Amit Shah ने लिया अंबेडकर का नाम, राजनीति में मच गया घमासान

केंद्रीय गृह मंत्री Amit Shah पर कांग्रेस नेताओं द्वारा लगाए गए आरोपों ने एक बार फिर से राजनीतिक हलकों में तूफान मचा दिया है. अमित शाह पर गंभीर आरोप लगाया गया है. अगर यह कहा जाए कि उन्होंने सीधेसीधे संविधान निर्माता बाबा साहब डाक्टर भीमराव अंबेडकर का अपमान किया है, तो गलत नहीं होगा और जिस तरह से कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कहा है कि अमित शाह को गृह मंत्री पद से हटाया जाए, तो यह भी गलत नहीं है.

दूसरी तरफ गृह मंत्री अमित शाह का कहना है कि कांग्रेस ने राज्यसभा में बाबा साहब डाक्टर भीमराव अंबेडकर पर दिए गए उन के बयान को तोड़मरोड़ कर पेश किया है, जिस से समाज में भ्रांति फैलाई जा सके.

इस मामले में सब से बड़ा सवाल यह है कि क्या अमित शाह ने या फिर कांग्रेस ने वास्तव में डाक्टर अंबेडकर का अपमान किया है? क्या कांग्रेस ने इस मुद्दे को उठा कर भाजपा को घेरने की कोशिश की है?

इन सवालों के जवाब ढूंढ़ने से पहले हमें यह समझना होगा कि इस मामले में दोनों पक्षों के दावे और आरोप क्या हैं. एक ओर, अमित शाह ने आरोप लगाया है कि कांग्रेस ने डाक्टर अंबेडकर का अपमान किया है और उन के बयान को तोड़मरोड़ कर पेश किया है, तो दूसरी ओर कांग्रेस ने इन आरोपों का खंडन किया है और कहा है कि भाजपा ने इस मुद्दे को उठा कर उन्हें घेरने की कोशिश की है.

इस मामले में सब से बड़ा सवाल यह है कि क्या कांग्रेस ने वास्तव में डाक्टर अंबेडकर का अपमान किया है? इस का जवाब ढूंढ़ने से पहले हमें यह समझना होगा कि डाक्टर भीमराव अंबेडकर के विचार और देश के लिए उन का योगदान क्या है.

बाबा साहब डाक्टर भीमराव अंबेडकर एक महान समाजसुधारक और राजनीतिज्ञ थे, जिन्होंने भारतीय संविधान के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, इसलिए उन का अपमान करना न केवल उन के विचारों और योगदान का अपमान करना है, बल्कि यह भारतीय संविधान और लोकतंत्र का भी अपमान है. लिहाजा, यह जरूरी है कि हम डाक्टर अंबेडकर के विचारों और योगदान का सम्मान करें और उन के अपमान के खिलाफ आवाज उठाएं.

इस मामले में एक और महत्त्वपूर्ण बात यह है कि क्या भाजपा ने इस मुद्दे को उठा कर कांग्रेस को घेरने की कोशिश की है? इस का जवाब ढूंढ़ने से पहले हमें यह समझना होगा कि भाजपा और कांग्रेस के बीच क्या राजनीतिक मतभेद हैं.

भाजपा और कांग्रेस के बीच सब से बड़ा मतभेद यह है कि भाजपा एक राष्ट्रवादी और हिंदुत्ववादी पार्टी है, जबकि कांग्रेस एक धर्मनिरपेक्ष और उदारवादी पार्टी है, इसलिए भाजपा और कांग्रेस के बीच अकसर राजनीतिक मतभेद होते रहते हैं.

लिहाजा, यह जरूरी है कि हम भाजपा और कांग्रेस के बीच के राजनीतिक मतभेदों को समझें और उन के बीच के विवादों को शांतिपूर्ण और रचनात्मक तरीके से हल करने की कोशिश करें.

इस मामले में एक और महत्त्वपूर्ण बात यह है कि क्या हमारे देश में राजनीतिक दलों के बीच के विवादों को शांतिपूर्ण और रचनात्मक तरीके से हल करने की कोशिश की जा रही है? इस का जवाब ढूंढ़ने से पहले हमें यह समझना होगा कि हमारे देश में राजनीतिक दलों के बीच के विवादों को हल करने के लिए क्या तरीके अपनाए जा सकते हैं.

हमारे देश में राजनीतिक दलों के बीच विवादों को हल करने के लिए कई तरीके अपनाए जा सकते हैं. सब से पहले हमें यह समझना होगा कि राजनीतिक दलों के बीच के विवादों को हल करने के लिए संवाद और समझौता करना बहुत महत्त्वपूर्ण है. इस के अलावा हमें यह भी समझना होगा कि राजनीतिक दलों के बीच के विवादों को हल करने के लिए न्यायपालिका की भूमिका भी बहुत महत्त्वपूर्ण है, इसलिए यह जरूरी है कि हम राजनीतिक दलों के बीच के विवादों को हल करने के लिए संवाद, समझौता और न्यायपालिका की भूमिका को समझें और उन का सम्मान करें.

इस के अलावा हमें यह भी समझना होगा कि हमारे देश में राजनीतिक दलों के बीच के विवादों को हल करने के लिए एकदूसरे के प्रति सहानुभूति और समझ रखनी होगी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मामले में गृह मंत्री अमित शाह का साथ दिया है. दरअसल, सच यह है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने डाक्टर भीमराव अंबेडकर के बारे में एक बयान दिया था, जिस पर विवाद हुआ था.

अमित शाह ने कहा था कि अब अंबेडकर का नाम लेना एक फैशन हो गया है. अंबेडकर, अंबेडकर, अंबेडकर… इतना नाम अगर भगवान का लेते तो सात जन्मों तक स्वर्ग मिल जाता.

इस बयान के बाद विपक्षी दलों ने अमित शाह की आलोचना की और उन्हें अपना बयान वापस लेने के लिए कहा.

एक दिन: तीन नेताओं के तीन बयान

आज हम देश के तीन बड़े नेताओं के बयान का विश्लेषण ले कर आए हैं. इन्हें पढ़समझ कर आप खुद अंदाजा लगाइए कि देश किस दिशा में जा रहा है. एक समय था जब देश के बड़े नेता सोच समझ कर जनता के बीच अपनी भावना व्यक्त करते थे. कहां गया वह समय और कहां जा रहा है हमारा भारत देश. पहला बयान है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का और दूसरा है गृह मंत्री अमित शाह का और तीसरा बयान है अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहिन…

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार, 11 नवंबर, 2024 को आरोप लगाया कि कांग्रेस अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की सामूहिक ताकत को तोड़ने की कोशिश कर रही है, ताकि उन के बीच विभाजन पैदा किया जा सके और उन की आवाज कमजोर की जा सके और अंततः उन के लिए आरक्षण समाप्त किया जा सके.

नरेंद्र मोदी ने ‘नमो एप’ के माध्यम से ‘मेरा बूथ, सब से मजबूत’ कार्यक्रम के तहत झारखंड में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कार्यकर्ताओं से संवाद करते हुए कहा कि इसलिए मैं चार बार कहता रहता हूं कि एक रहेंगे, तो सेफ (सुरक्षित) रहेंगे. नरेंद्र मोदी ने झारखंड मुक्ति मोरचा (झामुमो), कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) गठबंधन के पांच साल के शासन की विफलताओं को रेखांकित किया और कहा कि राज्य को प्रगति के पथ पर ले जाने के लिए ‘भ्रष्टाचार, माफिया और कुशासन’ से मुक्त कराना होगा.

नरेंद्र मोदी ने दावा किया कि झारखंड की जनता इस बार विधानसभा चुनाव में बदलाव को संकल्पित है और इस का सब से बड़ा कारण यह है कि सत्तारूढ़ गठबंधन ने राज्य की रोटी, बेटी और माटी पर वार किया है. उन्होंने कहा कि झारखंड इस बार बदलाव करने को संकल्पित हो गया है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि कुछ ‘राष्ट्र विरोधी’ अपने निहित स्वार्थ के लिए समाज को बांटने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने लोगों से उन्हें हराने के लिए एकजुट होने का आह्वान किया. नरेंद्र मोदी ने गुजरात के खेड़ा जिले के चडताल में श्री स्वामीनारायण मंदिर की 200वीं वर्षगाठ पर आयोजित समारोह को डिजिटल तरीके से संबोधित किया.

पिछले पांच साल इन्होंने बड़ीबड़ी बातें कीं, लेकिन आज झारखंड के लोग देख रहे हैं कि इन के ज्यादातर वादे झूठे हैं. भाजपा झारखंड में ‘रोटी, बेटी और माटी’ के मुद्दे को जोरशोर से उठा रही है. इस के माध्यम से वह आदिवासी अस्मिता का सवाल
उठा कर बंगलादेशी घुसपैठियों द्वारा आदिवासी महिलाओं का तथाकथित उत्पीड़न, धर्मांतरण, जमीन पर कब्जा और धोखा दे कर विवाह करने तथा इस के परिणामस्वरूप आदिवासियों की संख्या में लगातार कमी आने का मुद्दा उठा रही है .राज्य में झारखंड मुक्ति मोरचा (झामुमो), कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की गठबंधन सरकार है.

नरेंद्र मोदी ने कहा कि राज्य में चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने महसूस किया कि लोगों में भ्रष्टाचार और परिवारवाद को ले कर भी भारी गुस्सा है. उन्होंने कहा कि परिवारवादी पार्टियां, भ्रष्टाचारी तो होती ही हैं. साथ ही समाज के प्रतिभाशाली नौजवानों के रास्ते में सब से बड़ी दीवार होती हैं. झामुमो के परिवारवादियों ने कांग्रेस के ‘शाही परिवार’ से ऐसी गंदी चीजें सीखी हैं, जिस में उन्हें कुरसी और खजाना… इन दो चीजों की ही चिंता रहती है. नागरिकों की उन्हें परवाह हो नहीं होती है. उन्होंने कहा कि इसलिए इस बार के विधानसभा चुनाव में झामुमो गठबंधन की सत्ता से विदाई तय है.

समीक्षा करते हुए हम कह सकते हैं कि प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने जो कुछ कहा है, वह दोतरफा है. यह कैसे भूल जाते हैं कि अगर आप किसी की तरफ एक उंगली उठाते हैं तो चार उंगलियां आप की तरफ भी होती हैं.

गृह मंत्री अमित शाह कहिन…

कांग्रेस को ‘डूबता जहाज’ करार देते हुए केंद्रीय गृह मंत्री और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पूर्व अध्यक्ष अमित शाह ने सोमवार, 11 नवंबर, 2024 को कहा कि वे (कांग्रेस) चुनाव में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को नहीं बचा सकती.

अमित शाह ने रांची जिले के तमार में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए आरोप लगाया कि ‘इंडिया’ गठबंधन ने झारखंड को बरबाद कर दिया. उन्होंने वादा किया कि चुनाव के बाद भाजपा यदि सत्ता में आई तो वह अगले पांच साल में इसे सब से अधिक समृद्ध राज्य बना देगी. उन्होंने आरोप लगाया कि झामुमो, कांग्रेस आदिवासियों को महज वोट बैंक समझती हैं, वे उन का सम्मान नहीं करती हैं. उन्होंने दावा किया कि घुसपैठियों के कारण आदिवासियों की संख्या लगातार घटती जा रही है और ये घुसपैठिए झामुमोनीत (सत्तारूढ़) गठबंधन के वोट बैंक हैं.

कांग्रेस पर प्रहार करते हुए अमित शाह ने कहा कि राहुल गांधी की चार पीढ़ियां भी जम्मूकश्मीर में अनुच्छेद 370 वापस नहीं ला सकती हैं. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सोमवार को कहा कि झारखंड में अगर भाजपा की सरकार बनती है, तो घुसपैठियों की पहचान करने और उन्हें राज्य से बाहर निकालने के अलावा उन के द्वारा हड़पी गई जमीन को वापस लेने के लिए एक समिति गठित की जाएगी.

गृह मंत्री के रूप में कांग्रेस पर अप्रत्यक्ष रूप से भी प्रहार किया जा सकता है, मगर जिस स्तर पर आ कर चार पीढ़ियां की बात जम्मूकश्मीर विधेयक 370 के संदर्भ में अमित शाह ने कही है, आप ही बताइए कि क्या वह शोभनीय है?

मल्लिकार्जुन खड़गे कहिन…

11 नवंबर, 2024, दिन सोमवार को अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे अपनी बात कहते हुए बड़े बेचारे से लग रहे थे मगर उन्होंने जो कहा बड़ी बेबाकी से और बड़ा सच कहा है.

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तीखा हमला करते हुए आरोप लगाया कि भाजपा विपक्ष को दबाने एवं निर्वाचित सरकारों को गिराने में विश्वास करती है. विधायकों की बकरियों की तरह खरीदफरोख्त की जाती है. उन्होंने नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पर अडाणी और अंबानी के साथ मिल कर केंद्र सरकार चलाने का भी आरोप लगाया. उन्होंने योगी आदित्यनाथ को घेरते हुए कहा कि वे मुंह में राम, बगल में छुरी में विश्वास करते हैं.

मल्लिकार्जुन खड़गे ने आरोप लगाया कि मोदीजी सरकारें गिराने में विश्वास रखते हैं. वे विधायक खरीदते हैं. उन का काम विधायकों को बकरी के जैसे अपने पास रख लेना, पालना और फिर बाद में काट कर खाना है.

मल्लिकार्जुन खड़गे ने दावा किया कि मोदी और शाह ने विपक्षी नेताओं के खिलाफ ईडी, सीबीआई और अन्य केंद्रीय एजेंसियों को तैनात कर दिया है, लेकिन हम डरते नहीं हैं. हम ने आजादी के लिए लड़ाई लड़ी, अपने प्राणों की आहुति दी.

उन्होंने आरोप लगाया कि मोदी, शाह, अडाणी और अंबानी देश चला रहे हैं, जबकि राहुल गांधी और मैं संविधान और लोकतंत्र को बचाने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने कटाक्ष किया कि मोदी आदतन झूठे हैं, जो कभी अपने वादे पूरे नहीं करते.

समीक्षा करें तो साफ है कि तीनों ही बयानों को पढ़ने के बाद आप देखेंगे की नरेंद्र मोदी और अमित शाह के बयान अतिरेकपूर्ण हैं, वहीं मल्लिकार्जुन खड़गे का बयान आत्मरक्षात्मक है. इन तीनों ही बयानों से ऐसा लगता है कि देश एक राजनीतिक संक्रमणकाल से गुजर रहा है, जो लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं कहा जा सकता.

नरेंद्र मोदी और अमित शाह की रणनीति चारों खाने चित

भा रतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी की सत्ता आने के बाद जिस तरह से जम्मूकश्मीर और वहां की अवाम को दर्द ही दर्द मिला है, क्या उसे कोई भूल सकता है? यहां तक कि नागरिकों के अधिकार नहीं रहे और बंदूक के साए में अब देश की सब से बड़ी अदालत के आदेश के बाद चुनाव होने जा रहे हैं. यह एक ऐसा रास्ता है, जो लोकतांत्रिक की मृग मरीचिका का आभास देता है.

मगर सितंबर, 2024 में होने वाले विधानसभा चुनाव की जो रणनीति कांग्रेस बना रही है, उस में नरेंद्र मोदी और अमित शाह का पूरा खेल बिगड़ता दिखाई दे रहा है. भाजपा किसी भी हालत में यहां सत्ता में आती नहीं दिखाई दे रही है, जिस का आगाज लोकसभा चुनाव में भी नतीजे के रूप में हमारे सामने है.

इधर, फारूक अब्दुल्ला ने जिस तरह सामने आ कर मोरचा संभाला है और  विधानसभा चुनाव लड़ने की रणनीति बनाई है, उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि नरेंद्र मोदी की रणनीति चारों खाने चित हो चुकी है.

कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी श्रीनगर पहुंचे थे. मल्लिकार्जुन खड़गे ने जम्मूकश्मीर के आगामी विधानसभा चुनाव के लिए दूसरे विपक्षी दलों के साथ गठबंधन करने की इच्छा जताई और केंद्रशासित प्रदेश के लोगों से भारतीय जनता पार्टी के वादों को ‘जुमला’ करार दिया.

मल्लिकार्जुन खड़गे ने लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी के साथ श्रीनगर में कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं से विधानसभा चुनावों की जमीनी स्तर की तैयारियों के बारे में जानकारी ली. उन्होंने कहा कि ‘इंडी’ गठबंधन ने एक तानाशाह को पूरे बहुमत के साथ (केंद्र में) सत्ता में आने से रोका है. यह गठबंधन की सब से बड़ी कामयाबी है. कांग्रेस ने राज्य का दर्जा बहाल करने की पहल की है. हम इस दिशा में काम करने का वादा करते हैं. राहुल गांधी की जम्मूकश्मीर में चुनाव से पहले गठबंधन बनाने में दिलचस्पी है. वे दूसरी पार्टियों के साथ मिल कर चुनाव लड़ने के इच्छुक हैं.

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने आगे कहा कि दरअसल, भाजपा लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद चिंतित है, क्योंकि वे लोग जिन विधेयकों को पास कराना चाहते थे, उन में करारी मात मिली है.

पूर्ण राज्य का दर्जा

कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के श्रीनगर दौरे से राजनीति में एक गरमाहट आ गई है. राहुल गांधी ने कहा कि जम्मूकश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करना कांग्रेस और विपक्षी गठबंधन ‘इंडी’ की प्राथमिकता है. यह उन की पार्टी का लक्ष्य है कि जम्मूकश्मीर और लद्दाख के लोगों को उन के लोकतांत्रिक अधिकार वापस मिलें.

कांग्रेस और ‘इंडी’ गठबंधन की प्राथमिकता है कि जम्मूकश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा जल्द से जल्द बहाल किया जाए. हमें उम्मीद थी कि चुनाव से पहले ऐसा कर दिया जाएगा, लेकिन चुनाव घोषित हो गए हैं. हम उम्मीद कर रहे हैं कि जल्द से जल्द पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा और जम्मूकश्मीर के लोगों के अधिकार बहाल किए जाएंगे.

आजादी के बाद यह पहली बार है कि कोई राज्य केंद्रशासित प्रदेश बन गया है. यहां कोई विधानपरिषद, कोई पंचायत या नगरपालिका नहीं है. लोगों को लोकतंत्र से दूर रखा गया है.

मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के 30 सितंबर तक चुनाव कराने के निर्देश के चलते ही जम्मूकश्मीर में विधानसभा चुनाव की घोषणा की गई है.

चुनाव से पहले जम्मूकश्मीर के लोगों से किया गया एक भी वादा पूरा नहीं किया गया है. कुलमिला कर कांग्रेस नेताओं ने जिस तरह जम्मूकश्मीर में मोरचाबंदी की है, उस से नरेंद्र मोदी और अमित शाह के मनसूबे ध्वस्त होंगे, ऐसा लगता है.

फारूक अब्दुल्ला और कांग्रेस

जम्मूकश्मीर में जो नए राजनीतिक समीकरण बन रहे हैं, उन से साफ दिखाई दे रहा है कि फारूक अब्दुल्ला, जो जम्मूकश्मीर के सब से बड़े नेता और चेहरे हैं, ने कांग्रेस के साथ मिल कर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है और यह गठबंधन अगर बन जाता है, तो इस की सरकार बनने की पूरी संभावना है, क्योंकि इन के सामने सारे नेता बौने हैं. वहीं राहुल गांधी और ‘इंडी’ गठबंधन का अब समय आ गया है, यह दिखाई देता है.

यहां चुनाव 18 सितंबर, 25 सितंबर और 1 अक्तूबर को होंगे. नतीजे 4 अक्तूबर को घोषित किए जाएंगे.

फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि कांग्रेस के साथ मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी (माकपा) के (एमवाई) तारिगामी भी हमारे साथ हैं. मुझे उम्मीद है कि हमें लोगों का साथ मिलेगा और हम लोगों

के जीवन को बेहतर बनाने के लिए भारी बहुमत से जीतेंगे. इस के पहले राहुल गांधी ने भरोसा दिया था कि जम्मूकश्मीर के लिए पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करना कांग्रेस और ‘इंडी’ गठबंधन की प्राथमिकता है.

फारूक अब्दुल्ला ने उम्मीद जताई कि सभी ताकतों के साथ पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा. राज्य का दर्जा हम सभी के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है. इस का हम से वादा किया गया है. इस राज्य ने बुरे दिन देखे हैं और हमें उम्मीद है कि इसे पूरी शक्तियों के साथ बहाल किया जाएगा. इस के लिए हम ‘इंडी’ गठबंधन के साथ एकजुट हैं.

महत्त्वपूर्ण तथ्य सामने आया है कि चुनाव से पहले या चुनाव के बाद गठबंधन में महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व वाली पीडीपी की मौजूदगी से भी नैशनल कौंफ्रैंस के नेता फारूक अब्दुल्ला ने इनकार नहीं किया है.

अमित शाह का बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हमला

बिहार के पूॢणया में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हमला करते हुए भारतीय जनता पार्टी के गृहमंत्री अमित शाह ने भारतीय जनता पार्टी का साथ छोड़ कर राष्ट्रीय जनता दल का दामन इसलिए पकड़ा कि वह प्रधानमंत्री बन सकें. यह सही है पर इस को मान लेने का अर्थ है कि अमित शाह अब इस संभावना के लिए तैयार हैं कि नरेंद्र मोदी का काल समाप्त हो सकता है. अभी कुछ दिन पहले तक भारतीय जनता पार्टी तो नरेंद्र मोदी के 2029 और 2034 के चुनाव भी जीत लेने की बात करती रही है.

अमित शाह ने आरोप लगाया कि नीतीश कुमार अपने फायदे के लिए खेमे बदलते रहे हैं पर यह आरोप तो नीतीश कुमार की जगह भारतीय जनता पार्टी पर ज्यादा लगना चाहिए जो सारे देश में चुने हुए विधायकों को अपनी पार्टी में शामिल कर के सरकारों पर कब्जा कर रही है. अपने फायदे में तो भाजपा ज्यादा रही है जो दंड और अर्थ का इस्तेमाल कर के दलबदल करा रही है.

नीतीश कुमार ने अगर उस समय पार्टी का साथ छोड़ा जब भाजपा एकएक कर के कई राज्यों में अपनी जांच एजेंसियों के सहारे सत्ता में आने लगी थी. अमित शाह ने नीतीश कुमार की कलाबाजियां गिनाईं पर भाजपा खुद कभी रामविलास पासवान तो कभी ज्यातिर्मय ङ्क्षसधिया तो कभी अमङ्क्षरद्र ङ्क्षसह जैसे घोर भाजपा विरोधियों को बड़े ढोल बजा कर शामिल करती रही है.

राजनीति में दलबदल अगर सिद्धांतो की असहमति के कारण हो तो ठीक है पर पिछले सालों में यह केवल जांच एजेंसियों के डर या पैसे के कारण होने लगा है जो देश की बचीखुची राजनीतिक विश्वसनीयता का लगभग नष्ट कर चुका है. आज किसी पार्टी को भरोसा नहीं है कि उस का उम्मीदवार जीतने के बाद कब तक पार्टी में रहेगा. जैसे ही भाजपा कहीं भी कमजोर होने लगेगी, यह बिमारी भाजपा में फूटने लगेगी क्योंकि भाजपा ने दलबदल का वायरस खुशीखुशी अपनी पार्टी में मिलाया है.

नीतीश कुमार प्रधानमंत्री बन सकें या न सकें, इस से ज्यादा अमित शाह का यह आरोप यह सिद्ध करने के लिए काफी है कि हाल में ही प्रधानमंत्री पद पर बदलाव संभव है. यह थोड़ा अपने में ही अजूबा है.

बीजेपी ने लहराया महाराष्ट्र में अपना परचम

भारतीय जनता पार्टी ने महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की सरकार को गिरा कर अपना ढाई साल पहले का बदला तो ले लिया पर पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस और अमित शाह को समझ आ गया होगा कि काठ की हांडी में जो खीर पकाई जा रहही थी, अब छेद होने लगे है और हर बार मामला पूरी तरह कंट्रोल में नहीं रहता. शिवसेना को छोड़ कर गए एकनाथ ङ्क्षशदे ने मुख्यमंत्री पद छीन ही नहीं लिया भाजपा को जता दिया कि हर जगह उस की नहीं चलेगी और उसे भी अपना अहम पूरा करने की भारी कीमत देनी पड़ेगी.

कोई बड़ी बात नहीं होती कि सिर्फ 30-35 विधायकों वाली पार्टी अब 112 विधायकों वाली भाजपा को हर रोज धमकी देती रहे. एकनाथ ङ्क्षशदे उन जैसों में से हैं जो किसी भी दिन फिर पलटी मार सकते हैं. उनका शिव सेना के कैडर पर कब्जा है यह पक्का नहीं है.

ठाकरे परिवार जिस मेहनत से शिवसेना को बनाया है, एकनाथ ङ्क्षशदे उसे समेट कर ले जाएं, इस के उदाहरण कम ही है. तमिलनाडू में जयललिता के बाद अन्नाद्रविड़ मुनेत्रकषगम बिखर गई है. एमजे रामचंद्रन और जयललिता ने मिल कर इसे बनाया था. बहुजन समाज पार्टी कांशीराम और मायावती ने बनाई और कमजोर होने के बावजूद आज भी दलित वोटों पर खासी पकड़ मायावती की है चाहे वह आलास्य के कारण पार्टी को आगे नहीं चला पा रही हों.

कांग्रेस बेहद सिकुड़ गई है पर नेताओं और वेटरों को तो दूसरी पाॢटयां ले जा रही हैं  पर वर्कर आज भी गांधी परिवार के साथ हैं. शरद पंवार महाराष्ट्र तक में पूरी कांग्रेस को हड़प नहीं सकते हैं.

एकनाथ ङ्क्षशदे पूरी शिवसेना को ठाकरे परिवार के हाथों छीन लेंगे, इस में संदेह है. उलट शिवसेना में अब ङ्क्षशदे से बदला लेने की भावना तेज हो सकती है और अगले किसी भी चुनाव में जाएं शिवसेना का कैडर न हो, न ङ्क्षशदे जीत सकेंगे न भाजपा.

धोखा देना आसान है पर धोखे के बाद जीवन आसान नहीं होता. इतिहास ऐसी घटनाओं से भरा पड़ा है जिन में जिस ने धोखा देकर सरकार गिराई वह बाद में फिर लौट के आया. इस शतरंजी चाल में सफेद राज्य जीते या काले राज्य, मरते प्यादे हैं. सभी प्यादों को मार दिया जाता हैं या निकम्मा बना दिया जाता है.

अब महाराष्ट्र में न शिवसेना का कैडर अपनेआप को मजबूत समझेगा न भारतीय जनता पार्टी का जो तालमेल पिछले चुनावों तक दोनों में था वह भाजपा की बेसब्री की वजह से टूट गया है. इस का नुकसान भाजपा पहले पंजाब, बंगाल और ओडिसा में देख चुकी है जहां उस ने सत्ता में आन की छटपटाहट में भयंकर तोड़ाफोड़ी अपने खिलाफ पार्टी में तो की है, अपनी सहयोगी पार्टी में भी की. ममता बैनजी, नवीन ङ्क्षजदल कभी भाजपा के साथ काम कर चुके हैं पर काम कराना, धोखा देना और फिर कब्जा कर लेना यह पौराणिक कथाओं से भाजपा शासक सीखसीख कर आते हैं. विष्णु का वामन अवतार इसी का उदाहरण है भगवान विष्णु ने एक छोटा रूप धारण का राजा बलि को धोखा दिया.

ङ्क्षशदे का ठाकरे परिवार को दिया गया धोखा कुछ दिन काम करेगा और यह दूसरी पाॢटयों को सतर्क कर देगा. अब भाजपा के पास तोडफ़ोड़ करने के लिए लालच नहीं, ईडी की धमकी बची है. ईडी भी कितनी कामयाब होती है, यह देखना है क्योंकि अब तक सिवाए तंग करने के बाद यह कम को ही मुजरिम साबित नहीं कर पाई है.

ङ्क्षशदे का मुख्यमंत्री पद का निवाला देवेंद्र फडनवीस के मुंह से छीन ले जाने का मतलब है कि अब और फडनवीस भाजपा को नहीं मिलेेंगे पर ङ्क्षशदे जरूर मिलेंगे.

गृहमंत्री ने की यूपी सरकार की जमकर तारीफ

राजधानी लखनऊ में  यूपी स्‍टेट फॉरेंसिक साइंस इंस्‍टीट्यूट के शिलान्‍यास के दौरान गृहमंत्री अमित शाह ने यूपी को माफिया राज से मुक्ति दिलाने और महिलाओं की सुरक्षा व स्‍वावलंबन पर योगी सरकार की जमकर तारीफ की. अमित शाह ने कहा कि पहले का यूपी मुझे ठीक तरह से याद है. महिलाएं असुरिक्षत थी, दिन दहाड़े गोलियों चलती थी, यूपी में माफियाओं का राज था. आज यूपी में खड़ा हूं तो मुझे गर्व होता है कि मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ ने यूपी से माफियाराज खत्‍म कर दिया. महिलाएं अकेले बेफिक्र होकर कहीं भी जा सकती है. यूपी अपराधमुक्‍त है. योगी सरकार ने उत्‍तर प्रदेश का आगे ले जाने का काम किया है. इससे पहले प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी भी कई मंचों से योगी सरकार की तारीफ कर चुके हैं.

अमित शाह ने कहा कि कोरोना काल के कारण लम्बे समय बाद मैं यूपी आया हूं. उन्‍होंने कहा आजादी मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, इस नारे से अंग्रेजी शासन की नींव हिला देने वाले स्‍व बाल गंगाधर तिलक की आज पुण्‍यतिथि भी है. देश की युवा पी‍ढ़ी को उनके दिखाए मार्ग पर चलकर देश का मान बढ़ाना चाहिए. यूपी 2022 में फिर से भाजपा की सरकार बनने जा रही है. जिनको इस तरह के सपने आ रहे हैं, वह ‘भारत माता की जय’ नारे से स्‍वागत करें.

कोरोना प्रबंधन व वैक्‍सीनेशन में यूपी अव्‍वल

अमित शाह ने कहा कि यूपी में अपराधियों और भ्रष्‍टाचारियों के मन में योगी सरकार का भय है. अपराधी यह तो उत्‍तर प्रदेश छोड़ चुके हैं या फिर जेल की सलाखों के पीछे हैं. मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ के नेतृत्‍व में उत्‍तर प्रदेश तेजी से विकास की ओर बढ़ रहा है. कोरोना काल के दौरान बेहतरीन प्रबंधन हो या फिर रोजगार सबमें यूपी अव्‍वल रहा है. वैक्‍सीनेशन में यूपी पूरे देश में सबसे आगे हैं. भारतीय जनता पार्टी देश के विकास के लिए काम करती है. हमने कहा था कि शासन एक जाति के लिए नहीं बल्कि सबके लिए होगा. प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी जब गुजरात के मुख्‍यमंत्री थे तो गांधीनगर में राष्‍ट्रीय फॉरेंसिक यूनिवर्सिटी बनाने का काम किया. उन्‍होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार जातियों और परिवार के आधार पर नहीं चलती हैं.

यूपी में आज महिलाएं व जनता सुरक्षित है

कार्यक्रम के दौरान मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ ने कहा कि 2017 से पहले उत्‍तर प्रदेश को दंगों का प्रदेश माना जाता था. चारों तरफ माफियाओं का राज था. चार सालों में माफियाओं पर नकेल कसी गई. पुलिसिंग को बेहतर किया गया. चार सालों में पेशेवर माफियाओं और गैंगस्‍टरों की 1584 करोड़ रुपए की सम्‍पत्ति को जब्‍त किया गया. आज यूपी में महिलाएं व जनता आज अपने को सुराक्षित महसूस कर रही हैं. उत्तर प्रदेश में जो परिवर्तन हुआ है वो किसी से छिपा नहीं है. यूपी के इस परिवर्तन में सबसे अहम रोल गृहमंत्री अमित शाह का है.

50 एकड़ में बन रहा यूपी फॉरेंसिक इंस्‍टीट्यूट

प्रदेश सरकार का आपराधिक मामलों के जल्‍द निस्तारण के लिए सरोजनीनगर में 50 एकड़ की भूमि में यूपी स्‍टेट फॅारेंसिक साइंस इंस्टीट्यूट का निर्माण करा रही है. जो डीएनए के क्षेत्र में स्थापित किए जाने वाला या सेंटर ऑफ एक्सीलेंस अपने आप में देश में अनूठा संस्थान होगा. यह संस्‍थान प्रदेश के युवाओं को शिक्षा व रोजगार के बेहतर अवसर उपलब्‍ध कराएगा. इस संस्‍थान में विज्ञान व आईटी वर्ग के छात्र विभिन्‍न विषयों में कोर्स कर सकेंगे. जहां पर विशेषज्ञों द्वारा उनको फारेंसिक साइंस, डीएनएन आदि के बारे में पढ़ाएंगे. 50 एकड़ में बनने वाले यूपी स्‍टेट फॉरेंसिक साइंस इंस्‍टीट्यूट सबसे खास बात यह है कि यहां पर गुजरात के गांधीनगर स्थित राष्ट्रीय न्यायालय विज्ञान विश्वविद्यालय (एनएफएसयू) के सहयोग से सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर डीएनए की स्थापना की जाएगी. डीएनए के क्षेत्र में स्थापित किए जाने वाला यह सेंटर ऑफ एक्सीलेंस अपने आप में देश का सबसे अनूठा संस्थान होगा .

किसान आत्महत्या कर रहे, मुख्यमंत्री मौन हैं!

छत्तीसगढ़ में किसान लगातार आत्महत्या कर रहे हैं सन् 2019 में 629 आत्महत्याओं में 233 किसान व खेतिहर मजदूर हैं जिन्होंने आत्महत्या की. और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल किसानों की कथित”आत्महत्या” पर मौन है आखिर क्यों?

पहला पक्ष- अभनपुर के विधायक पूर्व मंत्री धनेंद्र साहू ने कहा  किसान की मानसिक दशा ठीक नहीं थी, इसलिए आत्महत्या कर ली है. ऐसा ही तोरला गांव के सरपंच और सचिव ने अपने बयान में कहा है जिसका विरोध मृतक किसान के परिजनों ने किया.

दूसरा पक्ष – छत्तीसगढ़ सरकार के जांच टीम ने पाया फसल क्षति, कर्ज और भुखमरी का आत्महत्या से कोई संबंध नहीं. दरअसल सरकार किसान आत्महत्या मामलों को स्वतंत्र जांच एजेंसियों के मध्यम से नहीं कराना चाहती.

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तीसरा पक्ष – हमारे संवाददाता ने रायगढ़ ,जांजगीर और कोरबा के कई किसानों से चर्चा की और पाया सरकार की नीतियों और  नकली कीटनाशक दवाइयों के कारण वर्तमान में किसान बेहद क्षुब्ध अवसाद में हैं.

छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले के अभनपुर तहसील के ग्राम तोरला के कृषक  प्रकाश तारक की आत्महत्या देशभर में सुर्खियों में रही. इसी तरह मुख्यमंत्री के गृह जिला दुर्ग में एक युवा किसान दुर्गेश निषाद किसान ने आत्महत्या कर ली है.

यहां उल्लेखनीय है कि जब भी कोई किसान  आत्महत्या करता है तो सरकार यही कहती है कि इसमें हमारी नीतियों का कोई लेना देना नहीं है. यह किसान के परिवारिक और व्यक्तिगत कारण से हुआ है. वहीं विपक्ष हमेशा यही कहता है कि यह सरकार की नीतियों के कारण आत्महत्या हुई है. वही चौथा स्तंभ प्रेस मीडिया सच को दिखाने का प्रयास करता है.

छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी की सरकार हो अथवा डॉक्टर रमन सिंह की 15 वर्ष की लंबी अवधि की भाजपा सरकार. प्रत्येक सरकार के समय काल में किसान लगातार आत्महत्या करते रहे हैं. यह मामले राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में बने, मगर सरकार ने हर दफा यही कहा कि हम तो बेदाग है. तो आखिर सरकार के  कोशिशों के बाद किसान आत्महत्या क्यों कर लेता है? यह एक ऐसा यक्ष प्रश्न है, जिसका जवाब अगर आप गांव के चौराहे और चौपाल पर पहुंचे तो आसानी से मिल सकता है. मगर सरकार का दावा यही रहता है कि इसमें हमारी छोटी सी भी खामी नहीं है. आज हम इस रिपोर्ट में छत्तीसगढ़ के किसानों के हालात पर और सरकार की नीति की खामियों पर आपको महत्वपूर्ण तथ्य बताने जा रहे हैं-

भूपेश बघेल का सरकारी ढोल..

किसान की आत्महत्या के संदर्भ में कलेक्टर रायपुर द्वारा अधिकारियों की गठित जांच टीम ने अपने जांच प्रतिवेदन में इस बात का उल्लेख किया कि कृषक  प्रकाश तारक की आत्महत्या का फसल क्षति, कर्ज और भुखमरी से कोई संबंध नहीं है. मृतक ने मानसिक अवसाद के चलते फांसी लगाकर आत्महत्या की है. अनुविभागीय दण्डाधिकारी अभनपुर, तहसीलदार एवं नायब तहसीलदार अभनपुर ने अपने संयुक्त जांच प्रतिवेदन में इस बात का उल्लेख किया है. फसल बर्बाद होने से निराश किसान  प्रकाश तारक द्वारा आत्महत्या किए जाने की खबरों को जांच टीम ने बेबुनियाद बताया है नाराजगी व्यक्त करते हुए कड़ी प्रतिक्रिया  व्यक्त की है.

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सनद रहे कि कृषक  प्रकाश तारक द्वारा फांसी लगाकर आत्महत्या किए जाने के मामले की कलेक्टर रायपुर ने एसडीएम अभनपुर के नेतृत्व में एक संयुक्त टीम गठित कर इसकी जांच कराई है. अधिकारियों की संयुक्त टीम ने ग्राम तोरला पहुंचकर मृतक के परिजनों, ग्रामीणों एवं स्थानीय जनप्रतिनिधियों के बयान लिए और मृतक की परिवारिक स्थिति के बारे में भी जानकारी ली.अधिकारियों की संयुक्त टीम ने अपने जांच प्रतिवेदन में इस बात का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है कि मृतक प्रकाश तारक की मानसिक स्थिति ठीक नहीं थी.  अधिकारियों की संयुक्त टीम ने ग्राम तोरला में ग्रामवासियों, हल्का पटवारी, जन प्रतिनिधियों और मृतक परिवार के सदस्यों की उपस्थिति में जांच कर पंचनामा तैयार किया.

अनुविभागीय दण्डाधिकारी अभनपुर और अधिकारियों की संयुक्त टीम ने अपने जांच प्रतिवेदन में मृतक की पत्नी  दुलारी बाई के शपथपूर्वक कथन में बताई गई बातों का उल्लेख करते हुए कहा है कि मृतक को कोई परेशानी नहीं थी न ही उसके उपर कोई कर्ज था, न ही किसी के द्वारा उसको परेशान एवं धमकाया जा रहा था. खेत में लगी फसल की स्थिति सामान्य है। मृतक फसल की कटाई करने के लिए खेत गया हुआ था. मृतक की पत्नी ने अपने बयान में यह भी कहा है कि उसके पति बीते कुछ दिनों से गुमसुम रहा करते थे। तोरला गांव के सरपंच और सचिव ने अपने प्रतिवेदन में इस बात का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है कि मृतक की बीते तीन-चार महीनों से मानसिक स्थिति ठीक नहीं थी. वह गुमसुम रहता था.किसी से कोई बात-चीत नहीं करता था. पूछने पर दवाई लेता हूं, यह कहता था. मृतक के परिवार को शासकीय उचित मूल्य दुकान से नियमित रूप से चावल प्रदाय किया जाता रहा है परिवार में भुखमरी की कोई नौबत नहीं है. हल्का पटवारी ने अपने रिपोर्ट में मृतक  प्रकाश तारक के फसल की स्थिति को सामान्य बताया है. ग्रामीणों एवं जनप्रतिनिधियों की उपस्थिति में तैयार किए गए पंचनामा के आधार पर जांच अधिकारियों की संयुक्त टीम ने मृतक पर कोई कर्ज न होने, उसके परिवार को नियमित रूप से पीडीएस का राशन मिलने, उसके गुमसुम तथा अवसाद से ग्रसित होने का उल्लेख किया है.

जांच अधिकारियों की संयुक्त टीम ने मृतक की पत्नी  दुलारी बाई, परिवार के अन्य सदस्यों, ग्राम के कोटवार के शपथ पूर्व कथन तथा गोबरा नवापारा थाना में कायम मर्ग तथा विवेचना में इस बात का उल्लेख है कि मानसिक बीमारी से दुखी होकर मृतक प्रकाश तारक ने आत्महत्या की है. वस्तुतः सरकार के कारिंदों द्वारा जारी की गई जांच रिपोर्ट पढ़कर कोई भी समझ सकता है कि इस तरह किसान की आत्महत्या को झुठलाया जा रहा है.

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सरकार का “सफेद झूठा” होना

यहां सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि किसान प्रकाश के परिजन क्षेत्रीय विधायक व पूर्व मंत्री धनेंद्र साहू से बेहद नाराज हैं जिन्होंने सबसे पहले यह कहा कि प्रकाश मानसिक रूप सेअवसाद ग्रस्त था. और साफ साफ कह रहे हैं कि ऐसी कोई बात नहीं थी. सवाल यह है कि सरकार अपने शासकीय अमले से किसान की आत्महत्या की जांच क्यों करवाती है.क्यों नहीं किसी स्वतंत्र जांच एजेंसी के द्वारा किसान की आत्महत्या की सच्चाई को जानने का प्रयास किया जाता इसे हेतु “न्यायिक जांच” भी गठित की जा सकती है अथवा विपक्ष को भी जांच का अधिकार दिया जाना चाहिए. मगर कोई भी सरकार किसान आत्महत्या के मामले में सिर्फ अपने अधीनस्थ एसडीएम, कलेक्टर अथवा पटवारी से जांच करवा कर मामले की इतिश्री कर लेती है. और इस तरह किसान की आत्महत्या की सच्चाई को दबा दिया जाता है. अगर सरकार किसानों की हितैषी है जैसा कि वह हमेशा ढोल बजाते जाती है छत्तीसगढ़ में तो प्रति क्विंटल 25 सो रुपए धान का मूल्य दिया जा रहा है करोड़ों रुपए विज्ञापन पर खर्च किए जाते हैं और यह प्रचार प्रसार किया जाता है कि भूपेश बघेल की सरकार किसानों की हितैषी सरकार है, ऐसे में कोई किसान आत्महत्या कर ले तो यह सरकार के सफेद कपड़े पर एक काला दाग बन कर उभर आता है. शायद यही कारण है कि

अनुविभागीय दण्डाधिकारी, अभनपुर ने बताया कि मृतक मृतक के परिवार में उसकी पत्नी और 4 बच्चे है. संयुक्त परिवार बंटवारा में प्राप्त 1.79 हेक्टेयर भूमि में  प्रकाश तारक कृषि करता था. उसे मनरेगा से जॉब कार्ड भी मिला है. पारिवारिक बंटवारा में उसे तीन कमरा और एक किचन वाला मकान मिला है. मृतक के उपर कोई कर्ज नहीं था। उसके परिवार को नियमित रूप से शासकीय उचित मुल्य दुकान से चावल मिल रहा था. परिवार में भुखमरी की नौबत नहीं है. मृतक के घर से 1 कट्टा धान शासकीय उचित मूल्य दुकान से प्राप्त चावल पाया गया. हल्का पटवारी के अनुसार फसल की स्थिति सामान्य है.समिति के माध्यम से पिछले खरीफ धान विक्रय के दौरान मृतक के  सम्मिलात खाते में 105 क्विटल धान बेचा था. जिसके एवज में एक लाख 83 हजार की राशि मिली थी.

गांव गांव के किसान हलाकान!

हमारे संवाददाता की जमीनी रिपोर्ट यह बताती है कि छत्तीसगढ़ के अनेक गांवों में किसान  नकली कीटनाशक दवाइयों के कारण त्रासदी भोग रहे हैं.

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यह पहली बार हुआ है कि 1 एकड़ के कृषि में किसान को पांच हजार रुपए के कीटनाशक दवाइयों की जगह लगभग 12000  रूपए  कीटनाशकों पर खर्च करना पड़ रहा है. मगर इसके बावजूद  कीट रातों-रात खेतों को सफाचट कर रहे हैं, किसान समझ नहीं पा रहे हैं कि यह सब क्या हो रहा है. हमारे संवाददाता ने रायगढ़ के जोबी गांव के किसान कृपाराम राठिया, कोरबा जिला के ग्राम मुकुंदपुर के शिवदयाल कंवर, राम लाल यादव, तरुण कुमार देवांगन से चर्चा की तो यह तथ्य सामने आया कि सत्र 2019 -20 में किसानों के कीटनाशकों के खरीदी में बेइंतेहा पैसे खर्च हुए हैं इसके बावजूद खेतों में कीट रातो रात फसल को साफ कर रहे हैं. जिससे किसान समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर यह सब क्यों हो रहा है. जानकार सूत्रों के अनुसार छत्तीसगढ़ में नकली कीटनाशक दवाइयों की बिक्री जोरों पर है जिससे किसान लूटे जा रहे हैं, बर्बाद हो रहे हैैं. सरकार कोई एक्शन नहीं ले  रही है. परिणाम स्वरूप किसान आत्महत्या करने के कगार पर है.

गहरी पैठ

हाथरस, बलरामपुर जैसे बीसियों मामलों में दलित लड़कियों के साथ जो भी हुआ वह शर्मनाक तो है ही दलितों की हताशा और उन के मन की कमजोरी दोनों को दिखाता है. 79 सांसदों और 549 विधायक जिस के दलित हों, वह भारतीय जनता पार्टी की इस बेरुखी से दलितों पर अत्याचार करते देख रही है तो इसलिए कि उसे मालूम है कि दलित आवाज नहीं उठाएंगे.

पिछले 100 सालों में पहले कांग्रेसी नेताओं ने और फिर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेताओं ने जम कर पौराणिक व्यवस्था को गांवगांव में थोपा. रातदिन पुराणों, रामायण, महाभारत और लोककथाओं को प्रवचनों, कीर्तनों, यात्राओं, किताबों, पत्रिकाओं, फिल्मों व नाटकों से फैलाया गया कि जो व्यवस्था 2000 साल पहले थी वही अच्छी थी और तर्क, तथ्य पर टिकी बराबरी की बातें बेकार हैं.

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जिन लोगों ने पढ़ कर नई सोच अपनाई थी उन्हें भी इस में फायदा नजर आया चाहे वे ऊंची जातियों के पढ़े-लिखे सुधारक हों या दलितों के ही नेता. उन्हें दलितों में कम पैसे में काम करने वालों की एक पूरी बरात दिखी जिसे वे छोड़ना नहीं चाहते थे.

यही नहीं, दलितों के बहाने ऊंची जातियों को अपनी औरतों को भी काबू में रखने का मौका मिल रहा था. जाति बड़ी, देश छोटा की बात को थोपते हुए ऊंची जातियों ने दहेज, कुंडली, कन्या भ्रूण हत्या जम कर अपनी औरतों पर लादी. औरत या लड़की चाहे ऊंची जाति की हो या नीची, मौजमस्ती के लिए है. इस सोच पर टिकी व्यवस्था में सरकार, नेताओं, व्यापारियों, अफसरों, पुलिस से ले कर स्कूलों, दफ्तरों में बेहद धांधली मचाई गई.

हाथरस में 19 साल की लड़की का रेप और उस से बुरी तरह मारपीट एक सबक सिखाना था. यह सबक ऊंची जातियां अपनी औरतों को भी सिखाती हैं, रातदिन. अपनी पढ़ीलिखी औरतों को रातदिन पूजापाठ में उलझाया गया. जो कमाऊ थीं उन का पैसा वैसे ही झटक लिया गया जैसा दलित आदमी औरतों का झटका जाता है. जिन आदमियों को छूना पाप होता है, उन की औरतों, बेटियों के गैंगरेप तक में पुण्य का काम होता है. यह पाठ रोज पढ़ाया जाता है और हाथरस में यही सबक न केवल ब्राह्मण, ठाकुर सिखा रहे हैं, पूरी पुलिस, पूरी सरकार, पूरी पार्टी सिखा रही है.

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दलितों के नेता चुपचाप देख रहे हैं क्योंकि वे मानते हैं कि जिन का उद्धार नहीं हुआ उन्हें तो पाप का फल भोगना होगा. मायावती जैसे नेता तो पहले ही उन्हें छोड़ चुके हैं. भारतीय जनता पार्टी के 79 सांसद और 549 विधायक अपनी बिरादरी से ज्यादा खयाल धर्म की रक्षा के नाम पर पार्टी का कर रहे हैं. दलित लड़कियां तो दलितों के हाथों में भी सुरक्षित नहीं हैं. यह सोच कर इस तरह के बलात्कारों पर जो चुप्पी साध लेते हैं, वही इस आतंक को बढ़ावा दे रहे हैं.

सरकार की हिम्मत इस तरह बढ़ गई है कि उस ने अपराधियों को बचाने के लिए पीडि़ता के घर वालों पर दबाव डाला और हाथरस के बुलगढ़ी गांव को पुलिस छावनी बना कर विपक्षी दलों और प्रैस व मीडिया को जाने तक नहीं दिया. वे जानते हैं कि जाति शाश्वत है. यह हल्ला 4 दिन में दब जाएगा.

बिहार चुनावों की गुत्थी समझ से परे हो गई है. भारतीय जनता पार्टी नीतीश कुमार का साथ भी दे रही है और उसी के दुश्मन चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी से भी मिली हुई है. इस चक्कर में हाल शायद वही होगा जो रामायण और महाभारत के अंत में हुआ. रामायण में अंत में राम के पास न सीता थी, न बच्चे लवकुश, न लक्ष्मण, न भरत. महाभारत में पांडवों के चचेरे भाई मारे भी जा चुके थे और उन के अपने सारे बेटेपोते भी.

लगता है कि हिंदू पौराणिक कथाओं का असर इतना ज्यादा है कि बारबार यही बातें दोहराई जाती हैं और कुछ दिन फुलझड़ी की तरह हिंदू सम्राट का राज चमकता है, फिर धुआं देता बुझ जाता है. बिहार में संभव है, न नीतीश बचें, न चिराग पासवान.

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जो स्थिति अब दिख रही है उस के अनुसार चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी के उम्मीदवार भाजपा की सहयोगी पार्टी सत्तारूढ़ जनता दल (यूनाइटेड) के सभी उम्मीदवारों के खिलाफ उम्मीदवार खड़ी करेगी. वे कितने वोट काटेंगे पता नहीं, पर चिराग पासवान के पास अगर अभी भी दलित व पासवान वोटरों का समर्थन है तो आश्चर्य की बात होगी, क्योंकि चिराग पासवान जाति के नाम पर वोट ले कर सत्ता में मौज उठाने के आदी हो चुके हैं. हो सकता है कि उन्हें एहसास हो गया हो कि नीतीश कुमार निकम्मेपन के कारण हारेंगे तो लालू प्रसाद यादव की पार्टी के साथ गठबंधन करने में आसानी रहेगी और तब वे भाजपा को 2-4 बातों पर कोस कर अलग हो जाएंगे.

जो भी हो, यह दिख रहा है कि कम से कम नेताओं को तो बिहार की जनता की चिंता नहीं है. बिहार की जनता को अपनी चिंता है, इस के लक्षण दिख नहीं रहे, पर कई बार दबा हुआ गुस्सा वैसे ही निकल पड़ता है जैसे 24 मार्च को लाखों मजदूर दिल्ली, मुंबई, बैंगलुरु से पैदल ही बिहार की ओर निकले थे. वह हल्ला का परिणाम था, चुनावों में गुस्से का दर्शन हो सकता है.

बिहार के मुद्दे अभी तक चुनावी चर्चा में नहीं आए हैं. बिहार में बात तो जाति की ही हो रही है. बिहार की दुर्दशा के लिए यही जिम्मेदार है कि वहां की जनता बेहद उदासीन और भाग्यवादी है. उसे जो है, जैसा है मंजूर है, क्योंकि उसे पट्टी पढ़ा दी गई है कि सबकुछ पूजापाठी तय करते हैं, आम आदमी के हाथ में कुछ नहीं है.

बिहार देश की एक बहुत बड़ी जरूरत है. वहां के मजदूरों ने ही नहीं, वहां के शिक्षितों और ऊंची जाति के नेताओं ने देशभर में अपना नाम कमाया है. बिहार के बिना देश अधूरा है पर बिहार में न गरीब की पूछ है, न पढ़ेलिखे शिक्षित की चाहे वह तिलकधारी हो या घोर नास्तिक व तार्किक. ऐसा राज्य अपने नेताओं के कारण मैलाकुचला पड़ा रहे, यह खेद की बात है और नीतीश कुमार जीतें या हारें कोई फर्क नहीं पड़ेगा.

बिहार में का बा : लाचारी, बीमारी, बेरोजगारी बा

जिस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के नाम अपने संदेश में लोगों को कोरोना से बचने के लिए आगाह कर रहे थे, उसी समय भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा बिहार विधानसभा चुनाव के सिलसिले में एक रैली को संबोधित कर रहे थे. उस भीड़ में न मास्क था और न ही आपस में 2 गज की दूरी. इसी साल के मार्च महीने में जब कोरोना की देश में आमद हो रही थी, तब 2,000 लोगों के जमातीय सम्मेलन को कोरोना के फैलने की वजह बता कर बदनाम किया गया था, पर अब बिहार चुनाव में लाखों की भीड़ से भी कोई गुरेज नहीं है.

बिहार चुनाव इस बार बहुत अलग है. नीतीश कुमार अपने 15 साल के सुशासन की जगह पर लालू प्रसाद यादव के 15 साल के कुशासन पर वोट मांग रहे हैं. इस के उलट बिहार के 2 युवा नेताओं चिराग पासवान और तेजस्वी यादव ने बड़ेबड़े दलों के समीकरण बिगाड़ दिए हैं.

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बिहार चुनाव में युवाओं की भूमिका अहम है. बिहार में बेरोजगारी सब से बड़ा मुद्दा बन गई है. एक अनजान सी गायिका नेहा सिंह राठौर ने ‘बिहार में का बा’ की ऐसी धुन जगाई है कि भाजपा जैसे बड़े दल को बताना पड़ रहा है कि ‘बिहार में ई बा’ और नीतीश कुमार अपने काम की जगह लालू के राज के नाम पर वोट मांग रहे हैं.

बिहार की चुनावी लड़ाई अगड़ों की सत्ता को मजबूत करने के लिए है. एससी तबके की अगुआई करने वाली लोक जनशक्ति पार्टी को राजग से बाहर कर के सीधे मुकाबले को त्रिकोणात्मक किया गया है, जिस से सत्ता विरोधी मतों को राजदकांग्रेस गठबंधन में जाने से रोका जा सके.

जिस तरह से नीतीश कुमार का इस्तेमाल कर के पिछड़ों की एकता को तोड़ा गया, अब चिराग पासवान को निशाने पर लिया गया है, जिस से कमजोर पड़े नीतीश कुमार और चिराग पासवान पर मनमाने फैसले थोपे जा सकें.

बिहार चुनाव में अगर भाजपा को पहले से ज्यादा समर्थन मिला, तो वह तालाबंदी जैसे फैसले को भी सही साबित करने की कोशिश करेगी. बिहार को हिंदुत्व का नया गढ़ बनाने का काम भी होगा.

बिहार के चुनाव में जातीय समीकरण सब से ज्यादा हावी होते हैं. यह कोई नई बात नहीं है. आजादी के पहले से ही यहां जातीयता और राजनीति में चोलीदामन का साथ रहा है. 90 के दशक से पहले यहां की राजनीति पर अगड़ों का कब्जा रहा है.

लालू प्रसाद यादव ने मंडल कमीशन लागू होने के बाद बिहार की राजनीति की दिशा को बदल दिया था. अगड़ी जातियों ने इस के खिलाफ साजिश कर के कानून व्यवस्था का मामला उठा कर लालू प्रसाद यादव के राज को ‘जंगलराज’ बताया था. उन के सामाजिक न्याय को दरकिनार किया गया था.

पिछड़ी जातियों में फूट डाल कर नीतीश कुमार को समाजवादी सोच से बाहर कर के अगड़ी जातियों के राज को स्थापित करने में इस्तेमाल किया गया था. बिहार की राजनीति के ‘हीरो’ लालू प्रसाद यादव को ‘विलेन’ बना कर पेश किया गया था.

भारतीय जनता पार्टी को लालू प्रसाद यादव से सब से बड़ी दुश्मनी इस वजह से भी है कि उन्होंने भाजपा के अयोध्या विजय को निकले रथ को रोकने का काम किया था. साल 1990 में जब अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए सोमनाथ से अयोध्या के लिए रथ ले कर भाजपा नेता लाल कृष्ण अडवाणी निकले, तो उन को बिहार में रोक लिया गया.

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भाजपा को लालू प्रसाद यादव का यह कदम अखर गया था. केंद्र में जब भाजपा की सरकार आई, तो लालू प्रसाद यादव को चारा घोटाले में उल झाया गया और इस के सहारे उन की राजनीति को खत्म करने का काम किया गया.

लालू प्रसाद यादव के बाद भी बिहार की हालत में कोई सुधार नहीं आया. बिहार में पिछले 15 साल से नीतीश कुमार मुख्यमंत्री रह चुके हैं. इस के बाद भी बिहार बेहाल है.

साल 2020 के विधानसभा चुनावों में लालू प्रसाद यादव का ‘सामाजिक न्याय’ भी बड़ा मुद्दा है. लालू प्रसाद यादव भले ही चुनाव मैदान में नहीं हैं, पर उन का मुद्दा चुनाव में मौजूद है.

नई पीढ़ी का दर्द

तालाबंदी के बाद मजदूरों का पलायन एक दुखभरी दास्तान है. नई पीढ़ी के लोगों को यह दर्द परेशान कर रहा है. नौजवान सवाल कर रहे हैं कि 15 साल तक एक ही नेता के मुख्यमंत्री रहने के बाद भी बिहार की ऐसी हालत क्यों है? अब उसी नेता को दोबारा मुख्यमंत्री पद के लिए वोट क्यों दिया जाए?

मुंबई आ कर उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग अपनी रोजीरोटी के लिए तिलतिल मरते हैं. अगर उन के प्रदेशों में कामधंधा होता, रोजीरोटी का जुगाड़ होता, तो ये लोग अपने प्रदेश से पलायन क्यों करते?

फिल्म कलाकार मनोज बाजपेयी ने अपने रैप सांग ‘मुंबई में का बा…’ में मजदूरों की हालत को बयां किया है.  5 मिनट का यह गाना इतना मशहूर  हुआ कि अब बिहार चुनाव में वहां की जनता सरकार से पूछ रही है कि ‘बिहार में का बा’.

दरअसल, बिहार में साल 2005 से ले कर साल 2020 तक पूरे 15 साल नीतीश कुमार मुख्यमंत्री रहे हैं. केवल एक साल के आसपास जीतनराम मां झी मुख्यमंत्री की कुरसी पर बैठ पाए थे, वह भी नीतीश कुमार की इच्छा के मुताबिक.

किसी भी प्रदेश के विकास के लिए 15 साल का समय कम नहीं होता. इस के बाद भी बिहार की जनता नीतीश कुमार से पूछ रही है कि ‘बिहार में का बा’ यानी बिहार में क्या है?

तालाबंदी के दौरान सब से ज्यादा मजदूर मुंबई से पलायन कर के बिहार आए. 40 लाख मजदूर बिहार आए. इन में से सभी मुंबई से नहीं आए, बल्कि कुछ गुजरात, पंजाब और दिल्ली से भी आए.

ये मजदूर यह सोच कर बिहार वापस आए थे कि अब उन के प्रदेश में रोजगार और सम्मान दोनों मिलेंगे. यहां आ कर मजदूरों को लगा कि यहां की हालत खराब है. रोजगार के लिए वापस दूर प्रदेश ही जाना होगा. बिहार में न तो रोजगार की हालत सुधरी और न ही समाज में मजदूरों को मानसम्मान मिला.

बीते 15 सालों में बिहार की  12 करोड़, 40 लाख आबादी वाली जनता भले ही बदहाल हो, पर नेता अमीर होते गए हैं. बिहार में 40 सांसद और 243 विधायक हैं. इन की आमदनी बढ़ती रही है. पिछले 15 सालों में  85 सांसद करोड़पति हो गए और 468 विधायक करोड़पति हो गए.

मनरेगा के तहत बिहार में औसतन एक मजदूर को 35 दिन का काम मिलता है. अगर इस का औसत निकालें तो हर दिन की आमदनी 17 रुपए रोज की बनती है. राज्य में गरीब परिवारों की तादाद बढ़ती जा रही है.

गरीबी रेखा से नीचे यानी बीपीएल परिवारों की तादाद तकरीबन 2 करोड़, 85 लाख है. नीतीश कुमार के 15 सालों में गरीबों की तादाद बढ़ी है और नेताओं की आमदनी बढ़ती जा रही है.

जंगलराज या सामाजिक न्याय

मंडल कमीशन लागू होने के बाद बिहार की राजनीतिक और सामाजिक हालत में आमूलचूल बदलाव हुआ. लालू प्रसाद यादव सामाजिक न्याय के पुरोधा बन कर उभरे. उन के योगदान को दबाने का काम किया गया.

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साल 1990 से साल 2020 के  30 सालों में बिहार पर दलितपिछड़ा और मुसलिम गठजोड़ राजनीति पर हावी रहा है. अगड़ी जातियों का मकसद है कि  30 सालों में जो उन की अनदेखी हुई, अब वे मुख्यधारा का हिस्सा बन जाएं.

भारतीय जनता पार्टी की अगुआई में अगड़ी जातियां काफीकुछ अपने मकसद में कामयाब भी हो गई हैं. बिहार में भाजपा का युवा शक्ति के 2 नेताओं तेजस्वी यादव और चिराग पासवान से सीधा मुकाबला है.

भाजपा के पास बिहार में कोई चेहरा नहीं है, जिस के बल पर वह सीधा चुनाव में जा सके. सुशील कुमार मोदी भाजपा का पुराना चेहरा हो चुके हैं.

विरोधी मानते हैं कि बिहार में लालू प्रसाद यादव के समय जंगलराज था. जंगलराज का नाम ले कर लोगों को डराया जाता है कि लालू के आने से बिहार में जंगलराज की वापसी हो जाएगी.

राष्ट्रीय जनता दल के तेजस्वी यादव कहते हैं, ‘मंडल कमीशन के बाद वंचितों को न्याय और उन को बराबरी की जगह दे कर सामाजिक न्याय दिलाने का काम किया गया था. अब आर्थिक न्याय देने की बारी है.

‘जो लोग जंगलराज का नाम ले कर बिहार की छवि खराब कर रहे हैं, वे बिहार के दुश्मन हैं. इन के द्वारा बिहार की छवि खराब करने से यहां पर निवेश नहीं हो रहा. लोग डर रहे हैं. अब हम आर्थिक न्याय दे कर नए बिहार की स्थापना के लिए काम करेंगे.’

वंचितों के नेता

लालू प्रसाद यादव की राजनीति को हमेशा से जातिवादी और भेदभावपूर्ण बता कर खारिज करने की कोशिश की गई. लालू प्रसाद यादव अकेले नेता नहीं हैं, जिन को वंचितों के हक की आवाज उठाने पर सताया गया हो. नेल्सन मंडेला, भीमराव अंबेडकर, मार्टिन लूथर किंग जैसे अनगिनत उदाहरण पूरी दुनिया में भरे पड़े हैं.

लालू प्रसाद यादव सामंतियों के दुष्चक्र के शिकार हुए, जिन की वजह से उन का राजनीतिक कैरियर खत्म करने की कोशिश की गई. इस के बाद भी लालू प्रसाद यादव के योगदान से कोई इनकार नहीं किया जा सकता है.

लालू प्रसाद यादव साल 1990 से साल 1997 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे. साल 2004 से साल 2009 तक उन्होंने केंद्र की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार यानी संप्रग सरकार में रेल मंत्री के रूप में काम किया.

बिहार के बहुचर्चित चारा घोटाला मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो अदालत ने 5 साल के कारावास की सजा सुनाई. चारा घोटाला मामले में दोषी करार दिए जाने के बाद उन्हें लोकसभा से अयोग्य ठहराया गया.

लालू प्रसाद यादव मंडल विरोधियों के निशाने पर थे. इस की सब से बड़ी वजह यह थी कि साल 1990 में लालू प्रसाद यादव ने राम रथ यात्रा के दौरान समस्तीपुर में लाल कृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार किया.

मंडल विरोधी भले ही लालू प्रसाद यादव के राज को जंगलराज बताते थे, पर सामाजिक मुद्दे के साथसाथ आर्थिक मोरचे पर भी लालू सरकार की तारीफ होती रही है.

90 के दशक में आर्थिक मोरचे पर विश्व बैंक ने लालू प्रसाद यादव के काम की सराहना की. लालू ने शिक्षा नीति में सुधार के लिए साल 1993 में अंगरेजी भाषा की नीति अपनाई और स्कूल के पाठ्यक्रम में एक भाषा के रूप में अंगरेजी को बढ़ावा दिया.

राजनीतिक रूप से लालू प्रसाद यादव के जनाधार में एमवाई यानी मुसलिम और यादव फैक्टर का बड़ा योगदान है. लालू ने इस से कभी इनकार भी नहीं किया है.

साल 2004 के लोकसभा चुनाव में लालू प्रसाद यादव रेल मंत्री बने. उन के कार्यकाल में ही दशकों से घाटे में चल रही रेल सेवा फिर से फायदे में आई.

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भारत के सभी प्रमुख प्रबंधन संस्थानों के साथसाथ दुनियाभर के बिजनैस स्कूलों में लालू प्रसाद यादव के कुशल प्रबंधन से हुआ भारतीय रेलवे का कायाकल्प एक शोध का विषय बन गया.

अगड़ी जातियों की वापसी

राजनीतिक समीक्षक अरविंद जयतिलक कहते हैं, ‘जनता यह मानती है कि राज्य की कानून व्यवस्था अच्छी रहे. यही वजह है कि लालू प्रसाद यादव के विरोधियों ने उन की पहचान को जंगलराज से जोड़ कर प्रचारित किया. उन के प्रतिद्वंद्वी नीतीश कुमार के राज को सुशासन कहा गया.

‘इसी मुद्दे पर ही नीतीश कुमार हर बार चुनाव जीतते रहे और 15 साल तक मुख्यमंत्री बने रहे. लालू प्रसाद यादव ने जो सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ी और जो आर्थिक सुधारों के लिए काम किया, उस की चर्चा कम हुई.

‘लालू प्रसाद यादव की आलोचना में विरोधी कामयाब रहे. बहुत सारे काम करने के बाद भी लालू यादव को जो स्थान मिलना चाहिए था, नहीं मिला.’

बिहार में तकरीबन 20 फीसदी अगड़ी जातियां हैं. पिछड़ी जातियों में 200 के ऊपर अलगअलग बिरादरी हैं. इन में से बहुत कोशिशों के बाद कुछ जातियां ही मुख्यधारा में शामिल हो पाई हैं. बाकी की हालत जस की तस है. इन में से 10 से 15 फीसदी जातियों को ही राजनीतिक हिस्सेदारी मिली है.

1990 के पहले बिहार की राजनीति में कायस्थ, ब्राह्मण, क्षत्रिय और भूमिहार प्रभावी रहे हैं. दलितों की हालत भी बुरी है. बिहार की आबादी का 16 फीसदी दलित हैं. अगड़ी जातियों ने दलितों में खेमेबंदी को बढ़ावा देने का काम किया है.

साल 2005 में भाजपा और जद (यू) ने अगड़ी जातियों को सत्ता में वापस लाने का काम किया. साल 2020 के विधानसभा चुनाव में भाजपा अब नीतीश कुमार को भी दरकिनार करने की कोशिश कर रही है.

आत्महत्या : तुम मायके मत जइयो!

पति और पत्नी का संबंध कहा जाता है कि सात जन्मों का गठबंधन होता है. ऐसे में जब  आसपास यह देखते हैं कि कोई महिला अथवा पुरुष इसलिए आत्महत्या कर लेता है कि उसके साथी ने उसे समझने से इंकार कर दिया. और प्रताड़ना का दौर कुछ ऐसा बढ़ा की पुरुष हो या फिर स्त्री उसके सामने आत्महत्या के द्वारा अपनी इहलीला समाप्त करने के अलावा कोई चारा नहीं रह जाता.

यह त्रासदी इतनी भीषण है कि आए दिन ऐसी घटनाएं सुर्ख़ियों में रहती है. आज हम इस लेख में यह विवेचना का प्रयास करेंगे कि शादीशुदा पुरुष, ऐसी कौन सी परिस्थितियां होती हैं, जब गले में फंदा लगाकर आत्महत्या कर लेते हैं. हाल ही में छत्तीसगढ़ में ऐसी अनेक घटनाएं घटी हुई जिसमें पुरुषों ने अपनी पत्नी अथवा सांस पर आरोप लगाकर आत्महत्या कर ली.

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ऐसे ही एक परिवार से जब यह संवाददाता मिला और चर्चा की तो अनेक ऐसे तथ्य खुलकर सामने आ गए जिन्हें समझना और जानना आज एक जागरूक पाठक के लिए बहुत जरूरी है.

प्रथम घटना-

छत्तीसगढ़ की न्यायधानी बिलासपुर में हाईकोर्ट के एक वकील ने आत्महत्या कर ली. सुसाइड नोट में लिखा कि वह पत्नी के व्यवहार से क्षुब्ध होकर आत्महत्या कर रहा है. वह अपनी धर्मपत्नी से प्रताड़ित हो रहा है.

दूसरी घटना-

छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिला में एक व्यक्ति ने आत्महत्या कर ली और सुसाइड नोट में लिखा कि उसे पत्नी की प्रताड़ना के कारण आत्महत्या करनी पड़ रही है.

तीसरी घटना-

जिला कोरबा के एक व्यापारी ने आत्महत्या कर ली जांच पड़ताल में यह तथ्य सामने आया कि उसका वैवाहिक जीवन सुखद नहीं था. पत्नी के व्यवहार के कारण उसने अपनी जान दे दी.

मैं मायके चली जाऊंगी…!

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के कबीर नगर थाना क्षेत्र में पत्नी और सास से प्रताड़ित होकर एक शख्स द्वारा द्वारा आत्महत्या का मामला सुर्खियों में है. पुलिस द्वारा मिली जानकारी के अनुसार मौके से पुलिस को  दो पन्नों का सुसाइड नोट मृतक के जेब से मिला है. कबीर नगर थाने मैं पदस्थ पुलिस अधिकारी के अनुसार मृतक ने अपनी मौत का जिम्मेदार अपनी पत्नी और सास को बताया है.

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सुसाइड नोट में मृतक ने लिखा है – उसकी पत्नी बार-बार घर में झगड़ा कर के अपने मायके चली जाती थी और  दो साल की बेटी से भी  मिलने नहीं दिया जाता था. जिसके कारण तनाव में आकर उसने आत्महत्या कर ली. मृतक का नाम मनीष चावड़ा है.  इस मामले में अब तक पुलिस अन्य एंगल से भी तहकीकात कर रही है. मगर जो तथ्य सामने आए हैं उनके अनुसार जब पत्नी अक्सर अपने मायके से संबंध रखे हुए थी. दरअसल, जब पत्नी बार-बार पति को छोड़कर चले जाती है तो डिप्रेशन में आकर पुरुष आत्महत्या कर लेते हैं. ऐसी अनेक घटनाएं घटित हो चुकी है. ऐसे में यही कहा जा सकता है कि वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाने के लिए पति और पत्नी दोनों  एक दूसरे की भावना का सम्मान करते हुए यह जानने और समझने की दरकार है कि पूरी जिंदगी दुख सुख में साथ  निभाना है. अगर यह बात गांठ बांध ली जाए तो आत्महत्या और तलाक अर्थात संबंध विच्छेद के मामलों में कमी आ सकती है.

मां और भाइयों की नासमझी

आत्महत्या और संबंध विच्छेद के मामलों में आमतौर पर देखा गया है कि विवाह के पश्चात भी अपनी बेटी और बहन के साथ मायके वालों  के गठबंधन कुछ ऐसे होते हैं कि पति बेचारा विवश और असहाय  हो जाता है. सामाजिक कार्यकर्ता इंजीनियर रमाकांत श्रीवास कहते हैं- यहां यह बात समझने की है कि बेटी के ब्याह के पश्चात मायके पक्ष को यह समझना चाहिए कि अब बेटी की विदाई हो चुकी है और जब तलक उसके साथ अत्याचार, अथवा प्रताड़ना की घटना सामने नहीं आती, छोटी-छोटी बातों पर उसे प्रोत्साहित करने का मतलब यह होगा कि बेटी के वैवाहिक जीवन में जहर घोलना.

उम्र के इस पड़ाव में परिस्थितियां कुछ ऐसी मोड़ लेती है कि पति बेचारा मानसिक रूप से परेशान होकर आत्महत्या कर लेता है. और इस तरह एक  सुखद परिवार टूट कर बिखर जाता है. कई बार देखा गया है कि बाद में पति की मौत के बाद पत्नी को यह समझ आता है कि उसने कितनी बड़ी भूल कर दी. अतः समझदारी का ताकाजा यही है कि जब हाथ थामा है तो पति का साथ दें और छोटी-छोटी बातों पर कभी भी परिवार को तोड़ने की कोशिश दोनों ही पक्ष में से कोई भी न करें.

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