वो 6 घंटे : भाग 3

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अब आगे…

पुलिस को किस का डर था

पुलिस ने दोनों आरोपियों को उन के घर से गिरफ्तार कर लिया और पूछताछ के लिए अड़की थाने ले आई.
थाने ला कर पुलिस ने जब अजूब सांडी और आशीष लुंगा से सख्ती से पूछताछ की तो दोनों ने पुलिस के सामने घुटने टेक दिए. उन्होंने अपने साथियों के नाम भी बता दिए.

घटना में इन के अलावा पत्थलगढ़ी समुदाय का मुखिया जौन जोनास तिडु, बलराम समद, बांदी समद उर्फ टकला और जुनास मुंडा के अलावा पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट औफ इंडिया (उग्रवादी संगठन) के लोग शामिल थे.

अजूब सांडी और आशीष लुंगा की निशानदेही पर उसी रात चारों साथियों को पश्चिम सिंहभूम से गिरफ्तार कर लिया गया. लेकिन उन्होंने अपने जुर्म कबूलने से इनकार कर दिया.

इस पर पुलिस ने इन चारों और पहले गिरफ्तार किए गए दोनों आरोपियों की अलग कमरे में बैठे पीडि़तों के सामने परेड कराई तो पीडि़तों ने आरोपियों को पहचान लिया. ये वही दरिंदे थे, जिन्होंने 19 जून को उन्हें 6 घंटे तक मौत से बदतर यातनाएं दी थीं.

पीडि़तों द्वारा शिनाख्त किए जाने के बाद पुलिस ने चारों आरोपियों जौन जोनास तिडु, बलराम समद, बांदी समद उर्फ टकला और जुनास मुंडा से अलगअलग कड़ाई से पूछताछ की तो चारों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. ये लोग ही लड़केलड़कियों को स्कूल से जबरन अगवा कर के ले गए थे

इन लोगों ने उन के साथ बदले की भावना से बलात्कार किया था ताकि भविष्य में फिर कोई उन के और उन के उसूलों के खिलाफ न जा सके. यानि गुलामों सी जिंदगी जी रहे आदिवासियों को उन के अधिकारों का पाठ पढ़ाने की कोशिश न करे.

सामूहिक दुष्कर्म के सभी आरोपियों की गिरफ्तारी की सूचना मिलने पर एडीजी आर.के. मल्लिक, आईजी नवीन कुमार, डीआईजी अमोल वी. होमकर को मिली, तो वे भी थाने आ गए.

एडीजी आर.के. मल्लिक शहर में रह कर घटना की पलपल की मौनिटरिंग कर रहे थे और पूरी जानकारी पुलिस प्रमुख डी.के. पांडेय और मुख्यमंत्री रघुबर दास को दे रहे थे.

पुलिसिया जांचपड़ताल में पूरी घटना के पीछे स्कौटमैन मेमोरियल मिडिल स्कूल के फादर अल्फोंस आइंद द्वारा रची गई साजिश का परदाफाश हुआ.

आरोपियों से की गई पूछताछ, पीडि़तों के मजिस्ट्रैट के समक्ष दिए गए बयानों और मौके से जुटाए गए साक्ष्यों के आधार पर पुलिस ने घटना के मुख्य साजिशकर्ता फादर अल्फोंस आइंद को 27 जून को स्कूल परिसर से गिरफ्तार कर लिया.

फादर अल्फोंस आइंद के गिरफ्तार होते ही क्रिश्चियन मिशनरी में खलबली मच गई. ईसाई समुदाय के लोग पुलिस का विरोध करने लगे तो विवश हो कर अगले दिन एडीजी आर.के. मल्लिक को प्रैस कौन्फ्रैंस करनी पड़ी.

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एडीजी आर.के. मल्लिक ने प्रैसवार्ता के दौरान पत्रकारों को बताया कि खूंटी में घटी घटना में पत्थलगढ़ी के नेता जौन जोनास तिडु और अन्य अपराधी शामिल थे.

उन्होंने दावा किया कि अपराधी 5 युवतियों और उन के 3 पुरुष साथियों को उन्हीं की गाड़ी में जबरदस्ती बैठा कर 7-8 किलोमीटर दूर छोटाली के जंगल में ले गए थे. वहां पहले से ही पीएलएफआई समूह के नक्सली मौजूद थे. इन लोगों ने नुक्कड़ नाटक करने वाले समूह को सबक सिखाने के लिए उन के साथ सुनियोजित तरीके से बलात्कार किया.

मल्लिक ने आगे बताया कि पुलिस ने पश्चिम सिंहभूम के रहने वाले अजूब सांडी पूर्ती और आशीष लुंगा को गिरफ्तार कर मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. गिरफ्तार दोनों अपराधियों ने अपना अपराध कबूल लिया और पीडि़त युवतियों के समक्ष उन की परेड करा कर उन की पहचान भी करा ली गई.

जांच के दौरान पाया गया कि खूंटी में हुई सामूहिक बलात्कार की इस घटना में कम से कम 7 लोगों ने 5 युवतियों का अपहरण कर उन के साथ बलात्कार किया था. साथ ही उन के 3 पुरुष सहकर्मियों के साथ अप्राकृतिक दुष्कर्म भी किया था. आरोपियों ने इस पूरे कृत्य की वीडियो बना कर उसे सोशल मीडिया पर भी डाल दिया था.

प्रैस कौन्फ्रैंस के बाद पुलिस ने फादर अल्फोंस आइंद को अदालत के सामने पेश किया, जहां से अदालत ने उसे 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

बहरहाल, आशा किरण संगठन समाज को जागरूक करने के लिए समयसमय पर सरकारी योजनाओं के बारे में बताने के लिए नुक्कड़ नाटक कराती रहती थी. आशा किरण द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले ये नाटक पत्थलगड़ी के कोचांग इलाके के छुटभैये नेता जौन जोनास तिडु को पसंद नहीं आ रहे थे. उसे लगता था कि उन के द्वारा किए जाने वाले नुक्कड़ नाटक पत्थलगढ़ी समाज के खिलाफ हैं.

उन नाटकों में काम करने वाले लड़के और लड़कियां उन्हीं के समुदाय के थे. जोनास ने लड़कियों से मना किया था कि तुम सब ऐसे नाटकों में भाग मत लिया करो, जिस से हमारे समाज को नुकसान पहुंचे. लेकिन लड़कियों ने जोनास की बात मानने से साफ इनकार कर दिया था.

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पूरे कृत्य का मास्टरमाइंड था जोनास तिडु

जोनास तिडु ने लड़कियों से बदला लेने की ठान ली और मौके की तलाश में रहने लगा. छुटभैया नेता जोनास तिडु का जो चेहरा सब के सामने था, उस के पीछे एक और चेहरा छिपा था. उस का संबंध झारखंड के प्रतिबंधित कट्टर उग्रवादी संगठन पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट औफ इंडिया से था. उग्रवादी संगठन के साथ मिल कर वह समाज विरोधी गतिविधियों में संलिप्त था.

खैर, जिस मौके की तलाश में जोनास तिडु जुटा था, आखिरकार वह मौका उसे मिल ही गया. जोनास तिडु को पता चला था कि फादर अल्फोंस आइंद के स्कूल में 19 जून को आशा किरण की लड़कियां नुक्कड़ नाटक करने वाली हैं.

उस से 2 दिन पहले जोनास तिडु अपने ग्रुप के साथियों बलराम समद, अजूब सांडी पूर्ती, बांदी समद उर्फ टकला, जुनास मुंडा और आशीष लुंगा के साथ स्कूल जा कर फादर आइंद से मिला. फादर आइंद जानता था कि जोनास अपराधी प्रवृत्ति का इंसान है, अगर उस की बात नहीं मानी तो वह कुछ भी कर सकता है.
योजना के अनुसार, जौन जोनास तिडु ने अपने साथ उग्रवादी संगठन पीएलएफआई के कई साथियों को भी मिला लिया था. लड़कियों के साथ क्या करना है, इस की भी रूपरेखा तैयार कर ली गई.

19 जून को आशा किरण के लड़के और लड़कियां जब फादर आइंद के स्कूल में नाटक करने पहुंचे तो फादर ने इस की सूचना जौन जोनास को दे दी. सूचना मिलते ही दिन के करीब 12 बजे जौन जोनास तिडु अपने 3 साथियों बलराम समद, अजूब सांडी पूर्ति और आशीष लुंगा के साथ 3 मोटरसाइकिलों पर सवार हो कर स्कूल पहुंच गया. उस समय नाटक समाप्त होने वाला था.

जौन जोनास नाटक मंच के पास मौजूद सिस्टर रंजीता किंडो से मिला और अपने इलाके बुरुडीह में नाटक कराने की इच्छा जाहिर की. रंजीता ने उसे फादर से मिला दिया. सिस्टर रंजीता और सिस्टर अनीता नाग को देख कर उस का दिल दोनों ननों पर आ गया था.

जब वह फादर के पास पहुंचा, तो फादर समझ गए कि कोई बड़ा अनर्थ होने वाला है. जोनास ने जब नाटक मंडली को अपने इलाके में ले जाने की बात कही तो वह फौरन तैयार हो गए.

नाटक मंडली के 3 लड़के और 5 लड़कियों के अलावा जब उस ने दोनों ननों सिस्टर रंजीता किंडो और अनीता नाग को भेजने के लिए कहा तो फादर ने यह कह कर मना कर दिया कि वे नन हैं और हमारे विद्यालय की हैं.

जोनास फादर की बात मान गया. इस पर नाटक मंडली के सभी कलाकारों ने विरोध किया तो जोनास और उस के साथी आठों को जबरन अपहरण कर के उन्हीं के वाहन में बिठा कर ले गए. ये लोग स्कूल से 7-8 किलोमीटर दूर जंगल में पहुंचे, जहां पहले से पीएलएफआई के नक्सलियों के साथ उन के अन्य साथी मौजूद थे. आगे क्या हुआ, ऊपर कहानी में बताया जा चुका है.

खूंटी में हुए गैंगरेप की घटना के करीब ढाई महीने बाद मानवाधिकारों के हनन के मामले की जांच के लिए 17-18 अगस्त, 2018 को डब्ल्यूएसएस और सीडीआरओ की 10 सदस्यीय फैक्ट फाइंडिंग टीम फैक्ट फाइंडिंग के लिए स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ खूंटी गई.

टीम ने अपनी जांच के बाद बताया कि पुलिस को गैंगरेप की घटना की जानकारी तो मिली, लेकिन एफआईआर से यह स्पष्ट नहीं है कि उन्हें घटना की जानकारी कहां से मिली.

फैक्ट फाइंडिंग टीम को पुलिस अधिकारियों से पूछताछ करने पर पता चला कि महिला थाने को भी घटना की जानकारी एसपी औफिस से मिली थी. एसपी से इस के बारे में पूछने पर उन्होंने कुछ भी बताने से इनकार कर दिया. 20 जून की रात से ही पुलिस ने पीडि़तों से संपर्क साधने की कोशिश की पर वे पीडि़तों तक 21 जून को पहुंच पाई.

जांच टीम ने आगे बताया कि गैंगरेप की 5 पीडि़ताओं को पुलिस द्वारा उन की सुरक्षा करने के नाम पर गैरकानूनी रूप से 3 हफ्ते तक हिरासत में रखा गया. पुलिस की हिरासत में 3 हफ्ते तक उन्हें किसी से मिलने तक नहीं दिया जा रहा था. केवल एनसीडब्ल्यू की टीम उन से मिल पाई थी.

एक पीडि़ता के परिजनों ने बताया कि उन्हें भी पीडि़ता से घटना के 2-3 दिन बाद थाने में पुलिस वालों की मौजूदगी में केवल 5-10 मिनट के लिए मिलने दिया गया था. प्रशासन की इस काररवाई को एसपी अश्विनी कुमार सिन्हा ने दिशानिर्देशों का हवाला देते हुए सही बताया.

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मुख्यमंत्री रघुबर दास के आदेश पर दिल दहला देने वाले खूंटी गैंगरेप कांड की रोजाना सुनवाई शुरू हुई. घटना में लिप्त सातों आरोपी जेल में बंद थे. घटना के करीब 6 महीने बाद पटना हाईकोर्ट से फादर अल्फोंस आइंद को जमानत मिल गई थी. लेकिन अदालत ने उसे शहर छोड़ कर कहीं भी जाने पर पाबंदी लगा कर उस का पासपोर्ट जब्त कर लिया था.

7 मई, 2019 को खूंटी के जिला एवं सत्र न्यायाधीश (प्रथम) राजेश कुमार की अदालत ने 4 आरोपियों के खिलाफ चार्ज फ्रेम किया. कोर्ट ने फादर अल्फोंस को षडयंत्रकारी मानते हुए उस की जमानत रद्द कर दी. उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

बाद में इसी कोर्ट ने 15 मई, 2019 को सभी आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई. द्य
—कथा में रोशन, विकास, राजन, सीमा, रीना, गीता, बिपाशा और वंदना परिवर्तित नाम हैं. कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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वो 6 घंटे : भाग 2

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अब आगे…

आठों कलाकारों के साथ घटना घटे 24 घंटे बीत गए थे. खूंटी की रहने वाली सीमा को भीतर ही भीतर बुरी तरह घुटन महसूस हो रही थी. उन लोगों द्वारा दी गई यातना उस से बरदाश्त नहीं हुई तो उस ने अपने मांबाप से आपबीती सुना दी और फफकफफक कर रोने लगी.

बेटी के साथ हुई घटना को मांबाप ने सुना तो सन्न रह गए. बात कोई छोटीमोटी नहीं थी. बेटी की मानमर्यादा को तारतार कर के उस के गुप्तांगों को सिगरेट से जलाया गया था. उन दरिंदों ने यातना की सारी सीमाएं लांघ दी थीं. सीमा और उस के बाकी साथियों के साथ क्याक्या हुआ था, उस ने मांबाप को पूरी बात विस्तार से बता दी.

दरअसल, बीते 19 जून को खुद को बुरुडीह का मुखिया बता कर जो युवक गांव में नुक्कड़ नाटक कराने की बात कह कर आठों कलाकारों को अपने साथ ले गया था, वह उन्हें गांव न ले जा कर एक घने जंगल में ले गया था. वाहन चला रहे आशा किरण संगठन के चालक संजय शर्मा को मारपीट कर बीच रास्ते में उतार दिया गया था.

गाड़ी के पीछे चल रहे मोटरसाइकिल सवारों में से एक नीचे उतरा और संजय की जगह ड्राइविंग सीट पर सवार हो कर वाहन चलाने लगा. वे लोग जिस जंगल के बीच वाहन को ले गए, वहां पहले से ही कई लोग मौजूद थे. उन के पास खतरनाक हथियार थे.

मुखिया ने सभी युवक और युवतियों को वाहन से निकलने का आदेश दिया. फरमान जारी होते ही सभी एकएक कर के वाहन से नीचे उतर आए और एक कतार में खडे़ हो गए. उन के कतार में खड़े होते ही हथियारबंद युवकों ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया.

उन लोगों के हाथों में हथियार देख कर आठों कलाकार कांपने लगे. मुखिया आगे बढ़ा और पांचों युवतियों में से सीमा के नजदीक पहुंचा. पहले तो उस ने सीमा को खा जाने वाली नजरों से घूरा, फिर एकाएक उस के बालों को अपनी मुट्ठी में भर कर खींचा. सीमा दर्द के मारे बिलबिला उठी. वह चिल्लाया, ‘‘हरामजादी कुतिया, और चिल्ला.’’

मुखिया की आंखों से क्रोध के अंगारे बरसने लगे, ‘‘तुम्हारा चीखनाचिल्लाना सुन कर मेरे दिल को सुकून मिला.’’

‘‘पर आप हो कौन?’’ सीमा ने साहस जुटा कर सवाल किया, ‘‘और इस तरह हमारे साथ जंगली जानवरों जैसा व्यवहार क्यों कर रहे हो? आखिर हम ने किया क्या है?’’
‘‘बहुत नाटक करती है हरामजादी और मुझ से पूछती है कि तेरा दोष क्या है?’’ मुखिया दांत भींचते हुए बोला.
‘‘लेकिन हमारे नाटक से आप का क्या संबंध है?’’

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‘‘है. तुम्हारे नाटक करने से हमारा बहुत गहरा संबंध है. तुम जो नाटक कर के समाज के लोगों को जागरूक करने की कोशिश कर रहे हो, वही तुम्हारा सब से बड़ा दोष है. तुम्हें और तुम्हारे साथियों को इस दोष की ऐसी सजा दी जाएगी, जो जीवन भर नासूर बन कर तुम्हारे जमीर को चुभेगी.’’

‘‘प्लीज हमें छोड़ दीजिए, हमें हमारे घर जाने दीजिए.’’ सीमा दोनों हाथ जोड़ कर उस के सामने गिड़गिड़ाई, ‘‘अगर हमारे नाटक करने से आप को परेशानी है तो आज के बाद हम नाटक नहीं करेंगे. प्लीज, हमें छोड़ दीजिए.’’

‘हम तुम्हें और तुम्हारे बाकी साथियों को छोड़ भी देंगे, घर भी जाने देंगे लेकिन सजा देने के बाद, समझी?’’ इतना कह कर मुखिया ने उस के बाल छोड़ दिए. फौरी तौर पर सीमा को थोड़ी राहत मिली.

दरिंदगी की इंतहा

सीमा को यातना देते देख बाकी साथियों की सांस गले में अटक गई थी. उन के मुंह से एक बोल तक नहीं फूटा. इस के बाद मुखिया ने अपने साथियों को इशारा किया.

उस का इशारा पाते ही 5 युवक, जिस में मुखिया भी शामिल था, पांचों लड़कियों को खींच कर वहां से थोड़ी दूर जंगल के भीतर ले गए और एकएक कर के उन के साथ अपना मुंह काला किया. उन के साथ एक युवक और भी था, जो अपने और लड़कियों के मोबाइल से दुष्कर्म के समय की वीडियो बना रहा था.

इन दरिंदों का जब इतने पर भी दिल नहीं भरा तो उन्होंने उन के गुप्तांगों को सिगरेट से दाग दिया. सिगरेट की जलन से वे बुरी तरह बिलबिला उठीं. वे दरिंदों के सामने हाथ जोड़ कर भीख मांग रही थीं कि वीडियो न बनाएं लेकिन उन हैवानों पर उन की याचनाओं का कोई असर नहीं हुआ.

दरिंदे सिगरेट से गुप्तांग के जलाए जाने का भी नजदीक से वीडियो बना रहे थे. हैवानों ने उन के साथ कई बार अपना मुंह काला किया. इतना ही नहीं, उन्होंने लड़कों को भी नहीं छोड़ा. लड़कों के साथ भी अप्राकृतिक दुष्कर्म किया गया. इतना ही उन्हें अपना पेशाब पिलाया और इस कृत्य की भी वीडियो बनाई.

उन नरपिशाचों ने 6 घंटों तक आठों युवकयुवतियों के साथ यातनाओं का घिनौना खेल खेला. जब शाम ढलने लगी तो सभी युवकयुवतियों को उन्हीं के वाहन में डाल कर स्कूल पहुंचा दिया गया. स्कूल पहुंच कर उन्होंने फादर अल्फोंस आइंद से आपबीती सुनाई. लेकिन फादर आइंद ने मदद करने की बजाए उन्हें डराधमका कर चुप करा दिया.

बहरहाल, सीमा की दिलेरी से दिल दहला देने वाली घटना सामने आई तो उस के मांबाप ने आशा किरण की संस्थापिका जेम्मा ओएसयू को पूरी बात बताई, जिन की जिम्मेदारी पर बच्चियां नुक्कड़ नाटक करने गई थीं. बच्चियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी संगठन की थी, लेकिन उन की सुरक्षा नहीं की गई थी.

सिस्टर जेम्मा ने दिल दहला देने वाली घटना सुनी तो भौचक रह गईं. उन्हें ताज्जुब तो इस बात पर हो रहा था कि 24 घंटे बीत जाने के बाद भी मामला पुलिस तक नहीं पहुंचा, बल्कि उसे दबा दिया गया था. लेकिन वे खुद चुप बैठने वालों में से नहीं थीं.

21 जून, 2018 की दोपहर को सिस्टर जेम्मा अड़की थाने पहुंचीं और पुलिस को घटना की लिखित तहरीर दी. तहरीर पढ़ कर एसओ विपिन सिंह के होश उड़ गए. इतनी बड़ी और शर्मनाक घटना की पुलिस को सूचना तक नहीं मिली थी.

सिस्टर जेम्मा की तहरीर पर आननफानन में अड़की पुलिस ने अज्ञात बदमाशों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. एसओ विपिन सिंह जानते थे, जेम्मा कोई ऐसीवैसी महिला नहीं हैं, उन की पहुंच ऊपर तक है. सो उन्होंने त्वरित काररवाई की.

अज्ञात बदमाशों के खिलाफ भादंवि की धारा 341, 342, 323, 363, 365, 328, 506, 201, 120बी के तहत केस दर्ज कर लिया गया. मुकदमा दर्ज होते ही इस घटना की जानकारी पूरे जिले में फैल गई. यह बात जब शहर के एसपी अश्विनी कुमार सिन्हा तक पहुंची तो आननफानन में वे अड़की थाना पहुंचे और मामले की पूरी जानकारी ली.

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घटना छोटीमोटी नहीं थी. साथ ही मानवाधिकार से भी जुड़ी हुई थी. एसपी अश्विनी ने अपनी गरदन बचाते हुए यह सूचना आईजी नवीन कुमार और डीआईजी अमोल वी. होमकर को दे दी. हकीकत सुन कर पुलिस अधिकारी सकते में आ गए. उसी दिन शाम होतेहोते यह मामला पुलिस महानिदेशक डी.के. पांडेय, एडीजी आर.के. मल्लिक से होते हुए झारखंड के मुख्यमंत्री रघुबर दास तक जा पहुंचा.

22 जून को मुख्यमंत्री रघुबर दास ने प्रदेश के पुलिस प्रमुख डी.के. पांडेय को अपने औफिस बुला कर उन के साथ आपात बैठक की. बैठक में उन्होंने मामले की गहन जांच के आदेश दिए और साजिश का परदाफाश करने को कहा. यही नहीं, उन्होंने दोषियों की जल्द से जल्द गिरफ्तारी सुनिश्चित करने के भी आदेश दिए.

मुख्यमंत्री के आदेश के बाद डीजीपी डी.के. पांडेय ने आईजी नवीन कुमार को निर्देश दिया कि अविलंब सभी पीडि़तों की सुरक्षा बढ़ा दी जाए और उन से आरोपियों के बारे में पूछताछ की जाए. उन से जानकारी जुटा कर आरोपियों के स्कैच बनवाए जाएं.

आईजी नवीन कुमार का फरमान जारी होते ही एसपी अश्विनी कुमार ने आठों पीडि़तों को पूछताछ के लिए सुरक्षा घेरे में ले लिया. उन के रहने की व्यवस्था थाना अड़की में की गई. सुरक्षा की दृष्टि से उन से किसी की भी बात कराने पर पाबंदी लगा दी गई थी, ऐसा इसलिए किया गया था कि इस मामले की जानकारी बाहर न जा सके.

थाने में हुई पीडि़तों से पूछताछ के आधार पर 3 आरोपियों के स्कैच बनवा कर शहर में जगहजगह चस्पा करा दिए गए. उन पर ईनाम भी घोषित किया गया. उस के बाद सभी पीडि़तों का चिकित्सकीय परीक्षण कराया गया. मैडिकल रिपोर्ट में उन सभी के साथ दुष्कर्म की पुष्टि हुई.

खैर, 5 दिन बीत जाने के बाद भी पुलिस को कोई खास सफलता नहीं मिली. लेकिन छठे दिन अचानक ही पुलिस को एक बड़ी कामयाबी मिल गई. शहर में लगाए गए पोस्टरों में से स्कैच वाले 2 युवकों की पहचान हो गई. दोनों आरोपियों के नाम अजूब सांडी पूर्ती और आशीष लुंगा थे. वे खूंटी जिले के पश्चिम सिंहभूम गांव के रहने वाले थे.

अगले और आखिरी भाग में पढ़िए पुलिस को किसका डर था?

करंट से मौत, बनाम 24 हत्यारे!

छत्तीसगढ़ आदिवासी बाहुल्य अंचल है जहां जंगल है, वन्य प्राणी है . और जंगल के दंतैल प्राणियों से बचने के लिए गांव में अक्सर ग्रामीण कुछ ऐसे गैरकानूनी और खतरनाक हथकंडे अपनाते हैं कि वन्य प्राणी के साथ-साथ इंसान भी अपनी जान खो बैठते हैं.

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ऐसे में यह कल्पना बेहद मुश्किल  है कि कोई इंसान इन के फंदे में फंस जाता है और बेवजह बेमौत मारा जाता है. आइए! आपको बताते हैं एक सच्चा घटनाक्रम जिसमें जंगली सूअर को मारने के लिए ग्रामीणों ने बिजली के नंगे तार गांव में बिछा दिया और गांव के 24 लोग अपराधी बन गए. इसमें  मारा गया एक  युवक आनंद अपनी प्रेमिका से मिलने जा रहा था…..! आगे क्या हुआ, शायद इसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते! हम आपको आगे वह सारा घटनाक्रम बता रहे हैं.

पहली घटना-

जिला कोरबा के बालको नगर के निकट दोंदरो में एक ग्रामीण ने अपने फसल को बचाने के लिए चारों तरफ विद्युत करंट बिछा दिया. एक हाथी आया और करंट के चपेट में आकर मारा गया.

दूसरी घटना-

जिला रायगढ़ के धर्मजयगढ़ वन मंडल में ग्राम हाटी में एक ग्रामीण ने हाथी से बचने के लिए घर के आस-पास करंट के तार बिछा दिए. जिसमें एक व्यक्ति चपेट में आकर हलाक हो गया.

तीसरी घटना-

अंबिकापुर के एक ग्राम में ग्रामीणों ने हाथियों से बचने के लिए आसपास करंट बिछा दिया जिसमें दो व्यक्ति आकर मृत्यु का ग्रास बन गए. अनेक ग्रामीणों को इस कारण पुलिस ने जेल भेजा है.

आनंद राठिया की मौत का रहस्य

आनंद राठिया नामक एक युवक की मौत के रहस्य से पर्दा उठाते हुए  हुए एडिशनल एसपी कीर्तन राठौर ने बताया कि प्रार्थी मनबहाल राठिया निवासी ग्राम बेहरचुवा द्वारा थाना करतला में रिपोर्ट दर्ज कराई  कि प्रार्थी का  सुपुत्र आनंद राठिया  8 सितंबर 2020 के रात्रि करीब 8 बजे घर से बिना बताये कहीं चला गया है. काफी खोजबीन करने पर भी पता नहीं चल रहा है. मामले में थाना करतला में गुम इंसान कायम कर आनंद राठिया का पतासाजी की जा रही थी. प्रथम दृष्टया मामला प्रेम संबंध का प्रतीत हुआ एवं आनंद राठिया के संदिग्ध परिस्थितियों में गायब होने के कारण पुलिस अधीक्षक कोरबा अभिषेक मीणा द्वारा इस प्रकरण को गभीर मामला मानकर अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक  कीर्तन राठौर के नेतृत्व में विशेष टीम का गठन कर आनंद राठिया के  तलाश करने हेतु निर्देशित किया गया था . पुलिस अधीक्षक कोरबा अभिषेक मीणा को मुखबीर के माध्यम से सूचना प्राप्त हुई कि दिनांक 8 सितंबर 2020 को ग्राम सुमरलोट के जंगल में ग्रामीणों द्वारा जंगली सुअर मारने हेतु विद्युत करंट प्रवाहित तार बिछाया गया था जिसकी चपेट में आने से आनंद राठिया की मृत्यु हो गई थी. ग्रामीणों द्वारा मृतक आनंद राठिया के मौत को छिपाने के उद्देश्य से आनंद राठिया के शव को ग्राम सुअरलोट दमक पहाडी धोरा डोगरी में मोहलाईन पेड़ के नीचे जंगल में ही गाड़ दिया गया है . पुलिस अधीक्षक  अभिषेक मीणा द्वारा उपरोक्त सूचना के तस्दीक हेतु अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक  कीर्तन राठौर को तत्काल मौके पर भेजा गया.

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करंट से मौत का खुलासा

मुखबीर से प्राप्त सूचना के आधार पर कार्यपालिक दण्डाधिकारी करतला के उपस्थिति में मृतक आनंद राठिया के शव को उखड़वाकर मर्ग पंचनामा कार्यवाही किया गया . संपूर्ण जांच पर पाया गया कि आरोपीगण मयाराम राठिया एवं उसके अन्य 23 साथियों द्वारा जंगली सुअर का शिकार करने के उद्देश्य से दिनांक 8 सितंबर 2020 को रात्रि में ग्राम खुंटाकुड़ा से ग्राम सुअरलोट के बीच पहाड़ी में लगभग 1.5 किलोमीटर दूरी तक नंगा जीआई तार में बिजली करंट जोड़ा गया था. रात मे  आनंद राठिया जंगल में आरोपीगण द्वारा जोड़े गये बिजली करंट प्रवाहित तार के चपेट में आ गया जिससे मौके पर उसकी मौत हो गई आरोपीगण द्वारा मृतक आनंद राठिया के मौत को छिपाने के उद्देश्य से रात्रि में ही मृतक के शव को एक प्लास्टिक के चटाई में लपेटकर नईखार पहाड़ी के पास झाड़ी में छिपाकर रख दिये एवं दूसरे रात्रि में सभी लोग मृतक के शव को ग्राम सुअरलोट दमक पहाड़ी मे एक पेड़ के नीचे जंगल में गड्ढा खोदकर दफन कर दिया  .मामले में आरोपी मयाराम राठिया सहित कुल 24 आरोपीगण के  खिलाफ मामला पंजीबद्ध हुआ है. प्रकरण में अब तक 14 आरोपी गिरफ्तार कर लिये गये है शेष 10 आरोपी फरार है, जिन्हें जल्द ही गिरफ्तार कर लिया जायेगा.

हत्या का सच छुपाने गांव वालों ने ली शपथ

पुलिस जांच में यह तथ्य भी सामने आया कि सुअरलोट के कुछ ग्रामीणों द्वारा  जंगली सुअर फंसाने के लिए खूंटकुडा से सुअरलोट के मध्य डेढ़ किलोमीटर लंबा जीआई तार खींच करंट प्रवाहित किया गया. घटना की रात प्रेमिका से मिलने आया आनन्द टॉर्च की रोशनी को समझा कि प्रेमिका के परिजन जान गए हैं और उसे मारने आ रहे हैं.इसी भय में भागते वक्त करेंट के तार की चपेट में आ गया जबकि उसका दोस्त  दूसरी दिशा में भाग निकला .इधर तार के सम्पर्क में आते ही स्पार्क हुआ और सुअरमारने वालों को लगा कि सुअर फंस गया, तब मौके पर पहुंचे तो युवक का शव देखकर सभी भयभीत हो गए.

लाश देख कर सुअर मारने वाले शव को चटाई में लपेटकर नरईखार पहाड़ी के पास झाड़ी में छिपा दिया दूसरी रात 5 -7 लोग करीब साढ़े 5 किलोमीटर दूर पहाड़ के ऊपर ले जाकर लकड़ी के सहारे गड्ढा खोदकर शव को लकड़ी सहित दफना दिया. आनन्द का मोबाइल, मेमोरी चिप, सिम कार्ड को बंद बोर के गड्ढे में डाल दिया व फेंक दिया. मृतक के कपड़े भी जला दिए. तत्पश्चात गांव में बैठक कर  राज छिपाए रखने की शपथ ली गई.पुलिस ने मुख्य आरोपी सहित शव को ठिकाने लगाने और जान कर भी नहीं बताने वाले कुल 24 लोगों पर जुर्म दर्ज हुआ है पुलिस के  अनुसार सुअरलोट करीब 100 परिवारों का  छोटा सा गांव है जिनमें आधे परिवार से कोई न कोई सदस्य आरोपी है.

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यह घटना एक सबक है!

छत्तीसगढ़ के कोरबा जिला के करतला थाना अंतर्गत यह घटना  बताती है कि किस तरह ग्रामीण अंचल में आज भी समझदारी के अभाव में “विद्युत करंट” जैसे माध्यमों का उपयोग जंगली जानवरों के आखेट करने के लिए  नासमझी का खेल जारी   है. पुलिस अधिकारी विवेक शर्मा बताते हैं कि ग्रामीण अंचल में पहले ग्रामीण गड्ढे खोदकर के वन्य प्राणियों को अपना शिकार बनाया करते थे अथवा खाने में जहर देकर के भी वन्य प्राणियों को मारा जाता रहा है मगर अब जिस तरीके से “करंट” का उपयोग किया जा रहा है’, वह अपने आप में बहुत ख़तरनाक और चिंता का सबब है.

सामाजिक कार्यकर्ता इंजीनियर रमाकांत श्रीवास के अनुसार ग्रामीणों को यह समझ दे जा रही है की किसी भी हालत में  “करंट फैलाना” एक गंभीर अपराध है. वहीं इसका शिकार उनके अपने परिजन, बच्चे अभी भी हो सकते हैं. अतः ऐसे कृत्य से ग्रामीणों को बचना चाहिए.

डॉक्टर जी आर पंजवानी कहते हैं सुअरलोट गांव की यह घटना यह संदेश देती है कि सरकार और सामाजिक कार्यकर्ताओं को ग्रामीण अंचल में विद्युत के खतरनाक खेल से बचने के लिए  जागरूकता प्रसारित करना अपरिहार्य  है. एक व्यक्ति की हत्या में 24 लोगों का अपराधी बनना समाज के लिए चिंता का विषय है.

अंधविश्वास : काले बाबा की काली करतूत

21 अक्तूबर, 2020 की रात के तकरीबन 9 बजे जब लोगों की भीड़ कम हो गई तो कुछ लोगों ने एक मजार से सट कर बनाए कोठरीनुमा कमरे के नीले रंग के दरवाजे पर दस्तक देनी शुरू की. कमरे के बाहर दरवाजे के पास एक जोड़ी आदमी के जूते और एक जोड़ी औरत की चप्पल रखी थी. इस से यह बात साफ समझ आ रही थी कि कमरे के अंदर एक आदमी और एक औरत मौजूद हैं.

दरवाजे पर दस्तक देने वाले 3 से 4 लोग थे. उन के हाथों में मोबाइल कैमरे थे. वे लोग वीडियो बना रहे थे. कमरे के अदंर से कोई आवाज नहीं हुई.

इस बीच मजार पर रहने वाला निसार हुसैन उर्फ काले बाबा बगल के दरवाजे से निकल कर आया और पूछने लगा, ‘यह सब क्या कर रहे हो?’

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काले बाबा को लगा कि उस की धौंस से वहां आए लोग भाग जाएंगे. पर वहां माहौल दूसरा था. लोगों ने काले बाबा को पीटना शुरू कर दिया और उस पर दबाव डाला कि वह कमरा खुलवाए.

दूसरों के दर्द का इलाज करने का दावा करने वाले काले बाबा के चेहरे की हवाइयां उड़ चुकी थीं. उसे साफ पता चल चुका था कि अब उस का परदाफाश हो चुका है. उस की कोई जुगत काम नहीं आई. कमरा खुलवाना पड़ा.

एक आदमी अंदर से निकला और उस ने भागने की कोशिश की. कमरे के अंदर पीली रोशनी देता एक बल्ब जल रहा था. परदा डाल कर कमरे को 2 हिस्सों में बांट दिया गया था, जिस से किसी के कमरे में आने पर परदे के हिस्से को छिपाया जा सके.

परदे वाले हिस्से पर नीचे जमीन पर बिस्तर लगा था. बिस्तर पर एक औरत बैडशीट ओढ़ कर लेटी थी. आवाजें सुन कर वह उठी और अपना सलवारकुरता पहनने लगी. औरत के जिस्म पर केवल ब्रा और पेंटी ही थी.

वीडियो बनाने वाले उस की इसी दशा को कैमरे में कैद कर रहे थे. इस के बाद लोगों ने पुलिस को सूचना दी. पुलिस वहां आई तो तमाम लोग काले बाबा से मारपीट करे थे. उन का वह सहयोगी भाग चुका था.

ठाकुरगंज थाने की पुलिस वहां आई और काले बाबा को पकड़ कर ले गई. बाबा के खिलाफ मुकदमा कायम हो गया. उस को जेल भेज दिया गया.

बाबा का सहयोगी फरार हो गया है. पुलिस उस को तलाश रही है. महिला को पुलिस ने निजी मुचलके पर पूछताछ के बाद छोड़ दिया.

काले बाबा की काली करतूतों की जानकारी लखनऊ पुलिस को पहले से थी, पर वह अभी तक चुप थी, क्योकि उस के पास काले बाबा के खिलाफ कोई सुबूत नहीं थे.

बात सुबूत की नहीं है, बल्कि धार्मिक और संवेदनशील मामलों में पुलिस सीधे ऐक्शन लेने से बचती है. इस वजह से काले बाबा का यह गोरखधंधा चल रहा था.

राख से इलाज की शुरुआत

यह हाल है उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के ठाकुरगंज में बने जामा मजार का. यह मजार ठाकुरगंज के रईस मंजिल इलाके के पास है. इस मजार का नाम दरगाह सैयद अहमद शाह शहीद (ईरानी) उर्फ पिन्नी वाले बाबा है. मजार पर सालाना उर्स होता है.

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मजार के पास लगे बैनर में इस के बारे में सब लिखा है. इस में काले बाबा का फोटो और उस का मोबाइल नंबर भी लिखा है. वहां हर वीरवार और रविवार को सफेद दाग, बच्चे न होने की बीमारी, मानसिक परेशानी, भूतप्रेत उतारने समेत कई दूसरी किस्म की तमाम बीमारियों का भी इलाज होता था.

ऐसे में कई बार मरीज बुधवार से ही यहां आना शुरू हो जाते थे. बीमारों में ज्यादा तादाद औरतों की होती थी. इन में 25 साल से 40 साल उम्र की औरतों की तादाद ज्यादा होती थी. सब से ज्यादा मानसिक परेशानी, सफेद दाग और बच्चे न होने की दिक्कत वाले लोग वहां जमा होते थे. कई औरतें ऐसी होती थीं, जिन के बच्चे न होने के चलते उन के पति तलाक देने की धमकी देते थे.

मजार के पास मन्नत के लिए जो भी औरतें जाती थीं वे धूप, अगरबत्ती और मजार पर चादर चढ़ाती थीं. इस के बाद काले बाबा औरतों के सिर पर मोरपंख की झाड़ू मार कर उन के दुख दूर करने का काम करता था. जो औरत देखने में खूबसूरत और कम उम्र की होती थी, उस से वह किसी न किसी बहाने बात करने की कोशिश करता था.

ऐसी औरतों को देख कर उन के सिर पर झाड़ू मारते समय बाबा कहता था, ‘आप बहुत परेशान हैं. बीमारी आप का पीछा नहीं छोड़ रही है. बीमारी को दूर भगाने के लिए खास झाड़फूंक करनी होगी.’

आमतौर पर औरतें इस खास झाड़फूंक के बारे में पूछने लगती थीं. ऐसे में बाबा उन्हें अपने सहयोगी के पास भेज देता था. बाबा का सहयोगी खास झाड़फूंक के बारे में बताने लगता था, जिस की शुरुआत राख लगाने से होती थी. राख लगाने के लिए औरतों को बाद में बुलाया जाता था.

जब मजार पर भीड़ कम होती थी, तब राख लगाने के लिए औरत को मजार के बगल वाले कमरे में ले जाया जाता था. इस के बाद बाबा का सहयोगी औरतों कोे अपने कपड़े उतार कर लेट जाने को कहता था. जब कोई औरत इस के लिए तैयार हो जाती थी तो मजार की गरमगरम राख ले कर औरत के शरीर पर राख से मसाज की जाती थी.

मसाज करते समय का वीडियो भी धोखे से बना लिया जाता था. इसी वीडियो को दिखा कर औरतों को बाद में ब्लैकमेल कर के उन से कई तरह के नाजायज काम कराए जाते थे और इसी के डर से उन को मुंह बंद रखने के लिए मजबूर किया जाता था.

आपसी झगड़े में खुला राज

काले बाबा का मजार पर कब्जा था. लंबे समय से वह यहां रहता था. बाबा अपने सहयोगी बदलता रहता था. तकरीबन 6 महीने पहले इदरीश नामक एक सहयोगी को बाबा ने मजार के काम से बेदखल कर दिया था. इदरीश मजार पर सफेद दाग का इलाज कराने आने वाली एक औरत से मुहब्बत कर बैठा था. काले बाबा को यह बात पंसद नहीं थी. काले बाबा ने जब इदरीश को मजार के काम से बाहर किया तो वह बाबा और उंस की काली करतूतों की जानकारी लोगों को देने लगा. बात पुलिस तक भी पहुंची थी.

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चौक एरिया के असिस्टैंट पुलिस कमिश्नर एसीपी आईपी सिंह कहते हैं, ‘बाबा लंबे समय से औरत की झाड़फूंक और इलाज का काम कर रहा था. कई बार लोगों ने शिकायत की, पुलिस ने भी छानबीन की, पर कोई सुबूत सामने नहीं आया था.’

इदरीश को यह पता था कि जब तक काले बाबा के खिलाफ कोई पुख्ता सुबूत नहीं होगा, तब तक कोई बाबा की हरकतों पर यकीन नहीं करेगा. पर इदरीश बाबा से डरता भी था, क्योकि बाबा के पास उस के भी कुछ राज थे. ऐसे में उस ने 4-5 लोगों को बताया कि बाबा राख लगाने के नाम पर औरतों के साथ गलत हरकत  करता है. लोगों को यकीन नहीं हो रहा था. ऐसे में बुधवार को उस ने कहा कि कमरा खुलवा कर देख लो.

इदरीश लोगों को भड़का कर खुद पूरे मामले से बाहर हो गया. लोगों को जब यह लगा कि कमरे में औरत के साथ गलत हरकत हो रही है तो वहां मजमा लग गया और काले बाबा रंगे हाथ पकड़ा गया.

ठाकुरगंज थाने के प्रभारी निरीक्षक राजकुमार कहते हैं, ‘बाबा और उस के साथियों के चंगुल में जो भी औरतें फंस जाती थीं, ये लोग उन को ब्लैकमेल भी करते थे. पुलिस पूरे मामले की जांच कर के दोषी लोगों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करेगी.’

जानकारी के मुताबिक बाबा के जाल में 100 से भी ज्यादा औरतें फंसी हैं. उन की जानकारी भी जमा की जा रही है.

पकड़ा गया 5 लाख का इनामी डौन : भाग 1

(कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां)

लाख के इनामी माफिया डौन अखिलेश  सिंह को झारखंड और बिहार की पुलिस सालों से तलाश रही थी. वह जमशेदपुर के अदालत परिसर में की गई झारखंड मुक्ति मोर्चा के कद्दावर नेता और रीयल एस्टेट कारोबारी उपेंद्र सिंह की हत्या में जेल से पैरोल पर बाहर आने के बाद से फरार चल रहा था. जेलर उमाशंकर पांडेय हत्याकांड में भी उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई जा चुकी थी.

दोनों मामलों में उसे न्यायालय में पेश होने का आदेश दिया जा चुका था, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चल रहा था. जमशेदपुर के जिला जज (पंचम) सुभाष ने पुलिस को आदेश दिया था कि अखिलेश सिंह को किसी भी तरह ढूंढ कर 11 दिसंबर, 2017 को अदालत में पेश किया जाए. पुलिस को यह आदेश अगस्त, 2017 में दिया गया था.

जिला न्यायालय से आदेश आने के बाद जमशेदपुर पुलिस ऊहापोह की स्थिति में थी. हार्डकोर क्रिमिनल अखिलेश सिंह झारखंड और बिहार पुलिस के लिए सिरदर्द बना हुआ था. 36 मुकदमों में वांछित डौन अखिलेश सिंह पर प्रदेश के बड़े पुलिस अधिकारियों और राजनेताओं का वरदहस्त था, इसलिए पुलिस उस के गिरेबान पर हाथ डालने से कतराती थी. डौन सालों से कहां छिपा था, किसी को पता नहीं था. झारखंड पुलिस कई महीनों से उस की तलाश में जुटी थी.

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आखिर जमशेदपुर पुलिस की मेहनत रंग लाई. सर्विलांस के जरिए जमशेदपुर (झारखंड) पुलिस को माफिया डौन अखिलेश सिंह की लोकेशन हरियाणा के गुरुग्राम की मिली. पुलिस ने सूचना की पुष्टि की तो वह पक्की निकली. अखिलेश सिंह महीनों से अपनी पत्नी गरिमा सिंह के साथ गुरुग्राम के सुशांत लोक स्थित एक गेस्टहाउस में छिपा बैठा था और किसी बड़ी घटना को अंजाम देने की योजना बना रहा था.

आखिर निशाने पर आ ही गया डौन अखिलेश

जमशेदपुर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अनूप टी. मैथ्यू ने गुरुग्राम के पुलिस आयुक्त संदीप खिरवार से संपर्क कर के 5 लाख के इनामी डौन अखिलेश सिंह को गिरफ्तार कराने में सहयोग मांगा. संदीप खिरवार इस के लिए तैयार हो गए. इस के बाद 8 सितंबर, 2017 को झारखंड पुलिस गुरुग्राम पहुंच गई.

दोनों प्रदेशों के पुलिस अधिकारियों ने डौन अखिलेश सिंह को जिंदा पकड़ने का एक ब्लूप्रिंट तैयार किया. पुलिस जानती थी कि अखिलेश सिंह के पास आधुनिक हथियार हो सकते हैं, इसलिए इस योजना को बड़े ही गोपनीय ढंग से तैयार किया गया.

इस औपरेशन में जमशेदपुर पुलिस के एसपी (ग्रामीण) प्रभात कुमार, एसएसपी अनूप टी. मैथ्यू, गुरुग्राम के पुलिस आयुक्त संदीप खिरवार, डीसीपी (क्राइम) सुमित कुमार और सीआईए यूनिट-9 के इंचार्ज इंसपेक्टर राजकुमार सहित चुनिंदा पुलिसकर्मी शामिल हुए.

डौन की पहचान के लिए एसएसपी मैथ्यू के पास उस की युवावस्था की एक पुरानी तसवीर थी, जिस में वह काफी खूबसूरत दिख रहा था. गोपनीय तरीके से बनाई गई योजना पूरी हुई तो 9 अक्तूबर, 2017 को पुलिस ने गुरुग्राम के सुशांत लोक स्थित उस गेस्टहाउस को चारों ओर से घेर लिया, जिस में अखिलेश रह रहा था.

एसपी प्रभात कुमार, डीसीपी सुमित कुमार और इंसपेक्टर राजकुमार ने रिसैप्शन पर अखिलेश सिंह नाम के गेस्ट का पता किया तो एंट्री रजिस्टर में उस नाम से कोई कस्टमर नहीं मिला. गेस्टहाउस के कमरा नंबर 102 में अजय कुमार नाम का एक कस्टमर अपनी पत्नी के साथ ठहरा था.

पुलिस कमरा नंबर 102 पर पहुंची. एसपी प्रभात कुमार ने दरवाजे की झिर्री से भीतर झांक कर देखा तो बैड पर एक युवक बैठा था. उस के चेहरे पर काली और घनी दाढ़ी थी. देखते ही वह पहचान गए कि अजय

कुमार नाम से ठहरा गेस्ट अखिलेश सिंह ही है. कमरे के सामने पहुंच कर सुमित कुमार ने जैसे ही दरवाजा खटखटाया तो भीतर से गोलियां चलने लगीं. मौके पर पोजीशन लिए पुलिस अधिकारी सतर्क हो कर साइड हो गए. उस के बाद आधा दरवाजा तोड़ कर पुलिस की ओर से कई राउंड गोलियां चलाई गईं.

भीतर से गोलियां चलनी बंद हो चुकी थीं. जब अंदर कोई हलचल नहीं हुई तो पोजीशन ले कर पुलिस टीम पूरा दरवाजा तोड़ कर भीतर घुसी. कमरे में कसरती बदन वाला एक युवक और एक महिला मौजूद थी. युवक के चेहरे पर घनी दाढ़ी थी और उस के दोनों पैरों के घुटने के ऊपर गोली लगी थी. गोली लगने से घायल हो कर बिस्तर पर पड़ा तड़प रहा था.

पूछताछ में पता चला कि वही माफिया डौन अखिलेश सिंह है और महिला उस की पत्नी गरिमा सिंह. जब पुलिस अखिलेश को वहां से ले जाने लगी तो गरिमा सिंह इंसपेक्टर राजकुमार की सर्विस रिवौल्वर छीनने की कोशिश करने लगी. इस से पहले कि कोई अप्रिय घटना घटती, महिला पुलिस ने उसे दबोच लिया.

मुठभेड़ के बाद 5 लाख के इनामी डौन अखिलेश सिंह और उस की पत्नी गरिमा सिंह के गिरफ्तार होने की सूचना जैसे ही पत्रकारों को मिली, वे गुरुग्राम के थाना सुशांत लोक पहुंच गए. इस बीच पुलिस ने अखिलेश सिंह के विरुद्ध गुरुग्राम के थाना सेक्टर-29 में भादंवि की धारा 307, 353, 436 और शस्त्र अधिनियम का मुकदमा दर्ज कर लिया था.

अखिलेश के दोनों पैरों में घुटनों के ऊपर गोलियां लगी थीं. इलाज के लिए उसे गुरुग्राम के जिला अस्पताल भिजवा दिया गया. उस के बाद पुलिस अधिकारियों ने संयुक्त प्रैसवार्ता कर मुठभेड़ की पूरी कहानी विस्तार से बताई.

बिजनैस से कैरियर की शुरुआत की अखिलेश ने

अखिलेश सिंह मामूली हैसियत वाला आदमी नहीं था. वह सेवानिवृत्त सबइंसपेक्टर और आजसू पार्टी (औल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन पार्टी) के नेता चंद्रगुप्त सिंह का बेटा था. अखिलेश ने ट्रांसपोर्ट का धंधा शुरू किया था, लेकिन वह ऐसी बुरी संगत में पड़ गया कि एक मामूली ट्रांसपोर्टर से झारखंड राज्य का 5 लाख का सब से बड़ा मोस्टवांटेड डौन बन गया, जिस की एक बोली पर बड़ेबड़े व्यापारियों की तिजोरियां खुल जाती थीं.

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अखिलेश सिंह मूलत: जमशेदपुर जिले के थाना बिष्टुपुर क्षेत्र के बिष्टुपुर इलाके का रहने वाला था. वह चंद्रगुप्त सिंह का बड़ा बेटा था. उन का दूसरा बेटा अमलेश सिंह है.

चंद्रगुप्त सिंह ने पुलिस में सिपाही के पद से नौकरी शुरू की थी. अपनी ईमानदारी, लगन और मेहनत से वह सबंइसपेक्टर के ओहदे तक पहुंचे. अतिमहत्त्वाकांक्षी और तेजदिमाग का अखिलेश सिंह पढ़लिख कर पिता की तरह काबिल अफसर बनना चाहता था. इस के लिए उस ने पोस्टग्रैजुएशन भी किया. लेकिन वह पिता जैसे मुकाम को छू तक नहीं पाया.

व्यवसाय के रूप में अखिलेश सिंह ने पार्टनरशिप में ट्रांसपोर्ट का काम शुरू किया था. उस ने और अशोक शर्मा ने गुलशन रोडलाइंस की शुरुआत की थी. अखिलेश और अशोक का यह व्यवसाय चल निकला. वैसे भी अशोक शर्मा इस धंधे का पुराना मास्टर था. उस का ट्रांसपोर्ट का धंधा सालों से मजे में चल रहा था. अखिलेश के आने से उस का काम और भी अच्छा चलने लगा था.

अशोक ने अखिलेश को इसलिए पार्टनर बनाया था, क्योंकि वह एक ताकतवर आदमी का बेटा था. उस के पिता चंद्रग्रप्त सिंह की पुलिस और सत्ता के गलियारों में अच्छी पहुंच थी. कोई परेशानी आने पर वह काम आ सकता था. वैसे भी अखिलेश व्यवसाय के प्रति काफी ईमानदार था.

ट्रांसपोर्ट की कमाई से अशोक शर्मा ने करोड़ों की प्रौपर्टी अर्जित की थी. उस के खास दोस्तों में एक था हरीश अरोड़ा. वह उस से अपने दिल की हर बात शेयर करता था. हरीश को उस की यही बात सब से अच्छी लगती थी.

हरीश जानता था कि अशोक के पास किसी चीज की कमी नहीं है. अगर किसी चीज की कमी थी तो वह थी बीवीबच्चों की. हरीश ने सन 1997 में अपनी परिचित मधु शर्मा उर्फ पिंकी नाम की युवती के साथ उस की शादी करा दी. इस के बाद अशोक हरीश को पहले से ज्यादा मानने लगा.

शादी के करीब 1 साल बाद की बात है. उस दिन तारीख थी 18 सितंबर, 1998 और समय दिन. अशोक शर्मा किसी काम से घर से बाहर जा रहे थे. बिष्टुपुर थानाक्षेत्र में हिलव्यू रोड स्थित सेक्रेड हार्ट कौन्वेंट स्कूल के पास कुछ अज्ञात बंदूकधारियों ने दिनदहाड़े गोली मार कर उन की हत्या कर दी.

अपराध की राह खुद उतर आई अखिलेश की जिंदगी में

ट्रांसपोर्टर अशोक शर्मा की हत्या से जमशेदपुर में सनसनी फैल गई. व्यवसाई एकजुट हो कर पुलिस के खिलाफ नारेबाजी करते हुए आंदोलन के लिए सड़कों पर उतर आए. वैसे भी दिन पर दिन जिले की कानूनव्यवस्था बिगड़ती जा रही थी और अपराधियों के हौसले बुलंद थे. हरीश अरोड़ा ने थाना बिष्टुपुर में अशोक के व्यावसायिक पार्टनर अखिलेश सिंह के साथ 3 अन्य लोगों बालाजी बालकृष्णन, विक्रम शर्मा और विजय कुमार सिंह उर्फ मंटू के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज करा दी.

अशोक शर्मा हत्याकांड में नामजद होते ही अखिलेश सिंह जमशेदपुर छोड़ कर फरार हो गया. विक्रम शर्मा और विजय कुमार गिरफ्तार कर लिए गए. अखिलेश सिंह के खिलाफ पहली बार हत्या जैसे संगीन मामले में मुकदमा दर्ज हुआ. इस के बाद वह चर्चाओं में आ गया.

3 साल तक बिष्टुपुर पुलिस हत्या के कारणों की जांच करती रही, लेकिन उसे कुछ हासिल नहीं हुआ. इस घटना की जांच सबइंसपेक्टर विश्वेश्वरनाथ पांडेय कर रहे थे. जांच के दौरान पता चला कि अशोक शर्मा को शूटर रवि चौरसिया ने गोली मार कर हत्या की थी. पुलिस ने रवि चौरसिया को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया. 28 जनवरी, 2000 को रवि चौरसिया के खिलाफ आरोपपत्र तैयार कर के न्यायालय को सौंप दिया गया.

बिष्टुपुर पुलिस द्वारा मामले की लीपापोती के बाद सन 2001 में अशोक हत्याकांड की जांच सीआईडी को सौंप दी गई. सीआईडी इंसपेक्टर कन्हैया उपाध्याय ने अशोक हत्याकांड का परदाफाश कर दिया. जांच में घटना का असल सूत्रधार हरीश अरोड़ा ही निकला. उसी ने दोस्त की संपत्ति हथियाने और उस की पत्नी को पाने के लिए यह दांव खेला था.

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घटना का खुलासा उस समय हुआ, जब सन 2001 में जमशेदपुर के एक बड़े मोबाइल व्यापारी ओमप्रकाश काबरा का अपहरण कर लिया गया. काबरा के अपहरण में एक बार फिर अखिलेश सिंह का नाम उछला तो पुलिस की पेशानी पर बल पड़ गए. अब तक अखिलेश सिंह गैंगस्टर बन चुका था.

खैर, पुलिस ने ओमप्रकाश काबरा अपहरण की जांच शुरू की तो ट्रांसपोर्टर अशोक शर्मा हत्याकांड में एक चौंकाने वाले राज का खुलासा हुआ. इस मामले की जांच करते हुए पुलिस को पता चला कि अशोक शर्मा की हत्या की साजिश हरीश अरोड़ा ने रची थी.

यह लालच, विश्वासघात और प्रेम का मामला था. दरअसल, पुलिस जांच में पता चला कि मधु शर्मा उर्फ पिंकी और हरीश अरोड़ा आपस में एकदूसरे से प्रेम करते थे. हरीश अरोड़ा ट्रांसपोर्टर अशोक शर्मा का जिगरी यार था. करोड़पति अशोक शर्मा की शादी नहीं हुई थी.

हरीश अरोड़ा की नीयत अपने दोस्त अशोक की संपत्ति पर थी. वह एक झटके में उस की संपत्ति हासिल कर लेना चाहता था. इस के लिए उस ने एक बड़ी साजिश रची.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

पकड़ा गया 5 लाख का इनामी डौन : भाग 3

दूसरा भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें- पकड़ा गया 5 लाख का इनामी डौन : भाग 2

(कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां)

लेकिन अखिलेश सिंह ने बीच में आ कर आशीष डे को हट जाने को कहा. आशीष डे ने अखिलेश की बात नहीं मानी तो उस ने उन्हें जान से मारने की धमकी दी. इस के बाद भी आशीष डे ने अखिलेश की बात नहीं सुनी. मामला दोनों के बीच अहं पर आ टिका.

2 नवंबर, 2007 की सुबह साढ़े 9 बजे आशीष डे अपने चेनार रोड स्थित घर से साकची बाजार स्थित दुकान पर जा रहे थे. बाजार में गाड़ी पार्किंग की समस्या थी. इस वजह से वह पैदल ही जा रहे थे. इस का फायदा उठाते हुए अखिलेश सिंह ने अपने शूटरों के साथ मिल कर बीच चौराहे पर एके 47 से आशीष डे को भून डाला और हवा में असलहे लहराता हुआ फरार हो गया. जबकि आशीष डे का अखिलेश के पिता चंद्रगुप्त सिंह से पारिवारिक रिश्ता था.

दोनों परिवारों का एकदूसरे के घर आनाजाना था, फिर भी 2 गज जमीन के लिए अखिलेश ने आशीष डे की जान लेने से तनिक भी संकोच नहीं किया. हत्या करने के बाद उस ने राज्य के एक पुलिस अफसर के घर पनाह ली. उस की तलाश में पुलिस यहांवहां मारी फिर रही थी, लेकिन उसे पकड़ना तो दूर, पुलिस उस की परछाईं तक नहीं छू पाई थी.

मार्च, 2008 में पूर्व न्यायाधीश आर.पी. रवि के घर पर फायरिंग, टाटा स्टील के सुरक्षा अधिकारी जयराम सिंह की हत्या, प्रतिद्वंदी परमजीत सिंह के घर पर फायरिंग वगैरह में अखिलेश शामिल था. पकड़े जाने के डर से वह फरार था. अखिलेश सिंह को 31 दिसंबर, 2011 को उत्तर प्रदेश के विशेष कार्यबल और झारखंड पुलिस ने नोएडा के एक मौल से गिरफ्तार किया. सन 2014 में जेल के भीतर अफवाह उड़ी कि वह राजनीति में शामिल हो रहा है. यह अफवाह उस के सहयोगियों ने उड़ाई थी. इस के बाद पुलिस ने उसे साकची जेल से दुमका जेल में ट्रांसफर कर दिया.

मई, 2015 में जेलर उमाशंकर पांडेय के हत्यारे अखिलेश को दोषी ठहराया गया था और उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. हालांकि 4 सितंबर, 2015 को उसे जमानत मिल गई.

जबकि उस पर क्राइम कंट्रोल एक्ट (सीसीए) के तहत अपराध दर्ज किया गया था, जिस के तहत एक साल के लिए कोई जमानत याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता था. लेकिन उस ने अपनी ऊपर तक की पहुंच के बल पर झारखंड हाईकोर्ट से स्टे ले लिया और स्टे के आधार पर उच्च न्यायालय से जमानत ले ली. जमानत मिलने के बाद एक बार फिर वह जेल से बाहर आ गया.

जमानत पर बाहर आने के बाद अखिलेश करीब 15 महीने तक खामोश रहा. 30 नवंबर, 2016 को जमशेदपुर न्यायालय के भीतर उस के गुर्गों ने रीयल एस्टेट कारोबारी और झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता उपेंद्र सिंह को एके 47 से भून कर राज्य भर में सनसनी फैला दी.

झारखंड मुक्ति मोर्चा नेता उपेंद्र सिंह कोई दूध का धुला नहीं था. वह हत्या, हत्या के प्रयास और अपहरण जैसे कई संगीन मामलों का आरोपी था. 30 नवंबर, 2016 को दिन के डेढ़ बजे नेता उपेंद्र सिंह एक मुकदमे में अगली तारीख लेने जमशेदपुर न्यायालय आया था.

1 अगस्त, 2015 को बिजनैस पार्टनर और ठेकेदार रामशकल यादव की सुबह मौर्निंग वाक करते समय मोटरसाइकिल सवार कुछ अज्ञात हमलावरों ने एके47 से हत्या कर दी थी.

उपेंद्र सिंह के मर्डर ने फैलाई सनसनी

इस हत्याकांड में नेता उपेंद्र सिंह का नाम उछला था. यही नहीं दोनों के बीच खिंची दुश्मनी की रेखा भी किसी से छिपी नहीं थी. उपेंद्र सिंह और विकी टापरिया ने पटना के हार्डकोर गैंगस्टर मनोज सिंह के साथ मिल कर रामशकल यादव की हत्या की 75 लाख रुपए में डील की थी.

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जिस में से 25 लाख बतौर पेशगी मनोज सिंह को एडवांस में दिए गए थे और बाकी के 50 लाख रुपए काम हो जाने के बाद देना तय हुआ था. कारोबारी रामशकल यादव की हत्या के मामले में उपेंद्र सिंह को आरोपी बनाया गया था. उसी सिलसिले में उपेंद्र सिंह अदालत में हाजिर हो कर मुकदमे की अगली तारीख लेने आया था.

पुलिस के अनुसार, विनोद सिंह अखिलेश सिंह का सब से निकटतम सहयोगी था. विनोद सिंह को 1 दिसंबर, 2016 को तड़के 3 बजे पुलिस ने उस के घर से उठाया. पहले उसे मानगो थाना में रखा गया. उस के बाद उस से साकची थाने में पूछताछ की गई. साथ ही शहर के विभिन्न इलाकों से अनिल सिंह, विजय यादव, मनोज सिंह, एक महिला सहित 15 लोगों को उठाया गया.

इन में अनिल सिंह और मनोज सिंह, उपेंद्र सिंह पर गोली चलाने वाले विनोद सिंह उर्फ मोगली के भाई थे. विनोद सिंह ने पूछताछ में पुलिस को बताया था कि हत्या अखिलेश सिंह के कहने पर की गई थी. उपेंद्र की हत्या रंगदारी न देने की वजह से की गई थी. इस के 6 दिनों बाद 6 दिसंबर, 2016 को रंगदारी न देने पर उपेंद्र सिंह के करीबी अमित राय की गोली मार कर हत्या कर दी गई.

एक के बाद एक ताबड़तोड़ 2 हत्याओं से जमशेदपुर हिल उठा. दोनों हत्याओं में पुलिस को अखिलेश सिंह के शामिल होने के पर्याप्त सबूत भी मिल गए. पुलिस अखिलेश की तलाश में लग गई. लेकिन उसे पकड़ना तो दूर की बात, उस का पता तक नहीं चल रहा था. अखिलेश पर दबाव बनाने के लिए उस के घर की कुर्की और जब्ती हुई, पुलिस ने उस के घर में सीसीटीवी कैमरा, बंदूक, कारतूस, पलंग, फ्रिज, टीवी, एसी से ले कर अलमारी, एक्वेरियम, शोकेस, गैस चूल्हा, गद्दा, अटैची, पाजामाकुरता, चौकीबेलन, डिब्बा, कटोरी और चम्मच तक कुछ नहीं छोड़ा.

सिदगोड़ा के क्वार्टर नंबर 28 से सारे सामान को उठा कर गोलमुरी थाने में रख दिया गया. चंद्रगुप्त सिंह के 2 लाइसेंसी हथियार और 12 बोर के कारतूसों का डिब्बा भी पुलिस ले गई.

यहां यह बताना जरूरी होगा कि जिस फ्लैट में कुर्कीजब्ती की गई, वहां अखिलेश के पिता चंद्रगुप्त सिंह रहते थे, जबकि अखिलेश सिंह बारीडीह के सृष्टि अपार्टमेंट के एक फ्लैट में रहता था. केस में चूंकि अखिलेश का आवासीय पता उसी क्वार्टर था, इसलिए वहीं काररवाई हुई.

पूरे मामले को देखते हुए झारखंड के मुख्यमंत्री रघुबर दास ने प्रदेश के पुलिस प्रमुख डी. कश्मीर पांडेय को निर्देश दिया कि वह प्रदेश भर में अदालतों और उस के आसपास सुरक्षा का व्यापक प्रबंध करें. एसएसपी अनूप टी. मैथ्यू ने हत्या के मामले में लिप्त लोगों को गिरफ्तार करने के लिए 8 टीमों का गठन किया. इन का काम अखिलेश सिंह से जुड़े लोगों का लिंक तलाशना था. एक टीम को शहर से बाहर भी भेजा गया.

अखिलेश सिंह तो पुलिस के हाथ नहीं लगा, लेकिन पुलिस को एक बड़ी कामयाबी हासिल हुई. 4 अप्रैल, 2017 को पुलिस को उत्तराखंड के देहरादून में अखिलेश सिंह के आपराधिक गुरु विक्रम शर्मा के छिपे होने की सूचना मिली.

देहरादून पुलिस की मदद से जमशेदपुर पुलिस ने विक्रम शर्मा को गिरफ्तार कर लिया और जमशेदपुर ले आई. वह सन 2006 से फरार चल रहा था. विक्रम शर्मा के गिरफ्तार होने के 6 महीने बाद 2 सितंबर, 2017 को जमशेदपुर पुलिस और उड़ीसा पुलिस ने संयुक्त रूप से मिल कर अखिलेश सिंह के भाई अमलेश सिंह को उड़ीसा के भुवनेश्वर एयरपोर्ट से गिरफ्तार किया. अखिलेश के साथ उस का नाम भी 20 वारदातों में दर्ज था.

गिरफ्तारी के बाद अमलेश सिंह को 8 सितंबर को जमशेदपुर न्यायालय में पेश किया गया. जमशेदपुर पुलिस ने न्यायालय से 5 दिनों का रिमांड मांगा, लेकिन न्यायालय ने 3 दिनों का रिमांड दिया. कुछ मामलों में पूछताछ के बाद उसे जेल भेज दिया गया.

दो राज्यों की पुलिस परेशान थी अखिलेश के लिए

अखिलेश सिंह को काबू करने के लिए एसएसपी अनूप टी. मैथ्यू ने विक्रम शर्मा पर दांव खेला. विक्रम से पुलिस को अखिलेश का नंबर मिल गया. पुलिस ने उस के नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया. सर्विलांस के जरिए जमशेदपुर पुलिस को उस की लोकेशन राजस्थान की मिली. पुलिस जब तक राजस्थान जाने की तैयारी करती, तब तक उस ने अपना ठिकाना बदल दिया. दोबारा उस की लोकेशन हरियाणा के गुरुग्राम में मिली. इस के बाद क्या हुआ, ऊपर बताया जा चुका है.

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गुरुग्राम से डौन अखिलेश सिंह को गिरफ्तार करने के पहले 31 मार्च, 2017 को पुलिस ने गुप्त सूचना के आधार पर बिरसानगर थाना इलाके में स्थित अखिलेश सिंह के सृष्टि अपार्टमेंट के फ्लैट नंबर 508 में छापेमारी की थी. इस दौरान फ्लैट के अंदर से एक बैग बरामद किया गया, जिस में बहुत सारे दस्तावेज मिले थे.

इस में चलअचल संपत्ति के दस्तावेज भी थे, जिस में सेल डीड, एग्रीमेंट की मूल कौपी, आधार कार्ड, पैन कार्ड, वोटर कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस सहित बैंक पासबुक और अन्य दस्तावेज शामिल थे. दस्तावेजों की जांच करने पर पाया गया कि इन में नाम किसी और का था और फोटो अखिलेश सिंह का था. अधिकतर दस्तावेजों में उस का फर्जी नाम संजय सिंह, अजीत सिंह पुत्र हरिद्वार सिंह, दिलीप सिंह पुत्र रमेश सिंह लिखा था और गरिमा सिंह के नाम की जगह अन्नू सिंह लिखा हुआ था.

झारखंड का अब तक का सब से बड़ा 5 लाख का इनामी डौन अखिलेश सिंह जमशेदपुर की घाघीडीह जेल में बंद था. बाद में उसे दुमका जेल भेज दिया गया. डौन के जेल में आने के बाद उस की सेवा करने के लिए उस के कई गुर्गे अपनी जमानत रद्द करा कर जेल चले गए थे.

घाघीडीह जेल में बंद अखिलेश सिंह के लिए 23 अपराधी रंगदारी वसूलने और व्यापारियों की गतिविधियों की सूचना देने का काम कर रहे हैं. इस संबंध में स्पैशल ब्रांच के एडीजी ने 10 नवंबर को अपनी रिपोर्ट डीजीपी को भेजी है. रिपोर्ट में कहा गया है कि अखिलेश गुट और जेल के गांधी वार्ड में बंद अपराधियों के बीच कभी भी खूनी संघर्ष हो सकता है.

अखिलेश सिंह के साथसाथ आशीष श्रीवास्तव उर्फ भूरिया और नीरज सिंह पर कड़ी निगरानी रखने की भी बात कही गई है. बताया गया है कि 10 नवंबर को अखिलेश गुट के आशीष और परमजीत गुट के झब्बू के बीच मारपीट हुई थी. इस के बाद उसे सेल में डाला गया. पत्र में यह भी लिखा गया है कि जेल में बंद नीरज सिंह अखिलेश सिंह के लिए जासूसी का काम कर रहा है. अखिलेश सिंह पर दर्ज कुल 52 मुकदमों में से वह 36 मुकदमों में वांछित रहा था, बाकी के 16 मुकदमों में वह बरी किया जा चुका था.????

 – कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पकड़ा गया 5 लाख का इनामी डौन : भाग 2

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(कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां)

इस साजिश में उस ने पिंकी उर्फ मधु शर्मा को भी शामिल कर लिया. हरीश अरोड़ा ने मधु को मजबूर किया कि वह उस से शादी कर ले. यह शादी सिर्फ दिखावे के लिए होगी, क्योंकि शादी के कुछ दिनों बाद उसे रास्ते से हटा दिया जाएगा. इस के बाद उस की पूरी संपत्ति उन की हो जाएगी और जीवन भर दोनों पतिपत्नी की तरह एक साथ रहेंगे.

हालांकि मधु इस के लिए आसानी से राजी नहीं हुई थी. पर वह हरीश के दबाव में आ कर अपने प्यार की खातिर तैयार हो गई थी. योजना के मुताबिक, सन 1997 में मधु शर्मा उर्फ पिंकी की शादी ट्रांसपोर्टर अशोक शर्मा से हो गई. मधु अशोक की पत्नी बन तो गई, लेकिन उस की रगरग में हरीश अरोड़ा का प्यार दौड़ रहा था. पत्नीधर्म निभाते हुए मधु ने अशोक को शरीर तो सौंप दिया था, लेकिन उस की आत्मा हरीश में ही बसी थी. मधु हरीश को अपना वादा बारबार याद दिलाती रहती थी.

दोस्त ही बन गया जान का दुश्मन

हरीश अरोड़ा को अपना वादा अच्छी तरह याद था. रास्ते के कांटे अशोक शर्मा को हटाने के लिए वह ऐसी योजना बनाना चाहता था कि पुलिस को उस पर कभी शक न हो और पुलिस इसे व्यावसायिक प्रतिद्वंदिता में की गई हत्या मान कर उस के कारोबारी प्रतिद्वंदियों को गिरफ्तार कर ले.

हरीश अरोड़ा ने भाड़े के 2 शूटरों परमजीत सिंह और रणजीत चौधरी को अशोक शर्मा की हत्या की सुपारी दे कर उस की हत्या करा दी. यह सब कुछ इस तरह किया गया कि पुलिस का पूरा शक उस के व्यावसायिक साथियों अखिलेश सिंह, विक्रम सिंह, विजय कुमार सिंह उर्फ मंटू और बालाजी बालकृष्णन पर गया.

हुआ वही जो हरीश अरोड़ा चाहता था. इस के बाद हरीश अरोड़ा अशोक शर्मा की पत्नी और संपत्ति पर कब्जा करने में लग गया. लेकिन वह अपने मंसूबों में कामयाब नहीं हो पाया. अशोक की मां, बहन और भाई को हरीश अरोड़ा और पिंकी पर शक हो गया था कि दोनों के बीच कोई खिचड़ी पक रही है. उन्होंने मजिस्ट्रैट के सामने कुछ ऐसा बयान दिया कि दोनों शक के दायरे में आ गए.

फलस्वरूप केस की जांच थाने से ले कर सीआईडी को सौंप दी गई. अपनी जांच में सीआईडी ने अशोक शर्मा हत्याकांड का राजफाश कर दिया. उधर घटना का परदाफाश होने से पहले पुलिस अखिलेश सिंह को गिरफ्तार करने के लिए दिनरात उस के ठिकानों पर दबिश दे रही थी. बाद में पिता के दबाव में आ कर उस ने अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया था.

बहरहाल, 27 जून 2005 को अनिल कुमार आर्य के फास्टट्रैक कोर्ट (5) ने हरीश अरोड़ा को ट्रांसपोर्टर, पारिवारिक मित्र अशोक शर्मा की हत्या के लिए दोषी ठहराया. उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. जबकि पिंकी शर्मा उच्च न्यायालय झारखंड से जमानत ले कर फरार हो गई थी. उसे हरीश अरोड़ा के साथ मिल कर आपराधिक षडयंत्र रचने के लिए दोषी पाया गया था.

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अदालत ने अशोक शर्मा हत्याकांड के चारों आरोपियों अखिलेश सिंह, विक्रम शर्मा, विजय कुमार सिंह उर्फ मंटू और बालाजी बालकृष्णन को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया. भाड़े के 2 शूटर परमजीत सिंह और रंजीत चौधरी गिरफ्तार कर लिए गए थे. उन से हत्या में इस्तेमाल हथियार भी बरामद कर लिए गए थे.

शूटरों से बरामद हथियार जांच के लिए कोलकाता प्रयोगशाला भेजे गए. रिपोर्ट से पता चला कि उन से जो हथियार बरामद किए थे, गोली उन्हीं से चली थी. फलस्वरूप रंजीत और परमजीत दोनों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई.

अशोक शर्मा हत्याकांड से बेदाग निकलने के बाद भी अखिलेश सिंह का बुरे वक्त ने पीछा नहीं छोड़ा. मोबाइल कारोबारी ओमप्रकाश काबरा अपहरण में नाम आने के बाद अखिलेश सिंह एक बार फिर चर्चाओं में आ गया. पुलिस उसे गिरफ्तार करने के लिए यहांवहां ढूंढ रही थी.

कभीकभी अपराध खुद भी मजबूर कर देता है गलत राह पर जाने को

28 जुलाई, 2001 को किए गए बिजनैसमैन ओमप्रकाश काबरा के अपहरण के मामले में अखिलेश सिंह ज्यादा दिनों तक पुलिस की पकड़ से नहीं बच पाया. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. इस केस में अखिलेश सिंह के अलावा 5 और आरोपी विजय सिंह मंटू, संतोष तिवारी, रमन सिंह, लालचंद सिंह और अरविंद सिंह नामजद किए गए थे. यह मुकदमा थाना साकची में दर्ज था. गिरफ्तारी के बाद अखिलेश को दूसरी बार जमशेदपुर की घाघीडीह जेल जाना पड़ा.

किसी बात को ले कर अखिलेश सिंह जेलर उमाशंकर पांडेय को अपना दुश्मन मानने लगा था. कुछ दिन जेल में रहने के बाद वह जेल से फरार हो गया और 15 दिन बाद 12 फरवरी, 2002 को जेल कैंपस स्थित जेलर उमाशंकर के घर जा कर उन की गोली मार कर हत्या कर दी और फरार हो गया.

जेलर पांडेय मर्डर केस में न्यायाधीश आर.पी. रवि ने अखिलेश सिंह को उम्रकैद की सजा सुनाई. सजा सुनने के बाद अखिलेश ने 19 मार्च, 2008 को न्यायाधीश आर.पी. रवि के घर में घुस कर उन पर ताबड़तोड़ फायरिंग की. अखिलेश सिंह जज रवि के फैसले से नाराज था. हालांकि बाद में उसे काबरा अपहरण केस से दोषमुक्त कर दिया गया था.

खैर, हमले में जज आर.पी. रवि बालबाल बच गए थे. इस घटना के बाद जमशेदपुर में अखिलेश सिंह को आतंक का पर्याय माना जाने लगा. जुर्म किए बिना अपराध की सजा पाने के बाद अखिलेश ने जुर्म को ही सब कुछ मान लिया. विक्रम शर्मा अंडरवर्ल्ड डौन के रूप में कुख्यात था. अखिलेश सिंह ने विक्रम की अंगुली पकड़ कर अपराध की दुनिया में पांव रखा और उसे अपना गुरु बना लिया.

विक्रम शर्मा ने उसे जुर्म का ककहरा सिखाया. धीरेधीरे अखिलेश सिंह जुर्म की आग में तप कर कुख्यात बन गया. वह एक के बाद एक जुर्म कर के अपराधों की फेहरिस्त में अपना नाम लिखाता गया. जमशेदपुर की पुलिस, सफेदपोश और व्यापारी उस के नाम से खौफ खाने लगे. जान की सलामती के लिए पुलिस के बड़ेबड़े अधिकारी और सफेदपोश अखिलेश सिंह को संरक्षण देने लगे.

वह शान से नेताओं की कार में घूमता था. किसी की मजाल नहीं थी कि उसे कोई रोके या उस से कोई सवाल पूछे. जो भी उस के रास्ते में रोड़ा बनने की कोशिश करता था, फिल्मी खलनायकों की तरह वह बेदर्दी से गोली मार कर उस की हत्या कर देता था. जमशेदपुर पुलिस के लिए जब वह सिरदर्द बन गया तो उस ने अपना एक गिरोह बना लिया और ठिकाना बनाया राजधानी रांची को.

राजधानी रांची में उस ने गैंग की कमान अपने दाहिने हाथ कहे जाने वाले नंदन यादव को सौंपी. आज भी नंदन यादव अखिलेश सिंह के आपराधिक साम्राज्य की कमान संभालता है. उस के सहारे वह आपराधिक घटनाओं को अंजाम देता है.

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नंदन यादव का नाम रांची में उस समय उछला, जब लोहारदगा के बाक्साइड कारोबारी ज्ञानचंद अग्रवाल को रातू रोड के गैलेक्सी मोड़ पर गोली मारी गई. इस मामले का मुख्य साजिशकर्ता नंदन यादव ही था. व्यवसाई अरविंद भाई पटेल ने नंदन यादव को ज्ञानचंद अग्रवाल के नाम की सुपारी दी थी. मामला 25 लाख में तय हुआ था और बतौर पेशगी 9 लाख रुपए दिए गए थे, बाकी पैसा काम हो जाने के बाद देना तय हुआ था.

बाद में नंदन यादव गिरफ्तार कर लिया गया और उसे जेल भेज दिया गया. जमानत पर रिहा होने के बाद उस ने अखिलेश सिंह का कारोबार संभाल लिया. सुपारी के रुपए अखिलेश के फरजी नामों वाले बैंक एकाउंट में जमा हो जाते थे.

बाद में ओमप्रकाश काबरा के अपहरण के मामले में जेल जाने की वजह से अखिलेश ने अपने सब से भरोसेमंद शूटर रंजीत चौधरी के साथ अपने खिलाफ गवाही देने वाले काबरा को उस के साकची स्थित कार्यालय पहुंच कर दिनदहाड़े गोली मार कर हत्या कर दी थी.

मैच के दिन लगा दिया हत्या का दांव, क्योंकि पुलिस वीआईपी मेहमानों की सेवा में थी

यह हत्या दिन में उस समय की गई थी, जब जमशेदपुर के कीनन स्टेडियम में भारत इंग्लैंड के बीच एकदिवसीय मैच हो रहा था. मैच के चलते तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी और कई अंतरराष्ट्रीय मेहमान शहर में मौजूद थे, जिस की वजह से पुलिस महकमा कीनन स्टेडियम की सुरक्षा में तैनात था. पुलिस सुरक्षा को धता बताते हुए अखिलेश ने इस घटना को अपने गुर्गों के साथ अंजाम दिया था.

व्यवसाई ओमप्रकाश काबरा की हत्या से बौखलाए कुख्यात परमजीत सिंह ने अखिलेश सिंह को हत्या की चुनौती दे दी. अखिलेश सिंह और परमजीत सिंह के बीच 36 का आंकड़ा था. दोनों एकदूसरे के जानी दुश्मन थे. परमजीत सिंह को अखिलेश के वर्चस्व को चुनौती देना महंगा पड़ा और दोनों के बीच गैंगवार छिड़ गई.

इस गैंगवार में अखिलेश और परमजीत दोनों के कई शूटर मारे गए. अखिलेश और परमजीत की गिरफ्तारी के बाद दोनों को घाघीडीह जेल में रखा गया. तब अखिलेश ने जेल में ही परमजीत सिंह की हत्या करवा दी. परमजीत की हत्या के लिए अखिलेश ने अपने भरोसेमंद गुर्गे कपाली को जेल में ही पिस्टल उपलब्ध करवा दी थी.

अब तक अखिलेश सिंह गैंगस्टर से डौन बन चुका था. झारखंड में उस के नाम का सिक्का चलने लगा था. उस के एक फोन से झारखंड के बड़ेबड़े व्यापारियों की तिजोरियां खुल जाती थीं. वे उसे मुंहमांगी रकम देने को तैयार रहते थे. पाप की कमाई से अखिलेश सिंह ने कई राज्यों में रीयल एस्टेट के धंधे में करोड़ों रुपए निवेश किए थे.

अपराध जगत में कदम रखने के बाद उस ने 500 करोड़ की अकूत संपत्ति अर्जित की थी. अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा उस ने ट्रांसपोर्ट, रीयल एस्टेट समेत अन्य कई बिजनैस में लगाया था. टाटा समेत कोल्हान की कई कंपनियों में भी उस का काम चलता था. झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली, राजस्थान और हरियाणा में भी उस ने निवेश किया. सन 2007 में अखिलेश सिंह का अपना कानून चलता था. वह जहां खड़ा हो जाता था, अदालत वहीं लग जाती थी. उस के जबान से जो फरमान जारी हो जाता, कानून बन जाता था.

2 गज जमीन बनी श्रीलेदर के मालिक आशीष डे की हत्या का कारण

उन दिनों झारखंड के बड़े व्यवसायियों में एक श्रीलेदर के मालिक आशीष डे का नाम शुमार था. आशीष लेदर के जूतों के बड़े कारोबारी थे. आशीष डे का मकान जमशेदपुर के साकची स्थित आमबागान के बगल में था. उन के घर के पास 2 गज जमीन खाली थी, जोकि एक बंगाली परिवार की थी. वह परिवार आशीष डे को जमीन बेचना चाहता था और डे वह जमीन अपने एक परिचित बंगाली परिवार को दिलाने का प्रयास कर रहे थे.

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जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

मोहब्बत में पिता की बली: भाग 1

चारों तरफ घुप अंधेरा था. आसमान में बादल छाए थे और हलकी बूंदाबांदी हो रही थी. रात के 10 बज चुके थे. गांव के अधिकांश लोग गहरी नींद में थे. चारों ओर सन्नाटा पसरा था. श्याम नारायण मिश्रा की बेटी रीना को छोड़ कर उन के घर के सभी सदस्य सो गए थे. लेकिन रीना की आंखों से नींद कोसों दूर थी. वह चारपाई पर लेटी बेचैनी से इधरउधर करवटें बदल रही थी.

जब रीना को इत्मीनान हो गया कि घर के सभी लोग सो गए हैं तो वह चारपाई से आहिस्ता से उठी और दबे पांव दरवाजे की कुंडी खोल कर घर के बाहर पहुंच गई. घर के पड़ोस में रहने वाला अक्षय कुमार उर्फ छोटू बाहर खड़ा उस का इंतजार कर रहा था. रीना उस के पास पहुंची तो वह मुसकराते हुए फुसफुसाया, ‘‘आज आने में बड़ी देर कर दी, मैं कब से तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं.’’

रीना ने एकदम उस के करीब आ कर हौले से कहा, ‘‘घर के लोग जाग रहे थे, इसलिए घर से निकल नहीं सकी. सब के सो जाने के बाद आने का मौका मिला’’

‘‘मुझे तो लग रहा था कि आज तुम नहीं आओगी.’’ अक्षय ने रीना का हाथ पकड़ कर कहा.

‘‘ऐसा कैसे हो सकता है अक्षय कि तुम बुलाओ और मैं न आऊं. तुम्हारे लिए तो मैं अपनी जान भी दे सकती हूं.’’ रीना ने अपना सिर अक्षय के सीने पर सटा कर कहा.

‘‘ऐसी बातें मत करो रीना, हमें जिंदा रहना है और अपने प्यार की दास्तान भी लिखनी है.’’ कहते हुए अक्षय ने रीना को अपनी बांहों में कैद कर लिया.

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उत्तर प्रदेश के जिला आजमगढ़ के थाना पवई के अंतर्गत एक गांव है सौदमा पवई. आजमगढ़ जाने वाली सड़क के किनारे बसे इस गांव की आबादी मिलीजुली है. इसी सौदमा गांव में श्याम नारायण मिश्रा अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी सुमन के अलावा 3 बेटे रत्नेश, उमेश, पिंकू तथा एक बेटी रीना थी. श्याम नारायण किसान थे. उन के बेटे खेती के काम में उन की मदद करते थे. श्याम नारायण गांव में श्याम पंडित के नाम से मशहूर थे.

रीना मिश्रा 3 भाइयों के बीच अकेली बहन थी, सब से छोटी भी, इसलिए सभी उसे स्नेह देते थे. रीना ने बचपन का आंगन लांघ कर यौवन की दहलीज पर कदम रख दिया था. उस का रंग तो सांवला था लेकिन आकर्षण गजब का था. उम्र का 16वां साल पार करते ही उस के रूपलावण्य में जो निखार आया, वह देखते ही बनता था.

श्याम नारायण मिश्रा के घर के ठीक सामने उदयराज मिश्रा का मकान था. उदयराज मिश्रा के परिवार में पत्नी किरन के अलावा 2 बेटे अजय कुमार, अक्षय कुमार तथा बेटी गरिमा थी. बेटी की उन्होंने शादी कर दी थी. उदयराज भी किसान थे.

श्याम नारायण मिश्रा और उदयराज के परिवारों में निकटता थी. दोनों परिवार एकदूसरे के सुखदुख में भागीदार रहते थे. परिवार की महिलाओं व बच्चों का बेरोकटोक एकदूसरे के घर आनाजाना था. रीना और अक्षय की उम्र में 4 साल का अंतर था. रीना 17 साल की उम्र पार कर चुकी थी, वहीं अक्षय 22 साल का हो चुका था.

रीना कभी मां के साथ तो कभी अकेले अक्षय के घर जाती थी. वह जब भी अक्षय के घर आती, अक्षय से पढ़ाई से संबंधित बातें कर लेती थी. बातचीत करते दोनों हंसीठिठोली भी करते तथा एकदूसरे को चिढ़ाते भी थे.

रीना और अक्षय दोनों ही युवा थे. इस उम्र में मन कुलांचे भरता है. दिल में किसी की चाहत पाने की तमन्ना होती है अत: दोनों का रुझान एकदूसरे के प्रति हो गया. मन ही मन वे आपस में प्यार करने लगे.

एक दिन बात करतेकरते अक्षय का मन मचला. उस ने रीना का हाथ पकड़ लिया. वह कुछ नहीं बोली. अक्षय अपने स्थान से उठ कर रीना से सट कर बैठ गया. रीना तब भी मुसकराती रही.

अक्षय के हौसले को हवा मिली तो उस ने रीना का चेहरा हथेलियों में ले लिया. विरोध करने के बजाय रीना मुसकराती रही.

अक्षय ने उस के होंठों की ओर होंठ बढ़ाए तो रीना ने हया से नजरें झुका लीं. होंठों से होंठों का मिलाप हुआ तो रोमांचित हो कर रीना ने आंखें बंद कर लीं. अक्षय ने रीना के होंठों से अपने होंठ अलग किए, तो रीना ने आंखें खोलीं. शरारती अंदाज में होंठों पर जीभ फिराई और मुसकराने लगी.

रीना के इस कातिलाना अंदाज पर अक्षय सौसौ जान से न्यौछावर हो गया.

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दोस्ती बदल गई प्यार में

शुरू में अक्षय और रीना के बीच महज दोस्ती थी. लेकिन समय के साथ इस रिश्ते ने कब प्यार का रूप धारण कर लिया, इस का पता न तो अक्षय को लगा और न ही रीना को. दोनों उम्र के उस पड़ाव पर पहुंच चुके थे, जहां महत्त्वाकांक्षाएं हिलोरें मारने लगती हैं. मन में कुछ नया करने की उत्सुकता जाग उठती है. अक्षय को अब रीना सिर्फ दोस्त ही नहीं, बल्कि और भी बहुत कुछ लगने लगी थी. इसलिए वह रीना से बातें करते समय बेहद संजीदा हो जाता था.

रीना भी अक्षय में आए बदलाव से अनभिज्ञ नहीं थी. उस की शोख निगाहें जब अक्षय की निगाहों से टकरातीं तो उस के दिल में गुदगुदी सी होने लगती थी. उस का भी मन चाहता था कि अक्षय इसी तरह प्यार भरी निगाहों से उसे निहारता रहे.

दोनों पर प्यार का ऐसा नशा चढ़ा कि उन्हें एकदूसरे के बिना सब कुछ सूना लगने लगा. दोनों घंटों बैठ कर भविष्य की योजनाएं बनाते रहते. साथ जीनेमरने की कसमें भी खाते.

एक रोज अक्षय को जानकारी मिली कि रीना के मातापिता कहीं रिश्तेदारी में गए हैं और भाई खेत पर काम कर रहा है. उचित मौका देख अक्षय पासपड़ोस के लोगों की नजरों से बचते रीना के घर पहुंच गया.

घर के अंदर पहुंचते ही उस ने मुख्य दरवाजा बंद किया और फिर रीना को अपनी बांहों में जकड़ लिया. रीना कसमसाई और बनावटी विरोध भी किया. लेकिन अक्षय ने उसे मुक्त नहीं किया.

आखिर रीना ने भी शरीर ढीला छोड़ कर उस का साथ देना शुरू कर दिया. इस के बाद उन्होंने अपनी हसरतें पूरी कीं. फिर तो यह सिलसिला चल निकला. मौका मिलते ही दोनों अपनी हसरतें पूरी कर लेते थे.

दोनों रीना और अक्षय ने लाख कोशिश की कि उन के प्रेम संबंधों की भनक किसी को न लगे, लेकिन प्यार की महक को भला कौन रोक पाया. वह तो स्वयं ही फिजा में तैरने लगती है. एक रोज गांव के एक युवक ने शाम के वक्त दोनों को गांव के बाहर बगीचे में हंसीठिठोली करते देख लिया. उस युवक ने यह बात रीना के पिता श्याम नारायण मिश्रा को बता दी.

पिता को उस की बातों पर एक बार को तो विश्वास नहीं हुआ. उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि उन की बेटी कोई ऐसा कदम उठाएगी, जिस के कारण उन का सिर शर्म से झुक जाए. श्याम नारायण ने इस बारे में घर में किसी से कुछ नहीं कहा, लेकिन रीना की निगरानी करने लगे.

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पिता ने पकड़ा रंगेहाथों

एक दिन श्याम नारायण ने खुद रीना को अक्षय से एकांत में मिलते देख लिया. प्रेमी से मिलने के बाद रीना जब घर लौटी तो उन्होंने उसे न केवल जम कर लताड़ा, बल्कि उस की पिटाई भी कर दी. उन्होंने उसे हिदायत दी कि आज के बाद अगर उस ने अक्षय से मिलने की कोशिश की तो उस के लिए अच्छा नहीं होगा.

रीना की मां सुमन ने भी समाज का हवाला दे कर रीना को समझाया, ‘‘बेटी, अक्षय पड़ोसी है. हमारे ही खानदान का है. हम दोनों एक ही गोत्र के हैं. इस नाते तुम दोनों का रिश्ता भाईबहन का है. इसलिए तेरा उस से मेलजोल बढ़ाना ठीक नहीं है.’’

कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

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