हमारे देश में फालतू बातों पर समय और दम बरबाद करने की पुरानी आदत है. यहां तो बेबात की, तो सिर भी फोड़ लेंगे पर काम की बात के लिए 4 जने जमा नहीं होंगे. बकबक करनी हो, होहल्ला मचाना हो, तो सैकड़ों की तमाशाई भीड़ जमा भी हो जाएगी और अपनाअपना गुट भी बना लेगी. जब देश के सामने चीन की आफत खड़ी है, जब बेकारी हर रोज बढ़ रही है, जब उद्योगधंधे बंद हो रहे हैं, जब कोरोना की बीमारी दुनियाभर के रिकौर्ड बना रही है, हम क्या बोल रहे हैं, सुन रहे हैं? रिया चक्रवर्ती और सुशांत सिंह के किस्से, जिस में ऐक्टै्रस कंगना राणावत बेबात में कूद कर हीरोइन बन गई है.

यह आज की बात नहीं है. रामायण काल में राजा दशरथ को राज करने की जगह फालतू में शिकार पर जाने की लगी थी, जब उन्होंने एक अंधे मांबाप के बेटे को तीर से मार डाला. राजा का काम राज करने का था. उस के बाद जंगल में राम ने शूर्पणखा की नाक सिर्फ इसलिए काट ली कि वह प्यार करने का आग्रह बारबार कर रही थी. दोनों का नतीजा बुरा हुआ. श्रवण कुमार के मांबाप के श्राप की वजह से राम को वनवास लेना पड़ा और उस के गम में राजा दशरथ की मौत हो गई.

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महाभारत काल में इंद्रप्रस्थ में द्रौपदी का दुर्योधन और उस के भाइयों को महल में अंधे के बेटे कहना इतना गंभीर बना कि महाभारत का युद्ध हो गया और कुरु वंश ही खत्म हो गया. गीता का उपदेश चाहे जैसा हो, उस में यह नहीं कहा गया कि फालतू की भीड़ और फालतू की बकबक से समाज और देश नहीं बनते.

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