मुझे अपनी पत्नी से बातें करने या उस की बातें सुनने में दिलचस्पी नहीं रही, मैं क्या करूं?

सवाल-

मैं 30 वर्षीय पुरुष हूं. मेरी शादी 22 वर्ष में ही हो गई थी. मेरे 2 बच्चे हैं जो अभी छोटे हैं. मेरी पत्नी गृहिणी है और घर में ही उस की जिंदगी बंधी हुई है. मैं एक मल्टीनैशनल कंपनी में नौकरी करता हूं. अपनी सोच और समझ से मेल खाती लड़कियों के बीच रहता हूं. ऐसा नहीं है कि मेरी पत्नी अच्छी नहीं है या मैं उस से प्यार नहीं करता, लेकिन मैं उस से ऊबने लगा हूं. मुझे उस का आलिंगन पसंद है, परंतु मुझे उस से बातें करने या उस की बातें सुनने में दिलचस्पी नहीं रही.

मैं ने उसे प्रत्यक्ष रूप से कह दिया है कि वह गंवार है, पर मुझे यह कहना अच्छा नहीं लगा. अब वह दुखी रहने लगी है. मैं समझ नहीं पा रहा कि उस की खुशी उसे कैसे वापस दूं?

जवाब-

आप की बातें सुन कर यह तो स्पष्ट है कि आप अपनी पत्नी की, अपनी सहकर्मियों से तुलना कर रहे हैं, जो सही नहीं है. आप की पत्नी का अपना एक अस्तित्व है जो अपनेआप में विशेष है. आप का उन्हें गंवार कहना किसी भी पृष्ठभूमि पर सही नहीं बैठता. वे आप से यदि आप की सहकर्मियों की तरह या आप की नजर में जो समझदारी की बातें हैं, नहीं करतीं तो इस का स्पष्ट कारण है कि वे उस माहौल में नहीं रहतीं जिन में आप या आप की सहकर्मी रहती हैं.

वे आप के 2 बच्चों को संभालती हैं, पूरे घर की देखरेख करती हैं और यहां तक कि आप का खयाल भी रखती हैं जबकि बदले में आप उन्हें गंवार की संज्ञा दे रहे हैं. आप उन्हें प्यार से यदि यह कहते कि वे भी सुबह अखबार पढ़ें, बाहर घूमेंफिरें, नए लोगों से मिलें और मौडर्न रहें तो शायद वे आप की अपेक्षाओं पर खरी उतरतीं.

अब आप के पास माफी मांगने के अलावा कोई रास्ता नहीं है. आप उन्हें यकीन दिलाएं कि आप अपने किए पर शर्मिंदा हैं और एक नई शुरुआत करना चाहते हैं. अपनी पत्नी के साथ घूमेंफिरें, उन्हें समय दें. उन्हें नईनई पत्रिकाएं और किताबें ला कर दें और साथ बैठ कर अच्छी फिल्में देखें. इस सब के बाद वे आप की मौडर्न सोच वाली सहेलियों से आप को बेहतर लगेंगी. फिर धीरेधीरे सबकुछ सामान्य होने लगेगा.

कांग्रेसी नेता का शक बना नासूर

6जून, 2022 का वाकया है. रात के तकरीबन 3 बजे थे. थाटीपुर के अत्यंत पौश इलाके रामनगर में सन्नाटा पसरा हुआ था. गरमी के चलते लोग घरों के भीतर एसी, कूलर चला कर गहरी नींद में सोए हुए थे. इन्हीं में एक परिवार कृष्णकांत भदौरिया का भी था, जो एक आलीशान कोठी में रहता था. इसी कोठी में उन का बेटा ऋषभ, पुत्रवधू भावना अपने 2 मासूम बच्चों के साथ रहती थी.

परिवार संपन्न और खुशहाल था, घर में किसी चीज की कोई कमी नहीं थी. कोई बड़ी डिग्री न होने के कारण ऋषभ को कोई अच्छी नौकरी नहीं मिल सकी थी, अत: वह कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ले कर नेतागिरी करने लगा था. इस के साथ ही जोड़जुगत बैठा कर पार्टी का प्रदेश प्रवक्ता तक बन बैठा था.
इस के अलावा वह वक्त गुजारने और पैसा कमाने के मकसद से प्रौपर्टी की खरीदफरोख्त का काम भी करने लगा था, इसलिए दिन में उस का वक्त घर के बाहर ही गुजरता था. ऐसी स्थिति में घर की सारी जिम्मेदारियां उस की पत्नी भावना निभाती थी. दोनों बच्चों को स्कूल भेजने के बाद घर पर भावना दिन भर अकेली रहती थी, जिस से उसे बोरियत सी होने लगी थी.

टाइम पास करने के लिए उस की सहेली ने उसे मोबाइल पर रिश्तेदारों और सहेलियों से बातचीत कर वक्त बिताने की सलाह दी. यह सलाह भावना को बेहद पसंद आई.अब भावना का ज्यादातर समय मोबाइल फोन पर बातचीत में बीतने लगा. कभीकभी वह मोबाइल फोन पर बातचीत में इतना खो जाती कि उसे पति ऋषभ की भी चिंता नहीं रहती. पति का फोन आता तो कई बार वह उठाती ही नहीं.
उधर बारबार फोन करने पर भी जब भावना काल रिसीव नहीं करती तो ऋषभ के दिल की धड़कनें बढ़ जातीं. उसे लगता कि कहीं भावना कौशलेंद्र से तो बात नहीं कर रही. यही सोच कर वह परेशान हो उठता. शहर के हर्षनगर में रहने वाला कौशलेंद्र ऋषभ के बचपन का दोस्त था.

काफी देर बाद जब वह पति को फोन लगा कर बताती कि मैं अपने पिताजी से बात कर रही थी, इसलिए आप का फोन नहीं उठा सकी तब कहीं जा कर ऋषभ को तसल्ली मिलती. ऋषभ ने भावना से स्पष्ट तौर पर कह रखा था कि 1-2 घंटी बजने के बाद वह उस का फोन जरूर उठा लिया करे, क्योंकि फोन नहीं उठने पर उसे घबराहट होने लगती है.लेकिन भावना ने ऋषभ की इस बात पर कतई ध्यान नहीं दिया. वह अपनी सहेलियों और नातेदारों से मोबाइल पर घंटों बातें करने में मशगूल रहती. इस बीच जब कभी ऋषभ का फोन आता, वह उसे कबाब में हड्डी सा लगता.

भावना की इस हरकत से ऋषभ को शक हो गया कि भावना उस से छिपा कर किसी और से बतियाती है. ऋषभ को भावना का इस तरह मोबाइल पर बतियाना जरा भी अच्छा नहीं लगता था, लेकिन भावना पति की नसीहत को जरा भी अहमियत नहीं देती थी.वह पति की बात को एक कान से सुन कर दूसरे से निकाल देती थी. वैसे भी शक की फांस बहुत खतरनाक होती है, इसे जल्द ही दूर न किया जाए तो वह मजबूत से मजबूत दांपत्य जीवन में भी दरार पैदा कर देती है.

भावना अपने दांपत्य में लगी इस फांस को गंभीरता से नहीं ले रही थी, जिस का नतीजा यह निकला कि इस बात को ले कर उस की पति से अकसर नोकझोंक होने लगी. इस की वजह यह थी कि ऋषभ घर से बाहर होने पर जब कभी भी पत्नी के मोबाइल पर फोन लगाता, हर बार उस का फोन व्यस्त ही मिलता था.

ऐसा अनेक बार होने पर ऋषभ के मन में शक बैठ गया कि वह जरूर उस के बचपन के जिगरी दोस्त कौशलेंद्र से बतियाती होगी. बाद में जब घर लौट कर ऋषभ भावना से मोबाइल फोन के बिजी होने की वजह पूछता तो वह कह देती कि सहेली से बात कर रही थी. इस तरह ऋषभ के मन में शक की जो फांस लगी थी, वह नासूर बनती जा रही थी.

धीरेधीरे भावना और ऋषभ के बीच दूरियां बढ़ती चली जा रही थीं, जिस की वजह से ऋषभ उखड़ाउखड़ा सा रहता था. इस तनाव की वजह से पतिपत्नी के बीच शारीरिक संबंध नाममात्र के थे. दूरियां बढ़ने की अहम वजह सिर्फ इतनी थी कि ऋषभ अपनी पत्नी पर शक करने लगा था कि उस का झुकाव कहीं उस के बचपन के मित्र कौशलेंद्र की ओर है.इसी शक के चलते उसे जब भी मौका मिलता, वह पत्नी के मोबाइल की काल हिस्ट्री चैक करता रहता था. कोई भी नंबर उसे अनजान लगता तो वह उसे ले
कर भावना के साथ झगड़ा और मारपीट करता था.

इन सब के पीछे एक खास वजह यह भी थी कि वह यह भी समझ चुका था कि उस की हकीकत पत्नी के सामने खुल चुकी है. यानी वह उस की आपराधिक छवि को भी जान चुकी है.भावना को जैसे ही पता चला कि उस का पति आपराधिक छवि का है तो उस के दिल को काफी ठेस पहुंची. उस ने पति को समझाने की भरसक कोशिश की कि वह गुनाह के रास्ते छोड़ कर अच्छे रास्ते पर चले, पर वह भावना की बात को महत्त्व नहीं देता था. जब भावना यही बात बारबार कहती तो वह उस की पिटाई कर देता.
भावना पति के तुनकमिजाज और शक्की स्वभाव से आजिज आ कर अकसर गुस्से में दोनों बच्चों को ले कर मायके चली जाती थी और अपने पिता महेश सिंह को सारी बात बता देती थी.

बेटी की बात सुन कर महेश सिंह को काफी आघात पहुंचता था, तब महेश सिंह नाराज होते हुए दामाद ऋषभ को कड़ी फटकार लगाते थे. ऐसा कई बार हुआ था. हालांकि इस के बाद भी महेश सिंह 10-15 दिन बाद ही बेटी को समझाबुझा कर ससुराल भेज देते थे.6 जून, 2022 की रात को भी ऋषभ और भावना के बीच कहासुनी हुई. भावना ने पति को समझाने की भरसक कोशिश की, लेकिन ऋषभ उस पर कुछ ज्यादा ही भड़क गया. उन दोनों के बीच तकरार इतनी ज्यादा बढ़ गई कि उसी दौरान ऋषभ ने पत्नी पर पिस्टल तान दी.

भावना समझ गई कि पति के सिर पर खून सवार है, वह बचने के लिए बैडरूम से बाहर निकल कर लान की तरफ भागी. वह चीखती, उस के पहले ही ऋषभ ने उस के सिर को निशाना बना कर फायर कर दिया. वह इतना ज्यादा गुस्से में था कि रिश्तों की गहराई और परिवार की मर्यादा को भूल कर एक के बाद एक 3 गोलियां पत्नी के सिर में मार दीं.गोलियां लगने से भावना लान में ही ढेर हो गई. इस के बाद वह हथियार और अपनी जरूरत का सामान ले कर वहां से फरार हो गया. ऋषभ ने अनायास ही एक ऐसी घटना को अंजाम दे डाला, जिसे देख कर हर किसी का कलेजा कांप उठा.

रात 3 बजे जब इलाके के सभी लोग सो रहे थे, तभी चीखनेचिल्लाने के शोर से लोगों की आंखें खुल गईं. शोरगुल सुन कर घबराए लोग अपनेअपने घरों से बाहर आए तो कृष्णकांत भदौरिया को बदहवास हाल में रोतेबिलखते देख कर हैरान रह गए.वह ऋषभ के दोनों मासूम बच्चों की अंगुली पकड़े हुए जोरजोर से रोते हुए कह रहे थे, ‘‘मेरी मदद करो, मेरे बेटे ऋषभ ने अपनी पत्नी भावना की गोली मार कर हत्या कर दी है.’’

कृष्णकांत भदौरिया जो कुछ कह रहे थे, उसे सुन कर लोगों के होश उड़ गए.इसी दौरान किसी ने पुलिस को इस घटना की सूचना दे दी. कुछ देर में वहां थाना थाटीपुर पुलिस भी आ गई. पुलिस के आने पर कुछ लोग हिम्मत कर के उन की आलीशान कोठी में दाखिल हुए तो वहां की स्थिति देख कर उन सभी की आंखें हैरत से फटी रह गईं. भावना की लाश कोठी में कमरे के बाहर लान में खून से लथपथ पड़ी हुई थी.
हत्या का मामला था, अब तक पूरी रामनगर सोसाइटी के लोग घटनास्थल पर एकत्रित हो चुके थे. इस बीच ऋषभ के पिता कृष्णकांत भदौरिया ने घटना की सूचना अपने समधी महेश सिंह को दे दी.

मामला शहर के पौश इलाके रामनगर के रहने वाले बहुचर्चित कांग्रेसी नेता से जुड़ा हुआ था, जिस में उस ने अपनी पत्नी भावना की गोली मार कर निर्मम हत्या कर दी थी. हत्या कर के वह फरार हो गया था. सीएसपी ऋषिकेश मीणा और टीआई पंकज त्यागी घटनास्थल पर जांच कर रहे थे.
थोड़ी देर बाद ही एडिशनल एसपी (क्राइम) राजेश दंडोतिया फोरैंसिक एक्सपर्ट व डौग स्क्वायड की टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए थे.

पुलिस अधिकारियों ने भी घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया और क्राइम सीन को समझा. पुलिस टीम के पहुंचने तक रामनगर के बाशिंदे काफी बड़ी संख्या में भदौरिया के घर के सामने जुट गए थे. सभी लोग भावना के मासूम बच्चों के बारे में सोचसोच कर परेशान थे.
इधर हत्यारे के पिता कृष्णकांत भदौरिया की हालत सदमे के कारण कुछ ज्यादा ही खराब हो रही थी. पड़ोसी उन्हें सांत्वना दे कर जैसेतैसे संभाल रहे थे.

पुलिस ने घटनास्थल की औपचारिक काररवाई निपटाने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी.
पुलिस को यह तो पता लग ही चुका था कि भावना की हत्या उस के पति ऋषभ ने की है. इसलिए ऋषभ के खिलाफ उस के सुसर महेश सिंह की तहरीर पर थाना थाटीपुर में धारा 302 भादंवि के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली.मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस ने हत्यारोपी कांग्रेसी नेता ऋषभ पर 10 हजार रुपए का ईनाम घोषित कर दिया. इस के बाद पुलिस ने उस की तलाश शुरू कर दी थी.

इसी बीच एसपी अमित सांघी को मुखबिर के जरिए सूचना मिली कि पत्नी की हत्या के मामले में फरार चल रहे ऋषभ भदौरिया को उत्तर प्रदेश के जिला मैनपुरी के बेवर कस्बे में देखा गया है.यह सूचना मिलने के बाद एसपी ने बिना देर किए एडिशनल एसपी (क्राइम) राजेश दंडोतिया के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में क्राइम ब्रांच इंसपेक्टर संतोष यादव व थाटीपुर टीआई पंकज त्यागी को शामिल किया गया. उन्होंने टीम मैनपुरी रवाना कर दी.

आखिर पुलिस टीम द्वारा ऋषभ भदौरिया को हत्या के 21 दिन बाद उस के ही रिश्तेदार के घर से हिरासत में ले लिया गया. वह अपने रिश्तेदार के घर पर रह कर फरारी काट रहा था.उस ने बताया कि पुलिस द्वारा उस की गिरफ्तारी पर 10 हजार का ईनाम घोषित किए जाने के बाद से उसे एनकाउंटर का भय सता रहा था. पुलिस टीम उसे बेवर से ग्वालियर ले आई. उस की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त पिस्टल व खून से सने कपड़े भी बरामद कर लिए.

इस के अलावा पुलिस ने उस के पास से वह क्रेटा कार भी बरामद कर ली, जिस में बैठ कर वह पत्नी की हत्या के बाद फरार हुआ था.प्रारंभिक जांच में ही पुलिस को पता चला कि 10 मई, 2022 की रात को भी ऋषभ ने अपने बचपन के जिगरी दोस्त कौशलेंद्र कुशवाहा पर 5 राउंड फायर किए थे. ऋषभ के खौफ के चलते वह थाने में रिपोर्ट लिखवाने का साहस नहीं जुटा सका था. लेकिन जैसे ही ऋषभ अपनी पत्नी को मार कर फरार हुआ और उस पर ईनाम घोषित हुआ तो हर्ष नगर निवासी कौशलेंद्र कुशवाहा थाने में रिपोर्ट लिखवाने पहुंच गया था.

हत्या के आरोपी कांग्रेसी नेता ऋषभ भदौरिया पर पहले से हत्या व हत्या के प्रयास सहित 14 मामले दर्ज हैं.उस के खिलाफ 2 बार जिला बदर की काररवाई भी की गई थी. अब पुलिस उस पर एनएसए लगाने की तैयारी में लगी हुई थी.ऋषभ को सुंदर और सुशील पत्नी मिली थी. सुसराल भी अच्छी थी. 2 सुंदर बच्चे भी थे. लेकिन शक के नासूर ने उस की बसीबसाई गृहस्थी को उजाड़ कर रख दिया. पत्नी को मार कर वह जेल चला गया, जिस से उस के मासूम बच्चे अनाथ हो गए.

ऋषभ के अपराध स्वीकार करने के बाद पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक ऋषभ भदौरिया के
दोनों बच्चे अपने नाना महेश सिंह के
पास थे.

पिता का दोस्त : भाग 1

उस दिन 22 अप्रैल, 2022 की तारीख थी और सुबह के 10 बज रहे थे. जिला न्यायालय, सोनीपत (हरियाणा) केअधिकांश वकील अपनेअपने चैंबर में आ चुके थे और उस दिन की मुकदमे की समरी अपनी डायरी खोल कर पढ़ रहे थे. उन वकीलों में एक नाम अमरीश कुमार का भी शुमार था.
उस दिन की तारीख में अमरीश कुमार के खास मुवक्किल वेदप्रकाश आंतिल की गवाही होनी थी. अदालत में उस की पत्नी कनिका की हत्या के मुकदमे की तारीख पड़ी थी. अदालत परिसर में मुकदमे से संबंधित गवाहों के नाम पुकार का समय होने वाला था, इसलिए अमरीश कुमार मुकदमे की फाइल पर सरसरी निगाह डाल अपने मुवक्किल वेदप्रकाश आंतिल को साथ ले कर कोर्ट की ओर निकले. परिसर मुवक्किलों और प्राइवेट गाडि़यों से भरा हुआ था.

एडवोकेट अमरीश कुमार तेज कदमों से आगे बढ़ रहे थे. उन के पीछेपीछे वेदप्रकाश भी चल रहा था. जैसे ही वह चैंबर से निकल कर कुछ दूर आगे बढ़ा था, अचानक से गोली चलने की आवाज आई. उसे ही निशाना साध कर किसी ने गोली चलाई थी. गोली उस के बहुत पास से हो कर एक कार के पिछले शीशे में जा धंसी थी.अभी वेदप्रकाश कुछ समझ पाता, तब तक देखा 2 युवक सामने पिस्टल ताने खड़े थे. उन्होंने उस पर गोलियां दाग दीं. 2 गोलियां उस के सीने में जा धंसीं और वह घायल हो कर जमीन पर गिर कर तड़पने लगा.

गोलियों की आवाज सुन कर वकील अमरीश कुमार पलटे तो देखा उस के मुवक्किल को 2 युवक गोली मार कर बाइक से भाग रहे थे. उन्होंने हमलावरों की बाइक रोकने की कोशिश की, लेकिन वह रोक नहीं पाए. हमलावर उन पर भी पिस्टल ताने भीड़ को चीरते हुए वहां से निकल गए.गोली चलते ही अदालत परिसर में अफरातफरी मच गई थी. लोग एकदूसरे से धक्कामुक्की करते हुए भाग रहे थे. फिलहाल गोली से घायल वेदप्रकाश को लादफांद कर जिला अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने देखते ही उसे मृत घोषित कर दिया था.

घटना की सूचना मिलते ही नवागत एसपी हिमांशु गर्ग, एएसपी निकिता खट्टर, डीएसपी विपिन कादियान और सिटी थाने के इंसपेक्टर वजीर सिंह घटनास्थल पर पहुंच कर मौके का जायजा लेने में व्यस्त हो गए थे.घटनास्थल से फायरशुदा 3 खोखे बरामद किए गए. पुलिस ने उन्हें साक्ष्य के तौर पर अपने कब्जे में ले लिया. पते की बात यह रही कि जिला मुख्यालय परिसर के मुख्यद्वार पर एसएलआर हथियार लिए पुलिसकर्मी खड़ा मूकदर्शक बना रहा, उस ने बदमाशों से टक्कर लेने की कोशिश तनिक भी नहीं की थी.

सुरक्षाकर्मी ने तनिक भी सक्रियता दिखाई होती तो बदमाश पकड़े जा सकते थे, लेकिन वे अपना टारगेट पूरा कर के मौके से फरार हो गए थे.उधर वेदप्रकाश की हत्या की खबर जैसे ही घर वालों को मिली, घर में रोनापीटना शुरू हो गया था. छोटा भाई विनय प्रकाश सरकारी अस्पताल पहुंचा, जहां वेदप्रकाश की लाश रखी हुई थी. पुलिस ने लाश अपने कब्जे में ले कर जरूरी काररवाई पूरी की. फिर वह पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी.

कागजी खानापूर्ति के बाद इंसपेक्टर वजीर सिंह सिटी थाना पहुंचे. मृतक के छोटे भाई विनय से लिखित तहरीर ले कर अज्ञात हमलावरों के खिलाफ भादंवि की धारा 302 एवं आर्म्स एक्ट के तहत मुकदमा पंजीकृत कर के जांच शुरू कर दी.

पुलिस की जांचपड़ताल में शक के दायरे में सोनीपत जेल में सलाखों के पीछे कैद दोस्त से ससुर बने विजयपाल का नाम आया. विजयपाल उसे कनिका की हत्या में गवाही देने से रोक रहा था.
उस ने वेदप्रकाश को धमकी दी थी कि तेरी वजह से मुझे जेल जाना पड़ा. तेरी वजह से बेटी की हत्या करनी पड़ी थी और तेरी ही वजह से मेरा घरपरिवार बरबाद हुआ था. अगर तू बेटी की हत्या की गवाही देना बंद कर दे तो हम तेरी जान बख्श देंगे, नहीं तो तेरी जान लेने में तनिक भी संकोच नहीं होगा.
वेदप्रकाश ने भी विजयपाल को दोटूक जवाब दिया था, ‘‘आप से जो बन पड़े, कर लें. मैं गवाही देने आऊंगा और पत्नी को इंसाफ दिलाने के लिए अगर मुझे सूली पर चढ़ना भी पड़े तो वह भी करने के लिए तैयार हूं. मगर गवाही देने से पीछे नहीं हटूंगा.’’

पुलिस को जब यह बात पता चली तो केस का इतिहास भूगोल समझने में ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी थी. वेदप्रकाश आंतिल हत्याकांड बिलकुल साफ हो चुका था. पत्नी की हत्या
की गवाही देने से रोकने के लिए हीहत्या करवाई गई थी कि न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी.
पुलिस ने जेल में बंद विजयपाल को प्रोडक्शन वारंट पर ले कर हत्या की पूछताछ करने की योजना बनाई ताकि तसवीर का रुख साफ हो सके कि घटना को अंजाम देने वाले शूटर कौन थे. उन के पास असलहे कहां से आए.वैसे, वेदप्रकाश आंतिल हत्याकांड की कहानी 24 नवंबर, 2020 को ही लिख दी गई थी, जब उस ने दोस्त की इज्जत की धज्जियां उड़ाते हुए बेटी समान कनिका के गले में फूलों का हार डाल मंदिर में सात फेरे लिए थे.

कनिका भी पिता की जगहंसाई में बराबर की हिस्सेदार थी. बाप की उम्र के व्यक्ति को जीवनसाथी चुनने में उस ने जरा भी संकोच नहीं किया. घर वालों की इज्जत की परवाह किए बिना उस ने वेदप्रकाश आंतिल के साथ घर बसा लिया.19 वर्षीया कनिका विजयपाल की बेटी थी. सोनीपत के मुकीमपुर गांव में विजयपाल अपने परिवार के साथ रहता था. यह गांव थाना राई के अंतर्गत पड़ता है.कुल 5 सदस्यों का विजयपाल का परिवार था, जिन में पतिपत्नी और 3 बच्चे थे. उस की बेटी कनिका बच्चों में सब से बड़ी और समझदार थी, जबकि 2 बेटे कनिका से छोटे थे. अपनी छोटी सी दुनिया में वह बेहद खुश था. विजयपाल के घर में सभी आधुनिक सुखसुविधाएं थीं. उस के घर में किसी चीज की कमी नहीं थी.
परिवार की जीविका चलाने के लिए उस के पास खेती की जमीन थी. उन खेतों में इतनी फसल पैदा हो जाती थी कि अपने खाने के लिए रखने के बाद बचे हुए अनाज को बाजार में बेच कर आमदनी कर लेता था. उसी आमदनी से मजे से घर का खर्च चलता था और बच्चों की अच्छी शिक्षा भी उन्हीं पैसों से पूरी होती थी.

विजयपाल के मकान से 2-4 मकान आगे वेदप्रकाश आंतिल रहता था. वह विजयपाल का लंगोटिया यार था. लंगोटिया यार के साथ वह उस का सगा पट्टीदार था.लेकिन दोनों के बीच पट्टीदार कम दोस्ताना रिश्ता ज्यादा चलता था, इसलिए उन दोनों की एकदूसरे के घरों के भीतर तक पहुंच थी. विजयपाल वेदप्रकाश के वहां चायपानी पीता था तो वेदप्रकाश विजयपाल के वहां उठताबैठता, खातापीता और सो जाया करता था.

तब विजयपाल की बेटी कनिका बहुत छोटी थी. अकसर वह वेदप्रकाश की गोद में जा कर बैठ जाया करती थी. बड़े लाड़प्यार से वह कभी उस के सिर पर हाथ फेरता था तो कभी उस के गालों पर थपकियां दे कर उस पर अपना प्यार लुटाता था.उसे कनिका चाचाचाचा कह कर पुकारती थी. वेदप्रकाश को देख कर कनिका खुश हो जाया करती थी. वह भी तो पिता के समान दोस्त के बच्चों पर अपना प्यार बरसाता था.

तब कौन जानता था कि पिता के समान कनिका पर प्यार लुटाने वाला वह शख्स अपना चरित्र पापी शैतान के हाथों गिरवी रख, एक दिन पति बन कर उस पर अपना अधिकार जमा लेगा. वह कनिका की और अपनी मौत का कारण बनेगा. यही नहीं विजयपाल का हंसताखेलता परिवार उजड़ जाएगा और उस की जिंदगी नरक से भी ज्यादा बदतर बन जाएगी.विजयपाल की बेटी का जहां 15वां वसंत लगा तो उस के अंगअंग का विकास हो चुका था. उस के अंगअंग से जवानी की खुशबू महक रही थी. सुंदर और गोरीचिट्टी तो वह थी ही. गांव के आशिकों की नजर जब उस पर पड़ती तो वो आहें भरने से नहीं रोक पाते थे.

किंतु एक ऐसा भी भौंरा था, जो इस के इर्दगिर्द मंडरा रहा था, बरसों से कालीकाली जुल्फों के बीच कैद जिस ने उस के दिल में अपना घर बना लिया था. वह कोई और नहीं बल्कि वेदप्रकाश आंतिल था, कनिका के पिता विजयपाल के बचपन का लंगोटिया दोस्त, जो उम्र में कनिका से ढाई गुना बड़ा था.
वेदप्रकाश की गिरफ्त में कनिका पूरी तरह से आ चुकी थी. उस के दिल के बगीचे में वेदप्रकाश नामक आशिक बैठ चुका था.

मुकम्मल तौर पर वेदप्रकाश ने कनिका को अपने दिल के शीशे में उतार लिया था तो कनिका भी अपने दिल के कोरे कागज पर प्यार की रोशनाई से वेदप्रकाश का नाम लिख चुकी थी. टूट कर प्यार करती थी वह उस से. वेदप्रकाश भी महासागर की गहराइयों से भी ज्यादा गहरा प्यार करता था. मोहब्बत की आग दोनों के दिलों में बराबर लगी हुई थी.

उलझन : शीला जीजी क्यों ताना मार रही थी-भाग 2

मैं अवाक् रह गई. अनजाने में वह कितना बड़ा सत्य कह गई थी, वह नहीं जानती थी. सचमुच इन के कोई दोस्त नहीं वरन दफ्तर के साथी रमाशंकर की बहन और बहनोई आ रहे थे रश्मि को देखने.

लेकिन बेटे वालों के जितने नाजनखरे होते हैं, उस के हिसाब से कितनी बार यह नाटक दोहराना पड़ेगा, कौन जानता है. और लाड़दुलार में पली, पढ़ीलिखी लड़कियों का मन हर इनकार के साथ विद्रोह की जिस आग से भड़क उठता है, मैं नहीं चाहती थी, मेरी सीधीसादी सांवली सी बिटिया उस आग में झुलस कर अभी से किसी हीनभावना से ग्रस्त हो जाए.

इसी वजह से वह जितनी सहज थी, मैं उतनी ही घबरा रही थी. कहीं उसे संदेह हो गया तो…

भारतीय परंपरा के अनुरूप हमारे माननीय अतिथि पूरे डेढ़ घंटे देर से आए. प्रतीक्षा से ऊबे रश्मि और आशु अपने पिता पर अपनी खीज निकाल रहे थे, ‘‘रमाशंकर चाचाजी ने जरूर आप का अप्रैल फूल बनाया है. आप हैं भी तो भोले बाबा, कोई भी आप को आसानी से बुद्धू बना लेता है.’’

‘‘नहीं, बेटा, रमाशंकरजी अकेले होते तो ऐसा संभव था, क्योंकि वह अकसर ऐसी हरकतें किया करते हैं. पर उन के साथ जो मेहमान आ रहे हैं न, वे ऐसा नहीं करेंगे. नए शहर में पहली बार आए हैं इसलिए घूमनेघामने में देर हो गई होगी. पर वे आएंगे जरूर…’’

‘‘मान लीजिए, पिताजी, वे लोग न आए तो इतनी सारी खानेपीने की चीजों का क्या होगा?’’ रश्मि को मिठाई और मेहनत से बनाई कचौरियों की चिंता सता रही थी.

‘‘अरे बेटा, होना क्या है. इसी बहाने हमतुम बैठ कर खाएंगे और रमाशंकरजी और अपने दोस्त को दुआ देंगे.’’

बच्चों को आश्वस्त कर इन्होंने खिड़की का परदा सरका कर बाहर झांका तो एकदम हड़बड़ा गए.

‘‘अरे, रमाशंकरजी की गाड़ी तो खड़ी है बाहर. लगता है, आ गए हैं वे लोग.’’

‘‘माफ कीजिए, राजकिशोरजी, आप लोगों को इतनी देर प्रतीक्षा करनी पड़ी, जिस के लिए हम बेहद शर्मिंदा हैं,’’ क्षमायाचना के साथसाथ रमाशंकरजी ने घर में प्रवेश किया, ‘‘पर यह औरतों का मामला जहां होता है, आप तो जानते ही हैं, हमें इंडियन स्टैंडर्ड टाइम पर उतरना पड़ता है.’’

वह अपनी बहन की ओर कनखियों से देख मुसकरा रहे थे, ‘‘हां, तो मिलिए मेरी बहन नलिनीजी और इन के पति नरेशजी से, और यह इन के सुपुत्र अनुपम तथा अनुराग. और नलिनी बहन, यह हैं राजकिशोरजी और इन का हम 2, हमारे 2 वाला छोटा सा परिवार, रश्मि बिटिया और इन के युवराज आशीष.’’

‘‘रमाशंकरजी, हमारे बच्चों को यह गलतफहमी होने लगी थी कि कहीं आप भूल तो नहीं गए आज का कार्यक्रम,’’ सब को बिठा कर यह बैठते हुए बोले.

रमाशंकरजी ने गोलगोल आंख मटकाते हुए आशु की तरफ देखा, ‘‘वाह, मेरे प्यारे बच्चो, ऐसी शानदार पार्टी भी कोई भूलने की चीज होती है भला? अरे, आशु बेटा, दरवाजा बंद कर लो. कहीं ऐसा न हो कि इतनी अच्छी महक से बहक कर कोई राह चलता अपना घर भूल इधर ही घुस आए,’’ अपने चिरपरिचित हास्यमिश्रित अभिनय के साथ जिस नाटकीय अदा से रमाशंकरजी ने ये शब्द कहे उस से पूरा कमरा ठहाकों से गूंज गया.

प्रतीक्षा से बोझिल वातावरण एकाएक हलका हो गया था. बातचीत आरंभ हुई तो इतनी सहज और अनौपचारिक ढंग से कि देखतेदेखते अपरिचय और दूरियों की दीवारें ढह गईं. रमाशंकरजी का परिवार जितना सभ्य और सुशिक्षित था, उन के बहनबहनोई का परिवार उतना ही सुसंस्कृत और शालीन लगा.

चाय पी कर नलिनीजी ने पास रखी अटैची खोल कर सामान मेज पर सजा दिया. मिठाई के डब्बे, साड़ी का पैकेट, सिंदूर रखने की छोटी सी चांदी की डिबिया. फिर रश्मि को बुला कर अपने पास बिठा कर उस के हाथों में चमचमाती लाल चूडि़यां पहनाते हुए बोलीं, ‘‘यही सब खरीदने में देर हो गई. हमारे नरेशजी का क्या है, यह तो सिर्फ बातें बनाना जानते हैं. पर हम लोगों को तो सब सोचसमझ कर चलना पड़ता है न? पहलीपहली बार अपनी बहू को देखने आ रही थी तो क्या खाली हाथ झुलाती हुई चली आती?’’

‘‘बहू,’’ मैं ने सहसा चौंक कर खाने के कमरे से झांका तो देखती ही रह गई. रश्मि के गले में सोने की चेन पहनाते हुए वह कह रही थीं, ‘‘लो, बेटी, यह साड़ी पहन कर आओ तो देखें, तुम पर कैसी लगती है. तुम्हारे ससुरजी की पसंद है.’’

रश्मि के हाथों में झिलमिलाती हुई चूडि़यां, माथे पर लाल बिंदी, गले में सोने की चेन…यह सब क्या हो रहा है? हम स्वप्न देख रहे हैं अथवा सिनेमा का कोई अवास्तविक दृश्य. घोर अचरज में डूबी रश्मि भी अलग परेशान लग रही थी. उसे तो यह भी नहीं मालूम था कि उसे कोई देखने आ रहा है.

हाथ की प्लेटें जहां की तहां धर मैं सामने आ कर खड़ी हो गई, ‘‘क्षमा कीजिए, नलिनीजी, हमें भाईसाहब ने इतना ही कहा था कि आप लोग रश्मि को देखने आएंगे, पर आप का निर्णय क्या होगा, उस का तो जरा सा भी आभास नहीं था, सो हम ने कोई तैयारी भी नहीं की.’’

‘‘तो इस में इतना परेशान होने की क्या बात है, सरला बहन? बेटी तो आप की है ही, अब हम ने बेटा भी आप को दे दिया. जी भर के खातिर कर लीजिएगा शादी के मौके पर,’’ उन का चेहरा खुशी के मारे दमक रहा था, ‘‘अरे, आ गई रश्मि बिटिया. लो, रमाशंकर, देख लो साड़ी पहन कर कैसी लगती है तुम्हारी बहूरानी.’’

‘‘हम क्या बताएंगे, दीदी, आप और जीजाजी बताइए, हमारी पसंद कैसी लगी आप को? हम ने हीरा छांट कर रख दिया है आप के सामने. अरे भई, अनुपम, ऐसे गुमसुम से क्यों बैठे हो तुम? वह जेब में अंगूठी क्या वापस ले जाने के इरादे से लाए हो?’’ रमाशंकरजी चहके तो अनुपम झेंप गया.

‘‘हमारी अंगूठी के अनुपात से काफी दुबलीपतली है यह. खैर, कोई बात नहीं. अपने घर आएगी तो अपने जैसा बना लेंगे हम इसे भी,’’ नलिनीजी हंस दीं.

पर मैं अपना आश्चर्य और अविश्वास अब भी नियंत्रित नहीं कर पा रही थी, ‘‘वो…वो…नलिनीजी, ऐसा है कि आजकल लड़के वाले बीसियों लड़कियां देखते हैं…और इनकार कर देते हैं…और आप…?

‘‘हां, सरला बहन, बड़े दुख की बात है कि संसार में सब से महान संस्कृति और सभ्यता का दंभ भरने वाला हमारा देश आज बहुत नीचे गिर गया है. लोग बातें बहुत बड़ीबड़ी करते हैं, आदर्श ऊंचेऊंचे बघारते हैं, पर आचरण ठीक उस के विपरीत करते हैं.

 

गरीबों के बच्चों के साथ नाइंसाफी

एक तरफ तो सरकार ने लगभग पूरे देश में पढ़ाई को निजी हाथों में दे कर बेहद महंगा बना दिया और दूसरी तरफ गरीबों की हाय को बंद कराने के नाम पर उन्हें ईडब्लूएस कोटे में 25 फीसदी सीटें दिलवा दीं. निजी स्कूल इन सीटों पर बच्चों को नहीं लेना चाहते क्योंकि एक तो इन बच्चों से फीस नहीं मिलती और दूसरे इन फटेहाल बच्चों से ऊंचे घरों से आए बच्चों की शान घटती है.

क्योंकि ईडब्लूएस कोटा हर स्कूल में हैइसे लागू न करने के बहाने ढूंढ़े जाते हैं और पते को वैरीफाई करना उन में से एक है. मेधावी पर ?ाग्गीझोंपड़ी में रहने वाले बच्चों के पते पक्के नहीं होते. जिस ?ाग्गी में वे रहते हैंवह कब टूट जाएकब इलाके का दादा उन्हें निकाल फेंके या कब मां या बाप की नौकरी छूट जाए और उन्हें मकान बदलना पड़ेकहा नहीं जा सकता. सही पता न होना एक बहाना मिल गया है स्कूलों को इन ईडब्लूएस (इकोनौमिकली वीकर सैक्शन) बच्चों को एडमिशन न देने का.

असल में बात यह है कि कोई नेताकोई अफसरकोई स्कूल मालिक नहीं चाहता कि नीची जातियों के बच्चे उन के स्कूलों में आएं. वे एक तो उन जातियों से आते हैं जिन्हें अछूत माना जाता रहा है और दूसरे वे बातबात पर स्कूल के प्रोग्रामों के लिए पैसे नहीं दे सकते. संगमरमर के फर्श पर वे सीमेंट का पैच लगते हैं और सब को चुभते हैं. अमीर घरों के बच्चों को इन गरीब बच्चों को परेशान करने के लिए भी लगाया जाता है पर चूंकि दमखम में ये हट्टेकट्टे होते हैंकई बार उग्र हो उठते हैं और हंगामा खड़ा कर देते हैंतो पते का बहाना बड़ा मौजूं है.

दिल्ली सरकार ने एक मामले में कोर्ट को कहा कि पते के नाम पर स्कूल एडमिशन देने से इनकार या पहले दिया एडमिशन रद्द नहीं कर सकता पर स्कूल के वकील अड़े हुए हैं कि पता जांचने का हक उन के पास है. यह तो उन इक्केदुक्के मामलों में है जिन में एडमिशन न देने या कैंसिल करने पर गरीब बच्चे के मांबाप कोर्ट चले गए. आमतौर पर तो उन के पास न अक्ल होती हैन पैसे कि अदालत में जाया जा सकता है.

इन मांबाप को मालूम है कि अदालत तो फैसला देने में 4-5 साल लगा देती है और इतने में उन का बच्चा स्कूल की राह देखता हुआ जवान हो जाएगाइसलिए वे चुपचाप सरकारी स्कूल में चले जाते हैं या घर बैठ जाते हैं.

सरकारी स्कूल वह मशीन है जहां गरीबों के बच्चों को उन की सही औकात बताई जाती है. यहां अध्यापक पढ़ाने नहींकमाने आते हैं या जाति का जहर घोलने. यहां हर टीचर द्रोणाचार्य होता है जो एकलव्य को हुनर सीखने नहीं देना चाहता या वह पंडित होता है जिस ने शंबूक के वेद पढ़ने पर एतराज जताया था.

पहला मामला महाभारत का है और दूसरा रामायण का. दोनों ग्रंथों में हिंदुओं के तरहतरह के भगवान हैं और सरकारी स्कूलों के टीचर निजी स्कूलों के टीचरों की तरह इन धर्मग्रंथों के हुक्म की तामील ही करते हैं– कुछ भी हो जाएनीची जाति के लोगों के बच्चों को पढ़ने न दो. वे भगवा ?ांडा उठा लेंकांवड़ उठा लेंहिंदुत्व के नाम पर किसी का भी सिर फोड़ देंसही है पर पढ़ लेंछीछी घोर कलयुग.

आज का हिंदुत्व असल में मुसलमानों के खिलाफ नहीं दलितों और शूद्रों के खिलाफ है. हिंदुत्ववादी जानते हैं कि मुसलमान तो मदरसों के चक्कर में पढ़लिख नहीं रहे और वे दलितों व शूद्रों को भी पढ़ने नहीं देना चाहतेइसलिए स्कूलों ने पढ़ाने या एडमिशन न देने के रोज नएनए बहाने ढूंढ़ लिए हैं.  

नागिन 6: लीप के बाद बदला तेजस्वी का लुक, वायरल हुआ वीडियो

एकता कपूर का सुपर नैचुरल शो नागिन 6 की रेटिंग लगातार गिरती ही जा रही है. हाल ही में खबर आई थीं की इस शो को अब बंद कर दिया जाएगा. जिसके बाद से चैनल ने इस शो को एक और मौका दिया.

जैसे ही एकता कपूर को शो का एक्सटेंशन मिला उन्होंने शो को हिट बनाने का सोचा और अब शो में 20 साल का लीप आने वाला है. एकता कपूर ने शो को हिट बनाने का ठान ली हैं. लीप के बाद से तेजस्वी  प्रकाश प्रथा की बेटी का किरदार निभाएंगी.इसी बीच एकता कपूर ने नागिन 6 के लोगों को शानदार तोहफा दे डाला है.

 

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एकता कपूर ने तेजस्वी का एक नया लुक दे दिया है. फैंस को तेजस्वी के नए लुक की झलक पसंद आ रही है. इस वीडियो में तेजस्वी प्रकाश एक नए लुक में नजर आ रही हैं.

तेजस्वी ने खुलासा किया कि उनके लिए ढ़ेर सारी ड्रेस भेज हैं एकता जिससे उनका परफेक्ट लुक दिख सके. एकता कपूर एकदम से एथनिक लग रही हैं.  अपने नए लुक को परफेक्ट बनाने के लिए तेजस्वी ने नाक में नोज पिन पहना हुआ है. जिसमें वह बलां की खूबसूरत लग रही हैं. इसमें प्रतीक सहजपाल और तेजस्व प्रकाश एक साथ काम करने वाले हैं. इसी के साथ आपको ये भी बता दें कि प्रतीक और तेजस्वी बिग बॉस के घर में लड़ाई भी किए थें. जो काफी ज्यादा चर्चा में बा हुआ था.

नागिन 6 में लीप के बाद प्रथा की बेटी की एंट्री होने वाली है. प्रथा कि बेटी को अपने अतीत के बारे में पता चलेगा. देखते है कि इस बार कहानी में क्या ट्विस्ट आने वाला है.

 

उर्फी जावेद को फोन पर मिली ये धमकी, जानें मामला

उर्फी जावेद एक ऐसा नाम है जो हमेशा अपने ड्रेस को लेकर चर्चा में बनी रहती हैं लेकिन इस बार उर्फी अपनी ड्रेस को लेकर नहीं बल्कि अपने एक पोस्ट को लेकर चर्चा में आ गई हैं, उर्फी जावेद ने अपने एक पोस्ट में बताया था कि उन्हें एक आदमी हैरेस कर रहा है.

जिसके बाद से उन्होंने इस पोस्ट को शेयर किया है, उर्फी जाबेद ने आबेद आफरीदी नाम के लड़के को हाल ही में गिरफ्तार करवाया है. जिसके बाद से उनकी चर्चा बी टाउन में जमकर हो रही है. इन सभी के बीच उर्फी जावेद को पोस्ट हटाने की धमकी भी दी जा रही है.

आबेद अफरीदी और उसके शो कॉल्ड गर्फफ्रेंड से उन्होंने धमकी दिलवाया है कि वह अपना पोस्ट डिलीट कर दें, उर्फी ने लिखा कि जब कोई लड़की खड़ी होती है तो अपने लिए नहीं सभी महिलाओं के लिए खड़ी होती है. ऐसे में उन्हें उनकी मदद करनी चाहिए. ना की उनकी निंदा करनी चाहिए.

इस पोस्ट को देखकर साफ लग रहा है कि उर्फी काफी ज्यादा परेशान है उनके इस हरकत से,खैर देखते हैं उर्फी के लिए कितने लोग खड़े हो पाते हैं.

उर्फी ने इसके आलावा आबेद के बारे में पोस्ट लिखा है कि ये आदमी अभी तक 100 से ज्यादा लोगों को परेशान कर चुका है. उन लड़कियों ने मुझे मैसेज करके ये सभी बात बताई हैं. उर्फी और जावेद के इस हरकत से लोग सोशल मीडिया पर भी परेशान नजर आ रहे हैं. कुछ लोग उर्फी जावेद की मदद करने की कोशिश कर रहे हैं तो वहीं कुछ शैतान लोग जाबेद के सपोर्ट में उतरे हैं.

भाई ही बने जोरू और जमीन के प्यासे- भाग 3

अखिलेश पहले ही अपनी पत्नी की बेवफाई से टूटा हुआ था. उस के बाद आए दिन भाइयों से मनमुटाव रहने लगा. इतना होने के बावजूद भी उसे पता चला कि उस की पत्नी अभी भी उस के छोटे भाई से फोन पर बात करती है.
उस के बाद उस की दिमागी स्थिति खराब हो गई. उस ने कई बार पत्नी को भाई से बात करने से मना किया, लेकिन वह उस की एक सुनने को तैयार न थी.

घटना से 2 दिन पहले ही अखिलेश देर रात घर पहुंचा. उस के घर का दरवाजा अंदर से बंद था. उस ने कई बार आवाज लगाई, लेकिन दरवाजा नहीं खुला. तभी उस ने दरवाजे के झरोखे से झांक कर देखा तो अंजलि मोबाइल पर किसी से बात कर रही थी.
अखिलेश दरवाजा पीटता रहा, लेकिन मोबाइल पर बात करने के कारण अंजलि ने उस की आवाज नहीं सुनी. कुछ देर बाद दरवाजा खुला तो अखिलेश आगबबूला हो गया, ‘‘कर ली अपने यार से बात. लगता है तू इतनी जल्दी सुधरने वाली नहीं.’’
उस दिन अंजलि घर में अकेली थी. उस की चीखपुकार सुनने वाला भी कोई नहीं था. अखिलेश ने अंजलि को बुरी तरह से मारापीटा. उस के बाद भी वह हैवान बन बैठा. वह घर में रखा बांका निकाल लाया. गुस्से में उस ने बांके से काट कर पत्नी की हत्या कर दी.
पत्नी की हत्या करने के बाद उस की लाश पौलीथिन में लपेट कर बोरों के बीच छिपा दी. पत्नी को मौत की नींद सुलाने के बाद भी वह 2 दिनों तक पागलों की तरह ही इधरउधर भटकता रहा.
पत्नी की हत्या के बाद उस ने सोचा कि अब इस दुनिया में कुछ नहीं बचा. एक पत्नी ही जीने का सहारा थी. जब वही दगा दे गई तो भाई उस का क्या साथ देंगे. उस के भाई उस की खरीदी जमीन में से भी हिस्सा मांग रहे थे. जबकि वह उस में से उन्हें कुछ भी हिस्सा देने को तैयार न था.
उस ने कई बार उस जमीन पर अपना घर बनाने की कोशिश की. लेकिन उस के भाई बारबार पुलिस को बुला कर उसे रुकवा देते थे. जिस के कारण वह अपने भाइयों से नफरत करने लगा था. उसी नफरत के चलते उस ने प्लान बनाया कि वह एकएक कर अपने भाइयों को भी मौत की नींद सुला देगा.

उसी योजना के तहत उस ने 15 जुलाई, 2022 को भूमि विवाद को हल करने वाली बात कहते हुए भाई अजय, अनिल और पिता को घर बुला लिया.
जब तीनों इकट्ठा हो गए तो उस ने छोटे भाई अनिल को कोल्डड्रिंक लाने दुकान पर भेज दिया.
हालांकि उस का सब से पहला दुश्मन उस का छोटा भाई अनिल ही था. लेकिन अजय शुक्ला जमीन के मामले में ज्यादा ही टांग अड़ा रहा था. अजय को सामने देखते ही उस के तनबदन में आग लग गई. उस ने मौका पाते ही अजय पर बांके से हमला बोल दिया.
इस से पहले कि अजय कुछ समझ पाता, उस ने उसे बुरी तरह से बांके से लहूलुहान कर दिया था. उस के पिता बचाव में आगे आए तो उन्हें भी बुरी तरह से घायल कर दिया था.
अजय की मौके पर ही मौत हो गई थी. जब तक अनिल कोल्डड्रिंक ले कर वापस आया, वह घर का दरवाजा अंदर से बंद कर तमंचा ले कर छत पर चढ़ चुका था.
कथा लिखे जाने तक अखिलेश और उस के पिता राजनारायण शुक्ला की हालत स्थिर बनी हुई थी. दोनों का एक साथ इलाज चल रहा था. पुलिस अखिलेश की पत्नी अंजलि और उस के भाई अनिल के संबंधों के साथसाथ जमीन बंटवारे को ले कर विस्तृत जांच में लगी हुई थी.
अजय की मौत हो जाने के बाद से पत्नी आरती गहरे सदमे में थी. क्योंकि पति की हत्या के बाद उस के 4 बच्चे बेसहारा हो गए थे. जबकि अखिलेश के अभी तक कोई संतान नहीं थी.

पिता का दोस्त : भाग 3

कार रोक कर वीरेंद्र खुद भी पिछली सीट पर कनिका के दाईं ओर जा बैठा. फिर क्या था? दोनों मिल कर कनिका का दुपट्टा खींचने लगे और उस का गला कस कर हत्या कर दी.
हत्या करने के बाद लाश मेरठ की गंगनहर में फेंक कर वापस लौट आए और आराम से सो गए. अगले दिन वीरेंद्र अपने घर लौट गया था.उधर वेदप्रकाश सोच रहा था कि कनिका को मायके गए 24 घंटे बीत चुके थे लेकिन उस ने एक बार भी फोन नहीं किया था. जब वेदप्रकाश से रहा नहीं गया तो उस ने कनिका को फोन किया. काल खुद विजयपाल ने रिसीव की. उस ने विजयपाल को नमस्कार किया और कनिका से बात कराने का आग्रह किया तो विजयपाल ने कहा कि अभी वह सो रही है. इतना कह कर उस ने काल डिसकनेक्ट कर दी.

अगले दिन फिर वेदप्रकाश ने फोन किया और पत्नी से बात कराने के लिए कहा तो विजयपाल ने कह दिया कि वह बुआ के घर गई है, आते ही बात करा
दी जाएगी.इस के बाद उस ने 2 दिन बाद फिर से फोन कर के कनिका से बात कराने के लिए कहा लेकिन उसे हर बार टाल दिया जाता था.

इस पर वेदप्रकाश को कुछ शक हो गया तो इसी शक के आधार पर उस ने राई थाने जा कर पत्नी के साथ अनहोनी की रिपोर्ट दर्ज करा दी.रिपोर्ट दर्ज करने के बाद राई थाने की पुलिस मुकीमपुर पहुंची और विजयपाल से कनिका के बारे में पूछताछ की. तब वह इधरउधर की बातें करने लगा. शक होने पर पुलिस उसे पूछताछ के लिए थाने ले आई.

थानाप्रभारी वजीर सिंह ने जब उस से कड़ाई से पूछताछ की तो उस ने पुलिस के सामने सारी सच्चाई उगल दी कि उस ने अपने बुआ के पोते वीरेंद्र के साथ मिल कर कनिका की हत्या कर दी है और उस की लाश को गंगनहर में फेंक दिया है.

विजयपाल द्वारा अपना जुर्म कुबूल करने के बाद पुलिस ने दूसरे आरोपी वीरेंद्र को भी गिरफ्तार कर लिया. दोनों पर हत्या का मुकदमा दर्ज कर पुलिस लाश बरामद करने के लिए उन्हें गंगनहर, मेरठ ले गई.
पुलिस ने उन के द्वारा बताई गई जगह और अन्य जगहों पर जाल डाल कर और गोताखोरों के द्वारा कनिका की लाश ढूंढने की कोशिश की, लेकिन उस की लाश नहीं मिल सकी. फिर पुलिस ने दोनों आरोपियों को कोर्ट में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया.

अदालत में कनिका हत्याकांड का मुकदमा चल रहा था. वेदप्रकाश ने पत्नी के हत्यारों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने के लिए दिनरात एक कर दिया था. इधर विजयपाल वेदप्रकाश अदालत की पैरवी से बुरी तरह डर गया था कि कहीं उस के चलते उसे फांसी की सजा न हो जाए.

जेल में रहते हुए विजयपाल ने वेदप्रकाश को भी रास्ते से हटाने की योजना बनाई और उस ने इस काम के लिए अपने भांजे अंकुश और गांव के लड़के राहुल को लगा दिया.
राहुल ने मुजफ्फरनगर के एक परिचित से एक देशी तमंचा और एक पिस्टल खरीदा. इन असलहों को खरीदने के लिए पैसे की व्यवस्था विजयपाल ने ही की थी. फिर इन्हीं असलहों से राहुल और अंकुश ने 22 अप्रैल, 2022 को कोर्ट परिसर में उस समय गोली मार कर हत्या कर दी, जब वेदप्रकाश मुकदमे में गवाही देने जिला न्यायालय पहुंचा था.

इस तरह एक प्रेम कहानी का दर्दनाक अंत हो गया. कथा लिखे जाने तक पुलिस ने दोनों आरोपियों अंकुश और राहुल को भी गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था. दोनों आरोपियों से हत्या में प्रयुक्त देशी तमंचा और पिस्टल बरामद कर ली थी.
पुलिस पूछताछ में विजयपाल ने वेदप्रकाश की हत्या कराने का अपना जुर्म कुबूल कर लिया था. चारों आरोपी विजयपाल, वीरेंद्र, राहुल और अंकुश जेल में बंद थे. द्य

गे संबंधों का लव ट्रायएंगल- भाग 1

मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के औबेदुल्लागंज में रहने वाले पुराने कपड़ा व्यापारी देवेंद्र कोठारी का 45
वर्षीय एकलौता बेटा नीरज उर्फ मोनू रात को साढ़े 9 बजे अपनी स्कूटी से घर से यह कह कर निकला था कि ‘कुछ देर में घूम कर आता हूं.’मगर रात के 12 बज गए और नीरज घर नहीं लौटा. इंतजार करतेकरते नीरज की पत्नी शिवांजलि ने जब नीरज को फोन लगाया तो उस का फोन स्विच्ड औफ था.
शिवांजलि समझ नहीं पा रही थी कि पति का फोन बंद क्यों है. पति के बारे में सोचसोच कर बुरा हाल था. परेशान हो कर शिवांजलि ने अपने 15 वर्षीय बेटे को यह बात बताने के लिए अपने ससुर के कमरे में भेजा.

पोते से नीरज के अभी तक घर न पहुंचने की बात सुनते ही 70 साल के देवेंद्र कोठारी बेचैन हो गए. उन्हें यह बात समझ नहीं आ रही थी कि इतनी रात गए नीरज आखिर कहां गया होगा.निशांत भी पिता के दोस्तों को फोन लगा कर उन की जानकारी जुटाने की कोशिश करने लगा. काफी मशक्कत के बाद जब नीरज के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो आधी रात को ही दादा और पोते नीरज को खोजने निकल पड़े. यह बात 16 फरवरी, 2022 की है.

पूरी रात शहर में कई जगहों पर खोजबीन के बाद भी नीरज के बारे में कोई खबर नहीं मिली तो देवेंद्र कोठारी दूसरे दिन 17 फरवरी की सुबह औबेदुल्लागंज थाने पहुंच गए.उन्होंने टीआई संदीप चौरसिया को पूरे घटनाक्रम की जानकारी देते हुए नीरज की गुमशुदगी दर्ज करा दी. कुछ ही घंटों में नीरज के गायब होने की खबर सोशल मीडिया पर वायरल हो चुकी थी.नीरज के पिता शहर के पुराने कपड़ा व्यापारी थे. उन की अपनी खेती की जमीन होने के साथ ही नीरज प्रौपर्टी डीलर के तौर पर काम कर रहा था. नीरज के इस तरह गायब होने से लोग तरहतरह के कयास लगा रहे थे.

शहर में एक चर्चा यह भी थी कि नीरज जमीन में छिपी दौलत को खोजने के चक्कर में कहीं गया होगा. लोगों का यह अनुमान इसलिए भी था कि नीरज तंत्रमंत्र और ज्योतिषियों के चक्कर में पड़ कर बिना मेहनत किए दौलत कमाना चाहता था.कुछ साल पहले सड़क किनारे बैठने वाले किसी ज्योतिषी ने नीरज को बताया था कि उसे जमीन में गड़ा अकूत धन मिलेगा. तभी से नीरज इसी चक्कर में पड़ा रहता था. वह अकसर यही सोचता था कि कभी तो ज्योतिषी की भविष्यवाणी सच निकलेगी.

नीरज के इस तरह गायब होने की यह चर्चा बेवजह नहीं थी. 16 फरवरी को अमावस्या की रात थी और नीरज को घर से जूट के बोरे स्कूटी में रखते हुए उस के बेटे ने देखा था. इस वजह से लोगों का अनुमान था कि तंत्रमंत्र के जरिए जमीन में गड़े धन को बोरे में भर कर लाया जाएगा.नीरज की गुमशुदगी को टीआई संदीप चौरसिया ने गंभीरता से लेते हुए घटना की जानकारी रायसेन जिले के एसपी विकास कुमार सेहवाल, एडीशनल एसपी अमृत मीणा, एसडीपीओ मलकीत सिंह को दे दी और खुद नीरज की खोजबीन में जुट गए.

पुलिस अधिकारियों को यह भी शक था कि नीरज का कहीं अपहरण तो नहीं हो गया. क्योंकि नीरज के पिता औबेदुल्लागंज के करोड़पति कारोबारी हैं. पुलिस ने नीरज की गुमशुदगी की सूचना समीप के भोपाल, होशंगाबाद और विदिशा जिले के पुलिस थानों को भी दे दी. शहर में इस घटना को ले कर चर्चाओं का बाजार गर्म था और पुलिस अलगअलग एंगिल से मामले की जांच कर रही थी. औबेदुल्लागंज के एसडीपीओ मलकीतसिंह ने 4 पुलिस थानों की एक टीम जांच के लिए गठित की.

टीम को इलाके की तलाशी के दौरान 18 फरवरी को होशंगाबाद रोड पर बने शगुन वाटिका मैरिज गार्डन के पीछे रेल पटरियों के किनारे झाडि़यों में एक लाश मिल गई. लाश को आवारा कुत्तों ने नोच दिया था, जिस की वजह से पुलिस को शिनाख्त करने में मुश्किल हो रही थी.पुलिस टीम ने जब नीरज के घर वालों को घटनास्थल पर बुलाया तो कपड़ों के आधार पर घर वालों ने शव की पहचान कर बताया कि शव नीरज का ही है. नीरज की पत्नी और बेटे का रोरो कर बुरा हाल था. नीरज के पिता भी दुखी मन से बहू और पोते को ढांढस बंधा रहे थे. घटनास्थल पर भारी भीड़ जमा हो चुकी थी.

नीरज का शव अर्द्धनग्न अवस्था में मिला था, उस की पेंट और अंडरवियर कमर के नीचे घुटनों तक सरके हुए थे. शव की हालत देख कर पुलिस का शक अवैध संबंधों की वजह से हत्या की ओर जा रहा था.
नीरज का शव बरामद होने की सूचना मिलते ही रायसेन के एसपी के निर्देश पर एडीशनल एसपी अमृत मीणा घटनास्थल पर आ चुके थे. लाश का पंचनामा कर उसे पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया. औबेदुल्लागंज थाने के टीआई संदीप चौरसिया को जांच के दौरान कुछ लोगों ने बताया कि नीरज छोटी उम्र के लड़कों से दोस्ती रखने का शौकीन था और उन के साथ गे रिलेशनशिप रखता था. कुछ ही घंटों में पुलिस को कई लड़कों के नाम मिल गए, जिन से नीरज के गे संबंध थे.

शक के आधार पर कुछ लड़कों से पुलिस ने पूछताछ की तो पता चला कि पिछले कुछ महीनों से नीरज की दोस्ती 23 साल के मनोज कटारे और 17 साल के राजू (परिवर्तित नाम) से चल रही थी.
राजू को अकसर ही नीरज की स्कूटी पर बैठे देखा जाता था. मनोज और राजू रेलवे स्टेशन के पास एक नमकीन की दुकान पर काम करते थे. पुलिस ने जब मनोज और राजू की तलाश शुरू की तो पता चला कि 16 फरवरी के बाद वे दुकान ही नहीं पहुंचे.

पुलिस ने साइबर सेल की मदद से मनोज और राजू की मोबाइल लोकेशन की जांच की तो राजधानी भोपाल के नादिरा बसस्टैंड की मिल रही थी. पुलिस को अब पूरा यकीन हो गया था कि दोनों नीरज की हत्या कर भागने की फिराक में हैं.पुलिस की एक टीम तुरंत भोपाल के नादिरा भेजी गई, जहां से उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. सख्ती से की गई पूछताछ में दोनों ने नीरज की हत्या करने की बात कुबूल कर ली. उस के बाद जो दिलचस्प कहानी सामने आई, वह ट्रायंगल गे रिलेशनशिप पर रचीबसी निकली

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