इस बात में कोई शक नहीं कि भारती खांडेकर के नंबर बहुत ज्यादा नहीं हैं, लेकिन उस के बारे में जानने के बाद लगता है कि वह किसी टौपर से कम नहीं.

मध्य प्रदेश के इंदौर में रहने वाली इस बेहद गरीब लड़की ने इस साल माध्यमिक शिक्षा मंडल के 10वीं बोर्ड के इम्तिहान में 68 फीसदी नंबर हासिल कर फर्स्ट डिविजन बनाई है, जो किसी भी मैरिट वाले छात्र को इस लिहाज से सबक है कि उस के पास खुद का कमरा होना तो दूर की बात है, खुद का कोई घर भी नहीं है.

दरअसल, भारती इंदौर के शिवाजी मार्केट इलाके के फुटपाथ पर पिछले 15 साल से रह रही थी. उस के पिता दशरथ खांडेकर ठेला चलाते हैं और मां पैसे वालों के घरों में  झाड़ूपोंछा लगाने का काम करती हैं. सिर ढकने के लिए मांबाप ने एक  झोंपड़ी तान ली, जिसे हटाने के लिए कभी नगरनिगम, तो कभी पुलिस वाले आ धमकते थे.

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देश के दूसरे करोड़ों  झोंपड़ों की तरह इस  झोंपड़े में भी बिजलीपानी की कोई सहूलियत नहीं थी. 5 सदस्यों वाले इस परिवार को अकसर खानेपीने के लाले पड़े रहते थे, सो अलग. इस पर भी भारी परेशानी की बात यह कि बारिश में  झोंपड़ा पानी से लबालब भर जाता था और गरमीसर्दी की मार बरदाश्त करना हर किसी के बस की बात नहीं.

मांबाप सुबह काम पर निकल जाते थे, तो भारती अपने 2 छोटे भाइयों की देखभाल में जुट जाती थी और वक्त मिलने पर ही अपने स्कूल अहल्या आश्रम जा पाती थी. उस के पास नई कौपीकिताबें खरीदने के पैसे नहीं होते थे, फिर यह सोचना तो बेमानी है कि उसे कहीं से कोचिंग या ट्यूशन मिलती होगी.

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