मार्मिक बदला – भाग 3 : रौनक से कौनसा बदला लेना चाहती थी रागिनी

‘‘रागिनी का कहना था कि असलम का मतलब सिर्फ खाना बनवाने

और खाने से था. टीवी पर खबर देख कर मेरे और रागिनी के परिवार के लोग भी आ गए थे. रागिनी के घर वालों का तो पता नहीं, लेकिन मैं और मेरे घर वाले रागिनी की बात को मानने को तैयार नहीं थे कि रागिनी का बलात्कार नहीं हुआ है. जब रागिनी के मम्मीपापा जाने लगे तो रागिनी भी उन के साथ जाने को तैयार हो गई. मैं ने भी उसे रोकने की कोशिश नहीं की.’’

‘‘उस के बाद तो संपर्क किया होगा?’’ डा. कबीर ने पूछा.

‘‘डा. रौनक खिसिया गए कि उसी ने संपर्क किया था यह बताने को कि वह मां बनने वाली है… मैं ने छूटते ही कहा कि फिर तो पक्का हो गया कि उस के साथ बलात्कार हुआ था, क्योंकि मेरा बच्चा होने का तो सवाल ही नहीं उठता. मैं तो बेहद एहतियात बरतता था. सुन कर उस ने फोन रख दिया. उस के बाद आपसी सम झौते से हमारा तलाक हो गया. इसी बीच मु झे एमडी में दाखिला मिल गया और मैं ने खुद को पढ़ाई और फिर काम में  झोंक दिया.’’

‘‘रागिनी का हालचाल मालूम नहीं किया?’’

डा. रौनक ने इनकार में सिर हिलाया.

‘‘जिस गांव जाना नहीं उस की राह क्यों पूछता और पूछता भी किस से? एमडी करने वैल्लोर गया था, फिर वहीं से स्पैशलाइजेशन करने विभिन्न देशों में घूमता रहा सो किसी ऐसे से संपर्क ही नहीं रहा जो रागिनी के संपर्क में हो.’’

‘‘घर वालों ने शादी के लिए नहीं कहा?’’

‘‘पहली शादी के लिए ही जल्दी मचाते हैं सब लोग जो मैं ने खुद ही जल्दी मचा कर करवा ली थी. एमडी करने के दौरान ही मम्मीपापा चल बसे थे. रिश्तेदारों को दूसरी शादी करवाने का उत्साह नहीं होता और अपने को तो अकेले रहने की आदत पड़ चुकी है. बहुत देर हो गई है डा. कबीर, कमरे में चल कर आराम करना चाहिए शुभ रात्रि,’’ कह कर डा. रौनक ने हाथ मिलाया और अपने कमरे की ओर बढ़ गए.

डा. कबीर को उन का रवैया बहुत गलत लगा और उन की सहानुभूति अवहेलना में बदल गई. अगले रोज सिवा औपचारिक अभिवादन के उन्होंने डा. रौनक से कोई बात नहीं की. सम्मेलन खत्म होने के बाद सब अपनेअपने शहर लौट गए. प्राय सालभर बाद डा. कबीर को अपने भतीजे आलोक की शादी में अमृतसर जाना पड़ा. वहां शादी से पहले एक समारोह में उन के भाई ने उन्हें अपने पड़ोसी डा. भुपिंदर सिंह से मिलवाया. डा. कबीर को नाम कुछ जानापहचाना सा लगा. इस से पहले कि वे कुछ सोच पाते, उन की भतीजी ने डा. भुपिंदर सिंह से पूछा, ‘‘और सब नहीं आए अंकल?’’

‘‘सासबहू तो अपनी समाजसेवा से लौटने के बाद ही आएंगी, रूपिंदर टैनिस खेल कर आ गया है अभी कपड़े बदल कर आता होगा.’’

सासबहू और समाजसेवा… तार जुड़ते से लगे… डा. सतीश के दोस्त

भुपिंदर सिंह ही लगते हैं आतंकवाद के बैनिफिशियरी डा. कबीर दिलचस्पी से उन के पास ही बैठ गए. औपचारिक बातचीत खत्म भी नहीं हुई थी कि एक किशोर को देख कर डा. कबीर को जैसे करंट छू गया. हूबहू डा. रौनक की फोटोकौपी.

‘‘मेरा बेटा रूपिंदर, टैनिस की अंडर नाइनटीन प्रतियोगिता में भाग लेने की तैयारी कर रहा है,’’ डा भुपिंदर सिंह ने गर्व से बताया.

‘‘आई सी. और कितने बच्चे हैं आप के?’’

‘‘बस यही है जी, सवा लाख के बराबर एक. असल में इस के जन्म के बाद मम्मी ने इस की मां को अपनी अधूरी पढ़ाई पूरी करने में लगा दिया. एमबीबीएस तो कर ही चुकी थी, एमडी करने में व्यस्त हो गई और फिर स्पैशलाइजेशन के लिए हम दोनों ही विदेश चले गए और इन्हीं व्यस्तताओं के चलते रूपिंदर को भाईबहन दिलवाने का समय निकल गया.’’

हालांकि डा. रौनक ने यह नहीं बताया था कि उन की पत्नी भी डाक्टर थी. डा. कबीर को यकीन था कि वह रागिनी है और यह यकीन कुछ ही देर में पक्का हो गया जब किसी फैशन मैगजीन में छपी महिला की तसवीर से डा. भुपिंदर सिंह ने उन का परिचय करवाया, ‘‘मेरी पत्नी रागिनी और रागिनी ये आलोक के चाचा डा. कबीर पाल हैं.’’

रागिनी ने शालीनता से हाथ जोड़े और कहा, ‘‘आलोक के चाचा होने के नाते आप का हमारे घर आना भी बनता है भाई साहब, जाने से पहले आप जरूर आइएगा.’’

‘‘जी, जरूर. पत्नी यहीं कहीं होगी भाभीजी के आसपास, उन से मिलने पर सब तय कर लीजिएगा,’’ डा. कबीर ने विनम्रता से कहा और मन ही मन सोचा कि आप से तो मु झे अकेले में मिलना ही है… पिछले वर्र्ष सुनी एकतरफा कहानी का दूसरा पहलू जानने को.

पड़ोस में रहने वाली डाक्टर रागिनी कहां काम करती हैं यह पता लगाना मुश्किल नहीं था और यह भी कि किस समय वे अपेक्षाकृत कम व्यस्त होती हैं.

शादी के अगले रोज लंच के बाद डा. कबीर रागिनी के हस्पताल पहुंच गए. रागिनी लंच के बाद अपनी कुरसी पर ही सुस्ता रही थी. डा. कबीर को देख कर चौंकना स्वाभाविक था. डा. कबीर ने बगैर किसी भूमिका के बताया कि कैसे पिछले वर्ष एक मैडिकल कौन्फ्रैंस में उन की मुलाकात डा. रौनक से हुई थी और उन्होंने अपने को आतंकवाद का शिकार बताया था. उस के बाद डा. सतीश ने अपने एक दोस्त के बारे में बताया, जो आंतकवाद की शिकार युवती से शादी कर के बहुत खुश था.

‘‘डा. रौनक की कहानी सुन कर मु झे लगा कि वे आतंकवाद के शिकार नहीं अपने वहम और पूर्वाग्रहों के शिकार हैं,’’ डा. कबीर ने कहा, ‘‘यहां आने पर रूपिंदर को देख कर मैं सम झ गया कि आतंकवाद के जिस बैनिफिशियरी का जिक्र डा. सतीश कर रहे थे वे आप के पति ही हैं. बस, जिज्ञासावश डा. रौनक से सुनी कहानी का दूसरा पहलू सुनने चला आया हूं. अगर आप को बुरा लगा हो तो धृष्टता के लिए क्षमा मांग कर चला जाता हूं.’’

‘‘अरे नहीं भाई साहब, आप पहले व्यक्ति हैं, जिन्होंने मु झ से बगैर मिले रौनक को गलत कहा है सो अब तो आप न भी चाहें तो भी मैं आप को अपनी कहानी सुनाऊंगी ही,’’ रागिनी हंसी.

‘‘एलकेजी से एमबीबीएस तक का सफर मैं ने और रौनक ने साथ ही तय किया था, जाहिर है ंिंजदगी का सफर भी साथ ही तय करना था, लेकिन एमडी करने के बाद जब तक एमडी में दखिला नहीं मिलता तब तक तो नौकरी करनी ही थी. मु झे संयोग से अपने शहर में ही नौकरी मिल गई, लेकिन रौनक को जम्मू के एक सीमावर्ती गांव में हालांकि उस गांव में मेरे लिए कोई काम नहीं था फिर भी रौनक के अकेलेपन के रोने से द्रवित हो कर मैं ने मम्मीपापा को शादी के लिए मना लिया. उस रात जो हुआ वह अप्रत्याशित था, लेकिन उस से भी ज्यादा अप्रत्याशित था रौनक का व्यवहार.

‘‘रौनक के जाते ही घुसपैठियों ने मु झे चाय और फिर दालचावल बनाने को कहा. वे लोग खाना खा ही रहे थे कि पुलिस आ गई और खाना छोड़ कर उन्होंने खिड़कियों पर मोरचा संभाल लिया और आतेजाते मु झ पर लातघूसों की बौछार करते रहे. उन्हें इतना समय ही कहां मिला कि मेरे साथ कुछ करते, इस का सुबूत अधखाया खाना और चाय के जूठे बरतन थे.

‘‘उसी रौनक ने जिस ने यह कह कर शादी की थी कि वह मेरे बिना जीने की

कल्पना भी नहीं कर सकता, मु झ पर और सुबूतों पर यकीन करने से इनकार कर दिया. एक डाक्टर होने के नाते क्या रौनक को मालूम नहीं है कि कोई भी गर्भनिरोधक उपाय शतप्रतिशत सुरक्षित नहीं होता. खैर, सब के सम झाने के बावजूद मैं ने गर्भपात नहीं करवाया.

‘‘उस हालत में न तो नौकरी कर सकती थी न ही पढ़ाई, मगर खाली घर बैठना भी नहीं चाहती थी सो मैं ने समय काटने के लिए एक एनजीओ जौइन कर लिया. वहां की संचालिका स्नेहदीप कौर ने मु झे अपने पुत्र के लिए पसंद कर लिया और पुत्र ने भी यह कह कर किसी का भी बच्चा होने दो, कहलाएगा तो यह मेरा बच्चा ही और मैं इसे इतना अच्छा इनसान बनाऊंगा. मु झे शादी के लिए मना लिया. संयोग से रूपिंदर पासपड़ोस में भी सभी का चहेता है.

‘‘वैसे तो मैं रौनक को भूल चुकी हूं और मन ही मन उन घुसपैठियों का भी धन्यवाद करती हूं, जिन के कारण मु झे भुपिंदर जैसे पति और स्नेहदीप जैसी सास मिलीं, जिन के सहयोग से मैं आज एक जानीमानी गाइनौकोलौजिस्ट हूं, मगर अभी भी यदाकदा रौनक का व्यवहार याद कर के तिलमिला जाती हूं और उस से बदला लेने को जी चाहता है. आप के पास रौनक का पता है?’’

‘‘संपर्क तो नहीं रखा उस से, लेकिन यह तो जानता ही हूं कि कहां काम करता है. मिलना चाहेंगी उस से?’’

‘‘कदापि नहीं. बस उस से मूक बदला लेने को रूपिंदर की तसवीर भेजना चाहूंगी यह सिद्ध करने को कि न तो गर्भनिरोधक उपायों पर विश्वास करना चाहिए और न ही बचपन के प्यार पर जो करने की भूल मैं ने करी थी.’’

डा. कबीर ने चुपचाप एक कागज पर डा. रौनक का पता लिख दिया.

 

प्यार में खलल डालने वाली सीक्रेट वाइफ- भाग 2

नरसिंह के 2 लड़कियों से संबंध होने की जानकारी मिलने पर पुलिस ने उन में छिपे प्रेम त्रिकोण की कहानी का अनुमान लगाया. इस की आशंका भी हुई कि रानी इसी प्रेम त्रिकोण के चलते मारी गई होगी. नरसिंह द्वारा रानी को अस्पताल लाने के कारण वह पहले से ही संदेह के दायरे में आ चुका था.
फिर क्या था, एसपी डा. शिवदयाल ने कोतवाली पुलिस को नरसिंह से गहन पूछताछ के निर्देश दिए. नरसिंह को हिरासत ले लिया गया. पूछताछ की शुरुआत में तो उस ने खुद को निर्दोष बताया, लेकिन जब उसे कुछ बातें रितु के साथ प्रेम संबंध और रानी से सीक्रेट शादी के बारे में बताई गईं, तब वह मानसिक दबाव में आ गया. और फिर वह लोगों से छिपाए सच को मन में दबाए नहीं रख सका. उस ने रानी के साथ गुप्त शादी और रितु से प्रेम संबंध की बात उगल दी.

उस ने पुलिस को यह भी बताया कि रानी के साथ उस की शादी की जानकारी होने पर ही रितु उस से नफरत करने लगी थी. इस कारण ही रितु ने रानी को मारने का काम किया.इस तरह नरसिंह ने रितु पर रानी की हत्या का आरोप लगाते हुए बताया कि इस में उस ने अपनी एक सहेली प्रियंका की मदद ली. रानी के बेहोश होने की जानकारी उसी ने दी थी. फिर वह भागाभागा सीधा रानी के कमरे पर गया था और उसे बेहोश जान कर उपचार के लिए अस्पताल ले गया.

कई युवतियों से चल रहा था प्रेम प्रसंग

नरसिंह से मिली जानकारी पर पुलिस ने समय गंवाए बगैर रितु और उस की सहेली प्रियंका को भी हिरासत में ले लिया. साथ ही चुन्नी भी बरामद कर ली गई, जिस की मदद से दोनों ने रानी का गला घोटा था. उन दोनों ने भी अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. उस के बाद तीनों आरोपियों को अदालत में पेश कर दिया गया. वहां से सभी न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिए गए.इस तरह से रानी की मौत के बाद नरसिंह के कारनामे की जो कहानी सामने आई, उस में 3 युवतियों की जिंदगियां शामिल थीं. प्रेम संबंध चतुष्कोणीय बने हुए थे तो लिवइन रिलेशन और अवैध विवाह की कहानी भी थी. उस की पूरी दास्तान इस प्रकार जगजाहिर हुई—

देवास के हेमंतराव मार्ग निवासी नरसिंह उर्फ बबलू की परमार्थी मेन मार्केट में एक मैडिकल स्टोर है. उस की शादी 14 साल पहले हो चुकी है. खूबसूरत पत्नी और 3 बच्चे हैं. उन की पारिवारिक जिंदगी मजे में कट रही थी, फिर भी उस के दिल को सुकून नहीं था.दरअसल, नरसिंह किशोरावस्था से ही दिलफेंक किस्म का रहा है. उस के दोस्तों की मानें तो शादी से पहले उस ने कई लड़कियोंं को अपने प्रेमजाल में फंसा रखा था. वह बात करने की लच्छेदार शैली और मधुरता से थोड़े समय में ही किसी भी लड़की को अपना दीवाना बना लेता था. पहनावा भी अच्छा होता था. धनवान की तरह दिखता था. हमेशा उस के कपड़े से भीनीभीनी इत्र की खुशबू आती रहती थी.

लड़कियों पर प्रेम जाल फेंकने की हरकत से उस के घर वाले भी चिंतित हो गए थे. मोहल्ले की लड़कियों को छेड़ने की शिकायतें आने पर पिता ने 19 साल की उम्र में ही उस की शादी कर दी थी.खूबसूरत बीवी पा कर वह खुश हो गया था. कुछ सालों में ही 3 बच्चों का बाप भी बन गया. पत्नी बच्चों को संभालने में लग गई और वह पहले जैसे प्यार में कमी महसूस करने लगा. पारिवारिक जिम्मेदारियों में उलझी पत्नी की जब रोमांस में नीरसता आने लगी, तब नरसिंह तन्हाई की जिंदगी पा कर तड़प उठा.

उस की नजर दूसरी लड़कियों की तरफ घूमने लगी. नए दौर के प्यार के बोल और नई बाहों की तलाश करने लगा. संयोग से उस के मैडिकल स्टोर पर कई कमसिन लड़कियां अपनी निजी जरूरतों का सामान खरीदने आती थीं. नरसिंह उन से काफी घुलमिल कर बातें करने के साथसाथ कीमत में भी अतिरिक्त छूट दे दिया करता था.दुकान पर अकसर आने वाले लड़कियों में रितु भी थी. वैसे तो नरसिंह ने कई लड़कियों को अपनी चिकनीचुपड़ी बातों और व्यवहार से आकर्षित कर लिया था, लेकिन रितु पर उस का असर कुछ अधिक ही हुआ था.

शादीशुदा रितु भी फंस गई जाल में

उस वक्त रितु 23 साल की थी और नरसिंह 26 साल का था. दोनों युवा दिलों की धड़कनों से वाकिफ थे. रितु की नईनई शादी हुई थी और वह किसी से भी बात करने में संकोच नहीं करती थी. दूसरों के बारे में जानने की जिज्ञासा रखती थी.वह बेहद खूबसूरत और स्मार्ट थी. उस की सुंदरता और लटकेझटके देख कर नरसिंह भी उस का दीवाना बन गया था. एक बार बातोंबातों में उस ने बताया कि वह एक ज्वैलर्स की दुकान पर सेल्सगर्ल की नौकरी करती है.

उन की प्रेम कहानी की शुरुआत करीब 7 साल पहले बारिश के मौसम में उस वक्त शुरू हुई थी, जब रितु कुछ सामान खरीदने नरसिंह के मैडिकल स्टोर पर आई थी. तेज बारिश शुरू होने के कारण वह काफी समय तक उस की दुकान में रुकी रही थी. बारिश रुकने का इंतजार कर रही थी. उस वक्त तेज बारिश के कारण दुकान पर दूसरे ग्राहक भी नहीं आ रहे थे.इस मौके का फायदा नरसिंह ने मजे लेले कर उठाया. रितु के साथ खूब बातें कीं. उन के बीच इधरउधर की बातों के साथसाथ प्यारमोहब्बत की भी बातें होने लगीं.
नरसिंह ने उस की खूबसूरती के पुल बांध दिए. मेकअप से ले कर फिटिंग ड्रेस के फबने की तारीफ की. यहां तक कि उस की तुलना कैटरीना कैफ और प्रियंका चोपड़ा तक से कर दी.

जब नरसिंह ने उसे अच्छी दिखने वाली सैक्सी मौडल कहा, तब वह शरमा गई. रितु बारिश रुकने के बाद जाने लगी, तब नरसिंह एक पर्ची पर अपना मोबाइल नंबर लिख कर देते हुए बोला, ‘‘जब भी जरूरत हो काल कर लेना. जरूरी सामान भिजवा दूंगा.’’‘‘क्यों, मेरा आना अच्छा नहीं लगेगा?’’ रितु मजाकिया आंदाज में बोली.तब नरसिंह ने तुरंत उस का हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘‘ऐसा क्यों बोलती हो? मैं तो चाहता हूं कि तुम रोज कम से कम एक बार आओ…’’‘‘तो फिर हाथ छोड़ो, अभी चलती हूं. बहुत देर हो चुकी है. मैं काल करूंगी, नंबर सेव कर लेना.’’ कहती हुई रितु चली गई.

अगर कोई लड़की ज्यादा उम्र में पहला बच्चा पैदा करती है, तो उस की और बच्चे की सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है, क्या ये सच है?

सवाल

मैं 32 साल का एक शादीशुदा मर्द हूं. मेरी शादी को 5 साल हो गए हैं. हमारे अभी बच्चा नहीं है और मेरी पत्नी चाहती है कि अगले 3 साल तक वह मां न बने, जबकि 3 साल बाद उस की उम्र 32 साल की हो जाएगी. मुझे किसी ने कहा था कि अगर कोई लड़की ज्यादा उम्र में पहला बच्चा पैदा करती है, तो उस की और बच्चे की सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है. यह बात मैं ने अपनी पत्नी को बताई, तो वह इसे बचकाना कहने लगी. क्या वाकई ऐसा होता है? क्या हमें जल्दी मातापिता नहीं बन जाना चाहिए?

जवाब

न तो आप गलत हैं और न ही आप की पत्नी गलत है. बच्चा पैदा करने में जल्दी और देरी दोनों ही नहीं होनी चाहिए. 25 से 35 साल की उम्र बच्चा पैदा करने के लिए ठीक है. यह बात एक हद तक हालात और सेहत पर भी निर्भर करती है. आजकल 40 की उम्र तक भी औरतें बच्चे पैदा करती हैं और उन की सेहत पर बुरा फर्क नहीं पड़ता है.  मातापिता बनने के लिए पतिपत्नी दोनों को प्लानिंग करनी चाहिए. अब जब आप दोनों में मतभेद हैं, तो पत्नी की ही बात मान लें, क्योंकि सारी तकलीफ तो उसे ही झेलनी है. वैसे, यह कोई भारी विवाद वाली बात नहीं है. लिहाजा, इसे मुद्दा न बनाएं. सब से अच्छा रास्ता तो यह है कि दोनों किसी माहिर डाक्टर से मिल कर मशवरा लें.

खिलाड़ी के बहाने दिमाग का मवाद निकालते सिरफिरे

कितने दुख की बात है कि हम  भारतीय देशहित से जुड़े गंभीर मुद्दों पर गूंगे हो जाते हैं और जिन बातों का कोई मतलब नहीं होता है, उन पर चीखचीख कर अपना ही गला खरोंच लेते हैं. साथ ही, जो बलि का बकरा बनता है, उस की जिंदगी को जहन्नुम कर देते हैं. इस सब से यह भी पता चल जाता है कि सोशल मीडिया कितने गहरे गड्ढे में जा रहा है और लोग भेड़ की तरह सिर झुकाए गिरे जा रहे हैं इस दलदल में.

ऐसा ही कुछ क्रिकेटर अर्शदीप सिंह के साथ हुआ है. दरअसल, रविवार, 4 सितंबर, 2022 को एशिया कप में पाकिस्तान के साथ हुए एक रोमांचक क्रिकेट मुकाबले में भारत आखिरी ओवर में हार गया था.

इस हार से कुछ समय पहले नौजवान गेंदबाज अर्शदीप सिंह ने एक आसान सा ‘लड्डू’ कैच टपका दिया था. फिर क्या था, सोशल मीडिया की बेहया ‘ट्रोल सेना’ ने उन्हें बुराभला तो कहा ही, साथ ही ‘खालिस्तानी’ और ‘गद्दार’ तक

बता दिया.

हुआ कुछ यों कि स्पिन गेंदबाज रवि बिश्नोई पारी का 18वां ओवर कर रहे थे. उन की तीसरी गेंद पर आसिफ अली ने स्लौग स्वीप शौट खेलना चाहा, लेकिन गेंद उन के बल्ले के ऊपरी हिस्से पर लग कर शौर्ट थर्डमैन की दिशा में चली गई. यह कैच पकड़ कर पाकिस्तान पर दबाव बनाने का बेहतरीन मौका था, पर वहां मौजूद अर्शदीप सिंह ने आसान सा कैच टपका दिया.

नतीजतन, भारत यह मैच हार गया और ‘ट्रोल सेना’ ने अर्शदीप सिंह को निशाने पर ले लिया. उन्होंने सोशल मीडिया पर अर्शदीप सिंह के खिलाफ जम कर भड़ास निकाली. कुछ यूजर्स ने ट्विटर पर प्रपोगेंडा शुरू करते हुए उन्हें ‘खालिस्तानी’ करार दिया.

कुछ ट्विटर अकाउंट्स ने अर्शदीप सिंह के खिलाफ बेहद खराब शब्दों का इस्तेमाल किया, जिस में पाकिस्तानी पत्रकार डब्ल्यूएस खान भी शामिल रहे. उन्होंने कहा, ‘अर्शदीप साफतौर पर पाकिस्तान समर्थित खालिस्तान आंदोलन का हिस्सा हैं.’

इतना ही नहीं, अर्शदीप सिंह को कोसने के चक्कर में कई फर्जी अकाउंट्स भी तैयार किए गए, ताकि लगे कि अर्शदीप सिंह के कैच छोड़ने के बाद भारतीयों ने सिख होने की वजह से उन की बुराई की.

एक सिरफिरे ने तो हद ही कर दी. सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ, जिस में अर्शदीप सिंह होटल से टीम बस की तरफ जा रहे थे. उसी

दौरान एक शख्स ने उन्हें ‘गद्दार’ कह कर बुलाया और कैच छोड़ने को ले

कर कोसा.

अर्शदीप सिंह ने बस में खड़े हो कर उस आदमी को थोड़ी देर घूरा और फिर आगे बढ़ गए. हालांकि, टीम बस के पास मौजूद स्पोर्ट्स जर्नलिस्ट विमल कुमार ने ‘गद्दार’ कहने वाले उस शख्स को खूब खरीखोटी सुनाई थी.

इस पूरे मामले में अर्शदीप सिंह की मां दलजीत कौर को भी अपने दिल की बात कहनी पड़ी. उन्होंने कहा, ‘‘किसी से भी गलती हो जाती है. लोगों का काम है कहना, कहने दो, कोई बात नहीं. लोग अगर खिलाड़ी को बोल रहे हैं तो यानी उस से प्यार भी करते हैं. इस सब को हम पौजिटिव ले रहे हैं.’’

पर दलजीत कौर जो बात कह रही हैं, क्या वह सौ फीसदी सच है? क्या यह ‘ट्रोल सेना’ सिर्फ इसीलिए अर्शदीप सिंह को ट्रोल कर रही थी, क्योंकि वह उन्हें चाहती है? ऐसी चाहत का क्या फायदा कि आप सामने वाले की एक गलती पर उसे ‘खालिस्तानी’ और ‘गद्दार’ करार दे दें?

यह तो अच्छा है कि अर्शदीप सिंह पर कोई हमला नहीं हुआ वरना उन का हाल उन खिलाडि़यों जैसा हो सकता था, जिन की एक गलती उन की जिंदगी पर ही भारी पड़ गई थी.

जी हां, हम बात कर रहे हैं कोलंबियाई फुटबाल खिलाड़ी और कप्तान आंद्रे एस्कोबार की. कोलंबिया की फुटबाल टीम ने साल 1994 में अमेरिका में हुए फीफा वर्ल्ड कप में आंद्रे एस्कोबार की कप्तानी में हिस्सा लिया था. ब्राजील के महान फुटबालर पेले ने तब भविष्यवाणी की थी कि कोलंबियाई टीम कम से कम वर्ल्ड कप के सैमीफाइनल मुकाबले तक जरूर पहुंचेगी.

इस की वजह यह थी कि क्वालिफाइंग राउंड में कोलंबियाई टीम ने अपने सभी 6 मुकाबले जीते थे

और आगे भी बेहतर करने की पूरी उम्मीद थी.

फीफा वर्ल्ड कप 1994 में कोलंबिया को ग्रुप-ए में मेजबान संयुक्त राज्य अमेरिका, स्विट्जरलैंड और रोमानिया के साथ रखा गया था. वह अपना पहला मुकाबला कैलिफोर्निया के रोज बाउल स्टेडियम में रोमानिया के खिलाफ खेलने उतरी थी, पर  रोमानिया ने उसे 3-1 के अंतर से हरा दिया था.

22 जून, 1994 को रोज बाउल मैदान पर ही अमेरिका और कोलंबिया की टीम आमनेसामने थीं. अगले राउंड में जाने के लिए कोलंबिया की टीम पर यह मैच जीतने का बेहद दबाव था.

मैच के 35वें मिनट में अमेरिका के मिडफील्डर जौन हौर्क्स गेंद को बाएं ओर से ले कर कोलंबियाई गोल पोस्ट की तरफ बढ़ने लगे. इस बीच उन्होंने दाएं छोर पर मौजूद अपने साथी खिलाड़ी एर्ने स्टीवर्ट को पास दिया, लेकिन जब तक गेंद एर्ने स्टीवर्ट के पास पहुंचती, उस से पहले ही कोलंबियाई कप्तान आंद्रे एस्कोबार के पैर से लग कर उन के ही गोल पोस्ट में जा घुसी.

इस ‘आत्मघाती गोल’ की आंद्रे एस्कोबार को बड़ी भारी कीमत चुकानी पड़ी थी. फीफा वर्ल्ड कप से बाहर होने के बाद जब वे अपने देश में एक दिन सुबह के तकरीबन 3 बजे पार्किंग में अपनी कार में अकेले बैठे थे, तभी

3 लोग वहां आए और उन्हें कोलंबियाई टीम के वर्ल्ड कप से बाहर होने का जिम्मेदार ठहराने लगे. इस बात पर आंद्रे एस्कोबार की उन से बहस होने लगी.

इस बीच 2 लोगों ने आंद्रे एस्कोबार पर 6 राउंड फायर कर दिए. हर एक फायर पर तीनों हमलावर ‘गोलगोल’ चिल्ला रहे थे. इस घटना के 45 मिनट बाद आंद्रे एस्कोबार की अस्पताल में मौत हो गई.

इसी तरह साल 1982 में भारत और पाकिस्तान के बीच एशियन गेम्स हौकी का फाइनल मुकाबला चल रहा था. स्टेडियम खचाखच भरा हुआ था. इस मैच को देखने के लिए तब की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, उन के बेटे राजीव गांधी, फिल्म कलाकार अमिताभ बच्चन जैसे बड़े लोग आए थे. भारत को अपनी जीत पर भरोसा था, पर पाकिस्तान ने उसे एकतरफा फाइनल मुकाबले में 7-1 से मात दे दी.

इस मैच में भारत के गोलकीपर मीर सिंह नेगी थे, जिन की कुछ तसवीरें पाकिस्तानी खिलाडि़यों के साथ मीडिया में आई थीं. इस के बाद कुछ लोगों ने उन पर आरोप लगाए थे कि उन्होंने हर गोल के लिए एक लाख रुपए लिए थे, जबकि मीर सिंह नेगी ने अपनी सफाई में कहा था कि वे तसवीरें एशियन गेम्स की ओपनिंग सैरेमनी की थीं, जो किसी पत्रकार ने खींची थीं.

ज्यादा पीछे क्यों जाते हैं. क्रिकेट के इसी एशिया कप मुकाबले में जब बुधवार, 7 सितंबर, 2022 को पाकिस्तान और अफगानिस्तान का मुकाबला था, तब पाकिस्तान की पारी के आखिरी ओवर में पहली ही 2 गेंदों पर छक्के खा कर अफगानिस्तान की टीम बाहर हो गई, तो अफगान और पाकिस्तानी क्रिकेट फैंस आपस में लड़ पड़े थे.

स्टेडियम में ही फैंस द्वारा कुरसियां तोड़ना शुरू हो गया था. खबरों के मुताबिक, स्टेडियम के बाहर पाकिस्तानी फैंस ने अफगानी फैंस पर हमला किया. जवाब में अफगानी फैंस ने पाकिस्तानी फैंस को खूब पीटा.

ऐसा क्यों होता है कि दर्शक और खिलाड़ी खेल में अपनी हारजीत को ले कर इतने ज्यादा उग्र हो जाते हैं कि मरनेमारने पर उतारू हो जाते हैं? आंद्रे एस्कोबार ने खुद अपना ही गोल कर दिया था, पर यह कोई इतनी बड़ी गलती नहीं थी कि उन की हत्या ही कर दी गई. मीर सिंह नेगी पर पैसे ले कर गोल खाने का इलजाम लगा दिया गया और अर्शदीप सिंह को ‘गद्दार’ करार दे दिया गया. बिना किसी सुबूत के लोग ऐसा कैसे कर देते हैं कि किसी खिलाड़ी की जिंदगी, साख और कैरियर ही दांव पर लग जाए?

वैसे, इन सब घटनाओं से यह भी साबित हो जाता है कि दुनिया में कहीं भी चले जाएं, आप को ऐसे सिरफिरे मिल जाएंगे, जिन्हें खेल भावना से कोई लेनादेना नहीं होता है. उन्हें तो बस जीत चाहिए होती है और इस जीत में कोई अनजाने में ही रोड़ा बन जाता है, तो उसे अर्शदीप सिंह की तरह ट्रोल करने में देर नहीं लगती है.

पिछले कुछ सालों में ट्रोल करने का यह ट्रैंड बहुत ज्यादा बढ़ा है. सोशल मीडिया इस ‘ट्रोल सेना’ का वह बेलगाम सारथी है, जिसे पता ही नहीं है कि किस दिशा में जाना है. तभी तो हम अपनों को ही नुकसान पहुंचाने में जरा भी देर नहीं लगाते हैं. यह ट्रैंड बड़ा खतरनाक है, जिस पर समय रहते लगाम लगाना बहुत जरूरी है.

तुम मेरी हो: क्या शीतल के जख्मों पर मरहम लगा पाया सारांश- भाग 1

सारांश का स्थानांतरण अचानक ही चमोली में हो गया. यहां आ कर उसे नया अनुभव हो रहा था. एक तो पहाड़ी इलाका, उस पर जानपहचान का कोई भी नहीं. पहाड़ी इलाकों में मकान दूरदूर होते हैं. दिल्ली जैसे शहर में रह कर सारांश को ट्रैफिक का शोर, गानों की आवाजें और लोगों की बातचीत के तेज स्वर सुनने की आदत सी पड़ गई थी. किंतु यहां तो किसी को देखने के लिए भी वह तरस जाता था. जिस किराए के मकान में वह रह रहा था, वह दोमंजिला था. ऊपर के घर से कभीकभी एक बच्चे की मीठी सी आवाज कानों में पड़ जाती थी. पर कभी आतेजाते किसी से सामना नहीं हुआ था उस का.

उस दिन रविवार को नाश्ता कर के वह बाहर लौन में कुरसी पर आ कर बैठ गया. पास ही मेज पर उस ने लैपटौप रखा हुआ था. कौफी के घूंट भरते हुए वह औफिस का काम निबटा रहा था, तभी अचानक मेज पर रखे कौफी के मग में ‘छपाक’ की आवाज आई. सारांश ने एक तरफ जा कर कौफी घास पर उड़ेल दी. इतनी देर में ही पीछे से एक बच्चे की प्यारी सी आवाज सुनाई दी, ‘‘अंकल, मेरा मोबाइल.’’

सारांश ने मुड़ कर बच्चे की ओर देखा और मुसकराते हुए पास रखे टिशू पेपर से कौफी में गिरे हुए फोन को साफ करने लगा.

‘‘लाइए अंकल, मैं कर लूंगा,’’ कहते हुए बच्चे ने अपना नन्हा हाथ आगे बढ़ा दिया.

किंतु फोन सारांश ने साफ कर दिया और बच्चे को थमा दिया. बच्चा जल्दी से फोन को औन करने लगा. लेकिन कईर् बार कोशिश करने के बाद भी वह औन नहीं हुआ. बच्चे का मासूम चेहरा रोंआसा हो गया.

उस की उदासी दूर करने के लिए सारांश बोला. ‘‘अरे, वाह, तुम्हारा फोन तो छलांग मार कर मेरी कौफी में कूद गया था. अभी स्विमिंग पूल से निकला है, थोड़ा आराम करने दो, फिर औन कर के देख लेना. चलो, थोड़ी देर मेरे पास बैठो, नाम बताओ अपना.’’

‘‘अंकल, मेरा नाम प्रियांश है,’’ पास रखी दूसरी कुरसी पर बैठता हुआ वह बोला, ‘‘पर यह मोबाइल औन क्यों नहीं हो रहा, खराब हो गया है क्या?’’ चिंतित हो कर वह सारांश की ओर देखने लगा.

‘‘शायद, पर कोई बात नहीं. मैं तुम्हारे पापा से कह दूंगा कि इस में तुम्हारी कोई गलती नहीं है, अपनेआप छूट गया था न फोन तुम्हारे हाथ से?’’

‘‘हां अंकल, मैं हाथ में फोन को पकड़ कर ऊपर से आप को देख रहा था,’’ भोलेपन से उस ने कहा.

‘‘फिर तो पापा जरूर नया फोन दिला देंगे तुम्हें. हां, एक बात और, तुम इतने प्यारे हो कि मैं तुम्हें चुनमुन नाम से बुलाऊंगा, ठीक है?’’ सारांश ने स्नेह से प्रियांश की ओर देखते हुए कहा.

‘‘बुला लेना चुनमुन कह कर, मम्मी भी कभीकभी मुनमुन कह देती हैं मु झे. पर मेरे पापा तो बहुत दूर रहते हैं. मु झ से कभी मिलने भी नहीं आते. अब मैं नानी से फोन पर बात कैसे करूंगा?’’ कहते हुए चुनमुन की आंखें डबडबा गईं.

सारांश को चुनमुन पर तरस आ गया. प्यार से उस के गालों को थपथपाता हुआ वह बोला, ‘‘चलो, हम दोनों बाजार चलते हैं, मैं दिला दूंगा तुम को मोबाइल फोन.’’

‘‘पर अंकल, मेरी मम्मी नहीं मानेंगी न,’’ चुनमुन ने नाक चढ़ाते हुए ऊपर अपने घर की ओर इशारा करते हुए कहा.

‘‘अरे, आप की मम्मी को मैं मना लूंगा. हम दोनों तो दोस्त बन गए न, तुम्हारा नाम प्रियांश और मेरा सारांश. चलो, तुम्हारे घर चलते हैं,’’ कहते हुए सारांश ने चुनमुन का हाथ थाम लिया और सीढि़यों पर चढ़ना शुरू कर दिया.

दरवाजे पर नाइटी पहने खड़ी गौरवर्ण की आकर्षक महिला शायद चुनमुन का इंतजार कर रही थी. सारांश को देख कर वह एक बार थोड़ी सकपकाई, फिर मुसकरा कर अंदर आने को कहती हुई आगेआगे चलने लगी. भीतर आ कर सारांश ने अपना परिचय दिया.

उस के बारे में वह केवल इतना ही जान पाया कि उस का नाम शीतल है और पास के ही एक विद्यालय में अध्यापिका है. चुनमुन ने मोबाइल की घटना एक सांस में बता दी शीतल को, और साथ ही यह भी कि अंकल ने उस का नाम चुनमुन रखा है, इसलिए शीतल भी उसे इसी नाम से बुलाया करे, मुनमुन तो किसी लड़की के नाम जैसा लगता है.

शीतल रसोई में चली गई और सारांश चुनमुन से बातें करने लगा. तब तक शीतल फू्रट जूस ले कर आ गई. सारांश ने शाम को बाजार जाने का कार्यक्रम बना लिया. शीतल को भी बाजार में कुछ काम था. पहले तो वह साथ जाने में थोड़ी  िझ झक रही थी, पर सारांश के आग्रह को वह टाल न सकी.

तीनों शाम को सारांश की कार में बाजार गए और रात को बाहर से ही खाना खा कर घर लौटे. बाजार में चुनमुन सारांश की उंगली पकड़े ही रहा. सारांश भी कई दिनों से अकेलेपन से जू झ रहा था. इसलिए उसे भी उन दोनों के साथ एक अपनत्व का एहसास हो रहा था. शीतल के चेहरे पर आई चमक को सारांश साफसाफ देख पा रहा था. वह खुश था कि पड़ोसी एकदूसरे के साथ किस प्रकार एक परिवार की तरह जु

उस दिन के बाद चुनमुन अकसर सारांश के पास आ जाया करता था, सारांश भी कभीकभी उन के घर जा कर बैठ जाता था. सारांश को शीतल ने बताया कि उस के मातापिता हिमाचल प्रदेश में रहते हैं. ससुराल पक्ष के विषय में उस ने कभी कुछ नहीं बताया. सारांश भी अकसर उन को अपने मातापिता व छोटी बहन सुरभि के विषय में बताता रहता था. पिता दिल्ली में एक व्यापारी थे जबकि छोटी बहन एक साल से मिस्र में अपने पति के साथ रह रही थी.

उस दिन सारांश औफिस में बाहर से आए हुए कुछ व्यक्तियों के साथ व्यस्त था. एक महत्त्वपूर्ण बैठक चल रही थी. उस के फोन पर बारबार चुनमुन का फोन आ रहा था. सारांश ने 3-4 बार फोन काट दिया पर चुनमुन लगातार फोन किए जा रहा था. बैठक के बीच में ही बाहर जा कर सारांश ने उस से बात की.

चुनमुन को तेज बुखार था. शीतल ने डाक्टर को दिखा कर दवाई दिलवा दी थी और लगातार उस के पास ही बैठी थी. पर चुनमुन तो जैसे सारांश को ही अपनी पीड़ा बताना चाहता था. सारांश के दुलार से मिला अपनापन वह अपने नन्हे से मन में थाम कर रखना चाहता था.

मुझे त्योहार पर गुजिया बनाना पसंद है- प्रियदर्शिनी इंदलकर

आप को इस फील्ड में आने की प्रेरणा कैसे और कहां से मिली?

मेरे परिवार से कोई भी इस फील्ड से नहीं है, लेकिन मेरे पिताजी संभाजी इंदलकर को किस्से सुनाने और उन्हें मजाकिया ढंग से पेश करने में बहुत मजा आता है, जो वे ज्यादातर ग्रुप में करते हैं. उन्हीं से मुझे प्रेरणा मिली.

जब मैं 5वीं क्लास में थी, तब गरमियों की छुट्टियों में मेरी मां अस्मिता इंदलकर ने मुझे एक पर्सनैलिटी डवलपमैंट और थिएटर वर्कशौप में डाल दिया था. इस से मुझ में थिएटर में काम करने की इच्छा जगी और मैं ने कई जगह थिएटर किया.

9वीं क्लास में मैं ने मराठी का एक स्टैंडअप कौमेडी का शो किया था, जिस में मैं जीत गई थी. तब से मैं ने इसे अपना कैरियर बना लिया. इस के बाद मैं मुंबई आ गई और ‘हास्य जत्रा’ में काम करने लगी. इस में मैं साल 2019 से काम कर रही हूं.

आप को पहला ब्रेक कैसे मिला था? इस में परिवार का सहयोग कितना था?

सोनी मराठी चैनल के शुरू होते ही मैं ने एक शो के लिए औडिशन में भाग लिया था. मैं ने अपनी एक सहेली के साथ औडिशन दिया था. उस में सभी कलाकार उम्र में मुझ से बड़े थे, इसलिए उन्होंने मुझे बाद में बुलाने की बात कही और कुछ दिनों बाद ही बुला भी लिया.

इस सब में मुझे अपने परिवार का सहयोग मिला, क्योंकि मैं ने उन की शर्तों के मुताबिक अपनी पढ़ाई पूरी की थी. उन का मानना था कि अगर मैं ऐक्टिंग के फील्ड में कामयाब नहीं हुई, तो किसी दूसरी फील्ड में जा सकती हूं.

मैं जानती थी कि केवल थिएटर करने से कोई कलाकार नहीं बन सकता, उसे किसी को भी विजुअल मीडियम में दिखने की जरूरत होती है. ‘हास्य जत्रा’ ने मुझे वह कामयाबी दिलवाई. घर वालों ने भी इसे देखा और मुझे सहयोग मिलता गया.

इस से पहले जब तक मैं ने थिएटर किया, उस में पैसे नहीं मिलते थे, सिर्फ काम होता है, तब वे मेरे लिए ज्यादा असुरक्षित महसूस करने लगे थे, लेकिन अब सब ठीक है.

‘हास्य जत्रा’ में आप का किरदार क्या है?

इस शो में मेरे अलगअलग किरदार होते हैं, कोई डिसाइड हुआ रोल नहीं होता है, इसलिए तैयारियां बहुत करनी पड़ती हैं.

आप पर रिजैक्शन का असर कितना पड़ा? उसे कैसे लिया?

औडिशन देना इस फील्ड का सब से जरूरी पार्ट होता है, जिस में स्क्रीन टैस्ट, लुक टैस्ट सब होने के बाद कई बार पता चलता है कि मैं ऐक्टिंग के लिए नहीं चुनी गई. किसी कलाकार को यह सब सहना ही पड़ता है. तनाव होने पर खुद को ही इस का हल ढूंढ़ना पड़ता है, क्योंकि कई बार मैं ने महसूस किया है कि खूबसूरती की तारीफ यहां होती है, टैलेंट की नहीं.

आप त्योहार कैसे मनाती हैं?

हर बड़े त्योहार को मैं अपने परिवार और दोस्तों के साथ मनाना पसंद करती हूं. परिवार के साथ मिल कर गुजिया बनाना मुझे अच्छा लगता है, क्योंकि इस में दादी, मां, बहन के साथ बातचीत करना, एकदूसरे की कहानियां सुनना, हंसनागाना सब चलता रहता है.

नौजवान पीढ़ी खासकर लड़कियों के लिए कोई मैसेज?

मेरा मानना है कि लड़कियों को अपने जैंडर से आगे बढ़ना चाहिए. उन्हें किसी बात से डरना या घबराना नहीं चाहिए. अपने काम से नाम कमाना अच्छा होता है, जैंडर, खूबसूरती या फिगर से नहीं.

पसंदीदा रंग : नीला.

मनपसंद कपड़े : वैस्टर्न स्टाइल.

पसंदीदा किताब : कोसला, लेखक भालेचंद्र निमाड़े.

खाली समय में : फिल्में देखना, यारदोस्तों के साथ मस्ती करना.

मनपसंद परफ्यूम : इत्र.

पसंदीदा जगह : अंडमान निकोबार और स्वीडन.

जीवन के आदर्श : जियो और जीने दो.

सामाजिक काम : गरीब बच्चों के लिए परफौर्म करना.

सपना : सभी डायरैक्टरों के साथ काम करना.

सपनों का राजकुमार : फैमिनिस्ट हो, अच्छा पार्टनर हो.    

राजस्थान: राजनीति की भेंट चढ़ी श्रद्धांजलि सभा  

कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला को श्रद्धांजलि देने के लिए 12 सितंबर, 2022 को पुष्कर में एक श्रद्धांजलि सभा हुई. इस सभा में कांग्रेस सरकार के मंत्री अशोक चांदना पर जूतेचप्पल फेंके गए, लेकिन सब से बड़ी बात यह कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत को भाषण नहीं देने दिया गया.

जिस बेटे का पिता मुख्यमंत्री हो, उसे अपने पिता के शासन वाले राज्य में भाषण नहीं देने दिया जाए, इस से बड़ी कोई राजनीतिक घटना नहीं हो सकती. 12 सितंबर को पुष्कर में गुर्जरों की सभा में जोकुछ भी हुआ, उस से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को राजस्थान के हालात का अंदाजा लगा लेना चाहिए. ऐसे हालात तब हैं, जब महज 14 महीने बाद वहां विधानसभा चुनाव होने हैं.

सवाल उठता है कि आखिर मुख्यमंत्री के बेटे और सरकार के मंत्रियों को ले कर गुर्जर समुदाय में इतना गुस्सा क्यों है? सब जानते हैं कि जुलाई, 2020 के राजनीतिक संकट के समय मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बरखास्त उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट को धोखेबाज, नालायक और मक्कार तक कहा था. यह बात अलग है कि साल 2018 में गुर्जर समुदाय के सचिन पायलट के चलते ही प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी थी.

सचिन पायलट के मुख्यमंत्री बनने को ले कर गुर्जर समुदाय में इतना उत्साह था कि भाजपा के सभी गुर्जर उम्मीदवार चुनाव हार गए थे. पर सचिन पायलट के बजाय अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बनाने से गुर्जर समाज में नाराजगी देखी गई. यह नाराजगी तब और ज्यादा बढ़ गई, जब अशोक गहलोत ने सचिन पायलट को नालायक कहा था.

अशोक गहलोत मानें या न मानें, लेकिन जुलाई, 2020 में जिन शब्दों का इस्तेमाल किया गया, उसी का नतीजा रहा कि गुर्जरों की सभा में वैभव गहलोत को बोलने तक नहीं दिया गया. सवाल यह भी है कि आखिर वैभव गहलोत गुर्जरों की सभा में क्यों गए?

जानकारों के मुताबिक, पुष्कर को अपनी जागीर मानने वाले आरटीडीसी के अध्यक्ष धर्मेंद्र राठौड़ की रणनीति के तहत वैभव को गुर्जरों की सभा में लाया गया. इस के लिए उन्होंने ही कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के बेटे विजय बैंसला से वैभव को फोन करवाया. धर्मेंद्र राठौड़ ने ही अशोक गहलोत को बताया था कि वे वैभव को गुर्जरों की सभा में ले जा रहे हैं.

धर्मेंद्र राठौड़ को उम्मीद थी कि वैभव गहलोत बड़ी शान से गुर्जरों को संबोधित करेंगे, लेकिन सभा में जो उपद्रव हुआ, उस में धर्मेंद्र राठौड़ और वैभव गहलोत को पुलिस संरक्षण में सभा स्थल से महफूज जगह पर जाना पड़ा.

12 सितंबर, 2022 को पुष्कर के मेला मैदान में गुर्जर आरक्षण आंदोलन के मुखिया रहे कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला को श्रद्धांजलि देने का कार्यक्रम था. यह पूरी तरह सामाजिक आयोजन था, लेकिन सभा से पहले ही कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के बेटे विजय बैंसला ने राजनीति शुरू कर दी.

विजय बैंसला ने जिस तरह राजनीतिक बयानबाजी की, उस से सभा का माहौल और गरम हो गया. यही वजह रही कि अनेक नेताओं ने राजनीतिक भाषण दिया. नतीजतन, यह सभा श्रद्धांजलि सभा से ज्यादा राजनीतिक मंच बन गई.

जब कांग्रेस सरकार के खेल मंत्री अशोक चांदना और उद्योग मंत्री शकुंतला रावत (गुर्जर) भाषण देने आए, तो उपद्रव हो गया. राजनीतिक भाषणबाजी के चलते कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला को श्रद्धांजलि भी नहीं दी जा सकी. कहा जा सकता है कि राजनीतिक दलों की आपसी खींचतान की वजह से श्रद्धांजलि सभा राजनीति की भेंट चढ़ गई.

12 सितंबर, 2022 को जिस तरह पुष्कर में उपद्रव के दौरान सरकार के मंत्रियों को बोलने तक नहीं दिया गया, उस मामले में अब अजमेर प्रशासन पर गाज गिर सकती है. जानकार सूत्रों के मुताबिक, पुष्कर मामले को ले कर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत गंभीर हैं. यह माना जा रहा है कि हालात को भांपने में अजमेर प्रशासन नाकाम रहा.

मुख्यमंत्री की कबड्डी

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इन दिनों चौतरफा घिरे हुए हैं और विरोधियों से अकेले ही जूझ रहे हैं. चेहरे पर निराशा का भाव न आए, इसलिए 14 सितंबर, 2022 को उदयपुर के गोगुंदा में आयोजित ग्रामीण ओलिंपिक खेलों में उन्होंने खुद भी नौजवानों के साथ कबड्डी खेली.

अशोक गहलोत की उम्र 71 साल के पार है और अब कबड्डी जैसा जोखिम भरा खेल खेलना मुमकिन नहीं है, लेकिन विरोधियों को चुनौती देने के लिए अशोक गहलोत ने गोगुंदा में कबड्डी खेली.

दरअसल, अशोक गहलोत को भाजपा से ज्यादा कांग्रेस के असंतुष्टों से खतरा है.

12 सितंबर, 2022 को पुष्कर में आयोजित गुर्जरों के प्रोग्राम में जिस तरह से पुत्र वैभव गहलोत और सरकार के मंत्रियों को बोलने तक नहीं दिया गया, उस से जाहिर है कि अशोक गहलोत को अपनों से ही ज्यादा परेशानी है.

कांग्रेस के नेताओं को जब मुख्यमंत्री चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना, मुफ्त दवा और जांच, सवा करोड़ महिलाओं को मुफ्त स्मार्टफोन, मनरेगा की तरह शहरी क्षेत्रों में युवाओं को 100 दिन के रोजगार देने की गारंटी, बिजली के बिल में मोटी सब्सिडी जैसी योजनाओं का प्रचार करना चाहिए, तब कांग्रेस के ही नेताओं और विधायक गुर्जरों के प्रोग्राम में मंत्रियों और वैभव गहलोत को नहीं बोलने देने का मुद्दा उछाल रहे हैं.

सब जानते हैं कि अशोक गहलोत पिछले एक साल से कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीति में भी सक्रिय हैं. दिल्ली जा कर केंद्र सरकार के खिलाफ मोरचा खोलने का नतीजा ही है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अशोक गहलोत के गृह जिले जोधपुर में आ कर सार्वजनिक सभा की.

इतना ही नहीं, अशोक गहलोत के गृह राज्य मंत्री राजेंद्र यादव के परिवार के सदस्यों के व्यावसायिक ठिकानों पर इनकम टैक्स के छापे बताते हैं कि आने वाले दिनों में अशोक गहलोत के मंत्रियों व पहचान वालों पर छापामार कार्यवाही होगी.

राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस का ऐसा कोई नेता नहीं है, जो चौतरफा घिरे अशोक गहलोत का बचाव कर सके. कांग्रेस का नेतृत्व करने वाले गांधी परिवार का बचाव तो खुद अशोक गहलोत ही कर रहे हैं. कांग्रेस में राष्ट्रीय स्तर पर अशोक गहलोत के मुकाबले कोई नेता नहीं है, इसलिए उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव है. पर पुष्कर में वैभव गहलोत और उन के मंत्रियों के साथ जो गलत बरताव हुआ है, उस से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बेहद आहत हैं.

पुष्कर में सचिन पायलट समर्थकों ने ही अपनी भावनाओं को प्रदर्शित किया था. 12 सितंबर, 2022 की घटना के बाद अभी तक दोनों नेताओं की प्रतिक्रिया का सामने न आना बहुतकुछ दिखा रहा है. अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच जो राजनीतिक संघर्ष चल रहा है, उस के नतीजे अब जल्द ही देखने को मिलेंगे.

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