पंजाब के ज़हरीली शराब कांड में 100 से ज्यादा मौत की खबर है. ऐसे कांड में मरने वाले, सस्ती शराब के आदी, समाज के निचले माली तबके के लोग होते हैं. बेशक त्रासदी बड़ी हो जाए तो मीडिया की सुर्ख़ियांं संबंधित नेताओं, बिचौलियों और अधिकारियों को वक्ती तौर पर नंगा करने वाली ज़रूर बन जाती हैं.
पंजाब इस मामले में अकेला राज्य नहीं है. इस के पीछे रेवेन्यू केंद्रित आबकारी नीति से राज्य की आय बढ़ाते जाने और उस की आड़ में अपनी जेब के लिए अधिक से अधिक पैसा बनाने की होड़ होती है. अगर पूर्ण शराबबंदी हो तो और भी पौ बारह. सीधा समीकरण है- जितना ज़्यादा शिकंजा उतनी ज़्यादा उगाही. मोदी के गुजरात में नेता-बिचौलिया-अफ़सर गठजोड़ के लिए यह 30 हज़ार करोड़ और नीतीश के बिहार में यह 10 हज़ार करोड़ सालाना का जेबी कारोबार बन चुका है.
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गुजरात और बिहार में पूर्ण शराबबंदी के चलते पंजाब और हरियाणा से व्यापक शराब तस्करी इन दोनों राज्यों में होती आई है. पंजाब में हाल में आबकारी नीति को अपनेअपने संरक्षित शराब कार्टेल के हिसाब से तय कराने के चक्कर में प्रभावशाली मंत्रियों ने अमरिंदर सिंह के वफ़ादार मुख्य सचिव की छुट्टी करा दी. कुछ माह पहले हरियाणा में भी पकड़ी गयी शराब को खुर्दबुर्द कर गुजरात भेजने वाला गिरोह उजागर हुआ लेकिन इनेलो मंत्रियों की हिस्सेदारी ने जाँच को जकड़ रखा है.
दरअसल, आएदिन होने वाली छिटपुट मौतें तो ख़बर बनती ही नहीं, जबकि पंजाब जैसी बड़ी त्रासदी पर छोटे अफसरों के निलंबन-जांंच की चादर ओढ़ा दी जाती है. फ़िलहाल पंजाब में भी यही चलन देखने को मिल रहा है, एक दर्जन से ज्यादा इंस्पेक्टर स्तर के आबकारी और पुलिसकर्मी निलंबन की लिस्ट में हैं और मंडल कमिश्नर जाँचकर्ता के रूप में.
पिछले 10 साल में देश में हुई अन्य प्रमुख त्रासदियों पर एक नज़र डालिये जिन में सौ से अधिक मौतें हुईं, जांंच का नाटक चला और समाज के लिए आत्मघाती आबकारी नीति नेता-बिचौलिया-अधिकारी गठजोड़ के साये में बदस्तूर जारी रही. कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा, सरकार किसी पार्टी की हो- मोदी मॉडल या राम राज्य का दावा ही क्यों न हो.
क्या समझना मुश्किल है कि स्कूलों और अस्पतालों जैसी सामाजिक ज़रूरतों तक को निजी हाथों में सौंपने वाली सरकारें, शराब के कारोबार पर कुंडली मारे क्यों बैठी हैं?
महात्मा गांधी ने कहा था, ‘‘अगर मैं 1 दिन के लिए तानाशाह बन जाऊं, तो बिना मुआवजा दिए शराब की दुकानों व कारखानों को बंद करा दूंगा.’’ गांधीजी ने पूरी सूझबूझ के साथ यह बात कही थी, क्योंकि बरबादी का बड़ा कारण यह शराब ही है.
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भारत में आजादी के बाद से अब तक शराबबंदी के तमाम प्रयासों का सबक यही है कि पूर्ण शराबबंदी को लागू करना प्रदेश सरकारों के लिए संभव ही नहीं रहा. जिस भी राज्य में शराबबंदी लागू की गई, वहां शराब की तस्करी बढ़ गई.
देश में गुजरात, मिजोरम व नागालैंड ऐसे प्रदेश हैं, जहां पूर्ण शराबबंदी है. गुजरात में तो आजादी के बाद से ही शराब पर पाबंदी है, पर अफसोस यह महज कहने को ही है. वहां शराब हर जगह आसानी से उपलब्ध है. अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि पुलिस महकमा हर साल सवा सौ करोड़ की अवैध शराब जब्त करता है. हर साल जहरीली शराब पीने से मौतें होती हैं. 2009 में गुजरात में जहरीली शराब पीने से 148 लोग मारे गए थे.
मिजोरम राज्य में 1995 में शराबबंदी का कानून पारित किया गया था. मगर अगस्त, 2014 में शराबबंदी खत्म करने का फैसला कर नया कानून पारित कर दिया गया. सरकार का मानना था कि शराबबंदी से फायदा कम नुकसान ज्यादा हो रहा है. नागालैंड में भी करीब इसी समय से शराबबंदी लागू है.
केरल सरकार ने भी 2014 में चरणबद्ध तरीके से शराबबंदी करने का फैसला किया है. गौरतलब है कि देश में सब से ज्यादा शराब की खपत केरल में ही होती है. राज्य को 22 फीसदी राजस्व शराब से ही हासिल होता है. शराबबंदी लागू होने से यहां के पर्यटन पर गलत असर पड़ने की आशंका जताई जा रही है.
जब तक सरकारों की मौजूदा नीतियां कायम रहेंगी, तब तक शराब की लत की चपेट में आने से लोगों को नहीं बचा सकते. अगर हर गलीनुक्कड़ पर शराब की दुकानें खोल देंगे, तो लोग ज्यादा सेवन करेंगे ही. जहां शराब बंद करने का दिखावा किया जाता है, वहां अवैध बिक्री शुरू हो जाती है और खराब गुणवत्ता वाली शराब बिकने लगती है, जो जानलेवा साबित होती है. शराब के आदी लोग ज्यादा दाम पर भी घटिया शराब पीने लगते हैं, जो मौत के करीब ले जाती है.
इसलिए व्यक्ति से ज्यादा सरकार को कठोर फैसला करना चाहिए. इस मामले में भारत को सिंगापुर से सीखना चाहिए. वहां सिगरेट के सेवन से सेहत पर होने वाले नुकसान को देखते हुए सरकार ने बाकी देशों से सिगरेट की 7 गुना ज्यादा कीमत तय कर दी है. इस से लोगों ने सिगरेट खरीदना कम कर दिया है. सिगरेट के पैकेटों पर भयानक चेतावनी छापने के साथसाथ सजा भी तय कर दी गई है. इस से लोगों में डर पैदा हो गया है. उन्होंने सार्वजनिक जगहों पर सिगरेट पीना बंद कर दिया है. सिगरेट का पैकेट फेंकते पकड़े जाने पर भी जेल भेज दिया जाता है.
लेकिन हमारे यहां सरकारों की नीतियां सिगरेट पीने से रोकने के बजाय उन्हें सहजता से उपलब्ध कराने वाली हैं. ऐसे में समाज का माली तानाबाना टूटना लाजिम है. यदि सरकारें उपलब्धता पर नियंत्रण करें, तब ही लोगों को इन के सेवन से रोका जा सकता है.
दरअसल, शराब का असली नशा तो इस धंधे की कमाई की चाशनी में डूबने वालों पर ही ज्यादा चढ़ता है. फिर चाहे वे सरकारें हों या शराब का धंधा करने वाले. सभी चाहते हैं कि शराब से उन की तिजोरियों की सेहत हर दिन दुरुस्त होती रहे. राजस्थान में पिछली वसुंधरा राजे की सरकार अपनी शराब नीतियों को ले कर खासी बदनाम रही है, तो गहलोत सरकार ने भी शराब से कमाई का खेल बड़ी चतुराई के साथ खेला है.
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शराब से होने वाली कमाई का मोह यह सरकार भी नहीं छोड़ पाई. दरअसल, सरकार ने गलीगली में 24 घंटे खुलने वाले रैस्टोरैंट बार खोल दिए. राजस्थान सरकार का खजाना भरने के मामले में शराब का नंबर पहला है. दरअसल, मोटी कमाई के मामले में बाड़मेर में तेल से मिल रही 6 हजार करोड़ की रौयल्टी को ले कर जितना हो-हल्ला मचाया जा रहा है, उस से कहीं ज्यादा तो अब शराब उगल रही है. आर्थिक मामलों के सरकारी और गैरसरकारी माहिरों का मानना है कि तेल की रौयल्टी तो अब अगले कुछ सालों के लिए स्थायी हो गई है, लेकिन शराब का कारोबार प्रदेश सरकार के लिए राजस्व बढ़ाने के लिए एक खास जरीया बन गया है.
प्रशासन की सरपरस्ती में शराब का कानूनी व गैरकानूनी धंधा खूब फूलफल रहा है, जिस में पुलिस, सरकार सब शामिल हैं. सरकार के पास पढ़ेलिखे, अनपढ़, अमीरगरीब, हर तबके के लिए देशी से ले कर अंगरेजी शराब तक का बंदोबस्त है. शराब को घरघर पहुंचाने के लिए गांवों व शहरों में ठेका देने का काम भी बड़ी सूझबूझ के साथ किया जाता है ताकि कोई इलाका अछूता न रह जाए.
दरअसल, पैसे कमाने की सहूलियत के लिए इसे कानूनी और गैरकानूनी बता दिया गया है यानी जो सरकार बेचे, वह कानूनी है और जिस से उस का फायदा न हो, वह गैरकानूनी. जबकि शराब तो सिर्फ शराब है, जो इनसान को तिलतिल कर मारने का काम करती है. कच्ची शराब हो या शराब की लाइसैंसी दुकानें, दोनों से आम आदमी की बरबादी और सरकार व सरकारी आदमियों का मुनाफा हो रहा है. लाइसैंसी शराब से सरकारें हर साल अरबों रुपए का राजस्व हासिल करती हैं और गैरकानूनी घोषित की गई शराब में सरकारी लोगों का हिस्सा होता है.
शराब का नशा करना इनसान की कुदरती भूख नहीं है. इसलिए इस का होना या न होना कोई माने नहीं रखता. अगर इस की कुदरती भूख होती तो दुनिया के हर शख्स में नशाखोरी की लत पड़ गई होती. भारत में तो कई तथाकथित देवताओं तक को शराब पिलाई जाती है. यहां शराब पीनेपिलाने का इतिहास बहुत पुराना है. राजामहाराजाओं के जमाने से ही यहां शराब का खूब चलन रहा है. शराब की वजह से कई रियासतें, राजामहाराजा बरबाद हो गए, तो भला आम आदमी की क्या बिसात है?
सरकार एक तरह से वही काम कर रही है, जो अंगरेजों ने नवाबों के साथ किया था. उन्हें नशे में डुबोए रखा और अंदर ही अंदर उन की जड़ें खोखली कर समूचे भारत को गुलामी की बेडि़यों में जकड़ लिया.
चोरी, डकैती, हत्या, लूट, बलात्कार जैसे अपराधों को रोकना सरकार का फर्ज है, तो फिर सरकार लोगों को नैतिक बुराई शराब को पीने की दावत क्यों देती है? मसलन, भ्रूण हत्या भी तो अपराध है, फिर भी अनेक बार लड़कियों को पैदा होने से पहले ही कोख में मार दिया जाता है. ऐसे में सरकारें इस अपराध को रोकने में नाकाम हैं, तो इस का मतलब यह कतई नहीं कि वे लाइसैंस जांच केंद्र खुलवा कर इसे कानूनन सही ठहरा दें.
अगर कोई पति अपनी पत्नी को मारने से बाज नहीं आता, तो उस के खिलाफ कानूनी काररवाई करने के बजाय क्या उसे पत्नी को मारनेपीटने का कानूनी लाइसैंस दे दिया जाए? शराब के मामले में सरकारों ने ठीक ऐसा ही किया है. नशाबंदी लागू करने के बजाय उन्होंने गांवों, शहरों, कसबों में लाइसैंसी दुकानें खुलवा कर शराब पर कानूनी होने का ठप्पा लगा दिया है.
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भले ही आज भी शराब पीने के नाम पर लोग नाकभौं सिकोड़ते हों, लेकिन बाजार झूठ नहीं बोलता. जोश ए जवानी, नोटों से भरी जेबें और तेजी से बदलते माहौल के चलते शराब का नशा सिर चढ़ कर बोल रहा है.
भारतीय अलकोहल पेय बाजार जिस तेजी से सालाना बढ़ रहा है, वह काफी चिंताजनक है और स्पष्ट है कि देश की बड़ी आबादी शराब की गिरफ्त में है. देश में बीयर पीने वालों की भी कमी नहीं है और व्हिस्की पीने के मामले में तो भारतीयों ने व्हिस्की के सब से बड़े बाजार माने जाने वाले अमेरिका को भी पीछे छोड़ दिया है.
एक रिसर्च के मुताबिक, भारत में शराब पीना 16 से 18 साल की उम्र से शुरू हो कर 25 से 30 साल की उम्र में चरम पर पहुंच जाता है. इस समय भारत की 35 करोड़ की आबादी 18 से 35 साल की है और अगले 5 साल में इस में 5 से 7 करोड़ का इजाफा होने का अंदाजा है. यही वजह है कि दुनिया के तमाम शराब के कारोबारी भारत की ओर रुख कर रहे हैं.
भारत समेत दुनिया भर में शराब का सेवन करने से होने वाली बीमारियों की वजह से 33 लाख लोग हर साल मौत को गले लगाते हैं. इतना ही नहीं भारत में सड़क हादसों में हर साल करीब 1,38,000 लोग मारे जाते हैं. अलकोहल ऐंड ड्रग इन्फौर्मेशन सैंटर के एक अध्ययन के मुताबिक, इन में से 40 फीसदी हादसे शराब पी कर वाहन चलाने की वजह से होते हैं.
शराबखोरी कितना भयानक रोग बनता जा रहा है, यह इस से समझा जा सकता है कि दुनिया में बीमारियों, विकलांगता व मौत की वजह के जो कारण बताए जाते हैं, उन में शराबखोरी 2015 तक छठा कारण थी, लेकिन अब तीसरे पायदान पर आ पहुंची है. इंसान में 2 सौ से ज्यादा बीमारियों का खतरा शराब के सेवन से बढ़ता है.
पब्लिक हैल्थ फाउंडेशन नामक संस्था ने राजस्थान समेत 6 राज्यों के बारे में एक अध्ययन किया है और उस की रिसर्च के मुताबिक, शराब पर टैक्स व उस के दाम बढ़ने के बावजूद शराब की खपत बढ़ रही है. इस रिसर्च में राजस्थान, तमिलनाडु, ओडिशा, सिक्किम, मेघालय शामिल हैं. रिसर्च से पता चला है कि 28 फीसदी शराबी आत्महत्या करते हैं. आत्महत्या के सभी मामलों में से 50 फीसदी शराब या अन्य नशे पर निर्भरता से जुड़े होते हैं.
शराब के सेवन से आत्महत्या करने वालों में किशोरों की संख्या ज्यादा है, जो कुल आत्महत्या के मामलों में से 70 फीसदी है. शराब की लत इतनी आसानी से नहीं छूटती पर इसे छोड़ना नामुमकिन भी नहीं. आप के बेहतर स्वास्थ्य व भविष्य के लिए इस लत को छोड़ना बेहद जरूरी है.
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