खोया हुआ आशिक : शालिनी के लौटने पर क्यों परेशान थी विनीता -भाग 3

जतिन की साफगोई के विपरीत विनीता इसे अपने खिलाफ शालिनी की साजिश समझ रही थी. भीतर ही भीतर घुटती विनीता आखिरकार एक दिन हौस्पिटल के बिस्तर पर पहुंच गई. जतिन घबरा गया. वह समझ नहीं पा रहा था कि हंसतीखेलती विन्नी को अचानक क्या हो गया है. ठीक है वह पिछले दिनों कुछ परेशान थी, मगर स्थिति इतनी बिगड़ जाएगी, यह उस ने कल्पना भी नहीं की थी. जतिन उस का अच्छे से अच्छा इलाज करवा रहा था. जतिन की गैरमौजूदगी में एक दिन अचानक शालिनी उस से मिलने हौस्पिटल आई. विन्नी अनजाने डर से सिहर गई.

‘‘थैंक यू विन्नी, तुम्हारी बीमारी ने मेरा रास्ता बहुत आसान कर दिया… तुम जतिन से जितनी दूर जाओगी, वह उतना ही मेरे करीब आएगा…’’ शालिनी ने बेशर्मी से कहा. उस ने जतिन के साथ अपनी कुछ सैल्फियां भी उसे दिखाईं जिन में वह उस के साथ मुसकरा रहा था, साथ ही कुछ मनगढ़ंत चटपटे किस्से भी परोस दिए. शालू की बातें देखसुन कर विनीता ने मन ही मन इस रिश्ते के सामने हथियार डाल दिए.

‘‘जतिन, तुम शालू को अपना लो… अब तो तलाक की बाध्यता भी नहीं रहेगी… मैं ज्यादा दिन तुम्हें परेशान नहीं करूंगी…’’

विनीता के मुंह से ऐसी बात सुन कर जतिन चौंक गया. बोला, ‘‘आज तुम ये कैसी पागलों सी बातें कर रही हो? और यह शालू कहां से आ गई हमारे बीच में?’’

‘‘तुम्हें मुझ से कुछ भी छिपाने की जरूरत नहीं है. मुझे शालू ने सब बता दिया,’’ विन्नी ने किसी तरह अपनी सुबकाई रोकी, मगर आंखें तो फिर भी छलक ही उठीं.

‘‘तुम उस सिरफिरी शालू की बातों पर भरोसा कर रही हो मेरी बात पर नहीं… बस, इतना ही जानती हो अपने जतिन को? अरे, लाखों शालू भी आ जाएं तब भी मेरा फैसला तुम ही रहोगी… मगर शायद गलती तुम्हारी भी नहीं है… जरूर मेरे ही प्यार में कोई कमी रही होगी… मैं ही अपना भरोसा कायम नहीं रख पाया… मुझे माफ कर दो विन्नी… मगर इस तरह मुझ से दूर जाने की बात न करो…’’ जतिन भी रोने को हो आया.

‘‘यही सब बातें मैं अपनेआप को समझाने की बहुत कोशिश करती हूं. मगर दिल में कहीं दूर से आवाज आती है कि विन्नी तुम यह कैसे भूल रही हो कि शालू ही वह पहला नाम है जो जतिन ने अपने दिल पर लिखा था और फिर मैं दो कदम पीछे हट जाती हूं.’’

‘‘मुझे इस बात से इनकार नहीं कि शालू का नाम मेरे दिल पर लिखा था… मगर तुम्हारा नाम तो खुद गया है मेरे दिल पर… और खुदी हुई इबारतें कभी मिटा नहीं करतीं पगली…’’

‘‘तुम ने मुझे न केवल जिंदगी दी है,

बल्कि जीने के मकसद भी दिए हैं. तुम्हारे बिना न मैं कुछ हूं और न ही मेरी जिंदगी. अगर इस बीमारी की वजह शालू है, तो मैं आज इसे जड़ से ही खत्म कर देता हूं… अभी होटल के मालिक को फोन कर के शालू को नौकरी से हटाने को कह देता हूं, फिर जहां उस की मरजी हो चली जाए,’’ कह जतिन ने जेब से मोबाइल निकाला.

‘‘नहीं जतिन, रहने दीजिए… शायद सारी गलती मेरी ही थी… मुझे अपने प्यार पर भरोसा रखना चाहिए था… मगर मैं नहीं रख पाई… आशंकाओं के अंधेरे में भटक गई थी… मेरी आशंकाओं के बादल अब छंट चुके हैं… हमारे रिश्ते को किसी शालू से कोई खतरा नहीं…’’ विनीता मुसकरा दी.

तभी जतिन का मोबाइल बज उठा. शालिनी कौलिंग देख कर वह मुसकरा दिया. उस ने मोबाइल को स्पीकर पर कर दिया.

‘‘हैलो जतिन, फ्री हो तो क्या हम कौफी साथ पी सकते हैं? वैसे भी विन्नी तो हौस्पिटल में है… आ जाओ,’’ शालिनी ने मचलते हुए कहा.

‘‘विन्नी कहीं भी हो, हमेशा मेरे साथ मेरे दिल में होती है. और हां, यदि तुम ने मुझे ले कर कोई गलतफहमी पाल रखी है तो प्लीज भूल जाओ… तुम मेरी विन्नी की जगह कभी नहीं ले सकती… नाऊ बाय…’’ जतिन बहुत संयत था.

‘‘बाय ऐंड थैंक्स शालू… हमारे रिश्ते को और भी ज्यादा मजबूत बनाने के लिए…,’’ विन्नी भी खिलखिला कर जोर से बोली और फिर जतिन ने फोन काट दिया. दोनों देर तक एकदूसरे का हाथ थामे अपने रिश्ते की गरमाहट महसूस करते रहे.’’

 

पति की संबंध बनाने में रूचि कम हो गई है, क्या करूं?

सवाल…

मैं 29 साल की विवाहिता हूं. शादी को 5 साल हो गए. शुरूआत के 3 साल हमारे बीच नियमित सैक्स होता था पर पिछले 2 साल से पति की सैक्स की इच्छा नहीं होती जबकि मेरी सैक्स में रूचि बढ गई है और मैं चाहती हूं कि हमारे बीच नियमित संबंध बनें. ऐसा नहीं है कि पति का कहीं और चक्कर है और इसलिए उन की रूचि सैक्स में कम हो गई है, दरअसल इस के लिए मुझे ही पहल करनी होती है और इस के लिए मैं पति को फोरप्ले और ओरल सैक्स द्वारा उत्तेजित करने की कोशिश करती हूं.

कभी-कभी तो वे तैयार हो जाते हैं पर सैक्स की अवधि लंबी नहीं होती. इस वजह से मैं संतुष्ट नहीं हो पाती. मैं ने सुना है कि आजकल बाजार में सैक्स समस्याओं के निदान के लिए अनेक उत्पाद जैसे शक्तिवर्धक दवा और तमाम चीजें उपलब्ध हैं. क्या ये उत्पाद पुरूषों की सैक्स समस्याओं के उचित समाधान हैं?

जवाब…

आप के पति की सैक्स समस्या शारीरिक कम और मानसिक ज्यादा लगती है. जैसा कि आप ने बताया कि शुरूआत के 3 साल आप की सैक्स लाइफ अच्छी थी और पति भी इस में सहयोग कर रहे थे, मगर उस के बाद वे सैक्स से विमुख हो गए अथवा उन की रूचि सैक्स में कम हो गई, तो जाहिर है वे किसी मानसिक बीमारी से गुजर रहे होंगे या फिर किसी मानसिक परेशानी में होंगे. यह परेशानी घरपरिवार की बढती जिम्मेदारी हो सकती है, काम का बोझ हो सकता है या फिर कोई अन्य वजह, इस के लिए दवा नहीं बल्कि वजह को जानने के लिए आप को तह में जाना होगा कि अचानक वे सैक्स से विमुख क्यों हो गए?

पति से करें बात…

बेहतर तो यही होगा कि फुरसत के समय जब पति का मूड सही हो तो उन से इस बारे में खुल कर बात की जाए. जरूरत पड़े तो किसी मानसिक रोग विशेषज्ञ या फिर सैक्स विशेषज्ञ से भी पति को दिखा सकते हैं.

खानपान पर दें ध्यान…

मगर इस से पहले यह जरूरी होगा कि आप पति के खानपान पर ध्यान रखें और पोषक भोजन के साथसाथ मौसमी फल खाने को दें.

पति के साथ समय बिताएं… 

पति के साथ अधिक से अधिक समय बिताएं और सुबह-शाम नियमित रूप से दोनों एकसाथ टहला करें.

रही बात बाजार में मिलने वाले उत्पादों के तो इन में से ज्यादातर उत्पाद काम ही नहीं करते और सिर्फ प्लेसीबों की तरह काम करते हैं.

अकसर लोग बाजारों में मिलने वाले सस्ते और लोकल उत्पादों पर भरोसा कर लेते हैं और समझते हैं कि इस से उन का स्टेमीना बढ जाएगा. इन के साइड इफैक्ट्स भी देखे गए हैं.

बेहतर तो यही होता है कि बाजारों में उपलब्ध दवाएं विशेषज्ञ डाक्टरों द्वारा सुझाए जाने पर ही लें तो ज्यादा सही है.

अपने पराए: संकट की घड़ी में किसने दिया अमिता का साथ -भाग 3

था कि जबतब शेयर मार्केट में भी वह जाया करता था. जो हो, सचाई अपनी जगह ठोस थी. पत्नी के नाम साढ़े 5 लाख रुपए निश्चित थे.

आमतौर पर बैंक वाले ऐसी बातें खुद नहीं बताते, नामिनी को खुद दावा करने जाना पड़ता है. वह तो बैंक का क्लर्क सुभाष गली में ही रहता है, उसी ने बात फैला दी. अमिता के घर यह सूचना देने सुभाष निजी रूप से गया था और इसी के चलते गली भर को मालूम हो गई यह बात.

वह नातेदार, पड़ोसी, जो कभी उस के घर में झांकते तक न थे, वह भी आ कर सतीश के गुणों का बखान करने लगे. गली वालों ने एकमत से मान लिया कि सतीश जैसा निरीह, साधु प्रकृति आदमी नहीं मिलता है. अपने काम से काम, न किसी की निंदा, न चुगली, न झगड़े. यहां तो चार पैसे पाते ही लोग फूल कर कुप्पा हो जाते हैं.

अमिता चकराई हुई थी. यह क्या हो गया, वह समझ नहीं पा रही थी.

उसे सहारा देने दूर महल्ले के मायके से मां, बहन और भाई आ पहुंचे. बाद में पिताजी भी आ गए. आते ही मां ने नाती को गोद में उठा लिया. बाकी सब भी अमिता के 4 साल के बच्चे राहुल को हाथोंहाथ लिए रहते.

मां ने प्यार से माथा सहलाते हुए कहा, ‘‘मुन्नी, यों उदास न रहो. जो होना था वह हो गया. तुम्हें इस तरह उदास देख कर मेरी तो छाती फटती है.’’

पिता ने खांसखंखार कर कहा, ‘‘न हो तो कुछ दिनों के लिए हमारे साथ चल कर वहीं रह. यहां अकेली कैसे रहेगी, हम लोग भी कब तक यहां रह सकेंगे.’’

‘‘और यह घर?’’ अमिता पूछ बैठी.

‘‘अरे, किराएदारों की क्या कमी है, और कोई नहीं तो तुम्हारे मामा रघुपति को ही रख देते हैं. उसे भी डेरा ठीक नहीं मिल रहा है, अपना आदमी घर में रहेगा तो अच्छा ही होगा.’’

‘‘सुनते हो जी,’’ मां बोलीं, ‘‘बेटी की सूनी कलाई देख मेरी छाती फटती है. ऐसी हालत में शीशे की नहीं तो सोने की चूडि़यां तो पहनी ही जाती हैं, जरा सुखलाल सुनार को कल बुलवा देते.’’

‘‘जरूर, कल ही बुला देता हूं.’’

अमिता ने स्थायी रूप से मायके जा कर रहना पसंद नहीं किया. यह उस के पति का अपना घर है, पति के साथ 5 साल यहीं तो बीते हैं, फिर राहुल भी यहीं पैदा हुआ है. जाहिर है, भावनाओं के जोश में उस ने बाप के घर जा कर रहने से मना कर दिया.

सुभाषचंद्र के प्रयास से वह बैंक में मैनेजर से मिल कर पति के खाते की स्वामिनी कागजपत्रों पर हो गई. पासबुक, चेकबुक मिल गई और फिलहाल के जरूरी खर्चों के लिए उस ने 25 हजार की रकम भी बैंक से निकाल ली.

अब वह पहले वाली निरीह गृहिणी अमिता नहीं बल्कि अधिकार भाव रखने वाली संपन्न अमिता है. राहुल को नगर निगम के स्कूल से हटा कर पास के ही एक अच्छे पब्लिक स्कूल में दाखिल करा दिया. अब उसे स्कूल की बस लाती, ले जाती है.

बेटी घर में अकेली कैसे रहेगी, यह सोच कर मां और छोटी बहन वीणा वहीं रहने लगीं. वीणा वहीं से स्कूल पढ़ने जाने लगी. छोटा भाई भी रोज 1-2 बार आ कर पूछ जाता. अब एक काम वाली रख ली गई, वरना पहले अमिता ही चौका- बरतन से ले कर साफसफाई का सब काम करती थी

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

ले जा कर कागजी काररवाई निबटा देगा.

अमिता लगभग 4 बजे घर पहुंची तो सब चिंतित थे. मां ने पूछा, ‘‘इतनी देर कहां लगा दी, बेटी?’’

‘‘बैंक गई थी मां, कुछ और भी जरूरी काम थे…’’

घर वालों के चेहरे आशंकाओं से घिर गए कि बैंक क्या करने गई थी. पर पूछने का साहस किसी में न हुआ.

2 दिन बाद छोटा भाई ललित आया और बोला, ‘‘दीदी, कालिज से 20 लड़कों का एक ग्रुप विन्टरविकेशन में गोआ घूमने जा रहा है, हर लड़के को 5 हजार जमा करने पड़ेंगे…’’

अमिता ने सख्ती से कहा, ‘‘अभी, गरमियों की छुट्टी में तुम मसूरी घूमने गए थे न? हर छुट्टी में मटरगश्ती गलत है. तुम्हें छुट्टियों में यहीं रह कर वार्षिक परीक्षा की तैयारी करनी चाहिए. मैं इतने रुपए न जुटा सकूंगी…’’

ललित का चेहरा उतर गया. मां भी अमिता का रुख देख कुछ न कह सकीं.

3 माह पूरे होने पर विवेक आ कर बीमे की किस्त ले गया और कागजों पर उस से हस्ताक्षर भी कराए. अमिता ने साफ शब्दों में मां को बता दिया कि उसे अब राहुल की फीस और ललित की कोचिंग की फीस ही देने योग्य आय होगी, वीणा की फीस पिताजी जैसे पहले देते थे, दिया करें.

विवेक की सलाह से अमिता ने एक स्वयंसेवी संस्था की सदस्यता ग्रहण कर ली. उस के कार्यक्रमों में वह अधिकतर घर के बाहर ही रहने लगी. बाहरी अनुभव बढ़ने और व्यस्तता के चलते अब अमिता का तनमन अधिक खुश रहने लगा.

विवेक से अमिता की अच्छी पटने लगी. अकसर दोनों साथ ही बाहर घूमनेफिरने निकलते. यह देख कर मांपिता सहमते, किंतु सयानी और लखपती बेटी को क्या कहते. उस के कारण घर की हालत बदली थी.

साल भर बाद ही एक दिन अमिता, मां से बोली, ‘‘मां, मैं ने विवेक से विवाह करना तय कर लिया है, तुम्हारा आशीर्वाद चाहिए…’’

मां को तो कानों पर विश्वास ही न हुआ. हतप्रभ सी खड़ी रह गईं. बगल के कमरे से पिताजी भी आ गए, ‘‘क्या हुआ? मैं क्या सुन रहा हूं?’’

‘‘मैं विवेक के साथ विवाह करने जा रही हूं, आशीर्वाद दें.’’

मां फट पड़ीं, ‘‘तेरी बुद्धि तो ठीक है, भला कोई विधवा…’’ तभी विवेक आ गया. उसे देख कर मां खामोश हो गईं. लेकिन आतेआते उस ने उन की बातें सुन ली थीं, अंतत: हंस कर विवेक बोला, ‘‘मांजी, आप किस जमाने की बात कह रही हैं? अब जमाना बदल गया है. अब विधवा की दोबारा शादी को बुरा नहीं समझा जाता. जब हमें कोई आपत्ति नहीं है तो दूसरों से क्या लेनादेना. खैर, आप लोगों का आशीर्वाद हमारे साथ है, ऐसा हम ने मान लिया है. चलो, अमिता.’’

उसी दिन आर्यसमाज मंदिर में उन का विवाह संपन्न हो गया. मन में सहमति न रखते हुए भी अमिता के मातापिता व भाईबहन विवाह समारोह में शामिल हुए. मांपिता ने कन्यादान किया. विवेक के घर में केवल मां और छोटी बहन थीं और विवेक के आफिस के सहयोगी भी पूरे उत्साह के साथ सम्मिलित हुए. साथियों ने निकट के रेस्तरां में नवदंपती के साथ सब की दावत की.

अमिता ने मांपिता के पैर छुए. फिर अमिता के साथ सभी लोग उस के घर आ गए तो विवेक की मां ने कहा, ‘‘समधीजी, अब अमिता को विदा कीजिए. वह अब मेरी बहू है, उसे अपने घर जाने दें…’’

पिता की जबान खुली, ‘‘लेकिन, राहुल…’’

विवेक की मां ने हंस कर कहा, ‘‘राहुल विवेक को बहुत चाहता है, विवेक भी उसे अपने बेटे की तरह प्यार करता है. बच्चे को उस का पिता भी तो मिलना चाहिए.’’

अमिता बोली, ‘‘पिताजी, मेरे इस घर को फिलहाल किराए पर उठा दें. उस पैसे से भाईबहनों की पढ़ाई, घर की देखभाल आदि का खर्च निकल आएगा.’’

चलते समय विवेक ने अमिता के मातापिता से कहा, ‘‘पिताजी, मैं ने अमिता से स्पष्ट कह दिया है कि तुम्हारा जो धन है वह तुम्हारा ही रहेगा, तुम्हारे ही नाम से रहेगा. मैं खुद अपने परिवार, पत्नी और पुत्र के लायक बहुत कमा लेता हूं. आप ऐसा न सोचें कि उस के धन के लालच से मैं ने शादी की है. वह उस का, राहुल का है.’’

फिर मातापिता के पैर छू कर विवेक और अमिता थोड़े से सामान और राहुल को साथ लेकर चले गए.

काली सोच : क्या वो खुद को माफ कर पाई -भाग 2

‘मुझे जो कहना था मैं ने कह दिया. तुम्हें इतना ही पसंद है तो कहीं से मुझे जहर ला दो. अपने जीतेजी तो मैं यह अनर्थ नहीं होने दूंगी. अरे, रिश्तेदार हैं, समाज है उन्हें क्या मुंह दिखाएंगे. दस लोग दस तरह के सवाल पूछेंगे, क्या जवाब देंगे उन्हें हम?’

मैं ने कहा तो सुशांत चुप हो गए. उस दिन मैं ने मानसी को ध्यान से देखा. वाकई मेरी गुडि़या विवाहयोग्य हो गई थी. लिहाजा, मैं ने पुरोहित को बुलावा भेजा.

‘बिटिया की कुंडली में तो घोर मंगल योग है बहूरानी. पतिसुख से यह वंचित रहेगी. पुरोहित के मुख से यह सुन कर मेरा मन अनिष्ट की आशंका से कांप उठा. मैं मध्यवर्गीय धर्मभीरू परिवार से थी और लड़की के मंगला होने के परिणाम से पूरी तरह परिचित थी. मैं ने लगभग पुरोहित के पैर पकड़ लिए, ‘कोई उपाय बताइए पुरोहितजी. पूजापाठ, यज्ञहवन, मैं सबकुछ करने को तैयार हूं. मुझे कैसे भी इस मंगल दोष से छुटकारा दिलाइए.’

‘शांत हो जाइए बहूरानी. मेरे होते हुए आप को परेशान होने की बिलकुल भी जरूरत नहीं है,’ उन्होंने रसगुल्ले को मुंह में दबाते हुए कहा, ‘ऐसा कीजिए, पहले तो बिटिया का नाम मानसी के बजाय प्रिया रख दीजिए.’

‘ऐसा कैसे हो सकता है पंडितजी. इस उम्र में नाम बदलने के लिए न तो बिटिया तैयार होगी न उस के पापा. वे कुंडली मिलान के लिए भी तैयार नहीं थे.’

‘तैयार तो बहूरानी राजा दशरथ भी नहीं थे राम वनवास के लिए.’ पंडितजी ने घोर दार्शनिक अंदाज में मुझे त्रियाहट का महत्त्व समझाया व दक्षिणा ले कर चलते बने.

‘आज से तुम्हारा नाम मानसी के बजाय प्रिया रहेगा,’ रात के खाने पर मैं ने बेटी को अपना फैसला सुना दिया.

‘लेकिन क्यों मां, इस नाम में क्या बुराई है?’

‘वह सब मैं नहीं जानती बेटा, पर मैं जो कुछ भी कर रही हूं तुम्हारे भले के लिए ही कर रही हूं. प्लीज, मुझे समझने की कोशिश करो.’

उस ने मुझे कितना समझा, कितना नहीं, यह तो मैं नहीं जानती पर मेरी बात का विरोध नहीं किया.

हर नए रिश्ते के साथ मैं उसे हिदायतों का पुलिंदा पकड़ा देती.

‘सुनो बेटा, लड़के की लंबाई थोड़ा कम है, इसलिए फ्लैटस्लीपर ही पहनना.’

‘लेकिन मां फ्लैटस्लीपर तो मुझ पर जंचते नहीं हैं.’

‘देखो प्रिया, यह लड़का 6 फुट का है. इसलिए पैंसिलहील पहनना.’

‘लेकिन मम्मी मैं पैंसिलहील पहन कर तो चल ही नहीं सकती. इस से मेरे टखनों में दर्द होता है.’

‘प्रिया, मौसी के साथ पार्लर हो आना. शाम को कुछ लोग मिलने आ

रहे हैं.’

‘मैं नहीं जाऊंगी. मुझे मेकअप पसंद नहीं है.’

‘बस, एक बार तुम्हारी शादी हो जाए, फिर करती रहना अपने मन की.’

मैं सुबकने लगती तो प्रिया हथियार

डाल देती.

पर मेरी सारी तैयारियां धरी की धरी रह जातीं जब लड़के वाले ‘फोन से खबर करेंगे’, कहते हुए चले जाते या फिर दहेज में मोटी रकम की मांग करते, जिसे पूरा करना किसी मध्यवर्गीय परिवार के वश की बात नहीं थी.

‘ऐसा कीजिए बहूरानी, शनिवार की सुबह 3 बजे बिटिया से पीपल के फेरे लगवा कर ग्रहशांति का पाठ करवाइए,’ पंडितजी ने दूसरी युक्ति सुझाई.

‘तुम्हें यह क्या होता जा रहा है मां, मैं ये जाहिलों वाले काम बिलकुल नहीं करूंगी,’ प्रिया गुस्से से भुनभुनाई, ‘पीपल के फेरे लगाने से कहीं रिश्ते बनते हैं.’

‘सच ही तो है, शादियां यदि पीपल के फेरे लगाने से

तय होतीं तो सारी विवाहयोग्य लड़कियां पीपल के इर्दगिर्द ही घूमती नजर आतीं,’ सुशांत ने भी हां में हां मिलाई.

‘चलो, माना कि नहीं होती पर हमें यह सब करने में हर्ज ही क्या है?’

‘हर्ज है शुभा, इस से लड़कियों का मनोबल गिरता है. उन का आत्मसम्मान आहत होता है. बारबार लड़के वालों द्वारा नकारे जाने पर उन में हीनभावना घर कर जाती है. तुम ये सब समझना क्यों नहीं चाहतीं. मानसी को पहले अपनी पढ़ाई पूरी कर लेने दो. उसे जो बनना है वह बन जाने दो. फिर शादी भी हो जाएगी,’ सुशांत ने मुझे समझाने की कोशिश की.

‘तब तक सारे अच्छे रिश्ते हाथ से निकल जाएंगे, फिर सुनते रहना रिश्तेदारों और पड़ोसियों के ताने.’

‘रिश्तेदारों का क्या है, वे तो कुछ न कुछ कहते ही रहेंगे. उन की बातों से डर कर क्या हम बेटी की खुशियों, उस के सपनों का गला घोंट दें.’

‘तुम कहना क्या चाहते हो, मैं क्या इस की दुश्मन हूं. अरे, लड़कियां चाहे कितनी भी पढ़लिख जाएं, उन्हें आखिर पराए घर ही जाना होता है. घरपरिवार और बच्चे संभालने ही होते हैं और इन सब कामों की एक उम्र होती है. उम्र निकलने के बाद यही काम बोझ लगने लगते हैं.’

‘तो हमतुम मिल कर संभाल लेंगे न इन की गृहस्थी.’

‘संभालेंगे तो तब न जब ब्याह होगा इस का. लड़के वाले तो मंगला सुनते ही भाग खड़े होते हैं.’

हमारी बहस अभी और चलती अगर सुशांत ने मानसी की डबडबाई आंखों को देख न लिया होता.

सुशांत ने ही बीच का रास्ता निकाला था. वे कहीं से पीपल का बोनसाई का पौधा ले आए थे, जिस से मेरी बात भी रह जाए और प्रिया को घर से बाहर भी न जाना पड़े.

साल गुजरते जा रहे थे. मानसी की कालेज की पढ़ाई भी पूरी हो गई थी.

 

मामी का उफनता शबाब

20मई, 2022 की शाम कोेई 8 बजे बृजमोहन हर रोज की तरह गांव के बाहर लगे वाटर कूलर से पानी लेने गया था. काफी देर बाद भी वह पानी ले कर नहीं लौटा तो उस के घर वालों ने सोचा कि वह कहीं शराब पीने में लग गया होगा. लेकिन देर रात तक वह घर नहीं लौटा तो घर वालों को उस की चिंता हुई. उन्होंने उसे गांव में हर जगह खोजा,लेकिन उस का कहीं भी अतापता नहीं चला.

बृजमोहन के अचानक गायब हो जाने से गांव वाले भी उस की खोज में लग गए थे. गांव वालों के सहयोग से बृजमोहन का देर रात पता तो चल गया. लेकिन वह गांव से सटे हुए एक खाली प्लौट में लहूलुहान बेहोशी की हालत में मिला. ऐसी हालत में उसे देख कर उस के परिवार में शोक की लहर दौड़ गई.
उसे तुरंत ही काशीपुर के एल.डी. भट्ट सरकारी अस्पताल ले गए. जहां पर डाक्टरों ने उसे देखते ही मृत घोषित कर दिया था.

डाक्टरों की सूचना पर काशीपुर कोतवाल मनोज रतूड़ी तुरंत ही पुलिस टीम के साथ एल.डी. भट्ट अस्पताल पहुंचे. पुलिस ने उस के घर वालों से सारी बात मालूम की. पुलिस ने मृतक के घर वालों से पूछताछ की. बृजमोहन शादीशुदा 2 बच्चों का बाप था. वह मेहनतमजदूरी कर किसी तरह से अपने बच्चों का पालनपोषण कर रहा था. गांव में उस की किसी के साथ कोई दुश्मनी भी नहीं थी. पुलिस ने पूछताछ करने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए भेजने की तैयारी शुरू कर दी.

पोस्टमार्टम होने वाली बात सामने आते ही उस के घर वाले विरोध करने लगे. उन का कहना था कि पुलिस पोस्टमार्टम के नाम पर लाश की दुर्गति करती है. इसी कारण वह किसी भी कीमत पर उस की लाश का पोस्टमार्टम नहीं होने देंगे.इस बात को ले कर मृतक की बीवी प्रीति कौर ने रोतेधोते काफी बखेड़ा कर कर दिया. पुलिस के बारबार समझाने पर भी वह मानने को तैयार न थी. उस समय किसी तरह पुलिस ने घर वालों को समझाबुझा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

इस के बाद पुलिस केस की जांच में जुट गई. थानाप्रभारी ने बृजमोहन के घर वालों से उस के बारे में जानकारी ली तो पता चला कि बृजमोहन ने प्रीति कौर के साथ लव मैरिज की थी. जिस के बाद से ही प्रीति कौर के घर वाले उस से नाराज चल रहे थे.इस जानकारी के मिलते ही पुलिस को लगा कि कहीं उस के मायके वालों ने ही तो उस के पति की हत्या नहीं कर दी. इस बात के सामने आते ही पुलिस ने प्रीति कौर के मायके वालों से भी पूछताछ की.

लेकिन पुलिस पूछताछ में मायके वालों ने साफ शब्दों में कहा कि प्रीति के अपनी मरजी से शादी करने की वजह से उन्होंने उस से पूरी तरह से नाता तोड़ लिया था. जिस के बाद वह कभी भी उन के घर नहीं आई थी. जिस से साफ जाहिर था कि बृजमोहन की हत्या से उन का कोई लेनादेना नहीं रहा होगा.पुलिस ने प्रीति कौर के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस के नंबर पर सब से ज्यादा सौरभ नाम के व्यक्ति से बात करने की बात सामने आई.सौरभ बृजमोहन का भांजा था. वह अभी कुंवारा था.

बृजमोहन के घर सब से ज्यादा भी वही आताजाता था. यह जानकारी मिलते ही पुलिस सौरभ के घर उस से मिलने गई तो वह पुलिस को आता देख चकमा दे कर घर से फरार हो गया. लेकिन जल्दबाजी में वह अपना मोबाइल घर पर ही छोड़ गया था.पुलिस ने उस का मोबाइल अपने कब्जे में लिया और चैक किया तो पता चला वह दिन में कईकई बार अपनी मामी प्रीति कौर से काफी देर तक बात करता था. उस के वाट्सऐप को खोल कर देखा तो पाया कि वह अपनी मामी से दिन में कई बार चैटिंग करता था.
यही नहीं उस ने अपनी मामी को कई अश्लील पोस्ट भी भेज रखी थीं. जिस से साफ जाहिर हो गया था कि उस का मामी प्रीति के साथ चक्कर चल रहा था. शक होने पर पुलिस ने सब से पहले गांव में लगे सीसीटीवी कैमरे खंगाले.

जांचपड़ताल के दौरान एक कैमरे में मृतक बृजमोहन अकेला ही हाथ में खाली बोतलें ले जाते नजर आया. उस के कुछ देर बाद ही मृतक का भांजा सौरभ भी उस के पीछेपीछे जाता दिखा. जिस से साफ जाहिर था कि बृजमोहन की हत्या से पहले सौरभ ही उस के संपर्क में था.मृतक की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी मृतक के शरीर पर काफी चोट के निशान दर्शाए गए थे. उस के सिर के पीछे काफी गहरे चोट के निशान पाए गए थे. जिस के कारण ही उस की मौत हुई थी. जबकि मृतक की बीवी प्रीति कौर उस की हत्या को सामान्य मौत मान रही थी.

मृतक के बड़े भाई बुद्ध सिंह ने अपने भांजे सौरभ के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट लिखा दी.
सौरभ के नाम एफआईआर दर्ज होते ही पुलिस उस की खोजबीन में लग गई. पुलिस के अथक प्रयासों से सौरभ जल्दी पुलिस के हत्थे चढ़ गया.सौरभ को गिरफ्तार कर पुलिस ने उस से कड़ी पूछताछ की तो अपना गुनाह स्वीकार करते हुए उस ने हत्या का सारा राज खोल दिया. सौरभ ने बताया कि उस ने अपने मामा की हत्या मामी प्रीति कौर के कहने पर ही की थी. उस का मामी के साथ कई सालों से प्रेम प्रसंग चल रहा था.

बृजमोहन की हत्या की सच्चाई सामने आते ही पुलिस ने उस की बीवी प्रीति
कौर को भी पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया.पुलिस पूछताछ में प्रीति ने जल्दी अपना गुनाह स्वीकार करते हुए अपनी जिंदगी का राज खोल दिया था.पुलिस पूछताछ के दौरान बृजमोहन की हत्या का जो राज खुला, उस के पीछे एक दिलचस्प कहानी भी सामने आई.

उत्तराखंड के शहर काशीपुर से लगभग 15 किलोमीटर दूर रामनगर मार्ग पर गऊशाला से पहले पड़ता है एक गांव गोपीपुरा. इसी गांव में शिवचरन सिंह का परिवार रहता था. शिवचरन सिंह हेमपुर बस डिपो में ही एक चपरासी थे.शिवचरन सिंह के 3 बच्चे थे, जिन में एक बेटी और 2 बेटे. सब से बड़ी बेटी बाला, उस के बाद बुद्ध सिंह, बृजमोहन सिंह इन सब में छोटा था. शिवचरन सिंह ने बच्चों को पालापोसा और जवान होने पर 2 बच्चों की शादी भी कर दी थी.

शिवचरन सिंह ने नौकरी से रिटायर होने के बाद ही दोनों बेटों के अलगअलग घर भी बनवा दिए थे. बुद्ध सिंह की शादी होते ही वह भी अपनी पत्नी को साथ ले कर अलग रहने लगा था.बृजमोहन कुंवारा था. वह अभी भी मातापिता के साथ ही रहता था. बृजमोहन एक फैक्ट्री में काम करता था. उसी दौरान उस की मुलाकात प्रीति से हो गई.प्रीति कौर मुरादनगर, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश की रहने वाली थी. गऊशाला स्थित छावनी के पास ही उस के नाना सुरजीत सिंह रहते थे. प्रीति कौर समयसमय पर गऊशाला अपने नाना के घर आती रहती थी. उसी आनेजाने के दौरान वह बृजमोहन के संपर्क में आई.

प्रीति कौर बहुत ही खूबसूरत थी. एक अनौपचारिक मुलाकात के दौरान ही वह बृजमोहन के दिल में उतर गई. बृजमोहन देखने भालने में सीधासादा था.फिर भी प्रीति की खूबसूरती पर इतना फिदा हो गया. दोनों के बीच लुकाछिपी का खेल शुरू हुआ फिर प्रेम डगर पर निकल गए.हालांकि दोनों ही अलगअलग धर्म से ताल्लुक रखते थे, फिर भी दोनों के बीच प्रेम संबंध स्थापित होते ही दोनों ने एक साथ जीनेमरने की कसम भी खा ली थी. प्रीति कौर अपने नानानानी के पास ही रहने लगी.

उस के नाना सारा दिन खेतीबाड़ी में लगे रहते थे. उस की नानी ही घर पर रहती थीं. बृजमोहन के साथ आंखें लड़ाते ही वह किसी न किसी बहाने से उस से मिलने लगी थी. उसी दौरान दोनों के बीच शारीरिक सबंध स्थापित हो गए. अवैध संबंध स्थापित होते ही वह बृजमोहन के साथ मौजमस्ती करने लगी थी.

कुछ समय तक तो दोनों के बीच प्रेम प्रसंग चोरीछिपे से चलते रहे. लेकिन जल्दी ही एक दिन ऐसा भी आया कि दोनों का प्यार जग जाहिर हो गया. जब प्रीति कौर की हरकतों की जानकारी उस के नाना सुरजीत सिंह को हुई तो उन्होंने उसे उस के मम्मीपापा के पास भेज दिया.मांबाप के घर जाने के बाद प्रीति कौर बृजमोहन के प्यार में तड़पने लगी. उस के पिता दिलप्रीत सिंह काम से बाहर निकल जाते थे. घर पर उस की मां बग्गा कौर ही रहती थीं. पापा के घर से निकलते ही उस की मां उस की पूरी निगरानी करती थीं.
प्रीति कौर बृजमोहन के प्यार में इस कदर पागल हो चुकी थी कि वह दिनरात उसी की यादों में खोई रहती थी. जब प्रीति कौर से बृजमोहन की जुदाई बरदाश्त नहीं हुई तो उस ने एक दिन अपनी मम्मी को दिन में ही लस्सी में नींद की गोली डाल कर दे दी.

जिस के बाद उस की मम्मी को जल्दी ही नींद आ गई.मम्मी को गहरी नींद में सोते देख वह घर से काशीपुर के लिए निकल पड़ी. काशीपुर आते ही वह सीधे बृजमोहन के पास आ गई. प्रीति कौर के घर छोड़ने वाली बात सुनते ही बृजमोहन के घर वालों ने उसे काफी समझाया कि वह घर चली जाए, लेकिन उस ने अपने घर वापस जाने से साफ मना कर दिया था.अब से लगभग 8 साल पहले दोनों ने पे्रम विवाह कर लिया. प्रेम विवाह करने के बाद वह बृजमोहन के साथ ही रहने लगी. प्रीति कौर के द्वारा दी गई नशे की दवा के कारण उस की मम्मी को पता नहीं क्या रिएक्शन हुआ कि वह बीमार रहने लगी थीं.

जिस के कुछ दिनों के बाद उन की मौत हो गई. अपनी मम्मी की मौत हो जाने के बाद भी प्रीति अपने घर वापस नहीं गई.प्रीति अपने पति बृजमोहन के साथ काफी खुश थी. प्रीति कौर शुरू से ही हंसमुख थी. उस की चंचलता उस के चेहरे से ही झलकती थी. बृजमोहन भी पढ़ीलिखी प्रीति कौर को पा कर बेहद ही खुश था.

शादी के 4 साल बाद प्रीति कौर एक बच्ची की मां बनी. घर के आगंन में बच्ची की चीखपुकार के साथ हंसीठिठोली ने बृजमोहन और प्रीति कौर की जिंदगी में नया ही उत्साह भर दिया था.
घर में बच्ची के जन्म से बृजमोहन की जिम्मेदारी और भी बढ़ गई थी. जिस के लिए उस ने पहले से ज्यादा कमाने पर ध्यान देना शुरू कर दिया. अब से लगभग डेढ़ साल पहले प्रीति कौर दूसरे बच्चे बेटे की मां बनी. घर में बेटे के जन्म से उस के परिवार में खुशियां ही खुशियां हो गई थीं.

घर में बेटे के जन्म के बाद से ही बृजमोहन बीमार रहने लगा था. उस के पैरों की अचानक ही कोई नस दब गई, जिस के कारण उसे चलनेफिरने में भी दिक्कत होने लगी थी. पैरों की दिक्कत के कारण वह काम पर भी नहीं जा पाता था. जिस के कारण उस का परिवार आर्थिक तंगी से गुजरने लगा था.

2 बच्चों के जन्म के बाद प्रीति कौर का शरीर पहले से भी ज्यादा खिल उठा था. लेकिन घर में आर्थिक तंगी के कारण वह परेशान रहने लगी थी. बृजमोहन बीमारी के चलते हर रोज काम पर नहीं जा पाता था. कभीकभार वह कोई काम करता तो वह थकहार कर रात को जल्दी ही सो जाता था. जिस के कारण प्रीति का उस के प्रति लगाव कम हो गया था.बृजमोहन का भांजा था सौरभ, जो वहां से डेढ़ किलोमीटर दूर गऊशाला, छावनी में रहता था. वह पहले से ही अपने मामामामी के पास आताजाता रहता था. उसी आनेजाने के दौरान सौरभ को एक दिन अहसास हुआ कि उस की मामी मामा को पहला जैसा प्यार नहीं देती. बातबात पर उसे झिड़क देती थी.

एक दिन मौका पाते ही सौरभ ने अपनी मामी से सवाल किया, ‘‘मामी, आजकल तुम मामा से बहुत खफा चल रही हो. मामा के साथ तुम्हारा झगड़ा हो गया क्या?’’‘‘जब भरी जवानी में आदमी घर में बूढ़ा बन कर बैठ जाए और शाम होते ही दारू के नशे में डूब जाए तो बीवी उसे क्या प्यार करेगी. सारा दिन घर में ही पड़ेपड़े मुफ्त की रोटी खाते हैं. न तो कमानेधमाने की चिंता है और न ही बीवी की.’’ प्रीति कौर ने जबाव दिया.‘‘नहीं मामी, ऐसी बात तो नहीं. मामा तो तुम्हें बहुत ही प्यार करते हैं. रही बात कामधंधा करने की तो जैसे ही उन की परेशानी दूर हो जाएगी वह फिर से काम करने लगेंगे.’’ सौरभ ने कहा.

‘‘औरत को रोटी के अलावा कुछ और भी तो चाहिए. रात में पैर दर्द का बहाना कर के हर रोज जल्दी सो जाते हैं. फिर मैं बच्चों को ले कर रात में तारे गिनती रहती हूं.’’ प्रीति ने बड़े ही दुखी मन से कहा.
मामी की बात सुनते ही सौरभ के मन में खुशी के लड्डू फूटने लगे थे. सौरभ जवानी के दौर से गुजर रहा था. उसे अपनी मामी की बात समझते देर नहीं लगी.‘‘अरे मामी, तुम इतनी हसीन हो, यह मायूसी तुम्हारे चेहरे पर अच्छी नहीं लगती. खुश रहा करो, सब कुछ ठीक हो जाएगा.’’ सौरभ ने खुशमिजाज लहजे में मामी के दुखते जख्म पर मरहम लगाने का काम किया.

उस वक्त प्रीति कौर घर के आंगन में नल पर कपड़े धो रही थी. प्रीति कौर का गदराया बदन था. तन से वह हर तरह से मालामाल थी. कपड़े धोने के कारण उस वक्त उस ने अपनी चुन्नी भी उतार कर पास में ही रख दी थी. प्रीति कौर का चेहरामोहरा तो मनमोहक था ही साथ ही उस का रंग भी गोराचिट्टा था.
प्रीति के वक्ष बड़े होने के कारण बारबार बाहर निकलने को आतुर थे. भले ही सौरभ और प्रीति के बीच मामीभांजे का रिश्ता था, लेकिन उस दिन सौरभ बारबार अपनी मामी के उभारों को ही निहार रहा था.
उस दिन ही सौरभ समझ गया था कि उस की मामी की क्या परेशानी है. इस से पहले वह अपनी मामी के पास कभीकभार ही आता जाता था. लेकिन उस दिन के बाद उस का आनाजाना बढ़ गया था.

सौरभ अभी पढ़ाई कर रहा था. स्कूल से आने के बाद वह जल्दी से अपना काम निपटाता और शाम होते ही वह अपने मामा के घर गोपीपुरा चला जाता था. जिस वक्त वह शाम को मामा के घर पहुंचता तो उस के मामा बृजमोहन उसे शराब पीते मिलते थे. बृजमोहन कभीकभी सौरभ से ही गांव में लगे पंचायती वाटर कूलर से ही ठंडा पानी मंगाता था.

शराब पीने के कुछ समय बाद ही बृजमोहन नशे में झूमने लगता और फिर कुछ खापी कर जल्दी ही सो जाता था. उस के बाद सौरभ मामी के साथ बतियाने लगता था. कुछ दिनों में सौरभ ने अपनी मामी के दिल में अपने लिए खास जगह बना ली थी. प्रीति कौर भी सौरभ को चाहने लगी थी. इस से पहले सौरभ शराब को हाथ तक नहीं लगाता था. लेकिन मामी की चाहत में उस ने अपने मामा के साथ शराब भी पीनी शुरू कर दी थी.

फिर वह अकसर ही अपने मामा के साथ बैठ कर शराब पीने लगा था. सौरभ को शराब का शौक लगने पर बृजमोहन हमेशा ही उसे बुला लेता था. यही सौरभ भी चाहता था. 29 मार्च, 2021 को होली का दिन था. जिस वक्त सौरभ अपने मामा के घर पहुंचा, उस की मामी घर पर अकेली ही थी. अपनी मामी को घर पर अकेले देख सौरभ का दिल बागबाग हो गया. फिर भी उस ने मामी से पूछा, ‘‘मामी, मामा कहां गए?’’
‘‘गए होंगे अपने दोस्तों के साथ घूमने. अब यह बताओ कि तुम्हें केवल मामा से ही काम है. क्या मामी के काम भी आओगे?’’

‘‘क्या बात कही आप ने मामी. पहले तो मामी ही है मामा तो बाद में हैं. मेरे लायक कोई सेवा हो तो बताओ.’’ चापलूसी करता हुआ सौरभ बोला. ‘‘अरे बुद्धू, तुम्हें इतना भी नहीं पता कि आज होली मिलन का त्यौहार है. तुम मुझ से इतनी दूर खड़े हो. होली नहीं मिलोगे मामी से?’’‘‘क्यों नहीं मामी, आप ने यह क्या बात कही.’’ इतना कहते ही प्रीति ने सामने खड़े सौरभ की कोली भर ली. मामी की आगोश में जाते ही सौरभ के नसों में खून का संचार बढ़ गया.

उस ने जिंदगी में पहली बार किसी औरत के तन से तन मिलाया था. मामी के बड़ेबड़े वक्षों का संपर्क पा कर उस की जवानी बेकाबू हो उठी. सौरभ पल भर के लिए दुनियादारी भूल गया.सौरभ अपनी मामी को रंग लगाने के लिए रंग भी साथ ही लाया था. सौरभ अभी अपनी मामी की कोली भर के ही खड़ा हुआ था. तभी बाहर किसी के आने की आहट हुई. बाहर आहट सुन कर दोनों अलगअलग हो गए . तब तक बृजमोहन घर के अंदर आ पहुंचा था.

अचानक घर में मामा को आया देख क र सौरभ सकपका गया. उस की समझ में नहीं आया कि वह क्या करे. उस ने फुरती दिखाई और अपनी जेब से वह रंग निकाल कर सामने खड़ी मामी के चेहरे पर लगा दिया.बृजमोहन उस वक्त भी नशे में था. उस के घर में उस के पीछे कौन सा खेल चल रहा था, वह समझ नहीं पाया. बृजमोहन प्रीति पर बहुत ही विश्वास करता था. चेहरे पर रंग लगवाने के बाद प्रीति ने अपने बेटे को गोद में उठाया और बाहर घर के आंगन में आ कर बैठ गई.

बृजमोहन नशे में इतना धुत था कि उस ने घर में मामीभांजे को अकेला पा कर भी किसी तरह का शक नहीं किया. उस के बाद प्रीति कौर अपने घर के कामों में लग गई. बृजमोहन सौरभ को देख कर घर के अंदर रखी बोतल निकाल लाया था. फिर मामाभांजे एक साथ बैठे तो पीनेपिलाने का सिलसिला शुरू हुआ.

बृजमोहन पहले से ही नशे में धुत था. सौरभ के साथ उस ने 1-2 पेग और पिए तो होशोहवास खो बैठा. देखते ही देखते वह चारपाई पर पसर गया. प्रीति बृजमोहन को अच्छी तरह से जानती थी.
बृजमोहन एक बार खापी कर सो जाता था तो सुबह ही उठ पाता था. उस वक्त तक प्रीति के दोनों ही बच्चे सो चुके थे. घर में अपने जवान भांजे को देखते ही प्रीति कौर के तनबदन में आग लग गई.
सौरभ काफी दिनों से ऐसे ही मौके की तलाश में था. मामा को बेहोशी की हालत में सोया देख उस का पौरुष जाग उठा. मामी को सामने देखते ही वह भूखे भेडि़ए की तरह टूट पड़ा. जवानी के आगोश में पल भर में मामी भांजे के रिश्ते तारतार हो गए.

सौरभ जिंदगी में पहली बार किसी औरत के संपर्क में आया था. प्रीति भी सौरभ जैसे हट्टेकट्टे भांजे से शारीरिक संबंध बना कर काफी खुश हुई थी. एक बार रिश्तों की मर्यादा खत्म हुई तो दोनों के बीच लुकाछिपी का खेल शुरू हो गया.मामी के प्यार में सौरभ हर रोज ही मामा के साथ बैठ कर शराब पीनेपिलाने लगा था. फिर मौका पाते ही शराब के साथ शबाब का मजा लेने लगा था.
सौरभ पढ़ाई के साथसाथ मजदूरी भी करता था. वह जो भी कमाता उस पैसे को प्रीति मामी पर खर्च कर डालता था.

सौरभ ने ही मेहनतमजदूरी कर पैसे इकट्ठा कर एक स्मार्टफोन खरीद कर प्रीति को दे दिया था. ताकि वह उस से किसी भी समय बात कर सके. कई बार तो सौरभ अपने मामा की गैरमौजूदगी
में सारीसारी रात उसी के घर पर पड़ा रहता था. प्रीति कौर अपने बच्चों को जल्दी खाना खिलापिला कर सुला देती और फिर सौरभ के साथ मौजमस्ती में डूब जाती थी. प्रीति कौर और सौरभ के बारबार मिलने से उस के परिवार वालों को भी उन के बीच पक रही खिचड़ी हजम नहीं हो पा रही थी.

मई 2021 में एक दिन सौरभ का मोबाइल घर पर ही रह गया. जिस के तुरंत बाद ही उस की मम्मी बाला देवी ने उस के मोबाइल की काल रिकौर्डिंग निकाल कर सुनी तो दोनों के बीच सबंधों का खुलासा हो गया.
प्रीति कौर और सौरभ के बीच प्रेम प्रसंग का मामला जल्दी ही घर वालों के सामने आ गया. जब यह सच्चाई बृजमोहन के सामने आई तो उस ने सौरभ के साथ शराब पी कर हाथापाई भी की.

इसी बात को ले कर कई बार बृजमोहन ने अपनी बीवी के साथ भी लड़ाई की थी. लेकिन प्रीति उस की मजबूरी का फायदा उठा कर उस के ऊपर ही राशनपानी ले कर चढ़ जाती थी.बृजमोहन ने सौरभ के साथ लड़ाईझगड़ा कर उस के घर आने पर तो पाबंदी लगा दी थी. लेकिन प्रीति कौर और सौरभ अभी भी मोबाइल के माध्यम से संपर्क बनाए हुए थे. लेकिन दोनों एकदूसरे से न मिलने के कारण परेशान भी थे.
इसी दौरान एक दिन प्रीति ने सौरभ के सामने बोझिल मन से कहा कि इस तरह से कब तक चलेगा. मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रहना चाहती.

बृजमोहन जब भी घर आता है तो उस का मुंह फूला होता है. वह तुम्हारे चक्कर में ठीक से बात भी नहीं करता. जिस के कारण हम दोनों के बीच हमेशा ही टेंशन बनी रहती है. मैं हमेशा ही खुश
रहना चाहती हूं. यह खुशी मुझे तुम ही दे सकते हो.अगर तुम मुझे इतना ही प्यार करते हो तो कुछ ऐसा करो कि जिंदगी की सारी टेंशन हमेशाहमेशा के लिए खत्म हो जाए. बृजमोहन तुम से बुरी तरह से खार खाए बैठा है. वह कभी भी तुम्हारी हत्या कर सकता है. इस से पहले कि वह तुम्हारे साथ कुछ अनहोनी कर पाए, तुम ही उस का इलाज कर डालो.

मामा को मामी के रास्ते से हटाने की हरी झंडी मिलते ही सौरभ का दिल शेर बन बैठा. सौरभ ने सोचा अगर वह किसी तरह से मामा को मौत की नींद सुला दे तो मामी पर उस का ही कब्जा हो जाएगा.
मन में यह विचार आते ही वह अपने मामा को मौत की नींद सुलाने के लिए हर रोज नईनई योजनाएं बनाने लगा. सौरभ ने कई बार बृजमोहन को मौत की नींद सुलाने की योजना बनाई, लेकिन वह किसी भी योजना में सफल नहीं हो पा रहा था.

इस घटना से 10 दिन पहले ही सौरभ और प्रीति ने मिल कर बृजमोहन को रास्ते से हटाने की योजना बनाई. योजना बनते ही एक दिन सौरभ ने अपने मामा को फोन कर अपनी गलती मानते हुए क्षमा
याचना की. जिस के बाद उस ने भविष्य में कभी भी ऐसी गलती न करने की कसम भी खाई.
बृजमोहन बहुत ही सीधा था. वह सौरभ की चाल को समझ नहीं पाया. वह उस की मीठीमीठी बातों में आ गया. फिर उस ने सौरभ को अपने घर आने के लिए भी कह दिया. इस पर सौरभ ने कहा, ‘‘मामा, मैं ने आप के साथ जो किया है, उस से मुझे खुद से नफरत हो गई है. इसी कारण मैं आप के घर नहीं आऊंगा. अगर आप ने मुझे माफ कर दिया हो तो आज की पार्टी मेरी तरफ से है. आप मुझे गांव के बाहर आ कर मिलो.’’

सौरभ की बात सुनते ही बृजमोहन ने हामी भर ली. उस से गांव के बाहर मिलने के लिए तैयार भी हो गया.
उसी योजना के तहत ही 20 मई, 2022 शुक्रवार की देर शाम सौरभ ने अपने मामा को शराब पीने के लिए बुलाया. बृजमोहन हर शाम गांव में लगे वाटर कूलर से पानी लाता था. उस ने सोचा उसे आने में देर हो जाएगी. इसी कारण वह पहले पानी ले कर घर रख देगा, उस के बाद सौरभ के साथ चला जाएगा.
यही सोच कर वह घर से खाली बोतलें ले कर पानी लाने गया था. सौरभ को पता था कि उस के मामा इसी वक्त पानी लाने जाते हैं. वह पहले ही रास्ते में खड़ा हो गया था.

बृजमोहन के आते ही सौरभ उसे बुला कर गांव के बाहर चला गया. वाटर कूलर से लगभग 500 मीटर दूसरी दिशा में ले जा कर सौरभ ने अपने मामा को शराब पिलाई. जब बृजमोहन शराब के नशे में धुत हो गया तो मौका पाते ही पास में पड़े पत्थर से उस के सिर पर जोरदार प्रहार कर डाले. उस के बाद अपना लोअर निकाल कर उस से उस का गला घोट दिया.

गला दबने के कुछ क्षण में ही बृजमोहन की मौत हो गई. बृजमोहन की हत्या करने के बाद घटना में प्रयुक्त कपड़े नहर के किनारे कूड़े में छिपा दिए. उस के बाद वह अपने घर चला गया. इस केस का खुलासा होते ही पुलिस ने हत्यारोपी की निशानदेही पर घटना में इस्तेमाल आलाकत्ल पत्थर, खून से सने कपड़े व शराब की खाली बोतल के साथ ही डिस्पोजल गिलास भी बरामद कर लिए थे.

बृजमोहन मर्डर केस के खुलते ही पुलिस ने आरोपी उस की बीवी प्रीति कौर उस के भांजे सौरभ को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया था. इस मामले का जल्दी खुलासा करने के कारण एसएसपी डा. मंजूनाथ टी.सी. ने केस का खुलासा करने वाली टीम में शामिल काशीपुर कोतवाल मनोज रतूड़ी, एसएसआई प्रदीप मिश्रा, धीरेंद्र परिहार, नवीन बुधानी, रूबी मौर्या, एसओजी प्रभारी रविंद्र सिंह बिष्ट इत्यादि को 5000 रुपए का पुरस्कार दे कर सम्मानित किया.

उन के साथ ही एसएसपी ने मनोहर कहानियां के लिए अच्छी फोटोग्राफी के लिए लेखक के सहयोगी फोटोग्राफर प्रदीप बंटी को भी 1000 रुपए दे कर सम्मानित किया गया.

काली सोच : क्या वो खुद को माफ कर पाई -भाग 3

घर में एक अदृश्य तनाव अब हर समय पसरा रहता. जिस घर में पहले प्रिया की शरारतों व खिलखिलाहटों की धूप भरी रहती, वहीं अब सर्द खामोशी थी.

सभी अपनाअपना काम करते, लेकिन यंत्रवत. रिश्तों की गर्माहट पता नहीं कहां खो गईर् थी.

हम मांबेटी की बातें जो कभी खत्म ही नहीं होती थीं, अब हां…हूं…तक ही सिमट गई थीं.

जीवन फिर पुराने ढर्रे पर लौटने लगा था कि तभी एक रिश्ता आया. कुलीन ब्राह्मण परिवार का आईएएस लड़का दहेजमुक्त विवाह करना चाहता था. अंधा क्या चाहे, दो आंखें.

हम ने झटपट बात आगे बढ़ाई. और एक दिन उन लोगों ने मानसी को देख कर पसंद भी कर लिया. सबकुछ इतना अचानक हुआ था कि मुझे लगने लगा कि यह सब पुरोहितजी के बताए उपायोें के फलस्वरूप हो रहा है.

हंसीखुशी के बीच हम शादी की तैयारियों में व्यस्त हो गए थे कि पुरोहित दोबारा आए, ‘जयकारा हो बहूरानी.’

‘सबकुछ आप के आशीर्वाद से ही तो हो रहा है पुरोहितजी,’ मैं ने उन्हें प्रणाम करते हुए कहा.

‘इसीलिए विवाह का मुहूर्त निकालते समय आप ने हमें याद भी नहीं किया,’ वे नाराजगी दिखाते हुए बोले.

‘दरअसल, लड़के वालों का इस में विश्वास ही नहीं है, वे नास्तिक हैं. उन लोगों ने तो विवाह की तिथि भी लड़के की छुट्टियों के अनुसार रखी है, न कि कुंडली और मुहूर्त के अनुसार,’ मैं ने अपनी सफाई दी.

‘न हो लड़के वालों को विश्वास, आप को तो है न?’ पंडित ने छूटते ही पूछा.

‘लड़के वालों की नास्तिकता का परिणाम तो आप की बेटी को ही भुगतना पड़ेगा. यह मंगल दोष किसी को

नहीं छोड़ता.’

‘यह तो मैं ने सोचा ही नहीं,’ जैसेतैसे मेरे मुंह से निकला. पुरोहितजी की बात से शादी की खुशी जैसे काफूर गई थी.

‘कुछ कीजिए पुरोहितजी, कुछ कीजिए. अब तक तो आप ही मेरी नैया पार लगाते आ रहे हैं,’ मैं गिड़गिड़ाई.

‘वह तो है बहूरानी, लेकिन इस बार रास्ता थोड़ा कठिन है,’ पुरोहित ने पान की गिलौरी मुंह में डालते हुए कहा.

‘बताइए तो महाराज, बिटिया की खुशी के लिए तो मैं कुछ भी करने के लिए तैयार हूं,’ मैं ने डबडबाई आंखों से कहा.

‘हर बेटी को आप जैसी मां मिले,’ कहते हुए उन्होंने हाथ के इशारे से मुझे अपने पास बुलाया, फिर मेरे कान के पास मुंह ले जा कर जो कुछ कहा उसे सुन कर तो मैं सन्न रह गई.

‘यह क्या कह रहे हैं आप? कहीं बकरे या कुत्ते से भी कोई मां अपनी बेटी की शादी कर सकती है.’

‘सोच लीजिए बहूरानी, मंगल दोष निवारण के लिए बस यही एक उपाय है. वैसे भी यह शादी तो प्रतीकात्मक होगी और आप की बेटी के सुखी दांपत्य जीवन के लिए ही होगी.’

‘लेकिन पुरोहितजी, बिटिया के पापा भी तो कुछ दिनों के लिए बाहर गए हैं. उन की सलाह के बिना…’

‘अब लेकिनवेकिन छोडि़ए बहूरानी. ऐसे काम गोपनीय तरीके से ही किए जाते हैं. अच्छा ही है जो यजमान घर पर नहीं हैं.

‘आप कल सुबह 8 बजे फेरों की तैयारी कीजिए. जमाई बाबू (बकरा) को मेरे साथी पुरोहित लेते आएंगे

और बिटिया को मेरे घर की महिलाएं संभाल लेंगी.

‘और हां, 50 हजार रुपयों की भी व्यवस्था रखिएगा. ये लोग दूसरों से तो 80 हजार रुपए लेते हैं, पर आप के लिए 50 हजार रुपए पर बात तय की है.’ मैं ने कहते हुए पुरोहितजी चले गए.

अगली सुबह 7 बजे तक पुरोहित अपनी मंडली के साथ पधार चुके थे.

पुरोहिताइन के समझाने पर प्रिया बिना विरोध किए तैयार होने चली गई तो मैं ने राहत की सांस ली और बाकी कार्य निबटाने लगी.

‘मुहूर्त बीता जा रहा है बहूरानी, कन्या को बुलाइए.’ पुरोहितजी की आवाज पर मुझे ध्यान आया कि प्रिया तो अब तक तैयार हो कर आई ही नहीं.

‘प्रिया, प्रिया,’ मैं ने आवाज दी, लेकिन कोई जवाब न पा कर मैं ने उस के कमरे का दरवाजा बजाया, फिर भी कोई जवाब नहीं मिला तो मेरा मन अनजानी आशंका से कांप उठा.

‘सुनिए, कोई है? पुरोहितजी, पंडितजी, अरे, कोई मेरी मदद करो. मानसी, मानसी, दरवाजा खोल बेटा.’ लेकिन मेरी आवाज सुनने वाला वहां कोई नहीं था. मेरे हितैषी होने का दावा करने वाले पुरोहित बजाय मेरी मदद करने के, अपने दलबल के साथ नौदोग्यारह हो गए थे.

हां, आवाज सुन कर पड़ोसी जरूर आ गए थे. किसी तरह उन की मदद से मैं ने कमरे का दरवाजा तोड़ा.

अंदर का भयावह दृश्य किसी की भी कंपा देने के लिए काफी था. मानसी ने अपनी कलाई की नस काट ली थी. उस की रगों से बहता खून पूरे फर्श पर फैल चुका था और वह खुद एक कोने में अचेत पड़ी थी. मेरे ऊलजलूल फैसलों से बचने का वह यह रास्ता निकालेगी, यह मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था.

पड़ोसियों ने ही किसी तरह हमें अस्पताल तक पहुंचाया और सुशांत को खबर की.

ऐसी बातें छिपाने से भी नहीं छिपतीं. अगली ही सुबह मानसी के ससुराल वालों ने यह कह कर रिश्ता तोड़ दिया कि ऐसे रूढि़वादी परिवार से रिश्ता जोड़ना उन के आदर्शों के खिलाफ है.

‘‘यह सब मेरी वजह से हुआ है,’’ सुशांत से कहते हुए मैं फफक पड़ी.

‘‘नहीं शुभा, यह तुम्हारी वजह से नहीं, तुम्हारी धर्मभीरुता और अंधविश्वास की वजह से हुआ.’’

‘‘ये पंडेपुरोहित तो तुम जैसे लोगों की ताक में ही रहते हैं. जरा सा डराया, ग्रहनक्षत्रों का डर दिखाया और तुम फंस गईं जाल में. लेकिन यह समय इन बातों का नहीं. अभी तो बस यही कामना करो कि हमारी बेटी ठीक हो जाए,’’ कहते हुए सुशांत की आंखें भर आईं.

‘बधाई हो, मानसी अब खतरे से बाहर है,’ डा. रोहित ने आईसीयू से बाहर आते हुए कहा.

‘रोहित, विनोद का बेटा है, मानसी के लिए जिस का रिश्ता मैं ने महज विजातीय होने के कारण ठुकरा दिया था, इसी अस्पताल में डाक्टर है और पिछले 48  घंटों से मानसी को बचाने की खूब कोशिश कर रहा है. किसी अप्राप्य को प्राप्त कर लेने की खुशी मुझे उस के चेहरे पर स्पष्ट दिख रही है. ऐसे समय में उस ने मानसी को अपना खून भी दिया है.

‘क्या यह इस बात का प्रमाण नहीं कि रोहित सिर्फ व सिर्फ मेरी बेटी मानसी के लिए ही बना है?

‘मैं भी बुद्धू हूं.

‘मैं ने पहले बहुत गलतियां की हैं. अब और नहीं करूंगी,’ यह सब वह सोच रही थी.

रोहित थोड़ी दूरी पर नर्स को कुछ दवाएं लाने को कह रहा था. उस ने हिम्मत जुटा कर रोहित से आहिस्ता से कहा, ‘‘मानसी ने तो मुझे माफ कर दिया, पर क्या तुम व तुम्हारे परिवार वाले मुझे माफ कर पाएंगे.’’

‘कैसी बातें करती हैं आंटी आप, आप तो मेरी मां जैसी है.’ रोहित ने मेरे जुड़े हुए हाथों को थाम लिया था.

आज उन की भरीपूरी गृहस्थी है. रोहित के परिवार व मेरी बेटी मानसी ने भी मुझे माफ कर दिया है. लेकिन क्या मैं कभी खुद को माफ कर पाऊंगी. शायद कभी नहीं.

इन अंधविश्वासों के चंगुल में फंसने वाली मैं अकेली नहीं हूं. ऐसी घटनाएं हर वर्ग व हर समाज में होती रहती हैं.

मैं आत्मग्लानि के दलदल में आकंठ डूब चुकी थी और अपने को बेटी का जीवन बिगाड़ने के लिए कोस रही थी.

डर: सेना में सेवा करने के प्रति आखिर कैसा था डर

समस्या: जजों के निशाने पर याचिका दायर करने वाले

छत्तीसगढ़ में 16 आदिवासी एक मुठभेड़ में मार दिए गए थे. आरोप यह भी है कि तभी एक मासूम बच्चे की उंगलियां भी काट दी गई थीं. उसी वक्त साल 2009 में जांच के लिए आदिवासी ऐक्टिविस्ट हिमांशु कुमार ने एक याचिका डाली थी. तब से साल 2022 तक इस याचिका पर कोई सुनवाई नहीं हुई है.

अब अचानक से सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार, 14 जुलाई, 2022 को इस याचिका को खारिज करते हुए याचिका करने वाले पर 5 लाख रुपए के जुर्माने का आदेश दे दिया है.

ये हत्याएं छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी की सरकार के वक्त हुई थीं. याचिका करने वाले इस कांड की जांच चाहते थे. सुप्रीम कोर्ट ने न केवल याचिका दायर करने वाले हिमांशु कुमार पर 5 लाख रुपए का जुर्माना लगाया हैबल्कि छत्तीसगढ़ सरकार से उन पर एक और केस करने का आदेश भी दिया है.

यहां दिलचस्प बात यह है कि यह आदेश जस्टिस खानविलकर की बैंच ने दिया है. इन्होंने ही जून महीने में गुजरात दंगों की दोबारा से जांच करने की मांग करने वाली जाकिया जाफरी की याचिका को भी खारिज किया था. न केवल खारिज किया थाबल्कि सेम पैटर्न पर याचिका डालने वाली ऐक्टिविस्ट तीस्ता सीतलवाड़ के लिए कहा था कि वे इस मुद्दे को अपने लिए भुना रही हैं. इस के अगले ही दिन गुजरात सरकार ने तीस्ता सीतलवाड़ को जेल में डाल दिया था.

मतलबयाचिका दायर करने वालों को ही अब टारगेट किया जा रहा है. उन पर इतना भारी जुर्माना लगाया जा रहा है कि आगे कोई पीडि़तों के लिए लड़ने की सोचे भी नहीं.

देश की धनदौलत लूट कर विजय माल्या की तरह विदेश भाग जाओ तो अवमानना पर सिर्फ 2,000 रुपए जुर्माना लगेगा और बेकुसूर लोगों की हत्या के खिलाफ कोर्ट जाओगेतो 5 लाख रुपए का जुर्माना लगेगा.

देश में इंसाफ के नाम पर गजब के फैसले दर फैसले हो रहे हैं. यह फैसला उन लोगों के लिए नसीहत हैजो गरीबोंवंचितोंशोषितों के लिए लड़ रहे हैं कि चुपचाप बैठ कर जोरजुल्म के सीन को फिल्मों की तरह देखें. बीच में हुए इंटरवल में कानाफूसी कर लें और अगले सीन के लिए इंतजार करें.

एक दिलचस्प कहानी है. एक मामले को ले कर कोई बुजुर्ग एक दारोगा के पास गया. दारोगा ने कहा कि 20,000 रुपए में वह मामला निबटा देगा. बुजुर्ग ने पैसे देने से इनकार कर दिया. मामला कोर्ट में पहुंचा और 12 साल बाद फैसला सुनाते हुए जज ने कहा कि आप मुकदमा जीत गए हो. बुजुर्ग ने उस जज को आशीर्वाद देते हुए कहा कि आप जल्दी ही दारोगा बन जाएं.

जज ने कहा कि जज का पद बड़ा होता है. बुजुर्ग ने कहा कि पदों की जानकारी तो मुझे नहींलेकिन जो मामला उसी दिन 20,000 रुपए में दारोगा निबटा रहा थावह मामला 12 साल बाद तकरीबन एक लाख रुपए खर्च करवा कर आप ने निबटाया है. लिहाजाताकत तो दारोगा में ही ज्यादा है.

कहने का मतलब है कि यही हाल रहातो भविष्य में लोग अदालत जाने से भी डरने लगेंगे और मामले को अपने लैवल पर निबटाने की कोशिश करेंगे. इस से भ्रष्टाचार बढ़ेगा. कई जगहों पर तो देश में लोग गुंडों और गैंगस्टर से मदद लेते हैंउस को भी बढ़ावा मिलेगा.    

 

आंतक के सर्जन अल जवाहिरी का खात्मा

करीब 3 दशक पहले आतंक का पर्याय बन चुका दुनिया का दुर्दांत आतंकवादी ओसामा बिन लादेन का दोस्त अल जवाहिरी का मारा जाना चौंकाने वाली घटना हो सकती हैलेकिन सवाल खत्म नहीं हुआ है कि क्या उस की मौत से आतंक के सम्राज्य का भी खात्मा हो गयापढि़ए इस रिपोर्ट में कि खूंखार जिहादी जवाहिरी इतनी आसानी से कैसे मारा गया?

 

हर रोज की तरह 31 जुलाई2022 को सूर्योदय के करीब घंटा भर बाद अल कायदा मुखिया अयमन अल

जवाहिरी टहलता हुआ बालकनी पर आया. वह अमेरिका समेत पूरी दुनिया में आतंक फैलाने वाला और आतंक के शिखर पर बैठा खूंखार इस्लामिक जिहादी था. तब समय 6 बज कर 18 मिनट के करीब था.

वह काबुल में शेरपुर स्थित सेफ हाउस मकान की सब से ऊपर वाली बालकनी में 2-4 कदम ही चल पाया था कि तभी 2 मिसाइलें सनसनाती हुईं उस की तरफ आईं. उस ने दुर्घटना की आशंका से बचने की कोशिश कीलेकिन वे मिसाइलें वहीं आ कर गिरीं. हल्का सा धमाका हुआ और अगले ही पल जवाहिरी बालकनी में धड़ाम से गिर गया.

आवाज सुन कर परिवार के लोग दौड़ेदौड़े बालकनी में आए. उन्होंने 71 वर्षीय जवाहिरी को फर्श पर बेसुध गिरा हुआ देखा. वे उसे उठाने लगेलेकिन उन्होंने पाया कि जवाहिरी का शरीर बेजान हो चुका है और सांसें बंद हो चुकी हैं. दरअसलउस की मौत हो गई थी. वह मिसाइल हमले में मारा गया था.

इस हमले से कोई तेज विस्फोट का धमाका भी नहीं हुआ थाऔर न ही जवाहिरी के अलाव कोई और हताहत हुआ था. यहां तक कि मकान को भी किसी तरह का नुकसान नहीं हुआ था.

मिसाइल अमेरिकी ड्रोन विमान के जरिए दागी गई थी. इस की तैयारी अमेरिका ने एक सप्ताह पहले ही कर ली थीखुफिया एजेंसी द्वारा जवाहिरी की हर गतिविधि की जानकारी जुटा ली गई थी.

उस जानकारी के मुताबिक काबुल के एक मुख्य इलाके में स्थित इस 3 मंजिला मकान में रह रहे मिस्र के इस नामी जिहादी का बालकनी में सुबहसुबह टहलना पसंदीदा शौक था. वह सुबह की नमाज के बाद अमूमन उस बालकनी पर टहलने आया करता था.

 

31 जुलाई2022 रविवार को उस का यह काम अधूरा और आखिरी साबित हुआ. जिस बालकनी में 2 मिसाइलें आ कर गिरी थींउसी बालकनी से सटे कमरे में मौजूद जवाहिरी की पत्नी और बेटी को खरोंच तक नहीं आई. हमले से जो भी थोड़ीबहुत टूटफूट हुईवह केवल बालकनी में ही थी.

यह हमला इतना सटीक था कि लोगों को चौंका दिया. इस से पहले अमेरिकी सैनिकों द्वारा ऐसे कई हमले किए गएलेकिन उन का निशाना चूक गया या गलती हो गईजिस से आम लोग मारे गए. और फिर इसे ले कर हंगामा हुआ.

किंतु जवाहिरी पर हुए हमले के मामले में जिस तरह की मिसाइलों का इस्तेमाल हुआ और जिस तरह से जवाहिरी की आदतों पर करीबी नजर रखी गई और उस का अध्ययन किया गयाउसी की वजह से ही ऐसा सटीक हमला हो सका.

 

जवाहिरी की मौत की पुष्टि अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने एक घोषणा करते हुए की. उन्होंने कहा कि इंसाफ हो गया. हम ने जवाहिरी को ढूंढ कर मार दिया है. अमेरिका और यहां के लोगों के लिए जो खतरा बनेगाहम उसे नहीं छोड़ेंगे. इसी तरह से अमेरिका ने हमले में जिस तरह की मिसाइल का इस्तेमाल कियावह भी काफी अहम है.

असल में जवाहिरी अमेरिका की नजर में बिन लादेन की तरह ही दुश्मन था. अमेरिका मानता था कि जवाहिरी के हाथ भी अमेरिकी नागरिकों के खून से रंगे हुए थेजिसे वहां की खुफिया एजेंसी सीआईए द्वारा चलाए गए आतंकवाद विरोधी औपरेशन के तहत अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में मार डाला. वह अपने परिवार के साथ छिपा हुआ था.

वैसे उसे मार गिराने में काफी लंबा समय लग गया. इस बारे में बाइडेन का कहना था कि उसे मारने में लगा लंबा समय मायने नहीं रखता हैबल्कि उन के लिए यह महत्त्वपूर्ण था कि वह कहां छिपा हुआ था. इस से पहले भी अमेरिका ने बिन लादेन को उस के छिपने के ठिकाने पर जा कर मार गिराया था.

अल जवाहिरी का आतंकवादी बनना कोई अचनाक नहीं हुआ था. उस का इस्लामिक आतंकवाद के साथ दशकों पुराना गहरा संबंध था. हालांकि उस का संबंध मिस्र के कट्टरपंथी संगठन मुसलिम ब्रदरहुड से 14 साल की उम्र में ही हो गया था. इस के बाद वह भले ही डाक्टर बन गया होलेकिन अरबी के साथ फ्रेंच भाषा का जानकार यह शख्स ताउम्र जेहाद की आड़ में दहशत फैलाता रहा.

अल जवाहिरी 1951 में मिस्र के एक रईस परिवार में पैदा हुआ था. उस ने उच्चशिक्षा भी हासिल की थी. वह सर्जन बना. लेकिन जब उस की शादी में हाईप्रोफाइल मेहमान बुलाए गए थेतभी उस ने ऐलान कर सभी को चौंका दिया था कि ये शादी शरिया के हिसाब से होगी.

महिलाओं और पुरुषों को अलगअलग रहना होगा. अपनी शादी तक में उस ने महिलाओं और पुरुषों को एक साथ नहीं दिखने का आदेश दे दिया था.

 

27 साल की उम्र में शादी करने के बाद जवाहिरी मिस्र की सेक्युलर सत्ता का सख्त आलोचक बन बैठा था. उस ने 1970 के दशक में ही इजिप्शियन इस्लामिक जिहाद नाम का संगठन बना कर आतंकी गतिविधियों को अंजाम देना शुरू कर दिया. उस ने मिस्र में इस्लामिक हुकूमत के लिए खूब लड़ाई लड़ी थी.

पहली बार उस का नाम 1981 में तब चर्चा में आया थाजब वह मिस्र के राष्ट्रपति अनवर अल सादत की हत्या के आरोप में एक अदालत में खड़ा था. सफेद चोगा पहने जवाहिरी तब चिल्लाचिल्ला कर कह रहा था, ‘‘हम ने कुरबानी दी है और हम तब तक कुरबानियां देने को तैयार हैं जब तक कि इसलाम की जीत नहीं

हो जाती.’’

अदालत ने जवाहिरी को हत्या के आरोपों से बरी कर दिया थालेकिन अवैध हथियार रखने के मामले में उसे 3 साल की कैद सुनाई गई थी. हालांकि वह एक प्रशिक्षित सर्जन था. लोग उसे डाक्टर जवाहिरी के रूप में भी जानते थे.

 

सजा काटने के बाद वह पाकिस्तान चला गया और वहां बतौर डाक्टर उन अफगान लड़ाकों का इलाज करने लगाजो सोवियत रूस के खिलाफ लड़ रहे थे. उसी दौरान उस की दोस्ती बिन लादेन के साथ हो गई. उन दिनों ओसामा बिन लादेन एक धनी जिहादी हुआ करता थाजो अफगानिस्तान में सोवियत संघ के खिलाफ लड़ाई का हिस्सा बना हुआ था.

जवाहिरी ने मिस्र में इस्लामिक जिहाद की कमान 1993 में संभाल ली थी. उस के बाद वह नब्बे के दशक का आतंकी संगठनों की दुनिया का एक बहुत बड़ा नाम बन गया था. वह मिस्र की लोकतांत्रिक सरकार को गिरा कर इस्लामिक राज स्थापित करने के अभियान में लगा हुआ था. उस अभियान में 1200 से ज्यादा आतंकवादी मारे गए थे.

जून1995 में मिस्र के राष्ट्रपति हुस्नी मुबारक पर अदीस अबाबा में जानलेवा हमला हुआ था. उस हमले के बाद मिस्र की सरकार ने इस्लामिक जिहाद पर सख्ती बढ़ा दी थी. और उसे खत्म करने का काम शुरू कर दिया था.

जवाहिरी ने इस का बदला लेने के लिए इस्लामाबाद स्थित मिस्र के दूतावास पर हमले का आदेश दिया. बारूद से भरी 2 कारों ने दूतावास के दरवाजे पर टक्कर मार दी और जबरदस्त धमाका हुआजिस में 16 लोग मारे गए.

इस मामले में जवाहिरी पर मिस्र में मुकदमा चला और उस की गैरमौजूदगी में 1999 में उसे मौत की सजा सुना दी गई. लेकिन तब तक वह अल कायदा की स्थापना में बिन लादेन की मदद कर एक अलग मुकाम पर पहुंच चुका था.

 

2003 में अल जजीरा ने एक वीडियो जारी कियाजिस में लादेन और जवाहिरी को एक पथरीले पहाड़ी रास्ते पर सैर करते देखा गया. उस वीडियो ने अल जवाहिरी को दुनिया भर में स्थापित कर दिया.

उस के बाद सालों तक यह माना जाता रहा कि अल जवाहिरी पाकिस्तान और अफगानिस्तान में छिपा हुआ है. किंतु 2011 में बिन लादेन के मारे जाने के बाद उस ने अल कायदा की कमान संभाली. तब से कई बार उस ने वीडियो जारी कर इस्लामिक जिहाद को बढ़ाने और फैलाने का

संदेश दिया.

अपने दोस्त बिन लादेन को दी गई श्रद्धांजलि में उस ने वादा किया था कि वह पश्चिमी देशों के खिलाफ और बड़े आतंकी हमले करेगा. उस ने पश्चिमी देशों को चेतावनी दी थी, ‘जब तक तुम मुसलमानों की जमीन को छोड़ नहीं देतेतुम सुरक्षित होने का सपना भी नहीं

देख पाओगे.

साल 2014 में इस्लामिक स्टेट के उभार ने अल जवाहिरी का कद छोटा कर दिया. इराक और सीरिया में पनपा आईएस अल कायदा से कहीं ज्यादा खूंखार और खतरनाक बन कर उभरा. पश्चिमी देशों समेत दुनिया के तमाम आतंकवाद विरोधियों का ध्यान उस पर टिक गया.

इस का नतीजा यह हुआ कि जवाहिरी धीरेधीरे गुमनाम और बेअसर होने लगा. उस ने कई बार इस्लामिक जिहादियों को आकर्षित करने के लिए वीडियो संदेश जारी किए. अमेरिका की नीतियों पर टिप्पणियां भी कीं. लेकिन उस के संदेशों में पहले जैसा करिश्मा नहीं थाजो ओसामा बिन लादेन के संदेशों में होता था.

इस तरह से धीरेधीरे लोग जवाहिरी को भूलने लगेकिंतु पहली अगस्त को जब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ऐलान किया कि अल जवाहिरी मारा गयातब महीनों बाद अल जवाहिरी का नाम सुर्खियों में आ गया. वैसे उस की चर्चा आखिरी बार ही हुई.

जवाहिरी अल कायदा का प्रमुख जरूर थालेकिन कुछ सालों से वह उतना प्रभावशाली नहीं रहाजितनी उस की ताजपोशी के वक्त उम्मीद जताई गई थी. उस की चर्चा सिर्फ बेतुके बयानों को ले कर ही होती थीजो उस ने भारत के अंदरूनी मामले में भी तब दिएजब हिजाब विवाद हुआ था. उस ने अपने बयानों से कश्मीरियों को भी उकसाने का काम किया था और भारत के लिए भी खतरा बना हुआ था.

इस्लामिक स्टेट (आईएस) के सक्रिय होने के बाद अल कायदा के वर्चस्व में कमी आ गई थी और जवाहिरी का रुतबा भी कम हो गया था.

 

ओसामा बिन लादेन की मौत के बाद अल कायदा वैसे ही कमजोर हो गया था और जवाहिरी के करीबी सहयोगी रहे कई बड़े आतंकी एकएक कर के अमेरिकी हमलों में लगातार मारे जा चुके थे. इस से मिस्र से आए जवाहिरी के नेतृत्व और रणनीतिक क्षमताओं पर भी सवाल उठने शुरू हो गए थे.

जबकि लादेन के जिंदा रहने तक जवाहिरी का रुतबा कहीं ऊंचा था. उस के समर्थकों का मानना था कि जवाहिरी एक सख्त और लड़ाका इंसान थातब अल कायदा ने दुनिया के कई मुल्कों में छोटेछोटे संगठन तैयार किए थे.

उन संगठनों के जरिए एशियामध्य पूर्व और अफ्रीका में सिर्फ आतंकी हमले करवाने के साथसाथ बड़े राजनीतिक बदलावों को भी जन्म दिया. उन्हीं में एक थी अरब क्रांतिजिस ने उन सभी छोटे संगठनों को कमजोर कर दिया.

अल कायदा 11 सितंबर2001 को न्यूयार्क में किए गए हमले के बाद चर्चा में आया थाजिस की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रची गई साजिश से उस के कद और नेटवर्क के विस्तार का पता चला था. लेकिन 2001 में हुए उस हमले के बाद अल कायदा फिर से स्थानीय स्तर पर सिमटने लगा था. जल्द ही उस का दायरा और प्रभाव अफगानिस्तान तक सीमित हो गया था.

फिर भी उसे जवाहिरी को ढूंढ निकालना आसान नहीं था. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक उस पर किए गए हमले से पहले सीआईए के अधिकारियों ने उस घर का विस्तृत मौडल तैयार किया था. उस मौडल को व्हाइट हाउस में अमेरिकी राष्ट्रपति को भी दिखाया गया था.

अधिकारी इस बात से वाकिफ थे कि अल जवाहिरी को बालकनी में घूमना और बैठना पसंद है. उस मौडल को तैयार करने में महीनों का वक्त लग गया था.

इस नक्शे को तैयार करने तक पहुंचने में अमेरिकी जासूसों को सालों लगे थे. इस दौरान देश के 4 राष्ट्रपति बदल गए. तालिबान द्वारा अफगानिस्तान पर पिछले साल कब्जे के बाद उस के एक धड़े हक्कानी नेटवर्क की मदद से अल जवाहिरी के परिवार को काबुल में यह घर मिला था.

अमेरिकी जासूसों को जब उस के ठिकाने का पता चलातब हमले के वक्त उस के सही जगह पर होने के बारे में पता लगाया गया. सधी हुई और विस्तृत योजना बनाने के बाद ही बाइडेन ने इसे कार्यान्वित करने की मंजूरी दी.

योजना में यह बात कही गई थी कि हमले में सिर्फ बालकनी को नुकसान पहुंचेगा और अल जवाहिरी के अलावा घर में रह रहा कोई भी व्यक्ति प्रभावित नहीं होगा.

अप्रैल और मई में तैयारियां करने के बाद पहली जुलाई को जो बाइडेन को हमले की पूरी योजना के बारे में बताया गया. बाइडेन ने घर का मौडल देखा और सीआईए प्रमुख समेत अपने सभी सलाहकारों से रायमशविरा करने के बाद ही 25 जुलाई को इस हमले की काररवाई की मंजूरी दी थी.

अभी और बचे हैं खूंखार आतंकवादी: जवाहिरी की मौत का मतलब यह नहीं कि आतंक का खात्मा हो गया. कारणअभी और भी खूंखार आतंकी बचे हुए हैं. उन्हीं में एक है सैफ अल अदेलजो खुद को अल कायदा का उत्तराधिकारी बताता है.

अल कायदा के संस्थापक सदस्यों में सैफ अल अदेल का नाम उत्तराधिकारियों के नामों के शीर्ष में हैक्योंकि संगठन में इस की तूती बोलती है. इसे भी ओसामा बिन लादेन और अल जवाहिरी का करीबी माना जाता है.

जिस तरह से लादेन की मौत के बाद अल जवाहिरी ने अल कायदा की गद्दी संभाली थी. उसी तरह जवाहिरी की मौत के बाद आतंकी संगठन अल कायदा के अगले चीफ को ले कर भी चर्चा होने लगी है.

वैसे तो इस आतंकी संगठन में खूंखार आतंकियों की कमी नहीं हैलेकिन सैफ अल अदेल का नाम संगठन के उत्तराधिकारियों की लिस्ट में सब से ऊपर है. वैसे अल अदेल के बारे में बहुत कम लोगों को मालूम है कि वह आतंक की दुनिया का पुराना नाम है.

साल 1980 के दशक के अंत में वह आतंकवादी समूह मकतब अलखिदामत में शामिल हो गया था. यहां तक कि  9/11 आतंकी हमले में इस का भी हाथ था. वह खुद को स्वार्ड औफ जस्टिस’ (न्याय की तलवार) कहता है.

वह मिस्र की सेना का पूर्व अधिकारी रह चुका है. बताते हैं कि वह इतना खूंखार है कि एफबीआई ने उसे मोस्ट वांटेट की सूची में शामिल किया है और उस के सिर पर 10 मिलियन डालर का ईनाम भी है. यही कारण है कि जवाहिरी के मरने के बाद इसे ही अलकायदा का अगला उत्तराधिकारी माना जा रहा है.

अल अदेल 30 वर्ष की उम्र से ही कुख्यात रहा है. तब उस ने सोमालिया के मोगादिशु में 1993 के कुख्यात ब्लैक हौक डाउन’ औपरेशन को अंजाम दिया था. इस औपरेशन में 19 अमेरिकी सैनिक मारे गए थे.

इस के बाद सैनिकों के शवों को सड़क पर घसीटा गया था. 2011 में ओसामा बिन लादेन की हत्या के बाद से अल अदेल अल कायदा के भीतर एक महत्त्वपूर्ण रणनीतिकार बन गया था.

 

अल कायदा में नेतृत्व के लिए सब से आगे मिस्र का पूर्व कमांडर और ओसामा का वफादार सैफ अल अदेल का जन्म नील डेल्टा में हुआ था. करीब 22 सालों से इस आतंकी संगठन से जुड़ कर ईरान और अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा में अपना ठिकाना बदलता रहा है.

वैसे वह शिया बहुल ईरान में कई सालों तक रहा हैजबकि अलकायदा एक सुन्नी संगठन है. 2001 में कांधार में एक छापे के दौरान अमेरिकी सेना द्वारा बरामद की गई एक लिस्ट में वह 8वें नंबर पर था. इस लिस्ट में 170 लोगों का नाम था. ओसामा इस लिस्ट में सब से ऊपर था.

बताते हैं कि सैफ का शरीर चोटों के निशानों से भरा पड़ा है. उस की दाहिनी आंख के नीचे चोट की वजह से एक घाव है. उस के दाहिने हाथ पर एक चोट का निशान है और एक हाथ टूटा हुआ है. सोमालिया में अमेरिका के खिलाफ लड़ाई और गुरिल्ला युद्ध का भी वह अनुभव रखता है.

उस के सिर पर भी 5 मिलियन डालर का ईनाम थाजिसे बाद मे 10 मिलियन डालर कर दिया गया. इस की वजह नैरोबी में बमबारी और अगस्त 1998 के दार एस सलाम बम विस्फोटों में उस की कथित भूमिका थी.

इस विस्फोट में 224 लोग मारे गए थे. वह अफगानिस्तान में फारुक ट्रेनिंग कैंप का अमीर था. रम्जी यूसफजो 1993 में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए एक हमले में शामिल थाको उस का स्टूडेंट माना जाता है.

अब्देल रहमान अल मगरीबी

अलकायदा का एक और वरिष्ठ आतंकी अब्देल रहमान अल मगरीबी अल जवाहिरी का दामाद है. वह मोरक्को का रहने वाला है और कोर काउंसिल का सदस्य है. उस ने कंप्यूटर इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है. जर्मनी में सौफ्टवेयर प्रोग्रामिंग सीखने के बाद अल कायदा के मीडिया औपरेशन और इस के आधिकारिक मीडिया विंग अल साहब के नेतृत्व का काम संभाले हुए है.

अमेरिका ने उस के सिर पर 7 मिलियन डालर का ईनाम रखा है. रहमान के बारे में एफबीआई का कहना है कि 11 सितंबर2001 की घटनाओं के बादअल मगरीबी ईरान भाग गया था और शायद ईरान और पाकिस्तान के बीच आताजाता रहता है. अमेरिकी सरकार की नजर में वह अलकायदा का एक वरिष्ठ नेता  है.

अबू इखलास अल मसरी

अलकायदा के एक शीर्ष सैन्य कमांडरमसरी को अमेरिकी सेना ने अफगानिस्तान के कुनार प्रांत से अप्रैल2011 में एक छापे के दौरान पकड़ लिया था. अलकायदा के अधिकांश शीर्ष नेताओं की तरह मसरी भी मिस्र से है.

हालांकिअफगानिस्तान के लिए पहला अमीर मसरी को पिछले साल अफगान तालिबान ने जेल से मुक्त कर दिया गया. अमेरिका का दावा है कि वह कश्मीर के आतंकी समूहों से जुड़ा रहा है.

अमीन मोहम्मद अलहक साम

यह एक डाक्टर और अफगान नागरिक है. अमीन मोहम्मद उल हक साम खान ओसामा बिन लादेन का सिक्योरिटी कोऔर्डिनेटर रह चुका है. यह अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी है.

अमीन को पाकिस्तान में पकड़ लिया गया थालेकिन सबूतों के अभाव में उसे बाद में रिहा कर दिया गया. उस की रिहाई पर पश्चिमी देश नाराज हुए थे.

पिछले साल तालिबान द्वारा काबुल पर कब्जा करने के बाद वह देश के नंगरहार प्रांत में लौट आयाजहां उस का जन्म हुआ था. यहां पहुंचने पर भीड़ ने उस का जोरदार स्वागत किया था.

वह 9/11 के हमलों के बाद अमेरिका द्वारा तय किए गए 39 आतंकवादियों में से एक था. ओसामा बिन लादेन और अलकायदा के लिए विभिन्न गतिविधियों फंडिंग करनेयोजना बनाने और तैयारी करने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने उस पर प्रतिबंध लगाया हुआ है.

अपने पराए: संकट की घड़ी में किसने दिया अमिता का साथ -भाग 1

मुहल्ले में जिस ने भी सुना, उस की आंखें विस्मय से फटी की फटी रह गईं… ‘सतीश दास मर गया.’ विस्मय की बात यह नहीं कि मरियल सतीश दास मर गया बल्कि यह थी कि वह पत्नी के लिए पूरे साढ़े 5 लाख रुपए छोड़ गया है. कोई सोच भी नहीं सकता था कि पैबंद लगे अधमैले कपड़े पहनने वाले, रोज पुराना सा छाता बगल में दबा कर सवेरे घर से निकलने, रात में देर से  लौटने वाले सतीश के बैंक खाते में साढ़े 5 लाख की मोटी रकम जमा होगी.

गली के बड़ेबूढ़े सिर हिलाहिला कर कहने लगे, ‘‘इसे कहते हैं तकदीर. अच्छा खाना- पहनना भाग्य में नहीं लिखा था पर बीवी को लखपती बना गया.’’ कुछ ने मन ही मन अफसोस भी किया कि पहले पता रहता तो किसी बहाने कुछ रकम कर्ज में ऐंठ लेते, अब कौन आता वसूल करने.

जीते जी तो सभी सतीश को उपेक्षा से देखते रहे, कोई खास ध्यान न देता जैसे वह कोई कबाड़ हो. किसी से न घनिष्ठता, न कोई सामाजिक व्यवहार. देर रात चुपचाप घर आना, खाना खा कर सो जाना और सवेरे 8 बजे तक बाहर…

महल्ले में लोगों को इतना पता था कि सतीश दास थोक कपड़ों की मंडी में दलाली किया करता है. कुछ को यह भी पता था कि जबतब शेयर मार्केट में भी वह जाया करता था. जो हो, सचाई अपनी जगह ठोस थी. पत्नी के नाम साढ़े 5 लाख रुपए निश्चित थे.

आमतौर पर बैंक वाले ऐसी बातें खुद नहीं बताते, नामिनी को खुद दावा करने जाना पड़ता है. वह तो बैंक का क्लर्क सुभाष गली में ही रहता है, उसी ने बात फैला दी. अमिता के घर यह सूचना देने सुभाष निजी रूप से गया था और इसी के चलते गली भर को मालूम हो गई यह बात.

वह नातेदार, पड़ोसी, जो कभी उस के घर में झांकते तक न थे, वह भी आ कर सतीश के गुणों का बखान करने लगे. गली वालों ने एकमत से मान लिया कि सतीश जैसा निरीह, साधु प्रकृति आदमी नहीं मिलता है. अपने काम से काम, न किसी की निंदा, न चुगली, न झगड़े. यहां तो चार पैसे पाते ही लोग फूल कर कुप्पा हो जाते हैं.

अमिता चकराई हुई थी. यह क्या हो गया, वह समझ नहीं पा रही थी.

उसे सहारा देने दूर महल्ले के मायके से मां, बहन और भाई आ पहुंचे. बाद में पिताजी भी आ गए. आते ही मां ने नाती को गोद में उठा लिया. बाकी सब भी अमिता के 4 साल के बच्चे राहुल को हाथोंहाथ लिए रहते.

मां ने प्यार से माथा सहलाते हुए कहा, ‘‘मुन्नी, यों उदास न रहो. जो होना था वह हो गया. तुम्हें इस तरह उदास देख कर मेरी तो छाती फटती है.’’

पिता ने खांसखंखार कर कहा, ‘‘न हो तो कुछ दिनों के लिए हमारे साथ चल कर वहीं रह. यहां अकेली कैसे रहेगी, हम लोग भी कब तक यहां रह सकेंगे.’’

‘‘और यह घर?’’ अमिता पूछ बैठी.

‘‘अरे, किराएदारों की क्या कमी है, और कोई नहीं तो तुम्हारे मामा रघुपति को ही रख देते हैं. उसे भी डेरा ठीक नहीं मिल रहा है, अपना आदमी घर में रहेगा तो अच्छा ही होगा.’’

‘‘सुनते हो जी,’’ मां बोलीं, ‘‘बेटी की सूनी कलाई देख मेरी छाती फटती है. ऐसी हालत में शीशे की नहीं तो सोने की चूडि़यां तो पहनी ही जाती हैं, जरा सुखलाल सुनार को कल बुलवा देते.’’

‘‘जरूर, कल ही बुला देता हूं.’’

अमिता ने स्थायी रूप से मायके जा कर रहना पसंद नहीं किया. यह उस के पति का अपना घर है, पति के साथ 5 साल यहीं तो बीते हैं, फिर राहुल भी यहीं पैदा हुआ है. जाहिर है, भावनाओं के जोश में उस ने बाप के घर जा कर रहने से मना कर दिया.

सुभाषचंद्र के प्रयास से वह बैंक में मैनेजर से मिल कर पति के खाते की स्वामिनी कागजपत्रों पर हो गई. पासबुक, चेकबुक मिल गई और फिलहाल के जरूरी खर्चों के लिए उस ने 25 हजार की रकम भी बैंक से निकाल ली.

अब वह पहले वाली निरीह गृहिणी अमिता नहीं बल्कि अधिकार भाव रखने वाली संपन्न अमिता है. राहुल को नगर निगम के स्कूल से हटा कर पास के ही एक अच्छे पब्लिक स्कूल में दाखिल करा दिया. अब उसे स्कूल की बस लाती, ले जाती है.

बेटी घर में अकेली कैसे रहेगी, यह सोच कर मां और छोटी बहन वीणा वहीं रहने लगीं. वीणा वहीं से स्कूल पढ़ने जाने लगी. छोटा भाई भी रोज 1-2 बार आ कर पूछ जाता. अब एक काम वाली रख ली गई, वरना पहले अमिता ही चौका- बरतन से ले कर साफसफाई का सब काम करती थी.

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