बीवी की शतरंजी चाल : भाग 2

वीरेंद्र की पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के अनुसार हमलावरों द्वारा उस पर नजदीक से 3 गोलियां दागी गई थीं, जिस में 2 सिर में फंसी हुई थीं, जबकि एक गोली सिर को भेदती हुई पार निकल गई थी.

वारदात में जुड़ा एक गैंगस्टर का नाम लखनऊ के पुलिस कमिश्नर डी.के. ठाकुर ने इस वारदात को गंभीरता से ले कर मामले की गहन तहकीकात के सख्त आदेश दिए. कारण मामले में बिहार के मोस्टवांटेड अपराधी और रेलवे के ठेकेदार वीरेंद्र ठाकुर उर्फ गोरख ठाकुर की हत्या के साथ एक गैंगस्टर का नाम भी जुड़ गया था. वह गैंग बिहार के पूर्व दिवंगत सांसद शहाबुद्दीन का था.

जांचपड़ताल आगे बढ़ाने के लिए लखनऊ पुलिस ने एसटीएफ और क्राइम ब्रांच की टीम को बिहार भेज दिया. जांच टीम ने प्रारंभिक जांच में पाया कि वीरेंद्र ठाकुर को लोग गोरख ठाकुर के नाम से जानते थे. वह मूलत: पश्चिमी चंपारण में बेतिया जिले के नरकटियागंज का रहने वाला था.

लखनऊ आने से पहले वह पीडब्ल्यूडी विभाग की ठेकेदारी के धंधे में ही था. इस पेशे में उस ने अगर अच्छा पैसा कमा कर रुतबा कायम कर लिया था, तो रंजिश के चलते कई विरोधी बना लिए थे, जो दुश्मन बन चुके थे.दुश्मनी इस कदर बढ़ गई थी कि गोरख ठाकुर उर्फ वीरेंद्र ठाकुर ने साल 2012 में बिहार छोड़ दिया था. वह सपरिवार लखनऊ आ कर बस गया था. परिवार में उस की पत्नी प्रियंका ठाकुर और उन के बच्चे थे. बिहार छोड़ने के पीछे ठेके में हुए विवाद को कारण बताया जाता है.

लखनऊ में उसे बिहार के ही इकरामुद्दीन खां का सहयोग मिला. वह उस का पूर्व परिचित था. उस की मदद से पीडब्लूडी और दूसरे सरकारी विभागों का ठेका ले कर लखनऊ में काम करने लगा, किंतु नाम बदल कर वीरेंद्र ठाकुर कर लिया. इकरामुद्दीन की ही बेटी खुशबून तारा है.दरअसल, पत्नी प्रियंका के रहते हुए वीरेंद्र ने खुशबून तारा से प्रेम संबंध कायम कर लिए थे. इस की जानकारी खुशबून के पिता को भी थी.
वीरेंद्र के साथ ठेकेदरी में सहयोगी संबंध होने के कारण भी इकरामुद्दीन ने अपनी बेटी का अधिक विरोध नहीं जता पाया और न ही वीरेंद्र की मुखालफत की.

वीरेंद्र ने खुशबून तारा से विवाह रचा लिया था. इस तरह एक म्यान में 2 तलवारों जैसी स्थिति में प्रियंका और खुशबून रहने को मजबूर थीं. नतीजा आए दिन उन के बीच कलह होने लगी थी. एक तरफ पति और उस की संपत्ति पर हक जताने को ले कर घरेलू लड़ाईझगड़े आम बात थी तो दूसरी तरफ वीरेंद्र के दुश्मन भी बाहर से आक्रामक बने हुए थे.

आरोपियों की धरपकड़ के लिए एसटीएफ के एडीजी अभिताश यश ने नरकटियागंज में डेरा डाल दिया था. उन्हें जांच में पता चला कि घटना के कुछ रोज पहले वीरेंद्र और खुशबून तारा के साथ लड़ाईझगड़े से ऊब कर प्रियंका अपने बच्चों को छोड़ कर मायके (बिहार) आ गई थी. प्रियंका का पूर्व प्रेमी आया सामने

प्रियंका की जिंदगी भी कुछ कम उलझी हुई और जिल्लत भरी नहीं थी. उस का भी एक प्रेमी कमलेश उर्फ बिट्टू जायसवाल है. वह उसी के शहर का रहने वाला है. वीरेंद्र से झगड़े का दुखड़ा प्रियंका ने पूर्व प्रेमी को सुनाया और मदद मांगी.बिट्टू ने प्रियंका की समस्या का समाधान करने के लिए फिरदौस से मुलाकात करवाई, जो उन दिनों एक हत्या के मामले में फरार चल रहा था. वीरेंद्र के द्वारा आए दिन उत्पीड़न करने की जानकारी उसे पहले से थी.

फिरदौस के सिर पर शहाबुद्दीन का हाथ था. यही नहीं, वह ऐसा व्यक्ति था, जिसे वीरेंद्र की अधिकतर आदतों और गतिविधियों की जानकारी थी. यहां तक कि वीरेंद्र के मकान का मेन डोर खोलने और भीतर के पूरे लोकेशन को वह जानता था. 27 जून, 2022 की सुबह जांच टीम बिहार पहुंचने के बाद हत्या में नामजद आरोपियों की तलाश में जुट गई थी. आरोपियों की काल डिटेल्स के आधार पर सर्विलांस टीम को महत्त्वपूर्ण जानकारी मिली. यह जानकारी बिहार में डेरा डाले एसटीएफ के एडीजी को भेज दी.

उस जानकारी के आधार पर बिहार में मौजूद लखनऊ पुलिस की टीम ने मंजर इकबाल, सरफराज अहमद, कासिफ और अली हसन को गिरफ्तार कर लिया. वे सभी फिरदौस के संपर्क में रहने वाले लोग थे. हालांकि कई बार प्रियंका के घर पर दबिश के बावजूद वह पकड़ में नहीं आ पाई थी.पकड़े गए लोगों से पूछताछ में प्रियंका का भी चौंकाने वाला राज खुला. उन से ही प्रियंका से विवाह रचाने और फिर खुशबून तारा से संपर्क में आने की कहानी सामने आई. इस के अलावा फिरदौस से उस की दुश्मनी के बारे में भी कई राज खुले.

वीरेंद्र उर्फ गोरख ठाकुर के साथ प्रियंका, फिरदौस और बिट्टू की कहानी काफी घुलीमिली थी, जिस में दोस्ती और प्रेम कम कड़वाहटें, झांसेबाजी और अदावतें भरी थीं.पूछताछ में सब से बड़ा खुलासा प्रियंका को ले कर हुआ, जिस ने अपने पति वीरेंद्र की हत्या की सुपारी दी थी. तफ्तीश और अभियुक्तों से की गई पूछताछ के बाद वीरेंद्र ठाकुर की हत्या की जो कहानी सामने आई, बड़ी दिलचस्प निकली—

वीरेंद्र ठाकुर उर्फ गोरख ठाकुर की पहचान पूर्वी चंपारण इलाके में एक अच्छे ठेकेदार की थी. वह साल 2008 से ही पीडब्लूडी के करोड़ों रुपयों के ठेके लिया करता था. उस की पहली पत्नी प्रियंका और बिट्टू जायसवाल भी नरकटियांगंज के ही रहने वाले हैं.
वीरेंद्र की फिरदौस के साथ भी दोस्ती थी. उस के साथ बरौली बिरवा में खुशबून तारा के पिता इकरामुद्दीन के यहां ठेकेदारी के सिलसिले में आताजाता रहता था. वहीं खुशबून से भी उस की मुलाकात हो जाती थी. फिरदौस दूर के रिश्ते में खुशबून का भाई लगता था.

खुद वीरेंद्र एक वांटेड अपराधी था. बिहार के विभिन्न थानों में उस के खिलाफ 23 मुकदमे दर्ज थे. यही वजह थी कि वीरेंद्र के कई सारे दुश्मन भी थे, जिस में से एक उस की पत्नी प्रियंका की शादी से भी जुड़ा था. वीरेंद्र ठाकुर ने प्रियंका से शादी भी उस के प्रेमी कमलेश जायसवाल उर्फ बिट्टू को धोखा दे कर जबरन की थी.दरअसल, प्रियंका कमलेश जायसवाल उर्फ बिट्टू से प्यार करती थी. वे दोनों साथ रहने के लिए घर से भाग कर वीरेंद्र की शरण में आए थे. यह बात साल 2011 की है.

कांटों भरी राह पर नंगे पैर : भाग 3

लखनऊ शहर की इस गंदी बस्ती में आज जश्न था, क्योंकि आज उन के महल्ले के एक लड़के की शादी एक अमीर और सवर्ण लड़की से जो हो गई थी. अगले दिन से ही अंजलि घर पर मेहंदी रचा कर नहीं बैठी, बल्कि चुनाव प्रचार में बिजी हो गई. पूरे शहर में अंजलि ने अपनेआप को ‘दलित समाज की बहू’ कह कर चुनाव प्रचार करवाया और अजीत कुमार के साथ दलित बस्तियों का दौरा भी किया और दोपहर का खाना भी लखनऊ शहर के ही राजाजीपुरम इलाके में रह रहे एक दलित परिवार के यहां खाया.

लोकल न्यूज चैनल पर इस खबर का खूब प्रचारप्रसार भी करवाया. चुनाव नतीजा तो आया, पर अंजलि की सोच के मुताबिक नहीं. वह अपने विरोधी से बुरी तरह चुनाव हार चुकी थी. पूरे 2 दिन तक वह घर से बाहर रही. अजीत कुमार ने उस का मोबाइल भी मिलाया, पर मोबाइल ‘नौट रीचेबल’ ही बताता रहा. फिर एक दिन अंजलि अचानक नाटकीय रूप से प्रकट हो गई. उस ने घर के किसी शख्स से बात तक नहीं की और न ही किसी की तरफ देखा भी. वह सीधा अपने कमरे में चली गई. अजीत कुमार उस के पीछेपीछे गया, तो अंजलि उस से कहने लगी, ‘‘देखो अजीत, मैं ने तुम से इसलिए शादी की थी, क्योंकि सोशल मीडिया पर तुम्हारे दलित फैंस को देख कर मुझे ऐसा लगा कि अगर मैं तुम से शादी कर के दलितों के वोट अपनी ओर कर लूंगी,

तो इलैक्शन जीत जाऊंगी, पर अफसोस, यह नहीं हो सका और मैं चुनाव हार गई…’’ सांस लेने के लिए अंजलि रुकी और फिर आगे कहना शुरू किया, ‘‘पर, अब मेरा इस गंदी बस्ती और तुम्हारे साथ दम घुट रहा है, इसलिए मैं यहां से जा रही हूं और अपने आदमियों से तलाक के कागज भी भिजवा दूंगी… साइन कर देना.’’ अजीत कुमार अवाक रह गया. अपनी जिंदगी में इतना बड़ा धोखा उस ने कभी नहीं खाया था. अंजलि जा चुकी थी और कुछ घंटे बाद ही उस के आदमी तलाक के कागज ले कर आए और अजीत कुमार से दस्तखत लेने लगे.

कुछ लोग अंजलि के कमरे का सामान ले जाने लगे, जिस में उस कमरे में लगा हुआ एसीकूलर वगैरह भी शामिल था. अजीत कुमार काफी बेइज्जती महसूस कर रहा था, पर करता भी क्या? एक दलित की जिंदगी कितनी कड़वी हो सकती है, यह सब उस की झांकी भर ही था. कुछ दिन तो अजीत कुमार भी सदमे में रहा. उसे लगा कि उसे मर जाना चाहिए, क्योंकि वह एक सवर्ण महिला द्वारा बेइज्जत किया जा चुका है. लोग सही कहते हैं… हम दलित लोगों की ‘ब्रेन वाशिंग’ इस तरह से कर दी गई है कि लगता है कि हमारे सोचनेसमझने की ताकत ही चली गई है.

तभी तो शायद हम समाज में सब से आखिरी पायदान पर हैं… तो क्या मर जाना ही इस का समाधान है, बिलकुल, जब जिंदगी ही नहीं रहेगी, तो कैसा दुख और कैसा दर्द. अपने मोबाइल को अजीत कुमार ने आखिरी बार निहारा. उस ने पाया कि उस के फेसबुक मैसेंजर पर बहुत से दलित भाइयों और जरूरतमंद लोगों के संदेश भरे हुए थे, जो उस से मदद मांग रहे थे… ‘तो फिर इन का क्या होगा? क्या मेरे मर जाने से इन की उम्मीदभरी नजरों को ठोकर नहीं लगेगी?’ एक बार ऐसा खयाल अजीत कुमार के जेहन में आया, तो उस ने मरने का विचार छोड़ दिया. ठंडे पानी का एक गिलास हलक के नीचे उतारा और अपने कमरे में वापस आया…

एक लंबे सफर की तैयारी जो करनी थी उसे. उस दिन के बाद से अजीत कुमार ने सोशल मीडिया को अपना हथियार बनाया और उस ने ‘फेसबुक लाइव’ के द्वारा लोगों को संबोधित किया और दलितों को जगाने और उन की सदियों से चली आ रही ‘ब्रेन वाशिंग’ को ही खत्म करने के कोशिश की. खुद के साथ हुए धोखे के बारे में लोगों को बताया कि लोग किस तरह से उन के भोलेपन का फायदा उठाते हैं. भोलेभाले लोग यह जानते ही नहीं कि सालों से उन्हें कमतर होने का एहसास कराया जाता रहा है, जिस से वे अपनेआप को नीचा समझने लगे हैं. दलित गरीब होता है,

इसलिए उन के उत्थान में सब से पहले पैसे की जरूरत थी. अजीत कुमार ने अपने महल्ले के बीचोंबीच एक डब्बा रखवाया और उस पर लिखवा दिया कि इस डब्बे में वे लोग हर रोज महज एकएक रुपया डाला करेंगे और इस से जो पैसे इकट्ठे होंगे, वे गरीब दलितों के काम आएंगे, मसलन बच्चों की पढ़ाईलिखाई और लड़कियों की शादी में. अजीत कुमार ने ऊंची नौकरी कर रहे कुछ दलित लोगों से भी बात की और उन से भी सहयोग करने को कहा. लोग सामने आए और अजीत कुमार के कंधे से कंधा भी मिलाया. अजीत कुमार ने अपनी पूरी जिंदगी ही दलित समाज के जागरण को समर्पित कर दी थी. यह सब इतना आसान नहीं था,

पर दृढ़ संकल्प से कुछ भी मुमकिन था. तकरीबन 15 साल की समाजसेवा के बाद अजीत कुमार एक जानामाना नाम बन गया था, जिस का एहसास उस चालाक राजपूतानी अंजलि को भी हो चुका था, तभी वह एक दिन अजीत कुमार के पास आई और अपने द्वारा दिए गए धोखे पर माफी मांगते हुए उस से दोबारा शादी करने की इजाजत मांगी, पर अजीत कुमार इतना भी बेवकूफ नहीं था कि अंजलि से दोबारा शादी करता. दलित उत्थान में अजीत कुमार अकेला चला तो था, पर उसे इस राह में कई लोग मिलते गए, जिन्होंने हर तरीके से उस की मदद की.

अजीत कुमार ने अपनी जिंदगी के कड़वे अनुभवों को ले कर आत्मकथा भी लिखी, जिस का नाम रखा गया ‘कांटों भरी राह पर नंगे पैर’. अजीत कुमार की आत्मकथा को पहले तो कोई प्रकाशक नहीं मिल रहा था, क्योंकि एक दलित की आत्मकथा को प्रकाशित करना उन्हें फायदे का सौदा नहीं लग रहा था, इसलिए अजीत कुमार ने अपनी आत्मकथा को ‘अमेजन किंडल’ पर प्रकाशित करने का फैसला लिया और यह आत्मकथा एक बैस्ट सैलर साबित हुई. अजीत कुमार के पास बधाइयों का तांता लग गया था. आज अपना 50वां जन्मदिन मनाने के लिए समाजसेवी अजीत कुमार एक दलित बस्ती में आया था. उसे चारों तरफ से लोगों ने घेर रखा था. अजीत कुमार के चेहरे पर एक मधुर मुसकराहट थी कि तभी भीड़ को चीरते हुए एक 25-26 साल की लड़की अजीत कुमार के पास आई और बोली, ‘‘मैं सुबोही…

आप की बहुत बड़ी फैन हूं. आप के बारे में सबकुछ आत्मकथा से जान चुकी हूं और आप के काम से प्रभावित हूं… आप से शादी करना चाहती हूं… और हां… मैं जाति से ठकुराइन हूं.’’ अजीत कुमार उस लड़की को बड़ी देर तक देखता रहा, फिर बोला, ‘‘पर, हमारी उम्र के बीच जो फासला है…?’’ ‘‘प्रेम कोई फासला नहीं जानता,’’ सुबोही ने मुसकराते हुए कहा. ‘‘पर, तुम्हें विधायकी का चुनाव तो नहीं लड़ना है न?’’ अजीत ने चुटकी ली और दोनों एकदूसरे की तरफ देख कर मुसकरा उठे. ‘‘बस करिए, अपनी आत्मकथा को कब तक निहारते रहेंगे…’’ सुबोही ने पूछा. ‘‘यह तो एक बहाना है… तुम से हुई पहली मुलाकात को याद करने का…’’ अजीत कुमार ने सुबोही से कहा.

बिग बॉस 16 में आ सकती हैं ये भोजपुरी सिंगर, जाने क्या है नाम

बिग बॉस 16 को लेकर कई सारी बातें हो रही हैं, जिसमें हर दिन नए- नए कंटेस्टेंट का  नाम बाहर आ रहा है. अब इस सीरियल में भोजपुरी  की सिंगर निशा सिंह का नाम बाहर आ रहा है, जो इस शो का हिस्सा बन सकती हैं. हालांकि ये अभी कंफर्म नहीं है.

भोजपुरी सिनेमा की लोकप्रिय सिंगर निशा हैं, जिसे खूब पसंद किया जाता है, इस सिंगर का नाम कई सारे गानों के लिए जाना जाता है. रिपोर्ट की मानें तो निशा पांडे को शो का हिस्सा बनने के लिए अप्रोच किया गया है.

 

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निशा का नाम भोजपुरी के जाने माने सिंगरों में लिया जाता है, वह हमेशा से अपने गाने को लेकर लोगों के दिलों में छाई रहती हैं. निशा अपना गाना खुद सजेस्ट करके गाती हैं.

वहीं इस शो के मेकर्स को पूरा यकिन है कि वह शो में आकर जमकर तड़का लगाएंगी, हाल ही में मेकर्स के साथ उनकी मीटिंग भी हुई थी, जिसमें वह सब कुछ क्लीयर करती नजर आ रही थी.

जल्द ही वह बिहार से मुंबई आएंगी, अगर चीजें निशा पांडे के मुताबिक रहती हैं तो वह जरुर आएंगी इस शो में . निशा पांडे ने भोजपुरी फिल्म के लिए कई सारे गाने गाएं हैं, जैसे रजउ तहार हो जइब. कुछ दिनों पहले निशा पांडे ने गाया था यूपी के अखिलेश यादव के लिए कि जब उनका गाना लहरेगा. इसके अलावा अगर बात करें दर्शकों की तो उन्हें इस शो इंतजार है.

उड़ारियां में आएगा 15 साल का लीप, नए चेहरे आएंगे नजर

कलर्स टीवी का धमाकेदार शो उड़ारिया इन दिनों चर्चा में बना हुआ है,  हाल ही में सीरियल में 6 साल का लीप दिखाया गया था, इसके बाद से सीरियल की टीआरपी में कुछ उछाल नहीं आय़ा था, वहीं शो को लेकर यह कहा जा रहा है कि अब सीरियल में 15 साल का लीप आने वाला है.

खबर यह भी है कि सीरियल में लीप आने के बाद से बहुत सारे नए चेहरे देखने को मिलने वाले हैं, इस सीरियल के मुख्य कलाकार की छुट्टी हो जाएगी जिसका नाम सुनकर आप सभी को हैरानी होगी, तो आइए जानते हैं कौन है वो कलाकार जिसकी इस सीरियल से विदाई होने वाली है.

यह कोई और कलाकार नहीं है लीड एक्टर अंकित गुप्ता है जो कि फतेह की भूमिका में नजर आते हैं. इश सीरियल से अब उनकी छुट्टी होने वाली है. कहा जा रहा है कि जैसे ही इस सीरियल में 15 साल का गैप आएगा वह इस सीरियल को अलविदा कह देंगे.

बता दें कि कुछ दिनों पहले उड़ारिया से जुड़ा एक मोंनटाज रिलीज हुआ था, जिसमें दिखाया गया था कि उसमें फतेह नजर नहीं आ रहा है, जैसे ही यह मोंटाज बाहर आया फैंस ने मेकर्स की क्लास लगानी नहीं छोड़ी.

वहीं अंकित गुप्ता के उड़ारिया सीरियल छोड़ने के नाम से फैंस को काफी ज्यादा झटका लगा हुआ है, एक यूजर ने लिखा कि सीरियल को छोड़कर जाना लगता है भारतीय एक्टरों का ट्रेंड बन गया है.

एक यूजर ने लिखा कि मैं इस बात से खुश हूं कि अंकित और प्रियंका इस टॉक्सिक शो को छोड़कर जा रहे हैं. मुझे लगता है कि उन्हें अच्छा काम मिलना चाहिए.

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन का फैसला

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन कहलवाया है कि तेलंगाना में भी जो अनाज राशन से बंटता है उस के थैलों पर नरेंद्र मोदी की फोटो हो. यह कुछ महाशियां दी हड्डी वाला हिसाब है जो अपने मसालों का प्रचार अपने फोटोग्राफ के साथ ही करता था. निर्मला हालांकि महाशियां से प्रभावित है या नहीं पर पुराणों को जेएनयू में पढऩे के बाद सिर पर याद कर चलने वाली जनता में से एक जरूर होगी.

अब क्रम पुराण को लें. इस में इंद्रद्युम्न का वाकया है जिसे पुराणों के हिसाब से इस दुनिया को बनाने वाले नारायण के साक्षात दर्शन पर लंबी समाधि यानी बिना कामधाम किए एकांत में बैठने के बाद हुए. (इस दौरान किस ने उन्हें खिलाया, किस ने उन के लायक अनाज बोया, यह न पूछें).

जब नारायण जिन्होंने पुराण के हिसाब से पूरा सृष्टि बनाई और जिस का मतलब है इंद्रद्युम्न के भी बगया बड़ा किया, दिख गए तो भक्त ने क्या किया. उन की तारीफे के पुल बांधने शुरू कर दिए जैसे निर्मला सीतारमन कर रही है. ‘हे हरि, आप की वजह से दुनिया है, आप की वजह से प्रलय आती है. आप बहुत ताकतवर हैं. आप को कुछ नहीं चाहिए. आप कोई प्रपंच नहीं करते गलत काम नहीं करते. आप सब के पिता हैं. आप कभी खत्म नहीं होने वाले हैं.’ इस तरह के बहुत सी बातें यह भक्त कहता है.

सवाल है क्या नारायण की तरह राशन में अनाज की भी थैली भी जब मोदी जी ने दी है जैसा निर्मला सीतारमन कहती हैं? क्या यह अनाज उन्होंने उगाया, किसी किसान ने नहीं. क्या यह खेत से राशन की दुकान तक मोदी जी के चमत्कार से पहुंच गया, ट्रकों में भर कर नहीं. क्या सरकार ने इस के लिए कोई टैक्स नहीं लगाया. क्या चमत्कार कर के केंद्र सरकार ने अनाज पैदा कर दिया. क्या प्रधानमंत्री नारायण बन गए हैं?

देश में आदमी की पूजा करने का जो रिवाज बन गया है वह खतरनाक है. पूजा कर के भक्त समझते हैं कि उन का काम पूरा हो गया. मोदी जी को जिता दिया अब सब वही करेंगे. यही उन की वित्तमंत्री कह रही हैं कि सस्ता अनाज मोदी जी अपनी जेब से निकला कर दे रही है शायद तथास्तु वह करे.

यह हर किसान की बेइज्जत है जिस ने अनाज उगाया. यह उस जनता की बेइज्जती है जिस ने टैक्स दिया जिस के बात पर अनाज सरकार ने खरीदा. यह उस सस्ते अनाज पाने वाले देश के नागरिक की भी बेइज्जती है कि वह शुक्रिया अदा करे उस का करे जिस ने उगाया, न इक्ट्ठा किया, न पहुुंचाया.

डौमेक्रेसी का मतलब है कि सब बराबर है और सरकार के पास जो पैसा है, साधन हैं, वे सब जनता के हैं. हमें नेताओं को चुनना है जो जनता के पैसे का, जनता की बनाई चीजों का सही इस्तेमाल करना जानते हों न कि उन्हें जो अपनी जयजयकार कराएं, पूजा कराएं. जय करने और पूजा करने के लिए तो हमारे पास 33 करोड़ देवता वैसे ही हैं जिन के बावजूद भूख, बिमारी, बेकारी, दंगे, फसाद, हत्या, जुल्म, बाढ़, भूख, आग सब कुछ है.

मैं बॉयफ्रेंड बनाना चाहती हूं, क्या डेटिंग ऐप सही रहेगा?

सवाल

मैं वर्किंग गर्ल हूं. कालेज टाइम में कोई बौयफ्रैंड नहीं बनाया. ऐसा नहीं था कि किसी लड़के ने मुझ में इंटरैस्ट नहीं दिखाया, बस, मैं ने ही अपने कदम आगे नहीं बढ़ाए. बौयफ्रैंड बनाना, उस के साथ घूमनाफिरना, उस से मिलने के लिए घरवालों से  झूठ बोलना, पढ़ाई में मन न लगाना इन सब वजहों के कारण मैं ने बौयफ्रैंड नहीं बनाया. अब लगता है मैं ने गलती की. लाइफ में कुछ कमी सी लगती है. मुझे पता है कि घरवाले एक-दो साल में मेरी शादी कर देंगे लेकिन मैं अरैंज्ड मैरिज नहीं करना चाहती. मैं अब बौयफ्रैंड बनाना चाहती हूं और फिर उसी से शादी करना भी. क्या डेटिंग ऐप से बौयफ्रैंड बनाना सही रहेगा?

जवाब

बौयफ्रैंड बनाना आसान है लेकिन एक सच्चा बौयफ्रैंड जो जिंदगीभर आप का साथ दे, जरा मुश्किल है लेकिन नामुमकिन नहीं. और फिर आप ने सोच ही लिया है तो आप को सच्चा प्यार हासिल होगा. बस, सतर्क व सजग तरीके से खोजना शुरू कर दें. कैसे? हम बताते हैं.

सब से पहले कैसा लड़का आप चाहती हैं. उस में क्या क्वालिटीज हों, उस की चैकलिस्ट बना लें. आप जिस तरह के लड़के को चाहती हैं, चुनाव करते समय उस बात का खास ध्यान रखें. रिलेशनशिप में यह बहुत जरूरी है.

अब सवाल उठता है कि लड़का कहां ढूंढ़ आप की बातों से जाहिर होता है कि आप के आसपास ऐसा कोई नहीं है जिसे बौयफ्रैंड बनाएं, तो आप के पास औप्शन बचता है औनलाइन दोस्ती का जोकि आजकल प्रचलन में है. इस में आप अपने सोशल मीडिया प्रोफाइल पर अपनी पूरी जानकारी लिख सकती हैं. इस के बाद लड़कों को सर्च कर सकती हैं. कोई अच्छा लड़का लगे, तो उसे फ्रैंड रिक्वैस्ट भेज सकती हैं. इंटरनैट पर फेक प्रोफाइल बहुत चल रही हैं, इसलिए पूरी सतर्कता की जरूरत है. यदि किसी लड़के को ले कर सीरियस हैं तो चैटिंग करने के बाद वीडियोकौल जरूर कर लें. वीडियोकौल पर कुछ दिन बात करें, उस की पसंदनापसंद जानें.

हां, इस बात का ध्यान रखें कि बौयफ्रैंड आप के लिए शहर का हो और उस का घर आप के घर से ज्यादा दूर न हो. वरना आप दोनों को मिलने में काफी समय लग सकता है.

जैसा कि आप ने पूछा, डेटिंग ऐप से आप बीएफ ढूंढ़ सकती हैं. तो, इस में कोई हर्ज नहीं है. आजकल टिंडर जैसे डेटिंग ऐप पौपुलर हैं. आप प्लेस्टोर से इन्हें डाउनलोड कर सकती हैं. काफी सारे लड़कों की प्रोफाइल मिल जाएंगी.

बाकी सब आप की समझदारी पर निर्भर करता है कि आप यह सब कैसे हैंडल करती हैं. बाजार में मोती तो बहुत मिलते हैं लेकिन सच्चे मोती की आप को पहचान होनी चाहिए.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  सरस सलिल- व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

चांद पर धब्बे – भाग 3 : नीटू को किसकी चीख सुनाई दी

शराब और दूसरे नशों की वजह से वह नामर्द हो गया था. मेरे सारे जेवर उस ने जुए में हार दिए थे, मैं फिर भी चुप रही. एक दिन कहने लगा, ‘तू बड़े भैया के साथ सो जा. हमारे घरों में तू जानती है कि यह सब आम है. अगर बच्चा हो गया तो कोई मुझे नामर्द नहीं कहेगा.’ ‘‘बस, मेरा खून खौल उठा. भैया को तो मैं ने कभी मुंह नहीं लगाया था. वे जब आते मुझे मुसकरा कर देखते. पर मेरे आदमी को कभी इस पर एतराज न हुआ. वह मेरे जिस्म की प्यास खुद बुझा नहीं पाया.

मैं खामोशी से यह दर्द भी पी रही थी. पर उस ने मुझे वेश्या बना दिया, यह सब मुझ से सहन न हुआ. ‘‘2-4 बार के बाद बड़े भैया बारबार मुझे बुलाने लगे, तो मैं तिलमिला उठी. मेरे मना करने पर मेरे पति ने उसी गुस्से में मुझे जान से मारना चाहा. मुझ पर झूठा इलजाम लगा दिया कि मैं कुलटा हूं. तब भी मैं चुप रही, इस कारण कि उस की कमजोरी के बारे में दूसरा कोई न जाने. आखिर वह मेरा मर्द था. ‘‘यह बेटी बड़े भैया की देन है, पर न तो बेटी जानती है और न भैया. उन्होंने न जाने कितनों से खेला है. कितनों से बच्चे किए हैं. बड़ी भाभी जानती हैं, पर चुप रहती हैं. मैं ने एक दिन बड़े भैया को मना किया, तो उन्होंने उबलता दूध मुझ पर डाल दिया.

‘‘उस के बाद मेरे मर्द ने खुदकुशी कर ली. मैं घर छोड़ कर निकल आई और यहां सब से यही कहा कि सोमी मेरे मर्द की बेटी है.’’ ‘‘ओह माया,’’ पद्मा के मुंह से सिर्फ एक गहरी सांस निकल गई. इस औरत की कुरबानी ने तो उसे हिला कर रख दिया था. माया आगे बोली, ‘‘मैं ने सोमी के साथ जीने का रास्ता तलाश लिया है. फिर छोटी बहू, उस के साथ उस पुरानी राह पर लौटना मुझे मंजूर न था. सोमी पढ़ रही है. पढ़ कर कोई ट्रेनिंग करा दूंगी तो अपने पैरों पर खड़ी हो जाएगी. वह कुछ बन जाए तो समझूंगी कि मेरी कुरबानी बेकार नहीं गई.’’ ‘‘चाय बन गई है मां. यहीं ले आऊं?’’

सोमी ने पुकारा, तो माया और पद्मा दोनों चौंक गईं. पद्मा ने सोमी की तरफ देखा. उस का मुसकराता चमकता चेहरा सूरज की पहली लाली जैसा लुभावना लग रहा था. बादलों से सूरज भी बाहर निकल आया था. घर लौटते समय माया और उस की बेटी भी नाव तक छोड़ने आईं. कई बार इच्छा हुई कि पर्स खोल कर उस की लड़की के हाथ पर कुछ रखने की, पर बारबार मांबेटी के चेहरे पर छाई खुशी पद्मा को रोक देती. पद्मा उन की राह का रोड़ा नहीं बनना चाहती थी. उस के पास एक दौलत थी,

अपनी इज्जत और हौसले की. और उस के साथ थी उस की बेटी, पद्मा की जेठ की बेटी. झील में काफी दूर आने पर भी सोमी का हिलता हाथ और माया के दुपट्टे का उड़ता हिस्सा पद्मा को देर तक नजर आता रहा. उस के बाद पद्मा न जाने कितनी ही बार माया के गांव गई और न जाने क्या लगता था कि सोमी को उस ने अपनी बेटी की तरह पालना शुरू कर दिया. पद्मा ने यह बात उसे नहीं बताई, क्योंकि कोई फायदा नहीं था.

तांती – भाग 1 : क्या अपनी हवस पूरी कर पाया बाबा

चलतेचलते रामदीन के पैर ठिठक गए. उस का ध्यान कानफोड़ू म्यूजिक के साथ तेज आवाज में बजते डीजे की तरफ चला गया. फिल्मी धुनों से सजे ये भजन उस के मन में किसी भी तरह से श्रद्धा का भाव नहीं जगा पा रहे थे. बस्ती के चौक में लगे भव्य पंडाल में नौजवानों और बच्चों का जोश देखते ही बनता था. रामदीन ने सुना कि लोक गायक बहुत ही लुभावने अंदाज में नौलखा बाबा की महिमा गाता हुआ उन के चमत्कारों का बखान कर रहा था.

रामदीन खीज उठा और सोचने लगा, ‘बस्ती के बच्चों को तो बस जरा सा मौका मिलना चाहिए आवारागर्दी करने का… पढ़ाईलिखाई छोड़ कर बाबा की महिमा गा रहे हैं… मानो इम्तिहान में यही उन की नैया पार लगाएंगे…’ तभी पीछे से रामदीन के दोस्त सुखिया ने आ कर उस की पीठ पर हाथ रखा, ‘‘भजन सुन रहे हो रामदीन. बाबा की लीला ही कुछ ऐसी है कि जो भी सुनता है बस खो जाता है. अरे, जिस के सिर पर बाबा ने हाथ रख दिया समझो उस का बेड़ा पार है.’’

रामदीन मजाकिया लहजे में मुसकरा दिया, ‘‘तुम्हारे बाबा की कृपा तुम्हें ही मुबारक हो. मुझे तो अपने हाथों पर ज्यादा भरोसा है. बस, ये सलामत रहें,’’ रामदीन ने अपने मजबूत हाथों को मुट्ठी बना कर हवा में लहराया. सुखिया को रामदीन का यों नौलखा बाबा की अहमियत को मानने से इनकार करना बुरा तो बहुत लगा मगर आज कुछ कड़वा सा बोल कर वह अपना मूड खराब नहीं करना चाहता था इसलिए चुप रहा और दोनों बस्ती की तरफ चल दिए.

विनोबा बस्ती में चहलपहल होनी शुरू हो गई थी. नौलखा बाबा का सालाना मेला जो आने वाला है. शहर से तकरीबन 250 किलोमीटर दूर देहाती अंचल में बनी बाबा की टेकरी पर हर साल यह मेला लगता है. 10 दिन तक चलने वाले इस मेले की रौनक देखते ही बनती है. रामदीन को यह सब बिलकुल भी नहीं सुहाता था. पता नहीं क्यों मगर उस का मन यह बात मानने को कतई तैयार नहीं होता कि किसी तथाकथित बाबा के चमत्कारों से लोगों की सभी मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं. अरे, जिंदगी में अगर कुछ पाना है तो अपने काम का सहारा लो न. यह चमत्कारवमत्कार जैसा कुछ भी नहीं होता…

रामदीन बस्ती में सभी को समझाने की कोशिश किया करता था मगर लोगों की आंखों पर नौलखा बाबा के नाम की ऐसी पट्टी बंधी थी कि उस की सारी दलीलें वे हवा में उड़ा देते थे. बाबा के सालाना मेले के दिनों में तो रामदीन से लोग दूरदूर ही रहते थे. कौन जाने, कहीं उस की रोकाटोकी से कोई अपशकुन ही न हो जाए…

विनोबा बस्ती से हर साल बाल्मीकि मित्र मंडल अपने 25-30 सदस्यों का दल ले कर इस मेले में जाता है. सुखिया की अगुआई में रवानगी से पहली रात बस्ती में बाबा के नाम का भव्य जागरण होता है जिस में संघ को अपने सफर पर खर्च करने के लिए भारी मात्रा में चढ़ावे के रूप में चंदा मिल जाता है. अलसुबह नाचतेगाते भक्त अपने सफर पर निकल पड़ते हैं. इस साल सुखिया ने रामदीन को अपनी दोस्ती का वास्ता दे कर मेले में चलने के लिए राजी कर ही लिया… वह भी इस शर्त पर कि अगर रामदीन की मनोकामना पूरी नहीं हुई तो फिर सुखिया कभी भी उसे अपने साथ मेले में चलने की जिद नहीं करेगा…

अपने दोस्त का दिल रखने और उस की आंखों पर पड़ी अंधश्रद्धा की पट्टी हटाने की खातिर रामदीन ने सुखिया के साथ चलने का तय कर ही लिया, मगर शायद वक्त को कुछ और ही मंजूर था. इन्हीं दिनों ही छुटकी को डैंगू हो गया और रामदीन के लिए मेले में जाने से ज्यादा जरूरी था छुटकी का बेहतर इलाज कराना… सुखिया ने उसे बहुत टोका कि क्यों डाक्टर के चक्कर में पड़ता है, बाबा के दरबार में माथा टेकने से ही छुटकी ठीक हो जाएगी मगर रामदीन ने उस की एक न सुनी और छुट्की का इलाज सरकारी डाक्टर से ही कराया.

रामदीन की इस हरकत पर तो सुखिया ने उसे खुल्लमखुल्ला अभागा ऐलान करते हुए कह ही दिया, ‘‘बाबा का हुक्म होगा तो ही दर्शन होंगे उन के… यह हर किसी के भाग्य में नहीं होता… बाबा खुद ही ऐसे नास्तिकों को अपने दरबार में बुलाना नहीं चाहते जो उन पर भरोसा नहीं करते…’’ रामदीन ने दोस्त की बात को बचपना समझते हुए टाल दिया.

सुखिया और रामदीन दोनों ही नगरनिगम में सफाई मुलाजिम हैं. रामदीन ज्यादा तो नहीं मगर 10वीं जमात तक स्कूल में पढ़ा है. उसे पढ़ने का बहुत शौक था मगर पिता की हुई अचानक मौत के बाद उसे स्कूल बीच में ही छोड़ना पड़ा और वह परिवार चलाने के लिए नगरनिगम में नौकरी करने लगा. रामदीन ने केवल स्कूल छोड़ा था, पढ़ाई नहीं… उसे जब भी वक्त मिलता था, वह कुछ न कुछ पढ़ता ही रहता था. खुद का स्कूल छूटा तो क्या, वह अपने बच्चों को खूब पढ़ाना चाहता था.

सुखिया और रामदीन में इस नौलखा बाबा के मसले को छोड़ दिया जाए तो खूब छनती है. दोनों की पत्नियां भी आपस में सहेलियां हैं और आसपास के फ्लैटों में साफसफाई का काम कर के परिवार चलाने में अपना सहयोग देती हैं. एक दिन रामदीन की पत्नी लक्ष्मी को अपने माथे पर बिंदी लगाने वाली जगह पर एक सफेद दाग सा दिखाई दिया. उस ने इसे हलके में लिया और बिंदी थोड़ी बड़ी साइज की लगाने लगी.

 

इश्क की बिसात पर खतरनाक साजिश : भाग 3

सबूत मिलने पर मनीषा ने कुबूला जुर्म

अधिकारियों के निर्देश पर सेना के हवलदार प्रवीण के कातिलों को रंगेहाथ पकड़ने की योजना उन्होंने बनाई थी. योजना के मुताबिक, टारगेट पर उन्होंने मृतक की पत्नी मनीषा को ले रखा था. शक के दायरे में मनीषा तो पहले से ही आ चुकी थी लेकिन पुलिस के पास उस के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं था, इसलिए उस की गिरफ्तारी नहीं हो पा रही थी.
मनीषा के खिलाफ सबूत इकट्ठा करने के लिए पुलिस ने उस के मोबाइल फोन नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया. यही एक आधार बचा था मनीषा की नाक में नकेल कसने
के लिए.
18 फरवरी, 2022 को पुलिस को बड़ी सफलता हाथ लगी. दीपक ने मनीषा को उस के नंबर पर फोन कर के अपने प्यार का इजहार किया और मनीषा ने भी प्रेमी को विश किया था. बस, यही चूक पुलिस की कामयाबी की सीढ़ी बनी.

इसी आधार पर पुलिस ने 18 फरवरी को मनीषा और उस के प्रेमी दीपक को उन के घर से गिरफ्तार कर लिया और थाने ले आई. थाने में दोनों से अलग तरीके से कड़ाई से पूछताछ की गई, जहां पुलिस के सामने दोनों ही टूट गए और अपना गुनाह कुबूल कर लिया.

घटना से परदा उठाती हुई मनीषा ने बताया, ‘‘साहब, उसे मैं नहीं मारती तो वह हम दोनों को मार डालता. पति को हमारे प्यार के बारे में पता चल चुका था. उस ने साफ कह दिया था कि अब उसे हमारी जरूरी नहीं है. तुम ने समाज, बिरादरी में हमारी इज्जत उछाल दी है, इसलिए मैं तुम्हें छोड़ रहा हूं. पति की धमकी से मैं बुरी तरह डर गई थी साहब, इसलिए योजना बना कर मैं ने उसे हमेशा के लिए रास्ते से हटा दिया.’’बहरहाल, हवलदार प्रवीण कुमार हत्याकांड की कहानी पुलिस पूछताछ में कुछ इस तरह से सामने आई—
35 वर्षीय प्रवीण कुमार हरियाणा के चरखी दादरी जिले के बाढड़ा थानाक्षेत्र के गांव डूडीवाला किशनपुरा का मूल निवासी था. वह मेरठ में भारतीय सेना में हवलदार था. उस का अपना भरापूरा परिवार था. अपने परिवार से वह बेहद खुश था. परिवार में 12 साल की एक बेटी और 10 साल का एक बेटा था.
वैसे मनीषा और प्रवीण की शादी करीब 15 साल पहले हुई थी. मनीषा बेहद खूबसूरत थी. गोरीचिट्टी, इकहरे बदन की करीब साढ़े 5 फीट लंबी. लंबे काले बाल, झील सी
गहरी आंखें.

ऐसी सुंदर पत्नी पा कर प्रवीण बेहद खुश था. यही नहीं, मनीषा को भी पति पर नाज था कि वह देश की सरहद की रक्षा करने वाले जवान की पत्नी है.

चचेरे देवर दीपक से हो गया प्यार

बहरहाल, समय का पहिया अपनी गति से घूमता रहा. इस दौरान मनीषा 2 बच्चों की मां बन गई. प्रवीण का पारिवारिक जीवन बेहद सुखमय बीत रहा था. कब सफल जीवन के 15 साल यूं ही बीत गए, न तो प्रवीण को पता चला और न ही मनीषा को.इसी बीच दोनों के दांपत्य जीवन में दीपक नाम का नाग कुंडली मार कर बैठ गया, जो प्रवीण का जीवन लील गया.दीपक प्रवीण का चचेरा भाई था, जो पड़ोस में रहता था. ग्रैजुएशन कर चुका दीपक अभी कुंवारा था. कोई अच्छी नौकरी पा लेने के बाद उस ने शादी का मन बनाया था. सरकारी नौकरी पाने के लिए वह कंपीटिशन की तैयारी में जुटा हुआ था.दीपक की प्रवीण के साथ खूब निभती थी. चूंकि दीपक उस का चचेरा भाई था, इस रिश्ते से दीपक का प्रवीण के घर में आनाजाना था. जब चाहता, वह बेधड़क घर में चला जाता था. पूरा घर घूम कर चला आता था.

जब भी वह घर में दाखिल होता था, भतीजी और भतीजे को अपने शब्दों से गुदगुदाया करता था. बच्चों के पास बैठी मनीषा भी देवर की बातें सुनसुन कर लुत्फ उठाती थी.

भाभी का खिलखिला कर हंसना दीपक के कोरे मन पर गहरा असर डालता था. पता नहीं क्यों वह अपनी भाभी को हंसते देखता तो वह मुग्ध हो जाता था और उस के जिस्म में एक झुरझुरी सी दौड़ पड़ती थी.
मनीषा को भी देवर दीपक का उसे आशिकी की नजरों से देखना पता नहीं क्यों अच्छा लगने लगा था.
एक दिन मनीषा दीपक से सवाल कर बैठी थी, ‘‘क्या बात है देवरजी, आजकल देख रही हूं मैं कि आप मेरी जवानी को बड़ी आशिकी नजरों से देखते हैं.’’

‘‘नहीं तो भाभीजी, ऐसी कोई बात नहीं है, जैसा आप समझती हैं.’’ सकपकाते हुए दीपक ने उत्तर दिया.
‘‘क्यों झूठ बोलते हो देवरजी, पुरुषों के हावभाव से औरत पहचान जाती है कि सामने वाले के मन में क्या चल रहा है. मैं सब जानती हूं कि आप के मन में क्या चल रहा है.’’ शरारत भरे शब्दों से दीपक के मन को मनीषा ने टटोलने की कोशिश की.

‘‘मैं ने कहा न भाभी, आप जैसा सोच रही हैं, ऐसी कोई बात नहीं है. फिर आप मेरी अच्छी दोस्त भी हैं तो भला आप से क्या छिपाना? अगर कोई बात मेरे मन में चल रही होगी तो मैं सब से पहले आप से ही शेयर करूंगा.’’ दीपक बोला.‘‘पक्का न,बात जरूर शेयर करेंगे मेरे से.’’ मनीषा ने मुसकराते हुए कहा.
‘‘हां..हां..हां…मैं जरूर शेयर करूंगा आप से.’’दीपक मनीषा से था 10 साल छोटा

दीपक बात कहने को कह तो गया था लेकिन हकीकत में अपने से 10 साल बड़ी भाभी मनीषा से वह दिल लगा बैठा था. दीपक ने अपने मन के सौफ्ट कोने में मनीषा के लिए प्यार का घर बना लिया था. वह अपनी भाभी से प्यार करने लगा था. मनीषा ने दीपक के मन की बात अपनी आंखों से पढ़ ली थी.
वह जान चुकी थी कि दीपक उस से प्यार करने लगा है तो मनीषा भी खुद को ना नहीं कर सकी. वह भी दीपक के प्यार में पतंग बनी डोर के समान लिपट गई.

15 साल पहले फेरे लेते समय उस ने अग्नि के समक्ष जो कसमें खाई थीं, 3 महीने के प्यार के सामने भूल गई. पति को दिया वचन याद नहीं रहा. उसे याद रहा तो बस अपने से 10 साल छोटे प्रेमी का प्यार. मनीषा यह भी भूल गई कि वह 2 बच्चों की मां है. कहीं इस प्यार वाले रिश्ते की सच्चाई समाज में जाहिर हुई तो उन का क्या होगा.

कहते हैं, प्यार अंधा होता है. मनीषा भी दीपक के प्यार में अंधी हो चुकी थी. उस के सिर पर दीपक के प्यार का भूत इस कदर सवार था कि उसे दीपक के सिवाय कुछ नहीं दिख रहा था. दीपक का भी हाल कुछ ऐसा ही था.

मोहब्बत की आग दोनों तरफ बराबर लगी हुई थी. पति नौकरी पर घर से दूर था. उन्हें मिलने से भी कोई रोक नहीं सकता था. दीपक का घर में आनाजाना तो बराबर था ही. वे देवरभाभी के रिश्तों की आड़ में घिनौना खेल खेल रहे थे.

बात इसी साल जनवरी की है. दोपहर का वक्त था. मनीषा घर में अकेली थी. उस के दोनों बच्चे स्कूल गए हुए थे. ठंड से कांपती मनीषा बैड पर बैठी रजाई में दुबकी हुई थी. तभी दीपक वहां आ पहुंचा. दीपक को देख कर उस का चेहरा खिल उठा. यही हाल दीपक का भी था.
मनीषा ने दीपक को इशारा कर के अपने पास रजाई में बैठने के लिए बुलाया तो दीपक का दिल धड़कने लगा. फिर उसे निहारते हुए उस के करीब रजाई में बैठ गया.अनुभवी मनीषा ने दीपक को पढ़ा दिया कामकला का पाठ

मनीषा के गरम जिस्म से जब दीपक का बदन स्पर्श हुआ तो उसे असीम आनंद की अनुभूति हुई. उधर मनीषा का रोमरोम खिल उठा था. फिर दीपक आहिस्ताआहिस्ता मनीषा की ओर बढ़ता चला गया और मनीषा उस के प्यार में डूबती हुई बिछती चली गई. पलभर में एक तूफान उठा और रिश्तों की मर्यादा को कलंकित कर गया.

दीपक और मनीषा को जब होश आया तब तक बहुत देर हो चुकी थी. पहली बार औरत के जिस्म का स्वाद चख कर दीपक का रोमरोम खिल उठा था. उस दिन के बाद से दोनों को जब भी मौका मिलता था, जिस्मानी रिश्ता बना लेते थे.लेकिन दोनों का यह खेल ज्यादा दिनों तक टिक नहीं सका. किसी स्रोत से यह जानकारी मेरठ में नौकरी कर रहे हवलदार प्रवीण को हो गई थी. पत्नी की अनैतिकता और चरित्रहीनता की कहानी सुन कर प्रवीण को बहुत गुस्सा आया.

पत्नी को सबक सिखाने के लिए नौकरी से कुछ दिनों की छुट्टी ले कर प्रवीण जनवरी 2022 के आखिरी सप्ताह में अपने घर आया. घर आया तो जरूर लेकिन वह पत्नी को उस के प्रेमी के साथ रंगेहाथ पकड़ना चाहता था, इसलिए प्रवीण ने पत्नी को कुछ नहीं बताया कि उस के अनैतिक रिश्तों की जानकारी उसे मिल चुकी है, नहीं तो वह सतर्क हो जाती.

प्रवीण ने पत्नी को पकड़ लिया रंगेहाथ

आखिरकार 3 फरवरी, 2022 की रात उस समय प्रवीण ने पत्नी को उस के प्रेमी के साथ रंगेहाथ पकड़ लिया था, जब वह किचन में आटा गूंथ रही थी और उस का प्रेमी दीपक उस से लिपटा हुआ था.
यह देख कर प्रवीण के तनबदन में आग सी लग गई. प्रवीण ने दोनों को जम कर लताड़ा. माहौल गरम देख कर दीपक दबेपांव वहां से अपने घर लौट गया तो प्रवीण ने पत्नी को डांटा, फटकार लगाई और जम कर मारा भी. प्रवीण ने उसे अपने साथ रखने से इंकार कर दिया. पति के इस फैसले से मनीषा बुरी तरह डर गई.

चूंकि मनीषा जानती थी कि उस ने जो किया था, वह गलत था. अगर पति ने उसे छोड़ दिया तो वह कहां जाएगी. समाज में किसे मुंह दिखाएगी. उसी वक्त उस के दिमाग में एक खतरनाक योजना ने जन्म लिया. उस ने तय कर लिया कि इस राज को राज रखना है तो पति को मारना होगा, वरना वह मुझे मार डालेगा.

फिर क्या था, उस ने नारी रूप का जाल फैलाया और आंखों में घडि़याली आंसू भर पति को मनाने में सफल हो गई. उस ने अपने किए की पति से माफी मांगी और उसे भरोसा दिलाने में कामयाब हो गई कि अब दीपक से उस का कोई वास्ता नहीं होगा. पत्नी के माफी मांगने पर प्रवीण का दिल पसीज गया और उस ने सच्चे दिल से उसे माफ कर दिया.
मनीषा यही चाहती भी थी. मामला जब पूरी तरह शांत हो गया तो उस ने पति से कहा, ‘‘आप हाथमुंह धो लीजिए, मैं आप के लिए खाना परोस कर लाती हूं.’’

प्रवीण क्या जानता था कि यह निवाला उस के जीवन का आखिरी निवाला होगा. उस ने जिसे अपने शरीर का आधा अंग समझ कर माफ कर दिया था, वही उस के जीवन को लील लेगी.खैर, पति को मना कर कमरे में भेज दिया. दोनों बच्चे खाना खा कर पहले ही दूसरे कमरे में सो चुके थे. मनीषा कमरे में गई और चुपके से अलमारी से नींद की गोली का पूरा पत्ता निकाल कर रसोई में पहुंची. फिर सभी गोलियों का चूर्ण बना कर आधीआधी कर के दाल और सब्जी की कटोरी में डाल कर अच्छी तरह मिला दिया ताकि दवा पूरी तरह मिक्स हो जाए और अपना असर तुरंत दिखाए.

प्रवीण ने खाना खाया और अपने कमरे में सोने चला गया. बिस्तर पर लेटते ही वह गहरी नींद के आगोश में चला गया. पति के गहरी नींद में आने के बाद मनीषा ने उसे हिलाडुला कर देखा कि कहीं वह अपने मकसद में अधूरी तो नहीं रह गई है. लेकिन वह अपनी चाल में सफल हो चुकी थी.

पति के नींद में जाने के बाद मनीषा ने दीपक को फोन कर के बुलाया. जब दीपक मनीषा के घर पहुंचा तो उस ने सारी योजना उसे बता दी. योजना के मुताबिक, दीपक ने सो रहे प्रवीण के पैर दबोचे तो मनीषा ने अपने हाथों से पति का गला घोट दिया.

पलभर के लिए फौजी प्रवीण के मुर्दे जिस्म ने हरकत की, फिर वह शांत हो गया. मनीषा को अभी भी यकीन नहीं हो रहा था कि उस का पति मर चुका है. फिर उस ने तौलिया पति के मुंह पर रख कर उसे तब तक दबाए रखा जब उसे यकीन हो गया कि प्रवीण सचमुच मर चुका है.उस के बाद दोनों ने सबूत मिटाने के लिए तौलिया और नींद वाली दवा की रैपर उसी रात जला दिए ताकि कोई भी सबूत पुलिस के हाथ न लगे और उन्हें जेल जाना पड़े.

लेकिन दोनों की छोटी सी गलती ने उन्हें सलाखों के पीछे पहुंचा दिया. इश्क की बिसात पर बिछाई खतरनाक साजिश की पुलिस ने बखिया उधेड़ दी.मनीषा की गलतियों से उस के दोनों बच्चों के सिर से मातापिता का साया उठ गया. कथा लिखे जाने तक पुलिस ने दोनों आरोपियों मनीषा और दीपक के खिलाफ हत्या और साक्ष्य मिटाने की धारा में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था और उन के खिलाफ अप्रैल 2022 में आरोपपत्र भी अदालत में दाखिल कर दिया.

मेरे पति सेक्स के दौरान बहुत हिंसक हो जाते हैं, मैं क्या करूं?

सवाल-

28 वर्षीय विवाहित महिला हूं. शादी हुए 2 साल हो गए हैं. ससुराल में किसी चीज की कमी नहीं है. पति सरकारी सेवा में हैं और ओहदेदार हैं. वे स्कूल में टौपर स्टूडैंट थे तो कालेज में यूनिवर्सिटी टौपर. अपने कार्यालय में भी उन के कामकाज पर कभी किसी ने उंगली नहीं उठाई. मगर समस्या मेरी व्यक्तिगत जिंदगी को ले कर है और ऐसी है जिस का अब तक सिर्फ मेरी मां को और मेरी सासूमां को पता है.

दरअसल, पति सेक्स संबंध बनाने के दौरान हिंसक व्यवहार करते हैं. वे मुझे पोर्न मूवी साथ देखने को कहते हैं और फिर सेक्स संबंध बनाते हैं. इस दौरान वे मेरे कोमल अंगों को जोरजोर से मसलते हैं और उन पर दांत भी गड़ा देते. कभी-कभी तो मेरी ब्रैस्ट से खून तक निकलने लगता है. इस असहनीय पीड़ा के बाद मेरा बिस्तर पर से उठना मुश्किल हो जाता है. पति मेरी इस हालत को देख कर अफसोस करते हैं और बारबार सौरी भी बोलते हैं. कभीकभी तो मन करता है आत्महत्या कर लूं.

हालांकि पति मेरी जरूरत की हर चीज का खयाल रखते हैं और मेरा उन से दूर होना उन्हें इतना अखरता है कि वे मेरे बिना एक पल भी नहीं रह पाते. अगर पति सिर्फ मानसिक पीड़ा पहुंचाते और प्यार नहीं करते तो कब का उन्हें तलाक दे देती पर लगता है शायद वे किसी मानसिक रोग से ग्रस्त हैं और यही सोच कर मैं भी पति का साथ नहीं छोड़ पाती. मैं ने अपनी सासूमां, जो मुझे अपनी बेटी से बढ़ कर प्यार करती हैं, से यह बात बताई तो वे खामोश रहीं.

सिर्फ इतना ही कहा कि धीरे-धीरे सब नौर्मल हो जाएगा. उधर मां से बताया तो वे आगबबूला हो गईं और सब के साथ बैठ कर इस विषय पर बात करना चाहती हैं. अभी इस की जानकारी मेरे पिता को नहीं है, क्योंकि मैं जानती हूं कि वे इस मुद्दे पर चुप नहीं बैठेंगे. पति, ससुराल और मायके का रिश्ता पलभर में खत्म हो सकता है. कुछ समझ नहीं आ रहा कि क्या करूं? कृपया सलाह दें?

जवाब-

आप की समस्या को देखते हुए ऐसा लगता है कि आप के पति को सेक्सुअल सैडिज्म का मनोविकार है. ऐसे मनोरोगी सामान्य जिंदगी में तो नौर्मल रहते हैं, इन के आचरण पर किसी को शक नहीं होता पर सेक्स क्रिया के दौरान ये हिंसक हो जाते हैं और इन्हें परपीड़ा मसलन, दांत गड़ाना, नोचना, संवेदनशील अंगों पर प्रहार करना, तेज सेक्स करने में आनंद आता है. कभीकभी तो ऐसे मनोरोगी सेक्स पार्टनर को इतनी अधिक पीड़ा पहुंचाते हैं कि संबंधों पर विराम लग जाता है.

हालांकि अपने किए पर इन्हें बाद में पछतावा भी होता है और फिर से ऐसी गलती न करने का वादा भी करते हैं, मगर सेक्स के दौरान सब भूल जाते हैं. आप के साथ भी ऐसा है और आप ने यह अच्छा किया कि अपनी मां और सासूमां को इन सब बातों की जानकारी दे दी. ऐसे मनोरोगी को भावनात्मक सहारे की जरूरत होती है.

सामान्य व्यवहार के समय आप पति से इस बारे में बात करें. पति के साथ अधिक से अधिक वक्त बिताएं. साथ घूमने जाएं, शौपिंग करें, अच्छा साहित्य पढ़ने को प्रेरित करें. बेहतर होगा कि किसी अच्छे सेक्सुअल सैडिज्म के विशेषज्ञ से पति का उपचार कराएं. फिर भी उम्मीद की कोई किरण नजर नहीं आती दिखे तो पति से तलाक ले कर दूसरी शादी कर लें.

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