पौलिटिकल राउंडअप : सरकारी सर्कुलर पर विवाद

मैंगलुरु. सीएए और एनआरसी के खिलाफ 19 दिसंबर, 2019 को कर्नाटक के मैंगलुरु में प्रदर्शन हुए थे. उस से कुछ घंटे पहले ही जारी किए गए एक सर्कुलर में कहा गया था कि दक्षिण कन्नड़ जिले के कालेज उन छात्रों पर नजर रखें, जो केरल के रहने वाले हैं.

दरअसल, ये प्रदर्शन हिंसक हो उठे थे. आरोप है कि कई लोग पुलिस की गोली से भी मारे गए थे. लेकिन असली विवाद तो बाद में इस सर्कुलर के चलते पैदा हो गया. राजनीतिक पार्टियों, छात्रों और शिक्षाविदों ने इस की बुराई करते हुए इसे भेदभाव वाला बताया, जबकि सरकारी अफसरों का कहना था कि सर्कुलर का मकसद केरल के छात्रों की सिक्योरिटी के लिए था, उन्हें बदनाम करने का नहीं था.

अपनों में बढ़ी दरार

पटना. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ज्यादा पसंद नहीं हैं, पर चूंकि वे राजग में शामिल हैं, इसलिए भाजपा का गुणगान कर ही देते हैं.

हालिया माहौल पर नीतीश कुमार के ‘चाणक्य’ प्रशांत किशोर ने बयान दे डाला कि इस बार जनता दल (यू) बिहार विधानसभा चुनाव में ज्यादा सीटों पर लड़े, क्योंकि कई राज्यों में मिली हार के बाद भाजपा बैकफुट पर है.

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नीतीश कुमार ने 2-4 दिन इस डिमांड को पनपने दिया, पर इस का कोई असर नहीं दिखा. फिर भाजपाई सुशील कुमार मोदी और प्रशांत किशोर की आपसी दरार के बाद नीतीश कुमार ने नए साल पर कह दिया कि गठबंधन में सब ठीक है. पर यह अब भाजपा के दिमाग में रहेगा कि चुनाव के समय जद (यू) अपना दावा ठोंकेगा.

कांग्रेस अध्यक्ष का दावा

जम्मू. अगर जम्मू के सारे हिंदू भाजपा की तरफ हैं, तो आप की यह सोच एकदम गलत है. वहां के कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष और प्रवक्ता रवींद्र शर्मा ने 31 दिसंबर, 2019 को दावा किया कि जम्मू क्षेत्र और दक्षिण कश्मीर के विभिन्न भागों की प्रस्तावित यात्रा से पहले यहां कांग्रेस पार्टी की ही जम्मूकश्मीर इकाई के अध्यक्ष जीए मीर और कई दूसरे बड़े नेताओं को नजरबंद कर दिया गया.

रवींद्र शर्मा ने कहा, ‘‘एक तरफ तो सरकार जम्मूकश्मीर में सामान्य हालात होने का दावा करती है, वहीं दूसरी तरफ वह राजनीतिक गतिविधियों के लिए विपक्ष को इजाजत नहीं दे रही है. सामान्य हालात होने का उस का दावा खोखला है.’’

निरंजन ज्योति के बिगड़े बोल

लखनऊ. उत्तर प्रदेश की राजनीति में प्रियंका गांधी बहुत ज्यादा सक्रिय हो गई हैं. उन्होंने भाजपा को आड़े हाथ लिया हुआ है. इसी सिलसिले में उन्होंने भगवा कपड़े को ले कर वहां के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर निशाना साधा.

कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी के इस बयान पर पलटवार करते हुए केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने एक विवादित बात कही. पिछले साल के आखिर में वे बोलीं कि प्रियंका गांधी भगवा रंग का मतलब नहीं समझ सकतीं, क्योंकि वे नकली गांधी हैं. उन्हें अपने नाम के आगे से गांधी हटा लेना चाहिए और अपना नाम प्रियंका फिरोज कर लेना चाहिए.

अगर नामों का इतना महत्व ही है तो आदित्यनाथ और निरंजन अपने नाम के आगेपीछे पुछल्ले क्यों लगाए रखते हैं?

भागवत के खिलाफ शिकायत

हैदराबाद. मोहन भागवत ने 25 दिसंबर, 2019 को यहां एक जनसभा में कहा था कि धर्म और संस्कृति पर ध्यान दिए बिना, जो लोग राष्ट्रवादी भावना रखते हैं और भारत की संस्कृति और उस की विरासत का सम्मान करते हैं, वे हिंदू हैं और संघ देश के 130 करोड़ लोगों को हिंदू मानता है.

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मोहन भागवत के इस बयान पर कांग्रेस नेता वी. हनुमंत राव ने 30 दिसंबर, 2019 को उन के खिलाफ एक शिकायत दर्ज कराई और आरोप लगाया, ‘‘भागवत के बयान से न केवल मुसलिमों, ईसाइयों, सिखों, पारसियों वगैरह की भावनाओं और आस्था को ठेस पहुंची है, बल्कि यह भारतीय संविधान की मूल भावना के खिलाफ भी है.’’

जजपा में घमासान

चंडीगढ़. हरियाणा की राजनीति में ‘दादा’ के नाम से मशहूर नेता रामकुमार गौतम ने अपनी पार्टी जननायक जनता पार्टी के खिलाफ बागी तेवर दिखाए और इस्तीफा देते हुए अपने नेता दुष्यंत चौटाला को कोसते हुए कहा था कि उन्हें मंत्री न बनाए जाने का गम नहीं है, लेकिन दुख इस बात का है कि गुरुग्राम के मौल में जो गुप्त समझौता हुआ है, उस के लिए बलि का बकरा उन्हें क्यों बनाया गया? उपमुख्यमंत्री ने 11 विभाग अपने पास रखे हैं, जबकि पार्टी के मात्र एक विधायक को एक कनिष्ठ मंत्री बनाया गया.

शिव सेना के बागी तेवर सफल होते देख दुष्यंत चौटाला भी किसी दिन अपने विधायकों के गुस्से को शांत करने के लिए कांग्रेस से समझौता कर सकते हैं.

तू डालडाल मैं पातपात

नई दिल्ली. दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर 26 दिसंबर, 2019 को निर्वाचन आयोग की पहली बैठक होने के साथ ही केंद्र और राज्य सरकारों के बीच अपनेअपने किए गए कामों को गिनाने की रेस शुरू हो गई. पिछले 5 साल से अटके बहुत से प्रोजैक्टों की केजरीवाल सरकार और केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय ने या तो बुनियाद रखी या फिर उन का उद्घाटन किया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तकरीबन 1,700 कच्ची कालोनियों को पक्का करने का ऐलान किया, तो मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी अपने 5 साल के कामों का रिपोर्टकार्ड जारी किया और 65,000 झुग्गी वालों को पक्का मकान बना कर देने का सर्टिफिकेट दिया.

मोदी सरकार को कच्ची कोलोनियों को तो 4 साल पहले ही पक्का कर देना चाहिए था. अब तक क्या कर रही थी?

सावित्रीबाई फुले का दर्द

लखनऊ. भारतीय जनता पार्टी से सांसद रही सावित्रीबाई फुले ने नाराज हो कर पार्टी को छोड़ दिया था और बड़ी ठसक के साथ वे कांग्रेसी हो गई थीं. पर अब उन्होंने कांग्रेस का दामन भी छोड़ दिया है.

26 दिसंबर, 2019 को कांग्रेस से इस्तीफा देने से पहले सावित्रीबाई फुले ने आरोप लगाया कि पार्टी में उन की बात नहीं सुनी जाती है. इतना ही नहीं, कांग्रेस को अलविदा कहते हुए उन्होंने दावा किया है कि वे खुद की पार्टी बनाएंगी.

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सावित्रीबाई फुले का यह फैसला सही है, क्योंकि जब खुद की पार्टी होगी तो यह भगवाधारी नेता किसी की अनसुनी का शिकार तो कतई नहीं होगी.

दीपिका की “छपाक”… भूपेश बघेल वाया भाजपा-कांग्रेस!

दिल्ली स्थित जेएनयू हिंसा के पश्चात छात्रों के बीच पहुंची दीपिका पादुकोण की फिल्म छपाक का बहिष्कार करने के लिए भाजपा समर्थकों ने सोशल मीडिया में अभियान चल रहा है. जिसके प्रतिउत्तर में मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री कमलनाथ के द्वारा फिल्म ‘छपाक’ को टैक्स मुक्त करने के बाद, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने राज्य में फिल्म को टैक्स फ्री करने की घोषणा कर दी है.

देश प्रदेश में दीपिका पादुकोण को लेकर एक तमाशा चल रहा है. दीपिका पादुकोण जब जेएनयू में प्रकट होती है तो देश की मीडिया उनकी सिंपैथी दिखाकर, यह बताने का प्रयास करती है कि दीपका कितनी संवेदनशील है. दूसरी तरफ केंद्र सरकार और उनके नुमाइंदे मानो दीपका पर पिल पड़े ऐसी स्थिति में जवाबी तलवारबाजी तो होनी ही थी और खूब हो रही है.

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छत्तीसगढ़ में भी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कमलनाथ के पद चिन्हों पर चलते हुए छपाक फिल्म को टैक्स मुक्त कर दिया है. संपूर्ण घटनाक्रम को देखकर कई प्रश्न खड़े हो जाते हैं जिनका प्रतिउत्तर आम जनमानस के पास नहीं होता. क्योंकि वह संपूर्ण घटनाक्रम की पीछे की राजनीति को, आज चल रही विचारधारा की लड़ाई को नहीं समझ पाती. छत्तीसगढ़ में दीपिका पादुकोण की फिल्म छपाक के बरअक्स इस मसले को हम समझने का प्रयास करते हैं-

क्या यह ढर्रा देशहित हित में है!

मेघना गुलजार निर्देशित और दीपिका पादुकोण अभिनीत ऐसिड अटैक सर्वाइवर पर बनी फिल्म “छपाक “10 जनवरी को देश भर के सिनेमाघरों में रिलीज हो गई . इधर फिल्म के रिलीज होने के पूर्व दीपिका पादुकोण दिल्ली के जेएनयू पहुंच गई, उनका समर्थन में खड़ा होना एक प्रश्न चिन्ह बना दिया गया. जहां एक और केंद्रीय सरकार के मंत्री दीपिका से नाराज दिखे, वहीं कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दल खुलकर दीपिका के पक्ष में खड़े हो गए हैं. अब यह अवाम को सोचना है कि क्या आप आक्रमणकारियों के के पक्ष में खड़े होंगे या आक्रमणकारियों के विरोध में.

देश में इन दिनों बन रही लघु मानसिकता तो यही कहती है कि आप चाहे कोई भी हो. आम आदमी या सेलिब्रिटी अगर आप केंद्र सरकार के मंशा के खिलाफ खड़े हैं तो आप को देश में रहने का अधिकार नहीं! आप देशद्रोही हैं. यह ढर्रा देश को किस दिशा में ले जाएगा यह फिल्म छपाक के इस विवाद के बरअक्स उठे विवाद से, आगे की मंजिलें बताएगी. यहां मजेदार बात यह है कि छत्तीसगढ़ में अब यह भाजपा मांग उठाने लगी है कि अजय देवगन की फिल्म “तानाजी” को भी टैक्स मुक्त किया जाए…

अब सीधी सी बात है कि कांग्रेस सरकार भला भाजपा की सोच पर अपनी मोहर क्यों लगाएगी. मगर आपको यह समझना होगा कि तानाजी का मतलब सीधे सीधे हिंदू वोट बैंक भी है. कुल जमा फिल्मों को लेकर घात प्रतिघात का दौर, भाजपा और कॉन्ग्रेस यह मध्य जारी है.

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भूपेश बघेल से यही उम्मीद थी!

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ट्वीट कर फिल्म को टैक्स फ्री किये जाने की जानकारी सार्वजनिक की. उन्होंने ट्वीट कर कहा, “समाज में महिलाओं के ऊपर तेजाब से हमले करने जैसे जघन्य अपराध को दर्शाती हैं . हमारे समाज को जागरूक करती हिंदी फिल्म “छपाक” को सरकार ने छत्तीसगढ़ प्रदेश में टैक्स फ्री करने का निर्णय लिया है. आप सब भी सपरिवार जाएं.”

यहां सवाल यह भी उठता है कि नकाबपोश गुंडों द्वारा जेएनयू में छात्रों के ऊपर लाठी और रॉड से हमला किया गया था. इस हमले में छात्र संघ अध्यक्ष आइशी घोष सहित कई छात्रों को गंभीर चोटें आई थी. जेएनयू छात्रों ने इस हमले के पीछे एबीवीपी को जिम्मेदार बताया था. हमले से जुड़े कई वीडियो भी सामने आए.
छात्रों के ऊपर हुए हमले के बाद दीपिका पादुकोण जेएनयू पहुंची थीं, जहां वे हिंसा के खिलाफ छात्रों के बीच खड़ी थी. दीपिका के सामने आने के बाद कई बॉलीवुड सितारों ने भी हमले की निंदा की थी. उधर दीपिका के इस कदम के बाद सोशल मीडिया में उनकी फिल्म छपाक को बॉयकॉट करने का अभियान चलाया जा रहा है. जो अपने उफान पर है. देश भक्ति का मतलब ही आजकल, देश में भाजपा और केंद्र सरकार के समर्थन में खड़े होना है.

क्या देशभक्ति ऐसी होती है कि आप किसी फिल्म को न देखें और उसका बाय काट करें. मगर यही हो रहा है फिल्म छपाक को लेकर दो ध्रुव बन गए हैं ऐसे में कमलनाथ सरकार के फिल्म को टैक्स फ्री करने के बाद भूपेश बघेल बघेल को तो ऐसा करना ही था और उन्होंने किया प्रश्न यह खड़ा हो जाता है क्या दीपिका पादुकोण जेएनयू नहीं जाती तो हमारे प्रदेश और देश की सरकार जो कांग्रेस नीत से जुड़ी हैं फिल्म को टैक्स मुक्त करती? शायद कभी नहीं. इधर दीपिका पादुकोण को घेरते हुए केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने उन्हें कांग्रेसी मानसिकता का बताते हुए नया मोर्चा खोल दिया है.

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एनआरसी से खौफजदा भारत के नागरिक

नैशनल रजिस्टर सिटीजन्स औफ इंडिया यानी एनआरसी में नाम दर्ज कराने का मामला शहर से ले कर गांव तक में खासकर मुसलिम समुदाय में चर्चा का मुद्दा बना हुआ है. बहुत से लोगों को इस बारे में कोई जानकारी नहीं है और वे दहशत में जी रहे हैं. कुछ भक्तगण इस मुगालते में हैं कि ऐसे मुसलिम, जिन के पास कोई दस्तावेज नहीं हैं, वे पाकिस्तान और बंगलादेश वापस चले जाएंगे. उन की सारी जमीनजायदाद हम लोगों की हो जाएगी.

इस मामले पर शाक्य बीरेंद्र मौर्य का कहना है, ‘‘भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने ‘डिस्कवरी औफ इंडिया’ में, राहुल सांस्कृत्यायन ने ‘वोल्गा से गंगा’ किताब में और तकरीबन सभी इतिहासकारों ने इस बात को माना है कि आर्य बाहर से आए हुए हैं और विदेशी हैं.

‘‘21 मई, 2001 को ‘टाइम्स औफ इंडिया’ ने छापा था कि आर्य विदेशी हैं. इन का डीएनए भारत के लोगों से मैच नहीं करता. इन सब पुरानी बातों के अलावा साल 2018 में एक नए शोध में फिर इस बात की तसदीक हुई कि आर्य बाहर से आए हुए हैं और विदेशी हैं.

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‘‘जब इतिहासकारों और मैडिकल साइंस ने मान लिया है कि आर्य विदेशी हैं, तो इन विदेशी नागरिकों का एक बार फिर से डीएनए टैस्ट करा कर इन की पहचान कर, इन को वापस भेजना चाहिए. लेकिन दुख की बात है कि भारत में जो खुद विदेशी हैं, आज वही नागरिकता का सर्टिफिकेट बांट रहे हैं और मूल भारतीय सांसद, विधायक, नेता, मंत्री सब मूकदर्शक बने तमाशा देख रहे हैं. अगर आप में जरा भी राष्ट्र प्रेम बचा है तो लोकसभा और राज्यसभा में इस मुद्दे को बेबाकी से उठाइए.’’

प्रोफैसर अलखदेव प्रसाद अचल ने बताया, ‘‘केंद्र सरकार द्वारा 10 करोड़ मुसलिम, ओबीसी, एससी व एसटी की नागरिकता खत्म करने की कोशिश की जा रही है. कैसे आप की नागरिकता खत्म होगी?

‘‘भारत सरकार सभी नागरिकों से कोई ऐसा दस्तावेज देने के लिए कह रही है, जिस से यह साबित हो पाए कि वह या उस के पूर्वज साल 1971 से पहले भी भारत के नागरिक थे. बहुत से लोगों के पास ऐसा कोई दस्तावेज नहीं होगा, जिसे वे सुबूत के रूप में पेश कर सकें.

‘‘जो लोग साल 1971 के बाद पैदा हुए, जिन के पास जमीनजायदाद होगी या जो लोग जमींदार थे, जिन की जमीनजायदाद है और खतियान में उन का नाम है, वे तो खतियान निकाल कर साबित कर देंगे कि 1971 से पहले भी भारत के नागरिक थे. लेकिन बाकी लोग ऐसा साबित नहीं कर पाएंगे.

‘‘भारत के नागरिकों में कितने लोग थे, जिन के पास साल 1971 से पहले जमीनजायदाद रही होगी? चंद लोगों के पास 1971 से पहले जमीन रही होगी. सिर्फ मुसलिम ही नहीं, बल्कि पिछडे़ और दलितों का एक बहुत बड़़ा तबका नागरिकता के इस पचड़े में फंस जाएगा.

‘‘फिर लोग अपनी नागरिकता बचाने के लिए सरकारी दफ्तरों में दौड़ लगाएंगे और भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं के सामने हाथपैर जोड़ेंगे कि उन की नागरिकता बचा ली जाए.’’

क्या कहता है संविधान

अनुच्छेद 5 में बताया गया है कि जब संविधान लागू हो रहा था तो उस वक्त कौन भारत का नागरिक होगा. अगर कोई व्यक्ति भारत में जनमा था या जिस के माता या पिता में से कोई भारत में जनमा हो या अगर कोई व्यक्ति संविधान लागू होने से पहले कम से कम 5 सालों तक भारत में रहा हो, तो वह भारत का नागरिक होगा.

नागरिकता का अधिकार

ऐसे में भ्रष्ट कर्मचारियों और अधिकारियों को एक अधिकार दिया गया है कि कैसे वे लोगों से पैसा ले कर उन की नागरिकता बहाल कर दें. सिटीजनशिप ऐक्ट के जरीए उन्हें यह अधिकार दिया गया है.

सिटीजनशिप ऐक्ट में कोई भी व्यक्ति यह घोषणा कर सकता है कि वह नागरिक नहीं तो कम से कम इस देश में शरणार्थी तो है ही. फिर वह सिटीजनशिप ऐक्ट में नागरिकता के लिए आवेदन करे. अगर वह मुसलिम नहीं है तो उस के आवेदन पर विचार किया जाएगा.

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अगर वह मुसलिम है तो आवेदन ही नहीं कर सकता, क्योंकि सिटीजनशिप ऐक्ट में ही ऐसा प्रावधान है कि इस ऐक्ट में सिर्फ उन्हीं लोगों को नागरिकता दी जाएगी, जो मुसलिम नहीं हैं.

मुसलिमों को नागरिकता देने का प्रावधान इस कानून के अंदर है ही नहीं, इसलिए मुसलिम आवेदन भी नहीं कर पाएंगे.

फिर करोड़ों दलित, आदिवासी और पिछडे़, जिन के पास 1971 से पहले कोई जमीनजायदाद नहीं थी, उन्हें शरणार्थी घोषित कर के सालों तक उन से वोट

देने का अधिकार भी छीन लिया जाएगा और उन से नागरिकता के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगवाए जाएंगे.

यह चक्कर कब खत्म होगा, कोई नहीं जानता, क्योंकि राजीव गांधी के जमाने से ऐसा ही चक्कर असम के लोग लगा रहे हैं और पिछले 30 सालों से उन्हें वोट देने के अधिकार को बहाल रखने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है.

आने वाले 50 साल तक भूमिहीन याद रखें, इस में वे सभी भूमिहीन लोग शामिल हैं, जो 1971 से पहले भूमिहीन थे, 1971 के बाद जिन लोगों ने आरक्षण पा कर नौकरी पाई और खुद जमीन खरीद ली, वे भी नागरिकता नहीं बचा पाएंगे क्योंकि आप को 1971 से पहले के दस्तावेज देने हैं. पिछडे़ व दलित और पूरे देश में अपनी नागरिकता को बहाल रखने के लिए संघर्ष करते दिख जाएंगे. इस का क्या नतीजा होगा, पता नहीं.

लेकिन उन के संघर्ष करने का एक अवसर होगा. मुसलिमों के पास ऐसा कोई अवसर नहीं होगा, क्योंकि कानून में ही उन को आवेदन देने का प्रावधान नहीं है. जिन मुसलिमों के पास साल 1971 से पहले अपने पूर्वज को इस देश का नागरिक साबित करने का कोई कानूनी दस्तावेज नहीं होगा, उन्हें बंगलादेशी घोषित कर दिया जाएगा. उन के सारे नागरिक अधिकार खत्म हो जाएंगे.

हो सकता है कि उन के घर या मकान भी सरकार कब्जे में ले ले. ऐसे शरणार्थी लोगों को शहर के किसी बाहरी इलाकों में डिटैंशन सैंटर में डाल दिया जाएगा.

इस बारे में इंजीनियर सनाउल्लाह अहमद रिजवी ने बताया, ‘‘आप कल्पना नहीं कर सकते कि लोगों को कितनी परेशानी होगी. कितने शर्म की बात है कि आजादी के 70 साल बाद भी इस देश के नागरिक को अपनी नागरिकता साबित करनी होगी.

‘‘जिन लोगों के भूकंप, बाढ़ जैसी आपदा में कागजात खो गए हों या किसी गरीब ने अपनी अशिक्षा के चलते न बना पाया हो, उन बेचारों पर तो जैसे मुसीबत आ पड़ी है.’’

ऐसा नहीं है कि सिर्फ मुसलिम नहीं फंसेंगे. असम में 19 लाख में से तकरीबन 14 लाख गैरमुसलिम हैं, वैसे ही हर राज्य में उन की तादाद होगी.

तब गैरमुसलिमों यानी हिंदुओं को भी नहीं बख्शा जाएगा और रिफ्यूजी मान कर ही कुछ दिनों की नागरिकता दी जाएगी. वे बैठेबिठाए पाकिस्तानी या बंगलादेशी बन जाएंगे.

जरा गौर से सोचिए और इस काले कानून का विरोध कीजिए. खुश होने वाले यह जान लें कि जिस तरह गांधी, मौलाना, आजाद, भगत सिंह व अशफाकउल्ला ने मिल कर हमें अंगरेजों से नजात दी थी, वैसे ही आज उन के ख्वाबों के साथ जीने वाले लोग मिल कर इन काले अंगरेजों से भी लडें़गे और इस काले कानून का विरोध करेंगे.

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बरसों से अपने गांवकसबों से दूर रह रहे लोग, सारे कामकाज छोड़ कर जमीनों की मिल्कीयत और रिहाइश के सुबूत लेने के लिए अपने गांव आएंगे. इन में से कुछ यह भी पाएंगे कि कर्मचारी व पदाधिकारी से सांठगांठ कर के लोगों ने अपनी जमीनों की मिल्कीयत बदल दी है. बहुत बडे़ पैमाने पर संपत्ति के विवाद सामने आएंगे. खूनखराबा भी होगा.

ये दस्तावेज नहीं होंगे मान्य

आधारकार्ड, पैनकार्ड दिखा कर आप अपनी नागरिकता साबित नहीं कर सकते. जो लोग यह सम झ रहे हैं कि एनआरसी के तहत सरकारी कर्मचारी घरघर आ कर कागज देखेंगे, यह उन की भूल होगी. नागरिकता साबित करने की जिम्मेदारी व्यक्ति की होगी, सरकार की नहीं.

इस के अलावा जिस की नागरिकता जहां से सिद्ध होगी, उसे शायद हफ्तों वहीं रहना पडे़. करोड़ों लोगों के कामकाज छोड़ कर लाइनों में लगे होने से देश का उद्योग, व्यापार और वाणिज्य, और सरकारी व गैरसरकारी दफ्तरों का कामकाज चौपट होगा.

अर्थव्यवस्था पर असर

सनक में लाई गई नोटबंदी और जल्दबाजी में लाए गए जीएसटी ने पहले ही हमारी अर्थव्यवस्था को तबाह कर दिया है. इक्कादुक्का घुसपैठियों को छोड़ कर ज्यादातर वास्तविक लोग ही परेशान होंगे.

श्रीलंकाई, नेपाली और भूटानी मूल के लोग, जो सदियों से इस पार से उस पार आतेजाते रहते हैं, उन्हें अपनी नागरिकता साबित करने में दांतों से पसीना आ जाएगा. जाहिर है, इन में से ज्यादातर हिंदू ही होंगे.

लगातार अपनी जगह बदलते रहने वाले आदिवासी समुदायों को तो सब से ज्यादा दिक्कत आने वाली है. वन क्षेत्रों में रहने वाले लाखों लोग वहां की जमीनों पर वन अधिकार कानून के तहत अपना कब्जा तो साबित कर नहीं पा रहे हैं, वे नागरिकता कैसे साबित करेंगे?

दूरदराज के पहाड़ी और वन क्षेत्रों में रहने वाले लोग, घुमंतू समुदाय, अकेले रहने वाले बुजुर्ग, अनाथ बच्चे, बेसहारा महिलाएं, विकलांग लोग और भी इस से प्रभावित होंगे.

इन की होगी चांदी

इस में कुछ लोगों की पौबारह भी हो जाएगी. बडे़ पैमाने पर दलाल सामने आएंगे. जिस के पास पैसा है, वे नागरिक न होने के बावजूद फर्जी कागजात बनवा लेंगे. नागरिकता साबित करने में सब से ज्यादा दिक्कत उसे होगी, जो सब से ज्यादा लाचार, बेबस और वंचित हैं.

बनेंगे डिटैंशन सैंटर

जो लोग अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाएंगे, उन के लिए देश में डिटैंशन सैंटर बनेंगे. इन सैंटरों को बनाने और चलाने में देश के अरबों रुपए खर्च होंगे. कुलमिला कर देश के सामाजिक, माली और राजनीतिक हालात बेहाल हो जाएंगे.

अगर फार्म भरना पड़े

वकील शेख बिलाल का सु झाव है कि सभी नियमों को बहुत ही ध्यान से पढे़ं और भरें. धर्म वाले कौलम में मुसलिम लोग इसलाम लिखें और समुदाय के कौलम में मुसलिम लिखें. इस के अलावा कुछ भी न जोडें़ जैसे शिया, सुन्नी, अहले, हदीस, तबलीग जमात वगैरह.

किसी फार्म को भरने के लिए किसी अधिकारी या कर्मचारी पर निर्भर न रहें. अपना नाम और बाकी डिटेल खुद ही भरें या अपने किसी भरोसेमंद आदमी से भरवाएं. फार्म भरने में बाल पैन का इस्तेमाल करें.

देश के सभी राज्यों में एनआरसी और कैब का विरोध स्वयंसेवी संगठन, शिक्षण संस्थान और राजनीतिक दल के साथसाथ लेखक व पत्रकार अपनेअपने लैवल से कर रहे हैं. इसे सुप्रीम कोर्ट में भी ले जाया गया है.

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देश को आजाद कराने वाले और अपनी जान की कुरबानी देने वाले स्वतंत्रता सेनानी व हमारे राष्ट्रभक्तों ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि जिस आजादी के लिए हम सबकुछ लुटा रहे हैं, उस भारत का हश्र यह होगा. गुजरात में नर्मदा किनारे सैकड़ों मीटर की ऊंचाईर् पर खड़े पटेल अपने सपनों के भारत को बरबाद होता देखते रहेंगे.

असम में जो दस्तावेज मांगे गए

असम में रहने वाले लोगों को सूची ए में दिए गए कागजातों में से कोई एक जमा करना था. इस के अलावा दूसरी सूची बी में दिए गए दस्तावेजों में से किसी एक को दिखाना था जो कि आप अपने पूर्वजों से संबंध साबित कर सकें. लिस्ट ए में मांगे गए मुख्य दस्तावेजों की लिस्ट :

द्य 1951 का एनआरसी. द्य 24 मार्च, 1971 तक का मतदाता सूची में नाम. द्य जमीन का मालिकाना हक या किराएदार होने का रिकौर्ड. द्य नागरिकता प्रमाणपत्र. द्य स्थायी निवास प्रमाणपत्र. द्य शरणार्थी पंजीकरण प्रमाणपत्र. द्य किसी भी सरकारी प्राधिकरण द्वारा जारी लाइसैंस. द्य सरकार या सरकारी उपक्रम के तहत सेवा या नियुक्ति को प्रमाणित करने वाला दस्तावेज. द्य राज्य के ऐजूकेशन बोर्ड या यूनिवर्सिटी के प्रमाणपत्र. द्य अदालत के आदेश रिकौर्ड. द्य पासपोर्ट. द्य कोई भी एलआईसी पौलिसी.

ऊपर दिए गए दस्तावेजों में से कोई भी 24 मार्च, 1971 के बाद का नहीं होना चाहिए. अगर किसी नागरिक के पास इस तारीख से पहले का दस्तावेज नहीं है तो 24 मार्च, 1971 से पहले का अपने पिता या दादा के डौक्यूमैंट्स में से किसी एक को दिखा कर अपने पिता या दादा से संबंध स्थापित करना होगा. दी गई लिस्ट बी डौक्यूमैंट में उन का नाम होना चाहिए:

जन्म प्रमाणपत्र, भूमि दस्तावेज, बोर्ड या विश्वविद्यालय का प्रमाणपत्र, बैंक, एलआईसी, पोस्ट औफिस रिकौर्ड, राशनकार्ड, मतदाता सूची में नाम.

कानूनी रूप से स्वीकार किए गए दूसरे दस्तावेज-

शादीशुदा औरतों के केस में सर्कल अधिकारी या ग्राम पंचायत सचिव द्वारा दिया गया प्रमाणपत्र.

असम से बुलंद हुआ बगावत का  झंडा

हाजगह : असम के गुवाहाटी का हातीगांव. तारीख : 12 दिसंबर, 2019. समय : शाम के 6.15 बजे.

स्कूल में पढ़ने वाला एक 16 साला छात्र सैम स्टेफर्ड अपनी मां से मोबाइल फोन पर कहता है, ‘‘मां, नागरिकता कानून का विरोध करने के लिए सभी लोग गुवाहाटी की सड़कों पर उतर आए हैं. मैं भी वहीं हूं. मेरी चिंता मत करना.’’

सैम स्टेफर्ड तलासील प्लेग्राउंड में हो रहे विरोध प्रदर्शन में ‘नो कैब’ का नारा लगाते हुए अपने घर लौट रहा था कि अचानक पुलिस की गोली चली और कुछ देर छटपटाने के बाद सैम स्टेफर्ड का शरीर शांत हो गया.

दिसंबर का महीना असम के लिए अच्छा नहीं रहा. पूरा गुवाहाटी शहर 10 दिसंबर से परेशान था. इस परेशानी की वजह नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 को लोकसभा में पास कराना था. इस के विरोध में उत्तरपूर्व क्षेत्रीय छात्र संघ ने 11 घंटे का पूर्वोत्तर बंद रखा था.

नया नागरिकता बिल पास होने के बाद इस के विरोध में लोग सड़कों पर उतर आए और रैलियां निकालीं. सड़कों पर टायर जला कर विरोध प्रदर्शन के साथ असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल और वित्त मंत्री हिमंत विश्व सरमा मुरदाबाद के नारे लगाए गए.

पूर्वोत्तर में चारों तरफ नागरिकता कानून के विरोध की आग भड़की. दिसपुर सचिवालय के सामने सरेआम उपद्रवियों ने गाडि़यों में आग लगाई. अहिंसक आंदोलन को हिंसा का रूप लेने में देर नहीं लगी. पुलिस ने बारबार लाठीचार्ज किया और आंसू गैस के गोले छोडे़.

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इस के बाद सेना को सड़कों पर उतारा गया और कर्फ्यू लगाने के साथ इंटरनैट सेवा बंद कर दी गई. यही रवैया ऊपरी असम के तिनसुकिया, डिब्रूगढ़, चबुआ, गोलाघाट, तेजपुर समेत पूर्वोत्तर में यह आंदोलन और ज्यादा बढ़ा.

क्या है नागरिकता कानून

नागरिकता कानून, 2019 के मुताबिक, सीमा से सटे पड़ोसी देश बंगलादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के गैरमुसलिमों को भारतीय नागरिकता मिलेगी. इतिहास गवाह है कि इन नागरिकों का बो झ अकेले असम को उठाना पड़ेगा. ऐसे में असमिया समाज के वजूद पर सवालिया निशान लगना लाजिमी है.

नागरिकता के सवाल पर जिस तरीके से विरोध जताया जा रहा है, वह दिन दूर नहीं जब एक बार फिर 6 साल तक चले असम आंदोलन की शुरुआत हो सकती है. नागरिकता कानून, 2019 को ले कर राज्य की विभिन्न राजनीतिक पार्टियां, संगठन, शिल्पी समाज, वरिष्ठ नागरिकों और पढे़लिखे लोगों के बीच यह मुद्दा तूल पकड़ता जा रहा है.

भूल आखिर कहां हुई

पूर्वोत्तर बंद के दौरान आल असम छात्र संघ की जिम्मेदारी थी कि सबकुछ शांतिपूर्वक रहे, लेकिन इस संघ ने इस ओर ध्यान नहीं दिया. इस के बदले डिब्रूगढ़ में असम कृषक मुक्ति संग्राम समिति के नेता अखिल गोगोई ने कहा था कि 11 दिसंबर को यह बिल राज्यसभा में पास होगा. ऐसे में असम की जनता अपने घरों से बाहर निकल कर रेल, सड़क, केंद्र व राज्य सरकार के कामकाज में बाधा पहुंचाए.

मीडिया का रोल

नागरिकता कानून, 2019 को ले कर हो रहे आंदोलन पर राज्य के इलैक्ट्रौनिक मीडिया ने निष्पक्षता के साथ खबरें पेश नहीं कीं. लोगों ने देखा कि सड़कों पर विरोध जता रहे प्रदर्शनकारी चिल्ला रहे थे, हालात बेकाबू हो रहे थे.

उस समय ज्यादातर टैलीविजन रिपोर्टर चिल्लाचिल्ला कर बोल रहे थे कि आप सभी अपने घरों से निकल आएं, असम की रक्षा का सवाल है.

असमझौते का पालन

नागरिकता कानून, 2019 का विरोध पूर्वोत्तर में तूल पकड़ता जा रहा है. राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और असम गण परिषद  के विधायक प्रफुल्ल कुमार महंत ने वही पुराना राग दोहराते हुए कहा कि यह कानून स्थानीय निवासियों का विरोध और गैरमुसलिम घुसपैठियों का समर्थन करता है. हम ने इस का विरोध किया है. असम आंदोलन में 855 लोग शहीद हुए थे. बाद में केंद्र सरकार और आसू के बीच सम झौता हुआ. इस सम झौते का पूरी तरह से पालन होना चाहिए.

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हिंसा भड़काने वाला कौन

नागरिकता कानून, 2019 के खिलाफ और असमिया जाति की सुरक्षा को ले कर राज्य की जनता सड़कों पर उतर आई है. उस दिन भी कुछ ऐसा ही हुआ था. लोग विरोध जताते हुए गुवाहाटी महानगर की सड़कों पर नारेबाजी करते हुए दिसपुर सचिवालय की ओर बढ़ रहे थे. इस बीच कुछ शरारती तत्त्व तैयारी के साथ भीड़ में घुस आए और विरोध के नाम पर हिंसा की आग कुछ इस कदर फैलाई थी कि सरकारी संपत्तियों का नुकसान हुआ.

पुलिस और केंद्र को यह गुमान है कि पिछले कुछ सालों की तरह वह लोगों को डराधमका कर हर तरह की नाराजगी को नजरअंदाज किया जा सकता है. यह गरूर है.

अब तक 5 मारे गए

विरोध जताने के लिए सड़कों पर उतरे लोगों पर पुलिस को मजबूर हो कर फायरिंग करनी पड़ी, क्योंकि उग्र भीड़ हिंसा पर उतारू हो गई थी. पुलिस की गोली से मारे गए लोगों में 16 साल का सैम स्टेफर्ड, 18 साल का दीपांजल दास, 25 साल का ईश्वर नायक, 25 साल का अब्दुल आलिम और डिब्रूगढ़ में मारा गया 32 साल का विजेंद्र पांगि शामिल है.

राज्य सरकार की भूल

गुवाहाटी शहर जब आग की लपटों में था, मशाल अंतिम सीमा पार कर चुकी थी, तब राज्य की भाजपा सरकार की नींद खुली. मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल समेत इन के मंत्री, विधायकों और आला अधिकारी सो कर उठे. दरअसल, इस कानून को ले कर राज्य के 80 फीसदी लोगों के पास सही जानकारी नहीं है.

प्रदेश भाजपा सरकार के पास अपना सूचना और जनसंपर्क विभाग है. इस विभाग के रहते हुए भी इस बारे में राज्य की जनता को जानबू झ कर सही जानकारी नहीं दी गई. या यों कहिए कि भाजपा सरकार इस मामले में भी ऐसे ही नाकाम रही है, जैसे विकास के मामले में पिछड़ रही है.

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नागरिकता कानून पर बवाल

देशभर में नागरिकता कानून में बदलाव से अफरातफरी मची हुई है. जिस वाहवाही की उम्मीद भाजपा सरकार और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कर रहा था वह उसे नहीं मिली. यह बदलाव मोटेतौर पर पाकिस्तान, बंगलादेश व अफगानिस्तान से आने वाले हिंदुओं को जल्दी भारतीय नागरिकता देने के लिए बना है. इन देशों में से बंगलादेश से तो हिंदू आते रहे हैं, पर पाकिस्तान व अफगानिस्तान से नाम के हिंदू ही आते हैं.

भाजपा और भगवा जमात की सोच यह है कि पाकिस्तान का नाम ले कर कभी भी इस देश के लोगों को बहकाया जा सकता है. पिछली मई में हुए चुनावों में भाजपा ने पाकिस्तान को ही निशाने पर ले कर बात की थी. बहुत पहले जब इंदिरा गांधी का सिंहासन डोल रहा था तब भी उन्होंने विदेशी हाथ का शिगूफा छेड़ा था और जिस का मतलब रूस या अमेरिका से नहीं था, पाकिस्तान से था. भाजपा कांग्रेस की कारगुजारियों की एकएक बात बारीकी से बहसों में दोहराती है पर वह विदेशी हाथ की बात नहीं करती, क्योंकि आज भाजपा यही कर रही है.

इस बदले कानून में पाकिस्तान का नाम इसलिए लिया गया है कि भारत का हिंदू वोटर भुलावे में रहे कि पाकिस्तान में तो हिंदुओं के साथ बहुत बुरा हो रहा है और वे डर कर भाग रहे हैं. बदले में वे अगर भारतीय मुसलमान को सताएं तो यह सही ही होगा.

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इस प्रकार का बदले का रिवाज सदियों से चल रहा है. दूर कहीं एक धर्म या जाति के लोग कुछ करें तो उन का बदला कहीं और निर्दोषों से लेना आदमी की आदत है. पुलिस ऐसे मामलों में कुछ नहीं करती, यह तो सब जानते हैं. इस नए कानून से एक हथियार हरेक आम हिंदू को मिल जाएगा कि वह किसी भी मुसलिम से पूछताछ करने लगे चाहे उस के पास कोई अधिकार है या नहीं.

बजाय मिल कर देश को बनाने के अब बिगाड़ने का काम शुरू हो गया है. देश की माली हालत खराब है. मंदी छाई हुई है. बिक्री घट रही है. बेरोजगारी बढ़ रही है. प्याज तक के दाम आसमान पर हैं, पर भाजपा सरकार को कश्मीर के अनुच्छेद 370, तीन तलाक, नागरिकता बिल, राम मंदिर, नमामि गंगे, चारधाम, पटेल की मूर्ति, रामसीता की मूर्ति की पड़ी है.

देश में अगर कुछ हो रहा है तो पुलिस का काम हो रहा है. कश्मीर हो, उत्तरपूर्व हो, असम हो, हैदराबाद में रेप हो, उन्नाव में लड़कियों को जलाना हो, पुलिस ही पुलिस दिखती है. लगता है 2014 और 2019 में हम ने देश को बनाने के लिए नहीं देश में पुलिस राज बनाने के लिए सरकारें चुनी थीं.

नागरिकता कानून में बदलाव आम आदमी को देगा कुछ नहीं, पर बेबात का संकट पैदा कर देगा. लंगड़े देश की बैसाखी भी तोड़ दी जाएगी. इस में सब से ज्यादा बुरा उन किसानों, कारखानों के मजदूरों, हुनरमंद लोगों, औरतों, जवानों का होगा जिन का कल काला होता नजर आ रहा है.

अगर कुछ चमचमा रहा है तो मंदिर और पूजापाठ का धंधा जिस में पहले केवल ऊंची जातियों के लोग जाते थे, अब पिछड़े भी धकेले जा रहे हैं और वे कामधंधे छोड़ कर अलख जगाने में लग गए हैं.

मौत के मकान

दिल्ली में 45 लोगों की संकरी गलियों में बने गोदाम में आग लगने से हुई मौतों पर भाजपा और आम आदमी पार्टी एकदूसरे और गोदाम मालिकों पर चाहे जितनी तूतूमैंमैं कर लें, सच बात तो यह है कि दिल्ली जैसे शहर में मजदूरों के पास रहने की जगह तक नहीं है और उन्हें संकरी गलियों में एकदूसरे से सटे बने मकानों में जो गोदामों की तरह इस्तेमाल होते हैं, काम भी करना होता है और वहीं रहना होता है. उन की जिंदगी उन चूजों की तरह होती है जिन्हें आटोरिकशा, ट्रकों पर लाद कर पौल्ट्री फार्म से मंडियों तक ले जाया जाता है और फिर काट कर खा लिया जाता है.

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ये 45 लोग खुशी से उस गोदाम में नहीं रह रहे थे जहां पुरानी वायरिंग थी, सामान भरा था, छोटी खिड़कियां थीं, गुसलखाने नहीं थे, शौच का आधाअधूरा इंतजाम था. वे गुलाम भी नहीं थे. वे आजाद थे और कहीं भी जा कर रह सकते थे, पर उन्हें वहीं रहना पसंद आया, क्योंकि छत भी मिली, रोजाना रोजगार भी मिला.

देश की 60-70 फीसदी आबादी ऐसे ही रह रही है. यह वह आबादी है जो अछूत नहीं मानी जाती. ये लोग पिछड़ी जातियों के हैं पर आज 70 साल की आजादी और 150 साल की तकनीक के बावजूद जंगलों में रहने की तरह रह रहे हैं. अब जंगल शहरी हो गए हैं, उतने ही खतरनाक.

उत्तर प्रदेश, बिहार,  झारखंड से आए ये मजदूर 500-600 रुपए की दिहाड़ी में इतना ही कमा पाते हैं कि अपना पेट भर सकें, कुछ पैसे घर भेज सकें. ये अपना मकान अलग ले कर नहीं रह सकते, आनेजाने का खर्च नहीं उठा सकते. देशभर में फैली भयंकर बेकारी, गरीबी, अनपढ़ता उन की इस हालत के लिए जिम्मेदार है, न भाजपा की नगरनिगम, न अरविंद केजरीवाल की दिल्ली सरकार, न पिछली सरकारें और न ही गोदाम मालिक.

इन गोदामनुमा फैक्टरियों में स्कूल बैग बनते हैं, कपड़े सिले जाते हैं, बाइडिंग होती है और यहीं कारीगर सो जाते हैं, क्योंकि वे कहीं और नहीं जा सकते.

यह देश के कर्णधारों की गलती है, अमीर और गरीब के बीच की बढ़ती खाई का नतीजा है. पूरे देश ने किस्मत और पूजापाठ पर भरोसा करना शुरू कर दिया है, मेहनत पर नहीं. देश में गरीबों को, पिछड़ों को, दलितों को पिछले जन्मों के पापों का फल भोगना माना जा रहा है. घंटेघडि़याल बजाए जा रहे हैं, मंदिर बनाए जा रहे हैं, फैक्टरियां नहीं, मजदूरों के घर नहीं. इसलिए जो हुआ होना ही था, होता रहेगा, क्योंकि देश की हालत दिन ब दिन बिगड़ रही है, सुधर नहीं रही.

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पौलिटिकल राउंडअप: अब नई दलित पार्टी

साल 2017 में सहारनपुर में हुई हिंसा के बाद सुर्खियों में आई भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर आजाद ने कहा कि बहुजन समाज पार्टी मुद्दों से भटक गई है. लिहाजा, उन के नए सियासी दल में ईमानदार और समर्पित नौजवानों की भागीदारी रहेगी. वे ‘एक नोट एक वोट’ के फार्मूले पर अपनी पार्टी की बुनियाद रखेंगे. ऐसा माना जा रहा है कि कांशीराम का जन्मदिन 15 मार्च को है, उस दिन या उस से पहले इस का ऐलान कर दिया जाएगा.

यह दलित वोटों में विभाजन करेगा और वे भारतीय राजनीति में निरर्थक हो जाएंगे.

बागी हुए प्रशांत किशोर

पटना. अपनी चाणक्य वाली सोच से बड़ेबड़े नेताओं को तारने वाले प्रशांत किशोर फिलहाल बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सारथी बने हुए हैं, पर कब तक उन का साथ देंगे, कह नहीं सकते.

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दरअसल, इस नए नागरिकता संशोधन विधेयक को समर्थन देने के मामले में जनता दल (यूनाइटेड) के उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर पार्टी की चेतावनी के बाद भी अपने रुख से पीछे नहीं हटे और उन्होंने 13 दिसंबर को दोबारा नागरिकता संशोधन कानून को ले कर अपनी नाराजगी जाहिर कर दी.

पार्टी ने प्रशांत किशोर को ऐसी बयानबाजी से बचने की सलाह दी, पर वे अपने रुख से पीछे नहीं हटने का मन बना चुके हैं और इसी बीच उन के ऐसे बगावती तेवर को देखते हुए विपक्षी दलों ने अपने महागठबंधन में उन्हें आने का न्योता दिया है. वैसे, उन के आम आदमी पार्टी से मिलने के भी कयास लगाए गए.

नेताजी के बोल बचन

सतना. यों तो भारतीय जनता पार्टी के बहुत से नेता अपने बयानों से देश की जनता का मनोरंजन करते रहते हैं, पर मध्य प्रदेश के सतना से भाजपा सांसद गणेश सिंह ने 11 दिसंबर को दावा किया है कि संस्कृत बोलने से इनसानी नर्वस सिस्टम बेहतर होता है और डायबिटीज और कोलैस्ट्रौल कंट्रोल में रहता है. इस के लिए उन्होंने अमेरिका के एक अकादमिक संस्थान के शोध का हवाला दिया.

सांसदजी यहीं पर नहीं रुके, बल्कि उन्होंने यह भी दावा किया कि यूएस स्पेस रिसर्च और्गनाइजेशन नासा के शोध के मुताबिक, अगर कंप्यूटर प्रोग्रामिंग संस्कृत में की जाए तो उस में कोई रुकावट नहीं होगी.

राजस्थान में ‘जन आधारकार्ड’

जयपुर. राजस्थान सरकार ने अपने नागरिकों को सरकारी योजनाओं का फायदा देने के लिए एक नए ‘जन आधारकार्ड’ को शुरू करने की तैयारी की है. प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपनी सरकार का एक साल पूरा होने के मौके पर 18 दिसंबर को जयपुर में इस योजना की शुरुआत की और अगले साल 1 अप्रैल से यही कार्ड मान्य होगा.

इस योजना के तहत राज्य के हर परिवार को 10 अंक की परिवार पहचान संख्या वाला ‘जन आधारकार्ड’ दिया जाएगा. परिवार में 18 साल या इस से ज्यादा उम्र की महिला को मुखिया बनाया जाएगा. महिला नहीं है तो 21 साल या इस से ज्यादा उम्र का पुरुष मुखिया होगा.

पिनराई विजयन ने चेताया

तिरुअनंतपुरम. देशभर में हिंसा की आग सुलगा चुके नागरिकता संशोधन कानून को ले कर केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने कहा कि वर्तमान माहौल को भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने पैदा किया और वे देश में अपना एजेंडा लागू करना चाहते हैं. केरल नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ खड़ा है.

मंगलवार, 10 दिसंबर को लोकसभा में इस बिल के पास होने पर पिनराई विजयन ने कहा था कि नागरिकता संशोधन विधेयक देश के धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक चरित्र पर एक हमला है. यह लोगों को सांप्रदायिक आधार पर बांटने की कवायद है.

फारूक की हिरासत बढ़ी

श्रीनगर. जम्मूकश्मीर राज्य के 3 बार मुख्यमंत्री रह चुके फारूक अब्दुल्ला की हिरासत 14 दिसंबर को 3 महीने के लिए और बढ़ा दी गई. वे तकरीबन जेल बना दिए गए अपने घर में नजरबंद रहेंगे.

याद रहे कि केंद्र सरकार ने इसी साल 5 अगस्त को जम्मूकश्मीर राज्य का विशेष दर्जा हटाने और उसे बांटने का ऐलान किया था और उसी दिन से फारूक अब्दुल्ला हिरासत में हैं.

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कांग्रेस ने भरी हुंकार

दिल्ली. जहां एक तरफ केजरीवाल सरकार ‘अब की बार 67 पार’ का नारा लगा रही है, वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस दिल्ली में मोदी सरकार को घेरने के नाम पर अपनी ताकत आजमा रही है. इसी सिलसिले में कांग्रेस ने 14 दिसंबर को ‘भारत बचाओ रैली’ निकाली, जिस का मकसद भाजपा की देश को बांटने वाली नीतियों को उजागर करना था.

इस रैली में कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी के अलावा पार्टी के तमाम नेताओं ने मोदी सरकार के खिलाफ हल्ला बोला. कांग्रेस का दावा है कि बेरोजगारी, बेकारी, भूख, किसानों की बदहाली और माली मंदी की वजह से आम आदमी का जीना मुश्किल हो गया है.

यह कांग्रेस का एक तीर से दो शिकार करना रहा. मोदी सरकार को तो कोसा ही, दिल्ली में भीड़ इकट्ठी कर के अरविंद केजरीवाल की भी परेशानियां बढ़ा दीं.

आंध्र प्रदेश ने दिखाई ‘दिशा’

हैदराबाद. हाल ही में एक महिला डाक्टर से गैंगरेप, हत्या और फिर लाश जला देने की वारदात के बाद राज्य समेत पूरे देश में गुस्से का उफान था. इसी के मद्देनजर आंध्र प्रदेश विधानसभा ने 13 दिसंबर को ‘दिशा’ बिल पास कर दिया है, जिस के तहत रेप और गैंगरेप के अपराध के लिए ट्रायल को तेज किए जाने, 21 दिन के अंदर फैसला देने और मौत की सजा का प्रावधान है.

इस बिल में आईपीसी की धारा 354 में संशोधन कर के नई धारा 354(ई) बनाई गई है. लिहाजा, रेप के मामले में मौत की सजा का प्रावधान देने वाला आंध्र प्रदेश देश का पहला राज्य बन गया है.

पूर्वोत्तर में बदलाव की चिनगारी

गुवाहाटी. नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ असम एक रणभूमि बना और सुलग गया. दिसंबर में वहां जमा हुई भीड़ की ‘होहो’ की गूंज, असमिया ‘गमछा’ और ‘जय आई असोम’ के नारे ने केंद्र सरकार के इस फैसले का पुरजोर विरोध किया. प्रदर्शनकारियों ने कहा कि इस नागरिकता कानून से असम की पहचान को खतरा है.

इतना ही नहीं, असम के पड़ोसी राज्य सिक्किम में भी नागरिकता बिल का विरोध किया गया. देश के नामचीन फुटबाल खिलाड़ी और हामरो सिक्किम पार्टी के संस्थापक और अध्यक्ष बाइचुंग भूटिया ने कहा कि वे नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 से हताश हैं. सिक्किम के मूल निवासियों को सिरे से गायब कर दिया गया है और उन पर लगातार खतरा बना हुआ है.

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महाराष्ट्र में हुआ कैबिनेट का विस्तार, अजित पवार ने चौथी बार उपमुख्यमंत्री बन बनाया रिकौर्ड

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के वरिष्ठ नेता अजित पवार ने सोमवार को महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. महा विकास अघाड़ी के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और अन्य गणमान्य लोगों की उपस्थिति में राज्यपाल बी.एस. कोश्यारी ने अजित पवार को शपथ दिलाई. राकांपा प्रमुख शरद पवार के भतीजे अजित (60) ने रिकॉर्ड चौथी बार उपमुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली है. उन्होंने सबसे पहले नवंबर 2010 में, उसके बाद अक्टूबर 2012 में, उसके बाद मुश्किल से 80 घंटों के लिए नवंबर 2019 में और अब सोमवार को शपथ ली है.

एक बार से ज्यादा बार उपमुख्यमंत्री बनने का कारनामा उन्हीं की पार्टी के नेता छगन भुजबल भी कर चुके हैं. वह पहले अक्टूबर 1999 में तथा उसके बाद दिसंबर 2008 में उपमुख्यमंत्री बने थे. इनके अलावा नासिकराव तिरपुडे, सुंदरराव सोलंके, रामराव आदिक, गोपीनाथ मुंडे, आर.आर. पाटील (सभी का निधन हो चुका) और विजयसिंह मोहिते-पाटील एक-एक बार उप मुख्यमंत्री बन चुके हैं.

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महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने सोमवार को अपने मंत्रिमंडल का विस्तार किया. उद्धव के बेटे आदित्य ठाकरे सहित 35 विधायकों ने मंत्री पद की शपथ ली, जिसमें कैबिनेट के 25 और राज्यमंत्री के 10 पद शामिल हैं. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के वरिष्ठ नेता अजीत पवार ने रिकॉर्ड बनाते हुए चौथी बार उप-मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.

नरीमन पॉइंट स्थित महाराष्ट्र विधानमंडल परिसर के बाहर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने सभी नए मंत्रियों को पद और गोपनियता की शपथ दिलाई. मंत्रिमंडल के विस्तार का स्वागत करते हुए शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने इसे ठाकरे का अच्छी तरह से संतुलित निर्णय करार दिया. उन्होंने कहा कि इस विस्तार से राज्य के सभी वर्गो, समुदाय और धर्म का उचित प्रतिनिधित्व हुआ है.

महा विकास अगाड़ी के अन्य नेताओं सहित आदित्य ठाकरे को कैबिनेट मंत्री बनाया गया है. राज्य के मुख्यमंत्री रहे कांग्रेस के अशोक चव्हाण, परिषद में विपक्ष के नेता रहे राकांपा के धनंजय मुंडे, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष दिलीप वाल्से-पाटिल और राकांपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता नवाब मलिक इस विस्तार का हिस्सा बने हैं.

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मंत्रिमंडल में तीन महिलाएं भी शामिल हैं. राकांपा की अदिति तटकरे (राज्य मंत्री) और कांग्रेस कीं वर्षा गायकवाड़ और यशोमती ठाकुर को भी मंत्रिमंडल में स्थान मिला है. वहीं, शिवसेना की तरफ से सरकार में कोई महिला प्रतिनिधित्व नहीं है. साल 2014 के बाद पहली बार मंत्रालय में चार मुस्लिम चेहरे आए हैं. शिवसेना के अब्दुल सत्तार नबी (राज्य मंत्री), राकांपा के नवाब मलिक व हसन मुशरीफ और कांग्रेस के असलम शेख, इन सभी को कैबिनेट स्तर का पद दिया गया है.

तीनों पार्टियों के अन्य बड़े नामों में अनिल परब, विजय वादीतिवार, जितेंद्र अवध, अनिल देशमुख, अमित (विलासराव) देशमुख, राजेश टोपे, और सतेज पाटिल (राज्यमंत्री), विश्वजीत कदम और बच्चू कडू शामिल हैं.

नेता बांटे रेवड़ी, अपन अपन को देय !

यहां सत्ता की खनक की गुंज, गली गली में गूंज रही है. जिसका सबसे बड़ा असर नगरीय निकाय चुनाव में देखने को मिल रहा है .सन 1999 में अविभाजित मध्यप्रदेश के दरम्यान पहला नगरीय निकाय चुनाव हुआ था और अविभाजित मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी मुख्यमंत्री थे दिग्विजय सिंह.

उस समय चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से हुआ था. मतदाताओं ने महापौर, अध्यक्ष, सरपंच और पार्षदों के चुनाव प्रत्यक्ष पृणाली से मतदान करके किया था. तदुपरांत 2004,2009, 2014 तक चुनाव भाजपा के शासन काल में भी इसी प्रत्यक्ष प्राणाली से हुए .इस चुनाव का लाभ यह था की जहां महापौर, अध्यक्ष सीधे मतदाताओं के प्रति जिम्मेदारी का एहसास कराते हैं वहीं राजनीतिक खरीदी बिक्री की संभावना भी खत्म हो जाती है. सत्ता की प्रेशर की राजनीति पर अंकुश लगता है मगर छत्तीसगढ़ में नई परिपाटी शुरू की है उन्होंने एक्ट मैं बदलाव किए और अबकि चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से हुए जिसमें पार्षद ही अपने महापौर चुनेंगे अध्यक्ष चुनेंगे. ऐसे में खरीदी बिक्री और राजनीतिक बवंडर दिखाई पड़ने लगे हैं.

कांग्रेस का सूपड़ा साफ !

मुख्यमंत्री बन कर भूपेश बघेल ने सबसे बड़ा काम यही किया की अपनी साख बचाने के लिए नगरीय निकाय चुनाव को आखिरकार अप्रत्यक्ष प्राणाली से कराने का ऐलान कर दिया .इस पर उनकी कश्मकश देखी गई पहले कहा प्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव होंगे लोग महापौर पद की तैयारी में जुट गए .मगर विपक्षी नेताओं का आरोप है जब भूपेश बघेल को यह सीक्रेट जानकारी मिली कि प्रत्यक्ष चुनाव हुए तो कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो जाएगा तो उन्होंने अपनी साख हाईकमान से बचाने की खातिर चुनाव की पद्धति बदलवा दी.

विरोध स्वरूप मामला उच्च न्यायालय पहुंचा .सुनवाई शुरू हुई मगर सरकार के कानों में जूं तक नहीं रेंगी और चुनाव हो गए अब हालात यह है की लगभग सभी नगर निगम, नगर पालिका, और नगर पंचायतों में घमासान मचा हुआ है.

कहीं भाजपा आगे है तो कहीं कांग्रेस कहीं बराबर की टक्कर. अब पार्षदों की खरीदी बिक्री का खेल शुरू हो गया है .कांग्रेस के मंत्री, दावा कर रहे हैं की सभी नगर निगमों, नगर पालिकाओं में हम कांग्रेस के महापौर बैठायेगे. दरअसल यह सीधे-सीधे सत्ता की धमक और खनक का ही परिणाम होगा की कांग्रेसी पत्ते महापौर बनेंगे.

संवैधानिक संस्थाओं से छेड़छाड़

भूपेश बघेल मुख्यमंत्री बड़ी ही शान से बने थे छत्तीसगढ़ में 67 सीटों पर ऐतिहासिक बहुमत मिला जिसकी कल्पना तक किसी ने नहीं की थी .भाजपा, जोगी कांग्रेस के हाथों के तोते उड़ गए. ऐसे में भूपेश बघेल चाहते तो प्रदेश के साथ देश की राजनीति में एक नजीर बन कर उभर सकते थे .राजनीति में सत्ता ही सब कुछ नहीं होती आपकी छवि आम जनमानस में कैसे बन रही है यह महत्वपूर्ण होता है .आज भी लोग अर्जुन सिंह, अजीत जोगी के कार्यकाल को याद करते हैं क्योंकि उन्होंने आम जनता के हित में संवेदनशील कदम उठाए थे .मगर छत्तीसगढ़ में एक वर्ष में बदलापुर की राजनीति और जीत के जश्न मनाए जाते रहे हैं. आम जनता जिनमें किसान, मजदूर, श्रमिक शामिल है मानौ ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं . किसानों को चक्का जाम करना पड़ रहा है मगर भूपेश बघेल कानों में रूई डालकर भव्य आयोजनों में शिरकत कर रहे हैं.

यह है जमीनी हकीकत

रायपुर नगर निगम जहां कांग्रेस के प्रमोद दुबे महापौर थे इस चुनाव में 70 में 34 पार्षद चुनकर आए हैं दो पार्षदों को कांग्रेस अपने पक्ष में करने एड़ी चोटी का जोर लगा रही है .राजधानी रायपुर के बाद न्यायधानी बिलासपुर में 70 पार्षदों में 35 कांग्रेस के पास आ चुके हैं बहुमत के लिए एक पार्षद को तोड़ा जा चुका है . उर्जा नगरी कोरबा में भाजपा को बढ़त मिली है उसके 32 पार्षद विजई हुए हैं मगर 26 सीटों वाली कांग्रेस सारी नैतिकता ताक पर रखकर पार्षदों को खरीदने प्रभावित करने में लगी हुई है .रायगढ़ में 48 पार्षदों में कांग्रेस के पास 24 पार्षद हैं. इस तरह कांग्रेस हर नगरीय क्षेत्र में अपनी सत्ता बनाने सारे हथकंडे अपना रही है जिसकी नाराजगी राजनीतिक क्षेत्र के साथ आम आवाम में भी देखी जा रही है.

झारखंड में क्यों नहीं जीत पाई भाजपा ये 26 आदिवासी सीटें? कहीं ये इन बिलों की वजह तो नहीं

साल 2019 भाजपा के लिए ज्यादा अच्छा नहीं रहा. दो बड़े प्रदेशों से सत्ता का छिनना बीजेपी को रास नहीं आ रहा. लेकिन इन हारों के पीछे भाजपा की कुछ कमियां जरुर थीं. महाराष्ट्र में जनता ने बहुमत दिया लेकिन 30 साल का रिश्ता मुख्यमंत्री पद के लिए तोड़ दिया गया. शायद ये जो गठबंधन टूटा था उसमें कहीं न कहीं शिवसेना को समझ आ गया था कि महाराष्ट्र की राजनीति से उनका पत्ता साफ होता जा रहा है. खैर, सबसे ज्यादा चिंतनीय बात तो ये है कि झारखंड का सीएम भी अपनी सीट नहीं बचा सके. उनको सरयू राय ने हरा दिया. सरयू राय भी बीजेपी के बागी नेता थे और रघुबर दास की नीतियों से खफा थे.

अगर मुख्यमंत्री रहते हुए रघुवर दास कुछ विवादित विधेयक विधानमंडल से पास न कराते तो विधानसभा चुनाव में भाजपा की स्थिति अच्छी हो सकती थी. ये दो विधेयक छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (सीएनटी) और संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम (एसपीटी) में संशोधन से जुड़े थे. इन दोनों विधेयकों का जिन 28 विधानसभा क्षेत्रों की आदिवासी जनता पर असर पड़ना था, वहां की 26 सीटों पर भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा है. भाजपा सिर्फ खूंटी और तोरपा ही जीत पाई। राज्य में भाजपा से आदिवासियों की नाराजगी के पीछे यही दोनों विधेयक जिम्मेदार माने जा रहे हैं.

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दरअसल, रघुवर सरकार ने विपक्ष के वॉकआउट के बीच छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (सीएनटी) और संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम(एसपीटी) में संशोधन के लिए बिल पास कराए थे. भूमि अधिग्रहण कानूनों में भी रघुवर सरकार ने संशोधन की कोशिशें की थी. ये कानून कभी आदिवासियों की जमीनों से जुड़े अधिकारों की रक्षा के लिए बने थे.

सरकार की ओर से इन कानूनों में संशोधन से आदिवासियों को अपने अधिकारों का हनन होता दिखा. विपक्ष ने इसे मुद्दा बनाते हुए काफी विरोध किया. बाद में गृह मंत्रालय की आपत्तियों के बाद राष्ट्रपति ने भी हस्ताक्षर करने से इन्कार करते हुए विधेयक को लौटा दिया था. इस घटना के बाद आदिवासियों को लगने लगा कि राज्य की रघुवर सरकार उनके अधिकारों के विपरीत काम कर रही है.

सूत्रों का कहना है कि आदिवासियों की नाराजगी के कारण उत्तरी और दक्षिणी छोटा नागपुर और संथाल प्रमंडल में उनके लिए आरक्षित कुल 28 सीटों के चुनाव में भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा. इन 28 में से भाजपा को 26 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा.

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‘अबकी बार 65 पार’ का हुआ सूपड़ा साफ, झारखंड में सोरेन सरकार

इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का ‘अबकी बार 65 पार’ का नारा पसंद नहीं आया और मतदाताओं ने इस नारे को नकार दिया. झारखंड के मतदाताओं ने ‘अबकी बार सोरेन सरकार’ नारे को अपना लिया है. अभी तक के रुझानों से साफ है कि कांग्रेस, राजद और झामुमो गठबंधन के मुख्यमंत्री प्रत्याशी हेमंत सोरेन के नेतृत्व में राज्य की अगली सरकार बनेगी.

भाजपा 30 से कम सीटों पर सिमटती दिख रही है. जबकि झामुमो गठबंधन 41 सीटों के बहुमत के आंकड़े को पार कर रही है. गौरतलब है कि भाजपा इस चुनाव में अकेले मैदान में उतरी थी. ऐसे में उसके साथ कोई सहयोगी भी नहीं है, जो किसी तरह उसकी नैया पार लगा सके. भाजपा के लिए सबसे शर्मनाक स्थिति यह है कि मुख्यमंत्री रघुवर दास स्वयं जमशेदपुर पूर्व सीट से चुनाव हार गए और उनके प्रतिद्वंद्वी निर्दलीय सरयू राय ने जीत दर्ज की.

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दूसरी ओर, झामुमो-कांग्रेस-राजद गठबंधन ने हेमंत सोरेन को चुनाव पूर्व ही मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर दिया था, जिसका लाभ भी गठबंधन को हुआ है. भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने यहां जोरदार चुनाव प्रचार किया था. जबकि गठबंधन की ओर से राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने भी हेमंत सोरेन के साथ साझा रैलियों को संबोधित किया था.

भाजपा की इस स्थिति के संबंध में जब मुख्यमंत्री रघुवर दास से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि जनादेश का सम्मान है. उन्होंने ’65 पार’ के नकारने के संबध में पूछे जाने पर कहा कि लक्ष्य कभी भी बड़ा रखना चाहिए, और उसी के अनुरूप लक्ष्य बड़ा रखा गया था. झामुमो के प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने तंज कसते हुए कहा कि भाजपा ने यह नारा झामुमो गठबंधन के लिए दिया था.

पिछले चुनाव में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, लेकिन तब सरकार बनाने के करीब थी और उसके साथ सहयोगी भी थे. 2014 में भाजपा ने 37 सीटों पर जीत दर्ज की थी। चुनाव के बाद झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) के छह विधायक भी उसके साथ आ गए थे.

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