तांती – भाग 3 : क्या अपनी हवस पूरी कर पाया बाबा

मंदिर पहुंचतेपहुंचते दोपहर हो चली थी. पुजारीजी अपने कमरे में एयरकंडीशनर चला कर आराम फरमा रहे थे. उन्हें अपने आराम में खलल अच्छा नहीं लगा. पहले तो उन्होंने रामदीन को पहचाना ही नहीं, फिर लक्ष्मी को देख कर खिल उठे.

अपने बिलकुल पास बिठा कर तांती को छूने के बहाने उस का हाथ पकड़ते हुए बोले, ‘‘अरे तुम… क्या, तुम्हारा दाग तो बढ़ रहा है.’’ ‘‘वही तो मैं भी जानना चाहता हूं. आप ने तो कितने भरोसे के साथ कहा था कि यह ठीक हो जाएगा,’’ रामदीन जरा तेज आवाज में बोला.

‘‘लगता है कि तुम ने तांती के नियमों की पालना नहीं की,’’ पुजारीजी ने अब भी लक्ष्मी का हाथ थाम रखा था. ‘‘अब इस में भी नियमकायदे होते हैं क्या?’’ इस बार लक्ष्मी अपना हाथ छुड़ाते हुए धीरे से बोली. ‘‘और नहीं तो क्या. क्या जो दक्षिणा तुम ने बाबा के चरणों में चढ़ाई थी वह दान का पैसा नहीं था?’’ पुजारी ने पूछा.

‘‘दान का पैसा… क्या मतलब?’’ रामदीन ने पूछा. ‘‘मतलब यह कि तांती दान के पैसे से ही बांधी जाती है, वरना उस का असर नहीं होता. तुम एक काम करो, अपने पासपड़ोसियों और रिश्तेदारों से कुछ दान मांगो और वह रकम दक्षिणा के रूप में यहां भेंट करो… तब तांती सफल होगी,’’ पुजारीजी ने समझाया.

‘‘यानी हाथ पर बंधी यह तांती बेकार हो गई,’’ कहते हुए लक्ष्मी परेशान हो गई. ‘‘हां, अब इस का कोई मोल नहीं रहा. अब तुम जाओ और जब दक्षिणा लायक दान जमा हो जाए तब आ जाना… नई तांती बांधेंगे. और हां, नास्तिक लोगों को जरा इस से दूर ही रखना,’’ पुजारी ने कहा तो रामदीन उस का मतलब समझ गया कि उस का इशारा किस की तरफ है.

दोनों अपना सा मुंह ले कर लौट आए. सुखिया को जब पता चला तो वह बोला, ‘‘ठीक ही तो कह रहे हैं पुजारीजी… तांती भी कोई जेब के पैसों से बांधता है क्या, तुम्हें इतना भी नहीं पता?’’

तांती के लिए दान जमा करतेकरते फिर से बाबा के सालाना मेले के दिन आ गए. इस बार सुखिया के रामदीन से कह दिया कि चाहे नगरनिगम से लोन लेना पड़े मगर उसे और भाभी को पैदल संघ के साथ चलना ही होगा. रामदीन जाना तो नहीं चाहता था, उस ने एक बार फिर से लक्ष्मी को समझाने की कोशिश की कि चल कर डाक्टर को दिखा आए मगर लक्ष्मी को तांती की ताकत पर पूरा भरोसा था. वह इस बार पूरे विधिविधान के साथ इसे बांधना चाहती थी ताकि नाकाम होने की कोई गुंजाइश ही न रहे.

रामदीन को एक बार फिर अपनों के आगे हारना पड़ा. हमेशा की तरह रातभर के जागरण के बाद तड़के ही नाचतेगाते संघ रवाना हो गया. बस्ती पार करते ही मेन सड़क पर आस्था का सैलाब देख कर लक्ष्मी की आंखें हैरानी से फैल गईं. उस ने रामदीन की तरफ कुछ इस तरह से देखा मानो उसे अहसास दिला रही हो कि इतने सालों से वह क्या खोता आ रहा है. दूर निगाहों की सीमा तक भक्त ही भक्त… भक्ति की ऐसी हद उस ने पहली बार ही देखी थी.

अगले ही चौराहे पर सेवा शिविर लगा था. संघ को देखते ही सेवादार उन की ओर लपके और चायकौफी की मनुहार करने लगे. सब ने चाय पी और आगे चले. कुछ ही दूरी पर फ्रूट जूस और चाट की सेवा लगी थी. सब ने जीभर कर खाया और कुछ ने महंगे फल अपने साथ लाए झोले के हवाले किए. पानी का टैंकर तो पूरे रास्ते चक्कर ही लगा रहा था. दिनभर तरहतरह की सेवा का मजा लेते हुए शाम ढलने पर संघ ने वहीं सड़क के किनारे अपना तंबू लगाया और सभी आराम करने लगे.

तभी अचानक कुछ सेवादार आ कर उन के पैर दबाने लगे. लक्ष्मी के लिए यह सब अद्भुत था. उसे वीआईपी होने जैसा गुमान हो रहा था. उधर रामदीन सोच रहा था, ‘लक्ष्मी की मनोकामना पूरी होगी या नहीं पता नहीं मगर बच्चों की कई अधूरी कामनाएं जरूर पूरी हो जाएंगी. ऐसेऐसे फल, मिठाइयां, शरबत और मेवे खाने को मिल रहे हैं जिन के उन्होंने केवल नाम ही सुने थे.’ 10 दिन मौजमस्ती करते, सेवा करवाते आखिर पहुंच ही गए बाबा के धाम… 3 किलोमीटर लंबी कतार देख कर रामदीन के होश उड़ गए. दर्शन होंगे या नहीं… वह अभी सोच ही रहा था कि सुखिया ने कहा, ‘‘वह देख. ऊपर बाबा के मंदिर की सफेद ध्वजा के दर्शन कर ले… और अपनी यात्रा को सफल मान.’’

‘‘मगर दर्शन?’’ ‘‘मेले में ऐसे ही दर्शन होते हैं… चल पुजारीजी के पास भाभी को ले कर चलते हैं,’’ सुखिया ने समझाया.

पुजारीजी बड़े बिजी थे मगर लक्ष्मी को देखते ही खिल उठे. वे बोले, ‘‘अरे तुम. आओआओ… इस बार विधिवत तरीके से तुम्हें तांती बांधी जाएगी…’’ फिर अपने सहायक को इशारा कर के लक्ष्मी को भीतर आने को कहा. रामदीन और सुखिया को बाहर ही इंतजार करने को कहा गया. काफी देर हो गई मगर लक्ष्मी अभी तक बाहर नहीं आई थी. सुखिया शांति और बच्चों को मेला घुमाने ले गया.

रामदीन परेशान सा वहीं बाबा के कमरे में चहलकदमी कर रहा था. एकदो बार उस ने भीतर कोठरी में झांकने की कोशिश भी की मगर बाबा के सहायकों ने उसे कामयाब नहीं होने दिया. अब तो उस का सब्र जवाब देने लगा था. मन अनजाने डर से घबरा रहा था. रामदीन हिम्मत कर के कोठरी के दरवाजे की तरफ कदम बढ़ाए. सहायकों ने उसे रोकने की कोशिश की मगर रामदीन उन्हें धक्का देते हुए कोठरी में घुस गया.

कोठरी के भीतर नीम अंधेरा था. एक बार तो उसे कुछ भी दिखाई नहीं दिया. धीरेधीरे नजर साफ होने पर उसे जो सीन दिखाई दिया वह उस के होश उड़ाने के लिए काफी था. लक्ष्मी अचेत सी एक तख्त पर लेटी थी. वहीं बाबा अंधनगा सा उस के ऊपर तकरीबन झुका हुआ था. रामदीन ने बाबा को जोर से धक्का दिया. बाबा को इस हमले की उम्मीद नहीं थी, वह धक्के के साथ ही एक तरफ लुढ़क गया.

रामदीन के शोर मचाने पर बहुत से लोग इकट्ठा हो गए और गुस्साए लोगों ने बाबा और उस के चेलों की जम कर धुनाई कर दी. खबर लगते ही मेले का इंतजाम देख रही पुलिस आ गई और रामदीन की लिखित शिकायत पर बाबा को गिरफ्तार कर के ले गई.

तब तक लक्ष्मी को भी होश आ चुका था. घबराई हुई लक्ष्मी को जब पूरी घटना का पता चला तो वह शर्म और बेबसी से फूटफूट कर रो पड़ी. रामदीन ने उसे समझाया, ‘‘तू क्यों रोती है पगली. रोना तो अब उस पाखंडी को है जो धर्म और आस्था की आड़ ले कर भोलीभाली औरतों की अस्मत से खेलता आया है.’’

सुखिया को जब पता चला तो वह दौड़ादौड़ा पुजारी के कमरे की तरफ आया. वह भी इस सारे मामले के लिए अपने आप को कुसूरवार ठहरा रहा था क्योंकि उसी की जिद के चलते रामदीन न चाहते हुए भी यहां आया था और लक्ष्मी इस वारदात का शिकार हुई थी. सुखिया ने रामदीन से माफी मांगी तो रामदीन ने उसे गले से लगा कर कहा, ‘‘तुम क्यों उदास होते हो? अगर आज हम यहां न आते तो यह हवस का पुजारी पुलिस के हत्थे कैसे चढ़ता? इसलिए खुश रहो… जो हुआ अच्छा हुआ…’’

‘‘हम घर जाते ही किसी अच्छे डाक्टर को यह सफेद दाग दिखाएंगे,’’ लक्ष्मी ने अपने हाथ पर बंधी तांती तोड़ कर फेंकते हुए कहा और सब घर जाने के लिए बसस्टैंड की तरफ बढ़ गए. शांति अपने बेटे हरिया की शक्ल के पीछे झांकती पुजारी की परछाईं को पहचानने की कोशिश कर रही थी.

क्यों का प्रश्न नहीं : भाग 3

‘17 साल की उम्र में फौज में गया तो वहां भी इस क्यों ने मेरा पीछा नहीं छोड़ा. सही होता तो भी क्यों का प्रश्न किया जाता और सही न होता तो भी. 11 साल तक तन, मन, धन से घर वालों की सेवा की. परिवार छूटते समय मेरे समक्ष फिर यह क्यों का प्रश्न था कि मैं ने अपने लिए क्यों कुछ बचा कर नहीं रखा. तुम से शादी हुई, पहली रात तुम्हें कुछ दे नहीं पाया, मुझे पता ही नहीं था कि कुछ देना होता है. पता होता भी तो दे नहीं पाता. मेरे पास कुछ था ही नहीं. 2 महीने की छुट्टी में मिले पैसे से मैं ने शादी की थी. मैं तुम्हें सब कैसे बताता और तुम क्यों सुनतीं? बताने पर शायद कहतीं, ऐसा था तो शादी क्यों की?

‘‘तुम्हारे समक्ष मेरी इमेज क्या थी? मैं बड़ी अच्छी तरह जानता हूं. तुम ने इस इमेज को कभी सुधरने का मौका नहीं दिया, अफसर बनने पर भी. उलटे मुझे ही दोष देती रहीं. तुम्हारे रिश्तेदार मेरे मुंह पर मुझे आहत कर के जाते रहे, कभी तुम ने इस का विरोध नहीं किया. मुझे याद है, तुम्हारी बहन रचना की नईनई शादी हुई थी. रचना और उस के पति को अपने यहां बुलाना था. तुम चाहती थीं, शायद रचना भी चाहती थी कि इस के लिए मैं उस के ससुर को लिखूं.

‘‘मैं ने साफ कहा था, मेरा लिखना केवल उस के पति को बनता है, उस के ससुर को नहीं. जैसे मैं साहनी परिवार का दामाद हूं, वैसे वह है. मैं उस का ससुर नहीं हूं. बात बड़ी व्यावहारिक थी परंतु तुम ने इस को अपनी इज्जत का सवाल बना लिया था. मन के भीतर अनेक क्यों के प्रश्न होते हुए भी मैं तुम्हारे सामने झुक गया था. मैं ने इस के लिए उस के ससुर को लिखा था.

‘‘जीवन में तुम ने कभी मेरे साथ समझौता नहीं किया. हमेशा मैं ने वह किया जो तुम चाहती थीं. रचना और उस का पति आए तो मिलन के लिए वे रात तक इंतजार नहीं कर सके थे. हमें दिन में ही उन के लिए एकांत का प्रबंध करना पड़ा. मुझे बहुत बुरा लगा था.

‘‘मैं समझ नहीं पाया था कि ऐसा कर के वे हमें क्या बताना चाहते थे? यदि हम उन के यहां जाते तो क्या वे ऐसा कह और कर सकते थे?

‘‘तुम्हें याद होगा, अपनी सीमा से अधिक हम ने उन को दिया था. रचना ने क्या कहा था, वह अपने ससुराल में अपनी ओर से इतना और कह देगी कि यह दीदीजीजाजी ने दिया है. जिस का साफ मतलब था कि जो कुछ दिया गया है, वह कम था. मैं मन से बड़ा आहत हुआ था.

‘‘रचना को इस प्रकार आहत करने, बेइज्जत करने और इस कमी का एहसास दिलाने का कोई हक नहीं था. मैं ने तुम्हारी ओर देखा था, शायद तुम इस प्रकार उत्तर दो पर तुम्हें अपने रिश्तेदारों के सामने मेरे इस प्रकार आहत और बेइज्जत होने का कभी एहसास नहीं हुआ.

‘‘क्यों, मैं इस का उत्तर कभी ढूंढ़ नहीं पाया. रचना को मैं ने उत्तर दिया था, ‘तुम्हें कमी लगी थी तो कह देतीं, जहां इतना दिया था, वहां उसे भी पूरा कर देते पर तुम्हें इस कमी का एहसास दिलाने का कोई अधिकार नहीं था. तुम अपने ससुराल में अपनी और हमारी इज्जत बनाना चाहती थीं न? मजा तब था कि बिना एहसास दिलाए इस कमी को पूरा कर देतीं. पर इस झूठ की जरूरत क्या है? क्या इस प्रकार तुम हमारी इज्जत बना पातीं? मुझे नहीं लगता, क्योंकि झूठ, झूठ ही होता है. कभी न कभी खुल जाता. उस समय तुम्हारी स्थिति क्या होती, तुम ने कभी सोचा है?’

‘‘रचना मेरे इन प्रश्नों का उत्तर नहीं दे पाई थी. जो बात तुम्हें कहनी चाहिए थी, उसे मैं ने कहा था. उन के जाने के बाद कई दिनों तक तुम ने मेरे साथ बात नहीं की थी. उस रोज तो हद हो गई थी जब मैं अपने एक रिश्तेदार की मृत्यु पर गया था. वे केवल मेरे रिश्तेदार नहीं थे बल्कि उन के साथ तुम्हारा भी संबंध था. उन्होंने किस तरह मुझ से तुम्हारे ब्याह के लिए प्रयत्न किया था, तुम भूल गईं. उसी परिवार ने बाऊजी के मरने पर भी सहयोग किया था.

‘‘वहां मुझ से 500 रुपए खर्च हो गए थे. उस के लिए तुम ने किस प्रकार झगड़ा किया था, कहने की जरूरत नहीं है. तुम ने तो यहां तक कह दिया था कि तुम मेरे पैसे को सौ जूते मारती हो. मेरे पैसे को सौ जूते मारने का मतलब मुझे भी सौ जूते मारना.

‘‘मैं तुम्हारे किन रिश्तेदारों की मौत के सियापे करने नहीं गया. उन्हीं रिश्तेदारों ने माताजी के मरने पर आना तो दूर, किसी ने फोन तक नहीं किया. किसी को डिप्रैशन था, किसी के घुटनों में दर्द था. तुम्हारी भाषा की कड़वाहट आज भी भीतर तक कड़वाहट से भर देती है. पर अब इन सब बातों का क्या फायदा? मैं तो केवल इतना जानता हूं कि आप लोगों के सामने मैं हमेशा गरीब बना रहा. किसी बाप को गरीब नहीं होना चाहिए. गरीब हो तो उस में ताने सुनने की ताकत होनी चाहिए. अगर सुनने की ताकत न हो तो उस की हालत घर के कुत्ते से भी बदतर होती है.

‘‘घर के कुत्ते को जितना मरजी दुत्कारो, वह घर की ओर ही आता है. घर को छोड़ कर न जाना उस की मजबूरी होती है. यह मजबूरी जीवनभर चलती है. काश, मैं पहले ही घर को छोड़ कर चला आया होता. मैं खुद ही अपने आत्मसम्मान को रख नहीं पाया था. यदि ऐसा करता तो मेरे उन कर्मों का क्या होता जो मुझे हर हाल में भुगतने थे.’’

‘‘गलतियां हुई हैं, मैं मानती हूं. क्या इन सब को भूल कर आगे की जिंदगी अच्छी तरह से नहीं जी जा सकती,’’ इतनी देर से चुप मेरी पत्नी ने कहा.

‘‘हर रोज यही कोशिश करता हूं कि सब भूल जाऊं. भूल जाऊं कि जिंदगी के हर मोड़ पर मुझे लताड़ा गया है. हर कदम पर मैं ने आत्मसम्मान को खोया है. भूल जाऊं कि हर गलती के लिए मुझे ही दोषी ठहराया जाता रहा है. चाहे वह सोफे के खराब होने की बात हो या कुरसियों के टूटने की. मैं कैसे कहता कि ये बच्चों की उछलकूद से हुआ है. अगर कहता भी तो इसे कौन मानता.

‘‘मैं ने बड़ी मुश्किल से अपनेआप को संभाला है, अपने ढंग से जिंदगी को सैट किया है. चाहे पहले की यादें मुझे हर रोज पीडि़त करती हैं तो भी मुझे यहां राजी के साथ से कोई एतराज नहीं है परंतु इसे अपनी जिंदगी के दिन दूसरे कमरे में गुजारने होंगे. इस की पूरी सेवा होगी. इस की सारी जरूरतों का ध्यान रखा जाएगा. इस की तकलीफों के बारे में हर रोज पूछा जाएगा और इलाज करवाया जाएगा. इस ने चाहे मुझे हजार रुपया महीना देना स्वीकार न किया हो पर मैं इसे 5 हजार रुपए महीना दूंगा.

‘‘24 घंटे टैलीफोन इस के सिरहाने रहेगा, चाहे जिस से बात करे. पर मेरे जीवन में इस का कोई दखल नहीं होगा. मैं कहां जाता हूं, क्या करता हूं, इस पर कोई क्यों का प्रश्न नहीं होगा. मुझे कोई भी फौरमैलिटी बरदाश्त नहीं होगी. बस, इतना ही.’’

वे दोनों चुप रहे. शायद उन को मेरी बातें मंजूर थीं. मैं ने बेबे से कह कर राजी का सामान दूसरे कमरे में रखवा दिया.

 

ASI के फरेेबी प्यार में बुरे फंसे थाना प्रभारी : भाग 2

इसी सिलसिले में यह भी बात सामने आई कि रंजना टीआई को ब्लैकमेल कर 50 लाख रुपए वसूल चुकी थी. वह उस का इकलौता शिकार नहीं थे, बल्कि पहले भी 3 पुलिसकर्मियों पर दुष्कर्म का आरोप लगा कर उन से लाखों रुपए वसूल चुकी थी. रंजना खांडे मूलरूप से खरगोन के धामनोद की रहने वाली थी.

उस के बाद ही करीब 3 बजे पुलिस कमिश्नर के औफिस के बाहर गोलियां चली थीं. टीआई पंवार इस वारदात को ले कर घर से ही पूरा मन बना कर आए थे. यहां तक कि वह अपनी पत्नी तक से आक्रोश जता चुके थे. उन्होंने कहा था कि गोविंद जायसवाल से पैसे ले कर ही लौटेंगे.
कपड़ा व्यापारी गोविंद को उन्होंने 25 लाख रुपए दिए थे, जो लौटाने में आनाकानी कर रहा था. उन्होंने पत्नी लीलावती उर्फ वंदना से यह भी कहा था कि यदि उस ने पैसे नहीं दिए तो वह उसे मार डालेंगे. बात नहीं बनी तो अपनी जान भी दांव पर लगा देंगे.

58 साल के हाकम सिंह पंवार की नियुक्ति इसी साल 6 फरवरी को भोपाल के श्यामला हिल्स थाने में हुई थी. इस से पहले वह गौतमपुर, खुडेल, सर्राफा थाना, इंदौर कोतवाली, खरगोन, भिकमगांव महेश्वर, राजगढ़ में पदस्थापित रह चुके थे.उन का निवास स्थान वटलापुर इलाके में था. वहां उन्होंने एक फ्लैट किराए पर ले रखा था, लेकिन रहने वाले मूलत: उज्जैन जिले के तराना कस्बे के थे. वह भोपाल में अकेले रहते थे. मध्य प्रदेश पुलिस में वह सन 1988 में कांस्टेबल के पद पर भरती हुए थे. बताया जाता है कि उन्होंने 5 शादियां कर रखी थीं.

पहली शादी उन्होंने लीलावती उर्फ वंदना से की थी. बताया जाता है कि दूसरी शादी उन्होंने सीहोर की रहने वाली सरस्वती से की. गौतमपुरा में पोस्टिंग के दौरान उन की मुलाकात रेशमा उर्फ जागृति से हुई जो मूलरूप से इंदौर की पुरामत कालोनी की रहने वाली थी. वह उन की तीसरी पत्नी बनी.
मजीद शेख की बेटी रेशमा ने टीआई हाकिमसिंह पंवार पर अपना इस तरह प्रभाव जमा लिया था कि वह उन से जब चाहे तब पैसे ऐंठती रहती थी. चौथी प्रेमिका के रूप में रंजना खांडे उन के जीवन में आई. हाकमसिंह की सर्विस बुक में लता पंवार का नाम है. चर्चा यह भी है कि भोपाल में तैनाती के दौरान उन्होंने माया नाम की महिला से शादी की थी. पुलिस इन सब की जांच कर रही है.

रंजना 3 पुलिस वालों से ऐंठ चुकी थी ,70 लाख रुपए जांच में पता चला कि सन 2012 में मध्य प्रदेश पुलिस में भरती हुई रंजना धार जिले के कस्बा धामनोद की रहने वाली थी और मौजूदा समय में इंदौर की सिलिकान सिटी में रह रही थी. उस की पंवार से अकसर मुलाकात महेश्वर थाने में होती थी.
वह महेश्वर थाने पर पंवार से मिलने के लिए 12 किलोमीटर की दूरी तय कर आती थी. रंजना के साथ उस का भाई कमलेश खांडे भी पंवार से मिलता रहता था.

रजंना और कमलेश ने मिल कर ब्लैकमेलिंग का तानाबाना बुना था. 28 वर्षीय कमलेश रंजना का भाई था. उस के बारे में मालूम हुआ कि वह एक आवारा किस्म का व्यक्ति था.3 पुलिसकर्मियों को ब्लैकमेल करने में उस की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी. तीनों से दोनों बहनभाई ने करीब 70 लाख रुपए की वसूली की थी. उन का तरीका एक औरत के लिए शर्मसार करने वाला था, लेकिन रंजना को इस से कोई फर्क नहीं पड़ता था. वह पैसे की इस कदर भूखी थी कि उस ने अपनी इज्जत, शर्म और मानमर्यादा को ताक पर रख दिया था.

एएसआई रंजना की दिलफेंक अदाओं पर पंवार तभी फिदा हो गए थे, जब वह पहली बार महेश्वर थाने में मिली थी. दरअसल, रंजना 2018 में थाने के काम से महेश्वर आई थी, वहां उस की मुलाकात टीआई पंवार से हुई थी.पंवार ने उस की मदद की थी, जिस से रंजना ने उसे साथ कौफी पीने का औफर दे दिया था. पंवार उस के औफर को ठुकरा नहीं पाए थे. उन के बीच दोस्ती की पहली शुरुआत कौफी टेबल पर हुई, जो जल्द ही गहरी हो गई.

साथ में पैग छलका कर टीआई से बनाए थे शारीरिक संबंध फिर एक दिन अपने भाई के साथ पंवार के कमरे पर आ धमकी. उस ने बताया कि उस के भाई का बिजनैस में किसी के साथ झगड़ा हो गया है. मामला उन्हीं के थाने का है. वह चाहें तो मामले को निपटा सकते हैं. इस संबंध में पंवार ने रंजना को मदद करने का वादा किया. इस खुशी में रंजना ने उन्हें एक छोटी सी पार्टी देने का औफर दिया और भाई से शराब की बोतलें मंगवा लीं. कमलेश विदेशी शराब की बोतलें और खाने का सामान रख कर चला गया.

पंवार के सामने शराब और शबाब दोनों थे. वह उस रोज बेहद खुश थे. उन की खुशी को बढ़ाने में रंजना ने भी खुले मन से साथ दिया था. देर रात तक शराब का दौर पैग दर पैग चलता रहा. इस दरम्यान रंजना ने टीआई हाकम सिंह पंवार के लिए न केवल अपने दिल के दरवाजे खोल दिए, बल्कि पंवार के सामने कपडे़ खोलने से भी परहेज नहीं किया.

बैडरूम में शराब की गंध के साथ दोनों के शरीर की गंध कब घुलमिल गई, उन्हें इस का पता ही नहीं चला. बिस्तर पर अधनंगे लेटे हुए जब उन की सुबह में नींद खुली, तब उन्होंने एकदूसरे को प्यार भरी निगाह से देखा. आंखों- आखों में बात हुई और एकदूसरे को चूम लिया. कुछ दिनों बाद रंजना पंवार से मिलने एक बार फिर अपने भाई के साथ आई. उस ने पंवार को धन्यवाद दिया और कहा कि उस की बदौलत ही उस का मामला निपट पाया. इसी के साथ रंजना ने एक दूसरी घरेलू समस्या भी बता दी. वह समस्या नहीं, बल्कि पैसे से मदद करने की थी.

रंजना ने बताया कि उस के परिवार को तत्काल 5 लाख रुपए की जरूरत है. पंवार पहले तो इस बड़ी रकम को ले कर सोच में पड़ गए, किंतु जब उस ने शराब की बोतल दिखाई तब वह पैसे देने के लिए राजी हो गए. टीआई पंवार ने उसी रोज कुछ पैसे अपने घर से मंगवाए और कुछ दोस्तों से ले कर रंजना को दे दिए.बदले में रंजना को पहले की तरह ही रात रंगीन करने में जरा भी हिचक नहीं हुई. इस तरह पंवार को रंजना से जहां यौनसुख मिलने लगा, वहीं रंजना के लिए पंवार सोने का अंडा देने वाली मुर्गी बन चुके थे. धीरेधीरे रंजना उन से लगातार पैसे की मांग करने लगी. पंवार भी उस की पूर्ति करते रहे. लेकिन आए दिन की जाने वाली इन मांगों से पंवार काफी तंग आ चुके थे.

हद तो तब हो गई जब रंजना ने एक बार पूरे 25 लाख रुपए की मांग कर दी. उस ने न केवल रुपए मांगे, बल्कि भाई के लिए एक कार तक मांग ली. इस मांग के बाद पंवार का पारा बढ़ गया. वह गुस्से में आ गए. फोन पर ही धमकी दे डाली. किंतु रंजना ने बड़ी शालीनता से उन की धमकी का जवाब एक वीडियो क्लिपिंग के साथ दे दिया.

अगर बदले हुए लगे उनके मिजाज तो इन बातों का रखें ध्यान

भागदौड़ भरी जिंदगी और काम के अतिरिक्त बोझ से अगर पति पारिवारिक जीवन से सही तालमेल नहीं बैठा पा रहे हैं, तो घबराएं नहीं, उन का साथ दें. यकीनन दांपत्य महक उठेगा और सही माने में आप हैप्पी कपल कहलाएंगे.

जिंदगी का सफर उन पतिपत्नी के लिए और भी आसान बन जाता है, जो एकदूसरे को समझ कर चलते हैं. कई बार दिनबदिन बढ़ती जिम्मेदारियों व जीवन की आपाधापी की वजह से पति पारिवारिक जीवन में सही तालमेल नहीं रख पाते. जिस के कारण उन के व्यवहार में चिड़चिड़ापन व बदलाव आना स्वाभाविक होता है. ऐसी स्थिति में पत्नी ही पति के साथ सामंजस्य बैठा कर दांपत्य की गाड़ी को पटरी पर ला सकती है.

पति का सहयोग लें

पति की अहमियत को कम न आंकें. वैवाहिक जीवन से जुड़ी समस्याओं में उन की सलाह जरूर लें. परिवार की समस्याओं का समाधान अकेले न कर के उन का भी सहयोग लें. यकीनन उन के व्यवहार में बदलाव आएगा.

जब उम्मीदें पूरी नहीं होतीं

कई बार पति चाहते हैं कि घरेलू कामों में उन की साझेदारी कम से कम हो. लेकिन पत्नियां अगर कामकाजी हैं तो वे पति से घरेलू कामों में हाथ बंटाने की अपेक्षा करती हैं. इस स्थिति से उपजा विवाद भी पति के स्वभाव में बदलाव का कारण बनता है. ऐसे में कार्यों का बंटवारा आपसी सूझबूझ व प्यार से करें. फिर देखिएगा, पति खुशीखुशी आप का हाथ बंटाएंगे.

छोटी पोस्ट को कम न आंकें

एक प्राइवेट फर्म में मार्केटिंग मैनेजर की पोस्ट पर कार्यरत आराधना को यह शिकायत रहती थी कि उन के पति एक फैक्टरी में सुपरवाइजर की छोटी पोस्ट पर हैं. इसे ले कर दोनों में गाहेबगाहे तकरार भी होती थी, जिस से पति चिड़चिड़े हो उठे. घर में अशांति रहने लगी.

हार कर आराधना को साइकोलौजिस्ट के पास जाना पड़ा. उन्होंने समझाया कि पत्नी को पति के सुपरवाइजर पद को ले कर हीनभावना का शिकार नहीं बनना चाहिए और न ही पति की पोस्ट को कम आंकना चाहिए.

नजरिया बदलें

परिवार से जुड़ी छोटीछोटी समस्याओं का निबटारा स्वयं करें. रोज शाम को पति के सामने अपने दुख का पिटारा न खोलें. इस का सीधा असर पति के स्वभाव पर पड़ता है. वे किसी न किसी बहाने से ज्यादा समय घर के बाहर बिताने लगते हैं या स्वभाव से चिड़चिड़े हो जाते हैं.

संयुक्त परिवारों में रह रहे कपल्स में यह समस्या आम है. छोटीछोटी घरेलू समस्याओं का हल स्वयं निकालने से आप का आत्मविश्वास तो बढ़ेगा ही, पति भी आप जैसी समझदार पत्नी पर नाज करेंगे.

ज्यादा पजेसिव न हों

पति के पत्नी के लिए और पत्नी के पति के लिए जरूरत से ज्यादा पजेसिव होने पर दोनों में एकदूसरे के प्रति चिड़चिड़ाहट पैदा हो जाती है. अत: रिश्ते में स्पेस देना भी जरूरी है.

पति की महिला मित्रों या पत्नी के पुरुष मित्रों को ले कर अकसर विवाद पनपता है, जिस का बुरा असर आपसी रिश्तों पर व पतिपत्नी के व्यवहार पर पड़ता है. जीवनसाथी को हमेशा शक की निगाहों से देखने के बजाय उन पर विश्वास करना आवश्यक है.

ईर्ष्यालु न बनने दें

कभीकभी ऐसा भी होता है कि कैरियर के क्षेत्र में पत्नी पति से आगे निकल जाती है. इस स्थिति में पति के स्वभाव में बदलाव आना तब शुरू होता है, जब पत्नी अपने अधिकतर फैसलों में पति से सलाहमशवरा करना आवश्यक नहीं समझतीं.

ऐसे हालात अलगाव का कारण भी बन जाते हैं. अपनी तरक्की के साथसाथ पति की सलाह का भी सम्मान करें. इस से पति को अपनी उपेक्षा का एहसास भी नहीं होगा और रिश्ते में विश्वास भी बढ़ेगा.

खुल कर दें साथ

खुशहाल वैवाहिक जीवन जीने के लिए सैक्स संबंध में खुलापन भी बेहद जरूरी है. रोजरोज बहाने बना कर पति के आग्रह को ठुकराते रहने से एक समय ऐसा आता है कि पति आप से दूरी बनाने लगते हैं या कटेकटे से रहने लगते हैं, जिस से दांपत्य में नीरसता आने लगती है.

कभीकभी ऐसा हो सकता है कि आप पति का सहयोग करने में असक्षम हों. ऐसे में पति को प्यार से समझाएं. सैक्स में पति का खुल कर साथ दें, क्योंकि यह खुशहाल दांपत्य की ही नहीं, बल्कि स्वास्थ्य की भी कुंजी है.

घर का बजट

घर का बजट संतुलित रखने की महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी पत्नी के कंधों पर होती है. अनापशनाप खर्चों का बोझ जब पति पर पड़ने लगे तो वे चिड़चिड़े होने लगते हैं. इस समस्या से निबटने का सब से सरल उपाय है महीने भर के बजट की प्लानिंग करना व खर्चों को निर्धारित करना. समझदार गृहिणी की तरह जब आप अपने बजट के अलावा बचत भी करेंगी, तो आप के पति की नजरों में आप के लिए प्यार दोगुना हो जाएगा.

क्यों का प्रश्न नहीं : भाग 2

‘अब इस का क्या फायदा. तब तो मैं कहता ही रह गया था कि मैं ने ऐसा कुछ नहीं किया. मैं ऐसा कर ही नहीं सकता था, पर किसी ने मेरी एक न सुनी. किस प्रकार आप सब ने मुझे धक्के दे कर घर से बाहर निकाला, मुझे कहने की जरूरत नहीं है. मैं आज भी उन धक्कों की, उन दुहत्थड़ों की पीड़ा अपनी पीठ पर महसूस करता हूं. मैं इस पीड़ा को कभी भूल नहीं पाया. भूल पाऊंगा भी नहीं.

‘‘मुझे आज भी सर्दी की वह उफनती रात याद है. बड़ी मुश्किल से कुछ कपड़े, फौज के डौक्यूमैंट, एक डैबिट कार्ड, जिस में कुछ रुपए पड़े थे, घर से ले कर निकला था. बाहर निकलते ही सर्दी के जबरदस्त झोंके ने मेरे बूढ़े शरीर को घेर लिया था. धुंध इतनी थी कि हाथ को हाथ दिखाई नहीं देता था. सड़क भी सुनसान थी. दूरदूर तक कोई दिखाई नहीं दे रहा था. रात, मेरे जीवन की तरह सुनसान पसरी पड़ी थी. रिश्तों के टूटन की कड़वाहट से मैं निराश था.फिर मैं ने स्वयं को संभाला और पास के

एटीएम से कुछ रुपए निकाले. अभी सोच ही रहा था कि मुख्य सड़क तक कैसे पहुंचा जाए कि पुलिस की जिप्सी बे्रक की भयानक आवाज के साथ मेरे पास आ कर रुकी. उस में बैठे एक इंस्पैक्टर ने कहा, ‘क्यों भई, इतनी सर्द रात में एटीएम के पास क्या कर रहे हो? कोई चोरवोर तो नहीं हो?’ मैं पुलिस की ऐसी भाषा से वाकिफ था.

‘‘‘नहीं, इंस्पैक्टर साहब, मैं सेना का रिटायर्ड कर्नल हूं. यह रहा मेरा आई कार्ड. इमरजैंसी में मुझे कहीं जाना पड़ रहा है. एटीएम से पैसे निकालने आया था. मुख्य सड़क तक जाने के लिए कोई सवारी ढूंढ़ रहा था कि आप आ गए.’

‘‘‘घर में सड़क तक छोड़ने के लिए कोई नहीं है?’ इंस्पैक्टर की भाषा बदल गई थी. वह सेना के रिटायर्ड कर्नल से ऐसी भाषा का प्रयोग नहीं कर सकता था.

‘‘‘नहीं, यहां मैं अकेले ही रहता हूं,’ मैं कैसे कहता, घर से मैं धक्के दे कर निकाला गया हूं.

‘‘इंस्पैक्टर ने कहा, ‘आओ साहब, मैं आप को सड़क तक छोड़ देता हूं.’ उन्होंने न केवल सड़क तक छोड़ा बल्कि स्टेशन जाने वाली बस को रोक कर मुझे बैठाया भी. ‘जयहिंद’ कह कर सैल्यूट भी किया, कहा, ‘सर, पुलिस आप की सेवा में हमेशा हाजिर है.’ कैसी विडंबना थी, घर में धक्के और बाहर सैल्यूट. जीवन की इस पहेली को मैं समझ नहीं पाया था.

‘‘स्टेशन पहुंच कर मैं सैनिक आरामगृह में गया. वहां न केवल मुझे कमरा मिला बल्कि नरमगरम बिस्तर भी मिला. तुम्हारे जैसे हृदयहीन लोग इस बात का अनुमान ही नहीं लगा सकते कि उस ठिठुरती रात में बेगाने यदि मदद नहीं करते तो मेरी क्या हालत होती. मैं खुद के जीवन से त्रस्त था. मन के भीतर यह विचार दृढ़ हो रहा था कि ऐसी स्थिति में मैं कैसे जी पाऊंगा. मन में यह विचार भी था, मैं एक सैनिक हूं. मैं अप्राकृतिक मौत मर ही नहीं सकता. मैं डेरे में पनाह मिलने के प्रति भी अनिश्चित था. पर डेरे ने मुझे दोनों हाथों से लिया. पैसे की तंगी ने मुझे बहुत तंग किया. डेरे के लंगर में खाते समय मुझे जो आत्मग्लानि होती थी, उस से उबरने के लिए मुझे दूरदूर तक कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था. आप ने मुझे मेरी पैंशन में से हजार रुपया महीना देना भी स्वीकार नहीं किया तो मेरे पास इस के अलावा और कोई चारा नहीं था कि पहले का पैंशन डेबिट कार्ड कैंसिल करवा कर नया कार्ड इश्यू करवाऊं. मेरे जीतेजी पैंशन पर केवल मेरा अधिकार था.

‘‘मैं जीवनभर ‘क्यों’ के प्रश्नों का उत्तर देतेदेते थक गया हूं. बचपन में, ‘खोता हो गया है, अभी तक बिस्तर में शूशू क्यों करता हूं? अच्छा, अब फैशन करने लगा है. पैंट में बटन के बजाय जिप क्यों लगवा ली? अरे, तुम ने नई पैंट क्यों पहन ली? मौडल टाउन में मौसी के यहां दरियां देने ही तो जाना है. नई पैंट आनेजाने के लिए क्यों नहीं रख लेता? चल, नेकर पहन कर जा.’

‘‘काश, उस रोज मैं नेकर पहन कर न गया होता. मैं अभी भंडारी ब्रिज चढ़ ही रहा था कि साइकिल पर आ रहे लड़के ने मुझे रोका. ‘काम करोगे?’ मुझे उस की बात समझ नहीं आई, इसलिए मैं ने पूछा था, ‘कैसा काम?’ ‘घर का काम, मुंडू वाला.’ उस ने मेरे हुलिए, बिना प्रैस किए पहनी कमीज, बिना कंघी के बेतरतीब बाल, ढीली नेकर, कैंची चप्पल, बगल में दरियां उठाए किसी घर में काम करने वाला मुंडू समझ लिया था.

‘‘मैं ने उसे कहा था, ‘नहीं, मैं ने नहीं करना है, मैं 7वीं में पढ़ता हूं.’ फिर उस ने कहा था, ‘अरे, अच्छे पैसे मिलेंगे. खाना, कपड़ा, रहने की जगह मिलेगी. तुम्हारी जिंदगी बन जाएगी.’ जब मैं ने उसे सख्ती से झिड़क कर कहा कि मैं पढ़ रहा हूं और मुझे मुंडू नहीं बनना है तब जा कर उस ने मेरा पीछा छोड़ा था. बाद में शीशे में अपना हुलिया देखा तो वह किसी मुंडू से भी गयागुजरा था. मेरे कपड़े ऐसे क्यों थे? मेरे पास इस का भी उत्तर नहीं था. बाऊजी के अतिरिक्त सभी मेरा मजाक उड़ाते रहे.

‘‘मेरे दूसरे उपनामों के साथ ‘मुंडू’ उपनाम भी जुड़ गया था. उस भाई से कभी ‘क्यों’ का प्रश्न नहीं पूछा गया जो गली की एक लड़की के लिए पागल हुआ था. अफीम खा कर उस की चौखट पर मरने का नाटक करता रहा. गली में उसे दूसरी चौखट मिलती ही नहीं थी. उस बहन से भी कभी क्यों का प्रश्न नहीं पूछा गया जो संगीत के शौक के विपरीत लेडी हैल्थविजिटर के कोर्स में दाखिला ले कर कोर्स पूरा नहीं कर सकी, पैसा और समय बरबाद किया और परिवार को जबरदस्त नुकसान पहुंचाया. उस भाई से भी क्यों का प्रश्न नहीं किया गया जो पहले नेवी में गया. छोड़ कर आया पढ़ने लगा, किसी बात पर झगड़ा किया तो फौज में चला गया. वहां बीमार हुआ, फौज से छुट्टी हुई, फिर पढ़ने लगा. पढ़ाई फिर भी पूरी नहीं की. सब से छोटे ने तो परिवार की लुटिया ही डुबो दी. मैं ने बाऊजी को चुपकेचुपके रोते देखा था. मैं पढ़ने में इतना तेज नहीं था. मुझ पर प्रश्नों की बौछार लगा दी जाती. पढ़ना नहीं आता तो इस में पैसा क्यों बरबाद कर रहे हो? इस क्यों का उत्तर उस समय भी मेरे पास नहीं था और आज भी नहीं है.

मेरी जेठानी बात-बेबात मुझ से झगड़ती हैं और सासूमां के कान भी भरती रहती हैं, मैं क्या करूं?

सवाल-

मैं 31 वर्षीय शादीशुदा महिला हूं. हमारे 2 बच्चे हैं और हम एक ही छत के नीचे सासससुर, जेठजेठानी व उन के बच्चे के साथ रहते हैं. मेरी जेठानी बात-बेबात मुझ से झगड़ती हैं और सासूमां के कान भी भरती रहती हैं. मैं खुले विचारों वाली महिला हूं जबकि जेठानी दकियानूसी विचारों वाली और कम पढ़ीलिखी हैं. वे आए दिन मुझ से झगड़ती रहती हैं. घर में जेठानी से बारबार लड़ाई होने की वजह से क्या हमें अलग घर में रहना चाहिए?

सासूमां इस के लिए मुझे मना करती हैं पर जेठानी की बात सहते रहने के लिए भी कहती हैं. पति से इस बारे में बात करना चाहती हूं पर कभी कर नहीं पाई क्योंकि, वे अपने मातापिता को छोड़ अलग रहना नहीं चाहते. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

सुलह के सभी रास्ते बंद हों और गृहक्लेश आए दिन हो तो अलग रहने में कोई बुराई नहीं मगर इस से पहले अगर आप एक सार्थक पहल करें तो घर में सुकून और शांति का वातावरण स्थापित हो सकता है.

पहले आप के लिए यह जानना जरूरी होगा कि आपसी झगड़े की असल वजह क्या है? आमतौर पर गृहक्लेश बजट की हिस्सेदारी को ले कर, रसोई में कौन कितना काम करे, घर के कामकाज के बंटवारे आदि को ले कर होता है. कभी-कभी एकदूसरे से ईर्ष्या रखने पर भी आपसी मनमुटाव का वातावरण पैदा हो जाता है.

बेहतर होगा कि झगड़े की असल वजह जान कर सुलह की कोशिश की जाए. सास और पति से जेठानी के झगड़ालू बरताव की वजह जानने की कोशिश भी आपसी संबंधों को सही कर सकती है. जेठानी कम पढ़ी-लिखी हैं तो संभव है यह भी एक वजह हो. आप को ले कर उन में हीनभावना हो सकती है. आप के लिए बेहतर यह भी होगा कि जेठानी से उपयुक्त समय देख कर बात करें.

अगर सास आप को अलग घर लेने से मना कर रही हैं तो जाहिर है वे आप को व जेठानी को बेहतर रूप से जानती समझती हैं, इसलिए सही निर्णय आप की सास ही ले सकती हैं.

यदि 1-2 बातों को नजरअंदाज कर दें तो संयुक्त परिवार आज की जरूरत है, जहां रहते हुए हरकोई अपने सपनों के पंखों को उड़ान दे सकता है.

2 पत्नियों ने दी पति की सुपारी : भाग 1

6जुलाई की रात कोई 8-सवा 8 बजे का वक्त था, जब दक्षिणपूर्वी दिल्ली के गोविंदपुरी इलाके में एक डीटीसी बस के ड्राइवर संजीव कुमार की गोली मार कर हत्या कर दी गई. जिस समय हत्या हुई, उस समय 55 वर्षीय संजीव अपनी 28 वर्षीय पत्नी गीता उर्फ नजमा और अपने 10 साल के बेटे गौरव के साथ मोटरसाइकिल से कहीं जा रहा था.

दीपालय स्कूल के पास संजीव पहुंचा ही था कि उस की चलती बाइक के बगल से एक अन्य बाइक पर 2 सवार निकले और उन्होंने संजीव की बाइक ओवरटेक करते हुए उसे गोली मार दी. गोली लगते ही संजीव एक ओर को गिर पड़ा और उसी के साथ बाइक पर बैठी उस की पत्नी और बेटा भी गिर गए.

गीता बाइक से गिरते बेहोश हो गई थी. जब उसे होश आया तो उस ने देखा कि उस का पति घायल अवस्था में एक ओर पड़ा है और उन के चारों तरफ भारी भीड़ जुटी है.
लोगों की मदद से वह अपने पति को ले कर पास के मजीदिया अस्पताल गई, जहां उस ने डाक्टरों को बताया कि उन का एक्सीडेंट हो गया है. डाक्टरों ने संजीव का चैकअप किया और उसे मृत घोषित करते हुए पुलिस को फोन कर दिया. क्योंकि मामला एक्सीडेंट का नहीं, बल्कि गोली लगने का था.

सूचना मिलने के बाद गोविंदपुरी के थानाप्रभारी जगदीश यादव टीम के साथ मजीदिया अस्पताल पहुंच गए. उन्होंने जब गीता से घटना की जानकारी लेनी चाही तो वह पुलिस को अलगअलग बयान दे कर गुमराह करने लगी. कभी कहती कि एक्सीडेंट हुआ है, तो कभी कहती कि उसे कुछ पता नहीं, वह तो बेहोश हो गई थी और कभी कहती कि कालकाजी बस डिपो के कुछ लोगों से संजीव की दुश्मनी थी, उन्होंने उसे गोली मारी है.

इस दौरान गीता के चेहरे पर पति को खोने का वैसा गम किसी को नजर नहीं आया जो अकसर ऐसे मौकों पर दिखता है. जब उस से सख्ती से पूछताछ हुई तो उस का झूठ ज्यादा देर पुलिस के सामने टिक नहीं पाया.गीता से पूछताछ और उस के मोबाइल फोन को खंगालने के बाद जो सनसनीखेज कहानी सामने आई. उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के पास सिकंदराबाद अंतर्गत आने वाले एक गांव बिलसुरी निवासी संजीव कुमार के मातापिता अपने 3 बेटों और एक बेटी के साथ दिल्ली के गोविंदपुरी इलाके में आ कर रहने लगे थे.

उन्होंने अपने बच्चों को यहीं के सरकारी स्कूल में पढ़ायालिखाया. बीचबीच में वह गांव भी चले जाते थे. बच्चों के जवान होने पर उन्होंने सभी की शादियां कर दीं और सभी ने इसी इलाके में अलगअलग अपनी गृहस्थी बना ली. इस के बाद मातापिता गांव लौट गए और वह खेतीकिसानी देखने लगे.

संजीव कुमार शुरू से ही परिवार से अलग रहा करता था. दबंग टाइप के संजीव की अपने भाइयों से और मातापिता से ज्यादा बनती नहीं थी. संजीव ने जब अपने दम पर डीटीसी बस ड्राइवर की सरकारी नौकरी पा ली तो उस के हौसले और बुलंद हो गए.
कुछ ही साल में वह अपनी दादागिरी और नेतागिरी की बदौलत डीटीसी कर्मचारी यूनियन का नेता भी बन गया. सरकारी तनख्वाह के अलावा वह कई अन्य गैरकानूनी तरीकों से पैसे कमाने लगा और कई जमीनों पर उस ने अवैध कब्जे कर लिए, जिन्हें बाद में सरकारी कर्मचारियों के साथ मिलीभगत और रिश्वत के दम पर उस ने अपने नाम लिखवा लिया.

 

तपस्या : क्या शिखर के दिल को पिघला पाई शैली?

छवि मित्तल ने जन्मदिन पर किया कुछ खास, देखें फोटोज

टीवी की मशहूर अदाकारा छवि मित्तल बीते कुछ समय से लगातार सुर्खियों में बनी हुई हैं. कुछ समय पहले ही छवि मित्तल ने ऐलान किया था कि उन्हें ब्रेस्ट कैंसर है. छवि मित्तल ने कुछ समय ही अपना सर्जरी करवाया था.

छवि मित्तल ने हाल ही में अपना जन्मदिन मनाया है जो चर्चा का विषय बन गया है, जिसकी तस्वीर उन्होंने सोशल मीडिया पर शेयर किया है. बर्थ डे में उन्होंने अपने पति को लिप लॉक किस किया है. छवि मित्तल की तस्वीर ने सोशल मीडिया पर हिलाकर रख दिया है.

 

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पार्टी में वह अपनी दोस्त के साथ गाना गाती नजर आ रही हैं, जिसमें वह काफी ज्यादा खुश नजर आ रही हैं. छवि मितत्ल की तस्वीर सोशल मीिडिय पर धूम मचाया हुआ है. सभी फैंस छवि मित्तल को जन्मदिन की बधाई दे रहे हैं.

छवि मित्तल की तस्वीर सोशल मीडिया पर जब अपनी बीमारी के बारे में बताई थी तो लोग उन्हें ट्रोल करना शुरू कर दिए थें. छवि मित्तल ने स्क्रिनशॉट शेयर करके ट्रोलर्स को करारा जवाब भी दिया था. जिसे लोगों ने खूब सराहना कि थी.

 

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बर्थ डे पार्टी के दौरान छवि मित्तल ने जमकर पोज दिए हैं, जिसे लोगों ने खूब पसंद भी किया है.  छवि अपनी सोशल मीडिया पर पहचान खुद बनाई हैं, लोग उन्हें खूब फॉलो करते हैं.

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