एशियाई पैरा गेम्स 2023 में एक ऐसा इतिहास रच गया, जिस की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. एक तो दिव्यांगता उस के बाद ऐसा हौसला और जज्बा कि आप शीतल देवी की पीठ थपथपा दें, वाहवाह कर उठें.
शीतल देवी दोनों हाथों से खेल नहीं सकती हैं, मगर जब वे अपने पैरों और मुंह का हुनर दिखाती हैं, तो लोग हैरान हो जाते हैं. दरअसल, इस प्रतिभा का उदय पहली दफा किश्तवाड़ में भारतीय सेना की एक प्रतियोगिता में हुआ था.
गोल्ड मैडल जीतने वाली शीतल देवी ने सचमुच एक ऐसा इतिहास रच दिया है, जो अब सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा. 16 साल की शीतल देवी ने चीन के हांगझाऊ में हुए एशियाई पैरा खेलों में 2 गोल्ड समेत 3 मैडल जीत कर इतिहास रच दिया. वे एक ही संस्करण में 2 गोल्ड मैडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला भी हैं.
शीतल देवी के पिता एक किसान हैं और मां सामान्य गृहिणी, जो घर में भेड़बकरियों की देखभाल करती हैं. एक साधारण परिवार की इस बेटी का जीवन जन्म से ही संघर्षपूर्ण रहा है.
शीतल देवी के जन्म से ही दोनों हाथ नहीं थे. वे ‘फोकोमेलिया’ नामक बीमारी से पीडि़त हैं. इस बीमारी में अंग पूरी तरह से विकसित नहीं होते हैं. पर अहम बात यह है कि बाजू न होना शीतल देवी के लिए दिव्यांगता का अभिशाप बन नहीं सका. वे बिना दोनों बाजू के सिर्फ छाती के सहारे दांतों और पैरों से तीरंदाजी का अभ्यास करती थीं.
ट्रेनिंग के शुरुआती दिनों में शीतल देवी धनुष तक को नहीं खींच पाती थीं, मगर कोच ने ऐसा धनुष तैयार कराया, ताकि वे पैर से आसानी से धनुष उठा सकें और कंधे से तीर चलाने लगें.
महज 16 साल की उम्र में शीतल देवी ने अपने नाम कई उपलब्धियां दर्ज की हैं. ट्रेनिंग के 6 महीने बाद शीतल देवी ने वह कर दिखाया, जिस का इंतजार सब को था. उन्होंने हरियाणा के सोनीपत में पैरा ओपन नैशनल्स में सिल्वर मैडल हासिल किया.
यही नहीं, साल 2023 की शुरुआत में उन्होंने चैक गणराज्य के पिलसेन में वर्ल्ड कप तीरंदाजी चैंपियन में भी सिल्वर मैडल जीता. वे फाइनल में तुर्की की ओजनूर क्योर से हार गई थीं, लेकिन वर्ल्ड चैंपियनशिप में मैडल जीतने वाली बिना हाथों वाली पहली महिला तीरंदाज बन गई थीं.
एशियाई पैरा गेम्स में शीतल देवी ने 2 गोल्ड और एक सिल्वर मैडल हासिल किया. उन के शानदार प्रदर्शन को देख कर उद्योगपति आनंद महिंद्रा ने उन्हें अपनी कंपनी की कोई भी मनचाही कार लेने की पेशकश की.
शीतल देवी के लिए एक पोस्ट साझा करते हुए आनंद महिंद्रा ने लिखा, ‘मैं अपने जीवन की छोटीमोटी समस्याओं पर शिकायत नहीं करूंगा. शीतल, आप सभी के लिए एक शिक्षक हैं. कृपया हमारी रेंज में से कोई भी कार अपने लिए चुनें और हम इसे आप की सुविधा के अनुसार कस्टमाइज कर आप को तोहफे में देंगे.’
कुलमिला कर शीतल देवी की कहानी किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं लगती है. जो शीतल देवी धनुष नहीं उठा पाती थीं, उन्होंने दाएं पैर से धनुष उठाने का अभ्यास किया और 2 साल की कड़ी मेहनत की बदौलत जीत का परचम लहरा दिया.
साल 2021 में 14 साल की उम्र में बतौर तीरंदाज कैरियर की शुरुआत करने वाली शीतल देवी ने पहली बार किश्तवाड़ में भारतीय सेना की एक युवा प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था. ट्रेनिंग के दौरान उन के लिए एक खास तरह का धनुष तैयार कराया गया, ताकि वे पैर से आसानी से धनुष उठा सकें और कंधे से तीर को खींच सकें.
शीतल देवी के कोच अभिलाषा चौधरी और कुलदीप वेदवान हैं. महज 2 साल की होतेहोते 16 साल की उम्र में शीतल देवी ने अपने नाम कई उपलब्धियां दर्ज की हैं. ट्रेनिंग के 6 महीने बाद उन्होंने वह कर दिखाया, जिस का इंतजार सब को था.
इस से पहले उन्होंने सोनीपत में पैरा ओपन नैशनल्स में सिल्वर मैडल हासिल कर के दिखा दिया था कि वे देश के लिए आगे इतिहास रचने वाली हैं और एक रोल मौडल बनने वाली हैं.