बचपन में जब मैं अपने मामा के गांव रेलगाड़ी से जाता था, तो वे गांव से 3 किलोमीटर दूर पैदल रेलवे स्टेशन पर मुझे और मां को लेने आते थे. इस के बाद हम तीनों पैदल ही गांव की तरफ चल देते थे. पर कुछ दूर चलने के बाद मामा मुझे अपने एक कंधे पर बिठा लेते थे.

चूंकि मामा तकरीबन 6 फुट लंबे थे, तो उन के कंधे से मुझे पतली सी सड़क से गुजरते हुए आसपास की हरियाली और खेतखलिहान दिखते थे. उस सफर का रोमांच ही अलग होता था. खुशी और डर के मारे मेरी आंखें फट जाती थीं.

तब मामा जवान थे और मैं दुबलपतला बालक. मामा को शायद ही कभी मेरा बोझ लगा हो. पर हाल ही में एक ऐसा वाकिआ हुआ है, जिस ने पूरे समाज पर जिल्लत का बड़ा भारी बोझ डाल दिया है.

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मध्य प्रदेश का झाबुआ इलाका आदिवासी समाज का गढ़ है. वहां से सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ है, जिस में एक औरत को सजा के तौर पर अपने पति को कंधे पर बिठा कर पूरे गांव में घुमाना पड़ा. उसे सजा क्यों मिली? दरअसल, उस औरत पर आरोप लगा था कि उस का किसी पराए मर्द के साथ चक्कर चल रहा था.

वीडियो में दिखा कि एक औरत अपने पति को उठा कर चल रही थी और पीछेपीछे गांव वाले. एक जगह जब वह औरत थक गई, तो उसे छड़ी से पीटा भी गया.

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब किसी औरत को सरेआम बेइज्जत किया गया हो, वह भी एकतरफा फैसला सुना कर. दुख की बात तो यह थी कि उस औरत का मुस्टंडा पति इस बात की खिलाफत तक नहीं कर पाया.

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