडेय को निर्देश दिया कि वह प्रदेश भर में अदालतों और उस के आसपास सुरक्षा का व्यापक प्रबंध करें. एसएसपी अनूप टी. मैथ्यू ने हत्या के मामले में लिप्त लोगों को गिरफ्तार करने के लिए 8 टीमों का गठन किया. इन का काम अखिलेश सिंह से जुड़े लोगों का लिंक तलाशना था. एक टीम को शहर से बाहर भी भेजा गया.

अखिलेश सिंह तो पुलिस के हाथ नहीं लगा, लेकिन पुलिस को एक बड़ी कामयाबी हासिल हुई. 4 अप्रैल, 2017 को पुलिस को उत्तराखंड के देहरादून में अखिलेश सिंह के आपराधिक गुरु विक्रम शर्मा के छिपे होने की सूचना मिली.

देहरादून पुलिस की मदद से जमशेदपुर पुलिस ने विक्रम शर्मा को गिरफ्तार कर लिया और जमशेदपुर ले आई. वह सन 2006 से फरार चल रहा था. विक्रम शर्मा के गिरफ्तार होने के 6 महीने बाद 2 सितंबर, 2017 को जमशेदपुर पुलिस और उड़ीसा पुलिस ने संयुक्त रूप से मिल कर अखिलेश सिंह के भाई अमलेश सिंह को उड़ीसा के भुवनेश्वर एयरपोर्ट से गिरफ्तार किया. अखिलेश के साथ उस का नाम भी 20 वारदातों में दर्ज था.

गिरफ्तारी के बाद अमलेश सिंह को 8 सितंबर को जमशेदपुर न्यायालय में पेश किया गया. जमशेदपुर पुलिस ने न्यायालय से 5 दिनों का रिमांड मांगा, लेकिन न्यायालय ने 3 दिनों का रिमांड दिया. कुछ मामलों में पूछताछ के बाद उसे जेल भेज दिया गया.

दो राज्यों की पुलिस परेशान थी अखिलेश के लिए

अखिलेश सिंह को काबू करने के लिए एसएसपी अनूप टी. मैथ्यू ने विक्रम शर्मा पर दांव खेला. विक्रम से पुलिस को अखिलेश का नंबर मिल गया. पुलिस ने उस के नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया. सर्विलांस के जरिए जमशेदपुर पुलिस को उस की लोकेशन राजस्थान की मिली. पुलिस जब तक राजस्थान जाने की तैयारी करती, तब तक उस ने अपना ठिकाना बदल दिया. दोबारा उस की लोकेशन हरियाणा के गुरुग्राम में मिली. इस के बाद क्या हुआ, ऊपर बताया जा चुका है.

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गुरुग्राम से डौन अखिलेश सिंह को गिरफ्तार करने के पहले 31 मार्च, 2017 को पुलिस ने गुप्त सूचना के आधार पर बिरसानगर थाना इलाके में स्थित अखिलेश सिंह के सृष्टि अपार्टमेंट के फ्लैट नंबर 508 में छापेमारी की थी. इस दौरान फ्लैट के अंदर से एक बैग बरामद किया गया, जिस में बहुत सारे दस्तावेज मिले थे.

इस में चलअचल संपत्ति के दस्तावेज भी थे, जिस में सेल डीड, एग्रीमेंट की मूल कौपी, आधार कार्ड, पैन कार्ड, वोटर कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस सहित बैंक पासबुक और अन्य दस्तावेज शामिल थे. दस्तावेजों की जांच करने पर पाया गया कि इन में नाम किसी और का था और फोटो अखिलेश सिंह का था. अधिकतर दस्तावेजों में उस का फर्जी नाम संजय सिंह, अजीत सिंह पुत्र हरिद्वार सिंह, दिलीप सिंह पुत्र रमेश सिंह लिखा था और गरिमा सिंह के नाम की जगह अन्नू सिंह लिखा हुआ था.

झारखंड का अब तक का सब से बड़ा 5 लाख का इनामी डौन अखिलेश सिंह जमशेदपुर की घाघीडीह जेल में बंद था. बाद में उसे दुमका जेल भेज दिया गया. डौन के जेल में आने के बाद उस की सेवा करने के लिए उस के कई गुर्गे अपनी जमानत रद्द करा कर जेल चले गए थे.

घाघीडीह जेल में बंद अखिलेश सिंह के लिए 23 अपराधी रंगदारी वसूलने और व्यापारियों की गतिविधियों की सूचना देने का काम कर रहे हैं. इस संबंध में स्पैशल ब्रांच के एडीजी ने 10 नवंबर को अपनी रिपोर्ट डीजीपी को भेजी है. रिपोर्ट में कहा गया है कि अखिलेश गुट और जेल के गांधी वार्ड में बंद अपराधियों के बीच कभी भी खूनी संघर्ष हो सकता है.

अखिलेश सिंह के साथसाथ आशीष श्रीवास्तव उर्फ भूरिया और नीरज सिंह पर कड़ी निगरानी रखने की भी बात कही गई है. बताया गया है कि 10 नवंबर को अखिलेश गुट के आशीष और परमजीत गुट के झब्बू के बीच मारपीट हुई थी. इस के बाद उसे सेल में डाला गया. पत्र में यह भी लिखा गया है कि जेल में बंद नीरज सिंह अखिलेश सिंह के लिए जासूसी का काम कर रहा है. अखिलेश सिंह पर दर्ज कुल 52 मुकदमों में से वह 36 मुकदमों में वांछित रहा था, बाकी के 16 मुकदमों में वह बरी किया जा चुका था.????

 – कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पकड़ा गया 5 लाख का इनामी डौन : भाग 2

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(कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां)

इस साजिश में उस ने पिंकी उर्फ मधु शर्मा को भी शामिल कर लिया. हरीश अरोड़ा ने मधु को मजबूर किया कि वह उस से शादी कर ले. यह शादी सिर्फ दिखावे के लिए होगी, क्योंकि शादी के कुछ दिनों बाद उसे रास्ते से हटा दिया जाएगा. इस के बाद उस की पूरी संपत्ति उन की हो जाएगी और जीवन भर दोनों पतिपत्नी की तरह एक साथ रहेंगे.

हालांकि मधु इस के लिए आसानी से राजी नहीं हुई थी. पर वह हरीश के दबाव में आ कर अपने प्यार की खातिर तैयार हो गई थी. योजना के मुताबिक, सन 1997 में मधु शर्मा उर्फ पिंकी की शादी ट्रांसपोर्टर अशोक शर्मा से हो गई. मधु अशोक की पत्नी बन तो गई, लेकिन उस की रगरग में हरीश अरोड़ा का प्यार दौड़ रहा था. पत्नीधर्म निभाते हुए मधु ने अशोक को शरीर तो सौंप दिया था, लेकिन उस की आत्मा हरीश में ही बसी थी. मधु हरीश को अपना वादा बारबार याद दिलाती रहती थी.

दोस्त ही बन गया जान का दुश्मन

हरीश अरोड़ा को अपना वादा अच्छी तरह याद था. रास्ते के कांटे अशोक शर्मा को हटाने के लिए वह ऐसी योजना बनाना चाहता था कि पुलिस को उस पर कभी शक न हो और पुलिस इसे व्यावसायिक प्रतिद्वंदिता में की गई हत्या मान कर उस के कारोबारी प्रतिद्वंदियों को गिरफ्तार कर ले.

हरीश अरोड़ा ने भाड़े के 2 शूटरों परमजीत सिंह और रणजीत चौधरी को अशोक शर्मा की हत्या की सुपारी दे कर उस की हत्या करा दी. यह सब कुछ इस तरह किया गया कि पुलिस का पूरा शक उस के व्यावसायिक साथियों अखिलेश सिंह, विक्रम सिंह, विजय कुमार सिंह उर्फ मंटू और बालाजी बालकृष्णन पर गया.

हुआ वही जो हरीश अरोड़ा चाहता था. इस के बाद हरीश अरोड़ा अशोक शर्मा की पत्नी और संपत्ति पर कब्जा करने में लग गया. लेकिन वह अपने मंसूबों में कामयाब नहीं हो पाया. अशोक की मां, बहन और भाई को हरीश अरोड़ा और पिंकी पर शक हो गया था कि दोनों के बीच कोई खिचड़ी पक रही है. उन्होंने मजिस्ट्रैट के सामने कुछ ऐसा बयान दिया कि दोनों शक के दायरे में आ गए.

फलस्वरूप केस की जांच थाने से ले कर सीआईडी को सौंप दी गई. अपनी जांच में सीआईडी ने अशोक शर्मा हत्याकांड का राजफाश कर दिया. उधर घटना का परदाफाश होने से पहले पुलिस अखिलेश सिंह को गिरफ्तार करने के लिए दिनरात उस के ठिकानों पर दबिश दे रही थी. बाद में पिता के दबाव में आ कर उस ने अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया था.

बहरहाल, 27 जून 2005 को अनिल कुमार आर्य के फास्टट्रैक कोर्ट (5) ने हरीश अरोड़ा को ट्रांसपोर्टर, पारिवारिक मित्र अशोक शर्मा की हत्या के लिए दोषी ठहराया. उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. जबकि पिंकी शर्मा उच्च न्यायालय झारखंड से जमानत ले कर फरार हो गई थी. उसे हरीश अरोड़ा के साथ मिल कर आपराधिक षडयंत्र रचने के लिए दोषी पाया गया था.

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अदालत ने अशोक शर्मा हत्याकांड के चारों आरोपियों अखिलेश सिंह, विक्रम शर्मा, विजय कुमार सिंह उर्फ मंटू और बालाजी बालकृष्णन को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया. भाड़े के 2 शूटर परमजीत सिंह और रंजीत चौधरी गिरफ्तार कर लिए गए थे. उन से हत्या में इस्तेमाल हथियार भी बरामद कर लिए गए थे.

शूटरों से बरामद हथियार जांच के लिए कोलकाता प्रयोगशाला भेजे गए. रिपोर्ट से पता चला कि उन से जो हथियार बरामद किए थे, गोली उन्हीं से चली थी. फलस्वरूप रंजीत और परमजीत दोनों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई.

अशोक शर्मा हत्याकांड से बेदाग निकलने के बाद भी अखिलेश सिंह का बुरे वक्त ने पीछा नहीं छोड़ा. मोबाइल कारोबारी ओमप्रकाश काबरा अपहरण में नाम आने के बाद अखिलेश सिंह एक बार फिर चर्चाओं में आ गया. पुलिस उसे गिरफ्तार करने के लिए यहांवहां ढूंढ रही थी.

कभीकभी अपराध खुद भी मजबूर कर देता है गलत राह पर जाने को

28 जुलाई, 2001 को किए गए बिजनैसमैन ओमप्रकाश काबरा के अपहरण के मामले में अखिलेश सिंह ज्यादा दिनों तक पुलिस की पकड़ से नहीं बच पाया. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. इस केस में अखिलेश सिंह के अलावा 5 और आरोपी विजय सिंह मंटू, संतोष तिवारी, रमन सिंह, लालचंद सिंह और अरविंद सिंह नामजद किए गए थे. यह मुकदमा थाना साकची में दर्ज था. गिरफ्तारी के बाद अखिलेश को दूसरी बार जमशेदपुर की घाघीडीह जेल जाना पड़ा.

किसी बात को ले कर अखिलेश सिंह जेलर उमाशंकर पांडेय को अपना दुश्मन मानने लगा था. कुछ दिन जेल में रहने के बाद वह जेल से फरार हो गया और 15 दिन बाद 12 फरवरी, 2002 को जेल कैंपस स्थित जेलर उमाशंकर के घर जा कर उन की गोली मार कर हत्या कर दी और फरार हो गया.

जेलर पांडेय मर्डर केस में न्यायाधीश आर.पी. रवि ने अखिलेश सिंह को उम्रकैद की सजा सुनाई. सजा सुनने के बाद अखिलेश ने 19 मार्च, 2008 को न्यायाधीश आर.पी. रवि के घर में घुस कर उन पर ताबड़तोड़ फायरिंग की. अखिलेश सिंह जज रवि के फैसले से नाराज था. हालांकि बाद में उसे काबरा अपहरण केस से दोषमुक्त कर दिया गया था.

खैर, हमले में जज आर.पी. रवि बालबाल बच गए थे. इस घटना के बाद जमशेदपुर में अखिलेश सिंह को आतंक का पर्याय माना जाने लगा. जुर्म किए बिना अपराध की सजा पाने के बाद अखिलेश ने जुर्म को ही सब कुछ मान लिया. विक्रम शर्मा अंडरवर्ल्ड डौन के रूप में कुख्यात था. अखिलेश सिंह ने विक्रम की अंगुली पकड़ कर अपराध की दुनिया में पांव रखा और उसे अपना गुरु बना लिया.

विक्रम शर्मा ने उसे जुर्म का ककहरा सिखाया. धीरेधीरे अखिलेश सिंह जुर्म की आग में तप कर कुख्यात बन गया. वह एक के बाद एक जुर्म कर के अपराधों की फेहरिस्त में अपना नाम लिखाता गया. जमशेदपुर की पुलिस, सफेदपोश और व्यापारी उस के नाम से खौफ खाने लगे. जान की सलामती के लिए पुलिस के बड़ेबड़े अधिकारी और सफेदपोश अखिलेश सिंह को संरक्षण देने लगे.

वह शान से नेताओं की कार में घूमता था. किसी की मजाल नहीं थी कि उसे कोई रोके या उस से कोई सवाल पूछे. जो भी उस के रास्ते में रोड़ा बनने की कोशिश करता था, फिल्मी खलनायकों की तरह वह बेदर्दी से गोली मार कर उस की हत्या कर देता था. जमशेदपुर पुलिस के लिए जब वह सिरदर्द बन गया तो उस ने अपना एक गिरोह बना लिया और ठिकाना बनाया राजधानी रांची को.

राजधानी रांची में उस ने गैंग की कमान अपने दाहिने हाथ कहे जाने वाले नंदन यादव को सौंपी. आज भी नंदन यादव अखिलेश सिंह के आपराधिक साम्राज्य की कमान संभालता है. उस के सहारे वह आपराधिक घटनाओं को अंजाम देता है.

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नंदन यादव का नाम रांची में उस समय उछला, जब लोहारदगा के बाक्साइड कारोबारी ज्ञानचंद अग्रवाल को रातू रोड के गैलेक्सी मोड़ पर गोली मारी गई. इस मामले का मुख्य साजिशकर्ता नंदन यादव ही था. व्यवसाई अरविंद भाई पटेल ने नंदन यादव को ज्ञानचंद अग्रवाल के नाम की सुपारी दी थी. मामला 25 लाख में तय हुआ था और बतौर पेशगी 9 लाख रुपए दिए गए थे, बाकी पैसा काम हो जाने के बाद देना तय हुआ था.

बाद में नंदन यादव गिरफ्तार कर लिया गया और उसे जेल भेज दिया गया. जमानत पर रिहा होने के बाद उस ने अखिलेश सिंह का कारोबार संभाल लिया. सुपारी के रुपए अखिलेश के फरजी नामों वाले बैंक एकाउंट में जमा हो जाते थे.

बाद में ओमप्रकाश काबरा के अपहरण के मामले में जेल जाने की वजह से अखिलेश ने अपने सब से भरोसेमंद शूटर रंजीत चौधरी के साथ अपने खिलाफ गवाही देने वाले काबरा को उस के साकची स्थित कार्यालय पहुंच कर दिनदहाड़े गोली मार कर हत्या कर दी थी.

मैच के दिन लगा दिया हत्या का दांव, क्योंकि पुलिस वीआईपी मेहमानों की सेवा में थी

यह हत्या दिन में उस समय की गई थी, जब जमशेदपुर के कीनन स्टेडियम में भारत इंग्लैंड के बीच एकदिवसीय मैच हो रहा था. मैच के चलते तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी और कई अंतरराष्ट्रीय मेहमान शहर में मौजूद थे, जिस की वजह से पुलिस महकमा कीनन स्टेडियम की सुरक्षा में तैनात था. पुलिस सुरक्षा को धता बताते हुए अखिलेश ने इस घटना को अपने गुर्गों के साथ अंजाम दिया था.

व्यवसाई ओमप्रकाश काबरा की हत्या से बौखलाए कुख्यात परमजीत सिंह ने अखिलेश सिंह को हत्या की चुनौती दे दी. अखिलेश सिंह और परमजीत सिंह के बीच 36 का आंकड़ा था. दोनों एकदूसरे के जानी दुश्मन थे. परमजीत सिंह को अखिलेश के वर्चस्व को चुनौती देना महंगा पड़ा और दोनों के बीच गैंगवार छिड़ गई.

इस गैंगवार में अखिलेश और परमजीत दोनों के कई शूटर मारे गए. अखिलेश और परमजीत की गिरफ्तारी के बाद दोनों को घाघीडीह जेल में रखा गया. तब अखिलेश ने जेल में ही परमजीत सिंह की हत्या करवा दी. परमजीत की हत्या के लिए अखिलेश ने अपने भरोसेमंद गुर्गे कपाली को जेल में ही पिस्टल उपलब्ध करवा दी थी.

अब तक अखिलेश सिंह गैंगस्टर से डौन बन चुका था. झारखंड में उस के नाम का सिक्का चलने लगा था. उस के एक फोन से झारखंड के बड़ेबड़े व्यापारियों की तिजोरियां खुल जाती थीं. वे उसे मुंहमांगी रकम देने को तैयार रहते थे. पाप की कमाई से अखिलेश सिंह ने कई राज्यों में रीयल एस्टेट के धंधे में करोड़ों रुपए निवेश किए थे.

अपराध जगत में कदम रखने के बाद उस ने 500 करोड़ की अकूत संपत्ति अर्जित की थी. अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा उस ने ट्रांसपोर्ट, रीयल एस्टेट समेत अन्य कई बिजनैस में लगाया था. टाटा समेत कोल्हान की कई कंपनियों में भी उस का काम चलता था. झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली, राजस्थान और हरियाणा में भी उस ने निवेश किया. सन 2007 में अखिलेश सिंह का अपना कानून चलता था. वह जहां खड़ा हो जाता था, अदालत वहीं लग जाती थी. उस के जबान से जो फरमान जारी हो जाता, कानून बन जाता था.

2 गज जमीन बनी श्रीलेदर के मालिक आशीष डे की हत्या का कारण

उन दिनों झारखंड के बड़े व्यवसायियों में एक श्रीलेदर के मालिक आशीष डे का नाम शुमार था. आशीष लेदर के जूतों के बड़े कारोबारी थे. आशीष डे का मकान जमशेदपुर के साकची स्थित आमबागान के बगल में था. उन के घर के पास 2 गज जमीन खाली थी, जोकि एक बंगाली परिवार की थी. वह परिवार आशीष डे को जमीन बेचना चाहता था और डे वह जमीन अपने एक परिचित बंगाली परिवार को दिलाने का प्रयास कर रहे थे.

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जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

मोहब्बत में पिता की बली: भाग 1

चारों तरफ घुप अंधेरा था. आसमान में बादल छाए थे और हलकी बूंदाबांदी हो रही थी. रात के 10 बज चुके थे. गांव के अधिकांश लोग गहरी नींद में थे. चारों ओर सन्नाटा पसरा था. श्याम नारायण मिश्रा की बेटी रीना को छोड़ कर उन के घर के सभी सदस्य सो गए थे. लेकिन रीना की आंखों से नींद कोसों दूर थी. वह चारपाई पर लेटी बेचैनी से इधरउधर करवटें बदल रही थी.

जब रीना को इत्मीनान हो गया कि घर के सभी लोग सो गए हैं तो वह चारपाई से आहिस्ता से उठी और दबे पांव दरवाजे की कुंडी खोल कर घर के बाहर पहुंच गई. घर के पड़ोस में रहने वाला अक्षय कुमार उर्फ छोटू बाहर खड़ा उस का इंतजार कर रहा था. रीना उस के पास पहुंची तो वह मुसकराते हुए फुसफुसाया, ‘‘आज आने में बड़ी देर कर दी, मैं कब से तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं.’’

रीना ने एकदम उस के करीब आ कर हौले से कहा, ‘‘घर के लोग जाग रहे थे, इसलिए घर से निकल नहीं सकी. सब के सो जाने के बाद आने का मौका मिला’’

‘‘मुझे तो लग रहा था कि आज तुम नहीं आओगी.’’ अक्षय ने रीना का हाथ पकड़ कर कहा.

‘‘ऐसा कैसे हो सकता है अक्षय कि तुम बुलाओ और मैं न आऊं. तुम्हारे लिए तो मैं अपनी जान भी दे सकती हूं.’’ रीना ने अपना सिर अक्षय के सीने पर सटा कर कहा.

‘‘ऐसी बातें मत करो रीना, हमें जिंदा रहना है और अपने प्यार की दास्तान भी लिखनी है.’’ कहते हुए अक्षय ने रीना को अपनी बांहों में कैद कर लिया.

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उत्तर प्रदेश के जिला आजमगढ़ के थाना पवई के अंतर्गत एक गांव है सौदमा पवई. आजमगढ़ जाने वाली सड़क के किनारे बसे इस गांव की आबादी मिलीजुली है. इसी सौदमा गांव में श्याम नारायण मिश्रा अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी सुमन के अलावा 3 बेटे रत्नेश, उमेश, पिंकू तथा एक बेटी रीना थी. श्याम नारायण किसान थे. उन के बेटे खेती के काम में उन की मदद करते थे. श्याम नारायण गांव में श्याम पंडित के नाम से मशहूर थे.

रीना मिश्रा 3 भाइयों के बीच अकेली बहन थी, सब से छोटी भी, इसलिए सभी उसे स्नेह देते थे. रीना ने बचपन का आंगन लांघ कर यौवन की दहलीज पर कदम रख दिया था. उस का रंग तो सांवला था लेकिन आकर्षण गजब का था. उम्र का 16वां साल पार करते ही उस के रूपलावण्य में जो निखार आया, वह देखते ही बनता था.

श्याम नारायण मिश्रा के घर के ठीक सामने उदयराज मिश्रा का मकान था. उदयराज मिश्रा के परिवार में पत्नी किरन के अलावा 2 बेटे अजय कुमार, अक्षय कुमार तथा बेटी गरिमा थी. बेटी की उन्होंने शादी कर दी थी. उदयराज भी किसान थे.

श्याम नारायण मिश्रा और उदयराज के परिवारों में निकटता थी. दोनों परिवार एकदूसरे के सुखदुख में भागीदार रहते थे. परिवार की महिलाओं व बच्चों का बेरोकटोक एकदूसरे के घर आनाजाना था. रीना और अक्षय की उम्र में 4 साल का अंतर था. रीना 17 साल की उम्र पार कर चुकी थी, वहीं अक्षय 22 साल का हो चुका था.

रीना कभी मां के साथ तो कभी अकेले अक्षय के घर जाती थी. वह जब भी अक्षय के घर आती, अक्षय से पढ़ाई से संबंधित बातें कर लेती थी. बातचीत करते दोनों हंसीठिठोली भी करते तथा एकदूसरे को चिढ़ाते भी थे.

रीना और अक्षय दोनों ही युवा थे. इस उम्र में मन कुलांचे भरता है. दिल में किसी की चाहत पाने की तमन्ना होती है अत: दोनों का रुझान एकदूसरे के प्रति हो गया. मन ही मन वे आपस में प्यार करने लगे.

एक दिन बात करतेकरते अक्षय का मन मचला. उस ने रीना का हाथ पकड़ लिया. वह कुछ नहीं बोली. अक्षय अपने स्थान से उठ कर रीना से सट कर बैठ गया. रीना तब भी मुसकराती रही.

अक्षय के हौसले को हवा मिली तो उस ने रीना का चेहरा हथेलियों में ले लिया. विरोध करने के बजाय रीना मुसकराती रही.

अक्षय ने उस के होंठों की ओर होंठ बढ़ाए तो रीना ने हया से नजरें झुका लीं. होंठों से होंठों का मिलाप हुआ तो रोमांचित हो कर रीना ने आंखें बंद कर लीं. अक्षय ने रीना के होंठों से अपने होंठ अलग किए, तो रीना ने आंखें खोलीं. शरारती अंदाज में होंठों पर जीभ फिराई और मुसकराने लगी.

रीना के इस कातिलाना अंदाज पर अक्षय सौसौ जान से न्यौछावर हो गया.

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दोस्ती बदल गई प्यार में

शुरू में अक्षय और रीना के बीच महज दोस्ती थी. लेकिन समय के साथ इस रिश्ते ने कब प्यार का रूप धारण कर लिया, इस का पता न तो अक्षय को लगा और न ही रीना को. दोनों उम्र के उस पड़ाव पर पहुंच चुके थे, जहां महत्त्वाकांक्षाएं हिलोरें मारने लगती हैं. मन में कुछ नया करने की उत्सुकता जाग उठती है. अक्षय को अब रीना सिर्फ दोस्त ही नहीं, बल्कि और भी बहुत कुछ लगने लगी थी. इसलिए वह रीना से बातें करते समय बेहद संजीदा हो जाता था.

रीना भी अक्षय में आए बदलाव से अनभिज्ञ नहीं थी. उस की शोख निगाहें जब अक्षय की निगाहों से टकरातीं तो उस के दिल में गुदगुदी सी होने लगती थी. उस का भी मन चाहता था कि अक्षय इसी तरह प्यार भरी निगाहों से उसे निहारता रहे.

दोनों पर प्यार का ऐसा नशा चढ़ा कि उन्हें एकदूसरे के बिना सब कुछ सूना लगने लगा. दोनों घंटों बैठ कर भविष्य की योजनाएं बनाते रहते. साथ जीनेमरने की कसमें भी खाते.

एक रोज अक्षय को जानकारी मिली कि रीना के मातापिता कहीं रिश्तेदारी में गए हैं और भाई खेत पर काम कर रहा है. उचित मौका देख अक्षय पासपड़ोस के लोगों की नजरों से बचते रीना के घर पहुंच गया.

घर के अंदर पहुंचते ही उस ने मुख्य दरवाजा बंद किया और फिर रीना को अपनी बांहों में जकड़ लिया. रीना कसमसाई और बनावटी विरोध भी किया. लेकिन अक्षय ने उसे मुक्त नहीं किया.

आखिर रीना ने भी शरीर ढीला छोड़ कर उस का साथ देना शुरू कर दिया. इस के बाद उन्होंने अपनी हसरतें पूरी कीं. फिर तो यह सिलसिला चल निकला. मौका मिलते ही दोनों अपनी हसरतें पूरी कर लेते थे.

दोनों रीना और अक्षय ने लाख कोशिश की कि उन के प्रेम संबंधों की भनक किसी को न लगे, लेकिन प्यार की महक को भला कौन रोक पाया. वह तो स्वयं ही फिजा में तैरने लगती है. एक रोज गांव के एक युवक ने शाम के वक्त दोनों को गांव के बाहर बगीचे में हंसीठिठोली करते देख लिया. उस युवक ने यह बात रीना के पिता श्याम नारायण मिश्रा को बता दी.

पिता को उस की बातों पर एक बार को तो विश्वास नहीं हुआ. उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि उन की बेटी कोई ऐसा कदम उठाएगी, जिस के कारण उन का सिर शर्म से झुक जाए. श्याम नारायण ने इस बारे में घर में किसी से कुछ नहीं कहा, लेकिन रीना की निगरानी करने लगे.

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पिता ने पकड़ा रंगेहाथों

एक दिन श्याम नारायण ने खुद रीना को अक्षय से एकांत में मिलते देख लिया. प्रेमी से मिलने के बाद रीना जब घर लौटी तो उन्होंने उसे न केवल जम कर लताड़ा, बल्कि उस की पिटाई भी कर दी. उन्होंने उसे हिदायत दी कि आज के बाद अगर उस ने अक्षय से मिलने की कोशिश की तो उस के लिए अच्छा नहीं होगा.

रीना की मां सुमन ने भी समाज का हवाला दे कर रीना को समझाया, ‘‘बेटी, अक्षय पड़ोसी है. हमारे ही खानदान का है. हम दोनों एक ही गोत्र के हैं. इस नाते तुम दोनों का रिश्ता भाईबहन का है. इसलिए तेरा उस से मेलजोल बढ़ाना ठीक नहीं है.’’

कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

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मोहब्बत में पिता की बली: भाग 2

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जब दो प्रेमियों के बीच पाबंदियां लगीं तो वे बुरी तरह छटपटाने लगे. दरअसल रीना अक्षय के दिलोदिमाग पर नशा बन कर छा चुकी थी. उस की सांवली सूरत ने अक्षय पर जादू सा कर दिया था. वही हाल रीना का भी था. वह भी अक्षय से एक पल को भी जुदा नहीं होना चाहती थी.

दोनों की प्रेम लगन बढ़ती गई तो उन्होंने मिलने का एक अनोखा रास्ता खोज लिया. एक दिन अक्षय ने रीना को संदेश भिजवाया कि वह रात को 10 बजे के बाद घर के बाहर गली में उस का इंतजार करेगा.

ग्रामीण परिवेश के लोग रात को जल्द सो जाते हैं और सुबह जल्दी उठते हैं. रीना के घर वाले भी जब रात 10 बजे तक गहरी नींद सो गए तो वह दबे पांव कुंडी खोल कर घर के बाहर चली गई, जहां अक्षय उस का इंतजार कर रहा था.

दोनों ने गिलेशिकवे दूर किए और घर से कुछ दूरी पर स्थित सहकारी भवन में पहुंच गए. वहां किसी के आने या देख लेने की आशंका नहीं थी. अपनी हसरतें पूरी करने के बाद दोनों अपनेअपने घर चले गए. उन के आनेजाने की किसी को भनक तक नहीं लगी. इस के बाद तो उन का वहां मिलने का सिलसिला ही चल पड़ा.

अक्षय और रीना मिलने में भले ही सतर्कता बरतते थे, लेकिन इस के बावजूद वे पकड़े गए. दरअसल एक रात रीना ने जैसे ही दरवाजे की कुंडी खोली, तभी श्याम नारायण की आंखें खुल गईं. वह उठे तो उन्हें दरवाजे पर एक साया दिखाई दिया. वह उस जगह पहुंचे तो रीना खड़ी थी.

श्याम नारायण को समझते देर नहीं लगी कि रीना घर के बाहर जा रही थी. उन्होंने सामने गली की ओर नजर डाली तो वहां एक युवक खड़ा था. वह उस की ओर लपके तो वह वहां से भाग कर अंधेरे में गुम हो गया. श्याम नारायण को समझते देर नहीं लगी कि भागने वाला युवक अक्षय था.

श्याम नारायण का गुस्सा सातवें आसमान जा पहुंचा. उन्होंने रीना का हाथ पकड़ा और घसीटते हुए घर के अंदर ले आए. उन्होंने उस की जम कर पिटाई की. रीना रात भर कराहती रही.

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सुबह होते ही श्याम नारायण पड़ोसी उदयराज के घर जा पहुंचे. उन्होंने उदयराज को धमकाया कि वह अपने आवारा लड़के अक्षय को समझा लें, वह हमारी बेटी रीना को बरगला रहा है. जिस दिन वह रीना के साथ दिख गया, उस दिन बहुत बुरा होगा.

उदयराज सुलझा हुआ इंसान था. उस ने श्याम नारायण की शिकायत बेहद गंभीरता से ली और भरोसा दिया कि वह अक्षय को डांटडपट कर तथा समझा कर रीना से दूर रहने की नसीहत देगा. साथ ही उस ने श्याम नारायण को भी सलाह दी कि वह भी रीना को प्यार से समझाए कि वह अक्षय से बात न करे.

दोपहर बाद अक्षय घर आया तो उदयराज ने उसे आड़े हाथों लिया. उस ने अक्षय को डांटा तथा रीना से दूर रहने की नसीहत दी. इस पर अक्षय ने पिता को बताया कि वह रीना से प्यार करता है और रीना भी उसे चाहती है. वे दोनों शादी करना चाहते हैं.

बेटे की यह बात सुनकर उदयराज ने उसे  बहुत लताड़ा. उन्होंने साफ कह दिया कि दोनों का गोत्र एक है, इसलिए उन की शादी नहीं हो सकती.

उधर रीना और अक्षय प्यार के उस मोड़ पर पहुंच गए थे, जहां से उन का वापस आना नामुमकिन था. इसलिए घर वालों की नसीहत का उन पर स्थाई असर नहीं हुआ. चोरीछिपे दोनों मिलते रहे. उन्हें जब जैसे घरबाहर जहां भी मौका मिलता, मिल लेते.

घर वालों की सतर्कता रह गई धरी की धरी

लेकिन सतर्कता के बावजूद एक रात वे दोनों फिर पकड़े गए. हुआ यह कि श्याम नारायण और उन के बेटे रिश्तेदारी में एक शादी समारोह में शामिल होने मीरजापुर गए थे. घर पर सुमन और रीना ही रह गई थी.

शाम को रीना ने खाना बनाया. उस ने पहले मां को खाना खिलाया फिर खाना खा कर घर का काम निपटाया. इस के बाद वह मां के साथ चारपाई पर लेट गई. सुमन तो कुछ देर बाद सो गई लेकिन रीना की आंखों से नींद कोसों दूर थी. उसे रहरह कर प्रेमी अक्षय की याद आ रही थी.

रीना की जब बेचैनी बढ़ी तो वह छत पर पहुंच कर टहलने लगी. उसी समय उस की निगाह अक्षय पर पड़ी. वह भी अपनी छत पर चहलकदमी कर रहा था. उसे देखते ही रीना की उस से मिलने की कामना बढ़ गई. उस ने एक कंकड़ फेंक कर अक्षय का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया. जब अक्षय ने उस की तरफ देखा तो उस ने उसे अपनी छत पर आने का इशारा किया.

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इशारा पाते ही अक्षय अपनी छत से नीचे उतर आया. इस के बाद रीना छत से उतर कर नीचे आई और दरवाजे की कुंडी खोल कर अक्षय को अपनी छत पर ले गई. वहां दोनों मौजमस्ती में लग गए.

उसी दौरान रीना की मां सुमन की आंखें खुलीं. चारपाई पर रीना को न देख कर उस का माथा ठनका. उस ने रीना की घर में खोज की. जब वह नहीं दिखी तो वह छत पर पहुंची. छत का दृश्य देख कर सुमन आश्चर्यचकित रह गई. छत पर रीना और अक्षय आपत्तिजनक अवस्था में थे.

सुमन को देख कर अक्षय तो जैसेतैसे कपड़े लपेट कर अपने घर चला गया, पर रीना कहां जाती. सुमन उस के बाल पकड़ कर खींचते हुए छत से नीचे लाई. फिर उस के गाल पर 4-5 तमाचे जड़ दिए और खूब खरीखोटी सुनाई.

सुमन शब्दों के तीर से रीना का सीना छलती करती रही और रीना अपराधबोध से सब सहती रही. सुबह मांबेटी में इतनी नफरत भर गई कि दोनों ने एकदूसरे का मुंह देखना तक मुनासिब नहीं समझा.

दोनों ही अलगअलग कमरे में पड़ी रोती रहीं. उस रोज घर में खाना भी नहीं बना. दूसरे दिन श्याम नारायण अपने बेटों के साथ वापस घर आ गए. घर में कलह न हो इसलिए सुमन ने पति को यह जानकारी नहीं दी.

सुमन अब रीना पर पैनी नजर रखने लगी थी. दिन की बात तो छोडि़ए, रात को भी वह उस की निगरानी रखती थी. लेकिन शातिर रीना मां की आंखों में धूल झोंक कर प्रेमी से मिल ही लेती थी. परंतु अपनी निगरानी से सुमन यह समझने लगी थी कि रीना और अक्षय का मेलजोल अब बंद हो गया है.

23 जून, 2019 को पड़ोस के गांव में एक यज्ञ का आयोजन था. श्याम नारायण तथा उन के बेटे इस आयोजन में शामिल होने के लिए रात 8 बजे अपने घर से चले गए. सुमन भी खाना खा कर चारपाई पर पसर गई. कुछ देर बाद वह गहरी नींद में सो गई.

रीना ने उचित मौका देखा और अपने प्रेमी अक्षय को घर बुला लिया. इस के बाद वह कमरे में जा कर प्रेमी के साथ मौजमस्ती में लग गई.

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इसी बीच श्याम नारायण यज्ञ आयोजन से घर वापस आ गया. दरअसल उन्हें नींद आ रही थी. घर पहुंच कर उन्होंने दरवाजे पर दस्तक दी तो दरवाजा खुल गया. कमरे के अंदर का दृश्य देख कर श्याम नारायण का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया.

कमरे के अंदर रीना और अक्षय आपत्तिजनक स्थिति में थे. श्याम नारायण ने अक्षय को जोर से लात जमाई तो वह लड़खड़ा कर उठा और वहां से अर्धनग्न अवस्था में ही वहां से भाग गया. इस के बाद उन्होंने रीना की जम कर पिटाई की और भद्दीभद्दी गालियां दीं.

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मोहब्बत में पिता की बली: भाग 3

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बाप की पिटाई ने आग में घी डालने जैसा काम किया. रीना के मन में अब बाप के प्रति नफरत की आग भड़क उठी. उस ने मन ही मन निश्चय कर लिया कि वह प्रेमी की मदद से बाप को सबक जरूर सिखाएगी. उस ने यह भी निश्चय कर लिया कि यदि दोबारा बाप ने हाथ उठाया तो वह मुंहतोड़ जवाब देगी.

26 जून, 2019 की सुबह जब पिता व भाई खेत पर काम करने चले गए और मां खाना बनाने में लग गई तब रीना दबे पांव घर से निकली और बिना किसी डर के उस ने गली के मोड़ पर खड़े अक्षय से मुलाकात की. वह गंभीर हो कर बोली, ‘‘अक्षय, मैं तुम से बेहद प्यार करती हूं और तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रहना चाहती. लेकिन मेरा बाप हम दोनों के प्यार में रोड़ा बन रहा है. मैं चाहती हूं कि…’’

‘‘क्या चाहती हो तुम?’’ अक्षय उस की बात पूरी होने से पहले ही बोल पड़ा.

‘‘यही कि इस रोड़े को हमेशा के लिए हटा दो ताकि हमारी मुलाकात में कोई अड़चन न आए.’’ वह बोली.

‘‘तुम ठीक कह रही हो रीना. मैं तुम्हारा साथ जरूर दूंगा. मैं भी उस की लात अभी तक भूला नहीं हूं. जो उस ने मेरी पीठ पर जमाई थी.’’ अक्षय ने कहा.

इस के बाद रीना और अक्षय ने मिल कर श्याम नारायण की हत्या की योजना बनाई. योजना के तहत अक्षय पवई गया और एक मैडिकल स्टोर से नींद की गोलियां ला कर रीना को दे दीं.

योजना के तहत रीना ने 27 जून, 2019 की शाम खाना बनाने के बाद नशीली गोलियां खाने में मिला दीं. इस के बाद उसे छोड़ कर परिवार के सभी सदस्यों ने खाना खाया और अलगअलग चारपाई पर जा कर सो गए.

श्याम नारायण मिश्रा घर के बाहर मड़ई (झोपड़ी) में सोने चले गए. वह वहीं सोते थे. थोड़ी देर बाद नींद की गोलियों के असर से परिवार के लोग गहरी नींद में चले गए. लेकिन रीना की आंखों में नींद नहीं थी. वह तो प्रेमी के आने का इंतजार कर रही थी.

रात करीब 12 बजे अक्षय रीना के घर के बाहर आया. रीना को संकेत देने के लिए उस ने रीना के घर के बाहर सड़क किनारे लगा हैंडपंप चलाया. रीना हैंडपंप की आवाज सुन कर बाहर निकल आई और अक्षय को घर में ले गई. अक्षय ने रीना से पूछा कि मर्डर किस हथियार से करना है. इस पर रीना घर से फावड़ा व खुरपी ले आई.

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फिर दोनों श्याम नारायण की चारपाई के पास पहुंचे. रीना ने गहरी नींद में सो रहे पिता पर एक नजर डाली, फिर दोनों श्याम नारायण पर टूट पड़े. अक्षय ने फावड़े से श्याम नारायण के सिर, चेहरे व शरीर के अन्य हिस्सों पर प्रहार किया. वहीं रीना ने खुरपी से बाप के गले पर प्रहार कर जख्मी कर दिया. श्याम नारायण के लहूलुहान होने पर खून के छींटे दोनों के कपड़ों पर भी पडे़. कुछ देर तड़पने के बाद श्याम नारायण ने दम तोड़ दिया.

हत्या कर शव लगाया ठिकाने

हत्या करने के बाद रीना और अक्षय ने लाश ठिकाने लगाने की सोची. रीना के घर के बगल में एक संकरी गली थी, जिस के बीच नाली थी. दोनों ने इसी नाली में लाश छिपाने की योजना बनाई. योजना के तहत रीना ने दोनों हाथ तथा अक्षय ने दोनों पैर पकड़े और शव संकरी गली में बनी नाली में फेंक दिया. शव के ऊपर उन्होंने खरपतवार डाल दी, जिस से शव न दिखे.

शव ठिकाने लगाने के बाद रीना व अक्षय ने खून सना फावड़ा व खुरपी घर के अंदर भूसे की कोठरी में छिपा दी तथा घटनास्थल से खून आदि साफ कर दिया. रीना ने पिता का मोबाइल, चार्जर तथा चुनौटी (तंबाकू, चूना रखने की डब्बी) रसोई में ले जा गैस के पास रख दी. फिर बाथरूम में खून सने कपड़े उतारे और हाथों में लगा खून साफ किया. कपड़े उस ने घर में ही छिपा दिए और चारपाई पर जा कर लेट गई.

उधर अक्षय ने हैंडपंप से खून सने हाथ साफ किए तथा खून सने कपड़े उतार कर दूसरे पहन लिए. खून सने कपड़े उस ने गांव के बाहर झाडि़यों में छिपा दिए. इस के बाद वह इत्मीनान से घर के बाहर पड़ी चारपाई पर आ कर सो गया.

सुबह अलसाई आंखों से सुमन देर से जागी. वह चाय बनाने रसोई में पहुंची तो वहां पति का मोबाइल, चार्जर व चुनौटी रखी थी. सामान देख कर वह असमंजस में पड़ गई, फिर सोचा कि शायद वह भूल गए होंगे.

चाय बना कर वह बाहर आई तो देखा पति चारपाई पर नहीं हैं. उस ने घर के अंदर सो रहे बेटों तथा बेटी रीना को उठाया और बताया कि उन के पापा पता नहीं कहां चले गए हैं? कुछ ही देर बाद श्याम नारायण मिश्रा के गायब हो जाने का हल्ला पूरे गांव में मच गया.

श्याम नारायण मिश्रा की तलाश शुरू हुई तो उसी खोजबीन में किसी ने उन की लाश घर के बगल में संकरी गली में नाली में पड़ी देखी. लाश के ऊपर जो घासफूस डाली गई थी, जो पानी में बह गई थी.

लाश मिलते ही घर में कोहराम मच गया. सुमन मिश्रा दहाड़ें मार कर रोने लगी. परिवार के अन्य सदस्य भी रोनेपीटने लगे. इसी बीच गांव के किसी व्यक्ति ने थाना पवई पुलिस को सूचना दे दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी संजय कुमार पुलिस टीम के साथ सौदमा गांव आ गए.

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उन्होंने घटना की सूचना पुलिस अधिकारियों को भी दे दी, फिर शव को नाली से बाहर निकलवाया. श्याम नारायण मिश्रा की हत्या बड़ी बेरहमी से की गई थी. उन के शरीर पर किसी धारदार हथियार से प्रहार कर मौत के घाट उतारा गया था. उन के सिर, चेहरा व शरीर के अन्य भागों पर एक दरजन से अधिक चोटें थीं.

थानाप्रभारी अभी निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी त्रिवेणी सिंह, एसपी (यातायात) मोहम्मद तारिक तथा सीओ (फूलपुर) शिवशंकर सिंह आ गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया तथा परिजनों से पूछताछ की. अधिकारियों ने थानाप्रभारी को आदेश दिया कि वह शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजें और घटना का जल्द खुलासा करें.

आदेश पाते ही थानाप्रभारी ने शव को पोस्टमार्टम हेतु भिजवाया और मृतक की पत्नी सुमन, बेटी रीना तथा बेटों रत्नेश, रमेश व पिंकू से पूछताछ की. सभी ने हत्या से अनभिज्ञता जाहिर की.

इसी बीच थानाप्रभारी को पता चला कि मृतक की बेटी रीना और पड़ोसी युवक अक्षय के बीच प्रेम संबंध हैं, जिस का श्याम नारायण विरोध करते थे. हत्या का रहस्य इन्हीं दोनों के पेट में छिपा है. यदि दोनों से सख्ती से पूछताछ की जाए तो भेद खुल सकता है.

दोनों प्रेमी हुए गिरफ्तार

यह जानकारी मिलते ही पहली जुलाई, 2019 को थानाप्रभारी संजय कुमार ने रीना और उस के प्रेमी अक्षय को हिरासत में ले लिया. थाना पवई ला कर जब दोनों से श्याम नारायण की हत्या के संबंध में सख्ती से पूछा गया तो दोनों टूट गए और हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

रीना की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त फावड़ा, खुरपी तथा खून सने कपड़े बरामद कर लिए.

अक्षय की निशानदेही पर पुलिस ने उस के खून से सने कपड़े बरामद कर लिए जिन्हें उस ने झाडि़यों में छिपा दिया था. मृतक का मोबाइल, चार्जर, चुनौटी भी पुलिस ने बरामद कर ली. बरामद सामान को पुलिस ने साक्ष्य के तौर पर जाब्ते में शामिल कर लिया.

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चूंकि अभियुक्तों ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था, अत: थानाप्रभारी संजय कुमार ने मृतक की पत्नी सुमन मिश्रा की तरफ से रीना और अक्षय के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर उन्हें बंदी बना लिया.

अभियुक्तों से एसपी त्रिवेणी सिंह ने भी पूछताछ की और उन्हें मीडिया के समक्ष पेश कर घटना का खुलासा किया. 2 जुलाई, 2019 को थाना पवई पुलिस ने अभियुक्त रीना व अक्षय को आजमगढ़ कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के सामने पेश किया, जहां से उन्हें जिला कारागार भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

हैवान बना पति

हैवान बना पति : भाग 2

पति की बात सुन कर सविता सन्न रह गई, फिर बोली, ‘‘पिताजी ने हमारी शादी में अपनी हैसियत से कहीं ज्यादा खर्च किया था. मेरी शादी के लिए उन्होंने अपनी जमीन तक बेच दी थी. अब मैं उन से रुपयों की डिमांड नहीं कर सकती. आप को भी ऐसी डिमांड नहीं करनी चाहिए.’’

सविता की ‘ना’ सुनते ही पवन को गुस्सा आ गया. वह सविता से गालीगलौज करने लगा. इसी बीच पवन की मां दयावती आ गई. उस ने आग में घी का काम किया. उस रोज बात इतनी ज्यादा बढ़ गई कि पवन ने सविता की पिटाई कर दी.

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कुछ दिनों बाद दीपावली पर भाईदूज के दिन बड़ा भाई गोविंद सविता से टीका करवाने उस की ससुराल आया. उस ने सविता को दुखी देखा तो उसे अपने साथ ही लिवा ले गया. मायके में सविता ने मातापिता को अपनी व्यथा सुनाई. उस ने बताया कि पवन को नई कार बुक कराने के लिए 2 लाख रुपए चाहिए.

सविता की मां कलावती को यह सुन कर गुस्सा आ गया. उस ने सविता को ससुराल जाने से मना कर दिया. एक सप्ताह बाद पवन सविता को विदा कराने पहुंचा तो कलावती ने उसे भेजने से इनकार कर दिया. साथ ही असमर्थता भी प्रकट कर दी थी, ‘‘दामादजी, हम रुपयों का बंदोबस्त नहीं कर पाएंगे.’’

बाद में पवन के वादा करने पर कि वह आगे कोई मांग नहीं करेगा और सविता को भी ससुराल में कोई परेशानी नहीं होगी, कलावती ने सविता को विदा कर दिया.

दरअसल यह समझौता रिश्तेदार मनोज कुमार ने बीच में पड़ कर कराया था. मनोज की मध्यस्थता से ही पवन और सविता की शादी हुई थी.

कहने को तो पवन इस बात का आश्वासन दे कर सविता को विदा करा कर ले आया कि सविता को आइंदा कोई परेशानी नहीं होने देगा. लेकिन हुआ इस के विपरीत. पवन को सविता द्वारा मायके में शिकायत करना नागवार लगा. वह उसे किसी न किसी बहाने प्रताडि़त करने लगा. बात उस दिन और अधिक बिगड़ जाती, जिस दिन मां दयावती पवन के कान भर देती.

ऐसे ही एक रोज जब पवन हैवान बना तो सविता ने इस की जानकारी फोन से अपनी मां को दे दी. इस पर कलावती ने बेटी की ससुराल कन्नौज आ कर पवन और उस की मां को खूब खरीखोटी सुनाई. यह बात पवन को बहुत बुरी लगी.

वह मां के अपमान से तिलमिला उठा. उस का कलावती से झगड़ा हुआ. कलावती ने धमकी दी कि यदि तुम लोगों ने बेटी को प्रताडि़त करना बंद नहीं किया तो वह पूरे परिवार को फंसा देगी. सब जेल जाओगे.

कलावती की इस धमकी से पूरा परिवार सहम गया. एक ओर जहां सविता की जेठानियों ने उस से किनारा कर लिया, वहीं दयावती भी अपने बड़े बेटे राजीव के साथ रहने लगी. राजीव की पत्नी रोमी से उस की पटरी खाती थी. सविता को उम्मीद थी कि सास जेठानी के साथ रहेगी तो झगड़ा नहीं होगा. पर ऐसा नहीं हुआ. पवन पहले की अपेक्षा उसे और अधिक प्रताडि़त करने लगा.

एक सुबह सविता बाथरूम में नहा रही थी और पवन कमरे में लेटा था तभी सविता के मोबाइल की घंटी बजी. पवन ने स्क्रीन पर नजर डाली तो वीरेंद्र का नाम आ रहा था. पवन ने फोन रिसीव करते हुए हैलो कहा तो काल करने वाले ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया.

कुछ देर बाद सविता बाथरूम से नहा कर निकली तो पवन ने पूछा, ‘‘यह वीरेंद्र कौन है? वह तुम्हें फोन कर रहा था.’’

‘‘मुझे पता नहीं कौन है?’’ सविता ने सफाई दी.

‘‘पता नहीं या झूठ बोल रही हो. कहीं तुम्हारे मायके का यार तो नहीं है?’’ पवन ने शक जाहिर किया.

‘‘किसी का गलती से फोन लग गया होगा और तुम मुझ पर बदचलनी का आरोप लगाने लगे. शरम आनी चाहिए तुम्हें.’’ सविता पति पर बिफर पड़ी.

पवन को भी गुस्सा आ गया. वह उसे गरियाते हुए बोला, ‘‘हरामजादी, एक तो बदचलन, दूसरे सिर उठा कर मुझे बेशरम कह रही है.’’ पवन ने उसे लातघूंसों से पीटना शुरू कर दिया. वह चीखतीचिल्लाती रही पर सासजेठानी में से कोई भी उसे बचाने नहीं आया.

दूसरे रोज सविता रूठ कर मायके चली गई. इस बार वह अपनी मासूम बेटी रानू को भी साथ ले गई थी.

घर कलह का असर बेटी पर न पड़े, इसलिए सविता ने उसे मायके में रखने का निर्णय कर लिया था. मायके में वह एक सप्ताह तक रही, फिर जब गुस्सा ठंडा पड़ा तो बेटी को मायके में छोड़ कर ससुराल आ गई.

पवन गुस्से से भरा बैठा था. सविता लौट कर आई तो बोला, ‘‘इतनी जल्दी क्यों लौट आई, मायके के यारों के साथ कुछ दिन और मन बहला लेती. ऐसी मौज हमारे घर कहां मिल पाएगी. यहां तो मर्यादा में ही रहना होगा.’’

पति की बात सुन कर सविता को गुस्सा तो बहुत आया, पर झगड़ा टालने के लिए वह गुस्सा पी गई और पवन को जवाब नहीं दिया.

सविता की चुप्पी का पवन ने गलत अर्थ लगाया. उसे पक्का यकीन हो गया कि सविता बदचलन है. यारों से मिलने के लिए ही वह बारबार मायके जाती है.

पवन के मन में अब पत्नी की बदचलनी का भी भूत सवार हो गया था. वह सविता पर बदचलनी का लांछन लगा कर उसे पीटने लगा. शराब के नशे में कभीकभी वह हैवान भी बन जाता था. पर अब उन दोनों के झगड़े के बीच परिवार का कोई अन्य सदस्य नहीं आता था.

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मार्च, 2020 में देश में कोरोना महामारी के चलते लौकडाउन हो गया, जिस से सारी व्यावसायिक गतिविधियां ठप हो गईं. पवन का धंधा भी बंद हो गया. बुकिंग बंद होने से उसे अपनी कार घर में खड़ी करनी पड़ी.

आमदनी घटी तो घर में झगड़ा और बढ़ गया. सविता खर्च के लिए पैसा मांगती तो पवन मना कर देता. इस बात पर दोनों में झगड़ा होता. ऐसे में सविता दखलअंदाजी करने के लिए अपनी मां कलावती को घर बुला लेती. पवन को अपनी सास कलावती की दखलअंदाजी पसंद नहीं थी.

जब कलावती अपनी बेटी का पक्ष ले कर पवन पर तीखे शब्दों का प्रयोग करती, तो पवन बौखला उठता. उस का सास से भी झगड़ा हो जाता. ऐसे में वह आपा खो बैठता और सविता को सास के सामने ही पीटता.

20 अगस्त, 2020 की सुबह सविता ने घर खर्च की मांग की तो पवन ने मना कर दिया. इस बात को ले कर दोनों में फिर झगड़ा हुआ. सविता ने फोन कर मां कलावती को बुला लिया.

रोजरोज की किचकिच से कलावती भी परेशान हो गई थी. लिहाजा वह बेटी को ले कर सरायमीरा पुलिस चौकी पहुंच गई. वहां पुलिस ने पवन को बुला कर पत्नी और सास के सामने जलील किया. साथ ही हिदायत दे कर समझौता भी करा दिया. इस के बाद सब वापस घर आ गए.

पत्नी व सास का पुलिस चौकी जाना फिर पुलिस द्वारा जलील करना पवन को नागवार लगा. वह अपमान से भर उठा. इसी बात को ले कर 20 अगस्त की रात 12 बजे पवन और सविता में फिर झगड़ा होने लगा. कलावती बेटी का पक्ष ले कर पवन पर हमलावर होने लगी.

पवन पहले ही गुस्से से भरा बैठा था. वह सविता को पीटने लगा. कलावती बेटी को बचाने आई तो पवन कमरे में रखा हंसिया उठा लिया और मांबेटी पर प्रहार करने लगा.

पवन का रौद्र रूप देख कर सविता और कलावती जान बचाकर छत पर भागीं. पवन पीछा करता हुआ छत पर ही आ गया.

वह हैवान बन चुका था. हंसिया से वार पर वार कर उस ने सविता व उस की मां कलावती को मौत की नींद सुला दिया. इस पर भी जब उस का गुस्सा शांत नहीं हुआ तो उस ने मांबेटी को दूसरी मंजिल की छत से नीचे फेंक दिया.

डबल मर्डर करने के बाद पवन छत से उतर कर नीचे आया. उस ने पत्नी व सास के शवों पर नफरत भरी निगाह डाली फिर आलाकत्ल हंसिया सहित कन्नौज कोतवाली की राह पकड़ ली.

कोतवाली पहुंच कर उस ने पुलिस के सामने डबल मर्डर का जुर्म कबूल कर आत्मसमर्पण कर दिया.

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इधर चीखपुकार सुन कर पवन के घर वाले जाग गए थे. पवन के जाते ही वे घर से बाहर निकले तो सामने मांबेटी की लाशें देख कर सन्न रह गए. इस के बाद घर में कोहराम मच गया. 21 अगस्त, 2020 को थाना कोतवाली पुलिस ने अभियुक्त पवन उर्फ मुरारी को कन्नौज कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

हैवान बना पति : भाग 1

पवन उर्फ मुरारी जिस वक्त कन्नौज कोतवाली पहुंचा, तब रात के 3 बज रहे थे. एसएसआई आर.पी. सिंह रात की ड्यूटी पर थे. पवन उन के सामने जा पहुंचा और बोला, ‘‘साहब, मैं डबल मर्डर कर के आया हूं. मुझे गिरफ्तार कर लो.’’

‘‘डबल मर्डर?’’ सिंह चौंके, ‘‘कौन हो तुम? किस का खून किया है?’’

‘‘साहब, मेरा नाम पवन है. मैं कलेक्ट्रेट के पीछे हौदापुरवा मोहल्ले में रहता हूं. मैं ने अपनी पत्नी सविता और सास कलावती का खून किया है. दोनों की लाशें घर के बाहर पड़ी हैं.’’

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‘‘तुम यह सब नशे में तो नहीं बक रहे हो?’’ आर.पी. सिंह ने उस से पूछा. ‘‘साहब, हंसिया साथ लाया हूं. मैं ने उन्हें इसी से मारा डाला. देखो, मेरा हाथ और चेहरा भी खून से रंगा है.’’ पवन ने खून सना हंसिया फर्श पर रखते हुए कहा.

अब शक की कोई गुंजाइश नहीं थी. उन्होंने 2 सिपाहियों को बुला कर पवन को हिरासत में ले लिया और आलाकत्ल हंसिया सुरक्षित कर लिया.

इस के बाद एसएसआई ने यह सूचना कोतवाल विकास राय को दी. राय नाइट गश्त से आधा घंटा पहले ही लौटे थे.

थानाप्रभारी विकास राय ने डबल मर्डर का जुर्म कबूल करने वाले पवन उर्फ मुरारी से पूछताछ की फिर वरिष्ठ अधिकारियों को घटना से अवगत कराया और पुलिस टीम ले कर घटनास्थल हौदापुरवा मोहल्ले पहुंच गए.

उस समय वहां भीड़ जुटी थी और कोहराम मचा था. राय ने रोपीट रही महिलाओं को वहां से हटाया, फिर निरीक्षण में जुट गए. घटनास्थल का दृश्य बड़ा ही भयावह था. सविता और कलावती की खून से लथपथ लाशें घर के बाहर पड़ी थीं.

उन की गरदन, पीठ और पेट पर गहरे घाव थे. दोनों की हत्या छत पर की गई थी और लाशों को दूसरी मंजिल से नीचे फेंका गया था. सविता की उम्र 24 साल के आसपास थी, जबकि उस की मां कलावती 50 वर्ष उम्र पार कर चुकी थी.

यह बात 21 अगस्त, 2020 की है. भोर का उजाला फैल चुका था और पवन द्वारा अपनी पत्नी और सास की हत्या की खबर पूरे मोहल्ले में फैल गई थी.

सूचना पा कर मृतका सविता के भाई गोविंद, सोहनलाल तथा पिता जगत राम भी आ गए थे. थानाप्रभारी विकास राय अभी निरीक्षण कर ही रहे थे कि एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह तथा सीओ (सिटी) शेषमणि उपाध्याय भी आ गए. पुलिस अधिकारियों ने फोरैंसिक टीम को भी घटनास्थल पर बुलवा लिया.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. वे उस छत पर भी गए, जहां मांबेटी की हत्या कर उन्हें नीचे फेंका गया था. फोरैंसिक टीम ने जांच कर हत्या से जुड़े साक्ष्य जुटाए.

घटनास्थल पर हत्यारोपी पवन उर्फ मुरारी की मां दयावती तथा भाभी रोमी मौजूद थीं. पुलिस अधिकारियों ने उन से पूछताछ की तो रोमी ने बताया कि सविता और उस के पति पवन के बीच किसी बात को ले कर पिछले 2 दिनों से झगड़ा हो रहा था.

कल दोपहर सविता की मां कलावती आ गई थी. उस के बाद झगड़ा और बढ़ गया था. पवन को सास का आना और उन दोनों के झगड़े में हस्तक्षेप करना नागवार लगा. झगड़े के बाद मांबेटी पवन के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने थाने भी गई थीं, पर उन की रिपोर्ट दर्ज नहीं हुई थी.

थाने से लौटने के बाद सविता का पवन से फिर झगड़ा हुआ. झगड़े में कलावती फिर से कूद पड़ी और बेटी का पक्ष ले कर पवन को भलाबुरा कहने लगी. चूंकि पतिपत्नी का झगड़ा आम बात थी, इसलिए हम लोग हस्तक्षेप नहीं करते थे.

रात 2 बजे चीखपुकार मची तो हम लोगों की नींद खुल गई. उसी दौरान छत से कोई चीज गिरने की आवाज आई. देखा तो सविता और कलावती की लाशें घर के बाहर पड़ी थीं. वे दोनों डर की वजह से छत से कूदीं या फिर पवन ने ढकेला, इस बारे में कुछ नहीं पता. मौकाएवारदात पर मृतका सविता का भाई गोविंद तथा पिता जगतराम भी मौजूद थे.

सीओ शेषनारायण उपाध्याय ने उन से घटना के संबंध में पूछताछ की तो गोविंद ने बताया कि उस का बहनोई पवन बहन को प्रताडि़त करता था. उसे सविता के चरित्र पर शक था. उस के पिता ने 10 लाख रुपए में 10 बीघा जमीन बेची थी. उन पैसों से खूब धूमधाम से सविता की शादी की थी.

इस के बाद भी उस का पेट नहीं भरा. वह सविता पर मायके से रुपए लाने का दबाव डालता था. बात न मानने पर उसे मारतापीटता और झगड़ा करता था. झगड़ा निपटाने में मां को हस्तक्षेप करना पड़ता था, जिस से वह मां से भी खुन्नस खाता था. इसी खुन्नस में पवन ने मां और बहन की हत्या कर दी.

पूछताछ के बाद पुलिस अधिकारियों ने मृतका सविता तथा कलावती के शव पोस्टमार्टम के लिए कन्नौज के जिला अस्पताल भिजवा दिए. साथ ही सुरक्षा के तौर पर आरोपी के घर पुलिस का पहरा बिठा दिया.

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शवों को पोस्टमार्टम हाउस भिजवाने के बाद पुलिस अधिकारी थाना कोतवाली पहुंचे कातिल पवन पहले ही आत्मसमर्पण कर चुका था. पुलिस अधिकारियों ने उस से पूछा, ‘‘तुम ने अपनी पत्नी व सास की हत्या क्यों की?’’

‘‘साहब, उन दोनों ने मेरी जिंदगी में जहर घोल रखा था. जिस से मेरा जीना तक मुहाल हो गया था. रोजरोज की टेंशन से परेशान हो कर मुझे यह करने के लिए मजबूर होना पड़ा.’’

चूंकि पवन अपना जुर्म कबूल चुका था, अत: थानाप्रभारी विकास राय ने मृतका सविता के भाई गोविंद को वादी बना कर भादंवि की धारा 302 के तहत पवन के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. पवन को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया गया.

पवन से की गई पूछताछ और पुलिस जांच में डबल मर्डर की जो कहानी प्रकाश में आई, वह घर की कलह व अवैध संबंधों पर आधारित निकली.

कन्नौज, उत्तर प्रदेश का औद्योगिक नगर है. यहां का इत्र व्यवसाय पूरी दुनिया में मशहूर है. इसलिए कन्नौज को सुगंध की नगरी के नाम से भी जाना जाता है. इसी कन्नौज का एक मोहल्ला हौदापुरवा है, जो कन्नौज कोतवाली के क्षेत्र में आता है. हौदापुरवा पहले कन्नौज से सटा एक गांव था, लेकिन जब कन्नौज को जिले का दरजा मिला और विकास हुआ तो हौदापुरवा शहर का मोहल्ला बन गया.

इसी हौदापुरवा मोहल्ले में विकास कुमार सिंह का अपना दोमंजिला मकान था. उस के परिवार में पत्नी दयावती के अलावा 3 बेटे राजीव, वीर सिंह व पवन उर्फ मुरारी थे. तीनों की शादी हो चुकी थी. राजीव पशुपालन विभाग में काम करता था और अपने परिवार के साथ मकान की पहली मंजिल पर रहता था. वीर सिंह परिवार के साथ भूतल पर रहता था. वह जनरल स्टोर चलाता था.

सब से छोटा पवन उर्फ मुरारी अपने भाइयों से ज्यादा स्मार्ट तथा पढ़ालिखा था. वह अपने मातापिता के साथ मकान की दूसरी मंजिल पर रहता था और अपनी कार बुकिंग पर चलाता था. पवन व सविता की शादी 6 जून, 2014 को हुई थी.

ससुराल में शुरूशुरू में सविता के दिन ठीकठाक गुजरे. फिर धीरेधीरे उस पर गृहस्थी का पूरा बोझ लाद दिया गया. घर के सारे काम करने के अलावा पति व सास की सेवा भी उसे ही करनी पड़ती थी. धीरेधीरे सास के ताने व जेठानियों के व्यंग्य शुरू हो गए थे. सविता सब कुछ सहती रही. जबतब वह अकेले में आंसू बहा कर मन हलका कर लेती थी. पति पवन अपनी मां का ही पक्ष लेता था.

विवाह के 2 साल बाद सविता ने एक बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम रानू रखा गया. रानू के जन्म से सविता के जीवन में नई ज्योति तो जली, साथ ही जिम्मेदारियां भी बढ़ गईं. घर के कामों के अलावा उसे अपनी नवजात के लिए भी समय निकालना पड़ता था. नतीजा यह हुआ कि सास की खींचातानी बढ़ गई.

दरअसल सास दयावती को इस बात का मलाल था कि उस के बेटे को शादी में उस की हैसियत के मुताबिक दहेज नहीं मिला. दहेज कम मिलने को ले कर वह सविता को ताने दे कर प्रताडि़त करती रहती थी.

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एक रोज पवन ने सविता से कहा, ‘‘हमारी कार अब खटारा हो गई है, जिस से बुकिंग कम मिलने लगी है. अगर तुम मायके से 2 लाख रुपया ले आओ, तो हम नई कार फाइनैंस करा लें. इस से हमारी बुकिंग बढ़ जाएगी और अच्छी कमाई भी होने लगेगी.’’

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

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