देश में धर्म के नाम पर दंगे हो रहे हैं!

भारतीय जनता पार्टी के भक्त आजकल नाखुश हैं कि उन का रिजर्वेशन हटाने का सपना दूर होना तो दूर रिजर्वेशन किसे मिलेगा यह छूट उन की राज्य सरकारों को मिल गई है. लोकसभा और राज्यसभा ने एक संविधान बदलाव से सुप्रीम कोर्ट की बंदिश को हटाने की कोशिश की है. सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा था कि कौन रिजर्वेशन पा सकता?है इस की सूची केंद्र सरकार ही बनाएगी. इस में बहुत दिक्कतें थीं क्योंकि कुछ जातियां एक राज्य में ऊंची थीं और दूसरे में नीची.

अभी तो सारे सांसद 50 फीसदी की लिमिट को हटाने की मांग कर रहे हैं और भारतीय जनता पार्टी की हिम्मत नहीं हो रही है कि वह इस का खुल्लमखुल्ला विरोध कर सके.

देश में जो भी धर्म के नाम पर दंगे हो रहे हैं उन के पीछे हिंदुओं में जाति है. जाति के नाम पर बंटे हिंदुओं को भगवे लोगों को एक डंडे के नीचे लाने के लिए वे भगवा झंडा फहरा कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगलते हैं. इस से लोग अपने पर जाति के कारण हो रहे जुल्म भूल जाते हैं और अपना दुश्मन ऊंची जातियों के कट्टरों को न मान कर मुसलमानों को मानना शुरू कर देते हैं.

यह तरकीब सदियों से काम में आ रही है. गीता का पाठ जिस में कर्म और जन्म का उपदेश दिया गया है, दो भाइयों को लड़वा कर दिया गया था न. भाइयों की लड़ाई में जाति और जन्म का सवाल कहीं नहीं था क्योंकि दोनों कुरु वंश के थे पर कृष्ण ने उसी लड़ाई के मैदान को जाति को जन्म से जोड़ डाला और आज सैकड़ों सालों तक वह हुक्म जिंदा है. जैसे भाइयों को बांट कर इसे थोपा गया था वैसे ही आज जाति के नाम पर समाज को बांट कर कुछ लोग अपना उल्लू सीधा करे जा रहे हैं.

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भारतीय जनता पार्टी को जिताया गया था कि वह कृष्ण के गीता के पाठ और मनुस्मृति को और जोर से लागू करे पर वोटर की ताकत के कारण आधापौना लौलीपौप बांटना पड़ रहा है.

50 फीसदी की सीमा की कोई वजह नहीं है. यह सुप्रीम कोर्ट ने मरजी से थोप दी. पिछड़े इसे हटवाना चाहते हैं. हालांकि कुछ लाख सरकारी नौकरियों और कुछ लाख को पढ़ने के मौकों से कुछ बननेबिगड़ने वाला नहीं है. पर इस बहाने कुछ सत्ता में भागीदारी हो जाती है. वैसे हमारी पौराणिक कथाएं भरी हैं कि जब भी काले दस्युओं को राज मिला बेईमानी कर के उन से राज छीन लिया गया. यही आज गलीगली में हो रहा है.

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भाजपा को मीडिया में जो सपोर्ट मिली है वह इन लोगों से मिली है जो नहीं चाहते कि पिछड़े और निचलों को जरा भी रिजर्वेशन मिले. वे मोदी को अपना देवता इसलिए मान रहे थे कि वह ओरिजिनल हिंदू पौराणिक धर्म पिछड़ों और दलितों पर थोपेगा. उन्हें कांग्रेस और लालू यादवों जैसों से चिढ़ इसीलिए है कि वे बराबरी का हक मांग रहे हैं. हाल का बदलाव राज्य सरकारों को हक देता है पर किसी दिन 50 फीसदी की सीमा भी हटेगी और तब पूरी तरह ऊंची जमातों की भाजपा से तलाक की नौबत आएगी.

आमीर खान के भाई फैसल खान निर्देशित फिल्म ‘‘फैक्ट्री’’ में होशंगाबाद निवासी शरद सिंह बने मुख्य विलेन

बौलीवुड में सफलता पाना किसी के लिए भी संभव नही है. कम से कम देश के गाॅंव व छोटे शहरों में रहने वालों के लिए तो बौलीवुड दूर की कौड़ी ही है. क्योंकि बौलीवुड में गुटबाजी और नेपोटिजम का
बोलबाला है.जिसके चलते कुछ लोग आजीवन संघर्ष करते रह जाते हैं,पर सफलता नसीब नहीं होती.

मगर होशंगाबाद में रहने वाले शरद सिंह खुद  को भाग्यशाली मानते हैं कि उनका 18 वर्ष का संघर्ष अब रंग ला रहा है. होशंगाबाद के एक गरीब परिवार में जन्में षरद सिंह बचपन से ही अभिनेता
बनना चाहते थे.पर उनके पास अभिनय सीखने के लिए पैसे नही थे.किसी दूसरी जगह जाने के लिए किराए के पैसे नहीं थे. इसलिए वहीं पर स्ट्रीट  नाटक किया करते थे.18 वर्ष पहले उनका एक दोस्त उन्हे झांसी के पास ओरछा ले गया, जहां पर अभिनेता,निर्माता व निर्देषक राजा बुंदेला अपनी फिल्म ‘‘प्रथा’’ की शूटिंग कर रहे थे.

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राजा बुंदेला ने शरद सिंह को अपनी फिल्म ‘प्रथा’में एक पुलिस वाले का किरदार निभाने का अवसर दिया.पर इससे उन्हें कोई फायदा नहीं हुआ. शरद सिंह ने एम आर की नौकरी करनी षुरू कर दी.फिर जब प्रकाश झा अपनी फिल्म ‘आरक्षण’की षूटिंग भोपाल में कर रहे थे, तब शरद सिंह को इस फिल्म में अभिनय करने का अवसर मिला.इसके बाद उन्होने अरशद वारसी की फिल्म ‘फ्रॉड सइयां’में अभिनय किया.फिर निर्देशक रविन्द्र गौतम अपने टीवी सीरियल ‘‘अरमानों का बलिदान’’की शूटिंग करने हौशंगाबाद  गए तो उन्होने शरद को इस सीरियल में बड़ा किरदार निभाने का अवसर मिला.

इसके बाद राजपाल यादव के साथ फिल्म ‘बांके की क्रेजी बारात’भी की.मगर अब 18 वर्ष के संघर्ष के बाद शरद सिंह को सही मायनो में बौलीवुड से जुड़ने का अवसर मिला है.शरद सिंह अब तीन सितंबर को सिनेमाघरों में प्रदर्तशि होने वाली फिल्म‘‘फैक्ट्री ’’में मुख्य खलनायक के किरदार में हैं.फिल्म ‘फैक्ट्ी’ के निर्माता,निर्देषक व हीरो फैसल खान हैं,जो आमीर खान के सगे भाई हैं. इसमें शरद सिंह ने जबरदस्त एक्षन किया है और उन पर दो गाने फिल्माए गए हैं. तो वहीं वह एक बहुत बड़े निर्देशक की फिल्म के साथ ही एक बड़े ओटीटी प्लेटफार्म की वेब सीरीज में भी सितंबर के अंत तक नजर आएंगे.

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खुद शरद सिंह कहते है- ‘‘मेेरे अंदर अभिनय का जुनून था.मैं किशोर वय में हर दिन होशंगाबाद, मध्यप्रदेश से मुम्बई जाने वाली ट्रेन ‘पंजाब मेल’ के पैर छूता था और मन्नत मांगता था कि एक दिन यह ट्रेन मुझे भी मुम्बई ले जाए.फिर कुछ छिटपुट काम किए.पर अब मेरा 18 वर्ष का संघर्ष रंग लाया है. आमीर खान के भाई फैसल खान निर्देषित फिल्म ‘फैक्ट्री’ एक सस्पेन्स थ्रिलर फिल्म है,जिसमें मैंने मुख्य विलेन का किरदार निभाया है.यह किरदार मेरी जिंदगी के सबसे महत्वपूर्ण किरदारों में से एक है यह फिल्म तीन सितंबर को सिनेमाघरों में रिलीज होगी.’’

शरद सिंह आगे कहते हैं- ‘‘फिल्म ‘फैक्ट्ी’के अलावा मैने अमित गुप्ता की एक फिल्म की है,जिसमें मुख्य खलनायक का किरदार है.एक वेब सीरीज ‘व्हेयर आई लॉस्ट यू’जल्द आएगी.तो वहीं बौलीवुड के दिग्गज निर्देशक के साथ फिल्म तथा एक बड़े प्रोडक्शन हाउस की वेब सीरीज कर रहा हूं.’’

Bigg Boss Ott: अक्षरा सिंह के सपोर्ट में बोलीं संभावना सेठ, कहा ‘बेकार का अफेयर छोड़ दे तो वह बहुत आगे निकलेगी’

बिग बॉस ओटीटी (Bigg Boss Ott)  में कंटेस्टेंट के बीच खूब हंगामा देखने को मिल रहा है. कंटेस्टेंट के बीच हर छोटी-सी छोटी बात पर जमकर बहस हो रही है. अक्षरा सिंह सुर्खियों में छाई हुई है. तो वहीं भोजपुरी स्टार संभावना सेठ उनका सपोर्ट कर रही है.

संभावना सेठ चाहती है कि अक्षरा सिंह इस गेम को जीते. एक्ट्रेस ने अपना एक्सपीरियंस शेयर करते हुए बताया कि जब मैंने बिग बॉस में गयी थी को मुझे सबसे वीक कंटेस्टेंट समझा जाता था. संभावना ने कहा कि मैंने वहां गेम नहीं खेला था. घर में मैं दिल से रही थी.

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एक्ट्रेस ने आगे कहा कि अब जो भी इमेज बन गई है, मैंने कभी परवाह नहीं की. संभावना सेठ ने अक्षरा का सपोर्ट करते हुए कहा कि मैं उसे पर्सनल लेवल पर जानती हूं. मुझे विश्वास है कि वह बिंदास खेलेगी. उन्होंने ये भी कहा कि मैंने अक्षरा से हमेशा कहा है कि वह बेकार का अफेयर छोड़ दे तो वह बहुत आगे निकलेगी.

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संभावना सेठ ने आगे कहा कि अक्षरा को मेरा फुल सपोर्ट है. मैं अक्षरा के लिए जरूर बिग बॉस देखूंगी. एक्ट्रेस ने ये भी कहा कि अगर वो शो की विनर होती हैं तो भोजपुरी स्टार को एक स्ट्रांग कंटेस्टेंट के रूप में देखा जाएगा.

Ghum hai kisikey Pyaar Meiin: विराट उठाएगा सई पर हाथ तो पाखी करेगी शादी के लिए प्रपोज

टीवी सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ की कहानी में  हाईवोल्टेज ड्रामा चल रहा है. शो में अब तक आपने देखा कि विराट-सई, सम्राट-पाखी की जिंदगी में एक नया मोड़ आ चुका है. पाखी ने सम्राट से साफ-साफ कह दिया है कि वह उसे तलाक देना चाहता है तो दे सकता है. तो वहीं सम्राट को भी पता है कि पाखी को इस शादी में कोई दिलचस्पी नहीं है. शो के अपकमिंग एपिसोड में खूब धमाल होने वाला है. आइए बताते हैं सीरियल के नए एपिसोड के बारे में.

शो में दिखाया जा रहा है कि सम्राट अपनी पत्नी पाखी को तलाक देना चाहता है. तो वहीं भवानी और ओंकार इस फैसले के खिलाफ हैं. दूसरी तरफ मानसी कहती है कि वह सम्राट और पाखी के तलाक को स्वीकार करती है और वह चाहती है कि उसका बेटा जहां भी रहे, खुश रहे.

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शो के अपकमिंग एपिसोड में ये दिखाया जाएगा कि सई, सम्राट के सुझाव पर विचार करेगी. सई अपनी शादी को दूसरा मौका देने के बारे में भी सोचेगी. दरअसल सम्राट को पता चल गया है कि सई और विराट एक-दूसरे के लिए फील  करते हैं, लेकिन वे जाहिर नहीं कर पा रहे हैं.

 

दूसरी तरफ घर में एक पूजा होती है और इस दौरान सई कॉलेज जाने के लिए जिद करती है. विराट को बहुत गुस्सा आता है. वह सई पर हाथ उठाता है. इतना ही नहीं उसे कॉलेज जाने से रोकने के लिए कमरे में बंद कर देता है.

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शो के बिते एपिसोड में आपने देखा कि पाखी-विराट एक कैफे में मिलते हैं. पाखी सम्राट को तलाक देकर विराट को वापस पाने की योजना बना रही है. पाखी, विराट से ये सारी बातें कहती है. वह कहती है कि सम्राट से सारे संबंध खत्म कर के विराट से शादी करना चाहती है. लेकिन इस प्रस्ताव को ठुकरा देता है.

शो में ये देखना दिलचस्प होगा कि सई से झगड़ा होने के बाद क्या विराट पाखी को स्वीकार करेगा

अनुपमा की बेवकूफी पर वनराज को आयेगा गुस्सा तो राखी चलेगी नयी चाल

रूपाली गांगुली, सुधांशु पांडे और मदालसा शर्मा स्टारर सीरियल अनपुमा में इन दिनों महाट्विस्ट देखने को मिल रहा है. शो में अब तक आपने देखा कि अनुपमा और राखी दवे के बीच की डील का खुलासा हो चुका है. जिससे घर में विवाद चल रहा है. राखी दवे चाहती है कि शाह परिवार बर्बाद हो जाये. इसलिए वह नई चाल चल रही है. राखी अपनी बेटी किंजल के वापस पाना चाहती है. शो के अपकमिंग एपिसोड में कहानी में नया बदलाव आने वाला है. आइए बताते हैं शो के नये एपिसोड के बारे में.

शो में दिखाया जा रहा है कि इस डील के खुलासे के बाद वनराज अनुपमा को खूब खरी-खोटी सुना रहा है. वह कहेगा कि अनुपमा घर में थी तो सबकुछ ठीक चल रहा था लेकिन जब से वह घर से बाहर निकलना शुरू की. हर नई मुसिबत को इस घर में लाती रही. वनराज ये भी कहेगा कि वह जानता था कि अनुपमा बेवकूफ है मगर ये नहीं जानता था कि वह सबसे बड़ी बेवकूफ है.

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तो दूसरी तरफ राखी अनुपमा की नेमप्लेट हटा देती है. तभी हसमुख राखी के पास जाता है और कहता है कि घर गिरवी है अभी बिका नहीं है. राखी हसमुख से नेम प्लेट लेती है और कहती है कि वह शाह परिवार को बर्बाद कर देगी क्योंकि उन्होंने उसकी बेटी किंचल को उससे दूर किया है.

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तो वहीं किंजल राखी से कहती है कि इस हरकत के कारण वह अपनी बेटी को खो सकती है. तभी राखी कहती है कि वह अपनी बेटी को हासिल करने के लिए सब कुछ कर रही है. राखी दवे शाह परिवार से बदला लेने की कसम खाती है. वह कहती है कि इस परिवार ने किंजल को उससे दूर कर दिया और अब वह उन्हें इतना कमजोर कर देगी कि उन्हें किंजल को मजबूरी में मेरे पास होगा और ये घर उनके हवाले करना होगा.

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इसी बीच खबर यह आ रही है कि सीरियल ‘ये प्यार ना होगा कम’ फेम गौरव खन्ना  की एंट्री ‘अनुपमा’ में होने वाली है.  गौरव खन्ना इस शो में अनुज कपाड़िया का किरदार निभाने वाले हैं. बताया जा रहा है कि अनुज कपाड़िया अनुपमा के कॉलेज का दोस्त होगा जो बुरे हालात में उसकी मदद करेगा. इस किरदार से जुड़े कई प्रोमो भी रिलीज किया जा चुका है.

प्यार की झूठी कसमें

लेखिका- किरण बाला

‘‘तुम्हारी कसम, मैं तुम से दिल से प्यार करता हूं. तुम्हारे बगैर एक पल भी नहीं रह सकता. यकीन न हो तो तुम्हारे कहने पर अपनी जान भी दे सकता हूं.’’

विशाल और नेहा के बीच कुछ समय से अफेयर चल रहा था. पहले वे लुकछिप कर मिलते थे. फिर उन के बीच फिजिकल रिलेशन भी बनने लगे. नेहा ने कईर् बार उस से कहा कि यदि तुम मुझ से प्यार करते हो तो घर आ कर मेरे पापा या भैया से बात क्यों नहीं करते?

विशाल यह कह कर बात टाल देता कि शीघ्र ही वह आ कर उस के परिजनों से बात करेगा. इसी बीच उसे पता चला कि विशाल ने किसी अन्य लड़की से सगाई कर ली.

नेहा के पैरोंतले जमीन खिसक गई. जो विशाल कल तक प्यार की कसमें खाते नहीं थकता था, वह उसे इस तरह धोखा दे देगा, यह उस ने सपने में भी न सोचा था.

विशाल को फोन कर नेहा ने व्यंग्य किया, ‘‘सगाई की बहुतबहुत बधाई.’’

‘‘नेहा, तुम मेरी मजबूरी समझो. पेरैंट्स के दबाव की वजह से मुझे रिश्ता स्वीकारना पड़ा. मुझे माफ कर देना.’’ ऐसा कह कर विशाल ने पल्ला  झाड़ लिया.

प्रेमी द्वारा प्यार की  झूठी कसमें खाने और फिर उस के मुकर जाने से नेहा का प्यार पर से विश्वास उठ गया.

यह तो एक उदाहरण मात्र है. विशाल की भांति ऐसे कई लड़के हैं जो प्रेम का नाटक करने में माहिर हैं और  झूठी कसमें खा कर लड़की के जज्बातों से खेलते हैं. उन के साथ शारीरिक संबंध बनाते हैं और जब वे प्रैग्नैंट हो जाती हैं तो उन का अबौर्शन करा देते हैं या उन की कोख में पल रहे बच्चे को अपना मानने से इनकार कर देते हैं. उन से शादी करना तो दूर, दूध में मक्खी की भांति उन्हें बाहर निकाल फेंकते हैं.

आमतौर पर लड़कियां भोली होती हैं. वे अपने प्रेमियों पर भरोसा कर लेती हैं. जब प्रेमी प्यार की कसमें खाता है तो उस पर अविश्वास करने का प्रश्न ही पैदा नहीं होता. लेकिन जब प्रेमी के मन में पहले से ही दुर्भावना हो तो उसे प्रेमिका को धोखा देते देर नहीं लगती. वक्त पर वह पाला बदल लेता है और प्रेमिका देखती रह जाती है.

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उन प्रेमियों की कमी नहीं है जो आसमान से चांदतारे तोड़ कर लाने की कसमें खाते हैं, लेकिन क्या आज तक कोई भी प्रेमी अपनी यह कसम पूरी कर सका है?

प्रेमिका को रिझाने के लिए या अपने प्यार का यकीन दिलाने के लिए प्रेमी अपनी जान देने की बात करते हैं, लेकिन क्या प्रेमियों ने अपनी जान दे कर अपनी कसम को पूरा किया है? जाहिर है ये कसमें छलावा मात्र हैं.

जो सच्चे प्रेमी होते हैं वे किसी तरह की कसमें नहीं खाते और न ही उन्हें इस की जरूरत होती है. ये तो उन कथित प्रेमियों के हथकंडे हैं जो लड़कियों को एक भोग वस्तु सम झते हैं, इस से ज्यादा कुछ नहीं. इसलिए उन का शारीरिक और मानसिक शोषण करने में उन्हें जरा भी लाजशर्म नहीं आती.

आप का प्रेमी सच्चा है या  झूठा, इस का परीक्षण आप कई स्तरों पर कर सकती हैं. जो सच्चा प्यार करता है वह कभी भी आप से शरीर की मांग नहीं करेगा. अन्य शब्दों में, शारीरिक संबंध के लिए न तो बाध्य करेगा, न इस के लिए उकसाएगा. बल्कि यदि आप आगे हो कर इस की पहल करती हैं तो वह सख्ती से रोकेगा. उस की नजर में शादी के पूर्व शारीरिक संबंध बनाना ठीक नहीं.

सच्चा प्रेमी शारीरिक संबंधों के लिए शादी तक इंतजार करेगा. इस के विपरीत, प्रेम का नाटक करने वाला येनकेन प्रकारेण आप से शारीरिक संबंध बनाने की कोशिश करेगा. शादी करने का वादा कर के संबंध बनाने हेतु विवश कर देगा. वह तरहतरह की झूठी कसमें खा कर आप को यकीन दिला देगा ताकि आप शादी से पहले शारीरिक संबंध बनाने के लिए सहमति दे दें. लेकिन वह आप से शादी कभी करेगा ही नहीं. उस का इरादा तो शुरू से ही धोखा देना होता है.

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सच्चा प्रेमी सुखदुख में साथ देने की कसमें खाता नहीं बल्कि जरूरत पड़ने पर हाजिर होता है. जबकि  झूठे प्रेमी विपत्ति की घड़ी का बहाना बना कर कन्नी काट लेते हैं क्योंकि उन्हें उस के सुखदुख से कोई वास्ता नहीं होता.

हर लड़की को इस बात की सम झ होनी चाहिए कि वह सच्चे और  झूठे प्रेमी में अंतर कर सके. कसमें तो होती ही तोड़ने के लिए हैं. इसलिए उन पर यकीन न करें. एक बात का ध्यान अवश्य रखें कि शादी से पूर्व अपना शरीर उस के हवाले न करें. सच्चा प्रेमी आप के कहने पर आप के परिजनों से मिलेगा. जबकि  झूठा प्रेमी परिजनों से मिलने का वादा तो करेगा लेकिन मिलेगा कभी नहीं. इसलिए सावधान रहें,  झूठे प्रेमी और उन की  झूठी कसमों से.

मिसफिट पर्सन- भाग 1: जब एक जवान लड़की ने थामा नरोत्तम का हाथ

‘‘आप के सामान में ड्यूटी योग्य घोषित करने का कुछ है?’’ कस्टम अधिकारी नरोत्तम शर्मा ने अपने आव्रजन काउंटर के सामने वाली चुस्त जींस व स्कीवी पहने खड़ी खूबसूरत बौबकट बालों वाली नवयौवना से पूछा.

नवयौवना, जिस का नाम ज्योत्सना था, ने मुसकरा कर इनकार की मुद्रा में सिर हिलाया. नरोत्तम ने कन्वेयर बैल्ट से उतार कर रखे सामान पर नजर डाली.

3 बड़ेबड़े सूटकेस थे जिन की साइडों में पहिए लगे थे. एक कीमती एअरबैग था. युवती संभ्रांत नजर आती थी.

इतना सारा सामान ले कर वह दुबई से अकेली आई थी. नरोत्तम ने उस के पासपोर्ट पर नजर डाली. पन्नों पर अनेक ऐंट्रियां थीं. इस का मतलब था वह फ्रीक्वैंट ट्रैवलर थी.

एक बार तो उस ने चाहा कि सामान पर ‘ओके’ मार्क लगा कर जाने दे. फिर उसे थोड़ा शक हुआ. उस ने समीप खड़े अटैंडैंट को इशारा किया. एक्सरे मशीन के नीचे वाली लाल बत्तियां जलने लगीं. इस का मतलब था सूटकेसों में धातु से बना कोई सामान था.

‘‘सभी अटैचियों के ताले खोलिए,’’ नरोत्तम ने अधिकारपूर्ण स्वर में कहा.

‘‘इस में ऐसा कुछ नहीं है,’’ प्रतिवाद भरे स्वर में युवती ने कहा.

‘‘मैडम, यह रुटीन चैकिंग है. अगर इस में कुछ नहीं है तब कोई बात नहीं है. आप जल्दी कीजिए. आप के पीछे और भी लोग खड़े हैं,’’ कस्टम अधिकारी ने पीछे खड़े यात्रियों की तरफ इशारा करते हुए कहा.

विवश हो युवती ने बारीबारी से सभी ताले खोल दिए. सभी सूटकेसों में ऊपर तक तरहतरह के परिधान भरे थे. उन को हटाया गया तो नीचे इलैक्ट्रौनिक वस्तुओं के पुरजे भरे थे.

सामान प्रतिबंधित नहीं था मगर आयात कर यानी ड्युटीएबल था.

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नरोत्तम ने अपने सहायक को इशारा किया. सारा सामान फर्श पर पलट दिया गया. सूची बनाई गई. कस्टम ड्यूटी का हिसाब लगाया गया.

‘‘मैडम, इस सामान पर डेढ़ लाख रुपए का आयात कर बनता है. आयात कर जमा करवाइए.’’

‘‘मेरे पास इस वक्त पैसे नहीं हैं,’’ युवती ने कहा.

‘‘ठीक है, सामान मालखाने में जमा कर देते हैं. ड्यूटी अदा कर सामान ले जाइएगा,’’ नरोत्तम के इशारे पर सहायकों ने सारे सामान को सूटकेसों में बंद कर सील कर दिया. बाकी सामान नवयुवती के हवाले कर दिया.

ज्योत्सना ने अपने वैनिटी पर्स से एक च्युंगम का पैकेट निकाला. एक च्युंगम मुंह में डाला, एअरबैग कंधे पर लटकाया और एक सूटकेस को पहियों पर लुढ़काती बड़ी अदा से एअरपोर्ट के बाहर चल दी, जैसे कुछ भी नहीं हुआ था.

सभी यात्री और अन्य स्टाफ उस की अदा से प्रभावित हुए बिना न रह सके. नरोत्तम पहले थोड़ा सकपकाया फिर वह चुपचाप अन्य यात्रियों को हैंडल करने लगा.

नरोत्तम शर्मा चंद माह पहले ही कस्टम विभाग में भरती हुआ था. वह वाणिज्य में स्नातक यानी बीकौम था. कुछ महीने प्रशिक्षण केंद्र में रहा था. फिर बतौर अंडरट्रेनी कस्टम विभाग के अन्य विभागों में रहा था.

उस के अधिकांश उच्चाधिकारी उस को सनकी या मिसफिट पर्सन बताते थे. वह स्वयं को हरिश्चंद्र का आधुनिक अवतार समझता था, न रिश्वत खाता था न खाने देता था.

शाम को रिटायरिंग रूम में कौफी पीते अन्य कस्टम अधिकारी आज की घटना की चर्चा कर रहे थे. आव्रजन काउंटर पर अघोषित माल या तस्करी का सामान पकड़ा जाना नई बात नहीं थी. असल बात तो नरोत्तम जैसे असहयोगी या मिसफिट पर्सन नेचर वाले व्यक्ति की थी. ऐसा अधिकारी कभीकभार महकमे में आ ही जाता था.

‘‘यह नया पंछी शर्मा चंदा लेता नहीं है या इस को चंदा लेना नहीं आता?’’ सरदार गुरजीत सिंह, वरिष्ठ कस्टम अधिकारी ने पूछा.

‘‘लेता नहीं है. यह इतना भोंदू नजर नहीं आता कि चंदा कैसे लिया जाता है, न जानता हो,’’ वधवा ने कहा.

‘‘एक बात यह भी है कि लेनादेना सब के सामने नहीं हो सकता,’’ रस्तोगी की इस बात का सब ने अनुमोदन किया.

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‘‘एअरपोर्ट पर आने से पहले यह कहां था?’’

‘‘कंपनियों को चैक करने वाले स्टाफ में था.’’

‘‘वहां क्या परेशानी थी?’’

‘‘वहां भी ऐसा ही था.’’

‘‘इस का मतलब यह इस लाइन का नहीं है. कितने समय तक यहां टिक पाएगा?’’ गुरजीत सिंह के इस सवाल पर सब हंस पड़े.

ज्योत्सना अपनी सप्लायर मिसेज बख्शी के सामने बैठी थी.

‘‘आज माल कैसे फंस गया?’’

‘‘एक नया कस्टम अधिकारी था, उस ने माल चैक कर मालखाने में जमा करवा दिया.’’

‘‘बूढ़ा है या नौजवान?’’

‘‘कड़क जवान है. लगता है अभी कालेज से निकला है.’’

‘‘शादीशुदा है?’’

‘‘यह उस के माथे पर तो नहीं लिखा है? वैसे कुंआरा है या शादीशुदा, आप को क्या करना है?’’ एक आंख दबाते हुए ज्योत्सना ने कहा.

‘‘मेरा मतलब है जब उस ने तेरे रूप और जवानी का रोब नहीं खाया तो, या तो शादीशुदा है या…’’ मिसेज बख्शी ने भी उसी की तरह आंख दबाते हुए कहा.

Film Review: ‘चेहरे’- तर्क से परे व कमजोर पटकथा व निर्देशन

रेटिंग: ढाई स्टार

निर्माताः अनांद पंडित मोषन पिक्चर्स और सरस्वती

इंटरटेनमेंट प्रा.लिमिटेड

निर्देशक: रूमी जाफरी

लेखक:रंजीत कपूर ओर रूमी जाफरी

कलाकार: अमिताभ बच्चन, इमरान हाशमी, क्रिस्टल डिसूजा,रिया चक्रवर्ती, अन्नू कपूर,सिद्धांत कपूर, समीर सोनी,रघुवीर यादव एलेक्स ओ नील,धृतिमान चटर्जी

अवधिः दो घंटे 19 मिनट

प्लेटफार्मः सिनेमाघरों में

1992 से अब तक पचास से अधिक काॅमेडी फिल्मों के लेखक अब बतौर निर्देशक रूमी जाफरी अब एक रहस्य रोमांच प्रधान फिल्म ‘‘चेहरे’’ लेकर आए हैं, जो कि 27 अगस्त से सिनेमाघरों में देखी जा सकती है. मगर महाराष्ट् में नही,क्योंकि महाराष्ट् राज्य में सिनेमाघर बंद हैं.फिल्म समाज में न्याय व कानून की विफलता की बात करती है.मगर हल नही बताती. यूं तो फिल्म ‘‘चेहरे’’ कोर्ट रूम ड्रामा  है,मगर इसमें अदालत की बजाय सारी कारवाही एक अवकाश प्राप्त जज जगदीष आचार्य के बंगले में होती है.

कहानीः

देश के किसी अतिबर्फीले और जंगलों के बीच एक बंगले में अस्सी वर्षीय अवकाश प्राप्त जज जगदीश आचार्य ( धृतिमान चटर्जी ) रहते हैं. वह हर दिन अपने दोस्तों के समूह के साथ वास्तविक जीवन के किसी भी इंसान के साथ एक खेल खेलते हैं,जिसमें इस बात को तय करते हैं कि न्याय दिया गया है या नहीं. यदि न्याय नही हुआ है,तो वे सुनिश्चित करते हैं कि न्याय किया गया.इनका मानना है कि हर इंसान अपनी जिंदगी में कोई न कोई अपराध कर सजा पाने से बच जाता है.

अब जज अपने घर में उस दबे हुए मामले की जांच कर उसे सजा सुनाते हैं. जगदीश आचार्य के दोस्तों में अवकाश प्राप्त पब्लिक प्रोसीक्यूटर लतीफ जैदी(अमिताभ बच्चन) ,अवकाष प्राप्त डिफेंस लाॅयर परमजीत सिंह भुल्लर(अन्नू कपूर), अवकाश प्राप्त जल्लाद हरिया जाटव (रघुवीर यादव) का समावेष है.वहीं जज आचार्य के घर पर अना(रिया चक्रवर्ती ) अपने भाई जो(सिद्धांत कपूर) के साथ रहती है.

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एक दिन दिल्ली जा रहे एक विज्ञापन एंजसी कंपनी के सीईओ समीर मेहरा (इमरान हाशमी ) गिरती बर्फ के बीच फंसने व बीच राह अपनी बीएम डब्लू गाड़ी के खराब हो जाने पर जज आचार्य के बंगले पर पहुॅच जाते हैं,जिससे सबसे ज्यादा खुश हरिया जाटव होता है.कार को बीच सड़क पर छोड़कर आते समय समीर मेहरा अपनी गाड़ी की चाभी भी वहीं गिरा देते हैं.कुछ देर बाद लतीफ जैदी का जज के घर आगमन होता है,पर आते समय वह समीर मेहरा की कार की चाभी पाने के बाद कार की तलाषी लेते हुए आते हैं.फिर समीर मेहरा के साथ खेल खेला जाता है.

पहले समीर मेहरा भी इस खेल का मजा लेते हैं, मगर फिर उन्हे लगता है कि वह गलत जगह फंस गए.प्राॅसीक्यूटर लतीफ जैदी धीरे धीरे समीर मेहरा पर संगीन जुर्म करने का साबित करना षुरू करते है,तब समीर मेहरा की जिंदगी की कहानी सामने आती है कि किस तरह समीर ने अपने कैरियर की महत्वाकांक्षा के चलते अपने बाॅस के मौत के लिए जिम्मेदार हैं.धीर धीरे समीर मेहरा,उनके बाॅस ओसवाल (समीर सोनी) और ओसवाल की पत्नी नताषा ओसवाल (क्रिस्टल डिसूजा ) की कहानी सामने आने पर कुछ अचंभित करने वाला मसला सामने आता है और समीर मेहरा को बेगुनाह साबित करने की लड़ाई लड़ रहे डिफेंस लायर परमजीत सिंह भुल्लर हार जाते हैं.

लेखन व निर्देशनः

फिल्म ‘‘चेहरे’’ की कमजोर कड़ी लेखक व निर्देषक हैं.बेहतरीन प्रतिभाशाली कलाकारों के साथ रूमी जाफरी एक बेहतरीन फिल्म नही बना सके. इंटरवल तक फिल्म काफी रोचक है,मगर इंटरवल के बाद फिल्म की पटकथा काफी कमजोर है.फिल्म में रहस्य व रोमांच काफी हद तक ठीक है,मगर उपदेशात्मक लहजा फिल्म को बर्बाद कर देता है. समीर मेहरा की निजी जिंदगी की कहानी को बेवजह खींचा गया है. यहां तक कि फिल्म निर्देश क के हाथ से यह फिल्म निकल जाती है.फिल्म के कुछ संवाद काफी अच्छे हैं.वैसे यह फिल्म अपराधी,पुलिस,वकील, कानून और न्यायालय पर गंभीर सवाल उठाती है.फिल्म भले ही कानून पर सवाल उठाती है,मगर फिल्म के कहानीकार रंजीत कपूर ने कहानी का आधार ही गलत चुना है. क्योंकि फिल्म में न्याय की बात करने वाले चारों लोग अवकाश प्राप्त हैं.इन्होने सेवारत रहते हुए न्याय की बात क्यों नही सोची? फिल्म को तर्क की कसौटी पर कसा नही जा सकता.

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इंटरवल से पहले फिल्म की में रोचकता है.दर्षक के मन में एक जिज्ञासा बनी रहती है कि प्राॅसीक्यूटर के वकील अपराध पर से किस तरह परतें हटाएंगे. इंटरवल के बाद फिल्म की रोचकता खत्म हो जाती है.इतना ही नहीं क्लायमेक्स से पहले पूरे चैदह मिनट का अमिताभ बच्चन का मोनोलाॅग के चलते दर्शक कह उठता है कि ‘कहां फसायो नाथ.’14 मिनट के अपने भाषण में अमिताभ बच्चन न्याय,इंसान के अधिकार,लड़कियों से बलात्कार व कैंडल मार्च पर बातें करते हैं.फिल्म कुछ सवाल जरुर उठाती है,मगर उसके जवाब न फिल्म देती है. और न समाज में किसी के पास नही है.वास्तव में अमिताभ बच्चन का मोनोलाॅग सिर्फ उपदेशात्मक है.

फिल्म का स्पेषल इफेक्ट/वीएफएक्स काफी कमजोर है.बर्फ का गिरना एकदम कृत्रिम लगता है.

अभिनयः

अमिताभ बच्चन की अभिनय कला हर फिल्म में एक अलग स्तर पर निखर कर आती है.कमजोर पटकथा के बावजूद अमिताभ बच्चन अपने अभिनय के बल पर फिल्म को बेहतर बनाते हैं.बेहतरीन संवादों को खींचने की उनकी क्षमता अदालत में एक अनुभवी वकील के तर्क के रूप में उनके अभिनय को उत्कृष्टता प्रदान करती है.अन्नू कपूर हमेशा की तरह अपने किरदार के साथ न्याय करने में सफल रहे हैं. फिल्म में उचित मात्रा में तनाव और रोमांच पैदा करने में अमिताभ बच्चन और अन्नू कपूर की केमिस्ट्री कमाल की है. रघुवीर यादव व धृतिमान चटर्जी का अभिनय ठीक ठाक है.एक कारपोरेट व सफल उद्यमी के किरदार में इमरान हाशमी थोड़ा सा कमतर नजर आते हैं.जो के किरदार में सिद्धांत कपूर के हिस्से करने को कुछ आया ही नही.लेखक ने उनके किरदार को सही ढंग से चित्रित नहीं किया.रिया चक्रवर्ती ठीक ही हैं.क्रिस्टल डिसूजा हाॅट व सुंदर नजर आयी हैं.

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