अगर आपको भी है सिगरेट पीने की आदत तो इस खबर को जरूर पढ़ें

Lifestyle tips in Hindi: स्मोकिंग (Smoking) करने वाले लोग अक्सर ऐसा सोचते हैं कि वह सिर्फ खुद को हानी पहुंचा रहें है परंतु उन्हे ये नहीं पता कि वे अपने साथ साथ पूरे समाज को नुकसान दे रहें हैं. सिगरेट का धुंआ एक्टिव स्मोकर से ज्यादा पैसिव स्मोकर के लिए हानिकारक (Harmful) होता है और सिगरेट पीने से समाज में बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है. स्मोकिंग करने वाले लोग शारिरिक बिमारियों (Physical Disease) के साथ साथ मानसिक बिमीरियों (Mental Disease) का भी शिकार होते चले जाते हैं.

कैसे करता है निकोटिन दिमाग पर असर –

सिगरेट में मिले निकोटिन का असर सीधा हमारे दिमाग पर होता है. आमतौर पर हर व्यक्ति स्मोकिंग करने की शुरूआत सिर्फ शौक के तौर पर करता है और वो ये सोचता है कि उसे इसकी आदत नहीं लग सकती पर कब वे स्मोकिंग करने का आदी बन जाता है उसे खुद पता नहीं चलता. नियमित रूप से सिगरेट पीने से हमारे अंदर कई सारे बदलाव आते है जैसे कि सिगरेट ना मिलने पर हमारा दिमाग काम करना बंद कर देता है , स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ जाता है और सिगरेट की तलब के कारण स्मोकर जो अपने साथ साथ दूसरों को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं.

एसा नहीं है कि स्मोकर सिगरेट छोड़ने की कोशिश ही नहीं करता, वे कोशिश तो करता है परंतु नाकामयाब रहता है क्यूंकि सिगरेट में मिला निकोटिन उसके दिमाग पर इतना असर कर चुका होता है कि वे चाह कर भी स्मोकिंग करना नहीं छोड़ पाता. सिगरेट में मिला निकोटिन तय करता है कि स्मोकिंग आपके दिमाग पर किस प्रकार असर करेगी. जिस प्रकार निकोटिन की मात्रा हमारे दिमाग पर असर करेगी उसी प्रकार स्मोकिंग का असर शरीर और मन पर होगा.

स्मोकिंग करते समय निकोटिन का एक डोज़ 10 सेकेंड के अंदर दिमाग तक पहुंच जाता है और मसल्स को रिलेक्स कर देता है. निकोटिन का दिमाग तक पहुंचना हमारा मूड अच्छा करने के साथ साथ भूख भी मिटा देता है. जब भी निकोटिन की सप्लाई हमारे दिमाग में कम होती है, तभी हमें ईसकी ज़रूरत महसूस होने लगती है और फिर से स्मोकिंग करते ही सब अच्छा लगने लगता है.

युवाओं में फैलता सिगरेट का ट्रेंड-

आजकल हमारे समाज के युवा बहुत कम उम्र में ही ये सब शुरू कर देते हैं और इसका कारण है उनकी सोसाइटी. जब वे अपनी उम्र के लोगों को स्मोकिंग करते देखते है तो उनके मन में भी इसे ट्राई करने की इच्छा जाग उठती है. कई युवा अपनी मेच्योरिटी दिखाने के लिए भी स्मोकिंग करना शुरू कर देते हैं.

सिगरेट पीने वाले लोग यह साचते हैं कि स्मोकिंग करने से उनका दिमाग शांत हो जाता है व तनाव कम हो जाता है और तनाव से पीछा छुड़ाने के लिए ही अक्सर वे स्मोकिंग करते हैं परंतु ऐसा होता नहीं है क्यूंकि रिलेक्स होने की फीलिंग जल्द ही खत्म हो जाती है और फिर से स्मोकिंग करने को दिल मचलने लगता है.

घर या ऑफिस से उन्हें अनचाहा तनाव मिलते ही हल निकालने की बजाए वे स्मोकिंग करने लग जाते हैं जिससे की तनाव घटना नहीं बल्की और ज्यादा बढ़ जाता है.

कैसे छोड़ें सिगरेट-

अपना ज्यादा से ज्यादा समय परिवार और दोस्तों के साथ बिताएं और उन्हे अपनी इस आदत के बारे में बताएं जिससे की वे सब आपकी मदद कर पाएंगे.

कोशिश करें की आप सिगरेट पीने वाले लोगों के साथ भी न बैठें जिन्हे देख के आपका मन सिगरेट की ओर आकर्शित हो.

क्या आप पेनकिलर एडिक्टेड हैं तो पढ़ें ये खबर

आज की भागतीदौड़ती जिंदगी में हमारे पास आराम करने का बिलकुल भी समय नहीं है. ऐसे में भीषण दर्द की वजह से हमें बैठना पड़े तो उस से बड़ी मुसीबत कोई नहीं लगती है. कोई भी दर्द से लड़ने के लिए न तो अपनी एनर्जी लगाना चाहता है और न ही समय. इसलिए पेनकिलर टैबलेट खाना बहुत आसान विकल्प लगता है. बाजार में हर तरह के दर्द जैसे बदनदर्द, सिरदर्द, पेटदर्द आदि के लिए कई तरह के पेनकिलर मौजूद हैं.

अलगअलग तरह के पेनकिलर शरीर के विभिन्न दर्दों के लिए काम करते हैं और वह भी इतने बेहतर ढंग से कि कुछ ही मिनटों में दर्द गायब हो जाता है और व्यक्ति फिर से काम करने को तैयार हो जाता है.

शरीर में हलका सा दर्द होते ही हम एक पेनकिलर मुंह में डाल लेते हैं. इस से होता यह है कि शरीर की दर्द से लड़ने की क्षमता घट जाती है और हम शरीर को दर्द से स्वयं लड़ने देने के बजाय उसे यह काम करने के लिए पेनकिलर्स का मुहताज बना देते हैं. काम को सरल बनाने के लिए तरीकों का इस्तेमाल करना मानव प्रवृत्ति है और ईजी पेनकिलर एडिक्शन उसी प्रवृत्ति का परिणाम है.

क्या है पेनकिलर एडिक्शन

पेनकिलर ऐसी दवाइयां हैं जिन का इस्तेमाल मैडिकल कंडीशंस जैसे माइग्रेन, आर्थ्राइटिस, पीठदर्द, कमरदर्द, कंधे में दर्द आदि से अस्थायी तौर पर छुटकारा पाने के लिए किया जाता है. पेनकिलर बनाने में मार्फिन जैसे नारकोटिक्स, नौनस्टेरौइडल एंटी इन्फ्लेमेटरी ड्रग्स और एसेटेमिनोफेन जैसे नौननारकोटिक्स कैमिकल का इस्तेमाल होता है. पेनकिलर एडिक्शन तब होता है जब जिसे ये पेनकिलर दिए गए हों और वह शारीरिकतौर पर उन का आदी हो जाए.

इस एडिक्शन के कितने बुरे प्रभाव हो सकते हैं, यह बात हमारे दिमाग में जब चाहे मुंह में पेनकिलर टैबलेट्स डालते हुए आती ही नहीं है. अन्य एडिक्शन की तरह इस के भी साइड इफैक्ट्स समान ही होते हैं. कई बार दर्द न होने पर भी इस के एडिक्ट पेनकिलर खाने लगते हैं. इन्हें खाने वालों को तो लंबे समय तक पता ही नहीं चलता है कि वे इस के शिकार हो गए हैं. उन का मनोवैज्ञानिक स्तर अस्तव्यस्त हो जाता है. इस एडिक्शन से बाहर आने के लिए उन्हें चिकित्सीय मदद लेनी पड़ती है.

साइड इफैक्ट्स

पेनकिलर्स में सेडेटिव इफैक्ट्स होते हैं जिस की वजह से हमेशा नींद आने का एहसास बना रहता है. पेनकिलर लेने वालों में कब्ज की शिकायत अकसर देखी गई है. पेट में दर्द, चक्कर आना, डायरिया और उलटी इन्हें लेने वालों में आम देखी जाती है. इस के अतिरिक्त भारीपन महसूस होने के कारण सिरदर्द और पेट में दर्द रहने लगता है. मूड स्ंिवग्स और थकावट इन में आम बात हो जाती है. साथ ही, कार्डियोवैस्कुलर और रैस्पिरेट्री गतिविधियों पर भी असर होता है, हार्टबीट व ब्लडप्रैशर में तेजी से उतारचढ़ाव तक ऐसे मरीजों में देखा गया है. पेनकिलर एडिक्शन लिवर पर भी असर डालता है और इन का अधिक मात्रा में सेवन करने से जोखिम और बढ़ जाता है.

मिचली आना, उलटी होना, नींद आना, मुंह सूखना, आंखों की पुतली का सिकुड़ जाना, रक्तचाप का अचानक कम हो जाना, कौंसटिपेशन होना दर्दनिवारक दवाइयों के सेवन से होने वाले कुछ आम साइड इफैक्ट्स हैं. इस के अलावा खुजली होना, हाइपोथर्मिया, मांसपेशियों में तनाव जैसे साइड इफैक्ट्स भी पेनकिलर के सेवन से होते हैं.

फोर्टिस अस्पताल, वसंत कुंज, नई दिल्ली के कंसल्टैंट फिजिशियन डा. विवेक नांगिया के अनुसार, ‘‘अकसर मरीज हमारे पास यह शिकायत ले कर  आते हैं कि उन की किडनी ठीक ढंग से कार्य नहीं कर रही है. जब हम विस्तृत जानकारी लेते हैं तो पता चलता है कि मरीज एनएसएआईडी नौन स्टीरौयड एंटी इंफ्लेमेटरी ड्रग्स गु्रप की दवाइयां लंबे समय से ले रहा है.

‘‘न केवल किडनी फेलियर, बल्कि मरीज अल्सर या पेट में ब्लीडिंग की शिकायत ले कर भी हमारे पास आते हैं, जो अत्यधिक मात्रा में पेनकिलर लेने की वजह से होती है. पेनकिलर लेना ऐसे में एकदम बंद कर देना चाहिए. पैरासिटामोल जैसी सुरक्षित दवाइयां बिना डाक्टर की सलाह के ली जा सकती हैं, पर बहुत कम समय के लिए.’’

अकसर महिलाएं पीरियड्स के दिनों में भी दर्द से बचने के लिए पेनकिलर लेती हैं. हालांकि इस से राहत महसूस होती है पर इस का अधिक मात्रा में सेवन करने से एसिडिटी, गैसट्राइटिस, पेट में अल्सर आदि की समस्याएं हो सकती हैं. इस के अलावा, अगर पेनकिलर खाने से दर्द से राहत मिलती है तो भी चिकित्सकों की राय लें. अगर पेनकिलर्स का उपयोग गलत ढंग से किया जाए तो उस से दर्द और बढ़ सकता है. इसलिए दर्द कम करने के लिए अगर पेनकिलर ले रहे हों तो यह भी याद रखें कि इस से दर्द बढ़ भी सकता है.

शराबी बाप और जवान बेटियां

निहाल सिंह की उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में अच्छीखासी दुकान चल रही थी, जिस से उस के परिवार का खर्चा आसानी से निकल रहा था. लेकिन 2 साल पहले दोस्तों के चलते उसे शराब की ऐसी लत लगी कि कारोबार चौपट हो गया. निहाल सिंह के शराब पीने की लत दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी, जिस की वजह से उस के घर में खाने के भी लाले पड़ गए. उस की पत्नी जब भी शराब छोड़ने की बात कहती, तो वह उसे मारनेपीटने लगता था. ऐसे में उस की बेटियां सहमी सी अपनी मां को पिटते हुए देखती थीं.

आखिरकार निहाल सिंह की बेटियां पिता की शराब की लत के चलते काम की तलाश में रहने लगीं. लेकिन वे जहां भी जातीं, तो उन्हें हवस की नजरों से ही देखा जाता. लड़कियों ने घर पर ही कागज के लिफाफे बना कर बेचने का काम शुरू कर दिया, लेकिन निहाल सिंह बेटियों की इस कमाई को भी छीन कर शराब पीने में उड़ा देता था.

एक दिन निहाल सिंह अपने कुछ शराबी दोस्तों के साथ महफिल जमाए बैठा था कि उस के शराबी दोस्तों की नजर उस की जवान होती बेटियों पर पड़ गई. अपनी शराब की लत के चलते निहाल सिंह अपने दोस्तों से काफी रुपए उधार ले चुका था. जब उन्होंने अपने रुपए मांगने शुरू किए, तो वह बोला कि उस के पास पैसे तो नहीं हैं. इस पर दोस्तों ने सख्ती से रुपए मांगे और यह भी कहा कि वे आगे से उस की शराब की जरूरत पूरी नहीं कर पाएंगे.

निहाल सिंह शराब के नशे का इतना आदी हो चुका था कि उस ने अपने दोस्तों से गिड़गिड़ाते हुए कहा कि वह उस की शराब की जरूरत पूरी करते रहें. उस के दोस्तों ने निहाल सिंह की मजबूरी का फायदा उठाते हुए बेटियों से पहले छेड़छाड़ की और फिर निहाल सिंह की नजर बचा कर उन को छेड़ना शुरू कर दिया.

बेटियों ने बाप से शिकायत की, तो उस ने उन्हें चुप करा दिया कि वे उस के दोस्त ही तो हैं.

इस के बाद तो निहाल सिंह की कम उम्र की बेटियां उस के शराबी दोस्तों की शिकार होती रहीं. यह बात तब खुली, जब निहाल सिंह की बड़ी बेटी ने बाप के शराबी दोस्तों से तंग आ कर फांसीं लगा कर अपनी जान दे दी.

इस मामले में पुलिसिया पूछताछ के दौरान यह पता चला कि निहाल सिंह की शराब की लत का फायदा उठा कर उस के शराबी दोस्त महीनों से उस की बेटियों को अपनी हवस का शिकार बनाते आ रहे थे.

पुलिस ने निहाल सिंह और उस के दोस्तों को इस मामले में गुनाहगार मानते हुए सलाखों के पीछे डाल दिया, जबकि निहाल सिंह को अपनी इस करनी पर कोई पछतावा नहीं था.

ज्यादातर मामलों में शराबी बाप के चलते उस की जवान होती बेटियों को किसी न किसी तरह से ज्यादती का शिकार होना पड़ता है.

बाप की शराब की लत के चलते उन की पढ़ाईलिखाई और सामाजिक सुरक्षा भी खतरे में पड़ जाती है. ऐसी हालत में ज्यादातर लड़कियां चुपचाप सबकुछ सहती रहती हैं और जो नहीं सह पाती हैं, वे या तो घर छोड़ कर गलत धंधे में उतर जाती हैं या खुदकुशी का रास्ता अख्तियार कर लेती हैं.

शराब है दुश्मन

शराब दिलोदिमाग के सोचने की ताकत को खत्म कर देती है. जैसेजैसे कोई शख्स शराब का आदी होता जाता है, वह अपनी नौकरीकारोबार से हाथ धोने लगता है. एक समय ऐसा भी आता है, जब शराब की लत के चलते उस का सबकुछ चौपट हो चुका होता है.

पढ़ाईलिखाई का सपना संजोने वाली लड़कियों के ख्वाब पिता की इस बुरी लत के चलते धरे के धरे रह जाते हैं और उन्हें बीच में ही अपनी पढ़ाई छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ता है. इस की वजह से वे न केवल कुंठा का शिकार हो जाती हैं, बल्कि तमाम मजबूरियों के चलते कई तरह के अपराधों में भी शामिल हो जाती हैं.

शराबी बाप के चलते जवान होती बेटियों के सामने जो सब से बड़ी समस्या उभर कर आती है, वह है उन की शादी.

ऐसी हालत में या तो उन्हें भाग कर शादी करनी पड़ती है या फिर शराब की जरूरतों को पूरा करने के लिए पिता बेटी को पैसों के लालच के चलते उस से उम्र में काफी बड़े शख्स के साथ शादी कर देता है.

देह धंधे को मजबूर

बाप की शराब की लत के चलते अगर सब से ज्यादा खतरा किसी को होता है, वह है उस की जवान होती बेटियां, क्योंकि बाप की शराब की लत परिवार की माली हालत को खस्ताहाल बना देती है. इस वजह से परिवार में भूखों मरने की नौबत तक आ जाती है, जिस से उबरने व पेट की भूख मिटाने के लिए जवान बेटियां खुद की इज्जत बेचने को मजबूर हो जाती हैं.

इस तरह के जितने भी मामले अभी तक सामने आए हैं, उन में यह पाया गया है कि जो लड़कियां देह धंधे में आईं, उन में से ज्यादातर की वजह पिता के शराब पीने की लत रही है. इस हालत में छोटे भाईबहनों की अच्छी पढ़ाईलिखाई और पेट की भूख मिटाने के लिए उन के पास यह गलत काम करने के सिवा कोई दूसरा चारा नहीं था.

दिल्ली के रहने वाले सुशील खन्ना पिछले कई सालों से नशे व शराब के खिलाफ मुहिम चला कर जागरूकता फैला रहे हैं. उन का कहना है कि शराब हर तरीके से पतन की तरफ ले जाती है. इस का जो सब से ज्यादा बुरा असर देखा गया है, वह है शराबी बाप की जवान होती बेटियों पर, क्योंकि बाप की शराब की लत के चलते इन की पढ़ाईलिखाई, शादीब्याह में रुकावट तो आती ही है, साथ ही इन की इज्जत पर हर समय खतरा मंडराता रहता है.

ऐसे कई मामले सामने आते रहते हैं, जिस में किसी जवान लड़की ने अपने शराबी बाप की ज्यादतियों के चलते खुदकुशी कर ली फिर या ऐसे कदम उठा लिए, जिसे समाज अच्छी नजर से नहीं देखता है.

अगर आप भी किसी बेटी के बाप हैं और नशे के आदी हैं, तो आज ही इस से दूरी बना लें. शराब पीने की लत आप की बेटी के भविष्य को चौपट कर सकती है. आप इस से छुटकारा पाने के लिए अपने नजदीकी नशामुक्ति केंद्र जा सकते हैं. आप का यह फैसला आप की बेटी के भविष्य के सुनहरे पल लाने के लिए काफी होगा.

पंजाब जहरीली शराब कांड : ले डूबा नशे का सुरूर

पंजाब के ज़हरीली शराब कांड में 100 से ज्यादा मौत की खबर है. ऐसे कांड में मरने वाले, सस्ती शराब के आदी, समाज के निचले माली तबके के लोग होते हैं. बेशक त्रासदी बड़ी हो जाए तो मीडिया की सुर्ख़ियांं संबंधित नेताओं, बिचौलियों और अधिकारियों को वक्ती तौर पर नंगा करने वाली ज़रूर बन जाती हैं.

पंजाब इस मामले में अकेला राज्य नहीं है. इस के पीछे रेवेन्यू केंद्रित आबकारी नीति से राज्य की आय बढ़ाते जाने और उस की आड़ में अपनी जेब के लिए अधिक से अधिक पैसा बनाने की होड़ होती है. अगर पूर्ण शराबबंदी हो तो और भी पौ बारह. सीधा समीकरण है- जितना ज़्यादा शिकंजा उतनी ज़्यादा उगाही. मोदी के गुजरात में नेता-बिचौलिया-अफ़सर गठजोड़ के लिए यह 30 हज़ार करोड़ और नीतीश के बिहार में यह 10 हज़ार करोड़ सालाना का जेबी कारोबार बन चुका है.

ये भी पढ़ें- पैसे कम फिर भी नंबर ज्यादा

गुजरात और बिहार में पूर्ण शराबबंदी के चलते पंजाब और हरियाणा से व्यापक शराब तस्करी इन दोनों राज्यों में होती आई है. पंजाब में हाल में आबकारी नीति को अपनेअपने संरक्षित शराब कार्टेल के हिसाब से तय कराने के चक्कर में प्रभावशाली मंत्रियों ने अमरिंदर सिंह के वफ़ादार मुख्य सचिव की छुट्टी करा दी. कुछ माह पहले हरियाणा में भी पकड़ी गयी शराब को खुर्दबुर्द कर गुजरात भेजने वाला गिरोह उजागर हुआ लेकिन इनेलो मंत्रियों की हिस्सेदारी ने जाँच को जकड़ रखा है.

दरअसल, आएदिन होने वाली छिटपुट मौतें तो ख़बर बनती ही नहीं, जबकि पंजाब जैसी बड़ी त्रासदी पर छोटे अफसरों के निलंबन-जांंच की चादर ओढ़ा दी जाती है. फ़िलहाल पंजाब में भी यही चलन देखने को मिल रहा है, एक दर्जन से ज्यादा इंस्पेक्टर स्तर के आबकारी और पुलिसकर्मी निलंबन की लिस्ट में हैं और मंडल कमिश्नर जाँचकर्ता के रूप में.

पिछले 10 साल में देश में हुई अन्य प्रमुख  त्रासदियों पर एक नज़र डालिये जिन में सौ से अधिक मौतें हुईं, जांंच का नाटक चला और समाज के लिए आत्मघाती आबकारी नीति नेता-बिचौलिया-अधिकारी गठजोड़ के साये में बदस्तूर जारी रही. कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा, सरकार किसी पार्टी की हो- मोदी मॉडल या राम राज्य का दावा ही क्यों न हो.

क्या समझना मुश्किल है कि स्कूलों और अस्पतालों जैसी सामाजिक ज़रूरतों तक को निजी हाथों में सौंपने वाली सरकारें, शराब के कारोबार पर कुंडली मारे क्यों बैठी हैं?

महात्मा गांधी ने कहा था, ‘‘अगर मैं 1 दिन के लिए तानाशाह बन जाऊं, तो बिना मुआवजा दिए शराब की दुकानों व कारखानों को बंद करा दूंगा.’’ गांधीजी ने पूरी सूझबूझ के साथ यह बात कही थी, क्योंकि बरबादी का बड़ा कारण यह शराब ही है.

ये भी पढ़ें- समाज की पंगु सोच को कंधे पर उठाया

भारत में आजादी के बाद से अब तक शराबबंदी के तमाम प्रयासों का सबक यही है कि पूर्ण शराबबंदी को लागू करना प्रदेश सरकारों के लिए संभव ही नहीं रहा. जिस भी राज्य में शराबबंदी लागू की गई, वहां शराब की तस्करी बढ़ गई.

देश में गुजरात, मिजोरम व नागालैंड ऐसे प्रदेश हैं, जहां पूर्ण शराबबंदी है. गुजरात में तो आजादी के बाद से ही शराब पर पाबंदी है, पर अफसोस यह महज कहने को ही है. वहां शराब हर जगह आसानी से उपलब्ध है. अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि पुलिस महकमा हर साल सवा सौ करोड़ की अवैध शराब जब्त करता है. हर साल जहरीली शराब पीने से मौतें होती हैं. 2009 में गुजरात में जहरीली शराब पीने से 148 लोग मारे गए थे.

मिजोरम राज्य में 1995 में शराबबंदी का कानून पारित किया गया था. मगर अगस्त, 2014 में शराबबंदी खत्म करने का फैसला कर नया कानून पारित कर दिया गया. सरकार का मानना था कि शराबबंदी से फायदा कम नुकसान ज्यादा हो रहा है. नागालैंड में भी करीब इसी समय से शराबबंदी लागू है.

केरल सरकार ने भी 2014 में चरणबद्ध तरीके से शराबबंदी करने का फैसला किया है. गौरतलब है कि देश में सब से ज्यादा शराब की खपत केरल में ही होती है. राज्य को 22 फीसदी राजस्व शराब से ही हासिल होता है. शराबबंदी लागू होने से यहां के पर्यटन पर गलत असर पड़ने की आशंका जताई जा रही है.

जब तक सरकारों की मौजूदा नीतियां कायम रहेंगी, तब तक शराब की लत की चपेट में आने से लोगों को नहीं बचा सकते. अगर हर गलीनुक्कड़ पर शराब की दुकानें खोल देंगे, तो लोग ज्यादा सेवन करेंगे ही. जहां शराब बंद करने का दिखावा किया जाता है, वहां अवैध बिक्री शुरू हो जाती है और खराब गुणवत्ता वाली शराब बिकने लगती है, जो जानलेवा साबित होती है. शराब के आदी लोग ज्यादा दाम पर भी घटिया शराब पीने लगते हैं, जो मौत के करीब ले जाती है.

इसलिए व्यक्ति से ज्यादा सरकार को कठोर फैसला करना चाहिए. इस मामले में भारत को सिंगापुर से सीखना चाहिए. वहां सिगरेट के सेवन से सेहत पर होने वाले नुकसान को देखते हुए सरकार ने बाकी देशों से सिगरेट की 7 गुना ज्यादा कीमत तय कर दी है. इस से लोगों ने सिगरेट खरीदना कम कर दिया है. सिगरेट के पैकेटों पर भयानक चेतावनी छापने के साथसाथ सजा भी तय कर दी गई है. इस से लोगों में डर पैदा हो गया है. उन्होंने सार्वजनिक जगहों पर सिगरेट पीना बंद कर दिया है. सिगरेट का पैकेट फेंकते पकड़े जाने पर भी जेल भेज दिया जाता है.

लेकिन हमारे यहां सरकारों की नीतियां सिगरेट पीने से रोकने के बजाय उन्हें सहजता से उपलब्ध कराने वाली हैं. ऐसे में समाज का माली तानाबाना टूटना लाजिम है. यदि सरकारें उपलब्धता पर नियंत्रण करें, तब ही लोगों को इन के सेवन से रोका जा सकता है.

दरअसल, शराब का असली नशा तो इस धंधे की कमाई की चाशनी में डूबने वालों पर ही ज्यादा चढ़ता है. फिर चाहे वे सरकारें हों या शराब का धंधा करने वाले. सभी चाहते हैं कि शराब से उन की तिजोरियों की सेहत हर दिन दुरुस्त होती रहे. राजस्थान में पिछली वसुंधरा राजे की सरकार अपनी शराब नीतियों को ले कर खासी बदनाम रही है, तो गहलोत सरकार ने भी शराब से कमाई का खेल बड़ी चतुराई के साथ खेला है.

ये भी पढ़ें- कोरोना के नाम पर प्राइवेट पार्ट का भी टैस्ट

शराब से होने वाली कमाई का मोह यह सरकार भी नहीं छोड़ पाई. दरअसल, सरकार ने गलीगली में 24 घंटे खुलने वाले रैस्टोरैंट बार खोल दिए. राजस्थान सरकार का खजाना भरने के मामले में शराब का नंबर पहला है. दरअसल, मोटी कमाई के मामले में बाड़मेर में तेल से मिल रही 6 हजार करोड़ की रौयल्टी को ले कर जितना हो-हल्ला मचाया जा रहा है, उस से कहीं ज्यादा तो अब शराब उगल रही है. आर्थिक मामलों के सरकारी और गैरसरकारी माहिरों का मानना है कि तेल की रौयल्टी तो अब अगले कुछ सालों के लिए स्थायी हो गई है, लेकिन शराब का कारोबार प्रदेश सरकार के लिए राजस्व बढ़ाने के लिए एक खास जरीया बन गया है.

प्रशासन की सरपरस्ती में शराब का कानूनी व गैरकानूनी धंधा खूब फूलफल रहा है, जिस में पुलिस, सरकार सब शामिल हैं. सरकार के पास पढ़ेलिखे, अनपढ़, अमीरगरीब, हर तबके के लिए देशी से ले कर अंगरेजी शराब तक का बंदोबस्त है. शराब को घरघर पहुंचाने के लिए गांवों व शहरों में ठेका देने का काम भी बड़ी सूझबूझ के साथ किया जाता है ताकि कोई इलाका अछूता न रह जाए.

दरअसल, पैसे कमाने की सहूलियत के लिए इसे कानूनी और गैरकानूनी बता दिया गया है यानी जो सरकार बेचे, वह कानूनी है और जिस से उस का फायदा न हो, वह गैरकानूनी. जबकि शराब तो सिर्फ शराब है, जो इनसान को तिलतिल कर मारने का काम करती है. कच्ची शराब हो या शराब की लाइसैंसी दुकानें, दोनों से आम आदमी की बरबादी और सरकार व सरकारी आदमियों का मुनाफा हो रहा है. लाइसैंसी शराब से सरकारें हर साल अरबों रुपए का राजस्व हासिल करती हैं और गैरकानूनी घोषित की गई शराब में सरकारी लोगों का हिस्सा होता है.

शराब का नशा करना इनसान की कुदरती भूख नहीं है. इसलिए इस का होना या न होना कोई माने नहीं रखता. अगर इस की कुदरती भूख होती तो दुनिया के हर शख्स में नशाखोरी की लत पड़ गई होती. भारत में तो कई तथाकथित देवताओं तक को शराब पिलाई जाती है. यहां शराब पीनेपिलाने का इतिहास बहुत पुराना है. राजामहाराजाओं के जमाने से ही यहां शराब का खूब चलन रहा है. शराब की वजह से कई रियासतें, राजामहाराजा बरबाद हो गए, तो भला आम आदमी की क्या बिसात है?

सरकार एक तरह से वही काम कर रही है, जो अंगरेजों ने नवाबों के साथ किया था. उन्हें नशे में डुबोए रखा और अंदर ही अंदर उन की जड़ें खोखली कर समूचे भारत को गुलामी की बेडि़यों में जकड़ लिया.

चोरी, डकैती, हत्या, लूट, बलात्कार जैसे अपराधों को रोकना सरकार का फर्ज है, तो फिर सरकार लोगों को नैतिक बुराई शराब को पीने की दावत क्यों देती है? मसलन, भ्रूण हत्या भी तो अपराध है, फिर भी अनेक बार लड़कियों को पैदा होने से पहले ही कोख में मार दिया जाता है. ऐसे में सरकारें इस अपराध को रोकने में नाकाम हैं, तो इस का मतलब यह कतई नहीं कि वे लाइसैंस जांच केंद्र खुलवा कर इसे कानूनन सही ठहरा दें.

अगर कोई पति अपनी पत्नी को मारने से बाज नहीं आता, तो उस के खिलाफ कानूनी काररवाई करने के बजाय क्या उसे पत्नी को मारनेपीटने का कानूनी लाइसैंस दे दिया जाए? शराब के मामले में सरकारों ने ठीक ऐसा ही किया है. नशाबंदी लागू करने के बजाय उन्होंने गांवों, शहरों, कसबों में लाइसैंसी दुकानें खुलवा कर शराब पर कानूनी होने का ठप्पा लगा दिया है.

ये भी पढ़ें- सुशांत सिंह के बाद, आत्महत्या का मनोविज्ञान क्या है?

भले ही आज भी शराब पीने के नाम पर लोग नाकभौं सिकोड़ते हों, लेकिन बाजार झूठ नहीं बोलता. जोश ए जवानी, नोटों से भरी जेबें और तेजी से बदलते माहौल के चलते शराब का नशा सिर चढ़ कर बोल रहा है.

भारतीय अलकोहल पेय बाजार जिस तेजी से सालाना बढ़ रहा है, वह काफी चिंताजनक है और स्पष्ट है कि देश की बड़ी आबादी शराब की गिरफ्त में है. देश में बीयर पीने वालों की भी कमी नहीं है और व्हिस्की पीने के मामले में तो भारतीयों ने व्हिस्की के सब से बड़े बाजार माने जाने वाले अमेरिका को भी पीछे छोड़ दिया है.

एक रिसर्च के मुताबिक, भारत में शराब पीना 16 से 18 साल की उम्र से शुरू हो कर 25 से 30 साल की उम्र में चरम पर पहुंच जाता है. इस समय भारत की 35 करोड़ की आबादी 18 से 35 साल की है और अगले 5 साल में इस में 5 से 7 करोड़ का इजाफा होने का अंदाजा है. यही वजह है कि दुनिया के तमाम शराब के कारोबारी भारत की ओर रुख कर रहे हैं.

भारत समेत दुनिया भर में शराब का सेवन करने से होने वाली बीमारियों की वजह से 33 लाख लोग हर साल मौत को गले लगाते हैं. इतना ही नहीं भारत में सड़क हादसों में हर साल करीब 1,38,000 लोग मारे जाते हैं. अलकोहल ऐंड ड्रग इन्फौर्मेशन सैंटर के एक अध्ययन के मुताबिक, इन में से 40 फीसदी हादसे शराब पी कर वाहन चलाने की वजह से होते हैं.

शराबखोरी कितना भयानक रोग बनता जा रहा है, यह इस से समझा जा सकता है कि दुनिया में बीमारियों, विकलांगता व मौत की वजह के जो कारण बताए जाते हैं, उन में शराबखोरी 2015 तक छठा कारण थी, लेकिन अब तीसरे पायदान पर आ पहुंची है. इंसान में 2 सौ से ज्यादा बीमारियों का खतरा शराब के सेवन से बढ़ता है.

पब्लिक हैल्थ फाउंडेशन नामक संस्था ने राजस्थान समेत 6 राज्यों के बारे में एक अध्ययन किया है और उस की रिसर्च के मुताबिक, शराब पर टैक्स व उस के दाम बढ़ने के बावजूद शराब की खपत बढ़ रही है. इस रिसर्च में राजस्थान, तमिलनाडु, ओडिशा, सिक्किम, मेघालय शामिल हैं. रिसर्च से पता चला है कि 28 फीसदी शराबी आत्महत्या करते हैं. आत्महत्या के सभी मामलों में से 50 फीसदी शराब या अन्य नशे पर निर्भरता से जुड़े होते हैं.

शराब के सेवन से आत्महत्या करने वालों में किशोरों की संख्या ज्यादा है, जो कुल आत्महत्या के मामलों में से 70 फीसदी है. शराब की लत इतनी आसानी से नहीं छूटती पर इसे छोड़ना नामुमकिन भी नहीं. आप के बेहतर स्वास्थ्य व भविष्य के लिए इस लत को छोड़ना बेहद जरूरी है.

ये भी पढ़ें- बिहार : बाढ़, बालू और बरबादी

मासूम हुए शिकार : इंसानियत हुई शर्मसार

समाज में आपराधिक व कुंठित लोगों की मानसिकता इस कदर बिगड़ती जा रही है कि उन को सही गलत का आभास ही नहीं है. पढ़ाई लिखाई से कोसों दूर और गलत आदतों के शिकार होने की वजह से कोई इन्हें पसंद नहीं करता, वहीं इन्हें कोई रोकने टोकने व समझाने वाला नहीं मिलता. यही वजह है कि इन के हाथ गलत काम करने से कांपते नहीं है. ये ऐसेऐसे काम कर जाते हैं कि दिल कांप जाए, पर ये न कांपे.

यही वजह है कि इन के सोचने और समझने की ताकत बिल्कुल ही खत्म हो गई है.

23 अप्रैल की अलसुबह एक वारदात 6 साल की मासूम के साथ हुई. पहले उस के साथ रेप किया गया और फिर दोनों आंखें ही फोड़ दीं.

मध्य प्रदेश के दमोह जिले के एक गांव में यह दिल दहला देने वाली घटना घटी. घर से अपहरण कर 6 साल की मासूम बच्ची के साथ आरोपियों ने दरिंदगी की.

उस बच्ची के साथ रेप करने के बाद दोनों आंखें फोड़ दी, ताकि वह किसी को पहचान न सके.

घटना जिले के जबेरा थाना क्षेत्र स्थित एक गांव की है. 23 अप्रैल की सुबह 7 बजे बच्ची गांव के बाहर खेत में स्थित एक सुनसान मकान में गंभीर हालत में पड़ी हुई मिली. उस के बाद घर वालों को जानकारी दी गई.

ये भी पढ़ें- Lockdown में छत पर सजा मंडप और हो गई शादी

मौके पर पहुंचे लोगों ने देखा कि मासूम के दोनों हाथ बंधे हुए थे और आंखें फोड़ दी गई थीं.

बताया जा रहा है कि 22 अप्रैल की शाम 6 बजे से बच्ची गायब थी, तभी से घर वाले उसे खोज रहे थे. 23 अप्रैल की सुबह जब बच्ची मिली तो उस की हालत देख कर सभी के दिल दहल गए.

बच्ची को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, जबेरा लाया गया, जहां बच्ची की हालत देखते हुए उसे जबलपुर रेफर कर दिया गया.

गांव पहुंचे दमोह के एसपी हेमंत सिंह चौहान ने कहा कि 22 अप्रैल की शाम बच्ची दोस्तों के साथ खेल रही थी. कोई अनजान शख्स उसे यहां से ले गया. उस के साथ रेप किया गया, उस की आंखों में गंभीर चोट है. कई संदिग्धों से पूछताछ की गई है. मासूम की हालत गंभीर है और जबलपुर रेफर कर दिया गया है.

मौके पर जांच के लिए एफएसएल की टीम भी पहुंची. जल्द ही आरोपी को गिरफ्तार कर लेंगे.

इस घटना को ले कर लोगों में आक्रोश है. सूचना मिलते ही जबेरा के विधायक धमेंद्र सिंह मौके पर पहुंचे और उन्होंने कहा कि मामले की जांच चल रही है. दरिंदे किसी भी कीमत पर नहीं बचेंगे.

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा  कि दमोह जिले में एक मासूम बिटिया के साथ दुष्कर्म की घटना शर्मनाक और दुर्भाग्यपूर्ण है. घटना का संज्ञान ले कर अपराधी को जल्द ही पकड़ने के निर्देश दिए हैं. उन दरिंदों को सख्त से सख्त सजा दी जाएगी. बिटिया की समुचित इलाज में किसी भी प्रकार की कमी नहीं आने दी जाएगी.

वहीं दूसरी वारदात उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के एक गांव में हुई. वहां 13 साल की किशोरी घर से बाहर टौयलेट के लिए गई तो पहले से ही घात लगा कर बैठे 6 लोगों ने उसे पकड़ लिया और सुनसान जगह पर ले गए.

ये भी पढ़ें- Corona Virus : नहीं बदली फितरत, जमाती फिर धरे गए

2 लोगों ने किशोरी के साथ रेप की घटना को अंजाम दिया, वहीं उस के आसपास खड़े 4 लड़के इस गैंगरेप का वीडियो बनाते रहे.

किशोरी रोतीबिलखती रही, लेकिन दरिंदों ने कोई रहम नहीं किया. वहां से जाते समय वह धमकी दे कर गए कि किसी को इस बारे में बताया तो वीडियो को सोशल मीडिया पर अपलोड कर देंगे.

शर्मसार कर देने वाली यह घटना सीतापुर जिले में मिश्रिख कोतवाली क्षेत्र की है.

घर वालों के मुताबिक, जब किशोरी घर से बाहर टॉयलेट के लिए गई थी, उसी दौरान गांव के बाहर एक कॉलेज के पास पहले से मौजूद 6 लोगों ने उसे पकड़ लिया. 2 लोगों ने किशोरी से बारीबारी से दुष्कर्म किया, जबकि 4 साथियों ने गैंगरेप का वीडियो अपने मोबाइल में कैद कर लिया.

सभी आरोपी मुंह खोलने पर गैंगरेप का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल करने की धमकी दे कर मौके से फरार हो गए.

घटना की जानकारी पा कर मौके पर पहुंची पुलिस ने मामले की तफ्तीश शुरू की.

पुलिस का कहना है कि मामले में पीड़िता की शिकायत के आधार सभी आरोपियों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया है और 2 मुख्य आरोपी धरे भी गए हैं.

दिल दहला देने वाली घटनाओं को बारीकी से देखा जाए तो ऐसा लगता है कि पहले से ही घात लगा कर घटना को अंजाम दिया गया. यह कोई और नहीं, हमारे आसपास के माहौल का ही नतीजा है.

भले ही अपराधी पकड़े जाएं, इन को इन के किए की सजा मिल भी जाए, पर इन कम उम्र बच्चियों का क्या कुसूर कि इन में से एक मासूम की दोनों आंखें ही फोड़ दी,वहीं दूसरी के साथ घटना की वीडियो तक बना डाली.

ये भी पढ़ें- भूख से मरें या Corona से गरीबों को मरना ही है

क्या इन मासूमों का छीना हुआ कल लौट कर आ पाएगा? क्या ये इस कहर को भूल पाएंगे? क्या शर्मसार हुई इंसानियत समाज में फिर कायम हो पाएगी, कहना मुश्किल है.

‘भाभीजी’ ड्रग्स बेचती हैं

जीहां, ये ‘भाभीजी’ ड्रग्स, ब्राउन शुगर और अफीम बेचती हैं. पटना के जक्कनपुर इलाके की रहने वाली राधा देवी ड्रग्स के धंधेबाजों के बीच ‘भाभीजी’ के नाम से मशहूर हैं. पटना, मुजफ्फरपुर, बोधगया से ले कर रांची तक में ‘भाभीजी’ का धंधा फैला हुआ है. पटना के स्कूलकालेजों, कोचिंग सैंटरों और होस्टल वाले इलाकों के चप्पेचप्पे पर ‘भाभीजी’ के एजेंट फैले हुए हैं.

बच्चों और नौजवानों को नशे का आदी बनाने में लगी ‘भाभीजी’ और उन के गुरगे पिछले 6 सालों से इस गैरकानूनी और खतरनाक धंधे को चला रहे थे. 16 अक्तूबर, 2019 को पुलिस ने ‘भाभीजी’, उन के शौहर और 6 गुरगों को दबोच लिया.

जक्कनपुर पुलिस ने 16 अक्तूबर, 2019 को राधा देवी उर्फ ‘भाभीजी’ और उन के शौहर गुड्डू कुमार को उस समय गिरफ्तार कर लिया, जब वे आईसीआईसीआई बैंक से रुपए निकाल रहे थे. दोनों के पास से 9 लाख, 67 हजार, 790 रुपए और 20 ग्राम ब्राउन शुगर और 6 स्मार्ट फोन बरामद किए गए. उस 20 ग्राम ब्राउन शुगर की कीमत 5 लाख रुपए आंकी गई.

ये भी पढ़ें- फांसी से बचाने के लिए सालाना खर्च करते हैं 36 करोड़ रुपए

पटना के सिटी एसपी जितेंद्र कुमार ने बताया कि राधा देवी उर्फ ‘भाभीजी’ और गुड्डू कुमार ब्राउन शुगर के स्टौकिस्ट हैं. पुलिस पिछले कई सालों से इन दोनों को रंगे हाथ पकड़ने की कोशिश में लगी हुई थी, पर वे हर बार पुलिस को चकमा दे कर भाग निकलते थे.

गुड्डू कुमार ने पुलिस को बताया कि ब्राउन शुगर के सप्लायर को 12 लाख रुपए देने के लिए वह बैंक से पैसे निकाल रहा था. उसी दिन सप्लायर ब्राउन शुगर की खेप ले कर आने वाला था. सप्लायर नेपाल और खाड़ी देशों से आता था.

‘भाभीजी’ और गुड्डू कुमार को आईसीआईसीआई बैंक के जिस खाते से रुपए निकालते पकड़ा गया था, उस खाते में अभी 17 लाख, 46 हजार रुपए और हैं. कंकड़बाग के आंध्रा बैंक के खाते में भी उन दोनों के 9 लाख, 94 हजार रुपए जमा हैं. इन दोनों ने ब्राउन शुगर के धंधे से करोड़ों रुपए की कमाई की है और कई मकान और फ्लैट भी खरीद रखे हैं.

राधा देवी उर्फ ‘भाभीजी’ और गुड्डू कुमार को दबोचने में लगी पुलिस की टीम 16 अक्तूबर को जक्कनपुर इलाके में ब्राउन शुगर की खरीदार बन कर पहुंची.

जक्कनपुर के इंदिरानगर इलाके के रोड नंबर-4 में शिवपार्वती कम्यूनिटी हाल से सटे किराए के मकान में जब पुलिस पहुंची, तो वहां 5 लोग ब्राउन शुगर की पुडि़या बनाने में लगे हुए थे.

पुलिस ने उन पांचों को ब्राउन शुगर के साथ गिरफ्तार कर लिया. करीमन उर्फ राजेश यादव, सोनू, गणेश कुमार, संतोष कुमार और पप्पू को पुलिस ने पकड़ा. सभी की उम्र 22 से 30 साल के बीच है.

ये भी पढ़ें- किसान का जीवन एक हवनशाला

पिछले चंद महीनों के दौरान ड्रग्स का धंधा करने वाले 14 लोगों को पुलिस जक्कनपुर, मालसलामी, गर्दनीबाग, कंकड़बाग, रामकृष्णानगर वगैरह इलाकों से गिरफ्तार कर चुकी है. 14 सितंबर, 2019 को भी जक्कनपुर इलाके में पुलिस ने 65 लाख रुपए की ब्राउन शुगर के साथ 5 लोगों को पकड़ा था.

गिरफ्तार किए गए सभी लोग ‘भाभीजी’ के ही गुरगे थे. तब ‘भाभीजी’ और गुड्डू कुमार पुलिस की आंखों में धूल  झोंक कर भाग निकलने में कामयाब हो गए थे.

‘भाभीजी’ की देखरेख में ही ब्राउन शुगर खरीदने, उस की पुडि़या बनाने और बेचने का धंधा चलता था. एक पुडि़या 500 रुपए में बेची जाती थी. नारकोटिक ड्रग्स ऐंड साइकोट्रौपिक सब्सटैंस ऐक्ट की धारा 22 सी के तहत केस दर्ज किया गया है.

करोड़ों की दौलत होने के बाद भी ये मियांबीवी खानाबदोश की जिंदगी जीते थे. वे किसी एक जगह टिक कर नहीं रहते थे. पुलिस को चकमा देने के लिए अपना ठिकाना और मोबाइल नंबर बदलते रहते थे. पुलिस साल 2012 से ही दोनों शातिरों को पकड़ने में लगी हुई थी, पर कामयाबी नहीं मिल रही थी. साल 2012 में ही दोनों के खिलाफ गर्दनीबाग थाने में एफआईआर दर्ज हुई थी.

‘भाभीजी’ ने पुलिस को बताया कि पश्चिम बंगाल और  झारखंड से ब्राउन शुगर पटना लाई जाती है. एक किलो ब्राउन शुगर की कीमत 3 करोड़ रुपए होती है. घटिया क्वालिटी की ब्राउन शुगर एक करोड़ रुपए में एक किलो मिलती है.

गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल और  झारखंड में बड़े पैमाने पर अफीम की खेती होती है. अफीम से ही ब्राउन शुगर बनाई जाती है.

ड्रग करंसी का इस्तेमाल, खतरनाक: डीजीपी

बिहार के डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे मानते हैं कि ड्रग को करंसी के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. जिस्म के कारोबार में भी ड्रग करंसी खूब चल रही है. ड्रग्स के खिलाफ समाज को जहां जागरूक होने की जरूरत है, वहीं नशा मुक्ति मुहिम को मजबूत बनाना होगा.

ये भी पढ़ें- सदियों के श्रापों की देन कलयुगी बलात्कार

नशा दिल और दिमाग दोनों पर खतरनाक असर डालता है और उस के बाद बलात्कार, हिंसा जैसे कई अपराध करने के लिए उकसाता है.

पुलिस ड्रग्स के खिलाफ आएदिन धड़पकड़ करती रहती है, लेकिन समाज के सहयोग के बगैर ड्रग्स के धंधे को पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सकता है.

अफीम की खेती छोड़ी, गेंदा लगाया

झारखंड राज्य के नक्सली एरिया खूंटी के लोगों ने अफीम की खेती से तोबा कर गेंदा के फूल उपजाने शुरू किए हैं. तकरीबन 200 परिवार गेंदे की खेती कर मुनाफा कमा रहे हैं.

आजकल धर्म का व्यापार अफीम के व्यापार की तरह रातदिन बढ़ रहा है और वहां गेंदे के फूलों की खपत बहुत होती है.

कुछ साल पहले तक इस इलाके में पोस्त की गैरकानूनी खेती होती थी और पोस्त से ही अफीम बनाई जाती है. नक्सली बंदूक का डर दिखा कर गांव वालों से जबरन अफीम की गैरकानूनी खेती कराते थे. पिछले साल अगस्त महीने में खूंटी में 14 लाख गेंदे के पौधे लगाए गए थे. आज उन से तकरीबन सवा करोड़ रुपए मुनाफा होने का अंदाजा है. सुनीता नाम की महिला किसान ने 2,000 रुपए में गेंदे के 5,000 पौधे खरीदे थे. एक पौधे से 35 से 40 फूल निकलते हैं.

ये भी पढ़ें- लिव इन रिलेशनशिप का फंदा

ड्रग्स चख भी मत लेना: भाग 2

पहला भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें- ड्रग्स चख भी मत लेना: भाग 1

2-3 घंटेउस बार में गुजार कर वह वापस आई तो मुग्धा काफी बहकीबहकी और दार्शनिकों की सी बातें कर रही थी कि जीवन नश्वर है, जवानी बारबार नहीं आती, इसे जीभर कर एंजौय करना चाहिए. अच्छी बात यह रही कि मुग्धा ने उसे नशे के लिए बाध्य नहीं किया था. हां, पहली बार स्नेहा ने सिगरेट के एकदो कश लिए थे जो चौकलेट फ्लेवर की थी.

रूम पर आ कर उसे बार के उन्मुक्त दृश्य और मुग्धा की बातें याद आती रहीं कि ड्रग्स का अपना एक अलग मजा है जिसे एक बार चखने में कोई हर्ज नहीं, फिर तो जिंदगी में यह मौका मिलना नहीं है और यह कोई गुनाह नहीं बल्कि उम्र और वक्त की मांग है. आजकल हर कोई इस का लुत्फ लेता है. इस से एनर्जी भी मिलती है और अपने अलग वजूद का एहसास भी होता है.

अगले सप्ताह वह फिर मुग्धा के साथ गई और इस बार हुक्के के कश भी लिए. कश लेते ही वह मानो एक दूसरी दुनिया में पहुंच गई. नख से ले कर शिख तक एक अजीब सा करंट शरीर में दौड़ गया. फिर यह हर रोज का सिलसिला हो गया. शुरू में उस का खर्च मुग्धा उठाती थी. अब उलटा होने लगा था. मुग्धा का खर्च स्नेहा उठाती थी, जो एक बार में 2 हजार रुपए के लगभग बैठता था.

ये भी पढ़ें- धार्मिक झांसों जैसा सरकारी नौकरियों का लौलीपौप

स्नेहा झूठ बोल कर घर से ज्यादा पैसे मंगाने लगी. यहां तक तो बात ठीकठाक रही. लेकिन एक दिन मुग्धा के एक दोस्त अभिषेक (बदला नाम) के कहने पर उस ने चुटकीभर एक सफेद पाउडर जीभ पर रख लिया तो मानो जन्नत जमीन पर आ गई. अभिषेक ने इतनाभर कहा था. इस हुक्कासिगरेट में कुछ नहीं रखा रियल एंजौय करना है तो इसे एक बार चख कर देखो.

स्नेहा की कहानी बहुत लंबी है जिस का सार यह है कि वह अब पार्टटाइम कौलगर्ल बन चुकी है और हर 15 दिन में होशंगाबाद रोड स्थित एक फार्महाउस जाती है जहां नशे का सारा सामान खासतौर से उस सफेद पाउडर की 10 ग्राम के लगभग की एक पुडि़या मुफ्त मिलती है. एवज में उसे अभिषेक और उस के 3-4 रईस दोस्तों का बिस्तर गर्म करना पड़ता है जो अब उसे हर्ज की बात नहीं लगती. यह उस की मजबूरी हो गई है.

अब स्नेहा उस पाउडर के बगैर रह नहीं पाती. लेकिन उस की सेहत गिर रही है. उसे कभी भी डिप्रैशन हो जाता है, नींद नहीं आती, डाइजैशन खराब हो चला है. और सब से अहम बात, वह अपनी ही निगाह में गिर चुकी है. मम्मीपापा से वह पहले की तरह आंख मिला कर आत्मविश्वास से बात नहीं कर पाती. जैसेतैसे पढ़ कर पास हो जाती है.

ये भी पढ़ें- क्या बैंक में रखा पैसा डूब सकता है!

स्नेहा के दोस्तों का दायरा काफी बढ़ गया है और उस की कई नई फ्रैंड्स भी उस फार्महाउस में जाती हैं, मौजमस्ती करती हैं, सैक्स करती हैं, नशा करती हैं और दूसरे दिन दोपहर को रूम पर वापस आ कर प्रतिज्ञा भी करती हैं कि अब नहीं जाएंगी. लेकिन नशे की लत उन की यह प्रतिज्ञा हर 15 दिन में कच्चे धागे की तरह तोड़ देती है.

कहानी (दो)

24 वर्षीय प्रबल (बदला हुआ नाम) भी इंजीनियरिंग का छात्र है. फर्स्ट ईयर से ही वह होस्टल में रह रहा है. सिगरेट तो वह कालेज में दाखिले के साथ ही पीने लगा था लेकिन अब कोकीन और हेरोइन भी लेने लगा है.

स्नेहा की तरह वह भी अपने एक दोस्त के जरिए इस लत का शिकार हुआ था. पैसे कम पड़ने लगे तो सप्लायर ने उसे रास्ता सुझाया कि मुंबई जाओ और यह माल बताई गई जगह पर पहुंचा दो. आनेजाने के खर्चे के अलावा 5 हजार रुपए और महीनेभर की पुडि़या मुफ्त मिलेगी. प्रस्ताव सुन कर वह डर गया कि पुलिस ने पकड़ लिया तो… जवाब मिला कि संभल कर रहोगे तो ऐसा होगा नहीं. अगर पुडि़या चाहिए तो यह तो करना ही पड़ेगा.

ये भी पढ़ें- दंतैल हाथी से ग्रामीण भयजदा: त्राहिमाम त्राहिमाम!

ऐसा नहीं है कि प्रबल ने इस लत से छुटकारा पाने की कोशिश न की हो. लेकिन मनोचिकित्सक की सलाह पर वह ज्यादा दिन तक अमल नहीं कर पाया और दवाइयां भी वक्त पर नहीं खा पाया. एक नशामुक्ति केंद्र भी वह गया, कसरत की, बताए गए निर्देशों का पालन किया लेकिन 3-4 महीने बाद ही फिर तलब लगी तो वह वापस उसी दुनिया में पहुंच गया. अब हर 2-3 महीने में वह पुणे, नागपुर, जलगांव, नासिक और मुंबई दिया गया माल पहुंचाता है और 4-6 महीने के लिए बेफिक्र हो जाता है.

प्रबल की परेशानी यह है कि अगर कभी पुलिस के हत्थे चढ़ गया तो फिर वह कहीं का नहीं रह जाएगा. आएदिन अखबारों में छापे की खबरें पढ़ कर वह और परेशान हो जाता है और अपने भीतर की घबराहट से बचने के लिए ज्यादा नशा करने लगता है. वह समझ रहा है कि वह ड्रग माफिया का बहुत छोटा प्यादा बन चुका है, लेकिन इस के अलावा उसे कोई और रास्ता नहीं सूझ रहा कि इस चक्रव्यूह से कैसे निकले.

लगता नहीं कि बिना किसी हादसे के वह बाहर निकल पाएगा और निकल भी पाया तो उस का भविष्य क्या होगा, यह कहना मुश्किल है. लेकिन इसी दौरान उसे इस रहस्यमयी कारोबार के कुछ गुर और रोजाना इस्तेमाल की जाने वाली ड्रग्स के नाम रट गए हैं, मसलन हेरोइन, कोकीन, एलएसडी, क्रिस्टल मेथ, प्वाइंट यानी गांजे वाली सिगरेट और चरस सहित कुछ नए नाम जैसे मारिजुआना, फेंटेनी वगैरहवगैरह.

ये भी पढ़ें- जेलों में तड़पती जिंदगी: भाग 2

नुकसान ही नुकसान

ये ड्रग्स युवाओं को हर लिहाज से खोखला कर रहे हैं जिन के सेवन से 2-4 घंटे का स्वर्ग तो भोगा जा सकता है लेकिन बाकी जिंदगी नर्क बन कर रह जाती है. तमाम ड्रग्स सीधे नर्वस सिस्टम पर प्रभाव डालते हैं, जिन के चलते नशेड़ी वर्तमान से कट कर ख्वाबोंखयालों की एक काल्पनिक दुनिया में पहुंच जाता है जहां कोई चिंता, तनाव या परेशानी नहीं होती, होता है तो एक सुख जो आभासी होता है.

ड्रग्स सेवन के शुरुआती कुछ दिन तो शरीर और दिमाग को होने वाले नुकसानों का पता नहीं चलता लेकिन 4-6 महीने बाद ही इन के दुष्परिणाम दिखना शुरू हो जाते हैं. सिरदर्द, डिप्रैशन, चक्कर आना, भूख न लगना, हाजमा गड़बड़ाना, कमजोरी और थकान इन में प्रमुख हैं.

इन कमजोरियों से बचने के लिए इलाज कराने के बाद युवा ड्रग्स की खुराक बढ़ा देते हैं. यही एडिक्शन का आरंभ और अंत है. यहीं से वे आर्थिक रूप से भी खोखले होना शुरू हो जाते हैं और पैसों के लिए छोटेबड़े जुर्म करने से नहीं हिचकिचाते. चेन स्नैचिंग, बाइक और मोबाइल चोरी, छोटीमोटी स्मगलिंग इन में खास है जिन में कई युवा पकड़े जाते हैं और अपना कैरियर व भविष्य चौपट कर बैठते हैं.

ये भी पढ़ें- भारत में हर साल बर्बाद किया जाता है इतना भोजन, वहीं 82 करोड़ लोग सोते हैं भूखे

लड़कियों की तो और भी दुर्गति होती है. उन्हें आसानी से देहव्यापार में ड्रग्स के सौदागर धकेल देते हैं. स्नेहा और मुग्धा जैसी लाखों युवतियां पार्टटाइम कौलगर्ल बन जाती हैं. इन में फिर न आत्मविश्वास रह जाता है और न ही स्वाभिमान. छोटेबड़े नेता, कारोबारी, ऐयाश अफसर और रईसजादे इन युवतियों को भोगते हैं और इन्हें इस दलदल में बनाए रखने के लिए पैसे और ड्रग्स देते व दिलवाते हैं. और जब वे भार बनने लगती हैं तो उन्हें शिवानी शर्मा की तरह कीड़ेमकोड़े की तरह मार दिया जाता है.

चखना मत

इस गोरखधंधे के खात्मे के लिए जिस इच्छाशक्ति की जरूरत है वह न तो नेताओं में है, न अफसरों में. उलटे, वे तो अपनी हवस और पैसों के लिए इस काले कारोबार को और बढ़ावा देते हैं.

बरकतउल्ला विश्वविद्यालय, भोपाल के खेल विभाग के एक आदतन नशेड़ी छात्र के मुताबिक, ड्रग्स सेवन की लत एक वाक्य ‘एक बार चख कर तो देख’ से शुरू होती है और जो फिर कभी खत्म नहीं होती. खत्म कुछ युवा हो जाते हैं जो घबरा कर या डिप्रैशन के चलते खुदकुशी कर लेते हैं.

इस खिलाड़ी छात्र का कहना है कि इस चक्कर में कभी कोई युवा भूल कर भी न पड़े. इसलिए उसे एक बार चखने की जिद या आग्रह से बच कर रहना चाहिए. देशभर के होस्टल कैंपस में यह कारोबार फैला है जिस के कभी खत्म होने की कोई उम्मीद नहीं है.

ये भी पढ़ें- जेलों में तड़पती जिंदगी: भाग 1

कई बार युवा साथियों को जानबूझ कर इन जानलेवा नशे की तरफ खींचते हैं. इस के लिए उन्हें लालच दिया जाता है और दबाव भी बनाया जाता है. फिर ड्रग आकाओं के इशारे पर नाचने के अलावा इन के पास कोई और रास्ता नहीं रह जाता. युवतियां नशे के कारोबार की सौफ्ट टारगेट होती हैं जिन्हें ड्रग्स की लत लगा कर बड़े होटलों, फार्महाउसों और बंगलों तक में भेजा जाता है. ये लड़कियां जिंदगीभर पछताती रहती हैं कि काश, पहली बार ड्रग चखी न होती, तो आज उन की यह हालत न होती.

ड्रग्स और उस के कारोबारियों के खिलाफ हर कहीं मुहिम चलती है लेकिन जल्द ही दम तोड़ देती है क्योंकि ड्रग माफियाओं का शिकंजा इतना कसा हुआ है कि उस पर इन अभियानों का कोई असर नहीं होता.

ड्रग्स चख भी मत लेना: भाग 1

साल 1971  में देवानंद अभिनीत और निर्देशित फिल्म ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ सुपर हिट इसलिए भी हुई थी कि उस में युवाओं के लिए एक सार्थक संदेश था कि ड्रग्स के नशे में फंस कर जिंदगी का सुनहरा वक्त बरबाद मत करो. फिल्म में देवानंद की नशेड़ी बहन जसबीर का रोल जीनत अमान ने इतनी शिद्दत से निभाया था कि लोग उन के अभिनय के कायल हो गए थे. फिल्म का गाना ‘दम मारो दम मिट जाए गम…’ आज के नशेडि़यों का भी पसंदीदा गाना है.

फिल्म में जसप्रीत एक मध्यवर्गीय युवती है जो मांबाप के अलगाव के चलते डिप्रैशन में आ कर हिप्पियों की संगत में फंस कर नेपाल चली जाती है. सालों बाद उस का भाई प्रशांत उसे ढूंढ़ता हुआ काठमांडू पहुंचता है और नशेडि़यों के चंगुल से छुड़ाने के लिए तरहतरह के उपाय करता है.

ये भी पढ़ें- धार्मिक झांसों जैसा सरकारी नौकरियों का लौलीपौप

लगभग 50 साल बाद भी यह फिल्म प्रासंगिक बनी हुई है, जिस के गवाह हैं ड्रग्स की गिरफ्त में तेजी से आते युवा, जिन्हें सुधारने और नसीहत देने की जरूरत महसूस होने लगी है. 5 दशकों में देश बहुत बदला है लेकिन युवाओं में बढ़ती ड्रग्स की समस्या ज्यों की त्यों है. दरअसल, ड्रग्स का कारोबार बेहद गिरोहबद्ध तरीके से होता है.

एक नई जसप्रीत – शिवानी

मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले की गिनती पिछड़े जिलों में भले ही होती हो लेकिन ड्रग्स के मामले में यह महानगरों से उन्नीस नहीं. 19 वर्षीया छात्रा शिवानी शर्मा शिवपुरी के नवाब साहब रोड की निवासी थी. उस की कहानी ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ की जसप्रीत से काफी मिलतीजुलती है. शिवानी के पिता की मौत 3 महीने पहले ही हुई थी. उस की मां सालों पहले घर छोड़ कर चली गई थीं. अपने चाचाचाची के साथ रह रही शिवानी नशेडि़यों के चंगुल में जो फंसी तो फिर जिंदा इस चक्रव्यूह से बाहर नहीं आ पाई.

शिवानी की लाश शहर की कृष्णपुरम कालोनी के एक चबूतरे पर 6 जुलाई को मिली थी. पुलिस की तफ्तीश में आशंका जताई गई कि उस की हत्या की गई होगी लेकिन साथ ही यह भी कहा गया कि शिवानी की मौत स्मैक की ओवरडोज से हुई थी. पुलिस की कहानी से इतर शिवानी की चाची की मानें तो वह कुछ दिनों से स्मैक का नशा करने लगी थी, जिस की शिकायत उन्होंने पुलिस में भी की थी लेकिन पुलिस ने कोई कार्यवाही नहीं की.

ये भी पढ़ें- क्या बैंक में रखा पैसा डूब सकता है!

हादसे के 2 दिन पहले ही जूली, रूबी और चिक्की नाम की 3 युवतियों सहित 2 लड़के उसे अपने साथ ले गए थे. फिर शिवानी वापस नहीं आई. शिवानी की बुजुर्ग दादी रोते हुए बताती हैं कि वह अपने हाथ में नशे का इंजैक्शन लगाने लगी थी.

हल्ला मचने पर पुलिस हरकत में आई, तो यह खुलासा हुआ कि पूरी शिवपुरी में ड्रग माफिया सक्रिय है, जिस में पुलिस वालों की मिलीभगत है. आधा दर्जन पुलिसकर्मी भी इस माफिया से मिले हुए थे जिन्हें सस्पैंड कर दिया गया. हद तो उस वक्त हो गई जब शिवपुरी पुलिस का ही एक कांस्टेबल आशीष शर्मा का वीडियो वायरल हुआ जिस में वह नशे का इंजैक्शन लेता हुआ दिखाई दे रहा है.

इसी दौरान शिवपुरी के ही कुछ समाजसेवियों ने नशे के आदी एक नाबालिग बच्चे को पकड़ा था जिस ने बताया था कि स्मैक का इंजैक्शन 250 रुपए में मिलता है और इसे लगाने के लिए वह मैडिकल स्टोर से सीरिंज खरीदता था.

शिवपुरी का यह मामला एक बानगीभर है. दुनियाभर में ड्रग्स का कारोबार बहुत तेजी से फलफूल रहा है और ड्रग माफिया के निशाने पर अधिकतर युवा ही हैं.

हर तीसरी हिंदी फिल्म में दिखाया जाता है कि विलेन ड्रग्स का कारोबार करता है जिस की खेप समुद्री या हवाई रास्ते से आती है और ऐसे आती है कि पुलिस और कस्टम वालों को हवा भी नहीं लगती, यदि लगती भी है तो वे अंजान बने रह कर इस कारोबार को फलनेफूलने देते हैं, एवज में उन्हें तगड़ा नजराना जो मिलता है.

ये भी पढ़ें- दंतैल हाथी से ग्रामीण भयजदा: त्राहिमाम त्राहिमाम!

यत्रतत्र सर्वत्र

कैसे युवा ड्रग्स के जाल में फंसते हैं और उन का अंजाम क्या होता है, इस के पहले यह जान लेना निहायत जरूरी है कि इन दिनों दुनियाभर में ड्रग्स का कारोबार बेहद सुनियोजित और संगठित तरीके से हो रहा है. आएदिन देशभर में ड्रग्स के कारोबारी पकड़े जाते हैं. लेकिन यह भी सच है कि पकड़ी हमेशा छोटीमोटी मछलियां जाती हैं, मगरमच्छों तक तो पुलिस कभी पहुंच ही नहीं पाती. यानी पत्ते तोड़े जाते हैं लेकिन इस नशीले व्यापार की जड़ें और गहरी होती जा रही हैं.

शुरुआत देश के उत्तरी इलाके जम्मूकश्मीर से करें जहां हाल ही में धारा 370 हटाई गई है लेकिन, वहां आतंकवाद से भी बड़ी समस्या ड्रग्स की है. बीती 1 अगस्त को यह उजागर हुआ था कि कश्मीर में ड्रग्स धड़ल्ले से पिज्जाबर्गर की तरह मिलता है और आंकड़े बताते हैं कि बीते 5 सालों में ड्रग्स की लत के शिकार युवाओं की तादाद 10 गुना तक बढ़ी है.

जन्नत कहे जाने वाले कश्मीर के श्री महाराज हरिसिंह अस्पताल (एसएमएचएस) के डाक्टरों के अनुसार ड्रग्स के नशे के आदी एक 15 वर्षीय लड़के ने सनसनीखेज खुलासा किया है कि कश्मीर में ड्रग्स खुलेआम मिलती है. 8वीं जमात में पढ़ने वाले अहमद (बदला नाम) के मुताबिक कश्मीर में हेरोइन की कीमत 1,800 रुपए प्रतिग्राम है.

यानी ‘उड़ता पंजाब’ की तर्ज पर अब कश्मीर भी उड़ने लगा है. एसएमएचएस के ड्रग डी-एडिक्शन सैंटर के रजिस्ट्रार डाक्टर सलीम यूसुफ के अनुसार तो कश्मीर में 10 साल के बच्चे भी ड्रग्स की लत के शिकार हैं. कश्मीर में 12 फीसदी महिलाएं भी ड्रग्स का नशा करती हैं. इस का जिम्मेदार सलीम साइको सोशल स्ट्रैस को ठहराते हैं. लेकिन उन की नजर में बढ़ती बेरोजगारी भी दूसरी वजह है. इस साल 1 अप्रैल से ले कर 1 जून तक कई नशेड़ी एसएमएचएस में इलाज के लिए भरती हुए थे.

ये भी पढ़ें- जेलों में तड़पती जिंदगी: भाग 2

साल 2019 में पुलिस ने एक छापे में जम्मू से 41 किलो अफगानी हेरोइन जब्त की थी. जिस की अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कीमत लगभग 250 करोड़ रुपए है. ड्रग्स की यह तस्करी पाकिस्तान के बौर्डर से होती है. हालात कितने भयावह हैं, इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2008 से मई 2018 तक जम्मूकश्मीर के 4 नशामुक्ति केंद्रों में 21,871 मरीज इलाज के लिए भरती हुए थे.

ड्रग्स के कारोबार और खपत के लिए कुख्यात पंजाब और हरियाणा के बाद राजधानी दिल्ली के हालात तो और भी चिंताजनक हैं. 31 जुलाई को राज्यसभा में कांग्रेसी सांसद सुब्बारामी रेडी ने ड्रग्स का मुद्दा उठाते बताया था कि दिल्ली में तकरीबन 25 हजार स्कूली बच्चे ड्रग्स की लत के शिकार हो गए हैं और पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी है. बात सच है कि दिल्ली में झुग्गीझोंपडि़यों से ले कर पौश इलाकों तक के युवा ड्रग्स का नशा करते हैं. इन पौश इलाकों में रोजाना रेव पार्टियां होती हैं.

बीती 15 जुलाई को दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने एक हाईप्रोफाइल ड्रग सप्लायर करण टिवोती से लाखों रुपए की ड्रग्स बरामद की थी. करण दिल्ली और एनसीआर की हाईप्रोफाइल पार्टियों को ड्रग्स सप्लाई करता था.

इन्हीं दिनों में पश्चिम बंगाल, गुजरात, और महाराष्ट्र सहित मध्य प्रदेश में भी ड्रग रैकेट्स का भंडाफोड़ हुआ था, जिन में एक सप्ताह में ही तकरीबन 2,000 करोड़ रुपए कीमत की ड्रग्स बरामद हुई थी.

ये भी पढ़ें- भारत में हर साल बर्बाद किया जाता है इतना भोजन, वहीं 82 करोड़ लोग सोते हैं भूखे

हर एक की अलग कहानी

तेजी से ड्रग्स के शिकार होते युवाओं की कहानियां भी अलगअलग हैं. एक अंदाजे के मुताबिक अकेले भोपाल में 2 लाख से भी ज्यादा युवा ड्रग ऐडिक्ट हैं. इन में से अधिकतर कालेज के छात्रछात्राएं हैं. उन में से कुछ को भरोसे में ले कर बात की गई तो उन्होंने बताया-

कहानी (एक)

23 वर्षीय स्नेहा (बदला नाम) गुना से भोपाल पढ़ने आई है और भोपाल के त्रिलंगा इलाके में बतौर पीजी रहती है. स्नेहा के पिता सरकारी अधिकारी हैं और हर महीने उसे लगभग 10 हजार रुपए महीने भेजते हैं. जिन में से 5 हजार रुपए मकान के किराए और खानेपीने में खर्च होते हैं.

इंजीनियरिंग के तीसरे साल में पढ़ रही स्नेहा ने ड्रग्स के बारे में सुना जरूर था लेकिन कभी इन्हें देखा नहीं था, फिर सेवन का तो सवाल ही नहीं उठता था. स्नेहा की दोस्ती अपने ही अपार्टमैंट में रहने वाली मुग्धा (बदला नाम) से हुई तो जल्द ही दोनों में गहरी छनने लगी. मुग्धा कभीकभार ड्रग्स लेती थी और यह बात उस ने स्नेहा से छिपाई नहीं थी.

एक शाम स्नेहा मुग्धा के कहने पर गुलमोहर इलाके स्थित एक हुक्का लाउंज में चली गई. वहां का नजारा उसे अजीब लगा. वहां रंगबिरंगी लाइटों के साथ धीमा लेकिन उत्तेजित संगीत बज रहा था. लगभग 30-40 युवा अपनेआप में मशगूल कश खींच रहे थे, इन में 15 लड़कियां थीं. वहां कोई खास शोरशराबा या होहल्ला नहीं था. कई युवा ग्रुप बना कर बैठे थे.

ये भी पढ़ें- जेलों में तड़पती जिंदगी: भाग 1

स्नेहा को यह देख थोड़ी हैरानी हुर्ह कि लड़केलड़कियां हुक्के के कश के अलावा कोई पाउडर भी चख और सूंघ रहे थे और नशे में सैक्सी हरकतें भी कर रहे थे. उसे असहज होते देख मुग्धा ने बताया कि यही तो हम यूथ की जरूरत है जहां कोई बंदिश नहीं, बस मौजमस्ती है. और यही इस उम्र का तकाजा है. बाद में तो शादी कर नौकरी और गृहस्थी के झंझट में बंध जाना है. फिर ये दिन ख्वाब बन कर रह जाएंगे.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें