बिहार के पूॢणया में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हमला करते हुए भारतीय जनता पार्टी के गृहमंत्री अमित शाह ने भारतीय जनता पार्टी का साथ छोड़ कर राष्ट्रीय जनता दल का दामन इसलिए पकड़ा कि वह प्रधानमंत्री बन सकें. यह सही है पर इस को मान लेने का अर्थ है कि अमित शाह अब इस संभावना के लिए तैयार हैं कि नरेंद्र मोदी का काल समाप्त हो सकता है. अभी कुछ दिन पहले तक भारतीय जनता पार्टी तो नरेंद्र मोदी के 2029 और 2034 के चुनाव भी जीत लेने की बात करती रही है.

अमित शाह ने आरोप लगाया कि नीतीश कुमार अपने फायदे के लिए खेमे बदलते रहे हैं पर यह आरोप तो नीतीश कुमार की जगह भारतीय जनता पार्टी पर ज्यादा लगना चाहिए जो सारे देश में चुने हुए विधायकों को अपनी पार्टी में शामिल कर के सरकारों पर कब्जा कर रही है. अपने फायदे में तो भाजपा ज्यादा रही है जो दंड और अर्थ का इस्तेमाल कर के दलबदल करा रही है.

नीतीश कुमार ने अगर उस समय पार्टी का साथ छोड़ा जब भाजपा एकएक कर के कई राज्यों में अपनी जांच एजेंसियों के सहारे सत्ता में आने लगी थी. अमित शाह ने नीतीश कुमार की कलाबाजियां गिनाईं पर भाजपा खुद कभी रामविलास पासवान तो कभी ज्यातिर्मय ङ्क्षसधिया तो कभी अमङ्क्षरद्र ङ्क्षसह जैसे घोर भाजपा विरोधियों को बड़े ढोल बजा कर शामिल करती रही है.

राजनीति में दलबदल अगर सिद्धांतो की असहमति के कारण हो तो ठीक है पर पिछले सालों में यह केवल जांच एजेंसियों के डर या पैसे के कारण होने लगा है जो देश की बचीखुची राजनीतिक विश्वसनीयता का लगभग नष्ट कर चुका है. आज किसी पार्टी को भरोसा नहीं है कि उस का उम्मीदवार जीतने के बाद कब तक पार्टी में रहेगा. जैसे ही भाजपा कहीं भी कमजोर होने लगेगी, यह बिमारी भाजपा में फूटने लगेगी क्योंकि भाजपा ने दलबदल का वायरस खुशीखुशी अपनी पार्टी में मिलाया है.

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