टोनही प्रथा का बन गया “गढ़”

छत्तीसगढ़ की सामाजिक बुराइयों में, सबसे बड़ी चुनौती है यहां की टोनही प्रथा. प्रदेश के गांवों में आज भी अक्सर किसी भी महिला को टोनही कह कर अपमानित करना, उसे नग्न करके गांव में घुमाना और सामूहिक रूप से मार डालना, आम बात है.

आज जब दुनिया विज्ञान और विकास के पथ पर बड़ी तेजी से आगे बढ़ रही है ऐसे में छत्तीसगढ़ की यह वीभत्स सामाजिक बुराई खत्म होने का नाम नहीं ले रही है और ना ही इसके लिए जमीनी स्तर पर प्रयास किया जा रहा है. यही कारण है कि आए दिन महिलाओं के साथ अत्याचार शोषण का यह टोनही प्रथा का खेल  बदस्तूर चल रहा है. इस संदर्भ में जहां सरकार ने एक छोटा सा कानून बना करके अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली है. वही सामाजिक चेतना प्रसारित करने वाले किसी व्यक्ति अथवा संस्था का नाम भी सुनाई नहीं देता. परिणाम यह है कि छत्तीसगढ़ में आए दिन महिलाओं को तंत्र मंत्र करने वाली कह कर प्रताड़ना का दौर बदस्तूर जारी है.

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हाल ही में छत्तीसगढ़ के औद्योगिक नगर कोरबा जिसे एशिया के मानचित्र पर अंकित बताते हुए गर्व किया जाता है में एक मामला चर्चा का विषय बन गया. यहां एक व्यक्ति ने टोनही कह कर एक महिला को खूब प्रताड़ित किया और जब मामला थाने पहुंचा तो पुलिस ने भी मानो हाथ खड़े कर लिए परिणाम स्वरूप उस शख्स को एक तरह से संरक्षण मिल गया. वह पुनः महिला को प्रताड़ित करने लगा. जब मामला सुर्खियों में आया तब पुलिस को होश आया और पुलिस ने उक्त व्यक्ति को ढूंढना शुरू किया. यह एक नजीर हमें बताती है कि किस तरह छत्तीसगढ़ में तंत्र मंत्र के नाम पर महिलाओं के साथ अत्याचार की इंतेहा हो चली है और शासन-प्रशासन कुंभकर्णी नींद में है.

यह है संपूर्ण मामला

अखबारों में  यह समाचार सुर्खियां बना —

“टोनही प्रताड़ना के मामले में फरार आरोपी बैगा राम सजीवन साहू, गिरफ्तार, रिमांड पर जेल दाखिल!”

जिसमें नीचे विस्तृत रूप से बताया गया  सारा संक्षिप्त यह कि-

टोनही प्रताड़ना के मामले में 12 दिनों तक फरारी काट रहे मुख्य बैगा राम सजीवन पिता राम सहाई साहु उम्र 54 वर्ष साकिन फुलसर पुलिस चौकी कोरबी के प्रभारी प्रेमनाथ बघेल के द्वारा लगातार आरोपी को गिरफ्तार करने के लिए दबाव बनाया जा रहा था। महिला को टोनही कह प्रताड़ित करने के आरोपी राम सजीवन के द्वारा अग्रिम जमानत पाने के लिए लगातार न्यायालय में आवेदन की प्रस्तुत किया गया था लेकिन मामले की गंभीरता को देखते हुए न्यायालय ने आवेदन को खारिज कर दिया था.

तत्पश्चात आरोपी ने थक हार कर दिनांक 8 सितंबर मंगलवार को पुलिस चौकी में जाकर आत्मसमर्पण कर दिया.

इस संपूर्ण घटनाक्रम को जानकर आप सहज ही अंदाज लगा सकते हैं कि छत्तीसगढ़ शासन पुलिस प्रशासन किस तरह महिलाओं के अत्याचार के संदर्भ में गंभीर है. गांव में कई तरीके से लोग महिलाओं को टोनही कह कर प्रताड़ित करते जाते हैं और पुलिस में शिकायत होने के बाद भी पुलिस ने गिरफ्तार नहीं करती और वह बड़े ही शान के साथ न्यायालय पहुंच जाते हैं यह तो शुक्र है कि न्यायालय में जमानत नहीं मिली अन्यथा यह घटना कहां जाकर पहुंचती आप अंदाजा लगा सकते हैं.

पुलिस इस संपूर्ण घटनाक्रम में यह बताते हुए बड़ा ही फक्र महसूस करती है और संवाददाताओं को बताती है-

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“इस मामले में पुलिस अधीक्षक अभिषेक मीणा, के निर्देशन एवं एसडीओपी कटघोरा पंकज पटेल के मार्गदर्शन में विधिवत कार्रवाई करते हुए धारा 294, 506, 34 आईपीसी, 4, 5, 6, टोनही प्रताड़ना अधिनियम 2005 के तहत गिरफ्तार कर रिमांड पर जेल दाखिल कराया गया.”

महिलाओं की यही नियति बनी

यहां यह भी आपको बताते चलें कि कोरबा जिला में इसी तरीके के अन्य  तीन प्रकरणों में भी हीला हवाली करती रही और जब पानी सर से गुजरने लगा तब जाकर पुलिस ने कार्रवाई की दरअसल पुलिस उन्हीं मामलों में दिलचस्पी लेती है जिनमें उनके पैसों का खेल होता है अन्य अन्यथा वह यह सब टालती रहती है. मामला जब सुर्ख़ियों में आता है तब पुलिस कार्रवाई करने पर मजबूर हो जाती है यहां भी यही हुआ.

पूर्व के तीन टोनही प्रताड़ना के मुख्य आरोपियों को दिनांक 28 अगस्त 2020 को गिरफ्तार कर रिमांड पर  जेल दाखिल कराया गया.

इस मामले का तथ्य यह है कि   हरिनाथ साहु पिता बंधु साहु, ने स्थानीय पुलिस चौकी में सूचना दर्ज कराई थी कि उसकी पत्नी को उसके दो सगे भाई एवं भतीजे ने मिलकर   टोनही प्रताड़ना का आरोप लगाकर छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले के एक मंदिर में गांव के सरपंच पति एवं एक जनपद सदस्य के कहने पर टोनही होने का सच्चाई जानने एवं देखने के लिए ले जाया गया था. जिसके पश्चात पुलिस के द्वारा  कार्यवाही करते हुए राम लखन, हीरालाल, एवं अजय साहु को गिरफ्तार कर रिमांड पर भेजा गया. छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के वरिष्ठ वकील गणपति पटेल बताते हैं कि यह टोनही प्रथा को रोकने के लिए सरकार द्वारा तो टोनही अधिनियम बनाया गया है मगर इसका परिपालन जिस कठोरता से प्रशासन को कराना  चाहिए नहीं किया जा रहा वहीं सामाजिक कार्यकर्ता डॉ जी.आर. पंजवानी के अनुसार देखा गया है छत्तीसगढ़ के गांव में रूढ़िवादिता हावी है वहीं दुश्मनी, वैमनस्य निकालने के लिए महिलाओं पर तंत्र मंत्र करके काला जादू फैलाने वाली टोनही का आरोप लगा  दिया जाता है.

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भूपेश सरकार का कोरोना काल

छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल सरकार कोरोना अर्थात कोविड-19 को लेकर इतनी मशगूल है कि राजधानी रायपुर से लेकर आम शहरों तक कोरोना को लेकर ऐसे ऐसे मंजर  दिखाई देते हैं की साफ साफ  सवाल किया  जा सकता है कि कोरोना को लेकर सरकार इतनी लचर व्यवस्था  कैसे कर सकती है.

छत्तीसगढ़ में कोरोना को लेकर कोई ठोस रणनीति तैयारी अथवा शासन प्रशासन की गतिविधि नजर नहीं आती. लोगों को मानो भेड़ बकरियों की तरह चरने के लिए छोड़ दिया गया है. कहीं कोई नियम कानून, कायदा दिखाई नहीं देता. यह सारे हालात देखकर  कहा जा सकता है कि भूपेश बघेल सरकार कोरोना  को लेकर ऐसी ऐसी गलतियां कर रही है जो आने वाले समय में जनजीवन पर भारी पड़ सकती हैं. हालांकि छत्तीसगढ़ में कोरोना बेहद काबू में है .मगर जैसी परिस्थितियां निर्मित हुई है, उससे यह अभी भी विस्फोटक रूप ले सकती है. आज जब दुनिया में कोरोना को लेकर हाहाकार मचा हुआ है.हम अपने देश में ही देख रहे हैं कि दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात में किस तरह स्थिति बेकाबू हुई जा रही है. विश्व स्वास्थ्य संगठन असहाय हो चुका है. ऐसे में इस भीषण संक्रमणकारी बीमारी को छत्तीसगढ़ में जिस सहजता  से लिया जा रहा है वह बेहद चिंताजनक है. इस  रिपोर्ट में छत्तीसगढ़ की जमीनी हकीकत बयां की जा रही है-

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अपने गाल बजाती भूपेश  सरकार!

भूपेश बघेल सरकार निसंदेह प्रारंभिक समय काल में कोरोना को लेकर बेहद अलर्ट थी. शासन प्रशासन चुस्त-दुरुस्त था ऐसा प्रतीत होता था कि इस भयंकर महामारी को बहुत ही गंभीरता से लिया जा रहा है. उस समय काल में सरकार की चहुँ ओर  हो प्रशंसा हो रही थी मीडिया में भी यह संदेश प्रमुख था कि छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार कोविड-19 को लेकर बेहद गंभीर है और सफलता की और आगे बढ़ रही है मगर जैसे-जैसे समय व्यतीत होगा चला गया कोरोना को लेकर के भूपेश बघेल सरकार के हाथ-पांव ठंडे पड़ने लगे. सरकार ने भी बड़ी गंभीरता के साथ गांव और शहरों को लाक डाउन करने में पूरी ताकत झोंक दी और यह स्थिति की सरकार की बिना इजाजत के  कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता था.

उस समय काल में छत्तीसगढ़ में कोरोना काबू में था.इसी दरमियान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने केंद्र सरकार से कोरोना को लेकर के बड़ा पैकेज मांगा या यह 30,000 करोड़ रुपए का था. सरकार लोगों के हित में खड़ी दिखाई दे रही थी मगर छत्तीसगढ़ में साहब गुटका तंबाकू, गुड़ाखू जैसी प्रतिबंधित चीजें हवाओं में उड़ रही थी और उन्हें रोकने वाला कोई नहीं था ऐसा प्रतीत होता था कि मानो छत्तीसगढ़ में सरकार नाम की कोई चिड़िया है ही नहीं. इस दरमियान एक तरफ सरकार अपने गाल बजा रही थी दूसरी तरफ ब्लैक मार्केटिंये और ऐसी महामारियो का लाभ उठाने वाले लोग लाखों-करोड़ों रुपये से अपनी थैलियां भर रहे  थे. जिन पर सरकार का कोई अंकुश नहीं था हां छोटी-छोटी दुकानों के चालान कर रहे थे मगर तब तक वे लाखों रुपए कमा चुके थे.

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कहां है कोरोना विषाणु !

छत्तीसगढ़ में इन दिनों कोरोना कोविड-19 को लेकर सारे दरवाजे खुल चुके हैं .कहीं कोई नियम कानून का पालन नहीं हो रहा है. कोरोना महामारी से जो सबक सरकार को लेने चाहिए सरकार उन्हें नहीं लेना चाहती. और फिर वही ढर्रा शुरू हो गया है जो कोरोना काल के पूर्व था.

छत्तीसगढ़ जैसे पूर्व में था वैसा ही सब कुछ चल रहा है. जबकि पंद्रह  वर्षों बाद भाजपा से मुक्त होकर प्रदेश को एक नया नेतृत्व मिला है. कांग्रेस डेढ़ दशक तक विपक्ष में थी और संघर्ष करती रही मगर ऐसा लगता है कि सत्ता में आने के बाद भाजपा का या कहें सत्ता का रंग कांग्रेस पर भी चढ़ चुका है.  यही कारण है कि इस महामारी का कोई भी सबक कोई भी समीक्षा करके मूलभूत बदलाव सरकार ने शासन प्रशासन की व्यवस्था में करने का कोई प्रयास नहीं किया है शहर की गलियां हो या गांव की आज भी गंदगी के ढेर हैं. जहां से फिर कोई संक्रमण कारी बीमारी फूट  सकती है. महामारी के समय में भी करोड़ों रुपए का गोलमाल होता स्पष्ट दिखाई दिया. शासन-प्रशासन ऐसा है हो गया था लोगों को कोई भी राहत देने का काम छत्तीसगढ़ सरकार करते हुए दिखाई नहीं दी. जो भी प्रयास हुए वह भी “थोथा चना बाजे घना” वाली स्थिति में था. सरकार ने पूरे छत्तीसगढ़ को खोल दिया है कोई भी कहीं भी आ जा सकता है.सोशल डिस्टेंसिंग समाप्त हो चुकी है, फिजिकल डिस्ट्रेसिंग कहीं दिखाई नहीं देती. सड़क के दुकाने, बाजार मे सब कुछ पूर्ववत हो चला है. ऐसे में सवाल यह है कि अगरचे आगे कोरोना का विस्फोट हुआ तो छत्तीसगढ़ सरकार इसे कैसे रोक पाएगी?

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लोकवाणी: भूपेश चले रमन के पथ पर!

छत्तीसगढ़ में 15 वर्षों की डॉक्टर रमन सिंह, भाजपा सरकार के पश्चात कांग्रेस की भूपेश सरकार सत्तासीन हुई है. मगर कुछ फिजूल बेकार के मसले ऐसे हैं जिन पर भूपेश बघेल चाह कर भी  नकार नहीं पा रहे. अगर वह लीक तोड़कर नया काम करते हैं तो पता चलता कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल छत्तीसगढ़ को नई दिशा दे सकते हैं, उनमें नई ऊर्जा है, कुछ नया करने का ताब है.

इसमें सबसे महत्वपूर्ण है डॉ रमन सिंह का रेडियो और आकाशवाणी से प्रतिमाह छत्तीसगढ़ की आवाम को संदेश देना और बातचीत करना. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी डॉ रमन सिंह की तर्ज पर “लोकवाणी” कार्यक्रम के माध्यम से आवाम से बात करते हैं जो सीधे-सीधे डॉ रमन सिंह की नकल के अलावा कुछ भी नहीं है.

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क्या यह अच्छा नहीं होता कि भूपेश बघेल और तरीका आम जनता से बातचीत करने के लिए  ईजाद करते. क्योंकि लोकवाणी का यह कार्यक्रम पूरी तरह फ्लाप और बेतुका  है. इसकी सच्चाई को जानना हो तो जिस दिन लोकवाणी का कार्यक्रम प्रसारित होता है उसे ग्राउंड पर जाकर, आप अपनी आंखों से देख लें . यह पूरी तरह से एक सरकारी आयोजन बन चुका है शासकीय पैसे पर, जिले के चुनिंदा जगहों पर व्यवस्था करके लोग सुनते हैं. आम आदमी का इससे कोई सरोकार दिखाई नहीं देता.

भूपेश बघेल की ‘लोकवाणी’!

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की मासिक रेडियो वार्ता लोकवाणी की पांचवी कड़ी का प्रसारण  आगामी 8 दिसम्बर, रविवार को होगा. व्यवस्था यह बनाई गई है कि लोकवाणी का प्रसारण छत्तीसगढ़ स्थित आकाशवाणी के सभी केन्द्रों, एफ.एम.चैनलों और राज्य के क्षेत्रीय न्यूज चैनलों से सुबह 10.30 से 10.55 बजे तक हो.

जिस तरह डॉ रमन सिंह के  समय में  सरकारी अमला  जनसंपर्क,  संवाद  प्रचार प्रसार करता था,  वैसा ही  नकल पुन:भदेस रुप, ढंग से  अभी किया जा रहा है.  कहा जा रहा है “-उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने समाज के हर वर्ग की भावनाओं, सवालों, और सुझावों से अवगत होने तथा अपने विचार साझा करने के लिए लोकवाणी रेडियोवार्ता शुरू की है.”

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लोकवाणी में इस बार का विषय ‘आदिवासी विकास: हमारी आस‘ रखा गया है. अच्छा होता लोकवाणी के नाम पर जो पैसा समय बर्बादी हो रही है और हाथ कुछ नहीं आ रहा, उससे अच्छा होता भूपेश बघेल अचानक कहीं पहुंच जाते और आम जन से चुपचाप बात कर निकल जाते!ऐसे मे उन्हें पता चल जाता कि जमीनी हकीकत क्या है. किसान, गरीब, मजदूर और मध्यमवर्ग का आदमी उनसे क्या कहना चाहता है उसे समझ कर  और बेहतरीन तरीके से छत्तीसगढ़ को आगे ले जा सकते हैं.

श्रेष्ठतम सलाहकार कहां है?

भूपेश बघेल ने मुख्यमंत्री शपथ लेने के पश्चात जो पहला काम किया था उनमें उनके संघर्ष के समय के सहयोगी  पत्रकार  विनोद वर्मा, रुचिर गर्ग  जैसे बुद्धिजीवी वर्ग के लोगों को “मुख्यमंत्री का सलाहकार” नियुक्त करना था. इस सब के बाद ऐसा महसूस हुआ था कि डॉक्टर रमन सरकार की अपेक्षा भूपेश सरकार जमीन से ज्यादा जुड़ी होगी.

आम आदमी के जीवन संघर्ष, त्रासदी को भूपेश बघेल की सरकार संवेदनशीलता के साथ समझेगी और दूर करेंगी. जिस की सबसे पहली पहल किसानों के कर्ज माफी और 25 सौ रुपए क्विंटल धान खरीदी को लेकर की भी गई. मगर इसके पश्चात और इसके परिदृश्य में देखा जाए तो छत्तीसगढ़ के हालात अच्छे नहीं हैं, इस संवाददाता ने छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिला के कृषि मंडी के कुछ किसानों से बात की, किसानों ने बताया कि” हालात ऐसे हैं कि जबरा मारता है और रोने भी नहीं देता” जैसे हालात छत्तीसगढ़ में किसानों के साथ  बन चुके हैं.

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जो धान पहले पंद्रह सौ 1600 रुपये कुंटल  में गांव में बिक जाता था अब पुलिसिया प्रशासनिक एक्शन के कारण कोई खरीदने को तैयार नहीं है . यह हालात देखकर लगता है कहां है मुख्यमंत्री महोदय के सलाहकार, कहां है अभी एक डेढ़ वर्ष पूर्व  के संघर्षकारी भूपेश बघेल, टी एस सिंह देव और उनकी टीम.

हरेली त्योहार: मुख्यमंत्री की राजनीति या सच्ची श्रद्धा!

यह आरोप लगाकर कर भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ के पारंपरिक सांस्कृतिक तिहार हरेली को राजकीय तौर पर मनाने का ऐलान बहुत पहले कर दिया था. आज छत्तीसगढ़ के 27 जिलों में विधायक,मंत्री, वीवीआईपी के आतिथ्य में “हरेली” त्यौहार मनाया जा रहा है. छत्तीसगढ़ की संस्कृति के नाम पर यह त्यौहार शासकीय मंच और पैसों से मनाया जाना कितना उचित है यह आप स्वयं अनुमान लगा सकते हैं. मगर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल आज स्वयं आज बिलासपुर जिला के तखतपुर विकासखंड के ग्राम नेवरा पहुंचे और यहां हरेली त्यौहार में शिरकत कर रहे हैं .उन्होंने 26 गोठान का उद्घाटन करके हरेली त्यौहार का आगाज किया . भूपेश सरकार ने आज हरेली त्यौहार पर शासकीय छुट्टी घोषित कर दी है. वही भूपेश बघेल के प्रखर विरोधी अजीत जोगी के सुपुत्र अमित जोगी ने आज हरेली पर्व पर सभी जिला मुख्यालयों में भूपेश बघेल के खिलाफ आंदोलन प्रदर्शन प्रारंभ किया हुआ है.

कैसे मनाया जाता है हरेली त्यौहार

किसानों का यह त्यौहार औज़ार पूजा से शुरू होता है. किसान आज कोई काम पर नहीं करते, घर पर ही खेत के औजार व उपकरण जैसे नांगर, गैंती, कुदाली, रापा इत्यादि की साफ-सफाई कर पूजा करते हैं. यहीं नहीं बैलों व गायों की भी आज के शुभ दिन पर पूजा की जाती है. त्यौहार में सुबह घरों के प्रवेश द्वार पर नीम की पत्तियाँ व चौखट में कील लगाई जाती है.ऐसा माना जाता है कि द्वार पर नीम की पत्तियाँ व कील लगाने से घर में रहने वाले लोगो की
तंत्र मंत्र भूत प्रेत से रक्षा होती हैं . ग्रामीण अपने कुल देवताओं का भी विशेष पूजन करते है. छत्तीसगढ़ी समाज के विशेष पकवान जैसे गुड़ और चावल का चिला बनाकर मंदिरों में चढ़ाया जाता है. दरअसल प्रकृति और
पर्यावरण को समर्पित यह त्यौहार छत्तीसगढ़ी लोगों का प्रकृति के प्रति प्रेम और समर्पण दर्शाता है. सावन मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाने वाला यह त्यौहार पूर्णतः हरियाली का पर्व है.
छत्तीसगढ़ी संस्कृति का पर्व ‘हरेली अमावस्या’ की धूम इस बार राजधानी समेत प्रदेशभर के जिला मुख्यालयों मे है .राज्य सरकार के निर्देश पर पहली बार संस्कृति विभाग द्वारा पर्व को धूमधाम से सेलिब्रेट किया जा रहा है. सुबह से लेकर रात तक छत्तीसगढ़ी लोक नृत्यों के साथ छत्तीसगढ़ व्यंजनों का भी बंदोबस्त किया गया है. सुबह मुख्यमंत्री भूपेश बघेल हरेली जोहार यात्रा निकाली .
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने रायपुर निवास से बैलगाड़ी पर सवार होकर गांधी उद्यान होते हुए संस्कृति विभाग के मुक्ताकाशी मंच पर पहुंचकर कार्यक्रम का शुभारंभ किया . यहां ‘छत्तीसगढ़ महतारी’ की जीवंत झांकी बनाई गई है . 500 लोक नर्तक कलाकारों द्वारा पारंपरिक वेशभूषा में वाद्ययंत्रों एवं साज-सज्जा के साथ छत्तीसगढ़ी व्यंजन, गेड़ी नृत्य, करमा नृत्य, सुआ नृत्य, राउत नाचा नृत्य, पंथी नृत्य, गौरा-गौरी, अखाड़ा, गतका दल की आकर्षक प्रस्तुति दी गई.

हरेली के साथ तंत्र मंत्र अंधविश्वास भी !

सदियों से हरेली पर्व को लेकर अंधविश्वास फैला हुआ है. आज भी गांवों में ग्रामीण मानते हैं कि इस दिन तंत्र मंत्र ,जादू, टोना करने वाले सक्रिय रहते हैं. अपने बच्चों को ऐसे लोगों की बुरी नजर से बचाने के लिए ग्रामीण घर के मुख्य द्वार पर नीम पत्तों की टहनी लगाते हैं. साथ ही दीवार पर गोबर से पुतला-पुतली का चित्र भी बनाते हैं. आज से
तंत्र विद्या की शुरुआत होती है. वरिष्ठ पत्रकार रामाधार देवांगन बताते हैं, श्रावण कृष्ण पक्ष की अमावस्या यानी हरेली के दिन से तंत्र विद्या की शिक्षा देने की शुरुआत होती है. आज के दिन से प्रदेश में लोकहित की दृष्टि से जिज्ञासु शिष्यों को पीलिया, सांप बिच्छू का विष उतारने, नजर से बचाने, महामारी और बाहरी हवा से बचाने समेत कई तरह की समस्याओं से बचाने के लिए मंत्र सिखाया जाता है.तंत्र दीक्षा देने का यह सिलसिला भाद्र शुक्ल पंचमी तक चलता है.

125 साल बाद आया अवसर!!

यह प्रचार भी सुर्खियों में है की आज का दिन अति विशिष्ट है. जन्म से ब्राह्मण,लेकिन कर्म से एक शासकीय सेवक रहे लव कुमार शर्मा कहते हैं हिंदू संवत्सर के सावन माह मे मनाया जाने वाला हरेली पर्व आज कुछ विशेष रूप से श्रद्धा-उल्लास से मनाया जा रहा है इसके पीछे अंधविश्वास और रुपए ऐंठने के पराक्रम के अलावा कुछ भी नहीं है . यह भी महत्वपूर्ण है कि
हिंदू पंडित एवं कैलेंडर के अनुसार अबकि हरेली पर्व पर पंच महायोग का संयोग बना है.यह संयोग लगभग 125 साल बाद आया है. और कहा जा रहा है कि पंच महायोग के संयोग में कुल देवी-देवता तथा मां पार्वती की पूजा करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. वस्तुतः यह सीधे सीधे अवाम को पोंगापंथी बनाने जैसा है । कहा जा रहा है आज पांच महासंयोग,सिद्धि योग, शुभ योग,गुरु कुस्या मृत योग,
सर्वार्थ सिद्धि योग ,अमृत सिद्धि योग .हरियाली अमावस्या पर इस बार गुरुपुष्य नक्षत्र के साथ अमृतसिद्धि व सर्वार्थसिद्धि योग का विलक्षण संयोग है. यह प्रचारित करके, भरमा कर अंचल के सीधे सरल,भोले-भाले लोगों को बेवकूफ बनाना और पैसे ऐंठना लोगों का पेशा है. उनको भरमा कर कहा जाता है कि भाइयों और बहनों!
सालों बाद दिव्य संयोग आने वाली अमावस्या पर पितृ कर्म व पौधारोपण करना श्रेष्ठ है.आज हरियाली अमावस्या पर 6 घंटे तक पुष्य नक्षत्र का योग रहेगा!! इसलिए आओ और अंधविश्वास में रम जाओ. बहुतेरे लोग इस फरेब में आ भी जाते हैं और अधिसंख्य लोग इस धंधे बाजी को समझते हैं और पंडित पुरोहितों के संजाल में नहीं फंसते.

बोल्ड सीन से नहीं डरती छत्तीसगढ़ी फिल्मों की ये हीरोइन

पांच दशक पूर्व कही देबो संदेश छत्तीसगढ़ की पहली मूवी थी . जिसे आज भी लोग देखना पसंद करते हैं. यह एक सफल हिंदी मूवी थी. छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के दरमियान सन ‘2000 मे मोर छइयां भुइयां फिल्म रिलीज हुई और एक तरह से सारे रिकार्ड तोड़ डाले . हिंदी फिल्मे भी फीकी पड़ गई, तब से अब तक छत्तीसगढ़ की महानदी में बहुत पानी बह गया, मगर फिल्मो मे मानीखेज उठाव देखने को नहीं मिला. बीस वर्षों में लगभग 50- फिल्में रिलीज हुई मगर यह सब बौक्स औफिस पर कमाल नहीं दिखा सकी . इधर मध्यप्रदेश के जबलपुर से तनु प्रधान दो वर्षों से छत्तीसगढ़ की चार फिल्मों में एक्ट्रेस  की भूमिका सफलतापूर्वक निभा चुकी है छत्तीसगढ़ की यह उभरती तारिका मूलतः जबलपुर अर्थात मध्य प्रांत की है. मगर छत्तीसगढ़ की धरा पर उन्होंने प्रेम दिवानी, दहाड़, दिल है तोर दीवाना, हमर हीरो नंदू भाई मे काम करके अपनी पहचान बनाने में कामयाब हुई  है. प्रस्तुत है शूटिंग के दरम्यान हमारे सवांददाता की तनु से छोटी सी बातचीत .

सवाल- तनु, मध्यप्रदेश के जबलपुर से छत्तीसगढ़ कैसे आ गई….

मैं जबलपुर की रहने वाली हूं एक तरह से भाग्य कहूं या फिल्मो में अभिनय का आकर्षण मै छत्तीसगढ़ी फिल्म मे एक्ट्रेस बतोर काम कर रही हूं.

सवाल- फिल्म दिल है तोर दीवाना के संदर्भ में कुछ बताएं?

फिल्म लव बेस है. मगर पटकथा मे परिवारिक पृष्टभूमि को संजोया गया है. फिल्ममें मेरे  अपोजिट  सागर भारद्वाज हैं.(हंसते हुए) अभी  इतना काफी है और हां निर्देशक आरसी भारद्वाज हैं.

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सवाल- दिल है तो दीवाने फिल्म की शूटिंग कंप्लीट हो गई है कब रिलीज होगी?

जवाब- दिल है तोर दीवाना की शूटिंग पूरी हो गई है इसी माह जुलाई में यह छत्तीसगढ़ के सिनेमा में आपको देखने को मिलेगी .

सवाल- आप मध्य भारत की हैं और छत्तीसगढ़ की फिल्मों में काम कर रही हैं, आपको बहुत  दिक्कत आती होगी?

जवाब- नहीं,  मुझे कोई दिक्कत नहीं.  मेरा मानना है  अगर आपको जुनून है तो आप हर चैलेंज को पार पा जाते हैं शायद यही चैलेंजिंग भावना के कारण मैंने फिल्मों में काम करके दिखा दिया है . शुरू में दिक्कतें भी आई अब तो बिल्कुल नहीं ….

सवाल- आपने मौडलिंग भी की है फिल्म और मॉडलिंग दोनों में क्या अंतर है?

जवाब- मौडलिंग मेरा पहला शौक था यह एक सीढ़ी है मौडलिंग से पहचान की और फिल्मों में काम मिला और मैं यही चाहती थी .

सवाल- आपकी पसंदीदा एक्ट्रेस कौन है?

जवाब- तमन्ना भाटिया (बाहुबली फ्रेम) मैं उनकी फैन हूं उन का हेयर स्टाइल उनका अभिनय मेरी आत्मा में बस गया है . देखिए मैं अभी भी उनकी हेयर स्टाइल अपनाए हुए हूं….

सवाल- प्रेम दीवाना प्रदर्शित हो चुकी है इसकी कामयाबी से आप कितनी खुश है?

जवाब- सचमुच मैं बहुत खुश हूं  जैसी आशा थी वैसा प्रतिसाद मिला है. यह रोमांटिक फिल्म है डीएस प्रोडक्शन व त्रिवेदी वीडियो ड्रामा फिल्म प्रोडक्शन की  एक पारिवारिक फिल्म और खास बात  मैं आपको बताऊं की यह छत्तीसगढ़ के रायगढ़ और चांपा जांजगीर जिले के कुछ जगहो पर इसकी शूटिंग हुई थी.

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सवाल- प्रेम दीवाना का कुछ और परिचय?

जवाब- जैसा कि सभी जानते हैं इसके हीरो विवेक साहू हैं अन्य कलाकार कन्हैया पटनिया है गीत तुलसी राज चौहान व सीमा दिवाकर के हैं निश्चित रूप से यह फिल्म  आगे भी एक मील का पत्थर बनेगी .

सवाल- फिल्म दुनिया की ओर आपका आकर्षण कैसे पैदा हुआ?

जवाब- जब मैं ने होश संभाला और कुछ फिल्में देखी तो मुझे लगा मैं फिल्मों के लिए ही बनी हूं और देखिए आज हिंदी और छत्तीसगढ़ी फिल्में कर रही हूं  .

सवाल- आज फिल्मों में बोल्ड सीन की मांग है….

जवाब- मैं बोल्ड सीन से नहीं डरती. अगर फिल्म की मांग है, निर्देशक का आदेश सर्वमान्य है. मगर मैं अपनी कहूं तो मुझे छोटे कपड़े पसंद नहीं है. सादगी में ही सुंदरता है आगे दर्शकों की जैसी मांग होगी….

सवाल- क्या कभी ऐसा भी कोई समय आया है जब बोल्ड सीन किया या करने से घबड़ा गई?

जवाब- देखिए छत्तीसगढ़ की फिल्म इंडस्ट्री अभी जवां नहीं हुई है. यह अभी प्रारंभिक अवस्था में है और निदेशक सुलझे हुए हैं .

सवाल- छत्तीसगढ़ी फिल्म इंडस्ट्री छलीवुड का क्या भविष्य लगता है आपको?

जवाब- बौलीवुड तो है मगर छालीवुड भी अब पीछे नहीं है मुझे लगता है यह इंडस्ट्री बहुत आगे जाएगी फ्यूचर दिखाई दे रहा है मुझे . छत्तीसगढ़ी फिल्म इंडस्ट्री की अहमियत कम नहीं है, ऐसा मुझे  लगता है.

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सवाल- सहकर्मियों का व्यवहार कैसा लगा आप जबलपुर से यहां आई हैं?

जवाब- सच कहूं तो मुझे अहसास ही नहीं हुआ मैं सोचती थी मैं कैसे काम कर पाऊंगी मगर निर्देशक सह कलाकारों ने बहुत साथ दिया .

सवाल- कहते हैं फिल्मों में हीरोइन को कुछ करने के लिए नहीं होता शोपीस होती है?

जवाब- मैं कहूंगी मैं ने जो काम किया है, वह दर्शकों को बहुत पसंद आया है मैं आगे भी अच्छा काम कर पहचान बना रही हूं. मुझे निर्देशक  शेखर चौहान ने मौका दिया मेरे टैलेंट को पहचाना,  मैं उन्हें शुक्रिया करना चाहूंगी.

अजीत जोगी का “भाग्य” उन्हें कहां ले आया ?

मगर कभी सत्ता के शीर्ष पर रहे अजीत जोगी ने जनता कांग्रेस पार्टी क्या बनाई उनका भाग्य उन्हें कहां से कहां ले आया. अगरचे वे कांग्रेस नहीं छोड़ते और शांत भाव से आलाकमान के अनुशासन में होते तो नि:संदेह उनकी जगह छत्तीसगढ़ में कोई मुख्यमंत्री नहीं बन सकता था.

अजीत जोगी ने विधानसभा समर के दो वर्ष पूर्व जो राजनीतिक गोटियां बिछाई उनमें उनके दोनों हाथों में लड्डू की स्थिति बन सकती थी. मगर अजीत जोगी का भाग्य इस करवट बैठेगा इसका अनुमान राजनीति के महा पंडितो को भी नहीं था.
अजीत जोगी ने अपनी पार्टी बनाई और छत्तीसगढ़ में धूम मचा दी उन्हे सुनने हजारों की भीड़ आती थी. यह सच है कि ऐसी भीड़ न कांग्रेस के नेताओं को सुनने आती थी ना ही भाजपा के नेताओं को . राहुल गांधी की विशाल सभा बिलासपुर के पेंड्रा के कोटमी में रखी गई थी अजीत जोगी ने इसे उनके घर में सेंध मान चुनौती दी और बीस किलोमीटर की दूरी पर उसी दिन अपनी सभा का आयोजन कियाऔर दिखा दिया कि उनकी सभा में भी हजारों लोग जुटते हैं और जूटे भी. मगर उस दिन राहुल के मन की फांस और बढ़ गई.

अजीत जोगी का दांव

अजीत प्रमोद कुमार जोगी ने दांव खेला था . उन्होंने कांग्रेस और भाजपा दोनों के समकक्ष एक तीसरी पार्टी का गठन करके दोनों को चुनौती देनी शुरू कर दी थी . हालात ऐसे थे कि अजीत जोगी जब किसी मुद्दे पर आंदोलन का शंखनाद करते तो दूसरे दिन कांग्रेसी अपना बोरिया बिस्तर लेकर उसी आंदोलन को करने लगते . यह अद्भुत किंतु राजनीतिक सच था कि कांग्रेस और भाजपा दोनों को दो वर्षों तक अजीत जोगी ने अपने पीछे पीछे खुब दौड़ाया और एक तरह से राजनीतिक हलाहल पैदा कर दिया . राजनीतिक हलचल उत्पन्न कर दिया.

यह माने जाने लगा की अबकी चुनाव में अजीत जोगी को नकारा नहीं जा सकता . भाजपा को कुछ सीटे कम मिली तो और कांग्रेस को कुछ सीटें कम मिली तो दोनों स्थितियों में अजीत जोगी के हाथ सत्ता की रास होगी और हो सकता है मुख्यमंत्री भी बन जाए . मगर हा… भाग्य ! ऐसा नहीं हो सका क्यों नीचे पढ़ें-

अजीत जोगी का कलेजा !

यह सच है विरोधी भी स्वीकार करते हैं कि छतीसगढ़ के इस राजनीतिक हस्ती का कलेजा बहुत बड़ा है . राजनीतिक सोच, चिंतन, व्यक्तित्व और कृतित्व विशालतम है . प्रदेश मेंआपके समक्ष कोई टिक नहीं सकता था . जैसी सोच कार्यप्राणी है वह अनुपम है प्रदेश हितकारी रही है .

अजीत जोगी जन जन के नेता हैं . आम आदमी उनसे अपनी छवि,ताकत देखता है . और अजीत जोगी इस ताकत इस शक्ति के बूते काम करते रहे . कांग्रेस में लगभग तीन दशकों तक उन्होंने अनेक पदो पर रहते हुए दिखा दिया कि अजीत जोगी का कोई पर्याय नहीं हो सकता . यही कारण है इस माद्दे के बूते उन्होंने अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जैसी अपनी मातृ पार्टी को चुनौती देनी शुरू कर दी . क्योंकि वे सच जानते थे कि छत्तीसगढ़ में राजनीतिक नेतृत्व देने की ताकत किसी भी दीगर कांग्रेस शख्स के पास नहीं है . कांग्रेस उन्हीं से प्रारंभ होती है और उन्हीं तक आकर खत्म होती है . उन्होंने बड़े साहस के साथ स्वयं होकर पार्टी को छोड़ा ऐसा इतिहास में शायद कभी नहीं हुआ है .

जो नहीं सोचा, वह हो गया …

छत्तीसगढ़ में अजीत प्रमोद कुमार जोगी और राजनीतिक दिग्गजों ने जो नहीं सोचा था वह घटित हो गया . कांग्रेस को 68 सीटें मिल गई जो ऐतिहासिक विजय थी. इसकी परिकल्पना स्वयं कांग्रेस ने भी नहीं की थी . डॉ रमन और उनकी पार्टी भाजपा के हाथों के तो मानो तोते ही उड़ गए . और अजीत जोगी की प्रक्कलना धरी की धरी रह गई . नरेंद्र मोदी की शैली और डॉक्टर रमन सिंह का शिकंजा दोनों विधानसभा चुनाव मे ध्वस्त हो गए .अन्यथा अजीत जोगी आज ही महानायक होते और राजनीति की क, ख, ग, उनके सागौन बंगले से शुरू होती .
दरअसल उन्होंने कुछ गंभीर गलतियां की . अजीत जोगी के पार्टी के विधायक और कभी कांग्रेस से विधानसभा के उपाध्यक्ष रहे धर्मजीत सिंह कहते हैं अगरचे साहब साफ स्वच्छ छवि के लोगों को तरजीह देते, केजरीवाल पैटर्न को अपनाकर नए जुझारू लोगों को टिकट देते तो स्थिति बदल सकती थी . वही उनके सिपहसालार विनोद शुक्ला कहते हैं साहब मैं कुछ अच्छाइयां है तो कुछ खामियां भी आप अपने मुंह लगे लोगों को छोड़ नहीं पाए .
जो भी हो समय बदल गया- समय मुट्ठी से रिसकर निकल गया और राजनीति का महानायक समय को शायद समझ नहीं सका.

मास्टर स्ट्रोक दांव धरा रह गया…

अजीत जोगी ने मायावती के साथ हाथ मिलाकर अपनी पार्टी खड़ी करने मास्टर स्ट्रोक खेला था. क्योंकि आज हिंदुस्तान की राजनीति में दो दलिय दलों का ही बोल बाला है. आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल दलित हर जगह ऐसे में छत्तीसगढ़ में यह प्रयोग अभिनव था और साहस पूर्ण भी .
आज विधानसभा समर में पराजय के पश्चात अजीत जोगी मानो विषाद में चले गए हैं . जैसे तेवर चुनाव पूर्व होते थे राजनीति पर बयान और सक्रियता वह शांत पड़ गई है .

उन्होंने पार्टी अध्यक्ष पद अपने युवा पुत्र अमित ऐश्वर्य जोगी को सौंप दिया है . और अमित जोगी ने एक तरह से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नाक मे दम कर रखा है .

अजीत जोगी निर्णय लेने में कभी देरी नहीं करते . राजनीति के नब्ज पर उनका हाथ कल भी था और आज भी है . आप एक ऐसी विभूति हैं जो जहां खड़ी हो जाती है लाइन वहीं से लगती है . छत्तीसगढ़ की यह अनुपम बेजोड़ शख्सियत अब आने वाले दिनों में नगरीय निकाय के चुनाव में कांग्रेस और भाजपा दोनों के छक्के छुड़ाने की रणनीति में लगी हुई है….

अजीत-माया गठबंधन: अगर “हम साथ साथ” होते!

छत्तीसगढ़ में तीसरे मोर्चे के रूप में उभर कर राज्य की सत्ता पर काबिज होने का ख्वाब प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत प्रमोद कुमार जोगी का टूट कर बिखर चुका है . प्रदेश की राजनीति को अपनी उंगलियों पर कठपुतली की भांति नचाने का गुरूर अजीत जोगी की आंखों में, बौडी लैंग्वेज में अब दिखाई नहीं देता…इन दिनों आप प्रदेश की राजनीति मैं हाशिए पर है .

मगर जब अजीत प्रमोद कुमार जोगी ने छत्तीसगढ़ में कांग्रेस आलाकमान के सामने खम ठोंक कर जनता कांग्रेस ( जे ) का गठन किया था तब उनके पंख आकाश की ऊंचाई को छूने बेताब थे . यही कारण है कि अजीत जोगी के विशाल कद को देखकर बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती ने उनसे हाथ मिलाया और कांग्रेस के खिलाफ दोनों ने मिलकर छत्तीसगढ़ में अपनी अलग जमीन तैयार करने की कोशिश की जो असफल हो गई . अजीत जोगी के सामने 2018 का विधानसभा चुनाव नई आशा की किरणों को लेकर आया था . राजनीतिक प्रेक्षक यह मानने से गुरेज नहीं करते की अजीत जोगी जहां से खड़े हो जाते हैं लाइन वहीं से प्रारंभ होती है . मगर विधानसभा चुनाव के परिणामों ने अजीत जोगी और मायावती दोनों पर मानो “पाला” गिरा दिया. दोनों चुनाव परिणाम से सन्न, भौचक रह गए और अंततः यह गठबंधन आज टूट कर बिखर गया है .

अजीत जोगी : अकेले हम अकेले तुम
विधानसभा चुनाव के परिणाम के पश्चात अजीत जोगी और मायावती की राह जुदा हो गई . यह तो होना ही था क्योंकि अजीत जोगी और मायावती दोनों ही अति महत्वाकांक्षी राजनीतिज्ञ हैं . साथ ही जमीन पर पुख्ताई से पांव रखकर आगे बढ़ने वाले राजनेता भी माने जाते हैं. विधानसभा चुनाव में इलेक्शन गेम में अजीत जोगी ने कोई कमी नहीं की थी. यह आज विरोधी भी मानते हैं उन्होंने अपने फ्रंट को तीसरी ताकत बनाया उन्होंने जनता के नब्ज पर हाथ भी रखा था . संपूर्ण कयास यही लगाए जा रहे थे कि अजीत जोगी के बगैर छत्तीसगढ़ में राजनीतिक हवाओं में पत्ते भी नहीं हिलेंगे.
अगर कांग्रेस को दो चार सीटें कम पड़े तो अजीत जोगी साथ देंगे अगर भाजपा को दो चार सीटे कम मिली तो अजीत जोगी कठिन डगर में साथ देंने हाजिर हो जाएंगे . मगर प्रारब्ध किसको पता है ? छत्तीसगढ़ में अनुमानों को तोड़ते ढहाते हुए छत्तीसगढ़ की आवाम ने कांग्रेस को ऐतिहासिक 68 सीटों पर विजय दिलाई और सारे सारे ख्वाब, सारे मंसूबे चाहे वे अजीत जोगी के हो या मायावती के ध्वस्त हो गए .

अगर “हम साथ साथ होते” !
मायावती ने निसंदेह जल्दी बाजी की और छत्तीसगढ़ की राजनीति में अजीत जोगी और अपनी पार्टी के लिए स्वयं गड्ढा खोदा . विधानसभा चुनाव के अनुभव अगरचे मायावती और अजीत जोगी देश की 17 वीं लोकसभा समर में साथ होते तो कम से कम दो सीटें प्राप्त कर सकते थे . विधानसभा चुनाव में बिलासपुर संभाग की तीन लोकसभा सीटों पर इस गठबंधन को बेहतरीन प्रतिसाद साथ मिला था . और यह माना जा रहा था कि बिलासपुर और कोरबा लोकसभा सीट पर बसपा और जोगी कांग्रेस कब्जा कर सकते हैं . इसके अलावा तीसरी सीट जांजगीर लोकसभा में बहुजन समाज पार्टी के दो विधायक के साथ अच्छी बढ़त मिली जिससे यह माना जा रहा था कि यह गठबंधन बड़ी आसानी से यह लोकसभा सीट पर पताका फहरा सकता है . मगर बहन मायावती ने भाई अजीत जोगी जैसे मजबूत खंबे पर विश्वास नहीं किया और अपने प्रत्याशियों को मैदान-ए-जंग में उतारा . अजीत जोगी मन मसोस कर रह गए .

लोकसभा में दोनों की साख बढ़ती
यहां यह बताना आवश्यक है कि अजीत जोगी और मायावती की पार्टियों को विधानसभा चुनाव में आशा के अनुरूप भले ही परिणाम नहीं मिले मगर यह मोर्चा तीसरे मोर्चे के विरुद्ध समर्पित हो गया अजीत जोगी को 5 सीटें मिली और मायावती को सिर्फ दो विधान सभा क्षेत्रों मैं सफलता मिली . संभवत: इसी परिणाम से मायावती नाराज हो गई . क्योंकि छत्तीसगढ़ में बसपा को 2 से 3 सीटों पर तो विजयश्री मिलती ही रही है . ऐसे में यह आकलन की अजीत जोगी से गठबंधन का कोई लाभ नहीं मिला तो सौ फीसदी सही है मगर इसके कारणों का भी पार्टी को चिंतन करना चाहिए था जो नहीं किया गया और लोकसभा में अपनी-अपनी अलग डगर पकड़ ली गई जो भाजपा और कांग्रेस के लिए मुफीद रही .
लोकसभा समर में बसपा को कभी भी एक सीट भी नहीं मिली है अगरचे यह गठबंधन मैदान में होता तो बसपा आसानी से एक सीट पर विजय होती . यह क्षेत्र है जांजगीर लोकसभा का . मगर बसपा ने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली भाजपा के नये चेहरे की राह आसान कर दी . दूसरी तरफ जोगी और उनकी पार्टी का भविष्य भी अंधकारमय हो चला .

नगरीय-निकाय चुनाव में क्या होगा ?
अजीत जोगी ने विधानसभा चुनाव में हाशिए पर जाते ही पार्टी की कमान अपने सुपुत्र अमित ऐश्वर्य जोगी को सौंप दी है . प्रदेश में वे अपना मोर्चा खोलकर आए दिन रूपेश सरकार की नाक में दम किए हुए हैं . अपने हौसले की उड़ान से अमित जोगी ने यह संदेश दिया है कि वे आने वाले समय में एक बड़ी चुनौती भाजपा और कांग्रेस के लिए बनेंगे . उन्होंने अकेले दम पर नगरीय चुनाव पंचायती चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है . इधर बीएसपी ने भी अपने बूते चुनाव लड़ने की घोषणा की है मगर बीएसपी नगरीय चुनाव में कभी भी अपना एक भी महापौर जीता पाने में सफलीभूत नहीं हुई है .

यह तथ्य समझने लायक है कि अजीत जोगी और मायावती की युती छत्तीसगढ़ में बड़े गुल खिला सकती थी. अजीत जोगी की रणनीति और घोषणा पत्र को कांग्रेस ने कापी करना शुरू किया और अपने बड़े संगठनिक ढांचे के कारण कांग्रेस आगे निकल गई अन्यथा अजीत जोगी के 2500 रुपए क्विंटल धान खरीदी और बिजली बिल हाफ फार्मूला को अगर कांग्रेस नहीं चुराती तो जोगी और बसपा की स्थिति आश्चर्यजनक गुल खिला सकती थी . राजनीति में संभावनाओं के द्वार खुले रहते हैं ऐसे में भविष्य में क्या होगा यह आप अनुमान लगा सकते हैं.

कर्जमाफी: क्या फटेहाल किसानों को राहत मिलेगी?

5 राज्यों के विधानसभा चुनावों में 3 राज्यों में कांग्रेस ने अपनी पकड़ बना कर यह जता दिया है कि वह दमदार तरीके से वापसी करने को तैयार है. अपने वादों में दम भरने के लिए उसने किसान कर्जमाफी मुद्दे को सब से अहम रखा था.

किसानों का कर्ज तो माफ हुआ ही, साथ ही छत्तीसगढ़ में नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सरकार ने धान का समर्थन मूल्य बढ़ा कर वाहवाही भी बटोर ली. पर एक बात समझ से परे रही कि किसानों का जो कर्ज माफ हुआ है, वह किसके पैसों से हुआ है? जनता ने जो टैक्स सरकार को अदा किया उन पैसों से या फिर पार्टी फंड से?

सरकार बनने से पहले नेताओं ने किसानों के कर्ज को माफ करने का ऐलान किया था और आननफानन इस दिशा में काम भी शुरू कर दिया. लेकिन हकीकत कुछ दिनों बाद सामने आएगी कि इस में कितने किसानों का कर्ज माफ हुआ, कितनों का नहीं. क्योंकि इस तरह के कामों में अनेक नए नए नियम सामने आ जाते हैं, जिस के कारण सभी कर्जदारों को इस का सौ फीसदी फायदा नहीं मिलता.

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपनी रैलियों में सरकार बनने के 10 दिन के भीतर किसानों का कर्ज माफ करने की बात कही थी. सत्ता संभालते ही तीनों राज्यों की सरकारों ने सब से पहला काम किसानों की कर्जमाफी का किया. कहीं किसान आम चुनाव 2019 में बिदक न जाएं इसलिए उन्हें खुश करने के लिए ऐसा किया गया.

मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनी. राजस्थान के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने किसानों की कर्जमाफी का ऐलान कर दिया. राज्य सरकार किसानों का 2 लाख रुपए तक का कर्ज माफ करेगी. इससे सरकारी खजाने पर 18,000 करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा.

इस पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा कि हम ने 10 दिन की बात कही थी, लेकिन यह तो 2 ही दिन में कर दिया.

कांग्रेसशासित तीनों राज्यों की कर्जमाफी के ऐलान के बाद असम में भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने भी किसानों को कर्जमाफी का तोहफा दिया. इस कर्जमाफी का फायदा 8 लाख किसानों को मिल सकता है, जिससे सरकार पर 600 करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा.

वहीं दूसरी ओर गुजरात सरकार ने भी ग्रामीण इलाकों के बिजली उपभोक्ताओं का बिल माफ करने का ऐलान किया. सरकार किसानों के लोन का 25 फीसदी (अधिकतम 25 हजार रुपए) माफ करेगी. इस योजना का लाभ उन किसानों को मिलेगा, जिन्होंने पीएसयू बैंकों और किसान क्रैडिट कार्ड के जरिए लोन लिया था.

रायपुर में मुख्यमंत्री का पद संभालते ही भूपेश बघेल ने नया छत्तीसगढ़ राज्य बनाने का संकल्प दोहराते हुए 3 बड़े फैसले लिए. कांग्रेस सरकार की पहली कैबिनेट मीटिंग में किसानों का 6,100 करोड़ रुपए का कर्ज माफ करने के अलावा धान का समर्थन मूल्य 2,500 रुपए प्रति क्विंटल करने का फैसला लिया गया जबकि तीसरा फैसला झीरम घाटी से संबंधित था.

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल धान के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 1,700 रुपए प्रति क्विंटल से बढ़ा कर 2,500 रुपए कर दिया.

वहीं मध्य प्रदेश के नए मुख्यमंत्री कमलनाथ ने शपथ ग्रहण के थोड़ी देर बाद ही किसानों का कर्ज माफ करने के आदेश पर दस्तखत कर दिया था. इस आदेश के साथ ही किसानों को सरकारी और सहकारी बैकों द्वारा दिया गया 2 लाख रुपए तक का अल्पकालीन फसल कर्ज माफ होगा.

इस फैसले के अलावा सरकार ने कन्या विवाह और निकाह योजना में संशोधन कर अनुदान राशि 28,000  से बढ़ा कर 51,000 रुपए करने का फैसला लिया. इस के साथ ही सरकार ने अब सभी आदिवासी अंचलों में जनजातियों में प्रचलित विवाह प्रथा से होने वाले एकल और सामूहिक विवाह में भी मदद देने का फैसला किया है.

मुख्यमंत्री कमलनाथ ने पहली फाइल साइन की है, वह है किसानों का 2 लाख रुपए तक का लोन माफ करने की. जैसा उन्होंने वादा किया था.

किसान कल्याण और कृषि विकास विभाग, मध्य प्रदेश के प्रमुख सचिव के दस्तखत के साथ जारी एक पत्र में लिखा गया है कि 31 मार्च, 2018 के पहले जिन किसानों का 2 लाख रुपए तक का कर्ज बकाया है, उसे माफ किया जाता है.

बताते चलें कि इस बार मध्य प्रदेश का विधानसभा चुनाव कांग्रेस ने कमलनाथ की अगुआई में ही लड़ा था. कमलनाथ को अरुण यादव की जगह मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया और उन की अगुआई में ही पार्टी चुनाव में सब से बड़ी पार्टी बन कर उभरी.

कांग्रेस को बहुमत के लिए जरूरी 116 सीटें अपने दम पर तो नहीं मिलीं लेकिन समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और निर्दलीयों के सहयोग से वह राज्य में सरकार बनाने में कामयाब हो गई.

लोकसभा चुनाव भी नजदीक ही है. इसी को ध्यान में रखते हुए असम सरकार ने भी किसानों का कर्ज माफ करने का ऐलान कर दिया है. इस कर्जमाफी का फायदा 8 लाख किसानों को मिलेगा. इससे सरकार पर 600 करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा. इस के अलावा गुजरात सरकार ने भी ग्रामीण इलाकों के बिजली उपभोक्ताओं का बिल माफ करने का ऐलान किया.

वहीं किसानों के लिए एक ब्याज राहत योजना भी होगी, जिस के तहत किसानों को 4 फीसदी ब्याज दर पर लोन दिया जाएगा. इस के अलावा असम सरकार स्वतंत्रता सेनानियों को मिलने वाली पैंशन को 20,000 से बढ़ा कर 21,000 रुपए करने की तैयारी में है.

कांग्रेसशासित राज्यों में हुई किसानों की कर्जमाफी आम आदमी के लिए परेशानी का सबब तो बना ही, क्योंकि इस का बोझ आने वाले समय में आम आदमी पर पड़ेगा. भले ही कर्जमाफी के फैसले से किसानों की कुछ हद तक चिंता कम हुई हो, पर यह टिकाऊ योजना नहीं है. इस से अच्छा होता कि सरकार उन के भले के लिए कोई ऐसी ठोस योजना तैयार करती तो शायद किसान खुशहाल होता.

मुफ्तखोरी की आदत बढ़ाती सरकारें

3 राज्यों में किसानों से किए गए कर्ज माफी के वादे के बाद कांग्रेस की जीत से अब दूसरे राज्यों में भी कर्ज माफी के वादों की बरसात शुरू हो गई है. असम में कर्ज माफी की घोषणा कर दी गई है. गुजरात में भाजपा सरकार ने भी कर्जमाफी का ऐलान कर दिया है. हरियाणा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर ने कहा है कि राज्य में उन की सरकार आने पर किसानों को कर्र्ज मुक्त कर दिया जाएगा. ओडिशा में भी भाजपा ने यह वादा किया है.

चुनावी वादों का हकीकत से सामना करना अब नेताओं के लिए बड़ा मुश्किल साबित हो रहा है. किसानों के किया गया कर्ज माफी का वादा अब राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ की नई सरकारों के लिए मुश्किल हो रहा है. मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की सरकारों ने 41,100 करोड़ रुपए के कर्ज माफ करने की घोषणा तो कर दी पर इन राज्यों के पास इतना बजट ही नहीं है. राजस्थान सरकार इसीलिए अब तक घोषणा नहीं कर पाई है. यहां के नवनियुक्त मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कह चुके हैं कि वसुंधरा सरकार ने खजाने में पैसा ही नहीं छोड़ा.

बावजूद इस के असम में 600 करोड़ का कर्ज और गुजरात में 625 करोड़ का बिजली बिल माफ करने की घोषणा की गई है. तीन राज्यों में कर्जमाफी का वादा हिट रहा.

किसानों की कर्जमाफी का केंद्र सरकार पर दबाव बढ़ गया है. कर्जमाफी का मुद्दा ले कर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेर रहे हैं. राहुल गांधी ने कहा कि मोदीजी के पास साढ़े चार साल थे. उन्होंने किसानों का एक रुपया भी माफ नहीं किया. हर किसान का कर्ज माफ होने तक हम मोदीजी को न बैठने देंगे, न सोने देंगे.

राहुल गांधी ने यह भी कहा कि अगर भाजपा सरकार कर्ज माफ नहीं करती है तो अगले लोकसभा चुनाव के बाद केंद्र में सरकार बनने पर कांग्रेस गारंटी के साथ किसानों का कर्ज माफ करेगी.

असल में हमारे यहां राजाओं द्वारा खैरात बांट कर जयजयकार कराने की प्राचीन आदत है. लोगों को भी मुफ्त की खाने और दान लेने और देने की पुरानी संस्कृति है. इस कार्य को पुण्य माना गया है. राजा ज्यादातर दान ब्राह्मणों से प्रशंसा और अपने प्रचार के लिए दिया करते थे. साथ पुण्य की बात भी उन कन के मन में पुरोहितों द्वारा भर दी जाती थीं.

पुराने राजा रहे हों या आज की सरकारें, मुफ्त में कुछ नहीं दे रहीं. मुफ्त के नाम पर बेवकूफ बनाया जाता है. सरकारों के लिए माफ किए गए उस करोड़ों के कर्ज की भरपाई के लिए तरहतरह के टैक्स लगाना जरूरी हो जाता है.

आर्थिक विशेषज्ञ कह चुके हैं कि कर्ज माफी के वादों से बचना चाहिए. इस से देश पर भार बढ़ता है.सरकारें किसानों की उत्पादकता पर ध्यान नहीं दे रहीं. इस के लिए उन्हें अधिक से अधिक सुविधाएं दी जा सकती हैं. राजनीतिक दल इस तरह के वादों से मुफ्तखोरी की आदत बढ रहे हैं. उन्हें अपनी जेब से तो पैसा देना होता नहीं. कर्ज माफी का पैसा किसानों और आम जनता की जेब से ही निकलेगा.

इन नतीजों से लेने होंगे ये 5 सबक

  1. गलतफहमी छोड़नी होगी BJP को

बीजेपी को इस गलतफहमी से निकलना ही होगा कि सिर्फ मोदी के चेहरे को आगे कर सभी चुनाव जीते जा सकते हैं. 2014 में मोदी का जो आभामंडल दिखा था, 2019 आते-आते उसके बरकरार रहने की सम्भावनाओं पर विराम लगता दिख रहा है. वोटर सिर्फ भाषण के जरिए तसल्ली पाने के मूड में नहीं हैं. वह अपने हित के मुद्दों पर ठोस काम देखना चाहता है. पार्टी के अजेंडे और सरकार की परफार्मेंस पर बात बढ़ी है.

  1. जवाबदेही से बच नहीं सकतीं सरकारें

एंटी-इनकम्बेन्सी (सरकार से नाराजगी) फैक्टर को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. पार्टी 15 साल से सत्ता में हो या महज 5 साल से, वोटर जानना चाहता है कि चुनाव में जो वादे किए गए थे, उनका क्या हुआ/ मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में 15-15 साल से सत्ता में रहने वाले मुख्यमंत्रियों को जिन सवालों से रूबरू होना पड़ा, वैसे ही सवाल से 5-5 साल से सत्ता में रहे राजस्थान और तेलंगाना के मुख्यमंत्रियों के सामने भी थे.

  1. काम न आई रंग बदलने की कोशिश

बीजेपी को विकास के अजेंडे पर लौटना ही पड़ेगा. बीजेपी कह सकती है कि वह इससे इतर गई ही कब थी, लेकिन जिस तरह से मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में, जहां पार्टी पिछले 15 बरसों से सत्ता में थी, वहां योगी आदित्यनाथ को आगे कर चुनाव का रंग बदलने की कोशिश हुई, उसने नुकसान ही किया. दोनों सरकारों के काम पर बात कम हुई, जबकि योगी के बयानों पर बहस ज्यादा.

  1. कांग्रेस भी खुशफहमी न पाले

कांग्रेस को भी बहुत खुश होने की जरूरत नहीं है. ऐसा नहीं कि कांग्रेस के पक्ष में कोई लहर चल रही है, जहां भी चुनाव हुए एंटी-इनकम्बेन्सी फैक्टर काम कर रहा था. बीजेपी शासित तीनों राज्यों में उसके मुखालिफ कांग्रेस के अलावा कोई और मजबूत विकल्प नहीं था. अगर कांग्रेस के पक्ष में कोई लहर होती तो मध्य प्रदेश और राजस्थान में इतना करीबी मुकाबला नहीं छूटता और तेलंगाना में भी पार्टी को टीआरएस से नहीं पिटना पड़ता.

  1. छोटे दलों की भी बड़ी भूमिका

बीजेपी से जीतना है तो कांग्रेस को बड़ा गठबंधन करना ही होगा. राज्यों में स्थानीय दलों को कमतर आंकना उसकी बड़ी चूक हो सकती है. कर्नाटक में जेडीएस और बीएसपी के साथ तालमेल के लिए लचीला रुख न अपनाने की कीमत उसे चुकानी पड़ी थी लेकिन उससे उसने कोई सबक नहीं लिया. इन चुनावों में उसे बीएसपी और एसपी की अनदेखी का नुकसान उठाना पड़ा. छोटे दल जीतने में कम, हराने में ज्यादा बड़ी भूमिका निभाते हैं.

इन नतीजों से 2019 के लोकसभा चुनावों पर क्या असर पड़ेगा

माहौल बनाने और बिगाड़ने पर असर पड़ना स्वाभाविक है. नतीजों के बीजेपी के पक्ष में जाने पर मोदी लहर के जारी होने की तस्दीक होती, विपक्ष का मनोबल टूटता. लेकिन अब यह संदेश जाता दिख रहा है कि टक्कर कड़ी है. बीजेपी हार भी सकती है. 2014 में मोदी के सत्ता में आने के बाद बीजेपी को सिर्फ दिल्ली और बिहार विधानसभा के चुनाव में ही हार का सामना करना पड़ा था, वर्ना बीजेपी लगातार चुनाव जीतती रही है. यहां तक यूपी में भी उसने दो दशक बाद सत्ता में वापसी कर ली थी.

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